Download App

चुनाव में जनता उदासीन, सरकारी निक्कमापन जिम्मेदार

2024 का लोकसभा चुनाव अप्रैल से ले कर जून माह तक चलेगा. इन चुनावों की घोषणा 16 मार्च को मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने की. इस समय उन के साथ दो नए आयुक्त ज्ञानेश कुमार और सुखवीर सिंह संधु भी मौजूद थे. यह दोनों चुनाव आयुक्त अरूण गोयल के इस्तीफा देने और अनूप चन्द्र पांडेय के रिटायर होने के बाद नियुक्त किए गए थे. इस की अधिसूचना भी मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के हस्ताक्षर से जारी हुई. भारत निर्वाचन आयोग की अधिसूचना संख्या 464/आईएनएसटी/ईपीएस/2024 के तहत 16 मार्च से लगी अधिसूचना 4 जून को मतगणना के बाद खत्म होगी.

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि यह चुनाव 7 चरणों में होंगे. चुनाव की प्रक्रिया 81 दिन में पूरी होगी. पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल और अंतिम चरण का 1 जून को होगा. वर्ष 1951-52 के बाद यह सब से लंबे समय तक चलने वाला चुनावी कार्यक्रम है. उस समय पूरी चुनावी प्रक्रिया 4 महीने तक चली थी. 2019 का लोकसभा चुनाव 73 दिनों में सम्पन्न हुआ था.

वैसे पहले चुनाव से इस चुनाव की तुलना किसी भी तरह से जायज नहीं है. उस समय देश आजाद हुआ था. देश का हर ढांचा नया बन रहा था. चुनाव के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. आज देश हर तरह से सम्पन्न है. तमाम चुनाव हो चुके हैं. ऐसे में कुछ नया नहीं है. अच्छी सड़कें, आवागमन के अच्छे साधन, शासन प्रशासन का अनुभव है. ईवीएम के होने से सुविधाएं हैं. ऐसे में चुनाव के इतना लंबा होने का कोई मतलब नहीं है.

2019 के लोकसभा चुनाव में 67.4 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले थे. 2014 में 66.44 फीसदी मतदान हुआ था. 2009 में यह केवल 58.21 फीसदी ही था. पिछले 2 चुनाव में मतदान बढ़ा था. इस चुनाव में मतदाता उदासीन सा दिख रहा है. जिस से मतदान को बढ़ाना सरल काम नहीं होगा. इस बार 5 करोड़ मतदाता बढ़े हैं. इन की वजह से भले ही मतदान बढ़ जाए. इस बार महिला मतदाताओं की संख्या 47.1 करोड़ या 48.61 फीसदी है. इस बार मतदाताओं के लिए 10,48,202 पोलिंग बूथ बनाए जाएंगे. यह संख्या भी पिछले चुनाव के मुकाबले 1.19 फीसदी अधिक है. इस चुनाव में वोट डालने के लिए 50.5 लाख ईवीएम का इस्तेमाल किया जाएगा.

लंबे चुनावी कार्यक्रम से मिलेगा भाजपा को लाभ

चुनाव में पैसा और प्रबंधन सब से खास होता है. इस वजह से लंबे चुनावी कार्यक्रम से सत्ता पक्ष को लाभ होता है. विपक्ष जल्दी थक और बिखर जाता है. जिस का प्रचार पर असर पड़ता है. लंबे चुनाव कार्यक्रम से मौजूदा सरकार को सत्ता बरकरार रखने में फायदा होता है. नरेंद्र मोदी के आने के बाद चुनाव दर चुनाव यह कार्यक्रम लंबा होता गया है. लंबा चुनाव कार्यक्रम सत्ता बनाए रखने में मददगार होता है.

पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर, 1951 और 21 फरवरी, 1952 के बीच 4 महीने तक चला. वह एक अपवाद था. 1957 में आम चुनाव 24 फरवरी से 9 जून के बीच हुए. 1962 का चुनाव में 19 से 25 फरवरी के बीच हुआ जो केवल 7 दिनों तक चला.

1967 में 17 से 21 फरवरी के बीच हुए चौथा आम चुनाव केवल 5 दिन में खत्म हो गया. 1971 में चुनाव 1 से 10 मार्च तक 10 दिन में हो गए. 1977 में 16 से 20 मार्च के बीच 5 दिनों तक चले. 1980 में 3 से 6 जनवरी के बीच 7वें आम चुनाव केवल 4 दिन तक चले. 1984 आठवां आम चुनाव 5 दिनों तक चले.

1989 में 22 से 26 नवंबर के बीच हुए आम चुनाव 15 दिन चले. 1991 में 20 मई से 15 जून के बीच हुए दसवें आम चुनाव 27 दिनों तक चले. 1996 में 27 अप्रैल से 7 मई के बीच हुए ग्यारहवें आम चुनाव 11 दिनों तक चले.

1998 में 16 से 28 फरवरी के बीच आयोजित बारहवें आम चुनाव 12 दिनों तक चले. 5 सितंबर से 3 अक्टूबर 1999 के बीच हुए तेरहवें आम चुनाव 29 दिनों तक चले. 2004 के चौदहवें आम चुनाव 21 दिन तक चले. 2009 के चुनाव 28 दिन तक चले. 2014 में आम चुनाव 36 दिन और 2019 के चुनाव 39 दिनों तक चले.

कब से शुरू हुई चुनाव आचार संहिता

आदर्श आचार संहिता की शुरुआत 1960 के केरल विधानसभा चुनाव से हुई. इस को राजनीतिक दलों से बातचीत और सहमति के बाद तैयार किया गया. इस में पार्टियों और उम्मीदवारों ने तय किया कि वो किनकिन नियमों का पालन करेंगे. 1962 के आम चुनाव के बाद 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भी आचार संहिता का पालन हुआ. बाद में उस में और नियम जुड़ते चले गए. चुनाव आयोग ने सितंबर 1979 में राजनीतिक दलों की बैठक बुला कर आचार संहिता में संशोधन किया. इसे अक्तूबर 1979 में हुए आम चुनाव में लागू किया गया.

साल 1991 का आम चुनाव आचार संहिता के विकास में सब से अहम था. इस में आचार संहिता का विस्तार किया गया. चुनाव आयोग भी इस के पालन के लिए सक्रिय हुआ. उसी साल यह विचार आया कि आचार संहिता उसी दिन से लागू हो जिस दिन तारीखों की घोषणा हो. लेकिन केंद्र सरकार इसे उस दिन से लागू करना चाहती थी जिस दिन अधिसूचना जारी हो. हाई कोर्ट ने मई 1997 में चुनाव की तारीखों की घोषणा से आचार संहिता लागू करने के चुनाव आयोग के कदम को सही ठहराया.

16 अप्रैल 2001 को हुई चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की बैठक में सहमति बनी कि आचार संहिता उसी दिन से लागू होगी जिस दिन चुनाव का कार्यक्रम जारी होगा. इस में यह शर्त भी जोड़ी गई कि चुनाव की तारीखों की घोषणा अधिसूचना जारी होने से 3 हफ्ते से ज्यादा पहले नहीं की जाएगी. नौवें चुनाव आयुक्त टीएन शेशन ने चुनाव आयोग की शक्तियों का एहसास दिलाया. उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग सरकार के अधीन काम करने वाला निकाय नहीं है. उन्होंने आयोग की स्वतंत्रता को सर्वोपरी रखा. इस के लिए वो प्रधानमंत्री के साथ भिड़ने से भी नहीं हिचकिचाए.

चुनाव आचार संहिता से प्रभावित होता है जनजीवन

वैसे तो चुनाव आचार संहिता नेताओं के लिए होती है, लेकिन इस से आम जन जीवन प्रभावित होता है. उत्तर प्रदेश में 13 लाख 29 हजार 584 लाइसेंसधारी है. इस का मतलब यह है कि चुनाव के दौरान यह असलहे थाने में जमा करने पड़ते हैं. यह एक परेशानी भरा काम होता है. लंबे समय तक अपने हथियार थाने में जमा रखने से सुरक्षा का खतरा रहता है. इस के खिलाफ रविशंकर तिवारी और अन्य 4 लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट संख्या (सी) संख्या 2844/2024 दायर की. इस में कोर्ट ने कहा कि सभी को अपने हथियार जमा करने की जरूरत नहीं है. जिन हथियार धारकों से चुनाव में शांति व्यवस्था को खतरा है उन के हथियार ही जमा कराए जाएं.

22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के आदेश के बाद पुलिस ने दागियों की सूची तैयार की है. इन को अपने असलहे 7 दिन के भीतर जमा करवाने होंगे. हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि प्रदेश में लाइसेंसी हथियार रखने वाले सभी लोगों को असलहे नहीं जमा करवाने होंगे.

कोर्ट ने कहा था कि जिस किसी से भी कानून व्यवस्था खराब होने का खतरा होगा उस के लिए स्क्रीनिंग कमेटी बना कर और संबंधित को कारण बता कर असलहा जमा कराने को कहा जा सकता है. अब पुलिस इस काम को कर रही है. जिस से जनता को परेशानी हो रही है.

चुनाव आचार संहिता के दौरान 50 हजार से अधिक का नकद पैसा ले कर चलना मुसीबत को मोल लेने वाला होता है. इस का पूरा हिसाब न दे पाने पर इस को जब्त किया जा सकता है. पुलिस को गाड़ी चेक करने का अधिकार मिल जाता है. इस दौरान पुलिस चुनाव आयोग के आदेश से काम कर सकती है. अगर कोई दोस्त या रिश्तेदार चुनाव लड़ रहा है तो उस के अपने निजी कार्यक्रम में बुलाने से पहले चुनाव आयोग की अनुमति लेनी पड़ती है. इस में यह घोषणा पत्र देना पड़ता है कि चुनाव से संबंधित कोई बात नहीं होगी.

सरकार का निक्कमापन

पहले चुनाव कम समय तक चलते थे तो दिक्कतें कम होती थीं. अब 16 मार्च से 4 जून तक 81 दिन यानि करीब करीब 3 माह का समय चुनाव आचार संहिता में बीतना है. ऐसे में जनता उदासीन हो रही है. जैसेजैसे विज्ञान और टैक्नलौजी का प्रयोग बढ़ रहा है वैसेवैसे चुनाव में समय कम लगना चाहिए. लेकिन भारत में इस का उल्टा हो रहा है. 2014 के बाद से हर चुनाव समय बढ़ता जा रहा है. सरकार का कहना है कि सुरक्षा कारणों से यह समय अधिक लग रहा है.

जनता के चुनाव में पुलिस का काम होना ही नहीं चाहिए. पुलिस एक बहाना है. लंबे चुनाव कार्यक्रम का एक बड़ा कारण यह है कि अब पार्टियों में असरदार नेता कम है. चुनाव प्रचार में उन की प्रमुख भूमिका होती है. नेताओं ने पार्टी तंत्र इसलिए विकसित कर लिया है कि उन का ही प्रभाव रहे दूसरे नेता की पूछ कम हो. लंबे चुनाव प्रचार में वह हर प्रदेश में जा पाएगा.

जो मतदान 1 जून को है उस की मतगणना भी 4 जून को होगी और 19 अप्रैल वाले चुनाव की मतगणना भी 4 जून को होगी. इस से यह साफ है कि चुनाव कम समय में कराए जा सकते हैं. सरकार अपने निक्कमेपन को छिपाने के लिए चुनाव कार्यक्रम को लंबे समय तक कराने के पक्ष में रहती है.
इस चुनाव में गर्मी भी उदासीनता का बड़ा कारण है. आम जनता को यह लग रहा है कि वह वोट किसी को दे सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. अभी चुनाव का पहला चरण भी दूर है चुनावी उदासीनता हावी है. चुनावी बातें केवल मीडिया और नेताओं तक सीमित रह जा रही हैं.

धरी रह गई रामदेव की बाबागीरी, पतंजलि के झूठे दावों वाले विज्ञापन की खुली पोल

पिछले 8 – 10 सालों में भगवान टाइप बनने वाले जो आदमी पैदा हुए हैं रामदेव उन में से एक हैं. योग और आयुर्वेद की आड़ में रामदेव ने देखते ही देखते अरबोंखरबों का साम्राज्य खड़ा कर लिया और साबित कर दिया कि इस देश के लोग घोषित तौर पर मूर्ख हैं जो चमत्कारों के नाम पर तबियत से पैसा लुटाते हैं. लेकिन किस्सा यहीं खत्म नहीं होता बल्कि शुरू होता है कि साल 2010 के बाद जब एकाएक ही हिंदुत्व की आंधी चली और 2014 में राजनीति, कौर्पोरेट और धर्म के घालमेल से एक ऐसे गिरोह का जन्म हुआ, जिस ने राष्ट्रवाद के नाम पर नाना प्रकार के पाखंडों को जम कर भुनाया. सिलसिला अभी भी चालू है सुप्रीम कोर्ट ने तो उस के एक हिस्से पर अपना सख्त रवैया भर दिखाया है जो बेहद जरुरी भी हो चला था.

 

बेहिचक कहा जा सकता है कि पापों का घड़ा भरने वाला मुहावरा यूं ही नहीं गढ़ दिया गया है. पतंजलि के अघोषित मालिक रामदेव अब घुटनों के बल आ गए हैं और जैसे भी हो इस लोकतांत्रिक झंझट से मुक्ति चाहते हैं. लेकिन यह कोई धार्मिक मोक्ष नहीं है जो गंगा में डुबकी लगाने या ब्राह्मण को दान देने से मिल जाएगा. यह एक ठग और अपराधी के प्रति देश की सब से बड़ी अदालत का कानूनी शिकंजा है जिस का मकसद करोड़ों लोगों को भ्रम और चमत्कारों के नाम पर की जा रही ठगी और चार सौ बीसी से बचाना है, नहीं तो केंद्र और भाजपा शासित राज्य सरकारें तो जितना मुमकिन हो सकता था उस से भी ज्यादा रामदेव को सर चढ़ा चुके हैं. जायजनाजायज सहूलियतें और बेशकीमती जमीनें उसे और पतंजलि को कौड़ियों के भाव दान कर चुकी हैं जिस के एवज में रामदेव उन के सनातनी एजेंडे का प्रचार किया करता है.

इस डील और ठगी का खुलासा करने में दिल्ली प्रैस पत्रिकाएं कभी चूकी नहीं हैं. जिन्होंने कभी पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित नहीं किए. इस से रामदेव व्यथित भी रहा और दुखी भी और आक्रोशित भी कि देश में ऐसा भी कोई प्रकाशन संस्थान है जो पत्रकारिता और लेखन के प्रति इतना प्रतिबद्ध और समर्पित है कि अपने सिद्धांतों यानी पाठकों के हित से कोई समझौता न करते करोड़ों के इश्तिहार ठुकरा सकता है. और अगर वह ऐसा कर रहा है तो जाहिर है ठगी की पोल खोलता रहेगा. यह बात रामदेव और उस के समर्थकों को इतनी नागवार गुजरी थी कि अब से कोई 12 साल पहले उन्होंने कहा था कि तुम तो सरिता वाले हो हमारे खिलाफ छापोगे ही.

रामदेव के कुछ समर्थक सरिता के दफ्तर के बाहर ई – 3 झंडेवालान रानी झांसी मार्ग नई दिल्ली -55 के बाहर इकठ्ठे हो कर हायहाय के नारे लगाते भी नजर आए थे. तब बात आईगई हो गई थी लेकिन सरिता अपने मिशन पर काम करती रही और समयसमय पर योग और आयुर्वेद का भांडा फोड़ तर्कों और तथ्यों के आधार पर करती रही. लेकिन उस का कोई पूर्वाग्रह किसी बाबा विशेष के प्रति न तब था न आज है, जब रामदेव अपने गुरुर और भगवान हो जाने की खुशफहमी को कानून के सामने तारतार होते देखने मंजबूर हो चले हैं. वे माफी भी मांग रहे हैं तो एक ठसक और अकड़ के साथ, मानो ऐसा कर अदालत और देश पर कोई एहसान कर रहे हों.

चोरी भी और सीनाजोरी वाली बात जब सुप्रीम कोर्ट को अखरी तो सबकुछ लगभग शीशे की तरह सामने है हालांकि अभी भी बहुत कुछ भगवा परदे के पीछे छिपा भी है जिस के बारे में अंदाजा हर किसी को है. आइए देखते हैं कि आखिर माजरा है क्या.

विवाद है क्या

हालिया फसाद की स्क्रिप्ट जुलाई 2022 में लिखी गई थी जब पतंजलि ने अखबारों में एक इश्तिहार जारी किया था जिस का शीर्षक था – एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां. इस विज्ञापन में एलोपैथी को कई बीमारियों को ठीक करने में नाकाम बताया गया था. मसलन थाइराइड, अस्थमा, लीवर और आंख कान से जुड़ी बीमारियां. रामदेव ने तब यह दावा किया था कि इन बीमारियों को पतंजलि की दवाइयों और योग के जरिए पूरी तरह ठीक किया जा सकता है.

इस के पहले कोविड-19 के दौरान भी 14 जून 2020 को बाबा ने विज्ञापनों के जरिए यह प्रचार किया था कि कोरोना वायरस को उन की कंपनी पतंजलि द्वारा इजाद दवाइयों कोरोनिल और स्वसारी से ठीक और दूर किया जा सकता है. रामदेव ने एक भगवा झूठ तब यह भी बोला था कि उन की उक्त दवाइयों को विश्व स्वास्थ संगठन यानी डब्लूएचओ से मान्यता मिल चुकी है. जब इन दवाइयों को लौंच किया गया था तब मंच पर तत्कालीन स्वास्थ मंत्री डा. हर्षवर्धन सहित दूसरे दिग्गज मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद थे और तालियां पीट रहे थे

यह वह दौर था जब लोग कोरोना की दहशत में थे और जान बचाने के लिए कोई भी कीमत अदा करने तैयार थे. दुनियाभर के वैज्ञानिक और डाक्टर दिनरात एक कर रिसर्च कर रहे थे लेकिन रामदेव रातोंरात एक दुर्लभ खोज कर लाया. तब उस ने यह भी कहा था कि कोरोनिल कोरोना के रोगियों पर दुनिया भर में पहला सफल क्लिनिकल ट्रायल है. इस झुठैले ने तुरंत ही यह भी कहा था कि हमारे पूर्वज ऋषिमुनियों के ज्ञान से यह दवा बनाई गई है.

ऐसा इसलिए कहा था कि उन की दवाइयों पर मच रहा होहल्ला शांत हो, अंधविश्वास फैले और फलेफूले तभी तो लोग अपनी जेब ढीली करेंगे और इस की भरेंगे और यह दिव्य कोरोनिल नाम का जादू बिना किसी अड़ंगे के बिकता रहे जो कि बिका भी.

इस इकलौती दवा से पतंजलि ने कोई 900 करोड़ रुपए का कारोबार किया था. उस दौर में तो कोरोना भगाने वाले लौकेट भी 20-20 रुपए में बिक रहे थे और लोग उन्हें गले में लटकाए यूं घूम रहे थे जैसे रामसे ब्रदर्स की भुतहा फिल्मों में हीरोहीरोइन इसा मसीह वाला क्रास और शंकर का त्रिशूल पहन कर भूत प्रेत और आत्माओं से बचते दिखाई देते थे.

लेकिन यहां रामदेव की मंशा तगड़ा मुनाफा काटने की थी सो उस ने एलोपैथी की सरेआम बुराई और आलोचना शुरू कर दी. वह एलोपैथी डाक्टरों का, दवाइयों का, अस्पतालों और चिकित्सा पद्धति का सरेआम मजाक बनाता रहा और दक्षिणापंथी सरकार यह तमाशा देखते रहने की गलती के साथ उसे शह देने का गुनाह भी करती रही. बात सैयां भये कोतवाल अब डर काहे का सरीखी थी भी.

लेकिन आईएमए यानी इंडियन मैडिकल एशोसियेशन नहीं डरा. उस ने अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और पतंजलि के खिलाफ एक याचका दायर कर दी. आईएमए ने अपनी याचिका में कहा कि पतंजलि के दावे औषधि एवं जादुई उपचार अधिनियम 1954 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 का उल्लंघन करते हैं.

चोरी ऊपर से सीना जोरी

अदालत ने नवम्बर 2023 में पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों पर अस्थायी रोक लगाने का आदेश जारी किया जिस पर पतंजलि ने सहमति जताई थी लेकिन चंद दिनों बाद ही ये विज्ञापन फिर शुरू हो गए. कैसे रामदेव सरेआम अदालत के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहा था यह बात तब भी साबित हुई थी जब उसे कोर्ट ने मीडिया में बयानबाजी करने से मना किया था लेकिन इस आदेश के दूसरे ही दिन प्रैस कांफ्रेसों के शौकीन रामदेव ने एक और प्रैस कांफ्रेंस कर डाली.

भ्रमित करने वाले और झूठे विज्ञापनों पर भी रामदेव के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 188, 269, और 504 के तहत मामला दर्ज हुआ था. बीमारियों के इलाज के लिए भ्रमित करने वाले विज्ञापनों को ले कर सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के मैनेजर को 27 फरवरी 2024 को अवमानना नोटिस भेजते जवाव मांगा था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. फिर 21 नवम्बर की सुनवाई के दौरान पतंजलि आयुर्वेद के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि हम यानी उस के मुवक्किल भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेंगे. यह आश्वासन भी वकील ने दिया था कि मीडिया में कोई बयान नहीं दिया जाएगा. अदालत ने यह आश्वासन अपने आदेश में दर्ज किए हैं.

बात यहीं खत्म नहीं हुई. 21 नवम्बर को ही जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने पतंजलि के एमडी आचार्य रामकृष्ण को नोटिस का जवाब न देने पर एतराज जताया. सख्त रवैया अपनाते पीठ ने वही किया जो इन अड़ियल लोगों के साथ किया जाना जरुरी हो गया था.

हलके में लेने की भूल

सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को भी नोटिस जारी कर अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की बात कही. इस पर देशभर के जागरूक वकील और कानून से जुड़े लोगों को यह समझ आ गया कि अब रामदेव वाकई में फसने वाले हैं, जो अब तक कोर्ट को बहुत हल्के में लेते उसे गांव में पीपल के पेड़ के नीचे लगने वली पंचायत के तौर पर देखने और समझने से ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे थे.

जाहिर है दौलत और शोहरत के नशे में चूर रामदेव एंड ठग कम्पनी को लग यह रहा था कि कुछ नहीं होने जाने वाला. देश भर की अदालतों में ऐसे करोड़ों मुकदमे घिसट रहे हैं जो वादी प्रतिवादी के गैर हाजिर रहने पर क्लर्क की टेबल पर ही दम तोड़ देते हैं और हजार पांचसौ रुपए में तारीखें लगती रहती हैं पेशियां बढ़ती रहती हैं. ऐसे में खामोख्वाह स्ट्रैस लेने की कोई तुक नहीं इस से धंधा खराब होता है और ज्यादा कुछ होगा तो थोड़ामोड़ा जुरमाना लगेगा जो वकील के हाथों जमा करवा कर फिर एक प्रैस कांफ्रेंस कर लेंगे. खुदा न खास्ता अगर और भी ज्यादा कुछ हुआ जैसा कि वकील कह रहे हैं तो मुंह फाड़ कर माफी मांग लेंगे. उस में अपना क्या जाता है अपन तो व्यापारी हैं झुक कर काम निकाल लेंगे और खुद भी इस झंझट से निकल लेंगे.

बीती 2 अप्रैल की पेशी के दौरान रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के ये शेख चिल्ली टाइप मंसूबे धरे रह गए. इस दिन अदालत ने रामदेव का माफीनामा स्वीकार करने से साफ मना कर दिया. 10 अप्रैल की सुनवाई में जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि ‘इन लोगों ने तीनतीन बार हमारे आदेशों की अनदेखी की है. इन्हें अपनी इस गलती का नतीजा तो भुगतना ही पड़ेगा.’ उन्होंने साफतौर पर कहा कि ‘आप हलफनामे में धोखाधडी कर रहे हैं. इसे किस ने तैयार किया.’

जस्टिस हिमा कोहली ने भी फटकार लगाई कि आप को ऐसा हलफनामा नहीं देना चाहिए था. अब रामदेव के वकील मुकुल रोहतगी को काफी कुछ समझ आ गया था, सो वे बोले ‘हम से चूक हुई है.’ इस हलफनामे में बड़ी मासूमियत दिखाते कोर्ट के नवम्बर 2023 के आदेशों का शब्दशः पालन करने की बात कही गई थी. लेकिन अदालत इस बात पर भी खफा थी रामदेव ने 30 मार्च को विदेश यात्रा का झूठा बहाना पेश होने से बचने के लिए बनाया और इस बाबत झूठे टिकट नत्थी किए.

हास्यास्पद बात यह भी रही कि रामदेव ने अपना हलफनामा मीडिया में जारी कर दिया मानो फैसला उसे करना है कोर्ट को नहीं. इस हरकत पर भी उन्हें कोर्ट ने फटकार लगाई कि वे प्रचार में विश्वास रखते हैं.

गलती उत्तराखंड सरकार की भी

चूक बहुत छोटा शब्द है. अदालत ने कहा हम इस को जानबूझकर कोर्ट के आदेश की अवहेलना मान रहे हैं. वैसे भी हम इस पर फैसला करेंगे. हम इस पर उदार नहीं होना चाहते. ये केवल कागज का एक टुकड़ा है. हम अंधे नहीं हैं. हमें सब दिखता है. बचाव की आखिरी कोशिश करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि लोगों से गलतियां होती हैं. इस पर कोर्ट ने कहा, फिर गलतियां करने वालों को भुगतना भी पड़ता है. फिर उन्हें तकलीफ उठाना पड़ती है.

तो आयुर्वेदिक दवाओं के साथसाथ योग से भी लोगों के रोग और कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने का दम भरने वाले रामदेव की कठिनाइयां शुरू हो गई हैं. 16 अप्रैल की सुनवाई में अदालत का रुख यही रहा तो रामदेव एंड कंपनी को भुगतने तैयार रहना चाहिए. काफी कुछ भुगतना तो उत्तराखंड सरकार के लाइसैंसिंग प्राधिकरण के मुलाजिमों को भी पड़ रहा है जिन्हें अदालत ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, “उत्तराखंड सरकार बताए कि ड्रग इंस्पैक्टर और लाइसैंसिंग अफसर पर क्या कार्रवाई की गई. ऐसा 6 बार हुआ कि लाइसैंसिंग इंस्पैक्टर आंखे मुंदे बैठे रहे. उन्होंने दिव्य फार्मेसी पर न कार्रवाई की और न ही रिपोर्ट बनाई. तीनों अधिकारियों को निलम्बित किया जाए.”

इतना सुनते ही ये अधिकारी भरी अदालत में हाथ जोड़ कर माफी मांगते नजर आए लेकिन अदालत पसीजी नहीं बल्कि उस ने इन अफसरों की जानबूझ कर की गई लापरवाही और मिलीभगत पर भी जम कर फटकार लगाई और अगली तारीख पर सभी को पेश होने का हुक्म दिया. यानी यह इंटरवल है. पिक्चर अभी खत्म नहीं हुई है. यह देखना कम दिलचस्प नहीं होगा कि इस का दि एंड क्या और कैसा होगा.

कार्रवाई के दौरान अदालत ने उत्तराखंड सरकार पर सख्त होते एक दिलचस्प बात प्रसंगवश अंगरेजी में यह कही कि हम चीर देंगे. गौरतलब है कि 90 के दशक में यह नारा कट्टर हिंदूवादियों द्वारा खूब इस्तेमाल किया गया था कि दूध मांगोगे तो खीर देंगे कश्मीर मांगोगे तो चीर देंगे. चीरने का एक और प्रसंग महाभारत की लड़ाई में मिलता है जब भीम ने दो कौरवों दुर्योधन और दुशासन को बड़ी बेरहमी से चीर कर मार डाला था.

बिहार की पतवार संभालने की कोशिश में लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती

Sarita-Election-2024-01 (1)

Loksabha Election 2024: इस लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी ने बिहार में 6 महिला उम्मीदवार उतारे हैं जबकि भाजपा ने बिहार में एक भी महिला को अवसर नहीं दिया. राजद की लिस्ट में बिहार की कुल 22 सीटों पर जिन 6 महिला उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया गया है उन में लालू यादव की दोनों बेटियों के नाम भी शामिल हैं. इस में रोहिणी आचार्य को सारण से तो मीसा भारती को पाटलिपुत्र से उम्मीदवार बनाया गया है. बीजेपी ने मीसा के खिलाफ पाटलिपुत्र से राम कृपाल यादव को उम्मीदवार बनाया है जो पिछली दफा मीसा को शिकस्त दे चुके हैं.

मीसा भारती आरजेडी से राज्यसभा सांसद हैं. वह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की सब से बड़ी बेटी हैं. उन का जन्म तब हुआ जब देश में इमरजैंसी लगी थी. उस समय MISA यानी मेंटेनेंस औफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट लगा था. लालू ने इसी के नाम पर अपनी बेटी का नाम मीसा रखा था. 1976 में जन्मी मीसा पेशे से डाक्टर हैं. उन्होंने पटना के पीएमसीएच से एमबीबीएस की पढ़ाई की. मीसा भारती पटना मैडिकल कौलेज की बैडमिंटन चैंपियन रह चुकी हैं.

यह भी पढ़ें- जानिए सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी के बारे में, जिन्हें भाजपा ने नई दिल्ली सीट से प्रत्याशी बनाया है

मीसा पहली बार खबरों में तब आई थी जब उन्होंने पटना मैडिकल कालेज एंड हौस्पिटल में एमबीबीएस में दाखिला मिला. तब ये आरोप लगे थे कि लालू प्रसाद यादव ने ये एडमिशन अपनी पहुंच के आधार पर करवाया. मामला तब भी सुर्खियों में आया जब मीसा भारती ने एमबीबीएस में टौप किया. लालू के राजनीतिक विरोधी ये कहते रहे कि मीसा कभी भी पढ़ाई में अच्छीा नहीं रहीं. इसलिए उन का टौप करना संदेह के घेरे में है.

मीसा तब भी खबरों में रहीं जब 1999 में उन्होंने शैलेश कुमार नाम के कंप्यूटर इंजीनियर से शादी की थी. उस समय शादी पर हुए खर्च पर भी विवाद उठा था.

कुछ समय पहले मीसा ने कहा था कि वे डाक्टरी की प्रैक्टिस इसलिए नहीं कर सकीं क्योंकि पढ़ाई के बाद उन की शादी हो गई थी और दोनों के बीच समन्वय बिठाना उन के लिए आसान नहीं होता. उन की 2 बेटियों और एक बेटा है.

मीसा भारती सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं. उन के पोस्ट नरेंद्र मोदी सरकार पर हमले से भरे होते हैं. मीसा के मुताबिक राजनीति में वे अपने पिता के कारण नहीं बल्कि अपनी मर्जी से आई हैं.

राजनीतिक कैरियर

मीसा ने अधिक-से-अधिक गरीबों की सेवा की भावना को ले कर राजनीति में प्रवेश किया. मीसा का राजनीतिक कैरियर का ग्राफ अभी बहुत ऊंचा नहीं है मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह हमेशा एक्टिव रही हैं. वर्ष 2010 के विधान सभा चुनाव में मीसा भारती राजनीति में सक्रिय हुईं. पार्टी नेताओं व प्रत्याशियों के समर्थन में सभाओं में शामिल हुईं. युवा नेता के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र से राजद की प्रत्याशी बनी. वह भले ही चुनाव में पराजित हुई लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में उन की एक अलग पहचान बनी. वर्ष 2016 में वह राज्यसभा के लिए चुनी गई. साथ ही वह उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण समिति की सदस्य बनीं. 2017 में विदेश मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दीं.

मीसा ने 2019 में भी पाटलिपुत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन तब भी उन्हें शिकस्त का ही सामना करना पड़ा. साल 2022 में वह फिर से राज्यसभा सांसद बनीं. अब इस लोक सभा चुनाव में वह काफी जोशोखरोश के साथ मैदाने जंग में उतरी हैं.

राबड़ी देवी और लालू प्रसाद यादव अपनी 7 बेटियों में सब से बड़ी मीसा को सब से ज्याोदा लाड़ करते हैं. इस बात को वे टीवी शो में भी कह चुके हैं. शायद यही वजह है कि लालू ने केंद्र की राजनीति में मीसा भारती को अपने उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया. मीसा को राजद के टिकट से राज्यसभा में भेजा गया.

पाटलिपुत्र से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद मीसा भारती ने कहा कि पाटलिपुत्र से केंद्र की जनविरोधी नीति और आमजन के मुद्दों की रक्षा के लिए वह एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरी हैं. केंद्र की जनविरोधी नीति, महंगाई और बेरोजगार के साथ गरीबों और महिलाओं पर अत्याचार बढ़े हैं.

इलैक्टोरल बौंड के माध्यम से सरकार भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रही है. विरोधियों को जेल में डाला जा रहा है, जिस से जनता आहत है और सरकार बदलना चाहती है. जिस के खिलाफ वे आवाज बुलंद करती रहेंगी.

विवादों के घेरे में मीसा

मनी लौन्ड्रिंग मामला

लालू की बेटी मीसा और उन के पति शैलेश पर मनी लौन्ड्रिंग को ले कर आरोप लग चुके हैं. मनी लौन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईडी की छापेमारी की गई है. 8000 करोड़ की ब्लैक मनी को व्हाइट कराने के मामले की जांच चली. आरोपों के मुताबिक मीसा और शैलेश की कंपनी मिशेल में 4 शैल कंपनियों के जरिए पैसा आया था. इसी पैसे से दिल्ली में फार्म हाऊस खरीदा गया था.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कान्फ्रेंस को ले कर हुआ विवाद

इस के पहले मीसा भारती के साथ बड़ा विवाद जुड़ा 2015 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इंडिया कौन्फ्रेंस को ले कर. 7 मार्च 2015 को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंडिया कौन्फ्रेंस हुई थी जिस में मीसा बतौर औडियंस आमंत्रित की गई थीं. लेकिन वहां की डायस पर लैक्चर देती उन की एक तस्वीर भारतीय अखबारों ने इस कैप्शन के साथ छापा कि मीसा ने वहां लैक्चर दिया. इस पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने खंडन जारी किया.

मैडिकल कालेज में टौप करने की कंट्रोवर्सी

इस के पहले मीसा भारती के मैडिकल परीक्षा में टौप करने पर भी सवाल उठे थे. उन्होंने साल 2000 में पटना मैडिकल कालेज से एमबीबीएस किया. वे अपने बैच में टौपर रहीं. तब विपक्ष ने उन के टौप करने पर सवाल उठाए गए थे लेकिन इस पर ज्यादा विवाद नहीं हुआ. मीसा डाक्टर हैं लेकिन उन्हें कभी प्रैक्टिस करते नहीं देखा गया.

गहरी राजनीतिक समझ

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद एवं पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की पुत्री डा. मीसा भारती बेहतरीन वक्ता हैं. वे गहरी राजनीतिक समझ रखती हैं. लालू प्रसाद की मानें तो मीसा सिर्फ उन की बेटी नहीं आंदोलन की बेटी है. मीसा भारती का जन्म ही जेपी आंदोलन के दौरान हुआ था. तब लालू प्रसाद मीसा कानून के तहत जेल में बंद थे.

मीसा को राजनीति विरासत में मिली है. उन्होंने बचपन से ही अपने घर पर बड़ेबड़े राजनीतिज्ञों को राज्य व देश की चिंता करते देखा है. वैसे मीसा ने राजनीति में तब कदम रखा जब लालू प्रसाद और राबड़ी देवी बिहार की सत्ता से बाहर हो गई थीं. मीसा के स्वभाव में संवेदनशीलता, धैर्य और साहस काफी नजर आता है.

मीसा भारती की ताकत की बात की जाए तो वह कुशल वक्ता हैं और राजनीति की गहरी समझ रखती हैं. वह मिलनसार और कुशल संगठनकर्ता हैं. वंचितों और गरीबों के प्रति सहानुभूति रखती हैं. उन की कमजोरी उन की तुनुकमिजाजी है. वंशवाद से प्रभावित हैं और पार्टी पर अभी आंतरिक पकड़ नहीं है.

डा. मीसा भारती ने अपने एक भाषण में कहा कि शोषितों, वंचितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों और समाज के सभी वर्गों के मानसम्मान और उन को भागीदारी देने में राष्ट्रीय जनता दल हमेशा आगे रही है. इस बार केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों, महंगाई, गरीबों के साथ अन्याय, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार में भाजपा नेताओं की संलिप्तता तथा उन के साथ न्याय नहीं होने के कारण महिलाओं में जो गुस्सा है वो स्पष्ट रूप से दिख रहा है.

इन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार गरीबों तथा किसानों के साथ न्याय नहीं कर रही है और उन्हें सड़कों पर खड़ा कर दी है. केन्द्र सरकार विपक्षी दलों की आवाज को बंद करने के लिए लगातार साजिश कर रही है, जबकि इलैक्टोरल बौंड के माध्यम से भ्रष्टाचार को किस तरह से बढ़ावा दिया जा रहा है इस पर चुप्पी साध ली है. इस बार मुद्दों के आधार पर जनता के बीच जाएंगे और जनता को केंद्र सरकार की जनविरोधी और आम लोगों को परेशान करने वाली नीतियों से अवगत कराएंगे.

मीसा भारती अपने कामों के लिए जानी जाती हैं. वह बिहार के ग्रामीण इलाकों में लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण, बालिका शिक्षा, महिलाओं के खिलाफ अपराध, राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और नीतिगत मामलों में भी दिलचस्पी लेती हैं. वे देशों के यात्रा-वृत्तांतों, इतिहास और संस्कृति और भू-राजनीति में भी रुचि रखती है.

मजबूत हो रहे हैं औरतों के हक, बढ़ रहे हैं तलाक के मामले

जैसेजैसे औरतें शिक्षित हुईं, नौकरी में आगे बढ़ीं, उन्हें अपने खिलाफ होने वाली गलत बातों पर आवाज उठाना भी आने लगा. आर्थिक मजबूती इंसान में हिम्मत लाती है. यही औरतों के साथ भी हुआ. अब पति की मारपीट व गालियां जब बरदाश्त नहीं होतीं तो वे तलाक का रास्ता अपनाने से गुरेज नहीं करतीं. पतिपत्नी के बीच होने वाले ?ागड़ों के

मुकदमे देशभर की अदालतों में तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते 3 वर्षों में करीब सवा 3 लाख से अधिक मुकदमे अदालतों में दाखिल हुए हैं. तेजी से निबटारे के बावजूद पारिवारिक विवाद के लंबित मामले घट नहीं रहे हैं. अब तो पतिपत्नी छोटीछोटी बातों को ले कर भी अदालतों में पहुंचने लगे हैं. वर्ष 2021 में देश की पारिवारिक अदालतों में 4,97,447 मामले घरेलू विवाद के दाखिल हुए थे. वर्ष 2022 में 7,27,587 मामले दाखिल हुए जबकि 2023 में यह संख्या बढ़ कर 8,25,502 हो गई.

हाल ही में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में पारिवारिक विवादों से जुड़े आंकड़े प्रस्तुत किए हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक अदालतों द्वारा मुकदमों के अधिक निबटारे के बावजूद लंबित मामले बढ़ रहे हैं क्योंकि नए मामले अधिक दाखिल हो रहे हैं. इस की वजह पतिपत्नी के बीच अहंकार को बताया जा रहा है. हालांकि यह सिर्फ अहंकार का मामला नहीं है. इस के पीछे कई अन्य वजहें हैं. देश की राजधानी दिल्ली में हर साल 8 से 9 हजार तलाक के मामले आते हैं, जो देश में सब से ज्यादा हैं. इस के बाद मुंबई और बेंगलुरु है, जहां 4 से 5 हजार तलाक के मामले हर वर्ष दर्ज होते हैं. इस समय भारत में 812 पारिवारिक अदालतें कार्यरत हैं. इन में 11 लाख से अधिक मामले लंबित हैं.

इन मामलों में घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, तलाक, बच्चों की कस्टडी, दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना, किसी भी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति की घोषणा, वैवाहिक संपत्ति का मामला, गुजाराभत्ता, पतिपत्नी में विवाद होने पर बच्चों से मिलने के अधिकार से संबंधित मामले और बच्चों के संरक्षण से जुड़े मामलों की सुनवाई शामिल हैं. सब से अधिक दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और तलाक के मामले दर्ज होते हैं. भले ही भारत में पारिवारिक विवाद के मामले बढ़े हैं लेकिन अभी भी दुनियाभर में सब से कम तलाक भारत में होते हैं. भारत में रिश्ते ज्यादा चलने की वजह पितृसत्तात्मक व्यवस्था, औरतों की पुरुषों पर निर्भरता और धार्मिक-सांस्कृतिक पहलू जिम्मेदार हैं.

इन में परिवार के साथ चलने पर ज्यादा जोर दिया जाता है. इस के अलावा बड़ी संख्या में मामले ऐसे भी हैं जो कानूनी प्रक्रिया में नहीं जाते और खुद पतिपत्नी ही अलग रहने लगते हैं. इस के चलते सही आंकड़ा सामने नहीं आ पाता. दुनियाभर में तलाक को ले कर शोध करने वाली एक निजी वैबसाइट के अनुसार पूरी दुनिया में तलाक की सब से कम दर भारत में लगभग एक फीसदी है, जबकि सब से अधिक तलाक मालदीव में 5.52 फीसदी होते हैं.विवाह के नाम पर गुलामी पश्चिमी देशों में स्त्रीपुरुष को साथ रहने और शारीरिक संबंध बनाने के लिए विवाह करना आवश्यक नहीं है. उन की संस्कृति में स्त्री विवाह कर के भी बच्चा पैदा कर सकती है और बिना विवाह के भी मां बन सकती है. बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी वह उठा सकती है तो वह उठाती है वरना उस का पार्टनर उठाता है या दोनों मिल कर

उठाते हैं या फिर सरकार उठाती है. सैक्स सुख या बच्चे कराने के लिए वैवाहिक गुलामी ओढ़ना जरूरी नहीं है.स्त्रियां पढ़ीलिखी और अच्छे पदों पर कार्यरत हैं. वे आर्थिक रूप से किसी पुरुष पर निर्भर नहीं हैं. मातापिता, सासससुर के फैसलों और दबावों से मुक्त अपने जीवन के फैसले लेने के लिए वे स्वतंत्र हैं. पार्टनर के साथ उस की अच्छी बन रही है तो दोनों एक छत के नीचे रहते हैं. जब विचार नहीं मिलते तो दोनों आराम से अलग हो जाते हैं. धर्म ने स्त्रियों को अनेकानेक नियमों में जकड़ कर स्वतंत्र रूप से विचार करने, बोलने या कोई कदम उठाने लायक नहीं रखा. स्त्री आर्थिक रूप से हमेशा पुरुष पर आश्रित रही, लिहाजा पति से न बनने के बावजूद सदियों तक औरत विवाह

संस्था से बाहर नहीं निकल पाई. वह घर में पिटती रही, गालियां खाती रही, नौकरानी की तरह घर के कामों में खटती रही, मशीन बन कर बच्चे पैदा करती रही मगर शादी को तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाई. तोड़ कर जाती भी कहां? जिस समाज में लड़की को विदाई के वक्त यह कहा जाता रहा कि आज से पति का घर ही उस का घर है, वहां से अब उस की अर्थी ही उठेगी तो ऐसा समाज उस स्त्री को कैसे बरदाश्त करता जो पति से अलग रहने निकली हो या जिस ने तलाक लिया हो? हालांकि जैसेजैसे औरतें शिक्षित हुईं, नौकरी या व्यवसाय में आगे बढ़ीं, उन्हें अपने खिलाफ होने वाली गलत बातों पर आवाज उठाना भी आने लगा.

आर्थिक मजबूती इंसान में हिम्मत लाती है. यही औरतों के साथ भी हुआ. अब पति की मारपीट व गालियां जब बरदाश्त नहीं होतीं तो वे तलाक का रास्ता अपनाने से गुरेज नहीं करतीं. मायके वालों ने नहीं अपनाया तो वे अकेले भी रह लेती हैं. पहले पत्नी से नहीं बनती थी तो पति बाहरी औरतों से रिश्ते बना लेता था. पत्नी रोतीकलपती रहती, घुटघुट कर जीती, पति पर कोई असर न होता. मगर आज नौकरीपेशा पत्नी ऐसे पति को लात मार कर न सिर्फ उस से अलग हो जाती है बल्कि अनेक मुकदमों में उस की गरदन फंसा कर सालों कोर्ट में घसीटती है. पहले संयुक्त परिवार में रहने पर धर्म-संस्कार और सामाजिक इज्जत के नाम पर पति द्वारा त्यागी और दुत्कारी गई औरत को भी ससुराल में ही बने रहने पर मजबूर किया जाता था.

अब ऐसा नहीं है. संयुक्त परिवार टूट चुके हैं. एकल परिवारों में ज्यादा से ज्यादा सासससुर ही कुछ दबाव बनाते हैं, परंतु पतिपत्नी में अगर ज्यादा मतभेद और लड़ाइयां होती हैं तो वे भी पीछे हट जाते हैं, बल्कि अलग होने की सलाह दे देते हैं. पतिपत्नी में मतभेद और मनभेद की अनेक वजहें हैं. सिर्फ औरत का आर्थिक रूप से मजबूत होना या अपने निर्णय स्वयं करना ही वजह नहीं है. अगर पति का आचरण ठीक है तो आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ी स्त्री अपने परिवार को हरगिज तोड़ना नहीं चाहती है.

आइए देखें ऐसी कौन सी वजहें हैं जो एक औरत को रिश्ता तोड़ने के लिए मजबूर करती हैं- चीटिंग रिलेशनशिप और शादी के बाद लोगों का चीट किया जाना बेहद दुखद होता है. तलाक के कई मामले ऐसे होते हैं जिन में पति या पत्नी में से किसी ने चीट किया. कोई बात छिपाई या बाहर अन्य से रिश्ता बनाया. ऐसे में पार्टनर द्वारा तलाक की पहल की जाती है. आजकल शादी के बाद भी दूसरी जगह अफेयर के कारण तलाक के मामले बढ़े हैं. इसलिए जरूरी है कि पतिपत्नी दोनों को अपने पार्टनर के प्रति ईमानदार रहना चाहिए.मानसिक स्थिति सही न होनाकई बार अरेंज मैरिज में यह देखा गया है कि पति या पत्नी की मानसिक स्थिति सही नहीं रहती है. अरेंज मैरिज में घर वालों द्वारा शादी करवाने के बाद पता चलता है कि पार्टनर मानसिक रूप से कमजोर है जिस की वजह से वह कई तरह के गलत क्रियाकलाप करता है जिस के कारण तलाक की स्थिति बन जाती है.

धार्मिक मतभेद होनाआजकल दूसरे धर्म में शादी के कारण भी तलाक के मामलों में वृद्धि देखने को मिली है. कई बार यह देखा गया है कि प्रेम में पड़ कर दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी तो कर ली मगर बाद में दूसरे के घर में होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों से तारतम्य नहीं बिठा पाए. कभीकभी दूसरे धर्म में शादी करने के बाद पार्टनर पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जाता है. ऐसे में हमेशा एकदूसरे के धर्म को ले कर बहस बनी रहती है, जिस के कारण आगे चल कर साथ रहना मुश्किल हो जाता है और आखिरकार तलाक की नौबत आ जाती है.मानसिक व्यवहारशादी के बाद मानसिक व्यवहार बहुत माने रखता है. कई मामलों में देखा गया है कि पति या पत्नी अपने पार्टनर को ले कर बेहद पजेसिव रहते हैं.

वे उन पर दिनभर शक करते हैं. उन के हर काम में हस्तक्षेप करते हैं. वे औफिस में हों या अपने बौस के साथ हों, उन के पार्टनर को हर बात जाननी रहती है. इस कारण आगे चल कर दोनों के बीच खटास पैदा होने लगती है और धीरेधीरे रिश्तों में दूरी बन जाती है.शराब का सेवननशे को नाश का कारण माना जाता है. कई मामलों में देखा गया है कि शराब के सेवन के कारण तलाक की नौबत आ जाती है. अधिकांश औरतों को नशेड़ी पति के साथ असुरक्षा की भावना रहती है. महिला को लगता है कि वह सारी जमापूंजी शराब में उड़ा देगा. ऐसे में अपने और बच्चों के भविष्य के लिए नशेड़ी आदमी से दूर होने में ही भलाई नजर आती है. सासससुर का बहू से गलत व्यवहार जिन घरों में बहू अपने सासससुर के साथ रहती है वहां अकसर सास बहू के बीच ?ागड़े होते रहते हैं. बहू के आने के बाद अकसर सास में असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है.

वह अपनी स्थिति मजबूत रखने के चक्कर में बहू को अपने हुक्म का गुलाम बनाने की कोशिश में लग जाती है. हर काम में उस की गलतियां निकालती है. कहींकहीं तो सास का रूखा व्यवहारबहू के लिए बड़ा मानसिक कष्ट बन जाता है. कहींकहीं सासें बहूबेटे के बीच लड़ाइयां करवा देती हैं. अगर बहू कमाऊ है तो वह सास के तानेउलाहने बरदाश्त नहीं करती. अगर उस का पति अपनी मां की साइड लेता है तो बहू तुरंत उस को न सिर्फ तलाक का नोटिस थमा देती है बल्कि घरेलू हिंसा और दहेज के मामले में पूरे परिवार को फंसा भी देती है.

हुस्न का बदला: क्या प्रदीप वापस आया?

शीला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. पिछले एक महीने से वह परेशान थी. कालेज बंद होने वाले थे. प्रदीप सैमेस्टर का इम्तिहान देने के बाद यह कह कर गया था, ‘मैं तुम्हें पैसों का इंतजाम कर के 1-2 दिन बाद दे दूंगा. तुम निश्चिंत रहो. घबराने की कोई बात नहीं.’

‘पर है कहां वह?’ यह सवाल शीला को परेशान कर रहा था. उस की और प्रदीप की पहचान को अभी सालभर भी नहीं हुआ था कि उस ने उस से शादी का वादा कर उस के साथ…

‘शीला, तुम आज भी मेरी हो, कल भी मेरी रहोगी. मुझ से डरने की क्या जरूरत है? क्या मुझ पर तुम्हें भरोसा नहीं है?’ प्रदीप ने ऐसा कहा था. ‘तुम पर तो मुझे पूरा भरोसा है प्रदीप,’ शीला ने जवाब दिया था. शीला गांव से आ कर शहर के कालेज में एमए की पढ़ाई कर रही थी. यह उस का दूसरा साल था. प्रदीप इसी शहर के एक वकील का बेटा था. वह भी शीला के साथ कालेज में पढ़ाई कर रहा था. ऐयाश प्रदीप ने गांव से आई सीधीसादी शीला को अपने जाल में फंसा लिया था. शीला उसे अपना दोस्त मान कर चल रही थी. उन की दोस्ती अब गहरी हो गई थी. इसी दोस्ती का फायदा उठा कर एक दिन प्रदीप उसे घुमाने के बहाने पिकनिक पर ले गया. फिर वे मिलते, पर सुनसान जगह पर. इस का नतीजा, शीला पेट से हो गई थी. जब शीला को पता चला कि उस के पेट में प्रदीप का बच्चा पल रहा है, तो वह घबरा गई.

बमुश्किल एक क्लिनिक की लेडी डाक्टर 10 हजार रुपए में बच्चा गिराने को तैयार हुई. डाक्टर ने कहा कि रुपयों का इंतजाम 2 दिन में ही करना होगा. इधर प्रदीप को ढूंढ़तेढूंढ़ते शीला को एक हफ्ते का समय बीत गया, पर वह नहीं मिला. शीला ने उस का घर भी नहीं देखा था. प्रदीप के दोस्तों से पता करने पर ‘मालूम नहीं’ सुनतेसुनते वह परेशान हो गई थी. शीला ने सोचा कि क्यों न घर जा कर कालेज में पैसे जमा करने के नाम पर पिता से रुपए मांगे जाएं. सोच कर वह घर आ गई. उस की बातचीत के ढंग से पिता ने अपनी जमीन गिरवी रख कर शीला को 10 हजार रुपए ला कर दे दिए. वह रुपए ले कर ट्रेन से शहर लौट आई. टे्रन के प्लेटफार्म पर रुकते ही शीला ने जब अपने सूटकेस को सीट के नीचे नहीं पाया, तो वह घबरा गई. काफी खोजबीन की गई, पर सूटकेस गायब था. वह चीख मार कर रो पड़ी.

शीला गायब बैग की शिकायत करने रेलवे पुलिस के पास गई, पर पुलिस का रवैया ढीलाढाला रहा. अचानक पीछे से किसी ने शीला को आवाज दी. वह उस के बचपन की सहेली सुधा थी.

‘‘अरे शीला, पहचाना मुझे? मैं सुधा, तेरी बचपन की सहेली.’’

वे दोनों गले लग गईं.

‘‘कहां से आ रही है?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘घर से,’’ शीला बोली.

‘‘तू कुछ परेशान सी नजर आ रही है. क्या बात है?’’ सुधा ने पूछा.

शीला ने उस पर जो गुजरी थी, सारी बात बता दी. ‘‘बस, इतनी सी बात है. चल मेरे साथ. घर से तुझे 10 हजार रुपए देती हूं. बाद में मुझे वापस कर देना.’’ सुधा उसी आटोरिकशा से शीला को अपने घर ले कर पहुंची. शीला ने जब सुधा का शानदार घर देखा, तो हैरान रह गई.

‘‘सुधा, तुम्हारा झोंपड़पट्टी वाला घर? तुम्हारी मां अब कहां हैं?’’ शीला ने सवाल थोड़ा घबरा कर किया. ‘‘वह सब भूल जा. मां नहीं रहीं. मैं अकेली हूं. एक दफ्तर में काम करती हूं. और कुछ पूछना है तुझे?’’ सुधा ने कहा, ‘‘ले नाश्ता कर ले. मुझे जरूरी काम है. तू रुपए ले कर जा. अपना काम कर, फिर लौटा देना… समझी?’’ कह कर सुधा मुसकरा दी. शीला रुपए ले कर घर लौट आई. अगले दिन जैसे ही शीला आटोरिकशा से डाक्टर के क्लिनिक पर पहुंची, तो वहां ताला लगा था. पूछने पर पता चला कि डाक्टर बाहर गई हैं और 2 महीने बाद आएंगी. शीला निराश हो कर घर आ गई. उस ने एक हफ्ते तक शहर के क्लिनिकों पर कोशिश की, पर कोई इस काम के लिए तैयार नहीं हुआ. हार कर शीला सुधा के घर रुपए वापस करने पहुंची.

‘‘मैं पैसे वापस कर रही हूं. मेरा काम नहीं हुआ,’’ कह कर शीला रो पड़ी.

‘‘अरे, ऐसा कौन सा काम है, जो नहीं हुआ? मुझे बता, मैं करवा दूंगी. मैं तेरी आंख में आंसू नहीं देख सकती,’’ सुधा ने कहा.

शीला ने सबकुछ सचसच बता दिया. ‘‘तू चिंता मत कर. मैं सारा काम कर दूंगी. मुझ पर यकीन कर,’’ सुधा ने कहा. और फिर सुधा ने शीला का बच्चा गिरवा दिया. डाक्टर ने उसे 15 दिन आराम करने की सलाह दी.

शीला बारबार कहती, ‘‘सुधा, तुम ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है. यह एहसान मैं कैसे चुका पाऊंगी?’’

‘‘तुम मेरे पास ही रहो. मैं अकेली हूं. मेरे रहते तुम्हें कौन सी चिंता?’’ शीला अपना मकान छोड़ कर सुधा के घर आ गई. शीला को सुधा के पास रहते हुए तकरीबन 6 महीने बीत गए. पिता की बीमारी की खबर पा कर वह गांव चली आई. पिता ने गिरवी रखी जमीन की बात शीला से की. शीला ने जमीन वापस लेने का भरोसा दिलाया. जब शीला सुधा के पास आई, तो उस ने सुधा से कहा, ‘‘मुझे कहीं नौकरी पर लगवा दो. मैं कब तक तुम्हारा बोझ बनी रहूंगी? मुझे भी खाली बैठना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘ठीक है. मैं कोशिश करती हूं,’’ सुधा ने कहाएक दिन सुधा ने शीला से कहा, ‘‘सुनो शीला, मैं ने तुम्हारी नौकरी की बात की थी, पर…’’ कह कर सुधा चुप हो गई.

‘‘पर क्या? कहो सुधा, क्या बात है बताओ मुझे? मैं नौकरी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ सुधा मन ही मन खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘ऐसा है शीला, तुम्हें अपना जिस्म मेरे बौस को सौंपना होगा, सिर्फ एक रात के लिए. फिर तुम मेरी तरह राज करोगी.’’ शीला ने सोचा कि प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका है. इस से सुधा का एहसान भी पूरा होगा और उस का मकसद भी. शीला ने अपनी रजामंदी दे दी. फिर सुधा के कहे मुताबिक शीला सजसंवर कर बौस के पास पहुंच गई. बौस के साथ रात बिता कर वह घर आ गई. साथ में सौसौ के 20 नोट भी लाई थी. और फिर यह खेल चल पड़ा. दिन में थोड़ाबहुत दफ्तर का काम और रात में ऐयाशी. अब शीला भी आंखों पर रंगीन चश्मा, जींसशर्ट, महंगे जूते, मुंह पर कपड़ा लपेटे गुनाहों की दुनिया की बेताज बादशाह बन गई थी.

कालेज के बिगड़ैल लड़के, अमीर कारोबारी, सफेदपोश नेता सभी शीला के कब्जे में थे. एक दिन शीला ने सुधा से कहा, ‘‘दीदी, मुझे लगता है कि अमीरों ने फरेब की दुकान सजा रखी है…’’ इतने में सुधा के पास फोन आया.

‘‘कौन?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘मैडम, मैं प्रदीप… मुझे शाम को…’’

‘‘ठीक है. 10 हजार रुपए लगेंगे. एक रात के… बोलो?’’

‘‘ठीक है,’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘कौन है?’’ शीला ने पूछा.

‘‘कोई प्रदीप है. उसे एक रात के लिए लड़की चाहिए.’’ शीला ने दिमाग पर जोर डाला. कहीं यह वही प्रदीप तो नहीं, जिस ने उस की जिंदगी को बरबाद किया था.

‘‘दीदी, मैं जाऊंगी उस के पास,’’ शीला ने कहा.

‘‘ठीक है, चली जाना,’’ सुधा बोली.

शीला ने ऐसा मेकअप किया कि उसे कोई पहचान न सके. दुपट्टे से मुंह ढक कर चश्मा लगाया और होटल पहुंच गई. शीला ने एक कमरा पहले से ही बुक करा रखा था, ताकि वही प्रदीप हो, तो वह देह धंधे के बदले अपना बदला चुका सके. प्रदीप नशे में झूमता हुआ होटल पहुंच गया. ‘‘मेरे कमरे में कौन है?’’ प्रदीप ने मैनेजर से पूछा. ‘‘वहां एक मेम साहब बैठी हैं. कह रही हैं कि साहब के आने पर कमरा खाली कर दूंगी. वैसे, यह उन्हीं का कमरा है. होटल के सभी कमरे भरे हैं,’’ कह कर मैनेजर चला गया. प्रदीप ने दरवाजा खोल कर देखा, तो खूबसूरती में लिपटी एक मौडर्न बाला को देख कर हैरान रह गया.

‘‘कमाल का हुस्न है,’’ प्रदीप ने सोफे पर बैठते हुए कहा.

‘‘यह आप का कमरा है?’’

‘‘जी,’’ शीला ने कहा.

‘‘मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘मोना.’’

‘‘आप कपड़े उतारिए और अपना शौक पूरा करें. समय बरबाद न करें. इसे अपना कमरा ही समझिए.’’ इस के बाद शीला ने प्रदीप को अपना जिस्म सौंप दिया. वे दोनों अभी ऐयाशी में डूबे ही थे कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप मुंह ढक कर सोने का बहाना कर के सो गया. शीला ने दरवाजा खोला, तो पुलिस को देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘‘पुलिस…’’ ‘‘प्रदीप साहब, आप के खिलाफ शिकायत मिली है कि आप ने मोना मैडम के कमरे पर जबरदस्ती कब्जा जमा कर उन से बलात्कार किया है. आप को गिरफ्तार किया जाता है,’’ पुलिस ने कहा.

‘‘जी, मैं…’’ यह सुन कर प्रदीप की घिग्घी बंध गई. पुलिस ने जब प्रदीप को गिरफ्तार किया, तो मोना उर्फ शीला जोर से खिलखिला कर हंस उठी और बोली, ‘‘प्रदीपजी, इसे कहते हैं हुस्न का बदला…’’

फोन कौल्स : आखिर कौन था देर रात मीनाक्षी को फोन करने वाला

‘ट्रिंग ट्रिंग… लगा फिर से फोन बजने,‘ फोन की आवाज से पूरा हौल गूंज उठा. आज रात तीसरी बार फोन बजा था. उस समय रात के 2 बज रहे थे. मीनाक्षी गहरी नींद में सो रही थी. उस के पिता विजय बाबू ने फोन उठाया. उस तरफ से कोई नाटकीय अंदाज में पूछ रहा था, ‘‘मीनाक्षी है क्या?’’

‘‘आप कौन?’’ विजय बाबू ने पूछा तो उलटे उधर से भी सवाल दाग दिया गया, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘यह भी खूब रही, तुम ने फोन किया है और उलटे हम से ही पूछ रहे हो कि मैं कौन हूं.’’

‘‘तो यह मीनाक्षी का नंबर नहीं है क्या? मुझे उस से ही बात करनी है, मैं बुड्ढों से बात नहीं करता?’’

‘‘बदतमीज, कौन है तू? मैं अभी पुलिस में तेरी शिकायत करता हूं.’’

‘‘बुड्ढे शांत रह वरना तेरी भी खबर ले लूंगा,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया.

विजय बाबू गुस्से से तिलमिला उठे. उन्हें अपनी बेटी पर बहुत गुस्सा आ रहा था. उन का मन हुआ कि जा कर दोचार थप्पड़ लगा दें मीनाक्षी को.

‘2 दिन से इसी तरह के कई कौल्स आ रहे हैं. पहले ‘हैलोहैलो’ के अलावा और कोई आवाज नहीं आती थी और आज इस तरह की अजीब कौल…’ विजय बाबू सोच में पड़ गए.

मीनाक्षी ने अच्छे नंबरों से 12वीं पास की और एक अच्छे कालेज में बी कौम (औनर्स) में दाखिला लिया था. पहले स्कूल जाने वाली मीनाक्षी अब कालेज गोइंग गर्ल हो गई थी. कालेज में प्रवेश करते ही एक नई रौनक होती है. मीनाक्षी थी भी गजब की खूबसूरत. उस के काफी लड़केलड़कियां दोस्त होंगे, पर ये कैसे दोस्त हैं जो लगातार फोन करते रहते हैं तथा बेतुकी बातें करते हैं.

अगली सुबह जब विजय बाबू चाय की चुसकियां ले रहे थे और उधर मीनाक्षी कालेज के लिए तैयार हो रही थी, तभी विजय बाबू ने मीनाक्षी को बुलाया, ‘‘मीनाक्षी, जरा इधर आना.’’

डरतेडरते वह पिता के सामने आई. उस का शरीर कांप रहा था. वह जानती थी कि पिताजी आधी रात में आने वाली फोन कौल्स के बारे में पूछने वाले हैं क्योंकि परसों रात जो कौल आई थी, मीनाक्षी के फोन उठाते ही उधर से अश्लील बातें शुरू हो गई थीं. वह कौल करने वाला कौन है, उसे क्यों फोन कर रहा है, ये सब उसे कुछ भी मालूम नहीं था. वह बेहद परेशान थी. इस समस्या के बारे में किस से बात की जाए, वह यह भी समझ नहीं पा रही थी.

‘‘कालेज जा रही हो?’’ विजय बाबू ने बेटी से पूछा.

मीनाक्षी ने सिर हिला कर हामी भरी.

‘‘मन लगा कर पढ़ाई हो रही है न?’’

‘‘हां पिताजी,’’ मीनाक्षी ने जवाब दिया.

‘‘कालेज से लौटते वक्त बस आसानी से मिल जाती है न, ज्यादा देर तो

नहीं होती?’’

‘‘हां पिताजी, कालेज के बिलकुल पास ही बस स्टौप है. 5-10 मिनट में बस मिल ही जाती है.’’

‘‘क्लास में न जा कर दोस्तों के साथ इधरउधर घूमने तो नहीं जाती न,’’ मीनाक्षी को गौर से देखते हुए विजय बाबू ने पूछा.

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है पिताजी.’’

‘‘देखो, अगर कोई तुम्हारे साथ गलत व्यवहार करता हो तो मुझे फौरन बताओ, डरो मत. मेरी इज्जतप्रतिष्ठा को जरा भी ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए. मैं इसे कभी बरदाश्त नहीं करूंगा.’’

मीनाक्षी ने ‘ठीक है’, कहते हुए सिर हिलाया. आंखों में भर आए आंसुओं को रोकते हुए वह वहां से जाने लगी.

‘‘मीनाक्षी’’, विजय बाबू ने रोका, मीनाक्षी रुक गई.

‘‘रात को 3 बार तुम्हारे लिए फोन आया. क्या तुम ने किसी को नंबर दिया था?’’

‘‘नहीं पिताजी, मैं ने अपने क्लासमेट्स को वे भी जो मेरे खास दोस्त हैं, को ही अपना नंबर दिया है.’’

‘‘उन खास दोस्तों में लड़के भी हैं क्या?’’ विजय बाबू ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ परिचित जरूर हैं, पर दोस्त नहीं.’’

‘‘ठीक है, अब तुम कालेज जाओ.’’

इस के बाद विजय बाबू ने फोन कौल्स के बारे में ज्यादा नहीं सोचा, ‘कोई आवारा लड़का होगा,’ यह सोच कर निश्चिंत हो गए.

शाम को जब विजय बाबू दफ्तर से लौटे तो मीनाक्षी की मां लक्ष्मी को कुछ परेशान देख उन्होंने इस का कारण पूछा तो वे नाश्ता तैयार करने चली गईं.

दोनों चायबिस्कुट के साथ आराम से बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे, लेकिन विजय बाबू को लक्ष्मी के चेहरे पर कुछ उदासी नजर आई.

‘‘ऐसा लगता है कि तुम किसी बात को ले कर परेशान हो. जरा मुझे भी तो बताओ?’’ विजय बाबू ने अचानक सवाल किया.

‘‘मीनाक्षी के बारे में… वह… फोन कौल…‘‘ लक्ष्मी ने इतना ही कहा कि विजय बाबू सब मामला समझते हुए बोले, ‘‘अच्छा रात की बात? अरे, कोई आवारा होगा. अगर उस ने आज भी कौल की तो फिर पुलिस को इन्फौर्म कर ही देंगे.’’

लक्ष्मी ने सिर हिला कर कहा, ‘‘नहीं. पिछले 2-3 दिन से ही ऐसे कौल्स आ रहे हैं. मैं ने मीनाक्षी को फोन पर दबी आवाज में बातें करते हुए भी देखा है. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने ‘रौंग नंबर‘ कह कर टाल दिया. आज दोपहर में भी फोन आया था. मैं ने उठाया तो उधर से वह अश्लील बातें करने लगा. मुझे तो ऐसा लगता है कि हमारी बेटी जरूर हम से कुछ छिपा रही है.’’

‘‘तुम्हारा क्या सोचना है कि ऐसे लड़के मीनाक्षी के बौयफ्रैंड्स हैं?’’

‘‘कह नहीं सकती. पर क्या बौयफ्रैंड्स ऐसे लफंगे होते हैं. हमारे समय में भी कालेज हुआ करते थे. उस वक्त भी कुछ लड़के असभ्य होते थे. लड़कियां, लड़कों से बातें करने में शरमाती थीं कि कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा. वे तो हमें कीड़ेमकोड़े की तरह दिखते थे.

फिर भी वहां लड़केलड़कियों में डिग्निटी रहती थी.’’

‘‘ऐसे कीड़े तो हर जगह होते हैं लक्ष्मी, जरूरी होता है कि हम उन कीड़ों से कितना बच कर रहते हैं. आज रात अगर फोन कौल आई तो हम इस की खबर पुलिस में करेंगे, तुम भी मीनाक्षी से प्यार से पूछ कर देखो,’’ विजय बाबू ने समझाया.

लक्ष्मी ने गहरी सांस लेते हुए सिर हिला कर हामी भरी और गहरी सोच में डूब गई. जवान होती लड़कियों की समस्याओं के बारे में वे भी जानती थीं. प्रेमपत्र, बदनामी, जाली फोटो, बेचारी लड़कियां न किसी को बता पाती हैं और मन में रख कर ही घुटघुट कर जीती हैं. कुछ कहने पर लोग उलटे उन्हीं पर शक करते हैं. कितनी यातनाएं इन लड़कियों को सहनी पड़ती हैं.

पहले जमाने में लोग लड़कियों को घर से बाहर पढ़ने नहीं भेजते थे बल्कि घरों में ही कैद रखते थे. लोग सोचते थे कि कहीं ऊंचनीच न हो जाए जिस से समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इस से उन के व्यक्तित्व पर कितना बुरा असर पड़ता है, लेकिन अब समय के साथ लोगों की मानसिकता बदली है. लोग बेटियों को भी बेटे के समान ही मानते हैं. उन्हें जीने की पूरी आजादी दे रहे हैं. इस से इस तरह की कई समस्याएं भी सामने आ रही हैं.

लक्ष्मी ने मन ही मन सोचा कि मीनाक्षी को बेकार की बातों से परेशान नहीं करेंगी तथा प्यार से सारी बातें पूछेंगी.

उस रात भी फोन कौल्स आईं. फोन एक बार तो विजय बाबू ने उठाया, फिर लक्ष्मी ने उठाया तो कोई जवाब नहीं आया. जब तीसरी बार फोन आया तो उन दोनों ने मीनाक्षी से फोन उठाने को कहा और उस का हौसला बढ़ाया. मीनाक्षी ने डरतेडरते फोन उठाया. मीनाक्षी बोली, ‘‘मैं तुम्हें बिलकुल नहीं जानती. मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मेरे पीछे पड़े हो. मेरा पीछा छोड़ दोे.’’ यह कह कर वह फफक पड़ी. ‘अभी पूछना सही नहीं होगा,‘ यह सोच मीनाक्षी को चुप करा कर सभी सो गए. पर नींद किसी की आंखों में नहीं थी. अगली सुबह दोनों ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘बेटी, यह क्या झमेला है?’’

मीनाक्षी रोंआसी हो कर बोली, ‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘रात को फोन करने वाले ने तुझ से क्या कहा.’’

‘‘कह रहा था कि मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम बहुत खूबसूरत हो. क्या तुम कल सुबह कालेज के पास वाले पार्क में मिलोगी.’’

‘‘ठीक है, अब तुम निडर हो कर कालेज जाओ. बाकी मैं देखता हूं, इस के बारे में तुम बिलकुल मत सोचो, अब तुम अकेली नहीं, बल्कि तुम्हारे मातापिता भी तुम्हारे साथ हैं.’’

‘‘मीनाक्षी ने हामी भरी और कालेज जाने की तैयारी करने लगी. विजय बाबू सीधे पुलिस स्टेशन गए और वहां उन्होंने शिकायत दर्ज कराई और सारा माजरा बता दिया. इंस्पैक्टर ने उन्हें जल्द कार्यवाही करने की तसल्ली दे कर घर जाने को कहा.’’

2-3 दिन गुजर गए. अगले दिन पुलिस स्टेशन से फोन आया. मीनाक्षी को भी साथ ले कर आने को कहा गया था. विजय बाबू जल्दीजल्दी मीनाक्षी को साथ ले कर थाने पहुंचे.

पुलिस इंस्पैक्टर ने उन्हें बैठने को कहा और कौंस्टेबल को बुला कर उसे कुछ हिदायतें दीं. वह अंदर जा कर एक लड़के के साथ वापस आया.

इंस्पैक्टर ने पूछा, ‘‘क्या आप इस लड़के को जानती हैं?’’

‘‘जी नहीं, मैं इसे नहीं जानती.’’

‘‘मैं बताता हूं, यह कौन है और इस ने क्या किया है.’’ इंस्पैक्टर ने कहना जारी रखा, ‘‘आप अपनी सहेली नीलू को जानती हैं न.’’

‘‘जी हां, मैं उसे बखूबी जानती हूं. वह मेरी कालेज में सब से क्लोज फ्रैंड है.’’

‘‘और यह आप की क्लोज फ्रैंड का सगा भाई नीरज है. यह बहुत आवारा किस्म का इंसान है. यह अपनी बहन नीलू के मोबाइल में आप का फोटो देख कर आप का दीवाना हो गया और फिर उसी के मोबाइल से आप का नंबर ले कर आप को कौल्स करने लगा. इसी तरह यह आप के सिवा और भी कई लड़कियों के नंबर्स नीलू के मोबाइल से ले कर चोरीछिपे उन्हें तंग करता है. इस के खिलाफ कईर् शिकायतें हमें मिलीं हैं. अब यह हमारे हाथ आया है और मैं इस की ऐसी क्लास लूंगा कि यह हमेशा के लिए ऐसी हरकतें करना भूल जाएगा. मैं ने इस के मातापिता तथा नीलू को खबर कर दी है. वे यहां आते ही होंगे.’’

‘‘मैं इस पर केस करना चाहता हूं. इस तरह के अपराधियों को जब सजा मिलेगी तभी ये ऐसी घिनौनी हरकतें करना बंद करेंगे,’’ विजय बाबू ने जोर दे कर कहा.

मीनाक्षी चुपचाप उन की बातें सुन रही थी. वह अंदर ही अंदर उबल रही थी कि 4-5 थप्पड़ जड़ दे उसे.

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘आप का कहना भी सही है पर ऐसे केस जल्दी सुलझते नहीं हैं. बारबार कोेर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं. इन्हें बेल भी चुटकी में मिल जाती है.’’

इतने में नीरज के मातापिता तथा बहन नीलू भी वहां आ पहुंचे. नीलू को देख कर मीनाक्षी उस के गले लिपट कर रोने लगी. नीलू की मां ने नीरज को जा कर 4-5 थप्पड़ जड़ दिए और बोलीं, ‘‘नालायक तुझे इतना भी खयाल नहीं आया कि तेरी भी एक बहन है और बहन की सहेली भी बहन ही तो होती है. इंस्पैक्टर साहब, इसे जो सजा देना चाहते हैं दीजिए.’’

नीरज के पिता, विजय बाबू से विनती कर बोले, ‘‘भाई साहब, इसे माफ कर दीजिए. मैं मानता हूं कि इस ने गलती की है.  इस में इस की उम्र का दोष है. इस उम्र के बच्चे कुछ भी कर बैठते हैं. ये अब ऐसी हरकतें नहीं करेगा. इस की जिम्मेदारी मैं लेता हूं और आप को विश्वास दिलाता हूं कि यह दोबारा ऐसे फोन कौल्स नहीं करेगा.’’ फिर बेटे की तरफ देख कर बोले, ‘‘देखता क्या है जा अंकल से सौरी बोल.’’

नीरज सिर झुका कर विजय बाबू के पास गया और उन के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए अंकल, अब मुझ से ऐसी गलती कभी नहीं होगी. आज से मेरे बारे में कोई शिकायत आप के पास नहीं आएगी,’’ फिर वह मीनाक्षी की ओर मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आई एम वैरी सौरी मीनाक्षी दीदी, प्लीज मुझे माफ कर दो. आज से मैं तुम्हें तो क्या कभी किसी और लड़की को तंग नहीं करूंगा.’’

गुस्से से लाल मीनाक्षी ने सिर उठा कर नीरज की तरफ देखा और फिर सिर हिला दिया.

मेरा बेटा सोशल नेचर का नहीं है, क्या करूं?

सवाल

मैं हाउसवाइफ हूं. मेरा 12 साल का बेटा है. मेरी आदत है कि मैं नातेरिश्तेदारी, अड़ोसपड़ोस सब से अच्छी तरह मेलजोल रखती हूं लेकिन मैं देख रही हूं कि मेरा बेटा बिलकुल भी सोशल नेचर का नहीं है. घर आए रिश्तेदारों से भी ज्यादा बोलता नहीं. लेकिन अपने यारदोस्तों से उस की अच्छी बनती है. घर आए मेहमानों के आगे उस का स्वभाव एकदम बदल जाता है. इस की क्या वजह हो सकती है?

जवाब

जिस बात का जिक्र आप कर रही हैं, आजकल बच्चों में यह देखने को मिल रहा है, पर ऐसा है नहीं. शायद बच्चों का दायरा बदल गया है. वे अपने फ्रैंड्स या हमउम्र लोगों के साथ घंटों टाइम बिता सकते हैं लेकिन घर आए मेहमानों के साथ फौर्मल हायहैलो से ज्यादा नहीं करते और न ही अकसर बच्चे पेरैंट्स के साथ कहीं जाना पसंद करते हैं.

हम पेरैंट्स सोचते हैं कि हम जब इन की उम्र के थे, तब हम तो ऐसा नहीं करते थे. घर आए मेहमानों के बीच बैठते थे, बातें करते थे, खुश होते थे लेकिन हमारे बच्चे ऐसा क्यों नहीं करते, क्यों सोशल नहीं हैं आदिआदि.

देखिए, वक्त बदल गया है. स्थितियां पहले जैसी नहीं रही हैं. बच्चों के पास अपने मनोरंजन के लिए कई साधन हैं, जैसे टीवी, इंटरनैट, वीडियो गेम्स. मोबाइल, सोशल मीडिया. वे इन सब में बिजी रहते हैं. उन्हें किसी दूसरे की ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती. हां, कभी जब इन सब से बोर हो जाते हैं तो अपने यारदोस्तों से बातें कर लेते हैं, उन के साथ घूमफिर लेते हैं. बाद में फिर अपनेआप में मशगूल हो जाते हैं.

हम पेरैंट्स के टाइम में ऐसा कुछ नहीं था. जो कुछ भी था, वह बहुत सीमित था. इस के अलावा ये बातें घर के माहौल पर भी निर्भर करती हैं. फिलहाल आप चाहते हैं कि आप का बच्चा सोशल हो तो शुरुआत कीजिए अपने बच्चे के फ्रैंड्स व पेरैंट्स से. उन्हें अपने घर बुलाइए.  दोतीन बार ऐसी पार्टी, गैटटूगैदर होगी तो वह भी खुशीखुशी आप के साथ उन के घर जाएगा.

वैसे भी बच्चे उम्र बढ़ने के साथ बहुतकुछ देखतेसम?ाते हैं और उन में बदलाव भी आता है. बेटे के साथ ज्यादा से ज्यादा टाइम स्पैंड करने की कोशिश कीजिए. उस के आसपास जो रहा है, उस से संबंधित बातें कीजिए. रिश्तेदारों को घर बुलाइए. सब मिल कर गेम्स खेलिए दिलचस्प माहौल बनाइए. बेटा खुदबखुद सब में इनवौल्व होगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

चुटकी भर सिंदूर-भाग 1 : सुचेता को मायके में क्या दिक्कत हुई ?

सुचेता के चेहरे पर आंसू भी थे और मुसकुराहट भी, न तो आंसू रुकते थे और न ही सुचेता की खुशी कम होती दिखती थी. सातवें आसमान पर चलना क्या होता है, ये कोई 45 वर्षीय सुचेता से पूछे, उस के मोबाइल पर बधाई संदेश लगातार आ रहे थे और उस के फ्लैट में पड़ोसियों का आना जारी था. यह बात अलग थी कि उन बहुत से पड़ोसियों को सुचेता पहली बार देख रही थी. सुचेता अपनी पूरी कोशिश कर रही थी कि कोई भी आने वाला बिना मुंह मीठा किए उस के घर से न जाने पाए, क्योंकि सुचेता के पापा कहा करते थे कि जब घर में कुछ शुभ हो, तो हर आने वाले का मुंह मीठा जरूर कराना चाहिए.

शुभ तो घटा ही था, सुचेता के जीवन में. सुचेता की बेटी अमाया ने यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है. सुचेता के जीवन में इस से पहले कुछ अच्छा हुआ हो, ऐसा तो याद नहीं आता उसे, इसीलिए तो जी भर कर खुश भी नहीं हो पा रही. उस की खुशी में एक सहमापन है, कहीं कोई उस से उस की खुशी छीन न ले, इसलिए बड़ा नापतौल कर अपनी प्रसन्नता को जाहिर कर रही है वह.

सुचेता का साथ और दिशानिर्देश तो था ही, पर अमाया ने अपनी कठोर मेहनत और लगन के चलते यह मुकाम हासिल किया था.

शाम हो चली थी, दिनभर मीडिया के इंटरव्यू हुए थे और रिश्तेदारों के फोन के जवाब देतेदेते सुचेता को थकान होना तो लाजिम ही था, पर मोबाइल स्क्रीन पर एकलव्य का फोन आता देख कर सुचेता की सारी थकान जाती रही, बिजली की गति से उस ने फोन रिसीव कर ली.

“बधाई हो सुचेता, अब तुम एक कुशल माली बन गई हो. अब तो तुम्हारी बगिया में पुष्प भी पल्लवित होने लगे हैं,” एकलव्य की सधी और गंभीर आवाज थी वह, आवाज में प्रेम और प्रसन्नता का मिश्रण भी था.

एकलव्य की आवाज सुन कर सुचेता ने आंखें बंद कर ली, कुछ बोल न सकी. उस के हाथ थरथरा कर रह जाते थे. बहुत कोशिश कर के सिर्फ इतना कह सकी,
“फूल मेरी बगिया का है, घासफूस भले ही मैं ने हटाई है, पर एक पौधे को खाद, पानी और जिस पोषण की आवश्यकता होती है, वह तो उसे तुमवीने दिया है एकलव्य,” बहुत धीमी सी आवाज थी सुचेता की.

कुछ देर तक दोनों बिना कुछ बोले ही एकदूसरे को सुनते रहे, एकलव्य ने इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा कि वह एक आवश्यक कार्य से बेंगलुरु जा रहा है. आते ही मिलने आएगा.

एकलव्य का फोन कट चुका था. सुचेता ने देखा कि अमाया अब भी कागजों में सिर झुकाए कुछ कर रही है.

“अब तो बस कर. आ जा रात हो चली है,” मां की आवाज सुन कर अमाया ने, “अभी आ रही हूं,” कह कर बात को टाल दिया और फिर अपने कागजों में व्यस्त हो गई.

सुचेता बिस्तर पर लेट गई थी. उस के कानों में पड़ोसियों के स्वर गूंज रहे थे. कोई कह रहा था, “इतनी काबिल लड़की का रिश्ता तो खुद लड़के वाले मांगने आएंगे.” तो किसी की आवाज आई, “अरे, अब समाज बदल चुका है. टौपर लड़की की जाति मायने नहीं रखती.”

समाज, हुंह, समाज कभी नहीं बदलता, वह तो बना रहता है निर्दयी और मौकापरस्त. ये समाज अपने अनुसार सारे नियम गढ़ता है और अपने तरीके से ही उन्हें परिभाषित करता आया है, और यही समाज तो तब भी था, जब सुचेता की उम्र 22 साल की थी और विश्विविद्यालय से एमए कर रही थी और आगे चल कर अपने पिता की तरह एक प्रोफैसर बनना चाहती थी.

हेमामालिनी एक बार फिर मथुरा से चुनाव लड़ेंगी, अब तीसरी बार जीत की गारंटी संदेह में

Sarita-Election-2024-01 (1)

Loksabha Election 2024: जानेअनजाने या जोशखरोश में कांग्रेस अकसर कैसे अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारती रही है, इस का एक और उदाहरण कुरुक्षेत्र से बीती एक अप्रैल को देखने में आया जब रणजीत सिंह सुरजेवाला के हेमा मालिनी को ले कर दिए एक बयान ने खासा तहलका मचा दिया. इस बार अपनी जीत को ले कर जो दिग्गज भाजपाई डरे हुए हैं, 75 वर्षीया बुजुर्ग फिल्म ऐक्ट्रैस हेमा मालिनी उन में से एक हैं.

यह डर बेवजह नहीं है बल्कि इस की वजह उन का अपने संसदीय क्षेत्र के लिए कुछ उल्लेखनीय न कर पाना है. जिस के चलते मथुरा में उन का अंदरूनी विरोध भी है. हेमा 10 साल से मथुरा से सांसद हैं. इस दरम्यान वे बमुश्किल 10 बार ही वहां गई होंगी और अकसर गईं भी तभी जब कोई बड़ा राजनीतिक या धार्मिक आयोजन वहां था या मोदीयोगी मथुरा पहुंचे थे.

आलाकमान के लिहाज और हेमा मालिनी के रसूख के चलते स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता भले ही मुंह में दही जमाए मथुरा की लस्सी बेमन से प्रचार के दौरान गले के नीचे उतार रहे हों लेकिन यहां से प्रत्याशी बदले जाने की उम्मीद हर किसी को थी. 2 बार मोदी लहर पर सवार हेमा भले ही अपने बसन्ती और धन्नो छाप ग्लैमर के चलते जीत गईं हों लेकिन इस बार कोई उन की चर्चा भी नहीं कर रहा था.
भाजपा ने उन्हें तीसरी बार टिकट दिया तो स्थानीय लोगों में कोई खास हलचल नहीं हुई. लोग यह मान कर भी चल रहे थे कि उम्र का फार्मूला शायद मथुरा में लागू हो पर उन की उम्मीदवारी से साबित हो गया कि भाजपा कितनी मुश्किलों से गुजर रही है और मेहनत से ज्यादा ग्लैमर के सहारे 400 की गिनती गिन रही है. इस नामुमकिन से टारगेट में मथुरा कहीं है भी या नहीं, यह तो नतीजों वाले दिन 4 जून को पता चलेगा.

संसद में हेमा मालिनी

संसद में हेमा मालिनी की सक्रियता औसत से कम ही रही है. बहसों में तो वे दर्शनीय हुंडी बनी ही रहीं लेकिन सवाल पूछने के मामले में भी फिसड्डी साबित हुईं. संसद में सवाल पूछे जाने का उत्तरप्रदेश का औसत 151 और राष्ट्रीय स्तर पर 210 है. हेमा मालिनी ने कुल 105 सवाल ही पूछे.
प्राइवेट बिल लाने में भी उन का योगदान या तत्परता कुछ भी कह लें जीरो है. 1 जून, 2019 से ले कर 9 फरवरी, 2024 तक ही मथुरा के विकास के लिए मिला 7 करोड़ रुपए भी वे पूरा खर्च नहीं कर पाईं. हां, संसद में उन की हाजिरी जरूर औसत से बेहतर रही जिस की वजह पहले कार्यकाल में कम हाजिरी पर उन की जम कर हुई खिंचाई थी.

शोपीस से कम नहीं फिल्मी सांसद

संसद से बाहर मथुरा में यमुना का शुद्धीकरण बड़ा और अहम मुद्दा है जिस पर उन्होंने 10 साल कुछ नहीं किया और अब 50 साल और मांग रही हैं. मथुरा की जनता और छले जाना पसंद करेगी या नहीं, यह भी वही तय करेगी कि उसे साल में एकाधदो बार मंदिरों में नृत्य करने आने वाली मशहूर ऐक्ट्रैस डांसर चाहिए या विकास के लिए काम करने वाला और संसद में क्षेत्र की आवाज बुलंद करने वाला कोई तेजतर्रार सांसद चाहिए.
सुनील दत्त जैसे अपवादों को छोड़ दिया जाए तो सांसद फिल्मी सितारे अभी तक शो पीस ही साबित हुए हैं. कुरुक्षेत्र में सुरजेवाला इसी बात को कहना चाह रहे थे लेकिन उन के शब्दों का चयन गलत था. उन्होंने जो कहा था उस का सार यह था कि हम एमएलए, एमपी बनाते हैं, क्यों बनाते हैं जिस से वे हमारी आवाज उठा सकें, कोई हेमा मालिनी तो है नहीं जो चाटने के लिए बनाते होंगे.

बस, इतना कहना था कि भाजपा के छोटेबड़े नेताओं ने उन पर चढ़ाई कर दी. तुरंत ही इस की शिकायत हरियाणा महिला आयोग और चुनाव आयोग की गई, जिन्होंने सुरजेवाला को जवाब देने को नोटिस थमा दिया है. उम्मीद ही नहीं बल्कि तय है कि नरेंद्र मोदी भी हेमा मालिनी के इस अपमान को बरदाश्त नहीं कर पाएंगे और इस का जिक्र किसी न किसी पब्लिक मीटिंग में करेंगे कि कांग्रेसी स्त्रीशक्ति के विरोधी हैं और मर्यादा के बाहर जा कर बोलते हैं.
रणजीत सिंह सुरजेवाला भी मौका चूके नहीं. उन्होंने तुरंत भाजपा नेताओं के उन घटिया और छिछोरे बयानों का जिक्र कर पलटवार कर दिया जिन में सोनिया गांधी को कांग्रेस की विधवा, जर्सी गाय, शशि थरूर की पत्नी को 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड और रेणुका सिंह को शूर्पणखा भरी संसद में खुद नरेंद्र मोदी ने कहा था.
औरतों की बेइज्जती के मामले में कौन किस का गुरु है, यह तय कर पाना कोई मुश्किल काम नहीं कि भाजपा महागुरु है क्योंकि हिंदू धर्मग्रंथ महिलाओं के अपमान व शोषण के खुलेआम निर्देश देते हैं कि औरत दोयम दर्जे की है, दासी है, पांव की जूती है वगैरहवगैरह जबकि कांग्रेसियों की मंशा सिर्फ सुर्खियां बटोरने की रहती है.
हेमा मालिनी पर इस तरह की बयानबाजी कोई नई या हैरत की बात नहीं है. लालू यादव से ले कर मध्यप्रदेश के एक पूर्व मंत्री विजय शाह तक कोई आधा दर्जन नेता समयसमय पर उन के गालों और सौंदर्य की चर्चा एक पूर्वाग्रह और कुंठा के तहत कर चुके हैं. अब अगर हेमा बला की खुबसूरत हैं ही तो उस में उन का क्या दोष. लेकिन खूबी यह है कि वे ऐसे बयानों को ज्यादा अहमियत नहीं देतीं और हवा में उड़ा देती हैं.

परिवार का कर्ज

लेकिन इस से भी इतर अपनी ठसक को ले कर वे शक के दायरे में आ ही जाती हैं. मथुरा से नामांकन दाखिल करते वक्त उन का एक वीडियो तेजी से वायरल हुआ था जिस में वे हैलिकौप्टर से ही जाने की जिद करती छोटी कार में भी बैठने से मना कर रही हैं. इसलिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने आननफानन उन के लिए स्कौर्पियो कार का इंतजाम किया. हालांकि यह वीडियो कुछ साल पुराना है लेकिन इस में उन का नखरा तो दिख ही रहा है. और हो भी क्यों न, आखिरकार भाजपा उन के और उन के परिवार की मुहताज जो रहती है.
धर्मेंद्र भी राजस्थान की बीकानेर सीट से 2004 में भाजपा के टिकट से जीत चुके हैं तो 2019 के लोकसभा चुनाव में हेमा के सौतेले बेटे सनी देओल को गुरदासपुर से टिकट दिया गया था. यह और बात है कि ये दोनों ही उन्हीं की तरह संसद में फिसड्डी साबित हुए और जीतने के बाद अपने संसदीय क्षेत्रों में मुड़ कर भी नहीं देखा.
गुरदासपुर में तो सनी के हायहाय और गो बेक के नारे तक लगने लगे थे जिन से घबरा कर उन्होंने ही राजनीति से तोबा कर ली. अब यह कह पाना मुश्किल है कि भाजपा देओल कुनबे का इस्तेमाल करती रही है या देओल परिवार भाजपा की पीठ पर सवार हो कर दिल्ली जाता रहा है जिस के अपने अलग फायदे हैं. सच जो भी हो यानी छुरी तरबूजे पर गिरे या तरबूजा छुरी पर गिरे, कटना तरबूजे को ही पड़ता है. यहां जनता तरबूज है.

जीत आसान नहीं

इस सब के बाद भी इस बार मथुरा का रण हेमा मालिनी और भाजपा के लिए पहले सा आसान नहीं है. कांग्रेस ने इस सीट से दलित समुदाय के मुकेश धनगर को टिकट दिया है जिन्होंने शुरुआती दौर में ही प्रवासी बनाम ब्रजवासी का जज्बाती मुद्दा उछाल कर हेमा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अब हेमा अपने ब्रजवासी होने का राग अलापने को भी मजबूर हो चली हैं लेकिन दिक्कत यह है कि उन का तमिल उच्चारण ही मथुरा क्या, हिंदीभाषियों के ही गले नहीं उतरता जो उन के दक्षिण भारतीय होने का आभास कराता है.
यह फैक्ट है कि वे बाहरी हैं और 10 साल से इस सीट पर कब्जा जमाए बैठी हैं. मुकेश धनगर अपने किसान और मजदूर होने का दम भरते भी आम लोगों की हमदर्दी हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर धनगर समाज के लोग उन के पक्ष में एकजुट हो गए तो भाजपा की बात बिगड़ भी सकती है क्योंकि मथुरा में धनगरों के खासे वोट हैं. इस जाति के लोग आमतौर पर गरीब लेकिन स्वाभिमानी हैं जो मूलरूप से चरवाहे, बुनकर और छोटे स्तर के पशुपालक हैं.
पिछले साल नवंबर में धनगर समाज के हजारों लोगों ने हेमा मालिनी के दफ्तर का घेराव किया था. उन की मांग यह थी कि धनगर समाज के सभी लोगों को अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र जारी नहीं किए जा रहे हैं और लगातार धरनेप्रदर्शनों के बाद भी भाजपा का कोई नेता उन की मांग पर ध्यान नहीं दे रहा है. हेमा मालिनी ने इन दबेकुचले शोषित लोगों से कभी मिलने का वक्त नहीं दिया क्योंकि मथुरा की राजनीति पर दबदबा जाटों, वैश्यों और ब्राह्मणों का है जिन के प्रतिनिधि और रसूखदार लोग हेमा और भाजपा के खासमखास हैं. ये सभी उन्हीं की तरह पूजापाठी हैं.

हेमा का जादू ढलान पर

अब जयंत चौधरी के भगवा गैंग जौइन कर लेने के बाद भाजपा को थोड़ी मजबूती मिली है. पिछली बार हेमा मालिनी ने आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह को 3 लाख से भी ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी. तब कांग्रेस के महेश पाठक अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे.
साल 2014 के चुनाव में जयंत हेमा मालिनी के हाथों 3 लाख के ही लगभग वोटों से हारे थे. लेकिन इन दोनों ही चुनावों में आधा दलित वोट भाजपा के साथ था जो अब पूरी तरह नहीं है. भाजपा की मदद के इरादे से बसपा प्रमुख मायावती ने सुरेश सिंह को मैदान में उतारा है लेकिन पूरे देश और उत्तरप्रदेश की तरह बसपा मथुरा में भी दलितों का भरोसा खो चुकी है. 2014 में उस के उम्मीदवार विवेक निगम को 73 हजार के लगभग वोट ही मिले थे.

अगर कांग्रेस 18 फीसदी दलितों को एकजुट करने में कामयाब रही तो नतीजा चौंका देने वाला भी आ सकता है क्योंकि 12 फीसदी के लगभग मुसलमान तो उस के साथ हैं ही. उम्र की तरह हेमा मालिनी का जादू भी ढलान पर है, इसलिए वे अपनी हालिया तलाकशुदा बेटी ईशा देओल को मथुरा से लड़ाना चाह रही थीं लेकिन मोदीशाह को एहसास है कि ऐसा करने से हार शर्तिया तय होती, अलग पार्टी की इमेज खराब होती और लोग यही कहते कि आप ने तो मथुरा का मजाक बना रखा है. हालांकि ऐसा कह अभी रहे हैं लेकिन दबी जबान से.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें