सीमापार के आतंकियों के साथ स्थानीय युवाओं का घालमेल, विस्फोटकों की भारी खेप का आना और हमारी इंटैलिजैंस एजेंसियों को इस की भनक तक न मिलना देश की सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है. सरकार को अब सोचने की जरूरत है कि हम कहां और क्यों चूक रहे हैं.

14 फरवरी के दिन को दुनिया प्यार के त्योहार के रूप में मनाती है, मगर इसी दिन पुलवामा में पाकिस्तान की सरपरस्ती में फलफूल रहे आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के आतंकी आदिल अहमद डार ने नफरत और हिंसा का जो तांडव किया, उस से पूरा देश आक्रोशित है. देशभर में बदला लो के

स्वर गूंज रहे हैं. पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले में 40 जवान शहीद हो गए. जवानों के शवों को देख कर हर आंख भीग गई. हर जबान से यही निकला कि बस, अब बहुत हुआ. अब इन आतंकियों को छोड़ना नहीं है.

देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शहीद जवानों के ताबूतों को जब कंधा दिया, वह पल पूरे देश को रुला गया. पुलवामा की घटना और इस से पहले हुई दूसरी घटनाएं कई सवालों को जन्म देती हैं. कई राजनेताओं ने पुलवामा की घटना को मोदी सरकार की विफलता करार दिया है तो कई इसे खुफिया विभाग की नाकामी बता रहे हैं.

जम्मूकश्मीर की मुफ्ती सरकार के गिरने के बाद से वहां राष्ट्रपति शासन लागू है, ऐसे में राज्य की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है. देश में इस समय चुनावी माहौल है. हर विपक्षी नेता इस वक्त केंद्र की मोदी सरकार को घेरने में लगा है. ऐसे में इस तरह की घटना ने प्रधानमंत्री की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो सवाल उठा दिया है कि चुनाव से ऐन पहले यह घटना क्यों हुई? ममता का इशारा किस की तरफ है, यह स्पष्ट है.

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