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भारत रत्न वितरण : पुरस्कारों के एवज में राजनीतिक बंदरबांट

दिग्गज भाजपा नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी को देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देने पर उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया नहीं हुई. विपक्ष के तमाम नेता ईडी से बचने के जुगाड़ और भागादौड़ी में लगे हैं. ऐसे में वे इस फैसले पर प्रतिक्रियाहीन बने रहने में ही अपना भला महसूस रहे हैं. लेकिन जिस जनता के बिहाफ पर भारत रत्न और पद्म पुरस्कार सहित दूसरे छोटेबड़े सरकारी पुरस्कार व सम्मान दिए जाते हैं उस जनता के दिलोदिमाग पर भी भारत रत्न के ऐलान का कोई खास असर नहीं हुआ.

इस घोषणा के 11 दिनों पहले जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई थी तब जरूर थोड़ी हलचल हुई थी. लेकिन अधिकतर लोगों को खासतौर से युवाओं के जेहन में यह सवाल आया था कि अब ये कर्पूरी ठाकुर कौन हैं और इन्होंने देश के लिए ऐसा क्या किया है कि उन्हें यह सब से बड़ा सम्मान प्रदान किया जा रहा है.

यह घोषणा बिहार और उत्तर प्रदेश के समाजवादी दलों और कुछ पिछड़ों को ही थोड़ी रास आई थी लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के बारे में गिनाने के लिए हिंदूवादियों के पास इतना ही है कि उन की कोशिशों के चलते राममंदिर बन पाया और देश हिंदू राष्ट्र होने की तरफ बढ़ रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुरस्कार को देने की घोषणा के साथ वजह बताने की कोशिश भी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स पर की थी कि एल के आडवाणी का देश के विकास में अहम योगदान रहा है. यह योगदान क्या था, किसी की समझ नहीं आया, न ही इस बाबत नरेंद्र मोदी ने कोई उदाहरण पेश किया.

इस से आम लोग भी असमंजस में दिखे जिन्हें यह रटा पड़ा है कि वे 80-90 के दशक में भाजपा और राममंदिर आंदोलन के पोस्टरबौय थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह की मंडल राजनीति कि काट उन्होंने कमंडल की राजनीति से किया था जिस के एवज में आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं. भगवा राजनीति में आडवाणी को मोदी का गुरु माना जाता है क्योंकि गोधरा कांड के बाद उन्होंने हो मोदी की पीठ थपथपाई थी जबकि भाजपा के दूसरे दिग्गज प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी तो मोदी को राजधर्म की याद दिला रहे थे.

गलत नहीं कहा जा रहा कि शिष्य ने गुरु को दक्षिणा दे दी लेकिन इस के एवज में नरेंद्र मोदी आडवाणी से काफीकुछ छीन भी चुके हैं. 22 जनवरी के अयोध्या शो में आडवाणी को न आने देने पर उन की आलोचना हुई थी और इस बार चूंकि यह भगवा कुनबे के अंदर से ज्यादा हुई थी, इसलिए उन्होंने आडवाणी को भारत रत्न दे कर अपने मन का गिल्ट दूर कर लिया, बशर्ते वह रहा हो तो, नहीं तो यह एक खामखां का ही फैसला लगता है जिस से किसी को कुछ मिलना जाना नहीं है. हां, कुछ सहूलियतें जरूर 96 वर्षीय आडवाणी को मिल जाएंगी.

कर्पूरी ठाकुर के पहले भी जिन 49 हस्तियों को यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया, यह जरूरी नहीं वे सभी इस के सच्चे हकदार थे या रहे होंगे. दरअसल, भारत रत्न देने का कोई तयशुदा पैमाना या पैमाने नहीं हैं. यह सरकार यानी प्रधानमंत्री की इच्छा पर निर्भर करता है कि किसे यह दिया जाना फायदे का सौदा साबित होगा.

दौर दक्षिणपंथियों का है, लिहाजा, वे अपने हिसाब से रेवड़ियां बांट रहे हैं. यही अपने दौर में कांग्रेस करती रही थी. इस लिहाज से तो बात बराबर हो जाएगी वाली शैली में खत्म हो जाना चाहिए. लेकिन यह दलील ठीक वैसी ही है कि उस ने गलती की या जनता के वोट का मनमाना इस्तेमाल किया तो हम भी क्यों न करें.

भगवा गैंग हमेशा ही कांग्रेस पर यह आरोप लगाता रहा है कि उस ने पुरस्कारों का राजनीतिकरण किया और भारत रत्न नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों को दिए. साल 1955 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत रत्न देने की घोषणा की थी तब कोई खास हलचल नहीं हुई थी. नेहरू तब प्रधानमंत्री थे, इसलिए यह मान लिया गया कि उन्होंने खुद को ही इस खिताब से नवाज लिया था. यहां मकसद नेहरू की उपलब्धियों का बखान करना नहीं लेकिन कोई भी इस सच से मुंह नहीं मोड़ सकता कि उन्होंने विषम परिस्थितियों में आधुनिक भारत की नींव रखी थी.

वह नजारा कितना दिलचस्प रहा होगा, इस का आज अंदाजा लगा पाना मुश्किल है. 13 जुलाई, 1965 को नेहरू यूरोप और रूस के दौरे से वापस लौटे थे तो प्रोटोकाल तोड़ते खुद राजेंद्र प्रसाद उन के पास पहुंचे थे और एयरपोर्ट पर उन का स्वागत किया था. रात के भोज में राष्ट्रपति ने नेहरू को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया था.

बकौल राजेंद्र प्रसाद, नेहरू हमारे समय के शांति के सब से बड़े वास्तुकार हैं. उन्होंने संभावित विरोध को आंकते भारत रत्न के बारे में यह भी कहा था कि यह कदम मैं ने स्वविवेक से अपने प्रधानमंत्री की अनुंशसा के बगैर व उन से किसी सलाह के बिना उठाया है. इसलिए एक बार कहा जा सकता है कि यह निर्णय अवैधानिक है लेकिन मैं जानता हूं कि मेरे इस फैसले का स्वागत पूरे उत्साह से किया जाएगा.

जानने वाले ही जानते हैं कि डाक्टर राजेंद्र प्रसाद न तो हिंदू कोड बिल पर नेहरू से इत्तफाक रखते थे और न ही धार्मिक मुद्दों पर उन से सहमत थे. जब राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद वहां गए थे तब भी नेहरू ने एतराज जताया था. एवज में राजेंद्र प्रसाद ने लंबाचौड़ा पत्र उन्हें बहुसंख्यक हिंदुओं की भावना के बाबत लिखा था और नेहरू की बात नहीं मानी थी. संसद में हिंदू कोड बिल के पेश होने के बाद भी राजेंद्र प्रसाद ने पत्र लिख कर एतराज जताया था.

7 दशकों बाद भी इन बातों के अपने अलग माने हैं कि विकट के वैचारिक और धार्मिक मतभेद होने के बाद भी राजेंद्र प्रसाद, नेहरू की उपलब्धियों और प्रतिभा की अनदेखी नहीं कर पाए थे. नेताओं में एकदूसरे के प्रति सहज सम्मान का भाव था. इस पैमाने पर तो नरेंद्र मोदी द्वारा लालकृष्ण आडवाणी को इस ख़िताब से नवाजना समझ आता है लेकिन वे आडवाणी की उपलब्धियां नहीं गिना पाए. इस पैमाने पर लगता है कि अब तमाम पुरस्कार निरर्थक और वोटों की राजनीति के शिकार हो चले हैं, इसलिए अपना औचित्य, महत्त्व और गरिमा भी खो रहे हैं.

हालांकि इस की शुरुआत कांग्रेस ने ही की थी जब उस ने साल 2014 में क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को यह सम्मान बख्शा था. सचिन किसी भी एंगल से इस के लायक नहीं थे. अच्छा क्रिकेट खेलने के एवज में उन्हें कई दूसरे राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान मिल चुके थे. अहम बात यह है कि हरेक मैच के बदले उन्हें तगड़ी फीस मिलती थी. उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया, सिवा इस के कि करोड़ों लोगों का वक्त बरबाद किया जो दूसरे किसी उत्पादक काम में लग सकता था.

भारत रत्न सचिन इश्तिहारों से भी पैसा कमाते हैं. कम हैरत की बात नहीं कि राष्ट्रीय खेल हौकी में दुनियाभर में अपना लोहा मनवाने वाले मेजर ध्यानचंद की तरफ अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया. उन के प्रशंसक जबतब उन के लिए इस सर्वोच्च सम्मान की मांग करते रहते हैं. अगर किसी खिलाड़ी को देना ही था तो भारत रत्न के सही हकदार ध्यानचंद ही थे जिन्होंने आर्थिक अभावों में रहते भारतीय हौकी का परचम लहराया था.

जिस तरह राजेंद्र प्रसाद ने जवाहर लाल नेहरू को भारत रत्न दिया था उसी तरह 1971 में तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी गिरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत रत्न दिया था. तब भी आरोप यही लगे थे कि इंदिरा ने खुद ही प्रधानमंत्री रहते यह पुरस्कार ले लिया. हालांकि तब वजह यह बताई गई थी कि इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान से बंगलादेश को अलग करवाने में अहम भूमिका निभाई थी.

अब वर्तमान में दिए गए अवार्ड में ऐसी कोई वजह आडवाणी, कर्पूरी ठाकुर या दूसरे किसी राजनेता को भारत रत्न देते वक्त सामने नहीं आई. 1957 में गोविंद वल्लभ पंत और फिर 1998 में लोकनायक के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न देना राजनीति से ही प्रेरित था. हां, लाल बहादुर शास्त्री इस के हकदार जनता के पैमाने पर थे जिन्हें यह सम्मान 1966 में दिया गया था. उन के पहले 1962 में राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न दिया जाना एक तरह से रिटर्न गिफ्ट था क्योंकि उन्होंने नेहरू को यह सम्मान दिया था. इसी तरह कांग्रेस ने वी वी गिरी को भी भारत रत्न रिटर्न गिफ्ट साल 1975 में किया था.

इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान की प्रतिष्ठा तो यहीं से गिरना शुरू हो गई थी जब इस को एक्सचेंज किया गया था. यानी, तब तक यह कांग्रेसियों द्वारा कांग्रेसियों के लिए ही था. 1976 में के कामराज जैसों को तो यह यों ही दे दिया गया था, जिन्होंने कांग्रेस को खासतौर से दक्षिण में मजबूत करने का काम किया था.

राजर्षि के नाम से जाने वाले पुरुषोत्तम दास टंडन को 1961 में भारत रत्न किस बिना दिया गया था, यह समझ से परे है. अगर फ्रीडम फाइटर होना इस की वजह थी तो ऐसे हजारों स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इस काबिल थे जिन्होंने छोटेमोटे काम, समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में किए थे. उन्हें भारत रत्न क्यों नहीं दिया गया ?

पहली बार 1954 में भारत रत्न डा. सर्वपल्ली राधा कृष्णन, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और भौतिक शास्त्री डा. चंद्रशेखर वेंकटरमण को दिए गए थे तब इस की कोई खास अहमियत नहीं थी. साल 1955 में सिविल इंजीनियरिंग के जनक डा. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को भारत रत्न दिया गया था तब ऐसा लगा था कि कला, साहित्य विज्ञान और लोकसेवा के क्षेत्रों में ईमानदारी से दिया जाएगा लेकिन उन के साथ ही डाक्टर भगवानदास को भी भारत रत्न दिया गया था तो साफ हो गया था कि कांग्रेस सरकार अपनी खुदगर्जी पूरी करने के लिए मनमरजी भी इस की आड़ में कर रही है.

डाक्टर भगवान दास ने भी आजादी की लड़ाई लड़ी थी और वे समाजसेवी भी थे लेकिन चूंकि उन्होंने पहली सरकार में कोई पद लेने से मना कर दिया था यानी त्याग किया था, इसलिए उस की भरपाई उन्हें भरत रत्न दे कर कर ली गई. यह असल में नरेंद्र मोदी की आडवाणी को ले कर मन की ग्लानि दूर करने जैसी बात भी थी. इसे प्रायश्चित्त भी कहा जा सकता है जिस का विधान धर्मग्रंथों में इफरात से है कि कोई गलती या पाप हो जाए तो ऐसा या वैसा कर यानी कुछ दानदक्षिणा लेदे कर गिल्ट दूर कर लो. इस से दूसरा फायदा लोकनिंदा से बचने का भी होता है.

इसी लोकनिंदा से बचने के लिए साल 1991 में भारत रत्न देने की घोषणा की गई तो राजीव गांधी के साथ में मोरारजी देसाई और वल्लभभाई पटेल के भी नाम घोषित किए गए थे. अब अगर कोई यह सवाल करता कि राजीव गांधी को यह क्यों, तो जवाब यह होता कि मोरारजी देसाई और वल्लभभाई पटेल को भी तो दिया है. और सच में किसी ने कोई सवाल उन के नाम पर नहीं किया था.

अगर वैज्ञानिकों और कलाकारों सहित दूसरे क्षेत्रों की कुछ हस्तियों को छोड़ दें तो सही माने में भारत रत्न के जो नेता हकदार थे उन में एक नाम भीमराव आंबेडकर का भी है लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री पद की कुरसी संभालते ही पद्म पुरस्कारों की तरह भारत रत्न की अहमियत गिराने में भी नरेंद्र मोदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. 2015 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने का फैसला कतई हैरान कर देने वाला नहीं था बल्कि यह अपने सियासी पुरखों का पुण्य स्मरण और श्रद्धांजलि कांग्रेस की तर्ज पर थी.

लेकिन इसी साल मदन मोहन मालवीय को भी इसी सम्मान से नवाजा जाना साबित कर गया था कि इस सम्मान का कोई पैरामीटर नहीं है. इस खामी का बेजा इस्तेमाल कांग्रेस ने भी किया था. महामना अर्थात महान आत्मा के ख़िताब से नवाजे गए पंडित मदन मोहन मालवीय का बनारस हिंदू विश्व विद्यालय की स्थापना में सहयोग के अलावा देश के लिए एक बड़ा योगदान यह भी था कि उन्होंने कभी कांग्रेस छोड़ कर हिंदू महासभा जैसी कट्टरवादी हिंदू पार्टी बनाई थी.

आज जो कट्टरवादी पत्रकारिता फलफूल रही है उस का जनक भी उन्हें भी न कहना अतिशयोक्ति होगी. हिंदी हिंदू हिंदुस्तान के जरिए हिंदू राष्ट्र की अवधारणा भी उन्हीं की दी हुई है. जिस के सपने मंदिरों के जरिए साकार करने की कोशिश आज भगवा गैंग कर रहा है.

कांग्रेस ने तो कभी किसी हिंदूवादी को भारत रत्न नहीं दिया लेकिन साल 2019 में नरेंद्र मोदी ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को यह पुरस्कार दे कर चौंकाने की कोशिश की थी. एक हार्डकोर कांग्रेसी कहे जाने वाले प्रणब मुखर्जी ने, दरअसल, आरएसएस के दफ्तरों में जाना शुरू कर दिया था और खुद के कभी प्रधानमंत्री न बन पाने का जिम्मेदार नेहरू-गांधी परिवार को ठहराना शुरू कर दिया था.

कांग्रेसमुक्त भारत का नारा देने वाले मोदी को ऐसे कांग्रेसियों की सख्त जरूरत आज भी रहती है जो गांधी परिवार को कोसें और हिंदुत्व से रजामंदी रखें. यह डील परवान चढ़ पाती, इस के पहले ही प्रणब मुखर्जी का निधन हो गया. अब हर कभी उन की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी के कांग्रेस में जाने की अफवाह उड़ती रहती है जो 5 फरवरी को जयपुर लिटरैचर फैस्टिवल में यह कहती नजर आ रही थीं कि वे भी पिता की तरह हार्डकोर कांग्रेसी हैं लेकिन कांग्रेस को राहुल गांधी और गांधी परिवार से इतर भी कुछ सोचना चाहिए. संसद में 370 सीटों की दावेदारी ठोक चुके मोदी को ऐसे कांग्रेसियों की दरकार है जो कांग्रेस में रहते सोनिया-राहुल को कोसते रहें, नहीं तो ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसों की तरह भाजपा में शामिल हो जाएं.

चूंकि प्रणब मुखर्जी बड़ा नाम थे और विभीषण बनने की राह पर पहला पांव रख चुके थे, इसलिए उन्हें भारत रत्न दे देना घाटे का सौदा कहीं से नहीं था. घाटे का सौदा तो यह कर्पूरी ठाकुर या आडवाणी को देने से भी नहीं है जिन्हें एवज में मुफ्त रेलयात्रा जैसी कुछ मामूली सहूलियतों के साथ सरकारी आयोजनों में कुछ विशिष्ट हस्तियों के साथ बैठने का मौका मिल जाएगा. लेकिन जब वे उम्र और अशक्तता के चलते अयोध्या राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा पाए या नहीं जाने दिए गया तो किसी और आयोजन में क्या जा पाएंगे.

रहा सवाल भारत रत्न का, तो वह कर्मठ और देश के लिए कुछ कर गुजरने वालों को ही दिया जाना चाहिए जिस के लिए कुछ तयशुदा पैमानों का होना भी जरूरी है. नहीं तो यह रिवाज ही खत्म होना चाहिए जिस से कम से कम उस जनता को कुछ हासिल नहीं होता जिस का प्रतिनिधित्व सरकार करती है.

डीपफेक : जूम मीटिंग में नकली अधिकारी बन कर डाली 200 करोड़ रुपए की ठगी

हाल ही में हम ने फिल्म ऐक्टर्स और राजनेताओं के डीपफेक फोटो-वीडियो देखे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंच पर डांस करते देख कर लोग आश्चर्य में पड़ गए. बाद में पता चला कि डीपफेक के जरिए प्रधानमंत्री के फेस का इस्तेमाल हुआ. मगर अब डीपफेक मामला बहुत आगे बढ़ चुका है. हौंगकौंग की एक मल्टीनेशनल कंपनी को डीपफेक की वजह से करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा है. साइबर क्रिमिनल्स ने ऐसा जाल बिछाया कि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के कर्मचारियों को भनक तक नहीं लगी और कंपनी ने 200 करोड़ रुपए क्रिमिनल्स के बताए 5 अलगअलग बैंकों में ट्रांसफर कर दिए.

मजे की बात यह है कि डीपफेक से धोखाधड़ी करने के लिए साइबर क्रिमिनल्स ने बाकायदा ज़ूम मीटिंग की. इस मीटिंग में कई क्रिमिनल्स बैठे थे जिन के चेहरों पर डीपफेक के जरिए असली अधिकारियों के चेहरे लगे थे. यहां तक कि कंपनी के चीफ फाइनैंशियल औफिसर को भी क्लोन कर के डीपफेक वर्जन तैयार किया गया था. इन सब ने कंपनी के एक अधिकारी को धोखे में रख कर वीडियो कौन्फ्रैंस की और उस से हौंगकौंग के 5 अलगअलग बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर करने को कहा. अपने सीएफओ के आदेश का पालन करते हुए उस अधिकारी ने सारे पैसे ट्रांसफर कर दिए.

कुछ समय पहले तक दुनियाभर में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस को ले कर लोगों में काफी उत्सुकता और उत्साह था. कहा जा रहा था कि इस से मनुष्य को काम करने में बहुत आसानी हो जाएगी. घंटों के काम चुटकी बजाते हो जाएंगे. मगर अब इस तकनीक से लोगों में डर बढ़ता जा रहा है. आप के फोन पर आप को किसी अपने की आवाज सुनाई दे जो आप से कहे कि वह परेशानी में है, तुरंत पैसे चाहिए तो आप बिना देर किए पैसे भेज देंगे. बाद में पता चले कि उस रिश्तेदार ने तो आप को फोन ही नहीं किया. उस की आवाज में बात कर के किसी ने आप को ठग लिया. या फिर वीडियो कौल पर किसी महिला को उस का कोई जानने वाला, आप का प्रेमी, पति या कोई रिश्तेदार नजर आए और उस को कहीं मिलने के लिए बुलाए तो वह अवश्य वहां चली जाएगी. लेकिन हो सकता है कि अनजान जगह बुला कर उस को लूट लिया जाए, उस की हत्या कर दी जाए, उस का रेप हो जाए, क्योंकि जो तसवीर उस ने वीडियो पर देखी और जिस पर भरोसा कर के वह मिलने गई वह तो क्रिमिनल द्वारा डीपफेक के जरिए बनाई गई थी.

हौंगकौंग की जिस बहुराष्ट्रीय कंपनी को डीपफेक तकनीक का शिकार बनाया गया है. उस से 20 करोड़ रुपए हौंगकौंग डौलर की ठगी की गई है. यह राशि 200 करोड़ रुपए से भी अधिक है. यह डीपफेक तकनीक से की गई अब तक की सब से बड़ी ठगी है. हालांकि हौंगकौंग पुलिस ने अभी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि किस कंपनी से यह ठगी हुई है, मगर मामले की जांच बहुत तेजी से शुरू हो चुकी है.

डीपफेक तकनीक में नकली वीडियो या औडियो रिकौर्डिंग के लिए एआई टूल का उपयोग किया जाता है. डीपफेक से बनाए गए ये चेहरे देखने में असली जैसे लगते हैं. साइबर अपराधियों ने वीडियो कौन्फ्रैंसिंग कौल कर के कंपनी को निशाना बनाया. इस दौरान डीपफेक तकनीक के जरिए कंपनी के सीएफओ के साथ अन्य कर्मियों का एआई अवतार तैयार किया गया.

5 अलगअलग बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर

वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के दौरान डीपफेक टैक्नोलौजी की मदद से मौजूद सीएफओ समेत सभी अधिकारी और कर्मचारी फर्जी थे. इसी दौरान फर्जी सीएफओ ने कंपनी की कौन्फ्रैंसिंग शाखा के वित्त विभाग के एक अधिकारी से 5 अलगअलग बैंकों में रकम ट्रांसफर करने के लिए कहा. अपने सीएफओ की बात वह कैसे न मानता? उस ने तुरंत बताए गए खातों में रकम ट्रांसफर कर दी.

एक सप्ताह बाद हुआ ठगी का एहसास

अधिकारी ने पुलिस को बताया कि उस की कंपनी का सीएफओ उस समय ब्रिटेन में था. जब डीपफेक वीडियो कौल की गई तो उसे लगा कि सीएफओ समेत सभी कर्मचारी असली हैं. वह इन में से कई लोगों को जानता था, इसलिए वह झांसे में आ गया और कौन्फ्रैंसिंग के 5 बैंक खातों में 15 बार में कुल मिला कर 20 करोड़ कौन्फ्रैंसिंग डौलर ट्रांसफर कर दिए. अधिकारियों को लगभग एक सप्ताह बाद ठगी का एहसास हुआ, जिस के बाद पुलिस जांच शुरू हुई.

जैसेजैसे टैक्नोलौजी का इस्तेमाल बढ़ रहा है और काम करना आसान हो रहा है वैसेवैसे साइबर स्कैमर्स एआई की डीपफेक तकनीक का गलत इस्तेमाल करते जा रहे हैं. एआई की मदद से धोखाधड़ी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हाल ही में आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की डीपफेक तकनीक की मदद से केरल के एक व्यक्ति के साथ 40 हजार रुपए की ठगी हुई है. शिकायत करने वाले शख्स का नाम राधाकृष्ण है जिस के साथ फ्रौड हुआ है.

स्कैमर ने धोखाधड़ी को अंजाम देने के लिए खुद को राधाकृष्ण का सहकर्मी होने का दावा किया और अस्पताल में एक रिश्तेदार के इलाज के लिए उन से पैसे मांगे. राधाकृष्ण का दिल पसीज आया और उन्होंने 40 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए. हालांकि, राधाकृष्ण ने इस तरह के फ्रौड के बारे में पहले सुना था, सो पूरी तरह अस्वस्थ होने के लिए उस से वीडियो कौल करने के लिए कहा, फिर उस शख़्स ने विडियो कौल किया. जिस के बाद राधाकृष्ण को तसल्ली हुई और उन्होंने 40 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए.

राधाकृष्ण का कहना है कि उन्होंने सतर्कता बरती थी, लेकिन उन्हें ठगा जा चुका था. उन का दावा है कि उन्हें डीपफेक के जरिए झांसा दिया गया. जिस के बाद इस की शिकायत कोझिकोड के साइबर क्राइम पुलिस थाने में की गई.

डीपफेक का मतलब है कि किसी भी शख्स की तसवीर, आवाज या वीडियो बना देना. ये वीडियो कौल देखने में बिलकुल फर्जी नहीं लगते हैं. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस या एआई और मशीन लर्निंग जैसेजैसे उन्नत होती जाएगी, इस तरह की समस्याएं बढ़ती जाएंगी. कुछ समय पहले तक डीपफेक वीडियोज को पहचानना आसान होता था. लेकिन अब ऐप डैवलपर्स ने अनेक कमियों को सुधार दिया है, वैसे भी एआई तो हमेशा लर्न ही करता रहता है, विभिन्न डेटा पैटर्न को समझता रहता है.

अब डीपफेक की ऐप्स इतनी उन्नत हो गई हैं कि इन में बनाए वीडियो में पलकें झपकना भी एकदम सामान्य लगता है, वहीं वीडियो और इमेज भी अब पहले से बेहतर हो गए हैं. कई देशों में एआई टीवी न्यूजकास्टर भी शुरू हो गए हैं जो हूबहू न्यूज एंकर जैसे लगते हैं और खबरें पढ़ते हैं.

पिछले दिनों भारत में भी कुछ मीडिया घरानों ने इस को लौंच किया है. हालांकि, इस के नुकसान भी हैं क्योंकि फेक न्यूज फैलाने में इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. डीपफेक की सहायता से चुनावी अभियान भी प्रभावित किए जा सकते हैं.

फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि अगर आप को अनजान नंबर या आईडी से वीडियो कौल आए तो उस पर विश्वास न करें. किसी को पैसा देने से पहले उस से फोन पर बात कर लें या उस से जा कर मिल लें. अगर करीबी दोस्त है, परेशानी में है तो उस के परिवार में से किसी से बात कर के स्थिति के बारे में जानने का प्रयास करें.

आप कहीं छुट्टी पर जा रहे हैं या आप के बच्चे कहीं जा रहे हैं तो उस के बारे में सोशल मीडिया पर न लिखें. सोशल मीडिया पर घरेलू बातें, परिवारजनों की तसवीरें आदि पोस्ट करने से बचें, जो आप की निजता को सार्वजनिक करता है.

एक साल से मैंने सैक्स नहीं किया, क्या इससे मेरी सैक्स लाइफ पर फर्क पड़ेगा ?

सवाल

मैं और मेरे पति अपनी मैरिड लाइफ बहुत अच्छी तरह से एंजौय कर रहे थे कि अचानक औफिस के काम से हसबैंड को 2 साल के लिए आस्ट्रेलिया जाना पड़ गया. अब एक साल हो गया है उन्हें गए हुए. इसलिए मैं ने एक साल से सैक्स नहीं किया है. क्या इस वजह से मेरी सैक्स ड्राइव पर कोई फर्क पड़ सकता है ? सुना है कि वैजाइना टाइट हो जाती है ? कृपया मुझे सलाह दें.

जवाब

देखिए, हमारे शरीर की कई बातें हमारी मैंटल कंडीशन से जुड़ी होती हैं. आप ने एक साल से पति के साथ सैक्स नहीं किया है लेकिन आप के दिलदिमाग में यह बात रहती होगी कि आप के पास प्यार करने वाला पति है, बेशक वह आप के पास नहीं, दूर है. एक खुशी तो आप के दिल में है न. आप चिंतामुक्त रहती हैं. ये सब बातें भी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डालती हैं. आप खुश हैं, अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दे रही हैं तो सैक्स की कमी का आप के स्वास्थ्य पर खास कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

जहां तक वैजाइना के टाइट होने की बात है तो काफी दिनों तक सैक्स से दूर हैं तो भी आप की वैजाइना तुरंत टाइट नहीं हो जाएगी. कई बार चिकनाई की कमी के कारण और एंग्जायटी के कारण वैजाइना की मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं. ऐसे में कई लोग गलफहमी के कारण यह सम  झ लेते हैं कि सैक्स न करने की वजह से ही वैजाइना टाइट हुई है.

जब आप बहुत समय तक सैक्स से दूर रहती हैं तो वैजाइना खुद लुब्रिकैंट नहीं हो पाती. इस में चिंता की कोई बात नहीं है. एक बार जब आप दोबारा नियमित सैक्स करने लगेंगी तो आप के ग्लैंड्स फिर से ल्यूब बनाने लगेंगे.

सैक्स न होने के कारण वैजाइना में ब्लड सर्कुलेशन कम हो पाता है. जिस से ड्राई वैजाइना की शिकायत होती है. पति के साथ जब आप दोबारा सैक्स की शुरुआत करें और आप की ऐसी शिकायत हो तो दर्द से बचने के लिए लुब्रिकेशन का प्रयोग करें.

जब अफवाहों से घुटने लगे दम, तो इस तरह करें अपने आप को शांत

लंबा कद, मुसकुराती आंखों में कहीं छिपा हुआ सा दर्द, दिल में कुछ करने की ललक पर जमाने की बेरुखी से परेशान मन लिए 27 साल की अनुभा (बदला हुआ नाम ) बताती  हैं,  “ मैं आगरे की रहने वाली हूं. ग्रैजुएशन के बाद दिल्ली आ कर मैं ने  फैशन डिजाइनिंग कोर्स ज्वाइन किया. जब मैं यह कोर्स कर रही थी तभी मेरे साथ कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिस से मेरी जिंदगी  का रुख बदल गया.

“दरअसल एक लड़के अमित (बदला हुआ नाम) के साथ मेरी फ्रेंडशिप थी. हम एकदूसरे को पसंद करते थे. समय के साथ हम  दोनों को लगा कि अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. मगर हमारे घर वाले इस के लिए  तैयार नहीं हुए.  मैं ने अमित से कहा कि हमें शांति से अलग हो जाना चाहिए. वह इस के लिए तैयार नहीं था. वह चाहता था कि हम भले ही दूसरी जगह शादी कर ले फिर भी एकदूसरे से कनेक्टेड रहे. मगर यह बात मुझे मंजूर नहीं थी. उस ने मुझे धमकी दी कि अगर तुम मेरी नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की भी  नहीं होने दूंगा. उस ने एक साइको की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया. मेरी   मम्मी का फोन ट्रेक कर लिया. मम्मी के नंबर से कई कई बार मेरे पास कौल आने  लगे. जब कि वे कौल मम्मी नहीं बल्कि अमित करता था. उस ने मुझे धमकी दी कि बात न मानने पर फोटो एडिट कर सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा ताकि मैं बदनाम हो जाऊं.

“मैं डर गई थी फिर भी मैं ने उस की बात नहीं मानी. एक दिन  जब मैं लौट रही थी तो उस ने मुझे जबरदस्ती अपनी गाड़ी में बिठा लिया. फिर   हमारी कॉमन फ्रेंड के जरिए मेरे घर यह सन्देश भिजवा दिया कि मुझे 3 -4  लड़के पकड़ कर ले गए हैं. बदहवास से मेरे पैरेंट्स मुझे बचाने दिल्ली दौड़े आये.  जाहिर है आसपास वालों को भी यह खबर मिल गई.

इधर अमित मुझे गाड़ी में बिठा  कर अपनी खुन्नस निकालने लगा. मुझे डराने धमकाने लगा. उस ने मेरे बाल भी  नोचे. वह इस बात पर क्रोधित था कि उस के बगैर में खुश कैसे रह सकती हूं. मैं ने उसे समझाना चाहा कि मेरा करियर अभी पीक पर चल रहा है और मैं अपना  पूरा ध्यान पढ़ाई और करियर पर देना चाहती हूं. पर वह मुझ से लड़ता रहा. तभी उस के पेरेंट्स का फोन आ गया तो उस ने मुझे छोड़ दिया.

सिर्फ  इतना ही नहीं मुझे बदनाम करने के लिए उस ने मेरी एक साड़ी वाली फोटो को  फोटोशौप में एडिट कर मेरी मांग  में सिंदूर भर दिया और मेरे आसपड़ोस के घरों  में फिंकवा दिया. उस ने यह अफवाह फैला दी कि मैं ने किसी दलित लड़के के  साथ भाग कर शादी कर ली है और मेरे घर वालों ने मुझे छुड़ाने के लिए उस के  मांबाप को 50 -60  हजार रूपए भी दिए हैं. उस ने मेरे मैसेजेस के साथ भी  छेड़छाड़ कर उन्हें इस तरह रीराइट किया जैसे मैं उस के पीछे पड़ी हूं और मैं ने ही उसे मिलने को दिल्ली बुलाया था.

“झूठी अफवाहों को उस ने  इतनी हवा दी कि आज लोग मुझे सही होने पर भी गलत समझते हैं. जहां कहीं भी   मेरी शादी की बात चलती है तो यह अफवाह अपना असर दिखाने लगती है, लड़के वाले कोई स्पष्ट कारण बताए बिना शादी करने से इंकार कर देते हैं. 2  साल पहले अमित की शादी हो गई पर मैं आज तक उस की वजह से खुली हवा में सांस नहीं ले  पा रही हूं. मेरी शादी भी नहीं हो पा रही है और मैं स्ट्रैस की वजह से अपने   करियर पर भी ध्यान नहीं दे पा रही. मैं ने कोई गलती नहीं की  पर उस ने  मेरी जिंदगी में इतने तूफान भर दिए हैं कि स्ट्रैस से पापा बीमार रहने लगे हैं. मेरे करियर पर भी बुरा असर पड़ रहा है. मेरा सवाल यह है कि सिर्फ लड़कियों को ही जज क्यों किया जाता है. सच्चाई जाने बगैर बड़ी आसानी से मान  लिया जाता है कि लड़की का चरित्र ही खराब होगा. अफवाहें  फैला कर लड़कियों की  जिंदगी खराब कर दी जाती है पर लड़के मजे से जीते हैं.”

कौन फैलाते हैं अफवाह

अफवाहें अक्सर जलन और क्रोध का नतीजा  होती हैं. किसी से बदला लेने या उसे नीचा दिखाने के मकसद से कुछ लोग ऐसी  हरकतों को अंजाम देते हैं. लोग  अफवाहों को  जैसे का तैसा स्वीकार कर लेते  हैं. असलियत पता लगाने का प्रयास भी नहीं करते.

जिस व्यक्ति के बारे  में ऐसी अफवाहें उड़ाई जाती है उसे गलती किए बिना भी बहुत कुछ सहना पड़ता है. अफवाहें उस की जिंदगी में तूफान ला सकती हैं. उस की मानसिक सेहत पर असर डाल सकती हैं. उस का जॉब करना दूभर हो सकता है. पुरानेनए रिश्ते टूट सकते हैं. दूसरों की नजरों में उस की अहमियत घट सकती है. उस के करीब उस से  दूर हो सकते हैं. वह किसी भी काम में अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता. इस  की वजह से वह एंजायटी, डिप्रेशन ,स्ट्रैस आदि का शिकार हो सकता है. परेशान  हो कर सुसाइड भी कर सकता है.

अफसोस की बात यह होती है कि दूसरे लोग  जो इस तरह की बातें होते देखते हैं वह भी अक्सर सही व्यक्ति का साथ नहीं  देते. लोग उस व्यक्ति से कटने लगते हैं जिस के खिलाफ अफवाहें उड़ाई जाती  हैं. लोगों को डर होता है कि कहीं अगला शिकार वे ही न बन जाए.

अफवाहें  हमेशा शक के आधार पर फलतीफूलती हैं. ये ऐसी सूचनाओं के रूप में फैलती हैं  जो लोगों के लिए नई और रोचक हो. इन की सत्यता पर हमेशा शक होता है. ये  अनवेरीफाइड होती है. प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से लोगों से जुड़ी होती है या किसी के व्यक्तिगत जीवन से वास्ता रखती है. मान लीजिए कोई लड़का कई दिनों  से औफिस या स्कूल नहीं आ रहा तो ऐसे में बड़ी तेजी से उस के बीमार होने या जीवन में कोई बड़ा हादसा हो जाने की अफवाह फैला दी जाती है.

देश में जनवरी 2017 से भीड़ एक बच्चे के अपहरण के आरोप में 33  लोगों की हत्या कर चुकी है. यह सब व्हाट्सएप पर एक फर्जी मैसेज की वजह से हुआ. इस मैसेज पर  यकीन कर केवल शक के आधार पर भीड़ बेगुनाहों को मौत के घाट उतार सकती है तो  आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अफवाहें और क्याक्या गुल खिला सकती है.

2006 में प्रकाशित प्रशांत बोडिया और राल्फ रोजनो के रिसर्च के मुताबिक के मुताबिक ज्यादा चिंताग्रस्त और उत्सुक लोग अफवाहें ज्यादा फैलाते हैं. किसी के स्टेटस और लोकप्रियता से चिढ़ने वाले शख्स अक्सर अफवाहों का सहारा लेते हैं. गलत तरीके से किसी का नाम खराब करना या उसे बदनाम करना उन का मकसद होता है.

यह संभव नहीं कि हम हर किसी के अच्छे दोस्त बन जाएं या  हमें हर कोई पसंद आए. मगर किसी को पसंद न करने का मतलब यह नहीं कि हमें उस   के खिलाफ अफवाहे फैलाने या भलाईबुराई करने का अधिकार मिल गया. अपना स्टेटस  बढ़ाने या ग्रुप में लोकप्रियता हासिल करने का यह गलत तरीका है. वास्तविक  लोकप्रियता इंसान के आचरण पर निर्भर करती है. किसी से इस तरह की  दुश्मनी  निकाल कर या दूसरों का अपमान कर व्यक्ति अपना सम्मान तो खोता ही है  दूसरे  लोगों का उस पर विश्वास भी ख़त्म हो जाता है.

यदि आप बन जाएं शिकार

यदि  कभी आप के साथ इस तरह की घटना हो जाए तो डिप्रेशन में आ कर कुछ गलत फैसला लेने से बेहतर है कि आप यह बात अपने पेरेंट्स ,टीचर, काउंसलर या  दोस्तों  से शेयर करें. अपनी बेगुनाही का सबूत तैयार करें और सर ऊंचा कर हर सवाल का  जवाब दें. अपनी जिंदगी के लिए कोई लक्ष्य तैयार करें और इन बातों से दिमाग  हटा कर पूरी एकाग्रता से अपने मकसद को पूरा करने में ध्यान दें. अपने  दोस्तों के साथ मिलनाजुलना, मस्ती करना न छोड़ें.

यही नहीं जो शख्स  आप के खिलाफ अफवाह उड़ा रहा है उस से जा कर मिले. शांति से उस से अपनी बात  कहें. आप के मन में जो भी सवाल उठ रहे हैं या आप उस से जो भी कहना चाहती हैं वह सब बोल कर अपनी भड़ास निकालें. उसे ताकीद करें कि आइंदा उल्टासीधा  बोलने का अंजाम बहुत बुरा होगा. अपनी बातें पूरे विश्वास, स्पष्टता और  मैच्योरिटी से करें. इस के बाद उस के जवाब का इंतजार किए बगैर वहां से निकल आएं ताकि वह शख्स आप की बातों पर गहराई से विचार करने को मजबूर हो जाए.

यदि औफिस/आसपड़ोस में आप के खिलाफ अफवाहें फैलने लगें या गौसिप होने लगे और यह काम वही करें. जिसे आप अपनी सहेली या करीबी समझती थी तो यह सब सहन करना कठिन हो जाता है. धीरे-धीरे आप को महसूस होने लगेगा कि दूसरे लोग भी आप से दूर होते जा रहे हैं. ऐसे में यदि बात छोटीमोटी हो तब तो आप इस परिस्थिति को  आसानी से हैंडल कर सकती हैं. पर यदि बात बड़ी हो और आप मानसिक रूप से परेशान  रहने लगी है तो वह जगह छोड़ देना बेहतर होगा. क्यों कि मानसिक शांति से  बढ़ कर कुछ भी नहीं होता.

कुछ लोग दूसरों की निजी बातें या गलत  भड़काऊ सूचनाएं फैलाने में मजे लेते हैं. भले ही वे सच हो या नहीं. इसे आप  गौसिप कह सकते हैं. ऐसा वे दूसरे को चोट पहुंचा कर अच्छा महसूस करने के लिए करते हैं. इस तरह के गौसिप दूसरे व्यक्ति के सम्मान को चोट पहुंचाते हैं. वे  जिसे पसंद नहीं करते उस के खिलाफ झूठी बातें बोल कर भले ही अपना  मकसद पूरा कर ले क्यों कि सच्चाई अक्सर सामने नहीं आ पाती. मगर  वे  खुद को  इस के लिए कभी माफ नहीं कर पाएंगे.

गौसिप करने वालों से दूर रहे

ऐसे लोगों से हमेशा दूर रहे जिन्हें पीठ पीछे दूसरों की बुराई और अपमान करने  में आनंद आता है. क्यों कि जो आज आप से दूसरों की बुराई कर रहे हैं वे  आप की बुराई दूसरों से करने से भी बाज नहीं आएंगे.

बेहतर है कि आप न सिर्फ अफवाहें फैलाने या गौसिप करने से बचे बल्कि ऐसा कर रहे व्यक्ति से भी  दूरी बढ़ा ले. यदि कोई शख्स पीठ पीछे किसी की बुराई कर रहा है तो सॉरी कह कर उस ग्रुप से बाहर निकल आए. निकलने से पहले स्पष्ट रूप से कहें कि जिस के  बारे में यह बात कही जा रही है जब वह खुद को निर्दोष साबित करने के लिए   मौजूद नहीं तो फिर उस के बारे में बात करने में आप कंफर्टेबल नहीं. ऐसा कर  के आप न केवल उस गॉसिप चेन को तोड़ेंगे बल्कि दूसरे लोगों का विश्वास भी  जीत सकेंगे. दूसरे लोग यह महसूस करेंगे कि आप ऐसी फालतू बातों में रुचि  नहीं रखते. इस तरह आप दूसरों के आगे एक उदाहरण पेश करेंगे.

धर्म के फेर में देश

हर दुख और आपत्ति में क्या करना चाहिए : धर्म कहता है कि प्रार्थना करनी चाहिए. कबीर दास को हिंदू संत मान लिया गया है और उन का दोहा ‘दुख में सुमरिन सब करें…’ हर मुंह पर चढ़ा दिया गया है. कथन साफ है कि दुख में हर कोईर् स्मरण करता है कि हे प्रभु, मु  झे विपत्ति, रोड़ा, नुकसान, रेप, हिंसा, प्राकृतिक प्रकोप, पुलिस, जेल आदि से बचाओ, बचाओ.

यह बात इतनी बार बोली जाती है कि जो सफल होते हैं वे तो अपने कामों में ही लगे रहते हैं पर जो असफल रहते हैं, पिछड़े रह जाते हैं. वे इस कथन का अक्षरश: पालन करने के लिए एक मंदिर से दूसरे मंदिर, एक बाबा से दूसरे बाबा, एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ जाने लगते हैं. हर धर्म यही सिखाता है कि आफत में प्रार्थना करो.

यहूदी सदियों तक पूजापाठ के कारण सताए गए. जब वे फिलिस्तीनी इलाकों में रोमनों, ईसाईयों और फिर अरब मुसलिमों से सताए गए तो यूरोप में जा बसे जहां उन्हें फिर सताया गया. उन का धर्म उन के साथ चला, वे फलेफूले भी पर विपत्तियों में मरे भी, जेलों में सड़े भी, परिवारों को छोड़ कर दूसरे धर्म अपनाए भी. लेकिन उन में से ज्यादातर ने पूजा के स्थान पर कर्मठता का रास्ता अपनाया.

कुछ यहूदियों ने पढ़नालिखना शुरू किया. वे साइंटिस्ट बने, विचारक बने, अन्वेषणकर्ता बने. उन की सफलताओं ने दूसरों को चिढ़ाया. उन पर फिर और अत्याचार हुए. लेकिन वे समाप्त नहीं हुए क्योंकि वे सिनेगौग (उपासना गृह) कम बना रहे थे, व्यापार-उद्योग ज्यादा चला रहे थे. वे अपने साथ अपनी जमीन पर रह रहे स्थानीय लोगों से ज्यादा संपन्न हो गए. यूरोपीय उन से चिढ़ने लगे. यूरोपियनों (ईसाईयों) के विशाल चर्च तो बनने लगे पर वे यहूदियों की तरह अमीर नहीं बन पा रहे थे क्योंकि वे अपनी जमीन पर मेहनत करने की जगह पूजापाठ कर रहे थे. पोप अमीर बन रहे थे, बिशप अमीर बन रहे थे, जबकि ईसाई जनता बेहाल थी.

आज यहूदियों ने एक जमीन को अपनी पुश्तैनी कह कर उस पर कब्जा कर लिया है. उन का इजराइल दुनिया के नए देशों में से सब से संपन्न है. वहीं के रहने वाले फिलिस्तीनी पूजापाठी हैं, हिंसक हैं, मरने से नहीं डरते और मारते हुए उन्हें दर्द नहीं होता. वे बेहद धर्मकट्टर हैं. आज वे बुरी तरह मार खा रहे हैं, इस बुरी तरह कि उन के पड़ोसी, उन के धर्म को मानने वाले देशों में हिम्मत नहीं है कि पैसा होते हुए भी वे इजराइल की गाजा में आज की जा रही अति का मुकाबला बहादुरी से कर सकें.

इधर, हमारे देश में लड़ाई गरीबी, गलत या अधूरी शिक्षा से है. हमारा दुश्मन हमारे अपने अंधविश्वास, अपने जातिगत भेदभाव हैं. हमारे पैरों में बेडि़यां हमारी नौकरशाही, हमारे नेताओं, हमारे अपने कौर्पोरेटों ने डाल रखी हैं. जबकि, अफसोस है कि इस का हल या इलाज हमें यह बताया जा रहा है- ‘‘दुख में सुमरिन सब करें, सुख में करे न कोय; जो सुख में सुमरिन करें, दुख काहे का होय.’’

जो दुखी है, बीमार है, गरीब है, वह पड़ोस के मंदिर में जा रहा है. जो अमीर है, सुखी है, संपन्न है वह कामधाम छोड़ कर स्मरण करने के लिए एक से दूसरे तीर्थ पर हवाईजहाजों में जा रहा है, फाइवस्टार होटलों में रह रहा है और वह गरीब से कह रहा है कि देखो, मैं पैसे वाला हूं, सफल हूं पर फिर भी तीर्थों में मारामारा फिर रहा हूं. तुम भी सफल होना चाहते हो तो कामधाम छोड़ो, भक्ति में लग जाओ.

अब तो सरकारें भी यही कह रही हैं- पूजापाठ करो, देश पर पैसा बरसेगा, तीर्थों में जाओ, गरीबी दूर होगी. दानदक्षिणा दो, बेरोजगारी दूर होगी. प्रार्थना करो, बीमारी दूर होगी.

कमोबेश सभी समाज ऐसा ही कह रहे हैं. लेकिन भारत में हम तो हर सीमा लांघ रहे हैं. हम वह जमीन तैयार कर रहे हैं कि जब 7वीं शताब्दी में बौद्ध विहारों को तोड़ना अकेला पुण्य का काम रह गया था. उस से देश के शासन में जो शून्यता आई थी उस ने विदेशियों को आमंत्रित किया जिन का शासन 1947 तक लगातार चलता रहा. आज लगता है, फिर उसी की शुरुआत हो गईर् है.

कंप्यूटर विजन सिंड्रोम की समस्या से है परेशान, तो अपनाएं ये टिप्स

कोरोना से लगे लौकडाउन की वजह से लोगों को वर्क फ्रौम होम की आदत लग गई है. वर्क फ्रौम होम की वजह से काफी लोगों को अधिक से अधिक समय लैपटौप या कंप्यूटर पर बिताना पड़ रहा है. वे अपना ज्यादातर समय मोबाइल फोन या टीवी के स्क्रीन देखते हुए बिताते हैं. इस वजह से आंखों में जलन या खुजली जैसी परेशानी लोगों में दिख रही है. सिर्फ बड़े ही नहीं, बल्कि वे बच्चे भी इस से प्रभावित हो रहे हैं जो ज्यादा देर तक टैबलेट्स पर वक्त बिताते हैं या स्कूल से जुड़े कामों के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं.

दिल्ली स्थित अपोलो स्पैक्ट्रा हौस्पिटल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. कार्तिकेय संगल कहते हैं, ‘‘कंप्यूटर विजन सिंड्रोम आंखों से जुड़ी एक समस्या है, जो घंटों लगातार लैपटौप, टीवी या कंप्यूटर के सामने बैठने से होती है. पिछले कुछ महीनों से आंखों की समस्या बढ़ती दिखाई दे रही है. समय रहते इलाज होना जरूरी है, नहीं तो दृष्टि की समस्या हो सकती है.’’

सिंड्रोम के लक्षण

कंप्यूटर ज्यादा देर तक लगातार इस्तेमाल करने से आंखों को एक अवधि के बाद नुकसान पहुंचता है. इस का कोई प्रमाण फिलहाल उपलब्ध नहीं है, लेकिन रोज 8 से 10 घंटे लगातार कंप्यूटर स्क्रीन पर काम करने से आंखों पर काफी दबाव पड़ता है, जिस से परेशानी महसूस हो सकती है और वह परेशानी कंप्यूटर विजन सिंड्रोम होते हैं. इस के लक्षण निम्न हैं-

1. धुंधला नजर आना

2. चीजें डबल नजर आना

3. आंखें लाल होना

4. आंखों में खुजली

5. सिरदर्द

6. गरदन या पीठ में दर्द आदि.

डाक्टरों का मानना है कि आजकल लोगों की नौकरी ज्यादातर 12 घंटे कंप्यूटर या लैपटौप पर काम करने की होती है. जब आप किताब पढ़ते हैं तो आप 30 से 40 मिनट में उठते हैं और इधरउधर जाते हैं, मगर कंप्यूटर पर काम करने के दौरान ऐसा नहीं कर पाते. लोग लगातार घंटों नहीं उठते. इस से ही कंप्यूटर विजन सिंड्रोम अस्तित्व में आया है. इस में आंखों का सूखना, आंखों का लाल होना, आंखों से पानी निकलना और मांसपेशियों का कमजोर होना आदि परेशानियां शामिल होती हैं.

डा. कार्तिकेय बताते हैं, ‘‘आंखों में खुजली होने या आंखों के लाल होने की परेशानी सब को है. यह समस्या किसी को कम, तो किसी को ज्यादा है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कंप्यूटर पर कितना वक्त बिताते हैं.’’ उन के अनुसार, कंप्यूटर और लैपटौप पर काम करने के दौरान आंखों को स्वस्थ रखने के कुछ सुझाव निम्न हैं-

कंप्यूटर की स्क्रीन आंखों की सीध  में या आंखों से थोड़ी नीचे होनी  चाहिए. स्क्रीन आंखों से ऊपर नहीं  होनी चाहिए. स्क्रीन आंखों से जितनी ऊपर होगी, आंखों पर उतना ही  जोर पड़ेगा.

नियमित कंप्यूटर या लैपटौप पर काम करने वालों को हमेशा एंटीग्लेयर लैंस का इस्तेमाल करना चाहिए. जिन्हें नजर का चश्मा लगा हुआ है, वे अपने चश्मे में एंटीग्लेयर लैंस लगवाएं. जिन्हें चश्मा नहीं लगा हुआ है, वे एंटीग्लेयर लैंस का साधारण चश्मा पहनें. बेहतर यह है कि कंप्यूटर की स्क्रीन पर भी एंटीग्लेयर शीशा लगा लें.

हर आंधे घंटे में ब्रेक लेना जरूरी है और 5 से 10 बार आंखों को जल्दीजल्दी झपकाना चाहिए, जिस से आंख के सभी हिस्सों में पानी पहुंच जाए और आंखों में नमी बनी रहे.

आंखों में किसी भी समस्या के होने पर तुरंत डाक्टर के पास जाएं और समय रहते इलाज करवाएं, ताकि किसी भी संभावित गंभीर बीमारी से बचा जा सके.

  आंखों के लिए करें ये वर्कआउट

  1. स्ट्रैचिंग ऐक्सरसाइज करें, आंखों का व्यायाम भी करें.
  2. इस बात पर ध्यान दें कि एसी की हवा सीधी आप की आंखों में न पड़े.
  3. आंखों को किसी प्रकार की तेज रोशनी से बचाएं, अगर स्क्रीन पर बल्ब या ट्यूबलाइट की सीधी रोशनी आ रही है तो उस से भी बचें क्योंकि यह भी आंखों की सेहत को प्रभावित कर सकती है.
  4. कुछ लोग ऐसा भी करते हैं कि कंप्यूटर या लैपटौप पर काम करते हुए लाइट बंद कर देते हैं. ऐसा न करें. स्क्रीन पर काम करते हुए पर्याप्त रोशनी होने की जरूरत होती है.

बचाव के तरीके

1. कोई भी लक्षण लगातार नजर आए, तो डाक्टर से संपर्क करें.

2. चश्मा लगा कर ही काम करें.

3.    कंप्यूटर, टीवी, मोबाइल का इस्तेमाल अंधेरे में न करें.

4. डैस्कटौप, लैपटौप, मोबाइल को आंखों से डेढ़ फुट की दूरी पर रखें.

5.     आंखों में ड्राइनैस महसूस हो, तो आईड्रौप्स डालें.

6.   कंप्यूटर पर काम करते हैं, तो बीचबीच में ब्रेक लेते रहें.

7. आंखों को आराम देने के लिए हर आधे घंटे के गैप में आंखों को कंप्यूटर से हटा लें, 1-2 मिनट के लिए आंखें बंद कर के बैठें.

उधार का रिश्ता : उस दिन क्या हुआ थाा सरिता के साथ ?

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Valentine’s Day 2024 : तुम्हारा जवाब नहीं – क्या मानसी का आत्मविश्वास उसे नीरज के करीब ला पाया ?

अपनी शादी का वीडियो देखते हुए मैं ने पड़ोस में रहने वाली वंदना भाभी से पूछा, ‘‘क्या आप इस नीली साड़ी वाली सुंदर औरत को जानती हैं?’’

‘‘इस रूपसी का नाम कविता है. यह नीरज की भाभी भी है और पक्की सहेली भी. ये दोनों कालेज में साथ पढ़े हैं और इस का पति कपिल नीरज के साथ काम करता है. तुम यह समझ लो कि तुम्हारे पति के ऊपर कविता के आकर्षक व्यक्तित्व का जादू सिर चढ़ कर बोलता है,’’ मेरे सवाल का जवाब देते हुए वे कुछ संजीदा हो उठी थीं.

‘‘क्या आप मुझे इशारे से यह बताने की कोशिश कर रही हैं कि नीरज और कविता भाभी के बीच कोई चक्कर है?’’

‘‘मानसी, सच तो यह है कि मैं इस बारे में कुछ पक्का नहीं कह सकती. कविता के पति कपिल को इन के बीच के खुलेपन से कोई शिकायत नहीं है.’’

‘‘तो आप साफसाफ यह क्यों नहीं कहतीं कि इन के बीच कोई गलत रिश्ता नहीं है?’’

‘‘स्त्रीपुरुष के बीच सैक्स का आकर्षण नैसर्गिक है. यह देवरभाभी के पवित्र रिश्ते को भी दूषित कर सकता है. जल्द ही तुम्हारी कविता और कपिल से मुलाकात होगी. तब तुम खुद ही अंदाजा लगा लेना कि तुम्हारे साहब और उन की लाडली भाभी के बीच किस तरह के संबंध हैं.’’

‘‘यह बात मेरी समझ में आती है. थैंक यू भाभी,’’ मैं ने उन के गले से लग कर उन्हें धन्यवाद दिया और फिर उन्हें अच्छा सा नाश्ता कराने के काम में जुट गई.

पहले मैं अपने बारे में कुछ बता देती हूं. प्रकृति ने मुझे सुंदरता देने की कमी शायद जीने का भरपूर जोश व उत्साह दे कर पूरी की है. फिर होश संभालने के बाद 2 गुण मैं ने अपने अंदर खुद पैदा किए. पहला, मैं ने नए काम को सीखने में कभी आलस्य नहीं किया और दूसरा यह है कि मैं अपने मनोभाव संबंधित व्यक्ति को बताने में कभी देर नहीं लगाती हूं.

मेरा मानना है कि इस कारण रिश्तों में गलतफहमी पैदा होने की नौबत नहीं आती है. जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने में मेरे इन सिद्धांतों ने मेरा बहुत साथ दिया है. तभी वंदना भाभी की बातें सुनने के बावजूद कविता भाभी को ले कर मैं ने अपना मन साफ रखा था.

हम शिमला में सप्ताह भर का हनीमून मना कर कल ही तो वापस आए थे. मैं तो वहां से नीरज के प्रेम में पागल हो कर लौटी हूं. लोग कहते हैं कि ऐसा रंगीन समय जिंदगी में फिर कभी लौट कर नहीं आता. अत: मैं ने तय कर लिया कि इस मौजमस्ती को आजीवन अपने दांपत्य जीवन में जिंदा रखूंगी.

उसी दिन कपिल भैया ने नीरज को फोन कर के हमें अपने घर रात के खाने पर आने के लिए आमंत्रित किया था. वहां पहुंचने के आधे घंटे के अंदर ही मुझे एहसास हो गया कि इन तीनों के बीच दोस्ती के रिश्ते की जड़ें बड़ी मजबूत हैं. वे एकदूसरे की टांग खींचते हुए बातबात में ठहाके लगा रहे थे.

मुझे कपिल भैया का व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा. वे जोरू के गुलाम तो बिलकुल नहीं लगे पर कविता का जादू उन के भी सिर चढ़ कर बोलता था. मेरे मन में एकाएक यह भाव उठा कि यह इनसान मजबूत रिश्ता बनाने के लायक है. अत: मैं ने विदा लेने के समय भावुक हो कर उन से कह दिया, ‘‘मैं ने तो आप को आज से अपना बड़ा भाई बना लिया है. इस साल मैं आप को राखी बांधूंगी और आप से बढि़या सा गिफ्ट लूंगी.’’

‘‘श्योर,’’ मेरी बात सुन कर कपिल भैया के साथसाथ उन की मां की आंखें भी नम हो गई थीं. मुझे बाद में नीरज से पता चला कि उन की इकलौती छोटी बहन 8 साल की उम्र में दिमागी बुखार का शिकार हो चल बसी थी.

अगले दिन शाम को मैं ने फोन कर के नीरज से कहा कि वे कपिल भैया के साथ आफिस से सीधे कविता भाभी के घर आएं.

वे दोनों आफिस से लौटीं. कविता भाभी के पीछेपीछे घर में घुसे. यह देख कर उन सब ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थीं कि कविता भाभी का सारा घर जगमग कर रहा था. मैं ने कविता भाभी की सास के बहुत मना करने के बावजूद पूरा दिन मेहनत कर के सारे घर की सफाई कर दी थी.

कविता भाभी की सास खुले दिल से मेरी तारीफ करते हुए उन सब को बारबार बता रही थीं, ‘‘तेरी बहू का जवाब नहीं है, नीरज. कितनी कामकाजी और खुशमिजाज है यह लड़की.’’

‘‘तुम अभी नई दुलहन हो और वैसे भी ये सब तुम्हें नहीं करना चाहिए था,’’ कविता भाभी कुछ परेशान और चिढ़ी सी प्रतीत हो रही थीं.

‘‘भाभी, मेरे भैया का घर मेरा मायका हुआ और नई दुलहन के लिए अपने मायके में काम करने की कोई मनाही नहीं होती है. अपनी कामकाजी भाभी का घर संवारने में क्या मैं हाथ नहीं बंटा सकती हूं?’’ उन का दिल जीतने के लिए मैं खुल कर मुसकराई थी.

‘‘थैंक यू मानसी. मैं सब के लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर औपचारिक से अंदाज में मेरी पीठ थपथपा कर वे रसोई की तरफ चली गईं.

मुझे एहसास हुआ कि उन की नाराजगी दूर करने में मैं असफल रही हूं. लेकिन मैं भी आसानी से हार मानने वालों में नहीं हूं. उन्हें नाराजगी से मुक्त करने के लिए मैं उन के पीछेपीछे रसोई में पहुंच गई.

‘‘आप को मेरा ये सब काम करना

अच्छा नहीं लगा न?’’ मैं ने उन से भावुक हो कर पूछा.

‘‘घर की साफसफाई हो जाना मुझे क्यों अच्छा नहीं लगेगा?’’ उन्होंने जबरदस्ती मुसकराते हुए मुझ से उलटा सवाल पूछा.

‘‘मुझे आप की आवाज में नापसंदगी के भाव महसूस हुए, तभी तो मैं ने यह सवाल पूछा. आप नाराज हैं तो मुझे डांट लें, पर अगर जल्दी से मुसकराएंगी नहीं तो मुझे रोना आ जाएगा,’’ मैं किसी छोटी बच्ची की तरह से मचल उठी थी.

‘‘किसी इनसान के लिए इतना संवेदनशील होना ठीक नहीं है, मानसी. वैसे मैं नाराज नहीं हूं,’’ उन्होंने इस बार प्यार से मेरा गाल थपथपा दिया तो मैं खुशी जाहिर करते हुए उन से लिपट गई.

उन्हें मुसकराता हुआ छोड़ कर मैं ड्राइंगरूम में लौट आई. वे जब तक चाय बना कर लाईं, तब तक मैं ने कपिल भैया और नीरज को अगले दिन रविवार को पिकनिक पर चलने के लिए राजी कर लिया था.

रविवार के दिन हम सुबह 10 बजे घर से निकल कर नेहरू गार्डन पहुंच गए. मैं बैडमिंटन अच्छा खेलती हूं. उस खूबसूरत पार्क में मेरे साथ खेलते हुए भाभी की सांसें जल्दी फूल गईं तो मैं उन के मन में जगह बनाने का यह मौका चूकी नहीं थी, ‘‘भाभी, आप अपना स्टैमिना बढ़ाने व शरीर को लचीला बनाने के लिए योगा करना शुरू करो,’’ मेरे मुंह से निकले इन शब्दों ने नीरज और कपिल भैया का ध्यान भी आकर्षित कर लिया था.

‘‘क्या तुम मुझे योगा सिखाओगी?’’ भाभी ने उत्साहित लहजे में पूछा.

‘‘बिलकुल सिखाऊंगी.’’

‘‘कब से?’’

‘‘अभी से पहली क्लास शुरू करते हैं,’’ उन्हें इनकार करने का मौका दिए बगैर मैं ने कपिल भैया व नीरज को भी चादर पर योगा सीखने के लिए बैठा लिया था.

‘‘मुझे योगा भी आता है और एरोबिक डांस करना भी. मेरी शक्लसूरत ज्यादा अच्छी  नहीं थी, इसलिए मैं ने सजनासंवरना सीखने पर कम और फिटनेस बढ़ाने पर हमेशा ज्यादा ध्यान दिया,’’ शरीर में गरमाहट लाने के लिए मैं ने उन्हें कुछ एक्सरसाइज करवानी शुरू कर दीं.

‘‘तुम अपने रंगरूप को ले कर इतना टची क्यों रहती हो, मानसी?’’ कविता भाभी की आवाज में हलकी चिढ़ के भाव शायद सब ने ही महसूस किए होंगे.

मैं ने भावुक हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं टची नहीं हूं, बल्कि उलटा अपने साधारण रंगरूप को अपने लिए वरदान मानती हूं. सच तो यही है कि सुंदर न होने के कारण ही मैं अपने व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास कर पाई हूं. वरना शायद सिर्फ सुंदर गुडि़या बन कर ही रह जाती… सौरी भाभी, आप यह बिलकुल मत समझना कि मेरा इशारा आप की तरफ है. आप को तो मैं अपनी आइडल मानती हूं. काश, कुदरत ने मुझे आप की आधी सुंदरता दे दी होती, तो मैं आज अपने पति के दिल की रानी बन कर रह रही होती.’’

‘‘अरे, मुझे क्यों बीच में घसीट लिया और कौन कहता है कि तुम मेरे दिल की रानी नहीं हो?’’ नीरज का हड़बड़ा कर चौंकना हम सब को जोर से हंसा गया.

‘‘वह तो मैं ने यों ही डायलौग मारा है,’’ और मैं ने आगे बढ़ कर सब के सामने ही उन का हाथ चूम लिया.

वह मेरी इस हरकत के कारण शरमा गए तो कपिल भैया ठहाका मार कर हंस पड़े. हंसी से बदले माहौल में भाभी भी अपनी चिढ़ भुला कर मुसकराने लगी थीं.

कविता भाभी योगा सीखते हुए भी मुझे ज्यादा सहज व दिल से खुश नजर नहीं आ रही थीं. सब का ध्यान मेरी तरफ है, यह देख कर शायद कविता भाभी का मूड उखड़ सा रहा था. उन के मन की शिकायत को दूर करने के लिए मैं ने तब कुछ देर के लिए अपना सारा ध्यान भाभी की बातें सुनने में लगा दिया. उन्होंने एक बार अपने आफिस व वहां की सहेलियों की बातें सुनानी शुरू कीं तो सुनाती ही चली गईं.

जल्द ही मैं उन के साथ काम करने वाले सहयोेगियों के नाम व उन के व्यक्तित्व की खासीयत की इतनी सारी जानकारी अपने दिमाग में बैठा चुकी थी कि उन के साथ भविष्य में कभी भी आसानी से गपशप कर सकती थी.

‘‘आप के पास बातों को मजेदार ढंग से सुनाने की कला है. आप किसी भी पार्टी की रौनक बड़ी आसानी से बन जाती होंगी,

कविता भाभी,’’ मेरे मुंह से निकली अपनी इस तारीफ को सुन कर भाभी का चेहरा फूल सा खिल उठा था.

उस रात को नीरज ने जब मुझे मस्ती भरे मूड में आ कर प्यार करना शुरू किया तब मैं ने भावुक हो कर पूछा, ‘‘मैं ज्यादा सुंदर नहीं हूं, इस बात का तुम्हें कितना अफसोस है?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ वह मस्ती से डूबी आवाज में बोले.

‘‘अगर मैं भाभी से अपनी तुलना करती हूं तो मेरा मन उदास हो जाता है.’’

‘‘पर तुम उन से अपनी तुलना करती ही क्यों हो?’’

‘‘आप के दोस्त की पत्नी इतनी सुंदर और आप की इतनी साधारण. मैं ही क्या, सारी दुनिया ऐसी तुलना करती होगी. आप भी जरूर करते होंगे.’’

‘‘तुलना करूं तो भी उन के मुकाबले तुम्हें इक्कीस ही पाता हूं, यह बात तुम हमेशा के लिए याद रख लो, डार्लिंग.’’

‘‘सच कह रहे हो?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘मैं शादी से पहले सोचती थी कि कहीं मैं अपने साधारण रंगरूप के कारण अपने पति के मन न चढ़ सकी तो अपनी जान दे दूंगी.’’

‘‘वैसा करने की नौबत कभी नहीं आएगी, क्योंकि तुम सचमुच मेरे दिल की रानी हो.’’

‘‘आप अगर कभी बदले तो पता है क्या होगा?’’

‘‘क्या होगा?’’

मैं ने तकिया उठाया और उन पर पिल पड़ी, ‘‘मैं तकिए से पीटपीट कर तुम्हारी जान ले लूंगी.’’

वह पहले तो मेरी हरकत पर जोर से चौंके पर फिर मुझे खिलखिला कर हंसता देख उन्होंने भी फौरन दूसरा तकिया उठा लिया.

हमारे बीच तकियों से करीब 10 मिनट तक लड़ाई चली. बाद में हम दोनों अगलबगल लेट कर लड़ने के कारण कम और हंसने के कारण ज्यादा हांफ रहे थे.

‘‘आज तो तुम ने बचपन याद करा दिया, स्वीट हार्ट, यू आर ग्रेट,’’ उन्होंने बड़े प्यार से मेरी आंखों में झांकते हुए मेरी तारीफ की.

‘‘तुम्हें बचपन की याद आ रही है और मेरे ऊपर जवानी की मस्ती छा गई है,’’ यह कह कर मैं उन के चेहरे पर जगहजगह छोटेछोटे चुंबन अंकित करने लगी. उन्हें जबरदस्त यौन सुख देने के लिए मैं उन की दिलचस्पी व इच्छाओं का ध्यान रख कर चल रही हूं. अपना तो यही फंडा है कि एलर्ट हो कर संवेदनशीलता से जिओ और नएनए गुण सीखते चलो.

मेरी आजीवन यही कोशिश रहेगी कि मैं अपने व्यक्तित्व का विकास करती रहूं ताकि हमारे दांपत्य में ताजगी व नवीनता सदा बनी रहे. उन का ध्यान कभी इस तरफ जाए ही नहीं कि उन की जीवनसंगिनी की शक्लसूरत बहुत साधारण सी है.

वे होंठों पर मुसकराहट, दिल में खुशी व आंखों में गहरे प्रेम के भाव भर कर हमेशा यही कहते रहें, ‘‘मानसी, तुम्हारा जवाब नहीं.’’

दिल्लगी : श्री ने जब कन्या को देखा तो क्या हुआ था ?

जयश्री बिरमी घर में बेरोजगार बैठे एक शख्स को इश्क का बुखार चढ़ा और लड़की उसे मिल भी गई लेकिन जब वह उस से मिलने गया तो सिर मुड़ाते ही ओले पड़ गए… यों ही मैं घूमने निकला तो बस स्टौप पर एक सुंदर सी कन्या को देख रुक सा गया. वह बेहद सुंदर थी. साड़ी पहने उस की लंबी सी चोटी, सुंदर आंखें, छरहरे बदन को मैं बस देखता ही रह गया. तभी एक बस आई और वह उस में बैठ कर चली गई. मैं हक्काबक्का बस को जाते देखता रह गया. ?ट से अपनेआप को संभाला और घड़ी देखी तो 11 बजे थे. वहां से चल तो दिया लेकिन दूसरे दिन इसी वक्त यहां फिर आने के इरादे के साथ.

वैसे भी पढ़ाई पूरी हो गई थी मगर नौकरी या कामधंधा नहीं था तो इस दौरान इश्क की पींगें ही चढ़ा ली जाएं, यह सोच कर दूसरे दिन बनठन कर बस स्टौप पर पहुंचा तो वह भी बस में चढ़ने की कतार में खड़ी थी. उसे देख कर दिल बहुत जोर से धड़का जैसे गले से बाहर ही आ जाएगा. मैं भी कतार में खड़ा हो उस की ओर देख उस के सौंदर्य का नजरों से ही पान करने लगा. कल जो सुंदरता देखी थी वह और भी ज्यादा दिखनी शुरू हो गई और खयालों की दुनिया में जाने से ज्यादा उस के हुस्न का अवलोकन करना ज्यादा बेहतर सम?ा. बस आई तो हाथ में टिफिन ले वह बस में जा बैठी. हम भी पीछे हो लिए. एक ही सीट खाली देख थोड़ी उदारता का प्रदर्शन करते हुए उसे बैठने दे पास में खड़े हो कर आंखों से उस के सौंदर्य का हवाई अवलोकन करने लगा. अब वह भी थोड़ी बेतकल्लुफ सी बैठीबैठी मेरी गतिविधियों से अवगत होते हुए भी मु?ो नजरअंदाज कर रही थी.

मगर अब मेरी हिम्मत खुल गई थी और अब तो बेधड़क देखता रहा उस की सुहानी मूरत को. बस, एक ही बात का दुख था कि जब से देखा है उसे, इतनी बार बस में मिला उस से, लेकिन उस की आवाज नहीं सुनी जो मेरे हिसाब से चांदी की घंटी सी मीठी होनी चाहिए थी. उस का स्टैंड आ गया था तो वह उतर गई. पीछेपीछे मैं भी उतर गया और कुछ खुल कर उस के सामने हंस दिया. जवाब में उस के भी होंठ हलके से फड़फड़ाए थे. दूसरे दिन मिलने की आशा के साथ मैं भी घर की ओर चल पड़ा. सुबह उठते ही उसी के खयालों से दिनचर्या शुरू की और 10 बजते ही बस स्टौप पहुंच इंतजार में लग गया. सामने से होंठों पर मुसकान लिए वह आ गई और बस की लाइन में खड़ी हो गई तो मैं भी पीछे जा कर खड़ा हो गया. थोड़ी देर में बस आई तो आगे वह और पीछे मैं बस में चढ़ गए. संयोग से आज एक सीट पूरी खाली थी. मैं ने भी नारी सम्मान को मान देते हुए उसे बैठ जाने के लिए इशारे से बोला.

वह खिड़की के पास बैठ गई और मैं उस के साथ में बैठ इतरा रहा था. कंडक्टर आया तो उस ने अपने पर्स से पैसे निकाले तो कंडक्टर ने बिना पूछे ही टिकट पकड़ा दिया. इस पर वह मुसकरा कर रह गई. मेरा उस की आवाज सुन पाने का जो ख्वाब था वह टूट गया. टिकट के पैसे दे उस ने पर्स हम दोनों के बीच में रख दिया तो अपनी भी हिम्मत बढ़ी और पर्स को छू कर ऐसा महसूस होने लगा जैसे उस के गरम हाथों को छू लिया हो. मैं ने हिम्मत इकट्ठी की और जेब में से पैन निकाला व एक छोटी सी परची पर लिखा और उसे दूसरे दिन बस स्टौप के पास वाले बगीचे में मिलने बुला लिया. चिट्ठी उस के पर्स के बाहर वाले पौकेट में डाली और उस के उतरने से पहले ही बस से उतर गया. सारी रात सो नहीं पाया मैं कि पता नहीं वह आएगी भी या नहीं. दूसरे दिन समय होते ही बगीचे की ओर चल दिया जहां वह पहले से ही बैठी थी. सुंदर साड़ी, बालों में गजरा लगाए और होंठों पर हलकी सी लाली शायद कुदरती ही थी. मैं भी इधरउधर देख उस की ओर चल दिया और जा कर उस की बगल में बैंच पर बैठ गया तो वह थोड़ी अदा से मुसकराई.

मैं भी जवाब में हंस दिया. मैं अपनी ओर से पता नहीं क्याक्या पूछता रहा और बताता रहा लेकिन वह हंस कर सिर हलके से हां या न कहती रही. इस से मेरे सब्र ने जवाब दे दिया. मैं ?ां?ाला कर बोल ही पड़ा, ‘‘आप जवाब क्यों नहीं दे रही हो, गूंगी हो क्या?’’ इस पर उस ने उंगली से मेरी जेब की ओर इशारा किया जहां पैन था. मैं ने उसे वह दे दिया. उस ने अपने बैग में से एक छोटा सा कागज का टुकड़ा निकाल कुछ लिखा और मेरी ओर बढ़ा दिया. उस में लिखा था, ‘मैं पूर्णतया सुन सकती हूं लेकिन बोल पाने में असमर्थ हूं. क्या आप मु?ा से शादी करेंगे?’

अपनी तो बैंड बज गई, सोचा, वैसे भी बेकार हूं, दोस्त लोग ताना मारेंगे कि गूंगी ही मिली. मैं एक ?ाटके से उठ कर बिना पूछे, बिना देखे चल पड़ा. मैं वहां से जल्द से जल्द भाग जाना चाहता था. पैन लेने को भी नहीं रुका. तभी पीछे से एक मधुर चांदी की घंटी सी आवाज आई, ‘‘अपना पैन तो लेते जाएं, जनाब.’’ मैं जड़वत वहीं खड़ा रह गया. काटो तो खून नहीं. मगर अब कर भी क्या सकता था. उस ने मेरी परीक्षा ली थी, जिस में मैं फेल हो चुका था. पैन लेने की हिम्मत नहीं थी. कैसे करता उस का सामना और अब तो मुट्ठियां बांध पहले धीरेधीरे और बाद में ?ाट से दौड़ बगीचे से बाहर भागा और बाहर आ कर देखा तो कलेजा गले को आया हुआ था और पसीने से कपड़े गीले हो गए थे. इश्क का बुखार उतर चुका था.

ऐसी होती हैं बेटियां : मीना पापा से किस बात के लिए नाराज हो गई थी ?

स्नातक करने के बाद पिता के कहने पर मीना ने बीएड भी कर लिया था. एक दिन पिता ने मीना को अपने पास बुला कर कहा, ‘‘मीना, मैं चाहता हूं कि अब तुम्हारे हाथ पीले कर दूं. तुम्हारे छोटे भाईबहन भी हैं न. बेटे, एकएक कर के अपनी जिम्मेदारी पूरी करना चाहता हूं.’’

नाराज हो गई थी वह पापा से, शादी की बात सुन कर, ‘‘पापा, प्लीज, मुझे शादी कर के निबटाने की बात न करें. मैं आगे पढ़ना चाहती हूं. मुझे एमए कर के पीएचडी भी करनी है.’’

कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने कहा, ‘‘अगर तुम्हारी पढ़ने की इतनी ही इच्छा है तो मैं तुम्हारे रास्ते का रोड़ा नहीं बनूंगा. जितनी मरजी हो पढ़ो.’’

पापा की बात सुन कर वह उस दिन कितना खुश हुई थी. लेकिन पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उत्तरदायित्व के एहसास ने महत्त्वाकांक्षाओं पर विजय पा ली थी. मीना ने 20 साल की छोटी उम्र में ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली थी.

7 साल बाद जब 2 बड़े भाई और बहन ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली तो उन्होंने कहा था, ‘‘जीजी, आप ने हमारे लिए बहुत किया है. अब हमें घर संभालने दीजिए.’’

जिम्मेदारियों के कंधे बदलते ही मीना ने सोच लिया कि वह अब ब्याह कर के अपना घर बसा लेगी. 3 साल बाद 30 वर्षीय मीना की शादी 35 वर्षीय सुशांत से हो गई.

शादी के 2 वर्ष बाद जब मीना ने पुत्री को जन्म दिया तो वह खुशी से फूली नहीं समाई. मीना की सास ने बच्ची का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘इस बार लक्ष्मी आई है, ठीक है. पोते का मुंह कब दिखा रही हो?’’

बेटी नीता, अभी 2 साल की भी नहीं हुई थी कि घर के बुजुर्गों ने मीना पर बेटे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया. जल्द ही मीना गर्भवती हुई और समय पूरा होने पर उस ने फिर बेटी को जन्म दिया. दूसरी बेटी मीता के जन्म पर सब के लटके हुए चेहरों को देख कर मीना ने सुशांत से कहा, ‘‘सुशांत, हमारी इस बेटी का भी जोरशोर से स्वागत होना चाहिए. बेटियां, बेटों से किसी तरह भी कम नहीं हैं. किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होने के बजाय, हम बेटियों को ऊंची से ऊंची शिक्षा देंगे. फिर देखिए, कल आप उन पर गर्व करेंगे.’’

‘‘ठीक है मीना, तुम इतनी भावुक मत बनो. यह मेरी भी तो बेटी है, जैसा तुम चाहती हो वैसा ही होगा.’’

कुछ दिन तो सबकुछ ठीक रहा. फिर घर में बेटे की रट शुरू हो गई. मीना के संस्कार उसे इजाजत नहीं देते थे कि वह घर के बड़ों से बहस करे. उस ने सुशांत से बात की.

‘‘सुशांत, हम इन 2 बेटियों की परवरिश अच्छी तरह करेंगे. मैं ने आप से पहले भी कहा था, तो फिर यह जिद क्यों?’’

सुशांत पर अपने मातापिता का प्रभाव इतना था कि वे भी उन की ही भाषा बोलते थे. वे मीना को समझाने लगे, ‘‘मीना, हमें एक बेटे की बहुत चाह है. कल को ये बेटियां ब्याह कर अपनेअपने घरों को चली जाएंगी, तो हमारी देखभाल के लिए बेटा ही साथ रहेगा न.’’

सुशांत का उत्तर सुन कर भड़क गई मीना, ‘‘सुशांत, क्या मैं ने अपने परिवार को नहीं संभाला? फिर हमारी बच्चियां हमारा सहारा क्यों नहीं बनेंगी? वास्तव में अपने बच्चों से ऐसी अपेक्षा हम रखें ही क्यों?’’

मीना की एक न चली. वह तीसरी बार भी गर्भवती हुई और उस ने फिर एक बेटी को जन्म दिया.

3 बच्चों की परवरिश, फिर स्कूल का काम, दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करना मीना को काफी मुश्किल लग रहा था. इस का असर मीना के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा.

3 बेटियों के बाद मीना पर जब फिर से दबाव डालने का सिलसिला शुरू हुआ तो वह चुप नहीं रह सकी. बरदाश्त की हद जब पार हो गई तो जैसे बम फूट पड़ा, मीना चीख उठी, ‘‘मैं कोई बच्चा पैदा करने की मशीन हूं? मेरी उम्र 40 पार कर चुकी है. ऐसे में एक और बच्चा पैदा करने का मेरे स्वास्थ्य पर क्या असर होगा, सोचा है आप ने? बस, बहुत हो गया. मुझ पर दबाव डालना बंद कीजिए.’’

मीना की सास अवाक् खड़ी बहू का मुंह देखती रह गईं. मीना भी वहां खड़ी नहीं रह सकी. अपने कमरे में पहुंच कर फूटफूट कर रोने लगी. सुशांत ने मीना को गले से लगा कर शांत कराया. शांत होने पर मीना मन ही मन सोचने लगी कि उस ने इस अनावश्यक दबाव के खिलाफ आवाज उठा कर कोई गलत नहीं किया है. थोड़े दिन तक तो सब शांत रहा. एक दिन सुशांत ने मीना से कहा, ‘‘मीना, क्यों न हम एक अंतिम कोशिश कर लेते हैं. अब की बार चाहे लड़का हो या लड़की, मैं तुम से वादा करता हूं, फिर कभी इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा. प्लीज, मान जाओ.’’

कोमल स्वभाव की मीना पति की बातों में आ गई. इस बार जब वह गर्भवती हुई तो 3 बच्चों की परवरिश, ऊपर से बढ़ती उम्र उस के स्वास्थ्य पर हावी होने लगी. मीना को हार कर लंबी छुट्टी लेनी पड़ी, जो वेतनरहित थी.

समय पूरा होने पर मीना ने एक बेटे को जन्म दिया. अपनी मनोकामना पूरी होते देख, सब के चेहरों पर खुशी देखते बनती थी. उन की ये खुशी क्षणभंगुर साबित हुई. बच्चे को अचानक सांस लेने में तकलीफ होने लगी. उसे औक्सीजन दी जाने लगी. डाक्टरों ने बताया, ‘‘बच्चे के शरीर में औक्सीजन की कमी होने की वजह से मस्तिष्क को सही समय पर औक्सीजन नहीं मिल पाई, इसलिए उस के दोनों हाथ और पैर विकृत हो गए हैं.’’

ऐसा शायद गर्भावस्था के दौरान मीना की बढ़ती उम्र और कमजोरी के कारण हुआ था. इस के बाद पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद मीना का बेटा अरुण स्वस्थ नहीं हो पाया था. वह जिंदगीभर के लिए अपाहिज बन गया.

मीना और सुशांत पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. पहले तो सुशांत बेटा चाहते थे, जो उन के बुढ़ापे की लाठी बने. अब उन्हें यह चिंता सताने लगी कि उन के बाद उन के बेटे की देखभाल कौन करेगा.

करीब 1 साल तक छुट्टी लेने के बाद मीना फिर से स्कूल जाने लगी. पहले वाली मीना और इस मीना में जमीनआसमान का अंतर था. पहले कितनी सुघड़ रहा करती थी मीना. अब तो कपड़े भी अस्तव्यस्त रहा करते थे. दिनरात की चिंता ने उसे समय से पहले ही बूढ़ा बना दिया था.

बच्चियां मां को सांत्वना देतीं, ‘‘मां, आप पहले की तरह हंसतीबोलती क्यों नहीं हैं? भाई की देखभाल हम सब मिल कर करेंगे. आप चिंता मत कीजिए.’’

बच्चियों की बातें सुन कर मीना उन्हें गले लगा लेती. अपनेआप को बदलने की कोशिश भी करती, पर फिर वही ‘ढाक के तीन पात.’ वास्तव में बच्चियों की बातों से मीना आत्मग्लानि से भर जाती थी. वह अपनेआप को कोसती, ‘अरुण को इस दुनिया में ला कर मैं ने बच्चियों के साथ अन्याय किया है. एक और बच्चे को इस दुनिया में न लाने के अपने निर्णय पर मैं अटल क्यों नहीं रह सकी? अपनी इस कायरता के लिए दूसरे को दोष देने का क्या फायदा? अन्याय के खिलाफ कदम न उठाना भी किसी गुनाह से कम तो नहीं.’

एक तो बढ़ती उम्र में कमजोर शरीर, ऊपर से यह मानसिक पीड़ा.

मानसिक चिंताएं शरीर को दीमक की तरह खोखला कर जाती हैं. दुखों का सामना न कर पाने की स्थिति में दुर्बल शरीर, कमजोर इमारत की तरह भरभरा कर गिर जाता है. यही हाल हुआ मीना का. एक रात जब वह सोई तो, फिर उठ नहीं सकी. वह चिरनिद्रा में विलीन हो चुकी थी. मीना की सास की बूढ़ी हड्डियों में इतना दम कहां था कि वे सबकुछ संभाल सकें. कुछ ही दिनों में वे भी इस दुनिया से कूच कर गईं.

पत्नी और मां की विरह वेदना से ग्रसित सुशांत एक जिंदा लाश बन कर रह गए. उन की 2 बड़ी बेटियां जैसे रातोंरात बड़ी हो गईं. लड़कियां बारीबारी से अपने भाई का ध्यान रखतीं. दोनों बड़ी बहनें, भाई की दैनिक जरूरतों, खानेपीने का ध्यान रखतीं. नीता ने अपनी सब से छोटी बहन प्रिया को हिदायत दे रखी थी कि वह अरुण के पास बैठ कर पढ़ाई करे.

कहानी की पुस्तकें जोर से पढ़े ताकि अरुण भी उन का मजा ले सके. लड़कियां बारीबारी से अपने भाई को पढ़ाती भी थीं. पर वह अपने विकृत हाथों की वजह से कुछ लिख नहीं पाता था. उस के हाथों के मुकाबले उस के पांव कम विकृत थे. लड़कियों ने महसूस किया कि अरुण के पैरों की उंगलियों के बीच पैंसिल फंसा देने पर वह लिखने लगा था. उस की लिखावट अस्पष्ट होने पर भी, जोर देने पर पढ़ी जा सकती थी. कभीकभी अरुण कागज पर आड़ीतिरछी रेखाएं खींचता था, तो कुछ चित्र उभर कर आ जाता. बहनों ने जब देखा कि अरुण चित्रकारी में रुचि ले रहा है, तो उन्होंने उस के लिए एक गुरु की तलाश शुरू कर दी. इस के लिए उन्हें कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. घर बैठे ही इंटरनैट में उन्हें एक ऐसा गुरु मिल गया जो अपने हाथों से अक्षम बच्चों को पैरों की मदद से चित्रकारी करना सिखाता था. अरुण बहुत मन लगा कर सीखता था. देखते ही देखते वह इस कला में माहिर हो गया.

एक दिन ऐसा भी आया जब बहनों ने अरुण के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई. प्रदर्शनी काफी कामयाब रही. अरुण के चित्रों को बहुत सराहा गया. चित्रों की अच्छी बिक्री हुई और बहुत से और्डर भी मिले. फिर अरुण ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बहनों ने अरुण का नाम विकलांगों की श्रेणी में ‘गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स’ में भी दर्ज करा दिया. एक विदेशी संस्था, जो विकलांगों की मदद करती थी, ने इसे देखा और इस तरह अरुण के पास विदेशों से ग्रीटिंग कार्ड्स डिजाइन करने के और्डर आने लगे. अरुण अब डौलर में कमाने लगा.

सुशांत अब काफी संभल चुके थे. वक्त घावों को भर ही देता है. एकएक कर के उन्होंने अपनी 2 बड़ी बेटियों की शादियां कर दीं. छोटी अभी पढ़ रही थी. अरुण अब बड़ा हो गया था, इसलिए उस की देखभाल में दिक्कतें आने लगी थीं. ऐसा लगा जैसे प्रकृति ने उन की सुन ली थी. मीता इस बार जब मायके आई तो अपने साथ असीम को ले कर आई, जो बेहद ईमानदार और कर्त्तव्यनिष्ठ था. असीम पढ़ालिखा था पर बेरोजगार था. वह मीता के पति के पास नौकरी की तलाश में आया था. अरुण, असीम को मोटी रकम पगार के तौर पर देने लगा. असीम जैसा साथी पा कर अरुण बेहद खुश था.

आज टीवी वाले घर पर आए हुए हैं. वे अरुण का इंटरव्यू लेना चाहते हैं. कैमरा अरुण की तरफ घुमा कर कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता ने अरुण का परिचय देने के बाद कहा, ‘‘अरुण से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए. हाथपैर सहीसलामत रहने पर भी लोग अपनी असमर्थता का रोना रोते रहते हैं. अपने पैरों की उंगलियों की सहायता से अरुण जिस तरह जानदार चित्र बनाता है, वैसा शायद हम हाथ से भी नहीं बना सकते. अरुण ने यह साबित कर दिया है कि जिंदगी में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. अरुण, अब आप को बताएगा कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसे देता है.’’

अरुण ने कहा, ‘‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपनी बहनों की बदौलत हूं. मैं ने अपनी मां को बचपन में ही खो दिया था. बहनों ने न सिर्फ मुझे मां का प्यार दिया बल्कि मेरी प्रतिभा को पहचान कर, मेरे लिए गुरुजी की व्यवस्था भी की. आज मैं अपने पिता, गुरुजी और सब से बढ़ कर अपनी बहनों का आभारी हूं.’’

अरुण की बातें कुछ अस्पष्ट सी थीं, इसलिए असीम, अरुण द्वारा कही बातों को दोहराने के लिए आगे आया. सुशांत वहां और ठहर नहीं सके. उन्होंने अपनेआप को कमरे में बंद कर लिया. मीना का फोटो हाथ में ले कर विलाप करने लगे, ‘‘मीना, देख रही हो अपने बच्चों को, उन की कामयाबी को. काश, आज तुम हमारे बीच होतीं. तुम्हें तो शुरू से ही अपनी बच्चियों पर विश्वास था. मैं ही तुम्हारे विश्वास पर विश्वास नहीं कर सका और तुम्हें खो बैठा. लेकिन आज मैं फख्र के साथ कह सकता हूं कि ऐसी होती हैं बेटियां क्योंकि उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए पूरे घर को संभाला, यहां तक कि मुझे भी. अपने भाई को काबिल बनाया और मेरी एक आवाज पर दौड़ी चली आती हैं.’’

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