मुंबई के मलाड इलाके के एक बार में बैठा वीर और उस का गैंग शराब के नशे में टुन्न हो कर अचानक से परम ज्ञानी बन गया था. बार के मालिक सनी अरोड़ा का दिमाग घूम रहा था. वह कई बार अपने वेटर्स को इशारे कर चुका था कि अब पेमेंट करवा ले. नशे में टुन्न हो कर अकसर यह गैंग बिना पैसे दिए ही बार से निकल जाता था, टोकने पर कहता, ‘अरे, पा जी, कल फिर आएंगे, सालों के ग्राहक हैं, कल ले लेना.’

सनी इन सब से पंगा भी नहीं लेना चाहता था. बेकार के लोग थे. सब के सब दिनरात फ़ालतू के हंगामे करते. अभी तो कुछ दिनों से यह गैंग कुछ ज़्यादा ही शेर हो गया था. एक लोकल छुटभैया नेता के साथ ज़रा सा उठनाबैठना क्या हुआ, गैंग के सातों लड़के अपनेआप को कोई बहुत बड़ा गैंगस्टर समझने लगे थे.

वेटर बिल की ट्रे ले कर वीर की टेबल पर रख आया और दूर जा कर खड़ा हो गया. वीर के साथी उमेश ने बिल देखा, ‘अरे यार, 7 हज़ार रुपए का बिल है. इतने पैसे किस के पास हैं?’

सब का नशा अचानक उतर गया. वीर ने चारों तरफ नज़र डाली. कोने की टेबल पर एक युवा जोड़ा अपनी बातों में खोया हुआ था. वीर बहकते क़दमों से उन की तरफ बढ़ा. युवा जोड़ा उसे देख कर चौंका, सहमा. वीर ने दादागीरी से पूछा, “क्या नाम है? यहां क्या कर रहे हो?”

लड़का तुरंत अकड़ से बोला, “तुम से मतलब?”

“हां, है मतलब. चल बता, यहां क्या कर रहा है?”

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