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मेरे बेटे का पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगता, क्या करूं?

सवाल

मैं 38 वर्षीया हूं. मेरा 11 साल का बेटा 5वीं क्लास में पढ़ रहा है. उस का पढ़ाई में बिलकुल भी मन नहीं लगता. उस से पढ़ने को कहो तो आनाकानी करता है. जबरदस्ती करो तो ही थोड़ाबहुत पढ़ता है, उस के बाद बहाने बनाने लगता है. स्कूल की पेरैंट्स-टीचर मीटिंग में इस के चलते मु?ो सुनना पड़ता है. उसे जो भी सम?ाओ, कुछ देर बाद उस के दिमाग में रहता ही नहीं.

बारबार फोन की जिद करता है, कहता है कि वह इस से पढ़ाई करेगा. लेकिन थोड़ी देर बाद गेम खेलने लगता है. उसे रोको तो गुस्सा करता है. बहुत बार फोन में लौक लगा दिया पर वह पता नहीं कैसे उसे भी खोल लेता है. सम?ा नहीं आ रहा कैसे उसे समझाऊं. क्या करूं कि पढ़ाई में उस का मन लगे. आप ही कुछ बताएं.

जवाब

यह सिर्फ आप की दिक्कत नहीं, आजकल हर मांबाप की यही समस्या हो गई है. जब से कोरोना महामारी आई है, तब से पढ़ाई का रूप बदल गया है. पिछले 2 साल तो बच्चों को औनलाइन ही पढ़ाई करनी पड़ी. इस से पढ़ाई में तो रत्तीभर सुधार नहीं आया पर छोटेछोटे बच्चों के हाथों तक में स्मार्टफोन आ गया. अब बच्चों के हाथों में फोन तो आ गया पर इस की ऐसी लत लग गई कि इस ने उन की लाइफ को बहुत प्रभावित कर दिया है.

पढ़ाई के लिए स्कूल औनलाइन साधनों पर जोर दे रहे हैं, जैसे होमवर्क या असाइनमैंट प्रोजैक्ट देना हो तो उसे भी मोबाइल के माध्यम से लेते हैं. कोशिश करें कि स्कूल प्रशासन से इस बारे में बात करें और उन्हें सूचित करें कि स्कूल के कामों के चलते बच्चा फोन लेने के बहाने बनाता है, ताकि स्कूल इस के लिए बेहतर व्यवस्था कर सके. रही बात फोन की तो आजकल फिंगर लौक हर फोन में रहता है. पैटर्न लौक की जगह फिंगर लौक लगाइए.

अभी आप का बच्चा छोटा है, उसे आप कंट्रोल में ला सकती हैं. इस के लिए आप उस के काम की सराहना करें. हैल्दी डाइट दें जिस में दिमाग मजबूत करने वाले ड्राईफ्रूट्स हों. उस की पढ़ाई के लिए सही समय और वातावरण का चयन करें. उसे आउटडोर गेम खेलने के लिए प्रोत्साहित करें. मोबाइल की आदत के लिए उसे मारेंपीटें नहीं, कोशिश करें उसे आसान लहजे में सम?ाने की. पढ़ाई में आदत डलवाने के लिए साहित्य की पुस्तकें और ऐसी पत्रिकाओं का चयन कर सकती हैं जिन में छोटी कहानियां हों, जिस से उस की आदत टिक कर पढ़ाई करने की बन जाए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

ब्रेस्ट कैंसर से पुरुषों और महिलाओं को बढ़ता खतरा….

रोजमर्रा की भाग दौड़ भरी  जिन्दगी मे हम अपनी सेहत का ध्यान नही रख पाते. ऐसे मे जब हमें यह समचार विधित हो की हमारा शरीर किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त  हो गया है तो हम बोखला से जाते है, लेकिन वह वक़्त घबराने का नही बल्कि उस बीमारी से समय रहते निजाद पाने का है. ऐसी ही एक बीमारी के बारे मे हम आपको जानकारी दे रहे है जो अति गंभीर है लेकिन समय रहते इससे निजात  पाया जा सकता है.

हमारे देश मे सबसे ज्यादा  महिलओं मे होता है -स्तन कैंसर और फिर गर्भासिया कैंसर.  पहले स्तन कैंसर दुसरे नंबर पर था लेकिन अब यह तथ्य  सामने आया है की स्तन कैंसर पहले स्थान पर पहुच गया है . कैंसर  यानि शरीर की कोशिकाओं   की अनियंत्रित वृद्धि कैंसर मे शरीर की कोशिकाओं पर डीएनए मे उपस्थित जींस  का नियंत्रण समाप्त हो जाता है. इन कोशिकाओं  की  शरीर के  अन्य भाग मे फैलने की आशंका भी रहती है और अगर यह शरीर मे फैल जाये तो ठीक होने की सम्भावना न के बराबर ही होती है  यह जरूरी है की इसका इलाज प्रारम्भिक दौर मे ही  हो जाये .

ब्रेस्ट कैंसर या स्तन कैंसर महिलओं मे होने वाली एक भयावय बीमारी है. हलाकि  यह एक ब्रहम है की ब्रेस्ट कैंसर सिर्फ महिलाओं को होता है. आज पुरूषों मे भी इस बीमारी की संख्या बढ़ रही है. यह एक आश्चर्य  की बात है कि हम पहले यही सोचते थे, कि स्तन कैंसर सिर्फ महिलाओं  को ही होता है . लेकिन अब पता चला है की यह पुरूषों मे भी हो रहा है. रचनात्मक दृष्टि से पुरूषों  की छाती मे निष्क्रिय  स्तन के टिशु  होते है. ये निप्पल के नीचे होते हैं ,जब इन टिशु की अनियत्रित वृद्धि होने लगती है तब स्त्रियो के भांति   पुरूषों  में भी स्तन कैंसर होने लगता है .

कैंसर से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है जागरूकता. अक्टूबर महीने को विश्व स्वस्थ्य संगठन ने इस बीमारी के प्रति जागरूकता वाला माह माना  है . भारत मे महिलाऐं आज भी अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक नही हैं.  और यही  कारण है कि इस बीमारी से पीडि़त  मरीजो की संख्या में  दिनोदिन इजाफा हो रहा है. महिलाओं और पुरूषों  मे होने वाले इस कैंसर के वस्त्विक कारणों का पता नही चल पा रहा है लेकिन वैज्ञानिको  का अनुमान है की यह हार्मोनल या अनुवांशिक कारणों से होता है .

महिलाओ मे स्तन कैंसर का कारण

अगर परिवार मे कोई कैंसर से  बीमारी से पीडि़त रहा हो तो 40 की उम्र के बाद साल मे एक बार जांच अवश्य करवाएं क्योकि यह एक जेनेटिक  बीमारी का रूप भी ले सकता है. अगर धुम्रपान या मादक पदार्थ का सेवन करते है तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है.

* स्तन कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन 40 वर्ष की उम्र के बाद इसकी सम्भावना बढ़ जाती है .

* 12 वर्ष से कम आयु मे मासिक धर्म आरम्भ होना.

* 50 वर्ष की आयु के बाद रजोनवृत्ति.

* संतानहीनता    .

एक शोध मे पाया गया है की हार्मोन संबंधी समस्याओ से निजात पाने के लिये रजौनिवृत्ति के पहले और बाद मे  हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी एच आर टी के बाद स्तन कैंसर पनपने का खतरा ज्यादा होता है .

पुरूषों  मे स्तन कैंसर का कारण 

* एस्ट्रोजेन के स्तर  में  बढ़ोतरी .

* लीवर  की तीव्र गति (सिरोसिस .

* मोटापा .

* क्लिंफेल्टर  का रोग  .

* विकिरण का प्रभाव .

* स्त्री के स्तन का पारिवारिक व्रतान्त.

 

महिलाऐं इन लक्षणों पर दे  ध्यान 

*  स्तन में  पिंड

*  अन्दर को धंसी स्तनाग्र

*  स्तनाग्र से स्राव

*  स्तनाग्र का सूजना

* स्तनो  का बढऩा व सिकुडऩा

* स्तनो का सख्त होना

* हड्डी में  दर्द होना

* पीठ में दर्द होना

पुरूषों इन लक्षणों पर दे ध्यान

* निप्पल के नीचे   की ओर वेदना विहीन ,स्थिर गाठं  होना .

*उपरी चमड़ी मे परिवर्तन होना जैसे चमड़ी में  अल्सर ,चमड़ी अन्दर की ओर खीचना निप्पल का लाल होना .

* निप्पल से किसी प्रकार का द्रव आना या रक्त आना  आन्तरिक कैंसर का सूचक है.

* आग्रीमावस्था  मे सार्वदेहिक  लक्षण जैसे मतली कमजोरी  और  भार  मे कमी होने लगती है .

डॉक्टरी जाँच है जरूरी

स्तन की दर्द रहित गांठ को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिये और अगर वह गांठ स्तन कैंसर का रूप ले चुकी है तो समय रहते ही उसकी जाँच कैंसर विशेषज्ञ से ही कराये .

प्रमुख  टेस्ट

सोनोग्राफी या मेमोग्राफी -एफएनएसी – गांठ की कोशिकओं को महीन सुई की सहायता से निकल कर प्रयोगशाला में जाँच कराया जाता है.

बायोप्सी – छोटे  ऑपरेशन से गांठ का एक छोटा  भाग लेकर प्रयोगशाला में कैंसर की जाँच के लिए भेजा जाता है, बायोप्सी से पता चलता है कि आपमें स्तन कैंसर है या नही. कैंसर के फेह्लाव की सही सीमा स्पष्ट   हो जाएगी और यह भी पता चल जायेगा की ट्यूमर  कोशिकाएं एस्ट्रोजन    रिसेप्ट  पोजिटिव हैं या नेगेटिव.  यह भी की कैंसर कोशिकाओं में एचईआर -2 जें की अनेक कॉपी मौजूद हैं. आगे किये जाने वाले उपचार में इन जानकारियों से काफी सहयता मिल सकती है और इलाज भी सही तरीके से किया जा सकता है.

गतिअवरोधक : भाग 2- सूफी ने अपने भविष्य का क्या फैसला किया

उन के विचार से यदि उन्होंने स्वयं को अपने वास्तविक लक्ष्य से हटा कर राजनीति में उल झा दिया होता तो आज जो कुछ उन्होंने अर्जित किया है, कदापि नहीं कर पाते. ‘‘इस भेंट में डा. तनवीर ने यह भी कहा कि वे देश की वर्तमान राजनीति और नेताओं को बहुत ही तुच्छ मानते हैं. ‘‘निश्चित ही उन के ये विचार अब्बा के विचारों से भिन्न थे. वे तो अपने भावी दामाद को अपने ही रंग में रंगा देखना चाहते थे. फिर यहां तो मामला बिलकुल उलटा था.’’ ये पंक्तियां पढ़ कर मेरे भीतर आक्रोश की एक लहर दौड़ गई. साजिद चाचा का मैं बहुत आदर तो करता था लेकिन उन के व्यक्तित्व के इस पहलू से मु झे बेहद चिढ़ थी.

राजनीति और नेतागीरी उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गई थी और वे यह मानते थे कि आज के युग में यदि कोई सुखमय जीवन व्यतीत करने की क्षमता रखता है तो केवल एक सफल नेता ही. इस में व्यक्ति खोता कुछ नहीं है और पाता सबकुछ है. सूफी के लिए वे सदैव ऐसे ही वर की खोज में रहे हैं.  मु झे याद है कि एक बार उन्होंने एक  ऐसे लड़के को पसंद किया था जो  3 बार बीए की आखिरी परीक्षा में फेल हो चुका था और चौथी बार परीक्षा में बिठाने से उस के बाप ने उसे रोक दिया था. उन्हीं दिनों विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. इस लड़के ने एक प्रत्याशी के लिए चुनावप्रचार का कार्य शुरू कर दिया. बाद में वह प्रत्याशी तो चुनाव हार गया परंतु इन साहबजादे ने चुनावप्रचार से प्राप्त इतनी रकम बाप को जुटा दी जितनी 3 वर्ष में उस की पढ़ाई पर खर्च नहीं हुई थी. यह देख कर बाप का हौसला बढ़ा और उस ने इसे नगरनिगम के चुनाव में खड़ा कर दिया.

साहबजादे चूंकि लंबी अवधि तक कालेज में रहे थे, इसलिए छात्रवर्ग से अच्छे संबंध थे. सो, उन के ही माध्यम से अपने लड़के के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को बिठा दिया जिस से वह निर्विरोध पार्षद हो गया.  साजिद चाचा उस के इस गुण से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उस लड़के की प्रतिभा को परख कर उसे अपना दामाद बनाने का निश्चय कर लिया परंतु जब घर में बात चली, चाची और वाजिद से परामर्श हुआ तो गाड़ी पटरी से उतर गई. वाजिद ने इस रिश्ते को एकदम नापसंद कर दिया. उस का कहना था कि गुंडागर्दी के आधार पर चुनाव जीतना कोई बड़ा कारनामा नहीं है. ऐसे लोग जितनी जल्दी ऊपर चढ़ते हैं, उतनी ही जल्दी नीचे भी गिर पड़ते हैं. इसलिए वह सूफी के लिए ठोस धरातल पर खड़े किसी लड़के को ही पसंद करेगा. साजिद चाचा ने बहुत तर्क दिए परंतु वाजिद को राजी नहीं कर सके. ऐसा एक बार नहीं, अनेक बार होता आया है.

‘‘इन लोगों के विचारों की इस भिन्नता का नतीजा जाहिर है. लेकिन शिकायत अब्बा की ही क्या की जाए, भाईजान के दृष्टिकोण से भी आप परिचित हैं.’’ हां, वाजिद के दृष्टिकोण से भी मैं परिचित हूं. बहुत पहले कहीं से एक प्रस्ताव आया था. लड़का किसी सरकारी प्रतिष्ठान में प्रबंधक था. विभागीय परीक्षाएं देने के बाद पदोन्नति के अवसर थे. लड़का स्वस्थ और सुंदर था. बाप पुलिस विभाग में किसी ओहदे पर थे. घर में केवल मां थी. सबकुछ ठीक था. सूफी की मां को यह रिश्ता बहुत पसंद था और उन्होंने साजिद चाचा को भी किसी प्रकार तैयार कर लिया था परंतु वाजिद ने केवल इसलिए इसे नापसंद कर दिया था कि लड़के के अन्य रिश्तेदार सामान्य परिवारों से संबंध रखते थे. इन रिश्तेदारों में कोई डाक्टर, इंजीनियर, कलक्टर आदि नहीं था. उसे यह गवारा नहीं था कि उस की बहन ऐसे लोगों में ब्याह कर जाए जो सामान्य स्तर के हों.

एक अन्य रिश्ता केवल इसलिए   पसंद नहीं आया था कि लड़का  जिस व्यवसाय में था, उस में ऊपरी आमदनी के साधन नहीं थे. उस का विचार था कि सीमित आय वाला व्यक्ति समय के अनुरूप जीवनयापन करने में असमर्थ रहता है. इस प्रकार सूफी के लिए वर का चयन करते समय वाजिद जिस मापदंड का प्रयोग करता है, उस से मैं कभी पूरी तरह सहमत नहीं रहा. उसे ले कर भी सूफी की शिकायत मु झे उचित ही लगी. मैं आगे पत्र पढ़ने लगा. ‘‘इन दोनों के अतिरिक्त घर में मां हैं. उन की अपनी अलग ही सोच है. यदि  किसी बिंदु पर अब्बा और भाईजान एकमत हो जाते हैं तो मां अड़ जाती हैं अपनी पसंद पर.

‘‘पिछली गरमी में छोटे खालू घर आए थे. उन के बड़े भाई का लड़का अकील स्टील फैक्टरी में इंजीनियर है. अम्मा उन के घर गई थीं. सलमा भी साथ गई थी. उस ने आ कर बताया था कि इन लोगों का खुद का बहुत बड़ा मकान है. घर में हर प्रकार की सुखसुविधा के आधुनिक साधन उपलब्ध हैं. अकील की मां बहुत मिलनसार, हंसमुख और रहमदिल महिला हैं. घर में अकील की 3 बहनें हैं. एक की शादी हो चुकी है. 2 अभी पढ़ रही हैं.  4 भाई हैं. 2 छोटे, 2 बड़े. बड़े भाइयों की पत्नियां भी शिक्षित और व्यवहारकुशल हैं. ये सब लोग संयुक्त परिवार के रूप में हंसीखुशी साथ रहते हैं. ‘‘सब ने अम्मा का खूब आदरसत्कार किया.

पुरुषों के पोनीटेल स्टाइल और बौलीवुड का क्या है कनेक्शन, जानें यहां

25 वर्षीय महेश ने अपने हेयर इस लिए बढ़ाए, क्योंकि उस के सिर के केश कम थे, लेकिन जब उस के हेयर शोल्डर लेंथ तक हो गए तो उस ने पोनीटेल बांधनी शुरू की, जिसे देख कर उस की स्टाइलिस्ट गर्लफ्रैंड भी खुश हो गई.

मोहन को ये लुक सैलून में जा कर लेना पड़ा, क्योंकि वह वहां हेयर कट के लिए गया था, लेकिन वहां जा कर उसे पता चला कि ये लुक उस पर जंचेगा, क्योंकि उस ने एक फिल्म में रणवीर सिंह को ऐसे हेयर कट मे देखा है, जो उसे पसंद आया था.

साथ ही उस की गर्लफ्रैंड हमेशा उसे कम बालों के लिए ताना मारती थी और कुछ नया करने को कहती थी, लेकिन महेश को अपने पूरे बाल कटवा कर बौल्ड होना कतई पसंद नहीं उस ने केश बढ़ा कर अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की और हुआ भी ऐसा ही, सभी ने उस के इस लुक की जम कर तारीफ की.

असल में पुरुषों में हमेशा से छोटे और कम केश होने की वजह से उस की रखरखाव कम करनी पड़ती है. कम शैंपू और कंडिशनर भी लगते हैं, केश जल्दी सूख जाते हैं. छोटे केशों को स्टाइल करने में कम समय लगता है और यही उन का स्टाइल बन कर रह जाता है.

पोनीटेल या चोटी का इतिहास

भारत में मान्यता यह रही है कि सिर पर चोटी होने से नकारात्मक वातावरण से मस्तिष्क की रक्षा होती है. हालांकि इस के कोई साक्ष्य नहीं हैं. स्कूलों में छोटे बाल रखने की हिदायतें दी जाती है ताकि सिर पर अतिरिक्त बोझ न महसूस हो. बड़ेबड़े वैज्ञानिक जब बेतरतीब जीवन जीते थे तब उन के बाल बढ़ जाया करते थे. लंबे बाल रखने वालों को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता था.

इस के अलावा मूल अमेरिकियों के लिए, लंबे बाल शक्ति, पौरूष और शारीरिक शक्ति का प्रतीक हैं. जनजातियों के बीच मान्यताएं और रीतिरिवाज व्यापक रूप से भिन्न हैं, हालांकि, एक सामान्य नियम के रूप में, पुरुषों और महिलाओं दोनों को अपने बाल लंबे रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

ट्रैंड बना है आज

आज पोनीटेल एक अच्छा हेयर स्टाइल बन चुका है, क्योंकि कई बौलीवुड ऐक्टर्स ने इस के साथ ऐक्टिंग की, जिसे आज के यूथ ने काफी पसंद किया. इस बारे में नैशनल हेड हेयर स्टाइलिस्ट विनय कुमार कहते हैं, “मैट्रोज में पोनीटेल का प्रचलन युवाओं में बहुत अधिक है, लेकिन छोटे शहरों और गांव में ऐसा नहीं है, वहां के यूथ छोटे केश ही पसंद करते हैं. इस में कोई संदेह नहीं है कि पुरुषों के लिए लंबे बाल, पोनी टेल बेहद आकर्षक और स्मार्ट दिख सकते हैं, लेकिन उस का रखरखाव सही करना पड़ता है, ताकि व्यक्ति साफसुथरा दिखे.

“पुरुषों के बालों के फैशन की बात आती है तो लंबे बालों का स्टाइल हमेशा चलन में रहता है. लंबी केशों की शैलियां अधिकांश प्रकार के चेहरों पर अच्छी लगती हैं, लेकिन ऐसा करने के लिए एक निश्चित मात्रा में केशों की देखभाल की आवश्यकता होती है. अगर आप हेयर स्टाइल को एक स्टेटमेंट बनाना चाहते हैं तो लंबे समय तक ऐसा करना ही एकमात्र अच्छा विकल्प हो सकता है, क्योंकि केशों को सुंदर और अलग दिखाने का एकमात्र स्टाइल लंबे केशों को बढ़ाने से बेहतर कोई तरीका नहीं हो सकता है.”

पोनीटेल और बौलीवुड कनेक्शन

सब से पहले बड़े केशों वाला लुक की शुरुआत सलमान खान ने फिल्म ‘सूर्यवंशी’ में किया था, जिसे सभी यंगस्टर्स ने पसंद किया. इस के बाद संजय दत्त ने भी इसी लुक को कैरी किया और स्मार्ट दिखे. इस के बाद आई बात उन्हे बांधने की. आइए जानते हैं बौलीवुड के ऐसे सितारे जिन्होंने पोनीटेल लुक को अपनाया और दर्शकों की तारीफें बटोरीं.

रणवीर सिंह

स्टाइलिश रणवीर सिंह की हेयर कट आज सभी को पसंद होता है. मुंबई की सड़कों पर कई लड़के ऐसे मिल जाएंगे, जो पोनीटेल के शौकीन हैं. रणवीर को कई बार सिंगल और डबल पोनीटेल वाले लुक में देखा गया है.

सलमान खान

‘किसी का भाई किसी की जान’ के दौरान बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान ने भी पोनीटेल हेयर स्टाइल रखी है. सलमान खान इंड्स्ट्री के उन सितारों में से हैं, जिन की हर स्टाइल पर फैंस फिदा होते हैं और उसे अपनाते भी हैं, लेकिन इस बार सलमान खुद अपनी हेयर स्टाइल के लिए किंग खान यानी शाहरूख की नकल करते हुए दिखे. इस के अलावा कई और ऐसे सितारे हैं जिन्होंने पोनीटेल लुक रखा भी और उन में वे काफी डेशिंग भी लगे.

शाहरुख खान

शाहरूख खान का पोनीटेल लुक ‘पठान’ से पहले भी दिखा है. डोन फिल्म के लिए भी उन्होंने चोटी लुक ट्राई किया था. जिस में वो काफी कूल भी लगे थे. वे आन स्क्रीन और औफ स्क्रीन दोनों में पोनीटेल लुक में स्मार्ट दिखते हैं.

शाहिद कपूर

बौलीवुड के चौकलेटी हीरो शाहिद कपूर पर भी ये चोटी लुक खूब जंचा था. वैसे तो वो रोमांटिक हीरो रहे हैं, लेकिन हार्ड लुक और एक्शन अवतार में ढलने के लिए उन्होंने भी पोनीटेल हेयर स्टाइल का सहारा लिया.

राम चरण तेजा

साउथ के सुपर स्टार राम चरण तेजा भी पोनीटेल लुक में काफी स्टाइलिश लगे थे. उन के इस लुक को भी उन के फैंस ने खूब पसंद किया था.

सुनील शेट्टी

60 पार की उम्र में सुनील शेट्टी ने बियर्ड और पोनीटेल लुक रखा. कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि इस अंदाज में वो अपने लुक्स से यंग स्टार्स के सामने बड़े स्टाइल गोल्स रखने में कामयाब रहे.

ऋतिक रोशन

ऋतिक रोशन की तो पहचान ही ग्रीक गोड की बन चुकी हैं. फिर भला स्टाइल के मामले में वो गलत कैसे हो सकते हैं. ऋतिक रोशन भी डेंस बियर्ड लुक और पोनीटेल लुक में दिखाई दे चुके हैं. इस के अलावा अमिताभ बच्चन, संजय दत्त, अर्जुन रामपाल आदि अभिनेताओं ने पोनी टेल लुक दिया है.
यदि आप पोनीटेल रखने के शौकीन हैं तो कुछ खास बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, जो निम्न हैं-

• अपने हेयर को हमेशा ब्रैंडेड शैंपू और कंडिशनर से सप्ताह में दो बार धोएं,
• महीने में एक बार अच्छी हेयर मास्क लगाएं,
• 55 से 60 दिन में ट्रिमिंग और 6 महीने में एक बार हेयर कट अवश्य करवाएं,
• हमेशा व्यक्ति केश छोटे होने की डर से समय पर ट्रिमिंग नहीं करवाना चाहता, इस के लिए हमेशा एक ही हेयर स्टाइलिस्ट से केशों को कट करवाएं, क्योंकि उसे आप की कट का सही ऐंगल पता होता है और हेयर शौर्ट भी नहीं होता.

सेना से संबंधित संस्थाओं में धार्मिक संगठन का जुड़ना क्या देश के लिए खतरा है?

बीते दिनों एक आरटीआई (सूचना के अधिकार) उत्तर पर आधारित एक जांच रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने देश के सैनिक स्कूलों के निजीकरण पर आपत्ति दर्ज कराते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र लिखा है.

इस पत्र में उन्होंने लिखा कि देश में पहले 33 सैनिक स्कूल थे जो पूरी तरह से सरकारी वित्त पोषित संस्थान और रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के तहत एक स्वायत्त निकाय, सैनिक स्कूल सोसाइटी (एसएसएस) के तत्वावधान में संचालित थे. 2021 में केंद्र की मोदी सरकार ने देश भर में कोई 100 सैनिक स्कूलों की सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मौडल पर स्थापित करने का निर्णय लिया.

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मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीपीपी मौडल पर सैनिक स्कूलों की स्थापना को रेखांकित करते हुए कहा है कि देश के सैनिक स्कूल सैन्य नेतृत्व और उत्कृष्टता के प्रतीक रहे हैं मगर 2021 में केंद्र सरकार ने बड़ी बेशर्मी से सैनिक स्कूलों के निजीकरण की पहल की और देश के 100 नए सैनिक स्कूलों में से 40 के लिए निजी संस्थाओं-व्यक्तियों से करार कर लिया.

खरगे का आरोप है कि एमओयू होने वाले 40 स्कूलों में से 62 फीसदी स्कूलों से जुड़ा करार भाजपा-संघ परिवार से संबंधित लोगों और संगठनों के साथ किया गया है, जो देश के लिए खतरनाक साबित होगा. उन्होंने दावा किया कि एमओयू करने वाले लोगों में एक मुख्यमंत्री का परिवार, कई विधायक, भाजपा के पदाधिकारी और संघ के नेता शामिल हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि आजादी के बाद से ही अपने यहां सशस्त्र बलों को किसी भी पक्षपातपूर्ण राजनीति से दूर रखा गया है. ऐसे में घोर दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों द्वारा इन स्कूलों का संचालन देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित होगा. उन्होंने राष्ट्रपति से विनती की है कि इस निजीकरण नीति को पूरी तरह से वापस लिया जाए और रद्द किया जाए.

गौरतलब है कि भारत में सैनिक स्कूलों की शुरुआत साल 1961 में हुई थी. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर इस की कल्पना तत्कालीन रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन ने की थी. सैनिक स्कूल में पढ़ाई का स्तर काफी उच्च है. सैन्य स्कूलों की स्थापना का उद्देश्य छात्रों को शारीरिक फिटनेस, नेतृत्व क्षमता, अनुशासन, मिलिट्री टैक्टिक्स और अन्य सैन्य कौशलों का प्रशिक्षण प्रदान कर के राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) में एडमिशन के लिए तैयार करना था.

इस के लिए स्कूल में छात्रों को नियमित रूप से मार्चिंग, फील्ड ड्रिल, बैटल रेडीनेस और अन्य सैन्य गतिविधियों में भाग लेना आवश्यक है. सैन्य शिक्षा के साथ सामान्य शिक्षा के अंतर्गत छात्रों को सीबीएसई पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाई कराई जाती है. इस में गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, आदि विषय शामिल हैं. सैनिक स्कूल का संचालन सैनिक स्कूल सोसायटी करती है. यह सोसायटी भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है.

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी सैनिक स्कूलों के संचालन में निजी संस्थाओं की भागीदारी के लिए सरकार की निंदा की और कहा कि यह कदम ‘शिक्षा के सांप्रदायीकरण’ को मजबूत करता है और सैन्य प्रतिष्ठान के ‘उच्च धर्मनिरपेक्ष मानकों’ को प्रभावित कर सकता है.

किसी भी लोकतांत्रिक देश के सशस्त्र बलों की वीरता और साहस को हमेशा दलगत राजनीति से दूर होना चाहिए. भारत में भी मोदी राज से पहले तक सशस्त्र बलों एवं उससे संबंधित संस्थाओं को हमेशा राजनीतिक विचारधाराओं की छाया से दूर रखा गया, लेकिन अब इस के उलट प्रयास हो रहे हैं. आज तक किसी राजनीतिक दल ने ऐसा नहीं किया मगर संघ और भाजपा सेना और सैनिक स्कूलों का भगवाकरण करने में जुटी हुई है.

सैनिक स्कूलों में योग्यता के आधार पर छात्रों का एडमिशन होता है. इस में सामान्य, ओबीसी वर्ग एवं एससी और एसटी वर्ग के छात्र अपनी शैक्षिक योग्यता के आधार पर प्रवेश पाते हैं. धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा, रंगभेद और दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सभी छात्रों को एक समान रूप में सामान्य शिक्षा के साथ साथ सैन्य हथियारों को चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इन में से अधिकांश प्रशिक्षित युवा आगे जा कर आर्मी जौइन करते हैं.

2022 और 2023 के बीच केंद्र सरकार ने बड़ी संख्या में सैनिक स्कूलों को उन शैक्षणिक संस्थानों में स्थानांतरित कर दिया है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अन्य हिंदुत्व संगठन और भाजपा से जुड़े लोगों द्वारा संचालित हैं. गौरतलब है कि ईसाई, मुसलिम या अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक संगठनों द्वारा संचालित किसी भी निजी स्कूल को ऐसी कोई संबद्धता नहीं दी गई है.

सैनिक स्कूलों में हिंदुत्व की घुसपैठ का ज्वलंत उदाहरण विवादास्पद साध्वी ऋतंभरा का मामला है. वही साध्वी ऋतंभरा जो अनेक मौकों पर सांप्रदायिक उन्माद भड़काने में पीछे नहीं रहती हैं. जो मुसलमानों के खिलाफ स्पष्ट नफरती सोच रखती हैं. ऋतंभरा धुर दक्षिणपंथी समूह विश्व हिंदू परिषद से संबद्ध दुर्गा वाहिनी की संस्थापक हैं. मोदी सरकार ने साध्वी ऋतंभरा के वृन्दावन में संविद गुरुकुलम गर्ल्स सैनिक स्कूल और सोलन में राज लक्ष्मी संविद गुरुकुलम को सैनिक स्कूल समझौते के तहत संचालन की जिम्मेदारी दी है.

मई 2022 से दिसंबर 2023 के बीच जिन स्कूलों ने सैनिक स्कूल सोसाइटी के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं, उन में से 7 स्कूल संघ या उस के सहयोगी संगठनों के हैं. नासिक के भोंसला मिलिट्री स्कूल को भी सैनिक स्कूल के रूप में संचालित करने की मंजूरी दी गई है. इस स्कूल की स्थापना 1937 में हिंदू दक्षिणपंथी विचारक बीएस मुंजे ने की थी. यह अब सेंट्रल हिंदू मिलिट्री एजुकेशन सोसाइटी द्वारा चलाया जाता है.

यह स्कूल इस आरोप के लिए भी चर्चा में था कि 2006 के नांदेड़ बम विस्फोट और 2008 के मालेगांव विस्फोटों के आरोपियों को भोंसला मिलिट्री स्कूल में प्रशिक्षित किया गया था. जाहिर है कम उम्र में ही बच्चों को हिंदुत्व के प्रति समर्पित बनाने के उद्देश्य से ऐसा किया जा रहा है, जो एक धर्मनिरपेक्ष देश की एकता और अखंडता के लिए विनाशकारी कदम साबित होगा.

गौरतलब है कि अग्निवीर योजना के जरिये हर साल हजारों की संख्या में युवा 4 साल सेना में काम करने के बाद बेरोजगार हो कर सड़कों पर होंगे. इन में से बमुश्किल ही कुछ अन्य नौकरियों में आएंगे और अधिकांश नौकरी जाने के कारण अवसाद या गुस्से में होंगे. सैन्य स्कूलों से निकलने वाले सभी छात्रों को सेना में जगह नहीं मिलती है. यह सभी हथियार चलाने में माहिर होंगे. बेरोजगारी के कारण गुस्से में होंगे. हिंसा और उग्रता उन पर हावी होगी. वे गलत राह पकड़ेंगे, अपराध में लिप्त होंगे.

संघ और भाजपा चुनावों के वक्त ध्रुवीकरण के लिए उन्हें हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. दक्षिणपंथी सोच के चलते वे पहले अल्पसंख्यकों पर अपनी उग्रता और गुस्से को उतारेंगे और बाद में बहुसंख्यक भी उन के गुस्से और अपराध का शिकार बनने लगेंगे. इन तमाम आशंकाओं को दरकिनार कर भाजपा कम उम्र में ही बच्चों को दक्षिणपंथी सांचे में ढालने के लिए उतावली है.

पहली बार ऐसा हुआ जब देश के प्रतिष्ठित सैनिक स्कूलों को चलाने के लिए संघ की विचारधारा से जुड़े लोगों को मौका मिला है. अब तक हुए 40 स्कूलों के समझौतों में कम से कम 62 प्रतिशत संघ, भाजपा और उन के सहयोगियों के संगठनों को दिए गए हैं.

सवाल यह है कि संघ और भाजपा संवैधानिक संस्थाओं, विश्वविद्यालयों के बाद प्रारंभिक शिक्षा/स्कूल में शिक्षा के बुनियादी ढांचे के साथ छेड़छाड़ क्यों कर रही है? भारतीय सेना धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक-सांप्रदायिक एकता का चमकता हुआ उदाहरण है. ऐसे में सेना से संबंधित संस्थाओं में धार्मिक संगठन का जुड़ना क्या देश की एकता व संविधान के लिए खतरा नहीं है?

सुप्रिया सुले और सुनेत्रा पवार: ननद भौजाई के बीच चुनावी लड़ाई

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक दिग्गज नेता शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले बारामती लोकसभा क्षेत्र से एक बार फिर चुनाव लड़ने जा रही हैं. वह इस सीट का साल 2009 से प्रतिनिधित्व कर रही हैं. बारामती पवार परिवार का गढ़ है. शरद पवार इस सीट से 1996 से 2009 तक सांसद रहे थे. सुप्रिया सुले भी यहां से लगातार 3 बार से सांसद हैं.

हालांकि यह चुनाव पिछले चुनावों से अलग है. अब शरद पवार की एनसीपी विभाजित हो गई है. इस के एक गुट की बागडोर 80 साल के शरद पवार के हाथ में है और दूसरे गुट का नेतृत्व उन के भतीजे अजित पवार कर रहे हैं. अजित पवार बीजेपी और शिवसेना के साथ गठबंधन कर के महाराष्ट्र सरकार का हिस्सा बन चुके हैं. सुप्रिया सुले अब एनसीपी (शरद पवार) की उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगी.

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वैसे इस बार बारामती के चुनाव में पवार बनाम पवार मुकाबला देखने को मिलेगा. इस सीट पर सुप्रिया सुले का मुकाबला उन की भाभी और अजित पवार की पत्नी पर्यावरण कार्यकर्ता सुनेत्रा पवार से होने वाला है.

जाहिर है बारामती सीट पर लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. इस सीट पर कौन बाजी मारेगा ये 4 जून को ही पता चलेगा लेकिन इस बार चुनाव में ननद और भाभी के बीच कड़ी टक्कर देखने लायक होगी. अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले एकदूसरे को कांटे की टक्कर दे रही हैं. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार खुद सुनेत्रा के प्रचार की कमान संभाले हुए हैं और लगातार इलाके में प्रचार कर रहे हैं. वहीं सुप्रिया सुले ने भी एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है.

पिछले दिनों एक सवाल के जवाब में सुप्रिया सुले ने कहा, “मैं सुनेत्रा पवार को फौलो नहीं करती. मैं दूसरों के घर में नहीं झांकती. इस देश के कोर इश्यूज क्या हैं, मुझे पता है. मेरी लड़ाई उन से नहीं है. मेरी लड़ाई केंद्र सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ है. मैं व्यक्तिगत तौर पर किसी से नही लड़ती.” सुले ने कहा कि “मैं अजित पवार को प्रतिद्वंदी नहीं समझती. मेरी लड़ाई महगाई बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ है. अच्छे बदलाव के लिए मैं राजनीति में आई हूं.”

हाल ही में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के संस्थापक और 25 साल से अध्यक्ष शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्याध्यक्ष नियुक्त किया था. सुप्रिया सुले को पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र का प्रभारी भी बनाया गया. इन में सब से महत्वपूर्ण महाराष्ट्र है क्योंकि पार्टी का 90 प्रतिशत से ज्यादा आधार यहीं है. शरद पवार ने सुप्रिया सुले को शुरू में ही राज्यसभा भेज कर संसदीय राजनीति में रखा. जाहिर है पवार पार्टी की कमान सुरक्षित हाथों में दे कर अपना पूरा नियंत्रण जस का तस बनाए रखना चाहते हैं.

शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से नाता तोड़ कर जून 1999 में अपनी नई पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली थी. जब से ये पार्टी बनी है तब से बारामती लोकसभा सीट पर इसी का कब्जा है.

बारामती अपने गन्ने के बागानों के लिए भी मशहूर है. इसी वजह से यहां की सियासत में किसान फैक्टर अहम हो जाता है. खुद शरद पवार भी इसी के दम पर न सिर्फ बारामती बल्कि प्रदेश और देश की सियासत में भी दम रखते हैं. दरअसल बारामती में लहलहाते गन्ने और दूसरे विकास कार्यों में बहुत हद तक शरद पवार का योगदान है. शरद पवार एंड फैमिली को ताकत इन्हीं किसानों से मिलती है.

1996 से ले कर 2004 तक लगातार 4 बार शरद पवार ही यहां से सांसद रहे. इस दौरान वे केंद्र में कई बड़े पदों पर रहे. शरद पवार के बाद ये सीट को उन की बेटी सुप्रिया सुले ने 2009 से ले कर अब तक अपने कब्जे में रखा है. साल 2014 की मोदी लहर में महाराष्ट्र में कई बड़े नाम धराशाही हो गए लेकिन बारामती सीट पर पवार परिवार का ही कब्जा रहा.

बारामती एक हाई प्रोफाइल चुनावी संघर्ष के लिए तैयार

3 बार की सांसद सुप्रिया सुले के खिलाफ महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार के चुनावी अखाड़े में उतरने के बाद शरद पवार का गृह क्षेत्र बारामती एक हाई-प्रोफाइल चुनावी संघर्ष के लिए तैयार है. ‘पवार-बनाम-पवार’ का संघर्ष पिछले साल मूल राकांपा में हुए विभाजन का नतीजा है.

अजित पवार पिछले वर्ष अपने वफादार विधायकों के साथ सत्तारूढ़ भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ चले गए थे. एनसीपी के संस्थापक गुट ने 54 वर्षीय सुप्रिया सुले को यहां से नामांकित किया है जबकि अजीत पवार के गुट ने सुले की भाभी 60 वर्षीय सुनेत्रा पवार को मैदान में उतारा है. दोनों ही उच्च शिक्षित महिला हैं और लोगों की नब्ज पहचानना भी जानती हैं.

सुप्रिया बनाम सुनेत्रा

बारामती लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. बारामती शहर, इंदापुर, दौंड, पुरंदर, भोर और खड़कवासला. इन क्षेत्रों में, भोर और पुरंदर पर कांग्रेस का प्रभाव है जबकि बारामती और इंदापुर ने ऐतिहासिक रूप से (विभाजन से पहले) एनसीपी का पक्ष लिया है. दौंड और खड़कवासला में बीजेपी का प्रभाव है.

2019 के चुनावों में सुप्रिया सुले ने एनसीपी के बैनर तले बारामती निर्वाचन क्षेत्र में अपनी लगातार तीसरी जीत हासिल की थी. 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार और दौंड विधायक राहुल कुल की पत्नी कंचन कुल को सुप्रिया सुले ने 1.55 लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था.

बारामती में इस बार अभूतपूर्व मुकाबला है. NCP के दो धड़ों की यह निर्णायक लड़ाई है. इस में अजित हारे तो BJP में उन का कद घट जाएगा और शरद पवार हारे तो उन के राजनीतिक जीवन का पटाक्षेप आरंभ हो जाएगा. अजित की उम्मीदवार उन की पत्नी सुनेत्रा हैं, जबकि शरद पवार ने बेटी सुप्रिया सुले को उतारा है. इस तरह भौजाई और ननद के बीच यह दंगल है. उन के रूप में असल में भतीजे और चाचा की यह राजनीतिक लड़ाई है.

सुनेत्रा कभी राजनीतिक मैदान में नहीं उतरीं. लेकिन पर्यावरण, ग्रामीण विकास और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं. बारामती हाई-टेक टेक्सटाइल पार्क की अध्यक्ष रह चुकी हैं. इस पार्क से 15 हजार ग्रामीण महिलाएं जुड़ी हैं. शरद पवार द्वारा स्थापित विद्या प्रतिष्ठान की वह उपाध्यक्ष हैं. यह प्रतिष्ठान कई स्कूल-कौलेज चलाता है जिन में कोई 25 हजार छात्र पढ़ते हैं. पर्यावरण पर उन का इनवाइरमेंटल फोरम औफ इंडिया है जो फ्रांस के NGO से भी जुड़ा है.

इधर सुप्रिया गांवगांव जा कर लोगों से मिलती हैं. सुबह 8 बजे से ही उन के बहुत व्यस्त कार्यक्रम होते हैं जो देर रात तक चलते हैं. पिता शरद पवार भी पूरे क्षेत्र का लगातार दौरा कर रहे हैं.

प्रचार के दौरान ननद-भौजाई एकदूसरे पर व्यक्तिगत प्रहार नहीं करतीं. ननद का कहना है कि भौजाई मां के समान होती है. यही हमारी संस्कृति है. प्रचार की शुरुआत में दोनों की बारामती के हनुमान मंदिर में मुलाकात हुई. दोनों मुसकराते हुए एक दूसरे से मिलीं.

बारामती में तीसरे चरण में सात मई को मतदान होना है. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल से 20 मई के बीच 5 चरणों में मतदान होगा और मतों की गिनती 4 जून को होगी.

अप्रैल माह का पहला सप्ताह, कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार

मार्च माह जातेजाते उम्मीद की एक लौ जगा गया था, मगर अप्रैल के पहले सप्ताह ने उस उम्मीद की लौ पर पानी डाल दिया. अप्रैल के पहले सप्ताह यानी कि 5 अप्रैल को एक भी बड़ी फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई पर जो छोटी फिल्में प्रदर्शित हुई, उन्होंने तो साबित कर दिखाया कि हर फिल्मकार हमेशा के लिए बौलीवुड को तबाह करने पर उतारू है.
5 अप्रैल के दिन ‘गोलियो की रास लीला : रामलीला’, ‘पद्मावत’, ‘बाजीराव मस्तानी’,  ‘टौयलेट एक प्रेम कथा’, ‘ब्रदर्स’, ‘राब्टा’, ‘पल पल दिल के पास’, ‘बट्टी गुल मीटर चालू’ और ‘जबरिया जोड़ी’ सहित कई फिल्मों की लेखकीय जोड़ी सिद्धार्थ गरिमा ने बतौर लेखक व निर्देशक किराए की कोख वाली कहानी पर फिल्म ‘दुकान’ ले कर आईं, तो बौक्स औफिस पर चारों खाने चित्त हो गई. इतना ही नहीं यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ‘दुकान’ की लेखक व निर्देशक जोड़ी ने ही उपरोक्त सफलतम फिल्में लिखी थीं.
टौयलेट एक प्रेम कथा
टौयलेट एक प्रेम कथा
फिल्म ‘दुकान’ पिछले 3 साल से प्रदर्शन का इंतजार कर रही थी और जब 5 अप्रैल को यह फिल्म प्रदर्शित हुई तो इसने बौक्स औफिस पर पानी तक नहीं मांगा. एक सप्ताह के अंदर यह फिल्म बामुश्किल 19 लाख ही बटोर सकी. इतना 3 साल तक फिल्म के डिब्बे में बंद पड़ी रहने के चलते ब्याज देना पड़ गया होगा.
वास्तव में सब से बड़ी कमी लेखक की ही है. फिल्म ‘दुकान’ की कहानी एक लाइन में यह है कि, ‘‘अगर किसी दंपति का अपना परिवार बढ़ाने के लिए अपनी कोख किराए पर देने वाली मां को अपने गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चे से प्यार हो जाए, तो क्या होगा?’’ लेकिन कहानी पूरी तरह से भटकी हुई है. निर्देशन में दम नहीं. ऊपर से फिल्मकार ने दो ऐसी कंपनियों को अपनी फिल्म के प्रचार का जिम्मा दिया, जिन्होने इस कदर प्रचार किया कि पत्रकारों तक को नहीं पता चला कि यह फिल्म कब सिनेमाघर पहुंची और कब सिनेमाघर से बाहर हो गई. इस की एक पीआरओ तो बहुत ही ज्यादा बदतमीजी से बात करने के लिए मशहूर है. बहरहाल, फिल्मकार तो अपनी इस फिल्म की लागत भी बताने को तैयार नहीं है.
5 अप्रैल को ही लेखक, निर्माता, निर्देशक आदित्य रनोलिया की फिल्म ‘द लास्ट गर्ल’  5 अप्रैल को सिनेमाघरों में पहुंची. फिल्म की लागत को ले कर निर्माता ने चुप्पी साध रखी है. यह फिल्म बौक्स औफिस पर 10 लाख रूपए ही कमा सकी, इतनी रकम तो शूटिंग के दौरान चाय पीने में खर्च हो गई होगी.
5 अप्रैल से एक दिन पहले 4 अप्रैल को रोहित बोस रौय के जन्म दिन पर उन के अभिनय से सजी रोमांचक फिल्म ‘आइरा’ प्रदर्शित हुई. यूरोप में फिल्माई गई और ‘एआई’ यानी कि आर्टिफिशियल इंटेलीजैंस पर आधारित फिल्म ‘आइरा’ ने बौक्स औफिस पर इतनी ज्यादा रकम बटोर ली है कि अब निर्माता बौक्स औफिस के आंकड़े व लागत दोनों बताना नहीं चाहता.
हमारे सूत्र बताते हैं कि इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर सिर्फ 8 लाख रूपए ही एकत्र किए. यह अति महंगी फिल्म है. निर्देशक सैम भट्टाचार्जी और अभिनेता रोहित बोस रौय ने दावा किया था कि यह पहली फिल्म हैं, जिस में 1600 वीएफएक्स शौट्स हैं.
यहां पर हमें कानपुर स्थित ‘जुबुली पैलेस’ सिंगल थिएटर के मालिक राम जायसवाल की बात याद आती है कि बौलीवुड को दर्शक नहीं बल्कि फिल्मकार स्वयं बरबाद कर रहे हैं और अगर यह अभी भी नहीं चेते तो भारतीय सिनेमा को लोग हमेशा के लिए भूल जाएंगे.

अनुप्रिया पटेल: विरासत की राजनीति में न पार्टी बची न परिवार

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भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की तरफ से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर लोकसभा सीट से अनुप्रिया पटेल चुनाव लड़ रही हैं. वह अपना दल सोनेलाल गुट की अध्यक्ष है. 2012 के विधानसभा चुनाव में वह विधायक चुनी गई थीं. इस के बाद वह 2014 के लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद और मोदी मंत्रिमंडल में केन्द्रीय मंत्री बनीं. अनुप्रिया पटेल डाक्टर सोने लाल पटेल की बेटी हैं.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में डाक्टर सोने लाल पटेल को कमजोर वर्ग का प्रभावी नेता माना जाता है. उन का राजनीतिक कैरियर बहुजन समाज पार्टी से शुरू हुआ. वह कांशीराम के बेहद करीबी और बसपा के संस्थापक सदस्यों में से थे. डाक्टर सोनेलाल पटेल ने हमेशा जातिवाद का डट कर विरोध किया और सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ी. शुरूआती दौर में वह भाजपा और उस के मनुवाद के प्रबल विरोधी थे. सोने लाल पटेल का जन्म कन्नौज जिले के बगुलिहाई गांव में एक कुर्मी हिंदू परिवार में हुआ था.

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दलित पिछड़ों और कमजोरों के नेता थे सोनेलाल

पंडित पृथ्वी नाथ कालेज कानपुर से एमएससी की उपाधि प्राप्त की और कानपुर विश्वविद्यालय से भौतिकी में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. कम उम्र से ही वह समाज में फैले जातिवाद और सामाजिक असमानता के मुखर आलोचक थे. उन्होंने हमेशा सामाजिक न्याय और समानता की वकालत की. सोने लाल पटेल ने चौधरी चरण सिंह के साथ मिल कर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. सामाजिक असमानता और जातिगत शोषण के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों और रैलियों में सक्रिय रूप से भाग लिया. विरोध प्रदर्शन के दौरान कई बार उन्हें पुलिस की बर्बरता भी सहनी पड़ी.

इस बीच सोने लाल पटेल की मुलाकात कांशीराम हुई. कांशीराम दलित पिछड़ों और मुसलमानों की लडाई लड़ रहे थे. वह उत्तर भारत में सामाजिक न्याय आंदोलन खड़ा करने का प्रयास कर रहे थे. जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक अन्याय के संबंध में उन के दृष्टिकोण काफी हद तक एक जैसे थे. कांशीराम के कहने पर पटेल ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन को बसपा के संस्थापकों में से एक माना जाता है.

 

कांशीराम ने जब बसपा के पुराने नेताओं को नजरअंदाज करते हुए मायावती को आगे बढ़ाना शुरू किया तो सोने पटेल का उन से मोह भंग हुआ. संकल्प और उद्देश्यों से असन्तुष्ट होने के कारण वे पार्टी से अलग हो गए. 4 नवंबर,1995 को सोने लाल पटेल ने ‘अपना दल’ की स्थापना की. उन्होंने 2009 में फूलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा. इसी साल उन की सड़क दुर्घटना में मौत भी हो गई. अपने इस दौर में सोने लाल पटेल भाजपा के साथ आ चुके थे.

न पार्टी बची न परिवार

डाक्टर सोने लाल पटेल के बाद उन की पत्नी कृष्णा पटेल अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी और बेटी अनुप्रिया पटेल 2012 में वाराणसी की रोहनियां सीट से पहली बार विधायक बनी. 2014 में मिर्जापुर लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. 2016 में मोदी सरकार में वह केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री बनीं.

राजनीतिक वर्चस्व में अनुप्रिया पटेल का अपनी मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल से झगड़ा हुआ. झगड़े की वजह यह थी कि अपना दल के कामकाज में अनुप्रिया के पति आशीष सिंह का दखल बढ़ गया था. वह राजनीति में अपनी जगह बनाना चाहते थे. दूसरी तरफ अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल अपना दल पर अपना अधिकार बनाए रखना चाहती थी. ऐसे में बात आगे बढ़ी तो अपना दल दो हिस्सों में बंट गया. अनुप्रिया पटेल ने ‘अपना दल (सोनेलाल)’ का गठन किया औरा कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल नाम अपना दल (कमेरावादी) का गठन किया.

अनुप्रिया पटेल ने 2019 का लोकसभा चुनाव जीता, मंत्री हैं. उन की बहन पल्लवी पटेल ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव सिराथू विधानसभा सीट पर लड़ा. चुनाव जीत कर वह विधायक बनीं. अनुप्रिया पटेल सांसद और बहन पल्लवी पटेल विधायक हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल खासकर वाराणसी, भदोही, मिर्जापुर, जौनपुर, इलाहाबाद और प्रतापगढ़ क्षेत्रों में अपना दल का प्रभाव कुर्मी बिरादरी में है.

सोनेलाल पटेल ने कुर्मी बिरादरी में अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी. अपना दल के दोनों गुट अलगअलग विचारधाराओं के साथ जुड़ कर राजनीति कर रहे हैं. कृष्णा पटेल और पल्लवी पटेल वाला अपना दल (कमेरावादी) कांग्रेस-सपा की अगुवाई वाले इंडिया ब्लौक के साथ है. अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाला अपना दल (सोनेलाल) भाजपा के एनडीए गठबंधन के साथ है.

अनुप्रिया ने कानपुर में ली स्कूली शिक्षा

अनुप्रिया पटेल ने कानपुर के बालिका विद्यालय से अपनी 12वीं तक पढ़ाई की. इस के बाद लेडी श्रीराम कालेज से स्नातक किया. छत्रपति शाहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय से और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में एमबीए किया. कुछ समय तक अनुप्रिया ने ऐमिटी यूनिवर्सिटी नोएडा में पढ़ाया भी है. 2012 में पहली बार विधायक बनीं. 2009 में अनुप्रिया की शादी आशीष कुमार सिंह से हुई. वह अभी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं. वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं.

2012 में अनुप्रिया पहली बार विधायक बनी. 2014 में सांसद बनीं. 2016 में वह मोदी सरकार में मंत्री बनीं. 2019 में दूसरी बांर सांसद बनीं. 2024 में वह मिर्जापुर से लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं. अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल का कहना है कि आशीष कुमार सिंह के चलते ही उन के परिवार में बिखराव हुआ. अनुप्रिया पटेल की सिफारिश पर ही भाजपा ने उन को पहले विधान परिषद का सदस्य बनवाया. बाद में 2022 में योगी सरकार वह मंत्री भी बन गए.

परिवार के झगड़े ने बिगाड़ी छवि

सोने लाल पटेल भले ही खुद सांसद या विधायक का चुनाव न जीत पाए हों पर अपने परिवार और समाज को जोड़ कर चलने में सफल रहे थे. 2009 में अनुप्रिया पटेल की शादी 12 दिन के बाद ही सोनेलाल पटेल की सडक दुर्घटना में मृत्यू हो गई. उस समय अनुप्रिया पटेल ने इस की सीबीआई जांच की मांग भी की थी. जैसेजैसे राजनीति में अनुप्रिया का कद बढ़ने लगा परिवार में झगड़े शुरू हो गए. पहले अपना दल में बंटवारा हुआ. सोनेलाल पटेल की राजनीतिक विरासत दो दलों के रूप मे बंट गई.

2021 में सोनेलाल पटेल की छोटी बेटी अमन पटेल ने एक पत्र गृहमंत्री अमित शाह को लिखा है. जिस में कहा है कि माता कृष्णा पटेल और मुझे तुरंत सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराई जाए. अमन पटेल ने अपनी बहन पल्लवी पटेल से जान को खतरा बताया है. इस से पहले अमन पटेल ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी को भी पत्र लिख कर सुरक्षा की मांग की थी और अपनी बड़ी बहन पल्लवी पटेल से मां और अपने खुद को जान का खतरा बताया था.

अमन पटेल ने अपनी बड़ी बहन पल्लवी पटेल पर आरोप लगाते हुए कहा कि सोनेलाल पटेल जो अपना दल के संस्थापक हैं उन की उत्तराधिकारी के रूप में सभी 4 बहने हैं और उन की वसीयत में भी सब का नाम होना चाहिए लेकिन इस को अनदेखा करते हुए बगैर किसी के जानकारी के पिताजी की पूरी संपत्ति अपने नाम करा ली है और जिस के कुछ कागजात बड़ी मुश्किल से प्राप्त किए गए हैं.

आरोप है कि पल्लवी पटेल ने 2017 में विवाह के बाद अपने पति पंकज निरंजन को बिना किसी जानकारी के पिता सोनेलाल पटेल के व्यवसायिक ट्रस्ट में किसी की जानकारी बिना सदस्य बना दिया. 2019 में लोकसभा चुनाव में माता कृष्णा पटेल फूलपुर सीट से लड़ना था लेकिन उन को जबरदस्ती गोंडा से चुनाव लड़ाया गया और वहीं 2019 में ही पल्लवी ने अपने पति पंकज निरंजन को फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा दिया.

अमन पटेल अपनी बड़ी बहन अनुप्रिया के साथ है. अमन पटेल की शादी अनुप्रिया पटेल मौजूद दिखी और शादी कराने में भूमिका अदा की थी. जबकि दूसरी बहन पल्लवी पटेल और मां कृष्णा पटेल को बुलाया भी नहीं गया था. ऐसे में सोनेलाल का परिवार और संगठन दोनों ही आपस में बंट गए हैं.

अनुप्रिया पटेल अपने पिता सोनेलाल पटेल के समय से ही राजनीति में सक्रिय हो गई थीं. एक तरह से उन की राजनीतिक उत्तराधिकारी हो गई थी. पल्लवी पटेल अपने पिता का स्कूल और बिजनेस देखने का काम करती थीं. दोनों की शादी होने के बाद परिवार में उन के पतियों का दखल बढ़ा जिस के बाद अपना दल और सोनेलाल परिवार दोनों अलगअलग राह पर चले गए. जाति और समाज की एकजुटता की बात करतेकरते परिवार और दल दोनों बिखर गए.

क्या शादी से पहले की बातें पति को बतानी चाहिए?

सवाल

क्या शादी से पहले की बातें पति को बतानी चाहिए?

जवाब

मेरी जल्दी ही शादी होने वाली है. मेरा पहले बौयफ्रैंड था लेकिन अब कोई मतलब नहीं है उस से. दोतीन और भी बातें हैं घर वालों की. आप बताएं, क्या बताना ठीक रहेगा?

पतिपत्नी का रिश्ता विश्वास पर टिका होता है. शादी से पहले कुछ बातें क्लीयर हो जाएं तो अच्छा रहता है. हां, पहली मुलाकात में बताएं, यह जरूरी नहीं. थोड़ा एकदूसरे को जानपहचान लें. उस की मानसिकता को समझ लें और आप को जब पक्का लगे कि वह आप से शादी करने के लिए मना नहीं करेगा तो उसे बौयफ्रैंड वाली बात बता दें.

जहां तक घरवालों की बातें हैं तो जरूरी नहीं कि आप शादी से पहले बताएं, यदि वे बातें आप के विवाहित जीवन से संबंधित नहीं हैं तो. शादी के बाद बताना चाहें तो बता दीजिए, वक्त और मौका देख कर. सब आप की समझदारी पर निर्भर करता है.

 

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