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Relationship Problem : हम पतिपत्नी के बीच में यौन संतुष्टि की कमी है

Relationship Problem : शादी हुए 16 साल हो गए हैं. 2 बच्चे हैं. पत्नी के साथ सैक्सुअल रिलेशन बनाता तो हूं लेकिन सबकुछ डीपली फील नहीं करता. इस वजह से पत्नी के साथ इमोशनल दूरी बढ़ रही है. समझ नहीं पा रहा कि कैसे इस समस्या का हल निकालूं?

जवाब : पतिपत्नी के रिश्ते में सैक्स बहुत इंपौर्टेंट होता है और उसी में दिक्कत आने लगे तो समस्याएं आने लगती हैं. आप के केस में आप पतिपत्नी का खुल कर बात करना बेहद जरूरी है कि कैसे अपने अंतरंग पलों को बेहतर बनाएं. आप दोनों सैक्स में एकदूसरे से क्या चाहते हैं, जानने की कोशिश करें. आप इस पर बात करेंगे तो पत्नी अपनी पसंद व ख्वाहिश आप को जरूर बताएगी.

इस के अलावा कुछ बातें अपना कर अपने रिश्ते से यौन संतुष्टि और इमोशनल नजदीकी बढ़ा सकते हैं. जैसे, अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का तनाव कम करें, रैगुलर ऐक्सरसाइज और पर्याप्त नींद सैक्सुअल हैल्थ को बेहतर बनाते हैं, अपने अंतरंग जीवन में नयापन लाने के लिए रोमांटिक डेट नाइट्स, मसाज या एकसाथ नई गतिविधियां कर रिश्ते में एक्साइटमैंट पैदा करें.

जान लें कि छोटीछोटी चीजें, जैसे कैंडल्स जलाना, लाइट म्यूजिक या पार्टनर की तारीफ करना आदि भी इंटीमेसी बढ़ाते हैं. एकदूसरे के लिए ज्यादा से ज्यादा समय निकालें. किताबें या ट्रस्टवर्दी औनलाइन मैटर पढ़ें जो सैक्सुअल हैल्थ और अंतरंगता पर जानकारी देते हों. अगर समस्या फिर भी बनी रहती है तो सैक्स थेरैपिस्ट या रिलेशनशिप काउंसर से सलाह लें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Raja Raghuvanshi Murder Case : सोनम के मंडप से जेल तक का सफर

Raja Raghuvanshi Murder Case : सोनम जिस रास्ते गई थी उस से वापस इंदौर आ गई लेकिन ऐसे आई कि किसी को हवा भी नहीं लगी. खुद उस के अलावा चारों हत्यारे जानते थे कि सोनम गई तो सुहागिन थी लेकिन वापस विधवा हो कर आई है जिस की स्क्रिप्ट भी खुद उस ने ही लिखी थी.

29 वर्षीय राजा रघुवंशी और 25 वर्षीया सोनम दोनों इंदौर के रहने वाले थे. राजा पेशे से ट्रांसपोर्ट व्यवसायी थे और सोनम के पिता का प्लाइवुड का करोड़ों का जमाजमाया कारोबार था. दोनों की शादी रघुवंशी समाज की वैवाहिक पत्रिका के जरिए बीती 11 मई को धूमधाम से हुई थी. इस से पहले दोनों परिवार एकदूसरे से परिचित नहीं थे. उन के लिए यह रिश्ता इस लिहाज से भी सुखद संयोग था कि सजातीय होने के साथसाथ राजा और सोनम दोनों की जन्मकुंडली में मंगल था जिस से शादी में दिक्कत पेश आ रही थी.

इस दिन जब दोनों स्टेज पर बैठे आगंतुकों की बधाइयां और आशीर्वाद ले रहे थे तब उन के चेहरे की चमक और उल्लास देखने के काबिल थे, हर कोई उन के सुखमय खुशहाल दांपत्त्य जीवन और उज्ज्वल भविष्य की कामना कर रहा था. लेकिन किसी को रत्तीभर भी यह एहसास नहीं था कि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है और यह छिपा जब उजागर हुआ तो हर कोई सनाके में रह गया. बात कुछ थी भी ऐसी ही जिसे संक्षेप में सिलसिलेवार समझें तो कहानी कुछ यों सामने आती है.

शादी के बाद एक हफ्ता रीतिरिवाजों, मेहमानों आगंतुकों के आनेजाने और लोकल घूमनेफिरने में ही निकल गया. दोनों परिवारों में खुशी का माहौल था लेकिन सोनम शादी के पहले ही मन ही मन एक खतरनाक साजिश बुन चुकी थी. इसी दौरान दोनों ने हनीमून प्लान किया और बहुत सी जगहों में से आखिरकार सोनम के जोर देने पर मेघालय जाना तय किया.

राजा ने अपने पेशे के सिलसिले में बहुत से शहर घूम रखे थे. लेकिन पूर्वोत्तर भारत नहीं घूमा था इसलिए मेघालय के नाम पर मुहर लग गई. मेघालय जाने की जिद चूंकि सोनम की ही थी इसलिए पति की सहमति मिलते ही उस ने ही तुरंत 20 मई के रिजर्वेशन करा लिए थे. लेकिन नई बहू की असल मंशा कोई नहीं भांप पाया.

शादी के बाद धार्मिक स्थलों पर जाने का रिवाज भी उन्होंने निभाया और सब से पहले बेंगलुरु होते कामख्या मंदिर जा कर देवी का आशीर्वाद लिया. हर कोई जानता है कि असम के गुवाहटी में स्थित कामख्या मंदिर तांत्रिक क्रियाओं के लिए मशहूर है. 21 मई को दोनों शिलांग पहुंचे और वहां के बालाजी गेस्ट हाउस में ठहरे. लोकल घूमनेफिरने उन्होंने कीटिंग रोड की एक दुकान से एक्टिवा किराए पर ली और वापस गेस्ट हाउस आ कर सो गए. दूसरे दिन सुबह यानी 22 मई को दोनों ने बालाजी गेस्ट हाउस से चेकआउट कर दिया. लेकिन जातेजाते मैनेजर को कहा कि हम 25 मई तक वापस आ सकते हैं और जरूरत पड़ने पर फिर से कमरा ले सकते हैं.

सुबह दोनों ने होटल में नाश्ता नहीं किया और स्कूटर पर सवार हो कर शिलांग से चेरापूंजी के लिए रवाना हो गए. तब उन के साथ 2 बैग थे. दोपहर को दोनों मावलखियाट गांव पहुंचे और वहां से नोग्रियाट गांव स्थित लिविंग रूट ब्रिज देखने चले गए, जिस के लिए उन्हें कोई 3 हजार सीढ़ियां नीचे उतरना पड़ा. इस दौरान सोनम बेहद असहज थी और बारबार राजा से दूर जा कर किसी को मैसेज भेज रही थी दरअसल में वह लोकेशन शेयर कर रही थी.

शाम तक घूमफिर कर दोनों ने रात नोग्रियाट के ही शिपारा होम स्टे में गुजारी. 23 मई की सुबह दोनों ने शिपारा गेस्ट हाउस से भी चेक आउट कर दिया और ट्रैकिंग के लिए वेईसावडोंग झरने पर चले गए. इस दौरान दोनों फोन पर लगातार परिवारजनों के संपर्क में रहे और अपने घूमनेफिरने के बारे में बताते रहे. जिस से घर वाले बेफिक्र रहे कि दोनों एंजौय कर रहे हैं लेकिन हकीकत में दोनों में से कोई भी हनीमून एंजौय नहीं कर रहा था, हां राजा जरूर सोनम के इशारों पर नाचता जा रहा था.

इसी दिन दोपहर कोई डेढ़ बजे राजा ने अपनी मां उमा देवी से फोन पर बात की और उन्हें बताया कि वे चोटी पर पहुंच गए हैं और फल खा रहे हैं. इस के कुछ देर बाद ही सोनम ने भी अपनी सास को एक औडियो मैसेज भेजा जिस में कहा था कि हम लोग अभी चढ़ाई चढ़ रहे हैं बाद में बात करेंगे.

सोनम की आवाज से थकान साफ झलक रही थी. उमा देवी ने उसे याद दिलाया कि आज उस का ग्यारस का उपवास होगा. बातचीत में सोनम ने सास को यह भी बताया कि यहां उपवास का खानेपीने कुछ खास नहीं मिल रहा है कुछ देर पहले कौफी पी थी तो ऐसा लगा न जाने क्या पी रहे हैं.

इस के बाद घर वालों से उन का संपर्क ऐसा टूटा कि फिर स्थापित हुआ ही नहीं. दोनों के परिवारजन फोन पर फोन करते रहे लेकिन हर बार दोनों के ही मोबाइल बंद मिले तो सभी को स्वभाविक चिंता होने लगी. अपने ही शहर में किसी का फोन घंटे दो घंटे से ज्यादा न लगे तो भी घर वालों को फिक्र होने लगती है फिर ये दोनों तो कोई 2185 किलोमीटर दूर शिलांग के घने जंगलों में थे. एक अंदाजा यह लगाया गया कि नेटवर्क इशू हो सकता है इसलिए कौल नहीं लग पा रहा.

लेकिन इशू कुछ और ही था और इतना खतरनाक था कि जिस ने सुना वह सकते में आ गया. जब संपर्क हो ही नहीं पाया तो दोनों के घर वाले घबरा गए. तब तय यह हुआ कि घर के ही लोग शिलांग जा कर देखें कि आखिर हुआ क्या है. किसी अनहोनी की आशंका से मन ही मन सब कांप रहे थे. तुरंत ही राजा का भाई विपिन और सोनम का भाई गोविंद इमरजैंसी फ्लाइट ले कर शिलांग पहुंचे और दोनों की खोजबीन में जुट गए.

गूगल मैप के जरिए जब दोनों ने आसपास की लोकेशन ट्रेस की तो किराए पर एक्टिवा देने वाले की जानकारी मिल गई जिस से उन्हें अंधेरे में रौशनी की किरण नजर आई. किराए पर व्हीकल देने वाली एजेंसी ने इस बात की पुष्टि की कि दोनों ने उन्हीं के यहां से एक्टिवा ली थी और दोनों उस से ओसरा हिल्स की तरफ रवाना हुए थे. स्थानीय पुलिस का सहयोग उन्होंने लिया लेकिन दोनों के मुताबिक पुलिस ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इस की एक वजह भाषा की समस्या भी थी. रौशनी की जो किरण गोविंद और सचिन को दिखाई दी थी वह उस वक्त बुझ सी गई जब एक्टिवा पहाड़ी इलाके में लावारिस हालत में पड़ी मिली. इन दोनों ने इंदौर पुलिस कमिश्नर संतोष सिंह से बात कर मदद की गुहार लगाई. कमिश्नर साहब ने क्राइम ब्रांच के डीसीपी राजेश कुमार त्रिपाठी को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी जो शिलांग पुलिस के लगातार संपर्क में रहे.

इंदौर के रघुवंशी दंपत्ति शिलांग में रहस्मय तरीके से गायब हैं और अब तक कोई सुराग उन का नहीं मिला है यह बात जंगल की आग की तरह इंदौर से मध्य प्रदेश होते पूरे देश में फैल गई. इंदौर में हर घंटे हर दिन सस्पेंस गहराता जा रहा था कोई नई बात जो दरअसल में पुरानी हो चुकी होती थी वह पता चलती थी तो सभी अपने अपने कयास लगाना और बताना शुरू कर देते थे.

परिचित, दोस्त और नातेरिश्तेदार यानी शुभचिंतक राजा और सोनम के घर हालचाल लेने और सहानुभूति प्रदर्शित करने जाने लगे थे. जिस से कम होने के बजाय दोनों परिवारों का ब्लड प्रेशर और तनाव दोनों बढ़ रहे थे.

इधर शिलांग में लावारिस हालत में पड़ी मिली एक्टिवा से कुछ ही दूर खाई में शाम को सर्चिंग के दौरान एक रेन कोट और दो बैग मिले. इंदौर में मीडिया को इस परिवार से जुड़े अर्पित चौहान ने बताया कि इस मामले में पुलिस अधिकारियों की मीटिंग चल रही है और इंदौर व शिलांग पुलिस से उन्हें सहायता मिल रही है.

मामला बहुत गंभीर मोड़ पर आ गया था जिस में अब तरहतरह की आशंकाएं ही बची थीं और सोशल मीडिया इस रहस्मय मसले से भरा पड़ा था. जिस के चलते मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मेघालय के मुख्यमंत्री कानराड संगमा से फोन पर बात की और अपने अफसरों को मेघालय पुलिस के संपर्क में रहने की हिदायत दी. मध्य प्रदेश के ही एक और वरिष्ठ मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मदद के लिए आग्रह किया.

इधर शिलांग में सर्चिंग चल रही थी जो भारी बारिश और घने कोहरे के चलते व्यवधान तो डाल रही थी. सभी की दहशत उस वक्त और बढ़ गई जब स्थानीय लोगों ने यह बताया कि जिस इलाके में एक्टिवा मिली है वह कुख्यात इलाका है और गुंडे बदमाशों का अड्डा है. कहासुना यह भी गया कि यहां पहले भी कपल्स के गायब होने की वारदातें हो चुकी हैं. चूंकि स्थानीय लोग और पुलिस रघुवंशी परिवारों की उम्मीद के मुताबिक मदद नहीं कर रहे थे. इसलिए विपिन और गोविंद ने यूट्यूबर की मदद ली. एक यूट्यूबर को पैसे दे कर राजा और सोनम के फोटो व वीडियो वायरल करवाए गए. एक लोकल न्यूज चैनल को भी पैसे दे कर खबर चलवाई गई.

दूसरी तरफ पुलिस की सर्चिंग मुहिम जारी थी लेकिन तेज बारिश के चलते व्यवधान पड़ रहा था. मामला सुलझने के बजाय उलझता जा रहा था. राजा के परिवारजनों ने कपल की खबर देने वालों को 5 लाख नगद इनाम देने का एलान कर दिया.

शिलांग के खासी हिल्स जिले की सोहरा हिल्स जहां से राजा और सोनम लापता हुए थे बेहद खतरनाक ट्रेक है और दुनिया में सब से ज्यादा और तेज बारिश बाले इलाकों में से एक है. राजा को रोमांच से परहेज नहीं था लेकिन वह काफी एहतियात से चलने वाला युवक था. पूछताछ में दोनों के भाइयों को किसी ने बताया कि यहां किडनैप करने वालों की एक गैंग सक्रिय है. मुमकिन है उस ने ही इन दोनों का अपहरण कर लिया हो और एक्टिवा को दूर छोड़ दिया हो. वैसे भी इस इलाके में लूटपाट आम है जिस के चलते स्थानीय लोग भी अकेले आने से भी डरते हैं.

रघुवंशी परिवार की मदद की गरज से इंदौर के सांसद शंकर ललवानी भी शिलांग पहुंच कर पुलिस अधिकारियों से मिले जिस से पुलिस सर्च औपरेशन में और तेजी आई. लेकिन इस के बाद भी लापता कपल का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. और जब सुराग मिला भी तो राजा की लाश की शक्ल में मिला.

सर्चिंग के दौरान ड्रोन की मदद से एक गहरी खाई में राजा की लाश पड़ी मिली, शव ऊपर लाया गया तो उसे पहचानना मुश्किल था क्योंकि वह गल चुका था. राजा के दाहिने हाथ पर बने टैटू से उसे पहचाना गया.

इसी जगह से एक लेडिज शर्ट, पैंटरा- 40 नाम की दवा, वीवो कंपनी के मोबाइल फोन की स्क्रीन और एक स्मार्ट घड़ी बरामद हुई. यह जगह उस जगह से कोई 25 किलोमीटर दूर थी, जहां एक्टिवा पड़ी मिली थी. राजा ने जो सोने की अंगूठियां पहन रखी थीं उन सहित उस के बैलेट के गायब होने से यह ख्याल पुख्ता हुआ कि यह कपल लूट का शिकार हुआ है.

राजा की मौत की खबर इंदौर पहुंची तो शहर में मातम पसर गया और देशभर में फिर चर्चाओं और अफवाहों का बाजार गर्म हो उठा. पोस्टमार्टम के बाद राजा का शव इंदौर ला कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. लेकिन सोनम का अभी भी कोई अतापता नहीं था कि वह जिंदा है भी या नहीं और है तो किस हाल में और कहां है यह सच सोनम सहित उस के प्रेमी राज कुशवाह और तीनों सुपारी किलर्स को ही मालूम था.

सोनम और राजा की गुमशुदगी के दौरान दोनों के घर वाले ज्योतिषियों और तांत्रिकों के चक्कर लगाते रहे जो उन्हें अपने पेशे के मुताबिक ब्लफ देते रहे. एक तांत्रिक के कहने पर सोनम की तस्वीर घर के बाहर उलटी लटका दी गई. एक और ज्ञानी ने आंख मूंद कर भविष्यवाणी कर दी कि दोनों का अपहरण किया गया है और उन्हें नीले रंग के मकान में रखा गया है. लेकिन चूंकि इस मामले का हल्ला बहुत मच चुका है इसलिए अपहरणकर्ता फिरौती के लिए संपर्क नहीं कर रहे हैं अब भला कौन इन पंडित जी को बताता समझाता कि राजा का अपहरण नहीं हुआ बल्कि हत्या हुई है जिस की सूत्रधार और कर्ताधर्ता पत्नी सोनम है.

गोविंद, विक्रम और दोनों के घर वाले मेघालय पुलिस को कोसते रहे लेकिन इन तांत्रिकों ज्योतिषियों की गिरहबान किसी ने नहीं पकड़ी जो इंदौर में बैठे भविष्यवाणियां कर रहे थे. अगर इन में कोई दम होता तो इन्होंने राजा की मौत की भविष्यवाणी क्यों नहीं की थी और सोनम के बाबत भी कुछ स्पष्ट नहीं बोल पाए लेकिन जब वह जिंदा मिली तो ये अपने उलटी तस्वीर वाले टोटके को इस का श्रेय देते नजर आए.

मीडिया वाले भी उस पंडित का इंटरव्यू लेते नजर आए जिन्हें कल तक उस का नाम पता भी नहीं मालूम था. कुछ दिन बाद सोनम सही सलामत मिल गई.

सोनम ने जानबूझ कर हनीमून के लिए उस दुर्गम जगह को चुना था जो उन के शहर इंदौर से कोई 2200 किलोमीटर दूर थी, जहां घने जंगल थे जंगली जीवजंतु थे, पहाड़ियां थीं, झरने थे लेकिन सब एकदम असुरक्षित होते हैं पर अब साबित हो रहा है कि पति की हत्या करने ये जगहें मुफीद साबित होती हैं.

यह राज तब खुला जब 9 जून को एकाएक ही सोनम प्रगट हो गई लेकिन इंदौर या मेघालय में नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के एक ढाबे से जिस से यह साबित हो गया कि मेघालय पुलिस इस मामले पर पूरी गंभीरता और मुस्तेदी से काम कर रही थी. जैसे ही सोनम के मिलने की खबर न्यूज चैनल्स पर आई वैसे ही टीवी से बिदकने वाले लोग भी टीवी देखने टूट पड़े खासतौर से महिलाओं को तो इस हत्याकांड से जुड़ी हर सनसनी देखने में पारिवारिक धारावाहिकों सरीखा बल्कि उस से भी ज्यादा आनंद मिल रहा था.

गाजीपुर के काशीपांन जायका ढाबे से गिरफ्तार सोनम बदहवास दिखने की असफल कोशिश कर रही थी. मेघालय पुलिस ने सोनम को गिरफ्तार करते बताया कि पति राजा की हत्या की साजिश उस ने ही रची थी और इस के लिए किराए के हत्यारे भी हायर किए थे 16 मई को इंदौर के सुपर कोरिडोर में सोनम राज से मिली और पूरा प्लान बनाया. हत्या के लिए राज ने अपने 3 दोस्तों आकाश राजपूत, आनंद कुर्मी और विशाल चौहान को भी साथ मिला लिया.

प्लान के मुताबिक ये चारों ट्रेन और सड़क मार्ग से शिलांग पहुंचे. इन्हें सोनम लगातार अपनी लोकेशन देती जा रही थी. 23 मई की सुबह जब राजा के साथ वह मावलखियात पहुंची तो ये चारों भी पीछे लग लिए. सोनम राजा को पहाड़ी पर सुनसान जगह ले गई और आरोपियों को इशारा कर दिए जो राजा के नजदीक पहुंच गए. पहुंच तो गए लेकिन उस की हत्या करने की हिम्मत इन की नहीं पड़ रही थी जिस से सोनम बौखला गई और चिल्लाई भी.
इस पर विशाल ने धारदार हथियार से राजा के सर पर पहला वार किया. आनंद ने राजा को पकड़ा और आकाश निगरानी करता रहा. सोनम थोड़ी दूर खड़ी राजा की मौत देखती रही. इस के बाद इन सभी ने बेसुध राजा को गहरी खाई में धक्का दे दिया.

प्लान की कामयाबी के बाद विशाल आकाश और राज इंदौर लौट आए और आनंद बीना चला गया. सोनम जिस रास्ते गई थी उस से वापस इंदौर आ गई लेकिन ऐसे आई कि किसी को हवा भी नहीं लगी. खुद उस के अलावा चारों हत्यारे जानते थे कि सोनम गई तो सुहागिन थी लेकिन वापस विधवा हो कर आई है जिस की स्क्रिप्ट भी खुद उस ने ही लिखी थी. अब ये सभी नातजुर्बेकार कम उम्र हत्यारे भी जेल में हैं जो इस खुशफहमी में थे कि उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता लेकिन इन लोगों को रत्तीभर भी इल्म नहीं था कि मेघालय पुलिस 23 मई को ही सक्रिय हो गई थी जिस ने राजा हत्याकांड को औपरेशन हनीमून नाम दिया था इस मिशन में 120 पुलिसकर्मी लगातार जुटे रहे थे जिन्होंने बतौर सबूत 42 सीसीटीवी फुटेज और दूसरे साक्ष्य भी जुटा लिए थे, इन में से अहम हैं सभी के आनेजाने और ठहरने के सबूत और सोनम की 20 दिन में राज से मोबाइल फोन पर 242 बार हुई बातचीत के भी सबूत के अलावा ढेरों पुख्ता साक्ष्य अदालत में गवाही देंगे.

न्यूज चैनल्स टीआरपी बढ़ाने के लिए अभी भी इस हत्याकांड को भुना रहे हैं. पुलिस की थ्योरी और बयान टुकड़ों में आ रहे हैं लेकिन टीवी से चिपके दर्शकों ने सोनम के ढाबे पर मिलने के साथ ही साबित कर दिया कि सोनम ही हत्यारिन और साजिशकर्ता है.

Crime : राजा की ‘बलि’ के जिम्मेदार तीन – सोनम, जन्मपत्री और जातिवाद

Crime : भारतीय मध्यवर्गीय, खासतौर से उच्च मध्यवर्गीय, घरों के माहौल का आलम तो यह है कि रहने वाले चारपांच लोग मेहमानों और अजनबियों की तरह रहते हैं. पैसों के अलावा किसी से किसी को कोई खास सरोकार नहीं. बेटा रात 2 बजे के करीब या अलसुबह घर वापस आता है, बेटी उस से चारछह घंटे पहले आ जाती है. डाइनिंग टेबल पर रखा खाना ये बच्चे यानी युवा, जितना खाना हो, खा लेते हैं. खाना पसंद न आए तो भी दिक्कत नहीं, स्वीगी और जोमैटो रातभर पेट भरने को तैयार रहते हैं. घर की धुरी कही जाने वाली मां टीवी और मोबाइल देख कर 12 बजे के लगभग अपने बैडरूम में लुढ़क जाती है. पतिदेव के आनेजाने का भी कोई ठिकाना नहीं.

जरूरी नहीं कि सभी घरों में ऐसा माहौल हो लेकिन ऐसा तो लगभग सभी घरों में है कि संवादहीनता और एकदूसरे के प्रति अविश्वास निर्णायक रूप से पसर चुके हैं जिस का खमियाजा हरेक को अलगअलग तरीके से भुगतना पड़ता है. पेरैंट्स को शिकायत है कि बच्चे उन की सुनना तो दूर की बात है, उन से बातचीत ही नहीं करना चाहते. जबकि युवा होते बच्चों की शिकायत यह है कि पेरैंट्स उन्हें सम झना ही नहीं चाहते, वे आजकल के हिसाब से फिट नहीं हैं.

ऐसी कई बातें और शिकायतें हरेक को हैं जिन का कोई हल नहीं. आज लोग जमीनी हकीकतों से बहुत दूर हो चले हैं जिस का बड़ा जिम्मेदार वह स्मार्टफोन है जिस ने पढ़नापढ़ाना छुड़ा दिया है. नतीजतन पेरैंट्स को नहीं मालूम कि संतान को आने वाले कल और चुनौतियों के लिए कैसे प्रशिक्षित किया जाना है. उन्हें पढ़ने के लिए पत्रपत्रिकाएं दिया जाना कितना अहम और जरूरी हो चला है जिस से वे वह सीखें जो हम से सीखने को तैयार नहीं या हम सिखा ही नहीं पा रहे.

पत्रपत्रिकाओं का फायदा यह है कि नाश्ते के समय किसी भी प्रकाशित लेख और कहानी पर सभी बात कर सकते हैं क्योंकि एकएक कर के सभी ने उसे पढ़ लिया होगा. अब मोबाइल में कौन क्या देखसुन रहा है, यह दूसरेतीसरे को कैसे मालूम होगा. मोबाइल के दुराज्ञान पर भी कोई चर्चा करने का माहौल नहीं बनता.

उधर संतानें हवा में उड़ रही हैं क्योंकि उन के हाथ में गूगल गुरु के अलावा अब एआई भी जो है. दिक्कत तो बड़ी यह भी है कि इस वर्ग के युवाओं के सामने आर्थिक चुनौतियां न के बराबर बची हैं. जो पीढ़ी आधी रात को 400-500 रुपए के कोल्डड्रिंक के साथ सोयाचाप और सैंडविच मंगा कर पेट भरती हो उस से यह उम्मीद करना बेकार है कि वह जीवन की कठिनाइयों से वाकिफ होगी. यह उन्हें बताने वाला कोई नहीं कि जीवन की कठिनाइयां, चुनौतियां और उन के हल स्क्रीन पर नहीं बल्कि प्रिंट पेजेज में मिलते हैं.

सोनम रघुवंशी की अपराध गाथा

अब बात इंदौर की सोनम रघुवंशी की जिस की उम्र महज 24 साल है. सोनम इन दिनों जेल में है और उम्मीद है, आने वाले 15-20 साल भी वह जेल में ही रहेगी. वह जब जेल से बाहर आएगी तब कोई उसे लेने फूल या गुलदस्ता ले कर जेल के दरवाजे पर नहीं खड़ा होगा. उस के सामने तब भी एक पहाड़ सी जिंदगी पड़ी होगी, एक स्याह दुनिया और भविष्य होगा और उस के हाथ में उतना ही पैसा होगा जो जेल मैन्युअल के हिसाब से जेल में की गई मेहनत के एवज में उसे मिला होगा.

लेकिन यह युवती अभी इन से भी कड़वे और भयावह सच नहीं सम झ पाएगी. दरअसल, सोचनासम झना तो उस ने सीखा ही नहीं और पेरैंट्स ने सिखाया भी नहीं. अगर उस ने कहीं से भी सीखा होता या पेरैंट्स ने सिखाया होता तो वह पति राजा रघुवंशी की हत्या करने के बजाय उसे स्वीकार लेती.

आजकल की युवतियों के लिए अपने प्यार और शादी के फैसले के बारे में घर वालों को बता देना कोई मुश्किल काम नहीं रह गया है जो वे 70-80 के दशक की हिंदी फिल्मों की नायिका की तरह सिर झुकाए चुन्नी या साड़ी का पल्लू उंगलियों में लपेटते-हकलाते हुए मां या बाप को बताएं कि एक लड़का मु झे पसंद आ गया है. अब वे दोटूक फैसला सुनाती हैं और पेरैंट्स के पास उन से सहमत होने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता. वे मानसिक और सामाजिक तौर पर इस बात के लिए तैयार भी रहते हैं कि बेटा या बेटी इंटरकास्ट मैरिज का फैसला कभी भी सुना सकते हैं. यह एक अच्छी बात है क्योंकि हर किसी को अपनी मरजी से शादी करने का हक है जिस का इस्तेमाल नई पीढ़ी कर भी रही है. आजकल हर दूसरी शादी इंटरकास्ट होती है, इस से सहज सम झा जा सकता है कि इस बदलाव को सहज स्वीकार कर लिया गया है.

जाति थी वजह

सोनम के मामले में हरकोई पूछ और कह रहा है कि जब वह राज कुशवाह को इतना चाहती ही थी तो उस ने उस से ही शादी क्यों नहीं कर ली. बेचारे निर्दोष और मासूम राजा की हत्या करने से क्या मिला उसे. इस सवाल का आसान जवाब जो हर किसी को नहीं सू झ सकता वह यह है कि राज जाति से कुशवाह यानी काछी था जिस की गिनती धर्म के हिसाब से सछूत शूद्रों और संविधान के हिसाब से ओबीसी यानी अन्य पिछड़े वर्ग में होती है.

देश में जो ऊंची जातियां हैं उन में रघुवंशियों की गिनती क्षत्रियों में होती है. यह जाति खुद को राम का वंशज मानती है. रघुवंशियों का अपना एक अलग रुतबा, मुकाम, आनबानशान और ठसक होती है. ये आमतौर पर अपने उसूलों, रीतिरिवाजों और परंपराओं से किसी भी कीमत पर कोई सम झौता नहीं करते. मध्य प्रदेश में इन की आबादी सब से ज्यादा है. रघुवंशी बाहुल्य जिलों में विदिशा, रायसेन, गुना, होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम), नरसिंहपुर और जबलपुर के अलावा रीवा, सतना व पन्ना की गिनती होती है. इस जाति के लोग बड़े पैमाने पर खेतीकिसानी के लिए मशहूर हैं लेकिन अब ये गांवों से निकल कर शहरों में आ कर व्यवसाय भी करने लगे हैं.

शहरों में आ कर रघुवंशी समुदाय के लोग रहनसहन, पहनावे वगैरह से तो आधुनिक हो गए और शिक्षित भी होने लगे लेकिन दिलोदिमाग में बसी अपनी जमींदारी, ठसक, चौधराहट और ऊंचे ठाकुर होने का गुमान व गरूर पूरी तरह नहीं छोड़ पाए.

अब दूसरा सवाल जो बेहद आम है कि सोनम राज के साथ भाग क्यों नहीं गई जो उम्र में भले ही उस से 5 साल छोटा था लेकिन बालिग तो था, लिहाजा कोई अड़ंगा इस शादी में पेश न आता. यह बहुत अहम और दिलचस्प सवाल है जिस के कई जवाब सटीक जान पड़ते हैं. उन में सब से ऊपर यह है कि सोनम अव्वल दर्जे की ऐसी मूर्ख युवती है जो खुद को स्मार्ट, बुद्धिमान और चालाक होने की गलतफहमी पाले बैठे थी. प्रेमी यानी बौयफ्रैंड छोटी जाति का हो, ऊपर से गरीब भी तो बात ‘एक तो करेला, ऊपर से नीम चड़ा’ जैसी हो जाती है. राज कुछ दिनों पहले तक देवी सिंह के करोड़ों के प्लाईवुड के कारोबार में, अदना सा लेकिन, भरोसेमंद मुलाजिम हुआ करता था.

राजकपूर निर्देशित फिल्म ‘प्रेमरोग’ की याद दिलाती सोनम की दास्तां के बारे में एक सच यह भी है जो फिल्म में पद्मिनी कोल्हापुरे की मां बनी नंदा के मुंह से एक दृश्य में बतौर हकीकत उगलवाया गया है. उस का सार यह है कि इन ठाकुरों को औलाद से ज्यादा अजीज अपने उसूल होते हैं. फिल्म 43 साल पुरानी है पर अप्रासंगिक नहीं हुई है. उलटे, दिनोंदिन और प्रासंगिक होती जा रही है. सोनम का मामला उस की ही कड़ी है.

‘प्रेमरोग’ तो सोनम को लग गया लेकिन वह समाज और परिवार से बगावत नहीं कर पाई. शायद उस के मन में यह डर था कि अगर भाग कर राज से शादी की तो घर वाले छोड़ेंगे नहीं. आएदिन ऐसी खबरें मीडिया की सुर्खियां भी बनी रहती हैं जिन में लड़की और लड़के वालों में तलवारें खिंच जाती हैं.

इस के लिए कहीं बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं. 10 जून को जब मीडिया, सोशल मीडिया और घरोंचौराहों में सोनम की चर्चा हो रही थी तब मध्य प्रदेश के ही गुना की एक अदालत में इंटरकास्ट मैरिज के विरोध में जम कर हंगामा मच रहा था. इत्तफाक से इस मामले में भी 23 वर्षीया युवती का नाम सोनम था जिस ने एक विजातीय हमउम्र युवक अजय से कोर्ट मैरिज कर ली थी. दोनों अपनी शादी के सिलसिले में ही बयान देने आए थे. अजय यादव जाति का है जबकि सोनम मीणा जाति की है. बस, इसी बात पर दोनों के घर वाले आपस में भिड़ पड़े. खबर के मुताबिक सोनम के घर वालों ने अजय के घर वालों को ज्यादा कूटा. अगर वक्त पर कोर्ट परिसर में भारी पुलिस बल तैनात न किया जाता तो यहां भी लाशें बिछ जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

प्यार की गरीबी

दूसरे, रईसी में पली सोनम राज के साथ लो प्रोफाइल जिंदगी जीने से भी कतरा रही थी. जिस घर में कारें न हों, एसी न हों, दूसरे शानशौकत और सहूलियतों वाले लग्जरी आइटम व गैजेट्स न हों, और तो और जो घर ही झुग्गी झोंपड़ी सरीखा लगे उस में भला वह कैसे रह पाती.

सोनम ने ‘जिस्म’ फिल्म की बिपाशा बसु बनना पसंद किया जो अपने करोड़पति पति गुलशन ग्रोवर की हत्या के लिए गरीब वकील प्रेमी जौन अब्राहम को राजी कर लेती है. हत्या करने के बाद जौन को पता चलता है कि उसे तो मोहरा बनाया गया है. दरअसल बिपाशा पैसों से प्यार करती है. फिल्म की कहानी चूंकि महेश भट्ट जैसे प्रयोगवादी लेखक ने लिखी थी इसलिए अंत में बिपाशा और जौन दोनों एकदूसरे को गोली मार देते हैं. लेकिन सोनम ने राज को मोहरा नहीं बनाया क्योंकि उसे अपने पिता की नाक और खानदान की इज्जत की भी चिंता थी.

लगता तो ऐसा है कि राज ने उसे मोहरा बनाया था जो राजा की हत्या के बाद विधवा सोनम से शादी कर बैठेबिठाए करोड़पति बन जाता. सोनम की उस के प्रति चाहत और मुहब्बत इस बात से भी सम झ आती है कि पूरे हनीमून (कथित) के दौरान उस ने राजा को सहवास की इजाजत नहीं दी थी. कोई न कोई बहाना बनाती रही थी, कभी कामख्या देवी के दर्शन का तो कभी थकान का.

सोनम के पकड़े जाने के बाद उस के घर वालों ने एक बार भी यह नहीं कहा कि एक बार कहती तो हम उस की शादी राज से करवा देते. उलटे, वे संस्कारों की दुहाई देते फुजूल का बचाव उस का करते रहे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कम से कम सोनम की मां को तो उस के और राज के प्रेमप्रसंग की मालूमात थी. लेकिन उसे घर की इज्जत का हवाला दे कर जाति वाले राजा से ही शादी करने को मजबूर किया गया था.

संपत्ति का लोभ

सोनम का प्लान तो यही लगता है कि राजा के मरने के बाद पैतृक जायदाद में से पति का जो हिस्सा मिलेगा उस से शान से जिंदगी गुजारी जा सकती है. दूसरे, अपने पिता की जायदाद में से भी हिस्सा मिलता. इस के लिए जरूरी था कि कुछ दिन विधवाओं सी जिंदगी जी जाए, फिर सहानुभूति बटोर कर राज या किसी और से शादी कर ली जाए. हर कोई उस का वैधव्य देख कर यही कहता कि अभी उम्र ही क्या है, इतनी बड़ी पहाड़ सी जिंदगी कैसे अकेले काटेगी बेचारी. कोई ठीकठाक लड़का देख शादी कर देना ठीक रहेगा.

काम न आई कुंडली

आजकल तो विधवा विवाह होने लगे हैं. कोई न कोई जरूरतमंद हाथ थाम ही लेगा. अपने समाज में न मिले तो किसी और जाति का भी चलेगा. लेकिन यह कहने की बात है वरना ऊंची जातियों में विधवा की शादी आसानी तो क्या मुश्किल से भी नहीं होती. इसलिए नीची जाति वाले राज कुशवाह के नाम पर मंजूरी मिल सकती थी.

न भी मिलती तो करोड़ों की मालकिन बन जाने के बाद वह किसी को भी चुनने को आजाद रहती. लेकिन दूसरी शादी उस की जन्मकुंडली में है या नहीं, यह बताने को अब कोई पंडित तैयार नहीं. इंदौर के जिस पंडित एन के पांडेय ने दोनों की जन्मकुंडली मिलाई थी उस ने यह नहीं बताया था कि राजा की जिंदगी मरने की हद तक खतरे में आ जाएगी. उस ने तो यह कहा था कि चूंकि दोनों की ही जन्मकुंडली में मंगल दोष है इसलिए शादी हो सकती है और दोनों का जीवन सुखशांति से बीतेगा.

मंगलअमंगल का धंधा

मंगल के चक्कर में कितने अच्छे मैच शादी में तबदील नहीं हो पाते. इस का तजरबा हिंदुओं को है जो यह नहीं सोचते कि बिना जन्मकुंडली मिलाए जो शादियां होती हैं वे ज्यादा टिकाऊ होती हैं. भोपाल की एक प्राइवेट कंपनी के अधिकारी की मानें तो उन के परिवार में जन्मकुंडली मिलाने का रिवाज ही नहीं है. पिछले 40 वर्षों में 5 शादियां उन के खानदान में हुई हैं और सभी सफल हैं. इन अधिकारी के मुताबिक, सालों पहले उन के दादाजी की बहन की कुंडली गांव के पंडित ने 32 गुणों के साथ मिलाई थी. लेकिन शादी के दूसरे साल ही दादाजी के बहनोई एक सड़क हादसे में चल बसे तो उन का भरोसा इन पाखंडों से उठ गया.
मंगलअमंगल का धंधा चलता रहेगा क्योंकि कोई कानून ऐसा नहीं है जो एन के पांडेय जैसे पंडितों को अभियुक्त बना कर कठघरे में खड़ा करे. तरस तो उस मीडिया पर आता है जो सोनम के मामले को और चटपटा बनाते टीआरपी बढ़ाने में जी जान से लगा रहा. इस होड़ में आजतक नाम के न्यूज चैनल के संवाददाता ने उक्त पंडितजी का भी इंटरव्यू लिया जो उच्च और नीच के मंगल का राग अलापते रहे.

इस चैनल की हिम्मत पंडित से यह पूछने की नहीं हुई कि आप ने जब कुंडलियां देखी थीं तो यह कहीं क्यों नहीं दिखा था कि शादी के चंद दिनों बाद ही इतना भयानक हादसा हो सकता है. आप ने तो वरवधू को आशीर्वाद दिया था.
इस मामले से कई सबक मिलते हैं, मसलन यह कि युवाओं को अपने फैसले खुद लेने की हिम्मत जुटानी चाहिए. पेरैंट्स की जायदाद के लालच में सम झौता नहीं कर लेना चाहिए. अलावा इस के, वैवाहिक जीवन की गंभीरता सम झते हुए उस की जिम्मेदारियां उठाने के लिए भी उन्हें तैयार रहना चाहिए. दांपत्य के सफर में कई उतारचढ़ाव आते हैं. उन का सामना पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का हाथ भरोसे और मजबूती से पकड़ कर करना चाहिए. सोनम-राजा रघुवंशी का मामला अब अपवाद नहीं रह गया है. मीडिया ने छांट कर ऐसे मामले दिखाए और छापे जिन में शादी के कुछ दिनों बाद ही पति या पत्नी की मौत यानी हत्या हुई थी.

रही बात सोनम की, तो वह किराए के तीनों हत्यारों और प्रेमी राज सहित सजा भुगतेगी, वहीं, वह एक अवसाद, डर और अविश्वास समाज में फैला गई है जो पहले से ही बहुत थे. ऐसे मामले तो उसे और बढ़ाते हैं.

Hindi Kahani : शादी से इनकार

Hindi Kahani : पिछले 6 महीने से मुझे पुलिस स्टेशन में बुलाया जा रहा है. मुझे शहर में घटी आपराधिक घटनाओं का जिम्मेदार मानते हुए मुझ पर प्रश्न पर प्रश्न तोप के गोले की तरह दागे जा रहे थे. अपराध के समय मैं कब, कहां था. पुलिस को याद कर के जानकारी देता. मुझे जाने दिया जाता. मैं वापस आता और 2-4 दिन बाद फिर बुलावा आ जाता. पहली बार तो एक पुलिस वाला आया जो मुझे पूरा अपराधी मान कर घर से गालीगलौज करते व घसीटते हुए ले जाने को तत्पर था.

मैं ने उस से अपने अच्छे शहरी और निर्दोष होने के बारे में कहा तो उस ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘पकड़े जाने से पहले सब मुजरिम यही कहते हैं. थाने चलो, पूछताछ होगी, सब पता चल जाएगा.’

चूंकि न मैं कोई सरकारी नौकरी में था न मेरी कोई दुकानदारी थी. मैं स्वतंत्र लेखन कर के किसी तरह अपनी जीविका चलाता था. उस पर, मैं अकेला था, अविवाहित भी.

पहली बार मुझे सीधा ऐसे कक्ष में बिठाया गया जहां पेशेवर अपराधियों को थर्ड डिगरी देने के लिए बिठाया जाता है. पुलिस की थर्ड डिगरी मतलब बेरहमी से शरीर को तोड़ना. मैं घबराया, डरा, सहमा था. मैं ने क्या गुनाह किया था, खुद मुझे पता नहीं था. मैं जब कभी पूछता तो मुझे डांट कर, चिल्ला कर और कभीकभी गालियों से संबोधित कर के कहा जाता, ‘शांत बैठे रहो.’ मैं घंटों बैठा डरता रहा. दूसरे अपराधियों से पुलिस की पूछताछ देख कर घबराता रहा. क्या मेरे साथ भी ये अमानवीय कृत्य होंगे. मैं यह सोचता. मैं अपने को दुनिया का सब से मजबूर, कमजोर, हीन व्यक्ति महसूस करने लगा था.

मुझ से कहा गया आदेश की तरह, ‘अपना मोबाइल, पैसा, कागजात, पेन सब जमा करा दो.’ मैं ने यंत्रवत बिना कुछ पूछे मुंशी के पास सब जमा करा दिए फिर मुझ से मेरे जूते भी उतरवा दिए गए.

उस के बाद मुझे ठंडे फर्श पर बिठा दिया गया. तभी उस यंत्रणाकक्ष में दो स्टार वाला पुलिस अफसर एक कुरसी पर मेरे सामने बैठ कर पूछने लगा :

‘क्या करते हो? कौनकौन हैं घर में? 3 तारीख की रात 2 से 4 के बीच कहां थे? किनकिन लोगों के साथ उठनाबैठना है? शहर के किसकिस अपराधी गिरोह को जानते हो? 3 जुलाई, 2012 को किसकिस से मिले थे? तुम चोर हो? लुटेरे हो?’

बड़ी कड़ाई और रुखाई से उस ने ये सवाल पूछे और धमकी, डर, चेतावनी वाले अंदाज में कहा, ‘एक भी बात झूठ निकली तो समझ लो, सीधा जेल. सच नहीं बताओगे तो हम सच उगलवाना जानते हैं.’

मैं ने उस से कहा और पूरी विनम्रता व लगभग घिघियाते हुए, डर से कंपकंपाते हुए कहा, ‘मैं एक लेखक हूं. अकेला हूं. 3 तारीख की रात 2 से 4 बजे के मध्य में अपने घर में सो रहा था. मेरा अखबार, पत्रपत्रिकाओं के कुछ संपादकों से, लेखकों से मोबाइलवार्ता व पत्रव्यवहार होता रहता है. शहर में किसी को नहीं जानता. मेरा किसी अपराधी गिरोह से कोई संपर्क नहीं है. न मैं चोर हूं, न लुटेरा. मात्र एक लेखक हूं. सुबूत के तौर पर पत्रिकाओं, अखबारों की वे प्रतियां दिखा सकता हूं जिन में मेरे लेख, कविताएं, कहानियां छपी हैं.’

मेरी बात सुन कर वह बोला, ‘पत्रकार हो?’

‘नहीं, लेखक हूं.’

‘यह क्या होता है?’

‘लगभग पत्रकार जैसा. पत्रकार घटनाओं की सूचना समाचार के रूप में और लेखक उसे विमर्श के रूप में लेख, कहानी आदि बना कर पेश करता है.’

‘मतलब प्रैस वाले हो,’ उस ने स्वयं ही अपना दिमाग चलाया.

मैं ने उत्तर नहीं दिया. प्रैस के नाम से वह कुछ प्रभावित हुआ या चौंका या डरा, यह तो मैं नहीं समझ पाया लेकिन हां, उस का लहजा मेरे प्रति नरम और कुछकुछ दोस्ताना सा हो गया था. उस ने अपने प्रश्नों का उत्तर पा कर मुझे मेरा सारा सामान वापस कर के यह कहते हुए जाने दिया कि आप जा सकते हैं. लेकिन दोबारा जरूरत पड़ी तो आना होगा.

पहली बार तो मैं ‘जान बची तो लाखों पाए’ वाले अंदाज में लौट आया लेकिन जल्द ही दोबारा बुलावा आ गया. इस बार जो पुलिस वाला लेने आया था उस का लहजा नरम था.

इस बार मुझे एक बैंच पर काफी देर बैठना पड़ा. जिसे पूछताछ करनी थी, वह किसी काम से गया हुआ था. इस बीच थाने के संतरी से ले कर मुंशी तक ने मुझे हैरानपरेशान कर दिया. किस जुर्म में आए हो, कैसे आए हो, अब तुम्हारी खैर नहीं? फिर मुझ से चायपानी, सिगरेट के लिए पैसे मांगे गए. मुझे देने पड़े न चाहते हुए भी. फिर जब वह पुलिस अधिकारी आया, मैं उसे पहचान गया. वह पहले वाला ही अधिकारी था. उस ने मुझे शक की निगाहों से देखते हुए फिर शहर में घटित अपराधों के विषय में प्रश्न पर प्रश्न करने शुरू किए. मैं ने उसे सारे उत्तर अपनी स्मरणशक्ति पर जोर लगालगा कर दिए. कुछ इस तरह डरडर कर कि एक भी प्रश्न का उत्तर गलत हुआ तो परीक्षा में बैठे छात्र की तरह मेरा हाल होगा.

चूंकि उस का रवैया नरम था सो मैं ने उस से पूछा, ‘क्या बात है, सर, मुझे बारबार बुला कर ये सब क्यों पूछा जा रहा है, मैं ने किया क्या है?’

‘पुलिस को आप पर शक है और शक के आधार पर पुलिस की पूछताछ शुरू होती है जो सुबूत पर खत्म हो कर अपराधी को जेल तक पहुंचाती है.’

‘लेकिन मुझ पर इस तरह शक करने का क्या आधार है?’

‘आप के खिलाफ हमारे पास सूचनाएं आ रही हैं.’

‘सूचनाएं, किस तरह की?’

‘यही कि शहर में हो रही घटनाओं में आप का हाथ है.’

‘लेकिन…?’

उस ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘आप को बताने में क्या समस्या है? हम आप से एक सभ्य शहरी की तरह ही तो बात कर रहे हैं. पुलिस की मदद करना हर अच्छे नागरिक का कर्तव्य है.’

अब मैं क्या बताऊं उसे कि हर बार थाने बुलाया जाना और पुलिस के प्रश्नों का उत्तर देना, थाने में घंटों बैठना किसी शरीफ आदमी के लिए किसी यातना से कम नहीं होता. उस की मानसिक स्थिति क्या होती है, यह वही जानता है. पलपल ऐसा लगता है कि सामने जहरीला सांप बैठा हो और उस ने अब डसा कि तब डसा.

इस तरह मुझे बुलावा आता रहा और मैं जाता रहा. यह समय मेरे जीवन के सब से बुरे समय में से था. फिर मेरे बारबार आनेजाने से थाने के आसपास की दुकानवालों और मेरे महल्ले के लोगों को लगने लगा कि या तो मैं पेशेवर अपराधी हूं या पुलिस का कोई मुखबिर. कुछ लोगों को शायद यह भी लगा होगा कि मैं पुलिस विभाग में काम करने वाला सादी वर्दी में कोई सीआईडी का आदमी हूं. मैं ने पुलिस अधिकारी से कहा, ‘सर, मैं कब तक आताजाता रहूंगा? मेरे अपने काम भी हैं.’

उस ने चिढ़ कर कहा, ‘मैं भी कोई फालतू तो बैठा नहीं हूं. मेरे पास भी अपने काम हैं. मैं भी तुम से पूछपूछ कर परेशान हो गया हूं. न तुम कुछ बताते हो, न कुबूल करते हो. प्रैस के आदमी हो. तुम पर कठोरता का व्यवहार भी नहीं कर रहा इस कारण.’

‘सर, आप कुछ तो रास्ता सुझाएं?’

‘अब क्या बताएं? तुम स्वयं समझदार हो. प्रैस वाले से सीधे तो नहीं कुछ मांग सकता.’

‘फिर भी कुछ तो बताइए. मैं आप की क्या सेवा करूं?’

‘चलो, ऐसा करो, तुम 10 हजार रुपए दे दो. मेरे रहते तक अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी. न तुम्हें थाने बुलाया जाएगा.’

मैं ने थोड़ा समय मांगा. इधरउधर से रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे दिए और उस ने मुझे आश्वस्त किया कि मेरे होते अब तुम्हें नहीं आना पड़ेगा.

मैं निश्ंचत हो गया. भ्रष्टाचार के विरोध में लिखने वाले को स्वयं रिश्वत देनी पड़ी अपने बचाव में. अपनी बारबार की परेशानी से बचने के लिए और कोई रास्ता भी नहीं था. मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं था. न मेरा किसी बड़े व्यापारी, राजनेता, पुलिस अधिकारी से परिचय था. रही मीडिया की बात, तो मैं कोई पत्रकार नहीं था. मैं मात्र लेखक था, जो अपनी रचनाएं आज भी डाक से भेजता हूं. मेरा किसी मीडियाकर्मी से कोई परिचय नहीं था. एक लेखक एक साधारण व्यक्ति से भी कम होता है सांसारिक कार्यों में. वह नहीं समझ पाता कि उसे कब क्या करना है. वह बस लिखना जानता है.

अपने महल्ले में भी लोग मुझे अजीब निगाहों से देखने लगे थे, जैसे किसी जरायमपेशा मुजरिम को देखते हैं. मैं देख रहा था कि मुझे देख कर लोग अपने घर के अंदर चले जाते थे. मुझे देखते ही तुरंत अपना दरवाजा बंद कर लेते थे. महल्ले में लोग धीरेधीरे मेरे विषय में बातें करने लगे थे. मैं कौन हूं? क्या हूं? क्यों हूं? मेरे रहने से महल्ले का वातावरण खराब हो रहा है. और भी न जाने क्याक्या. मेरे मुंह पर कोई नहीं बोलता था. बोलने की हिम्मत ही नहीं थी. मैं ठहरा उन की नजर में अपराधी और वे शरीफ आदमी. अभी कुछ ही समय हुआ था कि फिर एक पुलिस की गाड़ी सायरन बजाते हुए रुकी और मुझ से थाने चलने के लिए कहा. मेरी सांस हलक में अटक गई. लेकिन इस बार मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘साहब ने बुलाया है. आप को चलना ही पड़ेगा.’’

यह तो कृपा थी उन की कि उन्होंने मुझे कपड़े पहनने, घर में ताला लगाने का मौका दे दिया. मैं सांस रोके, पसीना पोंछते, पुलिस की गाड़ी में बैठा सोचता रहा, ‘साहब से तो तय हो गया था.’ महल्ले के लोग अपनीअपनी खिड़कियों, दरवाजों में से झांक रहे थे.

थाने पहुंच कर पता चला जो पुलिस अधिकारी अब तक पूछताछ करता रहा और जिसे मैं ने रिश्वत दी थी उस का तबादला हो गया है. उस की जगह कोई नया पुलिस अधिकारी था.

मेरे लिए खतरनाक यह था कि उस के नाम के बाद उस का सरनेम मेरे विरोध में था. वह बुद्धिस्ट, अंबेडकरवादी था और मैं सवर्ण. मैं समझ गया कि अपने पूर्वजों का कुछ हिसाबकिताब यह मुझे अपमानित और पीडि़त कर के चुकाने का प्रयास अवश्य करेगा. इस समय मुझे अपना ऊंची जाति का होना अखर रहा था.

मैं ने कई पीडि़त सवर्णों से सुना है कि थाने में यदि कोई दलित अफसर होता है तो वह कई तरह से प्रताडि़त करता है. मेरे साथ वही हुआ. मेरा सारा सामान मुंशी के पास जमा करवाया गया. मेरे जूते उतरवा कर एक तरफ रखवाए गए. मुझे ठंडे और गंदे फर्श पर बिठाया गया. फिर एक काला सा, घनी मूंछों वाला पुलिस अधिकारी बेंत लिए मेरे पास आया और ठीक सामने कुरसी डाल कर बैठ गया. उस ने हवा में अपना बेंत लहराया और फिर कुछ सोच कर रुक गया. उस ने मुझे घूर कर देखा. नाम, पता पूछा. फिर शहर में घटित तथाकथित अपराधों के विषय में पूछा.

मैं ने अब की बार दृढ़स्वर में कहा, ‘‘मैं पिछले 6 महीने से परेशान हूं. मेरा जीना मुश्किल हो रहा है. मेरा खानापीना हराम हो गया है. मेरी रातों की नींद उड़ गई है. इस से अच्छा तो यह है कि आप मुझे जेल में डाल दें. मुझे नक्सलवादी, आतंकवादी समझ कर मेरा एनकाउंटर कर दें. आप जहां चाहें, दस्तखत ले लें. आप जो कहें मैं सब कुबूल करने को तैयार हूं. लेकिन बारबार इस तरह यदि आप ने मुझे अपमानित और प्रताडि़त किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा,’’ यह कहतेकहते मेरी आंखों से आंसू बहने लगे.

नया पुलिस अधिकारी व्यंग्यात्मक ढंग से बोला, ‘‘आप शोषण करते रहे हजारों साल. हम ने नीचा दिखाया तो तड़प उठे पंडित महाराज.’’

उस के ये शब्द सुन कर मैं चौंका, ‘पंडित महाराज, तो एक ही व्यक्ति कहता था मुझ से. मेरे कालेज का दोस्त. छात्र कम गुंडा ज्यादा.’

‘‘पहचाना पंडित महाराज?’’ उस ने मेरी तरफ हंसते हुए कहा.

‘‘रामचरण अंबेडकर,’’ मेरे मुंह से अनायास ही निकला.

‘‘हां, वही, तुम्हारा सीनियर, तुम्हारा जिगरी दोस्त, कालेज का गुंडा.’’

‘‘अरे, तुम?’’

‘‘हां, मैं.’’

‘‘पुलिस में?’’

‘‘पहले कालेज में गुंडा हुआ करता था. अब कानून का गुंडा हूं. लेकिन तुम नहीं बदले, पंडित महाराज?’’

उस ने मुझे गले से लगाया. ससम्मान मेरा सामान मुझे लौटाया और अपने औफिस में मुझे कुरसी पर बिठा कर एक सिपाही से चायनाश्ते के लिए कहा.

यह मेरा कालेज का 1 साल सीनियर वही दोस्त था जिस ने मुझे रैगिंग से बचाया था. कई बार मेरे झगड़ों में खुद कवच बन कर सामने खड़ा हुआ था. फिर हम दोनों पक्के दोस्त बन गए थे. मेरे इसी दोस्त को कालेज की एक उच्चजातीय कन्या से प्रेम हुआ तो मैं ने ही इस के विवाह में मदद की थी. घर से भागने से ले कर कोर्टमैरिज तक में. तब भी उस ने वही कहा था और अभी फिर कहा, ‘‘दोस्ती की कोई जाति नहीं होती. बताओ, क्या चक्कर है?’’

मैं ने उदास हो कर कहा, ‘‘पिछले 6 महीने से पुलिस बुलाती है पूछताछ के नाम पर. जमाने भर के सवाल करती है. पता नहीं क्यों? मेरा तो जीना हराम हो गया है.’’

‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘अपनी शराफत के चलते कभी कहीं ऐसा सच बोल दिया हो जो किसी के लिए नुकसान पहुंचा गया हो और वह रंजिश के कारण ये सब कर रहा हो?’’

‘‘क्या कर रहा हो?’’

‘‘गुमनाम शिकायत.’’

‘‘क्या?’’ मैं चौंक गया, ‘‘तुम यह कह रहे हो कि कोई शरारत या नाराजगी के कारण गुमनाम शिकायत कर रहा है और पुलिस उन गुमनाम शिकायतों के आधार पर मुझे परेशान कर रही है.’’

‘‘हां, और क्या? यदि तुम मुजरिम होते तो अब तक जेल में नहीं होते. लेकिन शिकायत पर पूछताछ करना पुलिस का अधिकार है. आज मैं हूं, सब ठीक कर दूंगा. तुम्हारा दोस्त हूं. लेकिन शिकायतें जारी रहीं और मेरी जगह कल कोई और पुलिस वाला आ गया तो यह दौर जारी रह सकता है. इसीलिए कह रहा हूं, ध्यान से सोच कर बताओ कि जब से ये गुमनाम शिकायतें आ रही हैं, उस के कुछ समय पहले तुम्हारा किसी से कोई झगड़ा या ऐसा ही कुछ और हुआ था?’’

मैं सोचने लगा. उफ्फ, मैं ने सोचा भी नहीं था. अपने पड़ोसी मिस्टर नंद किशोर की लड़की से शादी के लिए मना करने पर वह ऐसा कर सकता है क्योंकि उस के बाद नंद किशोर ने न केवल महल्ले में मेरी बुराई करनी शुरू कर दी थी बल्कि उन के पूरे परिवार ने मुझ से बात करनी भी बंद कर दी थी. उलटे छोटीछोटी बातों पर उन का परिवार मुझ से झगड़ा करने के बहाने भी ढूंढ़ता रहता था. हो सकता है वह शिकायतकर्ता नंद किशोर ही हो. लेकिन यकीन से किसी पर उंगली उठाना ठीक नहीं है. अगर नहीं हुआ तो…मैं ने अपने पुलिस अधिकारी मित्र से कहा, ‘‘शक तो है क्योंकि एक शख्स है जो मुझ से चिढ़ता है लेकिन यकीन से नहीं कह सकता कि वही होगा.’’

फिर मैं ने उसे विवाह न करने की वजह भी बताई कि उन की लड़की किसी और से प्यार करती थी. शादी के लिए मना करने के लिए उसी ने मुझ से मदद के तौर पर प्रार्थना की थी. लेकिन मेरे मना करने के बाद भी पिता ने उस की शादी उसी की जाति के ही दूसरे व्यक्ति से करवा दी थी.

‘‘तो फिर नंद किशोर ही आप को 6 महीने से हलकान कर रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘यार, मुझे इस मुसीबत से किसी तरह बचाओ.’’

‘‘चुटकियों का काम है. अभी कर देता हूं,’’ उस ने लापरवाही से कहा.

फिर मेरे दोस्त पुलिस अधिकारी रामचरण ने नंद किशोर को परिवार सहित थाने बुलवाया. डांट, फटकार करते हुए कहा, ‘‘आप एक शरीफ आदमी को ही नहीं, 6 महीनों से पुलिस को भी गुमराह व परेशान कर रहे हैं. इस की सजा जानते हैं आप?’’

‘‘इस का क्या सुबूत है कि ये सब हम ने किया है?’’ बुजुर्ग नंद किशोर ने अपनी बात रखी.

पुलिस अधिकारी रामचरण ने कहा, ‘‘पुलिस को बेवकूफ समझ रखा है. आप की हैंडराइटिंग मिल गई तो केस बना कर अंदर कर दूंगा. जहां से आप टाइप करवा कर झूठी शिकायतें भेजते हैं, उस टाइपिस्ट का पता लग गया है. बुलाएं उसे? अंदर करूं सब को? जेल जाना है इस उम्र में?’’

पुलिस अधिकारी ने हवा में बातें कहीं जो बिलकुल सही बैठीं. नंद किशोर सन्नाटे में आ गए.

‘‘और नंद किशोरजी, जिस वजह से आप ये सब कर रहे हैं न, उस शादी के लिए आप की लड़की ने ही मना किया था. यदि दोबारा झूठी शिकायतें आईं तो आप अंदर हो जाएंगे 1 साल के लिए.’’

नंद किशोर को डांटडपट कर और भय दिखा कर छोड़ दिया गया. मुझे यह भी लगा कि शायद नंद किशोर का इन गुमनाम शिकायतों में कोई हाथ न हो, व्यर्थ ही…

‘‘मेरे रहते कुछ नहीं होगा, गुमनाम शिकायतों पर तो बिलकुल नहीं. लेकिन थोड़ा सुधर जा. शादी कर. घर बसा. शराफत का जमाना नहीं है,’’ उस ने मुझ से कहा. फिर मेरी उस से यदाकदा मुलाकातें होती रहतीं. एक दिन उस का भी तबादला हो गया.

मैं फिर डरा कि कोई फिर गुमनाम शिकायतों भरे पत्र लिखना शुरू न कर दे क्योंकि यदि यह काम नंद किशोर का नहीं है, किसी और का है तो हो सकता है कि थाने के चक्कर काटने पड़ें. नंद किशोर ने तो स्वीकार किया ही नहीं था. वे तो मना ही करते रहे थे अंत तक.

लेकिन उस के बाद यह सिलसिला बंद हो गया. तो क्या नंद किशोर ही नाराजगी के कारण…यह कैसा गुस्सा, कैसी नाराजगी कि आदमी आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाए. गुस्सा है तो डांटो, लड़ो. बात कर के गुस्सा निकाल लो. मन में बैर रखने से खुद भी विषधर और दूसरे का भी जीना मुश्किल. पुलिस को भी चाहिए कि गुमनाम शिकायतों की जांच करे. व्यर्थ किसी को परेशान न करे.

शायद नंद किशोर का गुस्सा खत्म हो चुका था. लेकिन अब मेरे मन में नंद किशोर के प्रति घृणा के भाव थे. उस बुड्ढे को देखते ही मुझे अपने 6 माह की हलकान जिंदगी याद आ जाती थी. एक निर्दोष व्यक्ति को झूठी गुमनाम शिकायतों से अपमानित, प्रताडि़त करने वाले को मैं कैसे माफ कर सकता था. लेकिन मैं ने कभी उत्तर देने की कोशिश नहीं की. हां, पड़ोसी होते हुए भी हमारी कभी बात नहीं होती थी. नंद किशोर के परिवार ने कभी अफसोस या प्रायश्चित्त के भाव भी नहीं दिखाए. ऐसे में मेरे लिए वे पड़ोस में रहते हुए भी दूर थे. Hindi Kahani 

Best Hindi Story : मीरा और पराग के रिश्ते से मां क्यों परेशान थी?

Best Hindi Story : मोबाइलफोन लगातार बज रहा था. गहरी नींद सोई मीरा आवाज सुन घबराते हुए उठी. इतनी सुबहसुबह कौन हो सकता है? कहीं कोई बुरी खबर तो नहीं? भय की एक लहर उस के अंदर दौड़ गई. उस ने सामने लगी घड़ी पर नजर डाली. 6 बजे थे. अभी तो बाहर रोशनी भी नहीं हुई थी. वैसे भी सर्दियों की सुबह में 6 बजे अंधेरा ही होता है. इस से पहले कि वह फोन उठाती, फोन कट गया. झुंझलाते हुए उस ने टेबललैंप औन किया. मिस्ड कौल चैक करने पर पाया सासूमां का फोन था. उस के मन में अनेक तरह की शंकाएं उठने लगीं. जरूर कोई गंभीर बात है तभी तो इतनी सुबहसुबह फोन किया है मां ने सोच उस ने पराग को उठाना चाहा. तभी फिर से मोबाइल बजा.

‘‘हैलो मां, नमस्ते. आप कैसी हैं? सब ठीक है न?’’ मीरा के स्वर में घबराहट थी. देर रात तक जगे रहने के बावजूद उस की नींद पूरी तरह खुल गईर् थी.

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‘‘सदा खुश रहो,’’ मीरा के नमस्ते के जवाब में अनुराधा ने उसे आशीर्वाद दिया, ‘‘यहां सब ठीक है. मैं ने तो यह जानने के लिए फोन किया था कि तुम उठीं कि नहीं. आज तुम दोनों की ही छुट्टियां खत्म हो रही हैं. औफिस जाने की तैयारी करनी होगी. अच्छा पराग को भी समय से उठा देना. मेड को टाइम से आने के लिए कह दिया था न? नईनई गृहस्थी है. मुझे पूरी उम्मीद है कि धीरेधीरे तुम सब संभाल लोगी.

अब तक चाय तो पी ही ली होगी. पराग से भी बात करा दे. उसे भी समझा दूं कि वह काम में तेरा हाथ बंटाए. अब वह अकेला नहीं है. तेरी जिम्मेदारी भी उस पर है. दोनों मिल कर ही तो गृहस्थी जमाओगे. वैसे बेटा, आदमियों को कहां इतनी समझ होती है. घर तो औरत को ही संभालना होता है. तुम्हारे ससुर तो खुद एक गिलास पानी भी नहीं ले कर पीते. मैं ही करती हूं उन के सब काम. हालांकि पराग तो नए जमाने का लड़का है और इतने समय से अकेले रहतेरहते घर के कामकाज भी सीख गया है. फिर भी. घर तो तुम्हें ही संभालना होगा,’’ अनुराधा लगातार हिदायतें दे रही थीं.

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मीरा को उन की बातें और लगातार दी जाने वाली हिदायतें सुन बड़ी हैरानी हुई पर वह उन की बातों की अवहेलना नहीं कर सकती थी अत: बोली, ‘‘आप चिंता न करें मां, मैं सब संभाल लूंगी. पराग अभी सो रहे हैं, उठते हैं तो बात कराती हूं,’’ मीरा ने बहुत ही ठहरे हुए स्वर में कहा. कहीं सासूमां को बुरा न लग जाए, इस बात का भी उसे ध्यान रखना था. पराग की नींद डिस्टर्ब न हो, इसलिए वह बाहर ड्राइंगरूम में आ गई थी.

फोन कट गया तो मीरा ने चैन की सांस ली. उन की शादी हुए अभी 1 महीना ही हुआ था. दोनों ही दिल्ली में नौकरी करते थे और यहीं रहते थे. इसलिए शादी के बाद वे यहीं रहेंगे, यह तो पहले से ही तय था. पराग के मम्मीपापा और बाकी रिश्तेदार लखनऊ में रहते थे. पराग की बहन सुधा की शादी हो चुकी थी और वह देहरादून में रहती थी. पराग और मीरा की वैसे तो यह लव मैरिज नहीं थी, पर उन के कुछ दोस्त कौमन थे जिन के कारण उन का परिचय हुआ था.

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संयोग की बात है जब मीरा के पापा उस की जौब लग जाने के बाद उस के लिए लड़के की तलाश कर रहे थे तो मम्मी की एक सहेली ने जो लखनऊ में रहती थीं और पराग के परिवार से परिचित थीं, पराग का रिश्ता सुझाया था. दोनों परिवारों को एकदूसरे का परिवार भी पसंद आया और पराग व मीरा भी. वे दोनों तो इस तरह खुद को आमनेसामने खड़े देख हंसे बिना न रह सके थे. उन्हें क्या पता था कि एक दिन वे दोनों पतिपत्नी बन जाएंगे. हालांकि उन के दोस्तों ने तो यही कहा कि ये अवश्य ही प्यार करते होंगे और इस तरह चक्कर चला कर अपने परिवार वालों करे मना लिया होगा.

शादी बेशक संयोग से हुई थी, पर इस समय तो दोनों ही एकदूसरे का साथ पा कर बेहद खुश थे. कुछ दिन लखनऊ अपने ससुराल व कुछ दिन हनीमून में बिता कर वे दिल्ली वापस आ गए थे. उन्हें काम पर वापस जाने से पहले घर भी सैट करना था. पर जब से उन की शादी हुई थी, मीरा की सास दूर बैठ कर भी हर बात में दखलंदाजी करती थीं. जैसे कि टाइम से सोते हो कि नहीं, खाना बनाती हो या होटल में खाते हो, घर के लिए कैसा और क्याक्या सामान लेना चाहिए, पराग को क्या पसंद है क्या नहीं…

कई बार मीरा को लगता कि साथ न रहते हुए भी उस की सास उन के बीच हमेशा रहती है. सुबहशाम न जाने कितनी बार फोन करतीं. कुछ दिन तो उन का इस तरह चिंता दिखाना उसे अच्छा लगा था, पर फिर जब वे हर बात खोदखोद कर पूछने लगीं तो उसे बहुत अटपटा लगा.

ठीक है कि वे अपने बेटे और बहू की खुशी चाहती हैं, उन्हें कोई तकलीफ न हो,

इसलिए हिदायतें देती रहती हैं, पर वह भी तो अपनी तरह से कुछ करने की आजादी चाहती है, वह भी निर्णय लेने में सक्षम है. उन का बातबात पर टोकना उसे खलने लगा था. लेकिन वह यह सोच कर अपने मन को समझा लेती कि अभी उन की शादी हुए दिन ही कितने हुए हैं. शुरूशुरू की बात है, फिर सासूमां खुद ही ज्यादा टोकना छोड़ देंगी.

‘‘जल्दी कैसे उठ गईं?’’ पराग ने सोफे पर बैठते हुए उबासी लेते हुए पूछा. उसे अभी भी नींद आ रही थी.

‘‘नहीं, मां का फोन आ गया था. तुम बात कर लेना,’’ और फिर चाय बनाने के लिए किचन में चली गई.

‘‘इतनी सुबह? मां को भी चैन नहीं,’’ किचन में उस के पीछे आ खड़े हुए पराग ने मीरा की झूलती लटों से खेलते हुए कहा.

‘‘हां, दूर बैठी भी मिसाइल छोड़ती रहती हैं. बेटे की चिंता में परेशान रहती हैं. क्या पता मैं तुम्हारा ठीक से खयाल रख पा रही हूं या नहीं,’’ मीरा के स्वर में थोड़ा व्यंग्य का पुट था.

‘‘मैं अपना खयाल खुद रख सकता हूं मां यह बात अच्छी तरह जानती हैं. पिछले 2 सालों से अकेला रह रहा हूं. सब मैनेज कर ही रहा था. मैडम, हम तो खाना भी बनाना जानते हैं, यह बात तो आप को भी पता है. तो बताइए नाश्ते और लंच के लिए क्या बनाया जाए? पराग का यों हर चीज को लाइटली लेना उसे बहुत रिलैक्स फील कराता. किसी भी बात को प्रौब्लम बनाने के बजाय तुरंत हल करने में यकीन रखता है.

दोनों मिल कर किचन का काम खत्म कर तैयार हो औफिस के लिए निकल गए. मीरा का औफिस पहले पड़ता था, इसलिए पराग उसे छोड़ कर गया. वह इस बात से खुश थी कि औफिस आनेजाने में उसे अब कोईर् परेशानी नहीं होगी. पहले वह चाटर्ड बस पर निर्भर थी, पर अब आराम से पराग के साथ कार में जा सकती थी. दिल्ली में ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक की समस्या इतनी भीषण है कि इंसान की आधी जिंदगी तो इसी आपाधापी में निकल जाती है. इन दोनों की जिंदगी मजे से गुजर रही थी.

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औफिस हो या फ्रैंड सर्कल, सब मीरा से यही कहते, ‘‘यार तुम कितनी खुशहाल हो. सास दूर रहती हैं, ननद की शादी हो चुकी है. तुम ही घर की बौस हो वरना हम तो सासननद की टोकाटाकी में ही उलझे रहते हैं.’’

‘‘ट्रैजेडी तो यह है कि आजकल की सासें हैं तो बहुत मौर्डन, ऐजुकेटेड भी हैं, नौकरी भी करती हैं, पर जब बात बहू की आती है तो अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए उस के हर काम में कमियां निकालने में पीछे नहीं रहती हैं. मेरी ही सांस को देख लो. टीचर हैं, पर बहू से कैसे व्यवहार करना चाहिए, इस की ट्रेनिंग कभी नहीं ली है,’’ बहुत ही नाटकीय अंदाज में बेला ने एक सांस लेते हुए जब कहा तो सब हंस पड़े. औफिस में बेला का बिंदासपन और हाजिरजवाबी सभी को पसंद थी. हमेशा खिलखिलाती रहती थी, लेकिन केवल औफिस में या घर से बाहर निकलने पर.

‘‘सास के सामने ज्यादा खुश रहो तो उन्हें एक तरह की जलन होती है, मेरा तो ऐक्सपीरियंस यही कहता है. इसीलिए यार घर पहुंचते ही मैं दुखी सा चेहरा बना लेती हूं. अब तो मेरा पति भी इस ट्रिक को समझ गया है, इसलिए इस सिचुएशन को हम ऐंजौय करते है,’’ बेला की बात सुन सब दांतों तले उंगली दबा लेते. उस की फिलौसफी से सब सहमत थे, पर हरकोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं रखता, इसलिए सह रही थीं सास की दखलंदाजी.

‘‘अरे यार, मैं कोई खुशहाल नहीं हूं.

बेशक मेरी सास यहां नहीं रहतीं, लेकिन वे तो

दूर बैठे भी मिसाइलें चलाती रहती हैं. दिन में कईकई बार फोन कर डिटेल में सबकुछ पूछती हैं, राय देती हैं और हिदायतों का पुलिंदा भी फोन पर ही पकड़ा देती हैं’’ मीरा ने मेज पर रखी फाइलों को समेटते हुए कहा. उस के चेहरे पर शिकन साफ दिखाई दे रही थी, ‘‘औफिस में कई बार जब मैं फोन नहीं उठा पाती तो व्हाट्सऐप मैसेज की झड़ी लग जाती है. म्यूट कर के रखा है उन का नंबर वरना सारा दिन मैसेजों की आवाज ही सुननी पड़ती.’’

मीरा की बात सुन सब चौंक गए.

‘‘सच?’’ रमा ने माथे पर हाथ मारते हुए पूछा.

‘‘क्या वे यह भी पूछती हैं कि तुम लव कैसे करते हो आई मीन सैक्स..’’ बेला ने मीरा को कुहनी मारते हुए कहा.

‘‘यार कभी तो सीरियस हो जाया करो,’’ मीरा ने उस के गालों पर चिकोटी काटी, ‘‘जब भी वे वीडियो कौल करती हैं तो मुझे नाइटी बदल सूट या साड़ी पहननी पड़ती है. कई बार पराग उन्हें टालना भी चाहते हैं तो कहती हैं बहू से बात किए बगैर, उस की शक्ल देखे बगैर चैन नहीं पड़ता, मीरा ने सास की नकल उतारी.

औफिस से निकलते हुए मीरा सोच रही थी कि शुक्र है पराग इस बात को समझ रहे हैं कि मां जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करती हैं. अकसर कहते भी हैं, ‘‘मां अगर हमारे साथ रह रही होतीं तो न जाने क्या होता. मैं तो तुम दोनों के बीच सैंडविच ही बन जाता. दूर बैठ कर भी पलपल की खबर रखना चाहती हैं तो मैं तो उस स्थिति के बारे में सोच कर ही सहम जाता हूं.’’

‘‘तुम्हें ले कर शायद मां बहुत ज्यादा पजैसिव हैं.’’

मीरा की बात सुन पराग खिलखिला कर हंस पड़ा.

‘‘इकलौता होने का परिणाम है. पजैसिव तो वे सुधा को ले कर भी हैं.’’

‘‘फिर तो उस की लाइफ में भी दखल

देती होंगी…’’

मीरा की बात सुन पराग फिर हंसा, ‘‘वहां मुमकिन नहीं है, क्योंकि सुधा की सास बैलिस्टिक मिसाइल हैं, सीधे टारगेट पर गिरती हैं, मां की साधारण मिसाइलें वहां नहीं चल पातीं. उस की सास के सामने तो मां के होंठ ही सिल जाते हैं.’’

‘‘फिर तो सुधा की सास से ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी, ताकि तुम्हारी मां के वारों से बचा जा सके,’’ मीरा ने भी हंसतेहंसते जवाब दिया.

‘‘अरे चलने दो न मिसाइलें, अगर उन्हें खुशी मिलती है तो… कब तक चलाएंगी… शुरुआती दिनों की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा,’’ पराग ने समझाया.

‘‘तो फिर चलने दो,’’ मीरा ने पराग की बांहों में झूलते हुए कहा.

लौटते वक्त अकसर पराग उसे तब नहीं ले पाता था, जब वह फील्ड में होता था. उस दिन भी ऐसा ही हुआ. इसलिए उस दिन उसे घर पहुंचतेपहुंचते 7 बज गए. पराग भी तभी लौटा.

कपड़े चेंज कर मीरा कोल्ड कौफी बनाने जैसे ही किचन में घुसी कि तभी उस

का मोबाइल बज उठा. जब सासूमां को पता चला कि वह अभी आई है तो बोली, ‘‘इतनी देर घर से बाहर रहोगी तो घर की व्यवस्था बिगड़ जाएगी. टाइम से आ जाया करो. अब खाना घर पर बनाओगी या बाहर से और्डर करोगी… आजकल तो यह फैशन ही बन गया है कि रेस्तरां से खाना मंगवा लो.’’

मीरा की सास उसे कुछ बोलने का मौका

ही नहीं दे रही थीं. उस ने स्पीकर औन कर

दिया कि पराग भी बात कर सके, पर वह तो कौफी पीतेपीते उन की बातों का जैसे मजा ले

रहा था.

‘‘मैं इतनी दूर बैठी हूं वरना आ जाती.

तुम्हें थोड़ी मदद हो जाती. फिर तुम्हारे ससुर

भी तो ज्यादा ट्रैवल नहीं कर सकते. उन्हें छोड़ कर मैं कहीं नहीं जाती. इधर सुधा की भी डिलीवरी होने वाली है. उस की सास का कहना है कि पहला बच्चा है, इसलिए परंपरा के

अनुसार वह मायके में ही होना चाहिए… अब तुम लोग भी प्लान करो… 6 महीने हो गए हैं… लेकिन तब नौकरी छोड़ देना… बच्चे पालना

कोई हंसीखेल नहीं है. मैं तुम्हें सब समझा दूंगी कि बच्चे की परवरिश कैसे की जाती है…’’

मीरा की सास लगातार मिसाइल छोड़ रही थीं और वह चुपचाप बैठी धीरेधीरे कौफी के सिप लेते हुए सोच रही थी कि कहां से लाए वह बैलिस्टिक मिसाइल.

Romantic Hindi Story : दिल के करीब

Romantic Hindi Story : ‘‘आ ओ, तुम यहां बैठ जाओ,’’ समीर ने प्रीति को अपने बगल में खड़ा देखा तो अपनी सीट से उठते हुए कहा.

‘‘नहीं, तुम बैठो, मुझे अगले स्टैंड पर उतरना है.’’

‘‘तुम बैठो, तुम्हें खड़ा होने में तकलीफ हो रही है,’’ उस ने फिर आग्रह किया तो प्रीति उस की सीट पर बैठ गई.

बस में खचाखच भीड़ थी. तिल भर भी पैर रखने की जगह नहीं थी. प्रीति का एक पैर जन्मजात खराब था. इसलिए थोड़ा लंगड़ा कर चलती थी. नीलम ठीक उस के पीछे खड़ी थी. मुसकराती हुई बोली, ‘‘चलो तुम्हारी तकलीफ समझाने वाला कोई तो मिला.’’

अगले स्टैंड पर दोनों सहेलियां उतर गईं. समीर भी उन के पीछेपीछे उतरा.

‘‘तुम्हारी सहेली के साथ मैं ने अन्याय किया,’’ वह प्रीति को देखते हुए मुसकरा कर बोला, ‘‘लेकिन क्या करूं, सीट एक थी और तुम दो.’’

‘‘कोई बात नहीं, अगली बार तुम मुझे लिफ्ट दे देना,’’ नीलम भी मुसकराते हुए बोली तो समीर ने पूछा, ‘‘वैसे, तुम दोनों यहां कहां रहती हो?’’

‘‘बगल में ही, गौरव गर्ल्स होस्टल में,’’ नीलम ने बताया.

‘‘अच्छा है, अब तो हमारा इसी स्टैंड से कालेज आनाजाना होता रहेगा. मैं भी थोड़ी दूर पर ही रहता हूं. मेरे बाबूजी एक कंपनी में जौब करते हैं और यहीं उन्होंने एक अपार्टमैंट खरीदा हुआ है.’’ समीर, प्रीति और नीलम एक ही कालेज में थे. आज कालेज में उन का पहला दिन था.

प्रीति आगरा की रहने वाली थी और नीलम लखनऊ की. दोनों गौरव गर्ल्स होस्टल में एक रूम में रहती थीं. प्रीति के पिताजी एक अच्छे ओहदे वाली सर्विस में थे, किंतु असमय उन का देहांत हो गया था जिस के कारण उस की मां को अनुकंपा के आधार पर उसी औफिस में क्लर्क की नौकरी मिल गई थी.

प्रीति के बाबूजी बहुत पहले अपना गांव छोड़ कर आगरा में आ गए थे और यहीं उन्होंने एक छोटा सा मकान बना लिया था. गांव की जमीन और मकान उन्होंने बेच दिया था. प्रीति की मां चाहती थीं कि वह आईएएस की तैयारी करे ताकि एक ऊंची पोस्ट पर जा कर अपनी विकलांगता के दर्द को भुला सके, इसलिए उन्होंने उसे दिल्ली में एमए करने के लिए भेजा था. प्रीति को शुरू से ही साइकोलौजी में गहरी रुचि थी और बीए में भी उस का यह फेवरेट सब्जैक्ट था इसलिए उस ने इसी सब्जैक्ट से एमए करने का विचार किया. प्रीति को शुरू से ही कुछ सीखने और अधिकाधिक ज्ञानार्जन करने की इच्छा थी. वह साइकोलौजी में शोध कार्य करना चाहती थी और भविष्य में किसी कालेज में लैक्चरर बनने की ख्वाहिश पाले हुए थी.

नीलम एक बड़े बिजनैसमैन की बेटी थी. उस के पिताजी चाहते थे कि उन की बेटी दिल्ली के किसी कालेज से एमए कर ले और उस की सोसायटी मौडर्न हो जाए क्योंकि आजकल बिजनैसमैन के लड़के भी एक पढ़ीलिखी और मौडर्न लड़की को शादी के लिए प्रेफर करते थे. इसलिए उस ने दिल्ली के इसी कालेज में ऐडमिशन ले लिया था और ईजी सब्जैक्ट होने के कारण साइकोलौजी से एमए करना चाहती थी. समीर के पिताजी उसे आईएएस बनाना चाहते थे और समीर भी इस के लिए इच्छुक था, इसलिए वह भी साइकोलौजी से एमए करने के लिए कालेज में ऐडमिशन लिए हुए था.

प्रीति एक साधारण परिवार की थी और स्वभाव से भी बहुत ही सरल, इसलिए उस की वेशभूषा और पोशाकें भी साधारण थीं. पर वह सुंदर व स्मार्ट थी. उसे बनावशृंगार और मेकअप पसंद नहीं था किंतु दूसरी ओर नीलम सुंदर और छरहरे बदन की गोरी लड़की थी और अपने शरीर की सुंदरता पर उस का सब से ज्यादा ध्यान था. वह मेकअप करती और प्रतिदिन नईनई ड्रैस पहनती. कालेज में जहां प्रीति अपनी किताबों में उलझी रहती वहीं नीलम अपनी सहेलियों के साथ गपें मारती और मस्ती करती.

एक दिन प्रीति लंच के समय कालेज की लाइब्रेरी में कुछ किताबों से कुछ नोट्स तैयार कर रही थी. तभी नीलम उस के पास आई और बोली, ‘‘अरे पढ़ाकू, यह लंच का समय है और तुम किताबों से माथापच्ची कर रही हो जैसे रिसर्च कर रही हो. चलो चल कर कैफेटेरिया में चाय पीते हैं.’’

‘‘तुम जाओ, मैं थोड़ी देर बाद आऊंगी,’’ प्रीति ने कहा तो नीलम चली गई.

तभी उस ने महसूस किया कि उस के पीछे कोई खड़ा है. उस ने पलट कर पीछे की ओर देखा तो समीर था.

बस में मिलने के बाद समीर आज पहली बार उस के पास आ कर खड़ा हुआ था. क्लास में कभीकभी उस की ओर देख लिया करता था, किंतु बात नहीं करता था.

‘‘प्रीति सभी लोग कैफेटेरिया में चाय पी रहे हैं और तुम यहां बैठ कर नोट्स बना रही हो? अभी तो परीक्षा होने में काफी देर है. चलो, चाय पीते हैं.’’

‘‘बाद में आऊंगी समीर, थोड़े से नोट्स बनाने बाकी हैं, पूरा कर लेती हूं.’’

‘‘अब बंद भी करो,’’ समीर ने उस की नोटबुक को समेटते हुए कहा.

‘‘अच्छा चलो,’’ प्रीति भी किताबों को नोटबुक के साथ हाथ में उठाते हुए उठ खड़ी हुई.

जब समीर और प्रीति कैफेटेरिया में पहुंचे तो वहां पहले से ही नीलम अपनी कुछ क्लासमेट्स के साथ बैठ कर चाय पी रही थी. अगलबगल और भी कई लड़केलड़कियां थीं.

‘‘आ गई पढ़ाकू,’’ सविता ने उस को देखते हुए चुटकी ली.

‘‘मैं ने कहा, तो मेरे साथ नहीं आई. अब समीर के एक बार कहने पर आ गई. हां भई, उस दिन बस में उठ कर अपनी सीट जो तुम्हें औफर की थी. अब उस का कुछ खयाल तो रखना ही पड़ेगा न.’’ नीलम की बात सुन कर उस की सहेलियां हंसने लगीं.

समीर कुछ झोंप सा गया. बात आईगई हो गई किंतु इस के बाद प्रीति और समीर अकसर आपस में मिलते. प्रीति को साइकोलौजी के कई टौपिक्स पर बहुत ही अच्छी पकड़ थी. उस ने साइकोलौजी में कई जानेमाने लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन किया था. जब कभी क्लास में कोई लैक्चरर आता तो उस विषय के ऐसे गंभीर प्रश्नों को उठाती कि सभी उस की ओर ताकने लगते.

समीर को उस के पढ़ने में काफी मदद मिलती. समय के साथसाथ उन के बीच आपसी लगाव बढ़ रहा था. उन के बीच का गहराता संबंध कालेज में चर्चा का विषय था. कुछ साथी उस पर चुटकियां लेने से नहीं चूकते.

‘लंगड़ी ने समीर को अपने रूपजाल में फंसा लिया है,’ कोई कहता तो कोई उन दोनों की ओर इशारा करते हुए अपने मित्र के कान में कुछ फुसफुसाता, जिस का एक ही मतलब होता था कि उन दोनों के बीच कुछ पक रहा है. अब वह किसकिस को जवाब देता. इसलिए चुप रहता.

वैसे भी समीर अपने कैरियर के प्रति सीरियस था. उसे आईएएस की तैयारी करनी थी जिस में साइकोलौजी को मुख्य विषय रखना था. वह इस विषय के बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त कर लेना चाहता था. उधर प्रीति को इसी विषय के किसी टौपिक पर रिसर्च करना था. इसलिए दोनों के अपनेअपने इंटरैस्ट थे. किंतु लगातार एकदूसरे के साथ संपर्क में रहने के कारण उन के अंदर प्रेम का भी अंकुरण होने लगा था जिस को दोनों महसूस तो करते किंतु इस की आपस में कभी चर्चा नहीं करते.

ऐसे ही कब 2 वर्ष गुजर गए उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों ने एमए फर्स्ट डिवीजन से पास कर लिया. फिर समीर ने आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली में ही एक कोचिंग जौइन कर ली और प्रीति एक प्रोफैसर के अंडर पीएचडी करने लगी.

नीलम ने किसी तरह एमए किया और घर चली गई. उस के पिता ने उस की शादी एक बिजनैसमैन से कर दी. उस के निमंत्रण पर प्रीति उस की शादी में गई. उस ने समीर को भी निमंत्रण दिया था लेकिन किसी कारणवश समीर नहीं पहुंच पाया. नीलम ने प्रीति से वादा किया था कि भले ही वह उस से दूर है लेकिन जब कभी वह याद करेगी वह जरूर उस से मिलेगी. बिछुड़ते वक्त दोनों सहेलियां खूब रोईं.

इधर समीर और प्रीति के बीच दूरी बढ़ी तो लगाव भी कम होने लगा. उन के बीच कुछ महीनों तक तो फोन पर संपर्क होता रहा, फिर धीरेधीरे वह समाप्त हो गया. यही दुनियादारी है. कभी समीर जब तक उस से एक बार नहीं मिल लेता उसे चैन न मिलता, अब उसे उस की याद ही नहीं रही. प्रीति ने भी उस से बात करनी बंद कर दी.

जीवन किसी का भी हर वक्त एकजैसा कहां रहता है. यह कोई जानता भी तो नहीं कि कब किस के साथ क्या घट जाए. प्रीति अभी दिल्ली में ही थी कि एक दिन सुबह सुबह ही उसे खबर मिली कि उस की मां को हार्टअटैक आया है और वह अस्पताल में भरती है. सुनते ही वह आगरा के लिए भागी किंतु वहां पहुंचने पर मालूम हुआ कि उस की मां अब दुनिया में नहीं रहीं.

प्रीति पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह फफक कर रोने लगी. अब उस का एकमात्र सहारा मां भी उसे छोड़ गई थीं. अस्पताल में वह मां के शव को पकड़ कर रो रही थी. उस को सांत्वना देने वाला कोई नहीं था. उस की मां के औफिस वाले आए हुए थे. उन लोगों ने कहा, ‘‘बेटी, अब अपने को संभाल…यह समय रोने का नहीं है. उठो, अब मां का दाहसंस्कार करने की सोचो…अब आग भी तुम्हें ही देनी है.’’

इस दुखभरी घड़ी में अपनों की कितनी याद आती है. उस ने समीर को फोन लगाया लेकिन उस का फोन तो डैड था. शायद उस ने नंबर बदल लिया था. अंतिम बार जब उस से भेंट हुई थी तो कहा था, अब दूसरा सिम लेगा. हारथक कर उस ने नीलम को याद किया. नीलम से उस की शादी में अंतिम बार भेंट हुई थी. वैसे भी उस से कभीकभी बातें होती रहती थीं. उस के हस्बैंड की प्रयागराज में एक बड़ी कपड़े की दुकान थी. वह खुले विचारवाला युवक था, इसलिए नीलम को कहीं आनेजाने में रोक नहीं थी.

नीलम खबर सुनते ही आगरा के लिए अपनी गाड़ी से चल पड़ी. प्रीति के जिम्मे अभी काफी काम थे. अस्पताल का बिल चुकाना, मां का दाहसंस्कार क्रिया करना और अकेले पड़े घर को संभालना. एक युवती जिस को दुनियादारी का भी कोई ज्ञान न हो और जिस की जिंदगी मां पिता की छत्रछाया में बीती हो, व जिस को घर संभालने का कोई व्यावहारिक ज्ञान न हो, अचानक इस तरह की विपत्ति पड़ने पर क्या स्थिति हो सकती है, यह तो वही समझा सकती है जिस के सिर पर यह अचानक बोझ आ पड़ा हो.

इस स्थिति में पड़ोसी भी बहुत काम नहीं आते सिवा सांत्वना के कुछ शब्द बोल देने के. और जिस का कोई अपना न हो उस के लिए तो यह क्षण बड़े ही धैर्य रखने और आत्मबल बनाए रखने का होता है और वह भी तब जब कोई अपना बहुत ही करीबी उसे छोड़ कर चला गया हो. सब से बड़़ी दिक्कत यह थी कि उस के पास पैसे नहीं थे और मां के बैंक अकाउंट का उस के पास कोई लेखाजोखा न था. पिछले महीने मां ने उस के खाते में जो पैसा ट्रांसफर किया था वह अब तक खर्च हो चुका था.

नीलम से वह कुछ मांगना तो न चाहती थी किंतु उस के पास इस के सिवा कोई रास्ता भी नहीं बचा था, इसलिए उस ने उस से कुछ मदद करने के लिए कहा. नीलम ने चलते वक्त चैकबुक और अपना डैबिट कार्ड भी पास में रख लिया. नीलम ने गांव के अपने सहोदर चाचाजी को बुला लिया जिन्होंने प्रीतिकी मां के दाहसंस्कार करवाने में बहुत मदद की. नीलम ने अस्पताल के सारे बिल भर दिए और मां के दाहसंस्कार व पारंपरिक विधि में होने वाले दूसरे आवश्यक खर्च को वहन किया.

प्रीति दकियानूसी विचारों वाली युवती नहीं थी, इसलिए उस ने विद्युत शवदाह द्वारा अपनी मां का दाहसंस्कार किया और अन्य पारंपरिक क्रियाएं भी बहुत सादे ढंग से संपन्न कीं. जब तक प्रीति सारी क्रियाओं से निबट नहीं गई तब तक नीलम उस के साथ रही.

परिस्थितियां चाहे जितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों मनुष्य को उस से तो बाहर निकलना ही पड़ता है और प्रीति भी इस से निकल तो गई किंतु वह जिस खालीपन का एहसास कर रही थी उसे भरना बहुत ही मुश्किल था.

कुछ समय बाद नीलम प्रयागराज लौट गई और प्रीति अपने मकान को एक विश्वस्त आदमी को किराए पर दे कर अपना रिसर्च वाला काम पूरा करने के लिए दिल्ली लौट आई. उसे पता चला कि उस की मां ने अपने नाम से एक इंश्योरैंस भी कराया था जिस का अच्छाखासा पैसा नौमिनी होने के कारण उसे मिल गया.

मां के बैंक अकाउंट में भी काफी पैसे थे, इसलिए उस को अपने रिसर्च के काम में कोई दिक्कत न आई. उस ने नीलम का सारा पैसा लौटा दिया. समय बीतता गया और उस के साथसाथ प्रीति भी पहले से ज्यादा समझदार व परिपक्व होती गई. उसे आगरा के ही एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई.

इस दुनिया में कहां किसी को किसी से मतलब होता है. वह अकेली थी. समीर जो कभी उस के दिल के करीब आ चुका था उस से भी उस का संपर्क टूट गया था. नीलम अपने घर चली गई थी जिस से कभीकभी फोन पर बातचीत होती रहती थी.

लड़कियों की शादी में तो वैसे ही काफी दिक्कतें होती हैं और उस का तो एक पैर भी खराब था. और उस की शादी के बारे में सोचने वाला भी कोई नहीं था. जो लोग उस के संपर्क में आते थे, वे उस की सुंदरता से आकर्षित हो कर आते थे न कि उस का जीवनसाथी बनने के लिए. इसलिए ऐसे लोगों से वह हमेशा ही अपने को दूर रखती थी. अब तो उस की जिंदगी का एक ही मकसद था घर से कालेज जाना, वहां मनोयोग से छात्रों को पढ़ाना और शाम को घर लौट कर मनोविज्ञान की पुस्तकों का गहरा अध्ययन करना.

इधर, वह मनोविज्ञान पर एक किताब लिख रही थी जिस से उस का खालीपन कट जाता था. कालेज के उस के सहकर्मी पढ़ाने में कम कालेज की आपसी राजनीति में ज्यादा इंटरैस्ट लेते थे और उन की इन बेवजह की चर्चाओं से वह अपने को हमेशा ही दूर रखती थी, इसलिए उन लोगों से भी उस का ज्यादा संबंध नहीं था.

किंतु कालेज के प्रिंसिपल उस को बहुत सम्मान देते थे क्योंकि उन की निगाहों में उसे इतनी कम उम्र में काफी अच्छी जानकारी थी, इसलिए वे उस की हर संभव मदद भी करते थे. कालेज के छात्र भी उस की कक्षाओं को कभी भी नहीं छोड़ते थे क्योंकि उस से अच्छा लैक्चर देने वाला कालेज में कोई अन्य लैक्चरर नहीं था.

एक दिन सुबह उस ने अखबार में देखा कि समीर नाम का कोई आईएएस अधिकारी उस के शहर में जिला अधिकारी बन कर आया हुआ है.

समीर नाम ने ही उस के दिल में हलचल पैदा कर दी. वह सोचने लगी यह वही समीर तो नहीं जो कभी उस के दिल के बहुत करीब हुआ करता था और घंटों मनोविज्ञान के किसी टौपिक पर उस से चर्चा करता था. क्या समीर आईएएस बन गया?

यह प्रश्न उस के जेहन में कौंध रहा था और वह बहुत देर तक समीर के साथ बिताए गए उन पलों को याद कर रही थी जो 5 वर्ष बाद भी अभी तक वैसे ही तरोताजा थे जैसे यह बस कुछ पलों पहले की बात हो.

यही पता लगाने के लिए एक दिन वह उस के औफिस पहुंची तो पता लगा कि साहब अभी मीटिंग में व्यस्त हैं. दूसरे दिन समीर से मिलने के लिए उस के चैंबर में जाना चाहा तो, दरवाजे पर खड़े चपरासी ने उसे रोक दिया और उस से स्लिप मांगी. उस ने सोचा, पता नहीं वही समीर है या कोई और, इसलिए उस ने चैंबर में उस से मिलने का विचार त्याग दिया. वह सोचने लगी वैसे तो जिलाधिकारी आम आदमी के हितों के लिए जिला में पदस्थापित होता है और उस से मिलने के लिए कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र है लेकिन अफसरशाही ने आम आदमी से जिलाधिकारी को कितना दूर कर दिया है.

वैसे जिलाधिकारी से उस के द्वारा समयसमय पर लगाए जाने वाले जनता दरबार में भी आसानी से भेंट हो सकती थी किंतु उस के बारे में जानने की तीव्र जिज्ञासा इतनी थी कि वह बहुत समय तक इस के लिए इंतजार नहीं कर सकती थी. सो, जिलाधिकारी द्वारा राजस्व से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिए किए जाने वाले कोर्ट के दौरान उस ने उसे देखने का मन बनाया.

उसे किसी ने बताया था कि उस दिन जिलाधिकारी न्यायालय में मुकदमे की सुनवाई करेंगे. जब वह उस के न्यायालय में पहुंची तो समीर मुकदमे की कोई फाइल देख रहा था. वह न्यायालय में खड़ी थी किंतु समीर ने उसे नहीं देखा और वह ?ाट न्यायालय के कमरे से बाहर आ गई. फिर अपने घर पहुंची. अब उस ने सोचा कि वह उस के आवास में जा कर मिलेगी. जब वह उस के आवास पहुंची तो फिर चपरासी ने स्लिप मांगी. उसे लगा, वह तो लड़की है, लोग जाने उस के बारे में क्याक्या सोचने लगें, इसलिए उस से बिना मिले ही वापस घर लौट आई.

समीर को जिला में पदस्थापित हुए 4 महीने से अधिक हो गए थे, किंतु उन दोनों की मुलाकात नहीं हुई थी. अब तक मनोविज्ञान पर प्रीति की लिखी पुस्तक ‘आने वाली पीढि़यां और मनोविज्ञान’ को छापने के लिए दिल्ली का पाठ्यपुस्तकों से संबंधित एक प्रकाशक तैयार हो गया था. पुस्तक की पांडुलिपि उस ने प्रकाशक को सौंप दी थी जो अब मुद्रण के लिए भेजी जा चुकी थी.

अगले महीने उस की प्रतियां तैयार हो कर आ जाने वाली थीं और पुस्तक का विमोचन उस के कालेज के हौल में होना तय हुआ था. प्रिंसिपल के आग्रह पर जिलाधिकारी समीर ने भी विमोचन समारोह में आना स्वीकार कर लिया था और उसी के हाथों उस की पुस्तक का विमोचन होना था.

काम की बहुत ज्यादा व्यस्तता के कारण समीर का ध्यान इस ओर नहीं गया था कि इस की लेखिका वही प्रीति है जो कभी दिल्ली में उस के साथ मनोविज्ञान में एमए कर रही थी. पिंसिपल साहब खुद इन्विटेशन ले कर गए थे और प्रीति ने उन से कभी समीर की चर्चा नहीं की थी.

प्रीति यह सोच कर काफी उत्सुक और रोमांचित थी कि उस की पुस्तक का विमोचन समीर के हाथों होगा और उसी के द्वारा वह सम्मानित की जाएगी. वह सोच रही थी कि वह क्षण कैसा होगा जब वह पहली बार इतने दिनों के बाद समीर के सामने जाएगी. आज वह दिन आ ही गया था.

रात में उसे नींद ठीक से नहीं आई थी. बारबार उसे समीर की बातें, उस के साथ घंटों मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं पर हुई चर्चाएं याद आ रही थीं. उस समय समीर उस से बारबार कहता था कि वह आईएएस बन कर समाज की सेवा करना चाहता है और अब उस की मनोकामना पूरी हो गईर् थी. उस ने जो सोचा था उसे वह मिल गया था.

क्या समीर की शादी हो गई है या अभी भी वह कुंआरा है, यह प्रश्न भी उस के मन में बारबार कौंध रहा था. वह सोच रही थी कि यदि समीर की शादी हो गई है तो उस की पत्नी कैसी होगी. यदि समीर ने उसे देख कर पुरानी बातों को कुरेदना शुरू किया तो उस की पत्नी की प्रतिक्रिया क्या होगी? कहीं वह उस के संबंधों को ले कर आशंकित तो न हो जाएगी.

उस के मन में पहली बार इतना उत्साह था. दिल में हलचल थी. वहीं, अंदर से समीर से मिलने का एक मधुर एहसास भी था. उस ने अपनी सब से अच्छी साड़ी निकाली और पहली बार अपना इतनी देर तक शृंगार किया. आज सच में वह काफी सुंदर लग रही थी.

पुस्तक विमोचन समारोह के लिए कालेज के हौल को काफी सजाया गया था. शहर के कई गणमान्य व्यक्तियों को भी बुलाया गया था. दूसरे कालेजों के शिक्षक और कई विद्वानों को भी आमंत्रित किया गया था. सब के खानेपीने का इंतजाम पुस्तक के प्रकाशक की ओर से था.

वह कालेज रिकशा से जाती थी, किंतु आज प्रिंसिपल ने उसे लाने के लिए अपनी गाड़ी ड्राइवर के साथ भेजी थी और कालेज के एक जूनियर लैक्चरर को भी साथ लगा दिया था.

जब वह कालेज के हौल में पहुंची तो अधिकतर मेहमान आ चुके थे. लाउडस्पीकर पर कोई पुराना संगीत काफी कम आवाज में बज रहा था. पुस्तक विमोचन की सारी आवश्यक तैयारियां कर ली गई थीं. अब जिलाधिकारी के आने की प्रतीक्षा थी.

तभी जिलाधिकारी समीर के आने का माइक पर अनाउंसमैंट हुआ. समीर के स्टेज पर पहुंचते ही सभी उपस्थित मेहमान उस के सम्मान में खड़े हो गए.  प्रिंसिपल ने समीर का स्टेज पर स्वागत किया और उन्हें अपनी बगल में विशेष अतिथि के रूप में बैठाया. ठीक उस के बगल में प्रीति भी बैठी हुई थी. प्रीति ने समीर को देख कर हाथ जोड़े तो वह अप्रत्याशित रूप से उस को स्टेज पर देख कर विस्मित होते हुए बोला, ‘‘अरे तुम, प्रीति?…यहां?’’

‘‘क्या आप एकदूसरे को पहचानते हैं?’’ प्रिंसिपल ने पूछा.

‘‘हम दोनों ने एक ही साथ दिल्ली में एक ही कालेज से साइकोलौजी में एमए किया है.’’

‘‘लेकिन प्रीति ने यह कभी नहीं बताया,’’ प्रिंसिपल ने अब प्रीति की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘क्यों प्रीति, इतना बड़ा राज तुम छिपाए हुए हो. मुझे तो कम से कम बताया होता.’’

प्रीति प्रिंसिपल को क्या बताती कि उस ने कई बार समीर से मिलने की कोशिश की थी लेकिन कुछ संकोच, कुछ झिझक और परिस्थितियों ने उसे उस से नहीं मिलने दिया और चाह कर भी वह समीर से अपने संबंधों को अपने सहकर्मियों के साथ साझा न कर पाई.

‘‘समीर तुम से मिलने की मैं ने बहुत बार कोशिश की, लेकिन मिल नहीं पाई,’’ वह सकुचाते हुए धीरे से बोली.

‘‘अब यह बहानेबाजी न चलेगी प्रीति. फंक्शन के बाद मैं तुम्हारे घर पर आऊंगा. मां कैसी हैं?’’

सुनते ही प्रीति की आंखें नम होने लगीं और वह इस का कोई जवाब नहीं दे पाई तो प्रिंसिपल ने मामले की नाजुकता को समझाते हुए, बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, ‘‘इत्मीनान से इस संबंध में बातें होंगी. अभी हम लोग पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम शुरू करते हैं.’’

पुस्तक का विमोचन करते हुए समीर ने प्रीति की सादगी, नम्रता और उस के कोमल भावों की विस्तृत चर्चा करते हुए अपने कालेज के दिनों की यादों को सब के साथ साझा करते हुए कहा कि प्रीति कालेज में एक ऐसी लड़की थी जिस से हमारे प्रोफैसर भी बहुत प्रभावित थे. प्रीति को साइकोलौजी पर जितनी पकड़ है उतनी बहुत कम लोगों को होती है. हमें गर्व है कि इस शहर में हमारे बीच प्रीति जैसी एक विदुषी हैं.’’

समीर की बातों से पूरा हौल तालियों से गड़गड़ाने लगा तब प्रीति ने महसूस किया कि समीर, जिस के बारे में उस ने सोचा था कि वह उसे भूल गया है, बिलकुल उस की थोथी समझा थी. उस के दिल में उस के प्रति अभी भी उतना ही लगाव और प्रेम है जितना कालेज के दिनों में हुआ करता था.

फंक्शन के बाद समीर ने उस से उस का फोन नंबर लिया और उस के घर की लोकेशन नोट करते हुए कहा कि इस रविवार को वह उस के साथ ही लंच करेगा. अपना विजिटिंग कार्ड उसे थमाते हुए उस ने रविवार को इंतजार करने के लिए कहा.

फंक्शन के बाद उस के सभी सहकर्मी उस को आंखें फाड़ कर देख रहे थे. समीर ने सभी लोगों के बीच जिस प्रकार प्रीति की प्रशंसा की थी और सम्मान दिया था उस का किसी को भी अनुमान नहीं था. प्रीति ने घर आ कर पूरे घर को साफ किया, ड्राइंगरूम में सोफे को करीने से लगाया और घर के बाहर पड़े हुए गमलों को ठीक से लगाया और उन में पानी दिया.

मां के गुजर जाने के बाद प्रीति अंदर से काफी टूट गई थी. घर में कोई नहीं था और उस का जीवन अकेलेपन के दौर से गुजर रहा था, इसलिए पूरा घर ही अस्तव्यस्त पड़ा हुआ था. किंतु समीर ने जब से कहा था कि रविवार को उस के घर आ कर उस के साथ लंच करेगा उस के शरीर में एक नया ही उत्साह पैदा हो गया था, मनमयूर नाचने लगा था और जीवन के प्रति एक नया नजरिया पैदा हो गया था.

रविवार को सुबह से ही प्रीति समीर के लिए लंच की तैयारी में लगी हुई थी. इस बीच फोन पर उस ने प्रयागराज से नीलम को भी बुला लिया था. वह पुस्तक विमोचन समारोह में कुछ जरूरी कामों में व्यस्त रहने के कारण नहीं आ पाई थी. नीलम भी समीर से मिलने के लिए उत्साहित थी. एक लंबे समय के बाद तीनों एकसाथ एक टेबल पर मिलने वाले थे.

समीर ने उसे फोन पर सूचना दी थी कि वह रविवार को 2 बजे के बाद आएगा, उसे एक जरूरी मीटिंग में शामिल होना है क्योंकि जिले में सोमवार को सीएम का दौरा होने वाला था. किंतु वह उस दिन 12 बजे ही आ गया.

‘‘सीएम साहब का दौरा रद्द हो गया तो मैं जल्दी आ गया,’’ आते ही वह बोला. उस का घर एक संकरी गली में था. उस की गाड़ी सड़क पर खड़ी थी. बौडीगार्ड साथ में था.

उसे अचानक आया देख प्रीति और नीलम दोनों उठ खड़ी हुईं.

नीलम को देख कर उस ने सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘अरे तुम कब आईं. तुम भी आगरा में ही रहती हो क्या?’’

‘‘नहीं, तुम्हारे बारे में प्रीति ने बताया तो मिलने आ गई,’’ नीलम मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं इस शहर में पिछले 4 महीने से हूं लेकिन प्रीति को मेरी कभी याद न आई.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है समीर, तुम से मिलने का मैं ने कई बार सोचा लेकिन मिलने की हिम्मत न हुई.’’ प्रीति ने कहा.

‘‘क्यों, मैं तुम्हारे लिए गैर कब से हो गया. यह क्यों नहीं कहतीं कि तुम मुझसे मिलना ही नहीं चाहती थीं.’’ अब प्रीति उस से क्या कहती और कहती भी तो क्या उस की सफाई से समीर की उलाहना दूर हो जाती?

‘‘अच्छा, अब बता मां जी कहां हैं?’’

‘‘समीर, अब प्रीति की मां इस दुनिया में नहीं हैं,’’ नीलम ने बताया.

कुछ देर तक समीर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘सौरी प्रीति, मैं ने तुम्हारे दिल के दर्द को कुरेदा. अब घर में कौन रहता है?’’

‘‘इस के साथ अब कोई रहने वाला नहीं है समीर. यह नितांत अकेलापन का जीवन जीती है. अपनी दुनिया में खोई हुई. जिस तरह कालेज में किताबों में खोई रहती थी, अब भी किताबें ही इस की साथी हैं,’’ नीलम बोली.

समीर थोड़ी देर तक घर में इधरउधर देखते रहा. उस की मां और बाबूजी का फोटो सामने की दीवार पर टंगा हुआ था. उस ने सोचा उस का ध्यान अब तक उन फोटो पर क्यों नहीं गया जो वह प्रीति को बारबार मां की याद दिलाता रहा. उस ने हाथ जोड़ कर उस के मातापिता के फोटो के सामने जा कर उन्हें प्रणाम किया और प्रीति से बोला, ‘‘जिंदगी इसी का नाम है. यह कोई नहीं जानता कि किस की जिंदगी उस को किस तरह जीने के लिए मजबूर करेगी. तुम से बिछुड़ने के बाद मैं एक बौयज होस्टल में शिफ्ट कर गया जहां सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले लड़के रहते थे. घर में पढ़ने का माहौल नहीं था.

‘‘वहां एक दिन किसी ने मेरा स्मार्टफोन चुरा लिया. उस फोन में बहुत सारी इन्फौर्मेशन थीं, उसी में तुम्हारा फोन नंबर भी था. मैं ने तुम्हें खोजने का प्रयास किया किंतु तुम्हें ढूंढ़ नहीं पाया. फिर मेरी कोचिंग की क्लासेज चलने लगीं और परीक्षा की तैयारी में इतनी बुरी तरह उलझा कि फिर तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं गया और इसी बीच मेरे बाबूजी का तबादला कंपनी वालों ने दूसरे शहर में कर दिया जहां वे मां के साथ शिफ्ट कर गए.

‘‘मैं इकलौती संतान था. घर में कोई रहने वाला नहीं था, इसलिए पिताजी ने 3 कमरों के इस अपार्टमैंट में एक कमरा निजी उपयोग के लिए रख कर 2 कमरे किराए पर दे दिए. लेकिन प्रीति तुम चाहतीं तो मेरे घर जा कर मेरे किराएदार से मेरा फोन नंबर मांग सकती थीं क्योंकि कभीकभी मैं वहां जाया करता था और किराएदार को मेरा फोन नंबर मालूम था. तुम तो मेरे घर आई थीं. मेरे मातापिता तुम्हें बहुत ही लाइक करते थे. मां तो हमेशा ही तुम्हारे सरल स्वभाव की प्रशंसा करती थीं और पिताजी अकसर कहा करते थे कि किसी भी व्यक्ति का गुण प्रधान होता है न कि उस का शरीर.

‘‘मेरे मांबाबूजी इसी हफ्ते यहां घूमने आने वाले हैं. मैं तुम्हें उन से मिलवाऊंगा.’’

‘‘हां समीर, मुझे भी उन से मिलने की बहुत इच्छा है. उन से मिले हुए काफी दिन हो गए हैं. उन के आने के बाद तुम मुझे फोन करना, मैं उन से मिलने जरूर आऊंगी. लेकिन तुम अपनी पत्नी को ले कर क्यों नहीं आए?’’

समीर ने हंसते हुए कहा, ‘‘अभी तुम्हारी जैसी कोई मिली नहीं.’’

‘‘क्यों मजाक करते हो समीर. मेरे जैसी कोई मिले भी नहीं. हैंडीकैप होना एक अभिशाप से कम नहीं है.’’

‘‘ऐसा न कहो प्रीति, आज भी मनोविज्ञान के क्षेत्र में तुम्हारा मुकाबला करने वाला इस शहर में कोई नहीं है.’’

यह तो प्रीति नहीं जानती थी कि समीर के साथ उस का क्या रिश्ता है किंतु अंदर ही अंदर यह जान कर कि वह अब तक कुंआरा है उस के मन के तार झांकृत हो उठे.

इस बीच समीर के मांबाबूजी के आने का वह बेसब्री से इंतजार करती रही और फिर कुछ ही दिनों बाद समीर ने उसे फोन कर बताया कि उस के मांबाबूजी आए हुए हैं और उस से मिलना चाहते हैं. आज रात का डिनर उन के साथ करोगी तो उसे खुशी होगी.

प्रीति तो इसी अवसर का इंतजार कर रही थी, इसलिए उस ने उस के निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया. उसे अंदर आने से कोई न रोके, इसलिए समीर ने उस को लाने के लिए अपनी प्राइवेट कार भेज दी थी.

प्रीति को लेने समीर अपने आवास के गेट तक स्वयं आया. जब वह उस के साथ ड्राइंगरूम में पहुंची तो उस के मांबाबूजी उस का इंतजार कर रहे थे. उस ने उन के पैर छुए. उन्होंने उसे अपनी बगल में बैठा लिया.

‘‘समीर तुम्हारी हमेशा चर्चा करता है. सुना मां भी नहीं रहीं. घर में अकेली हो. बेटी मैं समझा सकती हूं तुम्हारी तकलीफ को. लड़की वह भी अकेली,’’ समीर की मां बोलीं.

‘‘बेटी, अब आगे क्या करना है?’’ समीर के बाबूजी ने पूछा.

‘‘क्या करूंगी बाबूजी. दिन में कालेज में पढ़ाती हूं, रात में अध्ययन, कुछ लेखन.’’ उस ने नम्रता से कहा.

‘‘अभी क्या लिख रही हो?’’

‘‘अभी तो कुछ नहीं. इस पुस्तक का रिस्पौंस देख लेती हूं कैसा है, फिर आगे का प्लान बनाऊंगी.’’

‘‘यह पुस्तक ‘आनेवाली पीढि़यां और मनोविज्ञान’ मैं ने पढ़ी. समीर ने दी थी. यह सच है कि मनोविज्ञान के स्थापित सिद्धांत आने वाली पीढि़यों के संदर्भ में वैसे ही न रहेंगे.’’

‘‘बाबूजी, आप भी क्या न… आते ही पुस्तक की चर्चा में लग गए. घर और बाहर रातदिन यही तो यह करती है. आज तो हम एंजौय करें. वैसे प्रीति, मैं तुम से पूछना भूल गया था, सारे आइटम वेज ही रखे हैं. मांबाबूजी वैजिटेरियन हैं.’’

‘‘मैं भी वैजिटेरियन ही हूं.’’

खाना खाने के बाद जब प्रीति जाने को हुई तो मां ने उसे रोका.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी की कहीं बात चल रही है क्या?’’

प्रीति कुछ न बोल पाई. जवाब देती भी क्या. उस की शादी के लिए कौन बात करने वाला था.

‘‘समझ गई बेटी. अब तो तुम्हारे घर में तुम्हारे सिवा कोई है नहीं जिस से तुम्हारी शादी के बारे में बात की जाए. समीर तुम्हारी बहुत प्रशंसा करता है. आईएएस में उस के सिलैक्शन के बाद कई अमीर घराने के लोग अपनी बेटियों की शादी के लिए आए. वे सभी अपनी दौलत के बल पर समीर को खरीदना चाहते थे.

‘‘समीर का इस संबंध में स्पष्ट मत था कि शादी मन का मिलन होता है, सिर्फ शरीर का नहीं और जो लड़की अपने बाप की हैसियत के बल पर इस घर में आएगी वह कभी भी अपना दिल उसे न दे पाएगी. बेटी, अगर तुम्हें कोई आपत्ति न हो और समीर से तुम्हारा मन मिलता हो तो इस घर में तुम्हारी जैसी बहू पा कर हम प्रसन्न होंगे. समीर के पिताजी की भी यही इच्छा है. समीर भी यही चाहता है. अब सबकुछ तुम पर निर्भर करता है. तुम इत्मीनान से फैसला ले कर बताना. कोई जल्दी नहीं है, हम तुम्हारे जवाब का इंतजार करेंगे.’’

‘‘लेकिन मांजी, कहां समीर की पोस्ट और कहां मैं एक साधारण कालेज की लेक्चरार.’’

‘‘अब लज्जित न करो प्रीति,’’ समीर बोला, ‘‘मेरे और तुम्हारे संबंधों के बीच हमारी पोस्ट और हैसियत बीच में कहां से आ गई, इसी से बचने के लिए तो मैं ने

अब तक किसी शादी का प्र्रस्ताव स्वीकार नहीं किया.’’

प्रीति ने लज्जा से सिर झांका लिया.

उस ने समीर के मांबाबूजी के पैर छूते हुए कहा, ‘‘आप लोगों का आदेश मेरे लिए आज्ञा से कम नहीं.’’

फिर उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

समीर उसे छोड़ने उस के घर तक गया. जब वह लौटने लगा तो उस ने प्रीति को अपने गले से लगा लिया. और बोला, ‘‘प्रीति पतिपत्नी का रिश्ता बराबर का होता है, आज भी मैं वही समीर हूं जो कालेज के दिनों में हुआ करता था और आगे भी ऐसे ही रहूंगा.’’

समीर के गले लगी प्रीति को ऐसा लग रहा था मानो सारे जहां की खुशियां उसे मिल गई हैं. रात का सियाह अंधेरा अब समाप्त हो चुका था. सुबह की नई किरणें फूटने लगी थीं.

Story in Hindi : बेटी हो तो सौम्‍या जैसी

Story In Hindi : प्रोफैसर हंसराज चिंतित रहा करते कि ना जाने उन्हें कैसे पड़ोसी मिलेंगे. दरअसल, नईनई विकसित हुई इस अमलतास कालोनी में वह 2 महीने पहले ही रहने आए हैं. कालोनी के सभी मकान देखतेदेखते भर गए, सिवाय उन के पड़ोस वाले मकान के.

हंसराजजी और उन की पत्नी सुधा ऊपर वाले से प्रार्थना करते कि कोई बालबच्चों वाला संभ्रांत परिवार पड़ोसी के रूप में आ जाए, तो उन्हें बड़ा सहारा हो जाएगा. वैसे तो उन के 2-2 बेटे हैं, लेकिन दोनों विदेश में जा कर बस गए. बड़ा यूएस में और छोटा यूके में.

एक दिन बिल्डर ने जब उन्हें सूचना दी कि जल्दी ही इस मकान में रहने के लिए बुलानीजी आ रहे हैं, तो वे निश्चिंत हो गए. पर सुधा के यह कहते ही कि बुलानी तो सिंधी होते हैं, उन में तो मीटमटन, दारू वगैरह सब चलता है तो वे थोड़ा परेशान हो गए. फिर स्वयं ही विवेक का परिचय देते हुए सुधा को समझाने का प्रयास करने लगे, “किसी के बारे में बिना जाने, बिना उस से मिले, पहले से गलत धारणा बना लेना ठीक नहीं. और खानेपीने के मामले में जब अपने स्वयं के बच्चे ही नौनवेजिटेरियन हो गए हैं, तो किसी और के नौनवेज खाने से आपत्ति क्यों?”

 

अगले दिन दोपहर के समय जब वे आरामकुरसी पर अधलेटे अखबार पढ़ रहे थे, तभी उन के मकान के ठीक सामने एक कार आ कर रुकी. कार से पहले एक सज्जन बाहर निकले और फिर पीछे से एक महिला और एक 10-12 साल की बच्ची. हंसराजजी ने हाथ के अखबार को टेबल पर रखा और उठ कर बाहर के गेट तक आए.

उतरने वाले सज्जन ने दोनों हाथ जोड़ते हुए नमस्कार किया, “मैं अशोक बुलानी हूं और यह मेरी पत्नी शशि और बेटी सौम्या. हम लोग आप के बाजू वाले मकान में शिफ्ट हो रहे हैं. अभी गर्ल्स हायर सेकेंडरी के पास ‘टीचर्स कालोनी’ में रह रहे थे. मैं सिविल इंजीनियर हूं और शशि शासकीय कमला नेहरू गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में व्याख्याता. सौम्या डीपीएस स्कूल में छठी कक्षा की विद्यार्थी है.”

बुलानी और उन के छोटे से परिवार को देख कर हंसराजजी गदगद हो गए. एक सुसंस्कृत सभ्य परिवार उन का पड़ोसी बन रहा है. उन्होंने गेट खोलते हुए आमंत्रित किया, “अंदर आइए. मैं अपनी पत्नी सुधा से मिलवाता हूं.”

ड्राइंगरूम में सब के बैठते ही सुधा पानी की ट्रे ले आईं. यह मेरी धर्मपत्नी सुधा है. हम दोनों 4 माह पहले ही शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय से प्रोफैसर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं. अभी 2 महीने पहले ही इस कालोनी में शिफ्ट किया है. इस से पहले कालेज के पास ही ‘औफिसर कालोनी’ में रहते थे.

 

सुधा ने बीच में टोकते हुए शशि से पूछा, “आप लोग क्या लेना पसंद करेंगे? चाय या कौफी?” शशि कुछ जवाब दे पाती, उस के पहले ही बुलानी बोल पड़े, “मैडम, चाय ले लेंगे.”चाय की चुसकियों के बीच गपशप से यह पता चला कि बुलानी सिविल कांट्रैक्टर हैं, और उन का प्रोजैक्ट अभी शहर के बाहरी छोर पर बन रही ‘विशाल कालोनी’ में चल रहा है.

शशि ने पहली मुलाकात में ही सुधा को आंटी बना लिया. उसे सब से ज्यादा खुशी इस बात की थी कि अंकलआंटी उसी की तरह शिक्षाजगत से हैं. उस ने अपनी उत्कंठा व्यक्त करते हुए पूछ ही लिया, “आंटी, आप कालेज में क्या पढ़ाती थीं?”

“शशि, हम दोनों बौटनी वाले हैं. एमएससी कक्षाओं को मैं ‘एलगी’ पढ़ाती थी और सर ‘फंगाई’. स्टूडेंट लाइफ में हम दोनों एक ही यूनिवर्सिटी में सहपाठी थे. एमएससी और पीएचडी भी साथ ही की, तभी एकदूसरे से प्रेम हुआ और फिर विवाह हो गया. उस जमाने में प्रेम विवाह आसान नहीं होता था. मैं ब्राह्मण थी और सर कायस्थ.”

फिर अचानक जैसे उन्हें कुछ संकोच सा हुआ, तो बोल पड़ीं, ” अरे, ये क्या मैं ने अपना टौपिक शुरू कर दिया. तुम अपना बताओ शशि, स्कूल में क्या पढ़ाती हो?””आंटी, मै बायोलौजी लेक्चरर हूं. मैं ने जूलौजी से पीजी किया है. मैं भी पीएचडी करना चाहती थी, पर उस से पहले गवर्नमेंट जौब मिल गई. मेरी तमन्ना तो अभी भी कालेज में पढ़ाने की है, पर पिछले 6 सालों में जूलौजी में लेक्चरर की वैकेंसी ही नहीं निकली.”

“शशि, यदि तुम कालेज में लेक्चरर बनना चाहती हो, तो मेरी सलाह है कि पीएचडी कर डालो. तुम्हें गाइड के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा. जूलौजी में प्रोफैसर हम लोगों के कलीग डा. सिलावट हैं. हां,  तुम्हें पीएचडी क्वालीफाइंग एक्जाम क्लियर करना पड़ेगा, और फिर 90 दिन का थीसिस राइटिंग कोर्स भी.”

 

बुलानी जो अब तक बड़े धैर्य से वार्तालाप सुन रहे थे, बेचैन हो उठे. थोड़े तल्खी से वह बोले, “अरे शशि, जिस काम के लिए आए हैं, उस के बारे में तो बात कर लो.”हंसराजजी ने माहौल हलका करते हुए कहा, “शिक्षाजगत के लोगों की यही समस्या है, मिलते ही वे हर समय एजुकेशन पर बात शुरू कर देते हैं.”

“आंटी, हमारा सामान आज रात यहां अनलोड हो जाएगा और हम लोग कल सुबह शिफ्ट करेंगे. आप के यहां घरेलू काम करने वाली बाइयां क्या मेरे यहां भी काम कर देंगी? टीचर्स कालोनी में तो 2 बाइयों से काम चल जाता था. एक झाड़ूबरतन और साफसफाई करती थी और दूसरी खाना बनाती थी.””शशि, मेरे यहां तो एक ही काम वाली बाई सुबह आती है, झाड़ूबरतन के लिए. खाना तो अब मैं खुद ही बनाती हूं.

“रिटायरमेंट के बाद अब दिनभर कोई काम तो रहता नहीं, तो इसी में समय गुजारती हूं. मैं तुम्हें अपनी महरी लक्ष्मी का मोबाइल नंबर देती हूं, उस से बात कर लो और खाना बनाने वाली बाइयां भी कालोनी के कई घरों में आती हैं,  तुम यहां रहना शुरू करोगी तो सब व्यवस्थाएं अपनेआप हो जाएंगी.”

“सर, दूध वाले का नंबर भी चाहिए और न्यूजपेपर और केबल टीवी वाले का भी,बुलानी ने हंसराजजी की ओर देखते हुए रिक्वेस्ट की.”कालोनी के गेट पर सुपरवाइजर और गार्ड के रूम हैं. आप गणेश सुपरवाइजर को बोल देना. आप की सभी व्यवस्थाएं वह करा देगा. उस के पास  सभी के नंबर हैं- केबल टीवी,  इलेक्ट्रीशियन, न्यूज पेपर, दूध वाले, प्लंबर और कारपेंटर सभी के.”

( 6 साल बाद)पिछले 6 सालों में दोनों पड़ोसी पड़ोसी कम, एक परिवार के अंग ज्यादा हो चुके थे. बुलानी तो अपने प्रोजैक्ट के सिलसिले में सुबह निकल जाते और देर रात लौटते. पर, शशि और सौम्या का ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब वे आंटी के यहां दिन में 1-2 बार फेरे न लगा लें. आंटी धीरेधीरे  शशि को बेटी की तरह मानने लगी थीं. शशि ने भी अपने बारे में उन्हें सारी बातें बता डाली थीं. आंटी को यह भी बता दिया था  कि उस का भी यह  ‘प्रेम विवाह’ है और वह ब्राह्मण है और बुलानी सिंधी.

सौम्या पूरी तरह अपनी मां पर गई थी. उस का ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर रहता. वह देर रात तक पढ़ती रहती. हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा में वह अपने जिले की टौपर थी और उस की प्रशंसा में जिले के सभी अखबारों ने सौम्या के साथसाथ उस के मांपापा के भी फोटो सहित इंटरव्यू छापे थे. अब इस वर्ष भी उस का टारगेट कक्षा 12वीं में मेरिट में आने का था.

सौम्या की आदत थी, जोरजोर से बोलबोल कर पढ़ने की. रात में उस की आवाज अंकलआंटी के बेडरूम में साफ सुनाई देती और उन की नींद में खलल डालती. नींद डिस्टर्ब होने पर भी कभी उन्होंने सौम्या को टोका नहीं. पढ़ाई का महत्व उन से ज्यादा कौन समझता. उन्होंने भी अपने दोनों बेटों की शिक्षादीक्षा में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी और आज उसी शिक्षा की बदौलत दोनों बेटे यूएस और यूके में बड़ीबड़ी कंपनियों में उच्च पदों पर थे.

हंसराजजी और सुधा बारीबारी से हर साल 3 माह के लिए एक बार यूके जाते और अगली बार यूएस. उन दिनों उन के घर की पूरी देखभाल और सुरक्षा शशि और सौम्या करतीं.पहली बार ऐसा हुआ कि इस साल कोरोना के कारण इंटरनेशनल फ्लाइट बंद कर दी गईं और बेटों के पास उन का जाना नहीं हो पाया. हालात यहां तक आ गए कि देशभर में लौकडाउन के कारण लोगों का घर से निकलना भी बंद हो गया. बुलानी के प्रोजैक्ट का काम भी ठप हो गया और प्रोजैक्ट के बंद होने से सभी कर्मचारी और मजदूर काम छोड़ कर अपनेअपने घर चले गए. सुबह से रात तक  बाहर रहने वाले बुलानी अब घर में कैद हो कर रह गए. लंबे समय के लौकडाउन ने उन्हें डिप्रेशन में ला दिया.शशि की व्यस्तता दोगुनी बढ़ गई. कामवाली बाइयों के न आने से घर के सारे काम भी करने पड़ते और औनलाइन क्लास भी लेनी पड़ती.

सौम्या भी औनलाइन क्लासेज अटेंड करती और अपनी स्टडी में व्यस्त रहती. मांबेटी दोनों का आंटी के यहां आनाजाना भी बंद हो गया. उन्हें अंकलआंटी की वृद्धावस्था के कारण पूरी सावधानी जो बरतनी थी.6 वर्षों में आज पहली बार शशि और बुलानी के आपसी झगड़े की आवाजें छनछन कर हंसराज और सुधा के कानों में पड़ रही थीं. दोनों अचंभित थे कि यह क्या हो गया?

झगड़े का यह सिलसिला धीरधीरे प्रतिदिन की रूटीन  में तबदील हो गया. बुलानी अब रोज नशा भी करने लगा और नशे की हालत में वह शशि को गालियां भी देता. जिस तरह के शब्द उस के मुंह से निकलते, उसे सुन कर कोई भी निष्कर्ष निकाल सकता कि ये शब्द सभ्य पुरुष की निशानी नहीं हो सकते हैं.

सुधा को इन घटनाओं के कारण पूरी रात नींद नहीं आती. वे शशि को बेटी की तरह प्यार करने लगी थीं. आज रात तो बुलानी ने गालियों के साथ शशि पर हाथ भी उठा दिया था.सुधा का दिल व्याकुल हुआ जा रहा था. उन्हें इंतजार था कि कब सुबह हो और वे शशि से मिल कर झगड़े की जड़ का पता लगाएं. अन्याय के प्रति उदासीन रवैया अपनाना बुजदिली कहलाएगी. उन्होंने अपने महाविद्यालय की अनेक छात्राओं में आत्मविश्वास जागृत किया था, जो किन्हीं कारणों से प्रताड़ित थीं.

अपने मन की बात जब सुबह उन्होंने हंसराजजी को बताई तो उन्होंने बुलानी के घर में रहते शशि के यहां जाने से मना किया और कुछ समय धैर्य रखने की सलाह दे डाली.आज रात तो पानी सारी हदें पार कर गया. शशि ने बुलानी के मोबाइल की उस समय पड़ताल कर डाली थी, जब वह बाथरूम में था. उस का शक सही साबित हुआ था. बुलानी चोरीछिपे जिस महिला से बातें करता था, उस की चैट शशि ने पढ़ डाली थी. अश्लील चैट को देख उस का खून खौल उठा था. वह चिल्लाचिल्ला कर बुलानी से सफाई मांग रही थी. बुलानी सीधे स्पष्टीकरण देने के बजाय गुस्से में शशि से बारबार यही पूछ रहा था कि उस की हिम्मत कैसे हुई उस के मोबाइल को छूने की? धीरेधीरे बहस हाथापाई में तबदील हो गई थी.

मां की चीख सुन कर सौम्या दौड़ती हुई नीचे आई थी और बीचबचाव कर मां को अपने कमरे में ले आई थी.शशि बुरी तरह आहत थी. उसे पति की ऐयाशी किसी कीमत पर गवारा नहीं थी. उस की दूसरी चिंता यह थी कि घर में जवान बेटी है. ऐसी बेटी जिस के कारण पूरे शहर में उन दोनों का भी नाम और प्रतिष्ठा बनी हुई है. लोगों को जब पता चलेगा और वे सौम्या को ताने दे कर कुछ कहेंगे, तो उस के दिल पर कैसा प्रभाव पड़ेगा.

सौम्या अपने विद्यालय में जूडोकराटे की चैंपियन भी थी. उस ने मां को आश्वस्त किया, “यदि पापा ने अब आप के साथ दुर्व्यवहार किया तो वह भूल जाएगी कि वे उस के पापा हैं. मां का और वह भी निर्दोष मां का अपमान वह अब सहन नहीं करेगी. जो व्यक्ति महिलाओं की इज्जत नहीं करता, उसे दंड देना मुझे सिखाया गया है.”पूरी रात मांबेटी भविष्य की योजना बनाती रहीं. सौम्या ने मां को समझाया कि उसे साहसी बनना होगा. अपराध करने वाले को सही राह पर लाने की युक्ति स्वयं खोजनी होगी. आप दिनरात मेहनत करें और आप की कमाई पर कोई दूसरा गुलछर्रे उड़ाए, इसे बदलना होगा.

अगले दिन शशि एकदम बदले हुए रूप में थी. सौम्या मां से सट कर खड़ी हुई थी. शशि ने बुलानी से पूरे धैर्य और गंभीरता से अपनी बात कहनी शुरू की, “आप मेरी 3 शर्तें पूरी करें और उस के बाद हमारा आप से कोई रिश्ता नहीं. आप पूरी तरह स्वतंत्र होंगे, कहीं भी जाने के लिए, कुछ भी करने के लिए. एक तो इस मकान के खरीदने में पूरा पैसा मेरा लगा है, इसलिए संयुक्त मालिकाना हक से आप अपना नाम तुरंत हटवा लें. दूसरा, मेरे सभी बैंक खाते आप के साथ संयुक्त नाम से हैं, उन में से आप अपना नाम पृथक करा लें और तीसरा, मेरी सभी ‘एफडी’ और ‘बीमा पौलिसी’ में से भी आप अपना नाम हटवाएं. अब सभी में नौमिनी आप के स्थान पर सौम्या होगी.

बुलानी यह सुन कर अवाक रह गया. उस ने तो इस सब की कल्पना भी नहीं की थी. वह अपने कंस्ट्रक्शन प्रोजैक्ट में पहले से ही कर्ज में डूबा हुआ था. पूरी रात वह विचार करता रहा. वह तो अभी पूरी तरह शशि की कमाई पर ही निर्भर है. शर्तें मानने पर तो उसे भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.

अगले दिन से घर में पूरी तरह शांति थी. लौकडाउन में छूट मिलते ही वह कंस्ट्रक्शन साइट पर जाने लगा. अब वह सिर्फ शनिवार की रात में आता और बेटी सौम्या को समझाने की कोशिश करता कि वह अपनी मां को सुलह करने के लिए समझाए.

सौभ्या साफसाफ कहती, “पापा, आप ने मां को बहुत कष्ट दिया है, उन्हें जिस दिन यह विश्वास हो जाएगा कि आप ने वे सभी बुराइयां त्याग दी हैं, जिन से मां आहत हुई थीं, उसी दिन से सबकुछ पहले की तरह सामान्य हो जाएगा.

“एक बात और भी मैं कहना चाहती हूं, यदि सचमुच मैं  आप की बेटी हूं और आप चाहते हैं कि मैं सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा में मेरिट में आ कर आप लोगों का नाम रोशन करूं, तो आप वह सब बातें छोड़ दीजिए, जो मां को आहत करती हैं.”

बेटी की बातों ने पिता को अंदर तक झकझोर दिया और इस तरह एक दक्ष कन्या ने अपनी बुद्धिमानी और दूरदर्शिता से टूटते परिवार को बिखरने से बचा लिया.

Hindi Story Collection : मौत की दोषी मैं

Hindi Story Collection : शची अपने पति पल्लव के अधीनस्थ कर्मचारियों से रिश्वत ले कर उन का प्रमोशन, ट्रांसफर आदि कार्य करने के लिए पल्लव को बाध्य करती थी, लेकिन एक दिन वक्त ने उस के साथ ऐसा क्रूर मजाक किया कि उस के पास अपनी गलती पर सिर्फ पछताने के और कुछ न बचा.

‘‘मिश्राजी, अब तो आप खुश हैं न, आप का काम हो गया…आप का यह काम करवाने के लिए मुझे काफी पापड़ बेलने पड़े,’’ शची ने मिठाई का डब्बा पकड़ते हुए आदतन कहा.

‘‘भाभीजी, बस, आप की कृपा है वरना इस छोटी सी जगह में बच्चों से दूर रहने के कारण मेरा तो दम ही घुट जाता,’’मिश्राजी ने खीसें निपोरते हुए कहा.

शची की निगाह मिठाई से ज्यादा लिफाफे पर टिकी थी और उन के जाते ही वह लिफाफा खोल कर रुपए गिनने लगी. 20 हजार के नए नोट देख कर चेहरे की चमक दोगुनी हो गई थी.

शची के पति पल्लव ऐसी जगह पर कार्यरत थे कि विभाग का कोई भी पेपर चाहे वह ट्रांसफर का हो या प्रमोशन का या फिर विभागीय खरीदारी से संबंधित, बिना उन के दस्तखत के आगे नहीं बढ़ पाता था. बस, इसी का फायदा शची उठाती थी. शुरू में पल्लव शची की ऐसी हरकतों पर गुस्सा हो जाया करते थे, बारबार मना करते थे, आदर्शों की दुहाई देते थे पर लोग थे कि उन के सामने दाल न गलती देख, घर पहुंच जाया करते थे और शची उन का काम करवाने के लिए उन पर दबाव बनाती, यदि उन्हें ठीक लगता तो वे कर देते थे.

बस, लोग मिठाई का डब्बा ले कर उन के घर पहुंचने लगे…शची के कहने पर फिर गिफ्ट या लिफाफा भी लोग पकड़ाने लगे. इस ऊपरी कमाई से पत्नी और बच्चों के चेहरे पर छाई खुशी को देख कर पल्लव भी आंखें बंद करने लगे. उन के मौन ने शची के साहस को और भी बढ़ा दिया. पहले अपना काम कराने के लिए लोग जितना देते शची चुपचाप रख लेती थी किंतु जब इस सिलसिले ने रफ्तार पकड़ी तो वह डिमांड भी करने लगी.

पत्नी खुश, बच्चे खुश तो सारा जहां खुश. पहले जहां घर में पैसों की तंगी के कारण किचकिच होती रहती थी वहीं अब घर में सब तरह की चीजें थीं. यहां तक कि बच्चों के लिए अलगअलग टीवी एवं मोटर बाइक भी थीं. शची जब अपनी कीमती साड़ी और गहनों का प्रदर्शन क्लब या किटी पार्टी में करती तो महिलाओं में फुसफुसाहट होती थी पर किसी का सीधे कुछ भी कहने का साहस नहीं होता था.

कभी कोई कुछ बोलता भी तो शची तुरंत कहती, ‘‘अरे, इस सब के लिए दिमाग लड़ाना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है, ऐसे ही कोई नहीं कमा लेता.’’ कहते हैं लत किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती और जब यही लत अति में बदल जाती है तो दिमाग फिरने लगता है. यही शची के साथ हुआ. पहले तो जो जितना दे जाता वह थोड़ी नानुकुर के बाद रख लेती लेकिन अब काम के महत्त्व को समझते हुए नजराने की रकम भी बढ़ाने लगी थी.

शची की समझ में यह भी आ गया है कि आज सभी को जल्दी है तथा सभी एकदूसरे को पछाड़ कर आगे भी बढ़ना चाहते हैं. और इसी का फायदा शची उठाती थी. कंपनी को अपने स्टाफ के लिए कुछ नियुक्तियां करनी थीं. पल्लव उस कमेटी के प्रमुख थे. जैसा कि हमेशा से होता आया था कि मैरिट चाहे जो हो, जो चढ़ावा दे देता था उसे नियुक्तिपत्र मिल जाता था तथा अन्य को कोई न कोई कमी बता कर लटकाए रखा जाता था.

एक जागरूक प्रत्याशी ने इस धांधली की सूचना सीबीआई को दे दी और उन्होंने उस प्रत्याशी के साथ मिल कर अपनी योजना को अंजाम दे दिया. वह प्रत्याशी मिठाई का डब्बा ले कर पल्लव के घर गया. उस दिन शची कहीं बाहर गई हुई थी अत: दरवाजा पल्लव ने ही खोला.

उस ने उन्हें अभिवादन कर मिठाई का डब्बा पकड़ाया और कहा, ‘‘सर, सेवा का मौका दें.’’

‘‘क्या काम है?’’ पल्लव ने प्रश्नवाचक नजर से उसे देखते हुए पूछा. ‘‘सर, मैं ने इंटरव्यू दिया था.’’ ‘‘तो क्या तुम्हारा चयन हो गया है?’’

‘‘जी हां, सर, पर नियुक्तिपत्र अभी तक नहीं मिला है.’’

‘‘कल आफिस में आ कर मिल लेना. तुम्हारा काम हो जाएगा.’’

‘‘धन्यवाद, सर, लिफाफा खोल कर तो देखिए, इतने बहुत हैं या कुछ और का इंतजाम करूं.’’

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी… जितना भी है ठीक है,’’

पल्लव ने थोड़ा झिझक कर कहा क्योंकि उन के लिए यह पहला मौका था…यह काम तो शची ही करती थी. ‘‘सर, यह तो मेरी ओर से आप के लिए एक तुच्छ भेंट है. प्लीज, एक बार देख तो लीजिए,’’ उस प्रत्याशी ने नम्रता से सिर झुकाते हुए कहा.

पल्लव ने रुपए निकाले और गिनने शुरू कर दिए. तभी भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते के लोग बाहर आ गए और पल्लव को धरदबोचा तथा पुलिस कस्टडी में भेज दिया. शची जब घर लौटी तो यह सब सुन कर उस ने अपना माथा पीट लिया. उसे पल्लव पर गुस्सा आ रहा था कि उन्होंने उसी के सामने रुपए गिनने क्यों शुरू किए…लेते समय सावधानी क्यों नहीं बरती. थोड़ा सावधान रहते तो मुंह पर कालिख तो नहीं पुतती.

लोग तो करोड़ों रुपए का वारान्यारा करते हैं पर फिर भी नहीं पकड़े जाते और यहां कुछ हजार रुपयों के लिए नौकरी और इज्जत दोनों जाती रहीं. इच्छाएं इस तरह उस का मानमर्दन करेंगी यह उस ने सोचा भी नहीं था. जानपहचान के लोग अब बेगाने हो गए थे. वास्तव में वह स्वयं सब से कतराने लगी थी. सब उस की अपनी वजह से हुआ था. पल्लव तो सीधेसीधे काम से काम रखने वाले थे पर उस की आकांक्षाओं के असीमित आकाश की वजह से पल्लव को यह दिन देखना पड़ा है.

शची ने यह सोच कर कि पैसे से सबकुछ संभव है, शहर का नामी वकील किया पर उस ने शची से पहले ही कह दिया, ‘‘मैडम, मैं आप को भुलावे में नहीं रखना चाहता. आप के पति रंगेहाथों पकड़े गए हैं अत: केस कमजोर है पर हां, मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा.’’ पल्लव अलग से परेशान थे क्योंकि उन की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. आश्चर्य तो शची को तब होता था जब उसे अपने पति से मिलने के लिए ही नजराना चुकाना पड़ता था. ‘‘तो क्या सारा तंत्र ही भ्रष्ट है. अगर यह सच है तो यह सब दिखावा किस लिए?’’

अपने वकील को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘मैडम, आज के दौर में बहुत कम लोग ईमानदार रह गए हैं. जो ईमानदार हैं उन्हें भी हमारी व्यवस्था चैन से नहीं रहने देती. आप जिन लोगों की बात कर रही हैं वे भी कहीं नौकरी कर रहे हैं, उन्हें भी अपनी नौकरी बचाने के लिए कुछ मामले चाहिए… अब उस में कौन सा मुरगा फंसता है यह व्यक्ति की असावधानी पर निर्भर है.’’

उधर पल्लव सोच रहे थे कि नौकरी गई तो गई, पूरे जीवन पर एक कलंक अलग से लग गया. जिन बीवीबच्चों के लिए मैं ने यह रास्ता चुना वही उसे अब दोष देने लगे हैं. शची तो चेहरे पर झुंझलाहट लिए मिलने आ भी रही थी पर बच्चे तो उन से मिलने तक नहीं आए थे. क्या सारा दोष उन्हीं का है? कितने अच्छे दिन थे जब शची के साथ विवाह कर के वह इस शहर में आए थे. आफिस जाते समय शची उन से शाम को जल्दी आने का वादा ले लिया करती थी. दोनों की शामें कहीं बाहर घूमने या सिनेमा देखने में गुजरती थीं. अकसर वे बाहर खा कर घर लौटा करते थे. हां, उन के जीवन में परेशानी तब शुरू हुई जब विनीत पैदा हुआ.

अभी विनीत 2 साल का ही था कि विनी आ गई और वे 2 से 4 हो गए लेकिन उन की कमाई में कोई खास फर्क नहीं आया. हमेशा हंसने वाली शची अब बातबात पर झुंझलाने लगी थी. पहले जहां वह सजधज कर गरमागरम नाश्ते के साथ उन का स्वागत किया करती थी अब बच्चों की वजह से उसे कपड़े बदलने का भी होश नहीं रहता था. पल्लव समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें? बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल करवाने के लिए डोनेशन चाहिए था. उस स्कूल की मोटी फीस के साथ दूसरे ढेरों खर्चे भी थे…कैसे सबकुछ होगा? कहां से पैसा आएगा…यह सोचसोच कर शची परेशान हो उठती थी.

उन्हीं दिनों उन के एक मातहत का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. उस ने पल्लव से निवेदन किया तो उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उस का ट्रांसफर रुकवा दिया था. इस खुशी में वह मिठाई के साथ 2 हजार रुपए भी घर दे गया. अब शची उन से इस तरह के काम करवाने का आग्रह करने लगी थी. शुरू में तो वह झिझके भी पर धीरेधीरे झिझक दूर होती गई और वह भी अभ्यस्त हो गए थे. ऊपर की कमाई के पैसों से शची के चेहरे पर आई चमक उन्हें सुकून पहुंचा जाती थी…साथ ही बच्चों की जरूरतें भी पूरी होने लगी थीं.

खूब धूमधाम से उन्होंने पिछले साल ही विनी का विवाह किया था…विनीत भी इसी वर्ष इंजीनियरिंग कर जाब में लगा है. अच्छीभली जिंदगी चल रही थी कि एकाएक वर्षों की मेहनत पर ग्रहण लग गया. तब पल्लव को भी लगने लगा था कि भ्रष्टाचार तो हर जगह है… अगर वह भी थोड़ाबहुत कमा लेते हैं तो उस में क्या बुराई है. फिर वह किसी से मांगते तो नहीं हैं, अगर कुछ लोग अपना काम होने पर कुछ दे जाते हैं तो यह तो भ्रष्ट आचरण नहीं हुआ. लगता है, उन के साथ किसी ने धोखा किया है या उन्हें जानबूझ कर फंसाया गया है.

कहते तो यही हैं कि लेने वाले से देने वाला अधिक दोषी है पर देने वाला अकसर बच निकलता है जबकि अपना काम निकलवाने के लिए बारबार लालच दे कर वह व्यक्ति को अंधे कुएं में उतरने के लिए प्रेरित करता है और प्यास बुझाने को आतुर उतरने वाला यह भूल जाता है कि कुएं में स्वच्छ जल ही नहीं गंदगी के साथसाथ कभीकभी जहरीली गैसें भी रहती हैं और अगर एक बार आदमी उस में फंस जाए तो उस से बच पाना बेहद मुश्किल होता है. बच भी गया तो अपाहिजों की तरह जिंदगी बितानी पड़ जाती है.

अब पल्लव को महसूस हो रहा था कि बुराई तो बुराई है. किसी के दिल को दुखा कर कोई सुखी नहीं रह सकता. उन्होंने अपना सुख तो देखा पर जिसे अपने सुखों में कटौती करनी पड़ी, उन पर क्या बीतती होगी…इस पर तो उन का ध्यान ही नहीं गया था. मानसिक द्वंद्व के कारण पल्लव को हार्टअटैक पड़ गया था. सीबीआई ने अपने अस्पताल में ही उन्हें भरती कराया किंतु हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही थी. शची, जो इस घटना के लिए, सारी परेशानी के लिए उन्हें ही दोषी मानती रही थी…उन की बिगड़ती हालत देख कर परेशान हो उठी.

पहले जब शची ने पल्लव की बिगड़ती हालत पर सीबीआई का ध्यान आकर्षित किया था तो उन में से एक ने हंसते हुए कहा था, ‘डोंट वरी मैडम, सब ठीक हो जाएगा. यहां आने पर सब की तबीयत खराब हो जाती है.’ उस समय उस की शिकायत पर किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन दूसरे दिन जब वह मिलने गई तो पल्लव को सीने में दर्द से तड़पते पाया. शची से रहा नहीं गया और वह सीबीआई के सीनियर आफिसर के केबिन में दनदनाती हुई घुस गई तथा गुस्से में बोली, ‘आप की कस्टडी में अगर पल्लव की मौत हो गई तो लापरवाही के लिए मैं आप को छोड़ूंगी नहीं. आखिर कैसे हैं आप के डाक्टर जो वास्तविकता और नाटक में भेद नहीं कर पा रहे हैं.’ शची की बातें सुन कर वह सीनियर अधिकारी पल्लव के पास गया और उन की हालत देख कर उन्हें नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया पर तब तक देर हो चुकी थी.

डाक्टर ने पल्लव को भरती तो कर दिया पर अभी वह खतरे से खाली नहीं थे. रोतेरोते शची की आंखें सूज गई थीं. कोई भी तो उस का अपना नहीं था. ऐसे समय बच्चों ने भी शर्मिंदगी जताते हुए आंखें फेर ली थीं. इस दुख की घड़ी में बस, उस की छोटी बहन विभा जबतब उस से मिलने आ जाया करती थी जो बहन को समझाबुझा कर कुछ खिला जाया करती थी. शची टूट एवं थक चुकी थी. जाती भी तो जाती कहां?

घर अब वीरान खंडहर बन चुका था. अत: वह वहीं अस्पताल में स्टूल पर बैठे पति को एकटक निहारती रहती थी. पल्लव को सांस लेने में शिकायत होने पर आक्सीजन की नली लगाई गई थी. सदमा इनसान को इस हद तक तोड़ सकता है, आज उसे महसूस हो रहा था. पति की हालत देख कर शची परेशान हो जाती पर कर भी क्या सकती थी. पल्लव की यह हालत भी तो उसी के कारण हुई है. मन में हलचल मची हुई थी.

तर्कवितर्क चल रहे थे. कभी पति को इतना असहाय उस ने महसूस नहीं किया था. दोनों बच्चे अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. पल्लव की गिरफ्तारी की खबर सुन कर उन दोनों ने अफसोस करना तो दूर, शर्मिंदगी जताते हुए किनारा कर लिया था पर बीमार पल्लव को देख कर रहा नहीं गया तो एक बार फिर उन की बीमारी के बारे में उस ने बच्चों को बताया.

विनी ने रटारटाया वाक्य दोहरा दिया था, ‘ममा, मैं नहीं आ सकती, डैड की वजह से मैं घर के सदस्यों से नजर नहीं मिला पा रही हूं…आखिर डैड को ऐसा करने की आवश्यकता ही क्या थी?’ आना तो दूर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया विनीत की भी थी. शची समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. बच्चों के मन में पिता के प्रति बनी छवि ध्वस्त हो गई थी…पर क्या वह नहीं जानते थे कि पिता के इतने कम वेतन में तो उन की सुरसा की तरह नित्य बढ़ती जरूरतें व इच्छाएं पूरी नहीं हो सकती थीं.

शची को अपनी कोख से जन्मी संतानों से नफरत होने लगी थी. कितने स्वार्थी हो गए हैं दोनों…पिता तो पिता उन्हें मां की भी चिंता नहीं रही…उस मां की जिस ने उन के अरमानों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किए, उन्हीं के लिए गलत रास्ता अपनाया, हर सुखसुविधा दी…अच्छे से अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवाई, धूमधाम से विवाह किया…यहां तक कि दहेज में विनी को जब कार दी थी तब तो उस ने नहीं पूछा कि ममा, इतना सब कैसे कर पा रही हो. ‘तुम बच्चों को क्यों दोष दे रही हो शची?’

उस के मन ने उस से पूछा, ‘उन्होंने तो वही किया जिस के वह आदी रहे थे… जैसे माहौल में तुम ने उन्हें पाला वैसे ही वह बनते गए. क्या तुम ने कभी किसी कमी का एहसास उन्हें कराया या तंगी में रहने की शिक्षा दी…पल्लव तो आदर्शवादी रहे थे, चोरीछिपे किए तुम्हारे काम से नाराज भी हुए थे तब तो तुम्हीं कहा करती थीं कि मैं सिर्फ वेतन में घर का खर्च नहीं चला सकती…तुम तो कुछ नहीं कर रहे हो, जो भी कर रही हूं वह मैं कर रही हूं…और हम मांग तो नहीं रहे…अगर थोड़ाबहुत कोई अपनी खुशी से दे जाता है तो आप को बुरा क्यों लगता है?’

अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन वह बोल पड़ी, ‘पर मैं ऐसा तो नहीं चाहती थी.’ ‘ठीक है, तुम ऐसा नहीं चाहती थीं पर क्या तुम्हें पता नहीं था कि जो जैसा करता है उस का फल उसे भुगतना ही पड़ता है’ अपनी आत्मा के साथ हुए वादविवाद से अब शची को एहसास हो गया था कि उसी ने बुराई को प्रश्रय दिया था. पल्लव के विरोध करने पर तकरार होती पर अंतत: जीत उस की ही होती. पल्लव चुप हो जाते फिर घर में खुशी के माहौल को देख कर वह भी उसी के रंग में रंगते गए. अगर वह पल्लव को मजबूर नहीं करती, उन की सीमित आय में ही घर चलाती और बच्चों को भी वैसी ही शिक्षा देती तो आज पल्लव का यह हाल न होता…कहीं न कहीं पल्लव के इस हाल के लिए वही दोषी है. पल्लव ने उस की खातिर बुराई का मुखौटा तो पहन लिया था पर शायद मन के अंदर की अच्छाई को मार नहीं पाए थे तभी तो अपनी छीछालेदर सह नहीं पाए और बीमार पड़ गए पर अब पछताए होत क्या जब चिडि़यां चुग गईं खेत. पल्लव की हिचकी ने उस के मन में चल रहे अंधड़ को रोका. उन्हें तड़पते देख कर वह डाक्टर को बुलाने भागी और जब तक डाक्टर आए तब तक सब समाप्त हो चुका था.

उस की आकांक्षाओं के आकाश ने उस का घरसंसार उजाड़ दिया था. खबर सुन कर विभा भागीभागी आई और उसे देखते ही शची चीत्कार कर उठी, ‘‘पल्लव की मौत के लिए मैं ही दोषी हूं…मैं ही उन की हत्यारिन हूं… पल्लव निर्दोष थे…मेरी गलती की सजा उन्हें मिली…’’ शची का मर्मभेदी प्रलाप सुन कर विभा समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उसे संभाले. सचाई का एहसास एक न एक दिन सब को होता है पर यहां देर हो गई थी.

लेखिका –  सुधा आदेश

Romantic Story : इग्‍नोर करते ही हुई मुहब्‍बत

Romantic Story :  सुबह तारा जब विवेक  के आगोश से खुद को छुड़ा कर बाहर निकली तो विवेक के प्रति उस के मन में बसी सारी भ्रांतियां भी इस प्यार की गरमाहट में पिघल चुकी थीं और वह एक नई सुबह की किरणों की तरह नए जीवन के सपने बुनने लगी. वह यही सोच रही थी कि आखिर कैसे वह एक अनजाने से डर के कारण शादी के बाद भी पिछले 6 माह तक प्यार के इन सुनहरे लमहों को नहीं जी पाई थी क्योंकि सुहागरात के दिन ही उस ने अपने पति विवेक को एक ऐसी शर्त में बांध दिया था और उस की परीक्षा लेती रही. इस अनोखी शर्त में बंध कर दोनों इतने दिनों तक एकदूसरे का प्यार पाने के लिए तड़पते रहे.

सुबह की बयार भी तारा के जेहन में उमड़ रही लहरों को जैसे नई गति प्रदान कर रही थी और तारा की नैसर्गिक खूबसूरती में आज अजीब सी रौनक बढ़ आई थी जो पिछले 6 महीने में पहली बार ही दिखाई दी.

इन सुखद अनुभूतियों के साथ तारा उन कड़वी यादों के अतीत में खो गई जिन के कारण वह इतने दिनों तक एक घुटनभरी जिंदगी जीने को बाध्य हो गई थी.

2 बहनों और 1 भाई में सब से बड़ी तारा मम्मीपापा की सब से दुलारी होने के कारण बचपन से ही उसे जो भाता वही करती. अपनी मस्तीभरी जिंदगी में कब उस ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया, उसे बिलकुल पता ही नहीं चला.
मजे से कट रही थी उस की जिंदगी, आंखों का तारा जो थी वह अपने मम्मीपापा की. उस के मम्मीपापा उसे पलकों पर बिठा कर रखते, वह भी सब पर जान छिड़कती और उन के प्रति अपना हर फर्ज निभाती.
हंसतेखेलते जब उस ने स्नातक की डिगरी अच्छे नंबरों से हासिल कर ली तो एक दिन मम्मी ने पूछा, ‘आगे क्या करने का इरादा है, बेटी?’
‘कुछ नहीं. बस, यों ही मस्ती करूंगी.’
‘मस्ती की बच्ची, मैं तो सोच रही हूं कि तेरी शादी कर दूं.’
‘नहीं मम्मी, अभी नहीं, क्यों अभी से ही मुझे अपने से दूर करने पर तुली हो?’ रोंआसी सी सूरत बना कर वह मम्मी की गोद में समा गई.
‘तो फिर कर लो कोई नौकरी, नहीं तो पापा तुम्हारी शादी कर देंगे,’ उस के बालों को सहलाते हुए मम्मी बोलीं.
‘नौ…क…री…ओके, डन. मम्मी, मैं आज से ही नौकरी की तैयारी करनी शुरू कर देती हूं. डिगरी में अच्छे अंक तो हैं ही, थोड़ी तैयारी करने पर नौकरी मिल ही जाएगी,’ उस ने चहक कर कहा.

‘तो फिर ठीक है. पर अगर 6 महीने में नौकरी नहीं मिली तो मैं तुम्हारे पापा को मना नहीं कर पाऊंगी,’ मम्मी ने उस के गालों को थपथपाते हुए कहा और अपने कमरे में चली गईं.

मम्मी के जाते ही तारा सोच में पड़ गई कि अब इस समस्या से कैसे निबटे. अखबार में तो कई रिक्तियां प्रकाशित होती हैं. क्यों न किसी अच्छी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया जाए, यही सोच कर उस ने अखबार उठाया तो उस की नजर रिक्तियां कौलम में एक विज्ञापन पर पड़ी, ‘जरूरत है राज्य सरकार में परियोजना सहायक की. आवेदक को स्नातक होना अनिवार्य है और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना चाहिए,’ यह देखते ही उस का चेहरा खिल उठा क्योंकि उस ने स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी, इसलिए उस ने फौरन आवेदन कर दिया.

कुछ ही दिनों में साक्षात्कार का बुलावा आया और वह पापा के साथ साक्षात्कार देने पहुंच गई. साक्षात्कार अच्छा हुआ और उसे उस के लखनऊ से दूर कानपुर में नौकरी की पेशकश की गई तो उस ने फौरन स्वीकार कर लिया कि चलो कम से कम 1-2 साल शादी के झंझट से मुक्ति मिली. थोड़े ही दिनों में उसे नियुक्तिपत्र मिल गया और तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उस ने नौकरी जौइन कर ली.

अब शुरू हुआ एक ऐसा सिलसिला जिस में सोमवार से शनिवार तक तो नौकरी में निकल जाते, फिर आती एक दिन की छुट्टी. इसलिए शनिवार आते ही तारा सारा काम जल्दीजल्दी निबटा कर दोपहर को ट्रेन पकड़ कर शाम तक लखनऊ हाजिर हो जाती, फिर सोमवार की सुबह इंटरसिटी से कानपुर पहुंच कर सीधे औफिस. यही अब तारा की साप्ताहिक दिनचर्या बन गई थी.
तारा अब अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहती, पर व्यस्तता के कारण वह ऐसा कर नहीं पाती थी. इस तरह उस के जीवन में एक अजीब सा एकाकीपन या यों कहें कि एक खालीपन सा आ गया था जिसे वह चाह कर भी नहीं भर पा रही थी.
दिखने में सुंदर व स्मार्ट होने के कारण औफिस में वह सब की नजरों में चढ़ी रहती. एक दिन उस के एक वरिष्ठ सहयोगी रमेशजी ने उस से कहा, ‘बेटी, औफिस वाले तुम्हारे बारे में तरहतरह की गौसिप करते हैं, अकेली लड़की के बारे में अकसर ऐसी बातें तो होती ही रहती हैं. यदि तुम्हारी शादी हुई होती तो शायद लोग तुम्हारे बारे में ऐसी बातें न करते. तुम्हारी उम्र भी शादी की हो चुकी है. यदि हो सके तो जल्दी से शादी कर के सब का मुंह बंद कर दो.’
रमेशजी की बात सुन कर वह दंग रह  गई कि सामने मीठीमीठी बातें करने  वाले उस के सहयोगी उस के बारे में कैसे गंदे खयाल रखते हैं, पर वह नहीं चाहती थी कि अभी शादी के बंधन में बंधे क्योंकि इसी से बचने के लिए ही तो वह इतनी कष्टपूर्ण जिंदगी जी रही है. पर आखिर होनी को कौन टाल सकता है. समय ने करवट बदली और घर में भी शादी की चर्चा ने जोर पकड़ लिया. आखिरकार पापा ने लखनऊ में ही एक सरकारी अधिकारी विवेक से उस की शादी तय कर दी और उस से कहा कि वह चाहे तो उस से मिल कर अपनी पसंद बता दे. बुरी फंसी बेचारी, आखिरकार उसे हां करनी पड़ी और शादी की तारीख तय हो गई. मिलनेमिलाने के सिलसिले के बाद जब शादी का दिन नजदीक आया तो
1 माह की छुटटी ले कर वह अपने घर आ गई और शादी की तैयारियों में लग गई. घर में खुशी का माहौल था, घर की पहली शादी जो थी. भाई रोहन और बहन बबली तो हमेशा भागतेदौड़ते, व्यस्त नजर आते थे. घर में जीजाजी आने वाले थे, इसलिए दोनों बहुत खुश थे.

एक दिन तारा के मोबाइल पर   विवेक का फोन आया. फोन उठाते ही विवेक की आवाज आई, ‘जल्दी से तैयार हो जाओ, तारा, तुम्हारे लिए साडि़यां और गहने खरीदने बाजार चलना है.’

तारा को एक झटका सा लगा क्योंकि एक तो विवेक ने शादी तय होने के बाद से एक भी बार फोन नहीं किया और आज पहली बार फोन भी किया, वह भी ऐसे जैसे वह उस की होने वाली पत्नी नहीं बल्कि आया हो और कपड़े व गहने खरीद कर वह उस पर कोई उपकार कर रहा है. उसे गुस्सा तो बहुत आया परंतु उस ने कुछ कहने के बजाय बस इतना ही कहा, ‘ठीक है, मैं आधे घंटे में तैयार हो जाती हूं.’

‘ठीक है, तुम तैयार हो कर सहारागंज पहुंचो, मैं 1 घंटे में तुम्हें वहीं मिलूंगा,’ यह कह कर विवेक ने फोन काट दिया.
जिस रूखेपन से विवेक ने फोन पर उस से बात की थी, उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा पर वह कुछ कहने के बजाय जल्दी से तैयार हुई और आटो पकड़ कर सहारागंज पहुंच गई. विवेक उसे वहीं मिल गया. अकेले में पहली मुलाकात, न कोई औपचारिकता और न ही कोई प्यारभरी बात. विवेक ने यह भी नहीं कहा कि चलो पिज्जाहट में चल कर पिज्जा खाते हैं और थोड़ा घूमते हैं. बस, उस ने कहा कि चलो, और दोनों हजरतगंज में खरीदारी करने निकल गए.
अपने दोस्तों से शादी के पूर्व मुलाकातों के कई रोमांटिक किस्से तारा ने सुन रखे थे पर उसे विवेक के इस व्यवहार से झटका लगा, उसे विवेक से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. खरीदारी के दौरान भी विवेक तारा पर अपनी पसंद लादता रहा और उस ने वही खरीदा जो उसे पसंद था. तारा चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाई. बस, वह विवेक के साथ घूमती रही. खरीदारी के बाद वह बेरुखे मन से उसे आटो पर बिठा कर चला गया. न कोई औपचारिकता, न कोई प्यार की बात.
तारा को लगा कि विवेक सचमुच रोमांटिक व्यक्ति नहीं है और उसे उस की पसंदनापसंद का बिलकुल भी खयाल नहीं है. यह सोचते हुए उस के मन में विवेक के प्रति कड़वाहट भर गई. उस ने सोचा कि जब विवेक ऐसा है तो उस के परिवार वाले कैसे होंगे और वह उन के साथ कैसे सामंजस्य बिठा पाएगी. पर अब वह कर भी क्या सकती थी, शादी बिलकुल करीब थी और वह घर में कोई हंगामा खड़ा नहीं करना चाहती थी.
शादी धूमधाम से संपन्न हुई. मम्मीपापा ने बड़े अरमान से अपनी सारी जमापूंजी इस शादी में लगा दी ताकि वर पक्ष को कोई शिकायत न हो. विदाई के वक्त सारा परिवार गाड़ी के आंखों से ओझल होने तक खूब रोया और वह भरे मन से ससुराल पहुंच गई. उस की सोच के विपरीत उस के ससुराल वालों ने पलकें बिछा कर उस का स्वागत किया और फिर शुरू हुई शादी के बाद की रस्मअदायगी.
शादी के पूर्व विवेक से मुलाकात ऐसी कड़वी यादें छोड़ गई थी कि जिस से पार पाना तारा के लिए मुश्किल था. वह दिनभर यही सोचती रही कि पहली मुलाकात से जो प्यार की मिठास घुलनी चाहिए उस ने कड़वाहट का रूप ले लिया और करीब आने के बजाय दिलों की दूरियां बढ़ गई थीं. बारबार उस के दिल में यही खयाल आ रहा था कि जो व्यक्ति उस के आत्मसम्मान का खयाल नहीं रख सकता, उस के साथ वह अपनी पूरी जिंदगी कैसे बिता पाएगी.
इसी बीच, सारी रस्मअदायगी पूरी होतेहोते काफी रात हो गई और सभी रिश्तेदार चले गए. अब विवेक की भाभी ने तारा को छेड़ते हुए सुहागरात के लिए उसे उस के कमरे में पहुंचा दिया और अपने कमरे में चली गईं. अंदर ही अंदर बेचैन तारा इस उधेड़बुन में थी कि ‘आखिर वह ऐसे शख्स, जिस के मन में उस के प्रति जरा सा भी प्यार नहीं है, कैसे उसे अपना सर्वस्व सौंप दे. हिंदू परंपरा में शादी के बाद उस के शरीर पर तो अब विवेक का हक था और वह उसे कैसे रोक सकती है?’ यह सोचते ही उस का चेहरा पीला पड़ने लगा.

इधर, विवेक के कुछ दोस्त उसे घेर कर पहली रात को ही ‘चिडि़या मार’ लेने की हिदायतें और नुस्खे बता रहे थे और विवेक भी सुहागरात के सपने बुनता हुआ रोमांचित हो रहा था. आखिरकार देर रात को उस के दोस्तों ने उसे कमरे में ढकेल दिया और अपनेअपने घर चले गए. विवेक के चेहरे पर तीव्र उत्तेजनाओं का ज्वार स्पष्ट नजर आ रहा था, मन तेजी से कमरे की ओर जाने को बेताब था किंतु शर्म, संकोच, संयम पारिवारिक मूल्यों की जंजीरों ने जैसे उस के पांव जकड़ रखे थे. धीरेधीरे सकुचाते हुए विवेक ने कमरे में प्रवेश किया और दरवाजा बंद कर बिस्तर की ओर बढ़ने लगा. तारा बिस्तर पर सिमटी सी, सकुचाई सी बैठी थी पर उस ने मन ही मन एक दृढ़ फैसला कर लिया था. विवेक ने सब से पहले तारा का घूंघट उठाया और उस का सुंदर चेहरा देख कर बोला, ‘तारा, आज सचमुच तुम बिलकुल चांद सी लग रही हो. आज से मैं तुम्हें तारा नहीं चंदा कहूंगा और तुम्हें संसार की सभी खुशियां देने का प्रयास करूंगा. आज से हम एक नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हैं. बोलो, दोगी न मेरा साथ?’
विवेक के प्रति मन में कड़वाहट लिए तारा को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया. विवेक ढेर सारी बातें करता रहा पर तारा यह सोचने में लगी रही कि आखिर वह विवेक को कैसे सबकुछ कह पाएगी.
अचानक विवेक को शरारत सूझी और दोस्तों की सलाह के अनुसार उस ने अपना हाथ तारा के कंधे पर रखा और फिर कंधे से नीचे सरकाना शुरू कर दिया. जैसे ही विवेक का हाथ नीचे आया, तारा उस का हाथ पकड़ते हुए बोली, ‘रुको विवेक…’
यह सुनते ही विवेक को जैसे सांप सूंघ गया. उस ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी कि सुहागरात के दिन उसे ऐसा सुनना पड़ेगा परंतु धैर्य से काम लेते हुए उस ने पूछा, ‘क्या बात है, चंदा?’
इतना सुनना था कि तारा शुरू हो गई, ‘विवेक, शायद इस के लिए यह समय सही नहीं है, क्योंकि हम अभी तक एकदूसरे को अच्छी तरह से समझ नहीं पाए हैं और ऐसे में मैं अपनेआप को तुम्हें सौंप नहीं सकती.
‘आज मैं ने एक फैसला लिया है कि हम 1 वर्ष तक जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाएंगे. इस 1 वर्ष के दौरान मैं पूरी तरह से तुम्हें और तुम्हारे परिवार को समझने की कोशिश करूंगी और पूरे समर्पण के साथ तुम्हारे हर सुखदुख की साथी बनूंगी और तुम भी मेरे परिवार के सदस्यों के साथ घुलनेमिलने का प्रयास करोगे.
1 साल बाद यदि हमारा विश्वास अटूट रहा तो फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे, वरना शायद हमारे रास्ते अलगअलग भी हो सकते हैं. ऐसे में मैं अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर पछतावे में नहीं रहना चाहती.’
जैसे कोई बदले की भावना से प्रेरित हो कर बंदूक की सारी गोलियां दाग देता है और फिर एक लंबी सांस लेता है, कुछ ऐसे ही तारा एक ही सांस में सबकुछ विवेक को कह गई. तारा की बातें सुन कर विवेक को काटो तो खून नहीं. उस की हालत ऐसी हो गई थी कि उसे न कुछ कहते बनता था न ही सुनते. उस ने हाथ ऐसे हटाया मानो बिजली का झटका लग गया हो. उस समय उस ने कुछ न बोलना ही बेहतर समझा और चुपचाप तकिया उठा कर सोफे पर सोने चला गया.
अगले दिन सुबह जब दोनों कमरे से बाहर निकले तो विवेक की भाभी उन दोनों को छेड़ने लगी पर दोनों ने बिलकुल जाहिर नहीं होने दिया कि उन के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. तारा इन सब बातों को भूलते हुए घर के काम में लग गई और धीरेधीरे वह परिवार के सारे सदस्यों से घुलमिल गई और उस घर को अपना बना लिया परंतु विवेक के प्रति उस के मन में कड़वाहट वैसी ही बनी रही. दिन में तो सबकुछ ठीक चलता परंतु रात में न सिर्फ उन के बिस्तरों के बीच बल्कि उन के दिलों के बीच की दूरियां भी साफ नजर आतीं.
विवेक ने भी अपने औफिस से छुट्टी ले ली थी इसलिए वह दिनभर घर में ही रहता और बच्चों के साथ खेलता रहता. खेल की आड़ में ही वह कभीकभी तारा के शरीर से छेड़खानी भी कर देता. हालांकि विवेक के छूते ही उस के शरीर में करेंट सा दौड़ जाता पर वह चाह कर भी कुछ बोल नहीं पाती.
इसी बीच, तारा कई बार अपने मायके भी गई और विवेक को भी साथ ले गई. विवेक उसे वहां छोड़ आता पर वहां ज्यादा देर रुकता नहीं था. वह रोहन व बबली से भी ज्यादा बातें नहीं करता था. बस, गंभीर बना रहता था. यहां तक कि मम्मीपापा के साथ भी वह औपचारिक ही बना रहता. 1-2 दिन रहने के बाद विवेक आ कर उसे वापस ले आता. विवेक का यह व्यवहार भी तारा को पसंद नहीं आया और उस के मन में विवेक के प्रति कड़वाहट और बढ़ती चली गई.
इसी बीच छुट्टियां बीत जाने के बाद तारा ने फिर से औफिस जौइन कर लिया. सभी सहकर्मियों ने उसे बधाई दी पर तारा उन्हें क्या कहती? बस, मन से उस ने औफिस का काम शुरू कर दिया. दिन तो औफिस में बीत जाता पर रात आते ही तारा के मन में कई तरह के द्वंद्व शुरू हो जाते कि कहीं उस ने शादी कर के कोई गलती तो नहीं कर दी? क्या उसे अब इस रिश्ते से मुक्ति ले लेनी चाहिए जिस रिश्ते में उस के पति का उस में या उस के परिवार के प्रति कोई झुकाव न हो? वह अपनेआप से लड़ती रहती. पर वह अपना गम सुनाए तो किसे. जब उस के दोस्त उस की सुहागरात के बारे में तरहतरह की बातें पूछते और उसे छेड़ते तो तारा बनावटी कहानियां सुना कर सब को शांत कर देती.
इस दौरान, अकसर विवेक से फोन पर बातें भी होतीं पर रिश्तों की कड़वाहट इन बातों में साफ नजर आती. इस बीच वह कई बार लखनऊ भी आई और अपने घर जाने के बजाय सीधे ससुराल गई और ससुराल वालों को कभी इस का एहसास नहीं होने दिया कि उस के और विवेक के बीच कुछ अच्छा नहीं चल रहा. वह पूरे समर्पण के साथ अपने सासससुर की सेवा करती और बच्चों के साथ खेलती. घर के सारे लोग उस के व्यवहार से काफी प्रसन्न थे पर रात को विवेक के कमरे में आते ही कमरे में शांति छा जाती. विवेक ने भी कभी उसे छूने या उस के बिस्तर पर साथ सोने के लिए जबरदस्ती नहीं की.
तारा हमेशा यही सोचती रहती कि जिस तरह से उस ने विवेक के परिवार को अपना लिया है उसी तरह से विवेक भी उस के परिवार को अपना ले और उन के हर सुखदुख में शामिल हो.
यही सोच कर उस ने विवेक की पसंदनापसंद का पता लगा कर उस के अनुरूप खुद को ढालना शुरू कर दिया. जब उसे पता चला कि विवेक को डांस एवं म्यूजिक बहुत पसंद है तो उस ने औफिस के बाद एक डांस एवं म्यूजिक क्लास जौइन कर ली ताकि वह किसी मौके पर उसे सरप्राइज दे सके. और जल्दी ही वह मौका आ गया. विवेक के चाचा के लड़के की शादी में वह गई और उस ने बच्चों के साथ मिल कर खूब डांस व मस्ती की. विवेक को यह सब काफी अच्छा लगा पर वह हमेशा यही सोचता रहता कि आखिर तारा ने उस के साथ ऐसा क्यों किया.
विवेक का जन्मदिन भी करीब आ रहा था और तारा उस के लिए एक और सरप्राइज की योजना बना चुकी थी ताकि वह विवेक को सरप्राइज दे सके. अपनी योजना के अनुसार जन्मदिन के दिन उस ने पहले से ही घर के सारे सदस्यों को लखनऊ के एक रैस्तरां में भेज दिया. विवेक यही सोच रहा था कि तारा ने आज उसे जन्मदिन की बधाई तक नहीं दी. हर साल घर में भी सभी को उस का जन्मदिन याद रहता है पर आज सब बिना बताए अचानक चले कहां गए.
तभी तारा ने विवेक से कहा, ‘विवेक, मेरी सहेली प्रेरणा ने मुझे बुलाया है, क्या तुम मुझे उस के घर छोड़ दोगे?’
‘क्यों नहीं, चलो,’ बिना कुछ पूछे विवेक तारा को बाइक पर बैठा कर चल दिया.
रैस्तरां आते ही तारा ने विवेक से कहा कि चलो रैस्तरां में कौफी पीते हैं. यहां की कौफी बड़ी टेस्टी होती है.
जब विवेक और तारा कौफी का और्डर दे कर इंतजार कर रहे थे तभी पीछे से सारे बच्चों ने शोर मचाते हुए विवेक को घेर लिया और जोरजोर से चिल्लाने लगे, ‘हैप्पी बर्थडे टू यू विवेक चाचा.’
अब विवेक को समझ आया कि इस तूफान के पूर्व शांति का कारण यह था. अब तक सारा परिवार इकट्ठा हो चुका था, सब ने खूब ऐंजौय किया.
विवेक काफी खुश था. इस घटना से उस के मन में तारा के प्रति प्रेम और बढ़ गया. पर वह यह सोचने लगा कि वह कैसे तारा को खुश करे ताकि उस के मन का द्वेष मिटे और दोनों एक खुशहाल जीवन जी सकें. इस तरह शादी के 6 माह बीत गए पर तारा अब तक उस के करीब नहीं आई. तारा का जन्मदिन करीब था. विवेक ने भी सोचा कि वह तारा के जन्मदिन पर कानपुर जा कर उस के जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगा.
यही सोच कर वह बिन बताए जन्मदिन के दिन सुबह ही तारा के घर पहुंच गया और उसे जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं और बोला, ‘आज छुट्टी ले लो तारा, हम लोग कहीं घूमने चलते हैं.’
जवाब में तारा ने कहा, ‘नहीं, विवेक, औफिस में काफी काम है और मैं पहले से बता कर भी नहीं आई हूं, इसलिए औफिस तो जाना ही पड़ेगा पर मैं कोशिश करूंगी कि दोपहर तक सारा काम निबटा कर आधे दिन की छुट्टी ले लूं.’
अचानक विवेक के कानपुर आ जाने से तारा अचंभित थी और औफिस में यही सोचती रही कि कहीं यह विवेक की कोई चाल तो नहीं क्योंकि वह तो यहां अकेले रहती है. इसलिए शायद वह इस का फायदा उठाना चाहता हो.
फिर भी अपने वादे के अनुसार वह दोपहर को छुट्टी ले कर घर आ गई और तैयार हो कर विवेक के साथ निकल गई. विवेक ने दिनभर घूमने व शाम को डिनर करने के बाद लखनऊ लौटने के बारे में कहा तो तारा ने फौरन हां कर दी और खुश होते हुए मन ही मन कहा, ‘चलो अच्छा हुआ, आज तो बच गई मैं.’
थोड़े ही दिन में सर्दियां शुरू हो गईं और रात को स्कूटी चलाने के कारण तारा को ठंड लगने से वायरल फीवर हो गया. जब उस ने विवेक को इस बारे में बताया तो वह फौरन कानपुर पहुंच कर तारा को बड़े प्यार से घर ले आया और तुरंत डाक्टर के पास ले गया. उस के चेहरे की घबराहट तारा साफसाफ पढ़ सकती थी. उसे यह एहसास हुआ कि विवेक को उस की चिंता है. उस ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले ली और दिनभर तारा के पास ही बैठा रहता और रात को जब सब चले जाते तो वह जा कर सोफे पर सो जाता.
विवेक की प्यारभरी देखभाल से तारा जल्दी ठीक हो गई और कानपुर जाने के लिए तैयार हो गई तो विवेक ने कहा, ‘अभी नहीं, तुम काफी कमजोर हो गई हो, इसलिए थोड़े दिन आराम कर लो फिर चली जाना.’
इस प्यारभरे अनुरोध को वह टाल नहीं सकी. अगले ही दिन विवेक उसे मम्मीपापा से मिलाने ले गया. इस दौरान तारा ने महसूस किया कि विवेक बबली और रोहन के साथ काफी घुलमिल गया है और उन के साथ काफी हंसीमजाक कर रहा है. दूसरी ओर, इस बार मम्मीपापा के साथ भी उस का व्यवहार प्रेमभरा था.
तारा विवेक के चेहरे पर यह परिवर्तन साफ देख पा रही थी. परंतु उस ने सोचा कि अभी तो सिर्फ 6 माह ही बीते हैं, अभी तो वह पूरे 6 माह विवेक को परखेगी तभी उसे सच्चे मन से अपनाएगी.

2 दिन वहां रुकने के बाद विवेक रात को तारा को ले कर अपने घर लौट आया. कड़ाके की सर्दी में बाइक चलाने के कारण विवेक को सर्दी लग गई पर उस ने तारा को कुछ नहीं बताया और सोफे पर सोने चला गया.

तारा विवेक में आए परिवर्तन को ले कर काफी खुश थी और सुनहरे दिनों के सपने बुनते हुए पता नहीं कब उस की आंख लग गई.
रात को जोरजोर से कराहने की आवाज सुन कर उस की आंख खुली तो उस ने देखा कि विवेक ठंड से कंपकंपाते हुए सिकुड़ कर सोफे पर सोया है. यह देखते ही वह घबरा कर उठी और विवेक के पास जा कर उसे रजाई ओढ़ा कर बिस्तर पर लाने लगी तो विवेक ने कहा कि नहीं, मैं यहीं ठीक हूं, सुबह तक ठीक हो जाऊंगा.
तारा ने जबरदस्ती विवेक को बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और तेजी से उस के पैर सहलाने लगी. पैर सहलाने से भी जब उस के शरीर की कंपन कम नहीं हुई तो वह बिना सोचेसमझे विवेक के सीने से लिपट गई और उसे जोर से जकड़ लिया. अचानक मिली नारी देह की गरमी से विवेक के शरीर की कंपन ठीक हो गई. आराम मिलते ही उस ने तारा से अलग होने के लिए उस की पकड़ ढीली करने को कहा तो तारा ने अपनी पकड़ और मजबूत करते हुए उसे जोर से जकड़ लिया और बोली, ‘बस, विवेक, तुम्हारे धैर्य का इम्तिहान अब खत्म हुआ, ऐसे ही पड़े रहो, बस.’
अब तक विवेक को आराम मिल चुका था. वह भावुक होते हुए बोला, ‘तारा, बचपन से ही मैं संकोची स्वभाव का हूं, मुझे कभी लड़कियों से बातें या दोस्ती करने का मौका ही नहीं मिला. इसलिए मैं कभी समझ ही नहीं पाया कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं. यही कारण है कि मैं तुम से और तुम्हारे परिवार के सदस्यों से ज्यादा घुलमिल नहीं पाया परंतु जब तुम ने मेरे परिवार को अपना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और मेरी हर पसंदनापसंद का खयाल रखा तो मैं ने सोचा कि जब तुम मेरे लिए इतना बदल सकती हो तो मैं तुम्हारे लिए क्यों नहीं बदल सकता. यही सोच कर मैं ने अपनेआप में बदलाव लाना शुरू कर दिया है.
‘बचपन से मैं ने सदैव ही आगे रहते हुए सभी कार्य किए थे और आगे रहने की इसी होड़ के चलते मुझे किसी की भावनाओं को समझने का मौका नहीं मिला और इसलिए तुम्हारे जज्बातों को न समझने की भूल कर बैठा. वैसे तारा, मैं तुम्हें कभी इग्नोर करना नहीं चाहता था,’ विवेक के स्वर में एक पश्चाताप मिश्रित दुख का भाव था, जिसे तारा ने बखूबी पढ़ लिया.
फिर वह तारा की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘तारा, अभी कम से कम 6 महीने और तुम्हें मुझ से कोई खतरा नहीं है.’
उस की बातें सुन कर तारा अपनी आंखों में शरारत लिए विवेक के गालों को चूमते हुए बोली, ‘तारा नहीं, चंदा, तभी तो आप की चंदा कह रही है कि आप ने अपना इम्तिहान वक्त से पहले ही डिस्ंिटक्शन के साथ पास कर लिया है और इनाम के हकदार बन गए हैं. सच कहूं, विवेक,’ तारा ने सकुचाते हुए कहा, ‘मुझे भी तुम्हारे शादी के पहले के इग्नोरैंस की अपेक्षा बाद की दूरी बहुत खली, पिछले 6 महीने में हर रात मैं ने भी एक परीक्षा दी है, हर रात एक ही प्रश्न ने मेरी नींद उड़ा दी थी.’
‘कौन सा प्रश्न, चंदा?’ विवेक के चेहरे पर प्रश्नमिश्रित आश्चर्य के भाव थे.
तारा ने कहा, ‘यही कि मैं ने जो अनोखी शर्त रखी है वह सही है या गलत?’
यह कह कर विवेक की चंदा विवेक से लिपट गई. अब उन के जीवन में एक नई सुबह की शुरुआत हो चुकी है. और अनोखी शर्त अब जीवन के अनोखे आनंद में जैसे खो सी गई थी.

Best Hindi Satire : नाम नहीं काम बलवान है भइया

Best Hindi Satire : नाम बदलने से कुछ हो या न, सुविधा जरूर दुविधा में बदल जाती है. सरकार द्वारा नाम बदलने की वकालत तो की जाती है लेकिन मेकअप करने से चेहरा थोड़े ही बदलता है.

सरकारें अपनी तासीर व सियासी गुणाभाग के मान से शहरों, प्रसिद्ध स्थानों, संस्थानों, स्टेशनों, सड़कों के नाम परिवर्तन का अतिप्रिय कार्य अंजाम देती रहती हैं. सरकार को कुछ न कुछ तो करना ही होता है. गरीबी, बेरोजगारी दूर करने, महंगाई की नकेल कसने जैसे पीड़ादायक कार्य के बनिस्बत नाम बदलने की कवायद में उसे सुखानुभूति होती है.

बौम्बे मुंबई हो गया. पर बौम्बे हौस्पिटल मुंबई हौस्पिटल नहीं हुआ. न ही बौंबे कील को मुंबई कील कभी कहा जाएगा. कहने पर भी मुंबई कील में वैसी फील नहीं आएगी. बौम्बे उच्च न्यायालय को मुंबई उच्च न्यायालय कहने से क्या लंबित प्रकरण कम हो जाएंगे, पेशी पर पेशी मिलना बंद हो गरीब को क्या न्याय सुलभता से मिल जाएगा? क्या कलकत्ता को कोलकाता और मद्रास को चेन्नई करने से वहां सड़कों के गड्ढे कम हो गए, महंगाई कम हो गई? गुड निर्माण से गुड़गांव नाम पाए को गुरुग्राम करने से क्या वहां जाम से मुक्ति मिल गई? नाम बदलने से शहर नहीं, केवल साइनबोर्ड बदलता है.

मुगलसराय स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय होने से क्या ट्रेनों की लेटलतीफी बंद हो गई, क्या गंदगी कम हो गई, क्या वैंडरों ने बासी सामान बेचना बंद कर दिया, कुलियों व औटो वालों के मोलभाव बंद हो गए? पहले ये सब दुरुस्त हो, फिर नाम दुरुस्त करो.

बेंगलुरु के विक्टोरिया अस्पताल का नाम बेंगलुरु मैडिकल कालेज होने से यदि ड्यूटी डाक्टर समय पर पहुंचने लगे, मरीज को निजी क्लीनिक में बुलाना बंद हो जाए, कुप्रबंधन खत्म हो, महंगी दवाएं लिखना बंद हो जाए तब तो सारे अस्पतालों के नाम बदल दो.

भोपाल के वर्ल्ड क्लास हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति हो गया पर पुलिस स्टेशन, स्टेट बैंक की शाखा के बोर्ड पर अभी हबीबगंज ही लिखा है. आईआरसीटीसी पर आरक्षण करने जाओ तो स्टेशन कोड के रूप में आदतवश हबीबगंज का एचबीजे टाइप हो जाता है. जब तक रानी कमलापति का आरकेएमपी याद आए तब तक तो तत्काल कोटा का द एंड हो जाता है. भले ही सरकारी दस्तावेज में चीजों के नाम बदल जाएं पर जनमानस के मानसपटल पर तो सदियों से प्रचलित नाम ही अंकित रहने से वही जबान पर आता है. तो क्या नाम बदलना भ्रम बढ़ाना है?

देश, समाज, क्षेत्र स्थान विशेष की संस्कृति व प्राचीन गौरव के सम्मान के उद्देश्य से नाम में बदलाव किए जाने की वकालत की जाती है पर मेकअप करने से चेहरा थोडे़ ही बदल जाता है. बदलाव आंतरिक होता है, बाह्य नहीं. बदलाव तो सिर्फ स्याही तक सीमित रहता है. वैसे, पुरानी शराब नई बोतल में पैक कर बेचने व पुरानी योजनाओं को नए नाम देने का ही यह वक्त है.

ट्विटर कितना उम्दा नाम था लेकिन एलन मस्क नए स्वामी बने तो चिडि़या को मस्क कर एक्स कर उसे एक्स ही बना दिया. कहां ट्विटर व उस का प्यारा सा लोगो और कहां एक्स. कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली की तरह का हो गया.

नाम परिवर्तन से और कुछ हो या न हो, सुविधा दुविधा में बदल जाती है. व्यवस्था द्वारा बारबार नाम बदलने से पर्यटन व अन्य उद्योगों को कितनी जटिलता का बैठेबिठाए सामना करना पड़ता है. बड़ी संख्या में पुराने दस्तावेज दो कौड़ी के रह जाते हैं.

गंगाधर तो कहता है, बदलना है तो गधे का नाम बदलो. सदैव सिर झुका कर कस कर मेहनत करता है लेकिन गधा कह कर सब मेहनत पर पानी फेर देते हो जबकि सरकारी दफ्तर में तो ढेले भर काम नहीं करने वाला भी सिर उठा कर घूमता है. ऊपर से काम करने वालों पर आलोचना के ढेले अलग फेंकता रहता है.

पता नहीं हम शेक्सपियर की रोमियो व जूलियट की वह पंक्ति क्यों भूल जाते हैं कि ‘व्हाटस इन अ नेम दैट व्हिच वी कौल अ रोज बाय एनी अदर नेम वुड स्मेल एज स्वीट.’

नाम बदलने से इतिहास नहीं बदलता. भैया नाम नहीं कार्यसंस्कृति बदलने, योजनाओं, उठाए कदमों को जनहितैषी व परिणामोन्मुखी बनाने की जरूरत है. नाम परिवर्तन बेरोजगारी, महंगाई, असमानता, दुराचार कम करते हों, तब तो सही है.

 

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