प्रतिभा ने अपनी ससुराल फोन किया. 3 बार घंटी बजने के बाद वहां उस के पति शरद ने रिसीवर उठाया और हौले से कहा, ‘‘हैलो?’’ शरद की आवाज सुन कर प्रतिभा मुसकराई. उस ने चाहा कि वह शरद से कहे कि मम्मीजी के बेटेजी.

मगर यह बात उस के होंठों से बाहर निकलतेनिकलते रह गई. वह सांस रोके असमंजस में रिसीवर थामे रही. उधर से शरद ने दोबारा कहा, ‘‘हैलो?’’ प्रतिभा शरद के बारबार ‘हैलो’ कहते सुनने से रोमांचित होने लगी, पर उस ने शरद की ‘हैलो’ का कोई जवाब नहीं दिया. सांसों की ध्वनि टैलीफोन पर गूंजती रही. फिर शरद ने थोड़ी प्रतीक्षा के बाद झल्लाते हुए कहा, ‘‘हैलो, बोलिए?’’ किंतु प्रतिभा ने फिर भी उत्तर नहीं दिया, उलटे, वह हंसने को बेताब हो रही थी, इसीलिए उस ने रिसीवर रख दिया. रिसीवर रखने के बाद उस की हंसी फूट पड़ी. हंसतेहंसते वह पास बैठी अपनी बेटी जूही के कंधे झक झोरने लगी. जूही को मम्मी की हंसी पर आश्चर्य हुआ. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, किस बात पर इतनी हंसी आ रही है? टैलीफोन पर ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘टैलीफोन पर कोई बात ही कहां हुई,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया. ‘‘तो फिर आप को इतनी हंसी क्यों आ रही है? पापा पर?’’ जूही चौंकी. ‘‘हां.’’

‘‘उन्होंने ऐसा क्या किया?’’ ‘‘यह सम झाना मुश्किल है.’’ ‘‘मगर कुछ तो बतलाइए, मम्मी, प्लीज?’’ ‘‘वे आएंगे तब बतलाऊंगी, जूही,’’ प्रतिभा ने पीछा छुड़ाने के लिए बेटी जूही से कह दिया. किचन में जा कर प्रतिभा खाना बनाने लगी, मगर उस की हंसी फिर भी रुक नहीं रही थी. उसे रहरह कर इसी बात पर आश्चर्य हो रहा था कि शरद भी कैसा व्यक्ति है जो 2 बच्चों का बाप बन गया, मगर अपनी मां का आंचल अभी भी छोड़ नहीं पाया. बातबात पर मम्मीमम्मी की रट लगाता रहता है. अपने पापा के प्रति तो शरद को इतना लगाव नहीं रहा, मगर मम्मी तो जैसे उस के रोमरोम में बसी हैं.

कदमकदम पर मम्मी उसे याद आती रहती हैं. विवाह के कुछ वर्षों बाद उस ने जब पापामम्मी से अलग होने का सु झाव दिया था तो शरद की पहली प्रतिक्रिया यही हुई थी, ‘मम्मी को अलग कैसे छोड़ सकते हैं.’ इस पर चकित होते हुए प्रतिभा ने शरद से पूछा था, ‘क्यों नहीं छोड़ सकते हो? तुम कोई दूध पीते बच्चे हो जो मम्मी से अलग नहीं रह सकते?’ ‘तुम्हें कैसे सम झाऊं, प्रतिभा. यह मामला दूसरी तरह का है,’ तब शरद ने बहुत ही भावुक हो कर उत्तर दिया था. ‘क्या मतलब? कुछ सम झाओ न?’ ‘बात यह है कि यह भावनाओं का मामला है. भावनात्मक लगाव के कारण ही मम्मी से अलग होना मु झे…’ भावावेश में शरद अपनी बात पूरी नहीं कर पाया था, क्योंकि उस स्थिति को व्यक्त करने लायक शब्द उसे सू झे नहीं थे. उस ने अपने हावभाव से मम्मी से विछोह की पीड़ादायक स्थिति अभिव्यक्त कर दी थी.

अपने पति की इस बात को प्रतिभा सम झ गई थी, इसीलिए उस ने दोटूक शब्दों में पूछा था, ‘भावनाएं क्या केवल तुम्हारे ही पास हैं? मेरा हृदय क्या भावनाशून्य है?’ ‘क्या मतलब?’ ‘मतलब यही कि मु झे अपने मम्मीपापा से लगाव नहीं है क्या?’ ‘किस ने कहा कि लगाव नहीं है?’ ‘तो फिर तुम ने यह क्यों नहीं सोचा कि मैं अपने मम्मीपापा को छोड़ कर यहां, दूसरे नगर में, इस नए परिवार में कैसे आ गई?’ लेकिन प्रतिभा की इस बात का शरद कोई उत्तर नहीं दे पाया था. वह मुंहबाए देखता रहा था. ‘अपने मम्मीपापा से तुम्हारा यह विछोह तो नाममात्र का है,’ प्रतिभा फिर बोली थी, ‘क्योंकि हम तो इसी नगर में अपना अलग चूल्हा कायम करेंगे. हम कोई दूसरे नगर में नहीं बसेंगे, उन के पास ही रहेंगे. यहां जगह की कमी नहीं होती तो हम अलग होने का विचार भी नहीं करते. मजबूरी में ही यह विचार कर रहे हैं.’

इस मजबूरी का तो शरद भी कायल था, क्योंकि 2 कमरे एवं एक किचन वाले इस घर में विवाह के बाद वह खुद को बंधाबंधा सा महसूस करता था. अभी तक वह मांबाप, भाईबहन के साथ रहता आया था, मगर उसे यह घर छोटा कभी महसूस नहीं हुआ था. पर विवाह के बाद उसे महसूस होने लगा था कि घर जैसे पहले से छोटा हो गया है, इसीलिए इस से बड़े घर की कामना उस ने की थी. प्रतिभा ने उस की इस कामना की पूर्ति के लिए अलग होने की बात सु झाई थी, किंतु यह सु झाव शरद को पसंद नहीं था, क्योंकि अपनी मम्मी से अलग होने की कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठा था. इसीलिए इस विकल्प को वह टालता रहा था. शरद के पापा ने ही शरद की पीड़ा सम झते हुए सु झाव दिया था, ‘‘भैया, कोई बड़ा घर ढूंढ़ो. ढाई कमरे में अब गुजरबसर संभव नहीं है.’ तब शरद और उस का छोटा भाई हेमंत बड़ा मकान ढूंढ़ने निकले थे,

किंतु बहुत भटकने के बाद भी उन्हें कम किराए वाला बड़ा मकान नहीं मिला था. जो मिले थे उन का किराया भी बहुत अधिक था और पेशगी में बड़ी रकम की मांग भी थी. उन की और भी कई शर्तें थीं, इसीलिए उन्होंने यह प्रयास त्याग दिया था. वे मन मसोस कर रह गए थे. इसी दौरान 2 कमरे एवं एक किचन वाले एक फ्लैट की सहज प्राप्ति का मौका आ गया था. हुआ यों था कि शहर से बाहर पूर्वी क्षेत्र में शरद के एक सहयोगी ने वह फ्लैट खरीदा था. वह उस में रहने भी लगा था, किंतु तबादला हो जाने से उसे जाना पड़ रहा था. वह चाहता था कि उस फ्लैट में कोई ऐसा किराएदार आ जाए जो जरूरत होने पर फ्लैट खाली कर दे, दुखी न करे. उसे शरद की मकान की परेशानी पता थी, इसीलिए उस ने शरद से कहा कि वह यदि चाहे तो उस के फ्लैट में आ जाए. अभी 3 वर्ष तक उस के यहां लौटने की कोई संभावना नहीं है. लिहाजा, इन 3 वर्षों तक वह यहां रह सकता है. इस बीच वह अपना घोंसला शायद बना ही लेगा, सो, यह फ्लैट खाली कराने में उसे कोई कठिनाई न होगी. शरद को यह प्रस्ताव अच्छा लगा था,

इसीलिए उस ने प्रतिभा से इस बारे में विचारविमर्श किया था. प्रतिभा को तो यह प्रस्ताव वरदान सा प्रतीत हुआ था. लिहाजा, उस ने सहर्ष स्वीकृति दे दी थी, किंतु शरद ही इस मामले में कई दिनों तक उल झा रहा था. उसे अपनी मम्मी से दूर, शहर के दूसरे कोने में जाना किसी खड़ी चढ़ाई सा लगता रहा था. मम्मीपापा की अनुमति मिलने पर ही वह इस फ्लैट में बसने को राजी हुआ था. फ्लैट वाले सहकर्मी ने एक कमरे में अपना सामान रख कर बाकी का भाग उन्हें सौंप दिया था. एक कमरा, किचन एवं बरामदे में शरद ने अपनी गृहस्थी जमाई थी, मगर यहां इतनी दूर आ बसने के बाद भी वह अपने पुराने घर जाता रहा था. 2-3 दिन बीतते ही मम्मी की याद उसे सताने लगती थी. शरद की मातृभक्ति को प्रतिभा कौतुक से देखती रही थी. वह स्वयं तो महीने 15 दिनों में ही अपनी ससुराल जा पाती थी. आएदिन के ऐसे चक्करों के अलावा कोई भी समस्या पैदा होते ही शरद अपनी मम्मी के पास जाए बिना नहीं रह पाता था.

उस समस्या को सुल झाने में मम्मी की कोई भूमिका न भी होती थी तो भी वह उन्हें अपनी समस्या बतलाए बिना नहीं रह पाता था. उन्हें अपनी समस्या बता कर ही उस का मन जैसे हलका हो जाता था. उन से विचारविमर्श करना शरद का स्वभाव था. प्रतिभा को शरद के इस आचरण पर हंसी आती रही थी. वह उस से कहती रही थी, ‘मम्मी को क्या तुम ने हर ताले की चाबी सम झ रखा है.’ ‘वे हैं ही मास्टर की,’ शरद इठलाते हुए उत्तर देता. ‘जूतों की भी जानकार हैं वे?’ प्रतिभा छेड़ते हुए पूछती. ‘वे हर बात की जानकार हैं, प्रतिभा.’ शरद ने जब नया प्लौट खरीदने की सोची थी तब तो उस का अपनी मम्मी से प्लौट कहां, कैसा और किस दिशा में खरीदा जाए, आदि कई पहलुओं पर विचारविमर्श होता रहा था. काफी विचारविमर्श के बाद पुराने घर की दिशा में ही एक उपनगर में 30×50 फुट का प्लौट लेने का निश्चय हो गया था. प्रतिभा को यह विचार उपयुक्त लगा था, किंतु उसे खरीदने के बाद जब उस में ट्यूबवैल खुदवाने की बात आई तो बिल्डर को साथ ले कर शरद अपनी मम्मी से सलाह लेने को उत्सुक हुआ था. वैसे मम्मी ने बोरिंग की अनुमति तो पहले ही दे दी थी, मगर शरद चाहता था कि जिस स्थान पर बोरिंग हो उस का फैसला भी मम्मी करें. शरद की इस इच्छा से चकित हो कर प्रतिभा ने उसे टोका था,

‘मम्मी क्या जमीन के अंदर की भी जानकारी रखती हैं?’ ‘वे ऐसी कोई विशेषज्ञ थोड़े ही हैं.’ ‘तो फिर उन से पूछने कि क्या तुक है?’ ‘तुम हो या न हो, प्रतिभा, मेरे संतोष के लिए यह जरूरी है.’ ‘किसी विशेषज्ञ की सलाह भी ले लो.’ ‘मेरी विशेषज्ञ तो मम्मी ही हैं.’ मम्मी के प्रति ऐसी बालसुलभ श्रद्धा के कई प्रसंग बाद में भी आते रहे थे. प्रतिभा चकित होती रही थी कि शरद किस माटी का बना हुआ है. माना कि मम्मीपापा के प्रति हर संतान को मोह होता है, मगर शरद तो इतने बड़े हो जाने के बाद भी छोटे बच्चे की तरह मम्मी के बेटे ही बने हुए हैं. मम्मी जब नहीं रहेंगी तब इन का क्या होगा. आज प्रतिभा को इसीलिए हंसी आई थी, क्योंकि उसे आश्चर्य हुआ था कि पिछले 3 दिनों से शरद रोज मम्मी के पास जा रहा है, जबकि बड़े साहब ने 3 दिन पहले ही शरद को ‘कारण बताओ’ नोटिस दे दिया था. पिछले दिन प्रतिभा ने शरद से सहज ही पूछ लिया था, ‘कारण बताओ नोटिस’ मिलने के बावजूद मम्मी के पास रोज जाने की क्या तुक है?’ तब शरद ने झल्लाते हुए उत्तर दिया था, ‘तुम से कितनी बार कहा है कि इस मामले में बहस मत किया करो. यह मेरी भावना का मामला है.’

आज यह कारण बताओ नोटिस वापस ले लिया गया था, मगर शरद आज भी औफिस से जब समय पर नहीं लौटा था तो प्रतिभा ने अनुमान लगा लिया था कि वह मम्मी को यह शुभ समाचार सुनाने लगा होगा, इसीलिए उसे घर लौटने में देरी हो गई. इसी बात का पता लगाने को उस ने अपनी ससुराल में टैलीफोन किया था. आज जब देररात को शरद लौटा, तो प्रतिभा ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आइए मम्मीजी के बेटेजी?’’ शरद ने भी मुसकराते हुए उत्तर दिया, ‘‘यह संबोधन बहुत बढि़या रहा. मैं सच में अपनी मम्मीजी का बेटाजी ही हूं.’’ ‘‘मगर मम्मीजी के बेटेजी, आप की मम्मीजी जब नहीं रहेंगी तब आप का क्या होगा?’’ ‘‘ऐसी बात मत कहो, प्रतिभा.’’ ‘‘मु झे तुम्हारी चिंता रहती है, इसीलिए कहना पड़ा. मम्मी का पल्ला छोड़ो अब.’’ ‘‘कैसे छोड़ूं?’’ ‘‘जैसे मैं ने छोड़ा.’’ ‘‘तुम ने सच में गजब किया.’’ ‘‘तुम स्त्रियां सच में गजब करती हो. हम पुरुष तो जीवनभर ‘मम्मीजी के बेटेजी ही बने रहते हैं.’’ इधर जूही अपने कमरे से आ कर बड़े गौर से अपने मम्मीपापा की बातें सुन रही थी. उस पर नजर पड़ते ही प्रतिभा चहकते हुए बोली, ‘‘मेरी हंसी का कारण अब तो तेरी सम झ में आ गया होगा?’’ ‘‘आ गया, मम्मीजी,’’ जूही ने शरारती लहजे में उत्तर दिया. तभी भीतर से पप्पू ठिनका, ‘‘मम्मी, होमवर्क कराइए.’’ जूही ने शरारती लहजे में हंसते हुए कहा, ‘‘मम्मीजी, संभालिए अपने बेटेजी को.’’ जूही का इशारा सम झते हुए शरद और प्रतिभा की हंसी फूट पड़ी और जूही भी ठहाके लगाती हुई परे चली गई.

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