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जनवरी का पहला सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार

Bollywood Jan 2024 Box Office Collection : हमेशा से माना जाता रहा है कि जनवरी के पहले सप्ताह में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों को सफलता नसीब नहीं होती लेकिन इस वर्ष 5 जनवरी को प्रदर्शित हुई फिल्में ‘फायर औफ लव रेड’ तथा ‘तोबा तेरा जलवा’ के निर्माताओं ने दावा किया था कि वे इस वर्ष इतिहास बदल देंगे.

दिसंबर 23 में प्रदर्शित सफल फिल्म ‘एनिमल’ से अपनी फिल्म ‘फायर औफ लव रेड’ की तुलना करते हुए निर्देशक अशोक त्यागी ने दावा किया था कि उन की फिल्म ‘एनिमल’ का बाप है और फिल्म ‘तोबा तेरा जलवा’ में ‘ग़दर 2’ फेम अमीषा पटेल हीरोइन है, इसलिए उम्मीद थी कि ये फिल्में एक नया इतिहास रचेंगी. पर अफसोस कि इन फिल्मों के निर्माता और इन के प्रचारक ने सब बंटाधार कर दिया.

फिल्म ‘एनिमल’ की ही तरह राजीव चौधरी व निर्देशक अशोक त्यागी की फिल्म ‘फायर औफ लव रेड’ ऐसे इंसान की कहानी है जो लोगों की नजर में मशहूर लेखक है पर वह हिंसा व सैक्सप्रेमी है. मगर दोनों फिल्मों में सब से बड़ा अंतर यह है कि ‘एनिमल’ में सबकुछ दृश्यों के माध्यम से दिखाया गया था जबकि ‘फायर औफ लव रेड’ में संवादों से बताया गया है कि नायक 6 लड़कियों के साथ यौनसुख भोगने के बाद उन की हत्याएं कर चुका है.

फिल्म की कहानी व पटकथा कमजोर है. निर्देशक अशोक त्यागी अपने फिल्म के हीरो कृष्णा अभिषेक को सुपरस्टार बता रहे थे लेकिन फिल्म में कृष्णा अभिषेक को देख कर लगता है कि उसे अभिनय नहीं आता. फिल्म के निर्देशक अशोक त्यागी अपने बलबूते पर फिल्म को सोशल मीडिया पर प्रमोट करते रहे मगर निर्माता, इस फिल्म के प्रचारक ने कोई काम नहीं किया.

इतना ही नहीं, फिल्म के कलाकार कृष्णा अभिषेक, पायल घोष, भारत दाभोलकर सहित किसी ने भी फिल्म को प्रमोट नहीं किया. मजेदार बात यह है कि फिल्म के निर्माता राजीव चौधरी किसी जमाने में फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ सहित राजश्री प्रोडक्शन, देव आनंद व भप्पी सोनी सहित कई दिक्कत फिल्मकारों के प्रचारक रहे हैं.

यही नहीं, इस फिल्म के प्रदर्शन की तारीख भी 5 बार बदली गई. परिणामतया 4 करोड़ रुपए की लागत में बनी यह फिल्म बौक्सऔफिस पर सिर्फ 25 लाख रुपए ही कमा सकी. किसी फिल्म की इतनी बड़ी दुर्गति की कल्पना नहीं की जा सकती.

फिल्म के प्रदर्शन से पहले निर्देशक अशोक त्यागी और निर्माता राजीव चौधरी के सारे दावों की हवा निकल गई. अभिनेता कृष्णा अभिषेक सुपरस्टार तो छोड़िए, फिल्मों में अभिनय करने के लायक भी नहीं रहे. उन के लिए छोटा परदा ही जिंदाबाद.

5 जनवरी को ही दूसरी फिल्म ‘तोबा तेरा जलवा’ प्रदर्शित हुई जिस की कहानी के केंद्र में उत्तर प्रदेश का रियल स्टेट कारोबारी रोमी त्यागी (जतिन खुराना) है. उस की पारिवारिक जिंदगी खुशहाल है पर जब रोमी की जिंदगी में लैला (अमीषा पटेल) आती है तो बवाल मच जाता है.

फिल्म की कमजोर पटकथा, कमजोर निर्देशन और कलाकारों के निराशाजनक अभिनय के साथ ही बिना प्रचार के फिल्म को प्रदर्शित किया जाना फिल्म को डुबो दिया. फिल्म के प्रचारक ने पत्रकारों के पास फिल्म के ट्रेलर लौंच की खबर ईमेल पर भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली.

अमीषा पटेल व जतिन खुराना ने भी इस फिल्म को प्रमोट करने के लिए एक भी दिन का वक्त नहीं दिया. लेखक व निर्देशक आकाश आदित्य लामा ने 2012 में एक असफल फिल्म ‘सिगरेट की तरह’ निर्देशित की थी. अब पूरे 12 साल बाद वे लेखक व निर्देशक के तौर पर ‘तोबा तेरा जलवा’ ले कर आए पर उन्होंने बेमन ही लेखन व निर्देशन किया.

5 करोड़ रुपए की लागत में बनी फिल्म ‘तोबा तेरा जलवा’ महज 30 लाख रुपए ही बौक्सऔफिस पर कमा सकी. काश, फिल्मकार व कलाकार पैसे की बरबादी करने के बजाय अपने काम को ईमानदारी से करने पर ध्यान देते तो यह नौबत न आती.

यह भूल मत करना : माधवी की शादी हुई या नहीं ? – भाग 2

‘‘मौसी,’’ मैं ने विरोध किया.

‘‘हां, माधवी, प्रेम करना है और उस में सफल होना है तो बहुत साहस चाहिए, नहीं तो मेरे जैसी दशा होगी.’’

‘‘मौसी, आप के जैसी? आप को क्या हुआ?’’ मैं चौंकी. मैं कुछ समझ न पाई थी.

‘‘माधवी, क्या तुम ने कभी यह गौर नहीं किया कि इतने बरसों में तुम्हारे मौसाजी कभी मेरे मायके नहीं आए?’’

‘‘हां, इस पर लोगों की टिप्पणियां भी सुनी हैं. क्यों नहीं आते, मौसाजी?’’

‘‘वही कारण है माधवी, जो मैं ने तुम्हें बताया है, प्रेम में मेरी कायरता.’’

‘‘आप ने कैसी कायरता दिखाई, मौसी?’’

‘‘माधवी, मेरी सगाई जिस से हुई थी, एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में उस की एक बांह कुचल गई थी. हाथ ठीक तो हुआ पर 3 उंगलियां कट गईं. उस ने सगाई तोड़ दी और कसम दिलवा कर मेरी शादी तुम्हारे मौसाजी से करवा दी. मैं बहुत रोईधोई. मैं ने आत्महत्या करने की भी कोशिश की पर कुछ न हुआ और मेरी शादी यहां हो गई,’’ इतना कह कर मौसी काफी देर चुप रहीं तो मुझे लगा, वे रो रही हैं.

‘‘मौसी, मौसी,’’ मैं ने मेहंदी लगे हाथों से मौसी का चेहरा छू कर देखा तो वे हंस कर बोलीं, ‘‘नहीं, माधवी, मैं रो नहीं रही. दूसरों की गलती हो तो रोऊं, अपनी गलती पर इंसान आखिर कब तक रोएगा?’’

इतना घोर अवसाद मौसी की आवाज में था कि एक पल को मैं अपना भी दुख भूल गई. मैं मेहंदी रचे हाथ मौसी के कंधों पर रख, बोली, ‘‘मौसी, क्या बात है? बताइए न?’’

‘‘हां माधवी, बताती हूं. यही समय है बताने का, वरना मेरे जैसी एक भूल तुम भी कर बैठोगी.

‘‘मैं जब 18 वर्ष की थी और कालेज में द्वितीय वर्ष में पढ़ती थी, तब मेरी सगाई सतीश नामक युवक से हुई थी. वह आकाशवाणी में अभियंता था. सुंदर, सुसंस्कृत और आधुनिक विचारों वाला. मांपिताजी ने मेरी बात मान ली कि मैं पहले बीए कर लूं, शादी के बाद पढ़नालिखना न हो पाएगा. फिर 4-5 माह तक वह यदाकदा मुझ से मिलने, मेरी पढ़ाई की बात पूछने आता रहा. फिर कभीकभार हम बाजार जाते.’’

‘‘‘मुझे बहन के लिए गिफ्ट खरीदना है, एकता को ले जाऊं?’ सतीश कहता, ‘मां ने बाजार जाने के लिए कहा है, एकता को साथ ले कर हम जाएं?’ धीरेधीरे घनिष्ठता बढ़ने लगी. मुझे तो पता था उस से मेरी शादी होने वाली है, इसलिए मैं अपने मन की बातें उसे बताती.

‘‘मैं उस का बहुत आदर करती थी, माधवी, क्योंकि मेरे भोलेपन का उस ने कभी फायदा नहीं उठाया. मेरी पवित्रता पर लांछन न लगने दिया. हमारी शादी

की तारीख पक्की हुई. उसी के 4 दिनों

बाद वह एक गाय को बचातेबचाते मोटरसाइकिल से गिर पड़ा. उस

का बायां हाथ उस के नीचे आ कर कुचल गया.

‘‘बस, 2 दिनों बाद जब उंगलियां कटीं तब से वह मेरे पीछे पड़ गया कि एकता, मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. तुम्हारा जीवन खराब नहीं कर सकता.’’

‘‘आप ने मना नहीं किया, मौसी?’’

‘‘किया माधवी, पर हाथ के घाव के कारण वह बहुत मानसिक तनाव में था. डाक्टर को शक हुआ कि वह ठीक नहीं हो पाएगा. आखिरकार, सब के दबाव में आ कर मैं मान गई,’’ कहतेकहते मौसी कुछ क्षण को चुप हो गईं. मैं उन के दर्द का एहसास करती रही. वे फिर बोलीं, ‘‘और तब, तुम्हारे मौसाजी से शादी हो गई.’’

‘‘फिर?’’ मैं ने पूछा.

‘‘उन्हें थोड़ी बातें तो मालूम थीं. मैं भी प्रेम से आहत थी. अपनी सारी भड़ास मैं ने तुम्हारे मौसाजी को अपराधी सिद्ध करने में निकाली, ‘आप मुझ से शादी न करते तो क्या होता? मैं ने सतीश को ही पति माना है. आप के साथ फेरे लेने से ही थोड़ी न सबकुछ हो गया,’ और भी न जाने क्याक्या,’’ कहती हुई मौसी फिर चुप हो गईं. शायद वे उन दिनों की कड़वी यादों में खो गईं.

‘‘फिर मौसी?’’ मैं ने टोका.

‘‘फिर क्या, 2 साल तक मैं मायके में ही रही. बीए किया, तब तक सोचविचार में परिपक्वता आई. मेरे पड़ोस में सुधा नामक एक युवती रहने आई थी, उस से मेरी अंतरंगता बढ़ गई. उसे सब बताया तो उस ने जो बात कही वह मुझे चुभ गई, ‘एकता, तुम ने 2 गलतियां कीं. एक तब जब सब के कहने पर तुम ने सतीश को छोड़ा. अरे, साहस कर के थोड़े दिन उसे झठा आश्वासन दे देतीं, फिर कर लेतीं शादी. मातापिता के सामने दिखातीं साहस. यदि वही दुर्घटना शादी के बाद होती तो क्या तुम सतीश को छोड़ देतीं? ‘दूसरी गलती की अपने पति को पहली ही रात सतीश के बारे में बता कर या तो तुम उन से विवाह न करतीं और अब, जबकि कर लिया तो चुप रहतीं. कोई गलत कदम तो तुम ने उठाया नहीं था, न बतातीं. अब तुम ने और सतीश ने अपना जीवन तो खराब किया ही, एक और पुरुष का जीवन बरबाद करने पर तुली हो. या तो उन्हें छोड़ दो, स्वतंत्र कर दो या फिर उन के पास चली जाओ.’’’

‘‘तो आप मौसाजी के पास चली गईं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां माधवी, चली गई. 2 वर्षों तक वे हर तीजत्योहार पर आते रहे. हम एक कमरे में रहते पर वे मुझे छूते भी नहीं. मेरे घर के किसी व्यक्ति को नहीं मालूम कि  हमारे बीच क्या चल रहा था. कभी वे मुझे एक ताना भी न देते.’’

‘‘फिर क्या किया आप ने?’’

‘‘एक दिन मैं स्वयं तुम्हारे मौसाजी के पास चली गई. क्षमा मांग ली उन से तो उन्होंने कहा, ‘एकता, क्या तुम तनमन से आज से मुझे अपना पति मान रही हो? इस रास्ते में पीछे नहीं मुड़ पाओगी, फिर कभी?’ मैं ने हां कर दी,’’ कहते मौसी ने लंबी सांस ली.

‘‘मगर मौसाजी यहां क्यों नहीं आते, मौसी?’’

‘‘क्या पता, माधवी. मैं ने इस बारे में उन से कभी न पूछा. बस, एक दिन उन्होंने मुझ से कहा, ‘तुम जाओ, रोकूंगा नहीं पर मुझे जाने को न कहना.’’

‘‘और आप के साथ मौसाजी का व्यवहार?’’

‘‘हमेशा ठीक रहा. माधवी, मैं यह कहना चाहती हूं कि तुम ऐसी कोई भूल न करना. आलोक का कोई पत्र या फोटो न रखना. मैं ने रखा था संदूक में. एक दिन तुम्हारे मौसाजी सुबह की चाय पीतेपीते बोले, ‘एकता, क्या तुम्हें नहीं लगा कि तुम्हारे संदूक में रखे पत्र, कार्ड और सूखे फूल फेंक दिए जाने चाहिए?’ मुझे कैसा लगा, मैं बता नहीं सकती. तब तक शकुन और आरती पैदा हो चुकी थीं.’’

‘‘सब से अधिक शर्म की बात तो यह है माधवी कि सतीश ने मेरी शादी के एक साल बाद ही शादी कर ली थी और मैं ने वे 2 साल किस तनाव व अपमान में काटे, मैं ही जानती हूं. इधर जिस शख्स के लिए मैं पति को ठेस पहुंचा चुकी थी, वह सुख से जी रहा था,’’ कहतेकहते मौसी का गला सूखने को हुआ.

‘‘फिर भी मौसी, आप ने उन के पत्र और फूल संजो रखे थे,’’ मैं ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा.

दोस्त अजनबी : आखिर क्या हुआ था सुधा और पुण्पावती के बीच ? – भाग 2

कार्यक्रम दोबारा बना. पुण्पा को बताया, ‘अब पहले तुम्हारे पास आ रही हूं, 3 दिन बाद मामाजी के यहां जाऊंगी, जाना जरूरी है, फिर लौट कर 4 दिन तुम्हारे साथ रहूंगी, फिर वापस बुदापैश्त. अब तो ठीक है?’ पुण्पा खुश थी.

मैं उत्साहित भी थी और थ्रिल्ड भी. परदेश में पहली बार अकेले घूमने जा रही थी. लोगों ने कहा, डर की कोई बात नहीं है, यह भारत तो है नहीं है कि अकेली औरत देखते ही लोग माहौल सूंघने के लिए आसपास मडराने लगें. यहां तो अकेले ही आनेजाने का चलन है.

पैकिंग हो गई. फारेंट, जिलौटी और यूरो को पर्स के अलगअलग खानों में रख कर अनुराग ने काफी हिदायतें दे दीं. मेरे मैथ्स पर उन्हें कभी भरोसा नहीं रहा. ट्रेन कैलेती स्टेशन से चलती थी. टैक्सी ले कर जब स्टेशन पहुंचे तो पता चला प्लेटफौर्म पर केवल यात्री ही जा सकते हैं. भारी मन से अनुराग को विदा दे कर धडक़ते दिल से अटैची घसीटते कंधे पर भारी सा बैग संभालती आगे बढ़ी. ट्रेन लगी हुई थी. सामने ही यूनिफौर्म में टीटी खड़ा था. उस के बताए कूपे में घुस कर अपनी बर्थ देखी. कूपे में 6 सीटें थीं, शीशे के दरवाजे पर परदा पड़ा था.

ट्रेन सुबहसुबह वार्सा पहुंच गई. उतर कर बाहर जाने का रास्ता पूछा और माल असबाब के साथ बाहर आ गई.

‘टैक्सी?’ एक टैक्सीवाला मेरे बाहर निकलते ही आ कर पूछने लगा. ‘वाह, यहां भी इंडिया की तरह है,’ सोचा और पुण्पावती का पता उसे दिखा दिया.

‘ओके, ओके,’ करता वह टैक्सी की ओर बढ़ा. सामान रख कर मैं भी टैक्सी में बैठ गई. चलतेचलते करीब आधा घंटा हो गया. वार्सा की साफसुथरी, लंबीचौड़ी सडक़ें अभी अंगड़ाई ले रही थीं. ट्रैफिक पूरी तरह शुरू नहीं हुआ था, न ही दुकानें खुली थीं. मगर सुबह की हलकीफुलकी चहलपहल शुरू हो चुकी थी. वार्सा बुदापैश्त से ज्यादा खुला और आधुनिक लगा. होना ही था. विश्व युद्ध में तो यह शहर लगभग पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था, पर जितनी तेजी से और सुंदरता से इसे नया रूप कर दिया गया था उस से पोलिश लोगों की मेहनत, इच्छाशक्ति और कल्पना का लोहा मानना ही पड़ा.

अब तक टैक्सी में बैठेबैठे बोरियत होने लगी थी. पुण्पा ने तो कहा था कि घर स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है. कहीं यह भी दिल्ली के टैक्सीवालों की तरह घुमा तो नहीं रहा है. मन में एक बार खयाल आया. पता नहीं क्यों एक विश्वास था कि ‘नहीं, ये लोग धोखा नहीं दे सकते’, यह सोच कर सीट से टिक कर बाहर देखने लगी. थोड़ी देर में होटल आ गया. मैं ने टूटीफूटी इंग्लिश और इशारे से ड्राइवर को समझाने की कोशिश की कि वह इंतजार करे, मैं एक बार कन्फर्म कर आती हूं कि मेरी फ्रैंड यही रहती है. वह समझ गया. मैं अंदर गई और होटल के बोर्ड पर उस का नाम देख कर वापस आ गई.

‘ओ को?’ ड्राइवर ने पूछा ‘येस,’ मैं ने कहा. उस ने डिक्की से सामान निकाल कर बाहर रख दिया. ‘हाऊ मच?’ मेरे पूछने पर ड्राइवर ने मीटर दिखा दिया. 49.50 लिखा था. मैं ने न जाने क्या सोच कर उसे 50 यूरो दिए. वह उन्हें ले कर टैक्सी में बैठा और मैं कुछ सोच या कर पाती, उस से पहले ही उस ने टैक्सी स्टार्ट की और चला गया. ‘बाप रे. इतनी मंहगी टैक्सी है यहां’ मैं ने मन में सोचा और सामान घसीटती अंदर चल दी.

पुण्पा के अपार्टमैंट से फोन पर बात करने की आवाज आ रही थी. घंटी बजाई, ‘हेलो सुधा’ दरवाजा खुलते ही एक अजनबी चेहरा और जानीपहचानी आवाज सामने थी.

‘हेलो, आप पहचान गईं?’

‘लो, कैसे न पहचानती, एक साल से नैट पर बात करकर के अजनबीपन तो जैसे भाग ही गया था.’

‘बस, झट से नहा कर आती हूं, फिर आराम से चाय पिएंगे.’

‘आप को कितने बजे यूनिवर्सिटी जाना है?’

‘जल्दी नहीं. साढ़े बारह बजे, बहुत समय है.’

‘ठीक है.’ नहा कर आई तब तक पुण्पा ने चायपकौडिय़ां तैयार कर मेज पर रख दी थीं.

खातेखाते इधरउधर की बातें होती रहीं. चूंकि अभी तक हम लोग इंटरनैट पर ही बातें करते रहते थे, इसलिए आमनेसामने बैठ कर वही बातें फिर से करने पर भी नई लग रही थीं. एकदूसरे की शक्ल हम पहली बार ही देख रही थीं.

जब मैं पुण्पा की तरफ देख कर बात करती तो परिचयअपरिचय का मिलाजुला अजीब सा एहसास होता, मगर जब उस की आवाज सुनती तो लगता न जाने कितना पुराना परिचय है.

यूनिवर्सिटी के लिए निकलते हुए पुण्पा ने कहा, ‘आप का ट्राम का एक हफ्ते का टिकट बनवा देती हूं, नहीं तो परेशानी तो होगी, साथ ही, बहुत महंगा भी पड़ेगा.’

‘हां, यहां तो टैक्सी बहुत ही मंहगी है,’ मुझे सुबह के 50 यूरो मन में कसक रहे थे.

‘हां. मंहगी तो है मगर बहुत ज्यादा तो नहीं.’

‘अरे, स्टेशन से आप के घर का टैक्सीवाले ने 50 यूरो ले लिए थे.’

‘क्या, 50…यूरो..?’ पुष्पा का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘आप ने पूछा कि यूरो या जिलौटी? यहां की करैंसी तो जिलौटी है न?’

‘नहीं, मैं ने 50 यूरो का नोट दिया और वह ले कर चला गया.’

पुण्पा कुछ क्षण वैसी खड़ी रही, ‘छोड़िए, जो हो गया सो हो गया. बेईमान सब जगह होते हैं. हम भारतीय लोग तो यहां शक्ल से ही परदेशी के रूप में पहचान लिए जाते हैं.’

‘उसे बाकी पैसे लौटाने चाहिए थे न.’ मुझे लगा मैं रो दूंगी. 50 यूरो बड़ी रकम थी.

‘हां, उसे पता चल गया कि आप विदेशी हैं. आप को करैंसी के बारे में ज्यादा मालूम नहीं है. लगता है सुबहसुबह आप से कोई महा बेईमान टकरा गया. वरना स्टेशन से यहां तक 25-30 जिलौटी से ज्यादा नहीं लगता.’

मुझे अपने ऊपर गुस्सा आने लगा. जब वह गाड़ी में बैठा था तो मैं ने रोका क्यों नहीं? बेवकूफों की तरह देखती क्यों रही? दिल कर रहा था कि अगर टैक्सीवाला मिल जाए तो टैक्सी उठा कर उस के ही सिर पर दे मारूं.

‘छोड़िए, जितना सोचेंगी उतना दुख होगा.’ मुझे भी मालूम था कि जो हो गया उस के लिए कुछ नहीं किया जा सकता. पर अपनी इस बेवकूफी के कारण मन बहुत खराब हो गया. अनुराग ने कितनी बार सारी करैंसीज समझाई थीं. कहा था स्टेशन पर ही और कनवर्ट करवा लेना. मगर, अब घूमने का मजा आधा हो गया.

पुण्पा मुझे वार्सा और पोलैंड के बारे में न जाने क्याक्या बताती जा रही थी. मगर मेरा कुछ सुनने में मन नहीं लग रहा था. ‘पता नहीं कौन मनहूस कूपे में था, जिस का मुंह सुबहसुबह देखा था,’ मन ही मन बड़बड़ाती जा रही थी.

‘अगर आप 50 यूरो में ही अटकी रहेंगी तो कुछ एंजौय नहीं कर पाएंगी,’ पुण्पा कह रही थी.

‘नहींनहीं, मैं कुछ और सोच रह थी.’ मैं चोरी पकड़ी जाने पर शर्मिंदा हो गई. मैट्रो स्टेशन से 7 दिन का पास ले लिया. हालांकि वहां रहना 4 दिन ही था. 7 दिन का पास 3 दिन का टिकट खरीद कर यात्रा करने से ज्यादा सस्ता पड़ा.

आगे के 4 दिन खूब मजे से गुजरे. हम सुबह से शाम तक वार्सा के अलगअलग इलाके घूम आए.

अगले दिन मुझे मामाजी के यहां जाना था. फ्लाइट सुबह की थी. मैं निकल गई. जिस दिन लौटना था उस दिन पुण्पा ने कहा था कि वह छुट्टी ले लेगी. मैं दोपहर में ही वार्सा पहुंच गई. मैं ने पुण्पा को फोन किया. वह क्लास में थी. उस ने छुट्टी नहीं ली थी, ‘ठीक है, आप लौबी में इंतजार कीजिएगा, मैं एक घंटे तक पहुंच जाऊंगी.’ मुझे ताज्जुब हुआ कि पुण्पा ने यह क्यों नहीं कहा कि आप रिसैप्शन से चाबी ले कर घर चली जाइएगा. थकान और नींद से सिर भारी हो रहा था. एक बार मन में आया कि पुण्पा से फोन कर के चाबी के लिए पूछ लूं. शायद क्लास में होने के कारण वह चाबी की बात करना भूल गई होगी. मगर फिर न जाने क्या सोच कर नहीं पूछा. इस बार टैक्सीवाले को जिलौटी में ही भुगतान किया और अपनी बुद्धिमानी पर खुश होती हुई लौबी में बैठ कर पुण्पा का इंतजार करने लगी. करीब एक घंटे के बाद पुण्पा आ गई.

‘हल्लोऽऽ’ पुण्पा को दूर से देख मैं ने चहक कर कहा.

‘हलो.’ पुण्पा की आवाज में लेशमात्र भी उत्साह न था. मुझे यह सपाटपन थोड़ा खटका, ‘थकी है, शायद लगातार लैक्चर रहे होंगे,’ मन को समझा लिया.

‘चलो, तुम्हें किसी से मिलवाती हूं,’ पुण्पा ने कहा.

‘किस से?’ मुझे हैरानी हुई. पुण्पा ने चाबी नहीं ली थी. हम सीधे ऊपर आ गए.

घंटी बजाते ही दरवाजा खुला, ‘मेरे हस्बैंड’ पुण्पा ने सामने खड़े पुरुष से मेरा परिचय कराया.

‘नमस्ते,’ मैं ने मशीनी अंदाज में हाथ जोड़ दिए, पर मैं सकते में आ गई, ‘मगर पुष्पा, तुम्हारे हस्बैंड तो अगले सप्ताह आने वाले थे न?’

‘हां, मगर मेरी मदर की तबीयत खराब है, इसलिए इन्हें जल्दी आना पड़ा.’

‘ओह. क्या बहुत ज्यादा खराब है?’

‘हां,’ पुण्पा ने कहा, मगर न जाने क्यों मुझे उस का लहजा पहले से बदला हुआ लग रहा था.

छंटती हुई काई : क्या निशात के ससुराल वाले दकियानूसी सोच छोड़ पाएं ? – भाग 2

‘‘मैं बहुत परेशान और फिक्रमंद हूं, अपनी बेटी और नवासी के मुस्तकबिल को ले कर. अभी मुझे अपनी और 2 जवान बेटियों की भी शादी करनी है. पहला ही रिश्ता नहीं निभा तो बाकी रिश्ते कैसे जोड़ सकूंगा, कामिल भाई. मेरी बेटी एमए कर रही थी. लड़का सरकारी नौकर है, खातापीता घर का है यही सोच कर फौरन शादी की तैयारियां कर बेटी की शादी करा दी. एक बात जानते हो, पढ़ने वाली बेटी पर काम का बोझ कभी उस की मां ने डाला नहीं.

“नातजुर्बेकार लड़की के ऊपर 6-7 लोगों के 3 वक्त के खाने का भार डाल कर सास पान की टोकरी ले कर दिनभर मोहल्ले वालों, रिश्तेदारों की गिबतें करती बैठी रहतीं. कभी खाने में कोई कमी रह जाती तो शौहर आसमान सिर पर उठा लेता. उस ने कुछ अच्छे शेरों को फ्रेम करा कर घर में टांग दिया तो सास कहने लगीं कि हमें तालिम दे रही है यह कल की लड़की,’’ सास के ताने सुनसुन कर बेटी रोती रहती थी. आप ही बताइए, क्या गलत किया मेरी बेटी ने?’’ हनीफ हताशाभरे स्वर में बोला.

मैं जानता हूं कि इस 21वीं सदी में भी मुसलमान शरियत के खिलाफ, उन बेबुनियाद रवायतों को पीढ़ी दर पीढ़ी मानते चले जा रहे हैं जिन का हदीसों में कहीं जिक्र तक नहीं है. कई मुसलमान मजारों पर सजदा कर के खुदावंदताला के वजूद को ही नकारने से बाज नहीं आते. इसलामी तौरतरीकों से अनजान जाहिल व अनपढ़ मुसलमान औरतें अपनी अधकचरी जानकारी बच्चों पर थोप कर उन्हें शिर्क और बिद्दत करने की सबक घुट्टी में पिला देती हैं. रहीसही कसर कठमुल्ला लोग अपनी रोटी सेंकने के लिए कौम की जाहिलियत का भरपूर फायदा उठा कर उन्हें इसलाम की सही बातें न बतला कर सदियों से चल रहे गैरइसलामी बातों की ही जानकारी दे कर गुमराही के अंधेरी खोहों में धकेल देते हैं.

“सच तो यह है कि हिंदुस्तान के मुसलमानों को किसी भी बात की सही जानकारी है ही नहीं, तभी तो पूरा माअशरा कई फिरकों में बंटा अपनेअपने तरीके से इसलाम के फरायज को अंजाम देता है और एकदूसरे के खिलाफ खड़ा रहता है.

मैं समझ गया था कि अजमेरी साहब के घर में सासबहू के अहं की टकराहट की धमक गूंजने लगी है. परिवार की शांति, अंधविश्वासों और रोशनखयाली के बीच गहरे अंतराल की खाई को पार कर सकने में असमर्थ है.

रूमाल से मुंह पोंछ कर हनीफ मंसूरी बतलाने लगे कि हमारे घर में सब के लिए तौलिए, साबुन और खाने के लिए शालियां भी अलगअलग हैं लेकिन निशात के ससुराल में पूरा घर एक ही साबुन, एक ही तौलिया और एक बड़े कटोरे में निवाला डूबोडूबो कर सभी लोग सालन रोटी खाते हैं. एक बड़ी परात में चावल डाल कर सभी साथसाथ खाते हैं. यहां तक कि एक ही गिलास से सब पानी भी पी लेते हैं.

बेटी ने शौहर को अकेले में समझाने की कोशिश की थी,‘‘अम्मी को पायरिया और आप के छोटे भाई को टीबी और अब्बू को चर्मरोग है. आप सब एक ही तौलिए का इस्तेमाल करते हैं. दूसरे का जूठा पानी और खाना खाते हैं तो ये बीमारियां पूरे घर के लोगों में फैल जाएंगी. ये संक्रामक बीमारियां हैं. ये सब हाइजीनिक भी नहीं हैं. अगर आप लोग अलगअलग…’’ इतना सुन कर बेटे ने बीवी की सलाहों को नमकमिर्च लगा कर मां तक पहुंचाने में जरा सी देरी नहीं की. सास तो गरम तवे पर पानी की बूंदों की तरह छनछनाने लगीं.

निशात पर तो तोहमत लगाया जाने लगा, ‘‘हम बहू की जगह घर को तोड़ने वाला इबलीस ब्याह कर ले आए हैं. हमारे घर की एकता बरदाश्त नहीं हो रही है कमबख्त से.’’ सब की आंखों में किरकिरी की तरह खटकने लगी निशात.

‘‘लगा दो 2-4 हाथ कमीनीकुतिया को. अभी अक्ल ठिकाने आ जाएगी. इस से पहले कि मेरा घर तोड़े, मैं इस का थोबड़ा ही न तोड़ दूं,’’ कहते हुए सास ने तड़ातड़ 2-4 थप्पड़ जड़ दिए थे निशात के गाल पर.

पढ़ीलिखी निशात तिलमिला गई थी. अपमान की भयंकर वेदना में सुलगती 2 दिनों तक बिना खानापीना कमरे में पड़ी रही. पतिपत्नी के बीच विश्वास, सामंजस्य और आपसी समझदारी से हर बात को एकदूसरे के साथ बांटने की बुनियादी नियमावली को धता बतला कर उस का पढ़ालिखा मातृभक्त पति सरेआाम उस के यकीन की धज्जियां उड़ा देता, तो बुरी तरह से छटपटा कर रह जाती निशात. ब्याहता जीवन में तन का मेल होने से मन और खयालात भी मिल जाएं यह जरूरी नहीं है.

निशात का देवर जमीनों की दलाली और ठेकेदारी करता था. ससुर रिटायर्ड हुए तो अतिरिक्त आमदनी के लिए मकान के ऊपर और 3 कमरे बना लेने की प्लानिंग होने लगी तो निशात ने सास के सारे कसैले व्यवहार भूला कर सलाह दी, ‘‘अम्मी, आप और अब्बू इस साल हज कर आइए. मकान तो आप के बेटे बना ही लेंगे कभी न कभी.’’ लेकिन बददिमाग सास को बहू की हर सीधीसहज बात उलटी ही लगती थी.

वे आंखें तरेर कर बोलीं,”अच्छा तो तू चाहती है कि हम अपने पैसे फुजूल में बरबाद कर के अपने बच्चों के जीने के साधन भी छीन लें. यह क्यों नहीं कहती कि हमारे रहने से तेरी आजादी छिन गई है. हमारी सलाह तुझे बंदिशें लगती हैं. हज के बहाने हमें बाहर भेज कर तू पूरे घर पर हुकूमत करना चाहती है.’’

“बस, इसी तरह बेटी की सास उस से लड़ने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ लेती है. बेसिरपैर की छोटीछोटी बातों ने मेरी बेटी की खुशियां छीन ली हैं. 2 साल हो गए सुनते और सहते हुए, लेकिन बेटी को जब मेरे घर पर छोड़ गए तो सब्र के सारे बांध टूटते जा रहे हैं. इस मामले में अगर पसमांदा समाज समिति कोई कदम नहीं उठाती है तो मैं पुलिस में रिपोर्ट करूंगा. दहेज उत्पीड़न, घरेलू मारपीट और जान से मार देने की धमकी देने का इलजाम लगाऊंगा. तब इन बददिमागों की अक्ल ठिकाने आएगी.

“शादीब्याह को मजाक समझ लिया है. दहेज की लालच में शादी की, औरत के साथ ऐश किया, बच्चा पैदा कर लिया. अब उसे जिस्मानी और मानसिक तकलीफे दे रहे हैं. कोर्ट के चक्कर लागाएंगे तब समझ में आएगा आटेदाल का भाव. धूल चटा दूंगा उन्हें,’’ हनीफ गुस्से से कांपने लगा था.

‘‘हनीफ भाई, थोड़ा सब्र और तसल्ली रखें. आप की समधिन मेरी बीवी की रिश्ते की बहन है. हम दोनों उन के घर जा कर बात करेंगे. बड़े से बड़े मसले आपस में बैठ कर सुलझा लिए जाते हैं. सब ठीक हो जाएगा. आप जोश में आ कर ऐसा कोई कदम न उठाइएगा कि 3 जिंदगियां बरबाद हो जाएं,’’ मैं ने हनीफ के कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली दी.

रात को बिस्तर पर लेटा तो हजारों खयाल, अनेक सवाल दिमाग को मथने लगे,’ निशात जैसी न जाने कितनी लड़कियां हैं जो अपने ससुराल वालों की तंगजहनियत और बहू को सिर्फ नौकरानी और बच्चे जनने वाली मशीन समझी जाने के कारण आपसी तालमेल नहीं बैठा पाती हैं. कभी अहं, कभी दहेज, कभी बहू का खुलापन, कभी बहू की तालिम वगैरा ससुराल में सासननदों के गले में हड्डी की तरह फंसने लगता है. कब खत्म होगी यह आपसी और घरेलू कलह, कब सोच पाएगा मुसलमान अपनी तरक्की के साथ माअशरे और मुल्क की तरक्की के बारे में. ढेर सारे बच्चे, उन की समस्याएं, परवरिश, शादीब्याह, फिर तलाक, कोर्टकचहरी. बस, इसी में ही खत्म हो जाती है मुसलमानों की जिंदगी,’ ठंडी सांस ले कर मैं ने करवट बदली तो याद आ गया कि आज जो हनीफ अपनी बेटी की चिंता में बिलबिला उठा है, 3 साल पहले उसी हनीफ की मौजूदगी में मुझे अपमान का कितना गहरा आघात सहना पड़ा था.

वह नाजुक सी लड़की : क्या मंजरी और रोहन की शादी हो पाई ? – भाग 2

लेकिन सच्चे प्रेमी भला खतरों से कभी डरते हैं. वे कहीं न कहीं मिल कर आपस में अपने दिल का दर्द बांट लेते.

वह 11वीं में आ गई थी. उस ने कोचिंग में पढऩे की इच्छा जाहिर की थी. अम्मांपापा की काफी लंबी बहसबाजी के बाद एक ऐसी कोचिंग में उस का ऐडमिशन करवा दिया गया, जहां फीस नहीं लगती थी, साथ ही उस के ऊपर पूरी निगरानी भी रखी जा सकती थी.

अब वह देखता था कि मंजरी सुबह होते ही कभी घर का सामान लेने जाती, कभी दूध तो कभी चाय तो कभी सब्जी… यह सिलसिला रात तक चलता रहता. और वह जैसे ही घर में घुसती माधुरी की चीखचिल्लाहटें सुनाई पडऩे लगती थीं.

एक दिन वह रोहन के सामने फफक पड़ी थी, ‘‘रोहन, अम्मां मुझ से कहती हैं कि तुम पैैसे चुरा लेती हो. बताओ क्या मैं चोर लगती हूं? उस का मासूम सा चेहरा देख रोहन की आंखें भी भीग उठी थीं.

एक किस्सा समाप्त नहीं होता, दूसरा शुरू हो जाता. एक शाम उन के घर से गाली, मारपीट की आवाजें सुनाई पड़ रही थीं. उन लोगों का शोर कोई सुन न ले, इसलिए तेज आवाज में टीवी चला दिया जाता था. 3-4 दिन बाद मंजरी मिली तो उस ने बताया कि पापा बोले, “कल उन्होंने रात में ₹10,000 गिन कर जेब में रखे थे. सुबह जेब में नहीं थे. अम्मां ने साफसाफ कह दिया कि वह कुछ नहीं जानती.”

घर में उन तीनों के सिवा दूसरा तो कोई था नहीं इसलिए पक्का था कि मंजरी ने ही चुराए हैं. उस ने बताया कि मेरी जम कर पिटाई हुई, पापा ने बेल्ट से पूरी पीठ उधेड़ कर रख दी, तो अम्मां ने लातघूंसे और थप्पड़ से पूरी कुटाई कर डाली. उस के बैग अलमारी, बिस्तर सबकुछ खंगाल डाला गया.

“सच बता, अपने आशिक को दे आई?”

पापा बोलो, “इतने रुपए ले कर यह घर से भागने की तैयारी तो नहीं कर रही है?”

मारपीट तो रोज की बात हो चुकी थी इसलिए वह भी ढीठ बनती जा रही थी,”मार डालो, एक दिन किस्सा ही खत्म हो जाए, लेकिन घर का काम करने के लिए भी तो नौकरानी चाहिए.”

बतौर सजा 3 दिन के लिए खाना बंद और स्कूल जाना भी बंद कर दिया गया. रोहन को वह दिखाई नहीं पड़ रही थी, इसलिए वह बेचैन था, लेकिन उस से मिलने का कोई रास्ता भी नहीं था. जब 3-4 दिन बाद वह दिखी, तो उस के चेहरे का रंग काला सा पड़ा हुआ था, शरीर एकदम दुर्बल दिखाई पड़ रहा था. जब रोहन से उस ने बताया कि मैं ने 3 दिनों से अन्न का दाना भी नहीं खाया है, तो सुनते ही रोहन की आंखों में आंसू आ गए. उस ने जल्दी से उसे जूस पिला कर डोसा खिलाया था.

“रोहन, अब मुझ से ये सब बरदाश्त नहीं होता.”

“मंजरी, मैं अपनी मां से बात करूंगा.”

छुटभैये गुंडे टाइप नेता तो रोज ही शाम को आते थे. लेकिन वह सामने नहीं जाती थी. हंसीठट्ठा और पीनापिलाना चलता. अम्मां सजधज कर बैठ जातीं और देर रात तक बैठकें चलती. मंजरी अंदर लेटेलेटे कभी सो जाती तो कभी उन के भद्देभद्दे हंसीमजाक और कभी गालीगलौच सुनती रहती.

कुछ दिनों से वह मिली नहीं थी, लेकिन अब वह नएनए कपड़ों में दिखार्ई देने लगी थी. घर के कामों के लिए कामवाली आने लगी थी. वही झाड़ू वगैरह करती. अब वह घर से बहुत कम निकलती थी.

एक दिन रात में किसी तरह चुपके से एक पत्र रोहन को दे कर जल्दी से वह अपने घर में भाग गई थी…

“प्रिय रोहन,

“जैसे बकरे को बलि देने के पहले नहलाधुला कर माला पहनाया जाता है, वैसे ही आजकल मुझे बढ़िया खाना खिलाया जाता है, मेवामिठाई खाने को दिया जाता है. ताकत के कैप्सूल खिलाए जा रहे हैं, जिस से मेरा शरीर भर जाए.

“मैं कैप्सूल नाली में फेंक देती हूं. आजकल मारपीट और अत्याचार बिलकुल बंद कर दिए गए हैं. मेरी शादी का ड्रामा रच कर 50 साल के बलविंदर के साथ मुझे बेचा जा रहा है.

“एक दिन वह आया था, तब अम्मां ने मुझे बैठक में बुलाया था. वह तो मुझे देखते ही बेकाबू हो गया था. मुझे अपने बगल में बैठा लिया, उस की वासना से पूर्ण लाल डोरे वाली आंखें मेरे जिस्म के आरपार देख रही थीं. उस के हाथ में शराब का जाम था. उस ने पहले मेरे गालों पर हाथ फेरा फिर मेरे हाथों को पकड़ लिया था.

“मैं वहां से गुस्से में उठ कर अंदर
भाग आई थी. अम्मां खुसुरफुसुर बातें कर रही थीं. शायद मेरा सौदा तय कर लिया है, इसलिए मुझे घर में बंद कर रखा है.

‘‘रोहन, यदि तुम कुछ नहीं करोगे, तो मैं फांसी पर लटक जाऊंगी और अपनी जान दे दूंगी. जो कुछ करना है, जल्दी करना. नहीं तो हाथ मलते रह जाओगे.”

रोहन ने पत्र अपनी मां सुजाता को दे दिया. उन्होंने अपनी नौकरानी से उन के घर आने वाली दाई से पता लगाने को कहा था. 2-3 दिन में यह साफ हो गया कि गुपचुप तरीके से उस के फेरे डालने की बातें घर में हो रही हैं.

सुजाताजी को मालूम था कि मंजरी बालिग हो चुकी है. उन्होंने अपने बेटे को चुपचाप तरीके से मंजरी को ले कर दिल्ली भाग जाने की सलाह दी.

दूसरा कोई रास्ता न दिखाई पड़ने पर मंजरी को ले कर कभी बस में तो कभी ट्रेन में छिपतेछिपाते दोनों दिल्ली पहुंच गए. वहां पर सुजाता की पुरानी सहेली ने दोनों की शादी करवा दी. दोनों अपना ठिकाना बदलबदल कर समय बिता रहे थे.

मंजरी होशियार थी. वह अपने साथ अपना हार्ईस्कूल का सर्टिफिकेट ले कर घर से निकली थी. सुजाताजी जानती थीं कि वह बहुत बड़ी मुसीबत में फंसने वाली हैं लेकिन एक तरफ उन के बेटे का प्यार था तो दूसरी ओर उस नाजुक सी लडक़ी मंजरी के जीवन को बचाने का था. वह प्यारी सी मंजरी के लिए सारे खतरों से लडऩे को तैयार थीं.

मंजरी को घर में न पा कर माधुरीजी की पैरों के नीचे से मानों धरती खिसक गई थी. मंजरी के एवज में उन्हें पार्टी की ओर से चुनाव लडऩे का टिकट और एक बड़ी धनराशि मिलने वाली थी. अब तो उन्होंने हंगामा करना शुरू कर दिया. उन्होंने रोहन के नाम नामजद रिपोर्ट पुलिस में लिखा दी. उस ने लिखवाया कि वह उन की लडक़ी को बहलाफुसला कर भगा ले गया है और मंजरी घर से ₹5 लाख ले कर भागी है. वह और उस के मांबाप दोनों ने मिल कर उन की नाबालिग लडक़ी को गायब कर दिया है.

उन दोनों पर पुलिसिया अत्याचार शुरू हो गया. पहले पूछताछ शुरू हुई, जब उस से कुछ नतीजा नहीं निकला, तो दोनों की पुलिस ने पिटाई कर के जेल में बंद कर दिया, क्योंकि दबंग नेता का पुलिस पर दबाव जो था.

वे यहांवहां भागते हुए परेशान थे. तभी उन्हें मातापिता के घर की कुर्की और उन की पिटाई की खबर मालूम हुई तो रोहन और मंजरी दोनों टूट गए और पुलिस के सामने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया.

मांबाप को पुलिस ने छोड़ दिया. बेटे की भी जमानत हो गई. लेकिन बेटी ने अपने मांबाप के पास जाने से इनकार कर दिया, तो पुलिस ने उसे ‘नारी निकेतन’ में भेज दिया.

नारी निकेतन की हालत देख वह सिसक पड़ी थी. वहां छोटीबड़ी सभी उम्र की लड़कियां और महिलाएं रहती थीं. कुछ तो ठीक दिख रही थीं, लेकिन कुछ की दशा दयनीय दिखाई पड़ रही थी. वार्डन की शक्ल में उसे दूसरी अम्मां मिल गई थीं जो बहुत कडक़ और कर्कश आवाज में भद्दीभद्दी गालियां देती थीं.

खरीदी हुई दुल्हन : मंजू को किस बात का डर था ?

38 साल के अनिल का दिल अपने कमरे में जाते समय 25 साल के युवा सा धड़क रहा था. आने वाले लमहों की कल्पना ही उस की सांसों को बेकाबू किए दे रही थी, शरीर में झुरझुरी सी पैदा कर रही थी. आज उस की सुहागरात है. इस रात को उस ने सपनों में इतनी बार जिया है कि इस के हकीकत में बदलने को ले कर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा.

बेशक वह मंजू को पैसे दे कर ब्याह कर लाया है, तो क्या हुआ? है तो उस की पत्नी ही. और फिर दुनिया में ऐसी कौन सी शादी होती होगी जिस में पैसे नहीं लगते. किसी में कम तो किसी में थोड़े ज्यादा. 10 साल पहले जब छोटी बहन वंदना की शादी हुई थी तब पिताजी ने उस की ससुराल वालों को दहेज में क्या कुछ नहीं दिया था. नकदी, गहने, गाड़ी सभी कुछ तो था. तो क्या इसे किसी ने वंदना के लिए दूल्हा खरीदना कहा था. नहीं न. फिर वह क्यों मंजू को ले कर इतना सोच रहा था. कहने दो जिसे जो कहना था. मुझे तो आज रात सिर्फ अपने सपनों को हकीकत में बदलते देखना है. दुनिया का वह वर्जित फल चखना है जिसे खा कर इंसान बौरा जाता है. मन में फूटते लड्डुओं का स्वाद लेते हुए अनिल ने सुहागरात के लिए सजाए हुए अपने कमरे में प्रवेश किया.

अब तक उस ने जो फिल्मों और टीवी सीरियल्स में देखा था उस के ठीक विपरीत मंजू बड़े आराम से सुहागसेज पर बैठी थी. उस के शरीर पर शादी के जोड़े की जगह पारदर्शी नाइटी देख कर अनिल को अटपटा सा लगा क्योंकि उस का तो यह सोचसोच कर ही गला सूखे जा रहा था कि वह घूंघट उठा कर मंजू से बातों की शुरुआत कैसे करेगा. मगर यहां का माहौल देख कर तो लग रहा है जैसे कि मंजू तो उस से भी ज्यादा उतावली हो रही है.

अनिल सकुचाया सा बैड के एक कोने में बैठ गया. मंजू थोड़ी देर तो अनिल की पहल का इंतजार करती रही, फिर उसे झिझकते देख कर खुद ही उस के पास खिसक आई और उस के कंधे पर अपना सिर टिका दिया. यंत्रवत से अनिल के हाथ मंजू के इर्दगिर्द लिपट गए. मंजू ने अपनेआप को हलका सा धक्का दिया और वे दोनों ही बैड पर लुढ़क गए. मंजू ने अनिल के ऊपर झुकते हुए उस के होंठ चूमने शुरू कर दिए तो अनिल बावला सा हो उठा. उस के बाद तो अनिल को कुछ भी होश नहीं रहा. प्रकृति ने जैसे उसे सबकुछ एक ही लमहे में सिखा दिया.

मंजू ने उसे चरम तक पहुंचाने में पूरा सहयोग दिया था. अनिल का यह पहला अनुभव ऐसा था जैसे गूंगे को गुड़ का स्वाद, जिस के स्वाद को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बयान नहीं. एक ही रात में अनिल तो जैसे जोरू का गुलाम ही हो गया था. आज मंजू ने उसे वह तोहफा दिया था जिस के सामने सारी बादशाहत फीकी थी.

सुबह अनिल ने बेफिक्री से सोती हुई मंजू को नजरभर कर देखा. सबकुछ सामान्य ही था उस में. कदकाठी, रंगरूप और चेहरामोहरा सभी कुछ. मगर फिर भी रात जो खास बात हुई थी उसे याद कर के अनिल मन ही मन मुसकरा दिया और सोती हुई पत्नी को प्यार से चूमता हुआ कमरे से बाहर निकल गया.

मंजू जैसी भी थी, अनिल से तो इक्कीस ही थी. अनिल का गहरा सांवला रंग, मुटाया हुआ सा शरीर, कम पढ़ाईलिखाई सभीकुछ उस की शादी में रोड़ा बने हुए थे. अब तो सिर के बाल भी सफेद होने लगे थे. बहुत कोशिशों के बाद भी जब जानपहचान और अपनी बिरादरी में अनिल के रिश्ते की बात नहीं जमी तो उस की बढ़ती हुई उम्र को देखते हुए उस की बूआ ने उस की मां को सलाह दी कि अगर अपने समाज में बात नहीं बन रही है तो किसी गरीब घर की गैरबिरादरी की लड़की के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं है. और तो और, आजकल तो लोग पैसे दे कर भी दुलहन ला रहे हैं. बूआ की बात से सहमत होते हुए भी अनिल की मां ने एक बार उस की कुंडली मंदिर वाले पंडितजी को दिखाने की सोची.

पंडितजी ने कुंडली देख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘बहनजी, शादी का योग तो हर किसी की कुंडली में होता ही है. किसीकिसी की शादी जल्दी तो किसी की थोड़ी देर से, मगर समझदार लोग आजकल कुंडली के फेर में नहीं पड़ते. आप तो कोई ठीकठाक सी लड़की देख कर बच्चे का घर बसा दीजिए. चाहे कुंडली मिले या न मिले. बस, लड़की मिल जाए और शादी के बाद दोनों के दिल.’’

अनिल की मां को बात समझ में आ गई और उन्होंने अपने मिलने वालों व रिश्तेदारों के बीच में यह बात फैला दी कि उन्हें अनिल के लिए किसी भी जातबिरादरी की लड़की चलेगी. बस, लड़की संस्कारी और दिखने में थोड़ी ठीकठाक हो.

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. एक दिन अनिल की मां से मिलने एक व्यक्ति आया जो शादियां करवाने का काम करता था. उसी ने उन्हें मंजू के बारे में बताया और अनिल से उस की शादी करवाने के एवज में 20 हजार रुपए की मांग की. अनिल अपनी मां और बूआ के साथ मंजू से मिलने उस के घर गया. बेहद गरीब घर की लड़की मंजू अपने 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर पर थी. उस से छोटा एक भाई और भाई से छोटी एक बहन रीना. मंजू की 2 बड़ी बहनें भी उस की ही तरह खरीदी गई थीं.

25 साल की युवा मंजू उम्र में अनिल से लगभग 12-13 साल छोटी थी. एक कमरे के छोटे से घर में इतने प्राणी कैसे रहते होंगे, यह सोच कर ही अनिल हैरान हो रहा था. उसे तो यह सोच कर हंसी आ रही थी कि कैसी परिस्थितियों में ये बच्चे पैदा हुए होंगे.

खैर, मंजू को देखने के बाद अनिल ने शादी के लिए हां कर दी. अब यह तय हुआ कि शादी का सारा खर्चा अनिल का परिवार ही उठाएगा और साथ ही, मंजू के परिवार को 2 लाख रुपए भी दिए जाएंगे ताकि उन का जीवनस्तर कुछ सुधर सके. 50 हजार रुपए एडवांस दे कर अनिल और मंजू की शादी का सौदा तय हुआ और जल्दी ही घर के 4 जने जा कर मंजू को ब्याह लाए. बिना किसी बरात और शोरशराबे के मंजू उस की पत्नी बन गई.

मंजू निम्नवर्गीय घर से आई थी, इसलिए अनिल के घर के ठाटबाट देख कर वह भौचक्की सी रह गई. बेशक उस का स्वागत किसी नववधू सा नहीं हुआ था मगर मंजू को इस का न तो कोई अफसोस था और न ही उस ने कभी इस तरह का कोई सपना देखा था. बल्कि वह तो इस घर में आ कर फूली नहीं समा रही थी. जितना खाना उस के मायके में दोनों वक्त बनता था उतना तो यहां एक वक्त के खाने में बच जाता है और कुत्तों को खिलाया जाता है. ऐसेऐसे फल और मिठाइयां उसे यहां देखने और खाने को मिल रहे थे जिन के उस ने सिर्फ नाम ही सुने थे, देखे और चखे कभी नहीं.

‘अगर मैं अनिल के दिल की रानी बन गई तो फिर घर की मालकिन बनने से मुझे कोई नहीं रोक सकता’, मंजू ने मन ही मन सोच लिया कि आखिरकार उसे घर की सत्ता पर कब्जा करना ही है.

‘सुना था कि पुरुष के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. नहीं. पेट से हो कर नहीं, बल्कि उस की भूख की आनंददायी संतुष्टि से हो कर जाता है. फिर भूख चाहे पेट की हो, धन की हो या फिर शरीर की हो. यदि मैं अनिल की भूख को संतुष्ट रखूंगी तो वह निश्चित ही मेरे आगेपीछे घूमेगा. और फिर, तू मेरा राजा, मैं तेरी रानी, घर की महारानी’, यह सोचसोच कर मंजू खुद ही अपने दिमाग की दाद देने लगी.

‘बनो दिल की रानी’ अपने इस प्लान के मुताबिक, मंजू रोज दिन में 2 बार अनिल को ‘आई लव यू स्वीटू’ का मैसेज भेजने लगी. लंचटाइम में उसे फोन कर के याद दिलाती कि खाना टाइम पर खा लेना. वह शाम को सजधज कर अनिल को उस के इंतजार में खड़ी मिलती.

रात के खाने में भी वह अनिल को गरमागरम फुल्के अपने हाथ से बना कर ही खिलाती थी चाहे उसे घर आने में कितनी भी देर क्यों न हो जाए और खुद भी उस के साथ ही खाती थी. यानी हर तरह से अनिल को यह महसूस करवाती थी कि वह उस की जिंदगी में सब से विशेष व्यक्ति है. और हर रात वह अनिल को अपने क्रियाकलापों से खुश करने की पूरी कोशिश करती थी. उस ने कभी अनिल को मना नहीं किया बल्कि वह तो उसे प्यार करने को प्रोत्साहित करती थी. उम्र में छोटी होने के कारण अनिल उसे बच्ची ही समझता था और उस की हर नादानी को नजरअंदाज कर देता था.

कहने को तो अनिल अपने मांबाप का इकलौता बेटा था मगर कम पढ़ेलिखे होने और अतिसाधारण शक्लसूरत के कारण अकसर लोग उसे कोई खास तवज्जुह नहीं दिया करते थे. वहीं, उस की शादी भी नहीं हो रही थी. सो, अनिल हीनभावना का शिकार होने लगा था. मगर मंजू ने उसे यह एहसास दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि वह कितना काबिल और खास इंसान है बल्कि वह तो कहती थी कि अनिल ही उस की सारी दुनिया है.

मंजू के साथ और प्यार से अनिल का आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा. मंजू को पा कर अनिल ऐसे खुश था जैसे किसी भूखे व्यक्ति को हर रोज भरपेट स्वादिष्ठ भोजन मिलने लगा हो.

एक दिन मंजू की मां का फोन आया. वे उस से मिलना चाह रही थीं. रात में मंजू ने अनिल की शर्ट के बटन खोलते हुए अदा से कहा, ‘‘मुझे कुछ रुपए चाहिए. मां ने मिलने के लिए बुलाया है. पहली बार जा रही हूं. अब इतने बड़े बिजनैसमैन की पत्नी हूं, खाली हाथ तो नहीं जा सकती न.’’

‘‘तो मां से ले लो न,’’ अनिल ने उसे पास खींचते हुए कहा.

‘‘मां से क्यों? मैं तो अपने हीरो से ही लूंगी. वह भी हक से,’’ कहते हुए मंजू ने अनिल के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

‘‘कितने चाहिए? अभी ये रखो. और चाहिए तो कल दे दूंगा,’’ अनिल ने निहाल होते हुए उसे 20 हजार रुपए थमा दिए और फिर मंजू को बांहों में कसते हुए लाइट बंद कर दी.

मंजू 15 दिनों के लिए मायके गईर् थी. मगर 5 दिनों बाद ही अनिल को उस की याद सताने लगी. मंजू की शहदभरी बातें और मस्तीभरी शरारतें उसे रातभर सोने नहीं देतीं. उस ने अगले ही दिन मंजू का तत्काल का टिकट बनवा कर आने के लिए कह दिया. मंजू भी जैसे आने के लिए तैयार ही बैठी थी. उस के वापस आने के बाद अनिल की दीवानगी उस के लिए और भी बढ़ गई. अब मंजू हर महीने अनिल से

10-15 हजार रुपए ले कर अपने मायके भेजने लगी. मंजू ने अनिल से उस का एटीएम कार्ड नंबर और पिन आदि ले लिया. जिस की मदद से वह अपनी बहनों और भाई के लिए कपड़े, घरेलू सामान आदि भी औनलाइन और्डर कर के भेज देती. मंजू के प्यार का नशा अनिल के सिर चढ़ कर बोलने लगा था. ‘सैयां भए कोतवाल तो अब डर काहे का.’ घर में मंजू का ही हुक्म चलने लगा.

बेटे की इच्छा को देख अनिल की मां को न चाहते हुए भी तिजोरी की चाबियां बहू को देनी पड़ीं. सामाजिक लेनदेन आदि भी सबकुछ उसी की सहमति या अनुमति से होता था. अनिल की मां उसे कुछ नहीं कह पाती थीं क्योंकि मंजू ने उन्हें भी यह एहसास करवा दिया था कि उस ने अनिल से शादी कर के अनिल सहित उन के पूरे परिवार पर एहसान किया है.

‘‘सुनिए न, मेरी बड़ी इच्छा है कि मेरा नाम हर जगह आप के नाम के साथ जुड़ा हो,’’ एक दिन मंजू ने अनिल से बड़े ही अपनेपन से कहा.

‘‘अरे, इस में इच्छा की क्या बात है? वह तो जुड़ा ही है. देखो, तुम मेरी अर्धांगिनी हो यानी मेरा आधा हिस्सा. इस नाते मेरी हर चलअचल संपत्ति पर तुम्हारा आधा हक हुआ न,’’ अनिल ने प्यार से मंजू को समझाया.

‘‘वह तो ठीक है, मगर यह सब अगर कानूनी रूप से भी हो जाता तो कितना अच्छा होता. मगर उस में तो कई पेंच होंगे न. चलो, रहने दो. बिना मतलब आप परेशान हो जाएंगे,’’ मंजू ने बालों की लट को उंगलियों में लपेटते हुआ कहा.

‘‘मेरी जान, मेरे तन, मन और धन… सब की मालकिन हो तुम,’’ अनिल ने उसे बांहों में भरते हुए कहा और फिर एक दिन वकील और सीए को बुला कर अपने घरदुकान, बैंक अकाउंट व अन्य चलअचल प्रौपर्टी में मंजू को कानूनन अपना उत्तराधिकारी बना दिया.

इधर एक बच्चे की मां बन कर जहां मंजू ने अनिल के खानदान को वारिस दे कर सदा के लिए उसे अपना कर्जदार बना लिया वहीं मां बनने के बाद मंजू के रूप और यौवन में आए निखार ने अनिल की रातों की नींद उड़ा दी. अनिल को अब अपनी ढलती उम्र का एहसास होने लगा था. वह यह महसूस करने लगा था कि अब उस में पहले वाली ऊर्जा नहीं रही और वह मंजू की शारीरिक जरूरतें पहले की तरह पूरी नहीं कर पाता. अपनी इस गिल्ट को दूर करने के लिए वह मंजू की हर भौतिक जरूरत पूरी करने की कोशिश में लगा रहता. अनिल आंख बंद कर के मंजू की हर बात मानने लगा था.

मंजू बेशक अनिल की प्रौपर्टी की मालकिन बन गई थी मगर उस ने भी अपने दिल का मालिक सिर्फ और सिर्फ अनिल को ही बनाया था. वह यह बात कभी नहीं भूल सकी थी कि जब उस के आसपड़ोस के लोेग उसे ‘खरीदी हुई दुलहन’ कह कर हिकारत से देखते थे तब यही अनिल कैसे उस की ढाल बन कर सामने खड़ा हो जाता था और उसे दुनिया की चुभती हुई निगाहों से बचा कर अपने दिल में छिपा लेता था. उस की सास ने उसे कभी अपने खानदान की बहू जैसा सम्मान नहीं दिया था मगर फिर भी अपनी स्थिति से आज वह खुश थी.

उस ने बहुत ही योजनानुसार अपने परिवार को गरीबी के दलदल से बाहर निकाल लिया था. मंजू ने मोमबत्ती की तरह खुद को जला कर अपने परिवार को रोशन कर दिया था. मंजू ने दुकान के काम में मदद करने के लिए अपने भाई को अपने पास बुला लिया. इसी बीच अनिल की मां चल बसीं, तो अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए मंजू ने अपने मांपापा और छोटी बहन रीना को भी अपने पास ही बुला लिया.

एक दिन वही दलाल अनिल के घर आया जिस ने मंजू से उस की शादी करवाई थी. रीना को देखते ही उस की मां से बोला, ‘‘क्या कीमत लगाओगे लड़की की? किसी को जरूरत हो तो बताना पड़ेगा न?’’

‘‘मेरी बहन किसी की खरीदी हुई दुलहन नहीं बनेगी,’’ मंजू ने फुंफकारते हुए कहा.

‘‘खरीदी हुई दुलहन, बड़ी जल्दी पर निकल आए. अपनी शादी का किस्सा भूल गई क्या?’’ दलाल ने मंजू पर ताना कसते हुए मुंह बनाया.

‘‘मेरी बात और थी. मैं तो बिना सहारे की बेल थी जिसे किसी न किसी पेड़ से लिपटना ही था. मगर रीना के साथ ऐसा नहीं है. देर आए दुरुस्त आए. कुदरत ने उसे अनिल के रूप मे सिर पर छत दे दी है और पांवों के नीचे जमीन भी. अभी मैं जिंदा हूं और अपनी बहन की शादी कैसे करनी है, यह हम खुद तय कर लेंगे. आप जा सकते हैं. लेकिन हां, अनिल को मेरी जिंदगी में लाने के लिए मैं सदा आप की कर्जदार रहूंगी, धन्यवाद,’’ मंजू ने दलाल से हाथ जोड़ते हुए आभार जताया. वहीं पीछे खड़ा अनिल मुसकरा रहा था. आज उस के दिल में मंजू के लिए प्यार के साथसाथ इज्जत भी बढ़ गई थी.

हिम्मत हार कर या गुस्से में आत्महत्या कर लेना महज बेवकूफी

Family Suicide Case : साल 2023 के आखिरी दिन जब पूरा जालंधर नए साल के जश्न में डूबा था तब वहां से एक सनसनीखेज खबर सामने आई. डाकखाने में काम करने वाले पोस्टमास्टर मनमोहन सिंह ने पूरे परिवार के साथ खुद को खत्म कर दिया था. दरअसल, मनमोहन सिंह कर्ज और घर की कलह से परेशान था. उस ने अपनी दोनों बेटियों, पत्नी और एक नातिन की हत्या कर खुद आत्महत्या कर ली. मौके से मिले सुसाइड नोट में यही लिखा मिला कि कर्ज और पारिवारिक कलह के कारण टैंशन की वजह से यह कदम उठाया है.

इसी तरह इस 3 जनवरी को एक शख्स पत्नी को वीडियोकौल कर के फांसी पर लटक गया. पति ने पत्नी को वीडियोकौल किया और फिर उस के ही सामने फांसी लगा ली. पत्नी रोरो कर पति को सुसाइड नहीं करने के लिए रोकती रही. मगर पति ने उस की एक न सुनी. मृतक युवक श्याम सुंदर का पत्नी से झगड़ा हुआ था. इस के बाद उस ने सुसाइड कर लिया.

नोएडा के लौ रेजीडेंसी के टावर 2 से एक महिला ने इस 10 जनवरी को 16वें फ्लोर से नीचे छलांग लगा कर जान दे दी. उस की गोद में 6 महीने की बच्ची भी थी. मां और बच्ची की मौके पर ही मौत हो गई. महिला अपने परिवार के साथ रह रही थी और काफी दिनों से बीमारी और डिप्रैशन से जूझ रही थी. महिला का नाम सारिका था.

इसी तरह 11 जनवरी को आईआईटी कानपुर के होस्टल में एमटैक के एक छात्र ने फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली. बीते एग्जाम में परफौर्मेंस खराब होने से वह तनाव में था.

प्रयागराज निवासी 23 साल की अंशिका लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएफए कर रही थी. 10 जनवरी की शाम वह किसी युवक से फोन पर वीडियोकौल से बात कर रही थी जो उस का दोस्त था. इसी दौरान किसी बात पर गुस्सा आने के बाद उस ने फांसी लगा ली. घटना के समय वह रूम में अकेली थी.

5 नवंबर, 2023 को बस्ती में पति से वीडियोकौल पर बात करते हुए एक महिला फंदे से झूल गई थी. दुबई में रह रहे पति से वीडियोकौल पर बात करतेकरते विवाहिता ने पंखे से लटक कर जान दे दी. पत्नी को फंदा लगाते हुए लाइव देखता पति छटपटा कर रह गया. दोनों की 3 साल की बेटी है. 28 वर्षीया साधना सिंह बेटी को ले कर घर पर रहती थी. उस रात पतिपत्नी वीडियोकौलिंग के जरिए बात कर रहे थे. इसी बीच, किसी बात पर दोनों में विवाद हो गया. गुस्से में आ कर साधना सिंह ने आत्महत्या करने की बात कह कर फोन काट दिया.

आत्महत्या की ऐसी घटनाएं लगभग रोज ही सुनने को मिलती रहती हैं. कभी तनाव, कभी किसी पर गुस्सा, कभी अपेक्षा पूरी न हो पाना, कभी असफलता और कभी लाचारीवश लोग खुद अपनी जान देने का फैसला करते हैं. जान देना बहुत बड़ी बात है. मगर आजकल लोग छोटीछोटी बातों पर जान देते हैं. आप जानवरों को देखिए. वे कभी आत्महत्या नहीं करते. मनुष्य ही आत्महत्या करते हैं. मगर यहां भी एक अपवाद है. दरअसल, एक ऐसी जगह है जहां पक्षियों को आत्महत्या करते देखा जाता है.

क्या पक्षी भी करते हैं आत्महत्या

असम के दिमा हासो जिले की पहाड़ी में स्थित जतिंगा घाटी को पक्षियों का सुसाइड पौइंट कहा जाता है. हर साल सितंबर की शुरुआत के साथ ही आमतौर पर छिपा रहने वाला जतिंगा गांव पक्षियों की आत्महत्या के कारण चर्चा में आ जाता है. यहां न केवल स्थानीय पक्षी बल्कि प्रवासी पक्षी भी इस दौरान पहुंच जाएं तो वे खुदकुशी कर लेते हैं.
इंसान अकसर ऊंची इमारतों से कूद कर या फंदा लगा कर जान देते हैं. पक्षी होने के कारण जाहिर है कि वे इमारत से कूद कर या फांसी लगा कर तो जान नहीं दे सकते. सो, वे तेजी से उड़ते हुए इमारतों या ऊंचे पेड़ों से जानबूझ कर टकरा जाते हैं और तुरंत ही उन की मौत हो जाती है. ऐसा इक्केदुक्के नहीं, बल्कि सितंबर के समय में हर साल हजारों पक्षियों के साथ होता है. ऐसी घटनाएं शाम को 7 से 10 बजे के बीच सब से ज्यादा होती हैं. पक्षी तेज गति से उड़ते हुए आते हैं और गांव में उगे पेड़ों और मकानों से टकराते हैं. उन के टकराते ही उन की मौत हो जाती है.

पक्षियों की मौत क्यों होती है, इस पर पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि इस जगह पर कोई मैग्नेटिक फोर्स है जो इन रहस्यमय मौतों की वजह बन रही है. यहां की जनजाति इस घटना को भूतप्रेतों और अदृश्य ताकतों का काम मानती है. बहुत बार इमारतों से टकरा कर घायल हुए पक्षियों का उपचार और उन्हें खाना खिलाने की भी कोशिश की गई लेकिन ऐसे पक्षियों ने खाना लेने से इनकार कर दिया और इलाज पर भी उन के शरीर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

अमावस और जिस दिन अधिक कुहरा होता है उस दिन भी यहां सब से ज्यादा पक्षियों की मौत होती है. इस घटना के पीछे सचाई क्या है, वह तो खबर नहीं मगर यह सच जरूर है कि हरेक जिंदगी मूल्यवान होती है.

आत्महत्या की वजह

इंसानों की बात करें तो वे ज्यादातर असफलता की स्थिति को न सह पाने के कारण ऐसा करते हैं. विद्यार्थियों के मामले में परीक्षा अच्छी न जाना सब से महत्त्वपूर्ण कारण होता है. आईआईटी के छात्र की आत्महत्या पर बात करें तो उस की वजह यही थी. लाखों खर्च कर जब मांबाप अपने बेटे की सफलता का समाचार सुनने को बेताब होते हैं और बेटा सही परफौर्मैंस नहीं दे पाता तो वह पेरैंट्स का सामना करने से घबराता है. उसे लगता है कि वह पेरैंट्स की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाया. उस के दिमाग में तनाव हावी हो जाता है और वह इस परिस्थिति से भागने का विकल्प चुनता है.

ऐसा ही प्रेमप्रसंगों में असफलता मिलने पर भी होता है. इंसान अपने पार्टनर से अपेक्षाएं रखता है मगर वह पूरी न हो तो वह गुस्से में खुद को ही ख़त्म कर डालता है. इस तरह वह अपने पार्टनर को एहसास दिलाना चाहता है कि पार्टनर के बिना उस की जिंदगी का कोई मतलब नहीं. या फिर पार्टनर से अपनी नाराजगी इस तरह जाहिर करता है और सोचता है कि मरने के बाद उस की कीमत पार्टनर को समझ आएगी. पर भला इस से बड़ी बेवकूफी और क्या होगी कि आप ने किसी और के लिए खुद को ख़त्म कर दिया. घरवालों की वर्षों से संजोयी उम्मीदें एक झटके में किसी के लिए तोड़ दीं.

इसी तरह जब किसी अपने पर बहुत गुस्सा आए तो भी इंसान बौखला जाता है और तनाव में आ कर ऐसे कदम उठा लेता है. जीवन में आर्थिक संकट पैदा होने या कर्ज, बीमारी और बेवफाई के चक्रव्यूह में फंसे इंसान भी अक्सर आत्महत्या कर लेते हैं. उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आता तो वे दुनिया को ही अलविदा कह देते हैं.

धर्म भी है एक वजह

धर्म ने इंसान के दिलोदिमाग में अपनी पैठ बना रखी है. धर्म ने हमें बताया है कि अपने परिजनों या जीवनसाथी व बच्चों के प्रति हमारे क्या उत्तरदायित्व हैं और यदि कोई इसे पूरा नहीं कर पाता तो उस का जीवन व्यर्थ है. ऐसा इंसान पापी कहलाता है. ऐसे में खुद को तथाकथित पाप का भागीदार बनने से बचने के लिए ऐसा इंसान जीवन को ही खत्म कर डालता है. कंपीटिशन के इस जमाने में यदि बच्चे पेरैंट्स की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते या परिवार का गुजरबसर करने के योग्य नहीं रहते तो भयवश सब खत्म कर डालते हैं. इस की वजह उन की सोच है, जिसे धर्म ने बचपन से गढ़ा है.

यह नजरिया बिलकुल भी उचित नहीं. जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है. जिंदगी में कुछ गलत होता है, कोई रास्ता बंद होता है तो दूसरा रास्ता खुल भी जाता है. बस, जरूरत है नए रास्ते तलाशने की, अपने हौसलों को मजबूत बनाए रखने की. आप हर किसी को खुश नहीं रख सकते. हो सकता है आप अपनों की अपेक्षाओं पर खरे न उतर पाएं. मगर इस से हारने के बजाय नई मंजिल तलाश करें. वक्त बदलते देर नहीं लगती. हिम्मत रखी जाए तो हर समस्या का समाधान मिल जाता है. आवेश में आ कर अपनी कीमती जिंदगी गंवाना कतई सही नहीं है.

Ira Nupur Wedding : बेटी की शादी कर आमिर खान ने शेयर की अपनी फीलिंग्स

Ira Nupur Wedding : हाल ही में आमिर खान की बेटी आयरा खान ने लौंग टर्म बौयफ्रैंड और फिटनैस एक्सपर्ट नूपुर शिखरे से राजस्थान के उदयपुर में शादी की. दोनों ने पहले रजिस्टर्ड मैरिज की और बाद में क्रिश्चियन वैडिंग की. आमिर ने बेटी की शादी में रंग जमाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आयरा खान और नूपुर शिखरे ने क्रिश्चियन वैडिंग के दौरान ‘वोउज’ सेरेमनी में हमेशा एकदूसरे का साथ निभाने की शपथ ली. उस दौरान आमिर खान खूब इमोशनल हुए.

बौलीवुड के मिस्टर परफैक्शनिस्ट उस दिन रूमाल से अपने आंसू पोंछते हुए कई बार नजर आए. वहीं, उन की एक्स वाइफ रीना भी बेटी की शादी में इमोशनल नजर आईं. अब आमिर खान ससुर बन गए हैं और अपनी बेटी की अच्छी मैरिड लाइफ देख कर खुश हैं. वे खुद को एक प्राउड फादर महसूस कर रहे हैं क्योंकि एक सही जीवनसाथी का किसी भी लड़के या लड़की के जीवन में मिलना वे कठिन मानते हैं.

एक गेटटुगेदर में वे अपनी फीलिंग को शेयर करते हुए कहते हैं कि, ‘जब मेरी लड़की आयरा, नुपुर शिखरे को डेट कर रही थी तो मैं ने उस से कभी डायरैक्ट नहीं पूछा कि वह किसे डेट कर रही है क्योंकि आज के यूथ इसे पसंद नहीं करते लेकिन मुझे पता चल रहा था कि वह किसी को पसंद करती है. बाद में जब उन्होंने नूपुर की बात कही तो मुझे खुशी मिली, क्योंकि मैं उसे सालों से जानता हूं. वह एक नेकदिल का अच्छा इंसान है और उस का परिवार भी बहुत अच्छा है. आज की तारीख में एक लड़की को अच्छे जीवनसाथी का मिलना बड़ी बात होती है.

शेयर की अपनी फीलिंग्स

अपनी फीलिंग्स के बारे में आमिर ने कहा कि उन्हें एक शहनाई की धुन की तरह महसूस हो रहा है क्योंकि शहनाई में थोड़ी खुशी और गम वाला संगीत होता है और कुछ ऐसा ही उन के साथ भी हुआ है. इस समारोह में उन्होंने एक मेडली गाना अपनी आवाज में गाया, जिसे वे अधिकतर अपनी बेटी को सुनाया करते थे. बता दें कि आयरा खान, आमिर खान और उन की पहली एक्स वाइफ रीना दत्ता की बेटी हैं और बेटी की शादी में रीना ने भी बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है. शादी को अरेंज करने की भी पूरी जिम्मेदारी रीना और किरण राव ने ली है, जिस की वजह से आमिर खान कुछ रिलीफ महसूस कर रहे हैं.

हमेशा करें रजिस्टर्ड मैरिज

देखा जाए तो ऐसी इंटरकास्ट शादियां आजकल अधिकतर लड़के और लड़कियां पसंद कर रहे हैं जिस में रजिस्टर्ड मैरिज मुख्य होती है. शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना बेहद जरूरी है. भारत में अब सभी धर्मों (सिख धर्म को छोड़ कर) के लोगों के लिए शादी का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है.

रजिस्टर्ड मैरिज के फायदे को अगर देखा जाए तो शादी के बाद पतिपत्नी बैंक में जौइंट अकाउंट खुलवाने, स्पाउज वीजा हासिल करने, जौइंट प्रौपर्टी लेने जैसे तमाम कार्यों के लिए शादी के प्रमाणपत्र का प्रयोग कर सकते हैं. मैरिज सर्टिफिकेट कई तरह की परेशानियों से भी मुक्त कर सकता है. इस का सब से ज्यादा फायदा स्त्रियों को है. शादी में धोखाधड़ी, बालविवाह और तलाक जैसे तमाम मामलों में मैरिज सर्टिफिकेट होने से स्त्री के अधिकार सुरक्षित रह पाते हैं.

कुछ सालों पहले तक भारत में हिंदू मैरिज एक्ट और मुसलिम विवाह अधिनियम के तहत विवाह का पंजीकरण अनिवार्य नहीं समझा जाता था. पारंपरिक रीतिरिवाजों या आर्य समाज से शादी कर लेना ही काफी था. मगर कई बार पारंपरिक विवाहों में कुछ रस्में नहीं निभाई जातीं या गवाह की जरूरत पड़ने पर उन की संख्या कम हो जाती है, ऐसे कई मामलों में विवाह से मुकरने जैसी घटनाएं भी सुनने में आई हैं.

मंदिर में पुजारी के सामने किए गए आर्य समाज के गंधर्व विवाह या प्रेम विवाह को भी कई बार अमान्य घोषित किया गया है, इसलिए रजिस्टर्ड शादी ही प्रेमीजोड़े को करनी चाहिए ताकि उन के विवाह को कानूनी मान्यता मिले.

लड़खड़ाती विदेश नीति : हम चारों तरफ से ऐसे देशों से घिर गए हैं जो हमारे दोस्त नहीं हैं

मोदी सरकार में भारत की विदेश नीति इतनी ज्यादा कमजोर हो गई है कि आज हमें मालदीव जैसा पिद्दी सा देश आंखें दिखा रहा है. कितनी हास्यास्पद है कि सोशल मीडिया का सहारा ले कर जनता के जरिए विदेश मंत्रालय में ताकत भरी जा रही है. कोई खुल कर यह बात बोल दे तो उस की जबान बंद करने के लिए उसे देशद्रोही बता दिया जाता है, घुसपैठिया या पाकिस्तानी करार दे दिया जाता है.

नकशे पर नजर दौड़ाएं तो आज कोई भी पड़ोसी देश भारत का सगा नहीं रह गया है. भारत से समुद्री सीमा साझा करने वाला मालदीव, जिस से कभी हमारे रणनीतिक, आर्थिक और सैन्य संबंध काफी घनिष्ठ थे, जो कभी हमारे देश के अमीरों और बौलीवुड हस्तियों के लिए छुट्टियां बिताने के लिए बेस्ट डैस्टिनेशन था, अब वहां जाने के लिए भारतीयों को सोचना पड़ेगा.

भारत-नेपाल के बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक संबंधों का एक विस्तृत इतिहास रहा है. नेपाल भारत के आर्थिक और सामरिक हितों के लिए महत्त्वपूर्ण है. नेपाल से हमारे रिश्ते कभी रोटीबेटी के थे. भारत के 5 राज्य नेपाल के साथ अपनी सीमाएं साझा करते हैं. इन में बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, और सिक्किम शामिल हैं. इन क्षेत्रों की सीमाओं से लोग रोटीरोजगार के लिए प्रतिदिन इधर से उधर जाते हैं.

मगर आज जबकि नेपाल पूरी तरह चीन के प्रभाव में है, हमें अपनी सीमाओं की चौकसी और सुरक्षा बढ़ानी पड़ी है. नेपाल में चीन का बढ़ता हस्तक्षेप, नेपाल की आंतरिक राजनीति और भारत की पड़ोस नीति की समस्या कुछ ऐसे पहलू हैं जो दोनों देशों में मतभेद के कारण बन रहे हैं.

नेपाल में चीन का दबदबा बहुत तेजी से बढ़ रहा है और भारत का प्रभाव वहां नगण्य हो चुका है. नेपाल ने हाल ही में अपना बंदरगाह चीन के इस्तेमाल के लिए खोल दिया है. भारत और नेपाल के बीच कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा क्षेत्रों को ले कर विवाद बढ़ता जा रहा है. नेपाल का दावा है कि महाकाली नदी के पूर्वी हिस्से में स्थित ये क्षेत्र 1816 की सुगौली संधि के तहत नेपाल का हिस्सा हैं.

चीन काफी लंबे समय से नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान और मालदीव में अपनी सक्रियता बढ़ा रहा है. वह सभी सार्क देशों को आर्थिक सहायता का लालच दे कर अपने प्रभाव में लाना चाहता है. नेपाल में चीन द्वारा भारी निवेश इसी का एक पहलू है. ऐसे में भारत को अपनी विदेश नीति की समीक्षा करने की जरूरत है. जिस तरह से नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, उस से भारत को अपने पड़ोस में आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करने से पहले रणनीतिक लाभहानि पर विचार करना चाहिए. भारत को अपने खिलाफ बन चुके चीन-नेपाल-पाकिस्तान गठजोड़ की काट भी ढूंढनी चाहिए, जो दक्षिण एशिया में भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती है.

श्रीलंका के साथ भारत के रिश्ते अब वैसे नहीं रहे जैसे पहले थे. चीन ने श्रीलंका की आर्थिक मदद कर कर और उस पर कर्ज का बोझ लाद कर उसे ऐसे अपने पक्ष में कर लिया है कि भारत कहीं पीछे छूट गया है. हाल ही में जब श्रीलंका गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, वहां लोगों के पास जरूरी सामान और राशन की किल्लत हो गई थी, तब भारत ने उस को आर्थिक मदद पहुंचा कर रिश्तों को कुछ ठीक करने का प्रयास किया था. मगर यह कोशिश चीन की साजिशों के सामने बहुत कम मालूम पड़ती है.

चीन की डैब्ट ट्रैप डिल्पोमेसी का सब से बड़ा शिकार आज श्रीलंका है. आज श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर चीन कब्जा जमाए बैठा है. हंबनटोटा बंदरगाह दक्षिणी श्रीलंका में पूर्व-पश्चिम समुद्री मार्ग के करीब स्थित है. चीन ने 99 वर्षों की अवधि के लिए हंबनटोटा बंदरगाह के संचालन और प्रबंधन का नियंत्रण अपनी कंपनियों के माध्यम से अपने हाथ में ले लिया है. अब इस बंदरगाह पर चीनी सैनिक कदमताल करते हैं.

जिस चीनी कंपनी चाइना मर्चेंट्स ग्रुप (सीएमजी) ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को बनाया था, अब उसी चीनी कंपनी ने श्रीलंका में एक और बंदरगाह को विकसित करने का ऐलान किया है. यही नहीं, चीन की एक अन्य सरकारी कंपनी ने ऐलान किया है कि वह श्रीलंका में एक प्रमुख लौजिस्टिक हब का निर्माण करने जा रही है.

इस निर्माण के साथ श्रीलंका में चीन की इस सरकारी कंपनी का निवेश 2 बिलियन डौलर के पार पहुंच जाएगा. चीन के उपकारों के चलते श्रीलंका वही करेगा जो चीन उस से कहेगा. श्रीलंका में चीनी सेना की बढ़ती मौजूदगी से तमिलनाडु चिंतित है. राज्य की खुफिया एजेंसी ने अलर्ट जारी किया है कि पोर्ट पर चीन के हाईटैक गैजेट्स और पीपल्स लिबरेशन आर्मी की तैनाती से हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है, मगर केंद्र के कान पर जूं नहीं रेंग रही, वह रामभजन में लीन है.

श्रीलंका के कोलंबो पोर्ट पर भी चीन का कब्जा है. यह पोर्ट भारत के दक्षिणी सिरे से कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर ही है. इस से चीन को भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अपना प्रवेशद्वार मिल गया है. चीन की सिल्क रोड परियोजना के लिए कोलंबो बंदरगाह काफी अहम है. हाल ही में भारत के विरोध के बावजूद श्रीलंका ने चीन के रीसर्च शिप शी यान 6 को कोलंबो बंदरगाह पर रुकने की अनुमति दी. अब यह चीनी जहाज रिसर्च के नाम पर हिंद महासागर में जासूसी का काम कर रहा है.

उधर, पाकिस्तान हमारा सौ फीसदी दुश्मन है और चीन का गहरा दोस्त. अफगानिस्तान जिस से कभी भारत के रिश्ते बहुत अच्छे थे, अब तालिबान के कब्जे में आने के बाद वह भाईचारा भी खत्म हो चुका है. इसी तरह भूटान भी कभी हमारा मित्र देश था मगर अब वह चीन के इशारे पर चल रहा है.

हाल ही में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी चीन गए और सुनने में आ रहा है कि जमीन की अदलाबदली में वे डोकलाम चीन को देने पर राजी हो गए हैं. यह भारत के लिए बड़ी चिंता का विषय है. चीन अवैध तरीके से भूटान में घुसपैठ कर चुका है. उत्तरी भूटान की जकारलुंग घाटी में चीन ने कई निर्माण किए हैं. उस ने सिर्फ चौकियां ही नहीं बनाई हैं बल्कि गांव भी बसा दिया है.

दोनों देशों के अफसरों के बीच बौर्डर लाइन तय करने को ले कर बैठकों के बीच कुछ सैटेलाइट तसवीरें सामने आई हैं, जिन से साफ है कि चीन की निर्माण गतिविधियां भूटान की सीमा में लगातार जारी हैं.

भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में 2 वर्षों पहले तख्तापलट हो चुका है. म्यांमार, जो धीरेधीरे लोकतांत्रिक परिपक्वता की ओर बढ़ रहा था, तख्तापलट के बाद दशकों पीछे चला गया है. वहां की लोकप्रिय नेता और स्टेट काउंसलर आंग सान सू और राष्ट्रपति विन मिंट समेत कई नेता अब जेल में हैं और सत्ता मिलिट्री के हाथों में है.

मिलिट्री लीडर जनरल मिन आंग हलिंग ने खुद को देश का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया है. जनरल मिन आंग हलिंग भारत से खार खाता है. भारत और म्यांमार के बीच 1,600 किलोमीटर से ज़्यादा लंबी जमीनी सीमा और बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा है. भारत के 4 उत्तरपूर्वी राज्य- अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम की सीमा म्यांमार से लगती है.

तख्तापलट के दौरान इन सीमाओं से भारत और बंगलादेश में अवैध घुसपैठ बढ़ी है. इस से देश की सुरक्षा पर भी सवाल उठ रहे हैं. मणिपुर में हालिया दंगाफसाद, आगजनी, बलात्कार, ड्रग्स का बढ़ता व्यापार आदि सब के पीछे कहीं न कहीं म्यांमार की अस्थिरता से उपजा पलायन भी एक कारण है.

ईरान इजराइल का दुश्मन है, मगर आज हम इजराइल को दोस्त बनाने के चक्कर में ईरान को नाराज कर रहे हैं. मीडिया हमें विश्वगुरु बनाने दंभ भर रहा है. मगर दुनिया के नकशे पर नजर दौड़ाएं और देखें कि एशिया में क्या हो रहा है, तो हम पाएंगे कि आज भारत चारों ओर से जिन देशों से घिरा हुआ है उन में से कोई भी अब हमारा अच्छा दोस्त नहीं है. इन सभी देशों का सरगना अब चीन है. ये सभी अब चीन के कहने पर चलते हैं.

चीन ने नेपाल से ले कर श्रीलंका और पाकिस्तान होते हुए अफगानिस्तान तक एक त्रिभुजाकार पिंजड़े में भारत को कस दिया है. हंबनटोटा, लाओस, ग्वादर हर जगह चीन बहुत गहरी पैठ बना चुका है.

चीन के पास न पैसे के कमी है न टैक्नोलौजी की. उस ने अपनी सेना का एक हिस्सा भारत पर निगरानी के लिए लगा रखा है और एक हिस्सा अमेरिका पर नजर रख रहा है. इस के अलावा, उस की रिजर्व आर्मी अपने आसपास के छोटेछोटे देशों पर नजर रखती है. चीन ने दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में अपने दखल को गंभीर रूप से बढ़ा लिया है. हमारी विदेश नीति सिर्फ पाकिस्तान के मामले में गब्बर है, बाकी चीन की बात उठने पर बगलें झांकने लगती है.

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनवरी 2024 तक दुनिया के 6 महाद्वीपों पर कोई 52 विदेश यात्राएं की हैं और 59 देशों की यात्रा की हैं. लेकिन खालिस विदेश घूमने को विदेश नीति नहीं कहते हैं. नेपाल भी आंखें दिखा रहा है.

चीन के साथ उन्होंने खूब दोस्ती निभाई, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को खूब झूला झुलाया पर साथ घूमनेफिरने या झूला झूलने से कोई दोस्त नहीं बन जाता. अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नेता, जो सदैव अपना हित देखते हैं, के गले लग कर, समोसाचटनी खिला कर यदि हमारे प्रधानमंत्री यह सोचते हैं कि वे दोस्त बन गए, जो उन की विदेश नीति का हिस्सा भी है, तो फिर इस देश का क्या होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है.

ट्रंप के स्वागत में मोदी ने कोरोना महामारी के खतरे को नजरअंदाज किया. कोरोना ने देश में कितनी लाशें गिराईं, उन का सटीक आंकड़ा आज तक जनता को नहीं पता चला. उसी ट्रंप को जब हम कमी के कारण कोरोना वैक्सीन नहीं दे पाए तो वह दोस्ती को किनारे रख आंख दिखने लगा. उस ने h1b वीजा के लिए मना कर दिया. आप ‘नमस्ते ट्रंप’ करते रहे, यही आप की विदेश नीति है, आखिर यह कैसी विदेश नीति है?

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