Mother’s Day 2024 : हर साल मई में मदर्स डे मनाया जाता है. इस साल 12 मई यानी रविवार को यह खास दिन मनाया जाएगा. इस दिन का हम सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है. इस दुनिया में हमारे कितने भी रिश्ते बने पर मां की तरह कोई भी प्यार नहीं कर पाएगा. एक मां ही है, जो निस्वार्थ प्रेम करना जानती है, तो क्यों न इस मदर्स डे पर आप भी अपने मां के लिए कुछ खास करें. अगर आपको और आपकी मां को कहानियां पढ़ना पसंद है, तो हम इस आर्टिकल में लेकर आए हैं, टॉप 10 मदर्स डे स्पेशल स्टोरी. जिन्हें पढ़कर आप मोटिवेट होंगे और आपके रिश्ते भी मजबूत होंगे.

 

1. अम्मां जैसा कोई नहीं – क्या अनु ने अम्मा का साथ निभाया

mothers day special

अस्पताल के शांत वातावरण में वह न जाने कब तक सोती रहती, अगर नर्स की मधुर आवाज कानों में न गूंजती, ‘‘मैडमजी, ब्रश कर लो, चाय लाई हूं.’’

वह ब्रश करने को उठी तो उसे हलका सा चक्कर आ गया.

‘‘अरेअरे, मैडमजी, आप को बैड से उतरने की जरूरत नहीं. यहां बैठेबैठे ही ब्रश कर लीजिए.’’

साथ लाई ट्रौली खिसका कर नर्स ने उसे ब्रश कराया, तौलिए से मुंह पोंछा, बैड को पीछे से ऊपर किया. सहारे से बैठा कर चायबिस्कुट दिए. चाय पी कर वह पूरी तरह से चैतन्य हो गई. नर्स ने अखबार पकड़ाते हुए कहा, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो तो बैड के साथ लगा बटन दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.’’

50 वर्ष की उस की जिंदगी के ये सब से सुखद क्षण थे. इतने इतमीनान से सुबह की चाय पी कर अखबार पढ़ना उसे एक सपना सा लग रहा था. जब तक अखबार खत्म हुआ, नर्स नाश्ता व दूध ले कर हाजिर हो गई. साथ ही, वह कोई दवा भी खिला गई. उस के बाद वह फिर सो गई और तब उठी जब नर्स उसे खाना खाने के लिए जगाने आई. खाने में 2 सब्जियां, दाल, सलाद, दही, चावल, चपातियां और मिक्स फ्रूट्स थे. घर में तो दिन भर की भागदौड़ से थकने के बाद किसी तरह एक फुलका गले के नीचे उतरता था, लेकिन यहां वह सारा खाना बड़े इतमीनान से खा गई थी.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

2. मां का बटुआ- बेटी को समझ आती है मां की अहमियत

maa ka batua

मैं अकेली बैठी धूप सेंक रही हूं. मां की कही बातें याद आ रही हैं. मां को अपने पास रहने के लिए ले कर आई थी. मां अकेली घर में रहती थीं. हमें उन की चिंता लगी रहती थी. पर मां अपना घर छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती थीं. एक बार जब वे ज्यादा बीमार पड़ीं तो मैं इलाज का बहाना बना कर उन्हें अपने घर ले आई. पर पूरे रास्ते मां हम से बोलती आईं, ‘हमें क्यों ले जा रही हो? क्या मैं अपनी जड़ से अलग हो कर तुम्हारे यहां चैन व सुकून से रह पाऊंगी? किसी पेड़ को अपनी जड़ से अलग होने पर पनपते देखा है. मैं अपने घर से अलग हो कर चैन से मर भी नहीं पाऊंगी.’ मैं उन्हें समझाती, ‘मां, तुम किस जमाने की बात कर रही हो. अब वो जमाना नहीं रहा. अब लड़की की शादी कहां से होती है, और वह अपने हसबैंड के साथ रहती कहां है. देश की तो बात ही छोड़ो, लोग अपनी जीविका के लिए विदेश जा कर रह रहे हैं. मां, कोई नहीं जानता कि कब, कहां, किस की मौत होगी. ‘घर में कोई नहीं है. तुम अकेले वहां रहती हो. हम लोग तुम्हारे लिए परेशान रहते हैं. यहां मेरे बच्चों के साथ आराम से रहोगी. बच्चों के साथ तुम्हारा मन लगेगा.’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

3. बेटी का सुख : वह मां के बारे में क्यों ज्यादा सोचती थी

beti ka sukh

मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

4. मम्मी जी के बेटे जी- मां और शरद का रिश्ता कैसा था?

kahani

प्रतिभा ने अपनी ससुराल फोन किया. 3 बार घंटी बजने के बाद वहां उस के पति शरद ने रिसीवर उठाया और हौले से कहा, ‘‘हैलो?’’ शरद की आवाज सुन कर प्रतिभा मुसकराई. उस ने चाहा कि वह शरद से कहे कि मम्मीजी के बेटेजी.

मगर यह बात उस के होंठों से बाहर निकलतेनिकलते रह गई. वह सांस रोके असमंजस में रिसीवर थामे रही. उधर से शरद ने दोबारा कहा, ‘‘हैलो?’’ प्रतिभा शरद के बारबार ‘हैलो’ कहते सुनने से रोमांचित होने लगी, पर उस ने शरद की ‘हैलो’ का कोई जवाब नहीं दिया. सांसों की ध्वनि टैलीफोन पर गूंजती रही. फिर शरद ने थोड़ी प्रतीक्षा के बाद झल्लाते हुए कहा, ‘‘हैलो, बोलिए?’’ किंतु प्रतिभा ने फिर भी उत्तर नहीं दिया, उलटे, वह हंसने को बेताब हो रही थी, इसीलिए उस ने रिसीवर रख दिया. रिसीवर रखने के बाद उस की हंसी फूट पड़ी. हंसतेहंसते वह पास बैठी अपनी बेटी जूही के कंधे झक झोरने लगी. जूही को मम्मी की हंसी पर आश्चर्य हुआ. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, किस बात पर इतनी हंसी आ रही है? टैलीफोन पर ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘टैलीफोन पर कोई बात ही कहां हुई,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया. ‘‘तो फिर आप को इतनी हंसी क्यों आ रही है? पापा पर?’’ जूही चौंकी. ‘‘हां.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

5. ममता – क्या ममता का रूप भी कभी बदल पाता है

mamta

दालान से गायत्री ने अपनी बेटी की चीख सुनी और फिर तेजी से पेपर वेट के गिरने की आवाज आई तो उन के कान खड़े हो गए. उन की बेटी प्रिया और नातिन रानी में जोरों की तूतू, मैंमैं हो रही थी. कहां 10 साल की बच्ची रानी और कहां 35 साल की प्रिया, दोनों का कोई जोड़ नहीं था. एक अनुभवों की खान थी और दूसरी नादानी का भंडार, पर ऐसे तनी हुई थीं दोनों जैसे एकदूसरे की प्रतिद्वंद्वी हों.

‘‘आखिर तू मेरी बात नहीं सुनेगी.’’

‘‘नहीं, मैं 2 चोटियां करूंगी.’’

‘‘क्यों? तुझे इस बात की समझ है कि तेरे चेहरे पर 2 चोटियां फबेंगी या 1 चोटी.’’

‘‘फिर भी मैं ने कह दिया तो कह दिया,’’ रानी ने अपना अंतिम फैसला सुना डाला और इसी के साथ चांटों की आवाज सुनाई दी थी गायत्री को.

रात गहरा गई थी. गायत्री सोने की कोशिश कर रही थीं. यह सोते समय चोटी बांधने का मसला क्यों? जरूर दिन की चोटियां रानी ने खोल दी होंगी. वह दौड़ कर दालान में पहुंचीं तो देखा कि प्रिया के बाल बिखरे हुए थे. साड़ी का आंचल जमीन पर लोट रहा था. एक चप्पल उस ने अपने हाथ में उठा रखी थी. बेटी का यह रूप देख कर गायत्री को जोरों की हंसी आ गई. मां की हंसी से चिढ़ कर प्रिया ने चप्पल नीचे पटक दी. रानी डर कर गायत्री के पीछे जा छिपी.

‘‘पता नहीं मैं ने किस करमजली को जन्म दिया है. हाय, जन्म देते समय मर क्यों नहीं गई,’’ प्रिया ने माथे पर हाथ मार कर रोना शुरू कर दिया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

6. बेटी : मां अपनी पोती के साथ कैसा व्यवहार कर रही थी?

beti

सीमा को चुभने लगा था मां का बातबात पर उस की तारीफ करना और टिन्नी को उस का उदाहरण देदे कर घुङकना. लेकिन अभी भी बीते वक्त से चिपकी मां आज और कल में फर्क नहीं करना चाहती थीं. जब यही अंतर सीमा ने मां को समझाय तो वह हतप्रभ रह गईं.

तेज कदमों से अपूर्व को घर में दाखिल होते देख सीमा सोचने लगी कि आज जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि जब भी कोई नई सूचना अपूर्व को मिलती, अपनेआप ही उन की साधारण चाल में तेजी आ जाती.
सीमा को अपूर्व की यह सरलता बहुत भाती. अपूर्व के घर में दाखिल होने से पहले ही सीमा ने दरवाजा खोल दिया. अपूर्व ने आश्चर्य से सीमा को देखा और पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आ गया हूं?’’

‘‘यह कहिए कि आया ही नहीं हूं, एक अच्छी खबर भी साथ में लाया हूं, अपूर्व के चेहरे को देख कर सीमा बोली.’’

‘‘तुम्हें तो जासूसी विभाग में होना चाहिए था,’’ अपूर्व हंस कर बोले.

‘‘जल्दी से बताइए, क्या खुशखबरी लाए हैं,’’ सीमा चहकी.

‘‘चाय की चुसकी के साथ बताऊंगा,’’ अपूर्व सीमा के धैर्य की परीक्षा लेते हुए बोले.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

7. इमोशनल फूल : क्यों वह मासूम बच्चे से छुटकारा पाना चाहती थी?

emotional fool

वृक्षारोपण की औपचारिकता पूरी हुई तो मैं पार्क का चक्कर काटने के बहाने एक सुरक्षाकर्मी के साथ उस परिचित कोने की ओर खिसक लिया. पार्क में प्रवेश करने के साथ ही उमा आंटी की यादें मेरे दिमाग के द्वार थपथपाने लगी थीं और शायद उन्हीं यादों के वशीभूत मेरे कदम इस ओर उठ आए थे. पल्लू से ओट किए वहां बैठी एक वृद्धा के चेहरे की झलक दिखी तो मैं चौंक उठा. ‘अरे, ये तो उमा आंटी हैं!’

सुरक्षाकर्मी बीच में टपक पड़ा था, ‘मंत्रीजी हैं. पार्क में वृक्षारोपण के लिए आए हैं.’

मैं ने झुक कर प्रणाम किया तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, ‘ऐसे ही नेक काम करते रहो. पर याद रखना बेटा, बीज बोने से बड़ा काम उसे सींचना है. यदि सींचने की हिम्मत नहीं रखते तो कभी बीज बोने की जुर्रत भी मत करना. न धरती के गर्भ में और न किसी स्त्री के गर्भ में.’ अपनी बात समाप्त कर वे उठ कर एक ओर चल दी थीं. मैं अवाक सा उन्हें जाते देखता रह गया था.

सवेरे उठा तो फिर वही बात जेहन में उभर आई. मैं गाड़ी उठा कर पार्क की ओर चल पड़ा. कदम सीधे वहीं जा कर रुके जहां मैं ने कल पौधा लगाया था. कल जहां पब्लिक, प्रैसवालों का जमघट लगा हुआ था आज वहां पर एक चिड़िया भी नजर नहीं आ रही थी. पौधा मुरझा कर लटक गया था. मैं दूर कहीं बहते पाइप को खींच कर लाया और पौधों को पानी पिलाया. तृप्त पौधों के साथ मेरा मन भी ख़ुशी से लहलहाने लगा. पाइप छोड़ कर पलटा तो उमा आंटी खड़ी मुसकरा रही थीं, ‘तुम सच्चे अर्थों में जनता के सेवक हो.’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

8. बिनब्याही मां: नीलम की रातों की नींद क्यों हराम हो गई

kahanii

सर्दी की खिलीखिली सी दोपहर में जैसे ही स्कूल की छुट्टी की घंटी बजी, मैं और मेरी सहेली सुजाता रोज की तरह स्कूल से बाहर आ गए. स्कूल के गेट के बाहर छोटेछोटे दुकानदारों ने अपनी अस्थायी दुकानें सड़क के किनारे, ठेले पर और साइकिल के पीछे लगे कैरियर पर बंधे लकड़ी के डब्बों में सजा रखी थीं, जिन में बच्चों को आकर्षित करने के लिए तरहतरह की टौफियां, चाट, सस्ती गेंदें व खिलौने के अलावा पेनकौपी भी थीं.

मैं ने एक साइकिल वाले से अपना पसंदीदा खट्टामीठा चूरन लिया और सुजाता के साथ रेलवे लाइन की ओर बढ़ गई. सुजाता बारबार मेरी ओर बेचैनी से देख रही थी, लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी. रेलवे लाइन पार करने के बाद आखिरकार उस से रहा नहीं गया और उस ने मुझ से पूछा, “नीलम, सुना है, आज तेरी विकास से लड़ाई हो गई थी?”

“हां, तो उस में कौन सी नई बात है. अकसर होती है, पर बाद में दोस्ती भी तो हो जाती है,” मैं ने लापरवाही से चूरन की पुड़िया से उंगली में चूरन ले कर चाटते हुए कहा.

“बात तो कुछ नहीं, लेकिन मुझे पता चला कि उस ने तेरे हाथ पर काट भी लिया था,” उस ने बहुत रहस्यात्मक ढंग से कहा, तो मैं ने उस की ओर सवालिया निगाह से देखा और फिर अपने हाथ को देखा, जहां उस ने काटा था, अब तो वहां कोई निशान भी नहीं दिख रहा था.

“तो क्या हुआ? अब तो ठीक है सब. मैं ने भी उस के 2 बार काटा बदले में,” मैं ने शेखी बघारते हुए उसे बताया, जबकि मैं खुद डेढ़ पसली की थी. 10 साल की उम्र के हिसाब से मैं काफी दुबली थी, जबकि मेरी हमउम्र सहेलियां मुझ से बड़ी दिखती थीं.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

9. हमें तुम से प्यार कितना : अंशू से कितना प्यार करती थी मधु

humein tumse pyar kitna

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

1o.  उसकी मम्मी मेरी अम्मा – आखिर दिक्षा अपनी मम्मी से क्यों नफरत करती थी?

story

दीक्षा की मम्मी उसे कार से मेरे घर छोड़ गईं. मैं संकोच के कारण उन्हें अंदर आने तक को न कह सकी. अंदर बुलाती तो उन्हें हींग, जीरे की दुर्गंध से सनी अम्मा से मिलवाना पड़ता. उस की मम्मी जातेजाते महंगे इत्र की भीनीभीनी खुशबू छोड़ गई थीं, जो काफी देर तक मेरे मन को सुगंधित किए रही. मेरे न चाहते हुए भी दीक्षा सीधे रसोई की तरफ चली गई और बोली, ‘‘रसोई से मसालों की चटपटी सी सुगंध आ रही है. मौसी क्या बना रही हैं?’’ मैं ने मन ही मन कहा, ‘सुगंध या दुर्गंध?’ फिर झेंपते हुए बोली, ‘‘पतौड़े.’’ दीक्षा चहक कर बोली, ‘‘सच, 3-4 साल पहले दादीमां के गांव में खाए थे.’’मैं ने दीक्षा को लताड़ा, ‘‘धत, पतौड़े भी कोई खास चीज होती है. तेरे घर उस दिन पेस्ट्री खाई थी, कितनी स्वादिष्ठ थी, मुंह में घुलती चली गई थी.’’

पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...