India-Pakistan war : पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत के पास पाकिस्तान में बने आतंकवादी ट्रेनिंग अड्डों को नष्ट करने के अलावा कोई उपाय नहीं था और 6-7 मई की रात को जो हमले किए गए वे जरूरी थे. कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन की कीमत नहीं गिनी जाती. पहलगाम में किया गया खूंखार हमला ऐसा ही था जिस में निहत्थेनिर्दोष लोगों को एकएक कर के बेरहमी से मार डाला गया.

बदले की कार्रवाई की शुरुआत छोटे पैमाने पर ही की गई है पर किस हद तक यह बढ़े, न्यूक्लियर अटैक तक भी पहुंचे, इस का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता और न ही उस का खास महत्त्व है. जानबूझ कर हमारे देश को उकसाने के लिए, छुट्टी को एंजौय करने गए लोगों की मौतों को भविष्य में रोकने के लिए यह जरूरी है कि आतंकियों, चाहे सीमापार के हों या सीमा के अंदर के जिन्हें सीमापार से सहायता मिलती हो, को उन के पूरे जीवन के लिए सजा दी जाए.

यह समझ से परे है कि जब आतंकवादी यह जानते और समझते हैं कि बदले की कार्रवाई होगी ही, वे क्यों देश की आत्मा को झकझोरने में लगे थे. भारत ने 1965 और 1971 में दिखा दिया था कि पाकिस्तान में सेना के पास चाहे पूरे पाकिस्तान की सरकार को चलाने का भी हक हो, भारत लोकतांत्रिक होते हुए भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है चाहे उस की सरकार किसी भी पार्टी की हो, कैसी भी हो.

युद्धों से समस्याएं हल नहीं होतीं. लेकिन कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि जब युद्ध ही अकेला उपाय बचता है और तब सम्मान की सुरक्षा के लिए कुछ भी दांव पर लगाया जा सकता है. पाकिस्तान की टूटती अर्थव्यवस्था के सामने उस के आकाओं का काम आतंकवादियों को उकसाने, बहकाने, पालने, ट्रेन करने का नहीं बल्कि अपने देश की माली हालत ठीक करने का था. जहां शहरों में घंटों बिजली नहीं रहती वहां सेना वसूली करने के लिए अपने देश के नागरिकों को भारत का फोबिया दिखा कर भारत पर आतंकवादी आक्रमण कराती रहे और भारत की सरकार कुछ न कहे या करे, यह सोचना ही बेकार है.

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