सीमा को चुभने लगा था मां का बातबात पर उस की तारीफ करना और टिन्नी को उस का उदाहरण देदे कर घुङकना. लेकिन अभी भी बीते वक्त से चिपकी मां आज और कल में फर्क नहीं करना चाहती थीं. जब यही अंतर सीमा ने मां को समझाय तो वह हतप्रभ रह गईं.

तेज कदमों से अपूर्व को घर में दाखिल होते देख सीमा सोचने लगी कि आज जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि जब भी कोई नई सूचना अपूर्व को मिलती, अपनेआप ही उन की साधारण चाल में तेजी आ जाती.
सीमा को अपूर्व की यह सरलता बहुत भाती. अपूर्व के घर में दाखिल होने से पहले ही सीमा ने दरवाजा खोल दिया. अपूर्व ने आश्चर्य से सीमा को देखा और पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आ गया हूं?’’

‘‘यह कहिए कि आया ही नहीं हूं, एक अच्छी खबर भी साथ में लाया हूं, अपूर्व के चेहरे को देख कर सीमा बोली.’’

‘‘तुम्हें तो जासूसी विभाग में होना चाहिए था,’’ अपूर्व हंस कर बोले.

‘‘जल्दी से बताइए, क्या खुशखबरी लाए हैं,’’ सीमा चहकी.

‘‘चाय की चुसकी के साथ बताऊंगा,’’ अपूर्व सीमा के धैर्य की परीक्षा लेते हुए बोले.

‘‘अभी हाजिर है,’’ कह कर सीमा रसोई में गई और 2 प्याले चाय बना कर ले आई. बोली, ‘‘अब बताओ.’’

‘‘मैडम, अपना बिस्तर बांधने की तैयारी कर लो. तुम्हारा बहुत अच्छे शहर में तबादला हुआ है, वह भी प्रोमोशन के साथ,’’ अपूर्व खुश हो कर बोले.

‘‘सच, कब आया और्डर? मुझे तो कोई सूचना नहीं मिली.’’

‘‘हेड औफिस में पता लगाया है, मैडम. अब तुम अधिकारी बन गई हो.’’

‘‘जगह का नाम तो बताओ, तभी तो सोचूंगी कि प्रोमोशन लूं या नहीं,’’ सीमा उत्सुक हो कर बोली.

‘‘जगह का नाम सुनते ही खुशी से उछल पड़ोगी,’’ अपूर्व सीमा को छेड़ते हुए बोले, ‘‘इस छोटे से कसबे को छोड़ कर आप मायके जा रही हैं.’’

शहर का नाम सुनते ही सीमा एमदम से खामोश हो गई. सीमा को चुप देख कर अपूर्व बोले, ‘‘क्या बात है, सीमा. कानपुर का नाम सुनते ही तुम गंभीर हो गईं. औरतें तो मायके का नाम सुनते ही सातसमंदर पार जाने के लिए तैयार हो जाती हैं. एक तुम हो.’’
अपूर्व की बात बीच में ही काटते हुए सीमा बोली, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मां का ध्यान आने पर मैं उन्हीं के बारे में सोचने लगी थी.’’

सीमा आश्वस्त थी कि अपूर्व की सरलता उस के झूठ को नहीं पकड़ सकेगी. बातों का रुख मोड़ते हुए सीमा बोली, ‘‘पहले लैटर तो आने दीजिए. इस बारे में तभी सोचेंगे. चलो, अभी कहीं घूम आएं.’’

बिस्तर पर लेटते ही सीमा के विचार मायके के इर्दगिर्द घूमने लगे. हर तरह से संपन्न थे मायके वाले. मांबाप, भैयाभाभी और उन के बच्चे, सभी तो थे वहां. जब कभी सीमा मायके जाती, सभी बड़ी गरमजोशी से उस का स्वागत करते. खासकर मां का चेहरा तो खुशी और उत्साह से चमकने लगता. मां की गरदन गर्व से तन जाती. इसे केवल सीमा ही नहीं घर के सभी सदस्य महसूस करते. नन्हा बिट्टू तो कह भी देता, “बूआ, आप के आने से दादी का खून बढ़ जाता है. अब तो हर बात में आप की ही तारीफ होगी, कितने मजे हैं आप के.”

टिन्नी तो बूआ के आने पर अम्मां के कमरे में जाना ही छोड़ देती. अम्मां की झिड़कियों से परेशान हो कर बड़ी कातर नजर से बूआ को देखती. 10 वर्ष की टिन्नी को अम्मां दुनियादारी के बड़ेबड़े पाठ समझाने की कोशिश करतीं. चंचल और मासूम टिन्नी दुनियादारी से बेखबर अपने में ही मस्त रहती.

टिन्नी का पढ़ने में ध्यान न देख कर अम्मां उसे डांटती,”देख लेना, बड़े हो कर नाक कटाएगी. इस के लक्षण मुझे अभी से ठीक नहीं लगते. अरे, मेरी बेटी थी, मजाल है कभी पढ़ने से भी जी चुरा ले. जब देखो पढ़ती रहती थी. तभी तो आज ऊंचे ओहदे पर नौकरी कर रही है.”

टिन्नी चुपचाप किताब ले कर पढ़ने का बहाना करने लगती पर उस का मन तो कहीं दूर अपने साथियों के साथ कल्पना की ऊंची उड़ानें भर रहा होता.

मां की यह बात सच ही थी. सीमा बचपन से ही पढ़नेलिखने, सिलाईबुनाई और घर के कामों में रूचि लेती थी. जो भी उस से एक बार मिलता उस के गुणों से अवश्य प्रभावित होता. सीमा को इस का श्रेय देने के बजाय मां इसे अपनी नसीहत का परिणाम समझतीं.

पोतेपोतियों को उछलतेकूदते, हंसतेखेलते देख कर मां के तनमन में आग लग जाती और वह उन के आगे ‘बेटीपुराण’ खोल कर बैठ जातीं. परिवार के सभी लोग मां के व्यवहार के अभ्यस्त हो गए थे. सीमा का बातबात में अपनी तारीफ सुन कर अटपटा लगता. वह दबी जबान में मां को कभीकभार समझाने का प्रयत्न भी करती, “मां, तुम क्यों बेवजह टिन्नी को डांटती हो. अभी वह छोटी है. जमाना बदल रहा है. धीरेधीरे समझ जाएगी.”

सीमा की बात अनसुनी कर मां बोलीं, “आग लगे ऐसे जमाने को जिस में लड़कियां ढंग से कपड़े भी नहीं पहनतीं. तू जब छोटी थी मैं तुझे कितने सलीके से रखती थी. एक इस की मां है, उस की बला से, लङकी कैसे भी घूमे.”

सीमा के मन में आया कि वह मां से कह दे कि सीधेसादे पिताजी को दिनरात मेहनत करते हुए देख कर और उन की सादगी से प्रभावित हो कर ही उसे सादा जीवन अच्छा लगता था.

पिछले साल गरमियों की छुट्टियों में सीमा मां से मिलने कानपुर आई थी. उन्हीं दिनों बड़े भाईसाहब भी सपरिवार वहां पहले से आए हुए थे. बच्चों के शोरगुल और शरारत से अकसर मां ऊब जातीं. तब वह अपनी सारी खीज टिन्नी पर उतारतीं,”टिन्नी, इधर आ. तुझे कितनी बार समझाया कि फालतू बातों में समय बरबाद मत कर. जब देखो, भाइयों के बीच घुसी रहती है. तू तो लङकी है, कुछ सिलाईकढ़ाई सीख ले. सामने टीवी वाली मेज पर मेजपोश देख रही है, मेरी बेटी ने उसे तब बनाया था जब वह चौथी कक्षा में थी. कितनी तारीफ की थी सब ने उस की और मेरी.”

टिन्नी ने एक उचटती नजर टीवी की मेज पर डाली और बात का उत्तर दिए बिना वहां से चली गई. फिर कई दिन तक उस ने अम्मां के कमरे में झांका भी नहीं.

सामने मेजपोश को देख कर सीमा की आंखों में अपना बचपन साकार हो उठा. कितनी जतन कर के उस ने मां से कपड़ा मंगवाया था. पड़ोस की राधा मौसी के घर मुंबई से रमा दीदी आई हुई थीं, उन्हें कढ़ाई करते देख कर सीमा को भी मेजपोश बनाने का शौक चढ़ा था. 1 हफ्ते बाद कपड़ा मिलने पर कितना खुश हुई थी वह. यह तो दीदी की मेहरबानी थी जिस ने कढ़ाई के धागे उसे दे दिए थे. दीदी का निर्देशन तथा उस की मेहनत व लगन से वाकई मेजपोश खूबसूरत बना था.

सीमा महसूस करती कि मां उसे ले कर हर समय उत्साहित रहती थीं. भाइयों का जिक्र आने पर उन का उत्साह कुछ धीमा पड़ जाता था. ऐसा नहीं था कि भाई योग्य न थे. हां, बेटी की योग्यता के सामने उन का पलड़ा कुछ हलका पड़ जाता, जिस का दोष मां पिताजी के मत्थे देतीं,”बेटों को सही रास्ता पिता ही दिखाते हैं, उन्हें तो कभी बच्चों पर ध्यान देने की फुरसत ही नहीं थी. मुझे देखो, बेटी की जिम्मेदारी कितने अच्छे ढंग से निभाई, तभी तो वह इतनी लायक बनी है.”

मां ने जीवन में बहुत अभाव देते थे. पिताजी की लिपिक की छोटी सी नौकरी से घर का खर्च चलता था. मां पढ़ीलिखी नहीं थीं फिर भी वह पिताजी के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलने की हमेशा कोशिश करतीं. पिताजी देर रात तक ओवरटाइम करते और मां उन के इंतजार में बैठी बुनाई करतीं. बुनाई के रुपए से पिताजी की आय में कुछ रुपए और जुड़ जाते जिसे मां बहुत जतन से खर्च करती थीं.

पिताजी की सादगी, सज्जनता और कार्य के प्रति लगन सीमा को हमेशा प्रभावित करते. उन्हीं से प्रेरित हो कर सीमा ने बचपन में ही कुछ बनने की ठान ली थी. उस की मेहनत रंग लाई. एक चयनित प्रवक्ता से अपना कैरियर शुरू कर कम उम्र में ही वह बेसिक शिक्षा अधिकारी बन गई थी.

पिताजी का अतीत से विशेष लगाव न था, जबकि मां अपने गुणों को उजागर करने के लिए अतीत की उन सीढ़ियो पर बारबार खड़ी हो जातीं जिन से गुजर कर उन की बेटी को सफलता मिली थी.

आधी रात तक मायके के विचारों में डूबतेउतराते सीमा वापस वर्तमान में लौट आई. उस ने एक नजर अपूर्व पर डाली. वे निश्चिंत हो कर सो रहे थे. अपूर्व के चेहरे पर झलकते भोलेपन को देख कर सीमा का मन भीतर तक भीग गया, ‘मेरे मायके जाने पर कितना खुश है अपूर्व, एक पल को भी उन्होंने यह नहीं सोचा कि वह अकेले कैसे रहेंगे.’ भावनाओं को नियंत्रित कर वह अपूर्व से सट कर सोने का प्रयास करने लगी.

1 हफ्ते के अंदर ही सीमा को प्रोमोशन (पदोन्नति पत्र) मिल गया. पदोन्नति की खुशी के साथ उसे अपूर्व से दूर जाने का दुख भी था. पिता के आदर्शों से प्रभावित सीमा मायके में स्थायी रूप से रहने के लिए राजी नहीं थी.

‘नए शहर में घर का प्रबंध होने में समय लगता ही है,’ यह सोच कर सीमा सरकारी आवास मिलने तक मायके में रहने के लिए राजी हो गई.
सीमा की पदोन्नति और तबादले की खबर अपूर्व ने पहले ही मां और भाई को दे दी. सभी यह जान कर खुश थे. मां की खुशी का तो ठिकाना न था. बेटी की हर सफलता को मां अपनी सफलता जो मानती थीं.

सीमा ने शीघ्र ही कानपुर आ कर अपना कार्यभार संभाल लिया. शाम को घर लौटने पर मां सीमा से बड़ी उत्सुकता से उस के काम के बारे में पूछतीं और दूसरे दिन अपनी चटपटी भाषा में सभी परिजनों को सुनातीं.
मां की इस आदत से सीमा कभी परेशान हो जाती तो कभी उन के झुर्रीदार चेहरे पर अपने अस्तित्व को आज भी बनाए रखने के अथक प्रयास पर सीमा को दया भी आती.
सीमा अकसर मां को समझाने का प्रयास करती कि अब समय बदल गया है और समझदारी इसी में है कि हमें भी समय के हिसाब से अपनेआप को बदल लेना चाहिए.

सीमा को कानपुर आए 2 हफ्ते हो गए थे. इतने ही समय में उस ने महसूस किया कि टिन्नी व बिट्टू उस से दूरी बनाने लगे थे. अम्मां के साथ बूआ को देख कर वे कन्नी काट लेते.

टिन्नी ने घर से बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला. ‘टन्न’ की आवाज सुन कर अम्मां के कान खड़े हो गए. कमरे के अंदर से ही उन्होंने जोर से पुकारा, ‘‘टिन्नी, ओ टिन्नी…’’

‘‘आई अम्मां,’’ बाहर का दरवाजा बंद करते हुए टिन्नी बोली.

‘‘कहां जा रही थी इस समय? जब देखो, इधरउधर बेवजह डोलती फिरती है. हजार बार कहा है कि जब बूआ घर पर रहती हैं तो उन से कुछ सीख लिया कर लेकिन इस की समझ में कोई बात आए तब न.’’

‘‘अभी तो स्कूल से आई हूं. थोड़ी देर खेलने भी नहीं देती हो. जब देखो, पढ़ने के लिए कहती रहती हो,’’ टिन्नी ने तुरंत जवाब दिया.

‘‘खेल ने ही तो तुझे बरबाद कर रखा है. मेरी बेटी तो स्कूल से आ कर सब से पहले होमवर्क पूरा करती थी. तभी तो…’’

अपना जिक्र रोकने के लिए अम्मां की बात काटते हुए सीमा बोली, ‘‘रहने दो मां, खेल भी तो जरूरी है बच्चों के लिए.’’

‘‘क्या खाक जरूरी है. तू इस की तरह कभी खेलने गई थी, मैं ने तो तुझे खेल में कभी समय बरबाद नहीं करने दिया और हुनर सिखाए तुझे, एक इस की मां है.’’

‘‘बस भी करो मां. अब क्यों बच्चों का मन छोटा करती हो. यही तो उम्र है इन के हंसनेखेलने की,’’ कह कर बहस को वहीं खत्म करते हुए टिन्नी को साथ ले कर मैं दरवाजे के बाद चली गई. अम्मां की हार और अपनी जीत पर टिन्नी की आंखों में चमक उभर आई. बूआ का हाथ पकड़ कर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘बूआ, आप बचपन में कोई गलत काम नहीं करती थीं?’’

टिन्नी की बात सुन कर सीमा को हंसी आ गई. वह बालमन को शांत करते हुए बोली, ‘‘बहुत सारी शैतानियां करती थी. अपने पापा से पूछना, वे छुटपन में मुझे कितना मारते और डांटते थे.’’

कुछ दिन बाद ही टिन्नी की छमाही परीक्षा आरंभ होने वाली थी. अम्मां की सख्त हिदायत और निगरानी के बाद भी टिन्नी नजर बचा कर खेलने भाग जाती. समय मिलने पर सीमा भी टिन्नी को पढ़ने के लिए बैठा लेती. बेटी और पोती को पढ़तेपढ़ाते देख अम्मां को असीम सुख मिलता. वह घंटों इसी सुख में डूबी रहना चाहतीं पर टिन्नी की चंचलता अम्मां को इस सुख से महरूम कर देती.

छुट्टी का दिन था. सीमा ने धूप में टिन्नी को पढ़ने के लिए बैठा रखा था. टिन्नी का मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लग रहा था. दूर बैठी अम्मां बड़े ध्यान से टिन्नी की हरकतों को देख रही थीं. किताब बंद कर के टिन्नी बूआ से खेलने की इजाजत ले कर उठ गई.

अम्मां चारपाई से उठ कर सीमा के पास आईं और टिन्नी के कान उमेठते हुए बोलीं, ‘‘तू ने इसे इतनी जल्दी खेलने की इजाजत क्यों दी? थोड़ी देर और इसे बैठा कर पढ़ाती. मेरी बेटी तो देर तक बैठ कर पढ़ती रहती थी. उसे तो किताब बंद कर के लिए कहना पड़ता था. एक यह है.’’

टिन्नी की आंखों में आंसू टपकने लगे. उस ने बड़ी कातरता से बूआ को देखा. टिन्नी के गोरे गालों पर फिसलते आंसू और सिसकियों को देख कर सीमा से न रहा गया. मां की बात बीच में ही काट कर बोली, ‘‘मां, तुम बातबात में मेरा उदाहरण देना छोड़ दो. आज के और 30 साल पहले के जमाने में जमीनआसमान का अंतर है.’’

‘‘मुझे तो कोई अंतर नजर नहीं आता. बच्चे तब भी होते थे, आज भी होते हैं,’’ अम्मां चट से बोलीं.

‘‘बच्चों में तो अंतर नहीं आया, उन की भावनाओं और समझ में अंतर आया है. हम में विरोध करने का साहस नहीं था तभी सबकुछ सह लेते थे,’’ सीमा बोली.

‘‘विरोध कहां से करते. मैं ने तो विरोध करने का कभी मौका ही नहीं दिया तुम्हें,’’ मां सफाई देते हुए बोलीं.

‘‘विरोध मौके का मोहताज नहीं होता, मां. साहस की कमी ऐसे अवसर पैदा कर देती है.’’

‘‘तुझे तो मैं ने बहुत साहसी बनाया. तभी तो तू आज इस मुकाम तक पहुंची है,’’ अम्मां अपनी बात ऊपर रखने के लिए बोलीं.

सीमा चेहरे पर फीकी सी हंसी ला कर बोली, ‘‘बचपन की कई यादें आज भी जेहन में चुभती हैं, मां. बड़े भाइयों को भी तो आप ने ही पालापोसा है. कौन सी सुविधा उन्हें नहीं दी गई थी. मुझ से ज्यादा ध्यान तुम्हारा उन पर था. फिर वे तुम्हारे अनुरूप सही मुकाम तक क्यों नहीं पहुंच सके? उन में लगन की कमी थी तभी वे पिछड़ गए. मैं ने विरोध के बजाय लगन को अपना आदर्श बनाया, जिस का फल आज सामने है.’’

मां को चुप देख कर एक पल को सीमा रूकी फिर बोली, ‘‘दरअसल, मां, जो कुछ तुम मेरे लिए न कर सकीं वह सब कुछ अब टिन्नी के माध्यम से पूरा करने की कोशिश करती हो. अपनी दबी भावनाओं को भूल जाओ मां और आज के साथ टिन्नी को स्वीकार कर लो. बारबार उस में मेरा बचनन क्यों ढूंढ़ती हो? इतना ही क्या कम है कि मुझे तुम ने उस जमाने में पढ़ने का अवसर दिया.’’

मां का मुंह खुला का खुला रह गया. उन की बूढ़ी आंखें चेतनाशून्य सी हो गईं. मां का पूरा व्यक्तित्व इस वक्त सीमा को बड़ा निरीह सा लगा. वर्षों से दिल में दबे अरमान इस तरीके से जबान पर आ जाएंगे यह तो सीमा ने कभी सोचा भी न था.

सामने बैठी टिन्नी आंसू पोंछ कर मुसकराने लगी थी. उस की आंखों की चमक देख कर सीमा की ग्लानि कम होने लगी. मां को मनाने के लिए मां का हाथ अपने हाथों में ले कर उसे सहलाते हुए बोली, ‘‘मैं तो तुम्हारी ही बेटी हूं. टिन्नी को भी अपनी मां की बेटी बनने का मौका दे दो, मां.’’

लेखिका-डा के रानी

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