टनटन... इंटरवल की घंटी बजते ही मैं ने अपने बैग से टिफिन निकाल कर जैसे ही खोला, आम के अचार की खुशबू पूरे क्लासरूम में बिखर गई. मेरी बैंच से 3 बैंच दूर बैठी पूजा टिफिन पर लपकते हुए बोली,"यार काव्या, आज तू आलू के परांठे और आम का अचार लाई है न? सच बोलूं यार, आम के अचार का यह स्वाद कहीं नहीं मिलता. वसुधा मिस के हाथों में जादू है. तू कितनी लकी है यार, तुझे तो कितना स्वादिष्ठ खाना खाने को मिलता है. एक मैं हूं, जिसे रोजरोज होस्टल का सड़ा सा खाना खाना पड़ता है.”

‘वसुधा मिस’ यानी कि मेरी मम्मीजी. मैं नैनीताल के उसी कौनवेंट स्कूल में पढ़ती हूं जहां मेरी मम्मी बायोलौजी की अध्यापिका हैं. मैं पूजा को चटखारे ले कर आम के अचार के साथ आलू के परांठे के बड़ेबड़े कौर खाते हुए देखती रही. मगर उस की बातें सुन कर मेरी भूख ही खत्म हो गई,'लकी और मैं? हुंह...यदि मैं लकी होती तो क्या पापा मुझे इतनी जल्दी छोड़ कर चले जाते?'

“अरे तू भी तो कुछ खा, इंटरवल के बाद कैमिस्ट्री की लैब है. तू ने असाइनमैंट कर लिए क्या? अच्छा सुन...तू हरबेरियम फाइल बनाने में मेरी हैल्प कर देगी प्लीज. तेरी तो मम्मी ही टीचर हैं. तुझे तो प्रैक्टिकल ऐग्जाम में ऐग्जामिनर वैसे ही पूरे नंबर दे देगा.”

पूजा हीही... कर हंस दी और मेरे भीतर क्रोध की चिनगारी सुलग उठी,'जिसे भी देखो, बस मम्मी का ही गुणगान करता रहता है. वसुधा मिस ऐसी...वसुधा मिस वैसी...जैसे मम्मी से अलग मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं. अब ऐग्जामिनर मुझे पूरे नंबर भी केवल इसलिए देगा क्योंकि मेरी मम्मी इस स्कूल में पढ़ाती हैं. इस का तो अर्थ यह है कि अब तक जो मुझे हर सबजैक्ट में इतने अच्छे नंबर मिलते हैं वे केवल मम्मी की वजह से मिलते हैं, मेरी अपनी मेहनत का कोई क्रेडिट नहीं...'

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