रेटिंगः दो स्टार
निर्माताः परफैक्ट वर्ल्ड पिक्चर्स, टी-सीरीज फिल्म्स, वकाओ फिल्म्स
लेखकः मुदस्सर अजीज, पाओलो जेनोविस द्वारा लिखित ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ पर आधारित
पटकथाः मुदस्सर अजीज, सारा बोडिनार
निर्देशकः मुदस्सर अजीज
कलाकारः अक्षय कुमार, एमी विर्क, फरदीन खान, आदित्य सील,अभिनेत्री तापसी पन्नू, वाणी कपूर, प्रज्ञा जयसवाल, चित्रांगदा सिंह व अन्य
अवधि: 2 घंटे 22 मिनट
‘दूल्हा मिल गया’,‘हैप्पी भाग जाएगी’,‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’,‘पति पत्नी और वह’ फिल्मों के सर्जक मुदस्सर अजीज इस बार फिल्म ‘खेल खेल में ’ ले कर आए हैं. हम यहां याद दिला दें कि रवीना टंडन के पिता रवि टंडन ने 1975 में ऋषि कपूर को ले कर फिल्म ‘खेल खेल में ’ बनाई थी, जिसे बौक्स औफिस पर जबरदस्त सफलता नसीब हुई थी. तो मुदस्सर ने सब से पहले तो 1975 की सफलतम फिल्म के नाम को उधार लिया.उस के बाद 2016 में प्रदर्शित पाओलो जेनोविस की सफलतम इटालियन कौमेडी ड्रामा ‘परफेटी स्कोनोसियुटी’ अर्थात ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ का भारतीय रूपांतरण इस में किया है.
मजेदार बात यह है कि इस इटालियन फिल्म पर 25 देशों में अब तब 28 रीमेक फिल्में बन चुकी हैं.भारत में कन्नड़ और मलयालम भाषा में भी रीमेक हो चुका है. मलयालम फिल्म में मोहनलाल ने अभिनय किया था.इस के अलावा इस पर एक नाटक भी हो रहा है. इतना ही नहीं इस फिल्म को देखते हुए हमें एक वेब सीरीज भी याद आती है,जिस में इसी तरह से कुछ लोगों को जंगल में बने एक बंगले में इकट्ठा किया जाता है और फिर उन के साथ गेम खेला जाता है. इस में कहानी को मोड़ देते हुए हत्याएं भी होती हैं. जब हमें खबर मिली थी कि मुदस्सर अजीज इतने रीमेक किए जा चुके फिल्म का पुनः रीमेक या भारतीयकरण करने जा रहे हैं तो बहुत आश्चर्य नहीं हुआ था.
वह इस से पहले बी आर चोपड़ा की 1978 में बनी फिल्म ‘पति पत्नी और वह’ का रीमक कार्तिक आर्यन को ले कर बना चुके हैं. तो वहीं वह ‘पति पत्नी और वह’ का सिक्वअल भी बना रहे हैं. यानी कि वह मौलिक की बजाय रीमेक में ही ज्यादा रुचि रखते हैं. माना कि मुदस्सर अजीज अपनी अब तक की फिल्मों में ह्यूमर को अच्छे से पेश करते आए हैं, मगर इस बार वह बात नही बनी.‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी,’ ‘पति पत्नी और कौन’ में जो कुछ मुदस्सर दिखा चुके हैं उसी की पुनरावृत्ति इस फिल्म में है, वह नया कुछ सोच नहीं पाए. पति पत्नी के बीच किसी तीसरी औरत या पुरुष के आने से किस तरह रिश्ते बनतेबिगड़ते हैं, इस पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. मुदस्सर अजीज ने उसी को इस में पिरो दिया है.
कहानीः
फिल्म की कहानी के केंद्र में तीन दंपती और एक कुंआरा इंसान कबीर है. यह सभी वर्तिका की बहन की शादी में हिस्सा लेने जयपुर आए हुए हैं. यह सभी आपस में दोस्त भी हैं. पहला दंपती मशहूर प्लास्टिक सर्जन डाक्टर ऋषभ(अक्षय कुमार) और उन की पत्नी व लेखक वर्तिका (वाणी कपूर) हैं, जिसे दूसरी शादी की है. पहली पत्नी रश्मि से उन की बेटी अनाया है,जो कि वर्तिका को मां मानने को तैयार नहीं है.दूसरा दंपती घरेलू महिला हरप्रीत कौर (तापसी पन्नू) और कार डीलर हरप्रीत (एमी विर्क) का है. तीसरा दंपती बिजनेस मैन समर (आदित्य सील) और रईस नैना (प्रज्ञा जायसवाल) का है. इन्हीं का दोस्त कबीर (फरदीन खान), जो एक स्पोर्ट्स कोच है,जिन्हें स्कूल ने नौकरी से निकाल दिया है.
ऋषभ और वर्तिका की शादी टूटने की कगार पर है, जबकि हरप्रीत और उस का पति 6 साल से बच्चे के लिए ट्राई कर रहे हैं, वहीं समर दिनरात अपनी पत्नी नैना के पिता के बिजनेस में व्यस्त रहता है. शादी के दौरान रात में वर्तिका ने एक गेम खेलने का फैसला किया, जहां सभी को अपने फोन टेबल पर रखने थे और आने वाले हर संदेश को जोर से पढ़ना था और हर कौल को स्पीकर पर रखना था. पत्नियां खेल के लिए राजी हो जाती हैं लेकिन पति नहीं. आखिरकार, वह हार मान लेते हैं और अराजकता फैल जाती है.गहरे, अंधेरे रहस्य कोठरी से बाहर आते हैं जो उन के समीकरणों को गंभीर बनाना शुरू कर देते हैं. उस रात के बाद इन सभी दोस्तों की जिंदगी में क्या भूचाल आता है? क्या रायता फैलता है? यह जानने के लिए आप को फिल्म देखनी होगी.
समीक्षाः
इंटरवल से पहले तो यह फिल्म काफी बोर करती है. इंटरवल के बाद कुछ घटनाक्रम अच्छे बन पड़े हैं पर इंटरवल के बाद कई खुलासे फालतू व फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए ठूंसे हुए लगते हैं. कुल मिला कर यह फिल्म दर्शकों को बांध कर नहीं रखती. किरदार अति बनावटी लगते हैं. सारे घटनाक्रम बनावटी लगते हैं. मुदस्सर अजीज ने खुद ही निर्देशन करने के अलावा कहानी लिखने से ले कर सारा बोड़िनार के साथ मिल कर पटकथा लिखी है. फिल्म टूटती शादियों, धोखा, पैरेंटिंग, समलैंगिकता, शादी के एडजस्टमेंट, कैरियर के लिए शोषण संतानहीनता, बेवफाई, जैसे घिसेपिटे मुद्दों पर ही बात करती है.यों तो कहा जाता है कि सच्चे दोस्तों के पास कोई रहस्य नहीं होता, लेकिन यह कितना ‘सच’ है.हम कितने माहिर ‘झूठे’ हैं, इस सदियो से चले आ रहे कटु सत्य को लेखक व निर्देशक मुदस्सर अजीज ने नई तकनीक यानी कि मोबाइल के जरिए पेश किया है, मगर मुद्दे वही अति पुराने. इस के लिए उन्हे इटालियन फिल्म ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स का रीमेक का सहारा लेने की जरूरत क्यों पड़ गई? फिल्म देखते समय हमें कई बार नब्बे के दशक में जीटीवी पर प्रसारित सीरियल ‘तारा’ की याद अती रही.
यह फिल्म कहानी व पटकथा के स्तर पर भी काफी कमजोर है. किरदारों को ठीक से गढ़ा ही नही गया.हरप्रीत कौर द्वारा अच्छे ‘स्पर्म’ की तलाश व कबीर के ‘गे’ के मुद्दे को ले कर काफी रोचक घटनाक्रम लिखे जा सकते थे. पर फिल्मकार ने जिस तरह से इन दो मुद्दों को उठाया है, वह अजीब सा लगता है. फिल्मकार ने व्यभिचार, सफलता के लिए सैक्स का सहारा व सैक्स को कुछ ज्यादा ही तवज्जो दी है. महिला पात्र खुलेआम सैक्स की चर्चा करती हैं.18 वर्षीय बेटी के बैग में कंडोम की मौजूदगी पर पिता ऋषभ जिस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं,उस से एक सवाल जरूर उठता है कि फिल्मकार महोदय किस तरह का समाज रचना चाहते हैं. क्या वह भारत नहीं किसी अन्य देश के निवासी हैं.
मूल इटालियन फिल्म की कहानी के बारे में हमें जो पता है उस के अनुसार ‘खेल खेल में’ काफी बदलाव किया गया है. इतना ही नहीं मुदस्सर ने इस फिल्म में जिस तरह से सभी किरदारो को राउंड द टेबल बैठा कर ‘खेल’ रचा है,वह दर्शकों को 1986 में प्रदर्शित बासु चटर्जी निर्देशित क्लासिक फिल्म ‘एक रुका हुआ फैसला’ की याद दिलाता है. बतौर निर्देशक मुदस्सर अजीज एवरेज ही हैं.
‘झूठ बोलना और धोखा देना’ मानवीय प्रवृत्ति है, इस पर सैकड़ों फिल्में व सीरियल बन चुके हैं.अब मुदस्सर अजीज ने इटालवी फिल्म ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर्स’ का भारतीयकरण करने के नाम पर बिग फैट वेडिंग की पृष्ठभूमि में ‘झूठ व धोखे का जो खेल रचा है,उस से वह दर्शकों को धोखा देने में कामयाब हो जाएंगे,ऐसी हमें उम्मीद नहीं है. दूसरी बात फिल्मकार भूल गए कि वक्त बदल चुका है.रिश्तों व विवाह के मायने भी बदल चुके हैं.लगभग हर अमीर खानदान व संभ्रात परिवार में लोगों ने शादीब्याह को व्यापार ही बना रखा है.व्यापार या कैरियर के नफानुकसान का हिसाबकिताब लगा कर ही शादियां हो रही हैं. ऐसे में फिल्मकार ने नया कुछ नहीं दे पाए.
अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो छिछोरे व किसी भी लड़की को पटाने के लिए टपोरी जैसी हरकतें करने वाले प्लास्टिक सर्जन ऋषभ मलिक के किरदार में कुछ हद तक अक्षय कुमार खुद को संभालते हुए नजर आए हैं. लेकिन वह फिल्म में किसी भी दृष्टिकोण से डाक्टर नजर नहीं आते.किरदार की इस गड़बड़ी के चलते वह दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाते, जबकि लेखक व निर्देशक ने अक्षय कुमार को ही अपनी तरफ से ज्यादा से ज्यादा हाईलाइट करने का प्रयास किया है. कुछ लोग अक्षय के सौल्ट एंड पेपर लुक पर मोहित हो सकते हैं. ऋषभ की पत्नी व लेखिका वर्तिका के किरदार में वाणी कपूर का चयन गलत है. फिल्म में वह लेखक कहीं से भी नजर नहीं आती. वह सिर्फ खूबसूरत लगी हैं.
मां बनने का दबाव झेलते हुए पति हरप्रीत के झूठ को पकड़ कर झगड़ने की बजाय स्पर्म डोनर के स्पर्म से मां बनने का रास्ता चुनने वाली हरप्रीत कौर के किरदार में तापसी पन्नू का अभिनय शानदार है. पर पति के गे होने की बात सुन कर हरप्रीत कौर के किरदार में अपनी भावनात्मक उथलपुथल का संकेत देने के लिए बिखरे बालों और शराब की बोतल के साथ त्रासदी और कौमेडी को जोड़ने की कोशिश करते समय वह साबित करती है कि अब अभिनय उन के वश की बात नहीं. इस के अलावा तापसी पन्नू जैसी निडर, नारी उत्थान, नारी सशक्तिकरण व सशक्त महिला पात्रों को निभाते आई हैं. वह निजी जीवन में भी लगभग इसी तरह की हैं. पर पहली बार इस फिल्म में तापसी पन्नू ने हरप्रीत कौर का ऐसा किरदार निभाया है जो कि बहुत ही ज्यादा कमजोर है.उस का पति उसे बोलने नहीं देता.
बातबात पर टोकता व लोगों के सामने जलील करता रहता है. फिर भी वह अपने पति को खुश करने की कोशिश में लगी रहती है. इस तरह का किरदार निभाने के पीछे उन की क्या सोच रही,यह तो वही जाने,मगर इस तरह के किरदार में दर्शक तापसी से रिलेट नहीं कर पाते. कबीर के किरदार में फरदीन खान बिलकुल नहीं जमे. 14 साल बाद अभिनय में वापसी करते हुए उन्हें अपने अभिनय को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए था पर ऐसा कुछ नहीं किया.एमी विर्क के हिस्से में करने के लिए कुछ खास रहा नहीं.समर के किरदार में आदित्य सील और नेहा के किरदार में प्रज्ञा जायसवाल का अभिनय ठीकठाक है.
अंत मेंः
अक्षय कुमार फिल्म की सफलता के लिए मन्नत मांगने कुछ दिन पूर्व वह मुंबई में हाजी अली पर जा कर चादर चढ़ाने के साथ ‘हाजी अली ट्रस्ट ’ को 1 करोड़ 21 लाख रुपए दान किए थे.पर यह भी उन के काम आएगा, ऐसा नहीं लगता.