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सत्ता का लालच : मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस छोड़ी

पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस का दामन छोड़ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना जौइन कर ली. उन को लगता है कि शिंदे सरकार में उन की अच्छी पूछ होगी और कोई बड़ा पद उन को औफर होगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, अनिल एंटनी, हार्दिक पटेल जैसे कई युवा नेता जो कभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड का हिस्सा हुआ करते थे, वे भी कांग्रेस से यही सोच कर अलग हुए कि अन्य पार्टियां और बीजेपी उन को सिरआंखों पर बिठाएगी, लेकिन एकाध को छोड़ किसी की भी ऊंची महत्त्वाकांक्षा परवान नहीं चढ़ी. कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे लोग तो कांग्रेस छोड़ कर न घर के रहे न घाट के. हिमंता बिस्वा शर्मा जरूर असम का मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं.

दरअसल, युवा नेताओं में जल्दीजल्दी ऊंची कुरसी पा लेने की छटपटाहट है. पार्टी कार्यकर्ता की तरह जमीन से जुड़े रह कर जनसेवा का भाव मन में है नहीं. राहुल गांधी जब आम आदमी के बीच आम आदमी की ही तरह उठतेबैठते हैं, उन के साथ पत्तल में खाना खा लेते हैं या उन के झोंपड़े में रात गुजारने को तैयार हो जाते हैं, तो राजघरानों से आए इन युवा नेताओं को यह बड़ा अनकंफर्टेबल लगता है. वे न तो आम आदमी से जुड़ पाते हैं, न उन के साथ जमीन पर बैठ पाते हैं. ऐसे में बड़ा पद पाने की लालसा में अपना घर छोड़ कर दूसरे के घर जा कर बसने से भी इन को कुछ ख़ास फायदा मिलता नहीं है.

बीजेपी में अनेक बड़े नेता ऐसे हैं जो कभी पार्टी कार्यालयों और आयोजनों में दरियां बिछाने का काम करते थे. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मैं दरी बिछाने के काम से आगे बढ़ा और देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा. मोदी के अलावा बीजेपी में अनेक नेता हैं जो कार्यकर्ता के तौर पर बरसों पार्टी का काम करते रहे.

बूथ स्तर पर, मंडल स्तर पर, जिला और प्रदेश स्तर पर सालोंसाल काम करने के बाद आज वे बड़े पदों तक पहुंचे हैं, तो बड़ीबड़ी महत्त्वाकांक्षाएं मन में पाल कर कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आने वाले इन नेताओं के प्रति उन की दृष्टि क्या होगी, यह समझना मुश्किल नहीं है. शुरूशुरू में भले कांग्रेस को कमजोर करने की नीयत से ऐसे नेताओं का स्वागत भाजपा अपने घर में जोरशोर से करती दिखे, मगर आगे चल कर इन नेताओं का क्या हश्र होगा, यह देखना भी दिलचस्प रहेगा.

जिन के बापदादा कांग्रेस में रहे, जिन्होंने कांग्रेस से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया, जब वे उसी के वफादार न हुए और उस की विचारधारा को ही आत्मसात न कर पाए, तो वे किसी दूसरी पार्टी के वफादार हो कर उस की विचारधारा पर चलने लगेंगे, ऐसा कैसे संभव है? यह तो उन की लालची मानसिकता, जल्दीजल्दी सबकुछ पा लेने की हवस है जो बेपेंदे के लोटे की तरह वे इधर से उधर लुढ़कते रहते हैं.

आज राहुल गांधी के साथ पुराने युवा नेताओं में से केवल सचिन पायलट ही बचे हैं. जब राहुल गांधी ने 2004 में अपनी चुनावी राजनीति शुरू की, तो वे ‘बाबा ब्रिगेड’ कहलाने वाले लोगों से घिरे हुए थे. मिलिंद देवड़ा से पहले कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आज़ाद, अश्विनी कुमार, हिमंता बिस्व शर्मा, आरपीएन सिंह, अनिल एंटनी, हार्दिक पटेल और ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़ चुके हैं.

मिलिंद देवड़ा का परिवार पिछले 55 सालों से कांग्रेस के साथ था. उन के पिता मुरली देवड़ा गांधी परिवार के बहुत करीबी थे. कांग्रेस की सरकार में मुरली देवड़ा पैट्रोलियम मंत्री थे. उन के बाद कांग्रेस ने परंपरागत सीट साउथ मुंबई उन्हीं के बेटे मिलिंद देवड़ा को दी. यहां से वे 2 बार जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे.

हाल ही में कांग्रेस के संगठन फेरबदल में मिलिंद देवड़ा को संयुक्त कोषाध्यक्ष भी बनाया गया था. वे राहुल गांधी के विदेशी कार्यक्रमों से भी करीब से जुड़े रहे हैं और भारत जोड़ो यात्रा में भी साथ रहे. मगर जरा सी लालच के चलते बरसों पुराना रिश्ता तोड़ कर वे शिंदे गुट में शामिल हो गए. सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने आगामी लोकसभा चुनाव में साउथ मुंबई की सीट देवड़ा को देने का वादा किया है. देवड़ा के इस कदम पर संजय राउत चुटकी लेते हुए कहते हैं, ‘विचार-विचारधारा अब कुछ नहीं रहा है, सब सत्ता की राजनीति है, खोके की राजनीति है और कुछ नहीं.’

मिलिंद देवड़ा से पहले टीम राहुल का स्तंभ माने जाने वाले कई नेता कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ 2020 में पार्टी छोड़ दी थी जिस के बाद 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार गिर गई थी. सिंधिया केंद्र सरकार में मंत्री हैं. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद 2021 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे. जितिन प्रसाद यूपी की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह भी 2022 के यूपी चुनाव से पहले हाथ का साथ छोड़ बीजेपी में चले गए थे.

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की प्रमुख रहीं सुष्मिता देव टीएमसी, जयवीर शेरगिल बीजेपी, प्रियंका चतुर्वेदी शिवसेना यूबीटी में जा चुकी हैं. गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर, पूर्व केंद्रीय मंत्री ए के एंटनी के पुत्र अनिल एंटनी और असम कांग्रेस के महासचिव रहे अपूर्व भट्टाचार्य भी पंजा निशान वाली पार्टी छोड़ कर दूसरे दल में जा चुके हैं.

कांग्रेस छोड़ कर जाने वाले नेताओं की फेहरिस्त में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा जैसे दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं के भी नाम हैं. टीम राहुल की बात करें तो अब सचिन पायलट जैसे चुनिंदा नेता ही पार्टी में बने हुए हैं.

कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं का एक आरोप कौमन होता है- मिस कम्युनिकेशन या गांधी परिवार के साथ कम्युनिकेशन गैप. कोई मिलने के लिए समय नहीं मिल पाने की शिकायत करता है तो कोई कुछ और वजहें गिनाता है. सब के हमलों का केंद्र राहुल गांधी और गांधी परिवार ही होता है. एक आरोप यह भी कि कांग्रेस में युवा नेताओं को भविष्य का रोडमैप नहीं नजर आ रहा और इसलिए युवा नेता पार्टी छोड़ जा रहे हैं. जबकि सचाई यह है कि पद की लालसा, सत्ता की चाहत इन्हें विश्वासघात की तरफ धकेलती है.

खैर, जो अपनों का न हुआ वो गैरों का क्या होगा? अभी नएनए मेहमान हैं तो आवभगत हो रही है, कुछ समय बाद जब नए घर की बालकनी में भी जगह नहीं मिलेगी तब पुराने घर की याद सताएगी.

राजनीति पर सोशल मीडिया का प्रभाव, कितना असरकारक

UP congress Leaders reached Ram Mandir : अयोध्या में 15 जनवरी को उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के साथ अयोध्या में मंदिर दर्शन और सरयू स्नान किया. कांग्रेस के प्रदेश नेताओं ने यह दिखाने की कोशिश की कि उन पर राम के विरोध का आरोप ठीक नहीं है. वे राजनीति में धर्म के इस्तेमाल का विरोध करते हैं. सोशल मीडिया पर इस के तमाम फोटो पोस्ट होने लगे. सोशल मीडिया पर अयोध्या की पोस्ट में कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. यह बात कांग्रेस के विरोधियों को अच्छी नहीं लगी.

कुछ ही देर में एक दूसरा वीडियो आ गया. इस वीडियो में कुछ गुमनाम जैसे दिखने वाले चेहरे कांग्रेस के झंडे को खींच रहे हैं. इस वीडियो में यह दिखाने की कोशिश की गई कि अयोध्या जाने वाले कांग्रेस के नेताओं का विरोध हुआ. यह छोटा सा वीडियो कितना सच है या झूठ, यह किसी ने नहीं समझा. विरोध करने वालों को कोई नहीं पहचान पा रहा था. जिस का विरोध हो रहा, उस को कोई नहीं पहचान पा रहा. सोशल मीडिया पर यह भी वायरल होने लगा. कांग्रेसियों के अयोध्या दर्शन कार्यक्रम पर यह छोटा सा वीडियो प्रभाव डालने लगा.

जमीनी मुद्दे खत्म नहीं होते

यह उदाहरण भर है. इस तरह की तमाम घटनाएं होती हैं जहां पर सोशल मीडिया का झूठ भी सच की तरह दौड़ता है. सोशल मीडिया में लोगों को लगता है कि सच यही है. जबकि सही मामले में इस तरह की घटनाएं जमीनी स्तर पर प्रभाव नहीं डालती हैं. आज राजनीति पर सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से बढ़ा है. यही वजह है कि आम लोगों के मुद्दे बहस से बाहर हो गए हैं. बहस से बाहर होने के बाद भी आम लोगों के मुद्दे हकीकत में मौजूद हैं और ये चुनाव पर असर डालते हैं. सोशल मीडिया का प्रभाव केवल उतने लोगों तक होता है जो सक्रिय होते हैं. सोशल मीडिया का एक बड़ा वर्ग वहां दिखता भले है पर वह सक्रिय नहीं है.

आंकड़े बताते हैं कि 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इंटरनैट का प्रयोग करते हैं. इन में से आधे यानी 50 करोड़ के आसपास ऐसे लोग हैं जो सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं. जो लोग सोशल मीडिया का प्रयोग करते हैं वे 24 घंटे में औसतन 2 से ढाई घंटे प्रतिदिन करते हैं. यानी वे रोज 20 घंटे बिना सोशल मीडिया के गुजारते हैं. इन में से 8 घंटे सोने के निकाल दें तो 12 घंटे वे सोशल मीडिया से दूर अपने काम करते हैं. ये लोग जमीनी सच के हिसाब से अपने फैसले करते हैं.

हर प्लेटफौर्म की अलग पहचान है

अपनी दिनचर्या के इस दौरान वे जीवन के सच का सामना करते हैं, वे रोजमर्रा के संघर्ष कर रहे होते हैं. ऐेसे में उन को जमीनी मुद्दों का सच पता होता है. वे सोशल मीडिया के प्रभाव में नहीं आते. सोशल मीडिया के 5 प्रमुख प्लेटफौर्म हैं- फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (जो पहले ट्विटर था), यूट्यूब और व्हाट्सऐप. राजनीति की बातें सब से अधिक एक्स पर होती हैं. उस के बाद व्हाट्सऐप और यूट्यूब के नंबर आते हैं.

इंस्टाग्राम और यूट्यूब मनोरंजन के सब से बड़ा साधन हैं. फेसबुक का प्रयोग लोग अपनी छवि को चमकाने के लिए भी करते हैं.

सोशल मीडिया पर वह सब से प्रभावी माना जाता है जिस के फौलोअर्स अधिक होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि जितने फौलोअर्स होते हैं उन में केवल 10 से 20 फीसदी ऐक्टिव हों तो सब से अच्छा माना जाता है. इस से यह पता चलता है कि फौलोअर्स की आभासी दुनिया होती है. यह सच नहीं होती. सोशल मीडिया में तमाम ऐसे इनफलुएंसर होते हैं जिन के फौलोअर्स तो लाखों में होते हैं पर आसपास के लोग उन्हें नहीं पहचानते. फौलोअर्स की संख्या का जो सच है, वह भी मार्केटिंग का जाल है. यहां पैसे खर्च कर संख्या को बढ़ाया जाता है.

ताजा उदाहरण विवेक बिंद्रा और संदीप माहेश्वरी का है. सोशल मीडिया पर दोनों के करोड़ों फौलोअर्स हैं. दोनों के बीच विवाद हुआ तो इन के साथ मुठ्ठीभर लोग भी खड़े नहीं हुए. विवेक बिंद्रा का अपनी पत्नी से विवाद हुआ, झगड़े का वीडियो वायरल हुआ तो फौलोअर्स ही विरोध में खड़े हो गए. सोशल मीडिया जीवन ही नहीं, समाज का भी सच नहीं है. यह तर्कशक्ति की जगह कट/पेस्ट और फौरवर्ड पर चलता है. यही वजह है कि जो फौलोअर्स दिखते हैं वे असरदार नहीं होते.

खत्म हो रही जमीनी राजनीति

तमाम ऐसे नेता हैं जो सोशल मीडिया पर तो खूब चमकते हैं लेकिन असल में उन के समर्थक बेहद कम होते हैं. गोरखपुर में समाजवादी पार्टी की नेता हैं काजल निषाद. पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में उन के फौलोअर्स को देखते टिकट दे दिया. वे टीवी सीरियल में काम करती थीं. कैंपियरगंज से विधानसभा का चुनाव हार गईं. हाल के कुछ चुनावों में ऐसे नेताओं को खूब टिकट मिले जो सोशल मीडिया पर बहुत पहचाने जाते थे. ये लोग चुनाव हार गए. चुनाव में जीत के लिए सोशल मीडिया पर ऐक्टिव चेहरों को महत्त्व मिलता है. इस के साथ ही यह जरूरी है कि वह सोशल मीडिया से अधिक जमीन पर सक्रिय हो.

समाजवादी पार्टी के नेता और संस्थापक मुलायम सिंह यादव कहते थे, ‘अगर नेता बनना है तो रोज कम से कम 2 हजार नए लोगों से व्यक्तिगत मिलो. इस से जानपहचान बनेगी. लोग भरोसा करेंगे, वोट देंगे.’

जो लोग यह समझते हैं कि केवल सोशल मीडिया पर फौलोअर्स बढ़ाने से जीत मिलेगी, वे सही नहीं सोच सकते. सोशल मीडिया राजनीति का एक जरूरी प्रोफाइल भर है. केवल सोशल मीडिया के प्रभाव से जीत नहीं मिलती. फौलोअर्स वोटर नहीं होते. इस फर्क को समझना पड़ेगा. आज जो फौलोअर्स हैं वही कल एक गलत कदम पर ट्रोल करने से नहीं चूकते हैं.

बेमानी है फौलोअर्स की बहस

सोशल मीडिया की ताकत यह है कि कम से कम समय में यह आप की बात को आगे पहुंचा सकता है. इस के साथ ही इस का दूसरा सच यह है कि नैगेटिव बातों का प्रचार अधिक होता है. पौजिटिव बातों को लोग आगे नहीं बढ़ाते. सोशल मीडिया पर सब से अधिक किन विषयों को लोग पंसद करते हैं, इन में सब से पहला विषय सैक्स है. दूसरे नंबर पर मनोरंजन फिल्म और गाने आते हैं. तीसरे नंबर पर धर्म की बातें आती हैं.

चौथे नंबर पर रोजगार और कैरियर को लोग पसंद करते हैं. 5वें नंबर पर अपराध और उस के बाद राजनीति का नंबर आता है. सैक्स के विषय को देखें तो पोर्नस्टार सनी लियोनी को सब से अधिक सर्च किया जाता है. इस के बाद भी वे फिल्मों में नहीं चलीं. सोचिए, क्या सनी लियोनी चुनाव जीत सकती हैं? जवाब है, नहीं.

फौलोअर्स और वोटर में फर्क होता है. देश के 2 बड़े नेताओं नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी की तुलना भी उन के सोशल मीडिया प्रोफाइल से की जानी उचित नहीं है. राहुल गांधी नरेंद्र मोदी को बराबर की टक्कर दे रहे हैं. कांग्रेस ने संसद टीवी के यूट्यूब चैनल पर दर्शकों की संख्या दिखाने वाले स्क्रीनशौट साझा किए, जिस में दावा किया गया कि संसद में राहुल गांधी के भाषण को पीएम मोदी की तुलना में अधिक दर्शक मिले.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) टीवी की एक पोस्ट के अनुसार, राहुल गांधी के भाषण को संसद टीवी पर 3.5 लाख बार देखा गया, जबकि मोदी को 2.3 लाख बार देखा गया. कांग्रेस का कहना है कि राहुल, पीएम मोदी से ज्यादा पौपुलर हैं. कांग्रेस पार्टी की सोशल मीडिया टीम के मुताबिक, राहुल गांधी के आखिरी 30 ट्वीट्स को 48.13 मिलियन इंप्रैशन मिले, जबकि पीएम मोदी के आखिरी 30 ट्वीट्स को 21.59 मिलियन इंप्रैशन मिले.

भाजपा ने कहा कि एक्स (पहले ट्विटर) पर पीएम मोदी के अकाउंट को पिछले एक महीने में लगभग 79.9 लाख एंगेजमैंट मिले, जबकि राहुल गांधी के अकाउंट को लगभग 23.43 लाख एंगेजमैंट मिले. बीजेपी ने कहा कि फेसबुक पर पीएम मोदी के अकाउंट को पिछले एक महीने में लगभग 57.89 लाख एंगेजमैंट मिले, जबकि राहुल गांधी के अकाउंट को लगभग 28.38 लाख एंगेजमैंट मिले. 2 बड़े नेताओं के लोगों के बीच इस तरह की बहस राजनीति में सोशल मीडिया के प्रभाव को बताती है.

यह बहस बेमकसद है. नेताओं को समझना होगा कि फौलोअर्स वोटर नहीं होते. चुनाव वोट से जीते जाते हैं, फौलोअर्स से नहीं. वोटर को अपने क्षेत्र की जमीनी परेशानियों को जानने के लिए सोशल मीडिया नहीं देखना पड़ता. वह सच को समझता है. सोशल मीडिया राजनीति को प्रभावित कर सकता है, वोट नहीं दिला सकता.

अगर ऐसा होता तो भाजपा कर्नाटक, तेलंगाना और हिमांचल प्रदेश के चुनाव न हारी होती. जो नेता केवल सोशल मीडिया पर दिखेंगे, वे चुनाव नहीं जीत सकते. सोशल मीडिया एक वर्ग तक सीमित है. और वह वर्ग भी सोशल मीडिया को देख कर ही फैसले नहीं करता है.

फिल्मों में एकसाथ काम करने का मतलब इश्क का चक्कर नहीं- पल्लवी गिरि

कभी मांसल बदन वाली हीरोइनों के लिए पहचानी जाने वाली भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अब छरहरे बदन की हीरोइनों का बोलबाला है. इन छरहरे बदन वाली हीरोइनों को दर्शक खूब प्यार भी दे रहे हैं. इसी में एक नाम है भोजपुरी हीरोइन पल्लवी गिरि का, जिन्हें हाल ही में आयोजित हुए ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ शो में बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस अवार्ड से नवाजा गया है.

पल्लवी गिरि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की उन गिनीचुनी हीरोइनों में शुमार हैं, जो फिल्मों के साथसाथ भोजपुरी अलबम में भी खूब पसंद की जाती हैं. यही वजह है कि वे अकसर बड़े ऐक्टरों के साथ बनने वाले अलबम में स्क्रीन शेयर करती हुई नजर आती हैं.

‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ शो में शिरकत करने आईं पल्लवी गिरि से उन के फिल्मी कैरियर को ले कर ढेर सारी बातें हुईं. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप के फिल्मी कैरियर पर बात करें, उस से पहले अपने खूबसरत बदन और फिट रहने का राज बताएं?

-मेरे खूबसूरत बदन और फिट रहने का राज यह है कि मैं खुद को तनाव से दूर रखने की कोशिश करती हूं. मैं खुद पर स्ट्रैस को हावी नहीं होने देती हूं, क्योंकि आप की बौडी जितनी ऐक्टिव रहेगी, उतने ही आप चुस्त और दुरूस्त रहेंगे.

इस के अलावा सुबह उठने के बाद मैं सब से पहले पानी पीने पीती हूं.
इस के अलावा कार्डियो ऐक्सरसाइज, डांस, साइकिलिंग और रनिंग मेरे डेली रूटीन का हिस्सा है. डाइट में ढेर सारी हरी सब्जियां, फल और अंकुरित अनाज लेने के साथ ही नाश्ते में बादाम और अखरोट भी लेती हूं.

आप के फिल्मों की तरफ कदम कैसे बढे ?

-मुझे बचपन से ही डांसिंग और ऐक्टिंग का खूब शौक था, तो पहले मैं ने डांस इंस्टिट्यूट खोला और बच्चों को डांस सिखाने लगी. इस के बाद मैं ने मौडलिंग करना भी शुरू कर दिया था. चूंकि मेरे बदन की बनावट ही ऐसी थी की लोग मुझे हीरोइन और मौडल कह कर बुलाते थे, इसलिए मैं ने मौडलिंग की दुनिया में भी कदम बढ़ा दिया और इसी दौरान दौरान ‘मिस दिल्ली’ का खिताब भी जीता.

मेरे इस कामयाबी ने फिल्म मेकरों ध्यान मेरी तरफ खींचा और मुझे भोजपुरी फिल्मों के औफर आने लगे. मुझे भी लगा कि अच्छा मौका है और मैं ने फिल्मों में ऐक्टिंग की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए.

आप दर्जनों फिल्मों में अलगअलग किरदार निभा चुकी हैं फिर आप को बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस का अवार्ड क्यों मिला?

-यह तो फिल्म अवार्ड से जुड़ी जूरी तय करती है कि कौन बैस्ट ऐक्ट्रैस होगा और कौन बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस. मैं ने अपना नौमिनेशन ही बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस कैटेगरी के लिए किया था, क्योंकि मेरे कई अलबम ऐसे हैं, जिन्हें फिल्मों से ज्यादा प्यार मिला है. बैस्ट ऐक्ट्रैस के लिए मेरी पूरी फिल्मी लाइफ पड़ी है. मुझे जब लगेगा कि मुझे अब बैस्ट फिल्म ऐक्ट्रैस के लिए नौमिनेशन करना चाहिए, तो मैं नौमिनेशन भेजूंगी.

कागज पर शब्दों में लिखी कहानियों को पढ़ कर उसे खुद में ढाल कर ऐक्टिंग करना कितना मुश्किल है?

-आप ने सही कहा कि अगर हम फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद को कागज में पढ़े शब्दों के जरीए पढ़ें तो उस में इमोशंस नहीं जुड़े होते हैं. लेकिन जब उसी कागज पर लिखे शब्दों को हमें संवाद के रूप में बोलते हुए ऐक्टिंग के जरीए दिखाना हो, तो वह चरित्र जिंदा हो जाता है, जिस का किरदार हम निभा रहे हैं.

ऐक्टरों का बड़ा बिजी शैड्यूल होता है. ऐसे में वे खुद को भी समय नहीं दे पाते हैं. ऐसे में क्या ऐक्टर की भी सैल्फ लाइफ होती है?

-आम लोगों की तरह ऐक्टरों की भी सैल्फ लाइफ होती है, लेकिन फिल्में उन्हें छीन लेती हैं. अगर आप एक कामयाब कलाकार हैं, तो फिल्मों की मसरूफियत आप की सैल्फ लाइफ छीन लेती है, इसीलिए मैं खुद और परिवार को समय देने के लिए बीच में थोड़े दिनों का ब्रेक जरूर लेती हूं.

आप यह कैसे तय करती हैं कि जिस फिल्म या अलबम में काम कर रही हैं, वह हिट ही होगा?

आज के दौर में फिल्मों के हिट होने का पैमाना बदल चुका है, क्योंकि बीते सालों में सामान्य से विषयों पर बनने वाली फिल्में भी हिट रहीं और कमाई का रिकौर्ड तोड़ा, इसलिए हम यह तय नहीं कर सकते हैं कि दर्शक किन फिल्मों को पसंद करेंगे और किसे नकार देंगे.

आप ने सैकड़ों अलबम और दर्जनों फिल्मों में काम किया है. आप को अलबम के लिए अवार्ड मिला है. आप के सब से करीब कौन सा अलबम है?

मेरे सारे अलबम सुपरहिट रहे हैं, फिर भी रितेश पांडेय के साथ आया अलबम ‘आज जेल होई काल्ह बेल होई ने’ कामयाबी के सारे रिकौर्ड तोड़े और उसे 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने देखा. पवन सिंह के साथ ‘मजनुआ पिटाता’ तकरीबन 8 करोड़ लोगों ने देखा. इस के अलावा अंकुश राजा के साथ ‘हम के दुल्हिन बनालस’ हिट रहा.

आप की और विमल पांडेय की जोड़ी खूब पसंद की जा रही है. इस के पीछे कहीं प्यार और रोमांस का चक्कर तो नहीं है?

फिल्मों में ऐक्टर और ऐक्ट्रैस एकसाथ ज्यादा काम करें या एकसाथ दिखें, तो इस का मतलब यह नहीं हैं कि दोनों में प्यार और रोमांस का चक्कर ही होगा. इस के पीछे की एक वजह यह भी होता है कि इन जोड़ियों को दर्शक ज्यादा प्यार करते हैं और पसंद करते हैं, इसीलिए फिल्म बनाने वाले कुछ खास जोड़ियों के साथ फिल्में ज्यादा बनाते हैं. दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे, खेसारी और मेघाश्री, देव सिंह और अंजना सिंह, कल्लू और यामिनी जैसी तमाम जोड़ियां रही हैं, जिन्हें हम साथ देखते रहे हैं. इन सब की जोड़ियां केवल फिल्मों तक सीमित हैं. और हां, ऐक्ट्रैस को छोड़ दें, तो इन में से सभी ऐक्टर शादीशुदा भी हैं.

मेरी और विमल की जोड़ी भी केवल फिल्मी जोड़ी ही है. अभी मैं केवल फिल्मों पर फोकस कर रही हूं, इसीलिए मै सभी से गुजारिश करूंगी कि बेसिरपैर की बातों पर ध्यान न दें.

शरीर में हो रहे इन बदलावों को गलती से भी न करें अनदेखा, हो सकते हैं Heart Failure के लक्षण

Heart Failure Signs : आज के समय में युवओं से लेकर बड़े-बुजर्गों तक हर किसी को दिल से जुड़ी समस्याएं हो रही हैं, जिनमें हार्ट अटैक, स्ट्रोक और हार्ट फेलियर की परेशानियां सबसे ज्यादा है. इन सबमें से हार्ट फेलियर सबसे ज्यादा गंभीर और जानलेवा समस्या है, जिसमें दिल अचानक से काम करना बंद कर देता है. दिल पर्याप्त ब्लड-ऑक्सीजन पंप नहीं कर पाता और हार्ट की मांसपेशियां अपने आप कमजोर होने लगती है, जिससे व्यक्ति की जान जाने का खतरा भी बना रहता है.

हालांकि हार्ट फेल होने से पहले शरीर कई तरह के संकेत भी देता है, जिन्हें समझकर हार्ट फेलियर से बचा जा सकता हैं. आइए अब जानते हैं कि हार्ट फेलियर (Heart Failure Signs) आने से पहले शरीर कौन-कौन से इशारे देता है.

हार्ट फेलियर के लक्षण

दिल की धड़कनों का बढ़ना

जब व्यक्ति का दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है, तो इसे हार्ट फेलियर का सबसे पहला संकेत माना जाता है. इसलिए अकस्मात दिल की धड़कनों के बढ़ने को कभी भी इग्नोर नहीं करना चाहिए.

वजन बढ़ना

अगर अचानक से आपका वजन बढ़ जाए या शरीर के कुछ अंगों जैसे कि पैरों, टांगों, टखनों या पेट में सूजन की समस्या होने लगे तो उसे भी नजरअंदाज ना करें. ये भी हार्ट फेलियर के संकेत हो सकते हैं. इसके अलावा भूख में कमी आना या दिनभर उल्टी व मतली जैसा महसूस होना भी इस जानलेवा बीमारी के कारण बन सकते हैं.

सांस लेने में परेशानी

सांस लेने में परेशानी को भी हार्ट फेलियर (Heart Failure Signs) का एक मुख्य लक्षण माना जाता हैं. जब व्यक्ति का शरीर सही तरह से काम नहीं करता व एक्टिव नहीं होता है तो सांस से जुड़ी समस्याएं होने लगती हैं. इसलिए अगर आपको सांस लेने में परेशानी हो रही है, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें.

थकान होना

जब दिल सही से ब्लड को पंप नहीं कर पाता है, तो इससे दिमाग तक खून नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में कमजोरी आने लगती है, जो हार्ट फेलियर का एक अहम संकेत है.

गले में खराश

अगर लंबे समय तक आपको गले में खराश और खांसी की समस्या है, तो इसे भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. इसके अलावा खांसी के साथ हल्के लाल या सफेद बलगम का आना भी हार्ट अटैक (Heart Failure Signs) का कारण हो सकता है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

क्या आपको भी है मुंह खोलकर सोने की आदत, तो हो सकती हैं ये गंभीर बीमारियां

Sleeping With Open Mouth Disadvantages : कई लोगों को आदत होती है कि वो सोते समय अपना मुंह खुला रखते हैं. अगर आप भी इस लत के शिकार है, तो सावधान हो जाइए क्योंकि आपकी ये छोटी सी गलती कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है. दरअसल, जो लोग सोते समय मुंह खोलकर सोते हैं, उन्हें स्लीप एपनिया होता है. इसमें शरीर में ब्लॉकेज और कंजेशन के कारण सोते समय व्यक्ति की सांस रूक जाती है. हालांकि ये जरूरी नहीं है कि जो लोग मुंह खोलकर सोते हैं, वह स्लीप एपनिया से ग्रसित हो ही. कई केसों में कुछ और बीमारी के कारण भी उन्हें ऐसी आदत हो जाती है.

इसके अलावा जब हम लेटते हैं तो ब्लड सर्कुलेशन के कारण हमारी नाक के अंदर खून भरने लगता है, जिसकी वह से नाक में सूजन और कसाव दोनों बनने लगता है. इससे व्यक्ति नाक से सांस नहीं ले पाता है, जिससे वह सोते समय मुंह से सांस लेनी की कोशिश करता है और उसका मुंह अपने आप खुल जाता है. अब जानते हैं कि व्यक्ति को मुंह (Sleeping With Open Mouth Disadvantages) से सांस लेने की समस्या क्यों होती है.

मुंह से सांस लेने के कारण

चिंता

आपको बता दें कि जो व्यक्ति हर छोटी-छोटी बात पर टेंशन लेता है. उसे मुंह से सांस लेने में परेशानी होने लगती है. दरअसल, जब हम किसी चीज के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं या टेंशन लेते हैं, तो इससे बीपी बढ़ने लगता है. ऐसे में मनुष्य को सोते समय मुंह खोलने की आदत लग जाती है.

एलर्जी

जब व्यक्ति का इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है, तो इससे शरीर को संक्रमण और एलर्जी दोनों होने की संभावना बढ़ जाती है. इससे वह नाक से अच्छे से सांस नहीं ले पाता, फिर उसका शरीर मुंह से सांस लेने की कोशिश करता है, जिससे सोते समय उसे मुंह (Sleeping With Open Mouth Disadvantages) खोलकर सोने की आदत होने लगती है.

अस्थमा

आमतौर पर अस्थमा के मरीजों के फेफड़ों में सूजन होती है, जिससे उन्हें सांस लेने में परेशानी होती है. इसलिए अस्थमा के मरीज भी मुंह खोलकर सोते हैं.

सर्दी-जुकाम

सर्दी-जुकाम, खांसी और नाक बहने की समस्या में नाक बंद हो जाती है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. ऐसे में व्यक्ति नाक की जगह मुंह से सांस लेता है. हालांकि इस समस्या में मुंह (Sleeping With Open Mouth Disadvantages) से सांस लेना आम बात है, जो दवाओं के लेने से ठीक हो जाती है.

अधिक जानकारी के लिए आप हमेशा डॉक्टर से परामर्श लें.

जब लड़का देखने जाएं तो इन बातों को रखें ध्यान, बेटी रहेगी हमेशा खुश

अब वह जमाना नहीं रहा जब युवकयुवती देखने जा कर अपनी पसंदनापसंद बताता था. बदलते दौर में अब न सिर्फ युवक बल्कि युवती भी लड़का देखने जाती है और दस तरह की बातें पौइंट आउट करती है जैसे वह दिखने में कैसा है? उस का वे औफ टौकिंग कैसा है? बौडी फिजिक बोल्ड है या नहीं ममाज बौय तो नहीं है? वगैरावगैरा.

आज बराबर की हिस्सेदारी के कारण युवतियां किसी चीज से समझौता करना पसंद नहीं करतीं. यह ठीक भी है कि जिस के साथ ताउम्र रहना है उस के बारे में जितना हो सके जान लेना चाहिए ताकि आगे किसी तरह का कोई डाउट न रहे.

ऐसे में आप जब लड़का देखने जाएं तो कुछ बातें ध्यान में रखें और खुद भी ऐसा कुछ न करें जो आप की नैगेटिव पर्सनैलिटी को दर्शाए.

  1. जब भी आप युवक से पहली बार मिलें तो उस की बौडी लैंग्वेज पर खास ध्यान दें. इस से आप को उस की आधी पर्सनैलिटी का तो ऐसे ही अंदाजा हो जाएगा. बात करते हुए देख लें कि कहीं वह बात करने से ज्यादा अपने हाथपैर तो नहीं हिला रहा. बात करते हुए फेस पर अजीब से रिऐक्शन तो नहीं आ रहे. इस से आप को उसे जज करने में काफी आसानी होगी.
  2. बात करते समय इस बात पर गौर फरमाएं कि कहीं वह तू से बात करना तो शुरू नहीं करता कि यार, मुझे तो बिलकुल तेरे जैसी लड़की चाहिए, तू तो आज बहुत क्यूट लग रही है. अगर ऐसा कहे तो समझ जाएं कि वह आप के लायक युवक नहीं है, क्योंकि जो पहली बातचीत में ही तू तड़ाक पर आ जाए उस से भविष्य में रिस्पैक्ट की उम्मीद नहीं की जा सकती.
  3. भले ही उस युवक का सैलरी पैकेज काफी अच्छा हो, लेकिन इस का यह मतलब तो नहीं कि उस की हर बात में सैलरी का ही जिक्र हो. जैसे अगर हम दोनों की शादी हो गई तो तुम ऐश करोगी, तुम्हें ब्रैंडेड चीजें यूज करने का मौका मिलेगा, क्योंकि मैं औफिस के काम से विदेश भी जाता रहता हूं. इस से आप को अंदाजा हो जाएगा कि उसे अपनी सैलरी पर घमंड है.
  4. युवक को जानने के साथसाथ आप उस की फैमिली को भी एकनजर में जानने की कोशिश करें. आप को उन की बातचीत के तरीके से पता लग जाएगा कि वे कैसे विचारों के लोग हैं. लड़की को जौब करवाने के फेवर में हैं या नहीं. घर में लड़की से ज्यादा लड़के को तो महत्त्व नहीं देते. इन सारी बातों का पता होने पर आप को डिसीजन लेने में काफी आसानी होगी.
  5. बातोंबातों में कहीं दहेज की ओर तो इशारा नहीं है. जैसे हमारी बड़ी बहू तो शादी में हर चीज लाई थी, हमारा लड़का तो 15 लाख रुपए सालाना कमाता है, हमारे यहां तो रिश्तेदारों का शादी में खास खातिरदारी का रिवाज है. आप को जो देना है अपनी लड़की को देना है, हमें कुछ नहीं चाहिए जैसी बातें अगर मीटिंग में की जा रही हैं तो समझ जाएं कि उन्हें लड़की से ज्यादा दहेज में इंट्रस्ट है.
  6. आप की फैमिली लड़की को आप से बात करने के लिए कह रही है और वह इस के लिए मम्मी से परमिशन ले कर खुद को ममाज बौय दिखाने की कोशिश करे तो समझ जाएं कि लड़के की खुद की कोई पर्सनैलिटी नहीं है और वह हर बात के लिए मम्मी पर डिपैंड रहता है.
  7. अगर थोड़ी सी सीरियस बात के बाद वह सीधा कपड़ों पर आ जाए जैसे मुझे तो सूट वगैरा बिलकुल पसंद नहीं हैं. मैं तो चाहता हूं कि मेरी लाइफ पार्टनर हमेशा हौट ड्रैसेज पहने, इस से आप को यह समझने में आसानी होगी कि उसे आप से ज्यादा छोटे कपड़ों में इंट्रस्ट है, जो हैप्पी मैरिड लाइफ के लिए सही नहीं है.
  8. कहीं ऐसा तो नहीं कि फर्स्ट मीटिंग में ही युवक आप से फ्यूचर प्लानिंग के बारे में बात करना शुरू कर दे कि हम तो शादी के बाद अकेले रहेंगे, इस तरह चीजों को मैनेज करेंगे, मुझे तो लड़के बहुत पसंद हैं इस से आप को उस की मैच्योरिटी के बारे में पता चल जाएगा.
  9. जरूरी नहीं कि जब हम इस तरह की मीटिंग के लिए कहीं बाहर जाएं तो हमेशा लड़की वाले ही बिल पे करें. भले ही आप के पेरैंट्स उन्हें बिल पे न करने दें, लेकिन फिर भी यह बात जानने के लिए थोड़ी देर तक बिल पे न करें. अगर वह एक बार भी बिल पे करने का जिक्र न करे तो समझ जाएं कि वह सिर्फ फ्री में खानेपीने वाले सिद्धांत पर चलने वाला है.
  10. भले ही आप काफी स्मार्ट हों, लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि आप लड़के के गुणों को देखने के बजाय उस की स्मार्टनैस के बेस पर ही उसे पौइंट्स दें. एक बात मान कर चलें कि स्मार्टनैस थोड़े दिन ही अच्छी लगती है उस के बाद तो व्यक्ति के गुणों के बल पर ही जिंदगी चलती है. इसलिए आउटर के साथसाथ इनर पर्सनैलिटी को भी ध्यान में रखें.
  11. हमारे घर में यह होता है, हम ऐसे रहते हैं, हम यह नहीं खाते, मौल्स के अलावा हम कहीं और से शौपिंग नहीं करते. भले ही आप का लिविंग स्टैंडर्ड काफी हाई हो, लेकिन अगर आप इस तरह की बातें लड़के से करेंगी तो वह चाहे आप कितनी भी सुंदर क्यों न हों, आप से शादी नहीं करेगा.
  12. माना कि युवतियों को शौपिंग का शौक होता है, लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि आप युवक से 20 मिनट में 15 मिनट शौपिंग को ले कर ही बात करें. जैसे मैं हफ्ते में जब तक एक बार शौपिंग नहीं कर लेती तब तक मुझे चैन नहीं आता, क्या तुम्हें शौपिंग पसंद है? अगर हमारी शादी हो गई तो क्या तुम मेरे साथ हर वीकैंड पर शौपिंग पर चला करोगे? ऐसी बातों से सिर्फ यही शो होगा कि आप को मैरिज से ज्यादा शौपिंग में इंट्रस्ट है जो आप की नैगेटिव पर्सनैलिटी को शो करेगा.
  13. आज सोशल मीडिया का जमाना है, लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि हर जगह सोशल मीडिया ही हावी हो. ऐसे में जब आप लड़के से बात कर रही हैं तो यह न पूछ बैठें कि आप सोशल साइट्स पर ऐक्टिव हैं कि नहीं. अगर हैं तो अपनी आईडी दीजिए ताकि मैं अपनी फ्रैंडलिस्ट में आप को ऐड कर सकूं. इस से लड़के तक यही मैसेज जाएगा कि आप सोशल मीडिया को ले कर कितनी क्रेजी हैं तभी इतनी सीरियस टौक में आप सोशल मीडिया को ले आई हैं.
  14. जब भी आप लड़के से मिलने जाएं तो उस का बायोडाटा अच्छी तरह पढ़ लें कि वह कहां जौब करता है, इस से पहले उस ने किनकिन कंपनियों में जौब की है, उस की फैमिली में कितने मैंबर्स हैं और कौन क्या करता है. यहां तक कि उस की कंपनी व पद के बारे में भी जानकारी रखें. इस से जब वह अपनी कंपनी के बारे में बता रहा होगा तो आप की तरफ से भी अच्छा फीडबैक मिल पाएगा.
  15. पहली मुलाकात में ही आप उस से अपना नंबर शेयर न करें, क्योंकि आप को क्या पता कि बात बनेगी या नहीं. इसलिए इस बात को अपने पेरैंट्स पर छोड़ दें, क्योंकि अगर आप का रिश्ता बना तो पेरैंट्स खुद ही आप को नंबर दिलवा देंगे ताकि आप को एकदूसरे को जानने का मौका मिल सके.
  16. अगर बड़े किसी टौपिक पर बात कर रहे हैं कि जैसे हम शादी तो अपने होम टाउन से ही करेंगे तो ऐसे में आप बीच में टांग न अड़ाने लगें कि नहीं आंटी ऐसा नहीं होगा. आप के इस व्यवहार से आप की बदतमीजी ही शो होगी इसलिए जब तक जरूरी न हो तब तक बीच में न बोलें.
  17. अगर आप को लड़के की कोई बात पसंद नहीं आ रही तो एकदम से गुस्से में न आ जाएं बल्कि शांत तरीके से अपनी बात रखें, इस से उस पर आप का अच्छा प्रभाव पड़ेगा और उसे लगेगा कि आप चीजों को अच्छे से ऐडजस्ट करना जानती हैं.

इस तरह आप को अपने लाइफ पार्टनर के सिलैक्शन में आसानी होगी.

मेरे मम्मी-पापा रोज लड़ाई करते हैं, जिससे मैं परेशान हो चुका हूं, अब आप ही बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे मम्मीपापा हमेशा से एकदूसरे से लड़ते आए हैं. पहले मैं कालेज जाता था, तो शाम को घर आ कर अपने कमरे में बंद हो जाया करता था जिस से मुझे उन दोनों की बातें सुननी नहीं पड़ती थीं और न ही झगड़े. जब से हम सभी घर में रहने लगे हैं तब से मुझ से यह रोजरोज का लड़ाईझगड़ा सहा नहीं जा रहा. मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या ऐसा कोई उपाय है जिस से मैं इन दोनों को झगड़ने से रोक सकूं. अगर हाल ऐसा ही रहा तो शायद मैं पागल हो जाऊंगा.

जवाब

यह सही है कि इतना ज्यादा समय घर पर रहना, वह भी इस झगड़े के बीच, बेहद मुश्किल है. लेकिन, इस सिचुएशन से निकलने का तरीका सिर्फ यह है कि आप इस का सामना करें. मम्मीपापा झगड़ा करते हैं तो इस का कोई कारण तो होगा ही. आप को वह कारण पता हो तो उसे सुलझाने की कोशिश कीजिए. ज्यादा कुछ नहीं तो उन्हें समझाइए कि उन के इस तरह झगड़ने के कारण आप की शांति भंग हो रही है जो आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है.

कोशिश कीजिए कि मम्मी या पापा में से किसी एक के साथ या दोनों के साथ आप थोड़ाबहुत समय बिताएं जिस से उन्हें अपने आपसी झगड़े का ध्यान ही न रहे.
जिस समय वे झगड़ना शुरू करें, आप अपने कमरे में चले जाएं और उन से बात न करें. इस से हो सकता है कि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो और शायद आप को नाराज न करने की गरज से ही वे झगड़ने से खुद को रोकें.

फिर वही शून्य – भाग 2 : समर को सामने पा कर सौम्या का क्या हुआ ?

समर की छुट्टियां खत्म होने को थीं. उस के वापस जाने से पहले जो लम्हे मैं ने उस के साथ गुजारे वे मेरे जीवन की अमूल्य निधि हैं. उस का शालीन व्यवहार, मेरे प्रति उस की संवेदनशीलता और प्रेम के वे कोमल क्षण मुझे भावविह्वल कर देते. उस के साथ अपने भविष्य की कल्पनाएं एक सुखद अनुभूति देतीं.

मगर इनसान जैसा सोचता है वैसा हो कहां पाता है? पड़ोसी देश के अचानक आक्रमण करने की वजह से सीमा पर युद्ध के हालात उत्पन्न हो गए. एक फौजी के परिवार को किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, इस का अंदाजा मुझे उस वक्त ही हुआ. टीवी पर युद्ध के हृदयविदारक दृश्य और फौजियों की निर्जीव देहें, उन के परिजनों का करुण रुदन देख कर मैं विचलित हो जाती. मन तरहतरह की आशंकाआें से घिरा रहता. सारा वक्त समर की कुशलता की प्रार्थना करते ही बीतता.

ऐसे में मैं एक दिन वीरां के साथ बैठी थी कि समर की बटालियन से फोन आया. समर को लापता कर दिया गया था. माना जा रहा था कि उसे दुश्मन देश के सैनिकों ने बंदी बना लिया था.

कुछ देर के लिए तो हम सब जड़ रह गए. फिर मन की पीड़ा आंखों के रास्ते आंसू बन कर बह निकली. वहां समर न जाने कितनी यातनाएं झेल रहा था और यहां…खुद को कितना बेबस और लाचार महसूस कर रहे थे हम.

युद्ध की समाप्ति पर दुश्मन देश ने अपने पास युद्धबंदी होने की बात पर साफ इनकार कर दिया. हमारी कोई कोशिश काम न आई. हम जहां भी मदद की गुहार लगाते, हमें आश्वासनों के अलावा कुछ न मिलता. उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी.

वक्त गुजरता गया. इतना सब होने के बाद भी जिंदगी रुकी नहीं. वाकई यह बड़ी निर्मोही होती है. जीवन तो पुराने ढर्रे पर लौट आया लेकिन मेरा मन मर चुका था. वीरां और मैं अब भी साथ ही कालिज जाते, मगर समर अपने साथ हमारी हंसीखुशी सब ले गया. बस जीना था…तो सांस ले रहे थे, ऐसे ही…निरुद्देश्य. जीवन बस, एक शून्य भर रह गया था.

फिर हम दोनों ने साथ ही बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स भी कर लिया. तब एक दिन मम्मी ने मुझे अनिरुद्ध की तसवीर दिखाई.

‘मैं जानती हूं कि तुम समर को भुला नहीं पाई हो, लेकिन बेटा, ऐसे कब तक चलेगा? तुम्हें आगे के बारे में सोचना ही पडे़गा. इसे देखो, मातापिता सूरत में रहते हैं और खुद अमेरिका में साफ्टवेयर इंजीनियर है. इतना अच्छा रिश्ता बारबार नहीं मिलता. अगर तुम कहो तो बात आगे बढ़ाएं,’  वह मुझे समझाने के स्वर में बोलीं.

उन की बात सुन कर मैं तड़प उठी, ‘आप कैसी बातें कर रही हैं, मम्मी? मैं समर के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती. आप एक औरत हैं, कम से कम आप तो मेरी मनोदशा समझें.’

‘तो क्या जिंदगी भर कुंआरी  रहोगी?’

‘हां,’ अब मेरा स्वर तल्ख होने लगा था, ‘और आप क्यों परेशान होती हैं? आप लोगों को मेरा बोझ नहीं उठाना पडे़गा. जल्दी ही मैं कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी. फिर तो आप निश्ंिचत रहेंगी न…’

‘पागल हो गई हो क्या? हम ने कब तुम्हें बोझ कहा, लेकिन हम कब तक रहेंगे? इस समाज में आज के दौर में एक अकेली औरत का जीना आसान नहीं है. उसे न जाने कितने कटाक्षों और दूषित निगाहों का सामना करना पड़ता है. कैसे जी पाओगी तुम? समझ क्यों नहीं रही हो तुम?’ मम्मी परेशान हो उठीं.

मगर मैं भी अपनी जिद पर अड़ी रही, ‘मैं कुछ समझना नहीं चाहती. मैं बस, इतना जानती हूं कि मैं सिर्फ समर से प्यार करती हूं.’

‘और समर का कुछ पता नहीं. वह जिंदा भी है या…कुछ पता नहीं,’ वीरां की धीमी आवाज सुन कर हम दोनों चौंक पड़ीं. वह न जाने कब से खड़ी हमारी बातें सुन रही थी, लेकिन हमें पता ही न चला था. मम्मी कुछ झेंप कर रह गईं लेकिन उस ने उन्हें ‘मैं बात करती हूं’ कह कर दिलासा दिया और वह हम दोनों को अकेला छोड़ कर वहां से चली गईं.

‘वीरां, तू कुछ तो सोचसमझ कर बोला कर. तू भूल रही है कि जिस के बारे में तू यह सब बातें कर रही है, वह तेरा ही भाई है.’

‘जानती हूं, लेकिन हकीकत से भी तो मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. हमारी जो जिम्मेदारियां हैं, उन्हें भी तो पूरा करना हमारा ही फर्ज है. तुम्हें शायद भाई के लौटने की आस है, लेकिन जब 1971 के युद्धबंदी अब तक नहीं लौटे, तो हम किस आधार पर उम्मीद लगाएं.’

‘लेकिन…’

‘लेकिन के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, सौम्या. तुम अपने मातापिता की इकलौती संतान हो. तुम चाहती हो कि वे जीवनभर तुम्हारे दुख में घुलते रहें? क्या तुम्हारा उन के प्रति कोई फर्ज नहीं है?’

‘लेकिन मेरा भी तो सोचो, समर के अलावा मैं किसी और से कैसे शादी कर सकती हूं?’

‘अपनी जिम्मेदारियों को सामने रखोगी तो फैसला लेना आसान हो जाएगा,’ उस दिन हम दोनों सहेलियां आपस में लिपट कर खूब रोईं.

फिर मैं अनिरुद्ध से विवाह कर के न्यू जर्सी आ गई, मगर मैं समर को एक दिन के लिए भी नहीं भूल पाई. हालांकि मैं ने अनिरुद्ध को कभी भी शिकायत का मौका नहीं दिया, अपने हर कर्तव्य का निर्वहन भली प्रकार से किया, पर मेरे मन में उस के लिए प्रेम पनप न सका. मेरे मनमंदिर में तो समर बसा था, अनिरुद्ध को कहां जगह देती.

यही बात मुश्किल भी खड़ी करती. मैं कभी मन से अनिरुद्ध की पत्नी न बन पाई. उस के सामने जब अपना तन समर्पित करती, तब मन समर की कल्पना करता. खुद पर ग्लानि होती मुझे. लगता अनिरुद्ध को धोखा दे रही हूं. आखिर उस की तो कोेई गलती नहीं थी. फिर क्यों उसे अपने हिस्से के प्यार से वंचित रहना पडे़? अब वही तो मेरे जीवन का सच था. मगर खुद को लाख समझाने पर भी मैं समर को दिल से नहीं निकाल पाई. शायद एक औरत जब प्यार करती है तो बहुत शिद्दत से करती है.

सोने से पहले जरूर पिएं गुनगुना पानी, शरीर को मिलेंगे अनगिनत फायदे

बहुत से लोग अक्सर कहते हैं कि सुबह में जागते ही गुनगुना पानी पीना चाहिए. लोग इसके बहुत से फायदे भी गिनाते हैं. बहुत से हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि सेहत की बेहतरी के लिए और शरीर के बेहतर ढंग से काम के लिए सुबह में गुनगुने पानी का सेवन जरूरी है. इससे त्वचा संबंधित बहुत सी परेशानियां दूर होती है. पर क्या आपको पता है कि सोने से पहले गुनगुना पानी पीने के क्या फायदे होते हैं?

इस खबर में हम आपको सोने से पहले गुनगुना पानी पीने के फायदों के बारे में बताने वाले हैं.

वजन कम करने में है मददगार

गर्म पानी पीने से वजन कम होता है. जानकारों का मानना है कि अगर आप तेजी से वजन कम करना चाहते हैं तो रोज सुबह और रात में गुनगुना पानी जरूर पिएं.

शरीर से बाहर होते हैं टौक्सिक्स

गुनगुना या हल्का गर्म पानी पीने से शरीर का तापमान बढ़ता है और पसीना अधिक निकलता है. आपको बता दें कि पसीना निकलने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर रहता है और टौक्सिक एजेंट्स बाहर निकलते हैं.

डिप्रेशन में असरदार

बहुत से जानकारों का मानना है कि शरीर में पानी की कमी होने से डिप्रेशन का खतरा अधिक होता है. और इससे हमारी नींद पर भी काफी बुरा असर होता है. रात में सोने से पहले एक गिलास गुनगुना पानी पीने से शरीर में पानी की स्थिति समान्य रहती है और मूड अच्छा रहता है.

बेहतर होता है डाइजेशन

गर्म पानी के पीने से पाचन बेहतर रहता है. आपको बता दें कि दिन की तुलना में रात में पाचन कमजोर होता है. रात में गर्म पानी पीने से खाना जल्दी पचता है.

उलझे धागे : दामिनी के गले की फांस क्या चीज बन रही थी ? – भाग 2

जब वह अपनी परीक्षा के बाद वापस ससुराल आई थी तब शैली ने कैसा बुरा सा मुंह बनाया था. दामिनी आज तक वह भंगिमा नहीं भूल सकी है, बल्कि कई बार अकेले में उस ने शीशे के सामने खड़े हो कर ठीक वैसी ही भंगिमा बनाने की कोशिश भी की थी और अपनी इस बचकानी हरकत पर खूब हंसी भी थी.

दामिनी ने शैली को ले कर सुमित्रा को विश्वास में लेना शुरू कर दिया और धीरेधीरे सास सुमित्रा के दिमाग में शैली की शादी करवाने की बात फिट कर दी थी. शैली के पास भी न कहने का कोई बहाना नहीं था. हार कर अपने सुमित्रा के सामने हथियार डाल दिए और एक दिन दामिनी ने शैली को अपने पति के घर से उसे उस के पति के घर विदा कर दिया.

2 साल बीत गए. शैली अपने पति के साथ रम नहीं पाई थी. रमती भी तो कैसे. दिल कहीं और दिमाग कहीं. ऐसे भी भला रमा जाता है कहीं. शैली के मायके के फेरे बढ़ने लगे. जब भी शैली आती, विनय उसी के आगेपीछे घूमता. दामिनी को कई बार लगता था जैसे कि दालभात में मूसलचंद शैली नहीं बल्कि वह खुद है जो उन दोनों के बीच अनचाही सी आ गई क्योंकि 2 साल बीतने पर भी वह विनय के दिल में अपने लिए जगह नहीं बना सकी थी.

इधर जब विनय का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया तो दामिनी ने राहत की सांस ली. वह विनय के साथ उस की नई पोस्ंिटग पर आ गई. यहीं आ कर एक दिन किन्हीं कमजोर पलों में विनय ने दामिनी को अपनी अंकशायिनी बनाया और फलस्वरूप सिद्ध का अंकुरण उस की कोख में हुआ.

लेकिन इस दौरान अपने पति को पूरी तरह से नकार कर शैली सुमित्रा के पास वापस आ गई और उधर दामिनी अपनी कोख की आहट से आहत थी. त्रिकोणीय रिश्ते से अनजान सुमित्रा ने दामिनी और शैली दोनों को राहत देने के मकसद से शैली को दामिनी के पास उस की देखभाल के लिए भेज दिया.

शैली को देखते ही दामिनी फिर से आशंकित हो उठी लेकिन विनय एकदम खिल गया था. गर्भवती दामिनी उन दोनों को एकसाथ उठतेबैठते, खातेपीते और घूमतेफिरते देखती तो सिर्फ कुढ़ कर रह जाती. चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही थी.

सिद्ध के जन्म के बाद तो विनय पूरी तरह से शैली का हो गया था. उन दोनों के बीच जो सामाजिक मर्यादा की महीन रेखा थी वह भी अब मिट चुकी थी. दामिनी अपनेआप को बेहद अपमानित महसूस कर रही थी.

एक दिन हिम्मत कर के उस ने सारी बातें सास सुमित्रा को बता दीं लेकिन वहां से भी उसे आश्वासन के अतिरिक्त कुछ न मिला. तब अपने स्वाभिमान को बचाने की खातिर दामिनी सिद्ध को ले कर मायके आ गई और बैंक की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगी.

आवश्यकता आविष्कार की जननी ही नहीं होती बल्कि मेहनत और लगन की कुंजी भी होती है. दामिनी ने भी रातदिन मेहनत की और आखिर बैंक में उस का चयन हो ही गया. वह सिद्ध को ले कर अपनी पोस्ंिटग पर आ गई. विनय और शैली ने लाख चाहा लेकिन दामिनी विनय को तलाक देने को राजी नहीं हुई.

थोड़ा बड़ा होने पर दामिनी ने सिद्ध को होस्टल भेज दिया और खुद बैंक पीओ की परीक्षा की तैयारी करने लगी. यहीं मानव उस की जिंदगी में आया था. मानव उस कोचिंग संस्थान का मालिक था जिस में दामिनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. अकेलेपन और पति की बेवफाई से जू  झती दामिनी के लिए मानव एक संजीवनी बन कर आया था.

मानव से रिश्ता जुड़ने के बाद धीरेधीरे दामिनी को विनय और शैली का रिश्ता सम  झ में आने लगा था. मानव के जिंदगी में आते ही उसे यह महसूस हुआ कि प्यार किसी के चाहने या न चाहने की परिधि से बहुत बाहर का एहसास है. यह तो, बस, हो जाता है जैसे उसे हो गया मानव से. शायद ऐसे ही हुआ होगा विनय को शैली से.

अब दामिनी ने विनय और शैली की दुनिया से दूर जाने का फैसला कर लिया था लेकिन वह सिद्ध को पिता के साए से वंचित नहीं करना चाहती थी. वह उस के बचपन को अदालत के गलियारे में भटकने नहीं देना चाहती थी. इसलिए सब के बीच एक मौन अलिखित सम  झौता हो गया था. दामिनी मानव के साथ खुश थी तो विनय और शैली अपनी दुनिया में. सिद्ध दामिनी और विनय सहित सब का चहेता था. यहां तक कि अब तो शैली और मानव का भी.

‘‘मु  झे क्या सोचना था. मैं ने तो बरसों पहले ही सोच लिया था जो मु  झे सोचना था. बस, एकदो दिन में चली जाऊंगी अपनी पोस्ंिटग पर,’’ दामिनी ने साफसाफ कहा.

‘‘तुम्हें जिस से शिकायत थी जब वह ही नहीं रहा तो अब नाराजगी छोड़ो और घर लौट आओ,’’ सुमित्रा ने आग्रह किया.

‘‘नहीं मां. अब संभव नहीं. हां, बीचबीच में विनय के क्लेम से जुड़ी फौर्मेलिटी पूरी करने आती रहूंगी,’’ कह कर दामिनी अपना सामान पैक करने लगी.

महीनेभर की भागदौड़ के बाद विनय के सारे क्लेम पूरे हो गए. आज दामिनी को पति की ग्रेच्युएटी और पीएफ के पैसे का चैक मिलना था.

‘‘शैली, यह चैक मेरे अकाउंट में जमा होते ही सारा पैसा मैं तुम्हारे नाम ट्रांसफर कर दूंगी,’’ दामिनी ने कहा तो सास सुमित्रा भी उसे आश्चर्य से देखने लगी.

‘‘नहीं दामिनी, विनय के पैसों पर तुम्हारा और सिद्ध का अधिकार है. उस के बाद चाची का, मेरा तो इस पर कोई भी हक नहीं बनता. न कानूनी न सामाजिक,’’ शैली ने इनकार कर दिया.

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