कांग्रेस का प्रियंका गांधी को राजनीति में लाने का फैसला अपना अंदरूनी है और न जाने क्यों भारतीय जनता पार्टी कुछ ज्यादा ही परिवारवाद का हल्ला मचा रही है. यह तो अब पक्का है कि राजनीति कोई जनता की सेवा करने के लिए नहीं की जाती है. यह तो सत्ता पाने या सत्ता बनाए रखने के लिए की जाती है और पंच से ले कर प्रधानमंत्री तक इसीलिए राजनीति में कूदते हैं.
राजनीति कोई बच्चों का खेल नहीं है. यह खेलों से भी ज्यादा मेहनत का काम है और सिर्फ मजबूत बदन व मजबूत दिलवालों के लिए है. इस में उसी को जगह मिलती है जो कुछ कर सकता है और जमा रह सकता है. करने का मतलब जनता के लिए करना नहीं होता, अपने लिए करना होता है. अपने लिए कुछ करतेकरते यदि जनता के लिए कुछ हो जाए तो यह सिर्फ इसलिए कि अपने को साया देने के लिए जो पेड़ लगाया उस में फल भी निकलने लगें और पक्षी घोंसले बनाने लगें.
प्रियंका गांधी के पास न कोई जादुई ताकत है और न ही कुछ अनुभव. वह वर्षों से सत्ता के पास बनी रह कर भी नौसिखिया ही है और उस से डरने की किसी को जरूरत नहीं. भाजपा के नेताओं को न जाने क्यों डर लग रहा है जबकि उन के यहां खुद दूसरीतीसरी पीढ़ी के लोग नेतागीरी कर रहे हैं. ज्यादातर मंदिरों में, जो भाजपा का बड़ा धंधा है, पुजारी पुश्तैनी ही होते हैं और अदालतें ऐसे मामलों से भरी हैं जहां चढ़ावे को ले कर पंडों की संतानें लड़ रही हैं. उस परिवारवाद पर तो भाजपा कोई नाक भौं नहीं चढ़ाती.