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Love Stories : कितना प्‍यार करते हो

Love Stories : दिसंबर की वह शायद सब से सर्द रात थी, लेकिन कुछ था जो मुझे अंदर तक जला रहा था और उस तपस के आगे यह सर्द मौसम भी जीत नहीं पा रहा था.

मैं इतना गुस्सा आज से पहले स्नेहा पर कभी नहीं हुआ था, लेकिन उस के ये शब्द, ‘पुनीत, हमारे रास्ते अलगअलग हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते,’ अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे थे. इन शब्दों की ध्वनि अब भी मेरे कानों में बारबार गूंज रही थी, जो मुझे अंदर तक झिंझोड़ रही थी.

जो कुछ भी हुआ और जो कुछ हो रहा था, अगर इन सब में से मैं कुछ बदल सकता तो सब से पहले उस शाम को बदल देता, जिस शाम आरती का वह फोन आया था.

आरती मेरा पहला प्यार थी. मेरी कालेज लाइफ का प्यार. कोई अलग कहानी नहीं थी, मेरी और उस की. हम दोनों कालेज की फ्रैशर पार्टी में मिले और ऐसे मिले कि परफैक्ट कपल के रूप में कालेज में मशहूर हो गए.

मैं आरती को बहुत प्यार करता था. हमारे प्यार को पूरे 5 साल हो चुके थे, लेकिन अब कुछ ऐसा था, जो मुझे आरती से दूर कर रहा था. मेरी और आरती की नौकरी लग चुकी थी, लेकिन अलगअलग जगह हम दोनों जल्दी ही शादी करने के लिए भी तैयार हो चुके थे. आरती के पापा के दोस्त का बेटा विहान भी आरती की कंपनी में ही काम करता था. वह हाल ही में कनाडा से यहां आया था. मैं उसे बिलकुल पसंद नहीं करता था और उस की नजरें भी साफ बताती थीं कि कुछ ऐसी ही सोच उस की भी मेरे प्रति है.

‘‘देखो आरती, मुझे तुम्हारे पापा के दोस्त का बेटा विहान अच्छा नहीं लगता,‘‘ मैं ने एक दिन आरती को साफसाफ कह दिया.

‘‘तुम्हें वह पसंद क्यों नहीं है?‘‘ आरती ने मुझ से पूछा.

‘‘उस में पसंद करने लायक भी तो कुछ खास नहीं है आरती,‘‘ मैं ने सीधीसपाट बात कह दी.

‘‘तो तुम्हें उसे पसंद कर के क्या करना है,‘‘ यह कह कर आरती हंस दी.

मेरे मना करने का उस पर खास फर्क नहीं पड़ा, तभी तो एक दिन वह मुझे बिना बताए विहान के साथ फिल्म देखने चली गई और यह बात मुझे उस की बहन से पता चली.

मुझे छोटीछोटी बातों पर बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है, शायद इसीलिए उस ने यह बात मुझ से छिपाई. उस दिन मेरी और उस की बहुत लड़ाई हुई थी और मैं ने गुस्से में आ कर उस को साफसाफ कह दिया था कि तुम्हें मेरे और अपने उस दोस्त में से किसी एक को चुनना होगा.

‘‘पुनीत, अभी तो हमारी शादी भी नहीं हुई है और तुम ने अभी से मुझ पर अपना हुक्म चलाना शुरू कर दिया है. मैं कोई पुराने जमाने की लड़की नहीं हूं, कि तुम कुछ भी कहोगे और मैं मान लूंगी. मेरी भी खुद की अपनी लाइफ है और खुद के अपने दोस्त, जिन्हें मैं तुम्हारी मरजी से नहीं बदलूंगी.‘‘

सीधे तौर पर न सही, लेकिन कहीं न कहीं उस ने मेरे और विहान में से विहान की तरफदारी कर मुझे एहसास करा दिया कि वह उस से अपनी दोस्ती बनाए रखेगी.

आरती और मैं हमउम्र थे. उस का और मेरा व्यवहार भी बिलकुल एकजैसा था. मुझे लगा कि अगले दिन आरती खुद फोन कर के माफी मांगेगी और जो हुआ उस को भूल जाने को कहेगी, लेकिन मैं गलत था, आरती की उस दिन के बाद से विहान से नजदीकियां और बढ़ गईं.

मैं ने भी अपनी ईगो को आगे रखते हुए कभी उस से बात करने की कोशिश ही नहीं की और उस ने भी बिलकुल ऐसा ही किया. उस को लगता था कि मैं टिपिकल मर्दों की तरह उस पर अपना फैसला थोप रहा हूं, लेकिन मैं उस के लिए अच्छा सोचता था और मैं नहीं चाहता था कि जो लोग अच्छे नहीं हैं, वे उस के साथ रहें. एक दिन उस की सहेली ने बताया कि उस ने साफ कह दिया है कि जो इंसान उस को समझ नहीं सकता, उस की भावनाओं की कद्र नहीं कर सकता, वह उस के साथ अपना जीवन नहीं बिता सकती.

आरती और मेरे रास्ते अब अलगअलग हो चुके थे. मैं उसे कुछ समझाना नहीं चाहता था और वह भी कुछ समझना नहीं चाहती थी.

मुझे बस हमेशा यह उम्मीद रहती थी कि अब उस का फोन आएगा और एक माफी से सबकुछ पहले जैसा हो जाएगा, लेकिन शायद कुछ चीजें बनने के लिए बिगड़ती हैं और कुछ बिगड़ने के लिए बनती हैं.

हमारी कहानी तो शायद बिगड़ने के लिए ही बनी थी. 5 साल का प्यार और साथ सबकुछ खत्म सा हो गया था.

मेरे घर में अब मेरे रिश्ते की बात चलने लगी थी, लेकिन किसी और लड़की से. मां मुझे रोज नएनए रिश्तों के बारे में बताती थीं, लेकिन मैं हर बार कोई न कोई बहाना या कमी निकाल कर मना कर देता था.

मुझे भीड़ में भी अकेलापन महसूस होता था. सब से ज्यादा तकलीफ जीवन के वे पल देते हैं, जो एक समय सब से ज्यादा खूबसूरत होते हैं. वे जितने मीठे पल होते हैं, उन की यादें भी उतनी ही कड़वी होती हैं.

धीरेधीरे वक्त बीतता गया. मेरे साथ आज भी बस, आरती की यादें थीं. मुझे क्या पता था आज मैं किसी से मिलने वाला हूं. आज मैं स्नेहा से मिला. हम दोनों की मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी.

स्नेहा आरती की चचेरी बहन थी. साधारण नैननक्श वाली स्नेहा शादी में बिना किसी की परवा किए, सब से ज्यादा डांस कर रही थी. 21-22 साल की वह लड़की हरकतों से एकदम 10-12 साल की बच्ची लग रही थी.

‘‘बेटा, तुम्हारी गाड़ी में जगह है?‘‘ मेरे जिस दोस्त की शादी थी, उस की मम्मी ने आ कर मुझ से पूछा.

‘‘हां आंटी, क्यों?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘तो ठीक है, कुछ लड़कियों को तुम अपनी गाड़ी में ले जाना. दरअसल, बस में बहुत लोग हो गए हैं. तुम घर के हो तो तुम से पूछना ठीक समझा.‘‘

सजीधजी 3 लड़कियां मेरी कार में पीछे की सीट पर आ कर बैठ गईं. एक मेरे बराबर वाली सीट पर आ कर बैठ गई.

मेरे यह कहने से पहले कि सीट बैल्ट बांध लो, उस ने बड़ी फुर्ती से बैल्ट बांध ली. वे सब अपनी बातों में मशगूल हो गईं.

मुझे ऐसा एहसास हो रहा था जैसे मैं इस कार का ड्राइवर हूं, जिस से बात करने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी.

तभी स्नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘आप रजत भैया के दोस्त हैं न.‘‘

‘‘जी,‘‘ मैं ने बस, इतना ही उत्तर दिया. न तो इस से ज्यादा हमारी कोई बात हुई और न ही मुझे कोई दिलचस्पी थी.

आजकल के हाईटैक युग में जिस से आप आमनेसामने बात करने से हिचकें उस के लिए टैक्नोलौजी ने एक नया नुसखा कायम किया है, जो आज के समय में काफी कारगर है, और वह है चैटिंग.

स्नेहा ने मुझे फेसबुक पर रिक्वैस्ट भेजी और मैं ने भी स्वीकार कर ली.

हम दोनों धीरेधीरे अच्छे दोस्त बन गए. बातोंबातों में उस ने मुझे बताया कि उसे अपने कालेज के सैमिनार में एक प्रोजैक्ट बनाना है. मैं ने कहा, ‘‘तो ठीक है, मैं तुम्हारी मदद कर देता हूं.‘‘

इतने सालों बाद मैं ने उस के लिए दोबारा पढ़ाई की थी उस का प्रोजैक्ट बनवाने के लिए. कभी वह मेरे घर आ जाया करती थी तो कभी मैं उस के घर चला जाता. दरअसल, वह अपने कालेज की पढ़ाई की वजह से रजत के घर ही रहती थी. जब भी वह प्रोजैक्ट बनवाने के लिए आती तो बस, बोलती ही जाती थी. मेरे से बिलकुल अलग थी, वह.

एक दिन बातोंबातों में उस ने पूछा, ‘‘आप की कोई गर्लफ्रैंड नहीं है?‘‘

मैं उस को न कह कर बात वहीं पर खत्म भी कर सकता था, लेकिन मैं ने उस को अपने और आरती के बारे में सबकुछ सचसच बता दिया.

‘‘ओह,‘‘ स्नेहा ने दुख जताते हुए कहा, ‘‘मुझे सच में बहुत दुख हुआ यह सब सुन कर. क्या तब से आप दोनों की एक बार भी बात नहीं हुई?‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘नहीं, और अब करनी भी नहीं है,‘‘ यह कह कर हम दोनों प्रोजैक्ट बनाने लग गए.

आज जब स्नेहा आई तो कुछ बदलीबदली सी लग रही थी. आते ही न तो उस ने जोर से आवाज लगा कर डराया और न ही हंसी.

मैं ने पूछा, ‘‘सब ठीक तो है न?‘‘

वह बोली, ‘‘कुछ बताना था आप को, आप मुझे बताना कि सही है या गलत.‘‘

हम अच्छे दोस्त बन गए थे. मैं ने उस से कहा, ‘‘हांहां जरूर, क्यों नहीं,‘‘ बोलो.

उस ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी से प्यार हो गया है.‘‘

मैं ने कहा, ‘‘कौन है वह और क्या वह भी तुम से प्यार करता है?‘‘

उस ने कहा, ‘‘मालूम नहीं?‘‘

‘‘ओह, तुम्हारे ही कालेज में है क्या?‘‘ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,‘‘ उस ने बस छोटा सा जवाब दिया.

‘‘वह मेरा दोस्त है जो मुझ से 7 साल बड़ा है. उस की पहले एक गर्लफ्रैंड थी, लेकिन अब नहीं है. उस को गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है.

‘‘वह मेरे बारे में क्या सोचता है, पता नहीं, लेकिन जब वह मेरी मदद करता है, तो मुझे बहुत अच्छा लगता है. उस का नाम…‘‘ यह कह कर वह रुक गई.

‘‘उस का नाम,‘‘ स्नेहा ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘बहुत मजा आ रहा है न आप को. सबकुछ जानते हुए भी पूछ रहे हो और वैसे भी इतने बेवकूफ आप हो नहीं, जितने बनने की कोशिश कर रहे हो.‘‘

मैं बहुत तेज हंसने लगा.

उस ने कहा, ‘‘अब क्या फिल्मों की तरह प्रपोज करना पड़ेगा?‘‘

मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, उस की कोई जरूरत नहीं है. यह जानते हुए भी कि मैं उम्र में तुम से 7 साल बड़ा हूं और मेरे जीवन में तुम से पहले कोई और थी, तब भी…‘‘

‘‘हां, और वैसे भी प्यार में उम्र, अतीत ये सबकुछ भी माने नहीं रखते.‘‘

मैं ने उस को गले लगा लिया और कहा, ‘‘हमेशा मुझे ऐसे ही प्यार करना.‘‘

वह खुश हो कर मेरी बांहों में आ गई. अब मेरे जीवन में भी कोई आ गया था जो मेरा बहुत खयाल रखता था. कहने को तो उम्र में मुझ से 7 साल छोटी थी, लेकिन मेरा खयाल वह मेरे से भी ज्यादा रखती थी. हम दोनों आपस में सारी बातें शेयर करते थे. अब मैं खुश रहने लगा था.

उस शाम मैं और स्नेहा साथ ही थे, जब मेरा फोन बजा. फोन पर दूसरी तरफ से एक बहुत धीमी लेकिन किसी के रोने की आवाज ने मुझे अंदर तक हिला दिया. वह कोई और नहीं बल्कि आरती थी.

वह आरती जिस को मैं अपना अतीत समझ कर भुला चुका था या फिर स्नेहा के प्यार के आगे उस को भूलने की कोशिश कर रहा था.

‘‘हैलो, कौन?‘‘

‘‘मैं आरती बोल रही हूं पुनीत,‘‘ आरती ने कहा.

‘‘आज इतने दिन बाद तुम्हारा फोन…‘‘ इस से आगे मैं और कुछ कहता, वह बोल पड़ी, ‘‘तुम ने तो मेरा हाल भी जानने की कोशिश नहीं की. क्या तुम्हारा अहंकार हमारे प्यार से बहुत ज्यादा बड़ा हो गया था?‘‘

‘‘तुम ने भी तो एक बार फोन नहीं किया, तुम्हें आजादी चाहिए थी. कर तो दिया था मैं ने तुम्हें आजाद. फिर अब क्या हुआ?‘‘

‘‘तुम यही चाहते थे न कि मैं तुम से माफी मांगू. लो, आज मैं तुम से माफी मांगती हूं. लौट आओ पुनीत, मेरे लिए. मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है.‘‘

मैं बस उस की बातों को सुने जा रहा था बिना कुछ कहे और स्नेहा उतनी ही बेचैनी से मुझे देखे जा रही थी.

‘‘मुझे तुम से मिलना है,‘‘ आरती ने कहा और बस, इतना कह कर आरती ने फोन काट दिया.

‘‘क्या हुआ, किस का फोन था?‘‘ स्नेहा ने फोन कट होते ही पूछा.

कुछ देर के लिए तो मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. स्नेहा के दोबारा पूछने पर मैं ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आरती का फोन था.‘‘

‘‘ओह, तुम्हारी गर्लफ्रैंड का,‘‘ स्नेहा ने कहा.

मैं ने स्नेहा से अब तक कुछ छिपाया नहीं था और अब भी मैं उस से कुछ छिपाना नहीं चाहता था. मैं ने सबकुछ उस को सचसच बता दिया.

सारी बात सुनने के बाद स्नेहा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है आप को एक बार आरती से जरूर मिलना चाहिए. आखिर पता तो करना चाहिए कि अब वह क्या चाहती है.‘‘

यह जानते हुए भी कि वह मेरा पहला प्यार थी. स्नेहा ने मुझे उस से मिल कर आने की इजाजत और सलाह दी.

अगले दिन मैं आरती से मिला और आरती ने मुझे देख कर कहा, ‘‘तुम बिलकुल नहीं बदले, अब भी ऐसे ही लग रहे हो जैसे कालेज में लगा करते थे.‘‘

‘‘आरती अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं है,‘‘ मैं ने जवाब दिया.

‘‘क्यों?‘‘ आरती ने पूछा, ‘‘कोई आ गई है क्या तुम्हारे जीवन में?‘‘

‘‘हां, और उस को सब पता है. उसी के कहने पर मैं यहां तुम से मिलने आया हूं.‘‘

‘‘क्या तुम उसे भी उतना ही प्यार करते हो जितना मुझे करते थे, क्या तुम उस को मेरी जगह दे पाओगे?‘‘

मैं शांत रहा. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘हां, वह मुझे बहुत प्यार करती है.‘‘

‘‘ओह, तो इसलिए तुम मुझ से दूर जाना चाहते हो. मुझ से ज्यादा खूबसूरत है क्या वह?‘‘

‘‘आरती,‘‘ मैं गुस्से में वहां से उठ कर चल दिया. मुझे लग रहा था कि अब वह वापस क्यों आई? अब तो सब ठीक होने जा रहा था.

उस रात मुझे नींद नहीं आई. एक तरफ वह थी, जिस को कभी मैं ने बहुत प्यार किया था और दूसरी तरफ वह जो मुझ को बहुत प्यार करती थी.

अगली सुबह मैं स्नेहा के घर गया, तो वह कुछ उदास थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘मुझे लगता है कि हम एकदूसरे के लिए नहीं बने हैं और हमारे रास्ते अलग हैं,‘‘ यह कह कर वह चुपचाप ऊपर अपने कमरे में चली गई.

मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि इतना प्यार करने वाली लड़की इस तरह की बातें कैसे कर सकती है.

आरती का फोन आते ही मैं अपने खयालों से बाहर आया. मुझे स्नेहा पर बहुत गुस्सा आ रहा था.

‘‘आरती, इस समय मेरा बात करने का बिलकुल मन नहीं है. मैं तुम से बाद में बात करता हूं,‘‘ मेरे फोन रखने से पहले ही आरती बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ?‘‘

‘‘आरती, मैं स्नेहा को ले कर पहले से ही बहुत परेशान हूं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘वह अभी भी बच्ची है, शायद इन सब बातों का मतलब नहीं जानती, इसलिए कह दिया होगा.‘‘

उस के इतना कहते ही मैं ने फोन रख दिया और उसी समय स्नेहा के घर के लिए निकल गया.

मैं ने स्नेहा के घर के बाहर पहुंच कर स्नेहा से कहा, ‘‘सिर्फ एक बार मेरी खुशी के लिए बाहर आ जाओ,‘‘ स्नेहा ना नहीं कर पाई और मुझे पता था कि वह ना कर भी नहीं सकती, क्योंकि बात मेरी खुशी की जो थी.

स्नेहा की आंखों में आंसू थे. मैं ने स्नेहा को गले लगा लिया और कहा, ‘‘पगली, मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करने जा रही थी.‘‘

स्नेहा ने चौंक कर मेरी तरफ देखा. ‘‘तुम मुझ से झूठ बोलने की कोशिश भी नहीं कर सकती. अब यह तो बताओ कि आरती ने क्या कहा, तुम से मिल कर.‘‘

स्नेहा ने रोते हुए कहा, ‘‘आरती ने कहा कि अगर मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम्हारी खुशी चाहती हूं तो…. मैं तुम से कभी न मिलूं, क्योंकि तुम्हारी खुशी उसी के साथ है,‘‘ यह कह कर स्नेहा फूटफूट कर रोने लगी.

मैं ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘ओह, मेरा बच्चा मेरे लिए इतना बड़ा बलिदान करना चाहता था. इतना प्यार करती हो तुम मुझ से.‘‘

उस ने एक छोटे बच्चे की तरह कहा,  ‘‘इस से भी ज्यादा.‘‘

मैं ने उस को हंसाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कितना ज्यादा?” वह मुसकरा दी.

‘‘लेकिन तुम्हें कैसे पता चला कि वह मुझ से मिली? क्या उस ने तुम्हें बताया?‘‘

‘‘नहीं,‘‘ मैं ने कहा.

‘‘फिर,‘‘ स्नेहा ने पूछा.

मैं ने जोर से हंसते हुए कहा, ‘‘उस ने तुम्हें बच्ची बोला,‘‘ इसीलिए.

इतने में ही मेरा फोन दोबारा बजा, वह आरती का फोन था. मैं ने अपने फोन को काट कर मोबाइल स्विच औफ कर दिया और स्नेहा को गले लगा लिया. बिना कुछ कहे मेरा फैसला आरती तक पहुंच गया था.

Best Hindi Story : रफ्तार – क्या सुधीर ने जीवनसाथी का चुनाव गलत किया था ?

Best Hindi Story : गाड़ी की रफ्तार धीरेधीरे कम हो रही थी. सुधीर ने झांक कर देखा, स्टेशन आ गया था. गाड़ी प्लेटफार्म पर आ कर खड़ी हो गई थी. प्रथम श्रेणी का कूपा था, इसलिए यात्रियों को चढ़नेउतरने की जल्दी नहीं हो रही थी.

सुधीर इत्मीनान से अटैची ले कर दरवाजे की ओर बढ़ा. तभी उस ने देखा कि गाड़ी के दरवाजे पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए व सूटबूट पहने एक आदमी आरक्षण सूची में अपना नाम देख रहा था.

उस आदमी को अपना नाम दिखाई दिया तो उस ने पीछे खड़े कुली से सामान अंदर रखने को कहा.

सुधीर को उस की आकृति कुछ पहचानी सी लगी. पर चेहरा तिरछा था इसलिए दिखाई नहीं दिया. जब उस ने मुंह घुमाया तो दोनों की नजरें मिलीं. क्षणांश में ही दोनों दोस्त गले लग गए. सुधीर के कालेज के दिनों का साथी विनय था. दोनों एक ही छात्रावास में कई साल साथ रहे थे.

सुधीर ने पूछा, ‘‘आजकल कहां हो? क्या कर रहे हो?’’

विनय बोला, ‘‘यहीं दिल्ली में अपनी फैक्टरी है. तुम कहां हो?’’

‘‘सरकारी नौकरी में उच्च अधिकारी हूं. दौरे पर बाहर गया था. मैं भी यहीं दिल्ली में ही हूं.’’

वे बातें कर ही रहे थे कि गाड़ी की सीटी ने व्यवधान डाला. एक गाड़ी से उतर रहा था, दूसरा चढ़ रहा था. दोनों ने अपनेअपने विजिटिंग कार्ड निकाल कर एकदूसरे को दिए. सुधीर गाड़ी से उतर गया. दोनों मित्र एकदूसरे की ओर देखते हुए हाथ हिलाते रहे. जब गाड़ी आंखों से ओझल हो गई तो सुधीर के पांव घर की ओर बढ़ने लगे.

टैक्सी चल रही थी, पर सुधीर का मन विनय में रमा था. विनय और वह छात्रावास के एक ही कमरे में रहते थे. विनय का मन खेलकूद में ही लगा रहता था, जबकि सुधीर की आकांक्षा थी कि किसी प्रतियोगिता में चुना जाए और उच्च अधिकारी बने. इसलिए हर समय पढ़ता रहता था.

जबतब विनय उसे टोकता था, ‘क्यों किताबी कीड़ा बना रहता है, जिंदगी में और भी चीजें हैं, उन की ओर भी देख.’

‘मेरे कुछ सपने हैं कि उच्च अफसर बनूं, कार हो, बंगला हो, इसलिए मेरी मां मेरे सपने को पूरा करने के लिए जेवर बेच कर मेरी फीस भर रही है.’

उस की सब तमन्नाएं पूरी हो गई थीं. पर विनय से मिलने के बाद उसे ताज्जुब हो रहा था कि वह भी उसी की तरह गरीब परिवार से था. उस का यह कायापलट कैसे हो गया? एक फैक्टरी का मालिक कैसे बन गया? इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचा.

नौकर रामू ने कार का दरवाजा खोला. घर के अंदर मेज पर मां की बीमारी का तार पड़ा था. पड़ोसिन चाची ने बुलाया था.

रामू ने बताया, ‘‘मेम साहब अपनी सहेलियों के साथ घूमने गई हैं.’’

सुनते ही सुधीर को गुस्सा आ गया. वह सोच रहा था कि जब मां का तार आ गया था तो रश्मि को उन के पास जाना चाहिए था. वह उलटे पांव बस अड्डे की ओर चल दिया. वह रहरह कर रश्मि पर खीज रहा था कि उसे मां की बीमारी की जरा भी परवा नहीं है.

मां बेटे को देख प्रसन्न हो उठीं. पड़ोसिन चाची ने बताया, ‘‘तेरी मां को तेज बुखार था. हम तो घबरा गए. इसीलिए तुझे तार दे दिया. रश्मि को क्यों नहीं लाया?’’

‘‘वह अपनी मां के पास गई है. घर होती तो अवश्य आती.’’

सुधीर जानता था कि गांव के माहौल में मां के साथ रहना रश्मि को गवारा नहीं है. मां भी उस की आदतें जानती थीं, इसीलिए उन्होंने अधिक कुछ नहीं कहा.

दूसरे दिन सुधीर लौट आया था. रश्मि ने मां की बीमारी के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की थी.

अगली सुबह वह अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि रश्मि का फोन आ गया, ‘‘आज घर में पार्टी है, नौकर नहीं आया है, तुम दफ्तर के किसी आदमी को थोड़ी देर के लिए भेज दो.’’

सुधीर कुढ़ गया, पर कुछ सोचते हुए बेरुखी से बोला, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’

शाम को वह घर पहुंचा. सोचा था कि थोड़ी देर आराम करेगा और कौफी पी कर थकान मिटाएगा. वह रश्मि के पास पहुंचा. वह लेटी हुई पुस्तक पढ़ रही थी.

सुधीर को देख कर बोली, ‘‘आज मैं तो बहुत थक गई. नौकर भी नहीं आया. अब तो उठा भी नहीं जा रहा है. पर किटी पार्टी बहुत अच्छी रही. रमी में बारबार हारती ही रही, इसलिए थोड़ा जी खट्टा हो गया. आज तो रात का खाना बाहर ही खाना पड़ेगा.’’

रश्मि की बातें सुन सुधीर की कौफी पीने की इच्छा मर गई. वह पलंग पर लेट गया और सोचने लगा, ‘रश्मि का समय या तो घूमने में व्यतीत होता है या सखियों के साथ ताश खेलने में. घर के कामों में तो उस का मन ही नहीं लगता है, इसीलिए मोटी और भद्दी होती जा रही है. जब कभी मैं राय देता हूं कि घर के कामों में मन नहीं लगता है तो मत करो, लेकिन घूमने या रमी खेलने के बजाय कुछ रचनात्मक कार्य करो तो चिढ़ उठती है.’

सोचतेसोचते सुधीर सो गया. 9 बजे रश्मि ने जगाया, ‘‘चलिए, किसी होटल में खाना खाते हैं.’’

न चाहते हुए भी सुधीर को उस के साथ जाना पड़ा.

सुबह सुधीर दफ्तर जाने लगा तो रश्मि बोल उठी, ‘‘दफ्तर पहुंच कर ड्राइवर से कहिएगा कि कार घर ले आए. कुछ खरीदारी करनी है.’’

‘‘कल ही तो इतना सामान खरीद कर लाई हो, आज फिर कौन सी ऐसी जरूरत पड़ गई. अपने दोनों बच्चे मसूरी में पढ़ रहे हैं. उन का खर्चा भी है. इस तरह तो तनख्वाह में गुजारा होना मुश्किल है. ऊपरी आमदनी भी कम है, लोग पैसा देते हैं तो 10 काम भी निकालते हैं.’’

सुनते ही रश्मि के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘बड़े भैया भी इसी पद पर हैं लेकिन उन की सुबह तो तोहफों से शुरू होती है और रात नोट गिनते हुए व्यतीत होती है. वह तो कभी टोकाटाकी नहीं करते.’’

‘‘आजकल जमाना खराब है, बहुत सोचसमझ कर कदम बढ़ाना पड़ता है. अगर कहीं छानबीन हो गई तो सारी इज्जत खाक में मिल जाएगी,’’ सुधीर बोला.

रश्मि रोंआसी हो गई, ‘‘कार क्या मांगी, पचास बातें सुननी पड़ीं.’’

सुधीर रश्मि के आंसू नहीं देख सकता था. माफी मांग कर उस के आंसू पोंछने के लिए रूमाल निकाला तो जेब से एक कार्ड गिर पड़ा.

कार्ड देख कर विनय का ध्यान आ गया, ‘‘मेरे कालेज के दिनों का मित्र इसी शहर में रह रहा है, मुझे पता ही नहीं चला. अब किसी दिन उस के घर चलेंगे.’’

रश्मि को गाड़ी भेजने का वादा कर के ही वह दफ्तर जा पाया. दफ्तर से विनय को फोन किया. दूसरे दिन छुट्टी थी. विनय ने दोनों को खाने पर आने का न्योता दे दिया.

दूसरे दिन सुधीर और रश्मि गाड़ी से विनय के घर की ओर चल पड़े. आलीशान कोठी के गेट पर दरबान पहरा दे रहा था. पोर्टिको में विदेशी गाड़ी खड़ी थी. लौन में बैठा विनय उन का इंतजार कर रहा था. उस ने मित्र को गले लगा लिया. फिर रश्मि को ‘नमस्ते’ कह कर उन्हें बैठक में ले गया.

सुधीर ने देखा कि बैठक विदेशी और कीमती सामानों से सजी हुई है. सभी सोफे पर बैठ गए. नौकर ठंडा पानी ले कर आया. रश्मि ने इधरउधर देख कर पूछा, ‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’

‘‘जरूरी काम पड़ गया था इसलिए फैक्टरी जाना पड़ा. आती ही होंगी,’’ विनय ने उत्तर दिया.

थोड़ी देर बाद क्षमा आती हुई दिखाई दी.

सुधीर ने देखा, इकहरे शरीर व सांवले रंगरूप वाली क्षमा सीधी चोटी और कायदे से बंधी साड़ी में भली और शालीन लग रही थी.

मेहमानों को अभिवादन कर के वह बैठ गई.

सुधीर को लगा कि इसे कहीं देखा है, पर याद नहीं आया. वह सोच रहा था, ‘रश्मि इस से सुंदर है, पर मोटापे के कारण कितनी भद्दी लग रही है.’

तभी 2 बच्चों की ‘नमस्ते’ से उस का ध्यान टूटा. दोनों बच्चे मां के पास बैठ गए थे. सुधीर ने देखा, बच्चे भी मांबाप के प्रतिरूप हैं. शीघ्र ही मां से खेलने जाने की आज्ञा मांगी तो क्षमा ने कहा, ‘‘जाओ, खेल आओ, परंतु खाने के समय आ जाना.’’

फिर वह रश्मि से बोली, ‘‘आप बच्चों को क्यों नहीं लाईं?’’

रश्मि के चेहरे पर गर्वीली मुसकान छा गई. कटे हुए बालों को झटक कर कहा, ‘‘दोनों बच्चे मसूरी में पढ़ते हैं, घर में ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती है.’’

क्षमा ने बच्चों को स्नेह से देखा, जो बाहर खेलने जा रहे थे, ‘‘मैं तो इन के बिना रह ही नहीं सकती.’’

विनय और सुधीर अपने कालेज के दिनों की बातें कर रहे थे, जैसे कई साल पीछे पहुंच गए हों.

क्षमा को देख कर विनय बोला, ‘‘यह तो हमेशा पढ़ाई में लगा रहता था, लेकिन मैं खेलने में मस्त रहता था. परीक्षा के दिनों में यह मेरे पीछे पड़ा रहता कि किसी तरह से कुछ याद कर लूं. तब मैं इस का मजाक उड़ाता था. आज यह अपनी मेहनत और लगन से ही उच्च ओहदे पर पहुंचा है.’’

सुधीर ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, झगड़ा यह करता था, निबटाने मैं पहुंचता था.’’

दोनों दोस्त बातों में मगन थे कि फोन की घंटी बजी. विनय कुछ देर बात करने के बाद पत्नी से बोला, ‘‘बाहर से कुछ लोग आए हैं, वे व्यापार के सिलसिले में हम से बात करना चाहते हैं. तुम्हारे पास कब समय है? वही समय उन्हें बता दूं. जरूरी मीटिंग है, हम दोनों को जाना होगा.’’

क्षमा ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘कल की मीटिंग रख लीजिए, मैं फैक्टरी पहुंच जाऊंगी.’’

देखने में साधारण व घरेलू लगने वाली महिला क्या मीटिंग में बोल पाएगी? कैसे व्यापार संबंधी बातचीत करती होगी? सुधीर क्षमा को ताज्जुब से देख रहा था.

उस की शंका का समाधान विनय ने किया, ‘‘क्षमा बहुत होशियार हैं, कुशाग्रबुद्धि और मेहनती हैं. इन्हीं की असाधारण प्रतिभा और मेहनत के कारण ही छोटी सी दुकान से शुरू कर के आज हम फैक्टरी के मालिक बन गए हैं.’’

क्षमा ने बातों का रुख बदलते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना लग गया है.’’

सभी भोजनकक्ष में आ गए तो क्षमा ने बच्चों को भी बुला लिया. खाने की मेज पर कुछ भारतीय तो कुछ विदेशी व्यंजन दिखाई दे रहे थे.

रश्मि ने कहा, ‘‘आप को तो घर का काम देखने की फुरसत ही नहीं मिलती होगी क्योंकि फैक्टरी में जो व्यस्त रहती हैं.’’

विनय ने पत्नी की ओर प्रशंसाभरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘यही तो इन की खूबी है, खाना अपने तरीके से बनवाती हैं. जिस दिन ये रसोई में नहीं जातीं तो बच्चों का और मेरा पेट ही नहीं भरता.’’

बच्चे खाना खा कर अपने कमरे में जा चुके थे. उन के हंसनेबोलने की आवाजें आ रही थीं. सारा माहौल अत्यंत खुशनुमा प्रतीत हो रहा था, जबकि सुधीर को अपना सूना घर कभीकभी अखर जाता था. वह तो चाहता था कि बच्चे घर पर ही पढ़ें. पर इस से रश्मि की आजादी में खलल पड़ता था. दूसरे, जिस तरह का जीवन रश्मि जी रही थी, उस माहौल में बच्चे पढ़ ही नहीं सकते थे. इसीलिए उन्हें मसूरी भेज दिया था.

जाड़ों की धूप का अलग ही आनंद होता है. खाना खा कर सभी धूप में बैठ कर गपशप करने लगे. गरमागरम कौफी भी आ गई. विनय ने पूछा, ‘‘मां कैसी हैं? मुझे तो उन्होंने बहुत प्यार दिया है.’’

‘‘वे रुड़की से आना ही नहीं चाहतीं. हम लोग तो बहुत चाहते हैं कि वे यहीं रहें,’’ सुधीर ने उदास स्वर में उत्तर दिया.

विनय ने बताया, ‘‘क्षमा का मायका भी रुड़की में ही है. इस तरह तो तू उस का भाई हुआ और मेरा साला भी बन गया. दोस्त और साला यानी पक्का रिश्ता हो गया.’’

विनय हंसा तो साथ में सभी हंस पड़े. अब सुधीर को सारी कहानी समझ में आ गई थी कि क्षमा को कहां और कब देखा था? उस की पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी. मनमाफिक नौकरी मिल चुकी थी. दिलोदिमाग पर अफसरी की शान छाई थी. शादी के लिए हर तरह के रिश्ते आ रहे थे. लेकिन उस के दिमाग में ऐसी लड़की की तसवीर बन गई थी जो जिंदगी की गाड़ी तेजी से दौड़ा सके, जिस की रफ्तार धीमी न हो.

मां ने क्षमा की फोटो दिखाई थी. एक दिन वह उस को देखने उस के घर जा पहुंचा था. साधारण वेशभूषा में दुबलीपतली सांवले रंगरूप वाली क्षमा ने आ कर नमस्कार किया था.

तब सुधीर ने सोचा कि अगर इस साधारण सी लड़की से शादी की तो जिंदगी में कुछ चमकदमक नहीं होगी और न ही कोई नवीनता, वही पुरानी घिसीपिटी धीमी गति से गाड़ी हिचकोले खाती रहेगी.

उस का ध्यान दीनानाथ की बातों से टूटा था, ‘क्षमा बहुत कुशाग्रबुद्धि है, हमेशा प्रथम आई है. खाना तो बहुत ही अच्छा बनाती है. यह गुलाबजामुन इसी के बनाए हुए हैं.’

सुधीर यह कह कर लौट आया था कि मां से सलाह कर के जवाब देगा. रश्मि सुधीर के एक मित्र की बहन थी. जब वह आधुनिक पोशाक में उस के सामने आई तो सौंदर्य के साथसाथ उस की शोखी और चपलता भी सुधीर को भा गई.

उस ने सोचा, ‘यही लड़की मेरे लिए ठीक रहेगी. कहां क्षमा जैसी सीधीसादी लड़की और कहां यह तेजतर्रार आधुनिका…दोनों की कोई तुलना नहीं.’

सुधीर ने मां को फैसला सुना दिया और रश्मि उस की सहचरी बन गई.

अब उसे लग रहा था कि वास्तव में क्षमा की रफ्तार ही तेज है. रश्मि तो फिसड्डी और घिसीपिटी निकली, जिस में न कुछ करने की उमंग है, न लगन.

Social Story : माहौल – सुमन क्यों परेशान रहती थी ?

Social Story : सुमन ने फांसी लगा ली, यह सुन कर मैं अवाक रह गया. अभी उस की उम्र ही क्या थी, महज 20 साल. यह उम्र तो पढ़नेलिखने और सुनहरे भविष्य के सपने बुनने की होती है. ऐसी कौन सी समस्या आ गई जिस के चलते सुमन ने इतना कठोर फैसला ले लिया. घर के सभी सदस्य जहां इस को ले कर तरहतरह की अटकलें लगाने लगे, वहीं मैं कुछ पल के लिए अतीत के पन्नों में उलझ गया. सुमन मेरी चचेरी बहन थी. सुमन के पिता यानी मेरे चाचा कलराज कचहरी में पेशकार थे. जाहिर है रुपएपैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी. ललिता चाची, चाचा की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली पत्नी उच्चकुलीन थीं लेकिन ललिता चाची अतिनिम्न परिवार से आई थीं. एकदम अनपढ़, गंवार. दिनभर महल्ले की मजदूर छाप औरतों के साथ मजमा लगा कर गपें हांकती रहती थीं. उन का रहनसहन भी उसी स्तर का था. बच्चे भी उन्हीं पर गए थे.

मां के संस्कारों का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है. कहते हैं न कि पिता लाख व्यभिचारी, लंपट हो लेकिन अगर मां के संस्कार अच्छे हों तो बच्चे लायक बन जाते हैं. चाचा और चाची बच्चों से बेखबर सिर्फ रुपए कमाने में लगे रहते. चाचा शाम को कचहरी से घर आते तो उन के हाथ में विदेशी शराब की बोतल होती. आते ही घर पर मुरगा व शराब का दौर शुरू हो जाता. एक आदमी रखा था जो भोजन पकाने का काम करता था. खापी कर वे बेसुध बिस्तर पर पड़ जाते. ललिता चाची को उन की हरकतों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि चाचा पैसों से सब का मुंह बंद रखते थे. अगले दिन फिर वही चर्चा. हालत यह थी कि दिन चाची और बच्चों का, तो शाम चाचा की. उन को 6 संतानों में 3 बेटे व 3 बेटियों थीं, जिन में सुमन बड़ी थी.

फैजाबाद में मेरे एक चाचा विश्वभान का भी घर था. उन के 2 टीनएजर लड़के दीपक और संदीप थे, जो अकसर ललिता चाची के घर पर ही जमे रहते. वहां चाची की संतानें दीपक व संदीप और कुछ महल्ले के लड़के आ जाते, जो दिनभर खूब मस्ती करते. मेरे पिता की सरकारी नौकरी थी, संयोग से 3 साल फैजाबाद में हमें भी रहने का मौका मिला. सो कभीकभार मैं भी चाचा के घर चला जाता. हालांकि इस के लिए सख्त निर्देश था पापा का कि कोई भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर वहां नहीं जाएगा, लेकिन मैं चोरीछिपे वहां चला जाता.

निरंकुश जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती? मेरा भी यही हाल था. वहां न कोई रोकटोक, न ही पढ़ाईलिखाई की चर्चा. बस, दिन भर ताश, लूडो, कैरम या फिर पतंगबाजी करना. यह सिलसिला कई साल चला. फिर एकाएक क्या हुआ जो सुमन ने खुदकुशी कर ली? मैं तो खैर पापा के तबादले के कारण लखनऊ आ गया. इसलिए कुछ अनुमान लगाना मेरे लिए संभव नहीं था. मैं पापा के साथ फैजाबाद आया. मेरा मन उदास था. मुझे सुमन से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. वह एक चंचल और हंसमुख लड़की थी. उस का यों चले जाना मुझे अखर गया. सुमन एक ऐसा अनबुझा सवाल छोड़ गई, जो मेरे मन को बेचैन किए हुए था कि आखिर ऐसी कौन सी विपदा आ गई थी, जिस के कारण सुमन ने इतना बड़ा फैसला ले लिया.

जान देना कोई आसान काम नहीं होता? सुमन का चेहरा देखना मुझे नसीब नहीं हुआ, सिर्फ लाश को कफन में लिपटा देखा. मेरी आंखें भर आईं. शवयात्रा में मैं भी पापा के साथ गया. लाश श्मशान घाट पर जलाने के लिए रखी गई. तभी विश्वभान चाचा आए. उन्हें देखते ही कलराज चाचा आपे से बाहर हो गए, ‘‘खबरदार जो दोबारा यहां आने की हिम्मत की. हमारातुम्हारा रिश्ता खत्म.’’ कुछ लोगों ने चाचा को संभाला वरना लगा जैसे वे विश्वभान चाचा को खा जाएंगे. ऐसा उन्होंने क्यों किया? वहां उपस्थित लोगों को समझ नहीं आया. हो सकता है पट्टेदारी का झगड़ा हो? जमीनजायदाद को ले कर भाईभतीजों में खुन्नस आम बात है. मगर ऐसे दुख के वक्त लोग गुस्सा भूल जाते हैं.

यहां भी चाचा ने गुस्सा निकाला तो मुझे उन की हरकतें नागवार गुजरीं. कम से कम इस वक्त तो वे अपनी जबान बंद रखते. गम के मौके पर विश्वभान चाचा खानदान का खयाल कर के मातमपुरसी के लिए आए थे.पापा को भी कलराज चाचा की हरकतें अनुचित लगीं. चूंकि वे उम्र में बड़े थे इसलिए पापा भी खुल कर कुछ कह न सके. विश्वभान चाचा उलटेपांव लौट गए. पापा ने उन्हें रोकना चाहा मगर वे रुके नहीं. दाहसंस्कार के बाद घर में जब कुछ शांति हुई तो पापा ने सुमन का जिक्र किया. सुन कर कलराज चाचा कुछ देर के लिए कहीं खो गए. जब बाहर निकले तो उन की आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे. बेटी का गम हर बाप को होता है. एकाएक वे उबरे तो बमक पड़े, ‘‘सब इस कलमुंही का दोष है,’’ चाची की तरफ इशारा करते हुए बोले. यह सुन कर चाची का सुबकना और तेज हो गया.

‘‘इसे कुछ नहीं आता. न घर संभाल सकती है न ही बच्चे,’’ कलराज चाचा ने कहा. फिर किसी तरह पापा ने चाचा को शांत किया. मैं सोचने लगा, ’चाचा को घर और बच्चों की कब से इतनी चिंता होने लगी. अगर इतना ही था तो शुरू से ही नकेल कसी होती. जरूर कोई और बात है जो चाचा छिपा रहे थे, उन्होंने सफाई दी, ‘‘पढ़ाई के लिए डांटा था. अब क्या बाप हो कर इतना भी हक नहीं?’’ क्या इसी से नाराज हो कर सुमन ने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया? मेरा मन नहीं मान रहा था. चाचा ने बच्चों की पढ़ाई की कभी फिक्र नहीं की, क्योंकि उन के घर में पढ़ाई का माहौल ही नहीं था. स्कूल जाना सिर्फ नाम का था.

बहरहाल, इस घटना के 10 साल गुजर गए. इस बीच मैं ने मैडिकल की पढ़ाई पूरी की और संयोग से फैजाबाद के सरकारी अस्पताल में बतौर मैडिकल औफिसर नियुक्त हुआ. वहीं मेरी मुलाकात डाक्टर नलिनी से हुई. उन का नर्सिंगहोम था. उन्हें देखते ही मैं पहचान गया. एक बार ललिता चाची के साथ उन के यहां गया था. चाची की तबीयत ठीक नहीं थी. एक तरह से वे ललिता चाची की फैमिली डाक्टर थीं. चाची ने ही बताया कि तुम्हारे चाचा ने इन के कचहरी से जुड़े कई मामले निबटाने में मदद की थी. तभी से परिचय हुआ. मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया. भले ही उन्हें मेरा चेहरा याद न आया हो मगर जब चाचा और चाची का जिक्र किया तो बोलीं, ‘‘कहीं तुम सुमन की मां की तो बात नहीं कर रहे?’’

‘‘हांहां, उन्हीं की बात कर रहा हूं,’’ मैं खुश हो कर बोला.

‘‘उन के साथ बहुत बुरा हुआ,’’ उन का चेहरा लटक गया.

‘‘कहीं आप सुमन की तो बात नहीं कर रहीं?’’

‘‘हां, उसी की बात कर रही हूं. सुमन को ले कर दोनों मेरे पास आए थे,’’

डा. नलिनी को कुछ नहीं भूला था. नहीं भूला तो निश्चय ही कुछ खास होगा?

‘‘क्यों आए थे?’’ जैसे ही मैं ने पूछा तो उन्होंने सजग हो कर बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘‘मैडम, बताइए आप के पास वे सुमन को क्यों ले कर आए,’’ मैं ने मनुहार की.

‘‘आप से उन का रिश्ता क्या है?’’

‘‘वे मेरे चाचाचाची हैं. सुमन मेरी चचेरी बहन थी,’’ कुछ सोच कर डा. नलिनी बोलीं, ‘‘आप उन के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘यही कि सुमन ने पापा से डांट खा कर खुदकुशी कर ली.’’

‘‘खबर तो मुझे भी अखबार से यही लगी,’’ उन्होंने उसांस ली. कुछ क्षण की चुप्पी के बाद बोलीं, ‘‘कुछ अच्छा नहीं हुआ.’’

‘‘क्या अच्छा नहीं हुआ?’’ मेरी उत्कंठा बढ़ती गई.

‘‘अब छोडि़ए भी गड़े मुरदे उखाड़ने से क्या फायदा?’’ उन्होंने टाला.

‘‘मैडम, बात तो सही है. फिर भी मेरे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर सुमन ने खुदकुशी क्यों की?’’

‘‘जान कर क्या करोगे?’’

‘‘मैं उन हालातों को जानना चाहूंगा जिन की वजह से सुमन ने खुदकुशी की. मैं कोई खुफिया विभाग का अधिकारी नहीं फिर भी रिश्तों की गहराई के कारण मेरा मन हमेशा सुमन को ले कर उद्विग्न रहा.’’

‘‘आप को क्या बताया गया है?’’

‘‘यही कि पढ़ाई के लिए चाचा ने डांटा इसलिए उस ने खुदकुशी कर ली.’’

इस कथन पर मैं ने देखा कि डा. नलिनी के अधरों पर एक कुटिल मुसकान तैर गई. अब तो मेरा विश्वास पक्का हो गया कि हो न हो बात कुछ और है जिसे डा. नलिनी के अलावा कोई नहीं जानता. मैं उन का मुंह जोहता रहा कि अब वे राज से परदा हटाएंगी. मेरा प्रयास रंग लाया. वे कहने लगीं, ‘‘मेरा पेशा मुझे इस की इजाजत नहीं देता मगर सुमन आप की बहन थी इसलिए आप की जिज्ञासा शांत करने के लिए बता रही हूं. आप को मुझे भरोसा देना होगा कि यह बात यहीं तक सीमित रहेगी.’’

‘‘विश्वास रखिए मैडम, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से आप को रुसवा होना पड़े.’’

‘‘सुमन गर्भवती थी.’’

सुन कर सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैं सन्न रह गया.

‘‘सुमन के गार्जियन गर्भ गिरवाने के लिए मेरे पास आए थे. गर्भ 5 माह का था. इसलिए मैं ने कोई रिस्क नहीं लिया.’’

मैं भरे मन से वापस आ गया. यह मेरे लिए एक आघात से कम नहीं था. 20 वर्षीय सुमन गर्भवती हो गई? कितनी लज्जा की बात थी मेरे लिए. जो भी हो वह मेरी बहन थी. क्या बीती होगी चाचाचाची पर, जब उन्हें पता चला होगा कि सुमन पेट से है? चाचा ने पहले चाची को डांटा होगा फिर सुमन को. बच निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो सुमन ने खुदकुशी कर ली.

मेरे सवाल का जवाब अब भी अधूरा रहा. मैं ने सोचा डा. नलिनी से खुदकुशी का कारण पता चल जाएगा तो मेरी जिज्ञासा खत्म हो जाएगी मगर नहीं, यहां तो एक पेंच और जुड़ गया. किस ने सुमन को गर्भवती बनाया? मैं ने दिमाग दौड़ाना शुरू किया. चाचा ने श्मशान घाट पर विश्वभान चाचा को देख कर क्यों आपा खोया? उन्होंने तो मर्यादा की सारी सीमा तोड़ डाली थी. वे उन्हें मारने तक दौड़ पड़े थे. मेरी विचार प्रक्रिया आगे बढ़ी. उस रोज वहां विश्वभान चाचा के परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखा. यहां तक कि दिन भर डेरा डालने वाले उन के दोनों बेटे दीपक और संदीप भी नहीं दिखे. क्या रिश्तों में सेंध लगाने वाले विश्वभान चाचा के दोनों लड़कों में से कोई एक था? मेरी जिज्ञासा का समाधान मिल चुका था.

Hindi Story : बेटी – फिरदौस के लिए क्या काम करना मुश्किल हो गया था ?

Hindi Story : जब वह छोटी थी, तो मां यह कह कर उसे बहला दिया करती थी कि पापा परदेश में नौकरी कर रहे हैं और उस के लिए ढेर सारा पैसा ले कर आएंगे. लेकिन मरियम अब बड़ी हो गई थी और स्कूल जाने लगी थी. एक बार मरियम ने मां से कहा, ‘‘मम्मी, न तो पापा खुद आते हैं, न ही कभी उन का फोन आता है. क्या वे हम से नाराज हैं?’’

मरियम के इस सवाल पर फिरदौस कहतीं, ‘‘नहीं बेटी, तुम्हारे पापा तो दुनिया में सब से अच्छे पापा हैं. वे हम लोगों से बहुत प्यार करते हैं, लेकिन वे जहां नौकरी करते हैं, वहां छुट्टी नहीं मिलती है, इसीलिए आ नहीं पाते हैं.’’

मां की बातों से मरियम को तसल्ली तो मिल जाती, लेकिन पिता की याद कम नहीं हो पाती थी. समय हवा के झोंके की तरह बीतता रहा. मरियम अब 5वीं जमात की एक समझदार बच्ची बन चुकी थी. एक दिन स्कूल की छुट्टी के समय मरियम ने देखा कि उस के स्कूल की एक छात्रा सुमन ने दौड़ कर अपने पापा के गले से लिपट कर कहा कि आज हम पहले आइसक्रीम खाएंगे, उस के बाद घर जाएंगे. यह देख कर मरियम को अपने पापा की याद बहुत आई. वह स्कूल से घर आई, तो बगैर कुछ खाएपीए सीधे अपने कमरे में जा कर लेट गई. घर के काम निबटा कर फिरदौस मरियम के पास आ कर बैठ गईं और उस के काले खूबसूरत बालों में हाथ से कंघी करते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आज हमारी बेटी कुछ उदास लग रही है?’’ फिरदौस का इतना पूछना था कि मरियम फफक कर रो पड़ी, ‘‘मम्मी, आप मुझ से झूठ बोलती हैं न कि पापा दुबई में नौकरी करते हैं? अगर वे दुबई में हैं, तो फोन पर हम लोगों से बात क्यों नहीं करते हैं?’’

अब फिरदौस के लिए सचाई को छिपा कर रख पाना बहुत मुश्किल हो गया.

‘‘अच्छा, पहले तुम खाना खा लो. आज मैं तुम्हें सबकुछ सचसच बता दूंगी,’’ कहते हुए फिरदौस मरियम के लिए खाना लेने चली गईं. जब फिरदौस खाना ले कर कमरे आईं, तो मरियम ने उन से कहा, ‘‘मम्मी, आप को पापा के बारे में जोकुछ बताना है, बताती जाइए. मैं खाना खाती हूं.’’

‘‘बेटी, तुम्हारे पापा इंजीनियर थे और दुबई में नौकरी करते थे. मैं भी उन्हीं के साथ रहती थी.’’

‘‘मम्मी, आप बारबार ‘थे’ शब्द का क्यों इस्तेमाल कर रही हैं? क्या पापा अब इस दुनिया में नहीं हैं?’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘नहीं बेटी, पापा जिंदा हैं.’’

मरियम तुरंत आंसू पोंछ कर चुप हो गई. उसे डर था कि कहीं मम्मी सचाई बताए बगैर चली न जाएं. फिरदौस ने बात का सिलसिला फिर से शुरू करते हुए कहा, ‘‘12 साल पहले की बात है, जब तुम्हारे पापा और मैं दुबई से भारत आए थे. हम दोनों ही बहुत खुश थे, लेकिन हमें क्या पता था कि इस के बाद हम सब एक ऐसी मुसीबत में पड़ जाएंगे, जिस से छुटकारा पाना नामुमकिन हो जाएगा.’’

‘‘शहर में दंगा हो गया. हिंदू और मुसलमान एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए थे. ‘‘जैसेतैसे कर के जब फसाद थोड़ा थमा, तो हम दुबई जाने के लिए तैयार हो गए. यह भी एक अजीब इत्तिफाक था कि जिस दिन हमारी फ्लाइट थी, उसी दिन शहर में बम धमाके हो गए. इस में काफी लोगों की जानें चली गईं. ‘‘हम लोग दुबई तो पहुंच गए, लेकिन भारत से आने वाली हर खबर बड़ी संगीन थी. बम धमाकों के अपराधियों में तुम्हारे पापा का नाम भी आ रहा था.

‘‘तुम्हारे पापा को यह बात नामंजूर थी कि उन्हें कोई देशद्रोही या आतंकवादी समझे. उन्होंने किसी तरह भारत में रहने वाले अपने घरपरिवार और दोस्तों के जरीए पुलिस तक यह बात पहुंचाई कि वे बेकुसूर हैं और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए भारत आना चाहते हैं. कुछ दिनों के बाद तुम्हारे पापा भारत आ गए. ‘‘फिर वही हुआ, जिस का डर था. पुलिस ने हाथ आए तुम्हारे बेगुनाह मासूम पापा को उन बम धमाकों का मास्टरमाइंड बना कर जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया.

‘‘पिछले 12 सालों से तुम्हारे पापा जेल में हैं,’’ इतना कह कर फिरदौस फूटफूट कर रोने लगीं.

मरियम ने किसी संजीदा शख्स की तरह पूछा, ‘‘क्या मैं अपने पापा से मिल सकती हूं?’’

‘‘हां बेटी, जरूर मिल सकती हो,’’ फिरदौस ने जवाब दिया, ‘‘मैं हर रविवार को तुम्हारे पापा से मिलने जेल जाती हूं. अब तुम भी मेरे साथ चल सकती हो.’’ 12 साल की बेटी जब सामने आई, तो शहजाद ने अपना चेहरा छिपा लिया. अपनी बेटी के सामने वे एक अपराधी की तरह जेल की सलाखों के पीछे खड़े हो कर जमीन में धंसे जा रहे थे.

‘‘पापा, क्या आप सचमुच अपराधी हैं?’’ मरियम के इस सवाल पर शहजाद घबरा गए.

‘‘बेटी, तुम्हारे पापा बेकुसूर हैं. उन्होंने कोई जुर्म नहीं किया है. बस, हालात ने जेल की सलाखों के पीछे ला कर खड़ा कर दिया है,’’ इतना कह कर शहजाद बेटी की तरफ देखने लगे.

‘‘पापा, आप निश्चिंत हो जाइए. चाहे सारी दुनिया आप को अपराधी समझे, पर बेटी की नजर में आप एक ईमानदार नागरिक और देशभक्त रहेंगे.’’ अब मरियम हर रविवार को अपने पापा से मिलने जेल जाने लगी. वह जब भी पापा से मिलने जाती, तो उन की पसंद की खाने की कोई न कोई चीज बना कर ले जाती और अपने हाथों से खिलाती. बापबेटी की इस मुलाकात को 10 साल और गुजर गए. 22 साल की मरियम अब स्कूल से निकल कर कालेज में जाने लगी थी.

पिछले 10 सालों से जेल का पूरा स्टाफ पिता और बेटी का मुहब्बत भरा मेलमिलाप बड़े शौक से देखता चला आ रहा था. शहजाद ने अपनी जिंदगी के 22 साल जेल में कुछ इस तरह बिता दिए कि दुश्मन भी दोस्त बन गए. अनपढ़ कैदियों को पढ़ाना, बीमार कैदियों की सेवा करना व जरूरतमंद कैदियों की मदद करने की आदत ने उन्हें जेल में मशहूर बना दिया था. कानून अंधा होता है, यह सिर्फ कहावत ही नहीं, बल्कि सच भी है. वह उतना ही देखता है, जितना उसे दिखाया जाता है. कानून के रखवालों ने शहजाद को एक आतंकवादी बना कर पेश किया था. उन के खिलाफ जो तानाबाना बुना गया, वह इतना मजबूत था कि इस अपराध से छुटकारा पाना उन के लिए नामुमकिन हो गया. वैसे भी जिस पर आतंकवाद का ठप्पा लग जाए, फिर उस की सुनता कौन है? शहजाद के साथ मुल्क के नामीगिरामी वकील थे, लेकिन सब मिल कर भी उन्हें बेगुनाह साबित करने में नाकाम रहे.

निचली अदालत से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक ने मौत की सजा को बरकरार रखा. मरियम और फिरदौस की दया की अपील को राष्ट्रपति महोदय ने भी ठुकरा दिया. फांसी की तारीख तय हो गई. सुबह 4 बजे शहजाद को फांसी दी जानी थी. मरियम और फिरदौस के साथ जेल के कैदी भी उदास थे. फिरदौस और मरियम आखिरी दीदार के लिए शहजाद की कोठरी में भेजे गए. बेटी और बीवी को देख शहजाद की आंखों की वीरानी और बढ़ गई. मरियम ने बाप की हालत देख कर कहा, ‘‘पापा, आप की मौत का हम लोग जश्न मनाएंगे. लीजिए, आखिरी बार बेटी के हाथ की बनी खीर खा लीजिए.’’

शहजाद एक फीकी मुसकराहट के साथ करीब आए, तो मरियम ने अपने हाथों से उन्हें खीर खिलाई. 2 चम्मच खीर खाने के बाद ही शहजाद का चेहरा जर्द पड़ने लगा. मुंह से खून की उलटी शुरू हो गई. शहजाद को उलटी करते देख जहां फिरदौस घबरा गईं, वहीं मरियम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘पापा, आप की बेगुनाही तो साबित न करा सकी, लेकिन आप को फांसी से बचा लिया.

‘‘अब दुनिया यह न कह सकेगी कि आतंकवाद के अपराध में शहजाद को फांसी पर लटका दिया गया. आप को इज्जत की जिंदगी तो न मिल सकी, पर हां, इज्जत की मौत जरूर मिल गई.’’ फिरदौस की चीख सुन कर जब तक पहरेदार शहजाद की खबर लेते, तभी मरियम ने भी जहरीली खीर के 2 चम्मच खा लिए. जेल की उस काल कोठरी में अब 2 लाशें पड़ी थीं. एक को अदालत ने आतंकवादी होने की उपाधि दी थी, तो दूसरी को समाज ने आतंकवादी की बेटी करार दिया था. दोनों ही समाज और दुनिया से अब आजाद हो चुके थे.

Romantic Story : शादी क्यों करें – बरसों बाद कमलेश को शादी जरूरी क्यों लगने लगी ?

Romantic Story : रविवार का दिन था. शकुंतला और कमलेश डाइनिंग टेबल पर बैठ कर नाश्ता कर रहे थे.

“शकुंतला, क्यों न हम शादी कर लें?” कमलेश ने कहा.

चौंक गई शकुंतला. आज 20 सालों से वह कमलेश के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही है. आज तक शादी की बात उस ने सोची नहीं फिर आज ऐसा क्या हो गया? पहली बार कमलेश से जब वह मिली थी तो 32 साल की थी. कमलेश उस समय 40 का रहा होगा. परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि दोनों अकेले थे.

“क्यों, ऐसा क्या हुआ कि तुम शादी की सोचने लगे? पिछले 20 सालों से हम बगैर शादी किए रह रहे हैं और बहुत ही इत्मीनान से रह रहे हैं. कभी कोई समस्या नहीं आई. अगर आई भी तो हम ने मिलजुल कर उस का समाधान कर लिया. फिर आज ऐसी क्या बात हो गई?” कुछ देर सोचने के बाद शकुंतला ने कहा.

“ऐसा है, शकुंतला कि हमारी उम्र हो चुकी है. मैं 60 का हो गया और तुम 52 की. यह बात सही है कि हम बिना शादी किए भी बहुत मजे में बड़ी समझदारी और तालमेल के साथ जिंदगी जी रहे हैं. पर मैं कानूनी दृष्टिकोण से सोच रहा हूं. अगर हम दोनों में से किसी को कुछ हो गया तो हमें कानूनन पतिपत्नी होने पर विधिक दृष्टि से लाभ होगा. बस, यही सोच कर मैं ऐसा कह रहा हूं. मुझ पर किसी प्रकार का शक न करो,” कमलेश ने कहा.

“शक नहीं कर रही, कमलेश. तुम मेरे हमसफर रहे हो पिछले 20 सालों से और मैं गर्व के साथ कह सकती हूं कि तुम से ज्यादा प्यारा कोई नहीं मेरी जिंदगी में. बस, मैं यही सोच रही हूं कि जब सबकुछ सही चल रहा है तो क्यों न हम कुछ नया करने की सोचें. हम दोनों ने जो बीमा पौलिसी ली है उस में एकदूसरे को नौमिनी बनाया है. हमारे बैंक खातों में भी हम एकदूसरे के नौमिनी हैं. फिर और क्या आवश्यकता है ऐसा सोचने की. पर तुम ने कुछ सोच कर ही ऐसा कहा होगा.

“ऐसा करते हैं, 1-2 दिनों के बाद इस पर विचार करते हैं. पहले मुझे इस नए प्रस्ताव के बारे में सोच लेने दो,” शकुंतला ने कहा.

“बिलकुल, आराम से सोच लो. जो भी होगा तुम्हारी सहमति से ही होगा,“ कमलेश ने मुसकरा कर कहा.

फुरसत में बैठने पर शकुंतला सोचने लगी थी कि जब पहली बार वह कमलेश से मिली थी. दोनों अलगअलग कंपनियों में काम करते थे. कमलेश जिस कंपनी में काम करता था उस कंपनी से शकुंतला की कंपनी का व्यावसायिक संबंध था. इस नाते दोनों की अकसर मुलाकातें होती रहती थीं. पहले परिचय हुआ फिर दोस्ती. शकुंतला की शादी बचपन में ही हो गई थी और पति से मिलने से पहले ही वह विधवा भी हो गई थी.

उन दिनों विधवा विवाह को सही निगाहों से नहीं देखा जाता था और यही कारण था कि उस का विवाह नहीं हो पाया था. आज भी विधवा विवाह कम ही होते हैं. कमलेश को न जाने क्यों विवाह संस्था में विश्वास नहीं था और शुरुआती दौर में उस ने शादी के लिए मना कर दिया था. बाद में जब 35 से ऊपर का हो गया था तो रिश्ते आने भी बंद हो गए. थकहार कर घर वालों ने भी दबाव देना बंद कर दिया था और कमलेश अकेला रह गया.

दोनों की जिंदगी में कोई नहीं था. दोनों के विचार इतने मिलते थे और दोनों एकदूसरे के लिए इतना खयाल रखते थे कि दिल ही दिल में कब एकदूसरे के हो गए पता ही नहीं चला. शकुंतला जिस किराए के फ्लैट में रहती थी उस का मालिक उसे बेचने वाला था और खरीदने वाले को खुद फ्लैट में रहना था. इसलिए शकुंतला को कहीं और फ्लैट की आवश्यकता थी. जब उस ने कमलेश को इस बारे में बताया तो उस ने कहा कि उस के पास 2 कमरों का फ्लैट है. वह चाहे तो एक कमरे में रह सकती है. हौल और किचन साझा प्रयोग किया जाएगा. थोड़ी झिझकी थी शकुंतला. अकेले परपुरुष के साथ रहना क्या ठीक रहेगा. पर कमलेश ने आश्वस्त किया कि वह पूरी सुरक्षा और अधिकार के साथ उस के साथ रह सकती है, तो वह मान गई थी.

एकदूसरे को दोनों पसंद तो करते ही थे, साथसाथ रहने से और भी नजदीकियां बढ़ गईं और शादीशुदा न होने के बावजूद पतिपत्नी की तरह ही दोनों रहने लगे. आसपास के लोग उन्हें पतिपत्नी के रूप में ही जानते थे. इस लिव इन रिलेशन से दोनों खुश थे. दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे. कभी किसी प्रकार की समस्या नहीं आई थी अभी तक.

और इतने सालों के बाद कमलेश ने शादी का प्रस्ताव रख दिया था. शकुंतला के मन में कई बातें उभरने लगीं. क्या इस से मेरा व्यक्तिगत जीवन प्रभावित नहीं होगा? क्या शादी करने के बाद हमारे संबंध वैसे ही रह पाएंगे जैसे अभी हैं? क्या शादी के लिए स्पष्ट रूप से नियम और शर्तें निर्धारित कर लिए जाएं? शकुंतला का एक मन तो कह रहा था कि जिस प्रकार वे रह रहे हैं उसी प्रकार रहें. आखिर जब सबकुछ सही चल रहा है तो नए प्रयोग क्यों किए जाएं भला? पर दूसरा मन कह रहा था कि कमलेश के साथ वह इतने सालों से है और वह हमेशा दोनों के हित की बात ही करता था. कभी उस ने सिर्फ अपने स्वार्थ की बात नहीं की. इतने दिनों से वह उसी के फ्लैट में रह रही है. उस का व्यवहार हमेशा एक हितैषी सा रहा है. उस ने जो कहा है वह भी सही हो सकता है. उस से विस्तार से बात करने की आवश्यकता है. आखिर हम 20 सालों से रह रहे हैं और एकदूसरे के साथ खुशीखुशी रह रहे हैं. हम एकदूसरे के साथ खुल कर अपनी बात साझा भी कर सकते हैं.

इसी प्रकार 6-7 दिन बीत गए. इस बारे में न तो कमलेश ने कुछ कहा न शकुंतला ने. कमलेश के दिल की बात तो शकुंतला नहीं जानती थी पर वह हमेशा इस बात पर विचार करती थी. हो सकता है कि कमलेश भी इस बात पर विचार करता होगा पर उस ने दोबारा कभी इस विषय को नहीं उठाया. शायद वह शकुंतला पर किसी प्रकार का दबाव नहीं बनाना चाहता था.

आज फिर दोनों की कंपनी में अवकाश का दिन था. आज शकुंतला ने फिर डाइनिंग टेबल पर उस विषय को उठाया,”कमलेश, मैं ने तुम्हारे प्रस्ताव पर विचार किया पर मुझे लगता है, हम जैसे हैं वैसे ही रहें. शादी का सर्टिफिकेट एक कागज का टुकड़ा ही तो होगा. बगैर सर्टिफिकेट के हम आदर्श जोड़े की तरह रह रहे हैं. मेरे विचार से शादी करने की कोई आवश्यकता नहीं है.”

“मैं हमारी स्थाई संपत्ति के बारे में सोच रहा था. मान लो मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरे नजदीक दूर के रिश्तेदार इस फ्लैट पर दावा करेंगे. ऐसे में तुम्हें परेशानी होगी. इसी तरह की बातों को ध्यान में रख कर मैं अपने संबंध को एक कानूनी जामा पहनाना चाह रहा था,” कमलेश बोला.

“कमलेश, तुम मेरा कितना खयाल रखते हो. पर यह काम तो हम वसीयत बना कर भी कर सकते हैं. हम दोनों एकदूसरे के नाम वसीयत बना दें तो कोई तीसरा इस प्रकार का दावा नहीं कर पाएगा. हम क्यों शादी का अनावश्यक रश्म निभाएं…”

“देखो शकुंतला, शादी से कई कानूनी और सामाजिक हक मिल जाते हैं पतिपत्नी को. उदाहरण के लिए पत्नी पति की संपत्ति में बराबर हिस्सा पाने की हकदार होती है. साथ ही पति के पैतृक संपत्ति पर भी पत्नी का अधिकार होता है और कोई भी पत्नी से इस अधिकार को छीन नहीं पाएगा. तुम जानती हो कि मेरी पैतृक संपत्ति काफी मूल्यवान है. कुदरत न करे यदि किसी कारण से हम अलगअलग रहने की योजना बना लें तो शादीशुदा होने की स्थिति में पत्नी को गुजाराभत्ता लेने का अधिकार होता है. फिर संयुक्त संपत्ति में भी पत्नी का अधिकार होता है. यह अधिकार लिव इन रिलेशन में उपलब्ध नहीं है.”

“मैं तुम्हारी सभी बातों से सहमत हूं, पर मुझे इस उम्र में जितनी संपत्ति की आवश्यकता है उतनी है मेरे पास. और मुझे नहीं लगता इतने सालों के बाद हम अलग होंगे. इसलिए मेरी सलाह तो यही है कि अब शादी करने की कोई आवश्यकता नहीं है. हां, हम यह वादा करें एकदूसरे से कि जैसे अभी तक साथसाथ रहते आए हैं वैसे ही साथसाथ रहते रहें,” शकुंतला ने कहा.

“चलो, यह भी सही है,” कमलेश ने अपनी सहमति दी.

Hindu : नेपाल में राजशाही नहीं, हिंदू कर्मकांड राज की चाहत

Hindu : नेपाल की जनता राजशाही की वापसी के लिए आंदोलन कर रही है. राजशाही के जरिए हिंदूराष्ट्र की वापसी का रास्ता तैयार हो रहा है. जिस से कर्मकांड राज का सरकार चला सके ऐसा नेपाल में ही नहीं हो रहा अमेरिका जैसे दूसरे देश भी धार्मिक राज्य के हिमायती हैं.

राज लोकतंत्र का हो या राजशाही का कुछ समय के बाद जनता उस में बदलाव चाहती ही है. उसे लगता है कि अच्छे भविष्य के लिए यह बदलाव जरूरी है. राज बदलने से जनता की परेशानियां हल नहीं होतीं ऐसे में एक समय तक इंतजार करने के बाद वह वापस उसी को बदलने के लिए तैयार हो जाती है जिसे वह कुछ समय पहले बहुत बेहतर मान कर लाई थी. ताजा उदाहरण बंग्लादेश का है.

बंग्लादेश में रातोरात वहां की प्रधानमंत्री षेख हसीना को देश छोड कर भागना पडा. इसके बाद जिस तरह से आंदोलन करने वालों ने उनके कपडो की नुमाइश की वह बेहद शर्मनाक था. भीड का गुस्सा इसी तरह का होता है. उनके अंदर अपनी सोचने की क्षमता नहीं होती है. षेख हसीना के बाद मोहम्मद यूनुस बंग्लादेश के प्रधानमंत्री बने. कुछ माह में ही देश की जनता का मोह भंग हो गया.

भारत में भी ऐसा पहले होता रहा है. प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी को सब से सफल माना जाता है. इमरजैंसी के बाद उन की लोकप्रियता घट गई. उन की पार्टी 1977 में बुरी तरह से चुनाव हारी. इस के 3 साल बाद ही जनता ने वापस 1980 में उन को चुनाव जितवा दिया. नेपाल भारत का पडोसी देश की नहीं ‘मित्र राष्ट्र’ भी है. नेपाल जाने के लिए किसी भी तरह के वीजा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती है.

कैसे पलटा नेपाल में राजशाही का दौर

नेपाल में हिंदू राजशाही का दौर लगभग 240 साल तक चला. हिंसक संघर्ष के बाद 2008 में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई. नेपाल में 1996 में माओवादियों के नेतृत्व में गृहयुद्ध शुरू हुआ. इस के कुछ ही साल बाद 2001 में राजमहल में तत्कालीन राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह और उन के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड के बाद ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के महाराज घोषित किए गए. उन की ताजपोशी के वक्त नेपाल में माओवादी हिंसा फैल चुकी थी.

2005 में ज्ञानेंद्र शाह ने संविधान निलंबित कर संसद को भंग कर दिया. इस के बाद लोकतंत्र समर्थक भी माओवादियों के साथ मिल गए देश में राजशाही के विरुद्ध बड़े प्रदर्शन होने लगे. आखिकार नेपाल में राजशाही ढह गई. देश में 1996 से 2006 तक चले गृहयुद्ध में 16 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई. 2008 में नेपाल की संसद ने देश में 240 साल से हुकूमत कर रही हिंदू राजशाही को भंग कर दिया.

17 साल में 14 सरकारों के बाद भी बढी अस्थिरता

नेपाल लोकतंत्र की राह पर तो चल पड़ा, लेकिन राजनीतिक स्थिरता नहीं बन पाई. 2008 से 2025 के बीच नेपाल 14 सरकारें देख चुका है. इन में भी 3 मौकों पर पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री बने और 4 अवसरों पर केपी शर्मा ओली. 17 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में 14 सरकारें बता रही है कि उन के लिए नेपाल में राज करना बेहद कठिन कार्य है. फरवरी 2025 में आए करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में नेपाल 180 देशों की लिस्ट में 107 वें नंबर पर था. ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल ने इस इंडेक्स में नेपाल को 100 में से 34 अंक दिए. नेपाल की जनता महंगाई और अस्थिरता से परेशान हैं अब उसे इस से बाहर निकालने का रास्ता नहीं दिख रहा है.

ऐसे में 17 साल बाद नेपाल में एक बार फिर राजशाही की मांग गूंजने लगी है. नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का राजधानी काठमांडू में जोरदार स्वागत हुआ. राजशाही का समर्थन करने वाले हजारों लोग स्वागत के लिए एयरपोर्ट के गेट पर मौजूद थे. उन के हाथ में नेपाल के झंडे थे. वह नारे लगा रहे थे कि ‘महाराज लौटो, देश बचाओ’.

77 साल के ज्ञानेंद्र शाह अब तक नेपाल की राजनीति के बारे में बोलने से बचते रहे हैं, लेकिन हाल के समय में वह अपने समर्थकों के साथ सार्वजनिक रूप से कई बार नजर आए हैं. इसी साल फरवरी में राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की वर्षगांठ के मौके पर पूर्व राजा ने एक बयान जारी कर कहा है, “अब समय आ चुका है, अगर हम अपने देश और अपनी राष्ट्रीय एकता को बचाना चाहते हैं, तो मैं सभी देशवासियों से नेपाल की समृद्धि और प्रगति के वास्ते हमारा समर्थन करने की अपील करता हूं.”

राजशाही नहीं कर्मकांड राज की वापसी

असल में नेपाल की जनता राजशाही नहीं चाहती है वह वापस हिंदू कर्मकांड की वापसी चाहती है. दक्षिणपंथ पूरी दुनिया में हावी होता दिख रहा है. भारत में संघ परिवार और भाजपा शुरू से नेपाली राजतंत्र तथा हिंदूराष्ट्र की समर्थक रही है. भारत में भाजपा के लगातार सत्ता में रहने पर नेपाल में भी ये ताकतें अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं. नेपाल की तराई में नेपाल के इतिहास में पहली बार हिंदूमुसलिम दंगे हुए जिन को रोकने के लिए कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. संघ परिवार से जुड़ी हिंदूवादी ताकतें पूरी कोशिश कर रही थीं कि नेपाल में एक धर्मनिरपेक्ष संविधान न लागू हो तथा वह हिंदूराष्ट्र बना रहे.

उत्तराखंड राज्य की सरकार के मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी ने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान यहां तक कह दिया था कि ‘नेपाल में भारी पैमाने पर भारतीय हिंदू तीर्थयात्रा के लिए जाते हैं. अगर नेपाल हिंदूराष्ट्र नहीं रहा तो इस पर बुरा असर पड़ेगा’.

धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र से नेपाल के वापस हिंदू राष्ट्र बनने की राह आसान नहीं है. 2006 में नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह का नाम उन को हटाने के लिए गूंज रहा था, अब 2025 में भी ये नाम उनको वापस लाने के लिए गूंज रहा है.

नेपाल के लोगों की मांग सिर्फ राजशाही की वापसी की नहीं, बल्कि देश को वापस हिंदू राष्ट्र घोषित करने की भी हो रही है. नेपाल में फैली इसी अव्यवस्था को मुद्दा बना कर राजशाही समर्थक फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं. नेपाल में जो व्यवस्था है, उसे ले कर कहीं न कहीं गहरी निराशा है. भ्रष्टाचार है, अव्यवस्था है, जिस तरह से सरकार को काम करना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है. नेपाल में मंत्रियों की अधिक संख्या के बाद भी भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो पाया. लोग मानते हैं कि इस से बेहतर तो राजशाही का दौर था.

राजशाही के लिए जो पार्टियां आंदोलन कर रही हैं, वह इस बात को समझ रही हैं कि हिंदू राष्ट्र के लिए समर्थन ज्यादा है. लोग हिंदू राष्ट्र नहीं कर्मकांड राज की वापसी चाहते हैं. वह भारत को देख रहे हैं. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ज्यादातर समय कर्मकांडों में गुजरता है. चाहे कुंभ में डुबकी लगाना हो, अयोध्या, काशी और उज्जैन में मंदिर दर्शन करना हो. नेपाल भी इसी तरह का बदलाव चाहता है.

नेपाल ही नहीं अमेरिका में भी यह बदलाव हो रहा है. इस को प्रोजैक्ट 2025 का नाम दिया गया है. यह अमेरिका की दक्षिणपंथी विचारधारा को दिखाता है. प्रोजैक्ट 2025 को बनाने में 100 से अधिक रूढ़िवादी संगठनों ने योगदान दिया है. प्रोजैक्ट 2025 में न्याय विभाग जैसी स्वतंत्र एजेंसियों को सीधे राष्ट्रपति के नियंत्रण में रखा है. इस से निर्णय लेने की प्रक्रिया सरल हो जाएगी तथा राष्ट्रपति को कई क्षेत्रों में नीतियों को सीधे लागू करने की सुविधा मिल जाएगी. एलन मस्क की भूमिका भी इस में प्रमुख है. राष्ट्रपति ट्रम्प को सलाह देने वाली एक बाहरी टीम भी है.

प्रोजैक्ट 2025 में गर्भपात का उल्लेख सब से विवादास्पद माना जाता है. इस में पूरे देश में गर्भपात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात नहीं कही गई है. प्रोजैक्ट 2025 में पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने तथा वयस्क सामग्री तक पहुंच की अनुमति देने वाली कंपनियों को बंद करने का सुझाव दिया गया है. डैमोक्रेट्स इस का विरोध कर रहे हैं.

एक तरह से देखें तो रुढ़िवादी सोच और विचारधारा नेपाल ही नहीं अमेरिका जैसे दूसरे देशों में भी फैली हुई है. यह लोकतंत्र के लिए खतरा है. ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद तमाम ऐसे फैसले किए हैं जो पूरी दुनिया को पंसद नहीं आ रहे. उन की आलोचना हो रही है. अब नेपाल में राजशाही की वापसी के लिए हो रहे आंदोलन से क्या हासिल होगा यह देखने वाली बात है. राजशाही की वापसी किसी भी तरह से देश के हित में नहीं है क्योंकि यह राजशाही हिंदू कर्मकांड की वापसी हो रही है.

Online Hindi Story : महंगे ख्वाब – क्या कीमत चुकाई उसने सपनों की

Online Hindi Story : अपनी मंजिल पाने के लिए जनून एक हद तक सही है, लेकिन व्यक्ति मानमर्यादा की सीमा लांघ कर अपनी मंजिल पाए तो क्या उसे खुशी हासिल होगी? रश्मि भी अपने सपने को हकीकत बनाने की राह पर जा रही थी पर आगे धुंध ही धुंध थी.

‘‘मम्मी, आज आप खाना बना लो, मुझे टैस्ट की तैयारी करनी है, वो क्या है न, आज से मेरे टैस्ट शुरू हो रहे हैं और अगले महीने एग्जाम होंगे.

‘‘ठीक है, बेटी,’’ मां ने रूखेपन से जवाब दिया.

‘‘अरे मां, सच में टैस्ट है. मैं कोई बहाना नहीं कर रही.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, कोई बात नहीं,’’ रश्मि की मां अनीता ने झिड़कते हुए जवाब दिया. रश्मि 16 वर्ष की बेहद खूबसूरत लड़की थी. अभी 12वीं में पढ़ रही थी. उस की खूबसूरती के किस्से हर किसी की जबां पर थे. रश्मि कई लड़कों के ख्वाबों की मल्लिका थी.

रश्मि अपने वजूद से महफिल की शमा को रोशन कर देती और अपनी किरण को आशिकों के दिलों में इस कदर उतार देती कि मानो उस के बिना पूरी कायनात अंधेरे में समा गई हो.

हुस्न के साथ ही तेज दिमाग सोने पे सुहागा होता है, रश्मि में ये दोनों खूबियां थीं. यही वजह थी उस के ऊंचे ख्वाब देखने की. वह एक मौडल बनना चाहती थी और चाहती थी कि हर किसी की जबान पर रश्मिरश्मि हो. इतनी मशहूर होने का सपना वह आंखों में संजोए थी.

मौडल बनने की इसी चाह में वह अपने जिस्म पर काफी ध्यान देती और खूब सजधज कर कालेज या किसी फंक्शन में जाती. इतना सब होने के बावजूद रश्मि को अपने बुने ख्वाब अफसाने ही लगते क्योंकि होशंगाबाद जैसे छोटे शहर में रह कर फेमस मौडल बनना मुमकिन न था. फिर, आज भी समाज में इस तरह के कामों को बुरी निगाहों से देखा जाता है.

लेकिन रश्मि ने मन ही मन ठान लिया था कि उसे अपने ख्वाबों को हकीकत बनाना ही है, चाहे उसे किसी भी हद तक जाना पड़े. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वह सबकुछ न्योछावर करने को तैयार थी.

‘‘यार सोनल, सुन न, मुझे तुझ से बहुत जरूरी बात करनी है,’’ रश्मि ने सोनल के कंधे को धीरे से पकड़ कर कहा.

‘‘हां, बोल न, क्या बात करनी है, रश्मि.’’

‘‘देख सोनल, तुझे तो पता है कि ‘‘मैं खूबसूरत हूं,’’ रश्मि की बात बीच में काटते हुए सोनल ने उस के चेहरे को एक आशिक की तरह पकड़ कर कहा, ‘‘सच में जान, तुम बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से

अभी इसी वक्त शादी करना चाहती हूं,

आई लव यूयूऊ…’’

‘‘सोनल, यार मेरा मूड मजाक का नहीं है. मैं सीरियस बात कर रही हूं और तुझे हंसीमजाक की लगी है.’’

‘‘सुन रश्मि, मैं सच कह रही हूं, तू बहुत खूबसूरत है. अच्छा यह सब जाने दे. अब बता क्या कह रही थी.’’

रश्मि संजीदगी से बोली, ‘‘मैं आगे की पढ़ाई के साथ मौडलिंग भी करना चाहती हूं.’’

‘‘हां, तो कर, तेरे लिए कौन सी बड़ी बात है. वैसे भी तू एकदम मौडल है ही,’’ सोनल ने रश्मि की हौसलाअफजाई की.

सोनल की बात सुन रश्मि ने कहा, ‘‘तेरी सारी बातें ठीक हैं, लेकिन मौडल कैसे बना जाता है? इस के लिए क्या पढ़ाई करनी पड़ती है? यह सब तो मुझे मालूम

ही नहीं.’’

‘‘हां रश्मि,’’ और सोनल ने गहरी सांस ले कर पूरी हवा को सिगरेट के धुएं के स्टाइल में मुंह बना कर हवा में उड़ा दी.

इस पर दोनों अपना सिर पकड़ कर ऐसे बैठ गईं, मानो कोई राह न दिख रही हो, लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि जहां चाह, वही राह.

परीक्षा की घड़ी नजदीक आ गई और परीक्षा के बाद जब रश्मि अपने दोस्तों से मिली तो सभी एकदूसरे से सवालजवाब करने लगे.

तभी वहां पंकज आ गया.

‘‘रश्मि, तुम्हारा पेपर कैसा हुआ?’’ पंकज ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी भैया, बहुत अच्छा हुआ,’’ रश्मि नजरें झुका कर बोली.

पंकज, रश्मि का बड़ा भाई था. रश्मि के अलावा घर में मम्मीपापा और एक छोटी बहन रागिनी थी, जो 10वीं के पेपर दे रही थी. रश्मि के पापा दीपक पाटीदार थे. आमदनी सालभर में इतनी हो जाती कि घर का खर्च आसानी से चल जाता, लेकिन शौक पूरे नहीं किए जा सकते. रागिनी एकदम सिंपल लड़की थी. उसे अपनी दीदी की तरह सजनेसंवरने का बिलकुल भी शौक नहीं था.

12वीं के बाद कोई काम ढूंढ़ने के लिए परेशान होता है तो कोई अच्छी जगह एडमिशन के लिए. रोहित आते ही सोनल को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसा हुआ पेपर?’’

‘‘ठीक ही हुआ है,’’ सोनल मुंह बना कर बोली, ‘‘अपना बताओ?’’

‘‘सब ठीक है, यार, इतने नंबर आ जाएंगे कि फिर से इस स्कूल में नहीं पढ़ना पड़ेगा,’’ यह कहते हुए रोहित की नजर रश्मि की तरफ टिक गई. लेकिन रश्मि उस की इस हरकत से बेपरवा आलिया से बातों में मशगूल थी.

दरअसल, रोहित पिछले 2 वर्षों से रश्मि की चाहत में पागल था, लेकिन कभी दाल नहीं गली. हार कर रोहित अब उस की राह से हट कर सोनल की जिंदगी में आ गया.

‘‘रश्मि, तुम आगे की पढ़ाई करोगी या नहीं,’’ आलिया ने पूछा.

‘‘हां आलिया, मुझे बीकौम करना है,’’ रश्मि ने जल्दी से जवाब दिया.

‘‘इस के लिए तुम्हें बड़े शहर में दाखिला लेना होगा,’’ सोनल तपाक से बोल पड़ी.

रश्मि रेशम जैसे बालों को उंगलियों में नचाते हुए बोली, ‘‘यही तो मुश्किल है. किस शहर जाऊं और किस के साथ.’’ इसी उलझन में शाम हो गई और सभी एकदूसरे से गले मिल कर विदा लेने लगे.

घर पहुंच कर रश्मि ने अपनी बांहों की माला मां के गले में डाल कर जिस्म को ढीला छोड़ दिया. मां मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘बेटा, क्या बात है? आज अपनी मां पर बहुत प्यार आ रहा है.’’

‘‘मम्मी, आप से एक बात कहूं,’’ रश्मि झिझकते हुए बोली.

‘‘हां, बोल क्या बात है? वैसे भी आज मैं बहुत खुश हूं,’’ अनीता उस के गालों को प्यार से खींच कर बोली.

अब रश्मि के सामने दिक्कत यह थी कि वह मम्मी से किस तरह बात शुरू करे और कहां से, लेकिन शुरू तो करना था. इसलिए उस ने हिम्मत कर के मम्मी से कहना शुरू किया.

‘‘मम्मी, बात यह है कि मैं आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहती हूं.’’ यह कहने के साथ रश्मि अपनी मां की आंखों में आंखें डाल कर बड़ी बेसब्री से उन के जवाब का इंतजार करने लगी.

अनीता की सांस जहां की तहां रुक गई. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या जवाब दें, क्योंकि पति को अच्छी तरह जानती थीं. कुछ लमहों के बाद गहरी सांस छोड़ कर यह कहते हुए खड़ी हो कर जाने लगीं कि इस बात की इजाजत तेरे पापा ही देंगे.

रश्मि को एक पल के लिए ख्वाब टूटते हुए लगे, लेकिन दूसरे ही पल संभल कर बोली, ‘‘मम्मी, आप पापा से बात कर लो. मुझे बड़ा शौक है कि पढ़लिख कर आप लोगों का नाम रोशन करूं.’’

‘‘हूं, अच्छा, ठीक है,’’ मां ने इशारे से हामी भरी और अंदर चली गईं.

रश्मि का सोचसोच कर बुरा हाल हो गया था, ‘अगर पापा ने मना कर दिया तो,’ ‘नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता,’ खुद ही सवाल कर के जवाब भी खुद ही देती. उस रात रश्मि की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सारी रात करवट बदलबदल कर सुबह कर दी.

लेकिन अगली सुबह इतनी खूबसूरत होगी, उस ने सोचा न था. अब ख्वाबों को हकीकत बनाने वाली वह जादुई छड़ी रश्मि को मिल गई थी. पापा मान गए थे कि रश्मि आगे की पढ़ाई कर सकती है.

12वीं का रिजल्ट आ गया, रश्मि ने स्कूल में टौप किया था. रश्मि के साथ घर वाले भी बहुत खुश थे. खुश भी क्यों न हों, बेटी ने उन का सिर फख्र से ऊंचा जो कर दिया था.

भोपाल के अच्छे कालेज में रश्मि का बीकौम में एडमिशन हो गया. वह पीजी में रहने लगी. उस का कालेज पीजी से आधे घंटे के फासले पर था, जिसे वह बस से तय करती.

रश्मि को आए हुए अभी 2 माह हुए थे कि 5 सितंबर नजदीक आ गया. यानी टीचर्स डे. इस के लिए क्लास के कई लड़केलड़कियों ने तरहतरह के सांस्कृतिक प्रोग्राम करने के लिए तैयारियां शुरू कर दीं. रश्मि को बड़ी जगह पर हुनर दिखाने का पहला मौका हाथ आया था, इसलिए वह किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती थी.

लिहाजा वह भी डांस की प्रैक्टिस में जीतोड़ मेहनत करने लगी. कालेज में प्रोग्राम के दौरान सभी ने एक से बढ़ कर एक झलकियां दिखा कर खूब वाहवाही लूटी, लेकिन अभी महफिल लूटने के लिए किसी का आना बाकी था.

‘तू शायर है, मैं तेरी शायरी…’ माधुरी की तरह डांस करती रश्मि की परफौर्मैंस देख हर तरफ तालियों की ताल सुनाई देने लगी.

सभी की जबां पर यही गीत खुदबखुद चलने लगा था. खैर, जब रश्मि स्टेज से ओझल हुई तब जा कर स्टुडैंट्स शांत हुए. लगभग एक बजे तक प्रोग्राम चला.

सभी टीचर्स के साथ ही लड़कों के बीच रश्मि को मुबारकबाद देने की होड़ सी लग गई. रश्मि के लिए ऐसा एहसास था जैसे हकीकत में वह कोई बड़ी सैलिब्रिटी हो. जितने भी लड़के थे, सभी उस के एकदम करीब हो जाना चाहते थे और यही मंशा रश्मि की थी.

घंटेभर बाद जब भीड़ कम हुई, तभी किसी की आवाज ने उस के कानों में दस्तक दी. उस ने मुड़ कर पीछे देखा, एक हैंडसम लड़के ने उसे मुबारकबाद देने के लिए हाथ बढ़ाया. रश्मि उसे नजरअंदाज न कर सकी और अपने नर्म व नाजुक हाथों को आगे बढ़ा दिया.

‘‘आप बहुत अच्छा डांस करती हैं, देख कर ऐसा लगा कि स्टेज पर माधुरी खुद ही परफौर्मैंस दे रही हों,’’ उस ने बड़ी सादगी से तारीफ की.

‘‘जी, शुक्रिया, मैं इतनी तारीफ के लायक नहीं कि आप मेरी इतनी तारीफ करें,’’ रश्मि सकुचाते हुए बोली.

‘‘मैं सच कह रहा हूं, आप ने वाकई में बहुत अच्छी परफौर्मैंस दी है,’’ अनजान लड़के ने बेबाकी से अपनी बात कही, ‘‘वैसे मेरा नाम राहुल है, और आप का?’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है,’’ रश्मि मुसकराई.

‘‘सोच रहा हूं जो दिखने में इतनी खूबसूरत है, उस का नाम कितना खूबसूरत होगा.’’

‘‘मेरा नाम रश्मि है,’’ रश्मि ने अपनी कातिल निगाहों से उस की तरफ देखा. राहुल ने भी रश्मि की आंखों में आंखें डाल दीं. काफी देर तक दोनों एकदूसरे को बिना पलक झपकाए देखते रहे, जब तक कि राहुल ने रश्मि की आंखों के सामने अपनी हथेलियों को ऊपरनीचे कर के कई बार इशारा नहीं किया.

तब जा कर रश्मि सपने से जागी और लजा गई. ‘‘आप से मिल कर खुशी हुई,’’ राहुल ने रश्मि के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘मैं पढ़ाई के साथ मौडलिंग करता हूं.’’ इतना सुनते ही रश्मि राहुल को देखते हुए सपनों के सागर में अठखेलियां खेलने लगी, उस ने कुछ ही देर में न जाने कितने सपने अकेले ही बुन लिए थे.

‘‘आप कहां खो गईं,’’ बोलते हुए राहुल का चेहरा रश्मि के इतना करीब हो गया था कि गरम सांसें एकदूसरे को महसूस होने लगीं. तभी रश्मि जागी, एक ऐसे सपने से जिस से वह जागना नहीं चाहती थी.

‘‘जी, कहिए क्या बात है,’’ रश्मि हड़बड़ा कर बोली.

‘‘आप किस दुनिया में खो गई थीं, मैं ने आप को कई बार पुकारा,’’ राहुल मुसकराया.

तभी उस का दोस्त रेहान आ गया और प्रैक्टिस पर जाने की बात कही. ‘‘अच्छा रश्मिजी, मैं चलता हूं, अब आप से कब मुलाकात होगी? अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आप का नंबर ले सकता हूं.’’

‘‘जी, क्यों नहीं,’’ और रश्मि ने उसे अपना नंबर दे दिया. शायद यही उस के खुले आसमानों में परवाज करने के लिए कोई खुली फिजा मुहैया करा दे.

रश्मि का राहुल को नंबर देना भर था कि कुछ ही दिनों में दोनों काफी देर तक बातें करने लगे, जो पहले कुछ सैकंड से शुरू हो कर मिनटों पर सवार हो कर अब घंटों का सफर तय करते हुए, मंजिल की तरफ तेजी से बढ़े जा रहे थे.

अब सवाल उठता है कि आखिर वे दोनों कौन से सफर को अपनी मंजिल मान बैठे थे. एकदूसरे का हमसाया बन कर औरों की आंखों में खटकने लगे. लेकिन इन सब बातों से रश्मि और राहुल बेपरवा अपनी जिंदगी में मस्तमौला हो कर हंसीखुशी वक्त बिताने लगे.

एक शाम रश्मि ने राहुल को कौल किया, लेकिन उस के किसी दोस्त ने कौल रिसीव की. ‘‘हैलो, आप कौन? आप किस से बात करना चाहती हैं,’’ उधर से किसी लड़के की आवाज आई.

‘‘मैं रश्मि बोल रही हूं, मुझे राहुल से बात करनी है.’’

‘‘अभी वे बिजी हैं, ऐसा करें आप कुछ वक्त बाद फोन कर लीजिएगा.’’

‘‘जी, आप का शुक्रिया,’’ रश्मि अपनी आवाज में मिठास घोल कर बोली.

करीब आधे घंटे के बाद उधर से राहुल का कौल आया, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार, क्या बताऊं थोड़ा काम में बिजी हो गया था.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ रश्मि रूखेपन से बोली.

‘‘समझने की कोशिश करो, रश्मि,’’ राहुल मनाने के अंदाज में बोला, ‘‘सच कह रहा हूं, एक जरूरी काम में बिजी था.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ रश्मि ने तंज कसा.

‘‘अभी तक आप का मूड सही नहीं हुआ, अच्छा, कौफी पीने आओगी?’’ राहुल विनम्रता से बोला.

‘‘ठीक है, एक घंटे बाद मिलते हैं,’’ इतना कह कर रश्मि ने कौल काट दी.

एक घंटे बाद जब रश्मि बताए गए पते पर पहुंची तो राहुल पहले से उस के इंतजार में बैठा था.

‘‘क्या लोगी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘कुछ भी मंगा लो,’’ रश्मि नजर उठा कर बोली.

‘‘ठीक है,’’ और राहुल ने 2 कौफी का और्डर दे दिया.

‘‘राहुल, मुझे तुम से एक बात करनी है,’’ रश्मि संजीदगी से बोली.

‘‘हां, बोलो, क्या बात करनी है?’’

‘‘बात यह है कि मैं मौडल बनना चाहती हूं और इस काम में तुम ही मेरी मदद कर सकते हो,’’ रश्मि उस की तरफ देखने लगी.

‘‘अच्छा, यह बात है, मैडम को मौडल बनना है,’’ राहुल बोला.

‘‘हां, मेरी दिलीख्वाहिश है.’’

‘‘ठीक है, मेरी कई लोगों से पहचान है और मैं खुद मौडलिंग करता हूं. इसलिए डोंट वरी. मैडम अब मुसकरा भी दो,’’ राहुल उसे छेड़ते हुए बोला.

इस बात पर रश्मि हंस दी और उस की हंसी ने चारों तरफ अपनी चमक बिखेर दी. थोड़ी देर में कौफी भी आ गई. दोनों गर्मजोशी से बातें करते हुए गर्म कौफी का मजा लेने लगे. रश्मि को अब सुकून था, लेकिन एक डर भी. यह डर कैसा था, खुद रश्मि को नहीं मालूम था. फिर भी उस ने आगे बढ़ने का फैसला कर लिया था.

रश्मि, राहुल के कदमों को फौलो करते हुए पीछेपीछे तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. इन दोनों के पैर पहले फ्लोर में जा कर थमे.

‘‘हैलो राहुल,’’ उस अनजान आदमी ने कहा.

‘‘हैलो सर,’’ राहुल ने जवाब में हाथ बढ़ा दिया.

‘‘सर, ये हैं रश्मि, मिस रश्मि,’’ राहुल ने परिचय कराया.

‘‘और रश्मि, आप हैं विकास सर,’’ राहुल ने उस अनजान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘हैलो सर,’’ रश्मि मुसकरा कर बोली.

‘‘सर, रश्मि की बचपन से बड़ी ख्वाहिश थी कि वह बड़ी हो कर मौडल बने, इसलिए मैं आप से मिलाने लाया हूं, आप इस की मदद कर सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए कुछ करता हूं,’’ विकास सर बोले. इस के बाद विकास सर ने रश्मि से कुछ सवाल पूछे. सभी चायनाश्ता कर के वहां से चल दिए. विकास सर अपने काम से दूसरी तरफ चले गए.

राहुल और रश्मि इधरउधर बाइक से घूमने लगे. आज रश्मि काफी खुश थी, हो भी क्यों न, आज उस के सपनों के पर निकल आए थे. काफी देर घूमने के बाद राहुल ने रश्मि से कहा, ‘‘ऐसा है, इधरउधर घूमने से बेहतर है कि तुम आज मेरे रूम चलो, वहीं बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे.’’

रश्मि ने मारे खुशी के इस बात की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया कि शहर में किसी लड़के के रूम में जाने के क्या माने होते हैं.

रश्मि पहली बार राहुल के रूम में आई थी. राहुल किराए के मकान में रहता था और भी कई लड़के उसी मकान में किराएदार थे. इन सब बातों से बेपरवा रश्मि वहां आ गई थी. राहुल रूम में अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी के आने का कोई डर नहीं था. राहुल का कमरा देखने में अच्छा था, लेकिन सारा सामान इधर से उधर तक बिखरा था.

‘‘राहुल, तुम्हारा रूम कितना गंदा है, लगता है कभी इस की सफाई नहीं करते?’’

‘‘अब कौन रोजरोज सफाई अभियान चलाए,’’ राहुल एकदम पास आ कर बोला. थोड़ी देर बात करते हुए राहुल रश्मि से एकदम सट कर बैठ गया और उस के कंधे पर अपने हाथों को रख लिया.

रश्मि के कुछ न कहने पर उस का हौसला बढ़ गया और अचानक से रश्मि के नाजुक गालों को चूम लिया.

‘‘यह क्या कर रहे हो,’’ रश्मि उस के पास से हटते हुए बोली. लेकिन उसी पल राहुल ने पागल आशिकों की तरह उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, रश्मि उस के ऊपर आ गिरी. अब रश्मि उस की मजबूत बांहों में समा चुकी थी.

ऐसा नहीं है कि रश्मि ने राहुल से छूटने की कोशिश न की हो, लेकिन राहुल उसे अपने फौलादी हाथों से जकड़े हुए था. रश्मि उस की बांहों में शिकार बने परिंदे की तरह छटपटा रही थी, लेकिन उस की सारी कोशिशें नाकाम रहीं. इस का दूसरा पहलू यह भी था, रश्मि खुद ही राहुल की बांहों में प्यार के गोते लगाना चाहती थी. रश्मि अब राहुल के जिस्म में लता की तरह लिपटी हुई थी और रेगिस्तान में मछली की तरह प्यार में तड़प रही थी. राहुल भी सारी सरहदें पार कर के हद से गुजर जाना चाहता था. प्यार की तड़प, जज्बातों की प्यास और जिस्म की आग दोनों तरफ से इस कदर लगी थी कि उन्हें अच्छेबुरे की सुध ही न रही.

रफ्तारफ्ता यह सिलसिला चलता रहा और प्यार करने की चाहत दिनबदिन बढ़ती गई. लेकिन क्या यह प्यार था या सिर्फ चाहत या जो जिस्मों की प्यास बुझाने के लिए था? इस रिश्ते का नाम कुछ भी हो, एक बात तो तय थी कि इन में से कोई भी ईमानदार नहीं था. रश्मि को मौडल बनना था और राहुल को जिस्म की आग ठंडी करनी थी. रश्मि अपने ख्वाबों को हकीकत बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा चुकी थी, उसे सिर्फ कामयाबी चाहिए थी, फिर चाहे जैसे मिले. इस से रश्मि को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अकसर सुनने में आता है कि झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे, लेकिन आखिर कब तक? कब तक आप किसी से इस तरह से फरेब करते रहेंगे. एक दिन तो सचाई दुनिया के सामने आनी ही है और यह सचाईर् रश्मि के सामने बहुत भयानक रूप में आई.

रश्मि मौडल बनने के लिए कुछ भी कर सकती थी, इसलिए राहुल ने उसे उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया था. वह उसे आजकल में टालता रहा, फिर एक दिन उसे स्टूडियो में ले जा कर उस का फोटोशूट करवाया. विकास सर बोले ‘‘रश्मि, आप को मौडल बनना है?’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि बोली.

‘‘तो आप कल से इस तरह के गांव वाले कपड़े पहन कर मत आना.’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि ने हामी भरी.

अगले दिन रश्मि काफी भड़कीला सूट पहन कर आई और फोटोशूट के लिए तैयार हो गई. कैमरामैन शौट लेने के लिए रेडी था. उस ने कई एंगल से शौट लिए. लेकिन विकास जिस तरह का शौट चाहते थे, उन्हें नहीं मिल पा रहा था. वे उठ खड़े हुए और रश्मि को डांटते हुए बोले कि तुम्हें इतना भी नहीं मालूम की कैसे कपड़े पहन कर आया जाता है.

फिर उन्होंने कैमरामैन से डिजाइन किए ड्रैसेज लाने को कहा. उस ने एक बौक्स से कुछ ड्रैसेस निकालीं और रश्मि को पहनने को दीं. रश्मि जब चेंजिंग रूम में गई और एक ड्रैस पहनी और वहीं लगे आईने में देखा तो शरमा गई. जो ड्रैस पहनी थी, उस से बमुश्किल ही जिस्म छिप पा रहा था. लेकिन यह सब तो करना ही था. इसी तरह कई ड्रैसेज में उस ने पोज दिए, रश्मि आज काफी नर्वस थी, उस की हालत देख कर राहुल उसे करीब कर के बोला, ‘‘रश्मि, यह सब तो करना ही पड़ेगा, अब मौडल जो बनना है.’’

‘‘हां राहुल, फिर भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा,’’ रश्मि उदासी से बोली.

रात को रश्मि काफी देर तक छत से लटकते पंखे को निहारती रही, ‘क्या मैं जो कर रही हूं, वह ठीक है? या मौडल बनने के चक्कर में किसी दलदल में फंस गई हूं.’ काफी रात तक वह जागती रही, लेकिन उस के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. एक तरफ बचपन से पाला हुआ ख्वाब था, तो दूसरी तरफ ख्वाबों को हकीकत में बदलने का मौका और इस मौके में कई तरह के खौफनाक मोड़. आज रश्मि का फोटोशूट भोपाल से बाहर एक फार्महाउस में होना था. इसलिए थोड़ी देर बाद रश्मि तैयार हो कर राहुल की बाइक पर शहर से दूर किसी हाइवे पर फर्राटा भरते हुए चली जा रही थी. करीब 40 मिनट बाद उन की बाइक हाइवे से उतर कर एक ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाते हुए मंजिल की तरफ बढ़ी.

बा?इक एक आलीशान फार्महाउस के सामने आ कर रुकी. राहुल ने हौर्न बजाया. गेट खुला. फिर दोनों अंदर साथ गए. वहां जा कर रश्मि ने देखा कि फार्महाउस काफी बड़ा है. सामने ही उसे विकास सर नजर आ गए. रश्मि ने नमस्ते कहा. इस के जवाब में विकास सर ने भी.

अंदर जा कर रश्मि ने देखा तो खानेपीने का इंतजाम पहले से ही था. वहीं टेबल पर कुछ बोतलें शराब की थीं. यह सब देख कर रश्मि को अजीब लगा, लेकिन फिर सोचा कि यह सब आज के दौर में चलता है. थोड़ी देर बाद सभी एक बड़े डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खानेपीने लगे.

‘‘रश्मि,’’ सक्सेना सर ने उसे शराब पीने का औफर दिया. लेकिन रश्मि ने साफ मना कर दिया. ‘‘यह सब चलता है,’’ राहुल पीते हुए बोला. इस बार रश्मि ने जाम को हाथों से थाम लिया. शराब पीते ही रश्मि को बड़ा अजीब लगा, जैसे कोई तीखी चीज गले को चीर कर अंदर उतर गई हो.

विकास सर और राहुल पर शराब का सुरूर चढ़ा तो उन्होंने इधरउधर की भद्दी बातें करनी शुरू कर दीं. थोड़ी ही देर में विकास सर ने रश्मि को अपने पास बुलाया और हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया और छेड़खानी करने लगे.

‘‘सर, आप क्या रहे रहे हैं, यह सब गलत है,’’ रश्मि ने कहा. लेकिन सही और गलत की किसे परवा थी.

‘‘तुम्हें मौडल नहीं बनना क्या, देखो रश्मि, जिंदगी में कुछ बड़ा करना है तो यह सब गलत नहीं है, और मेरे कुछ करने से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आ जाएगी,’’ यह कहते हुए सक्सेना के हाथ रश्मि के गालों से होते हुए उस के सीने पर आ कर थम गए.

‘‘सर, यह तो मेरे बचपन का शौक है,’’ रश्मि धीमी आवाज में बोली.

‘‘फिर क्यों मना कर रही हो, हम कोई गैर नहीं हैं, हमें अपना ही समझो,’’ विकास सर कहते हुए बदहवास उस पर टूट पड़े.

रश्मि मौडल बनने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाने से गुरेज करने वालों में नहीं थी, वह जिस्म को मंजिल हासिल करने का सिर्फ जरिया मानती थी और आज उस ने वही किया. यह बात और है कि एक औरत होने के नाते उसे भी थोड़ीबहुत झिझक थी, जो अब टूट चुकी थी.

मन में बाराबर यही आ रहा था कि बचपन से संजोए ख्वाब शायद अब हकीकत बन जाएं. लेकिन यह ख्वाब महंगे साबित होंगे, उस ने सोचा न था. लेकिन महंगे ख्वाब आसानी से पूरे नहीं होते हैं, इस बात का एहसास उसे अब तक हो चुका था. तभी तो अब रश्मि इस खेल में मंझी हुई खिलाड़ी की तरह विकास का साथ दे रही थी. यह सब करते हुए अब उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था, बल्कि जिंदगी का अहम हिस्सा मान कर अपने सपनों के साथ सैक्स का भी मजा लेने लगी. उसे अपनी मंजिल मिल गई थी.

Hindi Kahani : पहला प्यार चौथी बार – 100 साल से क्या विचार चल रहा था?

Hindi Kahani : बदलती फिजां के साथ प्यार की बयार बदल गई है. पहले तो लड़कालड़की को पहली ही नजर में प्यार हो जाया करता था पर आज ई टेक्नोलाजी के दौर में अब ‘पहला प्यार’ केवल चौथी बार ही नहीं बल्कि ‘अनलिमिटेड टाइम्स’ होने लगा है. ‘वेलेनटाइन डे’ पर पहले प्यार की महिमा बताता भरत चंदानी का व्यंग्य.

मेरा भारत महान. और भी बड़ेबड़े देश हैं जो हम से ज्यादा विकसित, धनी, सुखी और समृद्ध हैं मगर फिर भी महान नहीं हैं. महान तो सिर्फ और सिर्फ मेरा भारत है.

प्राचीनकाल में तो मेरा भारत और ज्यादा महान था. गौरवशाली साम्राज्य, ईमानदार इतिहास, सच्ची वीर परंपराएं, समृद्ध शासक, विशाल नागरिक, सोने की चिडि़या और घीदूध की नदियां… लगता है कुछ घालमेल हो गया लेकिन ऐसा ही कुछकुछ हुआ करता था. मगर आज के समय में, टूटीफूटी परंपराएं, सड़ा हुआ देश, भ्रष्ट जनता, गरीब नेता, गड़बड़ भूगोल और इतिहास का पता नहीं. कुल मिला कर जोजो अच्छा है वह पुराने जमाने में हो चुका, अभी तो जो भी नया है सब सत्यानाश.

मुझे तो सख्त अफसोस होता है कि मैं आज के समय में क्यों हूं, भूतकाल में क्यों न हुआ? बस, यही सोच कर संतोष होता है कि अभी जोजो बुरा है वह भी प्राचीन होने के बाद अच्छा हो जाएगा. ऐसे में जबकि जिंदगी जिल्लत ही जिल्लत है और हर चीज की किल्लत ही किल्लत है, एक चीज यहां ऐसी है जो पहले बड़ी दुर्लभ हुआ करती थी मगर आज उस की भरमार है और वह है प्रेम.

जी हां, आज हमारे पास प्रेम हमेशा हाजिर स्टाक में उपलब्ध रहता है. उस जमाने में कभी 100-50 साल में कोई एक मजनूं और एकाध लैला भूलेभटके ही होती थी, जो आपस में प्यार करते थे और बाकी लोग अजूबे की तरह उन्हें देखते थे कि ये लोग कर क्या रहे हैं और आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे? जिन की समझ में नहीं आता था वे उन्हें पत्थर उठा कर मारने लगते थे और जो अहिंसावादी थे वे बैठ कर उन के प्रेम की कहानियां लिखते थे. मगर आज गलीकूचों में प्रेम की ब्रह्मपुत्र बह रही है. यहां की हर छोरी लैला हर छोरा मजनूं. गांवगांव, शहरशहर, यहां, वहां, जहां, तहां, मत पूछो कहांकहां हीररांझा छितरे पड़े हैं. डालडाल रोमियो हैं तो पातपात जूलियट. बिजली के खंभों पर, टेलीफोन के तारों पर, जगहजगह लैला और मजनूं उलटे लटके पड़े हैं जितने जी चाहे गुलेल मार कर तोड़ लो.

किसी से भी यह सवाल पूछो कि आजकल क्या कर रहे हो? तो जवाब मिलता है, ‘‘प्यार कर रहा हूं.’’ कोई कालिज की कैंटीन में तो कोई हवाई झूले में, कोई गली के पिछवाड़े तो कोई कंप्यूटर पर ही. इंटरनेट पर तो प्यार करना बड़ा आसान है. एक मेल, फीमेल को ई मेल करता है, बदले में फीमेल भी मेल को ई मेल करती है और दोनों का मेल हो जाता है. शादियां भी इंटरनेट पर ही तय हो जाती हैं. कुछ दिनों बाद तो उन दोनों को मिलने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी, कंप्यूटर पर ही डब्लूडब्लूडब्लू डाट मुन्नामुन्नी डाट काम हो जाएगा.

पहले एक शीरीं हुआ करती थी जो एक फरहाद से प्यार किया करती थी और वह कमअक्ल मरते दम तक उसी से प्यार करती थी. मुगल साम्राज्य के पतन के बाद से ले कर जितेंद्र, श्रीदेवी की फिल्मों तक प्रेम के त्रिकोण बनने लगे थे, जिस में एक जूलियट के पीछे 2 रोमियो एकसाथ बरबाद हो जाते थे या फिर 2 महीवाल एक ही सोहणी को गलत रास्ते पर ले जाने की कोशिश किया करते थे, मगर अब तो त्रिकोण भी बीती बात हो गई, आजकल तो प्रेम के षट्कोण बनते हैं यानी 1 लैला, अकेली 5-5 मजनुओं को अपने घर के चक्कर कटवाती है और अंत में उन सब को ठेंगा दिखा कर किसी फरहाद से शादी कर लेती है.

उस जमाने में एक पहली नजर का प्यार होता था जो वाकई पहली नजर में हो जाया करता था लेकिन अब किसे उस की फिक्र है. अब तो हर नजर, प्यार की नजर है. इसी तरह एक होता था ‘पहला प्यार’, जो जीवन में किसी एक से एक ही बार होता था और भुलाए नहीं भूलता था, मगर आजकल तो पहला प्यार ही कई बार हो जाता है. राज की बात यह है कि मुझे भी यह कमबख्त ‘पहला प्यार’ 4 बार हो चुका है और पिछले सीजन में जब यह मुझे चौथी बार हुआ तभी मैं समझ गया था कि यह भी आखिरी बार नहीं है. मतलब अभी तो यह अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है.

जिधर नजर डालो प्यार ही प्यार, नफरत का तो कहीं नामोनिशान नहीं. मुंबई की पूरी फिल्म इंडस्ट्री पिछले 100 साल से इसी प्रेम के दम पर दारूमुर्गा उड़ा रही है. हर फिल्म में और कुछ चाहे हो न हो, मगर 1 लड़का और 1 लड़की जरूर होते हैं जो अंत में कभी मिल पाते हैं कभी बिछड़ जाते हैं पर प्यार जरूर करते हैं.

100 साल से यही विचार चलता चला आ रहा है कि जिसे हम प्यार समझ रहे हैं क्या यही प्यार है? या फिर प्यार वह है जिसे हम प्यार नहीं समझ रहे हैं? जवान लड़का चाय की पत्ती लेने घर से निकला और कुत्तों के क्लीनिक में घुस गया, यह इश्क नहीं तो और क्या है? जवान लड़की, लड़के से शिकायत करती है, ‘‘दिल में दर्द रहता है, मुझे भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, सारा दिन तड़पती हूं, सारी रात जगती हूं, जाने क्या हुआ मुझ को…?’’

किसी पत्नी ने पति से कहा होता तो डाक्टर और अस्पताल के खर्च के बारे में सोच कर बेचारे का दिल बैठ जाता लेकिन प्रेमी का दिल खड़ा हो कर उछलने लगता है कि चलो, अपना जुगाड़ बैठ गया. उधर दर्शक भी समझ जाते हैं कि इसे ‘फाल इन लव’ कहते हैं. लड़का और लड़की प्यार में गिर गए, अब ये दोनों गिरी हुई हरकतें करेंगे. लड़की 16 साल और 1 दिन की हुई नहीं कि उसे मोहब्बत हो जाती है, कोईकोई तो साढ़े 15 साल में ही उंगली में दुपट्टा लपेटना शुरू कर देती है.

खुदा न खास्ता अगर किसी लड़के या लड़की की 17 साल उम्र हो जाने पर भी कोई लफड़ा नहीं हुआ तो फिल्मी मांबाप चिंतित हो जाते हैं कि ‘बच्चा’ कहीं असामान्य तो नहीं है और किसी अच्छे डाक्टर से चेकअप करवाने की जरूरत महसूस करने लगते हैं. लड़का जब अपने बाप को यह खबर सुनाता है कि उस का किसी पर दिल आ गया है तो बाप यों खुशी से उछल पड़ता है मानो उसे विदेश में पढ़ाई के लिए स्कालरशिप मिली हो. फिर वह उसे लड़की को भगाने के लिए प्रेरित करता है और जब लड़का, लड़की को ले भागता है तो वह गर्व से अपना सीना फुला कर कहता है, ‘आखिर बेटा किस का है?’

प्रेम के मामले में हो रही तरक्की के मद्देनजर आने वाले समय में हमारे घरों के अंदर के दृश्य बड़े मजेदार होंगे. आइए, जरा एकदो काल्पनिक दृश्यों का वास्तविक आनंद लें.

दृश्य : एक

कमरा वास्तुशास्त्र के अनुसार बना हुआ है. दक्षिणमुखी कमरे के बीचोबीच, वाममुखी सोफे पर चंद्रमुखी लड़की की सूरजमुखी मां और ज्वालामुखी बाप बैठे हैं. बाप परेशान है, ‘‘बात क्या है? तुम दोनों मांबेटी आखिर मुझ से क्या छिपा रही हो?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? आप ही के लाड़प्यार ने इसे बिगाड़ा है और अब पूछते हो कि हुआ क्या, जब इस ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ, साफसाफ बताओ कि इस ने क्या किया है?’’

‘‘और क्या करेगी? आज जब पड़ोस वाली मिसेज भटनागर ने मुझे ताना मारा तब मुझे पता चला कि इस कलमुंही का एक भी ब्वायफ्रेंड नहीं है. नाक कटा दी इस ने हमारी. शहर के लोग क्या सोचते होंगे हमारे बारे में कि कितने बैकवर्ड हैं हम लोग.

‘‘ऊपर से मिसेज भटनागर मुझे जलाने के लिए अपनी दोनों बेटियों को ले कर आई थीं और वह इतराएं भी क्यों न, आखिर उन की दोनों बेटियां अब तक 2-2 ब्वायफ्रेंड बदल चुकी हैं और इस करमजली के कारण आज मैं 40 प्रतिशत जली हूं.’’

‘‘क्यों बेटी, जो मैं सुन रहा हूं क्या यह सच है?’’

‘‘नहीं, डैड…हां, डैड…पता नहीं, डैड.’’

‘‘देखो, मुझे हां या ना में सीधा जवाब चाहिए. क्या बात है बेटी, क्या तुम्हें कोई लाइन नहीं मारता?’’

‘‘म…म…मारता है मगर उस के पास सेलफोन और बाइक नहीं है.’’

‘‘बस, इतनी सी बात. तुम उसे लाइन देना शुरू कर दो. सेलफोन मैं उसे प्रजेंट कर दूंगा और तुम उसे प्यार से समझाना कि वह एक बाइक आसान किश्तों में खरीद ले.’’

‘‘ल…लेकिन डैड…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. मैं कोई बहाना सुनना नहीं चाहता. अगली बार जब तुम मेरे सामने आओ तो अपने ब्वायफ्रेंड के साथ ही आना, अगर ऐसा नहीं हुआ तो आइंदा तुम घर के बाहर ही रहोगी. तुम्हारा खाना, पीना और कमरे के अंदर घुसना बिलकुल बंद.’’

दृश्य : दो

कमरे की स्थिति तनावपूर्ण पर नियंत्रण में है. बाप बेटे पर गरम हो रहा है. मां दोनों में बीचबचाव कराती है, ‘‘अजी, मैं कहती हूं जब देखो आप मेरे लाडले के पीछे ही पड़े रहते हैं, अब इस ने ऐसा क्या कर दिया?’’

‘‘अरे, मुझ से क्या पूछती हो, पूछो अपने इस लाडले से, 2 साल से कालिज में है पर आज तक एक लड़की नहीं पटा सका, ऊपर से जबान लड़ाता है कि मुझे पढ़ाई से फुर्सत नहीं. सुना तुम ने? मैं ही जानता हूं कि कैसे मैं अपना पेट काट- काट कर इस के लिए फीस जुटाता हूं. इसी की उम्र के और लड़के रात में 2-2 बजे लौटते हैं अपनी ‘डेट’ के साथ और यह महाशय, इन्हें पढ़ाई से फुर्सत नहीं है.’’

‘‘हाय राम, बेटा, मैं यह क्या सुन रही हूं. देखो, तुम तो खुद समझदार हो, यह पढ़ाईवढ़ाई की जिद छोड़ दो, उस के लिए तो सारी उम्र पड़ी है. यही समय है जब तुम लड़कियों पर ध्यान दे कर अपना भविष्य संवार सकते हो.’’

‘‘इस तरह प्यार से समझाने पर यह नहीं समझने वाला. इस कमबख्त के सिर पर तो कैरियर बनाने का भूत सवार है. यह क्या समझेगा मांबाप के अरमानों को. पिछले हफ्ते जानती हो इस ने क्या किया? इसे किताबों के लिए मैं ने पैसे भेजे तो ये उन से सचमुच में किताबें खरीद लाया, किताबी कीड़ा कहीं का.’’

किताबी कीड़ा क्या करता? बेचारा चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा. प्रेम की ऐसी मारामारी, प्यार की ऐसी भरमार, इश्क, मोहब्बत का ऐसा जनून, न भूतो न भविष्यति. साल में एक पूरा दिन तो अब प्यार के नाम रिजर्व है ‘वेलेंटाइन डे’ के नाम से. अब वह रूखासूखा जमाना नहीं रहा जब प्रेम की उन्हीं घिसीपिटी 10-5 कहानियों को सारे लेखक अपनीअपनी शैली में घुमाफिरा कर लिखते थे…अब तो मैं :

‘‘सब धरती कागद करौं,

लेखनी सब बनराय,

सात समुंदर मसि करौं,

हरि गुन लिखा न जाय.’’

सारी धरती को कागज बना लूं, वन के सभी वृक्षों को कलम और सारे समुद्रों को स्याही में बदल दूं फिर भी जितनी प्रेम की कहानियां हैं पूरी नहीं लिख पाऊंगा. इस से तो बेहतर होगा कि इतना सारा कागज, कलम और स्याही बेच कर मैं करोड़पति हो जाऊं और मल्लिका शेरावत से पूछूं, ‘‘मेरे साथ डेट पर चलोगी?’’

Love Story : लौन्ग डिस्टेंस रिश्ते – अभय को बेईमान मानने को रीवा क्यों तैयार न थी?

Love Story : ‘‘हैलो,कैसी हो? तबीयत तो ठीक रहती है न? किसी बात की टैंशन मत लेना. यहां सब ठीक है,’’ फोन पर अभय की आवाज सुनते ही रीवा का चेहरा खिल उठा. अगर सुबहशाम दोनों वक्त अभय का फोन न आए तो उसे बेचैनी होने लगती है.

‘‘मैं बिलकुल ठीक हूं, तुम कैसे हो? काम कैसा चल रहा है? सिंगापुर में तो इस समय दोपहर होगी. तुम ने लंच ले लिया? अच्छा इंडिया आने का कब प्लान है? करीब 10 महीने हो गए हैं तुम्हें यहां आए. देखो अब मुझे तुम्हारे बिना रहना अच्छा नहीं लगता है. मुझे यह लौंग डिस्टैंस मैरिज पसंद नहीं है,’’ एक ही सांस में रीवा सब कुछ कह गई.

बेशक उन दोनों की रोज बातें होती हैं, फिर भी रीवा के पास कहने को इतना कुछ होता है कि फोन आने के बाद वह जैसे चुप ही नहीं होना चाहती है. वह भी क्या करे, उन की शादी हुए अभी 2 साल ही तो हुए हैं और शादी के 2 महीने बाद ही सिंगापुर की एक कंपनी में अभय की नौकरी लग गई थी. वह पहले वहां सैटल हो कर ही रीवा को बुलाना चाहता था, पर अभी भी वह इतना सक्षम नहीं हुआ था कि अपना फ्लैट खरीद सके. ऊपर से वहां के लाइफस्टाइल को मैंटेन करना भी आसान नहीं था. कुछ पैसा उसे इंडिया भी भेजना पड़ता था, इसलिए वह न चाहते हुए भी रीवा से दूर रहने को मजबूर था.

‘‘बस कुछ दिन और सब्र कर लो, फिर यह दूरी नहीं सहनी पड़ेगी. जल्द ही सब ठीक हो जाएगा. मैं ने काफी तरक्की कर ली है और थोड़ाबहुत पैसा भी जमा कर लिया है. मैं बहुत जल्दी तुम्हें यहां बुला लूंगा.’’

अभय से फोन पर बात कर कुछ पल तो रीवा को तसल्ली हो जाती कि अब वह जल्दी अभय के साथ होगी. पर फिर मायूस हो जाती. इंतजार करतेकरते ही तो इतना समय बीत गया था. बस यही सोच कर खुश रहती कि चलो अभय उस से रोज फोन पर बात तो करता है. बातें भी बहुत लंबीलंबी होती थीं वरना एक अनजाना भय उसे घेरे रहता था कि कहीं वह वहां एक अलग गृहस्थी न बसा ले. इसीलिए वह उस के साथ रहने को बेचैन थी. वैसे भी जब लोग उस से पूछते कि अभय उसे साथ क्यों नहीं ले गया, तो वह उदास हो जाती. दूर रहने के लिए तो शादी नहीं की जाती. उस की फ्रैंड्स अकसर उसे लौंग डिस्टैंस कपल कह कर छेड़तीं तो उस की आंखें नम हो जातीं.

‘‘रीवा, तुम्हारे लिए खुशी की बात है. मेरे पास अब इतने पैसे हो गए हैं कि मैं तुम्हें यहां बुला सकूं. तुम आने की तैयारी करना शुरू कर दो. जल्द ही मैं औनलाइन टिकट बुक करा दूंगा. फिर हम घूमने चलेंगे. बोलो कहां जाना चाहती हो? मलयेशिया चलोगी?’’

यह सुनते ही रीवा रो पड़ी, ‘‘जहां तुम ले जाना चाहोगे, चल दूंगी. मुझे तो सिर्फ तुम्हारा साथ चाहिए.’’

‘‘तो फिर हम आस्ट्रेलिया चलेंगे, बहुत ही खूबसूरत देश है.’’

अभय से बात करने के बाद रीवा का मन कई सपने संजोने लगा. अब जा कर उस का सही मानों में वैवाहिक जीवन शुरू होगा. वह खरीदारी और पैकिंग करने में जुट गई. रात को भी अभय से बात हुई तो उस ने फिर बात दोहराई. अभय के फोन आने का एक निश्चित समय था, इसलिए रीवा फोन के पास आ कर बैठ जाती थी. लैंडलाइन पर ही वह फोन करता था.

उस दिन भी सुबह से रीवा अभय के फोन का इंतजार कर रही थी. लेकिन समय बीतता गया और फोन नहीं आया. ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि फोन न आए. सोचा कि बिजी होगा, शायद बाद में फोन करे. पर उस दिन क्या, उस के बाद तो 1 दिन बीता, 2 दिन बीते और धीरेधीरे

10 दिन बीत गए, पर अभय की न तो कोई खबर आई और न ही फोन. पहले तो उसे लगा कि शायद अभय का सरप्राइज देने का यह कोई तरीका हो, पर वक्त गुजरने के साथ उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे कि कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं घट गई. उस के मोबाइल पर फोन किया तो स्विचऔफ मिला. कंपनी के नंबर पर किया तो किसी ने ठीक से जवाब नहीं दिया.

सिंगापुर में अभय एक फ्रौड के केस में फंस गया था. 10 दिनों से वह जेल में बंद था. उसे लगा कि अगर रीवा को यह बात पता चलेगी तो न जाने वह कैसे रिऐक्ट करे. कहीं वह उसे गलत न समझे और यह सच मान ले कि उस ने फ्रौड किया है. कंपनी ने भी उसे आश्वासन दिया था कि वह उसे जेल से बाहर निकाल कर केस क्लोज करा देगी. इसलिए अभय ने सोचा कि बेकार रीवा को क्यों बताए. जब केस क्लोज हो जाएगा तो वह इस बात को यहीं दफन कर देगा. इस से रीवा के मन में किसी तरह की शंका पैदा नहीं होगी कि उस का पति बेईमान है.

असल में अभय जिस कंपनी में फाइनैंशियल ऐडवाइजर था, उस के एक क्लाइंट ने उस पर 30 हजार डौलर की गड़बड़ी करने का आरोप लगाया था. क्लाइंट का कहना था कि उस ने सैंट्रल प्रौविडैंट फंड में अच्छा रिटर्न देने का लालच दे कर उस का विश्वास जीता और बाद में उस के अकाउंट में गड़बड़ी कर यह फ्रौड किया. असल में यह अकाउंट में हुई गलती थी. डेटा खो जाने यानी गलती से डिलीट हो जाने की वजह से यह सारी परेशानी खड़ी हुई थी. लेकिन पुलिस ने अभय को ही इस बात के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए फ्रौड करने के लिए कंपनी के हिसाबकिताब में गड़बड़ी और कंपनी के डौक्यूमैंट्स के साथ छेड़छाड़ करने के जुर्म में जेल में डाल दिया था और फाइन भी लगाया था. उसे अपनी बात कहने या प्रमाण पेश करने तक का अवसर नहीं दिया गया. वहां पर एक इंडियन पुलिस अफसर ही उस का केस हैंडल कर रहा था और वह इस बात से नाराज था कि भारतीय हर जगह बेईमानी करते हैं.

‘‘आप यकीन मानिए सर, मैं ने कोई अपराध नहीं किया है,’’ अभय की बात सुन पुलिस अफसर करण बोला, ‘‘यहां का कानून बहुत सख्त है, पकड़े गए हो तो अपने को बेगुनाह साबित करने में बरसों भी लग सकते हैं और यह भी हो सकता है कि 2-3 दिन में छूट जाओ.’’

‘‘करण साहब, अभय बेगुनाह हैं यह बात तो उन की कंपनी भी कह रही है. केवल क्लाइंट का आरोप है कि उन्होंने 30 हजार डौलर का फ्रौड किया है. कंपनी तो सारी डिटेल चैक कर क्लाइंट को एक निश्चित समय पर पैसा भी देने को तैयार है, हालांकि उस के लिए अभय को भी पैसे भरने पड़ेंगे. बस 1-2 दिन में मैं इन्हें यहां से निकाल लूंगा,’’ अभय के वकील ने कहा.

‘‘अगर ऐसा है तो अच्छा ही है. मैं भी चाहता हूं कि हमारे देशवासी बदनाम न हों.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी वाइफ को हम क्या उत्तर दें? वह बारबार हमें फोन कर रही है. उस ने तो पुलिस को इन्फौर्म करने को भी कहा है,’’ अपनी टूटीफूटी हिंदी में कंपनी के मालिक जोन ने पूछा.

‘‘सर, आप प्लीज उसे कुछ न बताएं. मैं नहीं चाहता कि मेरी वाइफ मुझे बेईमान समझे. वह मुझे छोड़ कर चली जाएगी. हो सकता है वह मेरे जेल में होने की बात सुन डाइवोर्स ही ले ले. नो, नो, सर, डौंट टैल हर ऐनीथिंग ऐंड ट्राई टू अवौइड हर फोन काल्स. मैं उस की नजरों में गिरना नहीं चाहता हूं.’’

‘‘पर वह तो यहां आने की बात कर रही थी. हम उसे कैसे रोक सकते हैं?’’

जोन की बात सुन कर अभय के चेहरे पर पसीने की बूंदें झिलमिला उठीं. वह जानता था कि अपने को निर्दोष साबित करने के लिए पहले उसे डिलीट हुए डेटा को कैसे भी दोबारा जैनरेट करना होगा और वह करना इतना आसान नहीं था. 30 हजार डौलर उस के पास नहीं थे, जो वह चुका पाता. कंपनी भी इसी शर्त पर चुकाने वाली थी कि हर महीने उस की सैलरी से अमाउंट काटा जाएगा. वह जानता था कि वह इस समय चारों ओर से घिर चुका है. कंपनी वाले बेशक उस के साथ थे और वकील भी पूरी कोशिश कर रहा था, पर उसे रीवा की बहुत फिक्र हो रही थी. इतने दिनों से उस ने कोई फोन नहीं किया था, इसलिए वह तो अवश्य घबरा रही होगी. हालांकि अभय की कुलीग का कहना था कि उसे रीवा को सब कुछ बता देना चाहिए. इस से उसे कम से कम अभय के ठीकठाक होने की खबर तो मिल जाएगी. हो सकता है वही कोई रास्ता निकाल ले.

मगर अभय इसी बात को ले कर भयभीत था कि कहीं रीवा उसे गलत न समझ बैठे. जितना आदरसम्मान और प्यार वह उसे करती है, वह कहीं खत्म न हो जाए. वह भी रीवा से इतना प्यार करता है कि किसी भी हालत में उसे खोना नहीं चाहता. इंडिया में बैठी रीवा को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अभय की खोजखबर कैसे ले. इस बारे में उस ने अपने मौसा से बात की. वे आईएफएस में थे और इस समय अमेरिका में पोस्टेड थे. उन्होंने सलाह दी कि रीवा को सिंगापुर जाना चाहिए.

सिंगापुर पहुंच कर रीवा ने जब कंपनी में कौंटैक्ट किया तो सच का पता चला. बहुत बार चक्कर लगाने और जोन से मिलने पर ही वह इस सच को जान पाई. सचाई जानने के बाद उस के पांव तले की जैसे जमीन खिसक गई. अभय को बेईमान मानने को उस का दिल तैयार नहीं था, पर पल भर को तो उसे भी लगा कि जैसे अभय ने उसे धोखा दिया है. अपने मौसा को उस ने सारी जानकारी दी और कहा कि वही इंडियन हाई कमीशन को इस मामले में डाल कर अभय को छुड़वाएं.

रीवा को अपने सामने खड़ा देख अभय सकपका गया, ‘‘तुम यहां कैसे…? कब आईं… मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता था, इसलिए कुछ नहीं बताया… मेरा यकीन मानो रीवा मैं बेईमान नहीं हूं… तुम नहीं जानतीं कि मैं यहां कितना अकेला पड़ गया था…’’ घबराहट में अभय से ठीक से बोला तक नहीं जा रहा था.

‘‘मुझे तुम पर यकीन है अभय. चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.’’

रीवा के मौसा के इन्फ्लुअंस और इंडियन हाई कमीशन के दखल से अगले 2 दिनों में अभय जेल से बाहर आ गया.

‘‘रीवा, आई ऐम रियली सौरी. पर मैं डर गया था कि कहीं तुम मुझे छोड़ कर न चली जाओ.’’

‘‘सब भूल जाओ अभय… मैं ने तुम्हारा हाथ छोड़ने के लिए नहीं थामा है. लेकिन अब तुम सिंगापुर में नहीं रहोगे. इंडिया चलो, वहीं कोई नौकरी ढूंढ़ लेना. हम कम में गुजारा कर लेंगे, पर रहेंगे साथ. कंपनी के पैसे कंपनी से हिसाब लेने पर चुका देंगे. कम पड़ेंगे तो कहीं और से प्रबंध कर लेंगे. लेकिन अब मैं तुम्हें यहां अकेले नहीं रहने दूंगी. दूसरे देश में पैसा कमाने से तो अच्छा है कि अपने देश में 2 सूखी रोटियां खा कर रहना. कम से कम वहां अपने तो होते हैं. इस पराए देश में तुम कितने अकेले पड़ गए थे. जितनी जल्दी हो यहां से चलने की तैयारी करो.’’

रीवा के हाथ को मजबूती से थामते हुए अभय ने जैसे अपनी सहमति दे दी. वह खुद भी इस लौंग डिस्टैंस रिश्ते से निकल रीवा के साथ रहना चाहता था.

Best Hindi Story : तलाश एक कहानी की – मोहन बाबू क्षमा क्यों मांग रहे थें?

Best Hindi Story : कुरसी पर खाली बैठाबैठा बस कई दिनों से कोई अदद कहानी लिखने की सोच रहा था, लेकिन किसी कहानी का कोई सिरा पकड़ में ही नहीं आ रहा था. कभी एक विषय ध्यान में आता, फिर दूसरातीसरा, चौथा. लेकिन अंजाम तक कोई नहीं पहुंच रहा था. यह लिखने की बीमारी भी ऐसी है कि बिना लिखे रहा भी तो नहीं जाता.

तभी मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर देखा तो अज्ञात नंबर…

‘‘हैलो…’’

‘‘जी हैलो…’’

दूसरी ओर से आई आवाज किसी औरत की थी. मैं ने पूछा,‘‘कौन मुहतरमा बोल रही हैं?’’

‘‘जी, मैं वृंदा, किरतपुर से. क्या मोहनजी से बात हो सकती है?’’

‘‘जी, बताइए. मोहन ही बोल रहा हूं.’’

‘‘जी, बात यह थी कि मैं भी कहानीकविताएं लिखती हूं. आप के दोस्त प्रीतम ने आप का नंबर दिया था. आप का मार्गदर्शन चाहती हूं.’’

‘‘क्या आप नवोदित लेखिका हैं?’’

‘‘हां जी, लेकिन लिखने की बहुत शौकीन हूं.’’

‘‘वृंदाजी, आप ऐसा करें कि अभी आप स्थानीय पत्रपत्रिकाओं में अपनी रचनाएं प्रकाशन के लिए भेजें. जब आत्मविश्वास बढ़ जाए तो राष्ट्रीय स्तर की पत्रपत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजें. और हां, अच्छा साहित्य खूब पढ़ें, ’’ यह कहते हुए वृंदा को मैं ने कुछ पत्रपत्रिकाओं के नामपते बता दिए. पत्रपत्रिकाओं में लिखने का तरीका भी बता दिया.

इस औपचारिक वार्तालाप के बाद मैं ने वृंदा का नंबर उस के नाम से सेव कर लिया. यह हमारा वाट्सऐप नंबर भी था. ‘माई स्टेटस’ पर उस की पोस्ट आने लगी. यदाकदा मैं भी उस की पोस्ट देख और पढ़ लेता. इसी से पता चला कि वृंदा 2 बच्चों की मां है और किसी सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापिका है. वृंदा की पोस्ट में सुंदर साहित्यिक कविताएं होतीं. मैं उन्हें पढ़ कर काफी प्रभावित होता. एक नवोदित रचनाकार इतनी सुंदर और ऐसी साहित्यिक रचनाएं लिखे तो गर्व होना स्वाभाविक था.

वृंदा की रचनाओं के विषय के अनुसार मैं ने उसे कुछ पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए प्रेषित करने की सलाह दी. कोई रचना मुझे ज्यादा ही पसंद आती तो मैं उस पर उसी के अनुरूप अपना कमैंट भी लिख भेजता.

धीरेधीरे वृंदा की रचनाएं रुमानियत के सांचे में ढलने लगी. प्रेम के अलाव की तपिश में पकने लगी. उन से इश्क का धुआं उठने लगा और मोहब्बत का माहौल बनने लगा. उन्हें पढ़ कर ऐसा एहसास होता कि वे दिल में उतर रही हैं. उन्हें पढ़ कर आनंद की अनुभूति तो होती फिर भी मैं ऐसी रचनाओं पर अपने कमैंट देने से बचता.

एक दिन वृंदा ने अपनी कोई पुरस्कृत रचना मेरे वाट्सऐप पर प्रेषित की और उस पर मेरी टिप्पणी मांगी. रचना वाकई काबिलेतारीफ थी. मैं ने उस पर अपनी संतुलित टिप्पणी भेज दी. इस के बाद मेरी रुचि वृंदा की रचनाओं में जाग्रत होने लगी. उस की रचनाओं में एक कशिश भी थी जो उन को पढ़ने को मजबूर करती थी. उन की रुमानियत दिल को छू लेती. उन को पढ़ कर कोई मुश्किल से ही अपनेआप को उन पर कमैंट देने से रोक सकता था. हर रचना ऐसी होती जैसे पढ़ने वाले के लिए ही लिखी गई हो. कर्ई बार तो वृंदा की रचनाएं इतनी व्यक्तिगत होतीं कि उन्हें पढ़ कर लगता कि निश्चित ही वह किसी की मोहब्बत के सागर में गोते लगा रही है.

एक दिन मैं ने वृंदा को मैसेज भेजा, ‘‘वृंदा, इतनी भावना प्रधान रचनाएं कैसे लिख लेती हो?’’

जवाब तुरंत हाजिर था, ‘‘प्रेम.’’

इस ढाई आखर के प्रेम के साथ 2 प्यारे इमोजी बने हुए थे. मैं अचंभित था कि कोई शादीशुदा महिला किसी अपरिचित से व्यक्ति के सामने इतनी शीघ्रता से कैसे अपने प्रेम का प्रकटीकरण कर सकती है. मन में एकसाथ अनेक सवाल उठ खड़े हुए. कौन है वह खुशनसीब जिस के प्यार में वृंदा डूबी हुई है? क्या वह अपने परिवार में खुश नहीं जो उसे प्रेम की तलाश कहीं और करनी पड़ रही है? उस का पति भी तो इस की पोस्ट पढ़ता होगा? शायद नहीं. नहीं तो अब तक बवंडर हो गया होता. वृंदा की पोस्ट ही इतनी इश्किया थी.

अंत में जेहन में एक सवाल और उठा. यह वृंदा कहीं मुझ से तो…यह सोचते ही मेरे चेहरे पर मुसकान खिल उठी. आदमी की आदत कि वह खयाली पुलाव पकापका कर खुश होता रहता है. इतनी खूबसूरत महिला को मुझ से इश्क हो जाए, तो कहना ही क्या? तभी मुझे अपने परिवार का खयाल आया और मन में खटास उत्पन्न हो गई. लेकिन यह पहेली पहेली ही रही कि वृंदा किस पर फिदा है. वृंदा के इश्किया मिजाज को देखते हुए अपना मन भी इश्किया हो उठा. अब मैं उस की पोस्ट पर कमैंट देते समय इश्किया शब्दों का प्रयोग करने लगा. इस कमबख्त इश्क का मिजाज ही ऐसा होता है, न उम्र देखता है, न रंग देखता है, बस सब को अपने रंग में रंग लेता है. बड़ेबड़े रसूखदार, इज्जतदार इश्क के परवाने बन प्रेम की शमां में यों ही न भस्म हो बैठे. हम भी इश्किया परवाने बन प्रेम की शमां पर जलने को बेचैन हो उठे. हम ने भी शर्मलिहाज छोड़ वृंदा की पोस्टों पर एक से बढ़ कर एक इश्कियां कमैंट दे मारे.

वृंदा समझ गर्ई कि हम पर इश्क का भूत सवार हो रहा था. हमारा इश्किया भूत उतारने के मकसद से या फिर किसी और सिरफिरे को ठीक करने के लिए एक दिन उस ने एक चुटकुला पोस्ट किया-

लङका लङकी से : क्या तुम्हारा कोर्ई पुरुष मित्र है?

लङकी : हां, है.

लङका :  तुम इतनी खूबसूरत हो मुहतरमा कि तुम्हारे 2 पुरुष मित्र होने चाहिए.

लङकी : मेरे 3 पुरुष मित्र हैं और तुम्हें अपना पुरुष मित्र बना कर मैं उन तीनों को धोखा देना नहीं चाहती.

वृंदा ने उस चुटकुले के नीचे 3 हंसते हुए इमोजी भी बना रखे थे. मुझे लगा यह मेरे लिए ही संकेत है और वृंदा के पहले से ही कुछ पुरुष मित्र हैं. मैं ने उस के इस चुटकुले पर कोई कमैंट तो नहीं लिखा लेकिन जैसे को तैसा जवाब देने की तर्ज पर 5 हंसते हुए इमोजी जवाब में भेज दिए. किसी औरत के दिल को जलाने के लिए इस से बेहतर तरीका नहीं हो सकता. उस ने मेरे 5 इमोजी का अर्थ यह लगाया कि मेरी 5 महिला मित्र हैं. इस से आहत हो वृंदा ने अगले 2-3 दिनों तक कोई पोस्ट नहीं भेजी. लगता था वह सौतिया डांट से पीङित हो गई.

इस के बाद वृंदा की पोस्ट रूमानी होने के बजाय गमगीन और पलायनवादी हो गई. वह अपनी पोस्ट के जरीए यह दर्शाने लगी कि वह दुनिया की सब से दुखी औरत है. घर में तो उसे एक क्षण का चैन नहीं, स्कूल में आ कर ही उसे कुछ राहत मिलती है. अब मैं उस की पोस्ट पढ़ तो लेता था लेकिन कमैंट देना बिलकुल बंद कर दिया क्योंकि जरूरी नहीं था कि उस की पोस्ट मेरे लिए थी.

एक दिन 10 बजे के आसपास वृंदा ने एक बड़ी ही दुखभरी पोस्ट प्रेषित की, ‘छोड़ जाऊंगी तेरे आसपास, मैं खुद को इस तरह, रोज तिनकेतिनके सा…’

यह ऐसी पोस्ट थी जिसे पढ़ कर किसी भी आशिक का दिल पिघल सकता था. लेकिन यहां तो आशिक का ही पता नहीं था. इसलिए मेरे लिए संवेदना प्रकट करने का कोई सवाल ही नहीं था. महबूबामहबूब के प्रेम से धोखा खा कर इतनी आहत नहीं होती है जितनी उस की उपेक्षा से. वृंदा लगभग हर समय औनलाइन रहती थी लेकिन आज ‘माई स्टैटस’ पर अपनी यह दुखभरी पोस्ट 10 बजे के आसपास डाल कर औफलाइन हो गई. मैं यह सोच कर कि औफलाइन होने के अनेक कारण हो सकते हैं, मैं अपने काम में व्यस्त हो गया. 1 बजे के आसपास किसी ने डोरबैल बजाई. मैं ने खिङकी से झांक कर देखा तो मेरे होश उड़ गए. नीचे दरवाजे के सामने 2 पुलिसवाले खड़े थे. ‘आखिर मेरे घर पुलिस क्यों आई थी, मैं ने तो अपनी जानकारी में कोई अपराध नहीं किया था. फिर पुलिस का मेरे घर पर क्या काम,’ यही सब सोचता हुआ मैं दरवाजा खोलने पहुंचा. दरवाजा खोलते ही उन में से एक बोला, “क्या आप ही मोहन हैं?’’

‘‘जी हां, बताइए.’’

‘‘आप को एक तफ्तीश के लिए किरतपुर थाने बुलाया गया है. इंस्पैक्टर साहब को आप से कुछ सवालात करने हैं.’’

‘‘लेकिन मामला क्या है?’’

‘‘यह सब तो इंस्पैक्टर साहब ही बताएंगे. हम से तो यह कहा है कि आप को थाने ले आएं. आप तैयार हो कर हमारे साथ चलें.’’

पुलिस के मेरे घर आने की खबर पूरे मोहल्ले में आग की तरह फैल गई. हर कोई यह जानने को उत्सुक था कि मैं ने कौन सा अपराध किया है. इस से पहले कि मेरे घर मजमा लगता, मैं ने अपने परिवार का ढांढ़स बंधाया और उन 2 पुलिसवालों के साथ थाने की ओर चल पड़ा.

थाने में इंस्पैक्टर के सामने मुझे पेश किया गया. उन्होंने मुझ से पूछताछ शुरू की.

‘‘आप लेखक हैं?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘क्याक्या लिखते हैं?’’

‘‘कहानियां, कविताएं, व्यंग्य आदि.’’

‘‘और रुमानियत भरी बातें भी?’’ इंस्पैक्टर ने प्रश्नवाचक दृष्टि से मेरी ओर देखते हुए कहा.

‘‘जी कहानी के हिसाब से.’’

‘‘और वाट्सऐप पर भी रुमानियत का खूब तङका लगाते हो,’’ इंस्पैक्टर ने कटाक्ष किया.

‘‘जी, मैं समझा नहीं.’’

‘‘अभी समझाता हूं. वैसे आप बड़े सज्जन बनने की कोशिश कर रहे हैं. फिर यह क्या है?’’

यह कहते हुए इंस्पेक्टर ने वृंदा की पोस्ट और मेरे कमैंट्स की डिटेल मेरे सामने रख दी.

‘‘आप को पता है लेखक महोदय, आप के कमैंट्स के कारण वृंदा ने सुबह 11 बजे के आसपास जहर खा कर जान देने की कोशिश की. आप एक शादीशुदा महिला से प्रेम की पींग बढ़ा रहे थे. आप को शर्म आनी चाहिए अपनेआप पर. आप के खिलाफ वृंदा को आत्महत्या के लिए उकसाने का केस बनता है.’’

यह सुनते ही मेरी हालत पतली हो गई. फिर भी मैं ने हिम्मत जुटाते हुए पूछा,‘‘इंस्पैक्टर साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तो आज तक उस से मिला भी नहीं.’’

‘‘देखिए, अभी तो वाट्सऐप डिटेल देखने के बाद शक के आधार पर आप को यहां बुलवाया गया है. अभी वृंदा बेहोशी की हालत में है. उस के होश में आने पर उस के बयान के आधार पर ही यह निर्णय लिया जाएगा कि आप को छोड़ें या गिरफ्तार करें. आप के सम्मान के कारण आप को लौकअप में बंद नहीं कर रहा हूं, मगर वृंदा के बयान होने तक आप पुलिस की निगरानी में थाने में ही रहेंगे.’’

स्पष्ट था कि मेरी इज्जत का जनाजा पूरी तरह से निकल चुका था. मैं जानता था कि मेरा परिवार कितनी तकलीफ में होगा. नातेरिश्तेदारों और मोहल्ले वालों को भी भनक लग चुकी थी कि किसी औरत से प्रेम प्रसंग के मामले में मुुझे थाने में बैठा कर रखा गया है. विरोधियों की तो बांछें ही खिल गई थीं. उन के लिए तो मैं काला सियार था.

लगभग 3 बजे शाम को वृंदा बयान देने के काबिल हुई. इंस्पैक्टर ने खुद अस्पताल जा कर उस से जहर खाने का कारण पूछा. मेरी सांसें अटकी हुई थीं कि वृंदा न जाने क्या बयान दे. अगर उस ने मेरा नाम भी ले लिया तो समझो मेरी इज्जत मिट्टी में मिल जाना जय है. थाने में बैठेबैठे मेरी रूह कांप रही थी. हवालात जाने का डर लगातार सता रहा था. इंस्पैक्टर साहब वृंदा का बयान ले कर अस्पताल से थाने आए. मुझे देख कर मुसकराए और कहा, “मोहन बाबू, आप बच गए. हमें क्षमा करना जो आप को इतनी तकलीफ दी. वृंदा घरेलू कलह से तंग थी जिस के कारण उस ने जहर खा कर जान देने की कोशिश की. अब आप घर जा सकते हैं, पुलिस आप को तंग नहीं करेगी.’’

‘‘लेकिन इंस्पैक्टर साहब, मेरे सम्मान पर जो आंच आई है, उस का क्या?’’

‘‘इस के लिए मैं मोहन बाबू आप से फिर से क्षमा चाहता हूं. लेकिन शक के आधार पर पुलिस को कई बार ऐसी काररवाई करनी पड़ती है. आप इस पर एक अच्छी सी कहानी लिख सकते हैं जिस से औरों को सबक मिले कि महिलाओं की पोस्ट पर कमैंट करने में सावधानी बरतें,” यह कह कर इंस्पैक्टर साहब मुसकराए. बदले में मैं भी मुसकरा पड़ा. कहानी लिखने की मेरी तलाश पूरी हो चुकी थी.

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