Mamata Banerjee Birthday : राजनीतिक हलकों में काफी समय तक ममता बनर्जी को बखेड़ा खड़ा करने वाली अपरिपक्व नेता के तौर पर देखा जाता रहा. उन के बारे में ऐसी राय बनी रही कि उन्हें बड़े परिपक्व नेताओं के बीच नहीं बुलाया जाना चाहिए. पता नहीं कब, कहां, क्या बवाल मचा दें. मगर आज दीदी की चर्चा राष्ट्रस्तर पर है. उन के बगैर विपक्षी एकता या विपक्षी गठबंधन की बात करना ही बेमानी है.
2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 18 जुलाई को जब बेंगलुरु में विपक्षी जमावड़े में ममता बनर्जी और सोनिया गांधी की उपस्थिति ने ‘विपक्षी एकता मंच’ में जान फूंकी, तो भाजपा रक्षात्मक मोड़ में आ गई. इस पर दीदी ने चुटकी ली कि, ‘भाजपा एक गिलास नहीं पलट सकती, मेरी सरकार क्या पलटेगी?’
बेंगलुरु में विपक्षी एकता मंच पर ममता बनर्जी और सोनिया गांधी को इतना एक्टिव देख कर ही एनडीए ने छोटेछोटे क्षेत्रीय दलों को जोड़ने की कोशिश में शीर्षासन शुरू किया था. भाजपा जानती है कि दीदी की दादागीरी शुरू हुई तो मुकाबला कठिन होगा. दीदी की ताकत का अंदाजा इंडिया गठबंधन को भी खूब है.
ममता ने 2011 में बंगाल के लोगों का दिल एक नारे से जीत लिया था- मां, माटी और मानुष. इस नारे के 3 शब्दों- ‘मां’ यानी मातृशक्ति, माटी यानी बंगाल की भूमि और मानुष यानी बंगाल के लोग, इन 3 को ममता ने अपने दिल के करीब बता कर बंगाल का दिल जीत लिया था.
ममता बनर्जी हमेशा बंगाल के लोगों के हितों पर बात करती हैं. इसी का परिणाम है कि लोग उन्हें हर चुनाव में विजयी बनाते हैं. ममता हमेशा जमीन से जुड़ी नेता रही हैं. अपने लोगों के लिए वे खुली किताब की तरह हैं. सफेद सूती साड़ी, पैर में रबड़ की चप्पल, कंधे पर पर्स की जगह सूती कपड़े का झोला टांगे ममता को अपनी मां के घर से पैदल निकलते जिस ने भी देखा वह उसी पल उन के व्यक्तित्व का कायल हो गया.
ममता हमेशा बंगाल के लोगों के बीच रहीं. राजनीति में आने के बाद भी वे बेहद साधारण से उस घर में रहती रहीं जिस की छत टिन की है और जिस के बगल से एक खुली नहर बहती है, जहां मच्छरों का बसेरा है. उन का सब से ज्यादा जुड़ाव अपनी मां गायत्री देवी से था, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं.
ममता जब भी अपने कालीघाट स्थित उस घर से काम के लिए निकलती थीं तो उन की मां उन्हें बाहर तक छोड़ने के लिए आया करतीं थीं. ममता अपनी गरदन घुमातीं और तब तक अपनी मां को देखा करतीं जब तक कि वे उन की आंखों से ओझल न हो जातीं. मां के घर के भीतर चले जाने के बाद ही वे कार में बैठती थीं. बंगाल के लोगों के लिए यह नजारा आम था. मां के प्रति ममता का वह प्रेम जनता के दिलों में उन के लिए एक स्थाई जगह बना चुका है.
ममता ने बंगाल की जनता के लिए अपने शासनकाल में अनगिनत कल्याणकारी योजनाएं चलाईं. इस का फायदा आम लोगों तक पहुंचा, जिस के चलते बंगाल के लोगों का भरोसा ममता बनर्जी पर कायम हुआ. ममता ने अपने राज्य में कभी हिंदूमुसलिम में भेद नहीं किया. बंगाल का मुसलमान ममता पर आंख मूंद कर भरोसा करता है. उसे पता है कि ममता हैं तो वे सुरक्षित हैं. कोई भी चुनाव हो, ममता के लिए मुसलमानों का एकतरफा वोट पड़ता है. ममता ने समयसमय पर मुसलमानों के हित में कई फैसले लिए हैं.
ममता का जुझारू तेवर
बंगाल के लोगों को ममता बनर्जी का जुझारू तेवर पंसद आता है. ममता आम लोगों के हितों के लिए जुझारू तरीके से लड़ती हैं. इस के चलते ही लोग ममता को चाहते हैं और उन्हें ही चुनते हैं.
भाजपा को घेरने और टोकने का कोई मौका ममता छोड़ती नहीं हैं. हाल ही में कोलकाता की एक जनसभा में उन्होंने केंद्र सरकार के रवैए को उजागर करते हुए कहा, ‘सुनने में आ रहा है कि अब हमें साल 2024 तक फंड नहीं मिलेगा. ऐसा हुआ तो जरूरत पड़ने पर मैं आंचल फैला कर बंगाल की माताओं के सामने भीख मांग लूंगी, लेकिन भीख मांगने दिल्ली (केंद्र सरकार के पास) कभी नहीं जाऊंगी.
उन के सियासी कैरियर में चिंता और गिरावट का दौर पिछले लोकसभा चुनाव में उस वक्त आया था जब भाजपा पश्चिम बंगाल में 42 में से 18 सीटें ले गई थी. हालांकि इस के बाद हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी की जोरदार वापसी हुई थी लेकिन दक्षिणपंथ के पसरते पांव देख उन्हें चिंता हुई थी कि कैसे भगवा रथ रोका जाए. चुनावी विश्लेषणों से एक बात आईने की तरह साफ़ हुई थी कि टीएमसी का वोट तो ज्यों का त्यों है पर वामदलों और कांग्रेस का वोट भाजपा में शिफ्ट हो रहा है.
इस शिफ्टिंग को रोकने को ममता ने वामदलों और कांग्रेस से हाथ मिला लेना बेहतर समझा और इंडिया गठबंधन में सभी के साथ हो लीं. जाहिर है उन्हें वामदलों के मुकाबले भाजपा बड़ा खतरा लगी जो पश्चिम बंगाल का माहौल बिगाड़ने में भी कामयाब हो रही थी. यह खतरा कितना टला, यह तो इस साल के लोकसभा चुनाव नतीजे बताएंगे लेकिन ममता के लिए सुकून देने वाली बात यह है कि पंचायत चुनावों में वोटरों ने भाजपा को नकारते उन्हें स्वीकारा है.
यह ममता की जीवटता ही कही जाएगी कि उन्होंने वामदलों को एक झटके में पश्चिम बंगाल से उखाड़ फेंका जो अपने उसूल छोड़ने लगे थे लेकिन वोटर को उन का विकल्प नहीं सूझ रहा था. ऐसे में ममता पश्चिम बंगाल के लोगों को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रही थीं कि एक विचार ऐसा भी है जो कांग्रेस और वामदल दोनों का प्रतिनिधित्व करता है और किसी एक विचारधारा के पीछे अंधा हो कर नहीं चलता. अब उन्हें यह साबित करना है कि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति से पश्चिम बंगाल को कैसे दूर रखें.
इस के लिए जरूरत पड़ी तो वे लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में उदारता दिखाएंगी और कम से कम पर राजी हो जाएंगी हालांकि इस में टीएमसी का थोड़ा नुकसान है लेकिन ज्यादा नुकसान और बड़े खतरे से बचने को इस के अलावा कोई और रास्ता भी उन के पास नहीं.