Guests : फ्लैटनुमा मकानों में भले तरहतरह के सुरक्षा उपकरण आने लगे हों मगर टुकड़ोंटुकड़ों में बंट जाने से सामाजिक सुरक्षा गायब हो गई है. फ्लैट में कोई किसी को नहीं जानता और सब अकेले पड़ गए हैं.

लेख का शीर्षक कुछ चौंकाने वाला जरूर है, मगर मेहमानों को खाने पर घर बुलाना वास्तव में आप की सुरक्षा से जुड़ा मामला भी है. आजकल मेहमानवाजी की परम्परा खत्म होती जा रही है. बर्थडे, एनिवर्सरी, त्योहार आदि में अब लोग अपने घर के दो चार सदस्यों के साथ मना कर खुश हो लेते हैं. जिस को कुछ ज्यादा पैसा खर्च करने का शौक होता है वे घरवालों के साथसाथ कुछ दोस्तों रिश्तेदारों को बाहर होटल-रेस्टोरेंट में पार्टी दे देते हैं.

एक पीढ़ी पहले के लोग बच्चों के जन्मदिन पर, नए साल के आगमन पर, तीज त्योहारों पर दोस्तों रिश्तेदारों को घर पर बुला कर खुश होते थे. इस से एक तो घर में रौनक हो जाती थी, दूसरे रिश्तेदार भी आपस में मिल मिला लेते थे. साथ बैठ कर खाना खाना और गप्पशप्पे रिश्तों को मजबूती देते थे. लोग एकदूसरे के दुखसुख से भी दो चार होते थे. आसपड़ोस के लोग भी देखते थे कि फलां के वहां तो कितने लोग आतेजाते हैं, उन के कितने दोस्तरिश्तेदार हैं. वे कितने सामाजिक लोग हैं. इस से आसपास के लोगों पर प्रभाव भी बढ़ता था.

घर पर इस तरह की पार्टियां घर की गृहणी को अपनी पाक कला के प्रदर्शन के लिए बेहतरीन मंच भी प्रदान करती थीं. जब मेहमान उन के बनाए स्वादिष्ट व्यंजनों को उंगलियां चाटचाट कर खाते और कहते - भाभीजी आप की बनाई तरकारी का तो जवाब नहीं. और यह खीर तो सचमुच लाजवाब है. इतना स्वाद कहां से लाती हैं आप? ऐसी तारीफ सुन कर भाभीजी तो फूली नहीं समाती थीं. गालों पर लाली उभर आती थी. घर की औरत को खुशी और तारीफ के ऐसे मौके तो बस ऐसी पार्टियों के आयोजन में ही नसीब होते थे. आज की गृहणियों को ऐसी तारीफ नहीं मिल पाती क्योंकि लोगों ने मेहमानों को घर पर बुलाना और उन की आवभगत करनी ही बंद कर दी है.
दरअसल पहले संयुक्त परिवार में मातापिता, भाईबहन, देवरानीजेठानी, चाचाताऊ सब इकट्ठे रहते थे. रसोई भी इकट्ठी बनती थी. घर की तीन चार औरतें आपस में मिल बांट कर सारा काम आसानी से निपटा लेती थीं. त्योहारों पर ढेर सारे पकवान भी बना लेती थीं. एकदूसरे के अनुभवों से सीखती भी थीं. तीज-त्योहार या किसी अन्य आयोजन पर घर में मेहमान इकट्ठे हुए तो उन की आवभगत करने के लिए काफी लोग होते थे. पर अब एकल परिवार ज्यादा हैं. घर में मात्र दो चार प्राणी. यानी पतिपत्नी और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे. अब ज्यादातर औरतें नौकरीपेशा भी हैं. ऐसे में उन के पास सिर्फ रविवार का दिन ही होता है जब वे सारा दिन घर पर होती हैं. मगर इस दिन भी उन के पास बहुत काम होते हैं. एक तो हफ्ते भर की थकान, फिर बच्चों की फरमाइश कि आज तो कुछ अच्छा बना कर खिला दो. आज तो कहीं घूमने चल पड़ो. आज तो शौपिंग करा दो. आज तो होमवर्क पूरा करवा दो. आज तो मेरा प्रोजेक्ट बनवा दो. आदिआदि. ऐसे में मेहमानों के लिए टाइम किस के पास है?

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