सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग केस की जांच सीबीआई से कराने या उस के लिए स्पैशल इन्वैस्टिगेशन टीम बना कर सारा मामला उस को ट्रांसफर करने से साफ इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि सेबी ही इस मामले की जांच करेगी. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बैंच ने सेबी की जांच को सही माना और कहा कि इस मामले की जांच के लिए सेबी सक्षम एजेंसी है.

सुप्रीम कोर्ट ने उस के अधिकार क्षेत्र में भी दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि अदालत सेबी की जांच रिपोर्ट में दखल देने नहीं जा रही है. सीजेआई जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि कोर्ट को सेबी के अधिकार क्षेत्र में दखल देने के सीमित अधिकार हैं. जांच न तो एसआईटी को ट्रांसफर की जाएगी, न ही सीबीआई से मामले की जांच कराने की कोई जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने जौर्ज सोरोस से जुड़ी संस्था ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर भी संदेह जताया और कहा कि स्वतंत्र रूप से ऐसे आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकती और उन्हें सही जानकारी नहीं माना जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अख़बारों में छपी रिपोर्ट को एविडैन्स नहीं मान सकते. हां, कुछ हद तक इन पर जांच जरूर हो सकती है.

बता दें कि ओसीसीआरपी और हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में अडानी ग्रुप पर शेयरों की कीमत के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था. अमेरिकी शौर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग की जनवरी 2023 में जारी की गई रिसर्च रिपोर्ट में अडानी ग्रुप की कंपनियों में गड़बड़ी के आरोप लगाए गए थे. इन में एक आरोप यह भी था कि गौतम अडानी और उन के समूह ने पैसे गलत तरीके से दुबई और मौरिशस भेजे. फिर उन्हीं पैसों को वापस अडानी के शेयर में इन्वैस्ट किया गया और इस के जरिए शेयरों की कीमतों में उतारचढ़ाव कराया गया व शेयरधारकों के हितों के साथ खिलवाड़ किया गया.

इस रिपोर्ट के आने के बाद अडानी ग्रुप के सभी शेयरों में बड़ी तेजी से गिरावट आई थी और इन की संपत्ति को भी तगड़ा नुकसान हुआ था. बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने शेयर बाजार का रैग्युलेटर होने के नाते सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया) से यह पता लगाने को कहा था कि अडानी समूह की ओर से नियमों का उल्लंघन तो नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि सेबी ने अडानी-हिंडनबर्ग केस से जुड़े 24 में से 22 मामलों की जांच पूरी कर ली है, सिर्फ 2 मामलों की जांच बाकी है. बाकी बचे दोनों मामलों की जांच पूरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को 3 महीने की मोहलत दी है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता कोई भी ऐसा ठोस आधार नहीं रख पाए हैं जिस के चलते जांच का जिम्मा किसी और एजेंसी को सौंपने की जरूरत लगे.

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बैंच ने कहा कि अखबारों में छपी रिपोर्ट के आधार पर सेबी जैसी संस्था की विश्वसनीयता पर शक नहीं किया जा सकता. सेबी ने मामले से जुड़े 24 में से 22 बिंदुओं की जांच पूरी कर ली है. जिन 2 पहलुओं पर जांच लंबित है उन्हें भी सेबी 3 महीने में पूरा कर ले. इस के बाद वह अपनी रिपोर्ट के आधार पर ज़रूरी कार्रवाई करे.

एक बात गौर करने वाली है कि सब से पहले डायरैक्टोरेट औफ रैवेन्यू इंटैलिजैंस (डीआरआई) ने अडानी समूह की कंपनियों समेत 40 कंपनियों पर आरोप लगाया था कि वे इंडोनेशिया से आने वाले कोयले की कीमत को बढ़ाचढ़ा कर (ओवर इन्वौयसिंग) बताते हैं. डीआरआई वित्त मंत्रालय के अधीन एक जांच संस्था है. डीआरआई ने अपनी जांच में कहा कि अडानी समूह, दूसरी निजी कंपनियां और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने आयातित कोयले की कीमतों को बढ़ाचढ़ा कर बताया, इस के लिए इनवौइस और कीमत निर्धारण में छेड़खानी की गई और इन से जो गैरकानूनी मुनाफा हुआ, उसे विदेशी ‘टैक्स हैवन’ में भेजा जा रहा है.

गौर करने वाली बात है कि देश की सरकारी एजेंसी ने अडानी पर जो आरोप लगाए थे, बाद में बिलकुल वैसे ही आरोप हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में भी लगे. मगर कोर्ट और सेबी को किसी के भी आरोप में इतना दम नजर नहीं आया कि इस मामले को विस्तृत जांच के लिए किसी स्पैशल जांच एजेंसी को सौंपा जाए.

हो सकता है कोर्ट को लगा हो कि किसी भी जांच एजेंसी को मामला सौंपने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि सब सरकार के इशारे पर चलती हैं. और वर्तमान समय में सरकार मतलब अडानी, यह किसी से ढकीछिपी बात नहीं है. जब सैंया भये कोतवाल तो फिर डर काहे का. तो इस मामले में सीबीआई या एसआईटी भी अडानी के खिलाफ क्या ही जांच करेंगी और क्या ही फैसला देंगी? सुप्रीम कोर्ट तो सीबीआई को खुद ‘तोते’ की उपाधि से पहले नवाज चुका है. ऐसे में अब सेबी की अंतिम रिपोर्ट का उसे इंतजार है.

गौरतलब है कि गौतम अडानी और उन की कंपनियों के खिलाफ पहले भी कई गंभीर आरोप लगे हैं और दर्जनों मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे हैं मगर तमाम मामलों में फैसले उन के पक्ष में ही होते रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जे पी सिंह की मानें तो सुप्रीम कोर्ट में अडानी का जलवा लंबे समय से बरकरार है. इस फैसले से पहले करीब 6 फैसले सुप्रीम कोर्ट ने अडानी के पक्ष में सुनाए हैं.

इन में पहला केस अडानी गैस लिमिटेड बनाम यूनियन गवर्नमैंट का था. यह केस नेचुरल गैस वितरण नैटवर्क प्रोजैक्ट से संबंधित था. अडानी गैस लि. कंपनी का प्रोजैक्ट उदयपुर और जयपुर में चल रहा था, लेकिन राज्य के साथ हुए कौन्ट्रैक्ट की शर्तें न मानने पर राजस्थान सरकार ने नो औब्जेक्शन सर्टिफिकेट वापस लेने के साथ उन का कौन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया.

सरकार ने कौन्ट्रैक्ट के वक्त जमा 2 करोड़ रुपए भी जब्त कर लिया. साथ ही, दोनों शहरों में गैस पाइपलाइन बिछाने की एप्लिकेशन भी रिजैक्ट कर दी. अडानी गैस लिमिटेड सुप्रीम कोर्ट चली गई. वहां जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सरन की बैंच ने राजस्थान सरकार का फैसला पलट दिया. गैस प्रोजैक्ट फिर से अडानी को मिल गया और 2 करोड़ रुपए की जब्ती भी रद्द कर दी गई.

दूसरा केस था टाटा पावर कंपनी लिमिटेड बनाम अडानी इलैक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड एंड अदर्स का. टाटा पावर मुंबई में इलैक्ट्रिसिटी सप्लाई का काम करती थी. रिलायंस एनर्जी लिमिटेड केवल उपनगरों या कहें कि शहर से बाहर के कुछ इलाकों में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का काम करती थी. टाटा पावर के 108 कस्टमर थे, ये वो कंपनियां थीं जो टाटा से बिजली ले कर शहर में बिजली आपूर्ति करती थीं. बीएसईएस/रिलायंस एनर्जी लिमिटेड को टीपीसी को पहले से बकाया राशि के साथ टैरिफ की रकम जोड़ कर देनी थी.

महाराष्ट्र इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड को टाटा पावर सारा बकाया दे चुका था. मतलब एक चेन थी. टाटा पावर अपने कस्टमर, जिस में रिलायंस की कंपनी भी थी, से टैरिफ और बकाया लेती थी, फिर कौन्ट्रैक्ट के मुताबिक महाराष्ट्र इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड को एक तरह से रैंट देती थी. पर कंपनी के आंतरिक बदलाव की वजह से बीएसईएस एनर्जी लिमिटेड 24 फरवरी, 2004 को रिलायंस एनर्जी लिमिटेड में तबदील हो गई. टीपीसी और रिलायंस एनर्जी लिमिटेड के लेनदेन को ले कर विवाद की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस अब्दुल नजीर की बैंच ने फैसला अडानी इलैक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के पक्ष में दे दिया.

तीसरा केस परसा कांटा कोलरीज लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन का था जिस में भी फैसला अडानी के पक्ष में आया था. छत्तीसगढ़ के दक्षिण सरगुजा के हसदेव-अरण्य कोल फील्ड्स के परसा ईस्ट और केते बासन में आवंटित कोल ब्लौक प्रोजैक्ट को ले कर वहां के आदिवासियों में गुस्सा था. इस प्रोजैक्ट में अडानी और राजस्थान सरकार के बीच 74 फीसदी और 26 फीसदी की हिस्सेदारी थी. ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे रोक दिया था.

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी आदिवासियों की आपत्ति पर नोटिस जारी किया था. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इस में भी जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बैंच ने अडानी के पक्ष में फैसला सुना दिया. उल्लेखनीय है कि इस मामले की सुनवाई पहले से जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बैंच कर रही थी. पर सुप्रीम कोर्ट के तब के चीफ जस्टिस ने इसे हड़बड़ी में जस्टिस मिश्रा की ग्रीष्मकालीन अवकाश पीठ में सूचीबद्ध कर दिया. बिना पुरानी बैंच को जानकारी दिए इस की सुनवाई भी हो गई और अडानी के पक्ष में फैसला भी आ गया.

चौथा मामला अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड और गुजरात इलैक्ट्रिसिटी रैगुलेटरी कमीशन के बीच का है. इसे भी ग्रीष्मकालीन अवकाश बैंच में लिस्ट किया गया. 23 मई, 2019 को जस्टिस मिश्रा और जस्टिस शाह की बैंच ने सुनवाई की. एक ही सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया. फिर अडानी की कंपनी को गुजरात इलैक्ट्रिसिटी रैगुलेटरी कमीशन के साथ किए गए बिजली वितरण का कौन्ट्रैक्ट रद्द करने की मंजूरी दे दी गई.

फैसला इस आधार पर दिया गया कि सरकार की कोल खनन कंपनी अडानी पावर लिमिटेड को कोल आपूर्ति करने में असमर्थ रही जबकि अडानी ने बोली लगाने के बाद कौन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया था. दरअसल, अडानी की कंपनी को लगने लगा था कि सौदा कम मुनाफे का है. लिहाजा, अडानी पावर मुंद्रा लिमिटेड करार जारी रखना नहीं चाहती थी.

5वां केस पावर ग्रिड कार्पोरेशन औफ इंडिया बनाम कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड का है. 22 जुलाई, 2020 को जस्टिस अरुण मिश्रा की बैंच ने सरकारी कंपनी पावर कौर्पोरेशन औफ इंडिया लिमिटेड के खिलाफ अडानी की कंपनी कोरबा वेस्ट पावर कंपनी लिमिटेड के पक्ष में फैसला सुनाया था. इस में पावर ग्रिड को कोरबा वेस्ट से बकाया लेना था. पावर ग्रिड का आरोप था कि अडानी की कंपनी ने कानूनी दांवपेच चलते हुए करोड़ों का बकाया हजम कर लिया.

6ठा केस जयपुर विद्युत वितरण लिमिटेड बनाम अडानी पावर राजस्थान लि. का था, जिस में सितंबर 2020 में अडानी राजस्थान पावर लिमिटेड (एआरपीएल) के पक्ष में एक और फैसला आया. जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस एम आर शाह की बैंच ने राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों के समूह की वह याचिका खारिज कर दी जिस में एआरपीएल को कंपनसेटरी टैरिफ देने की बात कही गई है.

पीठ ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपीलीय पंचाट के उस फैसले को सही ठहराया जिस में एआरपीएल को राजस्थान वितरण कंपनियों के साथ हुए पावर परचेज एग्रीमैंट के तहत कंपनसेटरी टैरिफ पाने का हकदार बताया गया था. जानकारों के मुताबिक इस फैसले से अडानी ग्रुप को 5,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इन फैसलों से अडानी की कंपनियों को करीब 20,000 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है. वे कहते हैं, ‘ग्रीष्मकालीन अवकाश के दौरान 2 फैसले इतनी हड़बड़ी में लिए गए कि दूसरे पक्ष के काउंसलर्स को भी सूचना नहीं दी गई.’

वहीं 16 अगस्त, 2019 को सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने अडानी से जुड़े सभी फैसलों को ले कर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को खत भी लिखा. दुष्यंत दवे ने कहा था कि ग्रीष्मावकाश में 2 मामलों के निबटारे से अडानी को हजारों करोड़ का लाभ हुआ है.

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने आरोप लगाया कि अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े 2 मामलों को उच्चतम न्यायालय ने गरमी की छुट्टी के दौरान सूचीबद्ध किया और उच्चतम न्यायालय की स्थापित प्रैक्टिस और प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए निबटाया. इसी तरह से गुजरात के एक मामले में भी किया गया, जिस की सुनवाई 2017 के बाद से नहीं हुई थी.

इस बीच, किसी भी बैंच के सामने उसे लिस्ट नहीं किया गया था. लेकिन अचानक इसे भी उसी ग्रीष्मकालीन बैंच के सामने पेश कर दिया गया और उस ने सुनवाई कर उस पर अडानी के पक्ष में फैसला भी सुना दिया. यह मामला अडानी पावर लिमिटेड और गुजरात इलैक्ट्रिसिटी कमीशन एंड अदर्स के बीच था.

जे पी सिंह कहते हैं कि यह बड़े गौर करने वाली बात है कि अडानी को राहत देने वाले सभी पीठों की अध्यक्षता तब जस्टिस अरुण मिश्रा ने की थी और उन के साथ अलगअलग पीठों में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस एम आर शाह, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस बी आर गवई शामिल थे. यह महज संयोग नहीं हो सकता.

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से अडानी ग्रुप में खुशी की लहर है. फैसला ऐसे वक्त में आया है जब पूरा देश राममय हो रहा है. स्वयं गौतम अडानी अयोध्या पहुंच कर प्रधानमंत्री मोदी के साथ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का हिस्सा बनने के लिए आतुर हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उन के उत्साह को दूनाचौगुना कर दिया है. मगर विपक्ष इस फैसले से काफी आहत है. उस का मानना है कि यह जल्दबाजी वाला फैसला है. बिना आग के धुंआ नहीं होता. बात किसी बाहरी एजेंसी के लगाए आरोपों की नहीं है, आरोप तो सरकारी एजेंसी ने भी वही लगाए थे. सो, ऐसे में इस की विस्तृत पड़ताल होनी चाहिए थी.

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