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स्वस्थ दांतों का राज

मुसकुराता चेहरा हर किसी को अच्छा लगता है और मुसकराहट का आकर्षण बढ़ाते हैं इंसान के साफ, सेहतमंद दांत. चेहरे को खूबसूरती सिर्फ आंखें व आप के होंठ ही नहीं बयां करते बल्कि मोती जैसे चमचमाते दांत भी चेहरे और मुसकान को सुंदर बनाते हैं. ऐसे में चेहरे और मुसकान को तरोताजा रखने के लिए दांतों की सेहत के बारे में हरेक को जानकारी होनी जरूरी है.

दांतों में दिक्कतें कैसीकैसी और क्यों हो सकती हैं, साथ ही उन का हल क्या है, इन सब व इन के अलावा दांतों की सेहत से जुड़ी और भी बहुत सी जानकारी से आप भी रूबरू हों.

दांत क्यों होते हैं खराब

जब दांत पर अम्ल का हमला होता है तो दांत की ऊपरी परत यानी एनेमल समय के साथसाथ हटनी शुरू हो जाती है. इस के बाद दूसरी पूरत यानी डैंटीन भी हटनी शुरू हो जाती है. फिर नस यानी पल्प अम्ल के संपर्क में आ सकती है. तब रूट कैनाल के उपचार की जरूरत पड़ती है.

बीमारी पनपने के क्या हैं संकेत

ठंडे या गरम पदार्थ से दांतों में तकलीफ महसूस होना, दांत का दर्द जो आता व जाता है, ऐसा दर्द जो रात को जगाए रखता है और जबड़े में या चारों ओर सूजन होना आदि दांतों में रोग के पनपने के इशारे हैं.

किन कारणों से होता है नुकसान

तंबाकू चबाने से दांत घिस जाते हैं. चोट लगने की वजह से दांत टूट सकते हैं. खानपान की गलत आदतें, जैसे मीठा खाने के बाद दांत साफ न करने से दांतों को नुकसान पहुंचता है. ब्रश न करना या ब्रश करने का गलत तरीका अपनाने से भी दांतों को नुकसान पहुंचता है. स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों, जैसे डायबीटिज, सूखा मुंह, कई दवाओं का सेवन करने आदि से भी दांतों को क्षति पहुंचती है.

कैसे रोकें

हर 6 महीने में बीडीएस या एमडीएस डाक्टर से दांतों की जांच कराई जानी चाहिए. सुबह व शाम का खाना खाने के बाद ब्रश करना चाहिए. ब्रश करने का तरीका सही होना चाहिए, इस के लिए डाक्टर से जानकारी ली जा सकती है. दांत अगर खराब हो गए हैं तो जल्द ही उन में फिलिंग करवा लेनी चाहिए.

खाने में अधिक अम्ल वाले पदार्थ, कोला व अधिक मीठे पदार्थ का सेवन कम करना चाहिए. मसूढ़े छोड़ने की स्थिति में या सर्जरी के बाद इंटरडैंटल ब्रश का प्रयोग करना चाहिए आदि.

रूट कैनाल का उपचार

रूट कैनाल के उपचार में संक्रमित नसों को निकाल कर कैनाल को साफ किया जाता है, फिर कैनाल को निष्क्रिय पदार्थ से भर दिया जाता है और उस के बाद मसाला भर दिया जाता है. पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद कि दांत पूरी तरह संक्रमण रहित हो गया है व दांत के आसपास दर्द व सूजन नहीं है, दांत के ऊपर कैप लगाई जाती है. कभीकभी एंटीबायोटिक्स और दर्दनिवारक दवाओं की जरूरत पड़ सकती है.

रूट कैनाल का उपचार लगभग 1 से 5 सिटिंग में पूरा होता है. इस के बारे में दांत की स्थिति देख कर दांतों का डाक्टर ही बता सकता है.

कब तक चलेगा रूट कैनाल द्वारा उपचारित दांत

आमतौर पर रूट कैनाल द्वारा उपचारित दांत 8-10 वर्ष तक चल सकता है. यदि दांत में कोई समस्या आती है तो कैप को निकाल कर फिर रूट कैनाल का उपचार कर कैप लगाई जा सकती है. इस में दांत को नुकसान नहीं पहुंचता है.

क्या है दांतों की ब्लीचिंग

ब्लीचिंग दांतों को साफ, सफेद व चमकदार बनाने का तरीका है. जिन लोगों के दांत पीले या पीलेभूरे की तरह हैं, उन के लिए यह तरीका काफी फायदेमंद है. धब्बे जो सौफ्टड्रिंक या तंबाकू पीने से या दवाओं के सेवन से होते हैं, उन का इस तरीके से उपचार किया जा सकता है?

कैसे की जाती है ब्लीचिंग

इस के 3 तरीके हैं – इनऔफिस ब्लीचिंग, होम ब्लीचिंग और सफेद करने वाले टूथपेस्ट.

इनऔफिस ब्लीचिंग : यह एक घंटे की प्रक्रिया है. इस में ब्लीचिंग का पदार्थ सामने के ऊपर व नीचे वाले दांतों से बाहरी भाग पर लगाया जाता है. ब्लीचिंग के प्रभाव को गहराई से व जल्दी करने के लिए लेजर लाइट या ब्लीचिंग और्क का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रक्रिया में 20 मिनट लगते हैं. 2-3 बार ऐसा करने के बाद असर दिखाई देने लगता है. इस से कुछ देर के लिए मसूढ़ों पर खुजली हो सकती है.

होम ब्लीचिंग : इस में डैंटिस्ट एक ट्रे देता है जिस में ब्लीचिंग पदार्थ (10 से 12 फीसदी कार्बेमाइड परऔक्साइड) डाल कर प्रयोग किया जाता है. 7 से 14 दिनों के लिए इस का प्रयोग किया जाता है. इस में खर्चा कम होता है. लेकिन डाक्टर की देखरेख में न होने के चलते इस में परेशानी आ सकती है.

दांत सफेद करने वाले टूथपेस्ट : इन का प्रभाव थोड़ा व कुछ समय के लिए होता है. इनऔफिस ब्लीच के बाद इन टूथपेस्ट का प्रयोग किया जा सकता है, ताकि दांतों को सफेद व चमकदार रखा जा सके.

दांतों का रंग 2 तरह से खराब हो सकता है-

  • बाहरी तौर पर, जैसे कौफी, चाय, शराब या भोजन में केसर के सेवन से.
  • अंदरूनी तौर पर, जैसे पानी में अधिक फ्लोराइड होने से, एंटीबायोटिक्स जैसे ट्रैट्रासाइक्लीन अधिक लेने से, दांतों पर चोट लगने से (यदि नस को नुकसान पहुंचता है), आनुवंशिकता जो एनेमल को प्रभावित करती है. दांतों का रंग बदलना उम्र से भी संबंधित हो सकता है.

उपचार के लिए क्या करें

बाहरी तौर पर खराब हुए दांतों की सफाई की जा सकती है. अंदरूनी तौर पर खराब दांतों का उपचार डैंटिस्ट से कराएं. यदि जरूरी होता है तो आप के दांत की ऊपरी परत (एनेमल) की 0.5-1.5 एमएम परत हटा कर पोर्सलेन विनियर या कंपोजिट विनियर लगाया जा सकता है.

पोर्सलेन व कंपोजिट विनियर में से अच्छा कौन

कंपोजिट विनियर में दांत को कम घिसना पड़ता है, लेकिन यह कम समय चलता है और रंग भी बदल सकता है. पोर्सलेन विनियर का रंग जल्दी नहीं बदलता और यह अधिक समय चलता है. लेकिन यह महंगा पड़ता है और दांतों को अधिक घिसना पड़ता है.

बहरहाल, हर उम्र के इंसान को अपने दांतों को सेहतमंद रखने के लिए जरूरी यह है कि वह सुबह व रात को सोने से पहले ब्रश करे. इस से दांत साफ रहेंगे. बच्चों में तो बचपन से ही यह आदत डाल देनी चाहिए.

:प्रोफैसर डा. महेश वर्मा

(पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित लेखक मौलाना आजाद इंस्ट्टियूट औफ डैंटल साइंसेज, दिल्ली में डायरैक्टर व प्रिंसिपल हैं)   

पिंपल से पाएं छुटकारा

क्‍या अब आप भी अपने चेहरे पर निकलने वाले पिंपल से तंग आ चुकी हैं और कई उपाय करके थक चुकी हैं. आपको किसी भी उपाय का संतोषजनक परिणाम नहीं मिल रहा तो कुछ ऐसे घरेलू उपचार कीजिये जिससे यह निकलना बंद हो जाए. वैसे अगर यह ज्‍याद मात्रा में निकल रहे हैं, तो किसी अच्‍छे त्वचा विशेषज्ञ का परामर्श लें. चेहरे पर एक्‍ने तभी होते हैं, जब ब्‍लैकहेड होते हैं और यह तब होता है जब त्‍वचा के पोर्स में तेल जमा हो जाता है. आइये जानते हैं कि हम पिंपल को किस तरह से दूर कर सकते हैं.

– संतरा ना केवल स्‍वास्‍थ्‍य के लिये ही अच्‍छा माना जाता है बल्कि इसका छिलका पिंपल को भगाने में भी काफी लाभदायक होता है. इसके छिलके को पीस लीजिये और उसमें कुछ बूंदे गुलाब जल की मिला कर चेहरे पर नियमित रूप से लगाएं.

– नींबू का रस और मूंगफली का तेल मिला कर अपने चेहरे पर लगाएं जिससे चेहरे पर ब्‍लैकहेड ना होने पाए.

– मिंट का रस अपने चेहरे पर रात भर लगाए रखें, जिससे पिंपल से राहत मिले.

– मेथी की पत्‍तियां लें और उसका पेस्‍ट बना लें. इस पेस्‍ट को रोज रात में 15 मिनट के लिये अपने चेहरे पर लगाएं और उसके बाद चेहरे को धो लें.

एक फेस वाश बनाइये जिसमें नींबू का रस और कच्‍चा दूध मिलाइये. इससे अपने चेहरे को साफ कीजिये.

– टमाटर के गूदे को लेकर अपने चेहरे पर 45 मिनट तक लगाए रखिये और उसके बाद चेहरा धो लीजिये.

– गुलाबजल लीजिये और उसमें चंदन पाउडर मिला कर चेहरे पर लगाइये. उसके बाद चेहरे को 20 मिनट के बाद धो लीजिये.

– जायफल के कुछ टुकड़े लें और उसमें कुछ बूंद कच्‍चे दूध का मिला कर अपने मुहासे पर लगा दें. इसको लगाने के बाद दो घंटे बाद चेहरा धो लें.

– दालचीनी पाउडर और शहद के मिश्रण को बना कर अपने चेहरे के पिंपल पर रात को सोने से पहले लगाएं. उसके बाद सुबह उठ कर चेहरा हल्‍के गरम पानी से धो लें. ऐसा रोज करने पर पिंपल में कमी हो जाएगी.

– हल्‍दी पाउडर लें और उसमें नीम की पिसी हुई पत्‍ती मिलाएं. इस पेस्‍ट को चेहरे पर लगाएं तथा आधा घंटे तक छोड़ने के बाद चेहरा धो लें.

आशीर्वाद (पहला भाग) : क्यों टूटे मेनका के सारे सपने

दोपहर का खाना खा कर मेनका थोड़ी देर आराम करने के लिए कमरे में आई ही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.

मेनका ने झल्लाते हुए दरवाजा खोला. सामने डाकिया खड़ा था.

डाकिए ने उसे नमस्ते की और पैकेट देते हुए कहा, ‘‘मैडम, आप की रजिस्टर्ड डाक है.’’

मेनका ने पैकेट लिया और दरवाजा बंद कर कमरे में आ गई. वह पैकेट देखते ही समझ गई कि इस में एक किताब है. पैकेट पर भेजने वाले गुरुजी के हरिद्वार आश्रम का पता लिखा हुआ था.

मेनका की जरा भी इच्छा नहीं हुई कि वह उस किताब को खोल कर देखे या पढ़े. वह जानती थी कि यह किताब गुरु सदानंद ने लिखी है. सदानंद उस के पति अमित का गुरु था. वह उठतेबैठते, सोतेजागते हर समय गुरुजी की ही बातें करता था, जबकि मेनका किसी गुरुजी को नहीं मानती थी.

मेनका ने किताब का पैकेट एक तरफ रख दिया. अजीब सी कड़वाहट उस के मन में भर गई. उस ने बिस्तर पर लेट कर आंखें बंद कर लीं. साथ में उस की 3 साल की बेटी पिंकी सो रही थी.

मेनका समझ नहीं पा रही थी कि उसे अमित जैसा अपने गुरु का अंधभक्त जीवनसाथी मिला है तो इस में किसे दोष दिया जाए?

शादी से पहले मेनका ने अपने सपनों के राजकुमार के पता नहीं कैसेकैसे सपने देखे थे. सोचा था कि शादी के बाद वह अपने पति के साथ हनीमून पर शिमला, मसूरी या नैनीताल जाएगी. पहाड़ों की खूबसूरत वादियों में उन दोनों का यादगार हनीमून होगा.

मेनका के सारे सपने शादी की पहली रात को ही टूट गए थे. उस रात वह अमित का इंतजार कर रही थी. काफी देर के बाद अमित कमरे में आया था.

अमित ने आते ही कहा था, ‘देखो मेनका, आज की रात का हर कोई बहुत बेचैनी से इंतजार करता है पर मैं उन में से नहीं हूं. मेरा खुद पर बहुत कंट्रोल है.’

मेनका चुपचाप सुन रही थी.

‘सदानंद मेरे गुरुजी हैं. हरिद्वार में उन का बहुत बड़ा आश्रम है. मैं कई सालों से उन का भक्त हूं. उन के उपदेश मैं ने कई बार सुने हैं. उन की इच्छा के खिलाफ मैं कुछ भी करने की सोच ही नहीं सकता.

‘मैं ने तो गुरुजी से कह दिया था कि मैं शादी नहीं करना चाहता पर गुरुजी ने कहा था कि शादी जरूर करो तो मैं ने कर ली.’

मेनका चुपचाप अमित की ओर देख रही थी.

अमित ने आगे कहा था, ‘देखो मेनका, आज की रात हमारी अनोखी रात होगी. हम नए ढंग से शादीशुदा जिंदगी की पहली रात मनाएंगे. मेरे पास गुरुजी की कई किताबें हैं. मैं तुम्हें एक किताब से गुरुजी के उपदेश सुनाऊंगा जिन्हें सुन कर तुम भी मान जाओगी कि हमारे गुरुजी कितने ज्ञानी और महान हैं.

‘और हां मेनका, मैं तुम्हें एक बात और भी बताना चाहता हूं…’

‘क्या?’ मेनका ने पूछा था.

‘मेरा तुम से एक वादा है कि तुम मां जरूर बनोगी यानी तुम्हें तुम्हारा हक जरूर मिलेगा, क्योंकि गुरुजी ने कहा है कि गृहस्थ जीवन में ब्रह्मचर्य व्रत को तोड़ना पड़ता है.’

मेनका जान गई थी कि अमित गुरुजी के जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है. उस के सारे सपने बिखरते चले गए थे.

अमित एक सरकारी दफ्तर में बाबू के पद पर काम करता था. जब भी उसे समय मिलता तो वह गुरुजी की किताबें ही पढ़ता रहता था.

एक दिन किताब पढ़ते हुए अमित ने कहा था, ‘मेनका, गुरुजी के प्रवचन पढ़ कर तो ऐसा मन करता है कि मैं भी संन्यासी हो जाऊं.’

यह सुन कर मेनका को ऐसा लगा था मानो कुछ तेज सा पिघल कर उस के दिल को कचोट रहा है. वह शांत आवाज में बोल उठी थी, ‘मेरे लिए तो तुम अब भी संन्यासी ही हो.’

‘ओह मेनका, मैं मजाक नहीं कर रहा हूं. मैं सच कह रहा हूं. अगर तुम गुरुजी की यह किताब पढ़ लो, तुम भी संन्यासिनी हो जाने के लिए सोचने लगोगी,’ अमित ने वह किताब मेनका की ओर बढ़ाते हुए कहा था.

‘अगर इन गुरुओं की किताबें पढ़पढ़ कर सभी संन्यासी हो गए तो काम कौन करेगा? मैं गृहस्थ जीवन में संन्यास की बात क्यों करूं? अगर तुम्हारी तरह मैं भी संन्यासी बनने के बारे में सोचने लगूंगी तो हमारी बेटी पिंकी का क्या होगा? बिना मांबाप के औलाद किस तरह पलेगी? बड़ी हो कर उस की क्या हालत होगी? उस के मन में हमारे लिए प्यार नहीं नफरत होगी. इस नफरत के जिम्मेदार हम दोनों होंगे.

‘जिस बच्चे को हम पालपोस नहीं सकते, उसे पैदा करने का हक भी हमें नहीं है और जिसे हम ने पैदा कर दिया है उस के प्रति हमारा भी तो कुछ फर्ज है,’ मेनका कहा था.

अमित ने कोई जवाब नहीं दिया था.

एक दिन दफ्तर से लौट कर अमित ने कहा था, ‘मेनका, मेरे दफ्तर में 3 दिन की छुट्टी है. मैं सोच रहा हूं कि हम दोनों गुरुजी के आश्रम में हरिद्वार चलेंगे.’

‘मैं क्या करूंगी वहां जा कर?’

‘जब से हमारी शादी हुई है, तुम एक बार भी वहां नहीं गई हो. अब तो तुम मां भी बन चुकी हो. हमें गुरुजी का आशीर्वाद लेना चाहिए… वे हमारे भगवान हैं.’

‘मेरे नहीं सिर्फ तुम्हारे. जहां तक आशीर्वाद लेने की बात है, वह भी तुम ही ले लो. मुझे नहीं चाहिए किसी गुरु का आशीर्वाद.’

‘मेनका, मैं ने फोन कर के पता कर लिया है. गुरुजी अगले एक हफ्ते तक आश्रम में ही हैं. तुम मना मत करो.’

‘देखो अमित, मैं नहीं जाऊंगी,’ मेनका ने कड़े शब्दों में कहा था.

अमित को गुरुजी से मिलने के लिए अकेले ही हरिद्वार जाना पड़ा था.

3 दिन बाद अमित गुरुजी से मिल कर घर लौटा तो बहुत खुश था.

‘दर्शन हो गए गुरुजी के?’ मेनका ने पूछा था.

‘हां, मैं ने तो गुरुजी से साफसाफ कह दिया था कि आप की शरण में यहां आश्रम में आना चाहता हूं… हमेशा के लिए. गुरुजी ने कहा कि अभी नहीं, अभी वह समय बहुत दूर है. कभी मेनका से बात कर उसे भी समझाएंगे.’

‘वे भला मुझे क्या समझाएंगे? क्या मैं कोई गलत काम कर रही हूं या कोई छोटी बच्ची हूं? तुम ही समझते रहो और आशीर्वाद लेते रहो,’ मेनका ने कहा था.

तभी मेनका को पिंकी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी. पिंकी नींद से जाग चुकी थी. मेनका उसे थपकियां दे कर दोबारा सुलाने की कोशिश करने लगी.

शाम को अमित दफ्तर से लौट कर आया तो मेनका ने कहा, ‘‘आज आप के गुरुजी की किताब आई है डाक से.’’

इतना सुनते ही अमित ने खुश हो कर कहा, ‘‘कहां है… लाओ.’’

मेनका ने अमित को किताब का वह पैकेट दे दिया.

अमित ने पैकेट खोल कर किताब देखी. कवर पर गुरुजी का चित्र छपा था. दाढ़ीमूंछें सफाचट. घुटा हुआ सिर. चेहरे पर तेज व आंखों में खिंचाव था.

अमित ने मेनका को गुरुजी का चित्र दिखाते हुए कहा, ‘‘देखो मेनका, गुरुजी कितने आकर्षक और तेजवान लगते हैं. ऐसा मन करता है कि मैं हरदम इन को देखता ही रहूं.’

‘‘तो देखो, मना किस ने किया है.’’

‘‘मेनका, तुम जरा एक कप चाय बना देना. मैं अपने गुरुजी की यह किताब पढ़ रहा हूं,’’ अमित बोला.

मेनका चाय बना कर ले आई और मेज पर रख कर चली गई.

अमित गुरुजी की किताब पढ़ने में इतना खो गया कि उसे समय का पता ही नहीं चला.

रात के साढ़े 8 बज गए तो मेनका ने कहा, ‘‘अब गुरुजी को ही पढ़ते रहोगे क्या? खाना खा लीजिए, तैयार है.’’

‘‘अरे हां मेनका, मैं तो भूल ही गया था कि मुझे खाना भी खाना है. गुरुजी की किताब सामने हो तो मैं सबकुछ भूल जाता हूं.’’

‘‘किसी दिन मुझे ही न भुला देना.’’

‘‘अरे वाह, तुम्हें क्यों भुला दूंगा? तुम क्या कोई भूलने वाली चीज हो…’’ अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम खाना लगाओ… मैं आता हूं.’’

मेनका रसोई में चली गई.

रात के 11 बजे थे. मेनका आंखें बंद किए बिस्तर पर लेटी थी. साथ में पिंकी सो रही थी. अमित आराम से बैठा हुआ गुरुजी की किताब पढ़ने में मगन था. तभी वह पुरानी यादों में खो गया.

कुछ साल पहले अमित अपने दोस्त से मिलने चंडीगढ़ गया था. दोस्त के घर पर ही गुरुजी आए हुए थे. तब पहली बार वह गुरुजी के दर्शन और उन के प्रवचन सुन कर बहुत प्रभावित हुआ था.

कुछ महीने बाद अमित गुरुजी के आश्रम में हरिद्वार जा पहुंचा था. आश्रम में गुरुजी के कई शिष्य थे जो आनेजाने वालों की खूब देखभाल कर रहे थे.

अमित उस कमरे में पहुंचा जहां एक तख्त पर केसरी रंग की महंगी चादर बिछी थी. उस पर गुरुजी केसरी रंग का कुरता व लुंगी पहने हुए बैठे थे. भरा हुआ शरीर. गोरा रंग. चंदन की भीनीभीनी खुशबू से कमरा महक रहा था. 8-10 मर्दऔरत गुरुजी के विचार सुन रहे थे. अमित ने गुरुजी के चरणों में माथा टेका था.

कुछ देर बाद अमित कमरे में अकेला ही रह गया था.

‘कैसे हो बच्चा?’ गुरुजी ने उस से पूछा था.

‘कृपा है आप की. आप के पास आ कर मन को बहुत शांति मिली. गुरुजी, मन करता है कि मैं यहीं आप की सेवा में रहने लगूं.’

‘नहीं बच्चा, अभी तुम पढ़ाई कर रहे हो. पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़े हो जाओ. यह आश्रम तुम्हारा ही है, कभी भी आशीर्वाद लेने आ सकते हो.’

‘जी, गुरुजी.’

‘एक बात का ध्यान रखना बच्चा कि औरत से हमेशा बच कर रहना. उस से बचे रहोगे तो खूब तरक्की कर सकोगे, नहीं तो अपनी जिंदगी बरबाद कर लोगे. ब्रह्मचर्य से बढ़ कर कोई सुख संसार में नहीं है,’ गुरुजी ने उसे समझाया था.

उस के बाद जब कभी अमित परेशान होता तो गुरुजी के आश्रम में जा पहुंचता.

विचारों में तैरतेडूबते अमित को नींद आ गई और वह खर्राटे भरने लगा.

2 महीने बाद एक दिन दफ्तर से लौट कर अमित ने कहा, ‘‘मेनका, अगले हफ्ते गुरुजी के आश्रम में चलना है.’

‘‘तो चले जाना, किस ने मना किया है,’’ मेनका बोली.

‘‘इस बार मैं अकेला नहीं जाऊंगा. तुम्हें भी साथ चलना है.’’

पुलवामा : एक और हमला

सीमापार के आतंकियों के साथ स्थानीय युवाओं का घालमेल, विस्फोटकों की भारी खेप का आना और हमारी इंटैलिजैंस एजेंसियों को इस की भनक तक न मिलना देश की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है. सरकार को अब सोचने की जरूरत है कि हम कहां और क्यों चूक रहे हैं.

14 फरवरी के दिन को दुनिया प्यार के त्योहार के रूप में मनाती है, मगर इसी दिन पुलवामा में पाकिस्तान की सरपरस्ती में फलफूल रहे आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के आतंकी आदिल अहमद डार ने नफरत और हिंसा का जो तांडव किया, उस से पूरा देश आक्रोशित है. देशभर में बदला लो के

स्वर गूंज रहे हैं. पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले में 40 जवान शहीद हो गए. जवानों के शवों को देख कर हर आंख भीग गई. हर जबान से यही निकला कि बस, अब बहुत हुआ. अब इन आतंकियों को छोड़ना नहीं है.

देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवानों के ताबूतों को जब कंधा दिया, वह पल पूरे देश को रुला गया. पुलवामा की घटना और इस से पहले हुई दूसरी घटनाएं कई सवालों को जन्म देती हैं. कई राजनेताओं ने पुलवामा की घटना को मोदी सरकार की विफलता करार दिया है तो कई इसे खुफिया विभाग की नाकामी बता रहे हैं.

जम्मूकश्मीर की मुफ्ती सरकार के गिरने के बाद से वहां राष्ट्रपति शासन लागू है, ऐसे में राज्य की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है. देश में इस समय चुनावी माहौल है. हर विपक्षी नेता इस वक्त केंद्र की मोदी सरकार को घेरने में लगा है. ऐसे में इस तरह की घटना ने प्रधानमंत्री की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो सवाल उठा दिया है कि चुनाव से ऐन पहले यह घटना क्यों हुई? ममता का इशारा किस की तरफ है, यह स्पष्ट है.

गौरतलब है कि एलओसी में लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों की गतिविधियां जाड़े की शुरुआत के साथ ही तेज हो जाती हैं. बर्फबारी के दौरान जब चारों ओर सन्नाटा पसर जाता है, वह वक्त भारत में आतंकी घुसपैठ के लिए सब से माकूल होता है. यह समय खुफिया एजेंसियों के सब से ज्यादा चौकस रहने का होता है.

खुफिया खबर थी कि दिसंबर महीने में सीमापार से 21 आतंकी कश्मीर में घुसपैठ कर चुके हैं, जिन की तलाश जारी है. इन में से 3 खूंखार आतंकी आत्मघाती हमला करने में माहिर हैं. हो सकता है पुलवामा अटैक करने वाला आदिल अहमद डार उन में से ही एक हो, जिस ने 14 फरवरी को सीआपीएफ की बस से आरडीएक्स से भरी अपनी मारुति ईको वैन टकराई.

जिस आदिल अहमद डार का नाम आतंकी के रूप में सामने आया है, वह पुलवामा का ही निवासी था. उस का पिता गुलाम हसन डार पुलवामा में घरघर जा कर कपड़े बेचने का काम करता है. गरीब परिवार का आदिल अपने भाई समीर डार के साथ पिछले साल मार्च से गायब था. स्थानीय थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज है, मगर उसे ढूंढ़ने की कोशिश स्थानीय पुलिस ने नहीं की.

आदिल जैसे कितने स्थानीय लड़के आतंकी संगठनों के साथ मिल गए हैं, कितने रोजीरोटी की तलाश में राज्य से बाहर पलायन कर गए हैं, इस की कोई पुख्ता जानकारी स्थानीय पुलिस, सेना या खुफिया विभाग को नहीं है. यह हमारी नाकामी और नाकारी है.

पत्थरबाजों पर नकेल जरूरी

इस में शक नहीं कि जम्मूकश्मीर में पाकिस्तान से सहानुभूति रखने वालों की कमी नहीं है. पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से इन लोगों को हथियार और बारूद मिलता है. आतंकी संगठन यहां के स्थानीय युवाओं के संपर्क में रहते हैं और इन को कई तरह के लालच दे कर, धर्म का वास्ता दे कर, जिहाद की बातें कर के बरगलाने का काम करते हैं ताकि आतंकियों के खिलाफ कोई कार्यवाही होते ही इन स्थानीय युवकों के जरिए प्रतिक्रिया पैदा की जा सके और शहर में गड़बड़ी फैलाई जा सके.

यही वे लोग हैं जो सेना और पुलिस पर पत्थर फेंकते हैं. यही वे लोग हैं जिन के जरिए आतंकी हमले कराए जाते हैं.

जम्मूकश्मीर के अंदरूनी हालात खराब हैं, मगर इस का सटीक अंदाजा केंद्र सरकार को नहीं है. सेना एक आतंकी को मारती है, और उस की जगह 4 पैदा नहीं हो जाते हैं, इस की क्या गारंटी है. पुलवामा में 40 जवानों की शहादत सामूहिक रूप से सामने आई है, तो हम चौंक रहे हैं. जब मौतें इकट्ठा होती हैं तो संख्या बड़ी दिखती है. संवेदना ज्यादा उपजती है, मगर पिछले करीब 4 वर्षों से कश्मीर में औसतन हर हफ्ते एक सैनिक मर रहा है और उस की लाश खामोशी से ताबूत में रख कर उस के घर भेज दी जाती है. कहीं कोई संवेदना नहीं उपजती.

हमले कैसे हो रहे हैं? सीमा को पार कर के आतंकी क्यों घुस पा रहे हैं? इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री और हथियार कैसे आ सकते हैं? कश्मीरी युवा क्यों और कैसे आतंकी संगठनों की बातों में आ कर बहक रहे हैं? सवाल सैकड़ों हैं. अगर आतंकी हमलों का जिम्मेदार पाकिस्तान और उस की शह पर पनप रहे आतंकी संगठन हैं तो वे कामयाब क्यों हो रहे हैं, इस का जवाब हमें अपने से पूछना चाहिए. दुश्मन से आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह आप को कोई नुकसान नही पहुंचाएगा? वह तो नुकसान पहुंचाने का मौका तलाशता ही रहता है. सवाल हमारी मुस्तैदी का है.

क्या जम्मूकश्मीर को ले कर हमारी राजनीतिक नीतियां दुरुस्त हैं? क्या हमारी खुफिया एजेंसियां ठीक काम कर रही हैं? क्या स्थानीय पुलिस चुस्त है? क्या सेना और अर्धसैनिक बलों को वे सभी सुविधाएं हासिल हैं, जिन के चलते वे हमारे बौर्डर की सुरक्षा पुख्ता कर सकते हैं?

पुलवामा हमले के बाद जम्मूकश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने स्वीकार किया है कि लापरवाही हुई है. पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह भी मानते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है. उन्होंने कहा कि ऐसे हमले सतर्कता, स्टैंडर्ड औपरेशन प्रोसीजर का पालन कर के ही रोके जा सकते हैं.

साफ दिख रहा है कि इस केस में यह नहीं किया गया जबकि, हमले के बहुत स्पष्ट इनपुट मिले थे. अगर देश की सीमाओं को सुरक्षित करना है तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल विक्रम सिंह की इन बातों पर गहन चिंतन की जरूरत है.

खुफिया एजेंसियों पर सवाल

14 फरवरी को पुलवामा में आदिल अहमद डार विस्फोटकों से भरी मारुति ईको वैन ले कर निकला. उस ने सेना की बसों के समानांतर अपनी गाड़ी रखी और मौका पाते ही एक बस से अपनी गाड़ी टकरा दी. इस टक्कर में हम ने अपने 40 जवान खो दिए. लड़ाई के मोरचे पर खोए होते तो उन की वीरता और उन की शहादत पर देश का सीना गर्व से फूल जाता, मगर हम ने उन्हें अपनी गलती से खो दिया.

हमारी खुफिया फेल थी, इसलिए हम ने उन्हें खो दिया.

हमारी नीतियां फेल थीं, इसलिए हम ने उन्हें खो दिया.

हमारी राज्य पुलिस फेल थी, इसलिए हम ने उन्हें खो दिया.

जम्मूकश्मीर जो देश का सब से संवेदनशील इलाका है, जिस की सीमा पर आएदिन गोलाबारी होती है, जहां आतंकी घुसपैठ होती है, वहां हमारी खुफिया एजेंसियों का हाल यह है कि इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक शहर में बिना किसी रोकटोक के पहुंच गया, और पुलिस का हाल यह है कि सेना की बसों के साथसाथ एक ऐसा व्यक्ति विस्फोटकों का जखीरा ले कर चल पड़ा जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट स्थानीय थाने में दर्ज है और किसी ने उस को नहीं पहचाना या किसी चैकपोस्ट पर उस की गाड़ी नहीं रोकी गईं, तो, इस से ज्यादा निकम्मापन और शर्मनाक क्या हो सकता है?

एक आम शहरी कब आतंकी बन जाता है? कब सीमापार के आतंकी गिरोहों के साथ उस की मीटिंग्स होने लगती हैं? कब हथियारों और विस्फोटकों का जखीरा उस के पास पहुंच जाता है? कब वह सेना की रेकी कर लेता है? कब वह गाड़ी में बारूद भर कर उन के साथ निकल पड़ता है? इन तमाम बातों की भनक आखिर देश की खुफिया एजेंसियों को क्यों नहीं लगी? इस का कोई जवाब न तो राज्य पुलिस के पास है, न ही राज्य के खुफिया विभाग के पास और न राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पास.

पुलवामा हमले के बाद देश की इंटैलिजैंस एजेंसियों पर सवाल उठने लगे हैं. आखिर हम कहां चूक रहे हैं, क्यों चूक रहे हैं? कहा तो यह भी जा रहा है कि राज्य पुलिस को कुछ खुफिया इनपुट मिले थे कि जवानों पर हमले हो सकते हैं, बावजूद इस के चैकिंग का काम ठप पड़ा था. खबर है कि पुलवामा हमले के लिए जैश पिछले एक साल से तैयारी कर रहा था. पर यह खबर कहां से आई, यह कोई नहीं बता रहा. हां, जैश ए मोहम्मद ने प्राइवेट ट्विटर अकाउंट पर 33 सैकंड का एक वीडियो भी जारी किया था, जिस में आतंकी हमले की संभावना जताई गई थी. इस वीडियो में सोमालिया का एक आतंकी गु्रप बिलकुल इसी अंदाज में सेना पर हमला करता नजर आ रहा है, जैसा कि पुलवामा में किया गया. इस वीडियो के आखिर में धमकीभरे अंदाज में बाकायदा कश्मीर का नाम लेते हुए कहा जा रहा है कि ‘इंशाअल्लाह, यही कश्मीर में होगा’. इस वीडियो में सुरक्षाबलों पर हमले की स्पष्ट चेतावनी थी, फिर भी इस हमले को रोक पाने में हम असमर्थ रहे.

गौरतलब है कि जम्मूकश्मीर में आतंक की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी. 1990 से ले कर अब तक राज्य में आतंकी हमलों में 5,777 से ज्यादा जवान शहीद हो चुके हैं. सुरक्षाबलों की कार्यवाहियों में 21,562 आतंकी मारे गए हैं. इस के अलावा आतंकी हमलों में 16,757 नागरिकों की जानें जा चुकी हैं.

नियमों में ढील का नतीजा

पुलवामा में आत्मघाती हमले में जवानों के शहीद होने के बाद उन कारणों का पता लगाने की कोशिशें तेज हो चुकी हैं, जिन की भेंट देश के इतने सपूत चढ़ गए. इन में से एक बड़ा कारण है यातायात नियमों में ढिलाई बरतने का, जिस के चलते ही सुरक्षा में सेंध लगी. दरअसल, 2002-03 से पहले जवानों के काफिले को कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया जाता था. जब जवानों का काफिला रास्तों से गुजरता था, उस वक्त कोई स्थानीय नागरिक या स्थानीय वाहनों के गुजरने पर रोक होती थी. सारा सिविलियन ट्रैफिक रोक दिया जाता था. इस दौरान एक पायलट व्हीकल सिविलियन गाडि़यों को हाईवे से दूर रखने का काम करता था.

लेकिन 2002-2005 के बीच राज्य में मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार के दौरान इन नियमों में ढिलाई कर दी गई क्योंकि इस से आम लोगों को बहुत असुविधा होती थी. सईद सरकार ने फैसला किया कि इस नियम को खत्म किया जाए. केंद्र सरकार ने भी सईद के तर्क को सही माना और सुरक्षा ढीली कर दी गई.

हालांकि, इस के साथ सुरक्षा में दूसरे बदलाव किए गए. अब सिविलियन गाडि़यां सुरक्षाबल की गाडि़यों के साथ निकलती थीं, लेकिन पूरे रास्ते पर सुरक्षाबल वाहनों की जांच करते थे. 2014 के बाद भी यह नियम चलता रहा. फिर इस बार कहां चूक हो गई कि विस्फोटक से भरी गाड़ी सीआरपीएफ की बस के साथ चलती रही औैर किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई?

सवाल यह भी है कि कश्मीर के पुलवामा में एकसाथ इतने बड़े समूह में जवानों को मूव कराने की क्या मजबूरी थी.

सेना के एक आला अधिकारी की मानें तो जवानों को हजारहजार की टोली में भेजा जाना चाहिए था. मगर पुलवामा में तो सारे नियमों को ताक पर रख कर 2,547 जवानों का काफिला 78 बसों में रवाना कर दिया गया.

जवानों को एयरलिफ्ट क्यों नहीं

श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग भूस्खलन और बर्फबारी की वजह से करीब हफ्तेभर से बंद था. कश्मीर के 2,200 लोग जम्मू में फंसे थे, जिन में से बहुत छात्र भी थे, जो गेट परीक्षा देने के लिए कश्मीर के दूरदराज के इलाकों से जम्मू आए थे. वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर विमान ने 8 से 12 फरवरी के बीच अपनी 4 दिनों की उड़ानों में कुल 538 लोगों को एयरलिफ्ट किया था.

इसी बीच, खुफिया एजेंसियों ने बड़ा अलर्ट जारी करते हुए कहा कि आतंकी जम्मूकश्मीर में सुरक्षाबलों के डिप्लौयमैंट और उन के आनेजाने के रास्ते पर हमला कर सकते हैं. खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट में कहा गया था कि किसी भी सीआरपीएफ के कैंप और पुलिस के कैंप पर आतंकी बड़ा हमला कर सकते हैं, इसलिए सभी सुरक्षाबल सावधान रहें. इस के साथ ही बिना सैनिटाइज किए किसी एरिया में ड्यूटी पर न जाएं.

जम्मू में सैकड़ों जवान कैंपों में थे, जिन के रहनेखाने में परेशानी सामने आ रही थी. ट्रांजिट कैंपों में जवानों की भीड़ बढ़ती जा रही थी. आईजी अजय वीर सिंह चौहान, सीआरपीएफ, जम्मू सैक्टर का कहना है कि हम ने एयरफोर्स से मांग की थी कि फंसे हुए जवानों को जम्मू से एयरलिफ्ट किया जाए. मगर उन की कोई सुनवाई नहीं हुई.

सीआरपीएफ जवानों को भी छात्रों की तरह एयरलिफ्ट किया जा सकता था,बशर्ते केंद्र सरकार सीआरपीएफ अधिकारियों के विमान मुहैया करवाने के निवेदन को मान लेती.

कहा जा रहा है कि अधिकारी एक हफ्ते तक विशेष विमान की मांग करते रहे थे, मगर किसी के कान पर जूं न रेंगी. वित्तीय कारणों का हवाला दिया गया. मजबूर हो कर 14 फरवरी की सुबह जवानों से भरी 78 बसों के काफिले को श्रीनगर रवाना किया गया.

हैरानी की बात है केंद्र सरकार के पास अपने जवानों को बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करने के लिए भेजने के वास्ते पैसे का अभाव है और हमारे प्रधानसेवक इन पौने 5 सालों में लगभग 84 विदेशी दौरे कर आए, जिन में करीब 280 मिलियन डौलर यानी 2 हजार करोड़ रुपया खर्च हो गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के प्रचारप्रसार में केंद्र सरकार ने 5,200 करोड़ रुपये खर्च कर दिए. अब अगर इन दोनों खर्चों को मिला दें तो पौने 5 साल के कार्यकाल में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री के विदेश दौरों और योजनाओं के प्रचार में करीब 7,200 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. कोई जवाब दे कि 7,200 करोड़ की इस रकम से कितने समय तक सीआरपीएफ और बीएसएफ जैसे अर्धसैनिक बलों के आवागमन के लिए हवाईसेवा उपलब्ध कराई जा सकती थी?

दूसरी बात यह है कि जम्मूकश्मीर जैसे क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के बड़े जत्थे के आवागमन के लिए एक एसओपी यानी स्टैंडर्ड औपरेशन प्रोसीजर है. काफिला गुजरने से पहले संबंधित इलाके की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार रोड ओपनिंग पार्टी (आरओपी) इस के लिए हरी झंडी देती है. आरओपी में सेना, जम्मूकश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवान शामिल होते हैं. आरओपी ने यह क्लीनचिट दी थी या उस पर दबाव डाल कर यह क्लीनचिट दिलवाई गई, यह जांच का विषय है.

ढिंढोरा पीटने से क्या फायदा

हम अपने घर की सफाई करते हैं तो क्या महल्लेभर में या बिरादरीभर में होहल्ला मचा कर करते हैं? क्या स्मार्टफोन पर अपने सफाई कार्यक्रम का वीडियो अपलोड करते हैं? क्या फोटो खिंचवा कर अखबारों में छपवाते हैं या मीडिया वालों को बुला कर हाथों में झाड़ू ले कर पोज देते हैं? या फिर अपने से जलन रखने वाले पड़ोसी को दिखाते हैं, बताते हैं कि लो जी, आज हम अपना घर साफ कर रहे हैं. ऐसा तो हम हरगिज नहीं करते. बस, हर सुबह झाड़ू उठाते हैं और पूरे घर को झाड़पोंछ कर साफ कर देते हैं, कीड़ेमकोड़ों को मार देते हैं, उन के बनाए गंदे जाले उतार देते हैं और घर को रहने लायक बना लेते हैं. आखिर यह सीधीसरल बात मोदी सरकार की समझ में क्यों नहीं आई?

आप पूछेंगे कि घर की सफाई से मोदी सरकार का क्या लेनादेना? सीधा लेनादेना है जनाब. यह देश हमारा घर है. इस को साफ रखना सरकार का काम है. यहां रहने वालों को सुरक्षित जीवन देना सरकार की जिम्मेदारी है. सुरक्षा को चाकचौबंद रखना और यहां गंदगी व बीमारी फैलाने वाले खतरनाक कीड़ों को मारबुहारना सरकार का कर्तव्य है. मगर ये सारे काम चुपचाप किए जाते हैं, होहल्ला मचा कर नहीं.

दुनिया को दिखानेबताने की जरूरत नहीं है कि आज हम अपना घर साफ करने जा रहे हैं. फोटो खिंचवा कर सर्कुलेट करने, वीडियो बना कर अपलोड करने या फिल्में बना कर दुनिया के आगे ढोल पीटने की जरूरत नहीं है कि लो जी, हम ने अपना घर साफ कर लिया.

मोदी सरकार इस कदर बड़बोलेपन की शिकार है कि छोटीछोटी बातों को भी बढ़ाचढ़ा कर कहने व गोपनीय रखी जाने वाली बातों को भी ढोल पीटपीट कर बताने से बाज नहीं आती है. इसे अपनी पीठ खुद थपथपाने का शौक है. अपना गुणगान आप गाने की आदत हो गई है इसे और इस का बुरा नतीजा भुगत रहे हैं हमारे जवान और देश की मासूम जनता.

गहन विश्लेषण की जरूरत

पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर आतंकी हमला या मोदी सरकार में इस से पहले जवानों पर हुए तमाम हमले किन कारणों से हुए, इस का विश्लेषण करने की जरूरत है. सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्यवाहियां यूपीए के शासनकाल में भी होती रहीं, मगर उन का होहल्ला कभी नहीं मचा. उस की गाथा नहीं गाई गई. सेना और खुफिया के गुप्त अभियान के तहत जम्मूकश्मीर और एलओसी पर कितने ही आतंकियों को मार गिराया गया और देश की सुरक्षा सुनिश्चित की गई. मगर मोदी राज में हुए सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी दुनियाभर ने सुनी. उन्हें चीखचीख कर सुनाई गई.

नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भाषण सर्जिकल स्ट्राइक के व्याख्यान के बिना पूरे ही नहीं होते थे. ऐसा लगता था जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार पाकिस्तान पर कोई सर्जिकल स्ट्राइक हुई है. बढ़चढ़ कर दुनिया को बताया गया कि हम ने सर्जिकल स्ट्राइक की, इतने आतंकियों को मारा. क्या यह बताने की जरूरत थी? उधर पाकिस्तान कहता रहा कि यह कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं, बल्कि सीमा पर हुई मामूली झड़प थी, जिस में उन के सिर्फ 2 जवान मारे गए.

सच तो यह है कि जम्मूकश्मीर जैसी सीमा के संवेदनशील राज्यों में आतंकियों को ठिकाने लगाने के लिए सेना और खुफिया एजेंसियों के संयुक्त और गुप्त अभियानों की जरूरत है, बिना शोर किए चुपचाप काम करने की जरूरत है, न कि मोदीमार्का सर्जिकल स्ट्राइक की.

घाटी में वर्ष 2017 से चलाए जा रहे ‘औपरेशन औल आउट’ की गाथा भी सर्जिकल स्ट्राइक जैसी ही गाई जा रही है. इस का जितना प्रचार हो रहा है, उस को सुन कर दहशतगर्दों के साथसाथ स्थानीय युवा भी उत्तेजित हो रहे हैं, बौखलाहट से भरे जा रहे हैं. असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हो गए हैं. इन में से कितने बौखलाहट में गलत तरफ मुड़ गए हैं या मुड़ जाएंगे, कहा नहीं जा सकता.

बेहतर होता कि आतंकियों को चिह्नित कर के चुपचाप उन का सफाया किया जाता, क्योंकि मोरचे जीतने के लिए वीरता गीत गाने से गुप्त कूटनीतिक चालें ज्यादा मुफीद होती हैं. मगर मोदी के बड़बोलेपन को क्या कहें, अब तो अगला लोकसभा चुनाव भी सिर पर है, ऐसे में उपलब्धियां गिनवाने की मजबूरी उन के सामने है.

मसूद को रिहा करना बड़ी भूल

पुलवामा की साजिश रचने वाला जैश ए मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर वही आतंकी है जिसे कंधार विमान हाईजैक के दौरान रिहा करना पड़ा था. मौलाना मसूद अजहर को साल 1994 में पहली बार गिरफ्तार किया गया था. कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठन हरकत उल मुजाहिदीन का सदस्य होने के आरोप में उस वक्त उस की श्रीनगर से गिरफ्तारी हुई.

मौलाना मसूद अजहर की गिरफ्तारी के बाद जो कुछ हुआ, उस का शायद किसी को अंदाजा भी नहीं था. अजहर को छुड़ाने के लिए आतंकियों ने 24 दिसंबर, 1999 को 180 यात्रियों से भरे एक भारतीय विमान को नेपाल से अगवा कर लिया और विमान को कंधार ले गए. भारतीय इतिहास में यह घटना ‘कंधार विमान कांड’ के नाम से दर्ज है.

कंधार विमान कांड के बाद भारतीय जेलों में बंद आतंकी मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक जरगर और शेख अहमद उमर सईद की रिहाई की मांग की गई और यात्रियों की जान बचाने के लिए 8 दिनों बाद 31 दिसंबर को आतंकियों की शर्त मानते हुए भारत सरकार ने मसूद अजहर समेत तीनों आतंकियों को छोड़ दिया. इस के बदले में कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए विमान को बंधकों समेत छोड़ दिया गया.

मसूद अजहर की रिहाई के बाद पाकिस्तान चौड़ा हो गया और उस की शह पा कर ही मसूद अजहर ने फरवरी 2000 में जैश ए मोहम्मद आतंकी संगठन की नींव रखी, जिस का मकसद था भारत में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देना और कश्मीर को भारत से अलग करना. उस वक्त सक्रिय हरकत उल मुजाहिदीन और हरकत उल अंजाम जैसे कई आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद में मिल गए. खुद मसूद अजहर भी हरकत उल अंसार का महासचिव रह चुका है. साथ ही, हरकत उल मुजाहिदीन से भी उस के संपर्क थे.

इस में शक नहीं कि मसूद के आतंकी संगठन को जहां पाकिस्तानी सेना का पूरा सपोर्ट है, वहीं चीन भी उस को पूरा सपोर्ट करता है और उस का इस्तेमाल भारत को परेशान करने के लिए करता है. भारत जहां मौलाना मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित कर उस के संगठन जैश ए मोहम्मद को बैन करने की मांग लंबे समय से उठा रहा है, वहीं चीन यह मानने को तैयार ही नहीं है कि मसूद आतंकी है. जैश ए मोहम्मद को भारत ने ही नहीं, बल्कि ब्रिटेन, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र भी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कर चुका है.

हालांकि अमेरिका के दबाव के बाद पाकिस्तान ने भी साल 2002 में इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था, मगर अंदर ही अंदर पाकिस्तानी सेना का पूरा सपोर्ट जैश को मिलता रहा. भारत मसूद अजहर के प्रत्यर्पण की पाकिस्तान से कई बार मांग कर चुका है. लेकिन पाकिस्तान हर बार सुबूतों के अभाव का हवाला देते हुए इस मांग को नामंजूर कर देता है.

भारत को अब अपने पड़ोसी देशों पकिस्तान और चीन से टक्कर लेने व उन को कड़ा सबक सिखाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए. सांप को दूध पिलाने से वह अपनी प्रवृत्ति नहीं छोड़ देगा, पुलवामा के बाद तो हमें यह बात अच्छी तरह समझ में आ जानी चाहिए. पर यह भी याद रखना होगा कि युद्ध में छोटाबड़ा नहीं होता, मजबूत और कमजोर होता है.

पाकिस्तान भी परमाणु बमों से लैस देश है. उस की सेना में 6 लाख से ज्यादा सैनिक हैं और उस के पास ढाई हजार से ज्यादा टैंक हैं. युद्ध चाहे एकतरफा हो, नुकसान दोनों का होगा.

समन का चक्कर : थानेदार की समझाइशों का जगन्नाथ पर कैसा हुआ असर

अजीब मुसीबत है भई, जब मैं जगन्नाथ हूं तो विश्वनाथ नाम का चोला क्यों गले में डालूं. थानेदार की समझाइशों का असर मुझ पर होने ही वाला था कि दिमाग की बत्ती जल गई वरना हम तो गए थे काम से.

घर पहुंचा तो माताश्री ने एक कागज मेरी ओर बढ़ाया, ‘‘2 पुलिस वाले आए थे, उन्होंने कहा, जब तुम घर पहुंचो तो तुम्हें यह दिखला दूं.’’

पुलिस की बात सुनते ही मेरे हाथपांव फूल गए. कागज फौरन मैं ने लपक लिया. यह एसडीएम कोर्ट से जारी किसी विश्वनाथ नामक व्यक्ति के लिए समन था. इसे पुलिस वाले बिना पूछताछ किए मेरी माताजी को थमा कर चले गए थे. गांव की निपट मेरी अशिक्षित माताश्री ने बिना सोचेसमझे इसे ले कर ‘आ बैल मुझे मार’ जैसी स्थिति मेरे लिए कर दी थी.

मामला कोर्ट का था. इस आई बला को टालने मैं फौरन थाने जा पहुंचा. पुलिस वालों की गलती बताते हुए समन वापस करना चाहा तो थानेदार ने हवलदार को तलब किया.

‘‘महल्ले वालों ने ही इन के घर का पता बताया था,’’ मुझे टारगेट करते हुए हवलदार ने बयान दिया,  ‘‘घर के बाहर टंगी इन की नेमप्लेट और यहां तक कि घर का नंबर मिलान करने के बाद ही समन तामील किया था.’’

‘‘अब तुम इनकार कर ही नहीं सकते, तुम वे नहीं हो, जिसे समन तामील किया गया है. यह समन तुम्हारा ही है. संभाल कर इसे रखो. बड़े काम की चीज है यह तुम्हारे लिए. कोर्ट में हाजिरी के समय इसे दिखाना पड़ेगा,’’ थानेदार ने मुझे समन का हकदार बता दिया.

बहरहाल, समन तामीली के सिलसिले में हवलदार ने मेरे घर का नंबर और उस के बाहर टंगी नेमप्लेट का हवाला दिया तो आखिर माजरा क्या है, मेरी समझ में आ गया.

दरअसल, जिस घर में मैं रहने लगा हूं, 2 दिन ही हुए थे किराए पर लिए उसे. पहले के किराएदार को 2-3 दिन ही हुए थे इसे खाली किए. घर खाली उस ने कर तो दिया, अपनी नेमप्लेट ले जाना भूल गया. यह विश्वनाथ वही व्यक्ति था, समन जिसे जारी किया गया था. घर को ठीक करने की हड़बड़ी में उस की नेमप्लेट की ओर मैं ध्यान दे नहीं पाया. इसी को देख कर पुलिस वालों ने माना होगा कि विश्वनाथ रहता यहीं है. वे मेरी माताजी को विश्वनाथ की माता समझ कर समन सौंप कर चले गए होंगे.

इस पूरे घटनाक्रम का बयान कर थानेदार के सामने मैं ने अपनी बात रखी, ‘‘फिर भी समन देते समय पुलिस वालों को साफसाफ बतला देना था कि वह किस के नाम है?’’

‘‘कहना तो तुम्हें यह चाहिए कि तामील करते वक्त महल्ले वालों का पंचनामा बनवा क्यों नहीं लिया गया?’’ थानेदार पुलिस की गलती मानने को तैयार नहीं था, ‘‘चूक सरासर तुम्हारी है, घर किराए पर लेते समय देख तो लेना था. बिना देखे आपराधिक रिकौर्ड वाले किराएदार के बाद घर आंख मूंद कर ले लिया. ऊपर से घर के बाहर टंगी उस की नेमप्लेट का इस्तेमाल भी करते रहे. आप को इस का मोल कभी न कभी चुकाना ही था. जब चुकाने की बारी आई तो अपनी गलतियों का ठीकरा पुलिस के सिर फोड़ने लगे.’’

‘‘आप की बातें अपनी जगह ठीक हैं, पर इस समन का मैं करूंगा क्या?’’ थानेदार को मैं ने मनाने की कोशिश की कि समन वापस ले कर वे मुझे बख्श दें.

‘‘समन की तामीली रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जा चुकी है. अब करना जो भी है, वह कोर्ट तय करेगा. तुम्हारे हक में करने को बस यह है कि समय पर कोर्ट में हाजिर हो जाओ,’’ थानेदार ने एक तरह से मेरी बेचारगी की बात कही.

‘‘क्या मैं आप को बलि का बकरा नजर आता हूं, विश्वनाथ के बदले जिस की बलि दी जा सके. अजीब मुसीबत है. मैं जब विश्वनाथ हूं ही नहीं, कोर्ट में फिर पेश क्यों होऊं? मुझे नहीं होना कोर्ट में पेश.’’

‘‘गिरफ्तारी वारंट जब जारी होगा, फिर तो होओगे न कोर्ट में पेश?’’ मेरी जिद का खमियाजा भुगतने की वह चेतावनी देने लगा.

‘‘यह तो नाइंसाफी है,’’ मैं ने विरोध किया.

‘‘समन जिस के करकमलों में दिया जाता है, बाद में जब उस की गिरफ्तारी की नौबत आती है, तुम्हीं बताओ, पुलिस किसे करेगी गिरफ्तार?’’ थानेदार ने कानून की दुहाई दी, ‘‘नाइंसाफी तब होगी जब समन की तामीली किसी और को और गिरफ्तारी किसी और की की जाएगी.’’

‘‘कोईर् तोड़ तो होगा इस चक्रव्यूह को भेदने का?’’ मैं ने उपाय पूछा.

‘‘इतनी देर से मैं तुम को समझा क्या रहा हूं? तुम्हारी मुक्ति के सभी रास्ते बंद हैं सिवा एक के, वह जाता सीधे कोर्ट को है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर जैसे ही जाने को हुआ, थानेदार के मन में अचानक मेरे लिए सहानुभूति उमड़ पड़ी, ‘‘वैसे क्या नाम बताया था आप ने अपना?’’

‘‘यदि मैं अपने मौलिक नाम के साथ कोर्ट में हाजिर होऊं तो? जानबूझ कर दूसरे का अपराध अपने सिर लेने की इजाजत मेरा जमीर मुझे दे नहीं रहा है.’’

‘‘मेरी समझ में यह नहीं आ रहा कि इतना समझाने के बावजूद तुम्हारे अंदर की गलत सोच जा क्यों नहीं रही? ठीक है, अपनी असलियत साबित करने के लिए कोर्ट के जब चक्कर पे चक्कर लगाने पड़ेंगे, फिर यह भी याद नहीं रहेगा कि जमीर किस चिडि़या का नाम है? कान उलटा क्यों पकड़ना चाहते हो?’’ थानेदार ने कोर्ट की दुनियादारी से रूबरू करवाया.

‘‘आप के कहने का मतलब है कि मेरी भलाई इसी में है कि कोर्ट के लिए मैं विश्वनाथ बना रहूं.’’

‘‘लगता है, तुम्हारे भेजे में बात घुसती देर से है,’’ उस ने मुझे आश्वस्त करने का प्रयास किया, ‘‘अभी तक मैं तुम्हें समझा क्या रहा हूं?’’

‘‘इतना भर और समझा दीजिए कि कोर्ट के सामने मुझे कहना क्या होगा?’’

‘‘मेरी समझाइशों का असर तुम पर होने लगा है,’’ उत्साहित हो कर उस ने कार्यक्रम बताया, ‘‘एसडीएम साहब के सामने कान पकड़ कर तुम्हें कहना है कि भविष्य में तुम महल्ले वालों से लड़ाईझगड़ा करने से तोबा करते हो. एकदो पेशी के बाद व्यवहार ठीक रखने की शर्त पर कोर्ट मामला बंद कर देगा.’’

दूसरे दिन एसडीएम कोर्ट जा कर पेशकार से मिला. मामले की पूरी जानकारी उसे दी. साथ ही, इस के निबटारे की दिशा में थानेदार की सलाह पर उस की प्रतिक्रिया जाननी चाही. यह सोच कर कि कहीं पुलिस वालों की गलती पर परदा डालने के लिए दूसरे का अपराध अपने सिर लेने के लिए थानेदार मुझे प्रोत्साहित तो नहीं कर रहा?

‘‘ऐसी खास सलाह कोई सुलझा हुआ पुलिस वाला ही दे सकता है,’’ थानेदार की वह प्रशंसा करने लगा, ‘‘भावुकता में बह कर भूले से भी अपनी असलियत कोर्ट को जाहिर मत कर देना.’’

‘‘वरना?’’ नतीजा मैं ने जानना चाहा.

‘‘थानेदार ने बताया नहीं?’’

‘‘आप के श्रीमुख से भी सुनना चाहता हूं.’’

‘‘मालूम होता है कि कोर्ट से पाला कभी पड़ा नहीं आप का. आप के कहने भर से कोर्ट आप को जगन्नाथ नहीं मान लेगा, साबित करना पड़ेगा? खुद को खुद साबित करने आप को जाने कितने पापड़ बेलने पड़ेंगे. मामले में पेशीदरपेशी से परेशान हो कर हो सकता है कि इस के लिए आप को किसी वकील की सेवा में जाना पड़े. इस चक्कर में गांठ से पैसा जाएगा, सो अलग.’’ उस ने भी वही बात कही, जो थानेदार ने मुझ से कही थी.

‘‘कोर्टकचहरी के चक्कर में कभी पड़े?’’ कुछ देर बाद उस ने जानना चाहा.

‘‘नहीं.’’

‘‘तो विश्वनाथ बन कर अब पड़ जाओ. लेकिन इस मौके को हाथ से जाने मत दो. असल मामले में अदालत से सामना जब होगा, इस का तजरबा आप के काम आएगा,’’ प्रेरित करतेकरते वह उपदेश देने लगा, ‘‘आप को तो विश्वनाथजी का एहसानमंद होना चाहिए जिस की बदौलत अदालती कार्यवाहियों से रूबरू होने का मौका जो आप को मिलने जा रहा है.’’

सलाह के लिए उस का शुक्रिया अदा कर जैसे ही जाने लगा, उस ने मुझ से पूछ लेना जरूरी समझा, ‘‘यह तो बताते जाओ कि पेशी में पालनहार के किस रूप में अवतरित होगे?’’ उस ने आगे खुलासा किया, ‘‘कहने का मतलब है कि विश्वनाथ बन कर या जगन्नाथ के नाम से? पूछ इसलिए रहा हूं, यदि जगन्नाथ के रूप में प्रकट होना है तो आप की सुविधा के लिए कोई वकील तय कर के रखूंगा.’’

‘‘थानेदार और आप की लाख समझाइशों के बावजूद क्या मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा है जो जगन्नाथ का चोला पहन कर आऊं?’’ हालत के मद्देनजर आखिरकार मैं ने हथियार डाल दिया, ‘‘समझ लीजिए जगन्नाथ तब तक के लिए मर गया है जब तक कोर्ट के लिए विश्वनाथ जिंदा है,’’ मैं ने उसे यकीन दिलाया.

‘‘यह की न बुद्धिमानों वाली बात.’’ अपनी शहादत के लिए अनुकूल विकल्प चुनने पर मेरी तारीफ किए बिना वह रह नहीं सका.

घर पहुंचते ही फौरन उस को खाली करने में मैं ने अपनी खैरियत समझी. इस आशंका से कि मेरा पर्यायवाची ‘विश्वनाथ’ इस घर में रहते हुए जाने और क्याक्या गुल खिला कर गया हो? उस के दुष्कमों का अदृश्य साया इस घर पर मंडराते हुए मुझे महसूस होने लगा था.

बनाएं अपनी बौडी को खूबसूरत

अक्सर हम खूबसूरत दिखने के लिए अपने चेहरे को चमकाने में ही ज्यादा ध्यान देते हैं. लेकिन परफेक्‍ट सुंदरता पाने के लिये चेहरे के साथ ही आपको अपने शरीर के एक एक अंग पर ध्‍यान देने की जरुरत है. अगर आप भी खूबसूरत बौडी पाना चाहती हैं तो नीचे दिये गए इन टिप्‍स को जरुर आजमांए और लोगो से तारीफें बटोरे-

पैर

अगर आप स्‍कर्ट, कैप्री या शौर्ट्स पहनती हैं तो पैरों की सफाई करना बहुत जरुरी है. क्‍योंकि काले घुटने आपकी खूबसूरती पर दाग लगा सकते हैं. अगर आपके घुटने काले हैं तो उस पर वाइटनिंग क्रीम लगाएं. साथ ही प्‍यूमिक स्‍टोन की मदद से अपनी ऐड़ियों को भी साफ करें और उस पर क्रीम लगाएं.

पेट

इस पार्ट को हमेशा साफ और नम रखें. एक गीली रूई की सहायता से आप अपनी नाभि को साफ कर सकती हैं. साथ ही एक माइल्‍ड क्रीम लेकर अपने पेट पर लगाएं जिससे उस पार्ट की नमी बनी रहे.

हाथ

आपको देखने वालों में से ज्‍यादातर लोंगो का ध्‍यान आपके हाथों पर ही जाता है. इसलिये आपको अपने हाथों को हमेशा साफ और मौइस्‍चराइज रखना होगा. काली हो चुकी कुहनियों पर भी वाइटनिंग क्रीम लगाएं.

गर्दन

गर्दन के ऊपर की त्‍वचा चेहरे की त्‍वचा के ही भांती कोमल और नाजुक होती है. इसके लिये आपको वही क्रीम लगानी चाहिये जो आप अपने चेहरे पर प्रतिदिन लगाती हैं. हफ्ते में एक बार इस जगह को मुलायम स्क्रबर से स्‍क्रब कीजिये और मौइस्‍चराइजर लगाइये. ऐसा कुछ दिन करने से आपकी गर्दन बिल्‍कुल आपके चेहरे से मेल खाने लगेगी.

पीठ

हफ्ते में एक या दो बार पीठ पर तेल की मालिश करवाएं. इससे त्‍वचा में नमी बनी रहेगी और वह दमकने लगेगी. इसके अलावा नहाने के बाद भी अपनी पीठ पर माइस्‍चराइजर लगाना कभी ना भूलें.

इन बीमारियों को न करें नजरअंदाज

हम अकसर छोटीछोटी बीमारियों को नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि कई बार देखने में  छोटी ये बीमारियां जानलेवा हो जाती हैं. अस्वस्थ व असुरक्षित खानपान तथा नियमित व्यायाम न कर पाने की वजह से हमारी दिनचर्या गड़बड़ा जाती है, जिस की वजह से बीमारियां हमें अपनी गिरफ्त में ले लेती हैं. बढ़ते प्रदूषण और दूषित हवा के कारण हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता भी दिनोदिन कमजोर हो रही है और हमें कोई न कोई बीमारी अपनी गिरफ्त में ले लेती है.

इन छोटेछोटे लक्षणों को अनदेखा करने की आदत हमें कई बार गंभीर बीमारी का शिकार बना देती है. यदि आप को स्वास्थ्य संबंधी कुछ निम्न लक्षण दिखाई दें तो उन्हें नजरअंदाज करने के बजाय तुरंत अपने फैमिली डाक्टर को दिखाएं ताकि समय पर इलाज होने से आप गंभीर खतरे से बच सकें :

थकान होना

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काम ज्यादा करने और शरीर में ऊर्जा की कमी के कारण अकसर हम थकान महसूस करते हैं. कई बार तो इतनी मेहनत करनी पड़ती है कि हम थकान से पस्त हो जाते हैं. यदि सामान्य थकान हो तो उसे नजरअंदाज किया जा सकता है लेकिन अगर लगातार कई हफ्ते से आप थकान महसूस कर रहे हैं तो इसे नजरअंदाज न करें बल्कि तुरंत डाक्टर से परामर्श करें, क्योंकि यह कई प्रकार की गंभीर बीमारियों की तरफ इशारा करता है.

खांसी आना

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लगातार खांसी आना भी एक गंभीर समस्या है, यदि आप को हफ्तेभर से अधिक समय से खांसी आ रही है तो टीबी का लक्षण हो सकता है. अगर आप धूम्रपान करते हैं और काफी समय से खांसी की शिकायत है तो यह निश्चित रूप से टीबी की तरफ इशारा करती है.

सीने में दर्द

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सीने में दर्द की शिकायत स्त्रीपुरुष किसी को भी हो इसे बिलकुल भी नजरअंदाज न करें. ज्यादातर लोग इस समस्या की अनदेखी कर डाक्टर को नहीं दिखाते. ऐसा करना बिलकुल गलत है. यह गंभीर बीमारी का संकेत है. कैंसर, थायराइड, अल्सर और पेट की समस्या का भी कारण हो सकता है सीने का दर्द.

नाक से खून निकलना

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गरमी के मौसम में कुछ लोगों की नाक से ज्यादा गरमी लगने के कारण खून निकलता है, जिसे नकसीर कहते हैं. लेकिन यदि नाक, कान, आंख, जबड़े, पेशाब, शौच आदि के जरिए खून निकलता है तो लापरवाही न बरतें, तुरंत चिकित्सक को दिखाएं. हाईब्लड प्रैशर, एस्पिरिन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता कम होने व कैंसर जैसी समस्या के कारण इन जगहों से खून निकल सकता है.

शरीर में किसी तरह की गांठ बनना

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अगर आप की बौडी के किसी भी हिस्से में कोई गांठ जैसी बन रही है तो तुरंत अपने फैमिली डाक्टर को दिखाएं बिलकुल भी लापरवाही न बरतें. एक सप्ताह से अधिक समय तक बनी गांठ कैंसर या ट्यूमर हो सकती है तथा यह कैंसर का भी कारण बन सकती है.

वजन घटना

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यदि बिना किसी कारण के आप का वजन कम हो रहा है तो बजाय खुश होने कि आप का वजन घट रहा है यह चिंता की बात है. वजन कम होना कई बीमारियों का सूचक है.

तेज सिरदर्द

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कई बार अधूरी नींद, काम की अधिकता के कारण सिरदर्द होने लगता है, लेकिन अगर आप के सिर में एक हफ्ते से अधिक समय से दर्द है तो डाक्टर को दिखाएं. लगातार हो रहे सिर दर्द से दिमाग की कोशिकाएं प्रभावित होती हैं जिस से ब्रैन ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है दिमाग की क्षमता भी इस से प्रभावित होती है.

इन छोटीमोटी बीमारियों को नजरअंदाज न करें तुरंत डाक्टर को दिखा कर उन्हें बड़ी और घातक बीमारी बनने से बचें.

कठपुतली- भाग 1: शादी के बाद मीता से क्यों दूर होने लगा निखिल

जैसे ही मीता के विवाह की बात निखिल से चली वह लजाई सी मुसकरा उठी. निखिल उस के पिताजी के दोस्त का इकलौता बेटा था. दोनों ही बचपन से एकदूसरे को जानते थे. घरपरिवार सब तो देखाभाला था, सो जैसे ही निखिल ने इस रिश्ते के लिए रजामंदी दी, दोनों को सगाई की रस्म के साथ एक रिश्ते में बांध दिया गया.

मीता एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती थी और निखिल अपने पिताजी के व्यापार को आगे बढ़ा रहा था.

2 महीने बाद दोनों परिणयसूत्र में बंध कर पतिपत्नी बन गए. निखिल के घर में खुशियों का सावन बरस रहा था और मीता उस की फुहारों में भीग रही थी.

वैसे तो वे भलीभांति एकदूसरे के व्यवहार से परिचित थे, कोई मुश्किल नहीं थी, फिर भी विवाह सिर्फ 2 जिस्मों का ही नहीं 2 मनों का मिलन भी तो होता है.

विवाह को 1 महीना पूरा हुआ. उन का हनीमून भी पूरा हुआ. अब निखिल ने फिर काम पर जाना शुरू कर दिया. मीता की भी छुट्टियां समाप्त हो गईं.

‘‘निखिल पूरा 1 महीना हो गया दफ्तर से छुट्टी किए. आज जाना है पर तुम्हें छोड़ कर जाने को मन नहीं कर रहा,’’ मीता ने बिस्तर पर लेटे अंगड़ाई लेते हुए कहा.

‘‘हां, दिल तो मेरा भी नहीं, पर मजबूरी है. काम तो करना है न,’’ निखिल ने जवाब दिया. तो मीता मुसकरा दी.

अब रोज यही रूटीन रहता. दोनों सुबह उठते, नहाधो कर साथ नाश्ता कर अपनेअपने दफ्तर रवाना हो जाते. शाम को मीता थकीमांदी लौट कर निखिल का इंतजार करती रहती कि कब निखिल दफ्तर से आए और कब दो मीठे बोल उस के मुंह से सुनने को मिलें.

एक दिन वह निखिल से पूछ ही बैठी, ‘‘निखिल, मैं देख रही हूं जब से हमारी शादी हुई है तुम्हारे पास मेरे लिए वक्त ही नहीं.’’

‘‘मीता शादी करनी थी हो गई… अब काम भी तो करना है.’’

निखिल का जवाब सुन मीता मुसकरा दी और फिर मन ही मन सोचने लगी कि निखिल कितना जिम्मेदार है. वह अपने वैवाहिक जीवन से बहुत खुश थी. वही करती जो निखिल कहता, वैसे ही रहती जैसे निखिल चाहता. और तो और खाना भी निखिल की पसंदनापसंद पूछ कर ही बनाती. उस का स्वयं का तो कोई रूटीन, कोई इच्छा रही ही नहीं. लेकिन वह खुद को निखिल को समर्पित कर खुश थी. इसलिए उस ने निखिल से कभी इन बातों की शिकायत नहीं की. वह तो उस के प्यार में एक अनजानी डोर से बंध कर उस की तरफ खिंची जा रही थी. सो उसे भलाबुरा कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था.

वह कहते हैं न कि सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखाई देता है. बस वैसा ही हाल था निखिल के प्रेम में डूबी मीता का. निखिल रात को देर से आता. तब तक वह आधी नींद पूरी भी कर चुकी होती.

एक बार मीता को जम्हाइयां लेते देख निखिल बोला, ‘‘क्यों जागती हो मेरे लिए रात को? मैं बाहर ही खा लिया करूंगा.’’

‘‘कैसी बात करते हो निखिल… तुम मेरे पति हो, तुम्हारे लिए न जागूं तो फिर कैसा जीवन? वैसे भी हमें कहां एकदूसरे के साथ बैठने के लिए वक्त मिलता है.’’ मीता ने कहा.

विवाह को 2 वर्ष बीत गए, किंतु इन 2 वर्षों में दोनों रात और दिन की तरह हो गए. एक आता तो दूसरा जाता.

एक दिन निखिल ने कहा, ‘‘मीता तुम नौकरी क्यों नहीं छोड़ देतीं… हमें कोई पैसों की कमी तो नहीं. यदि तुम घर पर रहो तो शायद हम एकदूसरे के साथ कुछ वक्त बिता सकें.’’

जैसे ही मीता ने अपनी दफ्तर की कुलीग नेहा को इस बारे में बताया, वह कहने लगी, ‘‘मीता, नौकरी मत छोड़ो. सारा दिन घर बैठ कर क्या करोगी?’’

मगर मीता कहां किसी की सुनने वाली थी, उसे तो जो निखिल बोले बस वही ठीक लगता था. सो आव देखा न ताव इस्तीफा लिख कर अपनी बौस के पास ले गई. वे भी एक महिला थीं, सो पूछने लगीं, ‘‘मीता, नौकरी क्यों छोड़ रही हो?’’

 

‘‘मैम, वैवाहिक जीवन में पतिपत्नी को मिल कर चलना होता है, निखिल तो अपना कारोबार दिन दूना रात चौगुना बढ़ा रहा है, यदि पतिपत्नी के पास एकदूसरे के लिए समय ही नहीं तो फिर कैसी गृहस्थी? फिर निखिल तो अपना कारोबार बंद करने से रहा. सो मैं ही नौकरी छोड़ दूं तो शायद हमें एकदूसरे के लिए कुछ समय मिले.’’

बौस को लगा जैसे मीता नौकरी छोड़ कर गलती कर रही है, किंतु वे दोनों के प्यार में दीवार नहीं बनाना चाहती थीं, सो उस ने मीता का इस्तीफा स्वीकार कर लिया.

अब मीता घर में रहने लगी. जैसे आसपास की अन्य महिलाएं घर की साफसफाई, साजसज्जा, खाना बनाना आदि में वक्त व्यतीत करतीं वैसे ही वह भी अपना सारा दिन घर के कामों में बिताने लगी. कभी निखिल अपने बाहर के कामों की जिम्मेदारी उसे सौंप देता तो वह कर आती, सोचती उस का थोड़ा काम हलका होगा तो दोनों को आपस में बतियाने के लिए वक्त मिलेगा.

उस की दफ्तर की सहेलियां कभीकभी फोन पर पूछतीं, ‘‘मीता, घर पर रह कर कैसा लग रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा, सब से अलग,’’ वह जवाब में कहती.

दीवानी जो ठहरी अपने निखिल की. दिन बीते, महीने बीते और पूरा साल बीत गया. मीता तो अपने निखिल की मीरा बन गई समझो. निखिल के इंतजार में खाने की मेज पर ही बैठ कर ऊंघना, आधी रात जाग कर खाना परोसना तो समझो उस के जीवन का हिस्सा हो गया था.

अब वह चाहती थी कि परिवार में 2 से बढ़ कर 3 सदस्य हो जाएं, एक बच्चा हो जाए तो वह मातृत्व का सुख ले सके. वैसे तो वह संयुक्त परिवार में थी, निखिल के मातापिता भी साथ में ही रहते थे, किंतु निखिल के पिता को तो स्वयं कारोबार से फुरसत नहीं मिलती और उस की मां अलगअलग गु्रप में अपने घूमनेफिरने में व्यस्त रहतीं.

‘‘निखिल कितना अच्छा हो हमारा भी एक बच्चा हो. आप सब तो पूरा दिन मुझे अकेले छोड़ कर बाहर चले जाते हो… मुझे भी तो मन लगाने के लिए कोई चाहिए न,’’ एक दिन मीता ने निखिल के करीब आते हुए कहा.

जैसे ही निखिल ने यह सुना वह उस के छिटकते हुए कहने लगा, ‘‘मीता, अभी मुझे अपने कारोबार को और बढ़ाना है. बच्चा हो गया तो जिम्मेदारियां बढ़ जाएंगी और फिर अभी हमारी उम्र ही क्या है.’’

मीता ने उसे बहुत समझाया कि वह बच्चे के लिए हां कह दे, किंतु निखिल बड़ी सफाई से टाल गया, बोला, ‘‘क्यों मेरा हनीमून पीरियड खत्म कर देना चाहती हो?’’

उस की बात सुन मीता एक बार फिर मुसकरा दी. बोली, ‘‘निखिल तुम बहुत चालाक हो.’’

मगर मीता अकेले घर में कैसे वक्त बिताए हर इंसान की अपनी दुनिया होती है. वह भी अपनी दुनिया बसाना चाहती थी, किंतु निखिल की न सुन कर चुप हो गई और निखिल अपनी दुनिया में मस्त.

एक दिन मीता बोली, ‘‘निखिल, मैं सोचती थी कि मैं नौकरी छोड़ दूंगी तो हमें एकसाथ समय बिताने को मिलेगा, किंतु तुम तो हर समय घर पर भी अपना लैपटौप ले कर बैठे रहते हो या फिर फोन पर बातों में लगे रहते हो.’’

पतझड़ में वसंत- भाग 1: सुषमा और राधा के बनते बिगड़ते हालात

‘प्रिय राधा,

‘स्नेह, मैं सुषमा, तेरी सहेली, तेरी पड़ोसिन, तेरी कलीग. शायद तू मुझे भूल गई होगी पर इन

10 बरसों में कोई दिन ऐसा न था जब तेरा हंसताखिलखिलाता चेहरा जेहन में न उभरा हो. बहुत याद आती है इंडिया की, इंडिया के लोगों की. मुझे तुझ से एक फेवर चाहिए. मैं यूएस से इंडिया आना चाहती हूं. क्या मैं कुछ दिन तेरे पास रह सकती हूं? मेरा आना न आना, तेरी हां या न पर है. ईमेल का जवाब फौरन देना. मैं अगले महीने की 20 तारीख तक चलने का प्रोग्राम बना रही हूं. मेरी बात हो सकता है तुझे अजीब लगे, उस के लिए माफी चाहती हूं. सबकुछ आ कर बताऊंगी.

‘तेरी सुषमा.’

ईमेल सुषमा का था. 10 बरस पहले यूएस में अपने बेटों के पास जा बसी थी. आज इतने लंबे समय के बाद वापस आ रही है. पर क्यों? लोग तो वहां जा कर वापस आना ही नहीं चाहते. फिर यह

तो बेटों के बुलाने पर ही गई थी. सोचतेसोचते बरामदे में पड़ी कुरसी पर आ बैठी. अतीत सामने आ कर खड़ा हो गया.

सामने वाली दीवार के पीछे सुषमा का परिवार रहता था. लंबीचौड़ी कोठी थी, 10-15 लोग रहते थे. ठीक, राधा के परिवार की तरह. दोनों की छतें इस तरह जुड़ी थीं कि गरमी में रात को जब परिवार के बच्चेबूढ़े सोने आते तो पता ही नहीं लगता कि घरों का आदि कहां, अंत कहां है. वैसे भी दोनों परिवार में बहुत अपनापन था. बच्चे भी बहुत हिलमिल कर रहते थे. उसे आज भी याद है, जब भी दोनों घरों में कोई खुशी आती, सब मिलजुल कर बांटते. चाहे किसी बच्चे का जन्मदिन हो या किसी को कंपीटिशन में जबरदस्त कामयाबी मिली हो.

राधा और सुषमा एक ही स्कूल में नौकरी करती थीं. दोनों ने अपने और बच्चों से जुड़े किसी भी फैसले को कभी अकेला नहीं लिया. स्कूल से रिटायर होने के बाद भी वे एकदूसरे की सलाह लेने में कोताही नहीं करती थीं.

राधा के 2 बेटे हैं तो सुषमा 3 बच्चों की मां है. कोईर् वक्त था जब पढ़ाई में दोनों के बच्चों में होड़ सी लगी होती. जिन्हें देख कर दोनों परिवारों के दूसरे बच्चे भी इस होड़ में शामिल हो जाते. दोनों सहेलियों ने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के सपने देखे थे. वक्त के साथ सपनों में रंग भरने लगे. वैसे भी टीचर्स के बच्चों की सोच में सिर्फ और सिर्फ कैरियर होता है.

राधा के दोनों बेटों ने इंजीनियरिंग की और बाहर का रुख किया. सुषमा के तीनों बेटे भी मैडिकल की पढ़ाई कर के अमेरिका चले गए. कुछ वर्षों बाद तीनों भाइयों ने मिल कर एक हौस्पिटल का शुभारंभ किया. बेटों की तरक्की से दोनों माएं खुश थीं. यही नहीं, दोनों के परिवारों के बाकी बच्चे भी अच्छी नौकरी ले कर दूसरे शहरों में जा बसे थे. इतने बड़े घर में केवल राधा व राधा के पति कमलेश्वर थे. उधर, सुषमा व उस के पति रमेश रह गए थे. दोनों को रिटायर होने में समय था. सब के दिमाग में यही प्रश्न था, रिटायर हो कर वे कहां, क्या करेंगे?

बच्चों ने नए देश व माहौल में अपने को ढालने में देर न लगाई. दोनों दंपती जानते थे कि अब बच्चे वहीं बसेंगे, कोईर् यहां बसने नहीं आएगा.

राधा के बेटों ने मम्मीपापा को अमेरिका आ कर बसने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने पहले तो इस प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया पर जब बेटों ने बारबार कहा तो कमलेश्वर ने पत्नी से कहा, ‘बच्चों की भावनाओं को मैं समझता हूं, पर यह समझ लो, हम कहीं नहीं जाएंगे. जहां हम रह रहे हैं वही ठिकाना ही हमारा सम्मान है. साधु अपनी कुटिया में रहता है, तो चार लोग उस से मिलने आते हैं. कुटिया छोड़ कर घरघर भीख मांगने जाएगा तो लोग दुत्कार भी सकते हैं.

‘सो, हम अपनी इस कुटिया में ही भले. जिस को मिलना है, यहां आ कर मिल जाए. और फिर हम बूढ़े पेड़ की तरह हैं, एक जगह से उखड़ कर दूसरी जगह की मिट्टी में नहीं जम सकते. चिडि़या अपने बच्चों को उड़ना सिखाती है, सदा उन के साथ नहीं उड़ती. यह देख कर कि उन्होंने उड़ना सीख लिया है, वह उन्हें आजाद छोड़ देती है. हम ने भी बच्चों को अच्छी शिक्षा व संस्कारों के मजबूत पंख दिए हैं. उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं है. हम दोनों ही अपने तरीके से जीने के लिए आजाद हैं.’

बच्चे इस बात को नहीं मानते. उन का कहना था, ‘आप दोनों का शरीर इस उम्र में आने वाली तकलीफोें को कैसे झेलेगा? कोई तो साथ होना चाहिए. यहां हमारे पास होगे तो किसी अनहोनी का डर तो न होगा.’

बच्चों की मजबूरी और कमलेश्वर का स्वाभिमानी तर्क, दोनों अपनी जगह ठीक थे. पतिपत्नी के हठ के आगे बच्चों को घुटने टेकने पड़े.

सुषमा व उस के पति रमेश की सोच इन से अलग है. उन के बच्चों ने दोनों को जब अमेरिका आने का निमंत्रण दिया, तो वे मना न कर सके. ‘राधा, मेरे तीनों बेटों ने एक हौस्पिटल खोला है. बड़े हौस्पिटल के मालिक होने के साथ एक होटल भी खरीदा है. होटल का उद्घाटन हमारे हाथ से कराना चाहते हैं. हम दोनों के न जाने पर बच्चे नाराज हो जाएंगे. सो, हम ने भी सोचा है कि हम सबकुछ बेच कर वहीं बच्चों के पास क्यों न रहें.’

जाने से पहले सुषमा, सहेली से मिलने आईर् थी. बहुत खुश थी. अमेरिका जाने की खुशी से चमकती आंखों में न जाने कितने ही सपने थे.

तंदूरी सोया चाप

सामग्री

– 250 ग्राम सोया चाप

– थोड़ा सा प्याज कटा हुआ

– थोड़ी सी टोमैटो प्यूरी

– थोड़ा सा अदरक व लहसुन का पेस्ट

– थोड़ा सा धनिया पाउडर

– थोड़ा सा जीरा पाउडर

– 1 हरीमिर्च कटी

– 10 ग्राम गाढ़ा दही

– थोड़ा सा गरममसाला

– लगाने के लिए तेल

– थोड़ी सी कसूरी मेथी

– थोड़ा सा लालमिर्च पाउडर

– चुटकीभर औरेंज कलर

– थोड़ा सा दालचीनी पाउडर

– चुटकीभर हलदी

– 15 ग्राम पनीर

– 10 ग्राम चीज

– गार्निशिंग के लिए नीबू के टुकड़े

– नमक स्वादानुसार.

विधि

– चाप को कुछ देर तक पानी में भिगोए रखें.

– फिर उसे पानी में 1/2 छोटा चम्मच नमक डाल कर उबालें. अब ध्यान से स्टिक से चाप को निकाल कर एक तरफ रख दें.

– उस पर दालचीनी पाउडर डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें.

– इस के बाद प्याज, अदरकलहसुन, हरीमिर्च व दही को मिला कर पेस्ट तैयार करें.

– इस में टोमैटो प्यूरी व मसाला डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर के इस तैयार पेस्ट को चाप पर कोट करें. –

– फिर पनीर, चीज और नमक को मिला कर इस से चाप को स्टफ करें और 1 घंटे के लिए मैरिनेट होने के लिए रख दें.

– फिर तंदूर में तब तक पकाएं जब तक दोनों तरफ से सुनहरी न हो जाएं. चटनी व नीबू के टुकड़ों से सजा कर सर्व करें.

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