महाभारत में एक कथा अश्वथामा से जुड़ी है. अश्वत्थामा का जन्म भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां हुआ था. उन की माता ऋषि शरद्वान की पुत्री कृपी थीं. द्रोणाचार्य का गोत्र अंगिरा था. तपस्यारत द्रोण ने पितरों की आज्ञा से संतान प्राप्ति हेतु कृपी से विवाह किया. कृपी भी बड़ी ही धर्मज्ञ, सुशील और तपस्विनी थीं. दोनों ही संपन्न परिवार से थे. जन्म लेते ही अश्वत्थामा ने अश्व के समान आवाज निकाली. यह चारों दिशाओं में गूंजने लगी. तब आकाशवाणी हुई कि इस बालक का नाम अश्वत्थामा होगा.
महाभारत युद्ध के दौरान जब भीष्म शरशय्या पर लेट गए तो 11वें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनाए गए. दुर्योधन द्रोण से कहते हैं कि ‘वे युधिष्ठिर को बंदी बना लें तो युद्ध अपनेआप खत्म हो जाएगा’.

युद्ध में जब दिन खत्म हो रहा होता है तो द्रोण युधिष्ठिर को युद्ध में हरा कर उसे बंदी बनाने के लिए आगे बढ़ते ही हैं कि अर्जुन आ कर अपने बाणों की वर्षा से उन्हें रोक देता है. नकुल, युधिष्ठिर के साथ थे. अर्जुन भी वापस युधिष्ठिर के पास आ गए. इस प्रकार कौरव युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सके.
द्रोण का मुकाबला करना पांडवों के लिए भारी पड़ रहा था. द्रोण के साथ उन का बाहुबलि बेटा अश्वत्थामा भी युद्ध कर रहा होता है. पितापुत्र ने मिल कर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्चित कर दी थी. पांडवों की हार को देख कर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा.

इस योजना के तहत युद्ध में यह अफवाह फैला दी जाए कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’, लेकिन युधिष्ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे. तब भीम द्वारा युद्ध कर रहे अश्वत्थामा नामक हाथी को मार दिया गया. इस के बाद युद्ध में यह बाद फैला दी गई कि ‘अश्वत्थामा मारा गया’. द्रोणाचार्य को इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था. द्रोण ने युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया ‘अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी’. श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिस के शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द ‘हाथी’ नहीं सुन पाए. उन्होंने समझा कि मेरा पुत्र मारा गया. यह सुन कर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए. यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जान कर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उन का सिर काट डाला.

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