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Online Hindi Story : जन्म समय – कितने साल पुराना था नया अस्पताल ?

Online Hindi Story : रिसैप्शन रूम से बड़ी तेज आवाजें आ रही थीं. लगा कि कोई झगड़ा कर रहा है. यह जिला सरकारी जच्चाबच्चा अस्पताल का रिसैप्शन रूम था. यहां आमतौर पर तेज आवाजें आती रहती थीं. अस्पताल में भरती होने वाली औरतों के हिसाब से स्टाफ कम होने से कई बार जच्चा व उस के संबंधियों को संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता था.

अस्पताल बड़ा होने के चलते जच्चा के रिश्तेदारों को ज्यादा भागादौड़ी करनी पड़ती थी. इसी झल्लाहट को वे गुस्से के रूप में स्टाफ व डाक्टर पर निकालते थे.

मुझे एक तरह से इस सब की आदत सी हो गई थी, पर आज गुस्सा कुछ ज्यादा ही था. मैं एक औरत की जचगी कराते हुए काफी समय से सुन रहा था और समय के साथसाथ आवाजें भी बढ़ती ही जा रही थीं.

मेरा काम पूरा हो गया था. थोड़ा मुश्किल केस था. केस पेपर पर लिखने के लिए मैं अपने डाक्टर रूम में गया.

मैं ने वार्ड बौय से पूछा, ‘‘क्या बात है, इतनी तेज आवाजें क्यों आ रही हैं?’’

‘‘साहब, एक शख्स 24-25 साल पुरानी जानकारी हासिल करना चाहते हैं. बस, उसी बात पर कहासुनी हो रही है.’’

वार्ड बौय ने ऐसे बताया, जैसे कोई बड़ी बात नहीं हो.

‘‘अच्छा, उन्हें मेरे पास भेजो,’’ मैं ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ वह रिसैप्शन रूम की ओर बढ़ गया.

कुछ देर बाद वह वार्ड बौय मेरे चैंबर में आया. उस के साथ तकरीबन 25 साल की उम्र का नौजवान था.

वह शख्स थोड़ा पढ़ालिखा लग रहा था. शक्ल भी ठीकठाक थी. पैंटशर्ट में था. वह काफी परेशान व उलझन में दिख रहा था. शायद इसी बात का गुस्सा उस के चेहरे पर था.

‘‘बैठो, क्या बात है?’’ मैं ने केस पेपर पर लिखते हुए उसे सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

‘‘डाक्टर साहब, मैं कितने दिनों से अस्पताल के धक्के खा रहा हूं. जिस टेबल पर जाऊं, वह यही बोलता है कि यह मेरा काम नहीं है. उस जगह पर जाओ. एक जानकारी पाने के लिए

मैं 5 दिन से धक्के खा रहा हूं,’’ उस शख्स ने अपनी परेशानी बताई.

‘‘कैसी जानकारी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जन्म के समय की जानकारी,’’ उस ने ऐसे बोला, जैसे कि कोई बड़ा राज खोला.

‘‘किस के जन्म की?’’ आमतौर पर लोग अपने छोटे बच्चे के जन्म की जानकारी लेने आते हैं, स्कूल में दाखिले के लिए.

‘‘मेरे खुद के जन्म की.’’

‘‘आप के जन्म की? यह जानकारी तो तकरीबन 24-25 साल पुरानी होगी. वह इस अस्पताल में कहां मिलेगी. यह नई बिल्डिंग तकरीबन 15 साल पुरानी है. तुम्हें हमारे पुराने अस्पताल के रिकौर्ड में जाना चाहिए.

‘‘इतना पुराना रिकौर्ड तो पुराने अस्पताल के ही रिकौर्ड रूम में होगा, सरकार के नियम के मुताबिक, जन्म समय का रिकौर्ड जिंदगीभर तक रखना पड़ता है.

‘‘डाक्टर साहब, आप भी एक और धक्का खिला रहे हो,’’ उस ने मुझ से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘नहीं भाई, ऐसी बात नहीं है. यह अस्पताल यहां 15 साल से है. पुराना अस्पताल ज्यादा काम के चलते छोटा पड़ रहा था, इसलिए तकरीबन 15 साल पहले सरकार ने बड़ी बिल्डिंग बनाई.

‘‘ओ भाई यह अस्पताल यहां शिफ्ट हुआ था, तब मेरी नौकरी का एक साल ही हुआ था. सरकार ने पुराना छोटा अस्पताल, जो सौ साल पहले अंगरेजों के समय बना था, पुराना रिकौर्ड वहीं रखने का फैसला किया था,’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘साहब, मैं वहां भी गया था, पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बोले, ‘प्रमाणपत्र में सिर्फ तारीख ही दे सकते हैं, समय नहीं,’’’ उस शख्स ने कहा.

आमतौर पर जन्म प्रमाणपत्र में तारीख व जन्मस्थान का ही जिक्र होता है, समय नहीं बताते हैं. पर हां, जच्चा के इंडोर केस पेपर में तारीख भी लिखी होती है और जन्म समय भी, जो घंटे व मिनट तक होता है यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट तक होता है, यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट पर हुआ.

तभी मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा कि जन्म प्रमाणपत्र में तो सिर्फ तारीख व साल मांगते हैं, इस को समय की जरूरत क्यों पड़ी?

‘‘भाई, तुम्हें अपने जन्म के समय की जरूरत क्यों पड़ी?’’ मैं ने उस से हैरान हो कर पूछा.

‘‘डाक्टर साहब, मैं 26 साल का हो गया हूं. मैं दुकान में से अच्छाखासा कमा लेता हूं. मैं ने कालेज तक पढ़ाई भी पूरी की है. मुझ में कोई ऐब भी नहीं है. फिर भी मेरी शादी कहीं तय नहीं हो पा रही है. मेरे सारे दोस्तों व हमउम्र रिश्तेदारों की भी शादी हो गई है.

‘‘थकहार कर घर वालों ने ज्योतिषी से शादी न होने की वजह पूछी. तो उस ने कहा, ‘तुम्हारी जन्मकुंडली देखनी पड़ेगी, तभी वजह पता चल सकेगी और कुंडली बनाने के लिए साल, तारीख व जन्म के समय की जरूरत पड़ेगी.’

‘‘मेरी मां को जन्म की तारीख तो याद है, पर सही समय का पता नहीं. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि मेरा जन्म आधी रात को इसी सरकारी अस्पताल में हुआ था.

‘‘बस साहब, उसी जन्म के समय के लिए धक्के खा रहा हूं, ताकि मेरा बाकी जन्म सुधर जाए. शायद जन्म का सही समय अस्पताल के रिकौर्ड से मिल जाए.’’

‘‘मेरे साथ आओ,’’ अचानक मैं ने उठते हुए कहा. वह उम्मीद के साथ उठ खड़ा हुआ.

‘‘यह कागज व पैन अपने साथ रखो,’’ मैं ने क्लिप बोर्ड से एक पन्ना निकाल कर कहा.

‘‘वह किसलिए?’’ अब उस के चौंकने की बारी थी.

‘‘समय लिखने के लिए,’’ मैं ने उसे छोटा सा जवाब दिया.

‘‘मेरी दीवार घड़ी में जितना समय हुआ है, वह लिखो,’’ मैं ने दीवार घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा.

उस ने हैरानी से लिखा. सामने ही डिलीवरी रूम था. उस समय डिलीवरी रूम खाली था. कोई जच्चा नहीं थी.

डिलीवरी रूम में कभी भी मर्द को दाखिल होने की इजाजत नहीं होती है. मैं उसे वहां ले गया. वह भी हिचक के साथ अंदर घुसा.

मैं ने उस कमरे की घड़ी की ओर इशारा करते हुए उस का समय नोट करने को कहा, ‘‘अब तुम मेरी कलाई घड़ी और अपनी कलाई घड़ी का समय इस कागज में नोट करो.’’

उस ने मेरे कहे मुताबिक सारे समय नोट किए.

‘‘अच्छा, बताओ सारे समय?’’ मैं ने वापस चैंबर में आ कर कहा.

‘‘आप की घड़ी का समय दोपहर 2.05, मेरी घड़ी का समय दोपहर 2.09, डिलीवरी रूम का समय दोपहर 2.08 और आप के चैंबर का समय दोपहर 2.01 बजे,’’ जैसेजैसे वह बोलता गया, खुद उस के शब्दों में हैरानी बढ़ती जा रही थी.

‘‘सभी घडि़यों में अलगअलग समय है,’’ उस ने इस तरह से कहा कि जैसे दुनिया में उस ने नई खोज की हो.

‘‘देखा तुम ने अपनी आंखों से, सब का समय अलगअलग है. हो सकता है कि तुम्हारे ज्योतिषी की घड़ी का समय भी अलग हो. और जिस ने पंचांग बनाया हो, उस की घड़ी में उस समय क्या बजा होगा, किस को मालूम?

‘‘जब सभी घडि़यों में एक ही समय में इतना फर्क हो, तो जन्म का सही समय क्या होगा, किस को मालूम?

‘‘जिस केस पेपर को तुम ढूंढ़ रहे हो, जिस में डाक्टर या नर्स ने तुम्हारा जन्म समय लिखा होगा, वह समय सही होगा कि गलत, किस को पता?

‘‘मैं ने सुना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक पल का फर्क भी ग्रह व नक्षत्रों की जगह में हजारों किलोमीटर में हेरफेर कर देता है. तुम्हारे जन्म समय में तो मिनटों का फर्क हो सकता है.

‘‘सुनो भाई, तुम्हारी शादी न होने की वजह यह लाखों किलोमीटर दूर के बेचारे ग्रहनक्षत्र नहीं हैं. हो सकता है कि तुम्हारी शादी न होने की वजह कुछ और ही हो. शादियां सिर्फ कोशिशों से होती हैं, न कि ग्रहनक्षत्रों से,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने घडि़यों के समय का फर्क बता कर मेरी आंखें खोल दीं. इतना पढ़नेलिखने के बावजूद भी मैं सिर्फ निराशा के चलते इन अंधविश्वासों के फेर में फंस गया. मैं फिर से कोशिश करूंगा कि मेरी शादी जल्दी से हो जाए.’’

अब उस शख्स के चेहरे पर निराशा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी.

Hindi Kahani : फ्लौप गैंग – अमेरिका से साची को किसने किया था फोन?

Hindi Kahani : मुंबई के मलाड इलाके के एक बार में बैठा वीर और उस का गैंग शराब के नशे में टुन्न हो कर अचानक से परम ज्ञानी बन गया था. बार के मालिक सनी अरोड़ा का दिमाग घूम रहा था. वह कई बार अपने वेटर्स को इशारे कर चुका था कि अब पेमेंट करवा ले. नशे में टुन्न हो कर अकसर यह गैंग बिना पैसे दिए ही बार से निकल जाता था, टोकने पर कहता, ‘अरे, पा जी, कल फिर आएंगे, सालों के ग्राहक हैं, कल ले लेना.’

सनी इन सब से पंगा भी नहीं लेना चाहता था. बेकार के लोग थे. सब के सब दिनरात फ़ालतू के हंगामे करते. अभी तो कुछ दिनों से यह गैंग कुछ ज़्यादा ही शेर हो गया था. एक लोकल छुटभैया नेता के साथ ज़रा सा उठनाबैठना क्या हुआ, गैंग के सातों लड़के अपनेआप को कोई बहुत बड़ा गैंगस्टर समझने लगे थे.

वेटर बिल की ट्रे ले कर वीर की टेबल पर रख आया और दूर जा कर खड़ा हो गया. वीर के साथी उमेश ने बिल देखा, ‘अरे यार, 7 हज़ार रुपए का बिल है. इतने पैसे किस के पास हैं?’

सब का नशा अचानक उतर गया. वीर ने चारों तरफ नज़र डाली. कोने की टेबल पर एक युवा जोड़ा अपनी बातों में खोया हुआ था. वीर बहकते क़दमों से उन की तरफ बढ़ा. युवा जोड़ा उसे देख कर चौंका, सहमा. वीर ने दादागीरी से पूछा, “क्या नाम है? यहां क्या कर रहे हो?”

लड़का तुरंत अकड़ से बोला, “तुम से मतलब?”

“हां, है मतलब. चल बता, यहां क्या कर रहा है?”

“जिस काम से सब यहां आते हैं, वही कर रहा हूं.”

“मुझ से जबान चलाएगा, जानता नहीं, मैं कौन हूं?”

“होगा कोई, नहीं जानता.”

“मेरे एक फोन से अंदर बंद हो जाएगा, लड़की की बदनामी अलग से होगी.”

“पर इस बार में तो हम पहले भी आए हैं.”

इतने में उमेश ने पीछे से आ कर वीर से कहा, “क्या भाई, क्या हुआ? नेता जी को फोन करूं क्या? कोई मुश्किल है?”

“हां, यार, आजकल ये लड़कालड़की लोग समाज का माहौल खराब करने पर तुले हैं. ऐ लड़की, ऐ लड़के, तेरा नाम क्या है?”

“मैं रमेश, यह आयशा.”

“ओफ्फो, तुम लोग ये सब कर कर के देश का बेड़ा गर्क करने पर क्यों तुले हो? तुम लोगों के घरवालों ने यही संस्कार दिए हैं? दूसरी जाति के लोगों के साथ क्यों उठतेबैठते हो? भाई, अपनीअपनी जात के साथ यह सब मस्ती, प्यारव्यार, एंजौय किया करो. चलो, अब चुपचाप हमारा बिल भी दे दो, नहीं तो बुरी तरह फंसोगे.”

आयशा की तो इतनी देर में डर के कारण हालत खराब हो चुकी थी. वीर और उस का पूरा गैंग रमेश और आयशा को जैसे घेर कर खड़ा हो गया था.

सनी समझ चुका था कि वह बीच में बोला, तो गड़बड़ हो जाएगी. छोटीछोटी बातों में राजनीति इतनी अंदर तक घुस चुकी है कि 2 लोग अपनी मरजी से चाह कर भी शांति से साथ बैठ नहीं सकते. धर्म प्रेम का दुश्मन बन चुका है. ये लोग क्या कभी समझ पाएंगे कि प्यार कभी जाति, धर्म पूछ कर नहीं हो सकता.

आयशा ने रमेश को इशारा किया कि पैसे दे कर यहां से निकल लेना चाहिए. रमेश ने वीर को घूरते हुए अपना वौलेट टटोला, कार्ड निकाल कर अपना और वीर के गैंग का बिल दिया और आयशा का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गया. वीर ने अपने फ़र्ज़ी कौलर ऊपर किए और वहां से निकल गया.

बाहर आ कर सब लोग रोड के एक किनारे खड़े हो गए. सचिन ने वीर से कहा, “क्या बात है, बौस, मजा आ गया. आप ने तो डरा कर उन से अपना बिल ही भरवा लिया. बढ़िया मुरगा पकड़ा. लड़की डर गई थी.”

“क्यों न डरती? हिंदूमुसलिम लड़कालड़की जहां दिखे, डरा दो, उन पर हावी हो जाओ. आजकल तो यह सब से बढ़िया टाइमपास चल रहा है. नेता जी ने भी कहा है, यह टौपिक सदाबहार है. अभी इसी के दिन हैं. कहीं भी कोई गंभीर मुद्दा उठाने की ज़रूरत नहीं है, बस, हर बात में कोशिश करनी है कि घूमफिर कर हिंदूमुसलिम की बात पर शोर मचा देना है. कुछ गड़बड़ हुई तो वे संभाल लेंगे. कोई डरने की बात नहीं है.”

थोड़ी देर बाद गैंग के सब लोग अपनेआप को शाबाशी देते हुए अपनेअपने घर चले गए.

वीर ग्रेजुएट था. पर आगे की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी उस की. न नौकरी कर के किसी मेहनत करने के मूड में था वह. पिता गोपाल एक फैक्ट्री में काम करते थे. मां सीता बेहद धार्मिक विचारों की महिला थीं, उन्होंने ही बेटे के अंदर ब्राह्मण होने के दर्प के ऐसे बीज बोए थे कि आज वीर हर इंसान को अपने से नीचे समझता था.

वहीं उस से 2 साल छोटी बहन साची स्टडी लोन ले कर अपना अच्छा कैरियर बनाने अमेरिका गई हुई थी. वह इस घर के माहौल से बिलकुल अलग थी. बाहर के माहौल और अच्छी शिक्षा के कारण उस की सोच बहुत खुली हुई थी. वीर और उस के विचार कभी मेल नहीं खाए थे. वीर को अपने भविष्य के लिए यह ज़्यादा आसान लगा था कि किसी नेता का हाथ सिर पर रहेगा तो बिना मेहनत किए खर्चापानी चलता रहेगा. गोपाल तो कई बार इस बात से नाराज़ रहते थे पर सीता बेटे को कुछ न कहतीं.

वीर को कहीं भी ज़रा सा भी अंदाजा होता कि कोई लड़कालड़की अकेले बैठे हैं और दोनों में से कोई किसी और जाति का है तो वह जो शोर मचा कर उन पर हावी होता कि वे बेचारे चुपचाप वहां से जाने में ही अपनी भलाई समझते. ऐसे कई बार वीर उन से अच्छीखासी रकम झटक लेता. आजकल जो माहौल है, ऐसे में लगभग हर जोड़ा अपनी जान बचा कर वहां से हटने में ही अपनी खैर समझता. कई बार वीर डराने के लिए चाक़ू भी निकाल लेता, कभी फोन निकाल कर वीडियो बना कर वायरल करने की धमकी देता. सब को पता है, धर्म के नाम पर आज किसी को भी डरायाधमकाया जा सकता है.

रात को सब सोने को लेट ही रहे थे कि साची का फोन आया. वह बहुत खुश थी. उस ने बताया, “जिस कंपनी में जौब का फाइनल इंटरव्यू दिया था, वहां से मेल आ गया है. मां, पापा, बढ़िया जौब मिल गया है.”

सब बहुत खुश हुए. वीर ने कहा, “यह तो बहुत अच्छी बात है. चल, अब जब आएगी तो अच्छे लड़के ढूंढ कर रखता हूं तेरे लिए. अब तेरी शादी करते हैं.”

साची चिढ़ गई, “मुझ से बड़े हो, पहले खुद कर लो.”

“नहीं, पहले तेरे लिए लड़का ढूंढूंगा अपनी कास्ट का.”

साची मुसकराई, “चलो, बाय, भाई. अब आप से क्या ही कहूं. फिलहाल आप की बात पर बस हंसी ही आ रही है.”

साची ने हंसते हुए फोन रख दिया. वीर झल्लाया, “मां, मुझे आप की बेटी की हंसी समझ नहीं आई. लड़का देखो इस के लिए. वैसे तो मुझे अपनी बहन पर पूरा भरोसा है पर ज़माना बहुत खराब है.”

दो महीने ऐसे और बीते. वीर और उस का गैंग सड़कछाप गुंडई करते रहे. सारे लड़के वीर को हीरो बना कर रखते. एक लड़का चिराग, जो अभी 20 साल का ही था, वीर का बहुत बड़ा फैन था, एक दिन कहने लगा, “मैं ने अपनी मां को आप के बारे में बताया, भाई, तो घरवाले बोले, ‘बस, वीर भाई जैसे लोग ही अपना धर्म बचा कर रखेंगे. वीर भाई जैसे लोग हों तो धर्म कभी खतरे में नहीं पड़ सकता. भाई, आप के घरवाले कितने लकी हैं.”

वीर खुश हुआ, बोला, “हां, मेरी बहन अमेरिका में पढ़ती है. अब उस के लिए मुझे लड़का ढूंढना है. वह चाहे जितना बाहर रह ले, उस की शादी मेरी मरजी से ही होगी.”

एक दिन वीर घर पर ही था. गोपाल देर से आने वाले थे. उस ने अपने साथियों को घर ही बुला लिया था. नेता जी ने एक रैली में लोग इकट्ठे करने का काम दिया था. वैलेंटाइन डे भी आने वाला था. इस दिन तो वह शेर बन कर पार्कों, होटलों में युवा जोड़ों का शिकार किया करता था. उन से खूब पैसे ऐंठता था. उस के पास अच्छाख़ासा पैसा हो जाता था. इस गैंग का काम ही यह हो गया था- लोगों को परेशान करना और उन से पैसे लेना, फिर खानापीना. बस, यही उन की जिंदगी थी.

तभी साची की वीडियोकौल आई, “भाई, मां को भी बुला लो जल्दी. पापा से बात हो गई है.’

साची के चहकते स्वर पर वीर ने मां को आवाज़ दी. पूरा गैंग सुन तो रहा था पर कुछ किनारे था. सीता भी आ गईं. साची की खिली सी आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी, “मां, सौरी. मैं ने समीर से शादी कर ली. मुझे अपनी इस ख़ुशी में भाई का ड्रामा नहीं चाहिए था. समीर और मैं इंडिया आ कर आप सब से मिलना चाहते हैं, इसलिए किसी भी टाइम मुंबई पुलिस वैरिफिकेशन करने आती ही होगी. समीर को वीज़ा मिल जाए तो आते हैं.” सब को जैसे करंट लगा, लगना ही था. वीर गुर्राया, “समीर कौन है?”

“पाकिस्तानी मुसलिम.”

“क्या?”

“हां, भाई, पापा को कोई प्रौब्लम नहीं है. समीर काफी पढ़ालिखा इंसान है और बहुत अच्छा जौब करता है.”

“यह नहीं हो सकता. मैं यह होने नहीं दूंगा.”

“क्या नहीं होने दोगे, भाई. अब तो सब हो चुका.”

इतने में डोरबेल हुई. वीर ने दरवाजा खोला. पीछे से पूरा गैंग भी आ कर खड़ा हो गया. सब ने झांक कर देखा कि कौन है. पुलिस की यूनिफौर्म में एक रोबदार व्यक्ति खड़ा था, “किसी समीर ने इंडियन एंबैसी में वीज़ा के लिए अप्लाई किया है, एड्रेस वैरिफिकेशन के लिए आए हैं.”

वीर हांहूं करता रहा. पूछताछ कर के पुलिस का आदमी चला गया. सीता एक चेयर पर अपना सिर पकड़ कर बैठी थीं. फ्लौप गैंग का चेहरा देखने लायक था. फ्लौप गैंग के फ्लौप भाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे. दीवार पर अपना सिर मार ले या दहाड़े मारमार कर रोए.

Romantic Story : कहीं मेरा नाम तो नहीं?

Romantic Story : प्रेरणा की विभा मौसी से पटती तो हमेशा से थी, लेकिन अब तक उन से मुलाकात परिवार के अन्य सदस्यों के साथ होती थी. पर इस बार वह अकेली आई थीं और मौसा दौरे पर गए हुए थे. उस रात विभा ने प्रेरणा को अपने कमरे में ही सोने को कहा. सोने से पहले प्रेरणा ने पढ़ने के लिए कोई पत्रिका मांगी.

‘‘कौन सी दूं…’’ विभा ने 3-4 पत्रिकाओं के नाम बोले.

‘‘कोई भी दे दो.’’

‘‘हां, हैं तो सब एक सी ही, नारी उत्थान की हिमायती,’’ विभा बोली, ‘‘मगर, कोई कुछ भी कर ले, नारी उत्थान न कभी हुआ है और न होगा.’’

‘‘वह भला क्यों, मौसी.’’

‘‘क्योंकि पुरुषों से कहीं ज्यादा नारी ही नारी का शोषणा करती है यानी औरत ही औरत की दुश्मन है…”

‘‘जैसे कि सासबहू, ननदभौजाई और देवरानीजेठानी,’’ प्रेरणा ने बात काटी.

‘‘नहीं प्रेरणा, सगी बहनें और कई बार तो मांबेटी तक एकदूसरे का शोषण करती हैं,’’ विभा कसैले स्वर में बोली, ‘‘बेटी के मुकाबले मां का बेटे को ज्यादा सिर चढ़ाना तो सर्वविदित है ही, लेकिन कुछ बेकार की मान्यताओं के कारण बेटियों को उन की मनपसंद शिक्षा न देना या उन की पसंद के वर को नकार देना भी आम बात है और मैं तो इसे भी शोषणा ही कहूंगी.’’

प्रेरणा ने पत्रिका एक ओर रख कर बत्ती बुझा दी और पूछा, ‘‘और अगर व्यक्तिगत मनमुटाव के कारण किसी के प्यार का खून किया जाए तो उसे क्या कहोगी, मौसी.’’

‘‘जुल्म, अत्याचार, शोषण, कुछ भी, मगर ऐसा हुआ किसी के साथ.’’

‘‘हां, मेरे साथ.’’

यह सुन कर पहले तो विभा हक्कीबक्की रह गई, फिर संभल कर बोली, ‘‘तेरी मजाक करने की आदत कुछ ज्यादा ही हो गई है. अपने दिवंगत मातापिता को तो बख्श दे.’’

‘‘सच कह रही हूं मौसी, पापा तो खैर, इस सब में शामिल नहीं थे. मम्मी और लीना मामी के रहमोकरम ने ही कहर ढाया था.’’

तभी विभा के दिमाग में बिजली सी कौंधी. एक बार कुछ उड़तीउड़ती खबर तो सुनी थी कि आजकल शुभा जीजी और लीना भाभी में जबरदस्त ठनी हुई है. जीजी आरोप लगा रही हैं कि लीना का भांजा उन की भोलीभाली एकलौती बेटी को फांस रहा है और लीना का कहना है कि उस के सुशील, मेधावी भांजे को शुभा जीजी घरजमाई बनाने के लिए बेटी से उस पर डोरे डलवा रही हैं.

वैसे, जीजी और भाभी में छत्तीस का आंकड़ा तो शुरू से ही था. जुड़वां होने के कारण जीजी और तिलक भाईसाहब में कुछ ज्यादा ही पटती थी. दोनों घंटों बातें करते थे. पहले तो छोटे बहनभाइयों को इस में कुछ फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन जब शादी के बाद जीजी और दिल्ली में नौकरी कर रहे तिलक भाईसाहब कभी भी चंद दिनों के लिए एकसाथ घर आते, तब वयस्क हुए भाईबहनों को उन के घंटों कमरा बंद कर के अकेले बैठने की आदत बहुत खटकती थी. कुछ कहने पर भाईसाहब मुसकरा कर कह देते, ‘अपनी जीजी से पूछो भई, दरवाजा तो वही बंद करती है.’

जीजी से पूछना बिल्ली के गले में घंटी बांधना था और वह हिम्मत किसी में नहीं थी. भाईसाहब की शादी के बाद भी जीजी ने अपनी यह आदत नहीं छोड़ी. मायके तो वह हमेशा तभी आती थीं जब भाभी और भाईसाहब आते थे, लेकिन साल में 1-2 चक्कर भाई साहब के यहां जरूर लगा आती थीं. भाभी का कहना था कि तब अपने घर में ही उन की स्थिति एक शरणार्थी की सी हो जाती है. जाहिर है, वह तहेदिल से जीजी का स्वागत नहीं करती होंगी, मगर इस से जीजी को कुछ फर्क नहीं पड़ता था. वह मौका मिलते ही अपने लाड़ले भाई के पास चली आती थीं. परोक्ष में अगर उन्होंने भाभी की बुराई नहीं की तो कभी तारीफ भी नहीं की यानी दोनों एकदूसरे को महज इसलिए सहन कर रही थीं कि दोनों ही भाईसाहब को प्यार करती थीं और भाई साहब उन दोनों को, मगर यह शीतयुद्ध मासूम प्यार को ध्वस्त करने लायक विस्फोटक कैसे हो गया.

‘‘लेकिन, भाभी का भांजा तुझे मिला कहां…?’’ विभा ने पूछा.

‘‘उन्हीं के घर. मैट्रिक की परीक्षा दे कर मैं मम्मी के साथ दिल्ली गई थी. वहां जयेश यानी उन का भांजा भी इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा दे कर छुट्टियां गुजारने आया था,’’ प्रेरणा दिमाग पर जोर देती हुई बोली, ‘‘मम्मी जयेश को देख कर बहुत खुश हुईं, ‘अच्छा है, तुम यहां पर हो. तुम्हारे साथ इस लड़की का दिल भी लग जाएगा वरना मुझे यह कहकह कर ही परेशान कर रही थी कि मामा की छोटी बच्चियों के साथ मैं बोर हो जाऊंगी.’

‘‘इस पर जयेश आसमान की ओर देख कर बुदबुदाया, ‘चढ़ जा बेटा सूली पर, पहले तो 2 छोटी बच्चियां थीं. अब एक बड़ी और आ गई बोर करने को.’

‘‘मुझे उस की यह भावभंगिमा बहुत अच्छी लगी, लेकिन उस की चिढ़ाने की कोशिश का मैं मुंहतोड़ जवाब सोच पाती, मम्मी ने फिर पूछा, ‘तुम्हें गाड़ी चलानी आती है, जयेश.’

‘‘जयेश के हां कहते ही मम्मी ने मामा से कहा कि ड्राइवर के बजाय वह जयेश के साथ घूमना पसंद करेंगी,

‘ड्राइवर के साथ न आपस में बातचीत की आजादी रहती है, न ही मरजी से आनेजाने की. उसे तो समय पर छोड़ना होता है…’

‘‘‘और फिर गाड़ी में इतने लोगों के लिए जगह भी तो नहीं है,’ मामी ने भी सहमति जताई, ‘जयेश को ही गाड़ी चलाने दीजिए, सैरसपाटे का मजा रहेगा.’

‘‘और वाकई दिल्ली घूमने का मजा आ गया. मेरी और जयेश की कुछ ही घंटों में दोस्ती हो गई, जो जल्दी प्यार में बदल गई. कब वह जय और मैं प्रे हो गई, पता ही नहीं चला.

‘‘छुट्टियां खत्म हो रही थीं सो बिछुड़ना ही था, पर हमें इस का दुख नहीं था. हम फैसला कर चुके थे कि हम सारी छुट्टियां दिल्ली में ही गुजारा करेंगे.

‘‘यह कोई मुश्किल भी नहीं था, क्योंकि हरेक छुट्टियों में दिल्ली आना मेरी तो नियति थी ही और मामी का लाड़ला होने के कारण जय का तो उन के घर में सदा स्वागत था. और फिर उसे इंजीनियरिंग में दाखिला अपने ही शहर में मिल गया था. सो, छुट्टियों में तो उसे कहीं बाहर जाना ही था. लिहाजा, गरमीसर्दी की छुट्टियों में हमारी मुलाकात मजे से हो जाती थी.

‘‘एक बार मैं ने मम्मी से कहा कि हर बार हम ही दिल्ली आते हैं. एक बार हमें चिन्नीमिन्नी को भी अपने पास बुलाना चाहिए तो मम्मी बोलीं, ‘चाहती तो मैं भी बहुत हूं, पर क्या करूं, तेरे मामा को इतनी फुरसत ही नहीं मिलती.’

‘‘मम्मी के इतना कहते ही चिन्नीमिन्नी चहकीं, ‘पापा को काम करने दीजिए, बूआ, हम मम्मी और जयेश भैया के साथ आ जाएंगे.’

‘‘तभी मामी बोल पड़ीं, ‘हां, यह ठीक रहेगा. ये भी छुट्टियों में कहीं नहीं जा पातीं. सो, इन का घूमना भी हो जाएगा. आप से मिलने और हमें लेने के लिए बाद में तुम्हारे मामा भी आ जाएंगे.’

‘‘और उस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा कि गरमी की छुट्टियों में मैं दिल्ली जाती थी और क्रिसमस की छुट्टियों में मामी और बच्चों को ले कर जय हमारे घर आता था. मैं ने जय को अपनी सहेलियों से भी मिलवा दिया था और उन के पते पर वह अब मुझे पत्र भी लिखता था.

‘‘उस साल जय को छुट्टियों के दौरान किसी फैक्टरी में ट्रेनिग लेना अनिवार्य था. सो, उस से मुलाकात नहीं होगी, सोचसोच कर मेरा हाल बेहाल हो रहा था.

“मेरी हालत देख कर मेरी सहेली साधना ने अपने बड़े भाई से कह कर अपने शहर की एक बड़ी कंपनी में जय की ट्रेनिंग और गेस्टहाउस में रहने का प्रबंध करवा दिया.’’

‘‘अब जय तो यहां आए और मम्मी मुझे ले कर दिल्ली चल दें, इस से पहले ही मैं ने चिन्नीमिन्नी को भी अपने यहां आने को उकसा लिया. अब जय बेखटके उन सब से मिलने के लिए छुट्टी का दिन हमारे साथ गुजारता था. मम्मी को मामा के पास न जाना अच्छा नहीं लग रहा था. सो, उन्होंने एक दिन जय से पूछ ही लिया, ‘फैक्टरियां तो तुम्हारे भोपाल में भी बहुत हैं, फिर तुम इतनी दूर ट्रेनिंग लेने कैसे आ गए.’

‘‘‘यह फैक्टरी अपेक्षाकृत बड़ी थी, इसलिए यहां आ गया.’

‘‘‘तुम्हारी मम्मी ने कहा नहीं कि इतनी देर के लिए घर से इतनी दूर मत जाओ.’

‘‘‘यह तो कुछ ही सप्ताह की ट्रेनिंग है, आंटी, अगले साल तो एमबीए के लिए और उस के बाद नौकरी के लिए न जाने कितनी दूर जाना पड़ेगा.’

‘‘‘कुछ भी हो भई, हम तो अपनी प्रेरणा को अपने से दूर नहीं भेजेंगे. इसी शहर के किसी अच्छे लड़के से उस की शादी करेंगे.’’

‘‘मगर, जय पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. अकेले में मिलते ही उस ने मुझे आश्वासन दिया, ‘चिंता मत करो, मैं ने अपनी सूझबूझ से फैक्टरी में सब को प्रभावित कर लिया है. एमबीए करते ही यहां नौकरी करने आया समझो.’

‘‘मैं बोली कि एमबीए भी तो यहीं से कर सकते हो. मेरी सहेली रश्मि के पिता शिक्षा विभाग में सचिव हैं. वह तुम्हें एडमीशन दिलवा देंगे,’ तो जय बोला, ‘तो फिर मिलवाओ मुझे उन से, ताकि मैं उन्हें प्रभावित कर सकूं. तुम्हारे करीब रहने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं.’

‘‘रश्मि के पिता जय से प्रभावित हुए और उन्होंने आश्वासन दिया कि उसे दाखिला अवश्य मिल जाएगा.

‘‘जब जय ट्रेनिंग पूरी कर के जा रहा था तो पापा ने औपचारिकतावश कहा था, ‘तुम्हारा यहां आना अच्छा लगता है. पता नहीं, अब कभी यहां आओगे भी या नहीं,’ तो जय बोला, ‘बहुत जल्दी और शायद हमेशा के लिए. मुझे आप का शहर बहुत पसंद है. मैं एमबीए यहीं से करूंगा और फिर अभी जहां ट्रेनिंग ली है, वहीं नौकरी भी मिल रही है.

‘‘मम्मी को हम दोनों पर शक तो पहले से ही था, अब वह विश्वास में बदल गया. उन्होंने शायद पहली बार मामी को पत्र लिखा और वह भी बहुत लंबा, यह मैं ने लिफाफे की मोटाई से अंदाजा लगाया.

‘‘मैं ने साधना के घर जाने के बहाने से बाहर जा कर जय को फोन कर के सब बताया. उसे ने मुझे आश्वासन दिया कि मम्मी जो कर रही हैं, करने दो, लीना मौसी मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरा अहित कभी नहीं करेंगी.’’

‘‘फिर 3-4 दिन के बाद ही एक रात मामी का फोन आया. उन्होंने मम्मी से पता नहीं क्या कहा, मगर वह बहुत खुश हुईं और बोली, ‘तुम बिलकुल सही कदम उठा रही हो, लीना. अगर तिलक कुछ टालमटोल करे तो मुझे बताना, मैं उसे डांट कर फौरन कुछ करने को कहूंगी.’

‘‘उस के कई दिन बाद फिर मामी का फोन आया और उन्होंने जो कहा, वह सुन कर मम्मी ने कहा कि आज रात वह चैन से सोएंगी.

‘‘मैं जय की बात से आश्वस्त हो चुकी थी. सो, मैं ने उस बातचीत को कोई अहमियत नहीं दी. मेरी बीए फाइनल की परीक्षा करीब आ रही थी. अगर जय की नौकरी लगने तक शादी टालनी थी तो अच्छे नंबर लाने थे, ताकि एमए में दाखिला मिल सके. सो, मैं पढ़ाई में जुट गई.

‘‘परीक्षा के बाद हमेशा की तरह मम्मी मुझे ले कर मामा के घर जाने के बजाय पापा के साथ दक्षिण भारत घुमाने ले गईं. मुझे भी दिल्ली जाने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि 2 महीने बाद तो जय आ ही रहा था.

“लौटने पर जब साधना को फोन किया, तो उस ने बताया कि जय का पत्र आया हुआ है और रश्मि को उस के पापा ने बताया है कि जय ने भी अभी तक दाखिला के लिए आवेदन नहीं किया है.’’

‘‘मेरे आग्रह पर साधना वह पत्र ले कर आ गई. जय ने लिखा था कि लीना मौसी और तिलक मौसाजी ने एमबीए के लिए उस का एडमीशन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में करवा दिया है. अब तो मेरी मम्मी को इस रिश्ते से जो भी एतराज होगा, वह अमेरिका रिटर्न्ड दामाद के लिए उड़नछू हो जाएगा. वह 2 साल बाद लौट कर मेरे शहर में ही नौकरी कर के मुझ से शादी करेगा. बस, मैं 2 साल किसी तरह अपनी शादी टाल दूं.

‘‘यह कोई मुश्किल नहीं था. पापा को मेरी शादी की जल्दी नहीं थी. वह मुझे पहले अच्छी तरह पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना चाहते थे.

“दुखी तो मैं बहुत हुई, लेकिन जय के उज्ज्वल भविष्य की खातिर इतना बिछोह तो सहन करना ही था.

‘‘वैसे, मैं समझ गई थी कि मम्मी के कहने पर ही मामा ने जय का हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला करवाया है. उन के खयाल से जय मुझे अमेरिका जा कर भूल जाएगा और मैं भी बिना किसी संपर्क के कब तक उसे याद करूंगी, मगर उन्हें यह नहीं पता था कि हमारा प्यार शाश्वत था और हम एकदूसरे से बराबर संपर्क बनाए हुए थे.

‘‘मम्मी ने मेरे लिए लड़के देखने शुरू कर दिए थे. मैं लड़कों की तसवीर देख कर उन में कुछ ऐसा नुक्स निकालती कि पापा आगे बात चलाने से मना कर देते.

‘‘जय के लौटने का समय नजदीक आ रहा था. मैं ने साधना के भाई से बात की. उन्होंने आश्वासन दिया कि वह जय को अपने यहां उच्च पद पर रख लेंगे. बेहतर रहे कि अगर वह उन्हें तुरंत अपना बायोडाटा भेज दे. तभी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तिलक मामा आ गए. बातोंबातों में पता चला कि अगले सप्ताह वह अमेरिका जा रहे हैं.’’

‘‘मैं पूछे बिना न रह सकी कि क्या वह जयेश से मिलेंगे? इस पर वह बोले, ‘उसी की शादी तय करने तो जा रहा हूं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक भारतीय प्रोफैसर ने जयेश को दाखिला और अतिरिक्त सुविधाएं दी ही इसी शर्त पर थीं कि वह उन की बेटी से शादी कर के वहीं रहेगा. लडक़ी ग्रीनकार्ड होल्डर है. सो, जयेश को भी ग्रीनकार्ड मिल जाएगा और वह अपने भाईबहनों को भी वहीं बुला लेगा. इस तरह पूरे परिवार का कल्याण हो जाएगा.’

‘‘इस पर मैं बोली, ‘लेकिन, मेरा और जय का तो सर्वनाश हो जाएगा, मामा. आप को मालूम नहीं, हम एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं.’

‘‘‘मालूम है, तभी तो जयेश को तुम से दूर, अमेरिका भेजने को मैं ने प्रोफैसर सहाय के साथ यह सौदेबाजी की, वरना तो यह मेरे सिद्धांतों के सर्वथा खिलाफ है.’

‘‘‘पर, आप ने ऐसा क्यों किया, मामा? क्यों नहीं हो सकती मेरी और जयेश की शादी?’ मैं बोली.

‘‘‘महज इसलिए कि जयेश लीना का भांजा है, जिसे तुम्हारी मां पसंद नहीं करतीं. और तुम लीना की उस ननद की बेटी हो, जिसे स्वयं लीना और उस की बहन नापसंद करती है. मैं और तुम्हारे पापा जोरजबरदस्ती कर के अगर तुम दोनों की शादी करवा देंगे, तो तुम्हें ससुराल में तिरस्कार और जयेश को तुम्हारी मां की अवहेलना मिलेगी, जिसे उम्रभर झेलना आसान नहीं होगा. और फिर परिवार का बड़ा लड़का और एकलौती बेटी होने के कारण तुम दोनों का ही अपनेअपने परिवारों के प्रति कुछ दायित्व है. सो बेहतर यही है कि तुम एकदूसरे को भूल जाओ.’

‘‘‘जय शादी करना मान गया…?’ मैं ने पूछा.

‘‘‘अभी उसे इस बारे में कुछ पता नहीं है. उसे ही समझाने मैं अमेरिका जा रहा हूं. और सच पूछो तो, यहां भी मैं तुम्हें ही समझाने आया हूं कि जिद कर के या रोधो कर बेकार में अपनी फजीहज मत करवाना,’ मामा ने कोमल स्वर में कहा.

‘‘मुझे यकीन था कि जय कभी नहीं मानेगा, लेकिन कुछ सप्ताह बाद ही उस की शादी का कार्ड मिला. मैं बुरी तरह टूट गई.

‘‘फिर अचानक जय का पत्र आया. उस ने लिखा था, ‘तिलक मौसाजी के समझाने से मैं ने भी तुम्हारी तरह परिस्थितियों के सामने सिर झुका दिया था, लेकिन समझौता नहीं कर सका यानी अनीता को अपना नहीं पा रहा था. सो, उस के करीब जाते ही आंखें बंद कर के तुम्हारा ही ध्यान कर लेता हूं, काम चल जाता है.

‘‘‘मैं हिंदी में कविता लिखने लगा हूं. अनीता हिंदी पढ़ नहीं सकती तो बेखटके अपने मनोभाव तुम्हें अर्पित करता रहता हूं. तुम्हारा नाम जपने का भी तरीका निकाल लिया है. मैं ने अनीता को बता दिया है कि इंस्पिरेशन को हिंदी में प्रेरणा कहते हैं, जिस की कविता लिखने में हमेशा जरूरत रहती है, सो मैं जबतब चिल्लाता रहता हूं कि मेरी प्रेरणा कहां हो तुम. प्रेरणा, प्रेरणा खयालों में आओ न.’

‘‘उस समय तो मैं बहुत व्यथित हुई थी, लेकिन जयेश ने मेरी जिंदगी में आ कर नए रंग भर दिए. कई बार यह सोच कर दिल में अजब सी कसक भी उठती है कि मैं ने तो नए जीवन को पूरी तरह अपना लिया, लेकिन शायद जय बेचारा अभी भी समझौता कर के जी रहा होगा.’’

‘‘जी रहा होगा. तुझे नहीं पता कि जयेश को मरे तो कई महीने हो गए,’’ अब तक चुपचाप सुनती विभा तपाक से बोल पड़ी. यह सुन कर तो प्रेरणा चौंक पड़ी, ‘‘अचानक कैसे…? क्या एक्सीडेंट हुआ था?”

‘‘नहीं, ब्लड कैसर था उसे. काफी लंबा इलाज चला था.’’

‘‘मौसी, मेरा तो मम्मी और तिलक मामा की मृत्यु के बाद लीना मामी से संपर्क नहीं रहा. आप प्लीज, मुझे उन से जय के परिवार का पता ले कर दीजिए,’’ प्रेरणा ने दुखी स्वर में विनती की.

‘‘अनजान लोगों से क्या अफसोस जताओगी?’’ विभा बोली. इस पर प्रेरणा कुछ हिचकिचाई, ‘‘हां, मौसी. बस, यह जानने के लिए कि उस के अंतिम शब्द क्या थे.’’

Hindi Story : बहू-बेटी का फर्क – अनुराग की शादी से नाखुश थी सपना की मां?

Hindi Story : जब से वे सपना की शादी कर के मुक्त हुईं तब से हर समय प्रसन्नचित्त दिखाई देती थीं. उन के चेहरे से हमेशा उल्लास टपकता रहता था. महरी से कोई गलती हो जाए, दूध वाला दूध में पानी अधिक मिला कर लाए अथवा झाड़ ूपोंछे वाली देर से आए, सब माफ था. अब वे पहले की तरह उन पर बरसती नहीं थीं. जो भी घर में आता, उत्साह से उसे सुनाने बैठ जातीं कि उन्होंने कैसे सपना की शादी की, कितने अच्छे लोग मिल गए, लड़का बड़ा अफसर है, देखने में राजकुमार जैसा. फिर भी एक पैसा दहेज का नहीं लिया. ससुर तो कहते थे कि आप की बेटी ही लक्ष्मी है और क्या चाहिए हमें. आप की दया से घर में सब कुछ तो है, किसी बात की कमी नहीं. बस, सुंदर, सुसंस्कृत व सुशील बहू मिल गई, हमारे सारे अरमान पूरे हो गए.

शादी के बाद पहली बार जब बेटी ससुराल से आई तो कैसे हवा में उड़ी जा रही थी. वहां के सब हालचाल अपने घर वालों को सुनाती, कैसे उस की सास ने इतने दिनों पलंग से नीचे पांव ही नहीं धरने दिया. वह तो रानियों सी रही वहां. घर के कामों में हाथ लगाना तो दूर, वहां तो कभी मेहमान अधिक आ जाते तो सास दुलार से उसे भीतर भेजती हुई कहती, ‘‘बेचारी सुबह से पांव लगतेलगते थक गई, नातेरिश्तेदार क्या भागे जा रहे हैं कहीं. जा, बैठ कर आराम कर ले थोड़ी देर.’’

और उस की ननद अपनी भाभी को सहारा दे कर पलंग पर बैठा आती.

यह सब जब उन्होंने सुना तो फूली नहीं समाईं. कलेजा गज भर का हो गया. दिन भर चाव से रस लेले कर वे बेटी की ससुराल की बातें पड़ोसिनों को सुनाने से भी नहीं चूकतीं. उन की बातें सुन कर पड़ोसिन को ईर्ष्या होती. वे सपना की ससुराल वालों को लक्ष्य कर कहतीं, ‘‘कैसे लोग फंस गए इन के चक्कर में. एक पैसा भी दहेज नहीं देना पड़ा बेटी के विवाह में और ऐसा शानदार रोबीला वर मिल गया. ऊपर से ससुराल में इतना लाड़प्यार.’’

उस दिन अरुणा मिलने आईं तो वे उसी उत्साह से सब सुना रही थीं, ‘‘लो, जी, सपना को तो एम.ए. बीच में छोड़ने तक का अफसोस नहीं रहा. बहुत पढ़ालिखा खानदान है. कहते हैं, एम.ए. क्या, बाद में यहीं की यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. भी करवा देंगे. पढ़नेलिखने में तो सपना हमेशा ही आगे रही है. अब ससुराल भी कद्र करने वाला मिल गया.’’

‘‘फिर क्या, सपना नौकरी करेगी, जो इतना पढ़ा रहे हैं?’’ अरुणा ने उन के उत्साह को थोड़ा कसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जी, भला उन्हें क्या कमी है जो नौकरी करवाएंगे. घर की कोठी है.  हजारों रुपए कमाते हैं हमारे दामादजी,’’ उन्होंने सफाई दी.

‘‘तो सपना इतना पढ़लिख कर क्या करेगी?’’

‘‘बस, शौक. वे लोग आधुनिक विचारों के हैं न, इसलिए पता है आप को, सपना बताती है कि सासससुर और बहू एक टेबल पर बैठ कर खाना खाते हैं. रसोई में खटने के लिए तो नौकरचाकर हैं. और खानेपहनाने के ऐसे शौकीन हैं कि परदा तो दूर की बात है, मेरी सपना तो सिर भी नहीं ढकती ससुराल में.’’

‘‘अच्छा,’’ अरुणा ने आश्चर्य से कहा.

मगर शादी के महीने भर बाद लड़की ससुराल में सिर तक न ढके, यह बात उन के गले नहीं उतरी.

‘‘शादी के समय सपना तो कहती थी कि मेरे पास इतने ढेर सारे कपड़े हैं, तरहतरह के सलवार सूट, मैक्सी और गाउन, सब धरे रह जाएंगे. शादी के बाद तो साड़ी में गठरी बन कर रहना होगा. पर संयोग से ऐसे घर में गई है कि शादी से पहले बने सारे कपड़े काम में आ रहे हैं. उस के सासससुर को तो यह भी एतराज नहीं कि बाहर घूमने जाते समय भी चाहे…’’

‘‘लेकिन बहनजी, ये बातें क्या सासससुर कहेंगे. यह तो पढ़ीलिखी लड़की खुद सोचे कि आखिर कुंआरी और विवाहिता में कुछ तो फर्क है ही,’’ श्रीमती अरुणा से नहीं रहा गया.

उन्होंने सोचा कि शायद श्रीमती अरुणा को उन की पुत्री के सुख से जलन हो रही है, इसीलिए उन्होंने और रस ले कर कहना शुरू किया, ‘‘मैं तो डरती थी. मेरी सपना को शुरू से ही सुबह देर से उठने की आदत है, पराए घर में कैसे निभेगी. पर वहां तो वह सुबह बिस्तर पर ही चाय ले कर आराम से उठती है. फिर उठे भी किस लिए. स्वयं को कुछ काम तो करना नहीं पड़ता.’’

‘‘अब चलूंगी, बहनजी,’’ श्रीमती अरुणा उठतेउठते बोलीं, ‘‘अब तो आप अनुराग की भी शादी कर डालिए. डाक्टर हो ही गया है. फिर आप ने बेटी विदा कर दी. अब आप की सेवाटहल के लिए बहू आनी चाहिए. इस घर में भी तो कुछ रौनक होनी ही चाहिए,’’ कहतेकहते श्रीमती अरुणा के होंठों की मुसकान कुछ ज्यादा ही तीखी हो गई.

कुछ दिनों बाद सपना के पिता ने अपनी पत्नी को एक फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘देखोजी, कैसी है यह लड़की अपने अनुराग के लिए? एम.ए. पास है, रंग भी साफ है.’’

‘‘घरबार कैसा है?’’ उन्होंने लपक कर फोटो हाथ में लेते हुए पूछा.

‘‘घरबार से क्या करना है? खानदानी लोग हैं. और दहेज वगैरा हमें एक पैसे का नहीं चाहिए, यह मैं ने लिख दिया है उन्हें.’’

‘‘यह क्या बात हुई जी. आप ने अपनी तरफ से क्यों लिख दिया? हम ने क्या उसे डाक्टर बनाने में कुछ खर्च नहीं किया? और फिर वे जो देंगे, उन्हीं की बेटी की गृहस्थी के काम आएगा.’’

अनुराग भी आ कर बैठ गया था और अपने विवाह की बातों को मजे ले कर सुन रहा था. बोला, ‘‘मां, मुझे तो लड़की ऐसी चाहिए जो सोसाइटी में मेरे साथ इधरउधर जा सके. ससुराल की दौलत का क्या करना है?’’

‘‘बेशर्म, मांबाप के सामने ऐसी बातें करते तुझे शर्म नहीं आती. तुझे अपनी ही पड़ी है, हमारा क्या कुछ रिश्ता नहीं होगा उस से? हमें भी तो बहू चाहिए.’’

‘‘ठीक है, तो मैं लिख दूं उन्हें कि सगाई के लिए कोई दिन तय कर लें. लड़की दिल्ली में भैयाभाभी ने देख ही ली है और सब को बहुत पसंद आई है. फिर शक्लसूरत से ज्यादा तो पढ़ाई- लिखाई माने रखती है. वह अर्थशास्त्र में एम.ए. है.’’

उधर लड़की वालों को स्वीकृति भेजी गई. इधर वे शादी की तैयारी में जुट गईं. सामान की लिस्टें बनने लगीं.

अनुराग जो सपना के ससुराल की तारीफ के पुल बांधती अपनी मां की बातों से खीज जाता था, आज उन्हें सुनाने के लिए कहता, ‘‘देखो, मां, बेकार में इतनी सारी साडि़यां लाने की कोई जरूरत नहीं है, आखिर लड़की के पास शादी के पहले के कपड़े होंगे ही, वे बेकार में पड़े बक्सों में सड़ते रहें तो इस से क्या फायदा.’’

‘‘तो तू क्या अपनी बहू को कुंआरी छोकरियों के से कपड़े यहां पहनाएगा?’’ वह चिल्ला सी पड़ीं.

‘‘क्यों, जब जीजाजी सपना को पहना सकते हैं तो मैं नहीं पहना सकता?’’

वे मन मसोस कर रह गईं. इतने चाव से साडि़यां खरीद कर लाई थीं. सोचा था, सगाई पर ही लड़की वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ गया तो वे बाद में अपनेआप थोड़ा ध्यान रखेंगे और हमारी हैसियत व मानसम्मान ऊंचा समझ कर ही सबकुछ करेंगे. मगर यहां तो बेटे ने सारी उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया.

रात को सोने के लिए बिस्तर पर लेटीं तो कुछ उदास थीं. उन्हें करवटें बदलते देख कर पति बोले, ‘‘सुनोजी, अब घर के काम के लिए एक नौकर रख लो.’’

‘‘क्यों?’’ वह एकाएक चौंकीं.

‘‘हां, क्या पता, तुम्हारी बहू को भी सुबह 8 बजे बिस्तर पर चाय पी कर उठने की आदत हो तो घर का काम कौन करेगा?’’

वे सकपका गईं.

सुबह उठीं तो बेहद शांत और संतुष्ट थीं. पति से बोलीं, ‘‘तुम ने अच्छी तरह लिख दिया है न, जी, जैसी उन की बेटी वैसी ही हमारी. दानदहेज में एक पैसा भी देने की जरूरत नहीं है, यहां किस बात की कमी है, मैं तो आते ही घर की चाबियां उसे सौंप कर अब आराम करूंगी.’’

‘‘पर मां, जरा यह तो सोचो, वह अच्छी श्रेणी में एम.ए. पास है, क्या पता आगे शोधकार्य आदि करना चाहे. फिर ऐसे में तुम घर की जिम्मेदारी उस पर छोड़ दोगी तो वह आगे पढ़ कैसे सकेगी?’’ यह अनुराग का स्वर था.

उन की समझ में नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दें.

कुछ दिन बाद जब सपना ससुराल से आई तो वे उसे बातबात पर टोक देतीं, ‘‘क्यों री, तू ससुराल में भी ऐसे ही सिर उघाड़े डोलती रहती है क्या? वहां तो ठीक से रहा कर बहुओं की तरह और अपने पुराने कपड़ों का बक्सा यहीं छोड़ कर जाना. शादीशुदा लड़कियों को ऐसे ढंग नहीं सुहाते.’’

सपना ने जब बताया कि वह यूनिवर्सिटी में दाखिला ले रही है तो वे बरस ही पड़ीं, ‘‘अब क्या उम्र भर पढ़ती ही रहेगी? थोड़े दिन सासससुर की सेवा कर. कौन बेचारे सारी उम्र बैठे रहेंगे तेरे पास.’’

आश्चर्यचकित सपना देख रही थी कि मां को हो क्या गया है?

Family Story : गिरहें – सालों से कवू नैनीताल में ही क्यों रह रही थी?

Family Story : टनटन… इंटरवल की घंटी बजते ही मैं ने अपने बैग से टिफिन निकाल कर जैसे ही खोला, आम के अचार की खुशबू पूरे क्लासरूम में बिखर गई. मेरी बैंच से 3 बैंच दूर बैठी पूजा टिफिन पर लपकते हुए बोली,”यार काव्या, आज तू आलू के परांठे और आम का अचार लाई है न? सच बोलूं यार, आम के अचार का यह स्वाद कहीं नहीं मिलता. वसुधा मिस के हाथों में जादू है. तू कितनी लकी है यार, तुझे तो कितना स्वादिष्ठ खाना खाने को मिलता है. एक मैं हूं, जिसे रोजरोज होस्टल का सड़ा सा खाना खाना पड़ता है.”

‘वसुधा मिस’ यानी कि मेरी मम्मीजी. मैं नैनीताल के उसी कौनवेंट स्कूल में पढ़ती हूं जहां मेरी मम्मी बायोलौजी की अध्यापिका हैं. मैं पूजा को चटखारे ले कर आम के अचार के साथ आलू के परांठे के बड़ेबड़े कौर खाते हुए देखती रही. मगर उस की बातें सुन कर मेरी भूख ही खत्म हो गई,’लकी और मैं? हुंह…यदि मैं लकी होती तो क्या पापा मुझे इतनी जल्दी छोड़ कर चले जाते?’

“अरे तू भी तो कुछ खा, इंटरवल के बाद कैमिस्ट्री की लैब है. तू ने असाइनमैंट कर लिए क्या? अच्छा सुन…तू हरबेरियम फाइल बनाने में मेरी हैल्प कर देगी प्लीज. तेरी तो मम्मी ही टीचर हैं. तुझे तो प्रैक्टिकल ऐग्जाम में ऐग्जामिनर वैसे ही पूरे नंबर दे देगा.”

पूजा हीही… कर हंस दी और मेरे भीतर क्रोध की चिनगारी सुलग उठी,’जिसे भी देखो, बस मम्मी का ही गुणगान करता रहता है. वसुधा मिस ऐसी…वसुधा मिस वैसी…जैसे मम्मी से अलग मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं. अब ऐग्जामिनर मुझे पूरे नंबर भी केवल इसलिए देगा क्योंकि मेरी मम्मी इस स्कूल में पढ़ाती हैं. इस का तो अर्थ यह है कि अब तक जो मुझे हर सबजैक्ट में इतने अच्छे नंबर मिलते हैं वे केवल मम्मी की वजह से मिलते हैं, मेरी अपनी मेहनत का कोई क्रेडिट नहीं…’

मैं ने पूजा से छीन कर अपना टिफिन बंद किया और अपने पांव पटकते हुए हाथ धोने के लिए बाहर चली गई.

मेरे क्लासरूम से कैमिस्ट्री की लैब का रास्ता स्टाफरूम के सामने से हो कर गुजरता था. मैं अपनी फाइल हाथों में दबाए लैब की ओर बढ़ ही रही थी कि सामने स्टाफरूम से निकलती मम्मी से मेरी नजरें जा टकराईं. मम्मी की आंखों में मेरे लिए प्रेम दिख रहा था. उन के चेहरे पर वही मनमोहक मुसकान थी, जिस की स्कूल की सभी लड़कियां दीवानी थीं.

मेरे साथ चल रही नीरा ने मुझे कुहनी मारी और मेरे कानों में फुसफुसाते हुए बोली, “वसुधा मिस कितनी सुंदर हैं यार…बिलकुल हीरोइन लगती हैं. कितनी सुंदर साड़ियां पहनती हैं. देखने में 25-30 से ज्यादा की तो उम्र भी नहीं लगती. लगता ही नहीं कि वे तेरी मम्मी हैं. सच कहती हूं यार…मैं तो यदि आदमी होती तो झट उन से शादी कर लेती.”

मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे कानों में पिघला सीसा उंडेल दिया हो,’क्या जरूरत है मम्मी को इतना बनठन कर रहने की? मम्मी हैं तो मम्मी जैसी ही रहनी चाहिए न, क्यों हीरोइन बनी फिरती हैं? फिर अब तो पापा भी नहीं. किस के लिए मम्मी इतना सजतीसंवरती हैं? सौरभ के लिए?’

सौरभ का चेहरा याद आते ही मेरे मुंह का स्वाद कसैला हो आया जैसे किसी ने मेरे मुंह में कच्ची निंबौरियां ठूंस दी हों.

जैसेतैसे कैमिस्ट्री की लैब खत्म हुई. मैं ने क्लासरूम से अपना बैग लिया और स्टाफरूम की ओर न जा कर स्कूल के मेनगेट की ओर चल पड़ी. घर जाने का बिलकुल भी मन नहीं था. मेरे कदम ऐसे बोझिल हो रहे थे जैसे उन पर किसी ने भारीभरकम लोहे की जंजीरें बांध दी हों.

तभी मेरे कानों में पीछे से आती हुई मम्मी की आवाज़ पड़ी,”कवू…रुक, आज तू स्टाफरूम नहीं आई, मैं तेरा इंतजार कर रही थी. वह तो अच्छा हुआ नैना ने तुझे गेट की ओर जाते हुए देख लिया था…अकेले क्यों जा रही है बेटा, मेरा वेट करना था न…”

मैं ने पीछे मुड़ कर मम्मी को देखा. चौड़े मैरून बौर्डर की पीली साड़ी में वे सचमुच बहुत सुंदर लग रही थीं. काले बालों की 2 शरारती लटें उन के जूड़े से निकल कर माथे पर अठखेलियां कर रही थीं. तेज कदमों से चल कर आने के कारण उन के गोरे माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं. उन के कपोल ऐसे रक्तिम हो उठे थे मानो सुबहसवेरे के सिंदूरी गगन ने थोड़ी सी सूरज की धूप मल ली हो. माथे के बीचोबीच लगी बड़ी सी मैरून बिंदी भी अपनी जगह से थोड़ी सी खिसक गई थी.

मैं सोचने लगी,’पापा के जाने के बाद भी मम्मी इतनी बड़ी बिंदी क्यों लगाती हैं? क्यों सफेद और हलके रंगों के स्थान पर चटक रंग पहनती हैं? क्या सौरभ के लिए? क्या मम्मी, पापा को बिलकुल भूल चुकी हैं? इतनी जल्दी वे पापा को कैसे भूल सकती हैं? अभी 3 साल ही तो हुए हैं पापा को गए हुए.”

मैं और मम्मी दोनों ही बोझिल कदमों से घर की ओर बढ़ रहे थे. देवदार, चीड़ और चिनार के दरख्तों के बीच संकरी घर को जाती पगडंडी. शाम ढलने को थी. सूरज नैनी झील में डूब जाने को आतुर था. वातावरण में ठीक वैसी ही गहरी खामोशी पसरी हुई थी जैसी इस समय मम्मी और मेरे बीच थी. लगता था, मेरे मन की उदासी ही फैल कर आसपास के पेड़ों पर किसी अदृश्य चादर की तरह बिछ गई हो.

पापा थे तो यही पेड़, यही सूरज, यही पगडंडी सब सदा चहकते रहते थे. मैं अकसर पापा के साथ इन्हीं संकरे रास्तों पर दौड़ लगाया करती थी और पापा पीछे से आवाज लगाया करते थे,”संभल कर कवू…फिसलन है, कहीं गिर मत जाना.”

तभी एक छोटे से पत्थर से मुझे ठोकर लगी और मम्मी तुरंत अपनी बांहों का सहारा दे कर मुझे गिरने से बचाते हुए बोलीं,”संभल कर कवू…तेरा ध्यान कहां है बेटा?”

मैं ने मम्मी का हाथ परे झटक दिया. मम्मी कुछ नहीं बोलीं. घर पहुंच कर मैं ने अपने कमरे की सिटकनी चढ़ा ली और फूटफूट कर रो पड़ी. न जाने क्यों यह खयाल मेरे मन को खाए जा रहा था कि मम्मी, मेरे इतने अच्छे पापा को भूल चुकी हैं. मेरे आंसुओं के परदे को चीरता हुआ पापा का हंसतामुसकराता चेहरा मेरी आंखों के सामने तैरने लगा.

कितने अच्छे थे मेरे पापा…दुनिया के बैस्ट पापा, मेजर आकाश. हैंडसम…बिलकुल ‘मिल्स ऐंड बून’ के हीरो की तरह. कितने खुश थे हम सब साथ में, पापा, मम्मी और मैं. पापा थे तो हम अकसर ही आसपास घूमने निकल जाया करते थे. कभी कैंपिंग, कभी ट्रैकिंग तो कभी यों ही लौंग ड्राइव पर.

पापा हमेशा कहा करते थे,”मैं तुझे पूरी दुनिया दिखाऊंगा कवू, नईनई जगहें ऐक्सप्लोर करने से जितनी नौलेज आती है उतनी सैकड़ों किताबें पढ़ने से भी नहीं आ पाती.”

मम्मी भी तो पापा के साथ कितनी खुश थीं. आर्मी की पार्टीज में अकसर बैस्ट कपल का अवार्ड भी मम्मीपापा को ही मिला करता.

3 साल पहले ऐसा ही कोई दिन था जब कुदरत ने मुझ से मेरे पापा को छीन लिया. चमोली में बादल फटने की प्राकृतिक आपदा के बीच, घायलों को बचाते हुए पापा शहीद हो गए थे. जब पापा का मृत शरीर आया तो पूरे नैनीताल के साथ प्रकृति भी आंसू बहा रही थी. मम्मी तो जैसे पत्थर की मूरत बन गई थीं. पड़ोस की एक आंटी ने कितनी मुश्किल से उन्हें रुलाया था. फिर तो वे ऐसा चीखचीख कर रोई थीं कि सभी के लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो गया था.

आज वही मम्मी इतनी नौरमल कैसे हो सकती हैं? ठहाके लगा कर हंसती हैं, क्या मम्मी को कभी पापा की याद नहीं आती? और तो और, मम्मी अब जींस या स्कर्ट जैसे मौडर्न कपड़े भी पहनती हैं. क्यों उन्हें यंग दिखने का भूत सवार हो गया है? मेरी सारी फ्रैंड्स कहती हैं,”काव्या, वसुधा मिस तो बिलकुल तेरी बड़ी बहन लगती हैं, मम्मी जैसी तो लगती ही नहीं.”

शायद वे सौरभ से प्रेम करने लगी हैं इसीलिए यह सब यंग दिखने का नाटक करती हैं. हुंह…मैं उन का कोई नाटक सफल नहीं होने दूंगी. मैं ने अपने आंसू पोंछे और कपड़े बदलने के लिए बाथरूम में घुस गई.

हाथमुंह धो कर, कपड़े बदल कर बाथरूम से निकली तो मुझे ड्राइंगरूम से मम्मी और सौरभ की आवाजें सुनाई दीं.

‘उफ…सौरभ फिर आ गए? पता नहीं क्यों, जब देखो मुंह उठाए हमारे घर चले आते हैं? नैनी झील के सामने ही उन का बड़ा सा घर है. अपने छोटे भाईबहनों को सैटल करने के चक्कर में अभी तक कुंआरे बैठे हैं. इन्हें भी मम्मी के अलावा कोई दूसरी नहीं मिली, तभी जब देखो तब मेरी मम्मी को फुसलाते रहते हैं…’

मैं ने मुंह बिचकाया. तभी मम्मी ने आवाज लगाई,”कवू, देखो बेटा सौरभ अंकल आए हैं…आई हैव मैड टी ऐंड चीज सैंडविचैज…कम ऐंड हैव इट…”

यह मम्मी भी न…सौरभ के सामने अंगरेजी झाड़ने लगती हैं. मैं ने सोचा और सीधासपाट सा चेहरा लिए ड्राइंगरूम में जा पहुंची. सामने सोफे पर सौरभ बैठे थे. मम्मी टेबल पर चाय और सैंडविच की प्लेट रख रही थीं. मुझे देखते ही बोलीं,”आ कवू…से हैलो टु सौरभ अंकल.”

‘अंकल…हुंह…अंकल कहे मेरी जूती…’ मैं ने मन में सोचा और बोली,
“हैलो मिस्टर सौरभ, हाऊ आर यू?”

“कवू… व्हाट काइंड औफ बिहेवियर इज दिस? से सौरी टु हिम. सौरभ की उम्र का लिहाज…”

मम्मी की डांट को बीच में ही काटते हुए सौरभ मुसकराए,”इट्स ओके वसुधा…अरे भई, नई जैनरेशन है, इन के तौरतरीके अलग हैं. बेटा कवू, छुट्टियों के क्या प्लांस हैं? अब तो पूरे 1 महीने की विंटर वैकेशन होने वाली है. समंदर देखने चलोगी? अंडमाननिकोबार आयलैंड?”

अब तक मेरे मन की चारदीवारी में बड़ी मुश्किल से सहेजा गया गुस्सा फूट पड़ा. जैसे कोई सुप्त ज्वालामुखी अचानक विकराल रूप धारण कर कई किलोमीटर दूर तक लावा फेंकने लगता है. इस लावे में मेरे मन का क्रोध, रोष, विषाद, बैचेनी सभी घुलमिल कर बाहर आने लगे. मैं चीख पड़ी,”हम आप के साथ क्यों जाएं? आप हमारे क्या लगते हैं मिस्टर सौरभ? आप मेरे पापा बनने की कोशिश मत कीजिए. मम्मी, मेरे पापा को भूल सकती हैं, मैं नहीं. मेरे लिए मेरे पापा की जगह कोई नहीं ले सकता…”

“यह क्या कह रही है कवू ? यह तुझ से किस ने कहा कि मैं तेरे पापा को भूल गई?” मम्मी की आवाज जैसे किसी गहरे कुएं से आई.

“झूठ मत बोलो मम्मी, मैं न इतनी छोटी हूं कि समझ न सकूं और न ही अंधी हूं कि देख न सकूं कि तुम्हारे और मिस्टर सौरभ के बीच क्या चल रहा है. सजनासंवरना, यंग दिखने की चाहत में जींस और स्कर्ट पहनना, मिस्टर सौरभ के साथ मिलनाजुलना, हंसीमजाक करना…बताओ, क्या तुम्हें यह सब शोभा देता है मम्मी?”

गुस्से और आवेश में मेरे मन का सारा गुबार, सारा मैल बाहर आ रहा था. मैं गुस्से में कांप रही थी और ऊंची आवाज में बोलने के कारण हांफ भी रही थी.

सौरभ ने बीचबचाव करते हुए कहा,
“शांत हो जाओ कवू, क्या अनापशनाप बोल रही हो बेटा?”

मम्मी सोफे पर सिर पकड़ कर निढाल सी बैठी थीं. उन के गोरे कपोलों पर आंसुओं की गंगाजमुना बह रही थी.
लेकिन मुझ पर न जाने कैसा फितूर चढ़ गया था. मुझे मम्मी पर तरस नहीं बल्कि न जाने क्यों उन से घृणा सी हो रही थी. मैं और जोर से चीखी,”मैं सब समझती हूं मम्मी…तुम्हें अपनी फिजिकल नीड्स पूरी करने के लिए एक पुरुष चाहिए इसीलिए तुम मिस्टर सौरभ से शादी कर के हमारी फैमिली कंपलीट करना चाहती हो. लेकिन क्या फैमिली में किसी पुरुष का होना जरूरी है मम्मी? क्या मैं और तुम एक कंपलीट फैमिली नहीं हो सकते? तुम मिस्टर सौरभ से शादी करना चाहती हो, कर लो, बट मेरे मरने के बाद…मैं ही तुम्हारे रास्ते का कांटा हूं न…मैं ही तुम्हारे रास्ते से हट जाती हूं,” कहते हुए मैं ने अपनी पूरी ताकत से दीवार पर अपना सिर दे मारा. उस के बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं…

जब मेरी चेतना लौटी तो डाक्टर अंकल की आवाज मेरे कानों में पड़ी,
“चिंता की कोई बात नहीं है वसुधा, कवू को पैनिक अटैक आया था. टीनएज में अकसर ऐसा हो जाता है. इस उम्र के बच्चे अधिक भावुक होते हैं, अपने नजरिए से चीजों को देखते हैं. वे क्या सोच रहे हैं, यह जानने के लिए हमेशा उन से बात करने की जरूरत होती है. प्यार से उस से बातें करो, वह समझ जाएगी. कवू के सिर का जख्म भी गहरा नहीं है. 2-4 दिनों में भर जाएगा. परसों आ कर एक बार ड्रैसिंग करा लेना.”

घर में आया तुफान गुजर चुका था, पीछे छोड़ गया था घर में पसरा भयंकर सन्नाटा. मम्मी मेरे पास आ कर बैठ गईं और मेरे हाथों को अपने हाथों में ले कर सहलाने लगीं. मैं चुपचाप आंखें बंद किए लेटी रही. मम्मी की आंसुओं में डूबी भर्रायी हुई सी आवाज से कमरे की नीरवता भंग हुई,”सौरभ, अब तुम यहां मेरे घर आना छोड़ दो. तुम्हें ले कर कवू ने न जाने कितनी गिरहें अपने मन में लगा रखी हैं. वह हमारे बारे में न जाने क्याक्या सोचती है. उसे लगता है कि मैं और तुम…तुम जानते हो मैं ने हमेशा तुम्हें एक दोस्त के रूप में ही देखा है. तुम जानते हो मैं ने आकाश से…और केवल आकाश से ही प्यार किया है. वे पिछले 3 सालों से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे आज भी मेरी सांसों में महकते हैं. मेरे दिल की धड़कन में धड़कते हैं…और कवू कहती है कि मैं उन्हें भूल गई…कैसे ऐसा सोच सकती है यह लड़की?”
कहतेकहते मम्मी फूटफूट कर रो पड़ीं.

मेरा मन हुआ कि मेरे हाथों को सहलाता मम्मी का हाथ अपनी हथेलियों में जकड़ लूं, लेकिन मैं चुपचाप लेटी रही.

“अपनेआप को संभालो वसुधा…मैं जानता हूं कि तुम और आकाश एकदूसरे के लिए ही बने थे…तुम भी मेरे लिए एक दोस्त हो इस से ज्यादा कुछ नहीं, यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानती हो. तुम कहती हो कि कवू ने अपने मन में गिरहें बांध रखी हैं, तुम यह बताओ कि तुम ने उस के मन की गिरहें खोलने के लिए क्या किया? किशोरावस्था में बच्चों से ढेर सारी बातें करने की जरूरत होती है, यह बात मैं हमेशा तुम से कहता हूं कि तुम कवू से बात करो,”सौरभ का गंभीर स्वर कमरे में गूंजा.

“हां, यह गलती तो हुई है मुझ से…दरअसल, मैं अपने दुख का इलाज करने में इतनी व्यस्त हो गई कि मैं कवू के मन को पढ़ना ही भूल गई. आकाश को मेरी मुसकराहट से बहुत लगाव था. वे हमेशा कहते थे कि वसु मुझे कभी दुखी हो कर याद मत करना. उन्हें चटक रंगों से बहुत प्यार था. जानते हो सौरभ, जब हम शौपिंग पर जाते थे और यदि मैं हलके रंग की साड़ी पसंद करने लगूं तो वह टोक देते थे, ‘यार वसु, यह धुस्सा रंग नहीं, तुम पर चटकचमकीले रंग फबते हैं…’ मैं तो अभी भी वैसी ही रहना चाहती हूं जैसा आकाश चाहते थे कि मैं रहूं…यह कवू न जाने क्याक्या सोच बैठी है अब.”

मम्मी के आंसुओं और मीठे चुंबनों से मेरी हथेलियां भीग रही थीं.

“इसीलिए मैं चाह रहा था कि जाड़े की छुट्टियों में अंडमाननिकोबार की ट्रिप प्लान की जाए. कवू को भी थोड़ा चेंज मिल जाएगा, पिछले 3 सालों से तुमलोग नैनीताल के बाहर निकले भी नहीं हो. कवू अभी छोटी है उसे दुनिया ऐक्सप्लोर करनी चाहिए. पहाड़, समंदर, नदी, रेगिस्तान, जंगल, हिस्टोरिकल प्लेसेज सबकुछ देखना चाहिए. पर्यटन से इंसान को जितनी प्रैक्टिकल नौलेज आती है उतनी सैकड़ों किताबें पढ़ने से नहीं.”

अरे, यह क्या कह दिया सौरभ ने? मेरे पापा वाला डायलौग…मैं ने धीरे से आंखें खोलीं और बुदबुदाई,”आई ऐम सौरी मम्मी…हम अंडमान कब चल रहे हैं सौरभ अंकल?”

Love Story : नाक का प्रश्न – संगीता ने संदीप को कौन सा बहाना दिया?

Love Story : डाकिए से पत्र प्राप्त होते ही संगीता उसे पढ़ने लगी. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस की भृकुटियां तन गईं.

पास ही बैठे संगीता के पति संदीप ने पूछा, ‘‘किस का पत्र है?’’

संगीता ने बुरा मुंह बनाते हुए उत्तर दिया, ‘‘तुम्हारे भाई, कपिल का.’’

‘‘क्या खबर है?’’

‘‘उस ने तुम्हारी नाक काट दी.’’

‘‘मेरी नाक काट दी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तुम्हारे भाई ने नए मौडल की नई कार खरीद ली है और उस ने तुम्हें पचमढ़ी चलने का निमंत्रण दिया है.’’

‘‘तो इस में मेरी नाक कैसे कट गई?’’

‘‘तो क्या बढ़ गई?’’ संगीता ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा.

संदीप ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘इस में क्या शक है? घर में अब 2 कारें हो गईं.’’

‘‘तुम्हारी खटारा, पुरानी और कपिल की चमचमाती नई कार,’’ संगीता ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा.

संदीप ने पहले की तरह ही शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘बिलकुल. दोनों जब साथसाथ दौड़ेंगी, तब लोग देखते रह जाएंगे.’’

‘‘तब भी तुम्हारी नाक नहीं कटेगी?’’ संगीता ने खीजभरे स्वर में पूछा.

‘‘क्यों कटेगी?’’ संदीप ने मासूमियत से कहा, ‘‘दोनों हैं तो एक ही घर की?’’

संगीता ने पत्र मेज पर फेंकते हुए रोष भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारी बुद्धि को हो क्या गया है?’’

संगीता के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय संदीप अपने भाई का पत्र पढ़ने लगा. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उधर संगीता की पेशानी पर बल पड़ गए.

पत्र पूरा पढ़ने के बाद संदीप चहका, ‘‘कपिल ने बहुत अच्छा प्रोग्राम बनाया है. बूआजी के यहां का विवाह निबटते ही दूल्हादुलहन के साथ सभी पचमढ़ी चलेंगे. मजा आ जाएगा. इन दिनों पचमढ़ी का शबाब निराला ही रहता है. 2 कारों में नहीं बने तो एक जीप और…’’

संगीता ने बात काटते हुए खिन्न स्वर में कहा, ‘‘मैं पचमढ़ी नहीं जाऊंगी. तुम भले ही जाना.’’

‘‘तुम क्यों नहीं जाओगी?’’ संदीप ने कुतूहल से पूछा.

‘‘सबकुछ जानते हुए भी…फुजूल में पूछ कर मेरा खून मत जलाओ,’’ संगीता ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम अपना खून मत जलाओ, उसे बढ़ाओ. चमचमाती कार में बैठ कर पचमढ़ी में घूमोगी तो खून बढ़ जाएगा.’’

‘‘मेरा खून ऐसे नहीं बढ़ेगा.’’

‘‘तो फिर कैसे बढ़ेगा?’’

‘‘अपनी खुद की नए मौडल की कार में बैठने पर ही मेरा खून…’’

‘‘वह कार क्या हमारी नहीं है?’’ संदीप ने बात काटते हुए पूछा.

संगीता ने खिन्न स्वर में उत्तर दिया, ‘‘तो तुम बढ़ाओ अपना खून.’’

‘‘हां, मैं तो बढ़ाऊंगा.’’

इसी तरह की नोकझोंक संगीता एवं संदीप में आएदिन होने लगी. संगीता नाक के प्रश्न का हवाला देती हुई आग्रह करने लगी, ‘‘अपनी खटारा कार बेच दो और कपिल की तरह चमचमाती नई कार ले लो.’’

संदीप अपनी आर्थिक स्थिति का रोना रोते हुए कहने लगा, ‘‘कहां से ले लूं? तुम्हें पता ही है…यह पुरानी कार ही हम ने कितनी कठिनाई से ली थी?’’

‘‘सब पता है, मगर अब कुछ भी कर के नहले पर दहला मार ही दो. कपिल की नाक काटे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा.’’

‘‘उस की ऊपर की आमदनी है. वह रोजरोज नईनई चीजें ले सकता है. फिलहाल हम उस की बराबरी नहीं कर सकते, बाद में देखेंगे.’’

‘‘बाद की बाद में देखेंगे. अभी तो उन की नाक काटो.’’

‘‘यह मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘तो मैं बूआजी के यहां शादी में भी नहीं जाऊंगी.’’

‘‘पचमढ़ी भले ही मत जाना, बूआजी के यहां शादी में जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘किस नाक से जाऊं?’’

‘‘इसी नाक से जाओ.’’

‘‘कहा तो, कि यह तो कट गई. कपिल ने काट दी.’’

‘‘यह तुम्हारी फुजूल की बात है. मन को इस तरह छोटा मत करो. कपिल कोई गैर नहीं है, तुम्हारा सगा देवर है.’’

‘‘देवर है इसीलिए तो नाक कटी. दूसरा कोई नई कार खरीदता तो न कटती.’

‘‘तुम्हारी नाक भी सच में अजीब ही है. जब देखो, तब कट जाती है,’’ संदीप ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

बूआजी की बिटिया के विवाह की तिथि ज्योंज्यों नजदीक आने लगी त्योंत्यों नई कार के लिए संगीता का ग्रह बढ़ने लगा. वह संदीप को सचेत करने लगी, ‘‘देखो, मैं नई कार के बिना सच में नहीं जाऊंगी बूआजी के यहां. मेरी बात को हंसी मत समझना.’’

ऐसी चेतावनी पर संदीप का पारा चढ़ जाता. वह झल्ला कर कहता, ‘‘नई कार को तुम ने बच्चों का खेल समझ रखा है क्या? पूरी रकम गांठ में होने पर भी कार हाथोंहाथ थोड़े ही मिलती है.’’

‘‘पता है मुझे.’

‘‘बस, फिर फुजूल की जिद मत करो.’’

‘‘अपनी नाक रखने के लिए जिद तो करूंगी.’’

‘‘मगर जरा सोचो तो, यह जिद कैसे पूरी होगी? सोचसमझ कर बोला करो, बच्चों की तरह नहीं.’’

‘‘यह बच्चों जैसी बात है?’’

‘‘और नहीं तो क्या है? कपिल ने नई कार ले ली. तो तुम भी नई कार के सपने देखने लगीं. कल वह हैलिकौप्टर ले लेगा तो तुम…’’

‘‘तब मैं भी हैलिकौप्टर की जिद करूंगी.’’

‘‘ऐसी जिद मुझ से पूरी नहीं होगी.’’

‘‘जो पूरी हो सकती है, उसे तो पूरी करो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि नई कार नहीं तो उस की बुकिंग तो करा दो ताकि मैं नातेरिश्ते में मुंह दिखाने लायक हो जाऊं.’’

कपिल की तनी हुई भृकुटियां ढीली पड़ गईं. उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. वह बोला, ‘‘तुम सच में अजीब औरत हो.’’

संगीता ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘हर पत्नी अजीब होती है. उस के पति की नाक ही उस की नाक होती है. इसीलिए पति की नाक पर आई आंच वह सहन नहीं कर पाती. उस की यही आकांक्षा रहती है कि उस के पति की नाक ऊंची रहे, ताकि वह भी सिर ऊंचा कर के चल सके. इस में उस का स्वार्थ नहीं होता. वह अपने पति की प्रतिष्ठा के लिए ही मरी जाती है. तुम पत्नी की इस मानसिकता को समझो.’’

संगीता के इस कथन से संदीप प्रभावित हुआ. इस कथन के व्यापक संदर्भों ने उसे सोचने पर विवश किया. उस के भीतर गुदगुदी सी उठने लगी. नाक के प्रश्न से जुड़ी पत्नी की यह मानसिकता उसे बड़ी मधुर लगी.

इसी के परिणामस्वरूप संदीप ने नई कार की बुकिंग कराने का निर्णय मन ही मन ले लिया. उस ने सोचा कि वह भले ही उक्त कार भविष्य में न खरीद पाए, किंतु अभी तो वह अपनी पत्नी का मन रखेगा

संगीता को संदीप के मन की थाह मिल न पाई थी. इसीलिए वह बूआजी की बिटिया के विवाह के संदर्भ में चिंतित हो उठी. कुल गिनेगिनाए दिन ही अब शेष रह गए थे. उस का मन वहां जाने को हो भी रहा था और नाक का खयाल कर जाने में शर्म सी महसूस हो रही थी.

बूआजी के यहां जाने के एक रोज पूर्व तक संदीप इस मामले में तटस्थ सा बने रहने का अभिनय करता रहा एवं संगीता की चुनौती की अनसुनी सी करता रहा. तब संगीता अपने हृदय के द्वंद्व को व्यक्त किए बिना न रह सकी. उस ने रोंआसे स्वर में संदीप से पूछा, ‘‘तुम्हें मेरी नाक की कोई चिंता नहीं है?’’

‘‘चिंता है, तभी तो तुम्हारी बात मान रहा हूं. तुम अपनी नाक ले कर यहां रहो. मैं बच्चों को अपनी पुरानी खटारा कार में ले कर चला जाऊंगा. वहां सभी से बहाना कर दूंगा कि संगीता अस्वस्थ है,’’ संदीप ने नकली सौजन्य से कहा.

‘‘तुम शादी के बाद पचमढ़ी भी जाओगे?’’ संगीता ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘अवश्य जाऊंगा. बच्चों को अपने चाचा की नई कार में बैठाऊंगा. तुम नहीं जाना चाहतीं तो यहीं रुको और यहीं अपनी नाक संभालो.’’

संगीता भीतर ही भीतर घुटती रही. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने विचलित स्वर में पूछा, ‘‘बूआजी बुरा तो नहीं मानेंगी?’

‘‘बुरा तो शायद मानेंगी? तुम उन की लाड़ली जो हो.’’

‘‘इसीलिए तो..?’’

संदीप ने संगीता के इस अंतर्द्वंद्व का मन ही मन आनंद लेते हुए जाहिर में संजीदगी से कहा, ‘‘तो तुम भी चली चलो?’’

‘‘कैसे चलूं? कपिल ने राह रोक दी है.’’

‘‘हमारी तरह नाक की चिंता छोड़ दो.’’

‘‘नाक की चिंता छोड़ने की सलाह देने लगे, मेरी बात रखने की सुध नहीं आई?’’

‘‘सुध तो आई, मगर सामर्थ्य नहीं है.’’

‘‘चलो, रहने दो. बुकिंग की सामर्थ्य तो थी? मगर तुम्हें मेरी नाक की चिंता हो तब न?’’

‘‘तुम्हारी नाक का तो मैं दीवाना हूं. इस सुघड़, सुडौल नाक के आकर्षण ने ही…’’

संगीता ने बात काटते हुए किंचित झल्लाहटभरे स्वर में कहा, ‘‘बस, बातें बनाना आता है तुम को. मेरी नाक की ऐसी ही परवा होती तो मेरी बात मान लेते.’’

‘‘मानने को तो अभी मान लूं. मगर गड्ढे में पैसे डालने का क्या अर्थ है? नई का खरीदना हमारे वश की बात नहीं है.’’

‘‘वे पैसे गड्ढे में न जाते. वे तो बढ़ते और मेरी नाक भी रह जाती.’

‘‘तुम्हारी इस खयाली नाक ने मेरी नाक में दम कर रखा है. यह जरा में कट जाती है, जरा में बढ़ जाती है.’

इस मजाक से कुपित हो कर संगीता ने रोषभरे स्वर में कहा, ‘‘भाड़ में जाने दो मेरी नाक को. तुम मजे से नातेरिश्ते में जाओ, पचमढ़ी में सैरसपाटे करो, मेरी जान जलाओ.’’

इतना कहतेकहते वह फूटफूट कर रो पड़ी. संदीप ने अपनी जेब में से नई कार की बुकिंग की परची निकाल कर संगीता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रोओ मत, यह लो.’’

संगीता ने रोतेरोते पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘तुम्हारी नाक,’’ संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हांहां, तुम्हारी नाक, देखो.’’

परची पर नजर पड़ते ही संगीता प्रसन्न हो गई. उस ने बड़ी मोहक दृष्टि से संदीप को निहारते हुए कहा, ‘‘तुम सच में बड़े वो हो.’’

‘‘कैसा हूं?’’ संदीप ने शरारती लहजे में पूछा.

‘‘हमें नहीं मालूम,’’ संगीता ने उस परची को अपने पर्स में रखते हुए उत्तर दिया

Influenza : आप की खांसी इन्फ्लूएंजा संक्रमण तो नहीं

Influenza : बदलते मौसम के साथ स्वास्थ्य में भी परिवर्तन आना लाजमी ही है. आजकल लंबी चलने वाली खांसी से लोग खासा परेशान हो रहे हैं. यह साधारण खासी नहीं बल्कि इस का प्रभाव 15 से 25 दिनों तक चलता है. यदि परिवार में कोई सदस्य इस से ग्रस्त हो जाए तो जरा सी लापरवाही के कारण घर के बाकी सदस्य भी इस की चपेट में आ सकते हैं. डाक्टर्स के मुताबिक यह सीजनल फ्लू की वजह से हो रहा है और ज्यादातर मरीजों में इन्फ्लूएंजा बी संक्रमण भी इस का कारण देखा जा रहा है.

तापमान में बदलाव दिन में गर्मी व शाम होते हुए ठंड का होना इस का एक महत्वपूर्ण कारण है. जिस का साइड इफैक्ट लोगों की सेहत पर बुखार कफ, गला दर्द, जुखाम व खांसी के रूप में देखने को मिल रहा है.

जिन मरीजों में पहले से ही अस्थमा या सांस की परेशानी है उन्हें अधिक समस्या हो रही है क्योंकि जब यह खासी होती हैं तो लंबे समय तक लगातार बनी रहती है. जिस कारण सांस लेने में दिक्क़त व फेफड़ों में समस्या होने लगती है. कुछ मरीजों में इस के कारण ब्रोकइटीस की समस्या होने लगती है.

कारण
बदलते मौसम के साथ हमारे लाइफस्टाइल में भी बदलाव आने लगता है. जैसे-
* दिन में गर्मी होने के कारण आधी बाजु के कपड़ों में पहनना. जिस का प्रभाव हमारे शरीर पर इंफैक्शन के रूप में देखने को मिलता है.
* गर्मी महसूस होने पर फ्रिज का रखा पानी पी लेना.
* भीड़ वाली जगह पर बिना मास्क के रहना भी इस का एक महत्वपूर्ण कारण है.
* सुबह की सेर के समय हल्के कपड़े पहन कर जाना.

निदान
* चिकित्सकों के अनुसार इस मौसम में बुजुर्गों व बच्चों का ध्यान अवश्य रखें. बदलते मौसम के साथ इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन लेनी चाहिए.
* स्मोकिंग से परहेज करें.
* छाती में दर्द जैसी समस्या आए तो तुरंत एस्प्रिन की गोली चबा कर खा लें.
* अस्थमा के मरीज धूल मिट्टी से बचें.
* ठंडे पानी का परहेज करें.
* बदलते मौसम में भी हल्के गर्म कपड़े अवश्य पहने.
* परेशानी होने पर डाक्टर से परामर्श अवश्य लें.

Hindi Poem : अबकी गरमी छुट्टी

Hindi Poem : गरमी की छुट्टी में हाथी, घूमने गया पहाड़।
उसके बच्चे लगे कांपने,सुन शेरों की दहाड़।।

मत घबराओ मेरे बच्चे, मैं अभी तेरे साथ।
मुसीबतों में रहो तैयार, करने एक दो हाथ।।

नहीं चलेगी शेरों की अब,ओछी गीदड़ भभकी।
हमसब ने भी यह ठाना है, बदला लेंगे अबकी।।

हर जीवों से जंगल शोभित,समझें वन के राजा।
जंगल के नियमों को मानें, बज जाएगी बाजा।।

हाथी ने भी खूब पिलाया, इन शेरों को घुट्टी।
बच्चों ने क्या खूब मनाया, अबकी गरमी छुट्टी।

लेखक : डॉ पुष्प कुमार राय 

Teenagers में बढ़ती आपसी जलन

Teenagers : कभी किसी की गर्लफ्रैंड, कभी किसी के गैजेट्स तो कभी किसी की सफलता को देख अकसर टीनऐजर्स में जलन पैदा होती है जबकि ऐसी स्थिति में अपने प्रयास बढ़ाएं व खुद में श्रेष्ठता पैदा करें.

टीनेज उम्र का वह पड़ाव है कि जब टीनऐजर्स में एकदूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगी रहती है. कभीकभी यह होड़ जलन में तब्दील हो जाती है. जलन की कई वजहें होती हैं, जैसे अमीर व स्मार्ट बौयफ्रैंड, सहपाठी का कक्षा में फर्स्ट आना, फर्राटेदार इंग्लिश बोलना, दोस्तों के पास महंगे मोबाइल फोन का होना आदि.

श्वेता 10वीं कक्षा की स्टूडैंट थी. वह दिखने में बहुत खूबसूरत थी. सभी लड़कियां उसे ब्यूटी क्वीन कह कर बुलाती थीं लेकिन वह अन्य लड़कियों की तरह चंचल नहीं थी. वह हमेशा शांत रहती और क्लास में फर्स्ट आती थी. सुरेश भी श्वेता की क्लास में पढ़ता था. वह अमीर घर का था. दिखने में स्मार्ट सुरेश जब क्लास में आता तो सभी लड़कियों की नजरें उस पर ही टिक कर रह जातीं. सभी लड़कियां उस से दोस्ती करने को लालायित रहतीं पर वह किसी को लिफ्ट नहीं देता था.

उस का दिल कब श्वेता पर आ गया, किसी को पता न चला. श्वेता और सुरेश के प्यार के चर्चे अब पूरे स्कूल में होने लगे. बात तब हद से गुजर गई जब क्लास के कुछ मनचलों ने श्वेता को धमकी दी कि वह सुरेश से दोस्ती तोड़ दे वरना उस के साथ बहुत बुरा होगा.

श्वेता ने जब यह बात सुरेश को बताई तो वह बौखला गया और उन लड़कों के पास जा कर बोला, ‘‘यार, तुम लोगों ने श्वेता को धमकी दे कर अच्छा नहीं किया. हम सब एक क्लास में पढ़ते हैं, हमारे बीच कोई जलन नहीं होनी चाहिए. हमें एकदूसरे के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए. अगर मेरी और श्वेता की दोस्ती है तो तुम्हें क्या आपत्ति है. अपने अच्छे व्यवहार से तुम भी किसी को दोस्त बना सकते हो. क्लास में और भी अच्छी लड़कियां हैं अगर वे तुम में इंट्रैस्टेड हैं तो तुम उन के साथ दोस्ती कर लो. फिर हम सब दोस्त मिल कर एंजौय किया करेंगे.’’

सुरेश की बात ने उन पर असर किया. प्रतिक्रियास्वरूप प्रदीप बोला, ‘‘सुरेश ठीक कह रहा है. हमें श्वेता और सुरेश से जलन नहीं करनी चाहिए.’’

किशोरों में ही नहीं, किशोरियों में भी बौयफ्रैंड को ले कर अकसर जलन देखी गई है. कभीकभी यह जलन इतनी बढ़ जाती है कि अवसाद का कारण बन जाती है.

मोहिनी 9वीं कक्षा में पढ़ती थी. उस की क्लास की हर लड़की का बौयफ्रैंड था. मोहिनी भी दूसरी लड़कियों की देखादेखी बौयफ्रैंड बनाना चाहती थी पर नाटी व काली होने की वजह से कोई लड़का उस की तरफ अट्रैक्ट नहीं होता था. नतीजतन, उसे अपनी सहेलियों से जलन होने लगी और वह उन से कटीकटी रहने लगी. इस का असर उस पर ऐसा पड़ा कि उस ने उस स्कूल को ही छोड़ दिया.

बौयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड को ले कर टीनऐजर्स में अकसर जलन की भावना पैदा होती है. किसी को आगे बढ़ते देख किशोर मन में जलन की भावना पनपने लगती है.

दिनेश क्लास में तो फर्स्ट आता ही था, साथ ही, अन्य ऐक्टिविटीज में भी वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था. इस साल उस ने इंटर-स्कूल डिबेट कंपीटिशन जीता था. स्कूल के प्रिंसिपल ने भी दिनेश की पीठ थपथपा कर उस की इस जीत पर उसे बधाई दी थी. वहीं, विनीत दिनेश की जीत से कुढ़ कर रह गया.

एक दिन दिनेश जब प्लेग्राउंड से क्लास की ओर जा रहा था तो विनीत और उस के दोस्तों ने उस पर कमैंट पास करते हुए कहा, ‘‘भई, रट्टू तोता बाजी मार ले गया. जीत तो तब कही जाती जब बिना रटे डिबेट जीतता.’’

दिनेश चाहता तो विनीत को उलटासीधा कह सकता था लेकिन शिष्टाचार में रहते हुए उस ने बस इतना ही कहा, ‘‘दोस्तो, अगली बार तुम लोग भी रट कर डिबेट में हिस्सा लेना. मुझे उम्मीद है कि जीत तुम्हारी ही होगी.’’

यह सुन कर विनीत और उस के दोस्त एकदूसरे का मुंह ताकते रह गए लेकिन विनीत दिनेश को गले लगाते हुए बोला, ‘‘दोस्त, हम ने तुम्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर तुम ने हमारी आंखें खोल दीं. यू आर रियली ग्रेट माई डियर दिनेश.’’

इस तरह की जलन की घटनाएं स्कूलों में टीनऐजर्स के बीच अकसर देखने को मिलती हैं.

किशोरियों में एकदूसरे की ब्यूटी को ले कर जलन होना आम बात है. सुंदर टीनऐज लड़कियों के मिजाज सातवें आसमान पर रहते हैं. वे बातबात पर अपनी फिगर और फेस की तारीफ करती नहीं थकतीं. ऐसे इतराती हैं मानो कोई अप्सरा हों वे. ऐसी टीनऐजर्स को देख कर दूसरी टीनेज लड़कियों में जलन उत्पन्न हो जाती है, जो अंदर ही अंदर उन्हें बेचैन करती रहती है. ऐसी टीनऐजर्स को जलन करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उन्हें अपने दूसरे गुणों को उभारने का प्रयास करना चाहिए. उन्हें उन लोगों को उदाहरण के तौर पर देखना चाहिए जिन्होंने बदसूरत होते हुए भी अपनेअपने क्षेत्र में बुलंदियों को छुआ और लोगों के दिलों में बस गईं.

महान कवयित्री महादेवी वर्मा शक्लसूरत में साधारण थीं, लेकिन अपने लेखन से वे लोगों का दिल जीतने में सफल रहीं. ऐसे न जाने कितने उदाहरण भरे पड़े हैं.

सिब्लिंग्स के बीच जलन

केवल दोस्तों के बीच ही जलन नहीं होती बल्कि सिब्लिंग्स के बीच भी जलन देखने को मिलती है. वैसे तो मातापिता अपने सभी बच्चों को सामान्य रूप से प्यार करते हैं लेकिन ऐसा देखने में आया है कि उन बच्चों को अधिक प्यार व उन की तारीफ रिश्तेदारों से करते हैं जो पढ़ने में तेज होते हैं. दूसरों के सामने तारीफ करने से दूसरे भाईबहनों में जलन उत्पन्न हो जाती है और वे उस से बातबात में झगड़ने लगते हैं.

रोहित, रश्मि और राहुल भाईबहन थे. राहुल बड़ा था और रोहित छोटा. राहुल क्लास में हमेशा फर्स्ट आता पर एक साल बीमार हो जाने की वजह से उस की पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाई. उस की क्लास में थर्ड पोजिशन आई जबकि रोहित और रश्मि अपनीअपनी क्लास में फर्स्ट आए.

बात यहीं खत्म हो जाती अगर मातापिता दूसरों के सामने राहुल की बुराई न करते. उन के राहुल की बुराई करने से उस ने इस असफलता को दिल पर ले लिया और अपने भाईबहन से जलन तो करने ही लगा, साथ ही, मातापिता के साथ भी बदतमीजी से पेश आने लगा. वह सब से कटाकटा रहने लगा और बातबात पर मातापिता को उलटासीधा कहने से भी बाज न आता. इसलिए बच्चों के बीच जलन के लिए बहुत हद तक पेरैंट्स भी जिम्मेदार होते हैं.

जलन से कैसे बचें

पौजिटिव सोच रखें : हमेशा अच्छा सोचें. असफलता को गंभीरता से न लें और न ही सफल व्यक्तियों को देख कर कुढ़ें. उन जैसा बनने का प्रयास करें तो एक दिन सफलता अवश्य आप के कदम चूमेगी. जलन करने से आप का मनोबल गिरेगा और आप अपना कौन्फिडैंस खो बैठेंगे.

महान मुक्केबाज मुहम्मद अली जब पहली बार बौक्सिंग रिंग में उतरे थे तो उन्हें दूसरे मुक्केबाज ने चंद मिनटों में ही हरा दिया था. मुहम्मद अली ने उस दिन ही पक्का इरादा कर लिया था कि वे बौक्सिंग के विश्व चैंपियन बन कर रहेंगे. उन की पौजिटिव थिंकिंग ने उन को विश्व चैंपियन बना दिया. इसी तरह महान धावक मिल्खा सिंह ने हार में भी जीत तलाशी और ओलिंपिक में गोल्ड मैडल प्राप्त किया. यही सोच और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने उन्हें विश्व का महान धावक बना दिया. लोग मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख के नाम से संबोधित करते हैं.

मेहनत से आगे बढ़ें : टीनऐजर्स को एकदूसरे को आगे बढ़ता देख जलन होने लगती है. वे यह नहीं सोच पाते कि क्यों पीछे रह गए और दूसरे कैसे आगे बढ़ गए? सब से पहले उन्हें अपनी कमियां तलाशने की जरूरत है. कमियां तलाश कर सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ने के रास्ते तलाशिए. इस के लिए भले ही कितनी मेहनत करनी पड़े.

जलन नहीं, तारीफ करें : अगर दोस्त के पास स्मार्टफोन है या दूसरे गैजेट्स हैं तो उस से जलन न करें, बल्कि खुल कर उस के स्मार्टफोन व गैजेट्स की तारीफ करें. दोस्त खुश हो जाएगा और अपनी चीजें आप से शेयर भी करेगा.

अगर दोस्त क्लास में फर्स्ट आता है या डिबेट व अन्य खेलों में विजयी होता है तो भी उसे बधाई देना न भूलें. दोस्त के कपड़ों की तारीफ करें और कहें, ‘यार, इन कपड़ों में तो तू हीरो जैसा लगता है.’ फिर देखिए वह आप का कितना पक्का दोस्त बन जाएगा.

स्वस्थ कंपीटिशन हो : सभी टीनऐजर्स में एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ लगी रहती है. कुछ टीनऐजर्स आगे तो बढ़ना चाहते हैं लेकिन शौर्टकट अपनाते हैं और इस तरह आगे भी निकल जाते हैं. यह सफलता स्थायी नहीं होती और न ही कौन्फिडैंस पैदा करती है. आप हमेशा अंदर ही अंदर यह जरूर महसूस करेंगे कि शौर्टकट से आज तो सफलता मिल गई पर आगे क्या होगा. इसलिए आपस में स्वस्थ स्पर्धा होनी चाहिए.

कभीकभी टीनऐजर्स में जलन इस हद तक बढ़ जाती है कि वे बदला लेने पर उतर आते हैं. उन का ऐसा सोचना ठीक नहीं है बल्कि उन्हें अपनी अहमियत दिखानी चाहिए और श्रेष्ठ बनने का प्रयास करना चाहिए, न कि दूसरे को बरबाद करने में अपनी एनर्जी लगानी चाहिए. इसलिए हमेशा पौजिटिव सोचें और दोस्तों के अच्छे काम की दिल खोल कर प्रशंसा करें.

Family Story : नशा – बाई की बातें नीरा को हजम क्यों नहीं हो रही थीं?

Family Story : आगंतुकों के स्वागत सत्कार के चक्कर में बैठक से मुख्य दरवाजे तक नीरा के लगभग 10 चक्कर लग चुके थे, लेकिन थकने के बजाय वे स्फूर्ति ही महसूस कर रही थीं, क्योंकि आगंतुकों द्वारा उन की प्रशंसा में पुल बांधे जा रहे थे. हुआ यह था कि नीरा की बहू पूर्वी का परीक्षा परिणाम आ गया था. उस ने एम.बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी. लेकिन तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे नीरा के. पूर्वी तो बेचारी रसोई और बैठक के बीच ही चक्करघिन्नी बनी हुई थी. बीचबीच में कोई बधाई का जुमला उस तक पहुंचता तो वह मुसकराहट सहित धन्यवाद कह देती. आगंतुकों में ज्यादातर उस की महिला क्लब की सदस्याएं ही थीं, तो कुछ थे उस के परिवार के लोग और रिश्तेदार. नीरा को याद आ रहा था इस खूबसूरत पल से जुड़ा अपना सफर.

जब महिला क्लब अध्यक्षा के चुनाव में अप्रत्याशित रूप से उन का नाम घोषित हुआ था, तो वे चौंक उठी थीं. और जब धन्यवाद देने के लिए उन्हें माइक थमा दिया गया था, तो साथी महिलाओं को आभार प्रकट करती वे अनायास ही भावुक हो उठी थीं, ‘‘आप लोगों ने मुझ पर जो विश्वास जताया है उस के लिए मैं आप सभी की आभारी हूं. मैं प्रयास करूंगी कि अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए आप लोगों की अपेक्षाओं पर खरी उतरूं.’’

लेकिन इस तरह का वादा कर लेने के बाद भी नीरा का पेट नहीं भरा था. वे चाहती थीं कुछ ऐसा कर दिखाएं कि सभी सहेलियां वाहवाह कर उठें और उन्हें अपने चयन पर गर्व हो कि अध्यक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण पद के लिए उन्होंने सर्वथा उपयुक्त पात्र चुना है. बहुत सोचविचार के बाद नीरा को आखिर एक युक्ति सूझ ही गई. बहू पूर्वी को एम.बी.ए. में प्रवेश दिलवाना उन्हें अपनी प्रगतिशील सोच के प्रचार का सर्वाधिक सुलभ हथियार लगा. शादी के 4 साल बाद और 1 बच्चे की मां बन जाने के बाद फिर से पढ़ाई में जुट जाने का सास का प्रस्ताव पूर्वी को बड़ा अजीब लगा. वह तो नौकरी भी नहीं कर रही थी.

उस ने दबे शब्दों में प्रतिरोध करना चाहा तो नीरा ने मीठी डांट पिलाते हुए उस का मुंह बंद कर दिया, ‘‘अरे देर कैसी? जब जागो तभी सवेरा. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? मेरे दिमाग में तो तुम्हें आगे पढ़ाने की बात शुरू से ही थी. शुरू में 1-2 साल तो मैं ने सोचा मौजमस्ती कर लेने दो फिर देखा जाएगा. पर तब तक गोलू आ गया और तुम उस में व्यस्त हो गईं. अब वह भी ढाई साल का हो गया है. थोड़े दिनों में नर्सरी में जाने लगेगा. घर तो मैं संभाल लूंगी और ज्यादा जरूरत हुई तो खाना बनाने वाली रख लेंगे.’’

‘‘लेकिन एम.बी.ए. कर के मैं करूंगी क्या? नौकरी? मैं ने तो कभी की नहीं,’’ पूर्वी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि सास के मन में क्या है?

‘‘पढ़ाई सिर्फ नौकरी के लिए ही नहीं की जाती. वह करो न करो तुम्हारी मरजी. पर इस से ज्ञान तो बढ़ता है और हाथ में डिगरी आती है, जो कभी भी काम आ सकती है. समझ रही हो न?’’

‘‘जी.’’

‘‘मैं ने 2-3 कालेजों से ब्रोशर मंगवाए हैं. उन्हें पढ़ कर तय करते हैं कि तुम्हें किस कालेज में प्रवेश लेना है.’’

‘‘मुझे अब फिर से कालेज जाना होगा? घर बैठे पत्राचार से…’’

‘‘नहींनहीं. उस से किसी को कैसे पता चलेगा कि तुम आगे पढ़ रही हो?’’

‘‘पता चलेगा? किसे पता करवाना है?’’ सासूमां के इरादों से सर्वथा अनजान पूर्वी कुछ भी समझ नहीं पा रह थी.

‘‘मेरा मतलब था कि पत्राचार से इसलिए नहीं क्योंकि उस की प्रतिष्ठा और मान्यता पर मुझे थोड़ा संदेह है. नियमित कालेज विद्यार्थी की तरह पढ़ाई कर के डिगरी लेना ही उपयुक्त होगा.’’

पूर्वी के चेहरे पर अभी भी हिचकिचाहट देख कर नीरा ने तुरंत बात समेटना ही उचित समझा. कहीं तर्कवितर्क का यह सिलसिला लंबा खिंच कर उस के मंसूबों पर पानी न फेर दे.

‘‘एक बार कालेज जाना आरंभ करोगी तो खुदबखुद सारी रुकावटें दूर होती चली जाएंगी और तुम्हें अच्छा लगने लगेगा.’’

वाकई फिर ऐसा हुआ भी. पूर्वी ने कालेज जाना फिर से आरंभ किया और आज उसे डिगरी मिल गई थी. उसी की बधाई देने नातेरिश्तेदारों, पड़ोसियों, पूर्वी  की सहेलियों और नीरा के महिला क्लब की सदस्याओं का तांता सा बंध गया था. पूर्वी से ज्यादा नीरा की तारीफों के सुर सुनाई पड़ रहे थे.

‘‘भई, सास हो तो नीरा जैसी. इन्होंने तो एक मिसाल कायम कर दी है. लोग तो अपनी बहुओं की शादी के बाद पढ़ाई, नौकरी आदि छुड़वा कर घरों में बैठा लेते हैं. सास उन पर गृहस्थी का बोझ लाद कर तानाशाही हुक्म चलाती है. और नीरा को देखो, गृहस्थी, बच्चे सब की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले कर बहू को आजाद कर दिया. ऐसा कर के उन्होंने एक आदर्श सास की भूमिका अदा की है. हम सभी को उन का अनुसरण करना चाहिए.’’

‘‘अरे नहीं, आप लोग तो बस ऐसे ही…’’ प्रशंसा से अभिभूत और स्नेह से गद्गद नीरा ने प्रतिक्रिया में खींसे निपोर दी थीं.

‘‘नीरा ने आज एक और बात सिद्ध कर दी है,’’ अपने चिरपरिचित रहस्यात्मक अंदाज में सुरभि बोली.

‘‘क्या? क्या?’’ कई उत्सुक निगाहें उस की ओर उठ गईं.

‘‘यही कि अपने क्लब की अध्यक्षा के रूप में उन का चयन कर के हम ने कोई गलती नहीं की. ये वास्तव में इस पद के लिए सही पात्र थीं. अपने इस प्रगतिशील कदम से उन्होंने अध्यक्षा पद की गरिमा में चार चांद लगा दिए हैं. हम सभी को उन पर बेहद गर्व है.’’ सभी महिलाओं ने ताली बजा कर अपनी सहमति दर्ज कराई. ये ही वे पल थे जिन से रूबरू होने के लिए नीरा ने इतनी तपस्या की थी. गर्व से उन की गरदन तन गई.

‘‘आप लोग तो एक छोटी सी बात को इतना बढ़ाचढ़ा कर प्रस्तुत कर रहे हैं. सच कहती हूं, यह कदम उठाने से पहले मेरे दिल में इस तरह की तारीफ पाने जैसी कोई मंशा ही नहीं थी. बस अनायास ही दिल जो कहता गया मैं करती चली गई. अब आप लोगों को इतना अच्छा लगेगा यह तो मैं ने कभी सोचा भी नहीं था. खैर छोडि़ए अब उस बात को…कुछ खानेपीने का लुत्फ उठाइए. अरे सुरभि, तुम ने तो कुछ लिया ही नहीं,’’ कहते हुए नीरा ने जबरदस्ती उस की प्लेट में एक रसगुल्ला डाल दिया. शायद यह उस के द्वारा की गई प्रशंसा का पुरस्कार था, जिस का नशा नीरा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

‘‘मैं आप लोगों के लिए गरमगरम चाय बना कर लाती हूं,’’ नीरा ने उठने का उपक्रम किया.

‘‘अरे नहीं, आप बैठो न. चाय घर जा कर पी लेंगे. आप से बात करने का तो मौका ही कम मिलता है. आप हर वक्त घरगृहस्थी में जो लगी रहती हो.’’

‘‘आप बैठिए मम्मीजी, चाय मैं बना लाती हूं,’’ पूर्वी बोली.

‘‘अरे नहीं, तू बैठ न. मैं बना दूंगी,’’ नीरा ने फिर हलका सा उठने का उपक्रम करना चाहा पर तब तक पूर्वी को रसोई की ओर जाता देख वे फिर से आराम से बैठ गईं और बोली, ‘‘यह सुबह से मुझे कुछ करने ही नहीं दे रही. कहती है कि हमेशा तो आप ही संभालती हैं. कभी तो मुझे भी मौका दीजिए.’’

पूर्वी का दबा व्यक्तित्व आज और भी दब्बू हो उठा था. सासूमां के नाम के आगे जुड़ती प्रगतिशील, ममतामयी, उदारमना जैसी एक के बाद एक पदवियां उसे हीन बनाए जा रही थीं. उसे लग रहा था उसे तो एक ही डिगरी मिली है पर उस की एक डिगरी की वजह से सासूमां को न जाने कितनी डिगरियां मिल गई हैं. कहीं सच में उसे कालेज भेजने के पीछे सासूमां का कोई सुनियोजित मंतव्य तो नहीं था?…नहींनहीं उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए.

‘‘पूर्वी बेटी, मैं कुछ मदद करूं?’’ बैठक से आवाज आई तो पूर्वी ने दिमाग को झटका दे कर तेजी से ट्रे में कप जमाने आरंभ कर दिए, ‘‘नहीं मम्मीजी, चाय बन गई है. मैं ला रही हूं,’’ फिर चाय की ट्रे हाथों में थामे पूर्वी बैठक में पहुंच कर सब को चाय सर्व करने लगी. विदा लेते वक्त मम्मीजी की सहेलियों ने उसे एक बार फिर बधाई दी.

‘‘यह बधाई डिगरी के लिए भी है और नीरा जैसी सास पाने के लिए भी, सुरभि ने जाते वक्त पूर्वी से हंस कर कहा.’’

‘‘जी शुक्रिया.’’

अंदर लौटते ही नीरा दीवान पर पसर गईं और बुदबुदाईं, ‘‘उफ, एक के बाद एक…हुजूम थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. थक गई मैं तो आवभगत करतेकरते.’’ जूठे कपप्लेट उठाती पूर्वी के हाथ एक पल को ठिठके पर फिर इन बातों के अभ्यस्त कानों ने आगे बढ़ने का इशारा किया तो वह फिर से सामान्य हो कर कपप्लेट समेटने लगी.

‘‘मीनाबाई आई नहीं क्या अभी तक?’’ नीरा को एकाएक खयाल आया.

‘‘नहीं.’’

‘‘ओह, फिर तो रसोई में बरतनों का ढेर लग गया होगा. इन बाइयों के मारे तो नाक में दम है. लो फिर घंटी बजी…तुम चलो रसोई में, मैं देखती हूं.’’

फिर इठलाती नीरा ने दरवाजा खोला, तो सामने पूर्वी के मातापिता को देख कर बोल उठीं, ‘‘आइएआइए, बहुतबहुत बधाई हो आप को बेटी के रिजल्ट की.’’

‘‘अरे, बधाई की असली हकदार तो आप हैं. आप उसे सहयोग नहीं करतीं तो उस के बूते का थोड़े ही था यह सब.’’

‘‘अरे आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं. मैं ने तो बस अपना फर्ज निभाया है. आइए, बैठिए. मैं पूर्वी को भेजती हूं,’’ फिर पूर्वी को आवाज दी, ‘‘पूर्वी बेटा. तुम्हारे मम्मीपापा आए हैं. अब तुम इन के पास बैठो. इन्हें मिठाई खिलाओ, बातें करो. अंदर रसोई आदि की चिंता मुझ पर छोड़ दो. मैं संभाल लूंगी.’’

नीरा ने दिखाने को यह कह तो दिया था. पर अंदर रसोई में आ कर जो बरतनों का पहाड़ देखा तो सिर पकड़ लिया. मन ही मन बाई को सौ गालियां देते हुए उन्होंने बैठक में नाश्ता भिजवाया ही था कि देवदूत की तरह पिछले दरवाजे से मीनाबाई प्रकट हुई.

‘‘कहां अटक गई थीं बाईजी आप? घर में मेहमानों का मेला सा उमड़ आया है और आप का कहीं अतापता ही नहीं है. अब पहले अपने लिए चाय चढ़ा दो. हां साथ में मेहमानों के लिए भी 2 कप बना देना. मैं तो अब थक गई हूं. वैसे आप रुक कहां गई थीं?’’

‘‘कहीं नहीं. बहू को साथ ले कर वर्माजी के यहां गई थी इसलिए देर हो गई.’’

‘‘अच्छा, काम में मदद के लिए,’’ नीरा को याद आया कि अभी कुछ समय पूर्व ही मीनाबाई के बेटे की शादी हुई थी.

‘‘नहींनहीं, उसे इस काम में नहीं लगाऊंगी. 12वीं पास है वह. उसे तो आगे पढ़ाऊंगी. वर्माजी के यहां इसलिए ले गई थी कि वे इस की आगे की पढ़ाई के लिए कुछ बता सकें. उन्होंने पत्राचार से आगे पढ़ाई जारी रखने की कही है. फौर्म वे ला देंगे. कह रहे थे इस से पढ़ना सस्ता रहेगा. मेरा बेटा तो 7 तक ही पढ़ सका. ठेला चलाता है. बहुत इच्छा थी उसे आगे पढ़ाने की पर नालायक तैयार ही नहीं हुआ. मैं ने तभी सोच लिया था कि बहू आएगी और उसे पढ़ने में जरा भी रुचि होगी तो उसे जरूर पढ़ाऊंगी.’’

‘‘पर 12वीं पास लड़की तुम्हारे बेटे से शादी करने को राजी कैसे हो गई?’’ बात अभी भी नीरा को हजम नहीं हो रही थी. 4 पैसे कमाने वाली बाई उसे कड़ी चु़नौती देती प्रतीत हो रही थी.

‘‘अनाथ है बेचारी. रिश्तेदारों ने किसी तरह हाथ पीले कर बोझ से मुक्ति पा ली. पर मैं उसे कभी बोझ नहीं समझूंगी. उसे खूब पढ़ाऊंगीलिखाऊंगी. इज्जत की जिंदगी जीना सिखाऊंगी.’’

‘‘और घर बाहर के कामों में अकेली ही पिसती रहोगी?’’

‘‘उस के आने से पहले भी तो मैं सब कुछ अकेले ही कर रही थी. आगे भी करती रहूंगी. मुझे कोई परेशानी नहीं है, बल्कि जीने का एक उद्देश्य मिल जाने से हाथों में गति आ गई है. लो देखो, बातोंबातों में चाय तैयार भी हो गई. अभी जा कर दे आती हूं. मैं ने कड़क चाय बनाई है. आधा कप आप भी ले लो. आप की थकान उतर जाएगी,’’ कहते हुए मीनाबाई ट्रे उठा कर चल दी. नीरा को अपना नशा उतरता सा प्रतीत हो रहा था.

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