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Central Government : हैल्थ पर टैक्स

Central Government : केंद्र सरकार के आर्थिक सर्वे ने बहुत सी मतलब की और बहुत सी बेमतलब की बातों में स्वास्थ्य सुधारने का दावा करने वाले हैल्थ फूड्स की बढ़ती बिक्री पर चिंता जाहिर की है और उन्हें कीमती कर के उन की खपत कम करने की सिफारिश की है. यह संभव है कि विज्ञापनों के बल पर इन हैल्थ फूड्स में बहुत सी चीनी, प्रिजर्वेटिव, अनावश्यक मैटल व कैमिकल डाले जा रहे हों पर उन्हें टैक्स लगा कर महंगा करना गलत होगा.

अगर ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं तो इन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए और इन को बनाने वालों से पूछताछ की जानी चाहिए. वहीं यह भी देखना चाहिए कि आखिर लोग क्यों कमजोरी महसूस करते हैं और क्यों एडवरटाइज किए गए हैल्थफूड लेते हैं? क्या इसलिए कि उन्हें इन का पर्याय नहीं मालूम?

हमारे देश में स्वास्थ्य के जोखिम तो गंदी हवा, गंदा पानी, गंदगीभरी सड़कें, गंदगी में लिपटा स्ट्रीट फूड, गंदे बरतनों में बनाया गया खाना है. हर शहर की हर सड़क पर 10-20 खोमचे खाना बेचते नजर आ जाएंगे और वह खाना कैसी गंदगी में बनता है और कैसे परोसा जाता है, यह साफ दिखता है.

हमारे यहां दूध देने वाली गाय-भैंसों को कैसे रखा जाता है, इस के लिए सर्वे की जरूरत नहीं है. मीट प्रोडक्ट्स को किस तरह हैंडल किया जाता है, यह साफ दिखता है. गंदे पानी से सब्जियां धोई जाती हैं, यह भी दिखता है और कीटाणु इन सब में अंदर तक चले जाते हैं, यह कोई बताने की बात नहीं.

हैल्थ फूड्स को बलि का बकरा सिर्फ टैक्स इकट्ठा करने के लिए बनाया जा रहा है. सरकार तो शराब, भांग पर भी टैक्स लेने से परहेज नहीं करती और देशभर की सरकारें इन्हें पिलाखिला कर खरबों रुपए कमा रही हैं.

हैल्थ फूड्स की बिक्री 13.7 फीसदी सालाना बढ़ रही है और घरों में 10-11 फीसदी का खर्च हैल्थ फूड्स पर हो रहा है. ये आंकड़े सिर्फ टैक्स जमा करने की बुरी नीयत से दिए जा रहे हैं.

अगर सरकार जागरूक होती तो दिल्ली चुनावों में यमुना के पानी को ले कर महासंग्राम न छिड़ता कि वह प्रदूषित ही नहीं, विषैला भी है. हमारी सारी नदियां गंदे पानी से भरी हैं और नलों में आने वाला पानी पीने लायक न हो, ऐसी साजिश सरकार ने कर रखी है ताकि बौटल वाले पानी का व्यापार जम कर हो. मीठे ड्रिंक भी इसीलिए बिकते हैं कि अच्छा पानी म्युनिसिपल कमेटियां कहीं भी उपलब्ध करा ही नहीं सकतीं.

हैल्थ फूड काम के हैं या नहीं, यह बहस अलग है. असली बात तो यह है कि इन पर टैक्स की बात क्यों की जाए? सरकार सेहत के नाम पर अपनी जेब क्यों भरे?

Delhi Transport Corporation : सीएजी और भाजपा सरकार

Delhi Transport Corporation : वर्ष 2012-13 में कंट्रोलर औडिटर जनरल (सीएजी) का औफिस सरकारी खातों की जांच की रिपोर्टों में अपने खास लोगों के पक्ष की बात करने में माहिर हो गया था जब तब के सीएजी विनोद राय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के विरुद्ध एक के बाद एक रिपोर्टें जारी की थीं. मनमोहन सरकार पर लाखोंकरोड़ों की बेईमानी के आरोप लगे थे और 2014 में हुई कांग्रेस की हार के पीछे एक यह भी बड़ा कारण था.

इन 12-13 सालों में एक भी मंत्री पूरी तरह, तब की औडिट रिपोर्टों के आधार पर, अपराधी साबित नहीं हो पाया है जबकि उन्हीं रिपोर्टों के चलते कितनों का राजनीतिक कैरियर बरबाद हो गया. हां, विनोद राय का कैरियर बन गया और वे भारतीय जनता पार्टी से राज्यसभा के सदस्य बन गए.

अब इसी सीएजी ने आरोप लगाया है कि पिछले 6 सालों में दिल्ली ट्रांसपोर्ट कौर्पोरेशन को 35,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है क्योंकि वर्ष 2009 से किराए नहीं बढ़ाए गए. औडिटर के औफिस को जनता की या सत्य की चिंता न 2013-14 में थी, न आज है. यह रिपोर्ट तब तैयार की गई थी जब भाजपा की जघन्य दुश्मन आम आदमी पार्टी की सरकार थी, लेकिन वह जारी अब की गई है.

सीएजी ने यह निर्णय कहीं नहीं लिया कि सस्ते किराए की वजह से दिल्ली चल रही है. जो लोग अपना वाहन नहीं खरीद सकते या जिन के घरों से मैट्रो बहुत दूर है या महंगी है वे डीटीसी पर पूरी तरह निर्भर हैं. औडिटर को सोशल प्रौफिट की बात भी खातों के नुकसान के साथ करनी चाहिए थी पर वह रिपोर्ट केंद्र सरकार को पसंद न आती. आज की केंद्र सरकार कोई मनमोहन सिंह सरकार थोड़ी है जो अपने नियुक्त अफसरों को पूरी स्वतंत्रता देती हो.

सस्ती बस सेवा एक तरह की रेवड़ी है जो अब नरेंद्र मोदी की पार्टी भी भरभर कर हर राज्य में दे रही है. डीटीसी का नुकसान अगर राज्य सरकार भर रही है तो हर्ज क्या है. रिपोर्ट के जो अंश प्रकाशित हुए हैं उन में औडिटर्स ने कहीं भी कर्मचारियों की चोरी, जैसे हाजिरी लगा कर ऐबसेंट होने, अफसरों की रूट डिसाइड करने की मनमानी, का जिक्र नहीं किया क्योंकि ऐसा करने से डीटीसी कर्मचारी भड़क जाते. औडिटर्स का काम अब शायद विरोधी पार्टी की सरकार की खामियां निकालना भर रह गया है. वे केंद्र की भाजपा सरकार के मंत्रालयों या भाजपा शासित राज्य सरकारों के बारे में कोई चुभने वाली रिपोर्ट नहीं निकालते.

अब दिल्ली में सरकार भाजपा की बन गई है. क्या 35,000 करोड़ रुपए का नुकसान भरने के लिए किराए में दोगुनीतीनगुनी वृद्धि करना उस के लिए संभव है? अब चुप्पी रहेगी क्योंकि रिपोर्ट मानने का मतलब है किराए को बढ़ाना जो भाजपा के लिए संभव नहीं है.

Relatioship Problem : पत्नी का शादी से पहले अफेयर था, अब मैं क्या करूं?

Relatioship Problem : मेरी शादी हुए अभी एक महीना ही हुआ है. एक दिन मोबाइल पर एक अननोन नंबर से मैसेज आया कि मेरी पत्नी का शादी से पहले अफेयर था. पत्नी से पूछा तो उस ने कुबूल कर लिया लेकिन कहती है कि मैं ने सब भूल कर आप से शादी की है. मैं अच्छी पत्नी बन कर रहूंगी. अब सिर्फ मुझ से प्यार करती है. तब से मैं बेचैन हूं. पत्नी को माफ कर दूं या सब भुला कर क्या पत्नी के साथ सुख से रहूं?

जवाब : आप के लिए यह स्थिति बहुत जटिल है, क्योंकि आप की पत्नी ने जो कुछ पहले किया, उस से आप को दर्द हुआ होगा. जब किसी को प्यार करते हैं तो उस के साथ सच्चाई और विश्वास भी जरूरी होता है.

आप की पत्नी ने जो कहा, उस से लगता है कि वह अपने पिछले गलत फैसलों से सीख चुकी है और अब वह अपनी शादी में अपना सबकुछ देने को तैयार है. आप को यह सोचने की जरूरत है कि क्या आप उस की माफी को अपने दिल से स्वीकार कर सकते हैं और अगर आप उसे माफ करते हैं तो क्या आप उस के साथ अपनी जिंदगी फिर से शुरू कर सकते हैं बिना पुरानी बातों को अपने दिमाग में लाए.

यह फैसला आप को अपने दिल की सुन कर लेना होगा. अगर आप को लगता है कि आप अपनी पत्नी को सच में प्यार करते हैं और उस की गलतियों को माफ कर के एक नई शुरुआत करना चाहते हैं तो आप उसे माफ कर दें. लेकिन अगर आप को लगता है कि ये बातें आप के दिल को पूरी तरह से सुकून नहीं दे सकतीं और आप उस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं तो अपनेआप को इस रिश्ते से निकालना भी एक विकल्प हो सकता है.

आप को यह समझना होगा कि हर रिश्ते में समझ, भरोसा, और इज्जत सब से ज्यादा जरूरी है. अगर आप दोनों अपनी पुरानी बातें भूल कर एकसाथ आगे बढ़ना चाहते हैं तो आप को अपने दिल से यह फैसला लेना होगा. अगर आप किसी भी स्थिति में अपनेआप को खुश नहीं रख पा रहे तो अपने लिए सही फैसला लेना जरूरी है. आप अपनी फीलिंग्स पर ध्यान दें, पत्नी से भी खुल कर बात करें और सोचसमझ कर फैसला लें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Short Trip करना चाहती हूं मगर मैं कैसे मैनेज करूं?

Short Trip : अब बच्चे भी बड़े हो चुके हैं. हसबैंड जब थे तब हम सब खूब घूमतेफिरते थे. बच्चे छोटे थे, तब भी ट्रिप प्लान करते, लाइफ एंजौय करते थे. लेकिन हसबैंड की डैथ के बाद लाइफ जैसे ठहर सी गई. बस, रूटीन लाइफ रह गई, सोचती हूं, क्यों न फिर से लाइफ एंजौय की जाए. ट्रिप पर बच्चों के साथ जाऊं लेकिन अकेले सब मैनेज करना मुश्किल लग रहा है. कैसे क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा?

जवाब : यह जरूरी है कि आप अपनी जिंदगी में खुशी के लमहे दोबारा से ढूंढें, खासतौर पर जब पति के देहांत के बाद इतने साल गुजर चुके हैं. घूमने जाना, परिवार के साथ समय बिताना और नए एक्सपीरियंस लेना सभी के लिए जरूरी होते हैं. यह आप के लिए भी मुमकिन है.

आप के लिए कुछ सुझाव हैं. बच्चों के साथ बैठ कर प्लान बनाइए. सब से पहले आप अपने दोनों बच्चों के साथ बैठ कर डिस्कस कीजिए कि उन्हें कहां जाना पसंद होगा. अगर आप के बच्चे बड़े हैं तो उन की पसंद को समझ कर आप ट्रिप प्लान कर सकती हैं. आप उन से यह भी पूछ सकती हैं कि उन्हें किस टाइप की ट्रिप ज्यादा पसंद आएगी. क्या वे हिल स्टेशन पसंद करेंगे या कोई ऐतिहासिक जगह विजिट करना चाहेंगे.

आप एक या दो दिन का ट्रिप प्लान कर सकती हैं, जिसे आप अच्छे से और्गनाइज कर सकें. दिल्ली के आसपास काफी अच्छे हिल स्टेशंस हैं जो वीकैंड के लिए परफैक्ट हैं, जैसे नैनीताल, मसूरी, शिमला आदि.

आप को अपने ट्रिप का बजट भी ध्यान में रखना होगा. अगर आप छोटा ट्रिप प्लान कर रही हैं तो ट्रैवल एक्सपैंस और स्टे के लिए बजट सैट कर लीजिए. आप औनलाइन ट्रैवल एजेंसियों या बुकिंग वैबसाइट्स, जैसे मेक माई ट्रिप, अगोडा, ट्रिवागो पर बजट होटल्स और ट्रांसपोर्टेशन औप्शंस देख सकती हैं.

जब ट्रिप का डैस्टिनेशन डिसाइड हो जाए, तब आप रहने की जगह की बुकिंग कर सकती हैं. आजकल काफी अच्छे बजट होटल्स और रिजौर्ट्स होते हैं जो परिवार के लिए कंफर्टेबल होते हैं. अगर आप का बजट थोड़ा फ्लैक्सिबल हो तो आप एक अच्छा रिजौर्ट या गेस्टहाउस चूज कर सकती हैं.

ट्रिप के लिए एक छोटी सी लिस्ट बनाइए जिस में आप डिसाइड करें कि किस दिन आप किस जगह जाना चाहेंगी और किस टाइम पर कहां पर रुकना है. यदि आप हिल स्टेशन जा रही हैं तो आप को ट्रैकिंग, साइट सीइंग और लोकल फूड का एक्सपीरियंस लेना मजेदार होगा.

अगर आप अपने वाहन से जाने का प्लान कर रही हैं तो यह सुनिश्चित करें कि वाहन पूरी तरह से चैक हो. अगर आप ट्रेन या बस से जाना चाहती हैं तो टिकट पहले से बुक कर लीजिए ताकि कोई लास्ट मिनट की टैंशन न हो. पैकिंग करते वक्त मौसम के हिसाब से सामान रखें. अगर आप हिल स्टेशन जा रही हैं तो थोड़ा गरम कपड़े, शूज, और बेसिक टौयलेटरीज जरूर रखें.

ये सब प्लानिंग करने से आप को अपने ट्रिप का सफर आसान हो जाएगा. आप खुद भी फील करेंगी कि आप ने अपनी जिंदगी में एक नई शुरुआत की है और आप अपने बच्चों के साथ कुछ खूबसूरत पल बिता पाई हैं.

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Online Hindi Story : शादी क्यों करें – क्या शकुंतला और कमलेश की शादी हुई?

Online Hindi Story : सालों से एकसाथ रहते थे कमलेश और शकुंतला. उन्होंने शादी भले न की थी मगर उन दोनों के बीच गजब की कैमिस्ट्री थी. अचानक एक दिन कमलेश ने शकुंतला के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया.

रविवार का दिन था. शकुंतला और कमलेश डाइनिंग टेबल पर बैठ कर नाश्ता कर रहे थे.

‘‘शकुंतला, क्यों न हम शादी कर लें?’’  कमलेश ने कहा.

चौंक गई शकुंतला. आज 20 सालों से वह कमलेश के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही है. आज तक शादी की बात उस ने सोची नहीं, फिर आज ऐसा क्या हो गया? पहली बार कमलेश से जब वह मिली थी तो 32 साल की थी. कमलेश उस समय 40 का रहा होगा. परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि दोनों अकेले थे.

‘‘क्यों, ऐसा क्या हुआ कि तुम शादी की सोचने लगे? पिछले 20 सालों से हम बगैर शादी किए रह रहे हैं और बहुत ही इत्मीनान से रह रहे हैं. कभी कोई समस्या नहीं आई. अगर आई भी तो हम ने मिलजुल कर उस का समाधान कर लिया. फिर आज ऐसी क्या बात हो गई?’’ कुछ देर सोचने के बाद शकुंतला ने कहा.

‘‘ऐसा है शकुंतला, दरअसल हमारी उम्र हो चुकी है. मैं 60 का हो गया और तुम 52 की. यह बात सही है कि हम बिना शादी किए भी बहुत मजे में बड़ी सम?ादारी और तालमेल के साथ जिंदगी जी रहे हैं पर मैं कानूनी दृष्टिकोण से सोच रहा हूं. अगर हम दोनों में से किसी को कुछ हो गया तो हमें कानूनन पतिपत्नी होने पर विधिक दृष्टि से लाभ होगा. बस, यही सोच कर मैं ऐसा कह रहा हूं. मुझ पर किसी प्रकार का शक न करो,’’ कमलेश ने कहा.

‘‘शक नहीं कर रही, कमलेश. तुम मेरे हमसफर रहे हो पिछले 20 सालों से और मैं गर्व के साथ कह सकती हूं कि तुम से ज्यादा प्यारा कोई नहीं मेरी जिंदगी में. बस, मैं यही सोच रही हूं कि जब सबकुछ सही चल रहा है तो क्यों न हम कुछ नया करने की सोचें. हम दोनों ने जो बीमा पौलिसी ली है उस में एकदूसरे को नौमिनी बनाया है. हमारे बैंक खातों में भी हम एकदूसरे के नौमिनी हैं. फिर और क्या आवश्यकता है ऐसा सोचने की पर तुम ने कुछ सोच कर ही ऐसा कहा होगा.

‘‘ऐसा करते हैं, 1-2 दिनों के बाद इस पर विचार करते हैं. पहले मुझे इस नए प्रस्ताव के बारे में सोच लेने दो,’’ शकुंतला ने कहा.

‘‘बिलकुल, आराम से सोच लो. जो भी होगा तुम्हारी सहमति से ही होगा,’’ कमलेश ने मुसकरा कर कहा.

फुरसत में बैठने पर शकुंतला सोचने लगी थी कि जब पहली बार वह कमलेश से मिली थी. दोनों अलगअलग कंपनियों में काम करते थे. कमलेश जिस कंपनी में काम करता था उस कंपनी से शकुंतला की कंपनी का व्यावसायिक संबंध था. इस नाते दोनों की अकसर मुलाकातें होती रहती थीं. पहले परिचय हुआ, फिर दोस्ती. शकुंतला की शादी बचपन में ही हो गई थी और पति से मिलने से पहले ही वह विधवा भी हो गई थी.

उन दिनों विधवा विवाह को सही निगाहों से नहीं देखा जाता था और यही कारण था कि उस का विवाह नहीं हो पाया था. आज भी विधवा विवाह कम ही होते हैं. कमलेश को न जाने क्यों विवाह संस्था में विश्वास नहीं था और शुरुआती दौर में उस ने शादी के लिए मना कर दिया था. बाद में जब 35 वर्ष से ऊपर का हो गया था तो रिश्ते आने भी बंद हो गए. थकहार कर घर वालों ने भी दबाव देना बंद कर दिया था और कमलेश अकेला रह गया.

दोनों की जिंदगी में कोई नहीं था. दोनों के विचार इतने मिलते थे और दोनों एकदूसरे के लिए इतना खयाल रखते थे कि दिल ही दिल में कब एकदूसरे के हो गए, पता ही नहीं चला. शकुंतला जिस किराए के फ्लैट में रहती थी उस का मालिक उसे बेचने वाला था और खरीदने वाले को खुद फ्लैट में रहना था. इसलिए शकुंतला को कहीं और फ्लैट की आवश्यकता थी. जब उस ने कमलेश को इस बारे में बताया तो उस ने कहा कि उस के पास 2 कमरों का फ्लैट है. वह चाहे तो एक कमरे में रह सकती है. हौल और किचन सा?ा प्रयोग किया जाएगा. थोड़ी झिझकी थी शकुंतला. अकेले परपुरुष के साथ रहना क्या ठीक रहेगा पर कमलेश ने आश्वस्त किया कि वह पूरी सुरक्षा और अधिकार के साथ उस के साथ रह सकती है तो वह मान गई थी.

एकदूसरे को दोनों पसंद तो करते ही थे, साथसाथ रहने से और भी नजदीकियां बढ़ गईं और शादीशुदा न होने के बावजूद पतिपत्नी की तरह ही दोनों रहने लगे. आसपास के लोग उन्हें पतिपत्नी के रूप में ही जानते थे. इस लिवइन रिलेशन से दोनों खुश थे. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. कभी किसी प्रकार की समस्या नहीं आई थी अभी तक.

और इतने सालों के बाद कमलेश ने शादी का प्रस्ताव रख दिया था. शकुंतला के मन में कई बातें उभरने लगीं. क्या इस से मेरा व्यक्तिगत जीवन प्रभावित नहीं होगा? क्या शादी करने के बाद हमारे संबंध वैसे ही रह पाएंगे जैसे अभी हैं? क्या शादी के लिए स्पष्ट रूप से नियम और शर्तें निर्धारित कर ली जाएं? शकुंतला का एक मन तो कह रहा था कि जिस प्रकार वे रह रहे हैं उसी प्रकार रहें. आखिर जब सबकुछ सही चल रहा है तो नए प्रयोग क्यों किए जाएं भला? पर दूसरा मन कह रहा था कि कमलेश के साथ वह इतने सालों से है और वह हमेशा दोनों के हित की बात ही करता था. कभी उस ने सिर्फ अपने स्वार्थ की बात नहीं की. इतने दिनों से वह उसी के फ्लैट में रह रही है. उस का व्यवहार हमेशा एक हितैषी सा रहा है. उस ने जो कहा है वह भी सही हो सकता है. उस से विस्तार से बात करने की आवश्यकता है. आखिर हम 20 सालों से रह रहे हैं और एकदूसरे के साथ खुशीखुशी रह रहे हैं. हम एकदूसरे के साथ खुल कर अपनी बात साझा भी कर सकते हैं.

इसी प्रकार 6-7 दिन बीत गए. इस बारे में न तो कमलेश ने कुछ कहा न शकुंतला ने. कमलेश के दिल की बात तो शकुंतला नहीं जानती थी पर वह हमेशा इस बात पर विचार करती थी. हो सकता है कि कमलेश भी इस बात पर विचार करता होगा पर उस ने दोबारा कभी इस विषय को नहीं उठाया. शायद वह शकुंतला पर किसी प्रकार का दबाव नहीं बनाना चाहता था.

आज फिर दोनों की कंपनी में अवकाश का दिन था. आज शकुंतला ने डाइनिंग टेबल पर उस विषय को उठाया, ‘‘कमलेश, मैं ने तुम्हारे प्रस्ताव पर विचार किया पर मु?ो लगता है, हम जैसे हैं वैसे ही रहें. शादी का सर्टिफिकेट एक कागज का टुकड़ा ही तो होगा. बगैर सर्टिफिकेट के हम आदर्श जोड़े की तरह रह रहे हैं. मेरे विचार से शादी करने की कोई आवश्यकता नहीं है.’’

‘‘मैं हमारी स्थायी संपत्ति के बारे में सोच रहा था. मान लो मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरे नजदीक दूर के रिश्तेदार इस फ्लैट पर दावा करेंगे. ऐसे में तुम्हें परेशानी होगी. इसी तरह की बातों को ध्यान में रख कर मैं अपने संबंध को एक कानूनी जामा पहनाना चाह रहा था,’’ कमलेश बोला.

‘‘कमलेश, तुम मेरा कितना खयाल रखते हो पर यह काम तो हम वसीयत बना कर भी कर सकते हैं. हम दोनों एकदूसरे के नाम वसीयत बना दें तो कोई तीसरा इस प्रकार का दावा नहीं कर पाएगा. हम क्यों शादी की अनावश्यक रस्म निभाएं?’’

‘‘देखो शकुंतला, शादी से कई कानूनी और सामाजिक हक मिल जाते हैं पतिपत्नी को. उदाहरण के लिए पत्नी पति की संपत्ति में बराबर हिस्सा पाने की हकदार होती है. साथ ही, पति की पैतृक संपत्ति पर भी पत्नी का अधिकार होता है और कोई भी पत्नी से इस अधिकार को छीन नहीं पाएगा. तुम जानती हो कि मेरी पैतृक संपत्ति काफी मूल्यवान है. कुदरत न करे यदि किसी कारण से हम अलगअलग रहने की योजना बना लें तो शादीशुदा होने की स्थिति में पत्नी को गुजाराभत्ता लेने का अधिकार होता है. फिर संयुक्त संपत्ति में भी पत्नी का अधिकार होता है. यह अधिकार लिवइन रिलेशन में उपलब्ध नहीं है.’’

‘‘मैं तुम्हारी सभी बातों से सहमत हूं, पर मुझे इस उम्र में जितनी संपत्ति की आवश्यकता है उतनी है मेरे पास और मुझे नहीं लगता इतने सालों के बाद हम अलग होंगे. इसलिए मेरी सलाह तो यही है कि अब शादी करने की कोई आवश्यकता नहीं है. हां, हम यह वादा करें एकदूसरे से कि जैसे अभी तक साथसाथ रहते आए हैं वैसे ही साथसाथ रहते रहें,’’ शकुंतला ने कहा.

‘‘चलो, यह भी सही है,’’ कमलेश ने अपनी सहमति दी.

Hindi Kahani : आकाश में मचान – आखिर क्यों नहीं उसने दूसरी शादी की ?

Hindi Kahani : भाभी ने रुपयों का बटुआ गायब कर के हमें दोराहे पर ला खड़ा किया. भाई के संरक्षण में धोखा मेरे पति को पच नहीं रहा था. पर भला हो संतोषजी का जिन्होंने न केवल हमें मुसीबत से उबार लिया, बल्कि अनजान संबंधों को रिश्ते का नाम भी दिया.

सबकुछ हंसीखुशी चल रहा था. लेकिन एक दिन डा. अनिल ने मेरे पति के गंभीर रोग के बारे में बताते हुए इन्हें शहर के किसी अच्छे डाक्टर को दिखाने की सलाह दी. मेरी सहूलियत के लिए उन्होंने किसी डाक्टर शेखर के नाम एक पत्र भी लिख कर दिया था.

बड़े भैया दिल्ली में रहते हैं. उन से फोन पर बात कर के पूछा तो कहने लगे, ‘‘अपना घर है, तुम ने पूछा है, इस का मतलब हम लोग गैर हो गए,’’ और न जाने कितना कुछ कहा था. इस के बाद ही हम लोगों ने दिल्ली जाने का कार्यक्रम बनाया. यद्यपि मैं जेठानीजी को सही रूप से पहचानती थी, पर ये तो कहते नहीं थकते थे कि दिल्ली वाली भाभी बिलकुल मां जैसी हैं, तुम तो बेवजह उन पर शक करती हो. फिर भी मैं अपनी तरफ से पूरी तरह तैयार हो कर आईर् थी कि जो भी कुछ होगा उस का सामना करूंगी.

हम दोनों लगभग 2 बजे दिन में दिल्ली पहुंच गए. स्टेशन से घर पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई. नहाधो कर खाना खाने के बाद ये आराम करतेकरते सो गए और मैं बरतन, झाड़ू में व्यस्त हो गई. यद्यपि सफर की थकान से सिरदर्द हो रहा था, फिर भी रसोई में लग गई, ताकि भाभी को कुछ कहने का मौका न मिले.

शाम को 7 बजे अस्पताल जा कर चैकअप कराना है. यह बात मेरे दिमाग में घूम रही थी. मैं ने एक घंटा पहले ही जरूरी कागजों तथा डा. अनिल के लिखे पत्र को सहेज कर रख लिया था. चूंकि पहला दिन था और कनाट प्लेस जाना था, इसलिए एक घंटा पहले ही घर से निकली थी.

हमें डा. शेखर का क्लीनिक आसानी से मिल गया था. मैं ने दवाई का पुराना परचा और चिट्ठी पकड़ा दी, जिसे देख कर उन्होंने कहा था, ‘‘ ज्यादा चिंता की बात नहीं है. 15-20 दिनों के इलाज से देखेंगे, संभावना है, ठीक हो जाएंगे, वरना इन का औपरेशन करना पड़ेगा. परंतु डरने की कोई बात नहीं. सुबहशाम सैर करें और नियमित यहां से इलाज कराएं.’’

हम लोग उन की बातों से आश्वस्त हो कर पूछतेपूछते बसस्टौप तक आए. वहां से घर तक के लिए बस मिल गई थी.

एक दुकान से केक, बिस्कुट और कुछ फल खरीदे तथा घर के लिए चल दिए. मेरे हाथों में इतना सारा सामान देख कर जेठानीजी बोली थीं, ‘‘इस तरह फुजूलखर्ची मत करो, घर के घी से बने बेसन के लड्डू तो लाई हो, गुझियां भी हैं, फिर इन्हें खरीदने की जरूरत क्या…’’ उन की बात काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘शहर के बच्चे हैं, घर में बनी मिठाई तो खाएंगे नहीं, इसलिए केक, बिस्कुट ले लिए हैं.’’

‘‘ठीक है’’, कह कर उन्होंने एक लंबी सांस भरी.

भैया औफिस से आ गए थे. हम लोगों को देख कर भैया और बच्चे खिल से गए. हम लोगों ने भैया के पैर छुए और बच्चों ने हम लोगों के. भाभी बैठेबैठे पालक काट रही थीं.

मैं बहुत थकान महसूस कर रही थी, थोड़ा आराम करना चाहती थी, पर तभी पता चला कि भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने भाभी से कहा, ‘‘आप आराम कर लीजिए, रसोई मैं बना लूंगी.’’

दूसरे दिन सुबह सूरज निकलने से पहले इन्हें सैर कराने ले गई. जैसा भैया ने बताया था, लेन पार करते ही पार्क दिखाई दिया. यहां यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि इधरउधर घास पर लोग चहलकदमी कर रहे थे.

हम दोनों एक बैंच पर बैठे ही थे कि एक सज्जन ने इन्हें उठाया और बोले, ‘‘चलिए, उठिए, आप घूमने आए हैं या बैठने.’’ हम लोग उन के साथ थोड़ी देर तक घूमफिर कर वापस उसी बैंच पर आ कर बैठ गए. फिर हम लोगों ने एकदूसरे का परिचय लिया. उन्होंने अपना नाम संतोष बताया. उन की बेटी राधिका 9वीं कक्षा में पढ़ रही है तथा उन की पत्नी ने आत्महत्या की थी.

यह पूछने पर कि दूसरा विवाह क्यों नहीं किया. वे बोले, ‘‘दूसरे विवाह के लिए कोई उपयुक्त साथी नहीं मिला.’’ उन का दुख एक मौनदुख था, क्योंकि पत्नी की आत्महत्या से रिश्तेदार व अन्य लोग उन्हें शक की नजर से देखते थे. वे अपनेआप को अस्तित्वहीन सा समझ रहे थे. मेरे पति ने उन्हें समझाया, ‘‘देखिए संतोषजी, आप की बेटी ही आप की खुशी है. वही आप के अंधेरे जीवन में खुशी के दीप जलाएगी.’’

हम लोग घर वापस आए तो भाभी अभी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं. भैया उस समय मंजन कर रहे थे. मैं फौरन चाय बनाने रसोई में चली गई. चाय बनाने के बाद मैं उपमा बनाने की तैयारी करने लगी. बच्चे कह रहे थे, ‘‘चाची आ गईं और मम्मी का ब्लडप्रैशर बढ़ गया.’’

मैं उन की बातें सुन कर मुसकराई और भाभी का हालचाल लेने उन के कमरे में चली गई. भाभी उस समय पत्रिका पढ़ रही थीं. मुझे देखते ही थोड़ी संकुचित सी हो गई, बोलीं, ‘‘आओआओ, जरा शरीर भारी हो रहा है, डाक्टर ने आराम करने के लिए कहा है. बीपी बढ़ा है.’’

‘‘अरे भाभी, आप भी कैसा संकोच कर रही हैं, मैं हूं न, निश्चिंत रहिए’’, मैं ने शब्दों को भारी कर कहा, जैसे कह रही हूं, आप का ब्लडप्रैशर हमेशा बढ़ा रहे.

अब मैं थकती नहीं हूं. सबकुछ दिनचर्या में शामिल हो गया है. डा. शेखर के क्लीनिक जाना और लौटते समय सब्जी, फल, दूध, ब्रैड आदि लाना. उन सब में खर्च इलाज से भी ज्यादा हो रहा है. मुझे चिंता इस बात की है कि अब पैसे भी गिन कर ही बचे हैं और दवाखाने का बिल चुकाना बाकी है.

इन्हीं तनावों से घिरी होने के कारण आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, क्योंकि कपड़े बदलते समय रुपयों का पुलिंदा वहीं कमरे में ही छूट गया था और जो छूट गया सो गया. बस, गलती यह  हुई कि चाय बनाने की जल्दी में वह रुपयों का पुलिंदा उठाना भूल गई. यद्यपि मुझे याद आया, मैं वह पुलिंदा लेने भागी, मेरे कपड़े तो वैसे ही पडे़ थे पर वह पुलिंदा नहीं था. मुझे काटो तो खून नहीं. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं चक्कर खा कर गिर जाऊंगी. ये ड्राइंगरूम में बैठे टैलीविजन देख रहे थे, पर उस समय मैं ने इन से कुछ नहीं कहा.

टहलने के लिए जब बाहर निकले तो मुझे गुमसुम देख कर इन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ मैं चुप रही. कैसे कहूं. समझ में नहीं आ रहा था. मैं चक्कर खा कर गिरने ही वाली थी कि इन्होंने संभाल लिया और समझाने के लहजे से कहा, ‘‘देखो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, घर में आराम करो, मैं घूमफिर कर आ जाऊंगा.’’

इस बात से इन्हें भी तो धक्का लगेगा, यह सोच कर मेरी आंखों में आंसू आ गए.

‘‘अरे, क्या हुआ, सचमुच तुम बहुत थक गई हो, मेरी देखभाल के साथ घर का सारा काम तुम्हें ही करना पड़ रहा है.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है.’’

‘‘तो क्या बात है?’’

‘‘चलो, वहीं पार्क में बैठ कर बताती हूं.’’

फिर सारी बात मैं ने इन्हें बता दी. ये बोले, ‘‘चिंता मत करो, जो नहीं होना था वह हो गया. अब समस्या यह है कि आगे क्या करें और कैसे करें. भैया से उधार मांगने पर पूछेंगे कि तुम तैयारी से क्यों नहीं आए? यदि सही बात बताई तो बात का बतंगड़ बनेगा.’’

फिर ये चुप हो गए. गहरी चिंता की रेखाएं इन के चेहरे से साफ झलक रही थीं. मुझे धैर्य तो दिया पर स्वयं विचलित हो गए.

संतोषजी भी हर दिन की तरह चेहरे पर मुसकान लिए अपने समय पर आ गए. हम लोगों ने झिझकते हुए उन्हें अपनी समस्या बताई तथा मदद करने के लिए कहा.

वे कुछ देर खामोश सोचते रहे, फिर बोले, ‘‘मैं मदद करने को तैयार हूं, आप परदेसी हैं, इसलिए एकदम से भरोसा भी तो नहीं कर सकता. आप अपनी कोईर् चीज गिरवी रख दें. जब 3 माह बाद आप लोग यहां दोबारा दिखाने के लिए आएंगे, तब पैसे दे कर अपनी चीज ले जाना. हां, इन पैसों का मैं कोई ब्याज नहीं लूंगा.’’

मरता क्या न करता. हम लोग तैयार हो गए. मेरे गले में डेढ़ तोले की चेन थी, उसे दे कर रुपया उधार लेना तय हो गया.

संतोषजी अपने घर गए और 5 हजार रुपए ला कर इन की हथेली पर रख दिए. मैं ने उन का उपकार माना और सोने की चेन उन्हें दे दी.

इस घटना के बाद इन की आंखों में उदासीनता गहरा गई. मुझे भलाबुरा कहते, डांटते. मेरी इस लापरवाही के लिए आगबबूला होते तो शायद इन का मन हलका हो जाता, पर भाई के संरक्षण में यह धोखा इन्हें पच नहीं रहा था. संतोषजी दुनियादारी की बातें, रिश्तेनातों के खट्टेमीठे अनुभव सुनाते रहे, समझाते रहे पर इन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा.

घर जा कर मैं ने रात में इन को समझाया, ‘‘समझ लो चेन कहीं गिर गई या रुपयों का पुलिंदा ही कहीं बाहर गिर गया. इस तरह मन उदास करोगे तो इलाज ठीक से नहीं हो पाएगा. तनाव मत लो, बेकार अपनेआप को परेशान कर रहे हो. अब यह गलती मुझ से हुई है, मुझे ही भुगतना पड़ेगा.’’

कुछ दिन और बीत गए. संतोषजी उसी तरह मिलते, बातें करते, हंसतेहंसाते रहे. बातोंबातों में मैं ने उन्हें बताया कि कल डाक्टर ने एक्सरे लेने को कहा है. रिपोर्ट ठीक रही तो 5वें दिन छुट्टी कर देंगे. संतोषजी को अचानक जैसे कुछ याद आ गया, बोले, ‘‘आज से 5वें दिन तो मेरा जन्मदिन

है. जन्मदिन, भाभी, जन्मदिन.’’ उन का इस तरह चहकना मुझे बहुत अच्छा लगा.

‘‘उस दिन 16 तारीख है न, आप लोगों को मेरे घर भोजन करना पड़ेगा,’’ फिर गंभीरता से इन का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘पत्नी की मृत्यु के बाद पहली बार मेरे मुंह से जन्मदिन की तारीख निकली है.’’

16 तारीख, यह जान कर मैं भी चौंक पड़ी, ‘‘अरे, उस दिन तो हमारी शादी की सालगिरह है.’’

‘‘अरे वाह, कितना अच्छा संयोग है. संतोषजी, उस दिन यदि रिपोर्ट अच्छी रही तो आप और आप की बेटी हमारे साथ बाहर किसी अच्छे रैस्टोरैंट में खाना खाएंगे,’’ हंसते हुए इन्होंने कहा.

‘‘मेरा मन कहता है कि आप की रिपोर्ट अच्छी ही आएगी, पर भोजन तो आप लोगों को मेरे घर पर ही करना पड़ेगा. इसी बहाने आप लोग हमारे घर तो आएंगे.’’

मैं ने इन की ओर देखा, तो ये बोले, ‘‘ठीक है’’, फिर बात तय हो गई. संतोषजी खिल उठे. अब तक की मुलाकातों से उन के प्रति एक अपनापन जाग उठा था. अच्छा संबंध बने तो मनुष्य अपने दुख भूलने लगता है. हम लोग भी खुश थे.

समय बीता. एक्सरे की रिपोर्ट के अनुसार हड्डी में पहले जितना झुकाव था, उस से अब कम था. डाक्टर का कहना था कि ऐसी ही प्रगति रही तो औपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी. नियमित व्यायाम और संतुलित भोजन जरूरी है. इन्हीं 2 उपायों से अपनेआप को ठीक से दुरुस्त करना होगा. मुझे अंदर ही अंदर बड़ी खुशी हुई. औपरेशन का बड़ा संकट जो टला था. डाक्टर ने दवाइयां लिख दी थीं, 3 माह बाद एक्सरे द्वारा जांच करानी पड़ेगी. डाक्टर का कहना था, हड्डी को झुकने से बचाना है. मैं ने बिल चुकाया और डाक्टर को धन्यवाद दिया.

कुछ दवाइयां खरीदीं और फिर वहीं एक नजदीकी दुकान से संतोषजी को जन्मदिन का उपहार देने के लिए कुरतापाजामा और मिठाई का डब्बा खरीदा. फिर हमेशा की तरह सब्जी वगैरह ले कर हम घर आ गए.

इन्होंने भाभी से रिपोर्ट के बारे में बताया और कल सुबह लौटने की बात कही. भाभी पहले तो तटस्थ बैठी थीं, फिर चौंक कर बोलीं, ‘‘अरे, चले जाना, 2-4 दिन और रह लो’’, फिर अफसोस जाहिर करती हुई बोलीं, ‘‘इस बार तो सब तुम्हें ही करना पड़ा. तुम न होतीं तो पता नहीं कैसे चलता. ऐसे समय नौकरानी भी छुट्टी ले कर चली गई. कहते हैं न, मुसीबत चौतरफा आती है.’’

‘‘अरे भाभी, किया तो क्या हुआ, अपने ही घर में किया’’, मेरी आवाज में कुछ चिढ़ने का लहजा आ गया था.

शाम को हम लोग संतोषजी के घर गए. साफसुथरा, सजा हुआ प्यारा सा घर. फिल्मी हीरोइन जैसी सुंदर बेटी राधिका. देखते ही उस ने हाथ जोड़ कर हम लोगों से नमस्ते किया.

मैं ने तो उसे अपने गले से लगा लिया और एक चुंबन उस के माथे पर जड़ दिया. इन्होंने उस के सिर पर हाथ फिराते हुए आशीर्वाद दिया.

मैं अपनी नजरों को चारों ओर दौड़ा रही थी, तभी संतोषजी की आवाज गूंज उठी और सब ने एकदूसरे को बधाइयां दीं. मैं ने मिठाई का डब्बा राधिका के हाथ में और कुरतापाजामा का पैकेट संतोषजी के हाथ में थमा दिया.

भोजन टेबल पर लगा था. हंसते, मजाक करते हम लोग भोजन का आनंद ले रहे थे. हर चीज स्वादिष्ठ बनी थी. हम लोग सारी औपचारिकताएं भूल कर आप से तुम पर आ गए थे.

संतोषजी कह रहे थे कि 3 माह बाद जब दोबारा आना, तब यहीं ठहरना. देखो भाई, संकोच मत करना. और एक पैकेट हमारे हाथ में थमा दिया.

‘‘जरूरजरूर आएंगे. आप के रुपए देने तो जरूर आएंगे. कोशिश करेंगे, अगली बार ही रुपए वापस कर दें, और यदि नहीं हुआ तो क्षमा करना, भाई,’’ इन्होंने बड़े प्रेम से कहा तो संतोषजी ने इन के हाथों को अपने हाथों में ले लिया और बोले, ‘‘कैसी बातें करते हैं. दोस्ती की है तो इसे निभाऊंगा भी, चाहो तो आजमा के देख लेना.’’

तब तक मैं ने पैकेट खोल लिया था. एक सुनहरी डब्बी में मेरी वाली सोने की चेन रखी थी. एक पल आंख मुंदी और सारी स्थिति समझ में आ गई.

मेरी आंखों में आंसू आ गए. कितने महान हैं वे – संकट से उबारा भी और रिश्ते के बंधन में भी बांधा. मैं उन के चरणों में झुकी ही थी कि उन्होंने मुझे बीच में ही रोक लिया और बोले, ‘‘नहीं बहन, नहीं’’, संतोषजी की आंखें सजल हो गईं. उन के मुंह से आगे कुछ न निकल सका.

राधिका अपने पापा से लिपट गई. ‘‘पापा, आप कितने अच्छे हैं.’’ फिर हम लोगों के पास आ कर वह खड़ी हो गई. ऐसा लगा जैसे समुद्र के तट पर फैले बैंगनी रंग ने जीवन के आकाश में मचान बना दी हो.

Hindi Story : मिसेज मेघना राघव गुप्ता – खेल सरनेम का

Hindi Story : खूबसूरत और खिलीखिली सी मेघना औफिस में सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. जब से शाखा में मेघना ने ज्वाइन किया है, तब से ही पुरुषों को गुलाब और महिलाओं को कांटे की अनुभूति दे रही है. अरे नहीं भई, मेघना कोई फैशनपरस्त आधुनिक बाला नहीं है, जो अपने विशेष परिधानों से सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करे, वह तो कंधे तक कटे बालों की पोनी बनाए, कभी आरामदायक सूट तो कभीकभार जींस और शार्ट कुरती में नजर आने वाली आम सी लड़की है, लेकिन उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखें… उफ्फ, किसी को भी अपने भीतर बंदी बना लें.

मेघना का रंग बेशक गोरा नहीं है, लेकिन सलोना अवश्य है. ठीक वैसा ही जैसा सावन में काले बादलों का होता है. मनोहारी… सम्मोहक और अपनी तरफ खींचने वाला…

सिर्फ रूप और लावण्य ही नहीं, बल्कि एक अन्य कारण भी है, जो सब को मेघना की तरफ खींचता है. वो है उस का नाम… नहीं नहीं, नाम नहीं, बल्कि उपनाम… दरअसल, मेघना अपने नाम के साथ कोई उपनाम या जाति यानी सरनेम नहीं लगाती. भला आज के समय में भी ऐसा कहीं होता है भला? जब गलीगली में जातिधर्म के नाम पर लोग बंट रहे हैं, ऐसे में किसी साधारण आदमी का अपनी जाति के प्रति मोह नहीं दिखाना कोई साधारण बात तो नहीं.

स्टाफ की महिला कार्मिकों ने अपने तमाम प्रयास कर देख लिए, लेकिन मजाल है कि मेघना अपनी जाति के बारे में कोई सच उगल दे.

“आप को मेरी जाति में इतना इंटरेस्ट क्यों है? क्या मेरा खुद का होना काफी नहीं है?” अकसर ऐसे ही प्रतिप्रश्न दाग कर मेघना सामने वाले को बोलती बंद करने की कोशिश करती थी, लेकिन जनसाधारण की बोलती किसी पालतू तोते की जबान है क्या, जिसे आसानी से नियंत्रित कर के जब चाहो तब बंद किया जा सके? जितने मुंह उतनी बातें… शाखा में मेघना का सरनेम उस से कहीं अधिक चर्चा का विषय होने लगा था.

यह एक राष्ट्रीयकृत बैंक की मुख्य शाखा थी, जो जयपुर महानगर में स्थित थी. मेघना की पहली पोस्टिंग यहां सहायक ब्रांच मैनेजर के रूप में हुई थी. मृदु स्वभाव की मल्लिका मेघना हर समय अपने चेहरे पर आभूषण की तरह मुसकान सजाए हर ग्राहक का काम बड़ी तत्परता से निबटाती और दबाव के पलों में भी अपनेआप को सहज और सामान्य बनाए रखती. यह विशेषता भी उस के व्यक्तित्व की गरिमा को सवाया करती थी.

ब्रांच में काम करने वाली अन्य महिलाओं के लिए मेघना एक पहेली की तरह थी, जिसे बूझना तो सब चाहते थे, लेकिन शुरुआत करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था. एक दिन नव्या ने जरा साहस दिखाया. वह मेघना की हमउम्र भी थी, इसलिए भी उसे मेघना के आवरण में घुसपैठ करने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. लेनदेन के समय के बाद के कुछ सुस्त पलों में मेघना अपने मोबाइल फोन में व्यस्त थी, तभी नव्या उस के पास आई और बोली, “हेलो मेघना, तुम तो यहां नई हो ना? जयपुर घूमा क्या?” नव्या ने बात की शुरुआत करते हुए आत्मीयता दिखाई.

“घूम लेंगे. जयपुर कहां भागा जा रहा है. और वैसे भी जब 2-3 साल यहीं रहना है, तो फिर जल्दी क्या है?” मेघना ने उदासीनता से कहा, तो नव्या थोड़ी निराश हुई.

“कल छुट्टी है, चलो तुम्हें गोविंद देव के दर्शन करवा लाती हूं,” नव्या ने प्रस्ताव दिया, लेकिन मेघना ने कहीं और बिजी होने की कह कर नव्या का प्रस्ताव ठुकरा दिया.

2 दिन बाद बैंक की महिला मंडली में यही हौट टौपिक था.

“अरे, मंदिर में जाने की हिम्मत ही नहीं हुई होगी उस की. मुझे तो पहले से ही उस की जाति पर शक था,” मिसेज कपूर ने दावा किया.

“लेकिन, आजकल मंदिर में कहां कोई किसी से जातिधर्म पूछता है?” नव्या ने मिसेज कपूर की बात का विरोध किया.

“नहीं पूछता, लेकिन कहते हैं ना कि चोर की दाढ़ी में तिनका. मन ही नहीं माना होगा उस का, इसलिए खुद से ही मना कर दिया,” मीनाक्षी ने भी अपना तर्क रखा.

“कल उसे लंच पर अपने साथ बिठाते हैं, तभी कुछ पता चलेगा उस के बारे में,” नव्या ने फैसला सुनाया और सभा बरखास्ता हो गई.

अगले दिन नव्या ने कहीं और लंच पर जाने की बात कह कर एक बार फिर से महिला मंडली का प्रस्ताव खारिज कर दिया.

महिलाओं को ये उन का भारी अपमान लगा. सब ने मिल कर मेघना के खिलाफ मोरचा खोल दिया. एक तरह का असहयोग आंदोलन चलने लगा था औफिस में.

“हेलो फ्रेंड्स, कल मेरे घर पर एक छोटी सी गेट टुगेदर है. आप सब इंवाइटेड हो,” मेघना ने औफिस छोड़ने से पहले घोषणा की, तो सब का चौंकना लाजिमी था.

मेघना को तो किसी ने जवाब नहीं दिया, लेकिन सब के भीतर गहरी उथलपुथल मची हुई थी. इस में कोई शक नहीं था.
सब ने मिल कर मेघना की पार्टी अटेंड करने का फैसला किया. किसी की सचाई बाहर लाने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा ना?

तय समय पर पूरा महिला स्टाफ मेघना के घर मौजूद था. मेघना ने भी आगे बढ़ कर बहुत ही आत्मीयता के साथ उन का स्वागत किया और अपने पूरे परिवार से मिलवाया.

मेघना के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक छोटी बहन थी. यह गेट टुगेदर मेघना के मम्मीपापा की शादी की सालगिरह का था.
मेघना जब अन्य मेहमानों में व्यस्त हो गई, तो महिला मंडली उस के घर का अवलोकन करने लगी. दीवार पर लगी बाबा साहेब अंबेडकर की तसवीर देखते ही मिसेज कपूर चौंक गईं. वे नव्या और अन्य महिलाओं को लगभग खींचती हुई सी वहां ले कर आईं.

“ये देखो, मैं न कहती थी कि यह लड़की उस जाति की है,” मिसेज कपूर ने आंखें नचाते हुए कहा. वे अपनी सफलता का श्रेय किसी दूसरे को नहीं लेने देना चाहती थीं. सब ने आंखें फाड़फाड़ कर देखा. वे कभी तसवीर तो कभी मेघना को देख रही थीं.

“शक तो मुझे भी हुआ था, जब ये सब से घुलनेमिलने में आनाकानी करती थी. फिर मुझे लगा कि शायद नई है, इसलिए संकोच करती है. अब पता चला इस के संकोच का कारण. हिम्मत ही नहीं होती होगी सच का सामना करने की,” नव्या ने अपनी दलील रखी.

“अब तो सबकुछ सामने है. क्या अब भी यहां कुछ खानापीना करोगी? वापस चलें क्या?” मीनाक्षी ने कहा. सब एकदूसरे की तरफ देखने लगे. आखिर सब को यों अकारण वहां से ना जाना ही सही लगा और फिर सब की सब महिलाएं एक कोने में कुरसी ले कर बैठ गईं.

“अरे, आप लोग यहां कोने में क्यों बैठी हैं? कुछ लीजिए ना?” कहते हुए मेघना ने उन के सामने सौफ्ट ड्रिंक से भरे गिलासों वाली ट्रे कर दी. सब ने एकदूसरे की तरफ देखा, लेकिन गिलास की तरफ हाथ किसी ने भी नहीं बढ़ाया. किसी ने गला खराब होने, तो किसी ने ठंडे से एलर्जी को कारण बताया. हालांकि असल कारण से मेघना अनजान नहीं थी, इसलिए उस ने भी अधिक आग्रह नहीं किया.

खाना टेबल पर लगने की आहट होते ही महिलाओं का दल देरी होने का बहाना बनाते हुए वहां से खिसक लिया.

असली कहानी तो अब शुरू होती है. मेघना की जाति का आभास होते ही अब औफिस में उस का बायकट शुरू हो गया. न उसे लंच टाइम में इनवाइट किया जाता और ना ही उस के साथ अन्य किसी प्रकार की अंतरंगता रखी जा रही थी. औफिशियल काम के लिए जरूरी बातचीत के अतिरिक्त उन में आपस में कोई संवाद भी नहीं होता. सिर्फ नव्या ही थी, जो मेघना और शेष महिलाओं के बीच बातचीत का सेतु बनी हुई थी.

इन सब के बावजूद भी मेघना सब की बातों का मुख्य केंद्र अभी भी बनी हुई थी. कारण था उस की सहज मुसकान और बैंक के ग्राहकों में उस की बढ़ती लोकप्रियता. जो भी ग्राहक मेघना के काउंटर पर जाता, वह संतुष्ट हो कर ही लौटता था. नतीजा ये हुआ कि बैंक ने अपने स्थापना दिवस पर कुछ कर्मठ कर्मचारियों को संभाग स्तर पर सम्मानित करने का निर्णय लिया, जिन में से एक नाम मेघना का भी था.

कहना न होगा कि इस समारोह के बाद मेघना का सामाजिक दायरा और भी अधिक बढ़ गया. उस के मोबाइल में फोन नंबरों की सूची और भी अधिक लंबी हो गई और सोशल मीडिया पर आने वाले संदेशों के कारण उस के मोबाइल पर घड़ीघड़ी मैसेज अलर्ट भी पहले से कुछ अधिक बजने लगे, जिन्हें मजबूरन उसे साइलेंट करना पड़ा.

मेघना का लंच टाइम खाने के साथसाथ मिस्ड काल्स और मैसेज का जवाब देने में बीतने लगा. वैसे भी औफिस में उस के अधिक दोस्त तो थे नहीं, इसलिए वह ये काम बड़ी आसानी से कर पा रही थी. फोन पर बात करती हुई मेघना भी पूरे स्टाफ की निगाहों में रहती थी. फोन पर बात करते समय उस के चेहरे के हावभाव से हर कोई अपनी तरफ से कयास लगाता कि वह किस से बात कर रही होगी.

“आज तो मेघना मैडम के चेहरे की ललाई बता रही है कि बातचीत किसी बेहद दिल के करीब व्यक्ति से हो रही है,” एक दिन नव्या ने अंदाजा लगाया.

“हो सकता है. आखिर शादी की उम्र तो हो ही चली है. और अब तो नौकरी भी सेटल है. कोई न कोई मिल गया होगा,” मिसेज कपूर ने मुंह टेढ़ा करते हुए अपना मत रखा.

“होगा कोई भीम आर्मी का सिपाही,” मीनाक्षी के इतना कहते ही एक मिलजुला ठहाका गूंज गया.

“चलो, फाइनली मेघना को एक सरनेम तो मिलेगा,” कह कर नव्या ने ठहाके को आगे बढ़ाया.

नव्या चूंकि मेघना की हमउम्र थी, इसलिए भी उस के भीतर चल रहे परिवर्तनों को आसानी से समझ सकती थी. इन दिनों उसे महसूस हो रहा था मानो मेघना प्रेम में है. उस ने मेघना को बाथरूम में किसी के साथ वीडियो चैट करते देखा था. हालांकि नव्या उस व्यक्ति का चेहरा नहीं देख पाई थी, क्योंकि उस की आंखों के सामने मोबाइल की पीठ थी. मेघना का चेहरा उस के सामने था और उसी की भावभंगिमा से वह अंदाजा लगा पाई थी कि यह कोई प्रेमालाप चल रहा है. जैसे ही मेघना की निगाह नव्या से टकराई, उस ने झेंपते हुए वीडियो बंद कर दिया था.

“आज मैडम रंगेहाथों पकड़ी गई. अभीअभी बाथरूम में लाइव टेलीकास्ट देख कर आ रही हूं,” नव्या ने जैसे ही यह बम फोड़ा, हर तरफ अफरातफरी मच गई. सब की जिज्ञासा चरम पर पहुंच गई, लेकिन नामपता मालूम न होने के कारण यह एटम बम टांयटांय फिस्स हो गया.

ये वार चाहे खाली गया हो, लेकिन इस घटना ने नव्या को जासूस बना दिया. अब वह हर समय मेघना पर निगाह रखने लगी, लेकिन मेघना ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं, वह नव्या को हवा भी नहीं लगने दे रही थी.

“अब यार शादीवादी कर लो. तुम कहो तो देखें तुम्हारे लिए कोई?” एक दिन नव्या ने मेघना को छेड़ा.

“हांहां, क्यों नहीं. जरूर देखो. दोस्त लोग नहीं देखेंगे तो फिर और कौन देखेगा?” मेघना ने भी मुसकरा कर उत्तर दिया.

“कैसा लड़का चाहती हो अपने लिए?” नव्या ने पूछा.

“बिलकुल वैसा ही जैसा तुम अपने लिए उचित समझती हो,” कह कर मेघना ने नहले पर दहला मारा.

“यार, दिल की बात कहूं तो मुझे सांगानेर ब्रांच वाला मैनेजर राघव गुप्ता बहुत जमता है. क्या पर्सनैलिटी है यार. देखते ही दिल धक से हो जाता है, लेकिन तुम्हारे लिए… दरअसल, पता नहीं वह तुम्हारी जाति की लड़की से… मेरा मतलब समझ रही हो ना?” नव्या कहतेकहते रुकी, फिर टुकड़ोंटुकड़ों में अपनी बात पूरी की. उस की बात खत्म होते ही मेघना ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

“बात तो तुम्हारी सही है दोस्त, लेकिन पूछने में हर्ज ही क्या है?” मेघना ने कहा और नव्या को हक्कीबक्की छोड़ अपनी सीट पर चल दी.

दिन गुजरते रहे, समय बीतता रहा… आजकल मेघना हर दिन पहले से अधिक निखरी और तरोताजा नजर आने लगी थी. एक दिन उस की उंगली में सोने की अंगूठी देख कर नव्या चहक उठी.

“अरे वाह, तुम तो छुपी रुस्तम निकली. कौन है वो किस्मत वाला?” नव्या ने उत्सुकता से पूछा. मेघना केवल मुसकरा दी. उन का शोर सुन कर मीनाक्षी और मिसेज कपूर भी वहां आ गईं. वे भी मेघना की अंगूठी को छू कर देखने लगी. सोने की अंगूठी में जड़ा हीरा उन में जलन पैदा कर रहा था.

“जरूर बताएंगे और मिलवाएंगे भी. जरा सांस तो ले मेरे यार… जरा सब्र तो कर दिलदार…” मेघना ने खिलखिला कर कहा और अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

एक दिन दोपहर को बैंक का लेनदेन समय समाप्त होने के बाद मेघना ने सब को हाल में इकट्ठा किया. सब ने देखा उस के हाथ में मिठाई का डब्बा था. मेघना ने एकएक कर सब को मिठाई खिलाई और शेष डब्बा वहां रखी टेबल पर रख दिया. मेघना रहस्यमई मुसकान के साथ सब को मिठाई खाते हुए देख रही थी.

“अब मिठाई का राज खोल भी दो. किस खुशी में मुंह मीठा करवाया जा रहा है?” बैंक मैनेजर ने पूछा.

“इस की शादी पक्की हो गई होगी,” मिसेज कपूर ने अंदाजा लगाते हुए कहा, तो मेघना के होंठों की मुसकान और भी अधिक चौड़ी हो गई. इतनी अधिक कि उस की सफेद दंतपंक्ति झिलमिलाने लगी.

“आप ने सही अनुमान लगाया मिसेज कपूर. अगले सप्ताह शनिवार को मेरी शादी है. आप सब लोगों को जरूर आना है,” कहती हुई मेघना के चेहरे का गुलाबी रंग किसी से छिपा नहीं था.

मेघना ने एक बैग में से शादी के कार्डों का बंडल निकाला और एकएक कर सब के हाथों में थमाती गई. जैसे ही मेघना ने मिसेज कपूर को कार्ड दिया, उन्होंने लपक कर उसे थाम लिया और सब से पहले होने वाले वर का नाम पढ़ने लगी.

“राघव गुप्ता, बैंक मैनेजर, सांगानेर ब्रांच…” नाम देखते ही उन की आंखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं. उधर नव्या और मीनाक्षी का भी यही हाल था. मेघना अब भी मुसकरा रही थी.

“यदि आप अनुमति दें तो मैं आज जरा जल्दी घर जाना चाहती हूं, मुझे शादी के लिए शापिंग करनी है.”

मेघना ने बैंक मैनेजर से आग्रह किया. उन के हां के इशारे के बाद मेघना महिला मंडली की तरफ मुड़ी और कहा, “आशा करती हूं कि आप लोगों को मेरे यहां खानेपीने में कोई परेशानी नहीं होगी. अब तो मैं मिसेज मेघना राघव गुप्ता होने जा रही हूं,” मेघना ने कहा और सब को धन्यवाद कहती हुई बैंक से बाहर निकल गई.

सब मिसेज मेघना राघव गुप्ता को जाते हुए अवाक देख रही थीं.

Romantic Story : दिल चाहता है – दिल पर क्यों नहीं लग पाता उम्र का कोई बंधन

Romantic Story : जुलाई का महीना है. सुबह की सैर  से वापस आ कर मैं ने कपड़े  बदले. छाता होने के बाद भी कपड़े कुछ तो भीग ही जाते हैं. चाय का अपना कप ले कर मैं बालकनी में आ कर चेयर पर बैठ गई और सुबहसुबह नीचे खेल रही छोटी बच्चियों पर नजर डाली. मन में स्नेह की एक लहर सी उठी. बहुत अच्छी लगती हैं मुझे हंसतीखेलती छोटीछोटी बच्चियां. जब भी इन्हें देखती हूं, दिल चाहता है सब छोड़ कर नीचे उतर जाऊं और इन बच्चियों के खेल में शामिल हो जाऊं, पर जानती हूं यह संभव नहीं है.

इस उम्र में बारिश में भीगते हुए छोटी बच्चियों के साथ पानी में छपाकछपाक करते हुए सड़क पर कूदूंगी तो हर कोई मुझे पागल समझेगा, कहेगा, इस उम्र में बचपना दिखा रही है, खुद को बच्ची समझ रही है. अब अपने मन में छिपे बच्चे के बचपन की इस कसक को दिखा तो सकती नहीं, मन मार कर बच्चियों को खेलते देखते रह जाती हूं. कितने सुहाने लगते हैं इन के खेल, कितने भरोसे के साथ हाथ पकड़ते हैं ये एकदूसरे का लेकिन बड़े होने पर न तो वे खेल रहते हैं न खिलखिलाहट, न वैसा विश्वास और साथ, कहां चला जाता है यह सब?

अभी सैर पर थी तो पार्क में कुछ युवा जोड़े एकदूसरे में खोए बैठे थे. मुंबई में जगह की कमी शायद सब से ज्यादा इन्हीं जोड़ों को खलती है. सुबहसुबह भी लाइन से बैठे रहते हैं. बराबर वाला जोड़ा क्या कर रहा है, इस की चिंता उन्हें नहीं होती. हां, देखने वाले अपने मन में, कितने बेशर्म हैं ये युवा, सोचते कुढ़ते हुए अपनी सैर पूरी करते हैं, लोगों का ध्यान अकसर उन्हीं पर होता है लेकिन वे जोड़े किसी की चिंता में अपना समय खराब नहीं करते. सैर की मेरी साथी भी जब अकसर उन्हें कोस रही होती है, मैं मन ही मन सोच रही होती हूं कि आह, यह उम्र क्यों चली गई, मीठेमीठे सपनों, सुंदर एहसासों की उम्र, अब क्यों हम अपनी जिम्मेदारियों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि यह सबकुछ बेमानी हो जाता है.

मेरा तो आज भी दिल यही चाहता है कि अनिरुद्ध जब भी अपने काम से फ्री हों, हम दोनों ऐसे ही बाइक पर घूमने निकल जाएं, उन की कमर में हाथ डाल कर बैठना कितना अच्छा लगता था. अब तो कार में गाने सुनते हुए, कभी चुपचाप, कभी दोचार बात करते हुए सफर कटता है और हम अपना काम निबटा कर घर लौट आते हैं.

कई बार मैं स्नेहा और यश से जब कहती हूं, ‘चलो, अपना फोन और कंप्यूटर बंद करो, कहीं बाहर घूमने चलते हैं. थोड़ा साथ बैठेंगे या पिकनिक की बात करती हूं तो दोनों कहेंगे, ‘स्टौप इट मौम, क्या बच्चों जैसी बात करती हैं आप, इस उम्र में पिकनिक का शौक चढ़ा है आप को, हमें और भी काम हैं.’

मैं पूछती हूं, ‘क्या काम हैं छुट्टी के दिन?’ तो उन के काम यही होते हैं, सोना, टीवी देखना या अपने दोस्तों के साथ किसी मौल में घूमना. फिर मेरा दिल जो चाहता है, वह दिल में ही रह जाता है. कालेज से लौटती हुई अपने घर जाने से पहले सड़क पर खड़ी लड़कियों को कहकहे लगाती देखती हूं तो दिल चाहता है अपनी सहेलियों को बुला कर ऐसे ही खूब दिल खोल कर हंसू, ठहाके लगाऊं लेकिन अब न वे सहेलियां हैं न वह समय.

अब तो हमें वे मिलती भी हैं तो बस पति और बच्चों की शिकायतें, अपनीअपनी बीमारियों की, महंगाई की, रिश्तेदारों की परेशानियां क्यों हम ऐसे खुश रहना, बेफिक्री से समय बिताना भूल जाती हैं.

पिछले संडे की बात है. अनिरुद्ध नाश्ते के बाद फ्री थे. मैं ने कहा, ‘चलो, अनि, आज कार छोड़ कर बारिश में कहीं बाइक पर चलते हैं.’

फट से जवाब आया, ‘पागल हो गई हो क्या, नीरा? हड्डियां तुड़वानी हैं क्या? बाइक स्लिप हो गई तो, कितनी बारिश हो रही है?’

‘अनि, पहले भी तो जाते थे हम दोनों.’

‘पहले की बात और थी.’

‘क्यों, पहले क्या बात थी जो अब नहीं है?’ कह कर मैं ने उन के गले में बांहें डाल दीं, ‘अनि, मेरा दिल करता है हम अब भी बारिश में थोड़ा घूम कर रोमांस करें, एकदूसरे में खो जाएं.’

अनि हंसते हुए बोले, ‘यह सब तो रात में भी हो सकता है, उस के लिए बारिश में भीगने की क्या जरूरत है.’

‘कुछ चैंज होगा, अनि.’

‘क्या चैंज होगा? यही कि मुझे जुकाम हो जाएगा और मुंबई की सड़कों पर बाइक पर बैठ कर तुम्हें कमरदर्द. डार्लिंग, दिल को काबू में रखो, दिल का क्या है.’

मैं मन मार कर चुप रह गई थी. यह नहीं समझा पाई थी कि दिल करता है हम भीग जाएं, थोड़ी ठंड लगे, आ कर कपड़े बदल कर साथ कौफी पीएं, फिर बैडरूम में चले जाएं, फिर बस, इस के आगे नहीं समझा पाऊंगी.

कभीकभी तो हद हो जाती है, दिल करता है खुद ही अकेले कार ले कर लौंगड्राइव पर निकल जाऊं, कहीं दूर खुले रेस्तरां में बैठ कर कौफी पीऊं, फिर वहां कोई मिल जाए जो मेरा अच्छा दोस्त बन जाए, बस एक दोस्त, इस के आगे कुछ नहीं, जो मुझ से ढेर सी बातें करे, जो मेरी ढेर सी बातें सुने, अभी मैं और पता नहीं क्याक्या सोचती कि जम्हाई लेते हुए अनिरुद्ध आए और बोले, ‘‘यहां क्या कर रही हो सुबहसुबह? चाय मिलेगी?’’ और मैं यह सोचती हुई कि सच ही तो कहते हैं अनि, दिल का क्या है, दिल तो पता नहीं क्याक्या सोचता है, उठ कर अपने रोज के कामों में व्यस्त हो गई.

Love Story : खूबसूरत – असलम को कैसे हुआ मुमताज की खूबसूरती का एहसास

Love Story : असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था.

असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी.

असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया. बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा. ‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं.

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी. ‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई.

इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो. दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी.

एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी. असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया. असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया. मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

Best Romantic Story : अकेलापन – क्या राजेश दूर कर पाया उस का अकेलापन ?

Best Romantic Story : आज मेरा 32वां जन्मदिन था और मैं यह दिन राजेश के साथ गुजारना चाहती थी. उन के घर 10 बजे तक पहुंचने के लिए मैं ने सुबह 6 बजे ही कार से सफर शुरू कर दिया.

राजेश पिछले शनिवार को अपने घर गए थे लेकिन तेज बुखार के कारण वह सोमवार को वापस नहीं लौटे. आज का पूरा दिन उन्होंने मेरे साथ गुजारने का वादा किया था. अपने जन्मदिन पर उन से न मिल कर मेरा मन सचमुच बहुत दुखी होता.

राजेश को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार किए मुझे करीब 2 साल बीत चुके हैं. उन के दोनों बेटों सोनू और मोनू व पत्नी सरोज से आज मैं पहली बार मिलूंगी.

राजेश के घर जाने से एक दिन पहले हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था वह रास्ते भर मेरे जेहन में गूंजता रहा.

‘मैं शादी कर के घर बसाना चाहती हूं…मां बनना चाहती हूं,’ उन की बांहों के घेरे में कैद होने के बाद मैं ने भावुक स्वर में अपने दिल की इच्छा उन से जाहिर की थी.

‘कोई उपयुक्त साथी ढूंढ़ लिया है?’ उन्होंने मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते हुए छेड़ा.

उन की छाती पर बनावटी गुस्से में कुछ घूंसे मारने के बाद मैं ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हारे साथ घर बसाने की बात कर रही हूं.’

‘धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी दोहराना चाहती हो?’

‘मेरी बात को मजाक में मत उड़ाओ, प्लीज.’

‘निशा, ऐसी इच्छा को मन में क्यों स्थान देती हो जो पूरी नहीं हो सकती,’ अब वह भी गंभीर हो गए.

‘देखिए, मैं सरोज को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी. अपनी पूरी तनख्वाह उसे दे दिया करूंगी. मैं अपना सारा बैंकबैलेंस बच्चों के नाम कर दूंगी… उन्हें पूर्ण आर्थिक सुरक्षा देने…’

उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखा और उदास लहजे में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं कि सरोज को तलाक नहीं दिया जा सकता. मैं चाहूं भी तो ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं.’

‘पर क्यों?’ मैं ने तड़प कर पूछा.

‘तुम सरोज को जानती होतीं तो यह सवाल न पूछतीं.’

‘मैं अपने अकेलेपन को जानने लगी हूं. पहले मैं ने सारी जिंदगी अकेले रहने का मन बना लिया था पर अब सब डांवांडोल हो गया है. तुम मुझे सरोज से ज्यादा चाहते हो?’

‘हां,’ उन्होंने बेझिझक जवाब दिया था.

‘तब उसे छोड़ कर तुम मेरे हो जाओ,’ उन की छाती से लिपट कर मैं ने अपनी इच्छा दोहरा दी.

‘निशा, तुम मेरे बच्चे की मां बनना चाहती हो तो बनो. अगर अकेली मां बन कर समाज में रहने का साहस तुम में है तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा. बस, तुम सरोज से तलाक लेने की जिद मत करो, प्लीज. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा,’ उन की आंखों में आंसू झिलमिलाते देख मैं खामोश हो गई.

सरोज के बारे में राजेश ने मुझे थोड़ी सी जानकारी दे रखी थी. बचपन में मातापिता के गुजर जाने के कारण उसे उस के मामा ने पाला था. 8वीं तक शिक्षा पाई थी. रंग सांवला और चेहरामोहरा साधारण सा था. वह एक कुशल गृहिणी थी. अपने दोनों बेटों में उस की जान बसती थी. घरगृहस्थी के संचालन को ले कर राजेश ने उस के प्रति कभी कोई शिकायत मुंह से नहीं निकाली थी.

सरोज से मुलाकात करने का यह अवसर चूकना मुझे उचित नहीं लगा. इसलिए उन के घर जाने का निर्णय लेने में मुझे ज्यादा कठिनाई नहीं हुई.

राजेश इनकार न कर दें, इसलिए मैं ने उन्हें अपने आने की कोई खबर फोन से नहीं दी थी. उस कसबे में उन का घर ढूंढ़ने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. उस एक- मंजिला साधारण से घर के बरामदे में बैठ कर मैं ने उन्हें अखबार पढ़ते पाया.

मुझे अचानक सामने देख कर वह पहले चौंके, फिर जो खुशी उन के होंठों पर उभरी, उस ने सफर की सारी थकावट दूर कर के मुझे एकदम से तरोताजा कर दिया.

‘‘बहुत कमजोर नजर आ रहे हो, अब तबीयत कैसी है?’’ मैं भावुक हो उठी.

‘‘पहले से बहुत बेहतर हूं. जन्मदिन की शुभकामनाएं. तुम्हें सामने देख कर दिल बहुत खुश हो रहा है,’’ राजेश ने मिलाने के लिए अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.

राजेश से जिस पल मैं ने हाथ मिलाया उसी पल सरोज ने घर के भीतरी भाग से दरवाजे पर कदम रखा.

आंखों से आंखें मिलते ही मेरे मन में तेज झटका लगा.

सरोज की आंखों में अजीब सा भोलापन था. छोटी सी मुसकान होंठों पर सजा कर वह दोस्ताना अंदाज में मेरी तरफ देख रही थी.

जाने क्यों मैं ने अचानक अपने को अपराधी सा महसूस किया. मुझे एहसास हुआ कि राजेश को उस से छीनने के मेरे इरादे को उस की आंखों ने मेरे मन की गहराइयों में झांक कर बड़ी आसानी से पढ़ लिया था.

‘‘सरोज, यह निशा हैं. मेरे साथ दिल्ली में काम करती हैं. आज इन का जन्मदिन भी है. इसलिए कुछ बढि़या सा खाना बना कर इन्हें जरूर खिलाना,’’ हमारा परिचय कराते समय राजेश जरा भी असहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘सोनू और मोनू के लिए हलवा बनाया था. वह बिलकुल तैयार है और मैं अभी आप को खिलाती हूं,’’ सरोज की आवाज में भी किसी तरह का खिंचाव मैं ने महसूस नहीं किया.

‘‘थैंक यू,’’ अपने मन की बेचैनी के कारण मैं कुछ और ज्यादा नहीं कह पाई.

‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कह कर सरोज तेजी से मुड़ी और घर के अंदर चली गई.

राजेश के सामने बैठ कर मैं उन से उन की बीमारी का ब्योरा पूछने लगी. फिर उन्होंने आफिस के समाचार मुझ से पूछे. यों हलकेफुलके अंदाज में वार्तालाप करते हुए मैं सरोज की आंखों को भुला पाने में असमर्थ हो रही थी.

अचानक राजेश ने पूछा, ‘‘निशा, क्या तुम सरोज से अपने और मेरे प्रेम संबंध को ले कर बातें करने का निश्चय कर के यहां आई हो?’’

एकदम से जवाब न दे कर मैं ने सवाल किया, ‘‘क्या तुम ने कभी उसे मेरे बारे में बताया है?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हमारे प्रेम के बारे में जानती है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने अपना फैसला राजेश को बता दिया, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं हो तो मैं सरोज से खुल कर बातें करना चाहूंगी. आगे की जिंदगी तुम से दूर रह कर गुजारने को अब मेरा दिल तैयार नहीं है.’’

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कहूंगा. अब तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ. सरोज चाय लाती ही होगी.’’

राजेश के पुकारने पर सोनू और मोनू दोनों भागते हुए बाहर आए. दोनों बच्चे मुझे स्मार्ट और शरारती लगे. मैं उन से उन की पढ़ाई व शौकों के बारे में बातें करते हुए घर के भीतर चली गई.

घर बहुत करीने से सजा हुआ था. सरोज के सुघड़ गृहिणी होने की छाप हर तरफ नजर आ रही थी.

मेरे मन में उथलपुथल न चल रही होती तो सरोज के प्रति मैं ज्यादा सहज व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करती. वह मेरे साथ बड़े अपनेपन से पेश आ रही थी. उस ने मेरी देखभाल और खातिर में जरा भी कमी नहीं की.

उस की बातचीत का बड़ा भाग सोनू और मोनू से जुड़ा था. उन की शरारतों, खूबियों और कमियों की चर्चा करते हुए उस की जबान जरा नहीं थकी. वे दोनों बातचीत का विषय होते तो उस का चेहरा खुशी और उत्साह से दमकने लगता.

हलवा बहुत स्वादिष्ठ बना था. साथसाथ चाय पीने के बाद सरोज दोपहर के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई.

‘‘सरोज के व्यवहार से तो अब ऐसा नहीं लगता है कि उसे तुम्हारे और मेरे प्रेम संबंध की जानकारी नहीं है,’’ मैं ने अपनी राय राजेश को बता दी.

‘‘सरोज सभी से अपनत्व भरा व्यवहार करती है, निशा. उस के मन में क्या है, इस का अंदाजा उस के व्यवहार से लगाना आसान नहीं,’’ राजेश ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘अपनी 12 सालों की विवाहित जिंदगी में सरोज ने क्या कभी तुम्हें अपने दिल में झांकने दिया है?’’

‘‘कभी नहीं…और यह भी सच है कि मैं ने भी उसे समझने की कोशिश कभी नहीं की.’’

‘‘राजेश, मैं तुम्हें एक संवेदनशील इनसान के रूप में पहचानती हूं. सरोज के साथ तुम्हारे इस रूखे व्यवहार का क्या कारण है?’’

‘‘निशा, तुम मेरी पसंद, मेरा प्यार हो, जबकि सरोज के साथ मेरी शादी मेरे मातापिता की जिद के कारण हुई. उस के पिता मेरे पापा के पक्के दोस्त थे. आपस में दिए वचन के कारण सरोज, एक बेहद साधारण सी लड़की, मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे साथ आ जुड़ी थी. वह मेरे बच्चों की मां है, मेरे घर को चला रही है, पर मेरे दिल में उस ने कभी जगह नहीं पाई,’’ राजेश के स्वर की उदासी मेरे दिल को छू गई.

‘‘उसे तलाक देते हुए तुम कहीं गहरे अपराधबोध का शिकार तो नहीं हो जाओगे?’’ मेरी आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘निशा, तुम्हारी खुशी की खातिर मैं वह कदम उठा सकता हूं पर तलाक की मांग सरोज के सामने रखना मेरे लिए संभव नहीं होगा.’’

‘‘मौका मिलते ही इस विषय पर मैं उस से चर्चा करूंगी.’’

‘‘तुम जैसा उचित समझो, करो. मैं कुछ देर आराम कर लेता हूं,’’ राजेश बैठक से उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं रसोई में सरोज के पास चली आई.

हमारे बीच बातचीत का विषय सोनू और मोनू ही बने रहे. एक बार को मुझे ऐसा भी लगा कि सरोज शायद जानबूझ कर उन के बारे में इसीलिए खूब बोल रही है कि मैं किसी दूसरे विषय पर कुछ कह ही न पाऊं.

घर और बाहर दोनों तरह की टेंशन से निबटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर मुझे देख कर सरोज तनाव, नाराजगी, गुस्से या डर का शिकार बनी होती तो मुझे उस से मनचाहा वार्तालाप करने में कोई असुविधा न महसूस होती.

उस का साधारण सा व्यक्तित्व, उस की बड़ीबड़ी आंखों का भोलापन, अपने बच्चों की देखभाल व घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों के प्रति उस का समर्पण मेरे रास्ते की रुकावट बन जाते.

मेरी मौजूदगी के कारण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का दबाव मुझे नजर नहीं आया. हमारे बीच हो रहे वार्तालाप की बागडोर अधिकतर उसी के हाथों में रही. जो शब्द उस की जिंदगी में भारी उथलपुथल मचा सकते थे वे मेरी जबान तक आ कर लौट जाते.

दोपहर का खाना सरोज ने बहुत अच्छा बनाया था, पर मैं ने बड़े अनमने भाव से थोड़ा सा खाया. राजेश मेरे हावभाव को नोट कर रहे थे पर मुंह से कुछ नहीं बोले. अपने बेटों को प्यार से खाना खिलाने में व्यस्त सरोज हम दोनों के दिल में मची हलचल से शायद पूरी तरह अनजान थी.

कुछ देर आराम करने के बाद हम सब पास के पार्क में घूमने पहुंच गए. सोनू और मोनू झूलों में झूलने लगे. राजेश एक बैंच पर लेटे और धूप का आनंद आंखें मूंद कर लेने लगे.

‘‘आइए, हम दोनों पार्क में घूमें. आपस में खुल कर बातें करने का इस से बढि़या मौका शायद आगे न मिले,’’ सरोज के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मैं मन ही मन चौंक पड़ी.

उस की भोली सी आंखों में झांक कर अपने को उलझन का शिकार बनने से मैं ने खुद को इस बार बचाया और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘सरोज, मैं सचमुच तुम से कुछ जरूरी बातें खुल कर करने के लिए ही यहां आई हूं.’’

‘‘आप की ऐसी इच्छा का अंदाजा मुझे हो चुका है,’’ एक उदास सी मुसकान उस के होंठों पर उभर कर लुप्त हो गई.

‘‘क्या तुम जानती हो कि मैं राजेश से बहुत प्रेम करती हूं?’’

‘‘प्रेम को आंखों में पढ़ लेना ज्यादा कठिन काम नहीं है, निशाजी.’’

‘‘तुम मुझ से नाराज मत होना क्योंकि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

‘‘मैं आप से नाराज नहीं हूं. सच तो यह है कि मैं ने इस बारे में सोचविचार किया ही नहीं है. मैं तो एक ही बात पूछना चाहूंगी,’’ सरोज ने इतना कह कर अपनी भोली आंखें मेरे चेहरे पर जमा दीं तो मैं मन में बेचैनी महसूस करने लगी.

‘‘पूछो,’’ मैं ने दबी सी आवाज में उस से कहा.

‘‘वह 14 में से 12 दिन आप के साथ रहते हैं, फिर भी आप खुश और संतुष्ट क्यों नहीं हैं? मेरे हिस्से के 2 दिन छीन कर आप को कौन सा खजाना मिल जाएगा?’’

‘‘तुम्हारे उन 2 दिनों के कारण मैं राजेश के साथ अपना घर  नहीं बसा सकती हूं, अपनी मांग में सिंदूर नहीं भर सकती हूं,’’ मैं ने चिढ़े से लहजे में जवाब दिया.

‘‘मांग के सिंदूर का महत्त्व और उस की ताकत मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ उस के होंठों पर उभरी व्यंग्य भरी मुसकान ने मेरे अपराधबोध को और भी बढ़ा दिया.

‘‘राजेश सिर्फ मुझे प्यार करते हैं, सरोज. हम तुम्हें कभी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करने देंगे, पर तुम्हें, उन्हें तलाक देना ही होगा,’’ मैं ने कोशिश कर के अपनी आवाज मजबूत कर ली.

‘‘वह क्या कहते हैं तलाक लेने के बारे में?’’ कुछ देर खामोश रह कर सरोज ने पूछा.

‘‘तुम राजी हो तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘मुझे तलाक लेनेदेने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती है, निशाजी. इस बारे में फैसला भी उन्हीं को करना होगा.’’

‘‘वह तलाक चाहेंगे तो तुम शोर तो नहीं मचाओगी?’’

मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए सरोज चलतेचलते रुक गई. उस ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए. इस पल उस से नजर मिलाना मुझे बड़ा कठिन महसूस हुआ.

‘‘निशाजी, अपने बारे में मैं सिर्फ एक बात आप को इसलिए बताना चाहती हूं ताकि आप कभी मुझे ले कर भविष्य में परेशान न हों. मेरे कारण कोई दुख या अपराधबोध का शिकार बने, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘सरोज, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं, पर परिस्थितियां ही कुछ…’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी बात कहना जारी रखा, ‘‘अकेलेपन से मेरा रिश्ता अब बहुत पुराना हो गया है. मातापिता का साया जल्दी मेरे सिर से उठ गया था. मामामामी ने नौकरानी की तरह पाला. जिंदगी में कभी ढंग के संगीसाथी नहीं मिले. खराब शक्लसूरत के कारण पति ने दिल में जगह नहीं दी और अब आप मेरे बच्चों के पिता को उन से छीन कर ले जाना चाहती हैं.

‘‘यह तो कुदरत की मेहरबानी है कि मैं ने अकेलेपन में भी सदा खुशियों को ढूंढ़ निकाला. मामा के यहां घर के कामों को खूब दिल लगा कर करती. दोस्त नहीं मिले तो मिट्टी के खिलौनों, गुडि़या और भेड़बकरियों को अपना साथी मान लिया. ससुराल में सासससुर की खूब सेवा कर उन के आशीर्वाद पाती रही. अब सोनूमोनू के साथ मैं बहुत सुखी और संतुष्ट हूं.

‘‘मेरे अपनों ने और समाज ने कभी मेरी खुशियों की फिक्र नहीं की. अपने अकेलेपन को स्वीकार कर के मैं ने खुद अपनी खुशियां पाई हैं और मैं उन्हें विश्वसनीय मानती हूं. उदासी, निराशा, दुख, तनाव और चिंताएं मेरे अकेलेपन से न कभी जुड़ी हैं और न जुड़ पाएंगी. मेरी जिंदगी में जो भी घटेगा उस का सामना करने को मैं तैयार हूं.’’

मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. राजेश ठीक ही कहते थे कि सरोज से तलाक के बारे में चर्चा करना असंभव था. बिलकुल ऐसा ही अब मैं महसूस कर रही थी.

सरोज के लिए मेरे मन में इस समय सहानुभूति से कहीं ज्यादा गहरे भाव मौजूद थे. मेरा मन उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाने का किया और ऐसा ही मैं ने किया भी.

उस का हाथ पकड़ कर मैं राजेश की तरफ चल पड़ी. मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, पर मन में बहुत कुछ चल रहा था.

सरोज से कुछ छीनना किसी भोले बच्चे को धोखा देने जैसा होगा. अपने अकेलेपन से जुड़ी ऊब, तनाव व उदासी को दूर करने के लिए मुझे सरोज से सीख लेनी चाहिए. उस की घरगृहस्थी का संतुलन नष्ट कर के अपनी घरगृहस्थी की नींव मैं नहीं डालूंगी. अपनी जिंदगी और राजेश से अपने प्रेम संबंध के बारे में मुझे नई दृष्टि से सोचना होगा, यही सबकुछ सोचते हुए मैं ने साफ महसूस किया कि मैं पूरी तरह से तनावमुक्त हो भविष्य के प्रति जोश, उत्साह और आशा प्रदान करने वाली नई तरह की ऊर्जा से भर गई हूं.

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