अजीब मुसीबत है भई, जब मैं जगन्नाथ हूं तो विश्वनाथ नाम का चोला क्यों गले में डालूं. थानेदार की समझाइशों का असर मुझ पर होने ही वाला था कि दिमाग की बत्ती जल गई वरना हम तो गए थे काम से.

घर पहुंचा तो माताश्री ने एक कागज मेरी ओर बढ़ाया, ‘‘2 पुलिस वाले आए थे, उन्होंने कहा, जब तुम घर पहुंचो तो तुम्हें यह दिखला दूं.’’

पुलिस की बात सुनते ही मेरे हाथपांव फूल गए. कागज फौरन मैं ने लपक लिया. यह एसडीएम कोर्ट से जारी किसी विश्वनाथ नामक व्यक्ति के लिए समन था. इसे पुलिस वाले बिना पूछताछ किए मेरी माताजी को थमा कर चले गए थे. गांव की निपट मेरी अशिक्षित माताश्री ने बिना सोचेसमझे इसे ले कर ‘आ बैल मुझे मार’ जैसी स्थिति मेरे लिए कर दी थी.

मामला कोर्ट का था. इस आई बला को टालने मैं फौरन थाने जा पहुंचा. पुलिस वालों की गलती बताते हुए समन वापस करना चाहा तो थानेदार ने हवलदार को तलब किया.

‘‘महल्ले वालों ने ही इन के घर का पता बताया था,’’ मुझे टारगेट करते हुए हवलदार ने बयान दिया,  ‘‘घर के बाहर टंगी इन की नेमप्लेट और यहां तक कि घर का नंबर मिलान करने के बाद ही समन तामील किया था.’’

‘‘अब तुम इनकार कर ही नहीं सकते, तुम वे नहीं हो, जिसे समन तामील किया गया है. यह समन तुम्हारा ही है. संभाल कर इसे रखो. बड़े काम की चीज है यह तुम्हारे लिए. कोर्ट में हाजिरी के समय इसे दिखाना पड़ेगा,’’ थानेदार ने मुझे समन का हकदार बता दिया.

बहरहाल, समन तामीली के सिलसिले में हवलदार ने मेरे घर का नंबर और उस के बाहर टंगी नेमप्लेट का हवाला दिया तो आखिर माजरा क्या है, मेरी समझ में आ गया.

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