Sanjay Singh : संजय सिंह कर्मठ और ईमानदार अधिकारियों में से एक थे. वे दिनरात काम में लगे रहते थे, बावजूद इस के उन को लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित और बेइज्जत किया जा रहा था. दबाव इस हद तक बढ़ चुका था कि मजबूर हो कर अंततः उन्होंने मौत को गले लगा लिया. अब शासनप्रशासन सिंह की आत्महत्या की वजह कैंसर से उत्पन्न तनाव को बताने में जुटा है.
उन्होंने मन लगा कर पढ़ाई की. सिविल सेवा की तैयारी में जीतोड़ मेहनत की. आईएएस नहीं बन पाए मगर जब पीसीएस चुने गए तो घर परिवार में ही नहीं गांवगिरांव और रिश्तेदारों ने खूब खुशियां मनाईं. उन का पूरा कैरियर बेदाग़ और शानदार रहा. फिर क्या हुआ कि सेवानिवृत्ति के करीब आ कर उन्होंने बिल्डिंग के 15वें माले से कूद कर आत्महत्या कर ली?
अति सौम्य, मिलनसार, अपने काम से काम रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी संजय सिंह गाज़ियाबाद में जीएसटी डिपार्टमैंट में डिप्टी कमिश्नर पद पर कार्यरत थे. संजय सिंह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले थे. पिछले 4 साल से वह गाजियाबाद में तैनात थे. उन का निवास नोएडा के सैक्टर 75 स्थित एक सोसायटी में था. अगले साल वे रिटायर होने वाले थे. रिटायरमैंट के बाद के प्लान उन्होंने बना रखे थे. बड़ा बेटा नौकरी में आ ही चुका था, छोटा अभी पढ़ रहा था. घर में एक प्रेम करने वाली पत्नी, जिस ने 10 साल पहले एक जानलेवा बीमारी होने पर उन की इतनी सेवा की कि उन्हें कैंसर मुक्त करा के ही दम लिया, तो आखिर ऐसी क्या वजह थी कि एक पल में अपने प्यारे परिवार को छोड़ने का फैसला उन्होंने ले लिया? कैंसर से लड़ कर जीतने वाले के सामने आखिर ऐसी कौन सी परेशानी खड़ी हो गई जिस से वह हार गया?
दरअसल देश में प्रशासनिक अधिकारियों की हालत ऐसी है कि वे शासन द्वारा अपने विरुद्ध जारी अत्याचार, प्रताड़ना, तनाव, दबाव, धमकी आदि के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकते हैं. यह नाफरमानी मानी जाती है और फिर उन्हें ट्रांसफर, निलंबन या बर्खास्तगी जैसे दंड झेलने पड़ते हैं. जो अधिकारी भ्रष्ट हैं और भ्रष्टाचार के धन से पूरे सिस्टम को पालते हैं, वे मजे में रहते हैं, उन्हें अच्छी पोस्टिंग भी मिलती है और समय समय पर प्रमोशन भी मिलता है. वे भ्रष्टाचार से कमाए धन से बड़ेबड़े बंगले बना लेते हैं. बड़ीबड़ी गाड़ियां खरीद लेते हैं. बच्चों को विदेशों में पढ़ाते हैं और पूरे कार्यकाल में बस ऐश करते हैं. मगर जो अधिकारी कर्मठ हैं, ईमानदार हैं, काम में लगे रहते हैं, उन्हें शासन से भी गालियां और धमकियां मिलती हैं और अपने सीनियर अधिकारियों से भी. दंडस्वरूप दूरदराज के क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाना तो बहुत आम बात हो गई है. परिवार को छोड़ कर सालों साल ऐसी जगहों पर रहना जहां न खाने का ठिकाना न रहने का. इस से तंग आ कर अनेक अधिकारी समयपूर्व सेवानिवृत्ति ले लेते हैं या लम्बी छुट्टियों पर चले जाते हैं. दूसरी तरफ भ्रष्ट अधिकारी 15 से 20 साल एक ही स्थान पर जमे रहते हैं.
संजय सिंह कर्मठ और ईमानदार अधिकारियों में से एक थे. वे दिन रात काम में लगे रहते थे, बावजूद इस के उन को लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित और बेइज्जत किया जा रहा था. दबाव इस हद तक बढ़ चुका था कि मजबूर हो कर अंततः उन्होंने मौत को गले लगा लिया. अब शासनप्रशासन सिंह की आत्महत्या की वजह कैंसर से उत्पन्न तनाव को बताने में जुटा है, जबकि उन की पत्नी ने मीडिया को वह सर्टिफिकेट दिखाया जिस में संजय सिंह को 10 साल पहले कैंसर मुक्त घोषित किया जा चुका है. वे बिलकुल स्वस्थ थे. तभी तो दिनरात टारगेट पूरा करने में जुटे थे मगर प्रमुख सचिव एम. देवराज की तानाशाही के आगे वे हार गए.
आरोप है कि सरकार की ब्याज बचत योजना, जिस में हर अधिकारी को पांच व्यापारियों को जोड़ने का टारगेट प्रमुख सचिव द्वारा मिला था, संख्या न पूरी कर पाने पर संजय सिंह का नाम सस्पेंड किए जाने वाले अधिकारियों की सूची में शामिल कर लिया गया था. जबकि यह अतिरिक्त कार्य उन्हें कुछ समय पहले ही सौंपा गया था और उन को इतना समय ही नहीं दिया गया कि वे पांच व्यापारियों को समझा बुझा कर इस योजना में शामिल कर पाएं. फिर एक योजना जो कि एक स्वैच्छिक योजना है और जिस में आना, न आना व्यापारियों की मर्जी पर निर्भर करता है, उस को आननफानन में पूरा कर पाना किसी भी अधिकारी के बस में नहीं है. ऐसे में बिना स्पष्टीकरण मांगे सीधे निलंबन की संस्तुति कर देना कितना भयावह था उस अफसर के लिए जिस ने जीवन भर सरकार को कमा कर दिया और जिस का दामन हमेशा बेदाग़ रहा.
जीएसटी के डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह की मौत ने पूरे उत्तर प्रदेश के जीएसटी अधिकारियों में भारी आक्रोश भर दिया है. विभाग के अधिकारी संजय सिंह की मौत का जिम्मेदार प्रमुख सचिव एम. देवराज के तानाशाही रवैए को बता रहे हैं. जिस के कारण विभाग में प्रताड़ना का स्तर इतना बढ़ गया है कि कोई भी स्वतंत्र विवेक से काम कर नहीं पा रहा है.
एम. देवराज के खिलाफ इतना अधिक गुस्सा अधिकारियों में है कि उन की तरफ से बनवाए गए व्हाट्सऐप ग्रुप को अधिकांश अधिकारियों ने छोड़ दिया है. जिस ग्रुप में पूरे प्रदेश के 845 से अधिक लोग जुड़े थे उस में से 800 से अधिक यह ग्रुप छोड़ चुके हैं. यानी अब वे प्रमुख सचिव एम. देवराज के किसी उलटे सीधे निर्देश का पालन नहीं करना चाहते हैं. अफसरों का कहना है कि प्रमुख सचिव नियमों के विपरीत मौखिक आदेश देते हैं. आदेश के तुरंत पालन का दबाव बनाते हैं जबकि हर कार्य की एक प्रक्रिया होती है.
टैक्स बार एसोसिएशन के पदाधिकारी अनुराग मिश्रा बताते हैं कि जीएसटी एक्ट में हर कार्य के लिए एक समय निर्धारित है, जिस के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय है, लेकिन विभाग के प्रमुख सचिव ने अपील से ले कर एसआईबी की जांच रिपोर्ट और वार्षिक विवरणी तक में हस्तक्षेप करते हुए काउंसलिंग द्वारा देश भर के लिए तय की गई तारीखों को ही बदल डाला है, जिस से उत्तर प्रदेश में व्यापारी और जीएसटी अधिकारी दोनों परेशान हैं.
मिश्रा बताते हैं, वित्तीय वर्ष 2024-25 की वार्षिक विवरणी दाखिल करने की अंतिम तिथि पूरे देश के लिए 25 सितंबर है. वार्षिक विवरणी में व्यापारी अपने पूरे वर्ष के रिटर्न में हुई भूल चूक को भी सुधरता है. यह एक तरह की बैलेंस शीट होती है. काउंसिल ने यह सुविधा व्यापारियों को उत्पीड़न से बचाने के लिए दी है, लेकिन शासन ने विभाग की विशेष जांच टीम एसआईबी की जांचों में जो मामले पकड़े हैं, उन में भी अपनी फाइनल रिपोर्ट लगा कर कर-निर्धारण साल पूरा होने से पहले ही किए जाने का मौखिक आदेश दिया है.
मिश्रा कहते हैं, एसआईबी की जांच के मामले में एक्ट में साढ़े चार साल और मैनुअल में 90 दिन में रिपोर्ट देने का प्राविधान है, ताकि व्यापारी को भी अपना पक्ष रखने का मौका मिल सके. प्रमुख सचिव द्वारा जल्दबाजी और दबाव के कारण एसआईबी के अधिकारी इस बात को ले कर परेशान हैं कि अगर एक्ट में दी गई व्यवस्था के तहत व्यापारी को अपना पक्ष रखने का मौक़ा नहीं मिला तो आगे चल कर जब ये मामले कोर्ट में जाएगा तो कोर्ट रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी को भी दंडित कर सकती है, क्योंकि शासन कोई भी आदेश लिखित रूप में जारी नहीं कर रहा है जिस से ये कहा जा सके कि किस के आदेश पर समय से पहले रिपोर्ट लगा कर कर निर्धारण कर दिया गया.
व्यापारियों की ब्याज माफी योजना में प्रतिदिन 5 व्यापारियों को शामिल करवाने का दबाव प्रमुख सचिव के मौखिक आदेश के बाद जोनल एडिशनल कमिश्नर अपने नीचे के अधिकारियों पर बना रहे हैं. जबकि यह योजना स्वैच्छिक है. व्यापारी एक पक्षीय मामलों में गलत टैक्स को क्यों स्वीकार करें? वहीं जो व्यापारी इसमें आना भी चाहते हैं और उन पर करोड़ों रूपए का टैक्स बकाया है, वह भी 31 मार्च आने का इंतज़ार कर रहे हैं. उन का कहना है कि आज जब बैंक प्रतिदिन के हिसाब से ब्याज दे रही है और सरकार ने भी इस योजना की अंतिम तिथि 31 मार्च तय की है, तो वह पहले से ही इतनी पूंजी सरकारी खजाने में जमा करके नुकसान क्यों सहन करें?
एक जीएसटी अधिकारी कहते हैं, “हमारे ऊपर दबाव बनाया जा रहा है कि व्यापारियों को एमएसटी स्कीम (ब्याज माफी योजना ) लेनी ही होगी. सेंट्रल वालों के लिए भी यही स्कीम है. मगर सेंट्रल जीएसटी वालों के यहां इस तरह का कोई दबाव नहीं है. हमें हर आदेश के बाद बोला जाता है कि करो वरना सस्पेंड कर दूंगा. हर जोन के लिए उक्त योजना लागू करने के लिए लक्ष्य दिया जा रहा है और न करने पर जोन से अधिकारियों के नाम मांगे जा रहे हैं, जिन के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. हर अधिकारी से कहा जा रहा है कि 5 व्यापारियों को समाधान योजना में लाओ. अब इस योजना में कौन आना चाहता है, कौन नहीं आना चाहता, यह अधिकारी कैसे तय करेगा? व्यापारी के पास योजना में न आने के कई कारण होते हैं. लेकिन अधिकारियों से कहा जाता है कि व्यापारियों को योजना में लाओ वरना सस्पेंड कर देंगे, इसी का शिकार डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह भी हुए हैं. वो सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने वाले वकीलों को तथ्य मुहैया कराते थे, उन्हें कुछ समय पहले सेक्टर के टारगेट में झोंक दिया गया. समय दिया नहीं गया और सस्पेंड होने वाले अधिकारियों की सूची में उन का नाम डाल दिया गया. उन्होंने परेशान हो कर जान दे दी.”
एक जीएसटी अफसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, 7 मार्च को प्रमुख सचिव ने रोज की तरह औनलाइन मीटिंग ली. जिस में उन्होंने मौखिक आदेश सभी जोनल एडिशनल कमिश्नरों को दिए कि जिन खंड अधिकारियों ने सरकार की ब्याज माफ़ी योजना में 5 से कम व्यापारियों को पंजीकृत करवाया है, उन से स्पष्टीकरण नहीं सीधे उन के निलंबन की संस्तुती मुख्यालय को भेजी जाए. 8 तारीख को हुई बैठक में संजय सिंह से भी योजना में शामिल होने वाले व्यापारियों की संख्या पूछी गई तो उन्होंने बताया की उन को इस पद का अभी अतिरिक्त प्रभार मिला है, इसलिए उन की संख्या कम है. अब चूंकि कोई स्पष्टीकरण लिया ही नहीं जा रहा था, इसलिए जोनल एडिशनल कमिश्नरों ने पांच से कम वाले अधिकारियों के नाम भेजने शुरू कर दिए. इस लिस्ट में 21 जोनों के अधिकारियों के नाम शामिल थे. इस से संजय सिंह ही नहीं, विभाग के करीब एक हजार अधिकारी तनाव में आ गए. कारण यह था की इस आधार पर उन के निलंबन की कार्रवाई हो सकती थी. संजय सिंह इसलिये अधिक तनाव में थे क्योंकि उन की संयुक्त आयुक्त के पद पर पदोन्नति दोतीन माह में होनी तय थी और उन का सेवाकाल भी मात्र एक वर्ष ही बचा था.
भारत में ही नहीं शासनप्रशासन का तानाशाही रवैया पूरी दुनिया में बढ़ा है. अब नौकरियों को ले कर सुरक्षा का कोई एहसास नहीं बचा है. किसी को भी, किसी भी पोस्ट से, कहीं भी फायर कर दिया जाता है. अमेरिका की संघीय सरकार के खर्चों में कटौती के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी दक्षता विभाग का गठन किया है. इस का जिम्मा अरबपति एलन मस्क को सौंपा है. इस अभियान के तहत हजारों कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा रहा है. नौकरीपेशा व्यक्ति आज सब से अधिक तनाव में जी रहा है. तनाव तमाम गंभीर बीमारियां दे रहा है और कई मामलों में समयपूर्व ही मौत.
उत्तर प्रदेश के जिन अधिकारियों से टैक्स चोरों को खौफ खाना चाहिए, वह खुद ही इन दिनों खौफ के साये में नौकरी कर रहे हैं. हर किसी पर टैक्स कलैक्शन बढ़ाने का दबाव है. यही वजह है कि कई अधिकारियों ने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया है. हर अधिकारी दबाव में जी रहा है और काम के दबाव में कोई भी गलत फैसला होने की संभावना से अधिकारियों में हताशा और निराशा है. छुट्टी के दिन में भी काम और मीटिंग लिया जाना, विभाग में मानवीय और भौतिक संसाधनों की कमी को पूरा न किया जाना, बिना अधिकारी का पक्ष जाने ही अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करना, एमनेस्टी स्कीम का अप्राप्य लक्ष्य निर्धारण कर के अधिकारियों के निलंबन का प्रस्ताव मांगने से जीएसटी अधिकारियों में भारी आक्रोश है. ज्यादातर अधिकारी वर्चुअल मीटिंग से किनारा कर चुके हैं.
जीएसटी अफसरों की यह डिजिटल बगावत प्रदेश की योगी सरकार पर भारी पड़ सकती है. मार्च महीना खत्म हो रहा है. वित्तीय वर्ष समाप्ति पर सब से ज्यादा जीएसटी से ही रेवेन्यू कलैक्शन होता है. अफसरों, कर्मचारियों की बगावत का सीधा असर इस काम पर पड़ेगा. जीएसटी औफिसर्स सर्विस एसोसिएशन के अधिकारियों ने आपातकालीन बैठक बुला कर विरोध को और तेज करने का ऐलान किया है. अधिकारियों ने सामूहिक अवकाश की धमकी भी दी है. फिलहाल अधिकारी घटना के विरोध में काला फीता बांध कर काम कर रहे हैं.