पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस का दामन छोड़ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना जौइन कर ली. उन को लगता है कि शिंदे सरकार में उन की अच्छी पूछ होगी और कोई बड़ा पद उन को औफर होगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह, अनिल एंटनी, हार्दिक पटेल जैसे कई युवा नेता जो कभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की युवा ब्रिगेड का हिस्सा हुआ करते थे, वे भी कांग्रेस से यही सोच कर अलग हुए कि अन्य पार्टियां और बीजेपी उन को सिरआंखों पर बिठाएगी, लेकिन एकाध को छोड़ किसी की भी ऊंची महत्त्वाकांक्षा परवान नहीं चढ़ी. कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे लोग तो कांग्रेस छोड़ कर न घर के रहे न घाट के. हिमंता बिस्वा शर्मा जरूर असम का मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं.

दरअसल, युवा नेताओं में जल्दीजल्दी ऊंची कुरसी पा लेने की छटपटाहट है. पार्टी कार्यकर्ता की तरह जमीन से जुड़े रह कर जनसेवा का भाव मन में है नहीं. राहुल गांधी जब आम आदमी के बीच आम आदमी की ही तरह उठतेबैठते हैं, उन के साथ पत्तल में खाना खा लेते हैं या उन के झोंपड़े में रात गुजारने को तैयार हो जाते हैं, तो राजघरानों से आए इन युवा नेताओं को यह बड़ा अनकंफर्टेबल लगता है. वे न तो आम आदमी से जुड़ पाते हैं, न उन के साथ जमीन पर बैठ पाते हैं. ऐसे में बड़ा पद पाने की लालसा में अपना घर छोड़ कर दूसरे के घर जा कर बसने से भी इन को कुछ ख़ास फायदा मिलता नहीं है.

बीजेपी में अनेक बड़े नेता ऐसे हैं जो कभी पार्टी कार्यालयों और आयोजनों में दरियां बिछाने का काम करते थे. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि मैं दरी बिछाने के काम से आगे बढ़ा और देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा. मोदी के अलावा बीजेपी में अनेक नेता हैं जो कार्यकर्ता के तौर पर बरसों पार्टी का काम करते रहे.

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