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अविश्वास : मां का मन अचानक अशांत कैसे हो गया था

अपने काम निबटाने के बाद मां अपने कमरे में जा लेटी थीं. उन का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. शिखा से फोन पर बात कर वे बेहद अशांत हो उठी थीं. उन के शांत जीवन में सहसा उथलपुथल मच गई थी. दोनों रश्मि और शिखा बेटियों के विवाह के बाद वे स्वयं को बड़ी हलकी और निश्ंिचत अनुभव कर रही थीं. बेटेबेटियां अपनेअपने घरों में सुखी जीवन बिता रहे हैं, यह सोच कर वे पतिपत्नी कितने सुखी व संतुष्ट थे.

शिखा की कही बातें रहरह कर उन के अंतर्मन में गूंज रही थीं. वे देर तक सूनीसूनी आंखों से छत की तरफ ताकती रहीं. घर में कौन था, जिस से कुछ कहसुन कर वे अपना मन हलका करतीं. लेदे कर घर में पति थे. वे तो शायद इस झटके को सहन न कर सकें.

दोनों बेटियों की विदाई पर उन्होंने अपने पति को मुश्किल से संभाला था. बारबार यही बोल उन के दिल को तसल्ली दी थी कि बेटी तो पराया धन है, कौन इसे रख पाया है. समय बहुत बड़ा मलहम है. बड़े से बड़ा घाव समय के साथ भर जाता है, वे भी संभल गए थे.

बड़ी बेटी रश्मि के लिए उन के दिल में बड़ा मोह था. रश्मि के जाने के बाद वे बेहद टूट गए थे. रश्मि को इस बात का एहसास था, सो हर 3-4 महीने बाद वह अपने पति के साथ पिता से मिलने आ जाती थी.

शादी के कई वर्षों बाद भी भी रश्मि मां नहीं बन सकी थी. बड़ेबड़े नामी डाक्टरों से इलाज कराया गया, पर कोईर् परिणाम नहीं निकला. हर बार नए डाक्टर के पास जाने पर रश्मि के दिल में आशा की लौ जागती, पर निराशारूपी आंधी उस की लौ को निर्ममता से बुझा जाती. किसी ने आईवीएफ तकनीक से संतान प्राप्ति का सुझाव दिया लेकिन आईवीएफ तकनीक में रश्मि को विश्वास न था.

अकेलापन जब असह्य हो उठा तो रश्मि ने तय किया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखेगी.

‘सुनो, मैं एमए जौइन कर लूं?’

‘बैठेबैठे यह तुम्हें क्या सूझा?’

‘खाली जो बैठी रहती हूं, इस से समय भी कट जाएगा और कुछ ज्ञान भी प्राप्त हो जाएगा.’

‘मुझे तो कोई एतराज नहीं, पर बाबूजी शायद ही राजी हों.’

‘ठीक है, बाबूजी से मैं स्वयं बात कर लूंगी.’

उस रात बाबूजी को खाना परोसते हुए रश्मि ने अपनी इच्छा जाहिर की तो एक पल को बाबूजी चुप हो गए. रश्मि समझी शायद बाबूजी को मेरी बात बुरी लगी है. अनुभवी बाबूजी समझ गए कि रश्मि ने अकेलेपन से ऊब कर ही यह इच्छा प्रकट की है. उन्होंने रश्मि को सहर्ष अनुमति दे दी.

कालेज जाने के बाद नए मित्रों और पढ़ाई के बीच 2 साल कैसे कट गए, यह स्वयं रश्मि भी न जान सकी. रश्मि ने अंगरेजी एमए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली. उस के ससुर ने उसे एक हीरे की सुंदर अंगूठी उपहार में दी.

शिखा की शादी तय हो गई थी. रश्मि के लिए शिखा छोटी बहन ही नहीं, मित्र व हमराज भी थी. शिखा ने व्हाट्सऐप पर लिखा कि, ‘सच में बड़ी खुशी की बात यह है कि तुम्हारे जीजाजी का तुम्हारे शहर में अपने व्यापार के संबंध में खूब आनाजाना रहेगा. मुझे तो बड़ी खुशी है कि इसी बहाने तुम्हारे पास हमारा आनाजाना लगा रहेगा.’

व्हाट्सऐप में मैसेज देख कर और उस में लिखा पढ़ कर रश्मि खिल उठी थी. कल्पना में ही उस ने अनदेखे जीजाजी के व्यक्तित्व के कितने ही खाके खींच डाले थे, पर दिल में कहीं यह एहसास भी था कि शिखा के चले जाने के बाद मां और बाबूजी कितने अकेले हो जाएंगे.

शिखा की शादी में रमेश से मिल कर रश्मि बहुत खुश हुई, कितना हंसमुख, सरल, नेक लड़का है. शिखा जरूर इस के साथ खुश रहेगी. रमेश भी रश्मि से मिल कर प्रभावित हुआ था. उस का व्यक्तित्व ही ऐसा था. शिखा की शादी के बाद एक माह रश्मि मांबाप के पास ही रही थी, ताकि शिखा की जुदाई का दुख उस की उपस्थिति से कुछ कम हो जाए.

शिखा अपने पति के साथ रश्मि के घर आतीजाती रही. हर बार रश्मि ने उन की जी खोल कर आवभगत की. उन के साथ बीते दिन यों गुजर जाते कि पता ही न लगता कि कब वे लोग आए और कब चले गए. उन के जाने के बाद रश्मि के लिए वे सुखद स्मृतियां ही समय काटने को काफी रहतीं.

शिखा शादी के बाद जल्द ही एकएक कर 2 बेटियों की मां बन गई थी. रश्मि ने शिखा के हर बच्चे के स्वागत की तैयारी बड़ी धूमधाम और लगन से की. अपने दिल के अरमान वह शिखा की बेटियों पर पूरे कर रही थी. मनोज भी रश्मि को खुश देख कर खुश था. उस की जिंदगी में आई कमी को किसी हद तक पूरी होते देख उसे सांत्वना मिली थी.

शिखा के तीसरे बच्चे की खबर सुन कर रश्मि अपने को रोक न सकी. शिखा की चिंता उस के शब्दों से साफ प्रकट हो रही थी. उस ने तय कर लिया कि वह शिखा के इस बच्चे को गोद ले लेगी. इस से उस के अपने जीवन का अकेलापन, खालीपन तथा घर का सन्नाटा दूर हो जाएगा. बच्चे की जरूरत उस घर से ज्यादा इस घर में है. रश्मि ने जब मनोज के सामने अपनी इच्छा जाहिर की तो मनोज ने सहर्ष अपनी अनुमति दे दी.

‘शिखा, घबरा मत, तेरे ऊपर यह बच्चा भार बन कर नहीं आ रहा है. इस बच्चे को तुम मुझे दे देना. मुझे अपने जीवन का अकेलापन असह्य हो उठा है. तुम अगर यह उपकार कर सको तो आजन्म तुम्हारी आभारी रहूंगी.’ रश्मि ने शिखा से फोन पर बात की.

शाम को जब रमेश घर आया तब शिखा ने मोबाइल पर हुई सारी बात उसे बताई.

‘रश्मि मुझे ही गोद क्यों नहीं ले लेती, उसे कमाऊ बेटा मिल जाएगा और मुझे हसीन मम्मी.’ रमेश ने मजाक किया.

‘क्या हर वक्त बच्चों जैसी बातें करते हो. कभी तो बात को गंभीरता से लिया करो.’

रमेश ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए कहा, ‘लो, हो गया गंभीर, अब शुरू करो अपनी बात.’

नाराज होते हुए शिखा कमरे से जाने लगी तो रमेश ने उस का आंचल खींच लिया, ‘बात पूरी किए बिना कैसे जा रही हो?’

‘रश्मि के दर्द व अकेलेपन को नारी हृदय ही समझ सकता है. हमारा बच्चा उस के पास रह कर भी हम से दूर नहीं रहेगा. हम तो वहां आतेजाते रहेंगे ही. ‘हां’ कह देती हूं.’

‘बच्चे पर मां का अधिकार पिता से अधिक होता है. तुम जैसा चाहो करो, मेरी तरफ से स्वतंत्र हो.’

शिखा ने रश्मि को अपनी रजामंदी दे दी. सुन कर रश्मि ने तैयारियां शुरू कर दीं. इस बार वह मौसी की नहीं, मां की भूमिका अदा कर रही थी. उस की खुशियों में मनोज पूरे दिल से साथ दे रहा था.

ऐसे में एक दिन उसे पता चला कि वह स्वयं मां बनने वाली है. रश्मि डाक्टर की बात का विश्वास ही न कर सकी.

उस ने अपने हाथों पर चिकोटी काटी. मनोज ने खबर सुनते ही रश्मि को चूम लिया.

उसी रात रश्मि ने शिखा को फोन किया, ‘शिखा, तेरा यह बच्चा मेरे लिए दुनियाजहान की खुशियां ला रहा है. सुनेगी तो विश्वास नहीं आएगा. मैं मां बनने वाली हूं. कहीं तेरे बच्चे को गोद लेने के बाद मां बनती तो शायद तेरे बच्चे के साथ पूरा न्याय न कर पाती.’ रश्मि की आवाज में खुशी झलक रही थी.

‘आज मैं इतनी खुश हूं कि स्वयं मां बनने पर भी इतनी खुश न हुई थी. 14 साल बाद पहली बार तुम्हारे घर में खुशी नाचेगी,’ शिखा बहन की इस खुशी से दोगुनी खुश हो कर बोली.

मां और बाबूजी भी यह खुशखबरी सुन कर आ गए थे. रश्मि के ससुर की खुशी का ठिकाना ही न था.

रश्मि ने अपनी बेटी का नाम प्रीति रखा था. प्रीति घरभर की लाड़ली थी. शिखा व रमेश का आनाजाना लगा ही रहता. शिखा के तीसरा बच्चा बेटा था. रश्मि ने यही सोच कर कि घर में बेटा होना भी जरूरी है, शिखा से उस का बेटा नहीं मांगा.

रश्मि की खुशियां शायद जमाने को भायी नहीं. शिखा व रमेश रश्मि के पास आए हुए थे. उन की दूर की मौसी प्रीति को देखने आई थीं. रश्मि को बधाई देते हुए उन्होंने कहा, ‘रश्मि, तेरा रूप बिटिया न ले सकी. यह तो अपने मौसामौसी की बेटी लगती है.’

‘यह तो अपनेअपने समझने की बात है, मौसी, मैं प्रीति को अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करता हूं.’ मौसी का कथन और रमेश का समर्थन शिखा के दिल में तीर बन कर चुभ गए. जिन आंखों से प्रीति के लिए प्यार उमड़ता था, वही आंखें अब उस का कठोर परीक्षण कर रही थीं. प्रीति का हर अंग उसे रमेश के अंग से मेल खाता दिखाई देने लगा. प्रीति की नाक, उस की उंगलियां रमेश से कितनी मिलती हैं, तो क्या प्रीति रमेश की बेटी है? शिखा के दिल में संदेह का बीज पनपने लगा. मौसी का विषबाण अपना काम कर चुका था.

‘रश्मि बच्चे की चाह में इतना गिर सकती है और रमेश ने मेरे विश्वास का यही परिणाम दिया,’ शिखा सोचती रही, कुढ़ती रही.

घर लौटते ही शिखा उबल पड़ी. सुनते ही रमेश सन्नाटे में आ गया. यह रश्मि की सगी बहन बोल रही है या कोई शत्रु?

‘तुम पढ़ीलिखी हो कर भी अनपढ़ों जैसा व्यवहार कर रही हो. तुम में विश्वास नाम की कोई चीज ही नहीं. इतना ही भरोसा है मुझ पर.’

‘अविश्वास की बात ही क्या रह जाती है? प्रीति का हर अंग गवाह है कि तुम्हीं उस के बाप हो. औरत सौत को कभी बरदाश्त नहीं कर पाती, चाहे वह उस की सगी बहन ही क्यों न हो.’

‘किसी के रूपरंग का किसी से मिलना

क्या किसी को दोषी मानने के लिए काफी है? गर्भावस्था में मां की आंखों के सामने जिस की तसवीर होती है, बच्चा उसी के अनुरूप ढल जाता है.’

‘अपनी डाक्टरी अपने पास रखो, तुम्हारी कोई सफाई मेरे लिए पर्याप्त नहीं.’ ‘डाक्टर राजेश को तो जानती हो न? उस की बेटी के बाल सुनहरे हैं, पर पतिपत्नी में से किस के बाल सुनहरे हैं? राजेश ने तो आज तक कोई तोहमत अपनी पत्नी पर नहीं लगाई.’

‘मैं औरत हूं, मेरे अंदर औरत का दिल है, पत्थर नहीं.’

बेचैनी में शिखा अपनी परेशानी मां को बता चुकी थी. उस की रातें जागते कटतीं, भूख खत्म हो गई थी. फोन करने के बाद मां कितनी बेचैन हो उठेंगी, यह उस ने सोचा ही न था.

मां अंदर ही अंदर परेशान हो उठीं. दोपहर को जब पति सोने चले गए तो उन्होंने शिखा को फोन किया, ‘‘तुम्हारी बात ने मुझे बहुत अशांत कर दिया है. रश्मि तुम्हारी बहन है, रमेश तुम्हारा पति, तुम उन के संबंध में ऐसा सोच भी कैसे सकती हो. रश्मि अगर 14 साल बाद मां बनी है तो इस का अर्थ यह तो नहीं कि तुम उस पर लांछन थोप दो. तुम्हारा अविश्वास तुम्हारे घर के साथसाथ रश्मि का घर भी ले डूबेगा. जिंदगी में सुख व खुशी हासिल करने के लिए विश्वास अत्यंत आवश्यक है. बसेबसाए घरों में आग मत लगाओ. रश्मि को इतने वर्षों बाद खुश देख कर कहीं तुम्हारी ईर्ष्या तो नहीं जाग उठी?’’

मां से बात करने के बाद शिखा के अशांत मन में हलचल सी उठी. सचाई सामने होते आंखें कैसे मूंदी जा सकती हैं. बातबात पर झल्ला जाना, पति पर व्यंग्य कसना शिखा का स्वभाव बन चुका था.

‘‘बचपना छोड़ दो, रश्मि सुनेगी तो कितनी दुखी होगी.’’

‘‘क्यों? तुम तो हो, उस के आंसू पोंछने के लिए.’’

‘‘चुप रहो, तमीज से बात करो, तुम तो हद से ज्यादा ही बढ़ती जा रही हो. जो सच नहीं है, उसे तुम सौ बार दोहरा कर भी सच नहीं बना सकतीं.’’

शिखा को हर घटना इसी एक बात से संबद्घ दिखाई पड़ रही थी. चाह कर भी वह अपने मन से किसी भी तरह इस बात को निकाल न सकी.

इधर रमेश को रहरह कर मौसीजी पर गुस्सा आ रहा था, जो उन के शांत जीवन में पत्थर फेंक कर हलचल मचा गई थीं. पढ़लिख कर इंसान का मस्तिष्क विकसित होता है, सोचनेसमझने और परखने की शक्ति आती है, पर शिखा तो पढ़लिख कर भी अनपढ़ रह गई थी.

एकदूसरे के लिए अजनबी बन पतिपत्नी अपनीअपनी जिंदगी जीने लगे. आखिर हुआ वही जो होना था. बात रश्मि तक भी पहुंच गई. सुन कर उसे गुस्सा कम और दुख अधिक हुआ. मनोज को भी इस बात का पता लगा, पर व्यक्ति व्यक्ति में भी कितना अंतर होता है. रश्मि के प्रति विश्वास की जो जड़ें सालों से जमी थीं, वे इस कुठाराघात से उखड़ न सकीं.

रश्मि ने मन मार कर शिखा को फोन कर कहा, ‘‘इसे तुम चाहो तो मेरी तरफ से अपनी सफाई में एक प्रयत्न भी समझ सकती हो. हमारा सालों का रिश्ता, खून का रिश्ता यों इतनी जल्दी तोड़ दोगी? शांत मन से सोचो, मैं तो तुम्हारा बच्चा गोद लेने वाली थी, फिर मुझे ऐसा करने की आवश्यकता क्यों होती? रमेश को मैं ने हमेशा छोटे भाई की तरह प्यार किया है, इस निश्चल प्यार को कलुषित मत बनाओ.

‘‘वैवाहिक जीवन की नींव विश्वासरूपी भूमि पर खड़ी है. अपनी बसीबसाई गृहस्थी में शंकारूपी कुल्हाड़ी से आघात क्यों करना चाहती हो? तनाव और कलह को क्यों निमंत्रण दे बैठी हो? रमेश को तुम इतने सालों में भी समझ नहीं सकी हो.’’

शिखा इन बातों से और जलभुन गई. रमेश उस की नजर में अभी भी अपराधी है. घर वह सोने और खाने को ही आता है. उस का घर से बस इतना ही नाता रह गया है. मां द्वारा पिता की उपेक्षा होते देख बच्चे भी उस से वैसा ही व्यवहार करते हैं.

शिखा ने स्वयं ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि आज न वह स्वयं खुश है, न उस का पति रमेश.

ज्योतिष विज्ञान नहीं सिर्फ अज्ञान

Writer- डा. सुरेंद्र शर्मा अज्ञात

ज्योतिष का प्रचार आज के विज्ञान युग में भी जम कर हो रहा है. ज्योतिषी ही नहीं, सभी संचार संसाधन इस में कूद पड़े हैं, जो चलते तो हैं विज्ञान आधारित टैक्नोलौजी पर लेकिन ज्योतिषियों का व्यापार बेचने के लिए माफिया का हिस्सा बन चुके हैं. टीवी 9 में उदाहरण के तौर पर 8 फरवरी को एक रिपोर्ट का शीर्षक था, ‘ज्योतिष से जानें किसी व्यक्ति पर किस ग्रह का क्या पड़ता है प्रभाव.’

इस में ग्रहों के आम आदमी पर पड़ने वाले प्रभाव और कुंडलियों के खानों का वर्णन वैज्ञानिकों की भाषा में कर के भरमाया गया है कि जो लिखा गया है वह स्वयंसिद्ध है, पर इस का किसी रिसर्च में पता नहीं चला है. रिपोर्ट में मान्यता है कि पृथ्वी पर जन्म लेते ही किसी जात का 9 ग्रहों से जुड़ाव हो जाता है, बल्कि आजीवन इन का प्रभाव उस पर पड़ता है. यही कारण है कि व्यक्ति के जीवन में कभी खुशी तो कभी गम आते हैं.

पहले समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में ही राशिफल छपते थे, परंतु विज्ञान ने जब से दूरसंचार के अन्य माध्यम उपलब्ध करवा दिए हैं, यथा टीवी के विभिन्न चैनल, मोबाइल फोन आदि माध्यमों पर भी ज्योतिष का जाल ऐसे छाने लगा है जैसे वृक्ष पर अमरबेल हो. ज्योतिष का काम ग्रहों और राशियों के नाम पर किया जाना एक खिलवाड़ ही है.

ज्योतिष कहता है कि व्यक्ति के जन्म के समय सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु (बृहस्पति), शुक्र, शनि, राहु और केतु ग्रहों की स्थिति के अनुसार उसे जीवन में शुभ या अशुभ फल मिलता है.

खगोल विज्ञान की दृष्टि से तो यह कथित ग्रहसूची एकदम गलत व ?ाठी है, क्योंकि सूर्य ग्रह नहीं है, वह तो एक तारा है जो स्वयं प्रकाशित होता है.

‘चंद्र’ उपग्रह है जो पृथ्वी ग्रह के गिर्द घूमता है. मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि, इस सूची में यही 5 ग्रह हैं. परंतु आगे राहु और केतु फिर ग्रह नहीं हैं. वे तो उपग्रह भी नहीं. वे केवल 2 ज्यामितीय मिथ यानी भ्रम हैं.

चांद जब धरती के गिर्द चक्कर लगाता है तो पृथ्वी के दीर्घवृत्त को वह 2 परस्परविरोधी बिंदुओं पर काटता है. ऊपर वाला कटान बिंदु (जहां चांद दीर्घवृत्त को काटता है) ‘राहु’ कहलाता है जबकि नीचे वाला ‘केतु’.

ज्योतिषियों के 9 ग्रह अज्ञान, अर्धज्ञान और ?ाठ का पिटारा मात्र सिद्ध होते हैं. जब इन को तारे देख कर नाम दिए गए थे तब क्या पता था कि विज्ञान इन पिंडों के बारे में इस तरह जानकारी जमा कर लेगा. लेकिन विज्ञान ने ये तारे, उपग्रह बनाए नहीं हैं. ये तो हमेशा से वैसे के वैसे ही हैं. विज्ञान ने तो ज्योतिषियों के अज्ञान की पोल खोली है. जिन लोगों को वर्तमान का पता नहीं, वे भला भविष्य का क्या पता कर सकते हैं.

असली 9 ग्रह

वास्तव में 9 ग्रह ये हैं – (सूर्य से दूरी के क्रम में) : बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरु (बृहस्पति), शनि, यूरेनस (अरुण या इंद्र), नैपच्यून (वरुण) और प्लूटो (यम या रुद्र).

यहां 7, 8 और 9 संख्या वाले ग्रहों के अरुण, वरुण आदि नाम बाद में गढ़े गए हैं. ये ग्रह भारतीय ज्योतिषियों को ज्ञात नहीं थे. भारतीय ज्योतिषियों ने इन्हें ‘अरुण’, ‘वरुण’ व ‘यम’ जैसे पौराणिक नाम दे कर यह ?ाठ फैलाया है कि मानो ये ग्रह प्राचीनकाल से ही उन्हें ज्ञात रहे हों. किसी भी प्राचीन ग्रंथ में अरुण, वरुण या यम नाम का कोई ग्रह नहीं है. ये उन की पोल खोलते हैं.

पुरोहित बनाम ज्योतिषी

हर पुरोहित छोटामोटा ज्योतिषी होता है और हर ज्योतिषी छोटामोटा पुरोहित. पहले तो दोनों काम एक ही आदमी किया करता था. अब ज्योतिष की अलग दुकानें खुल गई हैं. फिर भी ज्योतिषी को पुरोहिताई करने का मौका मिले तो वह बहती गंगा में डुबकी लगा ही लेता है.

पुरोहित हर शुभअशुभ मौके पर जब पूजापाठ कराता है तो 9 ग्रहों (नवग्रह) की पूजा करता व करवाता है और ज्योतिषी के लिए तो नवग्रह ककहरा हैं, उन के बिना वह वैसे ही कुछ नहीं कर सकता जैसे ककहरे के बिना कोई भाषा लिखपढ़ व बोल नहीं सकता.

नवग्रह

नवग्रहों की पूजा के समय एकएक ग्रह का पहले स्वरूप बखान किया जाता है, फिर उसे यजमान के घर आने तथा पूजा की थाली में बैठने के लिए निवेदन किया जाता है. मानो ग्रह अपनी जगह छोड़ कर पूजा कराने वाले के इशारे पर मूर्ख बन रहे यजमान के घर पहुंच जाएंगे. आओ जरा इस नवग्रह पूजा के कोरे मजाक और प्रहसन को देखें.

सूर्य

ज्योतिष और पुरोहित के अनुसार सूर्य पहला ग्रह है. यद्यपि, अभी तक तो प्राइमरी स्कूल का विद्यार्थी भी यह जानता है कि सूर्य तारा है, ग्रह नहीं, क्योंकि ग्रह में अपना प्रकाश नहीं होता. वह तारे (सूर्य) के प्रकाश में ही प्रकाशमान होता है. अगर पौराणिक शिक्षा पद्धति लागू हो गई तो यह भी शायद सिखाना बंद हो जाएगा.

नवग्रह पूजा के समय सूर्य की पूजा करते हुए कहा जाता है कि यह सूर्य देवता सोने के रथ संग बैठ कर संसार को देखता हुआ जाता है.

‘हिरण्येन सविता स्थेना देवो याति भुवनानि पश्यन.’

इस में प्रार्थना की जाती है, ‘सूर्य, इहागच्छ (इह तिष्ठ) हे सूर्य, यहां (पूजा स्थल में) आओ और यहां बैठो. (ब्रह्मा विवाह पद्धति, ग्रहशांति प्रकरण, पं जगदीशराम शर्मा शास्त्री पृ. 39).

विज्ञान के अदना से छात्रों को जो बात मालूम है वह हमारा शिक्षित अंधविश्वासी समाज नहीं जानता कि सूर्य हम से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है. वह हमारी धरती से इतना बड़ा है कि ऐसी धरतियां उस (सूर्य) में 13 लाख समा जाएं. ऐसे सूर्य को धरती पर ही नहीं बैठाया जा सकता. उसे पूजा की थाली में कैसे बैठाओगे?

सूर्य का तापमान लगभग 6,000 डिग्री सैंटीग्रेड है. वैज्ञानिक कहते हैं कि सूर्य के केंद्र भाग का एक ग्राम द्रव्य यदि धरती पर लाना संभव हो तो उस की गरमी से एक किलोमीटर की दूरी पर खड़ा आदमी जल कर राख हो जाए.

अपने पुरोहितजी उसे थाली में व पूजास्थल में आ कर बैठने के मंत्र पढ़ रहे हैं और क्या पुरोहित के कहने पर ही सूर्य चले आएंगे. अगर हजार पुरोहित एक ही समय सूर्य को बुला रहे हों तो क्या होगा. यह पाखंड, ढकोसला और चारसौबीसी नहीं तो क्या है.

चंद्र

ज्योतिष और पुरोहित का दूसरा ग्रह है चंद्र. विज्ञान ने हमारे सौर परिवार में कुल मिला कर 75 चंद्र ढूंढ़ निकाले हैं. पृथ्वी का 1, मंगल के 2, शनि के 31 और बृहस्पति के 18 चंद्र हैं. 52 तो यही चंद्र बन जाते हैं. पौराणिक ब्राह्मणों ने चंद्र के पिता का नाम और गोत्र भी ढूंढ़ रखा है.

सृष्टि के पलपल की जानकारी रखने वाले इन 74 चांदों के बारे में पहले पता क्यों नहीं कर पाए और अब पता हो गया तो एक से ही क्यों चिपके हैं.

जो एकमात्र चंद्र ज्योतिषी/पुरोहित को दिखाई देता है, वह भी पृथ्वी से लगभग 4 लाख किलोमीटर दूर है. उस का तथाकथित अत्रि के गोत्र से क्या नाता है? उस पर ब्राह्मणवाद का ठप्पा लगाने का औचित्य यही है कि आप की जेब ढीली की जा सके.

मंगल

पुरोहित व ज्योतिष के अनुसार, मंगल धरती के गर्भ से पैदा हुआ (धरणीगर्भसंभूत) है.

(ब्रह्म विवाह पद्धति, पृ. 39-40).

इसे भी पूजास्थल पर आने और वहां बैठने के लिए कहा गया है. शायद पुरोहितज्योतिषी को यह मालूम नहीं कि उस की पृथ्वी से दूरी 1,020 लाख किलोमीटर है. वहां से आनेजाने की कल्पना भी कोई सम?ादार व्यक्ति नहीं कर सकता, पर हमारे अंधविश्वासी वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर भी इस को संस्कृति के नाम पर मान लेते हैं.

पृथ्वी लगभग एक वृत्ताकार कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करती है तो मंगल एक अंडाकार कक्षा में. सो, जब मंगल सूर्य से अपनी न्यूनतम दूरी के समय वियुति में होता है तब वह पृथ्वी से सिर्फ 560 लाख किलोमीटर दूर होता है. ऐसी स्थिति औसतन 16 वर्ष बाद आती है. ऐसे समय ही अंतरिक्षयान भेजा जाता है.

फिर भी मंगल को जैसे पुरोहितज्योतिषी बुलाता है, उस तरह तो अंतरिक्षयान का भी आनाजाना संभव नहीं. यदि 11.2 किलोमीटर प्रति सैकंड की गति से अंतरिक्षयान चले तो ही वह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को लांघ सकता है. यदि 11 किलोमीटर प्रति सैकंड गति हो जाए तो अंतरिक्षयान पृथ्वी की परिक्रमा करने लगेगा. सो, आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि उस का ‘पलायन वेग’ 11.2 किलोमीटर प्रति सैकंड हो. इस गति से जाने वाला अंतरिक्षयान भी 7-8 महीनों बाद मंगल के समीप पहुंचता है. इतना ही समय उसे वापस आने के लिए चाहिए. यह भी तब जब वह वियुति में न्यूनतम दूरी पर हो.

पुरोहित और ज्योतिषी बस, मुंह हिला देते हैं, ‘आओ और यहां पूजास्थल पर या पूजा की थाली में बैठो.’ बदले में जजमान से चढ़ावा जरूर मिल जाता है. यही जजमान वोट भी इकट्ठा करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबतब पूजापाठी बन कर इस तरह के पाखंड कर इस को पूरा बढ़ावा देते हैं.

बुध

ज्योतिषी व पुरोहित बुध को पीले रंग वाला, बुद्धि देने वाला, मगध देश (बिहार) में पैदा हुआ (मगधदेशोद्भव:) और अत्रि के गोत्र वाला (आत्रेयसगोत्र:) कहते हैं.

बुध पर वायुमंडल नहीं है. सो वहां न सांस चलती है और न ही शब्द सुनाई देता है, क्योंकि बिना वायुमंडल के न आप बोल सकते हैं और न सुन ही सकते हैं. ऐसे में लाखों किलोमीटर दूर स्थित यह पिंड पुरोहित व ज्योतिषी की स्तुतियां या प्रार्थनाएं कैसे सुन सकता है?

यही नहीं, वहां दिन में 400 डिग्री सैंटीग्रेड का तापमान होता है, जिस में टिन व सीसा (लैड) धातु पिघल जाएगी. यही कारण है कि अभी तक वहां कोई मानवरहित अंतरिक्षयान भी नहीं उतरा है. ऐसा बुध यदि पंडों की पुकार सुन कर धरती पर आ जाए तो वह आदमी के पास जो समान्य बुद्धि है, उसे भी नष्ट कर दे.

बृहस्पति

बृहस्पति को पंडों ने ‘देवताओं का गुरु’ (देवानां यो गुरु: स्मृत:) कहा है. इसे अंगिरा ऋषि का पुत्र कहा गया है. इसे भी पीले रंग का (पीतवर्णं) कहा है.

(ब्रह्म विवाह पद्धति, पृ. 40).

अंत में प्रार्थना है कि बृहस्पतिजी, तुम यहां आओ और पूजास्थल पर अथवा पूजा की थाली में बैठो. पंडों को पता नहीं कि उन का बृहस्पति, जिसे वे बुला रहे हैं, हमारी सारी पृथ्वी पर भी नहीं बैठ सकता, क्योंकि वह तो पृथ्वी से 1,300 गुना बड़ा है. सौरमंडल के शेष 8 ग्रहों को भी यदि जोड़ लिया जाए, तब भी बृहस्पति उन से 3 गुना बड़ा होगा. उसे वे कहां बैठाएंगे?

उस का दिनरात सिर्फ 10 घंटों का होता है, हमारी तरह 24 घंटों का नहीं. और जो चीज पृथ्वी पर 100 किलोग्राम है, वह बृहस्पति पर 250 किलोग्राम बन जाती है.

यदि यह बृहस्पति महाराज पंडों के कहने पर पृथ्वी पर आ जाए तो सारा वायुमंडल हाइड्रोजन, एमोनिया और मीथेन गैसों से भर जाए तथा सांस लेना दूभर हो जाए. ऐसे में तो वह इंसानों का भी गुरु नहीं बन पाएगा. उसे कथित देवताओं का गुरु बताना एकदम कोरी कल्पना है और हैरी पौटर से भी खराब कथा का पाटा लगता है. हां, इस का कुंडली में स्थान बना कर करोड़ों को मूर्ख अवश्य बनाया जा सकता है.

शुक्र

शुक्र को सफेद रंग का, शिव के पेट में घुस कर फिर बाहर निकल आने वाला (प्रविष्ठो जठरे शंभोर्निसृत: पुनरेव च), भार्गव गोत्र वाला (भार्गवसगोत्र:) कहा गया है. इस में उसी तरह प्रार्थना की जाती कि आप आओ और पूजा की थाली में विराजमान हो जाओ.

(ब्रह्म विवाह पद्धति, पृ. 40-41).

ये सारी निराधार बातें हैं, क्योंकि शुक्र के बारे में तो अभी विज्ञान को भी ज्यादा स्पष्ट जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी है. इस की सतह के कई किलोमीटर ऊंचे वायुमंडल से ढकी होने के कारण अभी तक किसी भी दूरबीन से इस वायुमंडल को भेद कर सतह को नहीं देखा जा सका है.

यह ग्रह पूर्व से पश्चिम की ओर चक्र लगाता है, जबकि हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर चक्कर लगाती है. यह पृथ्वी से लगभग 3,40,00,000 (3 करोड़ 40 लाख) किलोमीटर दूर है.

यहां न औक्सीजन है, न जलवाष्प और न ही कार्बन डाईऔक्साइड अर्थात वनस्पति. यहां 400 डिग्री सैंटीगेड का तापमान है. यदि यह पंडों की प्रार्थना पर पूजा के दौरान पृथ्वी पर आ जाए तो सब की बोलती बंद कर दे. पहले इन भक्तों की, क्योंकि इतने तापमान में तो सीसा व टिन धातु पिघल जाएगी, इंसानी दिमाग का तो कहना ही क्या. इस संदर्भ में दैत्यों के गुरुवाली या शिव के पेट में घुस कर निकल आने वाली पौराणिक कहानियों का कोई अर्थ नहीं है.

शनि

शनि को पुरोहितों व ज्योतिषियों ने काले रंग वाला (कृष्ण वर्ण), सौराष्ट्र देश में पैदा हुआ (सौराष्टदेशोद्भव:) और कश्यप गोत्र वाला (काश्यपसगोत्र:) कहा है (ब्रह्म विवाह पद्धति, पृ.41). प्रार्थना की गई है कि आएं और बैठें तथा वरदान दें.

यह आ तो जाएगा, पर बैठेगा कहां? यह तो धरती से 750 गुना बड़ा है. फिर वहां का तापमान शून्य से 180 डिग्री नीचे रहता है, क्योंकि यह सूर्य से 143 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है और इसे सूर्य के चक्कर लगाने में हमारे 29 साल, 168 दिन लगते हैं. जबकि हमारी पृथ्वी यही काम एक साल में पूरा कर लेती है. ऐसा शनैश्चर आप को क्या वरदान देगा सिवा सुस्ती के, आलस्य के, जो अपने में पहले से ही काफी ज्यादा है.

राहु : रहित सिर से

राहु 8वां ‘ग्रह’ है पुरोहितों व ज्योतिषियों का. इस की प्रशंसा में जो मंत्र नवग्रह पूजा के समय पढ़ा जाता है, उस में कहा गया है कि मैं उस राहु का आह्वान करता हूं जो विष्णु के चक्र से कटा हुआ सिर मात्र है तथा जो सिंहिका राक्षसी का पुत्र है. वह राठिन देश में पैदा हुआ (राठिनदेशोद्भव:) और पैठीनसि गोत्र का कहा गया है (पैठीनसिसगोत्र:)

(ब्रह्म विवाह पद्धति. पृ.41)

जिस का अपना सिर कटा हुआ है, जो मात्र सिर रूप है, उस राहु को पूजास्थल पर आने व वरदान देने के लिए प्रार्थना की जाती है. बिना यह सोचेसम?ो कि जो अपने को वरदान दे कर अपने कटे सिर को धड़ से नहीं जोड़ पाया, वह दूसरों को क्या खाक वरदान देगा.

विज्ञान के अनुसार, जैसा हम ने पहले देखा है, राहु कोई ग्रह या उपग्रह न हो कर मात्र एक कटान है, एक बिंदु है, जहां चंद्र पृथ्वी के दीर्घवृत्त को काटता है. यह कोई पिंड नहीं, मात्र एक ज्यामितिक बिंदु है.

केतु

सिंहिका राक्षसी के उस कटे सिर वाले पुत्र का धड़ है केतु. इसे अर्धकायं (आधा शरीर) कहा जाता है. इसे जैमिनी के गोत्र का (जैमिनिसगोत्र:), क्रूर कृत्य करने वाला (क्रूरकृत्यं) और ‘अन्तर्वेदिदेशोद्भव’ (अंतर्वैदी देश में पैदा हुआ) बताया जाता है.

(ब्रह्म विवाह पद्धति, पृ.41)

इस से भी पूजास्थल में पहुंच कर वरदान प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है, यद्यपि वह अपने धड़ को अपने कटे सिर से जोड़ पाने में असमर्थ है.

प्रचार का हाल यह है कि दैनिक भास्कर के एक अंक में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है, ‘जानिए किस ग्रह से कौन सा रोग होता है.’ इस में लिखा गया है, ‘हर बीमारी का संबंध किसी न किसी ग्रह से है जो आप की कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दूसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है. किसे कब क्या कष्ट होगा, यह डाक्टर नहीं बता सकता परंतु एक सटीक ज्योतिषी इस की पूर्व सूचना दे देता है कि आप किस रोग से पीडि़त होंगे.’

विज्ञान के युग में प्रतिष्ठित संचार माध्यमों से जब ठोस ग्रहों के जीवन को प्रभावित करना बताया जाता है और एक बड़ा वर्ग इसे सिरमौर मान लेता है तो वह रामायण, महाभारत के पात्रों को कपोलकल्पित मान कर गुणगान भी करने लगता है जैसे नरेंद्र मोदी गणेश की पैदाइश को सर्जरी का कमाल मान लेते हैं जबकि चंद्रयान भेजे जाते समय वे खुद इसरो में बैठे थे. इस दोगली सोच के कारण भारत पिछड़ रहा है.

कायनात मुस्कुरा उठी: पराग की मनोदशा आखिर क्यों बिगड़ी?

बरसों से सजा पोते की शादी का ख्वाब वाकई आज सच होने जा रहा था. तभी फिजां में स्वरलहरी गूंज उठी. उन्हें लगा कि उन के साथसाथ पूरी कायनात मुसकरा रही थी. क्या तानी पराग की मनःस्थिति सुधार पाने में कामयाब हो पाई? पराग की मनःस्थिति आखिर क्यों बिगड़ी?

स्लिप्ड डिस्क के कारण व्हीलचेयर का प्रयोग कर रहे तेजस्वी यादव, आखिर क्या है स्लिप्ड डिस्क

लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार में अचानक बिहार के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का एक वीडियो वायरल हो गया जिस में वह व्हीलचेयर पर बैठे दिखे और वे लोगों का सहारा ले कर चल रहे थे. लोगों को अचानक यह समझ नहीं आया कि तेजस्वी यादव को क्या हो गया है ? इस की वजह उन की कमर का दर्द था. अररिया में चुनाव प्रचार करते कमर में अचानक दर्द शुरू हुआ. चुनाव प्रचार की वजह से उन को आराम भी करने को नहीं मिल रहा जिस से उन को कमर दर्द से राहत नहीं मिल रही है.

बीमारी के बीच भी तेजस्वी यादव चुनाव मैदान पर डटे नजर आते हैं. चुनाव के बीच वह आराम करने से बच रहे हैं. बीमारी के बीच भी वह सारण और सिवान पहुंचे और यहां कई जनसभाओं को संबोधित किया. सारण में तेजस्वी यादव अपनी बहन और इस लोकसभा क्षेत्र की उम्मीदवार रोहिणी आचार्य के समर्थन में एयरपोर्ट मैदान, राजेंद्र स्टेडियम में दो अलगअलग चुनावी सभाओं को संबोधित किया.

उन को मंच पर खड़े होने में समस्या आ रही थी. जिसे देखते हुए साथ चल रहे विकासशील इनसान पार्टी के संस्थापक मुकेश साहनी आगे आए. उन्होंने तेजस्वी का सहारा दिया और साहनी के कंधे के सहारे उन्होंने मतदाताओं को संबोधित किया. देर शाम तेजस्वी वापस पटना लौटे तो एक बार फिर व्हील चेयर पर एयरपोर्ट से बाहर नजर निकले और आवास के लिए प्रस्थान कर गए. तेजस्वी यादव को कमर दर्द की दिक्कत है. रीढ़ की हड्डी एल-4 और एल-5 में दर्द होने से कमर का दर्द हो रहा है. इस को स्लिप्ड डिस्क भी कहते हैं.

क्या होती है स्लिप्ड डिस्क

स्लिप्ड डिस्क तब होती है जब रीढ़ की हड्डी में हड्डियों के बीच ऊतक का एक नरम तकिया बाहर की ओर उभर जाता है. अगर यह नसों पर दबाव डालता है तो दर्द होता है. यह आमतौर पर आराम, हल्के व्यायाम और दर्द निवारक दवाओं से धीरेधीरे ठीक हो जाता है. इस को प्रोलैप्सड या हर्नियेटेड डिस्क भी कहा जाता है.

स्लिप्ड डिस्क के कारण पीठ के निचले हिस्से में दर्द, कंधों, पीठ, बांहों, हाथों, टांगों या पैरों में सुन्नता या झुनझुनी सी होती है. गर्दन में दर्द के साथ पीठ को मोड़ने या सीधा करने में दर्द होता है. कई बार जब डिस्क के दबाव से नितंबों, कूल्हों या पैरों में दर्द होने लगता है. सभी स्लिप्ड डिस्क के लक्षण पहले से नहीं दिखते हैं, जिस से कभी यह पता ही नहीं चलता कि डिस्क खिसक गई है.

कई बार उम्र बढ़ने, बहुत कठिन व्यायाम करने, भारी वस्तुओं को गलत तरीके से उठाने, लंबे समय तक बैठे रहना या गाड़ी चलाना, एक्सरसाइज न करने या अधिक वजन होने के कारण भी स्लिप्ड डिस्क हो सकता है. ज्यादा बाइक चलाने और सड़क ठीक न होने के कारण भी कमर का दर्द होने लगता है. इस से कमर में झटके पड़ते हैं. धूम्रपान करने वालों में निकोटीन रीढ़ की हड्डी में डिस्क ऊतक को कमजोर कर देता है. जिस से ऐेसे लोगों में यह परेशानी बढ़ जाती है.

स्लिप्ड डिस्क का इलाज

स्लिप्ड डिस्क से राहत के लिए लाइफ स्टाइल में बदलाव करना होता है. डाक्टर कुछ एक्सरसाइज बताता है. ज्यादा से ज्यादा आराम करने और दर्द निवारक दवाएं लेने से स्लिप्ड डिस्क के दर्द से राहत मिल सकती है. यदि दर्द बहुत तेज है तो पहले आराम करने की आवश्यकता हो सकती है. लेकिन जितनी जल्दी हो सके हल्का व्यायाम शुरू करें. यह तेजी से बेहतर होने में मदद करेगा.

व्यायाम में धीरेधीरे अपनी गतिविधि को बढ़ाएं. दर्द को कम करने के लिए इबुप्रोफेन जैसे सूजन रोधी दर्द निवारक दवाएं ली जा सकती हैं. जब दर्द अधिक हो तभी यह दवा लें क्योंकि इस के भी साइड इफैक्ट होते हैं.

अगर आराम, एक्सरसाइज और दर्द की दवा लेने के बाद भी राहत नहीं मिल रही है तो डाक्टर एमआरआई स्कैन जैसे अन्य जांच के लिए कह सकता है. जिस के आधार पर  फिजियोथेरैपिस्ट से इलाज के लिए कहा जा सकता है. स्लिप्ड डिस्क में आमतौर पर सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन यदि आप को लक्षण हैं तो डाक्टर सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं. स्लिप्ड डिस्क के इलाज में औस्टियोपैथी जैसी मैनुअल थेरैपी, पीठ के निचले हिस्से के दर्द को कम करने में मदद कर सकती है.

Mother’s Day 2024 : मदर्स डे पर पढ़ें मां से जुड़ी ये 10 प्रेरणादायक कहानियां

Mother’s Day 2024 : हर साल मई में मदर्स डे मनाया जाता है. इस साल 12 मई यानी रविवार को यह खास दिन मनाया जाएगा. इस दिन का हम सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है. इस दुनिया में हमारे कितने भी रिश्ते बने पर मां की तरह कोई भी प्यार नहीं कर पाएगा. एक मां ही है, जो निस्वार्थ प्रेम करना जानती है, तो क्यों न इस मदर्स डे पर आप भी अपने मां के लिए कुछ खास करें. अगर आपको और आपकी मां को कहानियां पढ़ना पसंद है, तो हम इस आर्टिकल में लेकर आए हैं, टॉप 10 मदर्स डे स्पेशल स्टोरी. जिन्हें पढ़कर आप मोटिवेट होंगे और आपके रिश्ते भी मजबूत होंगे.

 

1. अम्मां जैसा कोई नहीं – क्या अनु ने अम्मा का साथ निभाया

mothers day special

अस्पताल के शांत वातावरण में वह न जाने कब तक सोती रहती, अगर नर्स की मधुर आवाज कानों में न गूंजती, ‘‘मैडमजी, ब्रश कर लो, चाय लाई हूं.’’

वह ब्रश करने को उठी तो उसे हलका सा चक्कर आ गया.

‘‘अरेअरे, मैडमजी, आप को बैड से उतरने की जरूरत नहीं. यहां बैठेबैठे ही ब्रश कर लीजिए.’’

साथ लाई ट्रौली खिसका कर नर्स ने उसे ब्रश कराया, तौलिए से मुंह पोंछा, बैड को पीछे से ऊपर किया. सहारे से बैठा कर चायबिस्कुट दिए. चाय पी कर वह पूरी तरह से चैतन्य हो गई. नर्स ने अखबार पकड़ाते हुए कहा, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो तो बैड के साथ लगा बटन दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.’’

50 वर्ष की उस की जिंदगी के ये सब से सुखद क्षण थे. इतने इतमीनान से सुबह की चाय पी कर अखबार पढ़ना उसे एक सपना सा लग रहा था. जब तक अखबार खत्म हुआ, नर्स नाश्ता व दूध ले कर हाजिर हो गई. साथ ही, वह कोई दवा भी खिला गई. उस के बाद वह फिर सो गई और तब उठी जब नर्स उसे खाना खाने के लिए जगाने आई. खाने में 2 सब्जियां, दाल, सलाद, दही, चावल, चपातियां और मिक्स फ्रूट्स थे. घर में तो दिन भर की भागदौड़ से थकने के बाद किसी तरह एक फुलका गले के नीचे उतरता था, लेकिन यहां वह सारा खाना बड़े इतमीनान से खा गई थी.

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2. मां का बटुआ- बेटी को समझ आती है मां की अहमियत

maa ka batua

मैं अकेली बैठी धूप सेंक रही हूं. मां की कही बातें याद आ रही हैं. मां को अपने पास रहने के लिए ले कर आई थी. मां अकेली घर में रहती थीं. हमें उन की चिंता लगी रहती थी. पर मां अपना घर छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती थीं. एक बार जब वे ज्यादा बीमार पड़ीं तो मैं इलाज का बहाना बना कर उन्हें अपने घर ले आई. पर पूरे रास्ते मां हम से बोलती आईं, ‘हमें क्यों ले जा रही हो? क्या मैं अपनी जड़ से अलग हो कर तुम्हारे यहां चैन व सुकून से रह पाऊंगी? किसी पेड़ को अपनी जड़ से अलग होने पर पनपते देखा है. मैं अपने घर से अलग हो कर चैन से मर भी नहीं पाऊंगी.’ मैं उन्हें समझाती, ‘मां, तुम किस जमाने की बात कर रही हो. अब वो जमाना नहीं रहा. अब लड़की की शादी कहां से होती है, और वह अपने हसबैंड के साथ रहती कहां है. देश की तो बात ही छोड़ो, लोग अपनी जीविका के लिए विदेश जा कर रह रहे हैं. मां, कोई नहीं जानता कि कब, कहां, किस की मौत होगी. ‘घर में कोई नहीं है. तुम अकेले वहां रहती हो. हम लोग तुम्हारे लिए परेशान रहते हैं. यहां मेरे बच्चों के साथ आराम से रहोगी. बच्चों के साथ तुम्हारा मन लगेगा.’

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3. बेटी का सुख : वह मां के बारे में क्यों ज्यादा सोचती थी

beti ka sukh

मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

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4. मम्मी जी के बेटे जी- मां और शरद का रिश्ता कैसा था?

kahani

प्रतिभा ने अपनी ससुराल फोन किया. 3 बार घंटी बजने के बाद वहां उस के पति शरद ने रिसीवर उठाया और हौले से कहा, ‘‘हैलो?’’ शरद की आवाज सुन कर प्रतिभा मुसकराई. उस ने चाहा कि वह शरद से कहे कि मम्मीजी के बेटेजी.

मगर यह बात उस के होंठों से बाहर निकलतेनिकलते रह गई. वह सांस रोके असमंजस में रिसीवर थामे रही. उधर से शरद ने दोबारा कहा, ‘‘हैलो?’’ प्रतिभा शरद के बारबार ‘हैलो’ कहते सुनने से रोमांचित होने लगी, पर उस ने शरद की ‘हैलो’ का कोई जवाब नहीं दिया. सांसों की ध्वनि टैलीफोन पर गूंजती रही. फिर शरद ने थोड़ी प्रतीक्षा के बाद झल्लाते हुए कहा, ‘‘हैलो, बोलिए?’’ किंतु प्रतिभा ने फिर भी उत्तर नहीं दिया, उलटे, वह हंसने को बेताब हो रही थी, इसीलिए उस ने रिसीवर रख दिया. रिसीवर रखने के बाद उस की हंसी फूट पड़ी. हंसतेहंसते वह पास बैठी अपनी बेटी जूही के कंधे झक झोरने लगी. जूही को मम्मी की हंसी पर आश्चर्य हुआ. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, किस बात पर इतनी हंसी आ रही है? टैलीफोन पर ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘टैलीफोन पर कोई बात ही कहां हुई,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया. ‘‘तो फिर आप को इतनी हंसी क्यों आ रही है? पापा पर?’’ जूही चौंकी. ‘‘हां.’’

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5. ममता – क्या ममता का रूप भी कभी बदल पाता है

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दालान से गायत्री ने अपनी बेटी की चीख सुनी और फिर तेजी से पेपर वेट के गिरने की आवाज आई तो उन के कान खड़े हो गए. उन की बेटी प्रिया और नातिन रानी में जोरों की तूतू, मैंमैं हो रही थी. कहां 10 साल की बच्ची रानी और कहां 35 साल की प्रिया, दोनों का कोई जोड़ नहीं था. एक अनुभवों की खान थी और दूसरी नादानी का भंडार, पर ऐसे तनी हुई थीं दोनों जैसे एकदूसरे की प्रतिद्वंद्वी हों.

‘‘आखिर तू मेरी बात नहीं सुनेगी.’’

‘‘नहीं, मैं 2 चोटियां करूंगी.’’

‘‘क्यों? तुझे इस बात की समझ है कि तेरे चेहरे पर 2 चोटियां फबेंगी या 1 चोटी.’’

‘‘फिर भी मैं ने कह दिया तो कह दिया,’’ रानी ने अपना अंतिम फैसला सुना डाला और इसी के साथ चांटों की आवाज सुनाई दी थी गायत्री को.

रात गहरा गई थी. गायत्री सोने की कोशिश कर रही थीं. यह सोते समय चोटी बांधने का मसला क्यों? जरूर दिन की चोटियां रानी ने खोल दी होंगी. वह दौड़ कर दालान में पहुंचीं तो देखा कि प्रिया के बाल बिखरे हुए थे. साड़ी का आंचल जमीन पर लोट रहा था. एक चप्पल उस ने अपने हाथ में उठा रखी थी. बेटी का यह रूप देख कर गायत्री को जोरों की हंसी आ गई. मां की हंसी से चिढ़ कर प्रिया ने चप्पल नीचे पटक दी. रानी डर कर गायत्री के पीछे जा छिपी.

‘‘पता नहीं मैं ने किस करमजली को जन्म दिया है. हाय, जन्म देते समय मर क्यों नहीं गई,’’ प्रिया ने माथे पर हाथ मार कर रोना शुरू कर दिया.

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6. बेटी : मां अपनी पोती के साथ कैसा व्यवहार कर रही थी?

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सीमा को चुभने लगा था मां का बातबात पर उस की तारीफ करना और टिन्नी को उस का उदाहरण देदे कर घुङकना. लेकिन अभी भी बीते वक्त से चिपकी मां आज और कल में फर्क नहीं करना चाहती थीं. जब यही अंतर सीमा ने मां को समझाय तो वह हतप्रभ रह गईं.

तेज कदमों से अपूर्व को घर में दाखिल होते देख सीमा सोचने लगी कि आज जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि जब भी कोई नई सूचना अपूर्व को मिलती, अपनेआप ही उन की साधारण चाल में तेजी आ जाती.
सीमा को अपूर्व की यह सरलता बहुत भाती. अपूर्व के घर में दाखिल होने से पहले ही सीमा ने दरवाजा खोल दिया. अपूर्व ने आश्चर्य से सीमा को देखा और पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आ गया हूं?’’

‘‘यह कहिए कि आया ही नहीं हूं, एक अच्छी खबर भी साथ में लाया हूं, अपूर्व के चेहरे को देख कर सीमा बोली.’’

‘‘तुम्हें तो जासूसी विभाग में होना चाहिए था,’’ अपूर्व हंस कर बोले.

‘‘जल्दी से बताइए, क्या खुशखबरी लाए हैं,’’ सीमा चहकी.

‘‘चाय की चुसकी के साथ बताऊंगा,’’ अपूर्व सीमा के धैर्य की परीक्षा लेते हुए बोले.

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7. इमोशनल फूल : क्यों वह मासूम बच्चे से छुटकारा पाना चाहती थी?

emotional fool

वृक्षारोपण की औपचारिकता पूरी हुई तो मैं पार्क का चक्कर काटने के बहाने एक सुरक्षाकर्मी के साथ उस परिचित कोने की ओर खिसक लिया. पार्क में प्रवेश करने के साथ ही उमा आंटी की यादें मेरे दिमाग के द्वार थपथपाने लगी थीं और शायद उन्हीं यादों के वशीभूत मेरे कदम इस ओर उठ आए थे. पल्लू से ओट किए वहां बैठी एक वृद्धा के चेहरे की झलक दिखी तो मैं चौंक उठा. ‘अरे, ये तो उमा आंटी हैं!’

सुरक्षाकर्मी बीच में टपक पड़ा था, ‘मंत्रीजी हैं. पार्क में वृक्षारोपण के लिए आए हैं.’

मैं ने झुक कर प्रणाम किया तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, ‘ऐसे ही नेक काम करते रहो. पर याद रखना बेटा, बीज बोने से बड़ा काम उसे सींचना है. यदि सींचने की हिम्मत नहीं रखते तो कभी बीज बोने की जुर्रत भी मत करना. न धरती के गर्भ में और न किसी स्त्री के गर्भ में.’ अपनी बात समाप्त कर वे उठ कर एक ओर चल दी थीं. मैं अवाक सा उन्हें जाते देखता रह गया था.

सवेरे उठा तो फिर वही बात जेहन में उभर आई. मैं गाड़ी उठा कर पार्क की ओर चल पड़ा. कदम सीधे वहीं जा कर रुके जहां मैं ने कल पौधा लगाया था. कल जहां पब्लिक, प्रैसवालों का जमघट लगा हुआ था आज वहां पर एक चिड़िया भी नजर नहीं आ रही थी. पौधा मुरझा कर लटक गया था. मैं दूर कहीं बहते पाइप को खींच कर लाया और पौधों को पानी पिलाया. तृप्त पौधों के साथ मेरा मन भी ख़ुशी से लहलहाने लगा. पाइप छोड़ कर पलटा तो उमा आंटी खड़ी मुसकरा रही थीं, ‘तुम सच्चे अर्थों में जनता के सेवक हो.’

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8. बिनब्याही मां: नीलम की रातों की नींद क्यों हराम हो गई

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सर्दी की खिलीखिली सी दोपहर में जैसे ही स्कूल की छुट्टी की घंटी बजी, मैं और मेरी सहेली सुजाता रोज की तरह स्कूल से बाहर आ गए. स्कूल के गेट के बाहर छोटेछोटे दुकानदारों ने अपनी अस्थायी दुकानें सड़क के किनारे, ठेले पर और साइकिल के पीछे लगे कैरियर पर बंधे लकड़ी के डब्बों में सजा रखी थीं, जिन में बच्चों को आकर्षित करने के लिए तरहतरह की टौफियां, चाट, सस्ती गेंदें व खिलौने के अलावा पेनकौपी भी थीं.

मैं ने एक साइकिल वाले से अपना पसंदीदा खट्टामीठा चूरन लिया और सुजाता के साथ रेलवे लाइन की ओर बढ़ गई. सुजाता बारबार मेरी ओर बेचैनी से देख रही थी, लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी. रेलवे लाइन पार करने के बाद आखिरकार उस से रहा नहीं गया और उस ने मुझ से पूछा, “नीलम, सुना है, आज तेरी विकास से लड़ाई हो गई थी?”

“हां, तो उस में कौन सी नई बात है. अकसर होती है, पर बाद में दोस्ती भी तो हो जाती है,” मैं ने लापरवाही से चूरन की पुड़िया से उंगली में चूरन ले कर चाटते हुए कहा.

“बात तो कुछ नहीं, लेकिन मुझे पता चला कि उस ने तेरे हाथ पर काट भी लिया था,” उस ने बहुत रहस्यात्मक ढंग से कहा, तो मैं ने उस की ओर सवालिया निगाह से देखा और फिर अपने हाथ को देखा, जहां उस ने काटा था, अब तो वहां कोई निशान भी नहीं दिख रहा था.

“तो क्या हुआ? अब तो ठीक है सब. मैं ने भी उस के 2 बार काटा बदले में,” मैं ने शेखी बघारते हुए उसे बताया, जबकि मैं खुद डेढ़ पसली की थी. 10 साल की उम्र के हिसाब से मैं काफी दुबली थी, जबकि मेरी हमउम्र सहेलियां मुझ से बड़ी दिखती थीं.

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9. हमें तुम से प्यार कितना : अंशू से कितना प्यार करती थी मधु

humein tumse pyar kitna

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

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1o.  उसकी मम्मी मेरी अम्मा – आखिर दिक्षा अपनी मम्मी से क्यों नफरत करती थी?

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दीक्षा की मम्मी उसे कार से मेरे घर छोड़ गईं. मैं संकोच के कारण उन्हें अंदर आने तक को न कह सकी. अंदर बुलाती तो उन्हें हींग, जीरे की दुर्गंध से सनी अम्मा से मिलवाना पड़ता. उस की मम्मी जातेजाते महंगे इत्र की भीनीभीनी खुशबू छोड़ गई थीं, जो काफी देर तक मेरे मन को सुगंधित किए रही. मेरे न चाहते हुए भी दीक्षा सीधे रसोई की तरफ चली गई और बोली, ‘‘रसोई से मसालों की चटपटी सी सुगंध आ रही है. मौसी क्या बना रही हैं?’’ मैं ने मन ही मन कहा, ‘सुगंध या दुर्गंध?’ फिर झेंपते हुए बोली, ‘‘पतौड़े.’’ दीक्षा चहक कर बोली, ‘‘सच, 3-4 साल पहले दादीमां के गांव में खाए थे.’’मैं ने दीक्षा को लताड़ा, ‘‘धत, पतौड़े भी कोई खास चीज होती है. तेरे घर उस दिन पेस्ट्री खाई थी, कितनी स्वादिष्ठ थी, मुंह में घुलती चली गई थी.’’

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‘पाप पुण्य नहीं’ सही मतदान ही 5 साल की गांरटी देगा

कांग्रेस और सपा को वोट देना पाप है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यूपी में माफियाओं को नष्ट कर दिया. योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के एटा लोकसभा क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे. इस दौरान सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश में माफियाओं के राज को खत्म कर दिया है. भाजपा आप के हितों के लिए काम कर रही है. कांग्रेस की सरकार आई तो वह एसटी, एससी व ओबीसी आरक्षण के एक हिस्से को मुसलमानों को दे देगी.

योगी ने कहा कि ‘उस समय के बारे में सोचें जब समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान राजीव पाल की हत्या कर दी गई थी. भाजपा सरकार में एक माफिया ने उमेश पाल की हत्या कर दी थी, लेकिन अब हर कोई जानता है कि माफिया को कैसे नष्ट कर दिया गया. भाजपा आप के हितों के लिए काम कर रही है. इन चुनावों में आप को वोट देने से पहले जाति या धर्म नहीं देखना है. आप केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देखिए.

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस और एसपी गठबंधन से सावधान रहें. यह यहां दो काम करने आए हैं, ‘अगर ये सत्ता में आए तो एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण का एक हिस्सा मुसलमानों को देंगे. इस इरादे के साथ देश के इसलामीकरण और तालिबानी व्यवस्था को लागू कर कांग्रेस देश को विभाजन की ओर धकेल रही है. दूसरी ओर वे कह रहे हैं कि वे अल्पसंख्यकों को जो चाहें खाने की आजादी देंगे. क्या यह बहुसंख्यकों के लिए आपत्तिजनक है? यूपी में गोहत्या प्रतिबंधित है. कांग्रेस एसपी को दिया गया कोई भी वोट पाप का कारण होगा.’

संविधान ने मतदान को कहा, पाप पुण्य को नहीं

देश का संविधान कहता है कि हर भारत के नागरिक को अपना जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार है. इस के लिए लोकसभा, विधानसभा और पंचायत के चुनाव होते हैं. नागारिक बिना किसी डर लाभ के वोट करें. अपने जनप्रतिनिधि को वोट दे कर चुन सके. वह सरकार बनाए देश के हित और विकास में वोट दे. हर 5 साल के बाद नागरिकों को यह अधिकार मिलता है. वोट देने के समय यह देखना जरूरी होता है कि जिसे आप चुन रहे हैं वह कैसा है ? राजनीतिक दल अपने अलगअलग तरह के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार देते हैं. इस के बाद उस के पक्ष में वैसा ही प्रचार होता है जैसे गोरेपन की क्रीम का होता है.

वैसे तो लोकसभा के चुनाव सांसद चुनने के लिए होता है. लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रचार यह किया जा रहा है कि केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देख कर चुनाव हो. योगी ने अपने भाषण में कहा कि ‘आप केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देखिए.’ वोट देते समय आप को अपने सांसद का चेहरा देखने की जरूरत है. आप के क्षेत्र में जो चुनाव लड़ रहा है उसे देख कर वोट दीजिए. वोट पाने के लिए ही पाप और पुण्य की बात कही जा रही है.

असल में रूढ़िवादी सोच हमें पाप, पुण्य और पुर्नजन्म की कहानियां सुनाती है. हम कोई भी काम करने से पहले पाप, पुण्य को देखते हैं. इस के सामने आते ही हम अपनी आंखें बंद कर लेते हैं. इस के बाद कोई भी हमें बेवकूफ बना कर जा सकता है. यही बात चुनाव प्रचार में समझाई जा रही है. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ संत भी हैं. तो उन की इस तरह की अपील ज्यादा प्रभावी होती है. इसीलिए भाजपा उन का प्रयोग कर रही है. चुनाव प्रचार में वह नरेंद्र मोदी के बाद भाजपा के नंबर दो के नेता हैं. उन का प्रचार धर्म का प्रचार लगता है.

पुण्य मतलब भाजपा

योगी आदित्यनाथ के बयान में पाप मतलब कांग्रेस और दूसरे विरोधी दल हैं तो पुण्य मतलब भाजपा है. मतदान को भी योगी ने एक तरह का दान समझ लिया है. दान के बारे में कहा जाता है कि यह सुपात्र को ही दिया जाता है. अब देखिए यहां सुपात्र किस को बताया जा रहा है. जो दिन भर हिंदूमुसलमान करें. मंदिर बनवाए, अपार शक्ति वाला राजा हो. वह ऋषि मुनियों की जमात से आए. यहां शूद्र हो कर पठनपाठन करने वालों को सुपात्र नहीं माना गया है. भाजपा खुद को दूसरे दलो से श्रेष्ठ मानती है. चुनाव प्रचार में भाजपा अपने 10 साल की सरकार के कामकाज पर हिसाब देने बात करने को तैयार नहीं है.

उसे लगता है कि यह बातें जनता को लुभाने में सफल नहीं होगी. ऐसे में भाजपा के निशाने पर या तो कांग्रेस का गांधी परिवार है या फिर हिंदूमुसलमान. 3 चरण के चुनाव प्रचार में यही देखने को मिल रहा है. 10 साल केंद्र में भाजपा की सरकार काम कर रही है 7 साल से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. यह डबल इंजन की सरकार से प्रदेश को क्या हासिल हुआ ? न तो परिक्षाओं में पेपर लीक रुकी है न नौकरियां मिल रही हैं. रिश्वतखोरी भी कम नहीं हुई है. आखिर बदलाव है कहां ? इस वजह से ही भाजपा पाप पुण्य को मुद्दा बना रही है.

मतदान कोई दान नहीं है. जिस को बिना कुछ सोचेसमझे दे दिया जाए. मतदान एक अधिकार है. जिम्मेदारी है. ऐसे में संविधान कहता है कि अपने मत का प्रयोग बहुत सोचसमझ कर करें. तभी लोकतंत्र की अवधारणा सच होगी. अगर किसी दबाव या लोभ के बल पर वोट दिया गया तो वोट की ताकत को कमजोर करना होगा. इस से लोकतंत्र भी कमजोर होगा. मतदान आप का अधिकार ही नहीं जिम्मेदारी भी है. सोचसमझ कर सतर्कता के साथ मतदान करें. आप का सही मतदान ही 5 साल की गांरटी देगा.

मई का पहला सप्ताह, कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार हम तो डूबेंगें सनम, तुम्हे भी ले डूबेंगे

अप्रैल के चौथे सप्ताह तक देशभर के सिनेमाघरों में विरानी छा चुकी थी. इस के बावजूद कुछ फिल्मकार अपने पीआर के कहने पर खुद के साथसाथ पूरे सिनेमा उद्योग को डुबाने पर आमादा नजर आ रहे हैं. एक मई से लगभग 80 प्रतिशत सिनेमाघरों पर फिलहाल दो माह के लिए ताला लग चुका है.

कुछ सिंगल स्क्रीन्स हर दिन सिर्फ एक शो कर रहे हैं तो वहीं कुछ मल्टीप्लैक्स अपने यहां की 4 में से 3 स्क्रीन्स बंद कर एक स्क्रीन्स के कुछ शो चला रहे हैं. ऐसे में नए कलाकारों से सजी नए निर्देशक की फिल्म को सिनेमाघरो में उभारने से पहले निर्माता को 10 बार सोचना चाहिए. मगर नएनए निर्माता तो अपने पीआर के कहने पर ‘सूली पर चढ़ते’ हुए नजर आ रहे हैं.

जी हां, मई के पहले सप्ताह यानी कि 3 मई को लेखक व निर्देशक दानिश जावेद की फिल्म ‘प्यार के दो नाम’ प्रदर्शित हुई. इस फिल्म में भाव्या सचदेव, अंकिता साहू, कनिका गौतम, अचल तंकवाल ने अभिनय किया है. इस फिल्म का कहीं ठीक से प्रचार नहीं किया गया था. दर्शकों को इस फिल्म के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मगर फिल्म के निर्माता ने अपने पीआर की सलाह पर फिल्म को 3 मई को प्रदर्शित कर दिया.

फिल्म को एडवांस बुकिंग शून्य मिली, जिस के चलते 3 मई के सभी शो रद्द हो गए. 3 मई को मुंबई अंधेरी स्थित ‘पीवीआर आईकान’ मल्टीप्लैक्स की एक स्क्रीन में शाम पौने आठ बजे पहला शो संपन्न हुआ. यह पहला शो ही प्रेस शो, प्रीमियर शो और आम दर्शकों के लिए शो था.

कहने का अर्थ यह कि इस शो की सारी टिकटें निर्माता ने अपनी जेब से खरीदी थीं और लोगों ने मुफ्त में फिल्म देखी. फिर भी सिनेमा हौल पूरा भरा हुआ नहीं था. आखिर निर्माता व पीआरओ के बुलाने पर कितने लोग आते, वह भी शुक्रवार 3 मई को रात पौने आठ बजे के शो में. कुल मिला कर फिल्म ‘प्यार के दो नाम’’ का सिनेमाघर में प्रदर्शित होना या न होना को आप यही कह सकते हैं कि ‘जंगल में मोर नाचा, किस ने जाना.’

हमारे सूत्र बताते हैं कि इस फिल्म ने पूरे सप्ताह 5 लाख रूपए भी नहीं कमाए, जबकि निर्माता की तरफ से 20 लाख रूपए की टिकट बिकने की बात की गई है. यदि हम निर्माता की बात सही मान लें, तो भी उस के हाथ में 20 लाख में से महज 5 लाख रूपए ही आए होंगें, अब बेचारा निर्माता इस राशि का क्या करेगा.

ऊपर से इस फिल्म पर भी सिनेमा को डुबाने का आरोप लग गया. नए कलाकारों का कैरियर शुरू होने से पहले ही डूब गया. यदि निर्माता ने ठीक से प्रचार किया होता और दर्शकों तक खबर सही ढंग से पहुंचाई होती कि उन की फिल्म का विषय क्या है और किस शहर के किस सिनेमाघर में लग रही है, तो शायद कुछ पैसे कमा लेते.

फिल्म ‘प्यार के दो नाम’ में प्यार के नए मायने बताए गए हैं. एक प्यारी से प्रेम कहानी वाली इस फिल्म में गांधीजी और नेल्सन मंडेला के विचारों का टकराव भी है. अब यदि दर्शक इसे देखते तो शायद उन्हें यह फिल्म पसंद आ जाती, मगर निर्माता की अपनी गलती की वजह से फिल्म देखने दर्शक सिनेमाघर ही नहीं पहुंचा.

उधर सिनेमाघर मालिकों को अब सिर्फ दक्षिण की फिल्मों ‘कलकी 2898’ और पुष्पा 2’ के प्रदर्शन का इंतजार है, जिन से उन्हें उम्मीद है कि दर्शक सिनेमाघर आएगा. पर अफसोस इन फिल्मों के प्रदर्शन की तारीखें अभी तक कई बार बदल चुकी हैं. अब नए समाचार के अनुसार 27 जून को ‘कलकी 2898’ और 15 अगस्त को ‘पुष्पा 2’ प्रदर्शित होगी. जबकि हिंदी में एक भी बड़ी फिल्म सितंबर तक रिलीज नहीं होने वाली है.

कुछ फिल्मों की तारीखें आगे खिसका दी गई हैं. पहले 15 अगस्त को रोहित शेट्टी अपनी फिल्म ‘सिंघम अगेन’ ले कर आने वाले थे, पर अब वह इतना डर गए हैं कि वह ‘सिंघम अगेन’ को 15 अगस्त की बजाय 2025 के जनवरी माह में लाने की बात कर रहे हैं.

अधिकारियों और बिल्डर्स के भ्रष्टाचार के खेल में पिसते ग्राहक

अपने घर का सपना तो हर व्यक्ति की आंखों में होता है मगर आज के समय में घर बनाना आसान नहीं है. एक आम आदमी जीवन के 35-40 साल कठोर श्रम के बाद जो पैसा जोड़ता है उस में से रोजमर्रा की जरूरतों और बच्चों की पढ़ाई आदि का खर्च निकाल कर वह जो थोड़ीथोड़ी बचत करता है उस पूंजी से ही उम्र के 50वें या 60वें साल में जा कर कहीं अपना घर बना पाता है.

अनेक लोग जो 40 की उम्र के आसपास घर बनवाते हैं या खरीदते हैं, वे इस के लिए बैंक से लोन लेते हैं और फिर जीवनभर लोन चुकाते हैं. कभीकभी तो अपने घर का सपना पूरा करने में घर की गृहणी के सारे जेवर तक बिक जाते हैं. उस का सारा स्त्रीधन निकल जाता है. परन्तु अपने जीवनभर की कमाई बिल्डर को सौंपने के बाद भी यदि किसी को उस के सपने का घर न मिले, या तय समय में न मिल कर सालों के इंतजार के बाद मिले अथवा ऐसा घर मिले जिस की दीवारें कुछ ही समय में झड़ने लगे तो बेचारे की क्या दशा होगी? वह खुद को ठगा हुआ महसूस करेगा.

कई बार तो लोग ऐसी घटनाओं से इतने आहत हो जाते हैं कि खुदकुशी तक कर बैठते हैं. उपभोक्ता फोरम में ऐसे मामलों की फाइलों के ढेर लगे हुए हैं. अदालतों में अनेक बिल्डरों के खिलाफ मामले दर्ज हैं, मगर ऐसी घटनाएं जारी है.

जीवनभर की पूंजी लगा देने के बाद भी अपना घर न मिलने के ऐसे ही एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फैसला 8 मई को सुनाया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा के गुरुग्राम में सरकारी रीयल एस्टेट कंपनी एनबीसीसी को एक फ्लैट खरीदार को 12% ब्याज के साथ 76 लाख रुपए से अधिक रकम लौटाने का आदेश दिया है. यही नहीं ग्राहक को मानसिक पीड़ा देने की एवज में 5 लाख रुपए अतिरिक्त देने का भी आदेश दिया गया है.

गौरतलब है कि रीयल एस्टेट कंपनी एनबीसीसी को सारा भुगतान करने के बाद भी 6 सालों से अपना फ्लैट मिलने का इंतजार करने वाले याचिकाकर्ता संजय रघुनाथ पिपलानी एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं. उन्होंने वर्ष 2012 में गुरुग्राम के लिए शुरू की गई परियोजना एनबीसीसी ग्रीन व्यू अपार्टमेंट में एक फ्लैट बुक कराया था, लेकिन 2017 में 76 लाख रुपए से अधिक की पूरी बिक्री कीमत का भुगतान करने के बावजूद उन्हें आज तक फ्लैट नहीं मिला.

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एनबीसीसी को खरीदार (वादी) द्वारा भुगतान की गई पूरी रकम 30 जनवरी 2021 से आज तक 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने का आदेश देते हुए कहा कि घर खरीदना किसी व्यक्ति या परिवार का अपने जीवन काल में किए गए सब से महत्वपूर्ण निवेशों में से एक है. इस में अकसर बरसों की बचत, सावधानीपूर्वक योजना और भावनात्मक निवेश शामिल होता है.

अदालत ने कंपनी को फटकार लगाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पिछले 7 साल में घर बदलने पड़े और अत्यधिक मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा है. वादी को 6 साल से अधिक की देरी और अनिश्चितता के कारण काफी परेशानी उठानी पड़ी. ऐसे में यह अदालत एनबीसीसी को याचिकाकर्ता को हर्जाने के रूप में 5 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश देती है.

इस संबंध में याचिकाकर्ता ने बताया कि उस ने 2012 में गुड़गांव में एनबीसीसी द्वारा शुरू की गई एक परियोजना ‘एनबीसीसी ग्रीन व्यू अपार्टमेंट’ में एक फ्लैट बुक कराया था, लेकिन 2017 में 76,85,576 रुपए की पूरी बिक्री कीमत का भुगतान करने के बावजूद, फ्लैट उसे कभी नहीं सौंपा गया.

कोर्ट ने कहा कि “घर खरीदना किसी व्यक्ति या परिवार द्वारा अपने जीवनकाल में किए गए सब से महत्वपूर्ण निवेशों में से एक है. इस में अकसर वर्षों की बचत, सावधानीपूर्वक योजना और भावनात्मक निवेश शामिल होता है. जब ऐसे घरों के निर्माता अपना वादा पूरा करने में असफल हो जाते हैं, तो वे घर खरीदने वालों के भरोसे और वित्तीय सुरक्षा को चकनाचूर कर देते हैं और घर खरीदने वालों को ऐसी स्थिति में डाल देते हैं, जहां उन्हें अत्यधिक तनाव, चिंता, अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है और अंततः सहारा लेने के लिए कानूनी रास्ते अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.”

जज ने कहा, “अपने निवेश के भविष्य और उन के रहने की व्यवस्था की स्थिरता के बारे में अनिश्चितता के कारण अधर में रहने का भावनात्मक बोझ कम नहीं किया जा सकता है. गलत घर खरीदने वालों को मुआवजा देना न केवल पिछले अन्याय को सुधारने का मामला है, बल्कि भविष्य के कदाचार को रोकने का भी मामला है.”

एनबीसीसी को मुआवजा देने के लिए कहते समय, एचसी ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि याचिकाकर्ता को पिछले 7 वर्षों में आवास बदलने और खुद की देखभाल करने के लिए मजबूर किया गया था.

अदालत ने कहा, “यह एक घर खरीदार द्वारा झेली गई अत्यधिक कठिनाई का एक क्लासिक मामला है, जिसे अपनी पूरी जिंदगी की बचत खर्च करने के बाद दरदर भटकना पड़ा. प्रतिवादी ने घर खरीदने वालों के साथ इस तरह का व्यवहार कर के बेहद अनुचित व्यवहार किया है.” .

गुरुग्राम में एनबीसीसी ने कई ऐसे प्रोजैक्ट बनाए हैं जो मानक पर खरे नहीं उतरे हैं. एनबीसीसी के अधिकारियों और बिल्डर्स के गठजोड़ के चलते भ्रष्टाचार का ऐसा खेल चल रहा है जिस में ग्राहक पिस रहा है. 2 साल पहले सैक्टर 37 डी स्थित एनबीसीसी की ग्रीन व्यू सोसायटी रहने के लिए असुरक्षित पाई गई. जबकि इस को बने कुछ ही समय बीता था. यहां फ्लैट्स की दीवारों से प्लास्टर गिरने लगा और कई फ्लैट की छतें दरक गईं.

ग्रीन व्यू सोसायटी के आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष जी मोहंती कहते हैं कि उन्हें एनबीसीसी की बातों पर भरोसा नहीं है. 5 साल पहले जो फ्लैट ग्राहकों को दिए गए वह 5 साल में जर्जर हो गए. जब शुरू में इस की शिकायत एनबीसीसी के अधिकारियों से की गई थी तब विशेषज्ञों की रिपोर्ट को उन्होंने इस अंदाज में प्रस्तुत किया था कि इमारत सुरक्षित है और थोड़ी सी मरम्मत की जरूरत है. लेकिन जब एक फ्लैट की छत गिरी और दो महिलाओं की जानें गई तब एनबीसीसी ने इमारत को असुरक्षित बताते हुए रातोंरात खाली करने का आदेश जारी कर दिया. सब के लिए अचानक अपनी रिहाइश छोड़ कर कहीं और शिफ्ट हो जाना कितना मुश्किल था.

कई परिवार में बहुत बूढ़े लोग थे, वे रातोरात कहां चले जाते? लोगों ने कंपनी के खिलाफ धरने प्रदर्शन किए. आज भी उस सोसाइटी में कई लोग खतरे के बीच रह रहे हैं. फ्लैट बनाने के लिए इतनी घटिया सामग्री लगाई गई कि 5 साल में ही बिल्डिंग जर्जर हो गई. इन की इमारतों का लगातार क्षरण हो रहा है. लगातार प्लास्टर गिर रहा है. कंक्रीट धीरेधीरे टूट कर गिर रही है. सरिया बाहर निकल आए हैं. यह क्रम लगातार चल रहा है, मगर ग्राहक क्या करे, कहां जाए? सारी पूंजी तो फ्लैट खरीदने में लगा दी अब कहीं बाहर रहने पर किराए के लिए पैसा कहां से लाएं?

घर के सपने दिखा कर तमाम निर्माण कंपनियों ने हजारोंलाखों जरूरतमंद लोगों को अपने जाल में फंसा रखा है. प्राधिकरणों के डायरैक्टरों और अधिकारियों की मिलीभगत से कौड़ियों के भाव ली गई जमीनों पर इंजीनियरों और ठेकेदारों से घटिया कंस्ट्रक्शन करवा कर तमाम निर्माण कम्पनियां चाहे सरकारी हों या गैर सरकारी, करोड़ोंअरबों का वारा न्यारा कर रही हैं. इस भ्रष्टाचार में सरकारों और बैंकों की भूमिकाएं भी संदेह के घेरे में हैं. नुकसान उठा रहा है आम आदमी. लाखों लोग रेरा जैसे कानून के बावजूद एक अदद घर की आस में धक्के खा रहे हैं.

देश के कोनेकोने में ऐसे असंख्य भवन खड़े हो रहे हैं जो कंपनी डायरैक्टरों, अधिकारियों, राजनेताओं, बिल्डरों और ठेकेदारों के गठजोड़ के कारण घटिया सामग्री इस्तेमाल कर बनाए गए हैं. जब कोई हादसा होता है तो अधिकारी सारा ठीकरा ठेकेदार के सिर फोड़ कर खुद पाक साफ निकल जाते हैं. ठेकेदार गिरफ्तार होता है और कुछ समय में पैसा खिला कर उसे भी बचा लिया जाता है. चाहे मुंबई की आदर्श सोसाइटी का किस्सा हो या नोएडा के ट्विन टावरों के ध्वस्तीकरण का, अदालतें ने इन को गिराने के आदेश तो दिए मगर जब तक सब से ऊपर की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को कौलर पकड़ कर जेल नहीं भेजा जाएगा तब तक यह यह गंदा खेल रुकने वाला नहीं है.

अदालत द्वारा रीयल एस्टेट कंपनी एनबीसीसी के खिलाफ आदेश सुनाने और पीड़ित को पूरा पैसा वापस दिलाने भर से यह धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा जब तक एनबीसीसी के डायरैक्टर के. पी. महादेवास्वामी से जवाबदारी न मांगी जाए. जब तक उन को अदालत के कटघरे में न बुलाया जाए.

‘निसंतानता’ जैसे बड़े विषय पर फिल्म बनाने से क्यों कतरा रहा बौलीवुड

रश्मि मां नहीं बन पाई, क्योंकि उस का बारबार मिसकैरिज हो जाता था. उन्होंने कई बार डाक्टर से सलाह ले कर दवाइयां लीं, लेकिन वह मां नहीं बनी. अंत में रश्मि ने अपनी जिंदगी को अपनी तरीके से जीना शुरू किया, जिस में उस ने नौकरी कर ली और अपनी हौबी को करना शुरू किया. आज वह खुश है, लेकिन 50 साल की इस उम्र में भी वह जब भी अपने पति के साथ किसी गेटटूगेदर में जाती है, लोगों को फुसफुसाते हुए सुनती है या दयाभाव को जाहिर करते हुए पाती है, जो, हालांकि, पहले की अपेक्षा कम हुआ है. उन दोनों की इस बिंदास जीवनशैली से कई पतिपत्नी प्रेरित भी होते हैं, जो रश्मि को अच्छा लगता है.

पतिपत्नी में अच्छी बौंडिंग

असल में जब दंपती मातापिता बनते हैं तो उन की जिंदगी बच्चों के पालनपोषण में गुजर जाती है. ऐसे में बहुत कम पतिपत्नी होते हैं जो एकदूसरे की जिंदगी का ध्यान रख पाते हैं. जबकि देखा गया है कि निसंतान पतिपत्नी का आपसी प्यार और उन की बौंडिंग बहुत अच्छी होती है. अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री सायरा बानो की आपसी बौंडिंग इस का एक उदाहरण है. उन के कोई संतान नहीं थी, लेकिन उन दोनों का आपसी प्यार बहुत स्ट्रौंग था. एक बार अभिनेत्री सायरा बानो ने कहा भी है कि मेरे अपने बच्चे भले ही नहीं हैं लेकिन मेरे आसपास बहुत सारे बच्चे हैं जिन को मैं ने अपने परिवार में बड़ा होते हुए देखा है. उन में केवल परिवार ही नहीं, बल्कि हमारे घर के हैल्पर भी है. हम दोनों को कभी नहीं लगा कि हमारे बच्चे नहीं हैं.

चौइस कपल्स की

असल में मां बनना एक महिला के लिए नैसर्गिक प्रक्रिया है, लेकिन कई बार कुछ कारणों से महिला मां नहीं बन पाती. सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी महिला के प्रति समाज और परिवार आजकल हीनभावना दिखाने की अपेक्षा दयाभाव ज्यादा दिखाते हैं. अगर कपल संभ्रांत परिवार का हो, तो फिर क्या ही कहने. लोगों की हमदर्दी अनचाहे ही उन पर आ गिरती है, मसलन उन के बाद में उन की प्रौपर्टी का मालिक कौन होगा, व्यवसाय को कौन चलाएगा आदि कई प्रश्नों का सामना उन्हें करना पड़ता है, जो उन कपल को कई बार खराब भी लगता है.

हालांकि आजकल कई प्रकार के इलाज द्वारा प्रैगनैंसी संभव है, मसलन सरोगेसी, अडौप्शन, आईवीएफ आदि लेकिन ये सब उन कपल्स की चौइस होती है कि बच्चा उन्हें चाहिए या नहीं. आजकल अधिकतर पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं, बच्चे की जिम्मेदारी लेने से वे घबराते हैं.

सीमा और कुशल की भी कहानी यही है. 10 साल हुए उन की शादी को. दोनों मुंबई में रहते हैं. दोनों आर्किटैक्ट हैं लेकिन उन्हें बच्चा नहीं चाहिए, क्योंकि बच्चे को पालने वाला कोई नहीं है और वे अपने बच्चे की जिम्मेदारी सास या मां पर देना नहीं चाहते. यह उन दोनों की सम्मिलित सोच है, दोनों अपनी जिंदगी से खुश हैं. हालांकि परिवार वाले उन पर बच्चे के लिए प्रैशर बनाते हैं लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया है कि हम दोनों में कोई डिफैक्ट नहीं है और हमें बच्चा नहीं चाहिए. सो, परिवार वाले भी चुप हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

हाल के वर्षों में विकासशील देशों में बिना बच्चे वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है. भारत भी उन में से एक है. भारत में निसंतानता बढ़ी है. वर्ष 2015-2016 में भारत में 7 फीसदी महिलाएं निसंतान थीं, जो 2019-2021 में बढ़ कर 12 फीसदी हो गईं. संतानहीनता शिक्षा के स्तर, शादी की उम्र, बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) स्तर और थायरौयड की उपस्थिति से सकारात्मक रूप से जुड़ी हुई है, जिस में शहरी महिलाओं में निसंतानता की संख्या अधिक है. इस की वजह महिलाओं की स्कूली शिक्षा, आत्मनिर्भरता, शादी की उम्र, मीडिया एक्सपोज़र आदि के बढ़ते रुझान को देखते हुए निसंतान महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है. यही वजह है कि आजकल औलाद पाने का कारोबार भी खूब बढ़ रहा है.

नहीं लिखी गई कहानियां

अगर फिल्मों की बात करें तो फिल्मों की कहानियां भी आज तक ऐसी नहीं लिखी गईं जिन में किसी दंपती को फिल्म के अंत तक बच्चा नहीं है और वे अपनी जिंदगी को एक अलग अंदाज में जी रहे हैं. अधिकतर फिल्मों में ऐक्ट्रैस निसंतान तो होती है, लेकिन अंत में उसे किसी न किसी रूप में बच्चा मिल ही जाता है, जो दर्शकों के लिए पौजिटिव एन्डिंग होती है. इस बारे में ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ की निर्देशक और लेखक अलंकृता श्रीवास्तव कहती हैं, “यह सही है कि निसंतान दंपती को ले कर फिल्मों की कहानियां नहीं लिखी गईं और आज की तारीख में दंपती की चौइस कई बार मातापिता बनने की नहीं होती और किसी ने इस विषय पर फिल्म बनाने या लिखने के बारे में सोचा भी नहीं है.

“असल में हमारे दर्शक किसी फिल्म का सुखांत चाहते हैं. नकारात्मक एन्डिंग को वे पसंद नहीं करते, इसलिए जो समाज या परिवार में होता है, उसे ही अधिकतर फिल्म के विषय के रूप में लिया जाता है.”

महिला फिल्ममेकरों की जरूरत

फिल्म निर्देशक व लेखक अलंकृता श्रीवास्तव आगे कहती हैं, “बिना मां बने किसी स्टोरी का फोकस, शायद नहीं हुआ है. रियल लाइफ में महिलाएं या तो मां बनना नहीं चाहतीं या फिर किसी मैडिकल कारण से वे मां नहीं बन सकतीं. ऐसे में बच्चा पाने के आजकल कई साधन उपलब्ध हैं जिन में बच्चे को अडौप्ट किया जा सकता है, आईवीएफ करवा सकते हैं, सरोगेसी एक औप्शन है. मां न बनने की बात को मैं ने ‘शो बौम्बे बेगम्स’ में अभिनेत्री शाहाना गोस्वामी के माध्यम से दिखाया है, जो प्रैगनैंसी के लिए स्ट्रगल कर रही होती है. मिसकैरिज होता रहता है. सरोगेसी या अडौप्शन के लिए वह जाती है और वह ये सब अपने पति के लिए कर रही है, क्योंकि पति को बच्चा चाहिए.”

फिल्मों में ऐसे चरित्र होते हैं जिन्हें बच्चा नहीं हो रहा है, लेकिन पूरी तरह से मुख्य भूमिका में मां न बन पाने को ले कर अभी तक कहानी नहीं बनी है. फिल्म क्रू में भी करीना कपूर को बच्चा नहीं होता. यह सही है कि मुख्य पात्र पर फोकस कर जिन्हें बच्चा नहीं चाहिए या नहीं है, वैसी कहानी शायद आगे कोई अवश्य लिखेगा, जिसे फिल्ममेकर बनाएंगे, लेकिन इस में अधिक से अधिक महिला निर्माता, निर्देशक और लेखक की आवश्यकता है जो महिलाप्रधान फिल्म बनाने पर अधिक महत्त्व देंगे और जिस में इस विषय पर फोकस होगा.

अल्टीमेट गोल मां बनना नहीं होता

अलंकृता आगे कहती हैं, “मैं ने अभी इस विषय पर फिल्म बनाने के बारे में सोचा नहीं है, पर सोचना अवश्य चाहूंगी, क्योंकि जैसा मैं ने देखा है कि यह एक कपल की खुद की चौइस होती है कि वे बच्चा चाहते हैं या नहीं. आज एक महिला सिंगल रह कर भी मां बनना पसंद करती है, जबकि कोईकोई महिला शादी के बाद भी मां बनना नहीं चाहती. किसी में भी कोई समस्या आज नहीं है.
“मैं ने मां बनने को ले कर कई थीम पर फिल्में बनाई हैं क्योंकि एक महिला के मां बनने के बाद भी कई समस्याएं आती हैं. मां बनना किसी के लिए आसान नहीं होता. जैसा कि मेरी फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का’ में कोंकणा सेन को अधिक बच्चा नहीं चाहिए, इसलिए वह बर्थ कंट्रोल करना चाहती है, जबकि फिल्म ‘डौली किटी और वो चमके सितारे’ में कोंकणा के चरित्र में भी जटिल मदरहुड को दिखाया गया है, जहां वह 2 बच्चों में से एक को ले कर चली जाती है.

“असल में मां बनना आसान नहीं होता. सीरीज ‘मेड इन हैवन’ में भी सभी मांओं की एक अलग तसवीर दिखाई गई है, सभी मां परफैक्ट नहीं होतीं. मदरहुड एक ईमानदार और प्यार देने वाली होती है, इसे ग्लोरीफाय करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि वह भी एक ह्यूमन बीइंग है और उस का व्यवहार अपने बच्चे के प्रति अलग हो सकता है. मैं ऐसी ही सोच रखती हूं और मैं ने उसे ही परदे पर लाने की कोशिश की है.

“मेरे हिसाब से आज की महिला का अल्टीमेट गोल मां बनना नहीं हो सकता. मैं ने अपने काम में इसे दिखाना चाहा भी है. अभी आगे काफी इक्स्प्लोर करना है, जिस में शायद मां न बनने की चौइस, विषय पर भी फोकस डाली जाएगा. इस में मैं खासतौर पर यह भी कहना चाहूंगी कि किसी भी महिला की खुद की चाहत होनी चाहिए कि उसे बच्चा चाहिए या नहीं, उस की फ्रीडम, उस का संकल्प, जिसे सभी सहयोग दें, उस की इस चौइस को कोई गलत न ठहराएं. इस पर अधिक से अधिक कहानी कही जानी चाहिए.”

महिलाओं को न दें देवी का दर्जा

अलंकृता बताती हैं, “मुझे बहुत ताज्जुब होता है कि महिलाओं को देवी का दर्जा दे दिया जाता है. महिला सुपरवुमन नहीं है. साधारण महिला है. उसे सांस लेने की आजादी चाहिए, जो अभी तक उसे नहीं मिल पाई है.”

ऐक्ट्रैसेस जो रियल लाइफ में नहीं बनीं मां

इस के अलावा बौलीवुड की ऐसी कई ऐक्ट्रैस हैं जिन्होंने मां की भूमिका परदे पर बखूबी निभाई पर रियल लाइफ में मां नहीं बनीं क्योंकि यह उन की अपनी चौइस रही. वे अपने पार्टनर या परिवार के साथ अकसर क्वालिटी टाइम बिताती नजर आती हैं. आइए जानते हैं उन के बारे में.

अभिनेत्री सायरा बानो के अलावा अभिनेत्री जयाप्रदा ने भी मां की कई भूमिकाएं फिल्मों में निभाईं और चर्चित रहीं.

जयाप्रदा

बौलीवुड की खूबसूरत ऐक्ट्रैस में शुमार जयाप्रदा की शादी साल 1986 में फिल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत नाहटा से हुई. कपल की कोई संतान नहीं है.

शबाना आजमी

शबाना आजमी ने मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर से शादी की. दोनों की जोड़ी को आज भी फैंस का भरपूर प्यार मिलता है. शबाना और जावेद की शादी को कई साल हो चुके हैं लेकिन अब तक शबाना मां नहीं बनीं. शबाना का उन के सौतेले बच्चों के साथ मधुर रिश्ता है.

रेखा

करोड़ों दिलों की धड़कन अभिनेत्री रेखा को आज भी दर्शक स्क्रीन पर देखना पसंद करते हैं. रेखा इस वक्त 68 साल की हो चुकी हैं. 3 शादियां करने के बाद भी वे मां नहीं बनीं, क्योंकि यह उन की चौइस रही.

संगीता बिजलानी

संगीता बिजलानी ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन से शादी की थी. शादी के लंबे वक्त के बाद भी संगीता मां नहीं बन पाई थीं. हालांकि, संगीता और मोहम्मद अजहरुद्दीन का रिश्ता ज्यादा लंबे समय तक नहीं चला था. दोनों ने शादी के 14 साल बाद तलाक ले लिया था.

हेलेन

अभिनेत्री हेलेन ने भी सलीम खान के साथ शादी की और अब सलीम खान के बच्चों को अपना मानती हैं.

बुढ़ापे में समझदारी से करें रोगों का मुकाबला, तभी रहेंगे फिट

कुछ साल पहले रिलीज हुई अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘पीकू’ बूढे़ पिता और बेटी के बीच जिम्मेदारीभरे रिश्ते को दिखाती है. फिल्म की कहानी में अमिताभ बच्चन कब्ज की बीमारी से परेशान होते हैं. उन का डायलौग ‘मोशन से इमोशन जुड़ा होता है’ फिल्म के प्रचार में खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. कब्ज जैसे बहुत सारे रोग बुढ़ापे की परेशानियों के रूप में सामने आते हैं. आज के दौर में विज्ञान ने खूब तरक्की कर ली है. ऐसे में मनुष्य की औसत उम्र बढ़ गई है. उम्र के बढ़ने के साथ कुछ बीमारियां भी साथ आती हैं. समझदारी के साथ इन रोगों का मुकाबला करते हुए बुढ़ापे को स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है.

राजेंद्र नगर अस्पताल, लखनऊ की डा. सुनीता चंद्रा कहती हैं, ‘‘खानपान, ऐक्सरसाइज और समयसमय पर बीमारियों की जांच कराने से बुढ़ापे के रोगों से बचा जा सकता है. जरूरी है कि इस तरह की बीमारियों की जानकारी दी जाए जिस से उम्रदराज लोग स्वस्थ और सेहतमंद रह सकें.’’ डा. सुनीता चंद्रा बताती हैं, ‘‘बुढ़ापे की बीमारियां उम्र के हिसाब से आती हैं. अगर बुढ़ापे में समयसमय पर डाक्टरी जांच कराई जाए और बीमारियों का इलाज शुरुआती दौर में ही कर लिया जाए तो इन बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है.’’

बुढ़ापे की प्रमुख बीमारियां

बुढ़ापे की ज्यादातर बीमारियां बचपन और जवानी में शरीर की अनदेखी के कारण होती हैं. कुछ बीमारियां शरीर के अंगों की शिथिलता और उन में आने वाले बदलावों के कारण होती हैं. इन का शुरुआत से ही ध्यान रखा जाए तो बुढ़ापे के प्रभाव को कम किया जा सकता है. 

मोटापा

बुढ़ापे की वह परेशानी है जो जवानी के दिनों से ही शुरू हो जाती है. बुढ़ापे में मोटापा एक रोग बन जाता है. इस के चलते शरीर की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. हड्डियों में आर्थ्राइटिस, हाईब्लडप्रैशर, मधुमेह यानी डायबिटीज, कोलैस्ट्रौल का बढ़ना, पथरी आदि प्रमुख हैं. महिलाओं की तुलना में पुरुषों में मोटापा ज्यादा खतरनाक होता है. मोटापा अपने साथ कई तरह की बीमारियां ले कर आता है. हाईब्लडप्रैशर बुढ़ापे में बहुत परेशान करता है. कई बार हाईब्लडप्रैशर हाईपरटैंशन बन जाता है जिस के कारण सिरदर्द, जी मिचलाना, सांस फूलना और पैरों में सूजन जैसी परेशानियां आ जाती हैं.

मधुमेह

ये रोग बुढ़ापे की सब से बड़ी बीमारी के रूप में सामने आ रहा है. काम न करने, मोटापा बढ़ने, मानसिक तनाव, स्टीरौइड दवाएं खाने के कुप्रभाव के चलते मधुमेह का रोग हो जाता है. मधुमेह के चलते आंखों में अंधापन, किडनी, हार्ट अटैक और पक्षाघात यानी पैरालाइसिस का रोग हो जाता है.

हार्ट अटैक

ये बुढ़ापे की दूसरी बड़ी परेशानी है. हदय में रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में बहने वाला रक्त बाधित होने लगता है जिस की वजह से सीने में दर्द की शिकायत होती है. यह दर्द बाईं भुजा की ओर से शुरू हो कर कंधे की तरफ बढ़ता जाता है. दर्द के साथ तेजी से पसीना शरीर से निकलने लगता है. कई बार जब दिमाग तक रक्त नहीं पहुंच पाता तो पक्षाघात यानी पैरालाइसिस का अटैक हो जाता है.

बुढ़ापे में पेट की बीमारियां भी बहुत होती हैं. इस का सब से बड़ा कारण पाचन प्रक्रिया का कमजोर होना होता है. आंत में खाने को पचाने की क्षमता कम हो जाती है, जिस से एसिडिटी बनने लगती है. कई बार इन सब वजहों से पेप्टिक अल्सर हो जाता है. इस में पेट का दर्द तेज हो जाता है. पेट की बीमारियों में दूसरी बड़ी बीमारी कब्ज की होती है. बुढ़ापे में शरीर चलनेफिरने में शिथिलता का अनुभव करता है, जिस की वजह से खाना ठीक से हजम नहीं होता है. इस के  साथ ही, खाने में फाइबर की मात्रा कम होने से भी कब्ज की बीमारी हो जाती है. कब्ज अगर लंबेसमय तक बना रहे तो पाइल्स की बीमारी भी परेशान करती है.

मोतियाबिंद बुढ़ापे में आंखों की रोशनी को छीनने का काम करता है. इस के साथ ही, याददाश्त का कमजोर होना और कानों में सुनने की शक्ति का कमजोर होना आम परेशानियां हैं.

क्या होती हैं वजहें

आंत की गति धीमी हो जाती है. जिस के चलते पाचनक्रिया कमजोर हो जाती है. नतीजतन, बुढ़ापे में पेट की बीमारियां होने लगती हैं.

किडनी की परेशानी साफ पानी न मिलने के चलते होती है. किडनी की सक्रियता कमजोर होने से किडनी रोग बढ़ जाते हैं.

बुढ़ापे के दिनों में शरीर में हार्मोंस कम होने लगते हैं. इस से शरीर के तमाम अंगों की सक्रियता शिथिल होने लगती है. इस के चलते जबान में स्वाद लेने की क्षमता कमजोर होने लगती है.

बुढ़ापे में कान सुनना कम कर देते हैं. इस से श्रवण शक्ति कमजोर होने लगती है.

हार्मोंस के कम होने के चलते शरीर की त्वचा ढीली होने लगती है. त्वचा पर झांइयां और दागधब्बे पड़ने लगते हैं. इस से चेहरे पर हलकेहलके रोएं आने लगते हैं.  

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