Download App

रिश्ता : शमा को आखिर क्यों नापसंद था रफीक

शमा के लिए रफीक का रिश्ता आया. वह उसे पहले से जानती थी. वह ‘रेशमा आटो सर्विस’ में मेकैनिक था और अच्छी तनख्वाह पाता था.

शमा की मां सईदा अपनी बेटी का रिश्ता लेने को तैयार थीं.

शमा बेहद हसीन और दिलकश लड़की थी. अपनी खूबसूरती के मुकाबले वह रफीक को बहुत मामूली इनसान समझती थी. इसलिए रफीक उसे दिल से नापसंद था.

दूसरी ओर शमा की सहेली नाजिमा हमेशा उस की तारीफ करते हुए उकसाया करती थी कि वह मौडलिंग करे, तो उस का रुतबा बढ़ेगा. साथ ही, अच्छी कमाई भी होगी.

एक दिन शमा ख्वाबों में खोई सड़क पर चली जा रही थी.

‘‘अरी ओ ड्रीमगर्ल…’’ पीछे से पुकारते हुए नाजिमा ने जब शमा के कंधे पर हाथ रखा, तो वह चौंक पड़ी.

‘‘किस के खयालों में चली जा रही हो तुम? तुझे रोका न होता, तो वह स्कूटर वाला जानबूझ कर तुझ पर स्कूटर चढ़ा देता. वह तेरा पीछा कर रहा था,’’ नाजिमा ने कहा.

शमा ने नाजिमा के होंठों पर चुप रहने के लिए उंगली रख दी. वह जानती थी कि ऐसा न करने पर नाजिमा बेकार की बातें करने लगेगी.

अपने होंठों पर से उंगली हटाते हुए नाजिमा बोली, ‘‘मालूम पड़ता है कि तेरा दिमाग सातवें आसमान में उड़ने लगा है. तेरी चमड़ी में जरा सफेदी आ गई, तो इतराने लगी.’’

‘‘बसबस, आते ही ऐसी बातें शुरू कर दीं. जबान पर लगाम रख. थोड़ा सुस्ता ले…’’

थोड़ा रुक कर शमा ने कहा, ‘‘चल, मेरे साथ चल.’’

‘‘अभी तो मैं तेरे साथ नहीं चल सकूंगी. थोड़ा रहम कर…’’

‘‘आज तुझे होटल में कौफी पिलाऊंगी और खाना भी खिलाऊंगी.’’

‘‘मेरी मां ने मेरे लिए जो पकवान बनाया होगा, उसे कौन खाएगा?’’

‘‘मैं हूं न,’’ शमा नाजिमा को जबरदस्ती घसीटते हुए पास के एक होटल में ले गई.

‘‘आज तू बड़ी खुश है? क्या तेरे चाहने वाले नौशाद की चिट्ठी आई है?’’ शमा ने पूछा.

यह सुन कर नाजिमा झेंप गई और बोली, ‘‘नहीं, साहिबा का फोटो और चिट्ठी आई है.’’

‘‘साहिबा…’’ शमा के मुंह से निकला.

साहिबा और शमा की कहानी एक ही थी. उस के भी ऊंचे खयालात थे. वह फिल्मी दुनिया की बुलंदियों पर पहुंचना चाहती थी.

साहिबा का रिश्ता उस की मरजी के खिलाफ एक आम शख्स से तय हो गया था, जो किसी दफ्तर में बड़ा बाबू था. उसे वह शख्स पसंद नहीं था.

कुछ महीने पहले साहिबा हीरोइन बनने की लालसा लिए मुंबई भाग गई थी, फिर उस की कोई खबर नहीं मिली थी. आज उस की एक चिट्ठी आई थी.

चिट्ठी की खबर सुनने के बाद शमा ने नाजिमा के सामने साहिबा के तमाम फोटो टेबिल पर रख दिए, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देखने लगी. सोचने लगी, ‘फिल्म लाइन में एक औरत पर कितना सितम ढाया जाता है, उसे कितना नीचे गिरना पड़ता है.’

नाजिमा से रहा नहीं गया. वह गुस्से में बोल पड़ी, ‘‘इस बेहया लड़की को देखो… कैसेकैसे अलफाजों में अपनी बेइज्जती का डंका पीटा है. शर्म मानो माने ही नहीं रखती है. क्या यही फिल्म स्टार बनने का सही तरीका है? मैं तो समझती हूं कि उस ने ही तुम्हें झूठी बातों से भड़काया होगा.

‘‘देखो शमा, फिल्म लाइन में जो लड़की जाएगी, उसे पहले कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘फिल्मों में आजकल विदेशी रस्म के मुताबिक खुला बदन, किसिंग सीन वगैरह मामूली बात हो गई है.

‘‘कोई फिल्म गंदे सीन दिखाने पर ही आगे बढ़ेगी, वरना…’’ शमा बोली.

‘‘सच पूछो, तो साहिबा के फिल्मस्टार बनने से मुझे खुशी नहीं हुई, बल्कि मेरे दिल को सदमा पहुंचा है. ख्वाबों की दुनिया में उस ने अपनेआप को बेच कर जो इज्जत कमाई, वह तारीफ की बात नहीं है,’’ नाजिमा ने कहा.

बातोंबातों में उन दोनों ने 3-3 कप कौफी पी डाली, फिर टेबिल पर उन के लिए वेटर खाना सजाने लगा.

‘‘शमा, ऐसे फोटो ले जा कर तुम भी फिल्म वालों से मिलोगी, तो तुझे फौरन कबूल कर लेंगे. तू तो यों भी इतनी हसीन है…’’ हंस कर नाजिमा बोली.

‘‘आजकल मैं इसलिए ज्यादा परेशान हूं कि मां ने मेरी शादी रफीक से करने के लिए जीना मुश्किल कर दिया है. उन्हें डर है कि मैं भी मुंबई न भाग जाऊं.’’

‘‘अगर तुझे रफीक पसंद नहीं है, तो मना कर दे.’’

‘‘वही तो समस्या है. मां समझती हैं कि ऐसे कमाऊ लड़के जल्दी नहीं मिलते.’’

‘‘उस में कमी क्या है? मेहनत की कमाई करता है. तुझे प्यारदुलार और आराम मुहैया कराएगा. और क्या चाहिए तुझे?’’

‘‘तू भी मां की तरह बतियाने लगी कि मैं उस मेकैनिक रफीक से शादी कर लूं और अपने सारे अरमानों में आग लगा दूं.

‘‘रफीक जब घर में घुसे, तो उस के कपड़ों से पैट्रोल, मोबिल औयल और मिट्टी के तेल की महक सूंघने को मिले, जिस की गंध नाक में पहुंचते ही मेरा सिर फटने लगे. न बाबा न. मैं तो एक हसीन जिंदगी गुजारना चाहती हूं.’’

‘‘सच तो यह है कि तू टैलीविजन पर फिल्में देखदेख कर और फिल्मी मसाले पढ़पढ़ कर महलों के ख्वाब देखने लगी है, इसलिए तेरा दिमाग खराब होने लगा है. उन ख्वाबों से हट कर सोच. तेरी उम्र 24 से ऊपर जा रही है. हमारी बिरादरी में यह उम्र ज्यादा मानी जाती है. आगे पूछने वाला न मिलेगा, तो फिर…’’

इसी तरह की बातें होती रहीं. इस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चली गईं.

उस दिन शमा रात को ठीक से सो न सकी. वह बारबार रफीक, नाजिमा और साहिबा के बारे में सोचती रही.

रात के 3 बज रहे थे. शमा ने उठ कर आईने के सामने अपने शरीर को कई बार घुमाफिरा कर देखा, फिर कपड़े उतार कर अपने जिस्म पर निगाहें गड़ाईं और मुसकरा दी. फिर वह खुद से ही बोली, ‘मुझे साहिबा नहीं बनना पड़ेगा. मेरे इस खूबसूरत जिस्म और हुस्न को देखते ही फिल्म वाले खुश हो कर मुझे हीरोइन बना देंगे.’’

जब कोई गलत रास्ते पर जाने का इरादा बना लेता है, तो उस का दिमाग भी वैसा ही हो जाता है. उसे आगेपीछे कुछ सूझता ही नहीं है.

शमा ने सोचा कि अगर वह साहिबा से मिलने गई, तो वह उस की मदद जरूर करेगी. क्योंकि साहिबा भी उस की सहेली थी, जो आज नाम व पैसा कमा रही है.

लोग कहते हैं कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं. वे सच कहते हैं, लेकिन जब मुसीबत आती है, तो वही ढोल कानफाड़ू बन कर परेशान कर देते हैं.

शमा अच्छी तरह जानती थी कि उस की मां उसे मुंबई जाने की इजाजत नहीं देंगी, तो क्या उस के सपने केवल सपने बन कर रह जाएंगे? वह मुंबई जरूर जाएगी, चाहे इस के लिए उसे मां को छोड़ना पड़े.

शमा ने अपने बैंक खाते से रुपए निकाले, ट्रेन का रिजर्वेशन कराया और मां से बहाना कर के एक दिन मुंबई के लिए चली गई.

शमा ने साहिबा को फोन कर दिया था. साहिबा ने उसे दादर रेलवे स्टेशन पर मिलने को कहा और अपने घर ले चलने का भरोसा दिलाया.

जब ट्रेन मुंबई में दादर रेलवे स्टेशन पर पहुंची, उस समय मूसलाधार बारिश हो रही थी. बहुत से लोग स्टेशन पर बारिश के थमने का इंतजार कर रहे थे. प्लेटफार्म पर बैठने की थोड़ी सी जगह मिल गई.

शमा सोचने लगी, ‘घनघोर बारिश के चलते साहिबा कहीं रुक गई होगी.’

उसी बैंच पर एक औरत बैठी थी. शायद, उसे भी किसी के आने का इंतजार था.

शमा उस औरत को गौर से देखने लगी, जो उम्र में 40 साल से ज्यादा की लग रही थी. रंग गोरा, चेहरे पर दिलकशी थी. अच्छी सेहत और उस का सुडौल बदन बड़ा कशिश वाला लग रहा था.

शमा ने सोचा कि वह औरत जब इस उम्र में इतनी खूबसूरत लग रही है, तो जवानी की उम्र में उस पर बहुत से नौजवान फिदा होते रहे होंगे.

उस औरत ने मुड़ कर शमा को देखा और कहा, ‘‘बारिश अभी रुकने वाली नहीं है. कहां जाना है तुम्हें?’’

शमा ने जवाब दिया, ‘‘गोविंदनगर जाना था. कोई मुझे लेने आने वाली थी. शायद बारिश की वजह से वह रुक गई होगी.’’

‘‘जानती हो, गोविंदनगर इलाका इस दादर रेलवे स्टेशन से कितनी दूर है? वह मलाड़ इलाके में पड़ता है. यहां पहली बार आई हो क्या?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘किस के यहां जाना है?’’

‘‘मेरी एक सहेली है साहिबा. हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ती थीं. 2-3 साल पहले वह यहां आ कर बस गई. उस ने मुझे भी शहर देखने के लिए बुलाया था.’’

उस औरत ने शमा की ओर एक खास तरह की मुसकराहट से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारे पास सामान तो बहुत कम है. क्या 1-2 दिन के लिए ही आई हो?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कह सकती. साहिबा के आने पर ही बता सकूंगी.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने घर से बिना किसी को बताए यहां भाग कर आई हो? अकसर तुम्हारी उम्र की लड़कियों को मुंबई देखने का बड़ा शौक रहता है, इसलिए वे बिना इजाजत लिए इस नगरी की ओर दौड़ पड़ती हैं और यहां पहुंच कर गुमराह हो जाती हैं.’’

शमा के चेहरे की हकीकत उस औरत से छिप न सकी.

‘‘मुझे लगता है कि तुम भी भाग कर आई हो. मुमकिन है कि तुम्हें भी हीरोइन बनने का चसका लगा होगा, क्योंकि तुम्हारी जैसी हसीन लड़कियां बिना सोचे ही गलत रास्ते पर चल पड़ती हैं.’’

‘‘आप ने मुझे एक नजर में ताड़ लिया. लगता है कि आप लड़कियों को पहचानने में माहिर हैं,’’ कह कर शमा हंस दी.

‘‘ठीक कहा तुम ने…’’ कह कर वह औरत भी हंस दी, ‘‘मैं भी किसी जमाने में तुम्हारी उम्र की एक हसीन लड़की गिनी जाती थी. मैं भी मुंबई में उसी इरादे से आई थी, फिर वापस न लौट सकी.

‘‘मैं भी अपने घर से भाग कर आई थी. मुझ से पहले मेरी सहेली भी यहां आ कर बस चुकी थी और उसी के बुलावे पर मैं यहां आई थी, पर जो पेशा उस ने अपना रखा था, सुन कर मेरा दिल कांप उठा…

‘‘वह बड़ी बेगैरत जिंदगी जी रही थी. उस ने मुझे भी शामिल करना चाहा, तो मैं उस के दड़बे से भाग कर अपने घर जाना चाहती थी, लेकिन यहां के दलालों ने मुझे ऐसा वश में किया कि मैं यहीं की हो कर रह गई.

‘‘मुझे कालगर्ल बनना पड़ा. फिर कोठे तक पहुंचाया गया. मैं बेची गई, लेकिन वहां से भाग निकली. अब स्टेशनों पर बैठते ऐसे शख्स को ढूंढ़ती फिरती हूं, जो मेरी कद्र कर सके, लेकिन इस उम्र तक कोई ऐसा नहीं मिला, जिस का दामन पकड़ कर बाकी जिंदगी गुजार दूं,’’ बताते हुए उस औरत की आंखें नम हो गईं.

‘‘कहीं तुम्हारा भी वास्ता साहिबा से पड़ गया, तो जिंदगी नरक बन जाएगी. तुम ने यह नहीं बताया कि तुम्हारी सहेली करती क्या है?’’ उस औरत ने पूछा.

शमा चुप्पी साध गई.

‘‘नहीं बताना चाहती, तो ठीक है?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. वह हीरोइन बनने आई थी. अभी उस को किसी फिल्म में काम करने को नहीं मिला, पर आगे उम्मीद है.’’

‘‘फिर तो बड़ा लंबा सफर समझो. मुझे भी लोगों ने लालच दे कर बरगलाया था,’’ कह कर औरत अजीब तरह से हंसी, ‘‘तुम जिस का इंतजार कर रही हो, शायद वह तुम्हें लेने नहीं आएगी, क्योंकि जब अभी वह अपना पैर नहीं जमा सकी, तो तुम्हारी खूबसूरती के आगे लोग उसे पीछे छोड़ देंगे, जो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगी.’’

दोनों को बातें करतेकरते 3 घंटे बीत गए. न तो बारिश रुकी, न शाम तक साहिबा उसे लेने आई. वे दोनों उठ कर एक रैस्टोरैंट में खाना खाने चली गईं.

शमा ने वहां खुल कर बताया कि उस की मां उस की शादी जिस से करना चाहती थीं, वह उसे पसंद नहीं करती. वह बहुत दूर के सपने देखने लगी और अपनी तकदीर आजमाने मुंबई चली आई.

‘‘शमा, बेहतर होगा कि तुम अपने घर लौट जाओ. तुम्हें वह आदमी पसंद नहीं, तो तुम किसी दूसरे से शादी कर के इज्जत की जिंदगी बिताओ, इसी में तुम्हारी भलाई है, वरना तुम्हारी इस खूबसूरत जवानी को मुंबई के गुंडे लूट कर दोजख में तुम्हें लावारिस फेंक देंगे, जहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई न होगा.’’

शमा उस औरत से प्रभावित हो कर उस के पैरों पर गिर पड़ी और वापस जाने की मंसा जाहिर की.

‘‘अगर तुम इस ग्लैमर की दुनिया में कदम न रखने का फैसला कर घर वापस जाने को राजी हो गई हो, तो मैं यही समझूंगी कि तुम एक जहीन लड़की थी, जो पाप के दलदल में उतरने से बच गई. मैं तुम्हारे वापसी टिकट का इंतजाम करा दूंगी,’’ उस औरत ने कहा.

शमा घर लौट कर अपनी बूढ़ी मां सईदा की बांहों में लिपट कर खूब रोई.

आखिरकार शमा रफीक से शादी करने को राजी हो गई.

मां ने भी शमा की शादी बड़े ही धूमधाम से करा दी.

अब रफीक और शमा खुशहाल जिंदगी के सपने बुन रहे हैं. शमा भी पिछली बातें भूलने की कोशिश कर रही है.

नीट और प्रोटेम स्पीकर के मुद्दे पर विपक्ष ने दिखाई संविधान की किताब

18वीं लोकसभा का पहला सत्र राष्ट्रगान के साथ शुरू हुआ. इसके बाद पिछले सदन के दिवंगत सदस्यों को श्रद्धांजलि दी गई. संसद में आज और कल नए सांसद शपथ लेंगे. इससे पहले भाजपा सांसद भर्तुहरि महताब को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाई थी. इस दौरान संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू राष्ट्रपति भवन में मौजूद थे.

सत्ता पक्ष की तैयारी के बीच विपक्ष की अपनी अलग से तैयारी थी. विपक्ष के सभी सासंदोे ने तय किया था कि वह एक साथ संसद में प्रवेश करेंगे. सबके हाथ में संविधान की कौपी होगी. इंडिया ब्लौक के सभी सांसद सबसे पहले महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास एकत्र हुये. वहां से सांसद अपने साथ संविधान की एक कौपी लेकर संसद भवन में गये.

संसद भवन में समाजवादी पार्टी के सांसदों ने सबसे पहले प्रवेश किया. सभी के सिर पर लाल टोपी और लाल गमछा था. हाथ में संविधान की किताब थी. अखिलेश यादव के ठीक बगल उनकी पत्नी डिंपल यादव थी. रामगोपाल और उनके परिवार के दूसरे सदस्य आदित्य और धर्मेन्द्र के साथ अयोध्या के सांसद अवधेष प्रसद सबसे अधिक आकर्षण का केन्द्र थे.

जब सपा सांसदों का फोटो हो रहा था. इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे और सोनिया गांधी पीछे से आती दिखी. खडगे सफेद धोती कुर्ता में थे तो सोनिया ने बूटेदार कौटन की साडी और सफेद ब्लाउज पहन रखा था और आंखों पर ब्राउन कलर के शीशे वाला गौगल्स लगाया हुआ था. अखिलेश यादव ने उनके लिये रास्ता देते मल्लिकार्जुन खडगे से कहा कि ‘हम एक साथ है. आपसे बड़ी संविधान की किताब लेकर आये है.’ इस पर दोनो हंस दिये. मल्लिकार्जुन खडगे ने अखिलेश से कहा ‘देर आये दुरूस्त आये.’

पीछे आ रही सोनिया गांधी को अखिलेश ने अभिवादन किया और अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद का परिचय कराते कहा यह अयोध्या के सांसद अवधेष प्रसाद है. सोनिया ने उनको बधाई दी. अखिलेष ने सोनिया से कहा ‘हम आपसे बड़ी संविधान कि किताब लेकर आये है.’ सोनिया गांधी ने अखिलेश को बधाई देते कहा ‘आपका काम भी बड़ा है.’ विपक्ष ने एकजुटता और आत्मविश्वास दिखाने का पूरा काम किया.

मोदी और धर्मेन्द्र प्रधान का विरोध:

शपथ लेने वालों में सबसे पहला नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का था. जब वह शपथ लेने आये तो विपक्षी दलों ने संविधान की कौपी लहराई. मोदी की शपथ के दौरान सत्ता पक्ष के सांसदों ने भारत माता की जय के नारे लगाए, जिसके जवाब में विपक्ष ने संविधान की कौपी लहराई. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्ष के सांसदों के साथ संविधान की कौपी लेकर प्रदर्शन किया. सपा के सभी सांसद हाथ में संविधान की कौपी लेकर पहुंचे. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव समेत सभी सपा सांसद हाथ में संविधान की कौपी लेकर संसद पहुंचे.

अनुप्रिया पटेल, जितेंद्र सिंह, चिराग पासवान, मनसुख मंडाविया, किरेन रिजिजू, गजेंद्र सिंह शेखावत, राम मोहन नायडू, ललन सिंह, शिवराज सिंह चैहान, नितिन गडकरी, अमित शाह राजनाथ सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते, राधा मोहन सिंह ने शपथ ली. जब शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का नाम जब शपथ के लिए बुलाया गया तो विपक्ष ने ‘नीट नीट, शेम शेम’ बोलना शुरू कर दिया. विपक्ष नीट पेपर धांधली में उनके इस्तीफे की भी मांग कर रहा है. शपथ ग्रहण के लिये सीढियों से चढ़कर पोडियम तक जाना होता है. जिसमे 2-3 मिनट का समय लग रहा था. इस दौरान पूरे समय विपक्ष के नारे संसद हौल में गूजंते रहें.

प्रोटेम स्पीकर का विरोध:

नीट के बाद दूसरा हंगामा प्रोटेम स्पीकर को लेकर हो रहा था. इसके विरोध में इडिया ब्लॉक के सांसदों ने गांधी प्रतिमा के पास प्रदर्शन किया. सांसद हाथ में संविधान की कॉपी लिए थे. प्रोटेम स्पीकर भर्तुहरि महताब के साथ पैनल में शामिल 3 विपक्षी सांसद सुरेश कोडिकुन्निल, थलिक्कोट्टई राजुथेवर बालू, सुदीप बंदोपाध्याय संसद में उपस्थित नहीं हुए. ये सांसद प्रोटेम स्पीकर भर्तुहरि महताब का विरोध कर रहे हैं. इनका कहना है कि सरकार ने नियमों को दरकिनार कर प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया है. नियम के मुताबिक, कांग्रेस के के. सुरेश 8 बार के सांसद हैं, इसलिए प्रोटेम स्पीकर उन्हें बनाना चाहिए था. महताब 7 बार के सांसद हैं.

कांग्रेस सांसद के सुरेश ने कहा एनडीए सरकार ने लोकसभा की परंपरा तोड़ी है. अब तक जो सांसद सबसे अधिक ज्यादा बार चुनाव जीतता है, वही प्रोटेम स्पीकर बनता रहा है. भर्तृहरि महताब 7वीं बार सांसद चुने गए हैं. जबकि, मैं 8वीं बार सांसद चुना गया हूं. वे फिर से विपक्ष का अपमान कर रहे हैं. इसलिए इंडिया ब्लौक ने सर्वसम्मति से पैनल सदस्यों का बहिष्कार करने का फैसला किया है.

18वीं लोकसभा को मिलेगा नेता विपक्ष:

लोकसभा चुनाव 2024 के पहले सत्र में 10 साल बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी मिलेगी. पिछले 10 साल से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है, क्योंकि 2014 के बाद से किसी भी विपक्षी दल के 54 सांसद नहीं जीते. मावलंकर नियम के तहत नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए लोकसभा की कुल संख्या 543 का 10 प्रतिशत यानी 54 सांसद होना जरूरी है. 16वीं लोकसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे 44 सांसदों वाले कांग्रेस संसदीय दल के नेता थे, लेकिन उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं था. 17वीं लोकसभा में 52 सांसदों की अगुआई अधीर रंजन चैधरी ने की थी. उन्हें भी कैबिनेट जैसे अधिकार नहीं थे.

संसद में विपक्ष के नेता का अपना अलग महत्व होता है. नेता विपक्ष हर बड़ी नियुक्ति में शामिल होता है. उसे नेता सदन यानि पीएम के बराबर तरजीह मिलती है. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली कमेटी में भी उन्हें शामिल किया जाता है, जिसकी अध्यक्षता पीएम करते हैं. नेता प्रतिपक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग, सीवीसी और सीबीआई के प्रमुखों की नियुक्ति करने वाली कमेटी में भी शामिल होता है.

लोकसभा की लोक लेखा समिति का अध्यक्ष भी आमतौर पर नेता प्रतिपक्ष को ही बनाया जाता है. इस समिति के पास पीमए तक को तलब करने का अधिकार होता है. सदन के भीतर प्रतिपक्ष के अगली, दूसरी कतार में कौन नेता बैठेगा, इसकी राय भी विपक्ष के नेता से ली जाती है.

18वीं लोकसभा में सत्ता पक्ष और विपक्ष हालत बदली हुई है. 2014 और 2019 की तुलना में इस बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं है. 18वीं लोकसभा में एनडीए की सरकार है. गठबंधन के पास 293 सांसद हैं.

मोदी के पिछले दो कार्यकाल की तुलना में तीसरे कार्यकाल में विपक्ष मजबूत हुआ है. इंडिया ब्लॉक ने 234 सीटें जीती हैं. कांग्रेस के पास 99 सीटे हैं, जो सदन में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. संसद में इंडिया ब्लौक मजबूत दिखा. जिससे राहुल गांधी की ताकत बढेगी. 10 साल बाद कांग्रेस से नेता विपक्ष भी बनाया जाएगा. जिसके लिए राहुल गांधी का नाम सबसे ऊपर चल रहा है. बैठक में इस पर भी विचार विमर्श होगा. सत्र का पहला दिन विपक्ष की एकजुटता और आत्मविश्वास के नाम रहा.

नरेन्द्र मोदी ने सबको साथ लेकर सबकी सहमति से काम करने की बात कहते विपक्ष की अहमियत बताई और कहा कि उम्मीद है विपक्ष का साथ मिलेगा.

सड़क से संसद तक नीट की धांधली

नीट परीक्षा के परिणामों को ले कर उठा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा था कि यूजीसी नेट की गड़बड़ी भी सामने आ खड़ी हुई. इस समय एनटीए चारों तरफ से घिर चुकी है. तपती गरमी के बावजूद छात्र सड़कों पर हैं, वे रिजल्ट में धांधली का आरोप लगा रहे हैं.

छात्रों की मांग है कि एनटीए को ही निरस्त कर दिया जाए और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान इस्तीफ़ा दें. इस के अलावा परीक्षा कैसिंल हो और दोबारा परीक्षा कराई जाए. धर्मेंद्र प्रधान जो पहले किसी भी गड़बड़ी से इनकार कर रहे थे वे भी कहीं गुंजाइश की बात करने लगे हैं.

 

विपक्ष इस मौके पर पूरी तरह से हमलावर हैं. मुख्य रूप से राहुल गांधी ने इस पर कांफ्रेस की है और छात्रों से मुलाक़ात भी की है.उन्होंने नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते कहा है कि “नीट के रिजल्ट में धांधली कर के 24 लाख छात्रों का घर तोड़ दिया गया है.”

अपने ट्वीट पर राहुल गांधी ने लिखा था ‘नरेंद्र मोदी ने अभी शपथ भी नहीं ली है और नीट परीक्षा में हुई धांधली ने 24 लाख से अधिक स्टूडैंट्स और उन के परिवारों को तोड़ दिया है. एक ही एग्जाम सेंटर से 6 छात्र मैक्सिमम मार्क्स के साथ टौप कर जाते हैं, कितनों को ऐसे मार्क्स मिलते हैं जो टैक्निकली संभव ही नहीं है, लेकिन सरकार लगातार पेपर लीक की संभावना को नकार रही है.’

उन्होंने आगे कहा है, “शिक्षा माफिया और सरकारी तंत्र की मिलीभगत से चल रहे इस पेपर लीक उद्योग से निपटने के लिए ही कांग्रेस ने एक रोबस्ट प्लान बनाया था. हम ने अपने मैनिफेस्टो में कानून बना कर छात्रों को पेपर लीक से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया था. आज मैं देश के सभी स्टूडेंट्स को विश्वास दिलाता हूं कि मैं आप की आवाज को दबने नहीं दूंगा.”

छात्रों के साथ फिजिक्सवाला के सीईओ अलख पांडेय, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और रणदीप सुरजेवाला समेत कई राजनेताओं ने भी सवाल पूछे. फिजिक्सवाला के फाउंडर अलख पांडेय तो चैनलों में जाजा कर इस के खिलाफ इंटरव्यू दे रहे हैं. उन्होंने एक वीडियो में दावा किया कि वे नीट 2024 में एनटीए का सबसे बड़ा राज सबूत के साथ पेश कर रहे हैं. उन्होंने वीडियो में एक ओएमआर सीट शेयर किया और कहा कि “इस में कैलकुलेट करोगे तो 368 नंबर आएंगे और एनटीए ने इस बच्चे को रिजल्ट में 453 नंबर दिए हैं यानी कुल 85 नंबर का अंतर यानी इसे ग्रेस मार्क मिला या इसे कैसे मिला ?

राहुल गांधी से जो छात्र मिलने आए थे उन्होंने अपनी मांगे रखीं. जिस के बाद यह तय है कि नीट गड़बड़ी का मामला संसद शुरू होने के बाद और भी जोर पकड़ेगा. एक तरफ छात्र सड़कों पर आंदोलित होंगे तो वहीँ दूसरी तरफ संसद में विपक्ष पूरे जोश से इस मुद्दे को उठाएगा तो सरकार कहीं न कहीं बैकफुट में ही रहेगी

मैं 58 वर्षीय महिला हूं मुझे बारबार यूटीआई हो जाता है, बहुत परेशान हूं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 58 वर्षीय महिला हूं. मुझे बारबार यूटीआई हो जाता है. कई बार उपचार कराया, लेकिन यह समस्या स्थाई रूप से दूर नहीं होती. बहुत परेशान हूं. क्या करूं?

 

जवाब

मेनोपौज के बाद महिलाओं को अकसर इस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ब्लैडर में यूरिन रुक जाता है, अच्छी तरह से पास नहीं होता. इसलिए संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. कई महिलाओं में मेनोपौज के बाद यूरिन पास करने का रास्ता ड्राई हो जाता है. हारमोन थेरैपी से इस समस्या का उपचार किया जाता है. कई बार औपरेशन के द्वारा यूरिन पास करने का रास्ता चौड़ा किया जाता है. मेनोपौज के बाद यूटीआई के संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है, क्योंकि ऐस्ट्रोजन हारमोन के कम होने से वैजाइना, यूरेथ्रा और ब्लैडर के निचले हिस्से के ऊतक बहुत पतले और आसानी से टूटने वाले हो जाते हैं.

ये भी पढ़ें

महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन या यूटीआई (यह ट्रैक्ट शरीर से मुख्यरूप से किडनी, यूरेटर ब्लैडर और यूरेथरा से मूत्र निकालता है) एक प्रकार का विषाणुजनित संक्रमण है. यह ब्लैडर में होने वाला सब से सामान्य प्रकार का संक्रमण है लेकिन कई बार मरीजों को किडनी में गंभीर प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है जिसे पाइलोनफ्रिटिस कहते हैं.

यौनरूप से सक्रिय महिलाओं में यह अधिक होता है क्योंकि यूरेथरा सिर्फ 4 सैंटीमीटर लंबा होता है और जीवाणु के पास ब्लैडर के बाहर से ले कर भीतर तक घूमने के लिए इतनी ही जगह होती है. डायबिटीज होने से मरीजों में यूटीआई होने का खतरा दोगुना तक बढ़ जाता है.

डायबिटीज से बढ़ता है जोखिम

डायबिटीज के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है, इसलिए शरीर जीवाणुओं, विषाणुओं और फुंगी से मुकाबला करने में अक्षम हो जाता है. इस वजह से डायबिटीज से पीडि़त मरीजों को अकसर ऐसे जीवाणुओं की वजह से यूटीआई हो जाता है. इस में सामान्य एंटीबायोटिक काम नहीं आते हैं.

लंबी अवधि की डायबिटीज ब्लैडर को आपूर्ति करने वाली नसों को प्रभावित कर सकती है जिस की वजह से ब्लैडर की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं जो यूरिनरी सिस्टम के बीच सिग्नल को प्रभावित कर ब्लैडर को खाली होने से रोक सकती हैं. परिणामस्वरूप, मूत्र पूरी तरह से नहीं निकल पाता है और इस की वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता ह

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अच्छा श्रोता होने के लाभ

आमतौर पर लोग दूसरों को सुनना पसंद नहीं करते. वे या तो उन की बातें अनसुनी करते हैं या अपनी बात को ही उन के सामने रखने पर जोर देते हैं, किंतु जितना जरूरी अच्छा वक्ता होना है उतना ही अच्छा श्रोता होना भी है. बोलना हर किसी को बहुत पसंद होता है. यही नहीं, कुछ लोग तो इतना बोलते हैं कि वे अपने आगे किसी दूसरे को बोलने का मौका तक नहीं देते. इस का साक्षात उदाहरण है महिलाओं की किटी पार्टी जिस में मानो एकदूसरे से बढ़चढ़ कर बोलने की प्रतिद्वंद्विता ही लगी रहती है. परंतु, अकसर, अधिक बोलने की आदत होने के कारण वे अपना ही नुकसान कर बैठते हैं. जरूरत से ज्यादा बोलने का नुकसान अधिक बोलने की आदत के कारण अकसर लोग सामने वाले से जरूरी बात करना या कहना भूल जाते हैं. अकसर सामने वाले को अपने बारे में अनावश्यक व्यक्तिगत बातें भी बता जाते हैं.

अधिक बोलने से वार्त्तालाप बहुत अधिक लंबा हो जाता है जिस से कई बार श्रोता बोर होने लगता है और वह चाह कर भी आप की बातचीत में शामिल नहीं हो पाता. बातों के प्रवाह में लोग अकसर ऐसे पात्रों और लोगों की चर्चा करते हैं जो समयोचित ही नहीं होते और जिन का सुनने वालों से कोई लेनादेना ही नहीं होता. अपनी ही बात कहने के कारण आप संबंधित विषय पर किसी दूसरे के विचारों को सुनने से वंचित रह जाते हैं. आप की अधिक और अनावश्यक बोलने की आदत के कारण लोग आप से कटने भी लगते हैं. सुनने की महत्ता सच पूछा जाए तो बोलने से अधिक सुनने की कला आना बेहद आवश्यक है. आप अपने आसपास ही खोजेंगे तो 10 में से केवल 1 इंसान ही आप को श्रोता मिलेगा. जबकि एक अच्छे श्रोता बन कर आप अपने व्यक्तित्व में अनेक सुधार कर सकते हैं. मनोवैज्ञानिक काउंसलर कीर्ति वर्मा के अनुसार, ‘लोगों की बातों को शांति से सुनने का तात्पर्य है कि आप धैर्यशाली हैं.’

सुनने से आप विषय की गंभीरता को समझ पाते हैं और फिर संबंधित विषय के बारे में अपनी राय बना पाते हैं. सुनने से आप लोगों के व्यक्तित्व को समझ पाते हैं. किसी के भी वार्त्तालाप को धैर्य से सुनना आप के गंभीर व्यक्तित्व का परिचायक है. गंभीरतापूर्वक बात को सुनने के कारण आप के समक्ष लोग अपनी बात निसंकोच रख पाते हैं. ये कुछ टिप्स हैं जिन को अपना कर आप भी अच्छे श्रोता बन सकते हैं- वक्ता से जुड़ें मनु के सामने जब भी कोई किसी भी मुद्दे पर बात करता है तो वह बड़े ही तटस्थ भाव से सुनता है, जिस से सामने वाला कुछ देर में ही बोलना बंद कर देता है. इसलिए जब भी आप किसी की बात सुनें तो उस से जुड़ें अवश्य. मसलन, यदि आप किसी से उन के घर में होने वाली शादी के बारे में बात कर रहे हैं तो उन से शादी की तैयारियों आदि के बारे में बातचीत करें ताकि उन्हें लगे कि आप उन के प्रोग्राम में रुचि ले रहे हैं. किसी का नवनिर्मित घर देखने गए हैं, तो रुचि ले कर उस के घर से संबंधित सवाल पूछें.

आप के चेहरे के दुख और खुशी जैसे भाव सामने वाले को जीवंतता का एहसास कराते हैं, वरना उसे लगेगा कि वह किसी मुर्दे से बात कर रहा है. सोशल मीडिया से बचें कुछ लोग दूसरों से बातचीत करते समय भी बीचबीच में अपना फोन उठा कर कभी मैसेज देखने लगते हैं या फौरवर्ड करने लगते हैं. इस से सामने वाले का ध्यान तो भंग होता ही है, साथ ही, उसे यह भी एहसास होता है कि आप उस की बातों में रुचि नहीं ले रहे हैं. टीवी से बचें सीमा और उस के पति अपने पारिवारिक मित्र से मिलने उन के घर गए. कुछ देर की औपचारिक बातचीत के बाद उन के मित्र टीवी पर आ रहे एक धार्मिक धारावाहिक देखने में व्यस्त हो कर बीचबीच में ‘हां हूं’ करते जा रहे थे. इस से सीमा और उस के पति को बहुत ही उपेक्षित महसूस हुआ और वे कुछ देर बाद ही उठ कर वापस अपने घर आ गए. अपना कीमती समय निकाल कर जब भी कोई मिलने आता है तो उस से रुचिपूर्वक बातचीत करना संबंधों की गंभीरता को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है. व्यस्तता का नाटक न करें कुछ लोगों की आदत होती है कि जब भी आप उन से बात करो, वे लैपटौप में आंखें गड़ाए ही बातचीत करते हैं मानो सारा जरूरी काम उन्हें उसी समय करना है.

जब भी आप से कोई बात करे तो कुछ देर अपना काम रोक कर आप सामने वाले की बात अच्छी तरह सुनें. वहीं, यदि बहुत जरूरी काम कर रहे हैं तो वक्ता को कुछ देर रुकने के लिए कहें. अपनी उपस्थिति दर्ज करें भले ही विषय आप की रुचि का न हो परंतु फिर भी आप बीचबीच में सामने वाले के विषय से संबंधित प्रश्न अवश्य पूछें. इस से आप को विषय की जानकारी तो होगी ही, साथ ही, सामने वाले को भी लगेगा कि आप उस से जुड़े हैं. बीच में न टोकें रेशु की आदत है कि किसी की भी बात पूरी सुने बिना बीच में ही अपनी प्रतिक्रिया दे देती है, जिस से बोलने वाले की बात अधूरी रह ही जाती है, साथ ही, रेशु भी संबंधित विषय पर अपने सही विचार रखने से वंचित रह जाती है. मददगार बनें कोरोना के आने के बाद से हर इंसान अपने जीवन में अनेक परेशानियां झेल रहा है. कई बार इन परेशानियों का सामना न कर पाने के कारण वह अपने बेशकीमती जीवन तक को दांव पर लगा देता है. यदि आप के आसपास का भी कोई आप से बात करना चाहता है तो उसे समय दे कर शांति से उस की बात सुनें और हर संभव उस की मदद करने का प्रयास करें.

आशीर्वाद : बिना दहेज के आई बहू नीलम के साथ क्या हुआ

नीलम ने आलोक के लिए चाय ला कर मेज पर रख दी और चुपचाप मेज के पास पड़ी कुरसी पर बैठ केतली से प्याले में चाय डालने लगी. आलोक ने नीलम के झुके हुए मुख पर दृष्टि डाली. लगता था, वह अभीअभी रो कर उठी है. आलोक रोजाना ही नीलम को उदास देखता है. वैसे नीलम रोती बहुत कम है. वह समझता है कि नीलम के रोने का कारण क्या हो सकता है, इसलिए उस ने पूछ कर नीलम को दोबारा रुलाना ठीक नहीं समझा. उस ने कोमल स्वर में पूछा, ‘‘मां और पिताजी ने चाय पी ली?’’ ‘‘नहीं,’’ नीलम के स्वर में हलका सा कंपन था.

‘‘क्यों?’’ ‘‘मांजी कहती हैं कि उन्हें इस कदर थकावट महसूस हो रही है कि चाय पीने के लिए बैठ नहीं सकतीं और पिताजी को चाय नुकसान करती है.’’

‘‘तो पिताजी को दूध दे देतीं.’’ ‘‘ले गई थी, किंतु उन्होंने कहा कि दूध उन्हें हजम नहीं होता.’’

आलोक चाय का प्याला हाथ में ले कर मातापिता के कमरे की ओर जाने लगा तो नीलम धीरे से बोली, ‘‘पहले आप चाय पी लेते. तब तक उन की थकान भी कुछ कम हो जाती.’’ ‘‘तुम पियो. मेरे इंतजार में मत बैठी रहना. मां को चाय पिला कर अभी आता हूं.’’

नीलम ने चाय नहीं पी. गोद में हाथ रखे खिड़की से बाहर देखती रही. काश, वह भी हवा में उड़ते बादलों की तरह स्वतंत्र और चिंतारहित होती. नीलम के पिता एक सफल डाक्टर थे. पर उन की सब से बड़ी कमजोरी यह थी कि वे किसी को कष्ट में नहीं देख सकते थे. जब भी कोई निर्धनबीमार उन के पास आता तो वे उस से फीस का जिक्र तक नहीं करते, बल्कि उलटे उसे फल व दवाइयों के लिए कुछ पैसे अपने पास से दे देते. परिणाम यह हुआ कि वे जितना काम व मेहनत करते थे उतना धन संचित नहीं कर पाए. फिर उन की लंबी बीमारी चली, जो थोड़ाबहुत धन था वह खत्म हो गया.

उन की मृत्यु के बाद सिर्फ एक मकान के अलावा और कोई संपत्ति नहीं बची थी. सब से बड़ी बहन होने के नाते नीलम ने घर का भार संभालना अपना कर्तव्य समझा. उस ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली. छोटी बहन पूनम मैडिकल कालेज में चौथे साल में थी और भाई अनुनय बीए द्वितीय वर्ष में. आलोक ने जब नीलम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो उस ने साफ इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि जब तक पूनम पढ़ाई पूरी कर के कमाने लायक नहीं हो जाती, तब तक वह विवाह की बात सोच भी नहीं सकती. इस पर आलोक ने आश्वासन दिया था कि विवाह में वह कुछ खर्च न होने देगा और विवाह के पश्चात भी नीलम अपना वेतन घर में देने के लिए स्वतंत्र होगी. आलोक का यह तर्क था कि वह एक मित्र के नाते उस के परिवार के प्रति सबकुछ नहीं कर सकता जो परिवार का सदस्य बन जाने के पश्चात कर सकेगा.

यह तर्क नीलम को भी ठीक लगा था. कभीकभी अपनी चिंताओं के बीच वह खुद को बहुत ही अकेला व असहाय सा पाती थी. उस ने सोचा यदि उसे आलोक जैसा साथी, जो उस की भावनाओं को अच्छी तरह समझता है, मिल गया तो उस की चिंताएं कम हो जाएंगी. फिर भी नीलम की आशंका थी कि अकेली संतान होने के कारण आलोक से उस के मातापिता को बहुत सी आशाएं होंगी और इसलिए शायद उन्हें दहेजरहित लड़की को अपनी बहू बनाने में आपत्ति हो सकती है, पर आलोक ने इस बात को भी टाल दिया था. उस का कहना था कि उस के मातापिता उसे इतना अधिक प्यार करते हैं कि उस की इच्छा के सामने वे दहेज जैसी बात पर सोचेंगे भी नहीं.

आलोक के पिता प्रबोध राय एक साधारण औफिस असिस्टैंट की हैसियत से ऊपर न उठ सके थे. आलोक उन की आशाओं से बहुत अधिक उन्नति कर गया था. घर के रहनसहन का स्तर भी ऊंचा उठ गया था. आलोक सोचता था कि उस के मातापिता उस की अर्जित आय से ही इतने अधिक संतुष्ट हैं कि नीलम के वेतन की आवश्यकता अनुभव नहीं करेंगे. यही उस की भूल थी, जिसे वह अब समझ पाया था. उस के मातापिता ने पुत्र का विवाह बिना दहेज लिए केवल इसलिए किया था कि बहू अपने वेतन से वह कमी पूरी कर देगी. जब उन की वह आशा पूरी नहीं हुई तो वे क्षुब्ध हो उठे. उन्हें इस भावना ने जकड़ लिया कि उन्हें धोखा दिया गया. आलोक कमरे में पहुंचा तो उस की मां सुमित्रा अपने पलंग पर लेटी हुई थीं. प्रबोध राय पास ही पड़ी कुरसी पर बैठे समाचारपत्र देख रहे थे. आलोक बोला, ‘‘मां, नीलम कह रही थी कि आप थकान महसूस कर रही हैं. चाय पी लीजिए, थकान कुछ कम हो जाएगी.’’

‘‘रहने दे बेटा, चाय के लिए मेरी तनिक भी इच्छा नहीं है.’’ ‘‘तो बताइए फिर क्या लेंगी? नीलम पिताजी के लिए मौसमी का रस निकाल रही है, आप के लिए भी निकाल देगी.’’

‘‘रहने दे, मैं रस नहीं पिऊंगी. मैं तेरी मां हूं. क्या मुझे अच्छा लगता है कि मैं अपने खर्चे बढ़ाबढ़ा कर तेरे ऊपर बोझ बन जाऊं? क्या करूं, उम्र से मजबूर हूं. अब काम नहीं होता.’’ ‘‘तो फिर क्यों नहीं नीलम को रोटी बनाने देतीं? वह तो कहती है कि सुबह आप दोनों के लिए पूरा भोजन बना कर स्कूल जा सकती है.’’

‘‘कैसी बातें कर रहा है, आलोक? 7 बजे का पका खाना 12 बजे तक बासी नहीं हो जाएगा? तू ने कभी अपने पिताजी को ठंडा फुलका खाते देखा है?’’ फिर एक ठंडी सांस ले मां बोलीं, ‘‘मांबाप पुत्र का विवाह कितने अरमानों से करते हैं. घर में बहू आएगी, रौनक होगी. शरीर को आराम मिलेगा,’’ फिर एक और लंबी सांस छोड़ कर बोलीं, ‘‘खैर, इस में किसी का क्या दोष? अपनाअपना समय है. श्यामसुंदर लाल 25 लाख रुपए नकद और एक कार देने का वादा कर रहे थे.’’

‘‘कैसी बातें करती हो, मां? जो लड़की इतनी रकम ले कर आती वह क्या आप को रस निकाल कर देती? कार में उसे फिल्में दिखाने और शौपिंग कराने में ही मेरा आधे से ज्यादा वेतन स्वाहा हो जाता. ऊपर से उस के उलाहने सुनने को मिलते कि उस के मायके में तो इतने नौकरचाकर काम करते थे. और मां, यदि मेरा विवाह अभी हुआ ही न होता तो क्या होता? यदि नीलम कुछ लाई नहीं, तो वह अपने ऊपर खर्च भी तो कुछ नहीं कराती. तुम से इतनी बार मैं ने कहा है कि नौकर रख लो, पर तुम्हें तो नौकर के हाथ का खाना ही पसंद नहीं. अब तुम ही बताओ कि यह समस्या कैसे हल हो?’’ सुमित्रा के पास जो समाधान था, वह उस के बिना बताए भी आलोक जानता था, सो, वह चुप रही. आलोक ही फिर बोला, ‘‘थोड़े दिन और धीरज रखो, मां, पूनम ने आखिरी वर्ष की परीक्षा दे दी है. अब उस का खर्च तो समाप्त हो ही जाएगा. अनुनय भी 1-2 वर्ष में योग्य हो जाएगा और उस के साथ नीलम का उस का उत्तरदायित्व भी खत्म हो जाएगा. वह नौकरी छोड़ देगी.’’

‘‘अरे, एक बार नौकरी कर के कौन छोड़ता है? फिर वह इसलिए धन जमा करती रहेगी कि बहन का विवाह करना है.’’

आलोक हंस कर बोला, ‘‘इतने दूर की चिंता आप क्यों करती हैं मां? पूनम डाक्टर बन कर स्वयं अपने विवाह के लिए बहुत धन जुटा लेगी.’’ ‘‘मुझे तो तेरी ही चिंता है. तेरे अकेले के ऊपर इतना बोझ है. मुझे तो छोड़ो, इन्हें तो फल इत्यादि मिलने ही चाहिए, नहीं तो शरीर कैसे चलेगा?’’

तभी नीलम 2 गिलासों में मौसमी का जूस ले कर कमरे में आई. आलोक हंस कर बोला, ‘‘देखो मां, तुम तो केवल पिताजी की आवश्यकता की बात कह रही थीं, नीलम तो तुम्हारे लिए भी जूस ले आई है. अब पी लो. नीलम ने इतने स्नेह से निकाला है. नहीं पिओगी तो उस का दिल दुखेगा.’’ इस प्रकार की घटनाएं अकसर होती रहतीं. मां का जितना असंतोष बढ़ता जाता है, आलोक का पत्नी के प्रति उतना ही मान और अनुराग. विवाह के पश्चात नीलम ने एक बार भी सुना कर नहीं कहा कि आलोक ने उसे जो आश्वासन दिए थे वे निराधार थे. उस ने कभी यह नहीं कहा कि आलोक के मातापिता की तरह उस के मातापिता ने भी उसे योग्य बनाने में उतना ही धन खर्च किया था. तब क्या उस का उन के प्रति इतना भी कर्तव्य नहीं है कि वह अपने बहनभाई को योग्य बनाने में सहायता करे. वह तो अपने सासससुर को संतुष्ट करने में किसी प्रकार की कसर नहीं छोड़ती. स्कूल से आते ही घरगृहस्थी के कार्यों में उलझ जाती है.

कभी उस ने पति से कोई स्त्रीसुलभ मांग नहीं की. अपने मायके से जो साडि़यां लाई थी, अब भी उन्हें ही पहनती, पर उस के माथे पर शिकन तक नहीं आती थी. नीलम ने सरलता से परिस्थितियों से समझौता कर लिया था, उसे देख आलोक उस से काफी प्रभावित था. यही बात वह अपने मातापिता को समझाने का प्रयत्न करता था, किंतु वे तो जैसे समझना ही नहीं चाहते थे. वे घर के खर्चों को ले कर घर में एक अशांत वातावरण बनाए रखते, केवल इसलिए कि वे बहू को यह बतलाना चाहते थे कि वह अपने बहनभाई के ऊपर जो धन खर्च करती है वह उन के अधिकार का अपहरण है. नीलम स्कूल के लिए तैयार हो रही थी. उसे सास की पुकार सुनाई दी तो बाहर निकल आई. पड़ोस के 2 लड़कों ने उन्हें बताया कि प्रबोध राय जब अपने नियम के अनुसार सुबह की सैर के बाद घर लौट रहे थे, तब एक स्कूटर वाला उन्हें धक्का दे कर भाग निकला और वे सड़क पर गिरे पड़े हैं. नीलम तुरंत घटनास्थल पर पहुंची. ससुर बेहोश पड़े थे. नीलम कुछ लोगों की सहायता से उन्हें उठा कर घर लाई.

उस ने जल्दी से पूनम को फोन किया, पूनम ने कहा कि वे चिंता न करें, वह जल्दी ही एंबुलेंस ले कर आ रही है. नीलम ने छुट्टी के लिए स्कूल फोन कर दिया और घर आ कर अस्पताल के लिए जरूरी सामान रखने लगी. तभी पूनम आ गई. जितनी तत्कालीन चिकित्सा करना संभव था, उस ने की और उन्हें अस्पताल ले गई.

पूनम अपने स्वभाव व व्यवहार के कारण पूरे अस्पताल में सर्वप्रिय थी. यह जान कर कि उस का कोई निकट संबंधी अस्पताल में भरती होने आया है, उस के मित्रों और संबंधित डाक्टरों ने सब प्रबंध कर दिए. घबराहट के कारण सुमित्रा को लग रहा था कि वह शक्तिरहित होती जा रही है. सारे अस्पताल में एक हलचल सी मची हुई थी. वह कभी सोच भी नहीं सकती थी कि कभी उस के रिटायर्ड पति को इस प्रकार का विशेष इलाज उपलब्ध हो सकेगा. बीचबीच में नीलम आ कर सास को धीरज बंधाने का प्रयत्न करती.

आलोक औफिस के कार्य से कहीं बाहर गया हुआ था. नीलम ने उसे भी इस घटना की सूचना दे दी. अनुनय समाचार पाते ही तुरंत आ गया था. दवाइयों के लिए भागदौड़ वही कर रहा था. मदद के लिए उस के एक मित्र ने उसे अपनी कार दे दी थी. 5-6 घंटे बाद प्रबोध राय कमरे में लाए गए. पूनम ने बारबार नीलम की सास को तसल्ली दी कि प्रबोध राय जल्दी ही ठीक हो जाएंगे. वातावरण में एक ठहराव सा आ गया था. सुमित्रा ने कमरे में चारों ओर देखा. अस्पताल में इतना अच्छा कमरा तो काफी महंगा पड़ेगा. जब उस ने अपनी शंका व्यक्त की तब अनुनय बोला, ‘‘मांजी, आप 2 बेटों की मां हो कर खर्च की चिंता क्यों करती हैं? मेरे होते यदि आप को किसी प्रकार का कष्ट हो तो मैं बेटा होने का अधिकार कैसे पाऊंगा?’’

नीलम हंस कर बोली, ‘‘मांजी, आज इस ने पिताजी को अपना रक्त दिया है न, इसीलिए यह बढ़बढ़ कर आप का बेटा होने का दावा कर रहा है.’’ यह सुन सुमित्रा की आंखें छलछला आईं. वे सोच रही थीं कि यदि नीलम ने बहन की पढ़ाई में सहायता न की होती तो क्या आज पूनम डाक्टर होती और क्या उस के पति को ये सुविधाएं मिल पातीं, श्यामसुंदर लाल का पुत्र क्या अपनी बहन को दहेज के बाद उस के ससुर को खून देने की बात सोचता?

प्रबोध राय जब घर आए, तब तक सुमित्रा की मनोस्थिति बिलकुल बदल चुकी थी और सारी कमजोरी भी गायब हो चुकी थी. रात को पति को जल्दी भोजन करा कर वे नीलम के लिए कार्डीगन बुन रही थीं. तभी उन्हें अनुनय के आने की आवाज सुनाई दी. प्रसन्नता से उन का मुख उज्ज्वल हो उठा. अनुनय ने एक डब्बा ला कर उन के पैरों के पास रख दिया और पूछने पर बोला, ‘‘मांजी, मैं ने एक पार्टटाइम जौब कर लिया है. पहला वेतन मिला तो आप से आशीर्वाद लेने चला आया.’’

यह सुन कर सुमित्रा चकित रह गईं. वे रुष्ट हो कर बोलीं, ‘‘क्या तेरा दिमाग खराब हुआ है? पढ़ना नहीं है, जो पार्टटाइम जौब करेगा?’’ ‘‘पढ़ाई में इस से कुछ अंतर नहीं पड़ता, मां. बेशक अब आवारागर्दी का समय नहीं मिलता.’’

‘‘मैं तेरी बात नहीं मानूंगी. जब तक तू नौकरी छोड़ने का वादा नहीं करेगा, मैं इस डब्बे को हाथ भी नहीं लगाऊंगी.’’ ‘‘और मांजी, आप तो जीजाजी से भी ज्यादा धमकियां दे रही हैं. चलिए, मैं ने आप की बात मान ली. अब शीघ्र डब्बा खोलिए,’’ अनुनय ने आतुरता से कहा.

डब्बा खोला तो सुमित्रा स्तब्ध रह गईं और डबडबाई आंखों से बोलीं, ‘‘पगले, मैं बुढि़या यह साड़ी पहनूंगी? अपनी जीजी को देता न?’’ ‘‘पहले मां, फिर बहन. अच्छा मांजी, अब जल्दी से आशीर्वाद दे दो,’’ और अनुनय ने सुमित्रा का हाथ अपने सिर पर रख लिया. सुमित्रा हंसे बिना न रह सकीं, ‘‘तू तो बड़ा शातिर है, आशीर्वाद लेने के लिए भी रिश्वत देता है. तुम सब भाईबहन सदा प्रसन्न रहो और दूसरों को प्रसन्न रखो, मैं तो कामना करती हूं.’’

VIDEO : गर्मियों के लिए बेस्ट है ये हेयरस्टाइल

ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.

महाराज : आमिर खान के बेटे व अभिनेता जुनैद खान हैं कमजोर कड़ी

(दो स्टार)

फिल्म ‘हिचकी’ फेम निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा इस बार सौरभ शाह लिखित उपन्यास ‘‘महाराज’’ पर इसी नाम से एक पीरियाडिक फिल्म ले कर आए हैं, जो कि अदालती झंझटों का सामना करने के बाद 21 जून से ओटीटी प्लेटफौर्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर स्ट्रीम हो रही है. सौरभ शाह ने 1862 के चर्चित ‘महाराजा लाइबल केस’ को आधार बना कर इस उपन्यास को लिखा.

इस उपन्यास में एक समाज सुधारक व पत्रकार करसनदास मूलजी के खिलाफ वैष्णव पुष्टिमार्ग संप्रदाय के धार्मिक नेता यदुनाथ द्वारा मानहानि का केस करने व अदालत में हारने की कहानी है. हकीकत में यह फिल्म धर्म के नाम पर नारी शोषण की गाथा है. निर्माता व निर्देशक ने फिल्म की शुरुआत में ही घोषित किया है कि यह सत्य घटनाक्रम पर आधारित है, मगर वह इस की सत्यता को प्रमाणित नहीं करते.

सौरभ शाह की किताब ‘महाराज’ पर किसी भी धर्मावलंबी ने विरोध नहीं जताया था, बल्कि इस पुस्तक को 2013 में पुरस्कृत किया गया था. मगर देश में जिस तरह की सरकार है, उसी के चलते कुछ हिंदू संगठनों ने इस का प्रदर्शन रूकवाने के लिए अदालत की शरण ली थी, पर अदालत ने फिल्म को प्रदर्शन की अनुमति दे दी. मेरी राय में इस फिल्म में विरोध जताने वाला कोई मसला नहीं है. यह फिल्म तो 1862 के समय की ‘‘चरण सेवा’’ की कुप्रथा के खिलाफ बात करती है. ‘आश्रम’ जैसी वेब सीरीज का विरोध न करने वाले अब ‘महाराज’ के विरोध में उतरे थे.

कहानी

1862 के सर्वाधिक चर्चित अदालती केस ‘महाराजा लाइबल’ पर सौरभ शाह लिखित किताब ‘महाराज’ पर आधारित इस फिल्म की कहानी के केंद्र में पत्रकार व समाज सुधारक करसनदास मूलजी (जुनैद खान) और वैष्णव संप्रदाय की सब से बड़ी हवेली के पुजारी (मंदिर) यदुनाथ हैं. यदुनाथ हिंदू धर्म के वैष्णव पुष्टिमार्ग संप्रदाय के धार्मिक नेता थे. पुष्टिमार्ग की स्थापना 16वीं शताब्दी में वल्लभ द्वारा की गई थी और यह कृष्ण को सर्वोच्च मान कर पूजा करता है. संप्रदाय का नेतृत्व वल्लभ के प्रत्यक्ष पुरुष वंशजों के पास रहा, जिन के पास महाराजा की उपाधियां थीं.

धार्मिक रूप से वल्लभ और उन के वंशजों को कृष्ण की कृपा के लिए मध्यस्थ व्यक्ति के रूप में आंशिक देवत्व प्रदान किया गया है जो भक्त को तुरंत कृष्ण की उपस्थिति प्रदान करने में सक्षम हैं. फिल्म की शुरुआत 1840 में गुजरात के एक गांव में मूलजी भाई (संदीप मेहता) के बेटे के रूप में करसनदास मूलजी के जन्म से होती है. जो कि बचपन से ही ‘महिलाएं घूंघट क्यों ओढ़ती हैं?’ या ‘क्या देवता उन की भाषा बोल सकते हैं?’ जैसे सवाल पूछना शुरू करता है. करसन की मां की मौत के बाद उस के पिता करसनदास को बौम्बे (वर्तमान मुंबई) में उस के मामा और विधवा मासी (स्नेहा देसाई) के पास छोड़ जाते हैं. जहां पढ़लिख कर करसनदास पत्रकार के रूप में दादाभाई नौरोजी (सुनील गुप्ता) जैसे प्रगतिशील पुरुषों के साथ काम करते हुए दादाभाई नौरोजी के अखबार में समाज सुधारक लेख लिखते हैं. मसलन वह अपने लेख में विधवा विवाह की वकालत करते हैं. धार्मिक व्यक्ति होते हुए भी अंधविश्वास में विश्वास नहीं करते हैं.

करसन की सगाई किशोरी (शालिनी पांडे) से हुई है और वह जल्द शादी करने वाले हैं. किशोरी यदुनाथजी (जयदीप अहलावत) की भक्त है. होली के त्योहार वाले दिन यदुनाथजी, किशोरी को ‘चरण स्पर्श’ समारोह के लिए चुनते हैं. ‘चरण स्पर्श’ प्रथा के तहत पुजारी यदुनाथ जी हमेशा अविवाहित महिला के साथ शारीरिक संपर्क बनाते हैं, ज्यादातर उन से जिन का विवाह होने वाला होता है. ‘चरण स्पर्श’ की प्रक्रिया को आम लोग पैसा दे कर ‘हवेली’ की खिड़कियों से देख सकते हैं.

करसनदास, किशोरी को महाराज के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर हर बाधा को पार कर यदुनाथ व किशोरी तक पहुंच जाता है. मगर उस वक्त किशोरी, करसन के साथ चलने से इंकार कर देती है और यदुनाथजी कहते हैं कि वह किसी भी लड़की के साथ जबरन कुछ नहीं करते. यदुनाथ, गीता के एक श्लोक को संस्कृत में पढ़ कर हिंदी में उस की गलत ढंग से व्याख्या करते हुए कहते हैं कि मोक्ष पाने के लिए भगवान को तन मन धन सब कुछ समर्पित करना होता है. तन का समर्पण ही ‘चरण सेवा’ है.
करसन, किशोरी संग विवाह करने से इंकार करने के साथ ही ‘चरण सेवा’ प्रथा पर भी सवाल उठाता है. करसन की राय में यह तो नारी का शोषण है. फिर वह आवाज उठाने का निर्णय लेता है. यदुनाथ महाराज की ‘चरण सेवा’ के खिलाफ करसन लेख लिखता है, जिसे दादाभाई नौरोजी अपने अखबार में छापने से मना कर देते हैं. उन की राय में वह ‘बड़ी हवेली’ के पुजारी यदुनाथ के खिलाफ कुछ भी नहीं छापेंगे. तब करसन अपना अखबार ‘सत्य प्रकाश’ निकाल कर उस में पुजारी यदुनाथ व ‘चरण सेवा’ प्रथा के विरोध में लेख छापता है.

करसन अपनी तरफ से समाज को शिक्षित करने की कोशिश करता है, लेकिन उस के समुदाय के लोग महाराज को अपने परिवार की महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाने में कोई बुराई देखने की बजाय उस दिन घर पर खुशी में मिठाई बनाते हैं. यदुनाथ दबाव बनाते हैं, जिस के चलते करसन के पिता भी उसे त्याग देते हैं. सभी दबाव असफल होने के बाद यदुनाथ, अदालत में करसन के खिलाफ 50 हजार रुपए का मानहानि का मुकदमा करते हैं. बौम्बे सुप्रीम कोर्ट 5 अप्रैल 1862 को करसनदास मूलजी के पक्ष में निर्णय देता है.

समीक्षा:

बतौर निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने 1862 के मुंबई को सही ढंग से चित्रित करने में सफलता पाई है. मगर पूरी फिल्म करसनदास मूलजी और पुजारी यदुनाथ महाराज के ही इर्द गिर्द सीमित है. फिल्म उस वक्त के माहौल, राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों, वैष्णव संप्रदाय, यदुनाथ महाराज की हरकतों व करसनदास द्वारा उठाए गए कदम का समाज पर क्या असर हो रहा था, किस तरह बड़ी हवेली की छवि धूमिल हो रही थी, आदि पर यह फिल्म कुछ नहीं कहती. शायद लेखक व निर्देशक भूल गए कि 1850 से 1870 का वह कालखंड है, जब नारी की मुक्ति के बारे में बातचीत शुरू हो रही थी (मुख्य रूप से, विधवा पुनर्विवाह के आसपास की बातचीत). लेकिन यह सब पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था के दायरे में ही हो रही थी. पर फिल्म इस पर कुछ नहीं कहती.

फिल्म कहीं न कहीं करसन की यदुनाथ महाराज के साथ निजी दुश्मनी को भी दर्शाती है. अगर करसन की मंगेतर किशोरी के साथ घटना न घटती, तब भी करसन, यदुनाथ व ‘चरण सेवा’ के खिलाफ जनजागृति फैलाने का काम करते? इस सवाल का जवाब फिल्म में नहीं है. जब कभी किसी कुप्रथा पर कुठाराघात किया जाता है, तो उस का समाज पर काफी गहरा असर होता है, जिस का चित्रण फिल्म में नहीं है. इतना ही नहीं समाज सुधारक करसनदास का अपनी मंगेतर किशोरी से शादी तोड़ने की बात करना, उन के समाज सुधारक वाली छवि पर प्रश्नचिन्ह लगाता है. पर फिल्म इस तरह से कुछ नहीं कहती.

1862 तो वह काल था, जब ब्रिटिश शासन था. पर फिल्मकार इस बात को भी रेखांकित करने में विफल रहे हैं. खैर, फिल्म देख कर अहसास होता है कि निर्देशक को कथानक की संवेदनशीलता की समझ है, जिस का उन्होंने इस में पूरा ख्याल रखा है. परिणामतः किसी धर्म पर हमला न करते हुए भी फिल्म कई सवाल उठाती है. तो वहीं वैद्य भाई दाजी लाड के किरदार को अचानक जिस तरह से बिना किसी स्पष्टीकरण के साथ पर्दे पर लाया जाता है, वह लेखक व निर्देशक की कमजोरी की निशानी है.
यह निर्देशक की कुशलता ही है कि जब करसनदास अपनी मंगेतर किशोरी को यदुनाथ महाराज के साथ देखता है, तो वह परेशान होता है, मगर यह दृश्य उत्तेजक नहीं है. इंटरवल से पहले फिल्म की गति काफी धीमी है. मूल कहानी यानी कि मानहानि केस का ट्रैक देर से शुरू होता है. अदालती कार्रवाई के दौरान कोई तनाव नहीं पैदा होता. अदालती दृश्य कुछ शुष्क हैं. अदालत के बाहर जिस तरह से यदुनाथ महाराज के समर्थकों का जमावड़ा दिखाया गया है, वह गलत लगता है. इतना ही नहीं फिल्म देख कर अहसास होता है जैसे कि ब्रिटिश हुकूमत के वक्त के न्यायाधीश भी यदुनाथ महाराज से प्रभावित थे. क्या वास्तव में ऐसा था, हमें पता नहीं.

फिल्म के गीतसंगीत से 19वीं सदी का अहसास होने की बजाय लगता है कि हम वर्तमान समय के बौलीवुड में जी रहे हैं.

अभिनय:

करसनदास मूलजी जैसे सशक्त किरदार में जुनैद खान का चयन गलत ही कहा जाएगा. इस किरदार में जुनैद खान फिट नहीं बैठते. कई दृश्यों में उन का सपाट चेहरा निराश करता है. भावनात्मक दृश्यों में वह काफी निराश करते हैं. जुनैद खान को अपनी संवाद अदायगी पर काफी मेहनत करने की जरुरत है.
करसनदास के किरदार में जुनैद खान को देख कर अभिनय में उन के उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद कम ही नजर आती है. क्रोध आने पर भी क्रोध को दबा कर मुसकराने वाले अति विनम्र यदुनाथ महाराज के किरदार में जयदीप अहलावत जरुर प्रभावित करते हैं. धर्मभीरू गुजराती लहजे वाली किशोरी के छोटे किरदार में शालिनी पांडे ठीकठाक हैं. दर्शक उन्हें इस से पहले फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ में भी देख चुके हैं. जय उपाध्याय, संजय गोराडिया, स्नेहा देसाई, संदीप मेहता, कमलेश ओझा, प्रियल गोर, सुनील गुप्ता, उत्कर्ष मजूमदार, जेमी आल्टर, मार्क बेनिंगटन, एडवर्ड सोनेंब्लिक और वैभव तत्ववादी का अभिनय ठीकठाक है. विराज के किरदार में शरवरी वाघ खास प्रभाव नहीं डाल पाईं.

क्या पुरुषों को भी मेनोपोज होता है?

डा. विकास जैन

आजकल परिवारों में ऐसे पुरुष आम तौर से देखने को मिलते हैं, जिन की उम्र 45 वर्ष के आसपास है और जो काम एवं घर, दोनों जगह चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं और सुस्त जीवन व्यतीत करते हुए जीवन की नकारात्मकताओं के बारे में बात करते रहते हैं. ये वही लोग हैं, जो कुछ साल पहले तक बहुत खुशमिजाज हुआ करते थे और हंसीमजाक करते रहते थे. जो लोग रात में जोश से भरे होते थे, आज उन का जोश ठंडा पड़ चुका है. उन के साथ ऐसा क्या हो गया है? इस का कारण जानने की फिक्र कोई नहीं करता बल्कि सभी लोग उन से दूरी बना लेते हैं और अंत में स्थिति यहां तक बिगड़ जाती है कि उन्हें मनोवैज्ञानिक के पास ले जाना पड़ता है.

ये लोग काम में अच्छा प्रदर्शन करने के दबाव (काम संबंधी तनाव) में होते हैं, उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा और उनके कैरियर की चिंता होती है, जिस के लिए उन्हें ज्यादा पैसे कमाने और ज्यादा बचत करने की जरूरत होती है. उन्हें अपने वृद्ध होते मातापिता और उन की बीमारियों आदि की भी चिंता होती है. यह सभी घरों की आम कहानी है और ये पुरुष इस उम्र में जिस पीड़ा से ग्रसित हैं, उसे ‘पुरुषों का मेनोपोज’ या ‘एंड्रोपोज’ कहा जाता है.

30 साल की उम्र में पुरुषों में हार्मोन (टेस्टोस्टेरोन) धीरेधीरे कम होना शुरू हो जाते हैं. आम तौर से टेस्टोस्टेरोन हर साल 1 प्रतिशत कम होते हैं. जब तक वो 45 वर्ष की आयु तक पहुंचते हैं, तो टेस्टोस्टेरोन में कमी के लक्षण कम ऊर्जा, मूड स्विंग, और कामेच्छा में कमी के रूप में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देने लगते हैं. इसलिए इस समय पुरुषों को मनोवैज्ञानिक की नहीं, बल्कि उन्हें समझने वाले परिवार और उनके एंड्रोपोज को नियंत्रित करने के लिए विशेषज्ञ सुझाव की जरूरत होती है.

मेनोपोज उम्र बढ़ने पर महिलाओं के जीवन में प्राकृतिक रूप से होने वाली एक घटना है, लेकिन मेनोपोज से केवल महिलाएं ही नहीं गुजरती हैं, बल्कि पुरुष भी इस चरण से गुजरते हैं, जिसे पुरुषों का मेनोपोज या एंड्रोपोज कहा जाता है. ‘पुरुषों के मेनोपोज’ का सिद्धांत, जिसे एंड्रोपोज या लेट-औनसेट हाईपोगोनैडिज्म कहा जाता है, वास्तविक है, हालांकि यह महिलाओं के मेनोपोज से बिल्कुल अलग है. महिलाओं के मेनोपोज में प्रजनन हार्मोन में स्पष्ट और बहुत तेजी से कमी आती है, जो आम तौर से 50 वर्ष के आसपास होता है. वहीं पुरुषों के मेनोपोज में टेस्टोस्टेरोन का स्तर धीरेधीरे कम होता है, जिस की शुरुआत 30 से 40 वर्ष की आयु के बीच होती है.

क्या पुरुषों को मेनोपोज से गुजरना पड़ता है?

मेनोपोज हार्मोन कम हो जाने के कारण महिलाओं का प्रजनन काल की समाप्ति है. माहवारी बंद होने के साथ यह प्राकृतिक रूप से होता है. लेकिन पुरुषों में हार्मोन का स्तर धीरेधीरे कम होता है. हालांकि कुछ पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन अचानक कम होते हैं और एंड्रोपोज के लक्षण प्रकट होते हैं.

एंड्रोपोज को ‘पुरुषों का मेनोपोज’ भी कहते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है. मेनोपोज का मतलब माहवारी का बंद होना है, लेकिन पुरुषों को माहवारी नहीं हुआ करती है, इसलिए उन के लिए एंड्रोपोज शब्द का उपयोग करना चाहिए.

यह मुख्यतः मध्य आयु में या बुजुर्गों में तब होता है, जब टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन और प्लाज़्मा का घनत्व कम हो जाता है. पुरुषों के यौन कार्य में टेस्टोस्टेरोन का घनत्व काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो लगभग 10.4 mmol/L (10 मिलीमोल/लीटर) होता है, हालांकि यह अलगअलग पुरुषों में अलगअलग होता है. पुरुषों के टेस्टोस्टेरोन स्तर में 40 साल की उम्र के बाद हर साल औसतन 1 प्रतिशत की कमी आ जाती है. ज्यादातर वृद्ध पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर सामान्य होता है, केवल 10-25 प्रतिशत के स्तर को कम माना जाता है.

लेट औनसेट हाईपोगोनैडिज्म

कुछ मामलों में ‘पुरुषों का मेनोपोज’ जीवनशैली या मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण नहीं बल्कि हाईपोगोनैडिज्म के कारण होता है. इस स्थिति में टेस्टिस बहुत कम या फिर बिल्कुल भी हार्मोन नहीं बनाते.

हाईपोगोनैडिज्म कभीकभी जन्म से होता है, जिस के कारण यौवन विलंब से प्राप्त होने और टेस्टिस छोटे होने जैसे लक्षण प्रकट होते हैं. यह बाद में भी हो सकता है, जो खासकर उन लोगों को होता है, जो मोटापे या टाईप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित हैं. इसे लेट-औनसेट हाईपोगोनैडिज्म भी कहते हैं और इस की वजह से ‘पुरुषों के मेनोपोज’ के लक्षण उत्पन्न होते हैं. लेकिन यह एक बहुत विशेष मैडिकल स्थिति है. लेट औनसेट हाईपोगोनैडिज्म का निदान उन लक्षणों और परीक्षणों के आधार पर किया जा सकता है, जिन का उपयोग टेस्टोस्टेरोन का स्तर मापने के लिए करते हैं.

लक्षणः

इस के सब से आम लक्षण हैं

● यौनेच्छा और यौन कार्य में कमी
● थकान और ऊर्जा में कमी
● मूड में परिवर्तन, चिड़चिड़ापन और अवसाद
● मांसपेशियों और शक्ति में कमी
● शरीर में ज्यादा फैट
● हड्डियों का घनत्व कम होना, जिस के कारण ओस्टियोपोरोसिस हो सकता है
● संज्ञानात्मक परिवर्तन, जैसे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई या स्मृति की समस्याएं

व्यक्तिगत या जीवनशैली की समस्याएं

उपरोक्त लक्षणों के लिए जीवनशैली एवं मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी जिम्मेदार होती हैं. उदाहरण के लिए यौनेच्छा में कमी, इरेक्टाईल डिस्फंक्शन, और मूड में परिवर्तन तनाव, अवसाद, और चिंता के कारण हो सकते हैं.

इरेक्टाईल डिस्फंक्शन के अन्य कारणों में धूम्रपान या हृदय की समस्याएं शामिल हैं, जो मनोवैज्ञानिक समस्या के साथ हो सकती हैं. यह ‘मिड-लाईफ क्राईसिस’ के कारण भी हो सकता है, जब पुरुषों को लगता है कि वो अपने जीवन के आधे पड़ाव पर पहुंच चुके हैं. उन्होंने अपनी नौकरी या व्यक्तिगत जीवन में क्या हासिल किया या क्या खो दिया, इस की चिंता उन्हें अवसाद की ओर ले जाती है.

कारण

इस का प्राथमिक कारण टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन में धीरेधीरे कमी होना है. महिलाओं में हार्मोन का परिवर्तन अचानक होने की बजाय पुरुषों में यह परिवर्तन दशकों में धीरेधीरे होता है.

इस स्थिति को बढ़ाने वाले अन्य कारणों में मोटापा, पुरानी बीमारी (जैसे डायबिटीज़), विशेष दवाएं, और जीवनशैली, जैसे धूम्रपान और अत्यधिक मदिरा सेवन शामिल हैं.
कई अन्य कारण, जिनकी वजह से एंड्रोपोज के लक्षण समय से पहले प्रकट हो सकते हैं, उन में शामिल हैंः

● डायबिटीज
● धूम्रपान
● मदिरा सेवन
● तनाव
● चिंता या अवसाद

यदि इन में से कोई भी लक्षण महसूस हो, तो डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए. इन लक्षणों का कारण कुछ गंभीर समस्याएं हो सकती हैं.

निदान व इलाज

निदान में लक्षणों का मूल्यांकन और टेस्टोस्टेरोन का स्तर मापने के लिए खून की जांच की जाती है. यदि युवा पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन का स्तर सामान्य से कम है, तो यह एंड्रोपोज का संकेत हो सकता है. जांच का सब से अच्छा समय सुबह होता है क्योंकि टेस्टोस्टेरोन का स्तर पूरे दिन बदलता रहता है. लक्षणों के अन्य कारणों में थायरायड की समस्याएं या अवसाद हैं.

पुरुषों में कम टेस्टोस्टेरोन के इलाज की ओर पहला कदम जीवनशैली में परिवर्तन है. इस में स्वस्थ वजन बनाए रखना, बेहतर आहार, नियमित व्यायाम, तनाव प्रबंधन, और पर्याप्त नींद लेना शामिल है. अगर किसी को मानसिक स्वास्थ्य की कोई समस्या है, तो उसे एंटीडिप्रेसेंट या चिंता को नियंत्रित करने की दवाओं से लाभ मिल सकता है.
लक्षण बने रहने पर डाक्टर से संपर्क करना चाहिए, जो टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट थेरैपी का परामर्श दे सकते हैं. टेस्टोस्टेरोन रिप्लेसमेंट थेरैपी (टीआरटी) उन पुरुषों के लिए लाभदायक है, जिन में टेस्टोस्टेरोन का स्तर बहुत कम और लक्षण गंभीर होते हैं. हालांकि टेस्टोस्टेरोन थेरैपी के अपने जोखिम और साईड इफैक्ट हैं, जिनमें कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं और प्रोस्टेट की समस्याएं शामिल हैं, इसलिए इन के लिए डाक्टर से नियमित निगरानी कराते रहना चाहिए.

पुरुषों में मेनोपोज वास्तव में होता है, हालांकि यह महिलाओं के मुकाबले बिल्कुल अलग होता है. एंड्रोपोज के लक्षण पुरानी बीमारी के साथ भी हो सकते हैं. इसलिए किसी भी लक्षण को उम्र बढ़ने का सामान्य हिस्सा न समझें. यदि कोई भी लक्षण महसूस हो, तो फौरन अपने डाक्टर से संपर्क करें. वो इसके लिए सब से अच्छे इलाज का परामर्श दे सकते हैं.

लेखक मणिपाल हौस्पिटल, द्वारका, दिल्ली में यूरोलौजी विभाग में एचओडी एवं कंसल्टैंट हैं

सतर्क हो जाइए, कहीं आप के साथ ब्रेडक्रंबिंग तो नहीं हो रही है?

ब्रेडक्रंबिंग शब्द अंग्रेजी की फेयरी टेल हैंसल एंड ग्रेटल से आया है जिस में वे ब्रेड के टुकड़े रास्ते में डालते चले थे ताकि लौटते समय वे रास्ता न भूलें. ब्रेडक्रंबिंग व्यवहार में दूसरा जना थोड़ाथोड़ा समय तो देता है पर लंबा रिलेशनशिप नहीं बनाता.

आज के समय में रिश्तों में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है. रिश्तों के न केवल मायने बदल गए हैं, बल्कि रिश्तों की नईनई टर्म्स भी सामने आ रही हैं. ब्रेडक्रंबिंग रिलेशनशिप में एक ऐसा ही नया टर्म है, जहां एक व्यक्ति सामने वाले के साथ सिर्फ दिमाग से जुड़ा होता है जबकि दूसरा इंसान दिल से रिश्ता निभाता है. ब्रेडक्रंबिंग पारिवारिक रिश्तों, दोस्ती और कार्यस्थल कहीं भी हो सकती है.

दरअसल, ब्रेडक्रंबिंग किसी के साथ कम्युनिकेट करने के लिए छोटीछोटी मीठी बातों के साथ बांधने के लिए एक शब्द है. ब्रेडक्रंबिंग एक ऐसा व्यवहारिक पैटर्न है जो किसी की इमोशनल हैल्थ को भी नेगेटिव रूप से प्रभावित कर सकता है.

क्या होती है ब्रेडक्रंबिंग?

हालांकि ब्रेडक्रंबिंग आम तौर पर कैजुअल डेटिंग या कई रिश्तों के शुरुआती दिनों में अधिक होती है, लेकिन यह एक गंभीर कमिटमैंट और लौन्ग टर्म रिलेशनशिप, यहां तक कि शादीशुदा रिश्ते में भी हो सकती है. ब्रेडक्रंबिंग में शामिल पार्टनर की इंटेंशन आप के साथ पूरी तरह से इन्वौल्व होने की नहीं होती है, लेकिन इस के बावजूद वह इंसान आप को बीचबीच में थोड़ीथोड़ी अटेंशन देता रहता है, जिस से न तो सामने वाला पूरी तरह से उस के साथ रिलेशनशिप में रह पाता है और न ही उसे छोड़ पाता है.

ब्रेडक्रंबिंग डेटिंग में दो कपल्स साथ होते हुए भी साथ नहीं होते हैं, और जब किसी का इरादा आप के साथ रोमांटिक रूप से शामिल होने का नहीं होता है, लेकिन फिर भी वह चाहते हैं कि आप उन्हें थोड़ीथोड़ी अटेंशन देते रहें या आप उन के अलावा किसी के साथ न रहें, और आप उन पर ही अटके रहें, ऐसी परिस्थिति को ब्रेडक्रंबिंग कहा जाता है.

ऐसे लोग अपने पार्टनर को झूठी उम्मीद देते हैं, उन्हें रोमांटिक रूप से बहकाते हैं और उन्हें अपनी बातों में फंसा कर रखते हैं. ऐसे रिश्ते का आमतौर पर कोई भविष्य नहीं होता. अगर आप किसी सुखद रिश्ते और भविष्य की आस में ऐसे किसी रिश्ते में फंस गए हैं, तो यह आप की मैंटल हैल्थ के लिए भी खतरनाक हो सकता है.

ब्रेडक्रंबिंग करने वाले अपने रिलेशनशिप को ले कर हमेशा कंफ्यूज रहते हैं. वे यह तय नहीं कर पाते कि वे एक कैजुअल रिलेशनशिप में हैं या सीरियस रिलेशनशिप में. ब्रेडक्रंबिंग करने वाला आप के कौल या मैसेज का रिस्पौन्स अपनी सहूलियत के हिसाब से देता है. खुद कंफ्यूजन में रहने की वजह से ऐसे लोग सामने वाले को भी कंफ्यूज करते हैं, जिस की वजह से दूसरे पार्टनर को मानसिक परेशानी हो सकती है. जो लोग ब्रेडक्रंबिंग करते हैं, वह उस समय अपने साथी पर ध्यान देते हैं जब आप की रुचि कम होने लगती है. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें अचानक लगता है कि उन का साथी उन से दूर हो रहा है. इस दौरान वह आप का ध्यान वापस पाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन जब सब कुछ नौर्मल हो जाता है, तो उन का रवैया बिल्कुल पहले जैसा हो जाता है.

ब्रेडक्रंबिंग करने वाले सावधान हो जाएं

आज के समय में अगर किसी की पर्सनैलिटी या व्यवहार ब्रेडक्रंबिंग वाला है और वह ऐसा सोच रहा है कि वह सामने वाले के साथ ब्रेडक्रंबिंग करने में सफल हो जाएगा, वह अपने मनसूबों में कामयाब हो जाएगा, तो वह गलत है क्योंकि आज के ज़माने में हर इंसान की पर्सनैलिटी एक दूसरे से अलग है, सब की अपनी सोच है, अपनी समझ है. किसी की पर्सनैलिटी किसी के साथ मर्ज नहीं हो सकती या कहें किसी को लंबे समय तक बहकावे में नहीं रखा जा सकता.

पहले के जमाने की बात और थी जब लड़कियों की परवरिश इस तरह होती थी कि वह अपनी राय, अपना अस्तित्व न रखने वाली मोम की गुड़िया होती थी. हर बात में सर झुका कर हां में हां मिलाना उन की पर्सनैलिटी होती थी, लेकिन आज समय बदल गया है. आज की लड़की पहले की लड़की की तरह नहीं है, वह न तो एडजस्ट करेगी न खुद पर किसी को हावी होने देगी.

आज की लड़की अपनी एजुकेशन, कैरियर, जौब, विवाह सब के निर्णय खुद लेती है. वह किसी की ब्रेडक्रंबिंग या किसी भी तरह की चालाकी का शिकार नहीं होगी. वह अपने अच्छेबुरे की समझ रखती है. वह आप के बिहेवियर के साथ खुद को मर्ज नहीं करेगी. वह अपनी टर्म्स पर अपने रिश्ते चुनने की ताकत रखती है. आप उस से यह उम्मीद नहीं रख सकते कि वह आप के अनुसार चले या आप के नियम कायदों के अनुसार चले.

आज के समय में किसी को भी किसी के नियमकायदों को मानने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. वह जमाने लद गए जब महिलाएं सिर झुका कर हर बात मानती थीं. आज की महिला अपनी टर्म्स और कंडीशंस पर अपनी जिंदगी जीना चाहती है.

आज की महिला हमारे धर्म ग्रंथों में दिखाए गए स्त्री किरदारों की तरह त्याग की मूर्ति बनने में विश्वास नहीं रखती. साथ ही आज का पुरुष भी एक मौडर्न अप-टू-डेट पार्टनर की तलाश में है. इसलिए अगर आप का स्वभाव ब्रेडक्रंबिंग करने का है, तो आज ही अपने इस तौर-तरीके को बदल डालिए.

गुड गर्ल : तान्या के साथ क्या हुआ था उस रात?

लेखक-चिरंजीव नाथ सिन्हा

कई पीढ़ियों के बाद माहेश्वरी खानदान में रवि और कंचन की सब से छोटी संतान के रूप में बेटी का जन्म हुआ था. वे दोनों फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि रवि और कंचन की बहुत इच्छा थी कि वे भी कन्यादान करें क्योंकि पिछले कई पीढ़ियों से उन का परिवार इस सुख से वंचित था.

आज 2 बेटों के जन्म के लगभग 7-8 सालों बाद फिर से उन के आंगन में किलकारियां गूंजी थीं और वह भी बिटिया की.

बिटिया का नाम तान्या रखा गया. तान्या यानी जो परिवार को जोड़ कर रखे. अव्वल तो कई पीढ़ियों के बाद घर में बेटी का आगमन हुआ था, दूसरे तान्या की बोली एवं व्यवहार में इतना मिठास एवं अपनापन घुला हुआ था कि वह घर के सभी सदस्यों को प्राणों से भी अधिक प्रिय थी.

सभी उसे हाथोहाथ उठाए रखते. यदि घर में कभी उस के दोनों बड़े भाई झूठमूठ ही सही जरा सी भी उसे आंख भी दिखा दें या सताएं तो फिर पूछो मत, उस के दादादादी और खासकर उस के प्यारे पापा रण क्षेत्र में तान्या के साथ तुरंत खड़े हो जाते.

दोनों भाई उस की चोटी खींच कर उसे प्यार से चिढ़ाते कि जब से तू आई है, हमें तो कोई पूछने वाला ही नहीं है.

जिस प्रकार एक नवजात पक्षी अपने घोंसले में निडरता से चहचहाते रहता है, उसे यह तनिक भी भय नहीं होता कि उस के कलरव को सुन कर कोई दुष्ट शिकारी पक्षी उन्हें अपना ग्रास बना लेगा. वह अपने मातापिता के सुरक्षित संसार में एक डाली से दूसरी डाली पर निश्चिंत हो कर उड़ता और फुदकता रहता है. तान्या भी इसी तरह अपने नन्हे पंख फैलाए पूरे घर में ही नहीं अड़ोसपड़ोस में भी तितली की तरह अपनी स्नेहिल मुसकान बिखेरती उड़ती रहती थी. सब को सम्मान देना और हरेक जरूरतमंद की मदद करना उस का स्वभाव था.

समय के पंखों पर सवार तान्या धीरेधीरे किशोरावस्था के शिखर पर पहुंच गई, लेकिन उस का स्वभाव अभी भी वैसा ही था बिलकुल  निश्छल, सहज और सरल. किसी अनजान से भी वह इतने प्यार से मिलती कि कुछ ही क्षणों में वह उन के दिलों में उतर जाती. भोलीभाली तान्या को किसी भी व्यक्ति में कोई बुराई नहीं दिखाई देती थी.

पूरे मोहल्ले में गुड गर्ल के नाम से मशहूर सब लोग उस की तारीफ करते नहीं थकते थे और अपनी बेटियों को भी उसी की तरह गुड गर्ल बनाना चाहते थे.

हालांकि तान्या की मां कंचनजी काफी प्रगतिशील महिला थीं, लेकिन थीं तो वे भी अन्य मांओं की तरह एक आम मां ही, जिन का हृदय अपने बच्चों के लिए सदा धड़कता रहता था. उन्हें पता था कि लडकियों के लिए घर की चारदीवारी के बाहर की दुनिया घर के सुरक्षित वातावरण की दुनिया से बिलकुल अलग होती है.

बड़ी हो रही तान्या के लिए वह अकसर चिंतित हो उठतीं कि उसे भी इस निर्मम समाज, जिस में स्त्री को दोयम दरजे की नागरिकता प्राप्त है, बेईमानी और भेदभाव के मूल्यों का सामना करना पड़ेगा.

एक दिन मौका निकाल कर बड़ी होती तान्या को बङे प्यार से समझाते हुए वे बोलीं,”बेटा, यह समाज लड़की को सिर्फ गुड गर्ल के रूप में जरूर देखना चाहता है लेकिन अकसर मौका मिलने पर उन्हें गुड गर्ल में सिर्फ केवल एक लङकी ही दिखाई देती है जो अनुचित को अनुचित जानते हुए भी उस का विरोध न करे और खुश रहने का मुखौटा ओढ़े रहे. यह समाज हम स्त्रियों से ऐसी ही अपेक्षा रखता है.”

तान्या बोलती,”ओह… इतने सारे अनरियलिस्टिक फीचर्स?”

तब कंचनजी फिर समझातीं, “हां, पर एक बात और, आज का समय पहले की तरह घर में बंद रहने का भी नहीं है. तुम्हें भी घर के बाहर अनेक जगह जाना पड़ेगा, लेकिन अपने आंखकान सदैव खुले रखना.”

तान्या आश्चर्य से बोली,”मगर क्यों?”

“बेटा, यह समाज लड़कियों को देवी की तरह पूजता तो है पर मौका पाने पर हाड़मांस की इन जीतीजागती देवियों की भावनाओं और इच्छाओं अथवा अनिच्छाओं को कुचलने से तनिक भी गुरेज नहीं करता.”

समाज के इस निर्मम चेहरे से अनजान तान्या ने कंचन जी से पूछा,”मां, लेकिन ऐसा क्यों? मैं भी तो भैया जैसी ही हूं. मैं भी एक इंसान हूं फिर मैं अलग कैसे हुई?”

“बेटा, पुरुष के विपरीत स्त्री को एक ही जीवनचक्र में कई जीवन जीना पड़ता है. पहले मांबाप के नीड़रूपी घर में पूर्णतया लाङप्यार और सुरक्षित जीवन और दूसरा घर के बाहर भेदती हुई हजारों नजरों वाले समाज के पावरफुल स्कैनर से गुजरने की चुभती हुई पीड़ा से रोज ही दोचार होते हुए सीता की तरह अग्नि परीक्षा देने को विवश.

“बेटा, एक बात और, विवाह के बाद अकसर यह स्कैनर एक नया स्वरूप धारण कर लेता है, जिस की फ्रीक्वैंसी कुछ अलग ही होती है.”

“लेकिन हम लड़कियां ही एकसाथ इतने जीवन क्यों जिएं?”

“बेटा, निश्चित तौर पर यह गलत है और हमें इस का पुरजोर विरोध जरूर करना चाहिए. लेकिन स्त्री के प्रति यह समाज कभी भी सहज या सामान्य नहीं रहा है. या तो हमें रहस्य अथवा अविश्वास से देखा जाता है या श्रद्धा से लेकिन प्रेम से कभी नहीं, क्योंकि हम स्त्रियों की जैंडर प्रौपर्टीज समाज को हमेशा से भयाक्रांत करती रही है. सभी को अपने लिए एक शीलवती, सच्चरित्र और समर्पित पत्नी चाहिए जो हर कीमत पर पतिपरायण बनी रहे लेकिन दूसरे की पत्नी में अधिकांश लोगों को एक इंसान नहीं बल्कि एक वस्तु ही दिखाई पड़ती है.”

“लेकिन मां, यह तो ठीक बात नहीं, ऐसा क्यों?”

“बेटा, हम स्त्रियों के मामले में पुरुष हमेशा से इस गुमान में जीता आया है कि यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के साथ जरा सा भी हंसबोल ले तो कुछ न होते हुए भी वह इसे उस के प्रेम और शारीरिक समर्पण की सहमति मान लेता है.”

“तो क्या मैं किसी के साथ हंसबोल भी नहीं सकती?”

“नहीं बेटा, मेरे कहने का अभिप्राय यह बिलकुल भी नहीं है. मैं तो तुम्हें सिर्फ आगाह करना चाहती हूं कि समाज के ठेकेदारों ने हमारे चारो ओर नियमकानूनों का एक अजीब सा जाल फैला रखा है, जिस में काजल का गहरा लेप लगा हुआ है. लेकिन हमें भी अपनेआप को कभी कमजोर या कमतर नहीं आंकना चाहिए जबकि उन्हें यह एहसास करा देना चाहिए कि हम न केवल इस जाल को काट फेंकने का सामर्थ्य रखते हैं बल्कि हमारे इर्दगिर्द फैलाए गए इसी काजल को अपने व्यक्तित्व की खूबसूरती का माध्यम बना उसे आंखों में सजा लेना जानते हैं, ताकि हम सिर उठा कर खुले आकाश में उड़ सकें और अपनी खुली आंखों से अपने सपनों को पूरा होते देख सकें.”

“मां, यह हुई न झांसी की रानी लक्ष्मी बाई वाली बात.”

अपनी फूल सी बिटिया को सीने से लगाती हुईं कंचनजी बोलीं,”बेटा, मैं तुम्हें कतई डरा नहीं रही थी. बस समाज की सोच से तुम्हें परिचित करा रही थी ताकि तुम परिस्थितियों का मुकाबला कर सको. तुम वही करना जो तुम्हारा दिल कहे. तुम्हारे मम्मीपापा सदैव तुम्हारे साथ हैं और हमेशा रहेंगे.”

समय अपनी गति से पंख लगा कर उड़ता रहा और देखतेदेखते एक दिन छोटी सी तान्या विवाह योग्य हो गई. संयोग से रवि और कंचनजी को उस के लिए एक सुयोग्य वर ढूंढ़ने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

एक पारिवारिक शादी समारोह में दिनकर का परिवार भी आया हुआ था. तान्या की निश्छल हंसी और मासूम व्यवहार पर मोहित हो कर दिनकर उसे वहीं अपना दिल दे बैठा. शादी की रस्मों के दौरान जब कभी तान्या और दिनकर की नजरें आपस में एक दूसरे से मिलतीं तो तान्या दिनकर को अपनी ओर एकटक देखता हुआ पाती. उस की आंखों में उसे एक अबोले पर पवित्र प्रस्ताव की झलक दिखाई पड़ रही थी. उस ने भी मन ही मन दिनकर को अपने दिल में जगह दे दिया.

दिनकर की मां को छोड़ कर और किसी को इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी. दरअसल, दिनकर की मां शांताजी अपने दूर के रिश्ते की एक लड़की को अपनी बहू बनाना चाहती थी जो कनाडा में रह रही थी और पैसे से काफी संपन्न परिवार की थी, दूसरे उन्हें तान्या का सब के साथ इतना खुलकर बातचीत करना पसंद नहीं था. लेकिन बेटे के प्यार के आगे उन्हें झुकना ही पड़ा और कुछ ही समय के अंदर तान्या और दिनकर विवाह के बंधन से बंध गए.

सरल एवं बालसुलभ व्यवहार वाली तान्या ससुराल में भी सब के साथ खूब जी खोलकर बातें करती, हंसती और सब को हंसाती रहती.

पति दिनकर बहुत अच्छा इंसान था. उस ने तान्या को कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह मायके में नहीं ससुराल में है. उस ने तान्या को अपने ढंग से अपनी जिंदगी जीने की पूरी आजादी दी.

दिनकर की मां शांताजी कभी तान्या को टोकतीं तो वह उन्हें बड़े प्यार से समझाता, “मां, तुम अपने बहू पर भरोसा रखो. वह इस घर का मानसम्मान कभी कम नहीं होने देगी. वह एक परफैक्ट गुड गर्ल ही नहीं एक परफैक्ट बहू भी है.”

लेकिन कुछ ही दिनों मे तान्या को यह एहसास हो गया कि उस के ससुराल में 2 लोगों का ही सिक्का चलता है, पहला उस की सास और दूसरा उस के ननदोई राजीव का.

दरअसल, उस के ननदोई राजीव काफी अमीर थे. जब तान्या के ससुर का बिजनैस खराब चल रहा था तो राजीव ने रूपएपैसे से उन की काफी मदद की थी. इसलिए राजीव का घर में दबदबा था और उस की सास तो अपने दामाद को जरूरत से ज्यादा सिरआंखों पर बैठाए रखती थी.

राजीव का ससुराल में अकसर आना होता रहता था. अपनी निश्छल प्रकृति के कारण तान्या राजीव के घर आने पर उस का यथोचित स्वागतसत्कार करती. जीजासलहज का रिश्ता होने के कारण उन से खूब बातचीत भी करती थी. लेकिन धीरेधीरे तान्या ने महसूस किया कि राजीव जरूरत से ज्यादा उस के नजदीक आने की कोशिश कर रहा है.

उस के सहज, निश्छल व्यवहार को वह कुछ और ही समझ रहा है. पहले तो उस ने संकेतों से उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उस की बदतमीजियां मर्यादा की देहरी पार करने लगी तो उस ने एक दिन दिनकर को हिम्मत कर के सबकुछ बता दिया.

दिनकर यह सुन कर आपे से बाहर हो गया. वह राजीव को उसी समय फोन पर ही खरीखोटी सुनाने वाला था लेकिन तान्या ने उसे उस समय रोक दिया.

वह बोली,”दिनकर, यह उचित समय नहीं है. अभी हमारे पास अपनी बात को सही साबित करने का कोई प्रमाण भी नहीं है. मांजी इसे एक सिरे से नकार कर मुझे ही झूठा बना देंगी. तुम्हें मुझ पर विश्वास है, यही मेरे लिए बहुत है. मुझ पर भरोसा रखो, मैं सब ठीक कर दूंगी.”

दिनकर गुस्से में मुठ्ठियां भींच कर तकिए पर अपना गुस्सा निकालते हुए बोला, “मैं जीजाजी को छोङूंगा नहीं, उन्हें सबक सिखा कर रहूंगा.”

कुछ दिनों बाद राजीव फिर उस के घर आया और उस रात वहीं रूक गया. संयोग से दिन कर को उसी दिन बिजनैस के काम से शहर से बाहर जाना पड़ गया. राजीव के घर में मौजूद होने की वजह से उसे तान्या को छोड़ कर बाहर जाना कतई अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन बिजनैस की मजबूरियों की वजह से उसे जाना ही पड़ा. पर जातेजाते वह तान्या से बोला,”तुम अपना ध्यान रखना और कोई भी परेशानी वाली बात हो तो मुझे तुरंत बताना.”

“आप निश्चिंत रहिए. आप का प्यार और सपोर्ट मेरे लिए बहुत है.”

रात को डिनर करने के बाद सब लोग अपनेअपने कमरों में चले गए. तान्या भी अपने कमरे का दरवाजा बंद कर बिस्तर पर चली गई. दिनकर के बिना खाली बिस्तर उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता था, खासकर रात में उस से अलग रहना उसे बहुत खलता था. जब दिनकर सोते समय उस के बालों में उंगलियां फिराता, तो उस की दिनभर की सारी थकान छूमंतर हो जाती. उस की यादों में खोईखोई कब आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला.

अचानक उसे दरवाजे पर खटखट की आवाज सुनाई पड़ी. पहले तो उसे लगा कि यह उस का वहम है पर जब खटखट की आवाज कई बार उस के कानों में पड़ी तो उसे थोड़ा डर लगने लगा कि इतनी रात को उस के कमरे का दरवाजा कौन खटखटा सकता है? कहीं राजीव तो नहीं. फिर यह सोच कर कि हो सकता है कि मांबाबूजी में से किसी की तबियत खराब हो गई होगी, उस ने दरवाजा खोल दिया तो देखा सामने राजीव खड़ा मुसकरा रहा है.

“अरे जीजाजी, आप इतनी रात को इस वक्त यहां? क्या बात है?”

“तान्या, मैं बहुत दिनों से तुम से एक बात कहना चाहता हूं.”

कुदरतन स्त्री सुलभ गुणों के कारण राजीव का हावभाव उस के दिल को कुछ गलत होने की चेतावनी दे रहा था. उस की बातें उसे इस आधी रात के अंधेरे में एक अज्ञात भय का बोध भी करा रही थी. लेकिन तभी उसे अपनी मां की दी हुई वह सीख याद आ गई कि हमें कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए बल्कि पूरी ताकत से कठिन से कठिन परिस्थितियों का पुरजोर मुकाबला करते हुए हौसले को कम नहीं होने देना चाहिए.”

उस ने हिम्मत कर के राजीव से पूछा, “बताइए क्या बात है?”

“तान्या, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. आई लव यू. आई कैन डू एनीथिंग फौर यू…”

“यह आप क्या अनापशनाप बके जा रहे हैं? अपने कमरे में जाइए.”

“तान्या, आज चाहे जो कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हे अपना बना कर ही रहूंगा,” इतना कहते हुए वह तान्या का हाथ पकड़ कर उसे बैडरूम में अंदर ले जाने लगा कि तान्या ने एक जोरदार थप्पड़ राजीव के मुंह पर मारा और चिल्ला पड़ी,”मिस्टर राजीव, आई एम ए गुड गर्ल बट नौट ए म्यूट ऐंड डंब गर्ल. शर्म नहीं आती, आप को ऐसी हरकत करते हुए?”

तान्या के इस चंडी रूप की कल्पना राजीव ने सपने में भी नहीं किया था. वह यह देख कर सहम उठा, पर स्थिति को संभालने की गरज से वह ढिठाई से बोला,”बी कूल तान्या. मैं तो बस मजाक कर रहा था.”

“जीजाजी, लड़कियां कोई मजाक की चीज नहीं होती हैं कि अपना टाइमपास करने के लिए उन से मन बहला लिया. आप के लिए बेशक यह एक मजाक होगा पर मेरे लिए यह इतनी छोटी बात नहीं है. मैं अभी मांपापा को बुलाती हूं.”

फिर अपनी पूरी ताकत लगा कर उस ने अपने सासससुर को आवाज लगाई, मांपापा…इधर आइए…”

रात में उस की पुकार पूरे घर में गूंज पङी. उस की चीख सुन कर उस के सासससुर फौरन वहां आ गए.

गहरी रात के समय अपने कमरे के दरवाजे पर डरीसहमी अपनी बहू तान्या और वहीं पास में नजरें चुराते अपने दामाद राजीव को देख कर वे दोनों भौंचक्के रह गए.

कुछ अनहोनी घटने की बात तो उन दोनों को समझ में आ रही थी लेकिन वास्तव में क्या हुआ यह अभी भी पहेली बनी हुई थी.

तभी राजीव बेशर्मी से बोला, “मां, तान्या ने मुझे अपने कमरे में बुलाया था.”

“नहीं मां, यह झूठ है. मैं तो अपने कमरे में सो रही थी कि अचानक कुंडी खड़कने पर दरवाजा खोला तो जीजाजी सामने खड़े थे और मुझे बैडरूम में जबरन अंदर ले जा रहे थे.”

“नहीं मां, यह झूठी है, इस ने ही…”

अभी वह अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाया था कि अकसर खामोश रहने वाले तान्या के ससुर प्रवीणजी की आवाज गूंज उठी,”राजीव, अब खामोश हो जाओ, तुम ने क्या हम लोगों को मूर्ख समझ रखा है? माना हम तुम्हारे एहसानों के नीचे दबे हैं, लेकिन तुम्हारी नसनस से वाकिफ हैं. तुम ने आज जैसी हरकत किया है, उस के लिए मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा. तुम ने मेरी बहू पर बुरी नजर डाली और अब उलटा उसी पर लांछन लगा रहे हो…” इतना कह कर तान्या के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,”बेटा, तुम्हारा बाप अभी जिंदा है. मैं तुम्हें  कुछ नहीं होने दूंगा. मैं अभी पुलिस को बुला कर इस को जेल भिजवाता हूं.”

अपने पिता समान ससुर का स्नेहिल स्पर्श पा कर तान्या उन से लिपट कर रो पड़ी जैसे उस के अपने बाबूजी उसे फिर से मिल गए हों. फिर थोड़ा संयत हो कर बोली, “पापा, आप का आर्शीवाद और विश्वास मेरे लिए सब कुछ है लेकिन पुलिस को मत बुलाइए. जीजाजी को सुधरने का एक मौका हमें देना चाहिए और फिर दीदी और बच्चों के बारे में सोचिए, इन के जेल जाने पर उन्हें कितना बुरा लगेगा.”

दिनकर के पिता प्रवीणजी कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले,”बेटा, तुम्हारे मातापिता ने तुम्हारा नाम तान्या कुछ सोचसमझ कर ही रखा होगा. ये तुम जैसी बेटियां ही हैं, जो अपना मानसम्मान कायम रखते हुए भी परिवार को सदा जोड़े रखती हैं. जब तक तुम्हारी जैसी बहूबेटियां हमारे समाज में हैं, हमारी संस्कृति जीवित रहेगी.”

फिर अपनी पत्नी से बोले,”शांता, देखिए ऐसी होती हैं हमारे देश की गुड गर्ल. जो न अपना सम्मान खोए न घर की बात को देहरी से बाहर जाने दे.”

शांताजी के अंदर भी आज पहली बार तान्या के लिए कुछ गौरव महसूस हो रहा था. पति से मुखातिब होते हुए दामाद राजीव के विरूद्ध वे पहली बार बोलीं,”आप ठीक कहते हैं. घर की इज्जत बहूबेटियों से ही होती है. पता नहीं एक स्त्री होने के बावजूद मेरी आंखें यह सब क्यों नहीं देख पाईं…” फिर तान्या से बोलीं,”बेटा, मुझे माफ कर देना.”

“राजीव, तुम अब यहां से चले जाओ. मैं तुम्हारा पाईपाई चुका दूंगा पर अपने घर की इज्जत पर कभी हलकी सी भी आंच नहीं आने दूंगा. तान्या हमारी बहू ही नहीं, हमारी बेटी भी है और सब से बढ़ कर इस घर का सम्मान है,” प्रवीणजी बोल पङे.

सासससुर का स्नेहिल आर्शीवाद पा कर आज तान्या को उस का ससुराल उसे सचमुच अपना घर लग रहा था बिलकुल अपना जिस के द्वार पर एक सुहानी भोर मीठी दस्तक दे रही थी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें