22 सितंबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस से नरबलि की हैरान करने वाली घटना सामने आई, जहां सहपऊ क्षेत्र के गांव रसगवां के एक स्कूल में 8 साल के मासूम बच्चे कृतार्थ कुशवाह, जो उसी स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता था, की स्कूल प्रबंधकों ने बंधक बना कर हत्या कर दी.
पुलिस जांच में स्कूल के पीछे लगाए गए नलकूप से तंत्रमंत्र का सामान मिला, जिस से पुष्टि भी हुई कि स्कूल में काफी समय से तंत्रमंत्र की प्रैक्टिस की जाती थी. और इसी संबंध में कृतार्थ की बलि देने का प्लान भी बनाया गया था. स्कूल प्रबंधक का मानना था कि नरबलि देने से उन के स्कूल की तरक्की होगी. इस मामले में 5 लोगों को आरोपी बनाया गया, जिन में स्कूल संचालक शामिल है.
हम विश्वगुरु बनने का ढोल पीट रहे हैं जबकि देश की बड़ी आबादी अंधविश्वास, तंत्रमंत्र और टोनाटोटका से बाहर नहीं निकल पा रही. समाज में यों तो तरहतरह के अंधविश्वास फैले हुए हैं मगर किसी अंधविश्वास के कारण यदि किसी की जान ले ली जाए तो इसे न्यायोचित कतई नहीं कहा जा सकता. अंधविश्वास के शिकार केवल पिछड़े और कम पढ़ेलिखे लोग ही नहीं, बल्कि पढ़ेलिखे लोग भी हो रहे हैं. तंत्र, मंत्र, साधना से रुपए बनाने का लालच दे कर एक नौजवान की नरबलि देने का एक ताजा मामला हाल ही में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में देखने को मिला है.
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के सिमरिया गांव में रहने वाला 22 साल का नौजवान अंकित कौरव किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित था. डाक्टरी इलाज के साथ वह गांव में झाड़फूंक करने वाले एक तांत्रिक के झांसे में आ गया. नागपुर में इलाज कराने के साथ ही वह झाड़फूंक का सहारा ले रहा था. जब वह बीमारी से ठीक हो गया तो उसे लगा कि तांत्रिक की झाड़फूंक ने उसे ठीक कर दिया है. इसी बीच, अंकित के बहनोई भी बीमारी से पीड़ित हो कर महीनों अस्पताल में भरती रहे जिस से काफी रुपए इलाज में खर्च हो गए. पैसों की तंगी से जूझ रहे इस नौजवान के पिता एक किसान हैं.
अंकित कौरव ने जब इस बात का जिक्र गांव में रहने वाले तांत्रिक सुरेंद्र कुशवाहा से किया तो तांत्रिक ने भरोसा दिलाया कि वह तंत्र साधना से रुपए बना सकता है. इस के लिए तांत्रिक अनुष्ठान में उसे हाथ की उंगली काट कर बलि चढ़ाना पड़ेगी. रुपयों की जरूरत के चलते अंकित कौरव उस पूजापाठ के लिए राजी हो गया. सुरेंद्र कुशवाहा ने अपने चचेरे भाई रम्मू कुशवाहा के साथ मिल कर तंत्रमंत्र के जरिए पैसा बनाने के लिए परिवार के इकलौते लड़के अंकित कौरव की नरबलि देने का षड्यंत्र रचा.
3 नवंबर, 2023 की शाम 7:30 बजे सुरेंद्र कुशवाहा और रम्मू कुशवाहा अंकित कौरव को ले कर गांव से बाहर आए. सीहोरा पुलिस चौकी क्षेत्र के टेकापार तिराहा पर गन्ना के एक खेत में आए. मौका पा कर सुरेंद्र कुशवाहा ने प्रसाद में नींद की गोलियां मिलाईं और पूजापाठ के दौरान अंकित कौरव को प्रसाद खाने को दिया. इस से अंकित कौरव बेहोश हो गया. मौका पा कर सुरेंद्र कुशवाहा और रम्मू कुशवाहा ने अपने साथ लाए बका से बेहोश पड़े अंकित कौरव की गरदन काट दी. इस के बाद दाहिने हाथ की उंगली भी काट कर अंकित कौरव के सिर के पास रख दी. इस से अंकित कौरव की मौके पर ही मृत्यु हो गई.
ऐसी अंधविश्वासी प्रथाएं हमारे धर्मग्रंथों में लिखी गईं कपोलकल्पित कथाओं के कारण भी जन्म लेती हैं. एक ऐसी ही श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानी महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद की है, जिस में अर्जुन के अहंकार को तोड़ने व राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने श्रीकृष्ण और अर्जुन साधु का चोला पहन कर जंगल से एक शेर को पकड़ कर ले गए. कहा जाता है कि राजा मोरध्वज विष्णु के परमभक्त और दानदक्षिणा देने वाले राजा थे.
वे अपने घर पर आए किसी को भी खाली हाथ और बिना भोजन के जाने नहीं देते थे. जब श्रीकृष्ण और अर्जुन को साधुओं की वेशभूषा में एक सिंह के साथ अपने घर पर देखा तो राजा नंगेपांव दौड़ कर द्वार पर गए और मेहमानों को उन का आतिथ्य स्वीकार करने के लिए कहा.
दोनों साधुओं ने मोरध्वज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी कि हम तो ब्राह्मण हैं, कुछ भी खिला देना पर यह सिंह नरभक्षी है, तुम अगर अपने इकलौते बेटे को अपने हाथों से मार कर इसे खिला सको तो ही हम तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार करेंगे. भला हो ऐसे भगवान का, जिस में भक्त को लेने के देने पड़ जाएं. साधुओं की शर्त सुन मोरध्वज स्तब्ध हो गए. फिर भी राजा अपना आतिथ्य धर्म नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए साधुओं को प्रसन्न करने और अपनी दानदक्षिणा वाली छवि को चमकाने के लिए राजा ने यह शर्त स्वीकार कर ली.
राजा ने जब सारा हाल पत्नी को बताया तो रानी की आंखों से अश्रु बह निकले. मगर पति को परमेश्वर मानने वाली रानी भी इस के लिए राजी हो गई. राजा और रानी ने खुद ही अपने 3 साल के पुत्र रतन कंवर को हाथों में आरी ले कर उस के 2 टुकड़े कर दिए और सिंह को परोस दिया. साधुओं ने छप्पन भोग का स्वाद चखा.
पर जब रानी ने पुत्र का आधा शरीर देखा तो वह अपने आंसू रोक न पाई. साधु इस बात पर गुस्सा हो गए कि लड़के का एक फाड़ कैसे बच गया. वे नाराज हो कर जाने लगे तो राजा और रानी उन से रुकने की मिन्नतें करने लगे. इतना सब देख कर अर्जुन का घमंड चूरचूर हो गया. अर्जुन के कहने पर श्रीकृष्ण ने राजारानी को क्षमा कर दिया. साधुओं की आज्ञा मान कर रानी ने पुत्र रतन कंवर को आवाज लगाई. कुछ ही क्षणों में उन का पुत्र जीवित हो गया.
इस तरह की कहानियां लोगों को धार्मिक भावनाओं में डुबो कर उन्हें अंधविश्वासी बनाती हैं. लोगों को लगता है कि किसी इंसान की बलि देने से देवीदेवता प्रसन्न हो जाएंगे और उन के मन की मुराद पूरी हो जाएगी.
दिसंबर 2021 की एक घटना मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले की है, जब एक पिता पर अंधविश्वास इस कदर हावी हो गया कि उस ने अपने 5 साल के मासूम बेटे की कुल्हाड़ी से काट कर निर्मम हत्या कर दी. पिता दिनेश दावर के अनुसार उसे गुरुमाता ने कहा था कि बेटा उस के घर के लिए अपशकुन है. इस अंधविश्वास पर भरोसा कर पिता ने ऐसा क्रूर कदम उठाया. हत्या करने के बाद बाप ने बच्चे को कई टुकड़ों में काटा और खेत में दफना दिया.
पिता को इस बात का शक था उस के बेटे पर भूतप्रेत का साया है. उस को लगता था कि उस के बेटे में कोई बुरी आत्मा का वास है जिस के चलते उस के घर में परेशानियां और अशांति रहती है. परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपने ही जिगर के टुकड़े को मार डाला.
अपने जिगर के टुकड़े को मारने की यह घटना ऋषि जमदग्नि के पुत्र परशुराम से प्रेरित लगती है, जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा मान कर अपनी माता का सिर फरसे से काट दिया था. उन की माता रेणुका की ग़लती इतनी भर थी कि उन के पति ऋषि जमदग्नि ने उन्हें सरोवर से हवन के लिए जल लाने को भेजा था. रेणुका हवन के लिए जल लेने नदी तट पर गईं, तो वहां राजा गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ जलविहार करते देख वे इतनी मग्न हो गईं कि उन्हें याद ही नहीं रहा कि अपने पति की हवनपूजा के लिए जल ले कर जाना है. जब वे देरी से पहुंचीं तो उन के पति क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पुत्रों को अपनी मां को मारने का आदेश दिया.
परशुराम के 3 बड़े भाइयों ने पिता के बेहूदा आदेश को मानने से इनकार कर दिया. परशुराम सब से छोटे थे, उन्होंने आव देखा न ताव और पिता की आज्ञा मान कर अपनी जन्म देने वाली मां का सिर काट दिया. पिता ने प्रसन्न हो कर परशुराम से 3 वरदान मांगने को कहा तो परशुराम ने अपनी मां को जीवित करने के अलावा 2 वरदान और मांग लिए. परशुराम की यह कहानी भी यही सीख देती है कि सहीग़लत का भेद किए बिना किसी की बलि चढ़ा देने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं.
नरबलि की ये घटनाएं बताती हैं कि आज भी हम किसी रोग के इलाज के लिए डाक्टर के बजाय तांत्रिकों पर भरोसा कर रहे हैं. इस तरह की मानसिकता के लिए काफी हद तक सरकार भी जिम्मेदार है. सब से ज्यादा पाखंड तो नेताओं ने ही समाज में फैला रखा है, उन्हीं का अनुकरण जनता करती रहती है.
तरहतरह के अंधविश्वास
हमारे देश ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिए चंद्रयान भेज कर भले ही दुनियाभर में अपनी मजबूत पहचान बना ली है लेकिन 21वीं सदी में भारत में अंधविश्वास का बोलबाला है. मध्य प्रदेश के उज्जैन में आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल चल रहा है. यहां लोग खुद को गायों के पैर तले रौंदवाते हैं वह भी खुशीखुशी. उज्जैन के बड़नगर में वर्षों पुरानी यह खतरनाक परंपरा निभाई जा रही है. दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा के दिन मौत का यह खेल होता है.
इसी तरह मध्य प्रदेश के बैतूल में अंधविश्वास के चलते अपने बच्चों को गोबर में फेंकने की खतरनाक परंपरा है. हर साल गोवर्धन पूजा के दिन बैतूल के कृष्णपुरा वार्ड में गोवर्धन पूजा के बाद बच्चों को गोबर में इस विश्वास के साथ डाला जाता है कि वे सालभर तंदुरुस्त रहेंगे. पौराणिक कहानियों के मुताबिक, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा कर ग्वालों की रक्षा की थी, तभी से इस समाज में मान्यता हो गई कि गोवर्धन उन की रक्षा करते हैं और इसीलिए बच्चों को गोबर में डाला जाता है.
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है और इस के लिए काफी पहले से तैयारी की जाती है. ग्वाला समाज के लोग गोबर एकत्रित करते हैं और उस से बड़े आकार में गोवर्धन बनाए जाते हैं, फिर उस की सामूहिक पूजा की जाती है. पुरुष और महिलाएं नाचतेगाते हुए विधिविधान से पूजा करते हैं, उस के बाद बच्चों को गोबर से बने गोवर्धन में डाला जाता है. गोबर के बीच रोतेबिलखते मासूम बच्चों को देख कर किसी का भी दिल भर आए, पर उन के मांबाप को ही उन पर दया नहीं आती.
जब से देश में संचार के अत्याधुनिक साधनों का इस्तेमाल बढ़ा है, तो अंधविश्वास के नएनए तरीके भी ईजाद हो गए हैं. पीलिया रोग होने पर हम डाक्टर को दिखाने के बजाय तांत्रिकों की झाड़फूंक में जान गंवा देते हैं. आंख आने (कंजंक्टिवाइटिस रोग होने) पर अब मोबाइल फोन पर झाड़फूंक होने लगी है, तो सांपबिच्छू के काटने पर अस्पताल जाने के बजाय गुनियाओझा के पास पहुंच कर उपचार तलाशते हैं. टैलीविजन चैनलों के माध्यम से मनोकामना पूर्ण करने वाले महंगे यंत्रतंत्र और रत्नजड़ित अंगूठी के विज्ञापन और ज्योतिष बताने वाले कार्यक्रम भी यही सिद्ध करते हैं कि अंधविश्वास और चमत्कारों के पीछे भागने वाले पागल लोगों की भीड़ में मध्यवर्गीय शिक्षित और सम्मानजनक पेशे से जुड़े उच्च अधिकारी, नेताओं, मंत्रियों की तादाद अधिक है.
टोनाटोटका भी जोरों पर
देश ने चाहे कितनी प्रगति कर ली हो और शिक्षितों की आबादी भले ही तेजी से बढ़ रही हो पर अंधविश्वास की काली साया से वह अब तक मुक्त नहीं हो पाया है. लोगों को अंधविश्वास की काली कोठरी से निकालने के लिए की गईं सारी कवायदें बेअसर साबित हुई हैं. जनवरी 2023 में बलरामपुर जिले में आधा दर्जन लोगों ने मिल कर 54 वर्षीय लाली कोरवा को पीटपीट कर मार डाला. आरोपी मंगलसाय, बंधन, भगतू, बलसा, सकेंद्रा को शक था कि लाली जादूटोना करती है. फरवरी 2023 में धमतरी में एक युवक ने अपने ही तांत्रिक गुरु की हत्या कर उन का खून पिया और फिर लाश को जलाने की नाकाम कोशिश की. उसे बताया गया था कि गुरु को मार कर उस का खून पी लेने से उस की सभी शक्तियां उसे मिल जाएंगी.
मार्च 2023 में छत्तीसगढ़ में एक मां द्वारा अपने दुधमुंहे शिशु की बलि दी गई थी. महिला का पति शराब पी कर उसे परेशान करता था. इस वजह से उस का दिमागी संतुलन बिगड़ गया. इलाज के लिए उसे तांत्रिक के पास ले जाया गया तो तांत्रिक ने कहा कि किसी छोटे बच्चे की बलि देने से उस की समस्या हल हो सकती है. तांत्रिक के कहने पर उस ने अपने 6 माह के बच्चे को गांव के तालाब में आधी रात में फेंक दिया था और पुलिस को गुमराह करने के लिए बच्चे के लापता होने की झूठी रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी.
अंधविश्वास, टोनाटोटका और तंत्रमंत्र के नाम पर हत्या की यह कोई पहली घटना नहीं है. इस से कुछ ही दिनों पहले दुर्ग जिले के करहीडीह गांव में पतिपत्नी ने मिल कर अपनी भाभी पर टोनही होने का आरोप लगाया. इस के बाद उसे एक तांत्रिक के पास ले जाया गया जिस ने उसे बुरी तरह पीटा, उसे कीलों और अंगारों पर चलाया. वह इतना जख्मी हो गई कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. 24 मार्च, 2023 को कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा की वनोपज सहकारी समिति के अध्यक्ष सोनसाय दुग्गा की हत्या पीटपीट कर कर दी गई. आरोपियों का कहना था कि सोनसाय उन की पत्नियों पर जादूटोना करता है जिस के कारण वे बीमार रहती हैं.
पाखंड की जड़ है धर्म
देशभर में होने वाली इन पाखंडी घटनाओं की जड़ हमारे धर्म में है. हमारे धर्मग्रंथ हमें तार्किक बनाने के बजाय अंधविश्वास सिखाते हैं.
अंधविश्वास की जड़ों में मठा डालने का काम धर्म के ठेकेदार कथावाचक, पंडापुजारियों, मौलवियों द्वारा बखूबी किया जा रहा है.
पद्मपुराण, अग्निपुराण में भी नरबलि का उल्लेख मिलता है. अग्निपुराण में कहा गया है कि युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए नग्न हो कर, शिखा खोल कर दक्षिण की ओर मुख कर के रात में श्मशान में लकड़ी के लट्ठों से प्रज्वलित अग्नि में मानव मांस, रक्त और विष, अनाज के भूसे, हड्डी के टुकड़े मिला कर शत्रु का नाम 108 बार बोल कर आहुति देना चाहिए.
अग्निपुराण में कहा गया है कि ‘देवी सिगरा (त्वरिता) की पूजा कपड़े पर या छवि में या वेदी पर की जानी चाहिए. मंत्र के जाप के साथ आहुति के लिए सौ, हजार या दस हजार की गिनती होती है. इस प्रकार दोहराने के बाद भैंस, बकरी या मनुष्य के शरीर की चरबी और मांस से एक लाख बार आहुति देनी चाहिए.” वामन पुराण में उल्लेख है कि एक धर्मात्मा राजा गय ने सैकड़ोंहजारों बार नरबलि दी.
हमारे धर्मग्रंथों और तथाकथित धर्मगुरुओं ने लोगों के मन में पापपुण्य को ले कर ऐसी बातें भर दी हैं कि चाहे जितने भी पाप करो, मगर नदियों में डुबकी लगा कर देवीदेवताओं की पूजा और पंडितों को दानदक्षिणा दोगे तो सीधे स्वर्ग (यदि कहीं है तो) का टिकट हासिल हो जाएगा. स्वर्गलोक या कहें कल्पनालोक जाने की इसी कामना में अंधभक्त कथापुराण का आयोजन कराते हैं, पंडितों को दानदक्षिणा दे कर बड़ेबड़े भंडारा कराते हैं.
धार्मिक कथाकहानियों को सुन कर जयपुर में आमेर किले के भव्य मंदिर में विराजमान महिषासुरमर्दिनी अष्ठभुजी माता शिला देवी बरसों पहले नवरात्रों की सप्तमी और अष्ठमी की मध्य रात्रि में निशा पूजन के बाद बकरों और भैंसों की बलि दी जाती थी. आमेर नरेश मानसिंह के बारे में किंवदंती है कि उन्होंने देवी को नरबलि भी दी थी. असम के कामाख्या देवी मंदिर और छत्तीसगढ़ के दंतेश्वरी देवी के मंदिरों में नरबलि देने की घटनाएं समाचारों की सुर्खियां बनती रहती हैं.
शासनप्रशासन की मदद से फलफूल रहा अंधविश्वास
देश में सरकारी तंत्र अंधविश्वास रोकने के बजाय फैलाने में अहम भूमिका निभा रहा है. पांढुरना का गोटमार मेला हो या हिंगोट युद्ध, सभी में पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बन कर इन दकियानूसी परंपराओं को खादपानी देने का काम कर रहा है. कोविड 19 वायरस को भगाने के लिए जब दीपक जला कर ताली और घंटेघड़ियाल बजाने का टोटका देश के प्रधानमंत्री खुद ही जनता को बताते हों, उस देश में वैज्ञानिक सोच भला कैसे विकसित होगी.
देश के नागरिकों की बुनियादी आवश्यकता शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और सड़क की है. इस के लिए सरकार को इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेज खोलने के साथ साफ पानी और भरपूर बिजली के साथ कहीं भी आनेजाने के लिए अच्छी सड़कें मुहैया कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, मगर विडंबना यह है कि सरकार इन सब को छोड़ कर बड़ीबड़ी मूर्तियां और मंदिर बनाने पर तुली हुई है.
धार्मिक रंग में पूरी तरह रंगी सरकार की सोच यह है कि देश के पढ़ेलिखे नौजवानों को नौकरी के बजाय धार्मिक रैली, जुलूस, कांवड़यात्रा, भंडारे और आरती में उलझा कर उन्हें तार्किक न बनने दिया जाए. यही वजह है कि आज भी देश में अंधविश्वास और दकियानूसी परंपराओं का बोलबाला है.
उज्जैन में अघौरी बाबाओं द्वारा की जाने वाली तंत्र साधना और टीवी चैनलों द्वारा किया जाने वाला सीधा प्रसारण समाज में अंधविश्वास और पाखंड को फलनेफूलने में खादबीज का काम कर रहा है. चंद्रगृहण और सूर्यगृहण को आज भी लोग खगोलीय घटना न मान कर धर्म और आस्था से जोड़ कर अपनी अंधभक्ति का प्रमाण दे रहे हैं. अखबारों में रोज राशिफल देखने वाले और जन्मकुंडली में गृहदशा सुधारने के लिए ज्योतिषियों के चक्कर लगाने वाले लोग विज्ञान और आधुनिक टैक्नोलौजी पर बड़ीबड़ी तार्किक बातें तो करते हैं लेकिन अंधविश्वास और पाखंड के चक्रव्यूह गहरे फंसे हुए हैं.
समाचारपत्रों में तांत्रिकों द्वारा बच्चों की बलि देने या महिलाओं का यौनशोषण करने, डायन होने का आरोप लगा कर महिलाओं की हत्या करने तथा झाड़फूंक, जादूटोना और गंडा-ताबीज द्वारा लोगों को ठगने की खबरें अकसर आती रहती हैं. अखबारों में बंगाली बाबा, तांत्रिक, चमत्कारी पुरुष, ज्योतिषाचार्य के विज्ञापन तो छपते ही हैं.
अंधविश्वास को बढ़ावा देने में कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों का रोल काफी अहम है. अंधविश्वास और धार्मिक पाखंडों का यदि कोई विरोध करने का प्रयास करता है, तो ये कट्टरपंथी उन पर हमला कर उन की जान लेने पर आमादा हो जाते हैं. पिछले कुछ सालों में अंधविश्वासों के विरुद्ध अभियान चलाने वाली गौरी लंकेश की कर्नाटक में तथा गोविंद पंसारे व नरेंद्र दाभोलकर की महाराष्ट्र में हत्या कर दी गई. जांच करने पर यह पाया गया कि इन के हत्यारे दक्षिणपंथी तथाकथित हिंदुत्ववादियों के समर्थक थे. कई स्थानों पर कट्टर इसलाम के प्रचारकों ने भी अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने वालों पर हमले किए. जैसे, अफगानिस्तान में तालिबानियों ने पोलियो के विरुद्ध चलाए गए अभियान के विरुद्ध दुष्प्रचार किया व दवा पिलाने वालों की हत्या तक कर दी थी.
महाराष्ट्र में बना है अंधविश्वास रोकने का कानून
आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो झूठे चमत्कार दिखा कर लोगों को ठगते हैं. अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में कभी न कभी इस तरह के चमत्कारों के फेर में पड़ कर धोखा खाया है. अंधविश्वास रोकने के लिए कानून पूरे भारत में केवल महाराष्ट्र में लागू किया गया है. इस कानून को लागू करवाने में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष श्याम मानव ने बड़ी मेहनत से काम किया है और इस के लिए उन्हें पूर्व न्यायाधीश बी जी कोलसे पाटिल और पी बी सावंत का समर्थन भी मिला है.
यह कानून कई वर्षों के कठिन संघर्ष के बाद बनाया गया है. महाराष्ट्र की तरह यह कानून देश के बाकी राज्यों में लागू होना चाहिए, ताकि लोगों को धोखा देने वाले पाखंडी बाबा और तांत्रिकों को सबक सिखाया जा सके.
महाराष्ट्र में 2013 से जादूटोना विरोधी कानून बना हुआ है. इस जादूटोना विरोधी कानून में कुल 12 धाराएं हैं. ये 12 धाराएं इस पूरे कानून की प्रकृति बताती हैं कि कानून तोड़ने के लिए क्या किया जाता है और कानून तोड़ने की सजा क्या है. इस अधिनियम के साथ एक अनुसूची दी गई है. अनुसूची में उल्लिखित 12 विषयों में से 12 का उल्लंघन करने पर कम से कम 6 महीने की सजा और 5,000 रुपए का जुर्माना व अधिकतम 7 साल और 50,000 रुपए का जुर्माना हो सकता है. साथ ही, यह अपराध संज्ञेय और गैरजमानती है. इसलिए आरोपी को थाने से जमानत नहीं मिल सकती. उसे अदालत से जमानत लेनी होगी और दोषी पाए जाने पर आरोपी को कारावास और आर्थिक दंड दोनों का सामना करना पड़ेगा. मानव बलि और अन्य अमानवीय, घृणित और अवांछनीय प्रथाओं व जादूटोना पर वितरण, प्रकाशन, प्रेरणा और सहयोग करना कानून के तहत एक अपराध है. यह अफवाह फैलाना भी अपराध है कि कुछ जगहों पर चमत्कार हो रहे हैं.
अंधविश्वास के चलते हुई ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि अंधविश्वास हमारे आसपास चारों ओर बिखरा पड़ा है. इन में बिल्ली का रास्ता काटना, रास्ते में खाली घड़ा दिखाई देना, शुभकार्य के दौरान विधवा या बांझ के दर्शन होना, पूजापाठ के दौरान दीपक का बुझ जाना, घाव में कीड़े पड़ना, कुत्ते का रोना, दरवाजे पर नीबूमिर्च, काला कंगन, लाल रिबन या काला पुतला टांगना, दूल्हे को लोहा पकड़ाना, खाट या चप्पलों का उलटा पड़ा होना, बरतनों का टकराना, दूध का फटना, टूटे हुए आईने में शक्ल देखना, कछुआ या कछुए की मूर्ति घर में रखना आदि भी अंधविश्वास की श्रेणी में आते हैं. इन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. विज्ञान पढ़नेपढ़ाने मात्र से कुछ नहीं होता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा करना जरूरी है.