Government of India : केंद्र सरकार अकसर राज्यों की सरकारों के कामों में अड़ंगा डालने के लिए विधानसभाओं से पारित उन के विधेयकों को राज्यपालों के जरिए लटकाती है. यह मामला तब गरमा गया जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों को विपक्षी सरकारों के विधेयक पर फैसले देने की समयसीमा तय कर दी. अब प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछ कर इस मुद्दे को और गहरा कर दिया है. क्या यह केवल कानूनी विवाद है या यह विवाद संविधान की राजनीतिक व्यवस्था को नया रूप देगा?

प्रदेश सरकारों यानी मुख्यमंत्रियों और केंद्र की संस्तुति पर वहां नियुक्त किए गए राज्यपाल के अधिकारों को ले कर टकराव लंबे समय से चलता आ रहा है. केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अलगअलग पार्टियों की होती हैं तो यह टकराव अधिक होता है. ऐसे में राज्यपाल कई बार प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को पास करने में देरी करते हैं. मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव के दूसरे तमाम कारण भी होते हैं.

कहीं पर विधानसभा में सदन बुलाने का मुद्दा होता है तो कहीं पर सरकार के बहुमत से अल्पमत में आ जाने का मसला भी उठ जाता है तो कहीं हालात के तहत दलबदल कानून के लागू करने में राज्यपाल की पक्षपाती भूमिका होती है. यह टकराव कई बार बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच जाता है जबकि कई बार थोड़ी तनातनी के बाद मसला शांत हो जाता है.

राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव का हालिया मसला तमिलनाडु से जुड़ा है. तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस की मिलीजुली सरकार है. एम के स्टालिन वहां के मुख्यमंत्री हैं. वहां के राज्यपाल आर एन रवि राज्य सरकार द्वारा विधानसभा से पास कराए गए 10 विधेयकों पर लंबे समय से कोई फैसला नहीं कर रहे थे. मद्र्रास हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंचा.

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