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मुल्तानी मिट्टी से निखारें रूप

अगर आप भी अपना रंगरूप निखार कर सुंदर व बेदाग चेहरा पाना चाहती हैं तो मुल्‍तानी मिट्टी का फेस पैक लगाएं. ये पिंपल या ब्‍लैकहेड से छुटकारा दिलाने में बेहद कारगर है. इसके अलावा मुल्‍तानी मिट्टी चेहरे से डेड स्‍किन को हटाती है और चेहरे को गोरा बना कर उसमें जान डालती है. आइये जाने मुल्‍तानी मिट्टी के और भी फायदे.

त्‍वचा की रंगत निखारे

अगर चेहरे पर दाग-धब्‍बे और पिंपल आदि हैं तो वह इस पैक को लगाने से कम हो जाते हैं. रोजाना मुल्‍तानी मिट्टी के प्रयोग से पिंपल के दाग पूरी तरह से चले जाते हैं. इसके अलावा ब्‍लैकहेड, वाइट हेड भी साफ हो जाता है.

एक्‍ने और दाग-धब्‍बों से पाएं छुटकारा

कई लड़कियां पिंपल के गहरे दाग धब्बों को स्‍किन पीलिंग और लेजर ट्रीटमेंट करवा कर साफ करवाती हैं, जो कि काफी दर्द भरा होता है. लेकिन जब मुल्‍तानी मिट्टी लगा कर ही आप इन दाग-धब्‍बों से छुटकारा पा सकती हैं तो डाक्‍टर पर इतना पैसा क्‍यूं बरबाद करें. चेहरे की लालिमा और सूजन को आप इसके प्रयोग से दूर कर सकती हैं.

बालों का झड़ना कम करे

स्‍ट्रेस, हार्मोनल समस्‍याएं और डिलेवरी आदि के बाद बाल झड़ने की समस्‍या पैदा हो जाती है. साथ ही अगर शरीर में जिंक, आयरन और प्रोटीन की कमी हो तो भी बाल झड़ते हैं. रोजाना मुल्‍तानी मिट्टी से बाल धोने पर ना सिर्फ बालों का झड़ना कम होता है बल्कि उनमें नई जान भी आती है.

कम या ज्यादा, शराब पीना है जानलेवा

शराब का सेवन सभी तरह से सेहत के लिए हानिकारक होता है. बहुत से लोगों को लगता है कि कम मात्रा में शराब का सेवन करने से सेहत पर बुरा असर नहीं होता है. हाल में हुई एक रिसर्च के मुताबिक कम मात्रा में में शराब का सेवन भी सेहत के लिए काफी हानिकारक होता है.

इस नई स्टडी के मुताबिक कम मात्रा में शराब रीने से आपको हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है. इस स्टडी में करीब 17,000 लोगों को शामिल किया गया. इसने बड़े सैंपल को तीन हिस्सों में बांटा गया. एक श्रेणी में उन लोगों को रखा गया जो लोग बिल्कुल भी शराब नहीं पीते. दूसरे में उन्हें रखा गया जो हफ्ते में 7 से 13 बार शराब पीते हैं और तीसरी श्रेणी में हफ्ते में 14 बार से अधिक शराब पीने वाले लोगों को शामिल किया गया. इसके परिणाम हैरान करने वाले रहे. स्टडी के मुताबिर हफ्ते में 7 से 13 बार शराब पीने वाले लोगों में अधिक तनाव का खतरा 53 प्रतिशत था और उन लोगों का ब्लड प्रेशर 128/79 mm नोट किया गया. वहीं जो लोग हफ्ते में 14 बार से अधिक शराब पीते हैं उनकी स्थिति और अधिक खराब पाई गई. इन लोगों में तनाव का खतरा 69 फीसदी पाया गया और ब्लड प्रेशर 153/82 mm Hg पाया गया.

आपको बता दें कि शराब और हाई ब्लड प्रेशर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. शराब एक हाई एनर्जी ड्रींक है, इसमें कैलोरी काफी अधिक मात्रा में पाई जाती है. इसके अलावा लिवर और दिल पर इसका असर काफी खराब होता है. यही कारण है कि शराब पीने से ब्लड प्रेशर अधिक हो जाता है.

जानिए गर्म पानी पीने के फायदे

अच्छी सेहत के लिए खाने से जयादा जरूरी है पानी. अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो जरूरी है कि दिन में 8 से 10 ग्लास पानी पीया जाए. इस खबर में हम आपको गुनगुने पानी के फायदों के बारे में बताएंगे. तो आइए जाने गुनगुने पानी से होने वाले फायदे.

थम जाती है बढ़ती उम्र

गर्म पानी त्वचा के लिए काफी लाभकारी होता है. चेहरे की झुर्रियों के लिए ये काफी असरदार होता है. गर्मा पानी पीने से त्वचा में कसाव और चमक आ जाता है.

कम होता है वजन

अगर आप अपने बढ़ते हुए वजन से परेशान हैं और अपनी लाख कोशिशों के बाद भी इसे कम नहीं कर पा रही तो गर्म पानी में शहद और नींबू मिलाकर लगातार तीन महीने तक पिएं. कुछ ही दिनों में आपक फर्क महसूस होगा.

अच्छा रहता है पाचन

पाचन क्रिया के लिए गर्म पानी काफी अच्छा होता है. पाचन और गैस की परेशानियों में गर्म पानी काफी राहत देता है. खाने के कुछ देर बाद गर्म पानी पीने से हमारा खाना जल्दी पचता है और रेट हल्का रहता है.

जोड़ों के दर्द में भी देता है राहत

जोड़ों के दर्द में भी गर्म पानी का सेवन लाभप्रद होता है. हमारी मांसपेशियों का करीब 80 फीसदी हिस्सा पानी से बना होता है. ऐसे में गर्म पानी का सेवन मांसपेशियों के ऐंठन को दूर करने में काफी लाभकारी होता है.

डिटौक्स होती है बौडी

गर्म पानी पीने से बौडी डिटौक्स होती है. शरीर की बहुत सी अशुद्धियां बाहर होती हैं. गर्म पानी से शरीर का तापमाना बढ़ जाता है और जिससे पसीना आता है और इसके माध्यम से शरीर की सारी अशुद्धियां बाहर निकल आती हैं.

बालों के लिए भी है अच्छा

गर्म पानी पीना बालों के लिए काफी अच्छा होता है. इससे बाल चमकदार बनते हैं और इनकी ग्रोथ के लिए भी पानी काफी लाभकारी होता है.

इन तरीकों से रखें फूड फ्रैश

बचपन में आप ने अपनी मां, पिता या दादाजी को फल और सब्जियां खरीदते हुए देखा होगा. वे फलों और सब्जियों को छू कर, उलट पलट कर देखते ताकि उन में ताजगी भरी कोमलता का पता चले. कई अन्य प्रयासों से भी यह जानने की कोशिश करते कि ये फ्रैश हैं या नहीं.

यह जान लें कि बेहतरीन सामग्रियां चुनने के साथ साथ उन्हें सही व सुरक्षित रखना भी बेहद जरूरी है ताकि उन का कुदरती तेल, खुशबू और असली स्वाद बरकरार रहे. किसी सामग्री की नमी पर यह निर्भर करता है कि कितने लंबे समय तक उस के सभी गुण कायम रहेंगे. सामग्रियां सुरक्षित रहें तो न केवल उन की गुणवत्ता बनी रहेगी, बल्कि खाने की बरबादी भी कम होगी.

आप इनसुझावों पर ध्यान दें ताकि आप के लिए ताजा चीजें चुनना, उन्हें सुरक्षित रखना और उन्हें लंबे समय तक उपयोगी बनाए रखना आसान हो:

कैसे चुनें ताजा फल और सब्जियां

फलों और सब्जियों की ऊपरी परत आमतौर पर कोमल और एक समान होती है. यदि यह परत धसी हुई और पिचकी महसूस हो तो समझ लें कि फल का गूदा क्षतिग्रस्त हो गया है. साइट्रस फल जो काफी कसे होते हैं अंदर शुष्क हो सकते हैं. रसीले फलों के सही होने का अनुमान उन के वजन और भारीपन से भी लगा सकते हैं. ताजा उत्पादों में हलकी महक होती है. इन में दाग और धब्बे नहीं होते हैं. आलू, लहसुन, और प्याज का कसा हुआ और ठोस होना भी जरूरी है. पत्तीदार सब्जियों के मामले में इन का हरा, कोमल होना और टूटा नहीं होना आवश्यक है.

ज्यादा नमी वाली सामग्रियां कैसे सुरक्षित रखें

हम आमतौर पर एक सप्ताह या फिर 15 दिनों के लिए भी ताजा चीजें जमा कर लेते हैं. अपने रैफ्रिजरेटर के सब्जियों वाले बास्केट में तरहतरह की सब्जियां और फल रख देते है. आप को यह ध्यान रखना चाहिए कि फल और सब्जियां भी एक नियमितता के साथ सांस लेती हैं और जिस तापमान एवं परिस्थिति में उन्हें रखा जाता है उन का फलों और सब्जियों के उपयोगी रहने की अवधि और गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ता है.

सूखी सामग्रियों को ऐसे सुरक्षित रखें

सूखी सामग्रियों की बात हो तो हमारा ध्यान मसालों पर जाता है. साथ ही कई हर्ब्स, दालें और अनाज भी हैं. इन सब में नमी कम होती है और इन में हवा या नमी लग जाए तो खराब होने का खतरा रहता है. इसलिए इन्हें एयरटाइट कंटेनर में रखना जरूरी है. खास कर मसालों को दोहरे ढक्कन (डुअल लिड) वाले कंटेनर में रखना चाहिए ताकि आप केवल जरूरत के हिसाब से सही मात्रा में इन्हें निकाल लें.

दालों और अनाजों के कंटेनर के लिए एयरटाइट होने के साथ यह भी जरूरी है कि रखने की जगह सही हो, क्योंकि लंबे समय तक नमी के बीच रहने से इन की गुणवत्ता में भी गिरावट आ जाती है.

कैसे ज्यादा दिनों तक उपयोगी बनाए रखें

टमाटर, अंडा, मटर आदि ज्यादा समय नहीं टिकते. लेकिन यदि आप उन्हें सही से फ्रीज करें और फ्रीजर सेफ कंटेनर में रखें तो ज्यादा समय तक उपयोगी रहेंगे. मटर जो एक सीजनल सब्जी है उस के दानों को हलका उबाल कर और फ्रीज कर आप 3 से 4 महीनों तक बखूबी रख सकते हैं.

ज्यादा खरीदना और जमा करना सही नहीं

हालांकि ऊपर दिए गए सुझावों से आप खाद्य सामग्रियों को लंबे समय तक सुरक्षित रख लेंगे पर एक निर्धारित समय सीमा के अंदर आवश्यक खपत का ध्यान रख कर खरीदारी की योजना बनाएं. मांस, डेयरी उत्पाद, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि ज्यादा खरीद कर न रखें. हमेशा ध्यान रखें कि जो खाना ताजा सामग्रियों से बनेगा उस का स्वाद और गुणवत्ता लाजवाब होगी.

-मास्टर शैफ कुणाल कपूर के सुझावों पर आधारित लेख 

ऐसे बनाएं जायकेदार चटनी

अगर आप चटनी बनाने जा रही हैं तो करें कुछ ऐसा कि स्वाद भी मजेदार हो और तारीफें भी ढेरों मिलें…

अगर आप चटनी बनाने जा रही हैं, तो क्या आप को मालूम है कि किस चटनी में क्या डालना है ताकि चटनी का स्वाद दोगुना हो जाए? अगर नहीं तो हम आप को बता रहे हैं:

– अगर आप धनियापत्ती की चटनी बना रही हैं तो उस में दही या नीबू का रस और मूंगफली के दाने       अथवा काजू का पेस्ट जरूर डालें. इस से चटनी ज्यादा स्वादिष्ठ बनेगी.

– अगर पुदीनापत्ती की चटनी बना रही हैं, तो उस में अमचूर पाउडर या गुड़ जरूर डालें. इस से चटनी का      स्वाद कई गुना बढ़ जाएगा.

– अगर टमाटर की चटनी बना रही हैं, तो उस में लहसुन की कलियां जरूर डालें. इस से स्वाद बेहतरीन   आएगा.

– प्याज की चटनी बना रही हैं, तो थोड़ी हरे प्याज की पत्तियां भी डालें. स्वाद बढ़ जाएगा.

– फ्रैश नारियल की चटनी बनाते समय उस में भुनी चने की दाल, मूंगफली और करीपत्ता डालें. लहसुन   भी  डालें. अलग ही स्वाद आएगा.

– अगर सूखी चटनी बना रही हैं तो सूखा नारियल कद्दूकस किया, मूंगफली के दाने, जीरा पाउडर, लहसुन,    नमक, लालमिर्च साबूत अवश्य डालें. इस से बहुत बढि़या स्वाद आता है.

– दही की चटनी बना रही हैं, तो मूंगफली का चूरा, कालीमिर्च, नमक व चाटमसाला डालें. गजब का स्वाद   आएगा.

प्रश्नों के घेरे में : बेहोशी की हालत में भी निधि के होंठों पर सीमा का नाम क्यों था

लेखक- पुष्पा भाटिया

अरु भाभी और शशांक भैया के चेहरे के उठतेगिरते भावों को पढ़तेपढ़ते मैं सोच रही थी कि बंद मुट्ठी में रेत की तरह जब सबकुछ फिसल जाता है तब क्यों इनसान चेतता है? बरसों पहले मैं ने इन से कहा भी था, ‘बच्चे तो नए कोमल पौधे की तरह होते हैं. जैसे खाद मिली वैसे बनसंवर गए. यदि आप का संतुलित व्यवहार यानी…’

बीच में ही बात काटते हुए शशांक बोल पडे़ थे, ‘नहीं डाक्टर अवस्थी, ऐसा नहीं कि हम लोग निधि को प्यार नहीं करते या हमेशा उसे मारतेपीटते ही रहते हैं. समस्या तो यह है कि निधि बहुत गंदी बातें सीख रही है.’

नन्ही निधि का छोटा सा बचपन मेरी आंखों के सामने कौंध उठा. घटनाएं चलचित्र की तरह आंखों के परदे पर आजा रही थीं.

उस दिन तेज बरसात हो रही थी. ओले भी गिर रहे थे. पड़ोस के मकान से जोरजोर से आती आवाजें सुन कर मेरा दिल दहल उठा. शशांक कह रहे थे, ‘बदमिजाज लड़की, साफसाफ बता, क्या चाहती है तू? क्या इस नन्ही सी जान की जान लेना चाहती है. छोटी बहन आई है यह नहीं कि खुद को सीनियर समझ कर उस की देखभाल करे. हर समय मारपीट पर ही उतारू रहती है.’

कमरे में गूंजती बेरहम आवाजें बाहर तक सुनाई पड़ रही थीं. निधि की कराह के साथ पूरे वेग से फूटती रुलाई को साफसाफ सुना जा सकता था.

‘पापा प्लीज, मुझे मत मारो. ऐसा मैं ने किया क्या है?’

‘पूरा का पूरा रोटी का टुकड़ा सीमा के मुंह में ठूंस दिया और पूछती है किया क्या है? देखा नहीं कैसे आंखें फट गई थीं उस बेचारी की?’

‘पापा, मैं ने सोचा सब ने नाश्ता कर लिया है. गुड्डी भूखी होगी,’ रोंआसी आवाज में अंदर की ताकत बटोरते हुए निधि ने सफाई सी दी.

‘एक माह की बच्ची रोटी खाएगी, अरी, अक्ल की दुश्मन, वह तो सिर्फ मां का दूध पीती है,’ आंखें तरेरते हुए शशांक बिफर उठे और एक थप्पड़ निधि के गाल पर जड़ दिया.

उस घर में जब से सीमा का जन्म हुआ था. ऐसा अकसर होने लगा था और वह बेचारी पिट जाती थी.

निधि का आर्तनाद सुन कर मैं सोचती कि ये कैसे मांबाप हैं जो इतना भी नहीं समझ पाते कि ऐसा क्रूर और कठोर व्यवहार बच्चे की कोमल भावनाओं को समाप्त करता चला जाएगा.

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निधि बचपन से ही मेरे घर आया करती थी. जिस दिन अरु अस्पताल से सीमा को ले कर घर आई, वह बेहद खुश थी. दादी की मदद ले कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस ने पूरे कमरे में रंगबिरंगे खिलौने सजा दिए.

सीमा का नामकरण संस्कार संपन्न हुआ. मेहमान अपनेअपने घर चले गए थे. परिवार के लोग बैठक में जमा हो कर गपशप में मशगूल थे. निधि भी सब के बीच बैठी हुई थी. अचानक अपनी गोलगोल आंखें मटका कर बालसुलभ उत्सुकता से उस ने मां की तरफ देख कर पूछ लिया, ‘मां, मेरा भी नामकरण ऐसे ही हुआ था?’

‘ऊं हूं,’ चिढ़ाने के लिए उस ने कहा, ‘तुम्हें तो मैं फुटपाथ से उठा कर लाई थी.’

निधि को विश्वास नहीं हुआ तो दोबारा प्रश्न किया, ‘सच, मम्मी?’

अरु ने निधि की बात को सुनी- अनसुनी कर सीमा के नैपीज और फीडर उठाए और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन 10 बजे तक जब निधि सो कर नहीं उठी, तब अरु का ध्यान बेटी की तरफ गया. उस ने जा कर देखा तो पता चला कि तेज बुखार से निधि का पूरा शरीर तप रहा था. आंखों के डोरे लाल थे. कपोलों पर सूखे आंसुओं की परत जमा थी. अरु ने पुचकार कर पूछा, ‘तबीयत खराब है या किसी ने कुछ कहा है?’

निधि ने मां की किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया.

निधि का बुखार तो ठीक हो गया पर अब वह हर समय गुमसुम सी बैठी रहती थी. घर में वह न तो किसी से कुछ कहती, न ज्यादा बात ही करती थी. अपने कमरे में पड़ीपड़ी घंटों किताब के पन्ने पलटती रहती. घर के सभी सदस्य यही समझते कि निधि पहले से ज्यादा मन लगा कर पढ़ने लगी है.

एक दिन सीमा को तेज बुखार चढ़ गया. दादी और शशांक दोनों घर पर नहीं थे. अरु समझ नहीं पा रही थी कि सीमा को ले कर कैसे डाक्टर के पास जाए. तभी निधि स्कूल से आ गई. उसे भी हरारत के साथ खांसीजुकाम था. अरु सीमा को निधि के हवाले कर डाक्टर के पास दवाई लेने चली गई. वापस लौटी तो सीमा के लिए ढेर सारी दवाइयां और टानिक थे पर उस में निधि के लिए कोई दवा नहीं थी.

शाम को शशांक और दादी लौट आए. कोई सीमा की पेशानी पर हाथ रखता, कोई गोदी में ले कर पुचकारता. मां पानी की पट्टियां सीमा के माथे पर रखती जा रही थीं पर किसी ने निधि की ओर ध्यान नहीं दिया.

शाम को सीमा थोड़ी ठीक हुई तो अरु उसे गोद में ले कर बालकनी में आ गई. मैं भी कुछ पड़ोसिनों के साथ अपनी बालकनी में बैठी थी. अचानक निधि ने एक छोटा सा पत्थर उठा कर नीचे फेंक दिया तो प्रतिक्रिया में अरु जोर से चिल्लाई, ‘निधि, चल इधर, वहां क्या देख रही है? छत से पत्थर क्यों फेंका?’

अरु की तेज आवाज सुन कर मेरे साथ बैठी एक पड़ोसिन ने कहा, ‘रहने दीजिए भाभीजी, बच्चा है.’

‘ऐसे ही तो बच्चे बिगड़ते हैं. यदि अभी से नहीं रोका तो सिर पर चढ़ कर बोलेगी,’ अरु की आवाज में चिड़- चिड़ापन साफ झलक रहा था.

मैं निधि के बारे में सोचने लगी थी कि उसे भी तो सीमा की तरह बुखार था. उस का भी तो मन कर रहा होगा कोई उसे पुचकारे, उस की तबीयत के बारे में पूछे. क्योंकि सीमा के जन्म से पहले उस के शरीर पर लगी छोटी सी खरोंच भी पूरे परिवार को चिंता में डाल देती थी. लेकिन इस समय सभी सीमा की तबीयत को ले कर चिंतित थे और निधि को अपने घर वालों की उपेक्षा बरदाश्त नहीं हो पा रही थी.

मैं ने घर का दरवाजा खोल कर चाय का पानी चूल्हे पर रखा ही था कि कालबेल बज उठी.

‘कौन?’ मैं ने पूछा.

‘आंटी, मैं निधि.’

मैं ने दरवाजा खोल दिया. फिर निधि के चेहरे को ध्यान से देखने लगी. उस की सूनी बेजान आंखों को देख कर मैं ने प्यार से पुचकारा और उस के सिर पर हाथ फे रते हुए उसे गोद में उठा लिया. फिर उस के गालों को चूमती हुई बोली, ‘तू क्यों अपनी मम्मीपापा को नाराज करती है?’

‘नहीं तो,’ सहमी सिकुड़ी सी निधि मेरी आंखों में देखते हुए बोली तो मैं ने उसे जमीन पर उतारते हुए कहा, ‘निधि बेटा, सीमा तुम्हारी छोटी बहन है और छोटों को हमेशा प्यार करते हैं.’

‘उस की चिंता मत कीजिए, वह बहुत अक्लमंद और सुंदर है, आंटी,’ और उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

वातावरण को सहज बनाने के लिए मैं ने आवाज में कोमलता भरते हुए पूछा, ‘यह तुम से किस ने कहा?’

‘मां और पापा दोनों कहते हैं.’

‘गलत कहते हैं,’ मैं ने उस के कान के पास धीरे से कहा तो उस का चेहरा खिल उठा और वह घर में उछलकूद करने लगी.

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10वीं की परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ तो सीमा अपने स्कूल में ही नहीं, पूरे प्रांत में प्रथम आई थी. अरु और शशांक को मैं बधाई देने पहुंची तो देखा, निधि कोने में गुमसुम बैठी है. उस ने 12वीं में 90 प्रतिशत अंक हासिल किए थे पर सीमा की तरह प्रांत में प्रथम नहीं आई थी.

मैं धीरे से उस के पास सरक गई, ‘निधि, तुम तो बहुत बुद्धिमान निकलीं. 90 प्रतिशत अंक हासिल करना कोई आसान बात नहीं है.’

एक तरल मुसकान होंठों पर ला कर निधि बोली, ‘वह तो ठीक है आंटी, पर मैं सीमा की बराबरी तो नहीं कर सकती न?’

मैं सोच रही थी कि काश, इस के मातापिता धन से न सही जबान से ही बेटी की तारीफ कर देते तो इस मासूम का भी दिल रह जाता, उन्हें सोचना चाहिए कि जब अपने हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं हैं तो बच्चे कैसे बराबर हो सकते हैं. हर बच्चे का अपना आई क्यू होता है.

शिक्षक दिवस पर स्कूल में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. जीतने वाले को नकद पुरस्कार के साथ ट्राफी भी मिलने वाली थी. निधि ने सारी निबंध की पुस्तकें छिपा लीं कि उस का लाभ सीमा को न मिल सके. उस  समय शशांक ने सीमा को दुविधा से उबार लिया और लाइब्रेरी से ढेरों किताबें ले आए.

कुशाग्रता, नम्रता और पिता के मार्गदर्शन में सीमा ने प्रतियोगिता जीत ली. शशांक एक बार फिर बधाई के पात्र बने और निधि को मिली उदासीनता.

उस दिन निधि का उतरा चेहरा देख कर सीमा बोली, ‘दीदी, इस बार इनाम पर मुझ से ज्यादा आप का अधिकार है.’

‘क्यों?’

‘इसलिए कि बचपन से ले कर अब तक मैं ने आप की किताबों को ही पढ़ा है. आप के नोट्स और गाइड्स का इस्तेमाल किया है. मैं तो आप की आभारी हूं,’ सीमा ने विनम्रता से कहा

क्रोध के आवेग में निधि की कनपटियां बजने लगीं. निधि को लगा सीमा ताना मार रही है. बहन के हाथ से ट्राफी छीन कर जैसे ही निधि ने जमीन पर फेंकनी चाही, ट्राफी सीमा के सिर पर लग गई. रक्त की धारा फूट पड़ी. बदहवास मां दौड़ती हुई आईं और रक्त का प्रवाह रोकने के लिए पट्टी बांध दी.

कुछ समय बाद सीमा तो स्वस्थ हो गई पर अरु सहज नहीं हो पाई थीं. निधि का यह रूप उन के लिए सर्वथा नया था. बेटी के स्वभाव ने उन्हें चिंता में डाल दिया था.

अरु इस समस्या को ले कर दुविधा में पड़ गई थीं. मैं ने उन्हें समझाया, ‘2 बच्चों में बराबरी कैसी? हर बच्चे का अपना स्वभाव होता है और फिर यह कहां का न्याय है कि दूसरे बच्चे के आते ही पहले का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाए? ऐसे में पहला बच्चा आक्रामक हो जाए तो उसे दोष मत दीजिए.’

धीरेधीरे अरु के स्वभाव में परिवर्तन आया. निधि के पास अब वह घंटों बैठी रहती थीं और जानने का भरसक प्रयत्न करतीं कि बेटी किन तर्कहीन सवालों में उलझी हुई है पर समस्याओं के तानोंबानों में उलझी निधि का व्यवहार जरा भी न बदलता था.

निधि के लिए अच्छेअच्छे समृद्ध परिवारों से कई रिश्ते आए पर वह हर बार चुप्पी साधे रही. उस के ही दायरे में बंधे, उस की छोटीछोटी गतिविधियों को देखतेदेखते अरु इतना तो जान ही गई थीं कि बेटी किसी को पसंद करने लगी है और फिर एक दिन जिद कर के जब राहुल को निधि अपने घर बुला कर लाई तो शक सच में बदल गया.

राहुल अच्छे खातेपीते घर का लड़का था पर पढ़ाई को ले कर घर के लोगों का मन नहीं मान रहा था. अरु ने कहा भी कि एम.ए. पास और कंप्यूटर डिग्रीधारी युवक को कोई विशेष योग्यता वाला नहीं माना जा सकता है. क्या कमाएगा क्या खिलाएगा. पर निधि अपनी ही जिद पर अड़ी रही.

अनुशासनप्रिय पिता के सामने बेटी का ऐसा विरोधी रूप सर्वथा नया था. कई दिन ऊहापोह में कटे. अरु व शशांक दोनों समझ रहे थे कि बेटी तर्कहीन बियाबान में खोई हुई है. उलझनों को शायद तौलना ही नहीं चाहती. तब सीमा ने मां को समझाया, ‘दीदी जहां जाना चाहती हैं उन्हें जाने दो, मां. उन की खुशी में ही हमारी खुशी है.’

लेकिन अरु को लगा निधि रेत में महल खड़ा करना चाह रही है. मां को तो हर पहलू से सोचना पड़ता है फिर चाहे अपनी बेटी के बारे में ऐसीवैसी ही बात क्यों न हो.

अपनी सामर्थ्य से बढ़ कर दहेज और ढेर सारी नसीहतों की पोटली बांध कर बिटिया को मां ने विदा किया तो दुख भी हुआ और आश्चर्य भी. कितना अंतर है दोनों बहनों में, एक जिद्दी तो दूसरी सरल और सौम्य.

अब निधि हर दूसरे दिन मायके आ धमकती. राहुल के पास कोई काम तो था नहीं. अत: वह भी निधि के साथ बना रहता था. हर समय की आवाजाही को देख एक दिन अरु ने निधि को टटोला तो वह ज्वालामुखी के लावे सा फट पड़ी थी.

‘मां, मेरी देवरानियां अमीर घरानों से आई हैं, मायके से उन्हें हर बार अच्छाखासा सामान मिलता है और एक आप लोग हैं कि एक बार दहेज दे कर छुट्टी पा ली. जैसे बेटी से कोई रिश्ता ही न हो. तानेउलाहने तो मुझे सहने पड़ते हैं न?’

अरु के चेहरे पर बेचारगी के भाव तिर आए. मां थीं, दुख तो होना ही था. निधि की बातें सुन कर बुरा तो मुझे भी बहुत लग रहा था पर क्या किया जा सकता था. बचपन की तृष्णा ने उस को बागी बना दिया था. छीन कर हर चीज हासिल करना उस का स्वभाव बन चुका था. काश, शशांक दंपती ने समझा होता कि बचपन ही जीवन का ऐसा स्वर्णिम अध्याय है जब उस के व्यक्तित्व की बुलंद इमारत का निर्माण होता है लेकिन यदि बच्चे को अंकुश के कड़े चाबुक से साध दिया जाए तो उस के अंदर कुंठा, घृणा, ईर्ष्या और लालच जैसी भावनाएं तो जन्म लेंगी ही.

जीवन मंथर गति से चल रहा था. सीमा ने एम.बी.ए. कर लिया. अपनी योग्यता के आधार पर उसे बैंक में नौकरी मिल गई. सीमा ने अपनी पहली तनख्वाह से परिवार के हर सदस्य को उपहार दिए. उस में सब से महंगा उपहार हीरों का लाकेट निधि के लिए खरीदा था.

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निधि नानुकुर करती रही. अब भी बहन के अपनापन को उस का एहसान समझ रही थी. पर सीमा दृढ़संकल्प थी. किसी भी तरह  से वह निधि के दिमाग से यह गलतफहमी निकालना चाह रही थी कि घर के सदस्य उसे प्यार नहीं करते.

निधि अब नन्हे अभिनव की मां बन गई थी. राहुल के पास अब भी नौकरी नहीं थी. उधर रिटायर ससुर को बेटेबहू और पोते का खर्च बोझ सा लगने लगा तो गृहकलह बढ़ गया. आएदिन की चिखचिख से निधि की तबीयत गिरने लगी. डाक्टरों से परामर्श किया गया तो हाई ब्लड प्रेशर निकला. ससुर ने पूरी तरह से हाथ खींचा तो रोटी के भी लाले पड़ने लगे.

शशांक ने सुना तो माथा पीट कर कहने लगे कि कितना समझाया था. कमाऊ लड़के से ब्याह करो पर नहीं. अब भुगतो.

निधि उन लोगों में से नहीं थी जो दूसरों की बात चुपचाप सुन लेते हैं. तड़ातड़ जवाब देती चली गई.

‘दुखी क्यों हो रहे हैं आप लोग? आप की कोखजाई बेटी तो सुखी है न? मुझे तो फुटपाथ से उठा कर लाए थे न? नसीब ने फुटपाथ पर ला कर पटक भी दिया.’

सीमा बारबार बहन का पक्ष लेती. उसे शांत करने का प्रयास भी करती पर निधि चुप क्यों होती और जब उस का क्रोध शांत हुआ तो वह जोरजोर से रोने लगी.

सीमा से बहन की ऐसी दशा देखी नहीं जा रही थी. दौड़ भाग कर के उस ने गारंटी दी और बैंक से लोन ले कर राहुल को साइबर कैफे खुलवा दिया. फिर निधि से विनम्र स्वर में बोली, ‘जिंदगी की राहें इतनी कठिन नहीं जो कोई रास्ता ही न सुझा सके. अपना रास्ता खुद ढूंढ़ने का प्रयास कीजिए, दीदी. आप ने एम.ए. किया है और कुछ नहीं तो ट्यूशन कर के आप भी कुछ कमा सकती हैं.’

सीमा का ब्याह हो गया. दिव्यांश बैंक में मैनेजर था. सुखद गृहस्थी और 2 बेटों के साथ सुखसुविधा के सभी साधन दिए थे उसे दिव्यांश ने. जिंदगी से उसे कोई शिकायत नहीं थी.

उधर मानसिक तनाव के चलते निधि के दोनों गुर्दों ने लगभग काम करना बंद कर दिया था. जिंदगी डायलिसिस के सहारे चलने लगी तो डाक्टर गुर्दा प्रत्यारोपण करवाने पर जोर देने लगे.

निधि की जान को खतरा था, यह जान कर सीमा ने कहा कि परिवार में इतने लोग हैं कोई भी दीदी को अपना एक गुर्दा दे कर उन्हें नया जीवन दे सकता है.

सभी सदस्यों के टेस्ट हुए पर सीमा के ही टिशू मैच कर पाए. वो सहर्ष गुर्दा देने के लिए तैयार हो गई. यद्यपि घर के ही कुछ सदस्य इस का विरोध कर रहे थे पर सीमा अपने फैसले पर अडिग रही.

अस्पताल के पलंग पर लेटी अपनी दोनों बेटियों को देख अरु का मन रो उठा था. बारबार निधि के शब्द कानों से टकरा रहे थे. वे शब्द चाहे पीड़ा दें या विस्मित कर दें, सहने तो थे ही.

मेरी निगाहें बरबस ही बाहर का दृश्य देखने लगीं. पश्चात्ताप की आग में जलती अरु और शशांक आई.सी.यू. के बाहर कई बार चक्कर काट चुके थे. बारबार अरु रोते हुए कहती, ‘कैसी ग्रंथि पाल ली इस लड़की ने. कितनी बीमारियां घर कर गईं इस के शरीर में?’

उधर, अपनी ही सोच में डूबतीउतराती मैं सोच रही थी कि बरसों पुरानी कड़वाहटें अब भी निधि के मन से धुल जाएं तो रिश्ते सहज हो उठेंगे.

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होश में आने पर बड़ी कठिनाई से निधि ने पलकें उठाईं तो उन बेजान आंखों में मुझे मोह और मिठास की एक झलक दिखाई दी. घर के सब लोगों को अपने और सीमा के प्रति चिंतित देख कर उसे पहली बार महसूस हुआ कि भावनाओं, प्यार और अनुराग की कोई सीमा नहीं होती. अरु ने सांत्वना के लिए सिर हिलाया तो रोती निधि, मां के सीने से जा लगी.

‘मां, मुझे सीमा से मिलना है.’

एक माह बाद सीमा और निधि जाड़े की गुनगुनी धूप का आनंद ले रही थीं. सभी के चेहरे पर खुशी के भाव देख मुझे ऐसा लगा कि टूटते तार अब जुड़ गए हैं. हंसी की एक किरण बस, फूटने ही वाली है.

धर्म होते ही हिंसात्मक हैं

धार्मिक हिंसा जोरू और जमीन के लिए की गई हिंसा से कई गुना अधिक होती है. हम जिस सर्वधर्म समभाव या धार्मिक सहिष्णुता की बात करते हैं, वह मिथ्या के अलावा कुछ नहीं. प्रस्तुत है, मोहन वर्मा की विवेचना.

प्रागैतिहासिक मनुष्य ने अस्तित्व के लिए संघर्ष का एक लंबे समय तक सामना बर्बरतापूर्वक लड़ कर अपना बचाव कर किया. उस के  लिए हर तरह के शत्रु को समाप्त करना जरूरी था, वरना शत्रु उसे समाप्त कर देता.

संगठन की ताकत का आभास होने के बाद लोग समूहों, गिरोहों, कबीलों में बंटने लगे. सामूहिक हिंसा शुरू हुई. यह भोजन एवं सुरक्षित घर पाने के लिए तिहरी लड़ाई का हिस्सा थी-प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध, वन्य जंतुओं के विरुद्ध और दूसरे व्यक्ति समूहों के विरुद्ध.

खेतीबाड़ी और पशुपालन की शुरुआत के बाद, संघर्षों के कारणों में जीने के लिए भोजन व रहने की जगह के अलावा नई चीजें भी जुड़ती गईं जिन में खेती के लायक जमीनों पर कब्जा, दूसरे समूहों के व्यक्तियों को गुलाम बनाने के लिए बंदी बनाना और शारीरिक शोषण के लिए औरतों को हथियाना, कुछ खास वजहें थीं. दूसरों की पैदा की या पाई चीजों पर कब्जा कर खुद उन का आनंद लेना भी उन्हीं में से था.

आंधीतूफान, बाढ़, सूखा और दावानल की भीषण मार झेलते मनुष्य को जल, वायु और अग्नि रक्षक की तरह दिखने लगे. विनाशकारी ताकत रखने वाले तत्त्वों के प्रति भय और बेबसी ने रक्षक तत्त्वों को वश में करने की कामना ने पूजापाठ के विधानों को बल दिया. चतुर लोगों ने इस भय का लाभ उठा कर बड़े अनिष्टों को टालने के लिए कर्मकांड शुरू किए. कर्मकांडों की सघनता बढ़ने के साथ ईश्वरीय अवधारणाएं भी नएनए रूपों में विस्तार पाती गईं.

फ्रांसीसी विचारक दुर्खीम ने आस्ट्रेलियाई जनजातियों के अध्ययनों में पाया कि हर कबीले, गोत्र का अपना ‘टोटम’ होता है, जो कोई भी पशु या पौधा हो सकता है, जिसे पवित्र संरक्षक माना जाता है. जिसे नष्ट करना अपराध है.

बर्बर घुमक्कड़ समूहों के बाद जैसे ही स्थायी निवास की आदत बननी शुरू हुई, वैसे ही कबीले को गोत्र या टोटम या देवता को धर्म की प्रारंभिक अवधारणाआें के आधार पर संगठित रखना आसान होता गया. दूसरी तरफ शत्रु का मनोबल गिराने के लिए उस के पवित्र प्रतीकों को नष्ट करना कारगर उपाय दिखने लगा. इसी कारण लड़ाइयां हुईं और ज्यादातर के पीछे वे चतुर लोग रहे जो धार्मिक हिंसा को प्रोत्साहन देते थे.

यह आज भी अनवरत चालू है. धार्मिक हिंसा जर और जमीन के लिए की गई हिंसा से मात्रा में कई गुनी अधिक रही है. हम जिस सर्वधर्म समभाव या धार्मिक सहिष्णुता की बात करते हैं, वह मिथ्या आधारों पर कल्पित दिवास्वप्न के सिवा और कुछ नहीं है. किन्हीं भी 2 धर्मों के प्रबल अलगाववादी तत्त्व लोगों को एकदूसरे के साथ रहने नहीं देना चाहते, सभी धर्मों के लिए सहअस्तित्व की बात बहुत दूर की चीज है. यह तो धर्म का विनाश कर देगी. सामाजिक संगठन में धर्म की जो भूमिका है, उस की बुनियाद में ही अन्य धर्मों के प्रति एक हिंसक अविश्वास होता है. दूसरे सांस्कृतिक व राजनीतिक कारणों से तो धार्मिक सहअस्तित्व की स्थितियां बनती हैं लेकिन फिर भी धर्म की अनूठी अलगाववादी मानसिक धारा अवचेतन में अपना काम करती रहे यह ध्यान रखा जाता है ताकि मौका मिलते ही नासूर की तरह फूट कर हिंसा के तेजाब से समाज को सराबोर कर सके.

गुजरात में जिस तरह संभ्रांत, सुशिक्षित वर्ग के लोगों ने लूटपाट और अन्य नृशंसतापूर्ण काररवाइयों को अंजाम दिया, वह किसी का व्यक्तिगत सनकीपन या मनोविकार नहीं था, बल्कि इस हिंसक मनोवृत्ति के लिए जरूरी पोषक तत्त्व तो धार्मिक संस्कार ही मुहैया कराते हैं, जिन से व्यक्ति को बांधने की तैयारी उस के जन्म लेने से पहले ही अलगअलग कर्मकांडों के जरिए शुरू कर दी जाती है.

मुंबई में राज ठाकरे के विरोध में छठ पूजा ज्यादा केंद्र में है, नौकरियां नहीं. एक ही धर्म के 2 हिस्सों में हिंसा का यह पहला और अकेला उदाहरण नहीं है. इतिहास अपनों से भी धार्मिक हिंसा के उदाहरणों से भरा है.

खून से सराबोर हैं सदियां

धर्म पे्ररित हिंसा के मामले में सब बराबर हैं. इस बारे में दुनिया भर के सभी मानव समूहों में एक आम सहमति बनी हुई है. हर जगह करिश्माई धार्मिक नेता धार्मिक विशेषता के प्रति गर्व और अन्य समुदायों के प्रति प्रतिक्रियावादी अविश्वास के बीज अपने लाखों अनुयायियों के मन में बो रहे हैं और दंगेफसाद, मारकाट, बर्बर आतंकवादी काररवाइयों, तोड़फोड़ और लूटपाट की फसलें काटी जा रही हैं.

जोनाथन फौक्स ने 1950 से 1996 तक के धार्मिक संघर्षों के अपने अध्ययन में कहा है कि इस लगभग आधी सदी में 33 से 47 प्रतिशत लड़ाइयां धर्म के नाम पर हुईं. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद गैर धार्मिक हिंसा का ग्राफ गिरा है और धार्मिक हिंसा की घटनाआें में काफी तेजी आई है. जहां हिंसा के प्रमुख स्रोत के रूप में धर्म कार्यरत है, वहीं यह हिंसा के अन्य आर्थिक, आदर्शवादी, आतंकवादी और परंपरागत कारणों से इस तरह गुंथा हुआ है कि इसे अलग कर के देख पाना मुश्किल है.

पवित्र आतंक और ईश्वर के नाम पर हत्याएं, आज हिंसक झगड़ों के प्रमुख तत्त्व हैं. चेचेन्या से अफगानिस्तान तक पनपा हुआ इसलामी अतिवाद और सऊदी अरब तथा इंडोनेशिया के साथ पश्चिमी देशों, जिस में स्पेन व अमेरिका भी शामिल हैं, में आतंकी हमले इस के साक्ष्य हैं. हिंदुआें में जातिगत संघर्ष भी धार्मिक संघर्ष का ही एक रूप है.

ध्यान रहे, राजनीतिक और आर्थिक मामलों में भी धर्म को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा कोई धर्म या संप्रदाय नहीं है, जिस को सदा ही उग्र विचारधारा के हिंसक लोगों ने हाईजैक न कर रखा हो. धर्म की सफलता का कारण उस धार्मिक असहिष्णुता में छिपा हुआ है, जो सदियों से लड़ाई का सब से बड़ा कारण और औजार रहा है. बड़े आतंकी संगठनों से ले कर छोटे अलगाववादी संप्रदायों, मठोंमहंतों तक के अपने आर्थिक स्रोत और राजनीतिक दांवपेंच हैं. सरकारें और समाज सबकुछ जानते हैं लेकिन निहित स्वार्थों के कारण चुप्पी साध ली जाती है.

अमेरिकी रूढि़वादी आंदोलन पर लंबे समय से निगाह रखने वाले बिल बर्कोवित्स कहते हैं कि अमेरिका में धर्म को राजनीतिक रंग देने वाले रूढि़वादी समूहों ने बेतहाशा पैसा कूटा है. एलेन सियर्स के एलायंस डिफेंड फंड ने 2006 में 2.61 करोड़ डालर, डान वाइल्डमैन के अमेरिकन फैमिली एसोसिएशन ने 1.69 करोड़ डालर, जेम्स डाबसन के फोकस औन दि फैमिली ने 1.46 करोड़ डालर ऐंठे थे. ये महज चंद उदाहरण हैं, वास्तविकता यह है कि ऐसे संगठनों की भरमार सभी देशों में है.

इसलाम की रक्षा के लिए जिहाद के नाम पर दुनिया भर को अपने आतंक से थर्राने वाला अलकायदा संगठन पैसों के मामले में विश्वव्यापी नेटवर्क बनाए हुए है. भारत के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे हिंदूवादी संगठनों के पास भी पैसे की कभी कोई कमी नहीं रही, जैसा कि इन की प्रचारप्रसार और अन्य गतिविधियों में देखा जा सकता है. वैसे भी, अपने यहां लाखोंकरोड़ों भक्त चाहे 2 जून की सहीसलामत रोटी अपने परिवार के लिए न जुटा पाते हों, लेकिन मोटे पेट वाले महंतों को चांदी के सिंहासनों पर सवारी करते देख कर खुश हो कर जयजयकार जरूर कर लेते हैं.

मारकाट के पुण्य

सैमुएल पी. हटिंगटन ने ‘सभ्यताओं का टकराव’ के अपने विश्व प्रसिद्ध सिद्धांत में कहा है कि नए वैश्विक समाजों में धर्म आधारित सोच जिस तरह से आकार ले रही है, उस के चलते सभ्यताआें का टकराव टलने वाला नहीं है. ईरान के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी द्वारा सुझाए गए और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समर्थित एलायंस औफ सिविलाइ- जेशन अभियान की जड़ में इसी सिद्धांत का विरोध रहा.

स्पेन के राष्ट्रपति जपेटेरो और तुर्की के प्रधानमंत्री रेसेप तैयप एर्दोगान की पहल के साथ शुरू हुए इस अभियान को विश्वव्यापी धार्मिक सद्भाव बढ़ाने की दिशा में एक कदम तो माना जा सकता है, लेकिन यह अधिक प्रभावी नहीं हो सकता. सभ्यताओं की टकराव में मूलभूत कारण धार्मिक कट्टरता में ही निहित हैं. जैसा कि पुर्तगाल के पूर्व राष्ट्रपति मारियो सोरेस कहते हैं कि इतिहास को देखें, तो धर्म में हिंसा का ही बोलबाला रहा है. तीनों प्रमुख एकेश्वरवादी धर्मों, ईसाई, इसलाम और यहूदी, अपने पड़ोसियों से प्यारमुहब्बत की बात करते हैं, लेकिन वे आखिर किस पड़ोसी की बात करते हैं, सवाल इस बात का है. क्या वे विधर्मी और नास्तिकों से भी प्यार करते हैं?

न्यूयार्क के वर्ल्ड टे्रड सेंटर पर 9/11 की घटना अगर ईसाई पश्चिमी उन्नत समाज के प्रति हिंसक घृणा का एक पहलू है, तो अमेरिकी सेना के इराकी सैनिक कैसर-सादी-अल-जबूरी द्वारा अपने अमेरिकन सार्जेंट और कैप्टन द्वारा इराकी महिलाआें पर अत्याचार करते देख कर उन की गोली मार कर हत्या कर देने जैसी घटनाओं के निहितार्थ भी वही विधर्मीवाद है.

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जून, 2007 में जारी अपनी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरीकरण के विस्तार के साथ लोगों में धर्मनिरपेक्षता और तर्क क्षमता के विकास की उम्मीद थी, लेकिन हुआ इस का ठीक उलटा है. दुनिया भर में भारत समेत बहुत सारे देशों में शहरीकरण के साथ धार्मिक कट्टरता का विकास ही हुआ है. यह रिपोर्ट अरब देशों में कट्टर इसलाम के उदय, लैटिन अमेरिकी राज्यों में कट्टर कैथोलिक ईसाइयत के विस्तार और भारत में शिवसेना के आदर्श शिवाजी और गुजरात में हिंदू फासीवाद आदि की चर्चा करते हुए धार्मिक पुनरुत्थान के नए खतरे का वर्णन करती है.

धार्मिक, चरमपंथी को यह विश्वास हो जाता है कि उस का कार्य तो पवित्र और ईश्वर की इच्छानुसार है और तब अकारण की जाने वाली हिंसा का विस्फोट होता है. इस हिंसा को नाटकीय और खासतौर से प्रतीकात्मक बताते हुए समाजशास्त्री मार्क जुएर्गेसमायर अपनी पुस्तक (टेरर इन द माइंड औफ गौड : द ग्लोबल राइज आफ रिलिजियस वायलैंस) में लिखते हैं कि अपने धार्मिक विश्वासों की रक्षा और विस्तार के लिए कास्मिक युद्ध में शरीक होते धर्मयोद्धाआें के लिए हिंसा जीवन से बड़ा कृत्य होता है. पुण्य और पाप के बीच का एक महायुद्ध, यह लगभग सभी धर्मों ने प्रचारित किया है.

वह ईसाई धर्म का उदाहरण देते हुए, ईसा और शैतान के विरोध को रेखांकित करते हैं. पर मानवता को बचाने के लिए शैतान के खिलाफ लड़ाई में सहयोग करने वाले मरनेमारने की परवा छोड़ कर खुद सब से बड़े शैतान बन बैठते हैं. ये कू्रर जड़बुद्धि, अपने विपरीत किसी भी तर्क को सुनना ही पसंद नहीं करते, विचार करना तो बहुत दूर की बात है.

मार्क जुएर्गेसमायर धर्म पे्ररित हिंसा की पड़ताल करते हुए लिखते हैं कि दुनिया के 3 प्रमुख एकेश्वरवादी धर्म, यहूदी, ईसाई और इसलाम हैं जिन में अच्छाई बनाम बुराई के महायुद्ध के विविध खूनी रंग उकेरे गए हैं. यहूदियों में यह अंतिम न्याय और जन्म लेने के उद्देश्य के रूप में आता है. ईसाइयों में कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंट के आपसी मतभेद कहीं से भी ईसा मसीह के प्रेम संदेशों को व्यवहार में प्रतिबिंबित नहीं करते. इसलाम में यह पवित्र जिहाद के रूप में है, बुराई से बाहर आने और अच्छाई की ओर जाने का ऐसा प्रयास, जहां सबकुछ अल्लाह के नाम पर तय कर दिया गया है.

विधर्मियों और नास्तिकों से अपने धर्म को बचाना पहली प्राथमिकता होती है, इस गैर धर्मअनुयायियों के प्रति विरोध ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंसा के सहारे दुनिया के शक्ति संतुलनों को प्रबल चुनौती दी है. बहुदेववादी हिंदू धर्म में यह रामरावण की भयानक लड़ाई से कहीं आगे का संघर्ष है, जो राम जन्मभूमि से रामसेतु तक और गुजरात से गंगासागर तक अकसर प्रकट होता है.

एक ही रास्ते के मुसाफिर

चरमपंथियों का यह विश्वास सर्वाधिक खतरनाक है कि वे धार्मिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए लोगों की हत्याएं करने का हक रखते हैं. इस का फ्रेमवर्क मिस्र के सईद कुतुब ने 1950-1960 में तैयार किया था. फिलिस्तीनी चरमपंथी सुन्नी संगठन हरकत-अल-मुकवामा-अल-इसलामिया (हमास) इस का प्रमुख उदाहरण है, जो आस्टे्रलिया, कनाडा, इंगलैंड, यूरोपीय यूनियन और इसराईल तथा अन्य कई देशों के द्वारा आतंकी संगठनों की सूची में शामिल हैं.

हमास के स्त्री आत्मघाती हमलावरों में 6 बच्चों की मांएं तक शामिल होती हैं. हमास के शिक्षक भी कार्यकर्ताओं को आत्मघाती हमलों में मरने के बाद स्वर्ग में 70 कुमारियां और 70 बीवियां दिलाने का वादा करते हैं. फिलहाल उन के परिवारों को 12 से 15 हजार डालर की रकम दी जाती है.

‘तलवार उस स्वर्ग की चाबी है, जो केवल पवित्र योद्धाओं के लिए खुलता है,’ इसलाम कहता है, ‘यकीन न करने वालों को मार दो. तलवार के बिना लोगों को आज्ञाकारी नहीं बनाया जा सकता. अल्लाह के नाम पर उन सब को तलवार के नीचे रख कर उन के टुकड़े कर दो’.

आयातुल्लाह खुमैनी की इस घोषणा को आमिर ताहिरी अपनी किताब ‘द होली टेरर : इन साइड द वर्ल्ड औफ इसलामिक टेरेरिज्म’ में उद्धृत कर के धार्मिक हिंसा की पारलौकिक प्रेरणा को स्पष्ट करते हैं.

धार्मिक मान्यताओं की जटिलता और गूढ़ जड़ता ने धर्मों के बीच ही नहीं, धर्मों के अंदर अलगअलग पंथों के मध्य भी खूनी संघर्षों को बढ़ावा दिया है.

ईसाई पहचान आंदोलन के कुछ लोग बाहर से आने वाली 12 नस्लों को जानवरों से पैदा नीच नस्लें मानते हैं और यह मानते हैं कि बाईबिल के उपदेश और पुण्य केवल सफेद ईसाइयों के लिए ही हैं.

इराक व पाकिस्तान के शिया-सुन्नी संघर्षों ने जानमाल की व्यापक क्षतियां इन 2 देशों के अलावा अन्य देशों में भी की हैं जिन में भारत भी एक है.

हिंदू धर्म में जातिवाद और वर्णव्यवस्था ने लाखों लोगों को नारकीय जीवन और कीड़ेमकोड़ों सी मौत मुहैया कराई.

सिख समुदाय में डेरा सच्चा सौदा और रामरहीम प्रकरण नई चीजें हैं, इस से पहले खालिस्तान की सनक के नाम पर कुछ लोग अपने ही समुदाय का काफी नुकसान कर चुके हैं.

यहूदी, जो विश्व जनसंख्या का मात्र 0.2 प्रतिशत हैं, उन की धार्मिक कट्टरता का उद्घाटन कैरेन आर्मस्ट्रांग (द बैटिल फौर गौड) में करते हैं. रब्बी इसराईल हेस द्वारा 1980 में प्रकाशित जातीय नरसंहार संबंधी आलेख में ‘तोरा’ का हुक्म उद्धृत है कि फिलिस्तीनी यहूदियों के लिए उसी तरह हैं जैसे प्रकाश के लिए अंधकार होता है और वे अमेलकिट्स की तरह घृणित हैं. अमेलकिट्स के लिए 1 सैमुएल: 15 : 3 के अनुसार हिब्रुओं से कहा गया है कि ‘जाओ, और अमेलकिट्स को नष्ट कर दो, और उन के पास जो कुछ भी हो, वह सब नष्ट कर दो. उन के आदमियों, औरतों और बच्चों तथा दूध पीते शिशुओं, बैल, भेड़, ऊंटों, गधों सब को मार डालो.’

आजकल पश्चिमी समाजों में ईसाइयों द्वारा विधर्मियों पर घातक हमले नगण्य हैं. पर हिटलर का नाजी आंदोलन धर्मजनित रेसियल अहंकार पर आधारित था जिस में यहूदियों को उन के धर्म के कारण ही निशाना बना कर चुनचुन कर मारा गया. आज भी घृणा और असहिष्णुता के कारोबार में कमी नहीं है. प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के सब से बड़े संगठन दक्षिणी बैपटिस्ट सभा के अध्यक्ष ने 1980 में कहा था कि ईश्वर यहूदी की प्रार्थना नहीं सुन सकता.

इसी संगठन की 2002 की सालाना बैठक में पैगंबर मुहम्मद को शैतानों के कब्जे में बताया गया था. ब्रिटिश और यूरोपीय पार्लियामेंटों के सदस्य डा. इयान रिचर्ड (एक चर्च संस्था के संस्थापक) ने कैथोलिकों को शैतानी कपट धारण करने वाला कहा. कट्टर ईसाइयों द्वारा यहूदी और अन्य पंथ के अनुयायियों के खिलाफ पथराव, गोलीबारी, बमविस्फोट और म्यूनिसिपल सप्लाई के पानी को जहरीला बनाने जैसी घटनाएं भी होती रही हैं. 1995 में ओक्लाहामा सिटी में टिमोथी मैकवेग ने 19 बच्चों सहित 168 लोगों को बम से मार दिया था.

शांति का आधार ले कर दुनिया में जगह बनाने वाले बौद्ध धर्म के ही एक अनुयायी ने श्रीलंका की प्रधानमंत्री भंडारनायके को मौत के घाट उतारा था. बौद्ध धर्म से प्रबल प्रभावित कोरिया और चीन में इनसानी अत्याचार, मानवाधिकारों के उल्लंघन और मारकाट आम बातें हैं. एअर इंडिया के बोइंग-747 विमान के बम धमाके में 329 लोगों के साथ अटलांटिक महासागर में जलसमाधि की रोंगटे खड़े कर देने वाली  घटना के आरोपी सिख और कश्मीरी दोनों चरमपंथी थे. प्रकट में राजनीतिक कारणों से होने वाले इन कांडों के पीछे धार्मिक अलगाव और विद्वेष के कीटाणु अपना काम करते हैं. जैसा कि बू्रस हाफमैन, (हौली टेरर : द इंप्लीकेशन औफ टेरेरिज्म मोटिवेटेड बाई ए रिलिजिएंस इंपेरेटिव) में लिखते हैं कि हिंसा न केवल स्वीकृत है, बल्कि दैवी पवित्रता के साथ महिमामंडित भी है.

कुछ चरवाहे, बाकी भेड़बकरियां

नए धार्मिक आंदोलनों ने अपनीअपनी क्षमतानुसार दुनिया के ओरछोर तक अपनी हिंसक गतिविधियों की बदौलत आम आदमी का जीना हराम किया हुआ है. रैंड की रिपोर्ट इन की 2 महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का खुलासा करती है. पहली तो इन के समूह की तीखी तनावपूर्ण स्थिति उन समुदायों के प्रति, जो इन के आसपास होते हैं, और दूसरी इन के अगुवाकारों का सभी अनुयायियों पर कठोर नियंत्रण, जिस से पीछे चलने वाली भीड़ बिना सोचेसमझे आंख बंद कर इन का अनुकरण करती रहे.

प्रसिद्ध इटेलियन समाजशास्त्री ली-बौन ने भीड़ की जिस समूह मानसिकता की व्याख्या की है, उस की सब से अच्छी समझ इन संगठनों के ठेकेदारों में पाई जाती है. ऐसे संगठनों के खिलाफ सीधी सैनिक काररवाई प्राय: उलटा असर करती है, जैसा कि इराक में मुक्तदा-अल-सद्र और उन के आंदोलन को पश्चिमी ताकतों द्वारा जबरिया हथियारविहीन करने पर देखा गया.

इस और ऐसी काररवाइयों ने समूचे मुसलिम समाज को पश्चिम के खिलाफ एक पाले में खड़ा कर दिया. पाकिस्तान में लाल मसजिद पर सैन्य काररवाई हो, या स्वात घाटी के मुल्ला रेडियो के खिलाफ अभियान, इन की ताकत तब और बढ़ती है जब ये खुद को ‘शैतान के कब्जे वाली सरकार’ द्वारा पीडि़त बता कर, शहीदी मुद्रा में पेश करने का मौका पा जाते हैं और अपने समुदाय से हर प्रकार का समर्थन जुटाने में फिर इन को देर नहीं लगती.

क्या फिर भी यह कहा जा सकता है कि धर्म, मनुष्य को हिंसा और मारकाट नहीं, बल्कि सभ्यता और शांतिपूर्वक सहअस्तित्व के साथ जीना सिखाता है? क्या किसी के अपने आसपास के किसी संप्रदाय, धार्मिक अनुयायी को इसलिए आदर देना चाहिए, क्योंकि वह सही रास्ते पर जा रहा है? तो फिर विश्वव्यापी हिंसा की ओर जान

आम चुनाव की दस्तक

जैसे जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं, इस बार बातें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की कम हो रही हैं, विरोधी दलों की चर्चा ज्यादा होने लगी है. सुर्खियों में अब मायावती और अखिलेश का गठबंधन, कांग्रेस, ममता बनर्जी, डीएमके आदि छाने लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री अब सिर्फ उद्घाटनों, शिलान्यासों और सम्मेलनों में भाषण करने की औपचारिकताएं निभाने में लगे हैं. सरकार के कई मंत्रियों और भाजपा अध्यक्ष की बीमारियां जरूर सुर्खियां बनी हैं.

भाजपा ने जो संगठित चेहरा 2014 से 2017 तक दिखाया था, अब बिखरने लगा है. यह अच्छा नहीं है. जनता की पसंद लोकतंत्र में बदलती रहती है पर मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्रियों को हर स्थिति में अपना संतुलन और सामर्थ्य बनाए रखना होता है. यह देश के लिए जरूरी होता है. सत्तारूढ़ पार्टी को अंत तक अपनी हिम्मत नहीं खोनी चाहिए चाहे उस के काम सही हों या गलत.

यह ठीक है जब कई पराजयों का सामना एकसाथ करना पड़े तो लोग हताश होने लगते हैं. पर, फिर भी हजारोंलाखों लोग उस नेता से जुड़े होते हैं और वे मैदान छोड़ कर न भाग जाएं, यह देखना नेताओं का ही काम होता है.

नरेंद्र मोदी ने यह गलती की कि उन्होंने पूरी जिम्मेदारी और सत्ता अपनेआप में केंद्रित कर ली क्योंकि भाजपा 2014 का चुनाव केवल उन के बल पर जीती थी. बाकी सब मोहरे बन कर रह गए थे. यह पार्टी या सरकार चलाने का सब से गलत तरीका है, पर दुनियाभर में ऐसा ही होता है.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप, ब्रिटेन में टेरेसा मे और जरमनी में एंजेला मर्केल की हालत नरेंद्र मोदी की तरह है. इन को कई फ्रंटों पर लड़ना पड़ रहा है और जीत कम ही मिल रही है. ट्रंप मैक्सिको और अमेरिका के बीच वाल बनाने के पीछे ऐसे पड़े हैं जैसे मोदी मंदिर, गाय और जीएसटी के. टेरेसा मे ब्रैक्सिट को ले कर जिद कर रही हैं, एंजेला मर्केल यूरोप में एकछत्र राज चाहती हैं.

बिना चुनौतियों के राज करने या अनायास सत्ता पाने के अवसर ने इन नेताओं से सब से मिल कर चलने का गुण छीन लिया है और इसी वजह से इन के अपने सहयोगी, संगीसाथी इन के साथ मन मार कर काम कर रहे हैं. जो समस्याएं पहले चुटकियों में हल हो जाती थीं, अब विकराल बनने लगी हैं.

इस सब का नुकसान जनता को सहना पड़ता है क्योंकि सरकार ठप हो जाती है. आजकल भारत, अमेरिका, ब्रिटेन और जरमनी में कोई खास फैसले नहीं लिए जा रहे क्योंकि नेताओं को अपने बचाव से फुरसत नहीं है. इस का असर एकदम न पड़ेगा, पर 4-5 वर्षों बाद इस तरह हुए बीमार नेतृत्व का खमियाजा पूरा देश भुगतेगा, यह पक्का है.

इन टूल्स की मदद से करें नेल आर्ट

नेल आर्ट का फैशन इन दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है. इससे नाखून बहुत ज्यादा आकर्षक लगते हैं और आपको ग्‍लैमरस लुक मिलता है. लेकिन कई बार हमें नेलआर्ट करने में समस्या आती है. नेल डिजाइन में नेल आर्ट डाटिंग सबसे ज्यादा ट्रेंड में है और ये बहुत आकर्षक भी लगती है. इस फैंसी नेल डिजाइन को बनाने के लिए आप बोल्‍ड और ब्राइट के अलग-अलग रंग ट्राई कर सकती हैं. नाखून पर डाट्स बनाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. हालांकि, कुछ आसान टूल्‍स की मदद से आप घर पर ही डाटिंग नेल डिजाइन बना सकती हैं. आज हम आपको नेल आर्ट के कुछ ऐसे उपकरणों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी मदद से आप परफेक्‍ट डाट बना सकती हैं और इसे एक नए ही लेवल पर लेकर जा सकती हैं.

बौल पैन

किसी महंगे टूल को खरीदने की बजाय आप बौल पैन से भी नाखूनों पर डाट्स बना सकती हैं. ये भी नेल आर्ट का बहुत आसान तरीका है.

टूथ पिक

फंकी और ट्रेंडी नेल आर्ट के लिए आप टूथ पिक का इस्‍तेमाल कर कई तरह की डाट्स बना सकती हैं. नेल आर्ट डाटिंग में टूथ पिक कई तरह से काम आ सकती है.

सुई

सुई से भी आप नाखूनों पर डिजाइन बना सकती हैं. शुरुआत में नेल आर्ट सीखने वाले लोगों के लिए ये बहुत काम की चीज है. अब इन टूल्‍स से आप अपने नाखूनों को क्‍लासी लुक दे सकती हैं.

हेयर पिंस

हेयर पिंस की मदद से आप कम समय में नेल आर्ट डाटिंग में महारत हासिल कर सकती हैं. हेयर पिंस से नाखूनों पर डाट्स बनाना आसान होता है. पेंट में हेयर पिन को डुबोएं और डाट्स बनाएं.

माचिस की तिल्‍ली

माचिस की तिल्‍ली से भी आप नाखूनों पर अलग-अलग डाट्स बना सकती हैं. माचिस की दोनों तरफ से अलग आकार की डाट्स बन सकती हैं. इसमें आपकी नेल आर्ट भी उभरकर आएगी.

सेफ्टी पिन

हर घर में बड़े ही आराम से सेफ्टी पिन मिल जाएगी. नेल पेंट में पिन को डुबोएं और इससे नाखूनों पर साफ और शेप में डाट बनाएं. ये काफी सस्‍ता और आसान तरीका है जिससे आप अपने नाखूनों को खूबसूरत बना सकती हैं.

पेंट ब्रश

पेंट ब्रश से भी आप बड़ी आसानी से छोटी और बड़ी डाट्स बना सकती हैं. ब्रश को साफ करें और अलग-अलग पेंट का इस्‍तेमाल कर नेल आर्ट करें.

यह सुहागरात इम्पौसिबलः प्रताप सौरभ सिंह का बेहतरीन अभिनय

रेटिंग:ढाई स्टार

किसी कहानी या नाटक को सिनेमा के परदे पर उतरना आसान नही होता. दिग्गज फिल्मकार भी इस तरह की फिल्म बनाते समय असफल हो जाते हैं. ऐसे में एक पन्ने की कहानी ‘‘नमक स्वाद अनुसार’’ पर नवोदित फिल्मकार अभिनव ठाकुर से बहुत ज्यादा उम्मीद लगाना जायज नही है. फिर भी अभिनव ठाकुर कुछ कमियों के बावजूद फिल्म की विषय वस्तु को ‘सुहागरात’ तक सीमित रखते हुए कुछ मुद्दों को उकेरने के साथ ही कुछ संदेश देने की भी कोशिश की हैं.

फिल्म की कहानी समस्तीपुर मे रह रहे सत्यप्रकाश (प्रताप सौरभ सिंह) के भाई पवन (प्रदीप शर्मा ) से शुरू होती है, जो कि अपने दोस्त के मोबाइल पर फिल्म ‘‘कभी कभी’’ देख रहा है. इस फिल्म के एक दृश्य पर पवन अपने दोस्त से कहता है कि उसके भाई के साथ भी ऐसा कुछ हुआ था. फिर वह अपने दोस्त को अपने भाई सत्यप्रकाश की कहानी सुनाता है. सत्यप्रकाश की शादी उसके परिवार की सहमति से उसके फूफा (आलोकनाथ पाठक) दिल्ली में पढ़ी लिखी देविका (प्रीतिका चैहान) से कराते हैं. यह प्रेम विवाह है नहीं, इसलिए सत्यप्रकाश और देविका की मुलाकात सुहागरात की रात्रि में ही होती है. सुहागरात के लिए जाते समय उसके फूफा उसे कुछ पाठ पढ़ाकर व एक तेल देकर भेजते हैं. गांव की पृष्ठभूमि और छोटे शहर में पले बढ़े सत्यप्रकाश औरतों की बड़ी इज्जत करते हैं. सुहागरात की रात्रि में जब देविका को दूध के गिलास के साथ कुछ औरतें सत्यप्रकाश के कमरे में छोड़ जाती है, तो देविका सहमी सी घूंघट निकाल कर पलंग पर बैठ जाती है.

सत्यप्रकाश देविका से प्यार जताते  हुए सुहागरात मनाने की बजाय देविका से बडे़ प्यार से कहता है कि गर्मी बहुत है, आप चाहें तो अपना घूंघट हटा सकती हैं. पर देविका घूंघट नहीं हटाती वह तो चाहती है कि सत्यप्रकाश अपने हाथों से उसका घूंघट हटाए. पर सत्यप्रकाश तो देविका से बात करते हुए कहता है कि उसकी सोच यह है कि शादी हो जाने से देविका उसकी जागीर नही हो गयी. वह एक दूसरे को समझना चाहते हैं इसलिए बातचीत करने का प्रस्ताव रखकर अपनी बात कहना शुरू करता है. वह बात को आगे बढ़ाते हुए अपने कालेज के दिनो की प्रेम कहानियां सुनाता है कि उसके मेघा,रोजी सहित चार लड़कियों से संबंध रहे हैं. हर लड़की की सुंदरता आदि का विस्तार से वर्णन करता है. सत्यप्रकाश बताता है कि किस तरह उसने जब रोजी का हाथ पकड़ा था तो रोजी ने चांटा जड़ते हुए कह दिया था कि वह उस तरह की लड़की नहीं है.

एक लड़की से उसने प्यार किया और बात शादी तक पहुंची पर वह उसे ठुकरा कर चली गयी थी  जिससे उसके पुरूष मन को ठेस लगी थी. उसका ईगो हर्ट हुआ था. इसलिए जब मेघा से उसे प्यार हुआ तो उसने मेघा के संग शारीरिक संबंध बनाकर उसे अपनी जिंदगी से दूर कर दिया था जबकि मेघा तो उसके पैरों पर पड़कर गिड़गिड़ा रही थी. देविका,सत्यप्रकाश की बातें चुपचाप सुनती रहती है. फिर सत्यप्रकाश देविका से सवाल कर बैठता है कि वह तो दिल्ली में पढ़ी है जहां लड़के व लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं. तो उसका भी कोई प्रेमी रहा होगा. काफी कुरेदने पर झुंझलाकर देविका कहती है कि ‘मेरा संबंध अपने ड्राइवर के साथ रहा है. तब वह सवाल कर बैठता है कि ड्राइवर के साथ उसका संबंध कितना था? उसने उसे कहां कहां छुआ था.. अंत में वह देविका को ‘टैक्सी’ कह देता है. तब देविका अपना घूंघट हटाने के साथ ही सारे जेवर उतार देती है और सोने का जतन करने लगती है. पर सत्यप्रकाश कहां चुप रहने वाला? तब देविका उठकर रात में ही सड़क पर चली जाती है और सुहागरात नही मनाती. पर सत्यप्रकाश व पवन उसे वापस ले आते हैं. मगर सुबह जब सभी शादी के जश्न के बाद थके हुए सो रहे थे थे तभी देविका अपना बैग उठाकर चली जाती है.

सत्यप्रकाश उसके पैर पकड़कर उसे घर न छोड़ने के लिए कहता है. पर देविका पर इसका असर नहीं पड़ता. छह माह बाद पता चलता है कि देविका की शादी एक मैच्योर युवक देवेश(नयन रूपल) से होती है. सुहागरात के वक्त देवेश देश व समाज की प्रगति की बात करते हुए उसे उपहार देता है. उपहार लेकर जब देविका उसकी प्रशंसा करती है तब देवेश, देविका को ‘किस’ करना चाहता है पर देविका उसे रोक देती है. इस पर देवेश कहता है कि उसके साथ उसकी शादी हुई है और वह उसकी पत्नी है. तब देविका कहती है कि,‘शादी होने से वह उसकी जागीर नहीं हो गयी.’फिर देविका बिना सुहागरात मनाए ही बैग लेकर वहां से भी चली जाती है. दूसरे दिन समुद्र किनारे वह सिगरेट पीते हुए नजर आती है.

एक पन्ने की कहानी ‘‘नमक स्वाद अनुसार’’ पर बने नाटक ‘‘सुहागरात’’ को देखकर अभिनव ठाकुर ने हास्य फिल्म‘ ‘यह सुहाग रात इम्पौसिबल’’ बनाने का निर्णय लिया. उन्होंने इस फिल्म में कई मुद्दे उठाए हैं. मसलन-शादी एक इंसान नही बल्कि समाज तय करता है. शादी व्याह महज गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं. गलत शादी नही करनी चाहिए. जब तक आप शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार न हो शादी न करें. सुहागरात बातें करने के लिए नही होती. इसी तरह के मुद्दों के साथ फिल्मकार ने शादी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं है उन्हे खत्म कर उनकी सोच बदलने का प्रयास किया है. मगर कमजोर पटकथा के चलते वह इसमें सफल कम हुए हैं. यदि पटकथा पर थोड़ी मेहनत ज्यादा की जाती तो यह एक उम्दा फिल्म बन सकती थी. फिल्म में सुहागरात के समय सत्यप्रकाश ओर देविका के बीच की बातचीत को और अधिक रोचक बनाया जा सकता था.

इसके अलावा हास्य के नाम पर फूहड़ता ही परोसी गयी है. इतना ही नही फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि उत्तर भारत वह भी खास कर बिहार है, जबकि फिल्म को गुजरात में फिल्माया गया है तो निर्देशक व फिल्म के कला निर्देशक की गलती के चलते फिल्म के कुछ दृश्यों में गुजराती भाषा में लिखे हुए विज्ञापन व नाम पट नजर आते हैं. इस गलती की वजह फिल्म का बजट भी हो सकता है. फिल्म बहुत कम बजट में बनायी गयी है. इसके अलावा यदि फिल्म में कुछ नामचीन कलाकार होते तो फिल्मकार का मकसद पूरे होने में मदद मिल जाती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो फिल्म में सभी नवोदित कलाकार हैं. मगर सत्य प्रकाश के किरदार को जिस तरह से प्रताप सौरभ सिंह ने जीवंतता प्रदान की है उसे देखकर यह अहसास ही नहीं होता कि यह उनकी पहली फिल्म है. पवन के किरदार में प्रदीप शर्मा ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर देविका के किरदार में प्रीतिका चैहाण काफी निराश करती हैं. उनके चेहरे पर कोई भाव ही नही आते. एकदम सपाट चेहरा… उन्हे यदि अभिनय के क्षेत्र मे आगे बढ़ना है तो काफी मेहनत करने की जरुरत है.

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