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Hindi Kahani : सहेली का बौयफ्रेंड

Hindi Kahani : रात के साढ़े 10 बज रहे थे. तृप्ति खाना खा कर पढ़ने के लिए बैठी थी. वह अपने जरूरी नोट रात में 11 बजे के बाद ही तैयार करती थी. रात में गली सुनसान हो जाती थी. कभीकभार तो कुत्तों के भूंकने की आवाज के अलावा कोई शोर नहीं होता था.

तृप्ति के कमरे का एक दरवाजा बनारस की एक संकरी गली में खुलता था. मकान मालकिन ऊपर की मंजिल पर रहती थीं. वे विधवा थीं. उन की एकलौती बेटी अपने पति के साथ इलाहाबाद में रहती थी.

नीचे छात्राओं को देने के लिए 3 छोटेछोटे कमरे बनाए गए थे. 2 कमरों के दरवाजे अंदर के गलियारे में खुलते थे. उन दोनों कमरों में भी छात्राएं रहती थीं.

 

दरवाजा बाहर की ओर खुलने का एक फायदा यह था कि तृप्ति को किसी वजह से बाहर से आने में देर हो जाती थी तो मकान मालकिन की डांट नहीं सुननी पड़ती थी.

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया. तृप्ति किसी अनजाने डर से सिहर उठी. उसे लगा, कोई गली का लफंगा तो नहीं. वैसे, आज तक ऐसा नहीं हुआ था. रात 10 बजे के बाद गली की ओर खुलने वाले दरवाजे को किसी ने नहीं खटखटाया था.

कभीकभार बगल वाली छात्राएं कुछ पूछने के लिए साइड वाला दरवाजा खटखटा देती थीं. उन दोनों से वह सीनियर थी, इसलिए वे भी रात में ऐसा कभीकभार ही करती थीं.

पर जब ‘तृप्ति, दरवाजा खोलो… मैं माधुरी’ की आवाज सुनाई पड़ी, तो तृप्ति ने दरवाजे की दरार से झांक कर देखा. यह माधुरी थी. उस के बगल के गांव की एक सहेली. मैट्रिक तक दोनों साथसाथ पढ़ी थीं. बाद में तृप्ति बनारस आ गई थी. बीए करने के बाद बीएचयू की ला फैकल्टी में एडमिशन लेने के लिए वह एडमिशन टैस्ट की तैयारी कर रही थी.

माधुरी बगल के कसबे में ही एक कालेज से बीए करने के बाद घर बैठी थी. पिता उस की शादी करने के लिए किसी नौकरी करने वाले लड़के की तलाश में थे.

‘‘अरे तुम… इतनी रात गए… कहां से आ रही हो?’’ हैरान होते हुए तृप्ति ने पूछा.

‘‘बताती हूं, पहले अंदर तो आने दे,’’ कुछ बदहवास और चिंतित माधुरी आते ही बैड पर बैठ गई.

‘‘एक गिलास पानी तो ला… बहुत प्यास लगी है,’’ माधुरी ने इतमीनान की सांस लेते हुए कहा. ऐसा लग रहा था मानो वह दौड़ कर आई थी.

तृप्ति ने मटके से पानी निकाल कर उसे देते हुए कहा, ‘‘गलियां अभी पूरी तरह सुनसान नहीं हुई हैं… वरना अब तक तो इस गली में कुत्ते भी भूंकना बंद कर देते हैं,’’ फिर उस ने माधुरी की ओर एक प्लेट में बेसन का लड्डू बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पहले कुछ खा ले, फिर पानी पीना. लगता है, तुम दौड़ कर आ रही हो?’’

माधुरी ने लड्डू खाते हुए कहा, ‘‘इतनी संकरी गली में कमरा लिया है कि तुम्हारे यहां कोई पहुंच भी नहीं सकता. यह तो मैं पिछले महीने ही आई थी इसलिए भूली नहीं, वरना जाने इतनी रात को अब तक कहां भटकती रहती.’’

‘‘पहले मैं गर्ल्स होस्टल में रहना चाहती थी, पर अगलबगल में कोई ढंग का मिल नहीं रहा था, महंगा भी बहुत था. यह बहुत सस्ते में मिल गया. यहां बहुत शांति रहती है, इसलिए इम्तिहान की तैयारी के लिए सही लगा. बस, आ गई. अगर मेरा एडमिशन बीएचयू में हो जाता है, तो आगे से वहीं होस्टल में रहूंगी.

‘‘अच्छा, अब तो बता कैसे आई हो? इतना बड़ा बैग… लगता है, काफी सामान भर रखा है इस में. कहीं जाने का प्लान है क्या?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘हां, बताती हूं. अब एक कप चाय तो पिला,’’ माधुरी बोली.

‘‘खाना खाया है या बनाऊं… लेकिन, तुम ने खाना कहां से खाया होगा. घर से सीधे आ रही हो या…’’

‘‘खाना तो नहीं खाया है. मौका ही नहीं मिला, लेकिन रास्ते में एक दुकान से ब्रैड ले ली थी. अब इतनी रात को खाने की चिंता छोड़ो. ब्रैडचाय से काम चला लूंगी मैं,’’ माधुरी ने कहा.

चाय और ब्रैड खाने के बाद माधुरी की थकान तो मिट गई थी, पर उस के चेहरे पर अब भी चिंता की लकीरें साफ दिखाई पड़ रही थीं.

माधुरी बोली, ‘‘तृप्ति, तुम्हें याद है, जब हम लोग 9वीं जमात में थे, तब सौरभ नाम का एक लड़का 10वीं जमात में पढ़ता था. वही लंबी नाक वाला, गोरा, सुंदर, जो हमेशा मुसकराता रहता था…’’

‘‘हां, जिस के पीछे कई लड़कियां भागती थीं… और जिस के पिता की गहनों की मार्केट में बड़ी सी दुकान थी,’’ तृप्ति ने याद करते हुए कहा.

‘‘हां, वही.’’

‘‘पर, बात क्या है… तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘वही तो मैं बता रही हूं. वह 2 बार मैट्रिक में फेल हुआ तो उस के पिता ने उस की पढ़ाई छुड़वा कर दुकान पर बैठा दिया. पिछले साल भैया की शादी थी. मां भाभी के लिए गहनों के लिए और्डर देने जाने लगीं तो साथ में मुझे भी ले लिया.

‘‘मैं गहनों में बहुत काटछांट कर रही थी, इसलिए उस के पिता ने गहने दिखाने के लिए सौरभ को लगा दिया, तभी उस ने मुझ से पूछा था, ‘तुम माधुरी हो न?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘हां, पर तुम कैसे जानते हो?’

‘‘उस ने बताया, ‘भूल गई क्या… हम दोनों एक ही स्कूल में तो पढ़ते थे.’

‘‘मैं उसे पहचानती तो थी, लेकिन जानबूझ कर अनजान बन रही थी. फिर उस ने मेरी ओर देखा तो शर्म से मेरी आंखें झुक गईं. उस दिन गहनों के और्डर दे कर हम लोग घर चले आए, फिर एक हफ्ते बाद मां के साथ मैं भी गहने लेने दुकान पर गई थी.

‘‘मां ने मुझ से कहा था, ‘दुकानदार का बेटा तुम्हारा परिचित है, तो दाम में कुछ छूट करा देना.’

‘‘मैं ने कहा था, ‘अच्छा मां, मैं उस से बोल दूंगी.’

‘‘पर, दाम उस के पिताजी ने लगाए. उस ने पिता से कहा, तो कुछ कम हो गया… घर आने पर मालूम हुआ कि भाभी के लिए जो सोने की अंगूठी खरीदी गई थी, वह नाप में छोटी थी. मां बोलीं, ‘माधुरी, कल अंगूठी ले जा कर बदलवा देना, मुझे मौका नहीं मिलेगा. कल कुछ लोग आने वाले हैं.’

‘‘मैं दूसरे दिन जब दुकान पर पहुंची तो सौरभ के पिताजी नहीं थे. मुझे देख कर वह मुसकराते हुए बोला, ‘आओ माधुरी, बैठो. आज क्या और्डर करना है?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘कुछ नहीं… बस, यह अंगूठी बदलवानी है. भाभी की उंगली में नहीं आएगी. नाप में बहुत छोटी है.’‘‘वह बोला था, ‘कोई बात नहीं,

इसे तुम रख लो. भाभी के लिए मैं दूसरी दे देता हूं.’

‘‘मैं ने छेड़ते हुए कहा था, ‘बड़े आए देने वाले… दाम तो कम कर नहीं सकते… मुफ्त में देने चले हो.’

‘‘यह सुन कर उस ने कहा था, ‘कल पिताजी मालिक थे, आज मैं हूं. आज मेरा और्डर चलेगा.’

‘‘सचमुच ही उस ने वही किया, जो कहा. मैं ने बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने अंगूठी वापस नहीं ली. भाभी के नाप की वैसी ही दूसरी अंगूठी भी दे दी.

‘‘मैं ने डरतेडरते कहा था, ‘इस को वापस लेने से इनकार कर दिया मां.’

‘‘यह सुन कर मां ने कठोर आवाज में पूछा था, ‘किस ने? उस छोकरे ने या उस के बाप ने?’

‘‘मैं ने कहा था, ‘उस के पिताजी नहीं थे, आज वही था.’

‘‘मां ने कहा था, ‘अंगूठी निकाल दे. कल मैं लौटा आऊंगी. बेवकूफ लड़की, तुम नहीं जानती, यह सुनार का छोकरा तुझ पर चारा डाल रहा है. उस की मंशा ठीक नहीं है. अब आगे से उस की दुकान पर मत जाना.’

‘‘मां की बात मुझे बिलकुल नहीं सुहाई. पिछली बार जब मैं उस की दुकान पर गई थी तब तो दाम कम कराने के लिए उसी से पैरवी करवा रही थीं. अब जब इतना बड़ा उपहार अपनी इच्छा से दिया तो नखरे कर रही हैं.

‘‘सच कहूं तृप्ति, मां के इस बरताव से मेरा सौरभ के प्रति और झुकाव बढ़ गया. उस दिन के बाद से मैं उस की दुकान पर जाने का बहाना ढूंढ़ने लगी.

 

‘‘एक दिन मौका मिल ही गया. बड़े वाले जीजाजी घर आए थे. मां ने जब भाभी के लिए खरीदे गए गहनों को दिखाया तो वे बोले, ‘सुनार ने वाजिब दाम लगाया है. मुझे भी उपहार में देने के लिए एक अंगूठी की जरूरत है. सलहज की उंगली का नाप आप के पास है ही, इस से थोड़ी अलग डिजाइन की अंगूठी मैं भी उसी दुकान से ले लेता हूं.’

‘‘मां ने कहा था, ‘माधुरी साथ चली जाएगी. दुकानदार का लड़का इस का परिचित है. कुछ छूट भी कर देगा.’

‘‘मां ने अंगूठी लौटाने वाली बात को जानबूझ कर छिपा लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि मुझ पर किसी तरह का आरोप लगे. मेरी शादी के लिए बाबूजी किसी नौकरी वाले लड़के की तलाश में थे.

‘‘दूसरे दिन जीजाजी के साथ जब मैं उस की दुकान पर पहुंची तब सौरभ किसी औरत को अंगूठी दिखा रहा था. मुझे देखते ही वह मुसकराया और बैठने के लिए इशारा किया. जब जीजाजी ने अंगूठी दिखाने को कहा तो उस के पिताजी ने उसी की ओर इशारा कर दिया.

‘‘तभी कोई फोन आया और उस के पिताजी बोले, ‘2-3 घंटे के लिए मैं कुछ जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं. ये लोग पुराने ग्राहक हैं, इन का ध्यान रखना.’

‘‘यह सुन कर सौरभ के चेहरे पर मुसकान थिरक गई. वह बोला, ‘जी बाबूजी, मैं सब संभाल लूंगा.’’

‘‘जीजाजी ने एक अंगूठी पसंद की और उस का दाम पूछा. मैं ने कहा, ‘मेरे जीजाजी हैं.’

‘‘मेरा इशारा समझ कर सौरभ ने कहा, ‘फिर तो जो आप दे दें, मुझे मंजूर होगा.’

‘‘जीजाजी ने बहुत कहा, लेकिन वह एक ही रट लगाए रहा, ‘आप जो देंगे, ले लूंगा. आप लोग पुराने ग्राहक हैं. आप लोगों से क्या मोलभाव करना है.’

‘‘जीजाजी धर्मसंकट में थे. उन्होंने अपना डैबिट कार्ड बढ़ाते हुए कहा, ‘अब मैं भी मोलभाव नहीं करूंगा. आप जो दाम भर देंगे, स्वीकार कर लूंगा.’

‘‘खैर, जीजाजी ने जो सोचा था, उस से कम दाम उस ने लगाया. उस ने हम लोगों के लिए मिठाई मंगाई और जब जीजाजी मुंह धोने वाशबेसिन की ओर गए तो वही पुरानी अंगूठी मुझे जबरन थमाते हुए कहा था, ‘अब फिर न लौटाना… नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा.’

‘‘जीजाजी देख न लें, इसलिए मैं ने उस अंगूठी को ले कर छिपा लिया.

‘‘उस दिन के बाद हम दोनों मौका निकाल कर चोरीछिपे एकदूसरे से मिलते रहे. सौरभ से मालूम हुआ कि उस के पिताजी ने पिछले साल उस की शादी एक अमीर लड़की से दहेज के लालच में करा दी थी. लड़की तो सुंदर है, लेकिन गूंगीबहरी है. वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी है. मां का देहांत हो चुका है. पिता ने अपनी जायदाद लड़की के नाम कर दी है. शहर में एक तिमंजिला मकान भी उस की नाम से है. उस मकान से हर महीने अच्छा किराया मिलता है. रुपयापैसा उसी के अकाउंट में जमा होता है. पिताजी ने भी गहनों की यह दुकान उस के नाम कर दी है.

‘‘तृप्ति, सौरभ मुझ पर इतना पैसा खर्च करने लगा कि मैं उसी की हो कर रह गई.’’

‘‘यानी तुम ने अपना जिस्म भी उसे सौंप दिया?’’ तृप्ति ने हैरान होते हुए पूछ लिया.

‘‘क्या करती… कई बार हम लोग होटल में मिले. कोई न कोई बहाना बना कर मैं सुबह निकलती और उस के बुक कराए होटल में पहुंच जाती. शुरू में तो काफी हिचकिचाई, पर बाद में उस के आग्रह के आगे झुक गई.’’

‘‘फिर…?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘फिर क्या… मैं हर वक्त उसी के बारे में सोचने लगी. उस ने मुझे भरोसा दिलाया कि कुछ दिनों बाद वह अपनी पत्नी को तलाक दे देगा और मुझ से शादी कर लेगा.’’

‘‘और तुम्हें विश्वास हो गया?’’

‘‘उस ने शपथ ले कर कहा है. मुझे विश्वास है कि वह धोखा नहीं देगा.’’

‘‘अब बताओ कि तुम यहां कैसे आई हो?’’ तृप्ति ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘एक हफ्ता पहले जीजाजी आए थे. उन्होंने बाबूजी के सामने एक लड़के का प्रस्ताव रखा था. लड़का एक सरकारी दफ्तर में है, लेकिन बचपन से ही उस का एक पैर खराब है, इसलिए लंगड़ा कर चलता है. वह मुझ से बिना दहेज की शादी करने को तैयार है.

‘‘बाबूजी तैयार हो गए. मां ने विरोध किया तो कहने लगे, ‘एक पैर ही तो खराब है. सरकारी नौकरी है. उसे कई रियायतें भी मिलेंगी.

‘‘जब मां भी तैयार हो गईं तो मैं ने मुंह खोला, पर उन्होंने मुझे डांटते हुए कहा, ‘तुम्हें तो नौकरी मिली नहीं, अब मुश्किल से नौकरी वाला एक लड़का मिला है, तो जबान चलाती है.’

‘‘लेकिन, बात यह नहीं थी. किसी ने मां के कान में डाल दिया था कि मेरा सौरभ से मिलनाजुलना है. मां को तो उसी समय शक हो गया था, जब मैं अंगूठी बिना लौटाए आ गई थी.

‘‘इधर सौरभ मेरे लिए कुछ न कुछ हमेशा खरीदता रहता था. अब घर में क्याक्या छिपाती मैं. कोई न कोई बहाना बनाती, पर मां का शक दूर न होता. वे भी चाहती थीं कि किसी तरह जल्द से जल्द मेरी शादी हो जाए, ताकि समाज में उन की नाक न कटे.

‘‘मां का मुझ पर भरोसा नहीं रहा था. उन्होंने मुझे गांव से बाहर जाने की मनाही कर दी. उधर बाबूजी ने जीजाजी के प्रस्ताव पर हामी भर दी.

लड़के ने मेरा फोटो और बायोडाटा देख कर शादी करने का फैसला मुझ पर छोड़ दिया. बिना मुझ से सलाह लिए मांबाबूजी ने अगले महीने मेरी शादी की तारीख भी पक्की कर दी है.

‘‘मांबाबूजी का यह रवैया मुझे नागवार लगा, इसलिए मैं  सौरभ से इस संबंध में बात करना चाहती थी. मैं उस के साथ कहीं भाग जाना चाहती थी.

‘‘बहुत मुश्किल से किसी तरह दवा लाने का बहाना कर के मैं गांव से निकली. फोन पर सौरभ को सारी बातें बताईं. उस ने कहा कि मैं रात में बनारस पहुंच जाऊं. सुबह वहीं से मुंबई के लिए ट्रेन पकड़ लेंगे. उस ने रिजर्वेशन भी करा लिया है. उस का एक दोस्त वहां रहता है. मुझे दोस्त के पास रख कर वह लौट आएगा, फिर पत्नी को तलाक दे कर मुझ से शादी कर लेगा.’’

‘‘ओह… तो तुम मुंबई जाने की तैयारी कर के आई हो?’’ तृप्ति ने कहा.

‘‘हां.’’

‘‘माधुरी, तुम समझदार हो, इसलिए तुम को मैं समझा तो नहीं सकती… और फिर अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने का हक सभी को है, पर हम आपस में इस बारे में बात तो कर ही सकते हैं, जिस से सही दिशा मिल सके और तुम समझ पाओ कि जानेअनजाने में तुम से कोई गलत फैसला तो नहीं हो रहा है.’’

 

‘‘बोल तृप्ति, समय कम है, मुझे सुबह निकलना भी है. यह तो मुझे भी एहसास हो रहा है कि मैं कुछ गलत कर रही हूं. पर मेरे सामने इस के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं है,’’ माधुरी की चिंता उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.

‘‘अच्छा माधुरी, सौरभ के पिता से गहनों की कीमत में छूट कराने के लिए तुम्हें सौरभ से कहना पड़ा था न?’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरभ से तुम्हारी जानपहचान भी नहीं थी. सिर्फ इतना ही कि तुम्हारे साथ सौरभ भी एक ही स्कूल में पढ़ता था.’’

‘‘हां.’’

‘‘सौरभ के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी. काफी सारा पैसा उस के बैंक अकाउंट में था, जिसे खर्चने के लिए उसे अपने पिता की इजाजत लेने की जरूरत नहीं थी.’’

‘‘यह भी सही है.’’

‘‘सौरभ की शादी उस की मरजी से नहीं हुई थी. गूंगीबहरी होने के चलते अपनी पत्नी को वह पसंद नहीं करता था. कहीं न कहीं उस के मन में किसी दूसरी सुंदर लड़की की चाह थी.’’

‘‘तुम्हारी बातों में सचाई है. कई बार उस ने ऐसा कहा था. लेकिन तुम जिरह बहुत अच्छा कर लेती हो. देखना, तुम अच्छी वकील बनोगी.’’

‘‘वह खुद जवान और सुंदर है और तुम भी उस की सुंदरता की ओर खिंचने लगी थी.’’

‘‘यह भी सही है.’’

‘‘फिर अब तो तुम मानोगी कि तुम से ज्यादा तुम्हारी शारीरिक सुंदरता उसे अपनी ओर खींच रही थी और पहली ही झलक में उस ने तुम में अपनी हवस पूरी की इच्छा की संभावना तलाश ली होगी. और जब तुम ने उस की सोने की महंगी अंगूठी स्वीकार कर ली तब वह पक्का हो गया कि अब तुम उस के जाल में आसानी से फंस सकती हो.

‘‘फिर वही हुआ, अपने पैसे का उस ने भरपूर इस्तेमाल किया और तुम पर बेतहाशा खर्च किया, जिस के नीचे तुम्हारा विवेक भी मर गया. तुम्हारी समझ कुंठित हो गई और तुम ने अपनी जिंदगी का सब से बड़ा धन गंवा दिया, जिसे कुंआरापन कहते हैं.’’

माधुरी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं.

‘‘बोल तृप्ति बोल, अपने मन की बात खुल कर मेरे सामने रख,’’ माधुरी उत्सुकता से उस की बातें सुन रही थी.

‘‘माधुरी, अब जिस सैक्स सुख के लिए मर्द शादी तक इंतजार करता है, वही उसे उस के पहले ही मिल जाए और उसे यह विश्वास हो जाए कि अपने पैसों से तुम्हारी जैसी लड़कियों को आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है, तो वह अपनी पत्नी को तलाक देने और दूसरी से शादी करने का झंझट क्यों मोल लेगा?

‘‘फिर वह अच्छी तरह जानता है कि उस की पत्नी की बदौलत ही उस के पास इतनी दौलत है और उसे तलाक देते ही उस को इस जायदाद से हाथ धोना पड़ जाएगा. मुकदमे का झंझट होगा, सो अलग.

‘‘मुझे तो लगता है, तुम किसी बड़ी साजिश की शिकार होने वाली हो. तुम से उस का मन भर गया है. अब वह तुम्हें अपने दोस्त को सौंपना चाहता है.’’

‘‘नहींनहीं…’’ अचानक माधुरी के मुंह से चीख सी निकली.

‘‘पर, इस सब में केवल सौरभ ही कुसूरवार नहीं है, तुम भी हो. तुम ने क्या सोच कर अंगूठी अपने जीजाजी और मां से छिपाई.

‘‘जीजाजी के सामने ही क्यों नहीं कहा कि सौरभ, यह अंगूठी तुम्हें उपहार में दे रहा है. मां को भी क्यों नहीं बताया कि लाख मना करने पर भी सौरभ ने अंगूठी नहीं ली.

‘‘अगर तुम ने ऐसा किया होता तो फिर सौरभ समझ जाता कि उस ने गलत जगह अपनी गोटी डाली है और वह आगे बात न बढ़ाता. जवानी और पैसे के लालच में तुम्हारी मति मारी गई थी. तुम गलत को सही और सही को गलत समझने लगी थी.

‘‘तुम्हारी मां गहनों में छूट चाहती थीं. हर ग्राहक की चाहत सस्ता खरीदने की होती है, उन की भी थी. लेकिन वे नाजायज कुछ नहीं चाहती थीं. उन्होंने धूप में अपने बाल सफेद नहीं किए हैं. उन को सौरभ की अंगूठी देने के पीछे की मंशा पता चल गई थी, इसीलिए ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दी थी.

‘‘अब तुम्हारी शादी जिस लड़के से तय हुई है, तुम उस से बात करती. उस के स्वभाव, व्यवहार और चरित्र का पता लगाती. अगर पसंद नहीं आता तो साफ इनकार कर देती. यह एक सही कदम होता. इस के लिए कई लोग तुम्हारी मदद में आगे आ जाते. तुम्हारा आत्मविश्वास बना रहता और मनोबल भी ऊंचा रहता.’’

माधुरी बोली, ‘‘एक गिलास पानी पिला तृप्ति. अब मैं सब समझ गई हूं. कल घर लौट जाऊंगी. मां से बोल दूंगी, आगे की पढ़ाई के लिए समझने मैं तृप्ति के पास आई थी. मां पूछेंगी तो तुम भी यही कह देना.’’

तृप्ति ने कहा, ‘‘कल सुबह मैं चाची को फोन कर के बता दूंगी. सौरभ को अभी तुम बोल दो. अभी वह भी सोया न होगा. बनारस आने की तैयारी में लगा होगा. उस से कहो कि मैं अब गांव लौट रही हूं. मांबाबूजी का दिल दुखाना नहीं चाहती. तुम्हारा घर तोड़ कर किसी की आह नहीं लेना चाहती.

‘‘मुझे पूरा भरोसा है कि सौरभ खुश होगा कि बला उस के सिर से टलेगी.’’

तृप्ति ने सच ही कहा था. सौरभ अभी जाग रहा था और थोड़ी देर पहले ही मुंबई वाले अपने दोस्त से कहा था, ‘यार, अब इस बला को तुम संभालो. वह सुंदर है. खर्च करोगे तो तुम्हारी हो जाएगी. जब मन भर जाएगा तो कुछ दे कर उस के गांव वाली ट्रेन पर बिठा देना. अब मुझे एक दूसरी मिल गई है.’

सौरभ ने एक छोटा सा जवाब दिया था, ‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं रिजर्वेशन कैंसिल करा देता हूं.’

माधुरी का मन अब हलका था, ‘‘तृप्ति, अब एक काम और कर दे. कल क्यों आज ही घर में फोन कर दे. अभी रात के 12 बजे हैं. मांबाबूजी बहुत चिंतित होंगे. मैं चुपके से यहां आ गई हूं.’’

‘‘अच्छा, बोलती हूं…’’ तृप्ति माधुरी की मां को समझा रही थी, ‘‘चिंता न करें आंटीजी. माधुरी मेरे पास आ गई है. वह आगे पढ़ना चाहती है. आप ने उस को घर से निकलने पर बंदिश लगा दी थी न, इसलिए… हां, उसे बता कर निकलना चाहिए था… अच्छा प्रणाम, माधुरी सो गई है, कल सुबह बात कर लेगी.’’

फोन कट गया. माधुरी को अपने किए पर पछतावा तो था, पर आगे साजिश में फंसने से बच जाने की खुशी भी थी. साथ ही, अपनी सहेली तृप्ति पर गर्व भी था. दोनों सहेलियां बात करतेकरते सो गईं.

लेखक – रमेश चंद्र सिंह

Hindi Story 2025 : ताजी कलियों का गजरा

Hindi Story 2025 :  दफ्तर से छुट्टी होते ही अमित बाहर निकला. पर उसे घर जाने की जल्दी नहीं थी, क्योंकि घर का कसैला स्वाद हमेशा उस के मन को बेमजा करता रहता था.

अमित की घरेलू जिंदगी सुखद नहीं थी. बीवी बातबात पर लड़ती रहती थी. उसे लगता था कि जैसे वह लड़ने का बहाना ढूंढ़ती रहती है, इसीलिए वह देर रात को घर पहुंचता, जैसेतैसे खाना खाता और किसी अनजान की तरह अपने बिस्तर पर जा कर सो जाता.

वैसे, अमित की बीवी देखने में बेहद मासूम लगती थी और उस की इसी मासूमियत पर रीझ कर उस ने शादी के लिए हामी भरी थी. पर उसे क्या पता था कि उस की जबान की धार कैंची से भी ज्यादा तेज होगी.

केवल जबान की बात होती तो वह जैसेतैसे निभा भी लेता, पर वह शक्की भी थी. उस की इन्हीं दोनों आदतों से तंग हो कर अमित अब ज्यादा से ज्यादा समय घर से दूर रहना चाहता था.

सड़क पर चलते हुए अमित सोच रहा था, ‘आज तो यहां कोई भी दोस्त नहीं मिला, यह शाम कैसे कटेगी? अकेले घूमने से तो अकेलापन और भी बढ़ जाता है.’

धीरेधीरे चलता हुआ अमित चौराहे के एक ओर बने बैंच पर बैठ गया और हाथ में पकड़े अखबार को उलटपलट कर देखने लगा, तभी उस के कानों में आवाज आई. ‘‘गजरा लोगे बाबूजी. केवल 10 रुपए का एक है.’’ अमित ने बगैर देखे ही इनकार में सिर हिलाया. पर उसे लगा कि गजरे वाली हटी नहीं है.

अमित ने मुंह फेर कर देखा. एक लड़की हाथ में 8-10 गजरे लिए खड़ी थी और तरस भरे लहजे में गजरा खरीदने के लिए कह रही थी.

अमित ने फिर कहा, ‘‘नहीं चाहिए. और गजरा किस के लिए लूं?’’

लड़की को कुछ उम्मीद बंधी. वह बोली, ‘‘किसी के लिए भी सही, एक ले लो बाबूजी. अभी तक एक भी नहीं बिका है. आप के हाथ से ही बोहनी होगी.’’

अमित ने गजरे और गजरे वाली को ध्यान से देखा. मैलीकुचैली मासूम सी लड़की खड़ी थी, पर उस की आंखें चमकीली थीं.

‘‘लाओ, एक दे दो,’’ अमित ने गजरों की ओर देखते हुए कहा. लड़की ने एक गजरा अमित के आगे बढ़ाया और उस ने जेब से 20 रुपए का नोट निकाल कर उसे दे दिया.

‘‘खुले पैसे तो नहीं हैं. यह पहली ही बिक्री है.’’

अमित ने एक पल रुक कर उस से कहा, ‘‘लाओ, एक और गजरा दे दो. 20 रुपए पूरे हो जाएंगे.’’

लड़की ने खुश हो कर एक और गजरा उसे दे दिया.

जब वह जाने लगी, तो अमित ने कहा, ‘‘जरा ठहरो, मैं 2 गजरों का क्या करूंगा? एक तुम ले लो. अपने बालों में लगा लेना,’’ अमित ने धीरे से मुसकरा कर गजरा उस की ओर बढ़ाया.

लड़की का चेहरा शर्म से लाल हो उठा. अमित को उस की आंखें बहुत काली और पलकें बहुत लंबी लगीं. तभी वह संभला और मुसकरा कर बोला, ‘‘लो, रख लो. मैं ने तो यों ही कहा था. अगर बालों में नहीं लगाना, तो किसी को बेच देना या फुटकर पैसे मिल जाएं, तो 10 रुपए वापस कर जाना.’’

लड़की ने उस गजरे को ले लिया और धीरेधीरे कदम बढ़ाते हुए वहां से चली गई. अमित कुछ देर वहीं बैठा रहा, फिर उठ कर इधरउधर घूमता रहा. जब अकेले दिल नहीं लगा, तो घर की ओर चल दिया.

जब वह घर पहुंचा, तो देखा कि बीवी पतीले में जोरजोर से कलछी घुमा रही थी.

अमित चुपचाप अपने कमरे में चला गया. कपड़े उतारते समय उसे गजरे का खयाल आया, तो उस ने सोचा कि जेब में ही पड़ा रहने दे. पर नहीं, बीवी ने देख लिया तो सोचेगी कि पता नहीं किसे देने के लिए खरीदा है. उस ने सोचा कि क्यों न जेब से निकाल कर कहीं और रख दिया जाए.

अमित के कदमों की आहट सुनते ही बीवी उठ खड़ी हुई थी. वह शाम से ही गुस्से से भरी बैठी थी कि आज तो इस का फैसला हो कर ही रहेगा कि वह क्यों देर से घर आता है. क्या इसी तरह जीने के लिए वह उसे ब्याह कर लाया है.

जब वह रसोई से बाहर आई, तो अमित के हाथ में गजरा देख कर एक पल के लिए ठिठक कर खड़ी हो गई.

हड़बड़ी में अमित गजरे वाला हाथ आगे बढ़ा कर बोला, ‘‘यह गजरा… यों ही ले आया हूं.’’

बीवी ने आगे बढ़ कर गजरा ले लिया, उसे सूंघा और फिर आईने के सामने खड़ी हो कर अपने जूड़े पर बांधने लगी. अमित सबकुछ अचरज भरी नजरों से देखता रहा.

तभी बीवी ने कहा, ‘‘खूब महकता है. सारा कमरा खुशबू से भर गया है. ताजा कलियों का बना लगता है.’’

‘‘हां, बिलकुल ताजा कलियों का है. तभी तो सोचा कि लेता चलूं.’’

कई दिनों के बाद उस दिन अमित ने गरमगरम भोजन और बीवी की ठंडी बातों का स्वाद चखा. दूसरे दिन वह शाम को छुट्टी होने पर दफ्तर से निकला, तो उस के साथ एक दोस्त भी था. दफ्तर में काम करते समय अमित ने सोचा था कि आज सीधे घर चला जाएगा, पर दोस्त के मिलने पर घर जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता था.

दोनों दोस्तों ने पहले एक रैस्टोरैंट में चाय पी, फिर वे बाजार में घूमते रहे. आखिर में वे समुद्र के किनारे जा बैठे. शाम को सूरज के डूबने की लाली से सागर में कई रंग दिख रहे थे.

अमित का ध्यान टूटा. वही कल वाली लड़की उस के सामने खड़ी गजरा लेने के लिए कह रही थी. अमित ने लड़की से गजरा ले लिया.

दोस्त ने कुछ हैरान हो कर कहा, ‘‘लगता है, भाभी आजकल खुश हैं. खूब गजरे खरीद रहे हो.’’

अमित मुसकराया, ‘‘बस यों ही खरीद लिया है. अब चलें, काफी देर हो गई है.’’

अमित घर पहुंचा, तो उस की बीवी जैसे उस के ही इंतजार में बैठी थी. वह बोली, ‘‘आज तो बड़ी देर कर दी आप ने. सोच रही थी, जरा बाजार घूमने चलेंगे. आते हुए शीला के घर भी हो आएंगे.’’

अमित ने बगैर कुछ बोले ही जेब से गजरा निकाल कर उस की ओर बढ़ाया. बीवी ने बड़े चाव से गजरा लिया और सूंघा. फिर आईने के सामने खड़ी हो कर उसे जूड़े पर बांधने लगी.

अमित ने कपड़े उतारे, तो बीवी ने कपड़े ले कर सलीके से खूंटी पर टांग दिए. फिर तौलिया और पाजामा देते हुए वह बोली, ‘‘हाथमुंह धो लो. मैं रोटी बनाती हूं, गरमगरम खा लो, फिर बाजार चलेंगे.’’

अमित समझ नहीं पा रहा था कि बीवी में यह बदलाव कैसे आ गया. गजरा तो मामूली सी चीज है. कोई और ही बात होगी. दिन बीतने लगे. अब अमित शाम को जल्दी घर चला आता. बीवी उसे देख कर खुश होती. जिंदगी ने एक नया रुख ले लिया था. अमित को लग रहा था कि बीवी में हर रोज बदलाव आ रहा है. उसे अपने में भी कुछ बदलाव होता महसूस हो रहा था.

अमित दफ्तर से घर आते समय एक दिन भी बीवी के लिए गजरा लेना नहीं भूला था. अब तो यह उस की आदत ही बन गई थी. वैसे तो गजरे वाली और भी लड़कियां वहां होती थीं, पर अमित हमेशा उसी लड़की से गजरा खरीदता, जिस ने उसे पहले दिन गजरा दिया था.

एक दिन अमित चौक में बैठा सामने की इमारत को देख रहा था कि गजरे वाली लड़की आई. अमित ने रोज की तरह उस के हाथ से गजरा ले लिया. पैसे ले कर वह लड़की वहीं खड़ी रही.

अमित ने देखा, उस के चेहरे पर संकोच था, जैसे वह कुछ कहना चाहती है.

अमित ने उस की झिझक दूर करने के लिए पूछा, ‘‘कितने बिक गए अब तक?’’

‘‘4 बिक गए हैं. अभीअभी आई हूं. पर बाबूजी, आप के हाथ से बोहनी होने पर देखतेदेखते ही बिक जाते हैं.’’

‘‘फिर तो सब से पहले मुझे ही बेचा करो,’’ अमित ने कहा.

‘‘कभीकभी तो आप बहुत देर से आते हैं,’’ लड़की शिकायती लहजे में बोली.

अमित कुछ देर तक चुप रहा, फिर बोला, ‘‘कहां रहती हो?’’

लड़की ने बताया कि वह अपनी अंधी दादी के साथ एक झोंपड़ी में रहती है. झोंपड़ी के सामने 2 चमेली के पौधे हैं, जिन के फूलों से वह उस के लिए खास गजरा बनाती है.

‘‘अच्छा,’’ अमित बोला.

लड़की का चेहरा लाज से लाल हो गया. वह एक पल को चुप रही, फिर बोली, ‘‘तुम रोज गजरा खरीदते हो, इस का करते क्या हो?’’

अमित मुसकराया. फिर कुछ कहतेकहते वह चुप हो गया.

आखिर लड़की ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं.’’ और अमित उसे तेज कदमों से जाते हुए देखता रहा.

अब अमित की अधिकतर शामें घर में ही बीतने लगी थीं. दोस्त शिकायत करते कि अब वह बहुत कम मिलता है, पर वह खुश भी था कि उस की घरेलू जिंदगी सुखद बन गई थी.

एक दिन अमित की बीवी ने उस के साथ सिनेमा देखने का मन बनाया. वह दोपहर को उस के दफ्तर पहुंची और दोनों सिनेमा देखने चल पड़े. सिनेमा से निकलने पर बीवी ने कहा, ‘‘चलो, आज सागर के किनारे चलते हैं. एक अरसा बीत गया इधर आए हुए.’’

वहां घूमते हुए अमित को गजरे वाली लड़की दिखाई दी. वह उस की तरफ ही आ रही थी. उस के हाथ में एक ही गजरा था, जो कलियों के बजाय फूलों का बना हुआ था. लड़की के पास आने पर अमित ने कहा, ‘‘मैं हमेशा इसी लड़की से गजरा लिया करता हूं, क्योंकि यह मेरे लिए खासतौर पर मोटीमोटी कलियों का गजरा बना कर लाती है.’’ बीवी ने तीखी नजरों से लड़की को देखा, तो लड़की उस के सामने आंखें न उठा सकी.

गजरा लेने के लिए अमित ने हाथ बढ़ाया, तो लड़की ने हाथ का गजरा देने के बजाय अपनी साड़ी के पल्लू में बंधा एक गजरा निकाला. मोटीमोटी कलियों का बहुत बढि़या गजरा, जैसा कि वह रोज अमित को देती थी. अमित का चेहरा खिल उठा, पर उस की बीवी तीखी नजरों से उस लड़की को देख रही थी.

अचानक अमित का ध्यान बीवी की ओर गया तो चौंका. उस ने फौरन लड़की के हाथ से गजरा ले लिया और जेब से पैसे निकाल कर उस की ओर बढ़ाए,

पर लड़की ने पैसे न लेते हुए उदास लहजे में कहा, ‘‘पिछली बार के बकाया पैसे मुझे आप को देने थे. हिसाब पूरा हो गया,’’ इतना कह कर वह एक तरफ को चली गई.

अमित की बीवी ने वहीं खड़ेखड़े जूड़े पर गजरा बांधा और अमित को दिखाते हुए पूछा, ‘‘देखो तो ठीक तरह से बंधा है न?’’

‘‘हां,’’ अमित ने पत्नी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आज के जूड़े में तो तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो.’’

‘‘खूबसूरत चीज हर जगह ही खूबसूरत लगती है,’’ पत्नी ने शोखी से कहा और मुसकराई, पर अमित के होंठों पर मुसकराहट न थी.

Hindi Romantic Story : पश्चाताप

Hindi Romantic Story : गार्गी टैक्सी की खिड़की से बाहर झांक रही थी. उस के दिमाग में जीवन के पिछले वर्ष चलचित्र की भांति घूम रहे थे. उस की उंगलियां मोबाइल पर अनवरत चल रही थीं. आरव,  प्लीज, अब एक मौका दो. तुम ने मुझे प्यार, समर्पण, भरोसा, सुखसुविधा सबकुछ देने की कोशिश की, लेकिन मैं पैसे के पीछे भागती रही ऒर आज इस दुनिया में नितांत अकेली खड़ी हूं… “मैडम, कहां चलना है?” ड्राइवर की आवाज से उस की तंद्रा भंग हुई.

“मैरीन ड्राइव.”

मुंबई में गार्गी का प्रिय स्थान, मैरीन ड्राइव,  जहां समुद्र की उठती लहरें और लोगों का हुजूम देख कर उस का अकेलापन कुछ क्षणों के लिए दूर हो जाता है. आज वहां वह एक कालेज युगल को हाथ में हाथ डाले घूमते देख आरव की यादों में खो गई… गार्गी एक साधारण परिवार की महत्त्वाकांक्षी  लड़की थी.  उस ने अपने मन में सपना पाल रखा था कि वह किसी रईस लड़के से शादी करेगी. दूध सा गोरा रंग, गोल चेहरा, बड़ीबड़ी कजरारी आंखें, अनछुई सी चितवन, मीठी सी मुसकान के चलते वह किसी को भी अपनी ओर लुभा लेती थी.

आरव उस से सीनियर था. लेकिन पहली झलक में ही वह उसे देख मुसकरा पड़ी थी.  उस का कारण उस का बड़ी सी गाड़ी में कालेज आना था. 6 फुट लंबा, गोरा, आकर्षक  लड़का,  हाथ में आईफोन, आंखों पर मंहगा ब्रैंडेड गौगल्स देख गार्गी उस पर आकर्षित हो गई थी. सोशल साइट्स और व्हाट्सऐप पर चैटिंग शुरू होते ही बात कौफी तक पहुंची और जल्द ही दोनों ने एकदूसरे के हाथों को पकड़ प्यार का भी इजहार कर दिया था.

आरव ने एक दिन गार्गी को अपने मम्मीपापा से मिलवा दिया था.  उन लोगों ने मन ही मन दोनों के रिश्ते के लिए हामी दी थी. गार्गी कभी अपनी मां की तो सुनती ही नहीं थी, इसलिए उन की परमिशन वगैरह की उसे कोई फिक्र ही नहीं थी.

अब प्यार के दोनों पंछी आजाद थे. कालेज टूर, पिकनिक, डेटिंग, पिक्चर, वीकैंड में आउटिंग, वैलेन्टाइन डे  आदि पर बढ़ती मुलाकातों से दोनों के बीच की दूरियां कम होती गईं. दोनों के बीच प्यारमोहब्बत, कस्मेवादे, शादी की प्लैनिंग, शादी के बाद हनीमून कहां मनाएंगे, किस फाइवस्टार में बुकिंग करेंगे आदि बातें होती थीं.

गार्गी कुछ ज्यादा ही मौडर्न टाइप थी. नए फैशन के कपड़े, ड्रिंक, स्मोक, पब, डिस्को, ड्रग्स सबकुछ उसे पसंद  था. आरव उस के प्यार में डूबा हुआ उस का साथ देने के लिए नशा करने लगा और नशे में ही दिल का रिश्ता शरीर तक जा पहुंचा और उस दिन दोनों ने प्यार की सारी हदें पार कर दी थीं.

वैसे भी दोनों शीघ्र ही एकदूसरे के होने वाले थे ही.  आरव का प्लेसमेंट नहीं हुआ था, इसलिए वह परेशान रहता था. गार्गी उस से गोवा चलने की जिद कर रही थी. उस ने जोर से डांट कर कह दिया कि गोवा कहीं भाग जाएगा क्या?

गार्गी नाराज हो कर वहां से चली गई और बातचीत बंद कर दी. आरव अपनी चिंताओं में खोया हुआ था. दोनों ने छोटी सी बात को अपना अहं का प्रश्न बना लिया था. उस ने तो मोबाइल से उस का नंबर भी डिलीट कर दिया था.

कुछ ही दिन बीते थे. उस के जीवन में पुरू आ गया. वह आरव  से ज्यादा पैसे वाला था. और गार्गी बचपन से बड़े सपने देखने वाली लड़की थी. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए मार्ग में आए अवरोधों को दूर करने के लिए साम, दाम, दंड, और भेद सबकुछ आजमा लेती थी. एक दिन वह पुरू के साथ शहर के एक कैफे में बैठी थी कि उस की निगाह  एक टेबल पर बैठे आरव और उस के दोस्तों पर पड़ी. तो, उस ने जानबूझ कर उन्हें अनदेखा कर दिया .

पुरू उस का बौस था. वह कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर था. आकर्षक, सजीला, सांवला, सलोना पुरू की सीनियर मैनेजर की पोस्ट और उस का बड़ा पैकेज देख कर उस ने उस के साथ चट मंगनी पट ब्याह रचा लिया. उस ने अपनी सगाई की फोटो फेसबुक और दूसरी सोशल साइट्स पर शेयर की थी. वह हीरे की अंगूठी पा कर बहुत खुश थी.

आरव को उस की फोटोज देख कर सदमा सा लगा था. उस ने कमेंटबौक्स में लिखा भी था- …वे प्यारमोहब्बत की बातें,  कसमेवादे, जो सपने हम दोनों ने साथ बैठ कर देखे थे, सब झूठे हो चुके…

शौकीन पुरू की जीवनशैली दिखावे वाली थी. उस का लक्जीरियस फोरबेडरूम फुल्लीफर्निश्ड फ्लैट, बड़ी गाड़ी और ऐशोआराम का सारा सामान देख गार्गी अपने चयन पर खिलखिला उठी. पार्टीज में जाना, जाम पर जाम छलकाना रोज का शगल था. गार्गी के लिए तो सोने के दिन और चांदी की रातें थीं.  उस ने यही सब तो चाहा था.

कुछ दिन खूब मस्ती में कटे- सिंगापुर, मौरीशस, हौंगकौंग, कभी गोवा के बीच पर तो कभी रोमांटिक खजुराहो, तो कभी ऊटी की ठंडी वादियां तो कभी कोबलम का बीच. गार्गी बहुत खुश थी. बस, एक बात उस की समझ में न आती कि पुरु अपने फोन पर लंबी बातें करता और हमेशा उस से हट कर, अपना लैपटौप भी लौक रखता…

गार्गी को यह महसूस हुआ कि पुरु ने उस के साथ शादी किसी खास मकसद से की  थी. वह, दरअसल, स्मग्लिंग के धंधे में उस का इस्तेमाल करता था. लेकिन वह तो इंद्रधनुषी सपनों में डूबी हुई थी. हसीन ख्वाबों में खोई हुई गार्गी ने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी.

पुरु से मिलने लोग आते, कुछ खुसुरफुसुर बातें करते और रात के अंधेरे में ही चले जाते. पिछले कुछ दिनों से वह परेशान रहने लगा था. वह कहने लगा कि मेरी सैलरी अभी नहीं आई है, कंपनी घाटे में चल रही है आदिआदि.

एक दिन पुरु भागते हुए आया और गार्गी से बोला, “मुझे एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में इटली  जाना है. कुछ दिनों के बाद तुम्हें बुला लूंगा.” और वह जल्दीजल्दी अपना बैग पैक कर चला गया.

गार्गी बहुत खुश थी. वह कुछ दिनों बाद खुद भी इटली जाने की सोचने लगी. तभी कोरोना बम फट पड़ा और लौकडाउन होते ही सबकुछ ठहर सा गया. उसी के साथ उस के सपने धराशाई होते दिखाई पड़ने लगे. कुछ महीनों तक तो  पुरु से बात होती रही, फिर उस से संपर्क भी टूट गया.

 

अब गार्गी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. कोरोना ने पैर पसार लिए थे. यहां भी लौकडाउन की आहट थी. वह परेशान हो कर पुरू को फोन करती, ‘’तुम ने पैसे ट्रांसफर नहीं किए, मेरा खर्च कैसे चले?  फ्लैट का किराया, गाड़ी वगैरह… जो फ्लैट बुक किया था, वहां से भी मेल आई है. वह डील कैंसिल कर देने की धमकी दे रहा है.“

“हां, मुझे सब मालूम है. मेरी कंपनी बंद हो गई है और यहां कोरोना फैल गया है. इसलिए लौकडाउन कर दिया गया है. मैं स्वयं बहुत बड़ी मुसीबत  में हूं.”

उस के इंतजार में 3-4 महीने बीत गए थे. गार्गी को समझ आ गया था कि वह ठगी गई है और फिर उस के बाद उस ने अपना सिम बदल कर उस से संबंध समाप्त कर लिया. वह फ्लैट किसी और का था, केवल कुछ महीनों के लिए ही लिया गया था. इसलिए अब मजबूर हो कर वह अपनी मां के पास आ गई और फिर से नौकरी करने लगी.

कुछ दिनों तक तो पुरू के दिए धोखे से वह बाहर नहीं आ पा रही थी. वह खोईखोई और उदास  रहती. मां ने पहले ही उसे जल्दबाजी में शादी करने से बहुत मना किया था. परंतु वह तो उस के बड़े पैकेज की दीवानी थी. गुस्से में गारगी ने अब तो पुरु का मोबाइल नंबर भी ब्लौक कर दिया था और अपनी शादी की यादों के  पन्ने को फाड़ कर अपने जीवन में आगे बढ़ चली थी.

कुछ दिनों तक तो वह रोबोट की तरह भावहीन चेहरा लिए घूमती रही.  फिर अपना पुराना औफिस जौइन कर लिया. वहीं पर एक पार्टी में  उस ने एक  सुदर्शन व्यक्तित्व के युवक को देखा. उस की उम्र लगभग 30 – 35  वर्ष  के आसपास, गेहुंआ रंग, इकहरा बदन, लंबा कद, कुल मिला कर सौम्य सा व्यक्तित्व. कनपटी पर एकदो सफेद बाल उस के चेहरे को गंभीर और प्रभावशाली बना रहे थे. कहा जाए तो लव ऐट फर्स्ट साइट जैसा ही कुछ था.  काला ट्राउजर और स्काईब्लू शर्ट  पर उस की नजरें ठहर गईं थीं.

शायद उस का भी यही हाल था, क्योंकि वह भी उसी जगह ठहर कर खड़ा उसी पर अपनी निगाहें लगाए हुए था.

“हैलो, मी विशेष.‘’

“माईसेल्फ गार्गी.‘’

विशेष को देखते ही गार्गी का तनमन खुशी से झूम उठा था. वह सोच रही थी कि खुशी तो उस के इतने करीब थी, लगभग उस के आंचल में थी, उसे पता ही नहीं था.  दोनों के बीच हैलोहाय का रिश्ता जल्दी ही बातों और मुलाकातों में बदल गया था. बातोंबातों में गार्गी को विश्वास में लेने के लिए विशेष ने अपने जीवन की सचाई को निसंकोच बता डाला था. पापा उस पर शादी के लिए दबाव डालते रहे लेकिन जिस को मैं ने चाहा, वे उस से राजी नहीं हुए. बस, मैं ने भी सोच लिया कि शादी ही नहीं करूंगा. एक दिन पापा का हार्टफेल हो गया. फिर दुख की मारी  अम्मा  भी अपनी बहू का मुंह देखने को तरसती रहीं और पापा के बिछोह को सहन नहीं कर पाईं, जल्दी ही इस दुनिया से विदा हो गईं.  अब उस की जिंदगी पूरी तरह से आजाद और सूनी हो गई थी.

विशेष ने आगे बताया, “मैं एक एमएनसी में अच्छी पोस्ट पर हूं.  अच्छाभला पैकेज है. परंतु अपने जीवन के एकाकीपन से तंग आ चुका हूं. शादी डाट काम जैसी साइट पर  अपने लिए लड़की ढूंढता रहता हूं. खोज अभी जारी है. आप को देख कर लगा कि शायद आप मेरे लिए परफेक्ट साथी हो सकती हैं.”

वह तो उसी के औफिस के दूसरे सेक्शन में था.

दोनों के मन में एक सी हिलोरें उठ रही थीं. कभी लिफ्ट तो कभी पार्किंग, तो कभी कैंटीन में मिलना जरूरी सा लगने लगा था दोनों को.

व्हाट्सऐप और फोन पर लंबी बातें देररात तक होने लगीं. दीवानगी अपने चरम पर थी. एक दिन गार्गी ने जानबूझ कर  अपना फोन बंद कर दिया और औफिस भी नहीं गई.  इस तरह 2 दिन बीत गए थे. उस के मन में अपराधबोध का झंझावात चल रहा था कि वह अपने पति पुरू के साथ अन्याय कर रही  है.

क्यों? उस का अंतर्मन बोला था कि विशेष उस का केवल अच्छा दोस्त है. वह उस के दिल की भावनाओं को समझता है, परंतु वह उस से सचाई  बताने में क्यों डर रही है. उस का मन उसे धिक्कारता  रहता,  लेकिन विशेष को देखते ही वह सबकुछ भूल जाती थी. इसी पसोपेश में वह घर में ही लेटी रही थी.

उस के घर की कौलबेल बजी तो वह चौंक पड़ी थी. दरवाजे पर विशेष को खड़ा देख गार्गी प्रफुल्लित हो उठी थी.

“अरे, आप  !‘’

“आप को 2 दिनों से देखा नहीं, इसलिए चिंतित हो उठा था.  आखिर आप का दोस्त जो ठहरा.’’

“बस, यों ही, सिर में दर्द था और सच कहूं तो मूड ठीक नहीं था.’’

“मेरे होते हुए मूड क्यों खराब है? आज मेरा औफिस नहीं है, वर्क फ्रौम होम ले रखा है. आज की मीटिंग पोस्टपोन कर देता हूं. चलिए, कहीं बाहर चलते हैं. वहीं कहीं लंच कर लेंगे.‘’

उस के मन में लड्डू फूट पड़े थे. वह तो कब से चाह रही थी कि वह उस की बांहों में बांह डाल कर कहीं बाहर घूमने जाए, किसी फाइवस्टार होटल में लंच और फिर शौपिंग करवाए.

उस के मन में पुलकभरी सिहरन थी. दिसंबर का महीना था.  बादल छाए हुए थे. हवा में ठंडापन होने से मौसम खुशनुमा था. वह मन से तैयार हुई थी. उस ने स्कर्ट और टॉप पहना  था. जब वह तैयार हो कर बाहर आई तो विशेष की निगाहें उस पर ठहर कर रह गईं थीं. वह उसे अपलक निहारता रह गया था .

मां ने उस दिन गार्गी को टोका भी था, “अब यह नया कौन आ गया तेरे जीवन में?”

“यह विशेष  है, मेरा अच्छा दोस्त. इस से ज्यादा कुछ भी नहीं. मेरे ही औफिस में काम करता है.”

जब विशेष ने शिष्टता के साथ उस के लिए कार का दरवाजा खोला तो उस के मन में पुरु की यादें ताजा हो उठीं.  उस ने तो इस तरह से उस के लिए कभी भी गाड़ी का गेट नहीं खोला, लेकिन उन यादों को झटकते हुए वह फ़ौरन वर्तमान में लौट आई थी.

‘’पहले कहां चलोगी,  आप ने लंच कर लिया?“

“नहीं,”  वह सकुचा उठी थी.

“फिर तो चलिए, पहले लंच करते हैं. मेरे पेट में भी चूहे बहुत जोरजोर से चहलकदमी कर रहे हैं.‘’ विशेष यह कह कर अपनी बात पर ही जोर से हंस पड़ा था.

उस ने एक बड़े रेस्ट्रां के सामने गाड़ी रोक दी थी. वहां एक वाचमैन ने तुरंत आ कर उस के हाथ से गाड़ी की चाबी ली और गाड़ी पार्क करने के लिए ले गया था. वहां पर विशेष एक कोने की टेबल पर सीधे पहुंच गया. शायद पहले से बुक कर रखा था.

एकबारगी फिर गार्गी का दिल धड़क उठा था. विशेष की आंखों में अपने प्रति प्यार वह स्पष्ट रूप से देख रही थी. उस का प्यारभरा आमंत्रण उस के मन में प्यार की कोंपलें खिला रहा था. परंतु मन ही मन  अपने कड़वे अतीत को ले कर डरी हुई थी. जब उसे उस के बारे में सबकुछ मालूम होगा तब भी क्या वह इसी तरह से उस के प्रति समर्पण भाव रखेगा? एक क्षण को उस का सर्वांग सिहर उठा था.

विशेष से अब तक गार्गी को प्यार हो गया था. उस के प्रति उस की दीवानगी बढ़ती जा रही थी. उस दिन उस ने मौल से उस को शौपिंग भी करवाई थी. लेकिन, बारबार पुरू उस की स्मृतियों के द्वार पर आ कर खड़ा हो जाता था.

सिलसिला चल निकला था. दोनों ही मिलने का बहाना ढूंढते थे. मैरीन ड्राइव, कभी जूहू बीच के किनारे बैठ कर समुद्र की आतीजाती लहरों को निहारते हुए प्यार की बातें करना बहुत पसंद था उन्हें. शाम गहरा गई थी. समुद्रतट पर दोनों देर तक टहलते रहे थे. आज उस ने रेड कलर का स्लीवलेस टॉप और जींस पहनी हुई थी. वह जानती थी कि यह ड्रेस उस के ऊपर बहुत फबती है और वह पहले ही वौशरूम में अपने मेकअप को टचअप कर के आई थी.

अचानक ही विशेष ने उस की हथेलियों को थाम लिया था. इतने दिनों बाद किसी पुरुष के स्पर्श को पा कर वह रोमांचित हो उठी थी. वह कांप उठी थी. उसे फिर से पुरू याद आ गया था. वह भी तो ऐसे ही मजबूती से उस की हथेलियों को पकड़ लेता था. क्षणभर को वह भावुक हो उठी थी.  और उस ने एक हलके झटके से उस की हथेलियों को परे झटक दिया था.

‘सौरी’ कह कर विशेष उस से थोड़ा दूर हो कर चलने लगा था.

गार्गी न जाने क्यों विशेष के साथ नौर्मल नहीं हो पा रही थी, हालांकि उस से प्यार करने लगी थी. उस के साथ लंच पर जाना, शौपिंग पर जाना और अब शाम के अंधेरे में उस की हथेलियों पर उस का स्पर्श उस के अन्तर्मन में पुरू के प्रति अपराधबोध सा भर रहा था. पुरु के मेसेज तो आए थे, हालांकि, उस ने नाराजगी में उत्तर नहीं दिया था. गार्गी सोचती, आखिर वह पुरु के साथ बेवफाई करने पर क्यों आमादा है?  पुरु की नौकरी छूटी है तो दूसरी मिल जाती. वह बेचारा तो स्वयं ही मुसीबतों का मारा था.

परंतु, विशेष का आकर्षण  भी उस पर हावी था. उस की मनोदशा दोराहे पर थी. इधर जाऊं कि उधर, उस का लालची मन निर्णय नहीं ले पा रहा था.  एक शाम वे किसी गार्डन की झाड़ी में छिप कर बैठे थे. विशेष बिलकुल उस के करीब था, यहां तक कि उस की धौंकनी सी तेज सांसों  को भी वह महसूस कर रही थी. वह स्वयं भी तो कब से उस की बांहों में खो जाने का इंतजार कर रही थी.

विशेष ने भी उस के मन की भावनाओं को समझ लिया था और फिर जाने कब वह उस की बांहों में सिमटती चली गई थी. कुछ देर तक दोनों यों ही निशब्द एकदूसरे के आलिंगन  में थे. फिर धीरे से वह उस से अलग हो गई थी. विशेष के चेहरे पर उदासी की छाया मूर्त हो उठी थी.

अब विशेष का गार्गी के घर पर आना बढ़ गया था. कभी घर के खाने के स्वाद के लिए तो कभी घर का कोई सामान ले कर आ जाता तो कभी मम्मी से मिलने के बहाने आ जाता.

परंतु, गार्गी की तेज निगाहों से छिपा नहीं था कि विशेष मात्र उस से ही मिलने के लिए बहाना खोजता रहता है.

मम्मी ने बेटी गार्गी को कई बार समझाने की कोशिश की थी कि तू गलत रास्ते पर चल पड़ी है. यह पुरू के साथ अन्याय होगा.

परंतु वह तो विशेष के प्यार में डूबी हुई थी.  वह तो हर पल उस के सान्निध्य की कामना में खोई रहती. पुरुष की तीव्र नजरें स्त्री की भावनाओं को अतिशीघ्र पहचान लेती हैं और फिर उस के समर्पण  को कमजोरी समझ पुरुष उस का मनचाहा दोहन करता है. एक शाम वह गार्गी को अपने फ्लैट में ले गया था.

विशेष का फ्लैट देख उस की आंखें चौंधिया उठी थीं. पहले तो वह हिचकिचा रही थी, मन ही मन कसमसा रही थी, परंतु उस का प्यासा तन किसी मजबूत बांहों में खोने को बेचैन भी हो रहा था. जब उस ने प्यार से उस की दोनों कलाइयों को पकड़ा तो फिर से गार्गी को पुरू की कठोर पकड़ य़ाद आ गई थी. गार्गी यह सोचने को मजबूर हो उठी थी कि विशेष कितना सभ्य और शालीन है कि उसे ऐसे पकड़ता है कि मानो वह कोई कांच की गुड़िया हो.

परंतु, पुरू की अदृश्य परछाईं उन दोनों के बीच आ कर खड़ी हो गई और गार्गी ने आहिस्ता से पीछे हट कर उस की मजबूत कलाइयों को अपने से दूर कर दिया था. वह स्वयं भी नहीं समझ पा रही थी कि वह चाहती क्या है?  एक ओर तो वह विशेष के सपनों में खोई रहती है और जब वह मिलता है तो वह उसे अपने से दूर कर देती है, जबकि  वह उस की बांहों में पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी.

गार्गी सोचती, क्यों विशेष के स्पर्श से पुरु के साथ बिताए मधुर पल उसे याद आने लगते हैं. उस की स्मृतियों में तो आरव भी बारबार अपनी दस्तक देने से बाज नहीं आता. क्या ऐसा है कि औरत अपना पहला प्यार कभी नहीं भूल पाती. शायद यही वजह होगी कि आरव आज भी उस के ख्वाबों में आ कर उस से अकसर पूछता है कि, ‘गार्गी, तुम खुश हो?’

पैसे की अंधीदौड़ में उस ने पुरू से प्यार किया, शादी की. उस ने वह सबकुछ देने की कोशिश की थी  जो उस ने चाहा था. पुरू ने उसे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया था. क्या पता वह सचमुच किसी मुसीबत में हो.

एक शाम वह मौल में शौपिंग कर रही थी. तभी वहां पुरू पर उस की निगाह पड़ी थी. उस के साथ एक लड़की भी थी. दोनों  की निगाहें मिल गईं थीं, लेकिन पुरू तेजी से भीड़ का फायदा उठा कर उस से बच कर निकल गया था.

अब तो वह ईर्ष्या से जलभुन  गई और विशेष के साथ लिवइन में  रहने लगी थी. उस का लक्जीरियस अपार्टमेंट, बड़ी गाड़ी, मंहगे ड्रिंक, हाई सोसायटी के लोगों की पार्टियों में उस की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना…वह तो मानो फिर से सपनों की दुनिया में खो गई थी.

उस का दिन तो औफिस में किसी तरह बीतता, लेकिन शामें तो विशेष की मजबूत बांहों के साए में  हंसतेखिलखिलाते बीत रही थीं. उस ने पुरू की यादों की परछाईं को अपने से परे धकेल कर अपने लिवइन का एनाउंसमेंट मां के सामने कर दिया था.

उन्होंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की थी कि स्त्री का यौवन सदा नहीं रहता है और पुरुष का भ्रमर मन यदि बहक कर दूसरे पुष्प पर अटक जाएगा तो ‍फिर से तुम एक बार लुटीपिटी सी अकेली रह जाओगी. परंतु उस के मन की धनलिप्सा और उस की लोलुपता ने सहीगलत कुछ भी सोचने ही नहीं दिया था और  वह इस अंधीदौड़ में चलती हुई एक के बाद दूसरा साथी बदलती रही.

लगभग 4 महीने बीत चुके थे. वह उस के साथ पत्नी जैसा व्यवहार करने लगी थी. कहां रह गए थे. बाहर खाना खा कर आना था, तो फोन कर सकते थे आदिआदि. परंतु उस की बांहों में खो कर वह आनंदित हो उठती थी.

लेकिन, कुछ दिनों से वह विशेष की निगाहों में अपने प्रति उपेक्षा महसूस कर रही थी. वह उस का इंतजार करती रह जाती और वह अपनी मनपसंद डियो की खुशबू फैलाता हुआ यह कह कर निकल जाता कि औफिस की जरूरी मीटिंग है.

अब वह उपेक्षित सी महसूस करने लगी थी.  उस का बर्थडे था, इसलिए बाहर डिनर की बात थी. उस ने छोटी सी पार्टी की भी बात कही थी, लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं था.  उस ने जब फोन किया तो बैकग्राउंड से म्यूजिक की आवाज सुन कर उस का माथा ठनका था. लेकिन जब वह झिड़क कर बोला, ‘’परेशान मत करो, मैं जरूरी मीटिंग में हूं.“ तो उस दिन वह सिसक पड़ी थी. लेकिन मन को तसल्ली दे कर सो गई कि सच में ही वह मीटिंग में ही होगा.

अब वह बदलाबदला सा लगने लगा था. अकसर खाना बाहर खा कर आता. ड्रिंक भी कर के आता. कुछ कहने पर अपने नए प्रोजेक्ट में बिजी होने की बात कह कर घर से निकल जाता.

वह अकेले रहती तो अपने लैपटौप से सिर मारती रहती. तभी उस की निगाह एक मेल पर पड़ी थी. आज विशेष की बर्थडे पार्टी थी. उस में वह उसे क्यों नहीं ले कर गया. वह उसे सरप्राइज देने के लिए तैयार हो कर वहां पहुंच गई थी. उस ने कांच के दरवाजों से देखा कि विशेष किसी लड़की की बांहों को पकड़ कर डांस कर रहा था.

वह क्रोधित हो उठी थी. उस को अपने हक पर किसी का अनाधिकृत प्रवेश महसूस हुआ था. वह तेजी से अंदर पहुंच गई थी. अपने को संयत करते हुए बोली, ‘’हैप्पी बर्थडे, विशेष.‘’  वह जानबूझ कर उस के गले लग गई थी.

विशेष चौंक उठा था. जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उस को अपने से परे करते हुए बोला, ‘’तुम, यहां कैसे?’’

उन दोनों की डांस की मदहोशी में खलल पड़ गया था. विशेष की डांसपार्टनर निया ने उसे घूर कर देखा और बोली, ‘’हू आर यू?’’

‘’आई एम गार्गी, विशेष की लिवइन पार्टनर.‘’

निया नाराज हो कर चीख पड़ी, ‘’यू रास्कल. यू चीटेड मी. यू टोल्ड मी दैट यू आर सिंगल.‘’

“यस डियर, आई एम सिंगल. शी इज माई लिवइन पार्टनर ओनली.‘’

उस के कानों में मानो किसी ने गरम पिघला सीसा उड़ेल दिया हो. भरी महफिल में वह बुरी तरह अपमानित की गई थी. विशेष उसे ऐसी अपरिचित और खा जाने वाली निगाहों से देख रहा था मानो वह उसे पहचानता भी न हो. उस के कानों में बारबार गूंज रहा था – ‘यस आई एम सिंगल. शी इज माई लिवइन पार्टनर ओनली.’ उस ने समझ लिया था कि अब विशेष से कुछ भी कहनासुनना व्यर्थ है.

वह एक बार फिर अपनी धनलिप्सा की अंधीदौड़ के कारण छली गई है, ठगी गई है. यह एहसास उस के दिल को घायल कर रहा था. उस की सारी खुशियां, जीवन का उल्लास,  पलपल संजोए हुए सारे सपने सबकुछ खोखले और झूठे दिखाई पड़ रहे थे मानो सारी दुनिया उसे मुंह चिढ़ा रही थी.

वह मन ही मन पछता रही थी कि काश, वह आरव के प्यार को न ठुकराती! अब उस की आंखों से पश्चात्ताप की अश्रुधारा निर्झर रूप से प्रवाहित हो रही थी.

 

Hindi Kahani : मुझे जवाब दो – हर कुसूर की माफी नहीं होती

Hindi Kahani : ‘‘प्रिय अग्रज, ‘‘माफ करना, ‘भाई’ संबोधन का मन नहीं किया. खून का रिश्ता तो जरूर है हम दोनों में, जो समाज के नियमों के तहत निभाना भी पड़ेगा. लेकिन प्यार का रिश्ता तो उस दिन ही टूट गया था जिस दिन तुम ने और तुम्हारे परिवार ने बीमार, लाचार पिता और अपनी मां को मत्तैर यानी सौतेला कह, बांह पकड़ कर घर से बाहर निकाल दिया था. पैसे का इतना अहंकार कि सगे मातापिता को ठीकरा पकड़ा कर तुम भिखारी बना रहे थे.

‘‘लेकिन तुम सबकुछ नहीं. अगर तुम ने घर से बाहर निकाला तो उन की बांहें पकड़ सहारा देने वाली तुम्हारी बहन के हाथ मौजूद थे. जिन से नाता रखने वाले तुम्हारे मातापिता ने तुम्हारी नजर में अक्षम्य अपराध किया था और यह उसी का दंड तुम ने न्यायाधीश बन दिया था.

‘‘तुम्हीं वह भाई थे जिस ने कभी अपनी इसी बहन को फोन कर मांपिता को भेजने के लिए मिन्नतें की थीं, फरियाद की थी. बस, एक साल भी नहीं रख पाए, तुम्हारे चौकीदार जो नहीं बने वो.

‘‘तुम से तो मैं ने जिंदगी के कितने सही विचार सीखे. कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि तुम बुरी संगत में पड़, ऐशोआराम की जिंदगी जीने के लिए अपने खून के रिश्तों की जड़ें काटने पर तुल जाओगे.

‘‘एक ही शहर में, दो कदम की दूरी पर रहने वाले तुम, आज पत्र लिख अपने मन की शांति के लिए मेरे घर आना चाहते हो. क्यों, क्या अब तुम्हारे परिवार को एतराज नहीं होगा?

‘‘अब समझ आया न. पैसा नहीं, रिश्ते, अपनापन व प्यार अहम होते हैं. क्या पैसा अब तुम्हें मन की शांति नहीं दे सकता? अब खरीद लो मांबाप क्योंकि अपनों को तो तुम ने सौतेला बना दिया था.

‘‘तुम्हीं ने छोटे भाईभावज को लालच दिया था अपने बिजनैस में साझेदारी कराने का लेकिन इस शर्त पर कि मातापिता को बहन के घर से बुला अपने पास रखो, घर अपने नाम करवाओ और इतना तंग किया करो कि वे घर छोड़ कर भाग जाएं. तुम ने उन से यह भी कहा था कि वे बहन से नाता तोड़ लें. इतनी शर्तों के साथ करोड़ों के बिजनैस में छोटे भाई को साझेदारी मिल जाएगी, लेकिन साझेदारी दी क्या?

‘‘हमें क्या फर्क पड़ा. अगर पड़ा तो तुम दोनों नकारे व सफेद खून रखने वाले पुत्रों को पड़ा. पुलिस व समाज में जितनी थूथू और जितना मुंह काला छोटे भाईभावज का हुआ उतना ही तुम्हारा भी क्योंकि तुम भी उतने ही गुनाहगार थे. मत भूलो कि झूठ के पैर नहीं होते और साजिश का कभी न कभी तो परदाफाश होता है.

‘‘ठीक है, तुम कहते हो कि इतना सब होने के बाद भी मांपिताजी ने तुम्हें व छोटे को माफ कर दिया था. सो, अब हम भी कर दें, यह चाहते हो? वो तो मांबाप थे ‘नौहां तो मांस अलग नईं कर सकदे सी’, (नाखूनों से मांस अलग नहीं कर सकते थे.) पर, हम तुम्हें माफ क्यों करें?

‘‘क्या तुम अपने बीवीबच्चों को घर से बाहर निकाल सकते हो? नहीं न. क्या मांबाप लौटा सकते हो?

‘‘अब तुम भी बुढ़ापे की सीढ़ी पर पैर जमा चुके हो. इतिहास खुद को दोहराता है, यह मत भूलना. अब चूंकि तुम्हारा बेटा बिजनैस संभालने लगा है तो तुम्हारी स्थिति भी कुछकुछ मांपिताजी जैसी होने लगी है. अगर बबूल बोओगे तो आम नहीं लगेंगे. सो, अपने बुरे कृत्यों का दंश व दंड तो तुम्हें सहना ही पड़ेगा. क्षमा करना, मेरे पास तुम्हारे लिए जगह व समय नहीं है.

‘‘बेरहम नहीं हूं मैं. तुम मुझे मेरे मातापिता लौटा दो, मैं तुम्हें बहन का रिश्ता दे दूंगी, तुम्हें भाई कहूंगी. मुझे पता है उन के आखिरी दिन कैसे कटे. आज भी याद करती हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वो दशरथ की तरह पुत्रवियोग में बिलखतेविलापते, पर तुम राम न बन सके. निर्मोही, निष्ठुर यहां तक कि सौतेला पुत्र भी ऐसा व्यवहार नहीं करता होगा जैसा तुम ने किया.

‘‘तुम लिखते हो, ‘बेहद अकेले हो.’ फोन पर भी तो ये बातें कर सकते थे पर शायद इतिहास खुद को दोहराता… तुम उन के फोन की बैटरी निकाल देते थे. खैर, जले पर क्या नमक छिड़कना. जरा बताओ तो, तुम्हें अकेला किस ने बनाया? तुम्हें तो बड़ा शौक था रिश्ते तोड़ने का. अरे, ये तो मांपिताजी के चलते चल रहे थे. तुम तो रिश्ते हमेशा पैसों पर तोलते रहे. बहन, बूआ, बेटी, ननद इन सभी रिश्तों की छीछालेदर करने वाले तुम और तुम्हारी पत्नी व बेटी अब किस बात के लिए शिकायत करती फिर रही हैं. जो रिश्तेनाते अपनापन जैसे शब्द व इन की अहमियत तुम्हारी जिंदगी की किताब में कभी जगह नहीं रखते थे, उन के बारे में अब इतना क्यों तड़पना. अब इन रिश्तों को जोड़ तो नहीं सकते. उस के लिए अब नए समीकरण बनाने होंगे व नई किताब लिखनी होगी. क्या कर पाओगे ये सब?

‘‘ओह, तो तुम्हें अब शिकायत है अपने बेटेबहू से कि वे तुम्हें व तुम्हारी पत्नी को बूढ़ेबुढि़या कह कर बुलाते हैं. ये शब्द तुम ही लाए थे होस्टल से सौगात में. चलो, कम से कम पीढ़ीदरपीढ़ी यह सम्मानजनक संबोधन तुम्हारे परिवार में चलता रहेगा. बधाई हो, नई शुरुआत के लिए और रिश्तों को छीजने के लिए.

‘‘खैर, छोड़ो इन कड़वी बातों को. मीठा तो तुरंत मुंह में घुल जाता है पर कड़वा स्वाद काफी देर तक रहता है और फिर कुछ खाने का मन भी नहीं करता. सो, अब रोना काहे का. कहां गई तुम्हारी वह मित्रमंडली जिस के सामने तुम मांपिता को लताड़ते थे. क्यों, क्या वे तुम्हारे अकेलेपन के साथी नहीं या फिर आजकल महफिलें नहीं जमा पाते. बेटे को पसंद नहीं होगा यह सब?

‘‘छोड़ो वह राखीवाखी, टीकेवीके की दुहाई देना, वास्ता देना. सब लेनदेन बराबर था. शुक्र है, कुछ बकाया नहीं रहा वरना उसी का हिसाबकिताब मांग बैठते तुम.

‘‘अपने रिश्ते तो कच्चे धागे से जुड़े थे जो कच्चे ही रह गए. खुदगर्जी व लालच ही नहीं, बल्कि तुम्हारे अहंकार व दंभ ने सारे परिवार को तहसनहस कर डाला.

‘‘अब जुड़ाव मत ढूंढ़ो. दरार भरने से भी कच्चापन रह जाता है. वह मजबूती नहीं आ पाएगी अब. इस जुड़ाव में तिरस्कार की बू ताजा हो जाती है. वैसे, याद रखना, गुजरा वक्त कभी लौट कर नहीं आता.

‘‘वक्त और रिश्ते बहुत नाजुक व रेत की तरह होते हैं. जरा सी मुट्ठी खोली नहीं कि वे बिखर जाते हैं. इन्हें तो कस कर स्नेह व खुद्दारी की डोर में बांध कर रखना होता है.

‘‘कभी वक्त मिले तो इस पत्र को ध्यान से पढ़ना व सारे सवालों का जवाब ढूंढ़ना. अगर जवाब ढूंढ़ पाए तो जरूर सूचना देना. तब वक्त निकाल कर मिलने की कोशिश करूंगी. अभी तो बहुतकुछ बाकी है भा…न न…भाई नहीं कहूंगी.

‘‘मुझ बहन के घर में तो नहीं, पर हमारे द्वारा संचालित वृद्धाश्रम के दरवाजे तुम्हारे जैसे ठोकर खाए लोगों के लिए सदैव खुले हैं.

‘‘यह पनाहघर तुम्हारी जैसी संतानों द्वारा फेंके गए बूढ़े व लाचार मातापिता के लिए है. सो, अब तुम भी पनाह ले सकते हो. कभी भी आ कर रजिस्ट्रेशन करवा लेना.

‘‘तुम्हारी सिर्फ चिंतक

शोभा.’’

Love Story : कायर – श्रेया ने श्रवण को छोड़ राजीव से विवाह क्यों कर लिया

Love Story : श्रेया के आगे खड़ी महिला जैसे ही अपना बोर्डिंग पास ले कर मुड़ी श्रेया चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे तन्वी तू…तो तू भी दिल्ली जा रही है… मैं अभी बोर्डिंग पास ले कर आती हूं.’’

उन की बातें सुन कर काउंटर पर खड़ी लड़की मुसकराई, ‘‘आप दोनों को साथ की सीटें दे दी हैं. हैव ए नाइस टाइम.’’ धन्यवाद कह श्रेया इंतजार करती तन्वी के पास आई.

‘‘चल आराम से बैठ कर बातें करते हैं,’’ तन्वी ने कहा.

हौल में बहुत भीड़ थी. कहींकहीं एक कुरसी खाली थी. उन दोनों को असहाय से एकसाथ 2 खाली कुरसियां ढूंढ़ते देख कर खाली कुरसी के बराबर बैठा एक भद्र पुरुष उठ खड़ा हुआ. बोला, ‘‘बैठिए.’’

‘‘हाऊ शिवैलरस,’’ तन्वी बैठते हुए बोली, ‘‘लगता है शिवैलरी अभी लुप्त नहीं हुई है.’’

‘‘यह तो तुझे ही मालूम होगा श्रेया…तू ही हमेशा शिवैलरी के कसीदे पढ़ा करती थी,’’ तन्वी हंसी, ‘‘खैर, छोड़ ये सब, यह बता तू यहां कैसे?’’

‘‘क्योंकि मेरा घर यानी आशियाना यहीं है, दिल्ली तो एक शादी में जा रही हूं.’’

‘‘अजब इत्तफाक है. मैं एक शादी में यहां आई थी और अब अपने आशियाने में वापस दिल्ली जा रही हूं.’’

‘‘मगर जीजू तो सिंगापुर में सैटल्ड थे?’’

‘‘हां, सर्विस कौंट्रैक्ट खत्म होने पर वापस दिल्ली आ गए. नौकरी के लिए भले ही कहीं भी चले जाएं, दिल्ली वाले सैटल कहीं और नहीं हो सकते.’’

‘‘वैसे हूं तो मैं भी दिल्ली की, मगर अब भोपाल छेड़ कर कहीं और नहीं रह सकती.’’

‘‘लेकिन मेरी शादी के समय तो तेरा भी दिल्ली में सैटल होना पक्का ही था,’’ श्रेया ने उसांस भरी.

‘‘हां, था तो पक्का ही, मगर मैं ने ही पूरा नहीं होने दिया और उस का मुझे कोई अफसोस भी नहीं है. अफसोस है तो बस इतना कि मैं ने दिल्ली में सैटल होने का मूर्खतापूर्ण फैसला कैसे कर लिया था.’’

‘‘माना कि कई खामियां हैं दिल्ली में, लेकिन भई इतनी बुरी भी नहीं है हमारी दिल्ली कि वहां रहने की सोचने तक को बेवकूफी माना जाए,’’ तन्वी आहत स्वर में बोली.

‘‘मुझे दिल्ली से कोई शिकायत नहीं है तन्वी,’’ श्रेया खिसिया कर बोली, ‘‘दिल्ली तो मेरी भी उतनी ही है जितनी तेरी. मेरा मायका है. अत: अकसर जाती रहती हूं वहां. अफसोस है तो अपनी उस पसंद पर जिस के साथ दिल्ली में बसने जा रही थी.’’

तन्वी ने चौंक कर उस की ओर देखा. फिर कुछ हिचकते हुए बोली, ‘‘तू कहीं श्रवण की बात तो नहीं कर रही?’’

श्रेया ने उस की ओर उदास नजरों से देखा. फिर पूछा, ‘‘तुझे याद है उस का नाम?’’

‘‘नाम ही नहीं उस से जुड़े सब अफसाने भी जो तू सुनाया करती थी. उन से तो यह पक्का था कि श्रवण वाज ए जैंटलमैन, ए थौरो जैंटलमैन टु बी ऐग्जैक्ट. फिर उस ने ऐसा क्या कर दिया कि तुझे उस से प्यार करने का अफसोस हो रहा है? वैसे जितना मैं श्रवण को जानती हूं उस से मुझे यकीन है कि श्रवण ने कोई गलत काम नहीं किया होगा जैसे किसी और से प्यार या तेरे से जोरजबरदस्ती?’’

श्रेया ने मुंह बिचकाया, ‘‘अरे नहीं, ऐसा सोचने की तो उस में हिम्मत ही नहीं थी.’’

‘‘तो फिर क्या दहेज की मांग करी थी उस ने?’’

‘‘वहां तक तो बात ही नहीं पहुंची. उस से पहले ही उस का असली चेहरा दिख गया और मैं ने उस से किनारा कर लिया,’’ श्रेया ने फिर गहरी सांस खींची, ‘‘कुछ और उलटीसीधी अटकल लगाने से पहले पूरी बात सुनना चाहेगी?’’

‘‘जरूर, बशर्ते कोई ऐसी व्यक्तिगत बात न हो जिसे बताने में तुझे कोई संकोच हो.’’

‘‘संकोच वाली तो खैर कोई बात ही नहीं है, समझने की बात है जो तू ही समझ सकती है, क्योंकि तूने अभीअभी कहा कि मैं शिवैलरी के कसीदे पढ़ा करती थी…’’ इसी बीच फ्लाइट के आधा घंटा लेट होने की घोषणा हुई.

‘‘अब टुकड़ों में बात करने के बजाय श्रेया पूरी कहानी ही सुना दे.’’

‘‘मेरा श्रवण की तरफ झुकाव उस के शालीन व्यवहार से प्रभावित हो कर हुआ था. अकसर लाइबेरी में वह ऊंची शैल्फ से मेरी किताबें निकालने और रखने में बगैर कहे मदद करता था. प्यार कब और कैसे हो गया पता ही नहीं चला. चूंकि हम एक ही बिरादरी और स्तर के थे, इसलिए श्रवण का कहना था कि सही समय पर सही तरीके से घर वालों को बताएंगे तो शादी में कोई रुकावट नहीं आएगी. मगर किसी और ने चुगली कर दी तो मुश्किल होगी. हम संभल कर रहेंगे.

प्यार के जज्बे को दिल में समेटे रखना तो आसान नहीं होता. अत: मैं तुझे सब बताया करती थी. फाइनल परीक्षा के बाद श्रवण के कहने पर मैं ने उस के साथ फर्नीचर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन किया था. साउथ इंस्टिट्यूट मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था.

श्रवण पहले मुझे पैदल मेरे घर छोड़ने आता था. फिर वापस जा कर अपनी बाइक ले कर अपने घर जाता था. मुझे छोड़ने घर से गाड़ी आती थी. लेने भी आ सकती थी लेकिन वन वे की वजह से उसे लंबा चक्कर लगाना पड़ता. अत: मैं ने कह दिया  था कि नजदीक रहने वाले सहपाठी के साथ पैदल आ जाती हूं. यह तो बस मुझे ही पता था कि बेचारा सहपाठी मेरी वजह से डबल पैदल चलता था. मगर बाइक पर वह मुझे मेरी बदनामी के डर से नहीं बैठाता था. मैं उस की इन्हीं बातों पर मुग्ध थी.

वैसे और सब भी अनुकूल ही था. हम दोनों ने ही इंटीरियर डैकोरेशन का कोर्स किया. श्रवण के पिता फरनिशिंग का बड़ा शोरूम खोलने वाले थे, जिसे हम दोनों को संभालना था. श्रवण का कहना था कि रिजल्ट निकलने के तुरंत बाद वह अपनी भाभी से मुझे मिलवाएगा और फिर भाभी मेरे घर वालों से मिल कर कैसे क्या करना है तय कर लेंगी.

लेकिन उस से पहले ही मेरी मामी मेरे लिए अपने भानजे राजीव का रिश्ता ले कर आ गईं. राजीव आर्किटैक्ट था और ऐसी लड़की चाहता था, जो उस के व्यवसाय में हाथ बंटा सके. मामी द्वारा दिया गया मेरा विवरण राजीव को बहुत पसंद आया और उस ने मामी से तुरंत रिश्ता करवाने को कहा.

‘‘मामी का कहना था कि नवाबों के शहर भोपाल में श्रेया को अपनी कला के पारखी मिलेंगे और वह खूब तरक्की करेगी. मामी के जाने के बाद मैं ने मां से कहा कि दिल्ली जितने कलापारखी और दिलवाले कहीं और नहीं मिलेंगे. अत: मेरे लिए तो दिल्ली में रहना ही ठीक होगा. मां बोलीं कि वह स्वयं भी मुझे दिल्ली में ही ब्याहना चाहेंगी, लेकिन दिल्ली में राजीव जैसा उपयुक्त वर भी तो मिलना चाहिए. तब मैं ने उन्हें श्रवण के बारे में सब बताया. मां ने कहा कि मैं श्रवण को उन से मिलवा दूं. अगर उन्हें लड़का जंचा तो वे पापा से बात करेंगी.

‘‘दोपहर में पड़ोस में एक फंक्शन था. वहां जाने से पहले मां ने मेरे गले में सोने की चेन पहना दी थी. मुझे भी पहननी अच्छी लगी और इंस्टिट्यूट जाते हुए मैं ने चेन उतारी नहीं. शाम को जब श्रवण रोज की तरह मुझे छोड़ने आ रहा था तो मैं ने उसे सारी बात बताई और अगले दिन अपने घर आने को कहा.

‘‘कल क्यों, अभी क्यों नहीं? अगर तुम्हारी मम्मी कहेंगी तो तुम्हारे पापा से मिलने के लिए भी रुक जाऊंगा,’’ श्रवण ने उतावली से कहा.

‘‘तुम्हारी बाइक तो डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट में खड़ी है.’’

‘‘खड़ी रहने दो, तुम्हारे घर वालों से मिलने के बाद जा कर उठा लूंगा.’’

‘‘तब तक अगर कोई और ले गया तो? अभी जा कर ले आओ न.’’

‘‘ले जाने दो, अभी तो मेरे लिए तुम्हारे मम्मीपापा से मिलना ज्यादा जरूरी है.’’

सुन कर मैं भावविभोर हो गई और मैं ने देखा नहीं कि बिलकुल करीब 2 गुंडे चल रहे थे, जिन्होंने मौका लगते ही मेरे गले से चेन खींच ली. इस छीनाझपटी में मैं चिल्लाई और नीचे गिर गई. लेकिन मेरे साथ चलते श्रवण ने मुझे बचाने की कोई कोशिश नहीं करी. मेरा चिल्लाना सुन कर जब लोग इकट्ठे हुए और किसी ने मुझे सहारा दे कर उठाया तब भी वह मूकदर्शक बना देखता रहा और जब लोगों ने पूछा कि क्या मैं अकेली हूं तो मैं ने बड़ी आस से श्रवण की ओर देखा, लेकिन उस के चेहरे पर पहचान का कोई भाव नहीं था.

एक प्रौढ दंपती के कहने पर कि चलो हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दें, श्रवण तुरंत वहां से चलता बना. अब तू ही बता, एक कायर को शिवैलरस हीरो समझ कर उस की शिवैलरी के कसीदे पढ़ने के लिए मैं भला खुद को कैसे माफ कर सकती हूं? राजीव के साथ मैं बहुत खुश हूं. पूर्णतया संतुष्ट पर जबतब खासकर जब राजीव मेरी दूरदर्शिता और बुद्धिमता की तारीफ करते हैं, तो मुझे बहुत ग्लानि होती है और यह मूर्खता मुझे बुरी तरह कचोटती है.’’

‘‘इस हादसे के बाद श्रवण ने तुझ से संपर्क नहीं किया?’’

‘‘कैसे करता क्योंकि अगले दिन से मैं ने डिजाइनिंग इंस्टिट्यूट जाना ही छोड़ दिया. उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं और घर का नंबर उस ने कभी लिया ही नहीं था. मां के पूछने पर कि मैं अपनी पसंद के लड़के से उन्हें कब मिलवाऊंगी, मैं ने कहा कि मैं तो मजाक कर रही थी. मां ने आश्वस्त हो कर पापा को राजीव से रिश्ता पक्का करने को कह दिया. राजीव के घर वालों को शादी की बहुत जल्दी थी. अत: रिजल्ट आने से पहले ही हमारी शादी भी हो गई. आज तुझ से बात कर के दिल से एक बोझ सा हट गया तन्वी. लगता है अब आगे की जिंदगी इतमीनान से जी सकूंगी वरना सब कुछ होते हुए भी, अपनी मूर्खता की फांस हमेशा कचोटती रहती थी.’’

तभी यात्रियों को सुरक्षा जांच के लिए बुला लिया गया. प्लेन में बैठ कर श्रेया ने कहा, ‘‘मेरा तो पूरा कच्चा चिट्ठा सुन लिया पर अपने बारे में तो तूने कुछ बताया ही नहीं.’’

‘‘दिल्ली से एक अखबार निकलता है दैनिक सुप्रभात…’’

‘‘दैनिक सुप्रभात तो दशकों से हमारे घर में आता है,’’ श्रेया बीच में ही बोली, ‘‘अभी भी दिल्ली जाने पर बड़े शौक से पढ़ती हूं खासकर ‘हस्तियां’ वाला पन्ना.’’

‘‘अच्छा. सुप्रभात मेरे दादा ससुर ने आरंभ किया था. अब मैं अपने पति के साथ उसे चलाती हूं. ‘हस्तियां’ स्तंभ मेरा ही विभाग है.’’

‘‘हस्तियों की तसवीर क्यों नहीं छापते आप लोग?’’

‘‘यह तो पापा को ही मालूम होगा जिन्होंने यह स्तंभ शुरू किया था. यह बता मेरे घर कब आएगी, तुझे हस्तियों के पुराने संकलन भी दे दूंगी.’’

‘‘शादी के बाद अगर फुरसत मिली तो जरूर आऊंगी वरना अगली बार तो पक्का… मेरा भोपाल का पता ले ले. संकलन वहां भेज देना.’’

‘‘मुझे तेरा यहां का घर मालूम है, तेरे जाने से पहले वहीं भिजवा दूंगी.’’

दिल्ली आ कर श्रेया बड़ी बहन के बेटे की शादी में व्यस्त हो गई. जिस शाम को उसे वापस जाना था, उस रोज सुबह उसे तन्वी का भेजा पैकेट मिला. तभी उस का छोटा भाई भी आ गया और बोला, ‘‘हम सभी दिल्ली में हैं, आप ही भोपाल जा बसी हैं. कितना अच्छा होता दीदी अगर पापा आप के लिए भी कोई दिल्ली वाला लड़का ही देखते या आप ने ही कोई पसंद कर लिया होता. आप तो सहशिक्षा में पढ़ी थीं.’’

सुनते ही श्रेया का मुंह कसैला सा हो गया. तन्वी से बात करने के बाद दूर हुआ अवसाद जैसे फिर लौट आया. उस ने ध्यान बंटाने के लिए तन्वी का भेजा लिफाफा खोला ‘हस्तियां’ वाले पहले पृष्ठ पर ही उस की नजर अटक गई, ‘श्रवण कुमार अपने शहर के जानेमाने सफल व्यवसायी और समाजसेवी हैं. जरूरतमंदों की सहायता करना इन का कर्तव्य है. अपनी आयु और जान की परवाह किए बगैर इन्होंने जवान मनचलों से एक युवती की रक्षा की जिस में गंभीर रूप से घायल होने पर अस्पताल में भी रहना पड़ा. लेकिन अहं और अभिमान से यह सर्वथा अछूते हैं.’

हमारे प्रतिनिधि के पूछने पर कि उन्होंने अपनी जान जोखिम में क्यों डाली, उन की एक आवाज पर मंदिर के पुजारी व अन्य लोग लड़नेमरने को तैयार हो जाते तो उन्होंने बड़ी सादगी से कहा, ‘‘इतना सोचने का समय ही कहां था और सच बताऊं तो यह करने के बाद मुझे बहुत शांति मिली है. कई दशक पहले एक ऐसा हादसा मेरी मित्र और सहपाठिन के साथ हुआ था. चाहते हुए भी मैं उस की मदद नहीं कर सका था. एक अनजान मूकदर्शक की तरह सब देखता रहा था. मैं नहीं चाहता था कि किसी को पता चले कि वह मेरे साथ थी और उस का नाम मेरे से जुडे़ और बेकार में उस की बदनामी हो.

‘‘मुझे चुपचाप वहां से खिसकते देख कर उस ने जिस तरह से होंठ सिकोड़े थे मैं समझ गया था कि वह कह रही थी कायर. तब मैं खुद की नजरों में ही गिर गया और सोचने लगा कि क्या मैं उसे बदनामी से बचाने के लिए चुप रहा या सच में ही मैं कायर हूं? जाहिर है उस के बाद उस ने मुझ से कभी संपर्क नहीं किया. मैं यह जानता हूं कि वह जीवन में बहुत सुखी और सफल है. सफल और संपन्न तो मैं भी हूं बस अपनी कायरता के बारे में सोच कर ही दुखी रहता था पर आज इस अनजान युवती को बचाने के बाद लग रहा है कि मैं कायर नहीं हूं…’’

श्रेया और नहीं पढ़ सकी. एक अजीब सी संतुष्टि की अनुभूति में वह यह भी भूल गई कि उसे सुकून देने को ही तन्वी ने ‘हस्तियां’ कालम के संकलन भेजे थे और एक मनगढ़ंत कहानी छापना तन्वी के लिए मुश्किल नहीं था.

Best Hindi Story : मन का मनका फेर – कौन थी यह रेशमा

Best Hindi Story : मां बनना एक स्त्री के लिए सब से बड़ा सुख है लेकिन सिंधु इसी सुख से महरूम थी. ऐसे में रेशमा एक आस बन कर आई. आखिर कौन थी यह रेशमा?

‘‘भैया, जल्दी घर आइए, दीदी फिर से बेहोश हो गई हैं,’’ सविता लगभग हांफती हुई बोली तो अविनाश भी हड़बड़ा गया. पूरे 15 दिनों बाद वह औफिस आया था मगर उस के बगैर सिंधु एक घंटे से ज्यादा ठीक न रह सकी.
‘‘तुम डाक्टर मुक्ता को फोन करो. देखो, डायरी में सब से ऊपर उन का ही नंबर है, अच्छा सुनो, मैं करता हूं, तुम पानी के छींटे डालो.’’
‘‘डाक्टर, जल्दी से घर पर आ जाइए सिंधु फिर से बेहोश हो गई.’’

अपने सेक्रेटरी को मीटिंग संबंधी जानकारी दे कर जल्दीजल्दी लैपटौप और जरूरी सामान समेट कर अविनाश घर पहुंचा तो डाक्टर मुक्ता सिंधु के साथ हंसीमजाक करती दिखीं. पत्नी को सहीसलामत देख कर उस की जान में जान आई.

उन्हें देखता हुआ वह सोचने लगा आखिर ऐसे कब तक चलेगा. शादी के 15 साल हो गए मगर सिंधु की गोद नहीं भरी. ऐसा नहीं है कि गर्भ ठहरता नहीं है, 2 या 3 महीने होतेहोते सबकुछ खत्म हो जाता है और उस हादसे से उबरने में लगभग 6 महीने लग जाते हैं.

ये सब झेलती सिंधु अब तो थायरायड पेशेंट हो गई है. न तो उस की माहवारी का ठिकाना रहता है और न ही वह कभी खुशी से उस के नजदीक आने की इच्छा ही जताती है. ऐसा लगता है जैसे अजन्मे शिशुओं संग उस का मन भी मर गया है. जब भी वह उस से कुछ हलकीफुलकी बातें करता है, वह बुरी तरह से रोना शुरू कर देती है और आज तो डाक्टर मुक्ता के जाने का भी इंतजार न किया.
‘‘सब तुम्हारी वजह से अविनाश, न तुम नजदीक आते न यह होता. सोचो अविनाश, किसी का हम ने क्या बिगाड़ा है? एकएक कर हम और कितने खून और कब तक?’’
‘‘बसबस शोना, अब और नहीं.’’

कहते हुए अविनाश ने जब उस के बालों पर हाथ फिराया तो वह बिफर पड़ी. डाक्टर ने इशारा किया कि रो लेने दीजिए. हां, उसे चुप कराना किसी के बस में नहीं था.
‘‘क्या हो गया बाबू, बच्चा मेरा, तुम हो न मेरे बच्चे और मैं तुम्हारा. हमें किसी की जरूरत नहीं,’’ कह कर अविनाश ने उसे सीने में छिपा लिया. ऐसा न करता तो वह डिप्रैशन में चली जाती और उस के बिजनैस की तो ऐसे ही वाट लगी हुई थी. ऐसे में डाक्टर मुक्ता का एहसान था जो उन दोनों का खयाल रख रही थीं. उन के कहने पर ही तो उस ने चौथा रिस्क लिया था और नतीजा सामने आया तो आखिर में उन्होंने ही सुझाया.
‘‘अविनाश, तुम किसी और तरीके से सिंधु को मातृत्व का सुख दे सकते हो.’’
‘‘वह नहीं मानेगी, डाक्टर.’’
‘‘मैं लेटैस्ट टैक्निक की बात कर रही हूं. बच्चा तुम दोनों का, बस, कोख किराए की होगी.’’
‘‘पर कैसे, यह तो अवैध है?’’
‘‘व्यवसाय के रूप में भले अवैध हो मगर परोपकार के लिए जो भी किया जाए, बिलकुल वैध है. किसी नजदीकी रिश्तेदार से बात करो.’’
‘‘आप सिंधु को जानती हो न, वह स्वाभिमानी होने के साथ जिद्दी भी है. शायद ही किसी परिचित का एहसान ले.’’
‘‘मगर उसे जिंदा रखना है तो उस की गोद में बच्चा देना होगा. रुको, मैं ही कुछ करती हूं.’’

जब उसे छोड़ने गया तो पोर्टिको में ये बातें हुईं और सचमुच मुक्ता ने रेशमा को सामने ला खड़ा किया. रेशमा को डाक्टर मुक्ता कुछ सालों से जानती थी. डाक्टर के कुछ पेशेंट्स जो निसंतान थे, रेशमा की कोख का इस्तेमाल कर मातापिता बन चुके थे. रेशमा नजदीक के गांव से आई थी. बहुत संघर्ष के बाद भी जब मन लायक काम न मिला तो मजबूरी में उस ने यह रास्ता अपना लिया था.

डाक्टर मुक्ता ने जब पहली बार उसे अपने एक मरीज के साथ देखा तो अकेले में काफी समझाया था तब रेशमा का यही जवाब था, ‘हम हमेशा से ऐसे नहीं थे. हम ने भी मन लगा कर पढ़ाई की मगर बड़े शहर में रहने के लिए मकान का किराया, अच्छा कपड़ा कहां से लाते. हमारे भाईबहन जो हमें अपना आदर्श मानते हैं. आखिर उन के सामने हम खुद को हारा हुआ कैसे दिखाते. मां और बाबा जो इतनी उम्मीदों के साथ मेरे द्वारा भेजे गए पैसों की राह देखते हैं वे टूट जाते. इतने के बाद भी आप को लगता है कि हम गलत कर रहे हैं तो हमें पुलिस में दे दीजिए. हम खुशी से चले जाएंगे.’
‘तुम्हारी इन दलीलों से तुम्हारा गुनाह माफ नहीं हो जाता. आखिर ये सब तुम पैसों के लिए ही तो कर रही हो. पैसों के लिए अपनी कोख बेच रही हो. इस से तुम्हारा शरीर कमजोर होगा और फिर कमाने के और भी तो तरीके हैं.’
‘अभी तो सिर्फ मैं ही कमाने निकली हूं और बाकी के लोग पढ़ाई कर रहे हैं अगर पैसे न बनाऊं तो मजबूरी में मेरा पूरा परिवार सड़क पर आ जाएगा. फिर शायद गलत काम और भी बढ़ जाए, इस से तो अच्छा है कि अपने परिवार को पालने के लिए मैं ही क्यों न त्याग करूं? कोई तो करेगा न?’ उस रोज उस के चेहरे पर रौबिनहुड वाली मुसकान और दलील थी जिसे सुन कर मुक्ता चुप हो गई थीं.

रेशमा का ध्यान आते ही उस में डाक्टर मुक्ता को सिंधु का समाधान दिखाई दिया. उस ने रेशमा की डिटेल्स अविनाश को भेजीं तो उस की जान में जान आई. लैब में अविनाश के शुक्राणु और सिंधु के एग्स फर्टिलाइज कर उस के गर्भ में प्रत्यारोपित किए गए. बस, उन के सपनों का संसार कुछ ही महीनों में बसने वाला था कि गांव जाने के रास्ते में रेशमा के स्कूटी से गिरने की बुरी खबर आई.

उफ, अब क्या होगा. आंखों में अपने नवजात को देखने की आस में बड़ी मुश्किल से सिंधु की हालत कुछ सुधरी थी. कहीं फिर से कोई अनहोनी हो गई तो. यह सोच कर ही अविनाश के हाथपांव ठंडे होने लगे तो डाक्टर मुक्ता को फोन किया.

‘‘आप को सिंधु की हालत पता है न डाक्टर. इस बार शायद न झेल पाए. कुछ करिए मगर रेशमा और बच्चा दोनों को बचा लीजिए.’’
‘‘आईसीयू में है, कुछ और दिन औब्जरवेशन में रखना होगा.’’
‘‘जितने दिन रखना पड़े, रखिए. पैसों की चिंता बिलकुल मत करिए.’’ यही उस ने दिन में कई बार दोहराया. सिंधु को उस के ऐक्सिडैंट के विषय में कोई जानकारी नहीं दी थी.

माना संसार के अपने नियम हैं. झुठ की उम्र छोटी और सच की लंबी होती है मगर जिस झुठ से किसी की जिंदगी संवरे उसे बोलने में दोष नहीं लगता. उस के कानों में महाभारत का वह वाक्य गूंज रहा था, ‘अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो…’

तभी उस के अपने बच्चे की आवाज कानों में आई. केहोंकेहों की आवाज सुन कर उसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. आज अविनाश पिता और सिंधु मां बन गई थी. सचमुच बच्चे को पा कर मानो जग जीत लिया था उन्होंने. वहीं, रेशमा भी स्वस्थ व सुरक्षित थी.

आखिर में अविनाश ने उस की कोख के फूल को सिंधु की गोद में डाल दिया तो सिंधु जैसे जी उठी. सिंधु की इस मुसकराहट पर वह सबकुछ कुरबान कर सकता था. फिलहाल एक ब्लैंक चैक रेशमा को थमाते हुए बोला, ‘‘तुम्हें नहीं पता है कि तुम ने हमें क्या दिया है. इस चैक में इतनी रकम भर लो कि तुम्हें पैसों के लिए कभी अपनेआप को कष्ट न देना पड़े.’’
‘‘इस बार मैं ने पैसों के लिए नहीं, सिंधु दीदी की जिंदगी के लिए यह किया.’’

रेशमा के मुंह से यह सुन कर डाक्टर मुक्ता मुसकरा उठीं. वाकई रेशमा ने एक जीव को जन्म दे कर एकसाथ कई जीवन संवार दिए. उस की दरियादिली पर समाज सुधारक कबीरदासजी का वह दोहा याद आ गया-

‘‘माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे मन का मनका फेर.’’

लेखिका : आर्या झा

Government of India : सुप्रीम कोर्ट से सरकार के धौंस भरे सवाल “एक देश एक ही शासक”

Government of India : केंद्र सरकार अकसर राज्यों की सरकारों के कामों में अड़ंगा डालने के लिए विधानसभाओं से पारित उन के विधेयकों को राज्यपालों के जरिए लटकाती है. यह मामला तब गरमा गया जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को विपक्षी सरकारों के विधेयक पर फैसले देने की समयसीमा तय कर दी. अब प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछ कर इस मुद्दे को और गहरा कर दिया है. क्या यह केवल कानूनी विवाद है या यह विवाद संविधान की राजनीतिक व्यवस्था को नया रूप देगा?

प्रदेश सरकारों यानी मुख्यमंत्रियों और केंद्र की संस्तुति पर वहां नियुक्त किए गए राज्यपाल के अधिकारों को ले कर टकराव लंबे समय से चलता आ रहा है. केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अलगअलग पार्टियों की होती हैं तो यह टकराव अधिक होता है. ऐसे में राज्यपाल कई बार प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को पास करने में देरी करते हैं. मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव के दूसरे तमाम कारण भी होते हैं.

कहीं पर विधानसभा में सदन बुलाने का मुद्दा होता है तो कहीं पर सरकार के बहुमत से अल्पमत में आ जाने का मसला भी उठ जाता है तो कहीं हालात के तहत दलबदल कानून के लागू करने में राज्यपाल की पक्षपाती भूमिका होती है. यह टकराव कई बार बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाता है जबकि कई बार थोड़ी तनातनी के बाद मसला शांत हो जाता है.

राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का हालिया मसला तमिलनाडु से जुड़ा है. तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार है. एम के स्टालिन वहां के मुख्यमंत्री हैं. वहां के राज्यपाल आर एन रवि राज्य सरकार द्वारा विधानसभा से पास कराए गए 10 विधेयकों पर लंबे समय से कोई फैसला नहीं कर रहे थे. मद्र्रास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा.

विवाद वाला फैसला

तमिलनाडु सरकार ने इसे पौकेट वीटो (अनिश्चितकाल तक विधेयक रोकना) का दुरुपयोग माना और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया जिस ने भाजपा सरकार को सकते में डाल दिया कि उस के नियुक्त राज्यपालों की विपक्षी पार्टियों की सरकारों पर धौंस नहीं चलेगी.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की दो सदस्यीय पीठ ने 8 अप्रैल को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि विधानसभा द्वारा पारित किसी विधेयक को 3 महीने के अंदर अनुमोदित नहीं किया गया तो राज्यपाल या राष्ट्रपति को इस के पीछे का उचित तर्क बताना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 का हवाला दे कर कहा कि उस के पास राष्ट्रपति के पास पड़े विधेयकों को लागू करने का अधिकार है और 10 विधेयक कानून बन गए.

कोर्ट ने आदेश दिया कि अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा से पारित हुए विधेयकों को राज्यपाल को प्राप्त होने के बाद उचित समय में निर्णय लेना होगा. उन्हें या तो स्वीकृति देनी होगी या फिर पुनर्विचार के लिए वापस भेजना होगा या एक अंतिम कदम में राष्ट्रपति को भेजना होगा.

यदि विधानसभा राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास रखे या लौटाए विधेयक को दोबारा पारित करती है तो राज्यपाल को एक महीने के भीतर स्वीकृति देनी होगी. इसी तरह अनुच्छेद 201 के तहत यह फैसला भी दिया गया कि राज्यपाल यदि विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर निर्णय लेना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि, ‘संविधान के गणतांत्रिक ढांचे के अनुसार राज्यपाल के पास कोई ‘वीटो पावर’ नहीं है और वे विधेयकों को अनिश्चित समय तक रोके नहीं रख सकते. उन को समय सीमा के भीतर अपना फैसला देना होगा. वरना यह विधेयक स्वत: कानून मान लिए जाएंगे.’

बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय करने का अधिकार देता है. इस के तहत सुप्रीम कोर्ट किसी भी मामले में पूर्ण न्याय दिलाने के लिए ऐसा फैसला या निर्देश दे सकता है जो पूरे भारत में लागू होगा.

देश की सब से बड़ी कोर्ट ने अपने इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए 30 जनवरी को हुए चंडीगढ़ मेयर चुनाव के नतीजों को पलट दिया था. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बैंच ने तब कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अदालत अपने अधिकार क्षेत्र में पूर्ण न्याय करने के लिए प्रतिबद्ध है.

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उठाए सवाल

भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट से विवाद उत्पन्न करने के लिए उपराष्ट्रपति को आगे किया जो अपने कट्टरपन को पहले ही बहुत से बयानों से साबित कर चुके हैं. देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 को ले कर कहा, ‘अदालतें राष्ट्रपति को कैसे आदेश दे सकती हैं? संविधान के आर्टिकल 142 का मतलब यह नहीं होता कि आप राष्ट्रपति को भी आदेश दे सकते हैं. भारत के राष्ट्रपति का पद काफी ऊंचा है. राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, संरक्षण और उसे बचाने की शपथ लेते हैं. यह शपथ केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल लेते हैं.’

जगदीप धनखड़ ने आगे कहा, ‘तो हमारे पास ऐसे जज हैं जो अब कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम करेंगे और एक सुपर संसद की तरह भी काम करेंगे और कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू तो होता नहीं.’

उपराष्ट्रपति महोदय ने यह भी कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत न्यायपालिका के पास सिर्फ संविधान की व्याख्या करने का अधिकार है. इस के लिए 5 या इस से ज्यादा जजों की जरूरत होती है. जिन जजों ने जिस तरह से राष्ट्रपति को आदेश जारी किया, उस से लगता है कि जैसे यही देश का कानून हों. वे संविधान की ताकतों को भूल गए हैं. अनुच्छेद 145(3) को देखें, जजों का कोई समूह किसी मामले पर ऐसे फैसले कैसे दे सकता है, खासकर तब जब ऐसे मामलों पर विचार के लिए कम से कम 5 जजों की जरूरत होती है.’

धनखड़ का तर्क बेतुका है. सुप्रीम कोर्ट राज्यों के बीच और राज्यों व केंद्र के बीच किसी संवैधानिक प्रश्न का न्यायिक उत्तर देने के लिए बनी है और यह अधिकार राष्ट्रपति के पास नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट संविधान की व्याख्या कर के राष्ट्रपति को भी कोई आदेश दे सकती है और देती रहती है क्योंकि केंद्र सरकार सभी काम राष्ट्रपति के नाम पर करती है और जब मामलों में यूनियन औफ इंडिया एक पार्टी होती है तो केंद्र सरकार राष्ट्रपति का ही प्रतिनिधित्व करती है.

प्रधानमंत्री और सुप्रीम कोर्ट आमनेसामने

अनुच्छेद 142 के प्रयोग को ले कर पूरे देश में एक बहस छिड़ गई है कि राष्ट्रपति यानी प्रधानमंत्री के प्रतिनिधि और सुप्रीम कोर्ट में अधिक ताकतवर कौन है? संवैधानिक ताकतें किस के पास अधिक हैं? साधारण तौर पर स्कूलों की किताबों में यही बताया गया है कि राष्ट्रपति सब से अधिक ताकतवर होता है.

इन किताबों को पढ़लिख कर बड़े हुए लोग इस बात को जानना चाहते हैं कि सब से बड़ा कौन है? सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का विश्लेषण कर के यह बताने का काम किया है कि सुप्रीम कोर्ट सब से अधिक ताकतवर होता है. राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को मानना होगा.

भाजपा सरकार ने देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आगे कर के 15 मई को सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे हैं. इन को प्रैसिडैंशियल रेफरैंस यानी संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत भेजा गया है. इस के मूल में तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच विधेयकों को ले कर जारी खींचतान पर सुप्रीम कोर्ट का एक महत्त्वपूर्ण फैसला है.

यह बात और है कि राष्ट्रपति के पत्र में इस मसले का कोई जिक्र नहीं किया गया है. तमिलनाडु सरकार के पक्ष में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान से जुड़ा मसला है, ऐसे में मूल सवाल यह है कि 2 जजों की बैंच क्या इस तरह का फैसला दे भी सकती है?

राज्यपाल प्रदेश में राष्ट्रपति का प्रतिनिधि होता है. ऐसे में अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को संविधान की दृष्टि से स्पष्टता की आवश्यकता वाला बताया है और सवाल पूछे हैं, जो संविधान के अनुच्छेदों 200, 201, 361, 143, 142, 145(3) और 131 से जुड़े हैं.

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट ने डीम्ड असैंट का नया प्रावधान बना दिया है. इस के तहत कोई भी विधेयक एक निश्चित समय सीमा के भीतर राष्ट्रपति और राज्यपालों को पास करना जरूरी हो गया है. यह राज्यों की विधायिका के अधिकारों पर बहुत बड़ा हमला था जो गृह व कानून मंत्रालयों के माध्यम से कराया गया था. पहले इन 14 सवालों को जाननासमझना जरूरी है.

राष्ट्रपति के 14 सवाल

1. जब राज्यपाल के पास कोई विधेयक आता है तो उन के सामने कौनकौन से संवैधानिक विकल्प होते हैं?

2. क्या राज्यपाल फैसला लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं?

3. क्या राज्यपाल के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?

4. क्या संविधान का अनुच्छेद 361 राज्यपाल के निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह रोक सकता है?

5. यदि संविधान में राज्यपाल के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है तो क्या कोर्ट कोई समय सीमा तय कर सकता है?

6. क्या राष्ट्रपति के निर्णय को भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?

7. क्या राष्ट्रपति के फैसलों पर भी कोर्ट समय सीमा तय कर सकता है?

8. क्या राष्ट्रपति के लिए सर्वोच्च न्यायालय से राय लेना अनिवार्य है?

9. क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसलों पर कानून लागू होने से पहले ही कोर्ट सुनवाई कर सकता है?

10. क्या सुप्रीम कोर्ट आर्टिकल 142 का उपयोग कर के राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णयों को बदल सकता है?

11. क्या राज्य विधानसभा से पारित कानून राज्यपाल की स्वीकृति के बिना लागू हो सकता है?

12. क्या संविधान की व्याख्या से जुड़े मामलों को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ को भेजना अनिवार्य है?

13. क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्देश या आदेश दे सकता है जो संविधान या मौजूदा कानूनों से मेल न खाता हो?

14. क्या केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझ सकता है?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवालों पर औपचारिक राय मांगी. यह एक बड़ा कदम है. अनुच्छेद 143(1) का उपयोग केवल तब किया जाता है जब सार्वजनिक महत्त्व का कोई गंभीर संवैधानिक सवाल उठता है. इस से पहले 2012 में प्रणब मुखर्जी, 2005-2006 में एपीजे अब्दुल कलाम, 1993 में शंकर दयाल शर्मा, 1998 में आर वेंकटरमण, 1964 में जाकिर हुसैन और 1950 में राजेंद्र प्रसाद इस अधिकार का इस्तेमाल कर चुके हैं.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सवाल दरअसल सुप्रीम कोर्ट के तमिलनाडु सरकार के विधेयकों पर दिए गए ऐतिहासिक फैसले से उत्पन्न बहस का हिस्सा हैं. राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संवैधानिक मूल्यों और व्यवस्थाओं के विपरीत और संवैधानिक सीमाओं का अतिक्रमण करार दिया है. जबकि यह अतिक्रमण राज्यपाल राज्य सरकारों के अधिकारों पर कर रहे थे.

बहरहाल राष्ट्रपति के सवालों के जवाब देने के लिए सुप्रीम कोर्ट को कम से कम 5 जजों की संवैधानिक बैंच का गठन करना होगा.

क्या हैं अनुच्छेद 200 और 201

राष्ट्रपति और राज्यपालों को संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत विधेयकों पर स्वीकृति, पुनर्विचार या रोकने की औपचारिक स्वतंत्रता मिली हुई है. विधेयक मिलने के बाद स्वीकृति के लिए कोई समय सीमा संविधान में नहीं निर्धारित की गई है. सरकार के अनुसार डीम्ड असैंट संविधान में अनुपस्थित है और इसे लागू करना संवैधानिक ढांचे में नई शर्त जोड़ने जैसा है, जो केवल संसद के माध्यम से संशोधन द्वारा संभव है. डीम्ड असैंट असल में केंद्र सरकार की तानाशाही रोकती है और राज्यों की विधानसभाओं को पंगु होने से बचाती है.

डीम्ड असैंट सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 142 के तहत लागू की गई, जो न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की शक्ति देता है, जो इन शक्तियों के अलगअलग महत्त्व के सिद्धांत को कमजोर करता है. यहां पर कोर्ट केंद्रीय कार्यपालिका की मनमानी को रोकता है. राष्ट्रपति और राज्यपाल संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संतुलन बनाए रखते हैं. डीम्ड असैंट से विवादास्पद या असंवैधानिक विधेयक (राष्ट्रीय सुरक्षा या केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित करने वाले) स्वत: मंजूर हो सकते हैं, जिस से संघीय संरचना अनकूल होगी क्योंकि केंद्र सरकार राज्यों को मिले अधिकारों में राज्यपाल के जरिए अड़ंगे डालने का काम बंद कर देगी.

सुप्रीम कोर्ट ने डीम्ड असैंट की व्यवस्था तो यह सोच कर की कि देश में विपक्ष की सरकारों की स्वतंत्रता और कानून बनाने का अधिकार प्रभावित न हो. सुप्रीम कोर्ट का यह पहलू अहम था कि इस तरह की कई शिकायतें आ रही हैं कि विपक्ष द्वारा शासित राज्यों के कानून बनाने के अधिकारों का हनन हो रहा है. कुछ राज्यों में जहां एनडीए सरकार नहीं है वहां कुछ जरूरी कानूनों पर राज्यपाल कुंडली मार कर बैठ गए थे. दूसरा पहलू भी है. राष्ट्रपति के पास एकमात्र यही अधिकार ऐसा होता है जिस से ताकतवर राज्य सरकारें भी डरती रही हैं. वास्तव में संविधान में राष्ट्रपति व राज्यपाल केवल औपचारिक पद हैं जिन की जरूरत किसी आपदा में आती है. भारत का राष्ट्रपति अमेरिकी राष्ट्रपति जैसा नहीं, इंगलैंड के राजा की तरह का है.

राष्ट्रपति के सवालों पर क्या बोले मुख्यमंत्री स्टालिन

राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से जो सवाल पूछे हैं उन को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने गैरजरूरी बताया है. अपने एक्स सोशल मीडिया हैंडल पर मुख्यमंत्री स्टालिन ने पूछा है कि राज्यपालों के लिए फैसला लेने की समयसीमा तय किए जाने पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए? क्या केंद्र सरकार गैरभाजपा शासित विधानसभाओं को शक्तिहीन करना चाहती है?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 2 पहलू हैं. पहला पहलू संवैधानिक है, जो सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति के बीच है और जिस पर पूरे देश की नजर है. दूसरा पहलू राजनीतिक है, जिस की बात तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन पूछ रहे हैं. इस कारण ही स्टालिन ने राष्ट्रपति की जगह पर केंद्र सरकार और भाजपा से सवाल पूछे हैं.

राज्यों में केंद्र के विपक्ष वाली सरकार होने पर इस तरह के विरोध पुराने हैं. ये कांग्रेस के समय में भी खूब होते थे. केंद्र सरकार राज्यपाल के जरिए राज्यों में अपना प्रभाव बनाना चाहती है. ऐसे में बहुत सारे मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के बीच टकराव होता रहा है.

अनुच्छेद 356 के प्रयोग से भंग की जाती रही सरकारें

अनुच्छेद 356 का प्रयोग कर केंद्र सरकार बहुत पहले से राज्य सरकारों को बरखास्त करती रही है. अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के उल्लंघन की स्थिति में राज्य सरकार को भंग किया जा सकता है. राष्ट्रपति राज्यपाल की सिफारिश पर एक उद्घोषणा जारी करते हैं, जिस से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है. संवैधानिक दायित्वों के निर्वहन करने में राज्य सरकार की विफलता, जैसे कानून और व्यवस्था बनाए रखना, पर यह कहा जा सकता है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है.

राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद राज्य सरकार को निलंबित कर दिया जाता है और राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार द्वारा सीधे नियंत्रित किया जाता है. राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद को हस्तांतरित कर दी जाती हैं. राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा 2 महीने के लिए वैध होती है. इसे संसद के दोनों सदनों से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता होती है. राष्ट्रपति शासन को राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय निरस्त किया जा सकता है.

1959 में केरल में पहली बार चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार को अनुच्छेद 356 के तहत बरखास्त कर दिया गया था. 1977 के बाद जनता पार्टी ने उत्तर भारत की कांग्रेसी राज्य सरकारों को भंग कर दिया था. 1980 में इंदिरा गांधी के सत्ता में वापस आने के बाद उन्होंने विपक्षी दलों द्वारा शासित 9 राज्यों की सरकारों को एक ही बार में भंग कर दिया था.

अनुच्छेद 356 एक शक्तिशाली उपकरण है जो किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति में राज्य सरकार को भंग करने की अनुमति देता है. यह राष्ट्रपति शासन लागू करने का आधार भी है, जिस के तहत राज्य का प्रशासन केंद्र सरकार द्वारा सीधे नियंत्रित किया जाता है. यह भी राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच टकराव का कारण बनता है.

आगे का अंश बौक्स के बाद
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सवालों के तार्किक जवाब…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रपति के माध्यम से उठाए गए 14 सवालों के तार्किक व जनहित के उत्तर तो ये होने चाहिए-

प्रश्न 1 का उत्तर : राज्यपाल विधेयक को तुरंत औपचारिक अनुमति दें.

प्रश्न 2 का उत्तर : राज्यपाल केवल चुनी सरकार की मंत्रिपरिषद की सलाह से बंधे हैं.

प्रश्न 3 का उत्तर : अगर राज्यपाल आनाकानी करें तो न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है क्योंकि संविधान स्पष्ट कहता है, देश यूनियन औफ स्टेट्स यानी राज्यों का संघ है.

प्रश्न 4 का उत्तर : समय का सवाल ही नहीं उठना चाहिए. राज्यपाल को तो विधेयक को हाथोंहाथ अनुमति देनी ही चाहिए.

प्रश्न 5 का उत्तर : संविधान में समयसीमा तय नहीं की गई है, इस का अर्थ है कि राज्यपाल के पास कोई समय है ही नहीं विधेयक को रोकने का.

प्रश्न 6 का उत्तर : राष्ट्रपति के हर निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट में जाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ही संविधान की व्याख्या कर सकती है.

प्रश्न 7 का उत्तर : राष्ट्रपति को विलंब करने का कोई अधिकार संविधान ने नहीं दिया है.

प्रश्न 8 का उत्तर : राष्ट्रपति विधेयक को रोकना चाहें तो उन्हें सर्वोच्च न्यायालय जाना ही होगा, उन का खुद का दिमाग काम नहीं करेगा.

प्रश्न 9 का उत्तर : कोर्ट कभी भी राज्य के आवेदन पर मामले की सुनवाई कर सकता है. राज्यपाल और राष्ट्रपति संविधान से बंधे हैं, प्रधानमंत्री की निजी राय से नहीं.

प्रश्न 10 का उत्तर : अनुच्छेद 142 के अधिकारों का विश्लेषण केवल सुप्रीम कोर्ट कर सकती है.

प्रश्न 11 का उत्तर : राज्यपाल को अनुमति देनी ही होगी, इसलिए प्रश्न 11 ही निरर्थक है.

प्रश्न 12 का उत्तर : सुप्रीम कोर्ट की कौन सी बैंच कैसे निर्णय देगी, यह तय करने का कार्य मुख्य न्यायाधीश का है राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का नहीं.

प्रश्न 13 का उत्तर : प्रश्न निरर्थक है. सुप्रीम कोर्ट केवल विधानमंडलों के बनाए कानूनों या उन कानूनों के अंतर्गत लिए गए फैसलों की संवैधानिकता की जांच करता है.

प्रश्न 14 का उत्तर : केंद्र सरकार, उस के प्रधानमंत्री और राज्य सरकार के विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझ सकता है, संसद या राष्ट्रपति नहीं.
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क्या यह न्यायिक व्यवस्था पर दबाव बनाने का प्रयास है

राष्ट्रपति के सवाल कोई साधारण कानूनी तकनीकी बिंदु नहीं हैं. ये 3 प्रमुख स्तंभों- कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के संतुलन से जुड़े हैं. इन सवालों से पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी संविधान की भावना को खोखला करना चाह रही है. इस बहस के बीच हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति से जुड़े सवाल भी उठेंगे. कुछ सवाल कोर्ट में भले न उठ सकें लेकिन जनता के बीच जरूर उठेंगे.

भाजपा को उम्मीद है कि कुछ जज अवश्य केंद्र सरकार की तरफदारी करेंगे और अदालतों के निर्णय उस के पक्ष में होंगे और राज्यपालों की धौंस फिर चलने लगेगी.

केंद्र की मौजूदा मोदी सरकार संविधान के मूल ढांचे पर बहस शुरू करना चाहती है. उस के नेता इस बात को ले कर बहुत मुखर हैं. संविधान का वह मूल ढांचा जिस के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने 1973 में आदेश दिया था कि इसे बदला नहीं जा सकता. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू तर्क दे रहे हैं कि संविधान के पृष्ठों में मूल ढांचा नाम की कोई चीज नहीं है, सबकुछ बदला जा सकता है. वे कह रहे हैं कि चुनी हुई विधायिका ही सर्वोच्च है, इसलिए संविधान में कुछ भी बदलने के लिए आप को बस दोतिहाई संसदीय बहुमत की जरूरत है.

कौलेजियम सिस्टम

सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच जजों की नियुक्ति में कौलेजियम सिस्टम को ले कर मतभेद बने हुए हैं. भाजपा सरकार कौलेजियम सिस्टम की भूमिका पर लगातार सवाल उठाती रही है जिस में न्यायाधीशों की नियुक्ति, तबादले, भ्रष्टाचार, भाईभतीजावाद और गलत फैसलों को आधार बनाया जाता है. इस को आधार बना कर यह धारणा बनाई जाती है कि कौलेजियम सिस्टम सही नहीं है. उस की जगह पर जजों की नियुक्ति का काम एनजेएसी यानी राष्ट्रपति न्यायिक नियुक्ति आयोग को दे देना चाहिए.

समयसमय पर यह धारणा बनाने का काम होता है कि अगर कौलेजियम सिस्टम खत्म हो जाए तो न्याय व्यवस्था में सब सही हो जाएगा. कौलेजियम सिस्टम में नौकरशाही और नेताओं की सीधी भूमिका नहीं होती है, क्योंकि न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण का निर्णय न्यायाधीशों द्वारा ही किया जाता है. इस का विरोध करने वाले आरोप लगाते हैं कि कौलेजियम सिस्टम का भी संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं है. यह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुआ है.

कौलेजियम सिस्टम के विरोध करने वाले चाहते हैं कि एनजेएसी यानी राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को लागू किया जाए. इस के जरिए ही जजों की नियुक्ति हो. इस आयोग में प्रधानमंत्री ही अपने मनचाहों को नियुक्त करेंगे और अदालतें एक बार फिर सरकार की एक विभाग बन कर रह जाएंगी.

केंद्र सरकार ने 99वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग बनाने का प्रस्ताव रखा था. सर्वोच्च न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था. यह असल में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा था. इस के बाद न्यायपालिका और सरकार के बीच खींचतान चलने लगी. नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान यह काम खूब हो रहा है.

यह बात सच है कि भारतीय जनता पार्टी पूरे संविधान को ही बदलने की इच्छा रखती है पर उतनी ताकत वह रखती नहीं है. वह कुछकुछ काम ऐसा करना चाहती है जिस से उस का प्रभाव दिखता रहे. अगर भाजपा सरकार नैशनल ज्युडिशियल अपौइंटमैंट्स कमीशन को लागू करने को तय कर लेती तो वह कर सकती थी. 2014 और 2019 के दोनों चुनावों में उसे बहुमत हासिल हुआ था. दूसरी तरफ यह बात भी पूरी तरह से सच है कि भाजपा लगातार कोर्ट की व्यवस्था पर सवाल करती रहती है. देश की राष्ट्रपति ने जो 14 सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे हैं वे इसी कड़ी से जुड़े हुए हैं.

आज भी आम आदमी को सब से अधिक उम्मीद कोर्ट से ही होती है. यह भी सच है कि न्यायिक व्यवस्था में जिस तरह से घुन लग गया है उस का सब से बड़ा शिकार आम आदमी होता है. आज देश में 5 करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं. एक मुकदमे में कम से कम 10 आदमी जुड़े होते हैं. ऐसे में करीब 50 करोड़ जनता कोर्टकचहरी के चक्कर लगाती रहती है. सुप्रीम कोर्ट जब विधायिका और कार्यपालिका को समयसीमा से जोड़ कर देखने का काम करती है तो लोगों की कोर्ट से भी उम्मीदें बढ़ जाती हैं.

सवाल सुधार के लिए नहीं

न्यायिक व्यवस्था के बारे में जनमानस की एक धारणा तो बहुत मजबूत बन गई है कि यहां पैसे और पावर वालों का काम जल्दी होता है पर फिर भी अंतिम आशा अदालतों से ही है. न्यायिक व्यवस्था में भी सुधार की तो जरूरत है पर राष्ट्रपति के सवालों में किसी सुधार का जिक्र नहीं है. इन का जवाब देना सुप्रीम कोर्ट के लिए सरल नहीं होगा.

इन के जवाबों से कुछ नया निकल कर आएगा, इस तरह की उम्मीद की जा रही है. जनता की यह धारणा गलत है कि देश का राष्ट्रपति सब से अधिक ताकतवर होता है. जब सबकुछ संविधान से तय होना है तो कोर्ट ही तय कर सकता है कि सीमाएं क्या हैं, कहां हैं?

क्या संविधान में बदलाव चाहता है संघ?

भारत के संविधान को ले कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के विचारों की आलोचना होती रहती है. असल में संघ ताकत को जुटा ही इसलिए रहा है कि 1947 में बने संविधान को कमजोर बना दिया जाए. 2024 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने 400 पार का नारा दिया तो जनता के मन में स्वाभाविक सवाल उठ खड़ा हुआ कि भाजपा को लोकसभा में 400 से अधिक सीटें क्यों चाहिए?

भाजपा के कई नेताओं ने जवाब में कह भी दिया था संविधान संशोधन के लिए 400 से अधिक सीटें चाहिए ताकि वे मौजूदा संविधान को गंगा में बहा सकें. देश का जनमानस इस के लिए भाजपा को 400 सीटें देने को तैयार नहीं था. उस ने भाजपा को बहुमत की सरकार बनाने का मौका ही नहीं दिया. उस ने मात्र 240 सीटें दे कर केंद्र में ऐसा जनादेश दिया कि जिस से भाजपा ताकतवर न हो कर सहयोगी दलों के साथ ही सरकार बना सके.

आरक्षण को ले कर बिहार विधानसभा चुनाव के समय संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि इस की समीक्षा की जरूरत है तो भाजपा बिहार का विधानसभा चुनाव हार गई.

भारत के संविधान के साथ संघ का रिश्ता काफी अलग रहा है. संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर अपनी किताब ‘बंच औफ थौट्स’ में लिखते हैं-

‘हमारा संविधान भी पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों के विभिन्न अनुच्छेदों का एक बोझिल और विषम संयोजन मात्र है. इस में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे हमारा अपना कहा जा सके. क्या इस के मार्गदर्शक सिद्धांतों में एक भी ऐसा संदर्भ है कि हमारा राष्ट्रीय मिशन क्या है और जीवन में हमारा मुख्य उद्देश्य क्या है?’

बताया जाता है कि भारत को आजादी मिलने से एक दिन पहले 14 अगस्त, 1947 को संघ के मुखपत्र ‘और्गनाइजर’ ने लिखा कि ‘भाग्य के बूते सत्ता में आए लोग भले ही तिरंगा हमारे हाथों में थमा दें लेकिन हिंदू इस का कभी सम्मान नहीं करेंगे और इसे अपनाएंगे नहीं.’

जानेमाने वकील ए जी नूरानी अपनी किताब ‘द आरएसएस अ मीनेस टू इंडिया’ में लिखते हैं कि संघ भारतीय संविधान को अस्वीकार करता है.’ अपनी बात को सही ठहराते हुए वे लिखते हैं- ‘संघ ने 1 जनवरी, 1993 को अपना श्वेतपत्र प्रकाशित किया, जिस में संविधान को ‘हिंदू विरोधी’ बताया गया. इस के मुखपृष्ठ पर 2 सवाल पूछे गए थे. पहला भारत की अखंडता, भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द को नष्ट करने वाला कौन है? दूसरा, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अधर्म किस ने फैलाया है? इस का जवाब ‘श्वेतपत्र में वर्तमान इंडियन संविधान’ शीर्षक के तहत दिया गया था.

यह श्वेतपत्र 6 दिसंबर, 1992 को हुए बाबरी मसजिद विध्वंस के कुछ ही दिनों बाद छपा था. संघ देश के संविधान को इंडिया का संविधान मानता है, भारत का नहीं. जब भी मौका मिलता है, संघ इस बात को साबित करने का प्रयास करता है.

अपनी किताब में ए जी नूरानी लिखते हैं कि जनवरी 1993 में संघ के प्रमुख रहे राजेंद्र सिंह ने लिखा कि संविधान में बदलाव की जरूरत है और भविष्य में इस देश के लोकाचार और प्रतिभा के अनुकूल संविधान अपनाया जाना चाहिए.

बहरहाल, राष्ट्रपति के 14 सवाल संविधान को कमजोर करने का एक कदम हैं वरना सरकार को यह स्पष्ट है कि 2014 से पहले गुजरे 60 सालों में किसी राज्यपाल ने लंबे समय तक विपक्षी दल की राज्य विधानसभा के पारित विधेयकों को नहीं रोका.

देश और समाज को जोड़ता है संविधान

असल में संविधान ही वह इकलौता फैब्रिक है जो पूरे देश और समाज को जोड़ कर रखने का काम करता है. जिस भी देश में संविधान मजबूत होता है वह राष्ट्र तरक्की करता है. अमेरिका इस का एक बड़ा उदाहरण है. अमेरिका 4 जुलाई, 1776 को स्वतंत्र हुआ. उस समय उस की हालत बेहद खराब थी. इस के बाद 1787 में उस ने अपना संविधान लिखना शुरू किया. 1789 में अमेरिका के सभी राज्यों में संविधान लागू हुआ. आज तक यह पूरे अमेरिकी राज्यों को जोड़ने का काम कर रहा है. इसी कारण अमेरिका दुनिया का सब से ताकतवर देश है.

भारत जब 1947 में आजाद हुआ तो यहां भी बहुत सारी दिक्कतें थीं. तमाम छोटेछोटे राज्य थे. भाषा, बोली और क्षेत्र के नाम पर बहुत सारे अलगाव थे. धर्म व जाति को ले कर साथ चलना और दिक्कत का काम था. धर्म के नाम पर देश विभाजित हो चुका था. ऐसे में संविधान ही अकेली ऐसी ताकत है जो देश को जोड़ कर रखने में सफल हुई. आज बड़ी सारी दिक्कतों के बाद भी संविधान की ताकत के कारण ही देश एकजुट दिखता है. इस की वजह से देश में कोई भी अलग होने की बात नहीं कर रहा है.

राष्ट्रपति ने जो 14 सवाल पूछे हैं वे संविधान को कमजोर करने वाले हैं. सुप्रीम कोर्ट असल में संविधान की रक्षा करने का काम करती है. 1975 में जब देश में इमरजैंसी लगी तो संविधान की ताकत देखने को मिली. 2 साल के बाद 1977 में लोकतंत्र की वापसी हुई. इस के बाद चुनाव में इंदिरा गांधी हार गईं. संविधान ने ही देश को बचाने का काम किया था.

देश का खजाना सरकार के पास भले ही होता है लेकिन उस की चाबी सुप्रीम कोर्ट के पास होती है. यह बात केंद्र सरकार को खटक रही है. खासतौर पर 42वें संशोधन से संविधान में जो मूल ढांचा तैयार किया गया, भारतीय जनता पार्टी उस की आलोचक रही है.

यह संशोधन 1976 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पारित किया गया था. इस संशोधन द्वारा कई महत्त्वपूर्ण बदलाव किए गए. उन में सब से प्रमुख संविधान की प्रस्तावना में संशोधन था. संविधान की प्रस्तावना में ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ के स्थान पर ‘संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ जोड़ा गया. ‘राष्ट्र की एकता’ के स्थान पर ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ से जोड़ा गया. अब राष्ट्रपति ने जो 14 सवाल पूछे हैं वे देश को ‘एक देश एक शासक की भावना’ की तरफ ले जाने का काम करेंगे.

संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को अधिकार दिए हैं, उस की वजह यह थी कि संविधान संसद और प्रधानमंत्री को देश का राजा नहीं बनाना चाहता था.

USA : ट्रंप और ह्यूमन ट्रैफिकिंग

USA : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अवैध घुसपैठियों को जंजीरों में बांध कर उन के अपने देश लौटा देना चाहे अमानवीय हो, लेकिन इस से ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर रोक लगी है. दुनिया के सभी गरीब व अमीर देशों में किसी भी तरह घुसा देने वाले एजेंट तैयार हो गए थे, जो सच्चीझुठी कहानियां सुना कर पश्चिमी अमीर देशों में नौकरी दिलाने का वादा कर के गरीबों से लाखों लूट रहे थे.

गरीब देशों की हालत अगले 40-50 सालों में भी सुधरेगी, इस का कोई आसार नजर नहीं आ रहा है. धर्म के सहारे चल रहे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान, फिलीपींस, दक्षिणी अमेरिका के देश, अफ्रीकी मुसलिम देश अगले दशकों तक ऐसे ही रहेंगे. तकनीक और विज्ञान के कारण जो भी आमदनी बढ़ेगी, वह कुछ लोगों के हाथों में रह जाएगी और बढ़ती गरीब आबादी के लिए कुछ नहीं बचेगा.

गरीब देशों के नौजवान अमीर देशों में वही कार्य करेंगे जो अपने देशों में करते हैं पर वहां उन्हें 3-4 गुना पैसे आसानी से मिलेंगे. साथ ही, उन्हें मिलेंगी साफसुथरी सड़कें, साफ हवा, पक्की बिल्डिंगें, अच्छी चिकित्सा आदि. डोनाल्ड ट्रंप की जिद कि ये लोग अपने देश लौटें ज्यादा नहीं चलने वाली. लेकिन जब तक चल रही है तब तक दलालों का धंधा मंदा रहेगा.

पश्चिमी देशों में घुसाने का वादा करने वाले एजेंट मानव तस्करी करते हैं, वेश्यालयों में लड़कियां भेजते हैं, अस्पतालों में और्गन बेचते हैं. गुलामी सी नौकरियां करवाते हैं, रास्ते में भूखाप्यासा रखते हैं. जब ये गरीबों व मजबूरों को फांसते हैं तो बड़ेबड़े सपने दिखाते हैं. ये जिन 10 युवाओं को ले कर जाते हैं, उन में से 6-7 तो कहीं न कहीं पहुंच जाते हैं, बाकी का पता नहीं चलता. हैरानी व दिलचस्प यह है कि जिन का पता नहीं चलता उन के परिवार वाले कहीं शिकायत तक नहीं करते.

बहुत से ऐसे देश हैं जहां बिना वीजा लिए पहुंचा जा सकता है और फिर वहां से कहीं की भी उड़ान ले कर किसी छोटे देश से होते हुए किसी अमीर देश में पहुंचना संभव हो जाता है.

ये दलाल आमतौर पर पहले ही पैसे ले लेते हैं और इन का धंधा पिछले सालों में खूब चमका है क्योंकि हर अमीर देश को गरीब मजदूरों की जरूरत रहती है जो ज्यादा सवालजवाब न करें. और अवैध घुसपैठिए हर मामले में मुंह बंद ही रखते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप की कृपा से यह धंधा कुछ समय के लिए तो मंदा पड़ेगा, यह एक अच्छी बात है. भारत को चाहे इन नौजवानों की जरूरत न हो क्योंकि यहां तो बेरोजगार वैसे ही टके के सेर मिल रहे हैं.

Vatican City : पोप का जाना और बनना

Vatican City : पोप फ्रांसिस की मृत्यु के बाद अमेरिकी रौबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट को वेटिकन सिटी के सिस्टिन चैपल में बैठे 135 कौर्डिनल्स ने चुना है. उन्हें अब पोप लियो XIV के नाम से जाना जाएगा. वे कैथोलिक चर्च के 267वें पोप हैं, जो 8 मई, 2025 को चुने गए. वे पहले अमेरिकी हैं जो पोप बने. रोमन कैथोलिकों को अपनेअपने देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, तानाशाहों से ज्यादा विश्वास पोप पर होता है क्योंकि चर्च का गठन ऐसा है कि पोप हर देश के हर गांव के आखिरी प्रीस्ट तक पर नियंत्रण रखता है. रोमन कैथोलिकों ने एक बेहद जकड़ा हुआ, बिना खिचखिच वाला प्रबंध करने वाला तंत्र सदियों से बना रखा है. वेटिकन का पोप उन का सर्वोच्च प्रीस्ट होता है.

रोमन कैथोलिकों ने बड़ी चतुराई व सफलता से ईसाई धर्म के दूसरे संप्रदायों को कहीं पीछे छोड़ दिया है और अब अमेरिका में जहां प्रोटैस्टैंट ज्यादा हुए करते थे, नेतृत्व की बागडोर लगभग रोमन कैथोलिकों के हाथ में है क्योंकि उन की अपने अनुयायियों पर पकड़ ज्यादा है और वे तमाशा करने में प्रोटैस्टैंटों व दूसरे संप्रदायों से ज्यादा माहिर हैं. धर्म एक सर्कस की तरह चलता है और जब हर कुछ दिनों बाद कोईर् त्योहार, उत्सव, सभा, प्रवचन हों तो दुकानदारी ज्यादा चलती है.

ईसाइयों के दूसरे कुछ संप्रदाय जियो और जीने दो के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं और इसलिए उन के अनुयायी अपने जीवन में ज्यादा सफल हैं. रोमन कैथोलिक देश आमतौर पर गरीब हैं वहां सत्ता में बैठा ज्यादा तानाशाह है, वहां लोकतंत्र अगर है तो कमजोर है. पूरा दक्षिणी अमेरिका लगभग रोमन कैथोलिक है और यहीं के लोग भागभाग कर चोरीछिपे अमेरिका में अवैध घुसपैठ करते रहे हैं जो अब तक उदार प्रोटैस्टैंट देश रहा है.

अमेरिका अब रोमन कैथोलिकों के चंगुल में है और वहां का प्रोटैस्टैंट चर्च भी रोमन कैथोलिक चर्च का नेतृत्व मान चुका है. इटली के रोम शहर में कुछ वर्ग मील में बने वेटिकन तक ही इस की भौगौलिक सीमा होने के बावजूद उस का असली राज आधी से ज्यादा दुनिया पर है.

पोप सिर्फ प्रार्थना पर जोर देते हैं. ईश्वर से प्रार्थना करो तो प्राकृतिक आपदाएं, बीमारियां, युद्ध, पारिवारिक विवाद, अपराध, गरीबी सब सहने की आदत पड़ जाएगी. हर विपत्ति में ईश्वर तुम्हारे साथ खड़ा है, पर वह कुछ करेगा नहीं. सभी धर्मों की तरह रोमन कैथोलिक धर्म भी सिर्फ बातें बनाने में तेज हैं और नए पोप लियो भी इसी परपंरा को लागू करेंगे.

69 वर्ष के पोप लियो काफी सालों तक वेटिकन के सहारे रोमन कैथोलिक परिवारों के दिलों पर राज करेंगे पर इन कैथोलिक अनुयायियों के वर्तमान और भविष्य में कोई बदलाव लियो के कारण होगा, इस की उम्मीद उसी तरह न करें जैसे भारत में हर थोड़े दिनों में एक नए विशाल मंदिर बनने से नहीं की जा सकती.

धर्म की दुकानदारी आज के तर्क, तथ्य, विज्ञान के जमाने में भी चल रही है और लगता है कि चलती रहेगी.

India-Pakistan war : पाक सेना की नापाक हरकत

India-Pakistan war : पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत के पास पाकिस्तान में बने आतंकवादी ट्रेनिंग अड्डों को नष्ट करने के अलावा कोई उपाय नहीं था और 6-7 मई की रात को जो हमले किए गए वे जरूरी थे. कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन की कीमत नहीं गिनी जाती. पहलगाम में किया गया खूंखार हमला ऐसा ही था जिस में निहत्थेनिर्दोष लोगों को एकएक कर के बेरहमी से मार डाला गया.

बदले की कार्रवाई की शुरुआत छोटे पैमाने पर ही की गई है पर किस हद तक यह बढ़े, न्यूक्लियर अटैक तक भी पहुंचे, इस का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता और न ही उस का खास महत्त्व है. जानबूझ कर हमारे देश को उकसाने के लिए, छुट्टी को एंजौय करने गए लोगों की मौतों को भविष्य में रोकने के लिए यह जरूरी है कि आतंकियों, चाहे सीमापार के हों या सीमा के अंदर के जिन्हें सीमापार से सहायता मिलती हो, को उन के पूरे जीवन के लिए सजा दी जाए.

यह समझ से परे है कि जब आतंकवादी यह जानते और समझते हैं कि बदले की कार्रवाई होगी ही, वे क्यों देश की आत्मा को झकझोरने में लगे थे. भारत ने 1965 और 1971 में दिखा दिया था कि पाकिस्तान में सेना के पास चाहे पूरे पाकिस्तान की सरकार को चलाने का भी हक हो, भारत लोकतांत्रिक होते हुए भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है चाहे उस की सरकार किसी भी पार्टी की हो, कैसी भी हो.

युद्धों से समस्याएं हल नहीं होतीं. लेकिन कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जब युद्ध ही अकेला उपाय बचता है और तब सम्मान की सुरक्षा के लिए कुछ भी दांव पर लगाया जा सकता है. पाकिस्तान की टूटती अर्थव्यवस्था के सामने उस के आकाओं का काम आतंकवादियों को उकसाने, बहकाने, पालने, ट्रेन करने का नहीं बल्कि अपने देश की माली हालत ठीक करने का था. जहां शहरों में घंटों बिजली नहीं रहती वहां सेना वसूली करने के लिए अपने देश के नागरिकों को भारत का फोबिया दिखा कर भारत पर आतंकवादी आक्रमण कराती रहे और भारत की सरकार कुछ न कहे या करे, यह सोचना ही बेकार है.

दुनियाभर का दस्तूर है कि कुछ लोगों की बेवकूफी का खमियाजा बहुत बड़े वर्ग को सहना पड़ता रहा है. कश्मीर के पहलगाम में की गई आतंकवादियों की हरकतों का नुकसान पाकिस्तान की सेना के साथ वहां की आम जनता को भी सहना पड़ेगा, यह पक्का है.

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