Download App

बदनाम गली

‘‘हर माल 10 रुपए… हर माल की कीमत 10 रुपए… ले लो… ले लो… बिंदी, काजल, पाउडर, नेल पौलिश, लिपस्टिक…’ जोर से आवाज लगाते हुए राजू अपने ठेले को धकेल कर एक गली में घुमा दिया और आगे बढ़ने लगा. वह एक बदनाम गली थी.

कई लड़कियां व औरतें खिड़की, दरवाजों और बालकनी में सजसंवर कर खड़ी थीं. कुछ लड़कियां खिलखिलाते हुए राजू के पास आईं और ठेले में रखे सामान को उलटपुलट कर देखने लगीं.

‘वह वाली बिंदी निकालो… यह कौन से रंग की लिपस्टिक है… बड़ी डब्बी वाला पाउडर नहीं है क्या…’ एकसाथ कई सवाल होने लगे.

राजू जल्दीजल्दी उन सब की फरमाइशों के मुताबिक सामान दिखाने लगा.

जब राजू कोई सामान निकाल कर उन्हें देता तो वे सब उसे आंख मार देतीं और कहतीं, ‘पैसा भी चाहिए क्या?’

‘‘बिना पैसे के कोई सामान नहीं मिलता,’’ राजू जवाब देता.

‘‘तू पैसा ही ले लेना. और कुछ चाहिए तो वह भी तुझे दे दूंगी,’’ तभी किसी लड़की ने ऐसा कहा तो बाकी सब लड़कियां भी खिलखिला कर हंस पड़ीं.

राजू ने उन लड़कियों के ग्रुप के पीछे थोड़ी दूरी पर एक दरवाजे पर खड़ी एक लड़की को देखा.

घनी काली जुल्फें, दमकता हुआ गोरा रंग, पतली आकर्षक देह. राजू को लगा कि उस ने कहीं इस लड़की को देखा है.

राजू सामान बेचता रहा, पर लगातार उस लड़की के बारे में सोचता रहा. वह बारबार उसे अच्छी तरह देखने की कोशिश करता रहा, लेकिन सामान खरीदने वाली लड़कियों के सामने रहने की वजह से अच्छी तरह देख नहीं पा रहा था.

तभी राजू ने देखा कि एक बड़ीबड़ी मूंछों वाला अधेड़ आदमी आया और उस लड़की को ले कर मकान के अंदर चला गया. शायद वह आदमी ग्राहक था.

थोड़ी देर बाद राजू सामान बेच कर आगे बढ़ गया, लेकिन वह लड़की उस के ध्यान से हट ही नहीं रही थी.

धीरेधीरे शाम होने को आई. जब वह घर के करीब एक दुकान के पास से गुजरा तो उस ने देखा कि दुकान पर रामू चाचा के बजाय उन की 10 साला बेटी काजल बैठी थी और ग्राहकों को सामान दे रही थी. यह देख उसे कुछ याद आया.

आधी रात हो गई थी. राजू अब फिर उस बदनाम गली में था. उस की आंखें उसी लड़की को ढूंढ़ रही थीं. वहां कई लड़कियां सजसंवर कर ग्राहकों के आने का इंतजार कर रही थीं. राजू को देख कर वे उस से नैनमटक्का करने लगीं.

‘‘क्या रे, तू फिर आ गया… रात को भी सामान बेचेगा क्या?’’ एक लड़की मुसकरा कर बोली.

‘‘नहीं, अब मैं ग्राहक बन कर आया हूं,’’ राजू ने कहा.

‘‘अच्छा तो यह बात है. फिर बता, तुझे कौन सी वाली पसंद है?’’ एक लड़की ने पूछा.

राजू ने जवाब दिया, ‘‘मुझे तो सब पसंद हैं, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या…? चल मेरे साथ. मुझे सब रंगीली बुलाते हैं,’’ एक लड़की ने आगे आ कर राजू का हाथ पकड़ लिया.

‘‘आज रहने दे रंगीली. मुझे तो वह पसंद है…’’ राजू ने अपना हाथ छुड़ाते हुए दिन में जिस लड़की को देखा था, उस के बारे में पूछा.

‘‘बहुत पूछ रहा है उसे. नई है न…’’ रंगीली बोली, ‘‘एक आशिक उसे ले कर कमरे में गया है. वह उस का रोज का ग्राहक है. खूब पसंद करता है उसे. तुझे चाहिए तो थोड़ी देर ठहर. वह उसे निबटा कर आ जाएगी यहीं.’’

राजू बेचैनी से उस लड़की के बाहर आने का इंतजार करने लगा.

तकरीबन आधा घंटे बाद एक ग्राहक कमरे से बाहर निकल कर एक तरफ चला गया.

कुछ देर बाद उस कमरे से एक लड़की बाहर आई और दरवाजे पर खड़ी हो गई.

राजू ने उसे देखा तो पहचान गया. वह वही लड़की थी, जिस की तलाश में वह आया था.

‘‘जा मस्ती कर. तेरी महबूबा आ गई,’’ रंगीली ने कहा.

राजू उस लड़की के पास जा कर बोला, ‘‘जब से तुम्हें देखा है, तब से मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं इसीलिए अभी आया हूं.’’

‘‘तो चलो,’’ वह लड़की राजू का हाथ पकड़ कर कमरे में ले जाने लगी.

‘पुलिस… पुलिस… भागो… भागो…’ तभी जोरदार शोर हुआ और चारों तरफ भगदड़ मच गई. सभी लड़कियां, ग्राहक और दलाल इधरउधर भाग कर छिपने की कोशिश करने लगे.

थोड़ी देर में ही पुलिस ने कोठेवाली, दलाल और कई ग्राहकों को गिरफ्तार कर लिया और थाने ले गई. कई लड़कियों को पुलिस ने आजाद करा कर नारी निकेतन भेज दिया.

राजू को भी पुलिस ने उस लड़की के साथ गिरफ्तार कर लिया था, पर उस लड़की को नारी निकेतन नहीं भेजा गया. वह डर से थरथर कांप रही थी.

‘‘डरो नहीं खुशबू, अब तुम आजाद हो,’’ थाने पहुंच कर राजू ने उस लड़की से कहा.

‘‘तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?’’ उस लड़की ने चौंक कर पूछा.

‘‘खुशबू, मेरी बेटी. कहां थी तू अब तक,’’ राजू के कुछ कहने से पहले वहां एक अधेड़ औरत आई और उस लड़की को अपने गले से लगा कर फफकफफक कर रोने लगी.

‘‘मां, मुझे बचा लो. मैं उस नरक में अब नहीं जाऊंगी,’’ खुशबू भी उस औरत से लिपट कर रोने लगी और अपनी आपबीती सुनाने लगी कि कैसे 6 महीने पहले कुछ गुंडों ने उस की दुकान के आगे से रात 9 बजे उठा लिया था और कुछ दिन उस की इज्जत से खेलने के बाद चकलाघर में बेच दिया था.

‘‘अब आप के साथ कुछ गलत नहीं होगा. सारे बदमाशों को गिरफ्तार कर मैं ने जेल भेज दिया है…’’ तभी थानेदार ने कहा, ‘‘बस आप लोगों को कोर्ट आना होगा मुकदमे की कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिए.’’

‘‘मैं कोर्ट जाऊंगी. उन सभी बदमाशों को सजा दिलवा कर रहूंगी जिन्होंने मेरी बेटी की जिंदगी खराब की है…’’ वह औरत आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘अब मेरी बेटी से कौन ब्याह करेगा?’’ खुशबू की मां ने कहा.

‘‘अब आप लोग घर जा सकते हैं. जाने से पहले इन कागजात पर दस्तखत कर दें,’’ थानेदार ने कहा तो खुशबू, उस की मां और राजू ने दस्तखत कर दिए.

‘‘पर, आप लोगों को मेरे बारे में कैसे पता चला?’’ थाने से बाहर निकल कर खुशबू ने पूछा.

‘‘यह सब राजू के चलते मुमकिन हुआ. इसी ने मुझे बताया कि तुम्हें एक कोठे पर देखा है…

‘‘फिर मैं राजू के साथ पुलिस स्टेशन गई. जहां तुझे छुड़ाने की योजना बनी,’’  खुशबू की मां बोली.

‘‘राजू मुझे कैसे जानता है?’’ खुशबू ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम्हारी मां की परचून की दुकान पर मैं अकसर सौदा लेने जाता था वहीं तुम्हें देखा था. तब से ही मैं तुम्हें पहचानता था. जब तुम गायब हो गईं तो तुम्हारी मां दुकान पर हमेशा रोती रहती थीं. कहती थीं कि तुम्हारे बाबा जिंदा होते तो तुम्हें ढूंढ़ लाते. लेकिन वह अकेली कहां ढूंढ़ती फिरेंगी.

‘‘आज जब मैं अपना ठेला ले कर सामान बेचने गया तो कोठे पर तुम्हें देख कर तुम्हारी मां को सब बता दिया,’’ राजू बोल पड़ा.

‘‘आप का यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी,’’ खुशबू ने रुंधे गले से शुक्रिया अदा करते हुए कहा.

तभी राजू झिझकते हुए खुशबू की मां से बोला, ‘‘आप एक एहसान मुझ पर भी कर दीजिए.’’

‘‘कहो बेटा, मैं क्या कर सकती हूं तुम्हारे लिए?’’ खुशबू की मां ने पूछा.

‘‘मुझे खुशबू का हाथ दे दीजिए,’’ राजू अटकअटक कर बोला.

राजू की मांग सुन कर दोनों मांबेटी की आंखों में आंसू आ गए. खुशबू ने आगे बढ़ कर राजू के पैर छू लिए.

‘‘तेरे जैसा बेटा पा कर मैं धन्य हो गई. पर यह तो बता कि तुझे जातपांत का वहम तो नहीं.’’

‘‘नहीं जी, हम गरीबों की क्या जाति. हमें तो दूसरों के लिए हड्डी तोड़नी ही है. फिर यह जाति का दंभ क्यों पालें. खुशबू जो भी हो, मुझे पसंद है,’’ राजू तमक कर बोला.

नई सुबह के इंतजार में उन तीनों के कदम घर की ओर तेजी से बढ़ने लगे.

वर्जिनिटी पर सवाल : लड़की ही क्यों दे अग्नि परीक्षा

हम 21वीं सदी में भले जी रहे हैं मगर आज भी लड़के यही चाहते हैं कि उन की शादी जिस भी लड़की से हो वह पूरी तरह से वर्जिन हो यानि लड़की ने इस से पहले कभी किसी दूसरे लड़के के साथ कोई संबंध न बनाए हों। पर क्या यह सोच आज के जमाने के हिसाब से सही है?

शादी के समय लड़कियों से उन की वर्जिनिटी के बारे में जरूर पूछा जाता है पर लड़कों से यह सवाल कोई नहीं करता. वह लड़का भी अपने लिए शादी के दौरान वर्जिन लड़की चाहता है जिस ने खुद कई लड़कियों के साथ संबंध बनाए होते हैं. कई लड़कों की ऐसी सोच होती है कि अगर कोई लड़की वर्जिन नहीं है तो उन का चरित्र सही नहीं है.

चरित्र पर न उठाएं सवाल

आखिर एक लड़की से ही क्यों पूछा जाता है कि वह वर्जिन है या नहीं? हमें इस बात को समझना चाहिए कि जैसे लड़कों के रिलेशनशिप्स होते हैं वैसे ही लड़कियों के भी होते हैं.

आज के समय में गर्लफ्रैंड बौयफ्रैंड बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. यहां तक कि स्कूल के समय से ही लोग रिलेशनशिप्स में आने लग जाते हैं और कालेज तक आतेआते तो वे सबकुछ सीख जाते हैं. तो ऐसे में अगर लड़के रिलेशनशिप में आते हैं तो लड़कियां भी आती हैं और रिलेशनशिप में आने के बाद फिजिकल ऐक्टिविटी होना भी काफी नौर्मल सी बात है और यह जरूरी नहीं है कि जिस लड़के या लड़की के साथ हम रिलेशनशिप में आते हैं उसी के साथ हमारी शादी भी हो.

कई कारणों से हम अपनी गर्लफ्रैंड या अपने बौयफ्रैंड से शादी नहीं कर पाते तो ऐसे में अगर किसी लड़की की वर्जिनिटी लूज हो गई हो तो किसी को हक नहीं बनता कि कोई उस लड़की के करैक्टर पर कोई सवाल उठा सके.

हर लड़की की करें रिस्पैक्ट

कई लोग ऐसा भी सोचने लगते हैं कि वर्जिन लड़की के साथ सैक्स करने में ज्यादा आनंद आता है और अगर लड़की वर्जिन नहीं होगी तो उस के साथ सैक्स करने में कम आनंद मिलता है जो कि बिलकुल गलत है. वर्जिनिटी लूज करना कोई बहुत बड़ा अपराध नहीं है तो लड़कों को इस बात को समझना चाहिए और हर लड़की की रिस्पैक्ट करनी चाहिए फिर चाहे लड़की वर्जिन हो या नहीं.

वर्जिनिटी को ले कर लोगों की सोच

ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद पहली रात को जब सैक्स करते हैं और सैक्स के दौरान अगर लड़की के प्राइवेट पार्ट से खून निकलता है तो इस का मतलब उस ने पहली बार सैक्स किया है और वह पूरी तरह से वर्जिन थी और अगर सैक्स के दौरान खून नहीं निलकता तो वह वर्जिन नहीं थी.

यह सोचना बिलकुल गलत है क्योंकि जरूरी नहीं है कि अगर लड़की वर्जिन है तो खून निकलेगा ही. कई बार वर्जिन लड़कियों का भी सैक्स के समय खून नहीं निकलता तो हमें अपनी सोच को बदलना होगा.

वर्जिन होना या नहीं होना किसी के करैक्टर को नहीं दर्शाता तो ऐसे में अपनी सोच को बदलिए और लड़कियों की वर्जिनिटी के बारे में मत सोचिए बल्कि लड़की दिल से कैसी है और आप से कितना प्यार करती है इस बात पर गौर कीजिए.

कबूतरों का घर

चांद की धुंधली रोशनी में सभी एकदूसरे की सांसें महसूस करने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें तो यह भरोसा भी नहीं हो रहा था कि वे जीवित बचे हैं. पर ऊपर नीला आकाश देख कर और पैरों के नीचे जमीन का एहसास कर उन्हें लगा था कि वह बाढ़ के प्रकोप से बच गए. बाढ़ में कौन बह कर कहां गया, कौन बचा, किसी को कुछ पता नहीं था.

इन बचने वालों में कुछ ऐसे भी थे जिन के अपने देखते ही देखते उन के सामने जल में समाधि ले चुके थे और बचे लोग अब विवश थे हर दुख झेलने के लिए.

‘‘जाने और कितना बरसेगा बादल?’’ किसी ने दुख से कहा था.

‘‘यह कहो कि जाने कब पानी उतरेगा और हम वापस घर लौटेंगे,’’ यह दूसरी आवाज सब को सांत्वना दे रही थी.

‘‘घर भी बचा होगा कि नहीं, कौन जाने.’’ तीसरे ने कहा था.

इस समय उस टापू पर जितने भी लोग थे वे सभी अपने बच जाने को किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे थे और सभी आपस में एकदूसरे के साथ नई पहचान बनाने की चेष्टा कर रहे थे. अपना भय और दुख दूर करने के लिए यह उन सभी के लिए जरूरी भी था.

चांद बादलों के साथ लुकाछिपी खेल रहा था जिस से वहां गहन अंधकार छा जाता था.

तानी ने ठंड से बचने के लिए थोड़ी लकडि़यां और पत्तियां शाम को ही जमा कर ली थीं. उस ने सोचा आग जल जाए तो रोशनी हो जाएगी और ठंड भी कम लगेगी. अत: उस ने अपने साथ बैठे हुए एक बुजुर्ग से माचिस के लिए पूछा तो वह जेब टटोलता हुआ बोला, ‘‘है तो, पर गीली हो गई है.’’

तानी ने अफसोस जाहिर करने के लिए लंबी सांस भर ली और कुछ सोचता हुआ इधरउधर देखने लगा. उस वृद्ध ने माचिस निकाल कर उस की ओर विवशता से देखा और बोला, ‘‘कच्चा घर था न हमारा. घुटनों तक पानी भर गया तो भागे और बेटे को कहा, जल्दी चल, पर वह….’’

तानी एक पत्थर उठा कर उस बुजुर्ग के पास आ गया था. वृद्ध ने एक आह भर कर कहना शुरू किया, ‘‘मुझे बेटे ने कहा कि आप चलो, मैं भी आता हूं. सामान उठाने लगा था, जाने कहां होगा, होगा भी कि बह गया होगा.’’

इतनी देर में तानी ने आग जलाने का काम कर दिया था और अब लकडि़यों से धुआं निकलने लगा था.

‘‘लकडि़यां गीली हैं, देर से जलेंगी,’’ तानी ने कहा.

कृष्णा थोड़ी दूर पर बैठा निर्विकार भाव से यह सब देख रहा था. अंधेरे में उसे बस परछाइयां दिख रही थीं और किसी भी आहट को महसूस किया जा सकता था. लेकिन उस के उदास मन में किसी तरह की कोई आहट नहीं थी.

अपनी आंखों के सामने उस ने मातापिता और बहन को जलमग्न होते देखा था पर जाने कैसे वह अकेला बच कर इस किनारे आ लगा था. पर अपने बचने की उसे कोई खुशी नहीं थी क्योंकि बारबार उसे यह बात सता रही थी कि अब इस भरे संसार में वह अकेला है और अकेला वह कैसे रहेगा.

लकडि़यों के ढेर से उठते धुएं के बीच आग की लपट उठती दिखाई दी. कृष्णा ने उधर देखा, एक युवती वहां बैठी अपने आंचल से उस अलाव को हवा दे रही थी. हर बार जब आग की लपट उठती तो उस युवती का चेहरा उसे दिखाई दे जाता था क्योंकि युवती के नाक की लौंग चमक उठती थी.

कृष्णास्वामी ने एक बार जो उस युवती को देखा तो न चाहते हुए भी उधर देखने से खुद को रोक नहीं पाया था. अनायास ही उस के मन में आया कि शायद किसी अच्छे घर की बेटी है. पता नहीं इस का कौनकौन बचा होगा. उस युवती के अथक प्रयास से अचानक धुएं को भेद कर अब आग की मोटीमोटी लपटें खूब ऊंची उठने लगीं और उन लपटों से निकली रोशनी किसी हद तक अंधेरे को भेदने में सक्षम हो गई थी. भीड़ में खुशी की लहर दौड़ गई.

कृष्णा के पास बैठे व्यक्ति ने कहा, ‘‘मौत के पास आने के अनेक बहाने होते हैं. लेकिन उसे रोकने का एक भी बहाना इनसान के पास नहीं होता. जवान बेटेबहू थे हमारे, देखते ही देखते तेज धार में दोनों ही बह गए,’’ कृष्णा उस अधेड़ व्यक्ति की आपबीती सुन कर द्रवित हो उठा था. आंच और तेज हो गई थी.

‘‘थोड़े आलू होते तो इसी अलाव में भुन जाते. बच्चों के पेट में कुछ पड़ जाता,’’ एक कमजोर सी महिला ने कहा, उन्हें भी भूख की ललक उठी थी. इस उम्र में भूखा रहा भी तो नहीं जाता है.

आग जब अच्छी तरह से जलने लगी तो वह युवती उस जगह से उठ कर कुछ दूरी पर जा बैठी थी. कृष्णा भी थोड़ी दूरी बना कर वहीं जा कर बैठ गया. कुछ पलों की खामोशी के बाद वह बोला, ‘‘आप ने बहुत अच्छी तरह अलाव जला दिया है वरना अंधेरे में सब घबरा रहे थे.’’

‘‘जी,’’ युवती ने धीरे से जवाब में कहा.

‘‘मैं कृष्णास्वामी, डाक्टरी पढ़ रहा हूं. मेरा पूरा परिवार बाढ़ में बह गया और मैं जाने क्यों अकेला बच गया,’’ कुछ देर खामोश रहने के बाद कृष्णा ने फिर युवती से पूछा, ‘‘आप के साथ में कौन है?’’

‘‘कोई नहीं, सब समाप्त हो गए,’’ और इतना कहने के साथ वह हुलस कर रो पड़ी.

‘‘धीरज रखिए, सब का दुख यहां एक जैसा ही है,’’ और उस के साथ वह अपने आप को भी सांत्वना दे रहा था.

अलाव की रोशनी अब धीमी पड़ गई थी. अपनों से बिछड़े सैकड़ों लोग अब वहां एक नया परिवार बना रहे थे. एक अनोखा भाईचारा, सौहार्द और त्याग की मिसाल स्थापित कर रहे थे.

अगले दिन दोपहर तक एक हेलीकाप्टर ऊपर मंडराने लगा तो सब खड़े हो कर हाथ हिलाने लगे. बहुत जल्दी खाने के पैकेट उस टीले पर हेलीकाप्टर से गिरना शुरू हो गए. जिस के हाथ जो लग रहा था वह उठा रहा था. उस समय सब एकदूसरे को भूल गए थे पर हेलीकाप्टर के जाते ही सब एकदूसरे को देखने लगे.

अफरातफरी में कुछ लोग पैकेट पाने से चूक गए थे तो कुछ के हाथ में एक की जगह 2 पैकेट थे. जब सब ने अपना खाना खोला तो जिन्हें पैकेट नहीं मिला था उन्हें भी जा कर दिया.

कृष्णा उस युवती के नजदीक जा कर बैठ गया. अपना पैकेट खोलते हुए बोला, ‘‘आप को पैकेट मिला या नहीं?’’

‘‘मिला है,’’ वह धीरे से बोली.

कृष्णा ने आलूपूरी का कौर बनाते हुए कहा, ‘‘मुझे पता है कि आप का मन खाने को नहीं होगा पर यहां कब तक रहना पड़े कौन जाने?’’ और इसी के साथ उस ने पहला निवाला उस युवती की ओर बढ़ा दिया.

युवती की आंखें छलछला आईं. धीरे से बोली, ‘‘उस दिन मेरी बरात आने वाली थी. सब शादी में शरीक होने के लिए आए हुए थे. फिर देखते ही देखते घर पानी से भर गया…’’

युवती की बातें सुन कर कृष्णा का हाथ रुक गया. अपना पैकेट समेटते हुए बोला, ‘‘कुछ पता चला कि वे लोग कैसे हैं?’’

युवती ने कठिनाई से अपने आंसू पोंछे और बोली, ‘‘कोई नहीं बचा है. बचे भी होंगे तो जाने कौन तरफ हों. पता नहीं मैं कैसे पानी के बहाव के साथ बहती हुई इस टीले के पास पहुंच गई.’’

कृष्णा ने गहरी सांस भरी और बोला, ‘‘मेरे साथ भी तो यही हुआ है. जाने कैसे अब अकेला रहूंगा इतनी बड़ी दुनिया में. एकदम अकेला… ’’ इतना कह कर वह भी रोंआसा हो उठा.

दोनों के दर्द की गली में कुछ देर खामोशी पसरी रही. अचानक युवती ने कहा, ‘‘आप खा लीजिए.’’

युवती ने अपना पैकट भी खोला और पहला निवाला बनाते हुए बोली, ‘‘मेरा नाम जूही सरकार है.’’

कृष्णा आंसू पोंछ कर हंस दिया. दोनों भोजन करने लगे. सैकड़ों की भीड़ अपना धर्म, जाति भूल कर एक दूसरे को पूछते जा रहे थे और साथसाथ खा भी रहे थे.

खातेखाते जूही बोली, ‘‘कृष्णा, जिस तरह मुसीबत में हम एक हो जाते हैं वैसे ही बाकी समय क्यों नहीं एक हो कर रह पाते हैं?’’

कृष्णा ने गहरी सांस ली और बोला, ‘‘यही तो इनसान की विडंबना है.’’

सेना के जवान 2 दिन बाद आ कर जब उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले कर चले तो कृष्णा ने जूही की ओर बहुत ही अपनत्व भरी नजरों से देखा. वह भी कृष्णा से मिलने उस के पास आ गई और फिर जाते हुए बोली, ‘‘शायद हम फिर मिलें.’’

रात होने से पहले सब उस स्थान पर पहुंच गए जहां हजारों लोग छोटेछोटे तंबुओं में पहले से ही पहुंचे हुए थे. उस खुले मैदान में जहांजहां भी नजर जाती थी बस, रोतेबिलखते लोग अपनों से बिछुड़ने के दुख में डूबे दिखाई देते थे. धीरेधीरे भीड़ एक के बाद एक कर उन तंबुओं में गई. पानी ने बहा कर कृष्णा और जूहीको एक टापू पर फेंका था लेकिन सरकारी व्यवस्था ने दोनों को 2 अलगअलग तंबुओं में फेंक दिया.

मीलों दायरे में बसे उस तंबुओं के शहर में किसी को पता नहीं कि कौन कहां से आया है. सब एकदूसरे को अजनबी की तरह देखते लेकिन सभी की तकलीफ को बांटने के लिए सब तैयार रहते.

सरकारी सहायता के नाम पर वहां जो कुछ हो रहा था और मिल रहा था वह उतनी बड़ी भीड़ के लिए पर्याप्त नहीं था. कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी मदद करने के काम में जुटी थीं.

वहां रहने वाले पीडि़तों के जीवन में अभाव केवल खानेकपड़े का ही नहीं बल्कि अपनों के साथ का अभाव भी था. उन्हें देख कर लगता था, सब सांसें ले रहे हैं, बस.

उस शरणार्थी कैंप में महामारी से बचाव के लिए दवाइयों के बांटे जाने का काम शुरू हो गया था. कृष्णा ने आग्रह कर के इस काम में सहायता करने का प्रस्ताव रखा तो सब ने मान लिया क्योंकि वह मेडिकल का छात्र था और दवाइयों के बारे में कुछकुछ जानता था. दवाइयां ले कर वह कैंपकैंप घूमने लगा. दूसरे दिन कृष्णा जिस हिस्से में दवा देने पहुंचा वहां जूही को देख कर प्रसन्नता से खिल उठा. जूही कुछ बच्चों को मैदान में बैठा कर पढ़ा रही थी. गीली जमीन को उस ने ब्लैकबोर्ड बना लिया था. पहले शब्द लिखती थी फिर बच्चों को उस के बारे में समझाती थी. कृष्णा को देखा तो वह भी खुश हो कर खड़ी हो गई.

‘‘इधर कैसे आना हुआ?’’

‘‘अरे इनसान हूं तो दूसरों की सेवा करना भी तो हमारा धर्म है. ऐसे समय में मेहमान बन कर क्यों बैठे रहें,’’ यह कहते हुए कृष्णा ने जूही को अपना बैग दिखाया, ‘‘यह देखो, सेवा करने का अवसर हाथ लगा तो घूम रहा हूं,’’ फिर जूही की ओर देख कर बोला, ‘‘आप ने भी अच्छा काम खोज लिया है.’’

कृष्णा की बातें सुन कर जूही हंस दी. फिर कहने लगी, ‘‘ये बच्चे स्कूल जाते थे. मुसीबत की मार से बचे हैं. सोचा कि घर वापस जाने तक बहुत कुछ भूल जाएंगे. मेरा भी मन नहीं लगता था तो इन्हें ले कर पढ़नेपढ़ाने बैठ गई. किताबकापी के लिए संस्था वालों से कहा है.’’

दोनों ने एकदूसरे की इस भावना का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आखिर हम कुछ कर पाने में समर्थ हैं तो क्यों हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहें?’’

अब धीरेधीरे दोनों रोज मिलने लगे. जैसेजैसे समय बीत रहा था बहुत सारे लोग बीमार हो रहे थे. दोनों मिल कर उन की देखभाल करने लगे और उन का आशीर्वाद लेने लगे.

कृष्णा भावुक हो कर बोला, ‘‘जूही, इन की सेवा कर के लगता है कि हम ने अपने मातापिता पा लिए हैं.’’

एकसाथ रह कर दूसरों की सेवा करते करते दोनों इतने करीब आ गए कि उन्हें लगा कि अब एकदूसरे का साथ उन के लिए बेहद जरूरी है और वह हर पल साथ रहना चाहते हैं. जिन बुजुर्गों की वे सेवा करते थे उन की जुबान पर भी यह आशीर्वाद आने लगा था, ‘‘जुगजुग जिओ बच्चों, तुम दोनों की जोड़ी हमेशा बनी रहे.’’

एक दिन कृष्णा ने साहस कर के जूही से पूछ ही लिया, ‘‘जूही, अगर बिना बराती के मैं अकेला दूल्हा बन कर आऊं तो तुम मुझे अपना लोगी?’’

जूही का दिल धड़क उठा. वह भी तो इस घड़ी की प्रतीक्षा कर रही थी. नजरें झुका कर बोली, ‘‘अकेले क्यों आओगे, यहां कितने अपने हैं जो बराती बन जाएंगे.’’

कृष्णा की आंखें खुशी से चमक उठी. अपने विवाह का कार्यक्रम तय करते हुए उस ने अगले दिन कहा, ‘‘पता नहीं जूही, अपने घरों में हमारा कब जाना हो पाए. तबतक इसी तंबू में हमें घर बसाना पडे़गा.’’

जूही ने प्यार से कृष्णा को देखा और बोली, ‘‘तुम ने कभी कबूतरों को अपने लिए घोसला बनाते देखा है?’’

कृष्णा ने उस के इस सवाल पर अपनी अज्ञानता जाहिर की तो वह हंस कर बताने लगी, ‘‘कृष्णा, कबूतर केवल अंडा देने के लिए घोसला बनाते हैं, वरना तो खुद किसी दरवाजे, खिड़की या झरोखे की पतली सी मुंडेर पर रात को बसेरा लेते हैं. हमारे पास तो एक पूरा तंबू है.’’

कृष्णा ने मुसकरा कर उस के गाल पर पहली बार हल्की सी चिकोटी भरी. उन दोनों के घूमने से पहले ही कुछ आवाजों ने उन्हें घेर लिया था.

‘‘कबूतरों के इन घरों में बरातियों की कमी नहीं है. तुम तो बस दावत की तैयारी कर लो, बराती हाजिर हो जाएंगे.’’

उन दोनों को एक अलग सुख की अनुभूति होने लगी. लगा, मातापिता, भाईबहन, सब की प्रसन्नता के फूल जैसे इन लोगों के लिए आशीर्वाद में झड़ रहे हैं.

:माया

हौसले बुलंद रहें सरकार: बीवी की खुशी के लिए एनकाउंटर

आजकल पता नहीं ऐसा क्यों हो रहा है कि शाम को जब भी मैं औफिस से सहीसलामत घर लौट कर आता हूं तो पत्नी हैरान हो कर पूछती है, ‘आ गए आज भी वापस?’ कई बार तो मुझे उस के पूछने से ऐसा लगता है मानो मुझे शाम को सकुशल घर नहीं आना चाहिए था. उस के हिसाब से लगता है, वह मुझ से ऊब गई हो जैसे. वैसे, एक ही बंदे के साथ कोई 20 साल तक रहे, तो ऊबन, चुभन हो ही जाती है. मुझे भी कई बार होने लगती है.

हर रोज मेरे सकुशल घर आने पर उस में बढ़ती हैरानी को देख सच पूछो तो मैं भी परेशान होने लगा हूं. कई बार इस परेशानी में रात को नींद नहीं आती. अजीबअजीब से सपने आते हैं. कल रात के सपने ने तो मुझे तड़पा ही दिया.

मैं ने सपने में देखा कि जब मैं औफिस से सब्जी ले कर घर आ रहा था तो मेरा एनकाउंटर हो गया है. पुलिस कहानियां बना अपने को शेर साबित कर रही है. मीडिया में मरने के बाद मैं कुलांचे मार रहा हूं. इस देश में आम आदमी मरने के बाद ही कुलांचे मारता है वह भी मीडिया की कृपा से. बहरहाल, मामला आननफानन सरकार के द्वार पहुंचा तो उस ने मामले को सांत्वना देनी चाही. प्रशासन मेरी पत्नी के द्वार सांत्वना देने के बजाय मामला दबाने आ धमका. वह तो मेरे जाने से पहले ही प्रशासन का इंतजार कर रही थी जैसे.

मेरे फेक एनकाउंटर के बाद सरकार और पत्नी के बीच जो बातें हुईं, प्रस्तुत हैं, आने वाले समय में किए जाने वाले फेक एनकाउंटरों में शहीद होने वालों को प्रसन्न करने वाले उन बातों के कुछ अंश :

‘बहनजी, गलती हो गई, हमारे पुलिस वाले से आप के पति का एनकाउंटर हो गया,’ कोई सरकार सा मेरी बीवी के आगे दोनों हाथ जोड़े सांत्वना देने के बदले मेरी मौत की सौदेबाजी करने के पूरे मूड में.

‘कोई बात नहीं सर. पुलिस से बहुधा गलती हो ही जाती है. हमारी पुलिस है ही गलती का पुतला. उन के जाने के बाद ही सही, आप हमारे द्वार आए, हमें तो कुबेर मिल गया. अब हमें उन के एनकाउंटर का तनिक गम नहीं. वैसे भी इस धरती पर जो आया है, उसे किसी न किसी दिन तो जाना ही है. बंदा जाने के बाद भी कुछ दे कर जाए तो बहुत अच्छा लगता है सर.’ आह, मेरी बीवी का दर्द. वारि जाऊं बीवी की मेरे लिए श्रद्धांजलि के प्रति. काश, ऐसी बीवी ब्रह्मचारियों को भी मिले.

‘देखो बहनजी, हम वैसा दूसरा पति तो आप को ला कर दे नहीं सकते पर हम ऐसा करते हैं…’ सरकार ने बीच में अपनी वाणी रोकी तो मेरी बीवी की आर्थिक चेतना जैसे जागृत हुई. उन के जाने के बाद अब तो सरकार मुझे, बस, आप का ही सहारा है,’ पत्नी कुछ तन कर बैठी.

‘तो आप को अपने यहां आप के पति की जगह पर सरकारी नौकरी में लगा देते हैं. आप चाहो तो कल से ही आ जाओ. इस के साथ ही साथ आप को एक सरकारी टू रूम सैट भी हम अभी दे देते हैं. चाबियां निकालो यार. आप के खाते में अपनी गलतीसुधार के लिए जिंदा जनता के पैसों में से 20 लाख रुपए जमा करवा देते  हैं,’ सरकार ने मुसकराते हुए घोषणा की तो पत्नी के कान खड़े हुए.

‘पर सर, उस मामले में तो आप ने उन की पत्नी को पीआरओ बनाया है. वहां भी पति ही गया है. पति तो सारे एक से होते हैं. फिर मेरे साथ मुआवजे को ले कर भेदभाव क्यों? उस के खाते में आप ने 25 लाख रुपए डाले. उस के बच्चों की पढ़ाई के लिए 5-5 लाख रुपए की एफडी बना दी. मेरी आप से इतनी विनती है कि कम से कम पतियों के एनकाउंटर के मामले में हम महिलाओं के साथ भेदभाव तो न कीजिए. चलो, ऐसा करती हूं सास के खाते में डालने वाले पैसे आप की सरकार पर छोड़े. पर…’

‘देखिए बहनजी, आप उन से अपनी तुलना मत कीजिए. कहां राजा भोज, कहां आप का गंगू तेली.’

‘सरकार माफ करना, आप जात पर उतर रहे हैं,’ पत्नी ने सरकार को वैसे ही आंखें दिखाईं जैसे मुझे दिखाती थी तो सरकार सहमी. पत्नी की आंखों से बड़ेबड़े तीसमारखां सहम जाते हैं. ऐसे में भला सरकार की क्या मजाल.

‘जात पर नहीं बहनजी, मैं तो मुहावरे पर उतरा था,’ सरकार को लग गया कि किसी गलत बीवी से पाला पड़ा है. सो, सरकार ने मुहावरे पर स्पष्टीकरण जारी किया.

‘पर फिर भी?’

‘देखिए बहनजी, सरकार को आप भी ब्लैकमेल मत कीजिए. सच पूछो तो, कहां उन की बीवी, कहां आप? वह मामला कुछ अधिक ही पेचीदा हो गया था. मीडिया बीच में आ गया था वरना…’

‘तो आप को क्या लगता है कि मेरे मामले में मीडिया बीच में नहीं आएगा? नहीं आएगा तो मैं ढोल बजाबजा कर सब को बताऊंगी कि मेरे पति को इन की पुलिस ने फ्री में निशाना बना दिया है,’ मेरी पत्नी की धमकी सुन सरकार डरीसहमी.

‘प्लीज, बहनजी, आप जो चाहेंगी हम करेंगे, पर मीडिया को बीच में मत डालिए. यह मसला मेरे, आप के और आप के पति के बीच हुए एनकाउंटर का है. मतलब हम तीनों के बीच का. अब पुलिस से गलती हो गई तो हो गई. सरकारी कर्मचारियों से बहुधा गलती हो ही जाती है. नशे में ही रहते हैं हरदम. पर इस गलती के लिए हम उन की जान भी तो नहीं ले सकते न. पर अब आप को भविष्य में आप के पति से भी अधिक खुश रखने के लिए दिल खोल कर मुआवजा तो दे सकते हैं न. सो दे रहे हैं. वैसे भी बहनजी, आज के इस दौर में क्या रखा है पतिसती में? अब तो कोर्ट ने भी साफ कर दिया है कि…’

‘देखो सर, अपने पति के फेक एनकाउंटर के बदले जितना आप ने पिछली दीदी को दिया है, उतना तो कम से कम लूंगी ही. इधर हर रोज पैट्रोलडीजल के दाम तो सुबह होते ही 4 इंच बढ़े होते हैं, पर अब आप ने गैस के दाम भी बढ़ा दिए. अब हमारे पास दिल जलाने के और बचा ही क्या? ऐसे में आप खुद ही देख लीजिए कि पति का मुआवजा ईमानदारी से दीदी को दिए मुआवजे से अधिक नहीं, तो उतना तो कम से कम बनता ही है.’

‘देखो बहनजी, हम ठहरे ब्रह्मचारी. हमें न पति के रेट पता हैं न पत्नी के. इस झंझट से बचने के लिए ही तो हम ने विवाह नहीं करवाया. तो अच्छा, ऐसा करते हैं, चलो, न मेरी न आप की. जो मेरे सलाहकार आप के पति के एनकाउंटर का तय करेंगे, सो आप को दे दूंगा. मेरा क्या? मेरे लिए तो सब टैक्स देने वालों का है. मैं तो बस बांटनहार हूं. अब पुलिस से गलती हो गई तो भुगतनी भी तो मुझे ही पड़ेगी. पर जो आप सरकार पर थोड़ा रहम करतीं तो…’

बीवी चुप रही.

आखिर, सरकार ने मेरी पत्नी को सांत्वना देते सहर्ष घोषणा की कि सरकार बहनजी के पति के फेक एनकाउंटर के मुआवजे के दुख में शरीक होते हुए उन्हें पुलिस में थानेदार की नौकरी, रहने को थ्री बैडरूम सरकारी आवास, उन के खाते में 25 लाख रुपए, बच्चों की सगाई के लिए 10-10 लाख रुपए और सास के लिए 5 लाख रुपए देने की सहर्ष घोषणा करती है.

सरकार की इस घोषणा के बाद मत पूछो कि पत्नी कितनी खुश. उस वक्त मेरा फेक एनकाउंटर उसे कितना पसंद आया, मत पूछो. उस ने ऊपर वाले को दोनों हाथ जोड़े और कहा, ‘हे ऊपर वाले, मेरे हर पति का ऐसा फेक एनकाउंटर हर जन्म में 4-4 बार हो.’

और मैं पत्नी से भी ज्यादा खुश. उसे इतना प्रसन्न मैं ने उस वक्त पहली बार देखा, तो मन गदगद हो गया. मेरी अंधी आंखें खुशी के आंसुओं से लबालब हो आईं. वाह, अपने एनकाउंटर के बाद ही सही, पत्नी को खुश तो देख सका.

हे जनपोषण को चौबीसों घंटे वचनबद्ध मित्रो, आप ने मेरा फेक एनकाउंटर कर मुझे मृत्यु नहीं, खुशियों भरा नया जीवन प्रदान किया है. आप के हौसले यों ही बुलंद रहें.

श्रद्धांजलि का आविष्कार : प्रोग्राम स्पांसर करवाना आसान काम तो नहीं

किट्टी पार्टी में क्या हुआ और क्या होने वाला है इस मामले में अकसर मेरी श्रीमतीजी मुझ से शेयर नहीं करतीं. शायद इस नाचीज को वह इस काबिल नहीं समझतीं. मगर इस बार जो किट्टी पार्टी की खास बैठक हुई उस में क्या हुआ था यह सूचना मुझे देते समय वह राष्ट्रीय गौरव सा महसूस कर रही थीं. उन्होंने हमें बताया कि हम आने वाले समय के गणतंत्र वर्ष के दौरान देश पर शहीद हुए लोगों को धूमधाम से श्रद्धांजलि देने जा रहे हैं. किट्टी पार्टी में शहीदों को श्रद्धांजलि और वह भी धूमधाम से? मैं अचकचाते हुए थोड़ा चौंका, मगर अगले ही पल उन्होंने सौरी बोलते हुए ‘धूमधाम’ की जगह ‘सच्चे दिल से’ फिट कर दिया.

मैं ने पूछा, ‘‘यह गणतंत्र वर्ष क्या होता है?’’

मुझे बताया या कहें समझाया गया कि अवर कंट्री इंडिया में पहली बार बिलकुल नए तरीके से सोचा गया है, श्रद्धांजलि अर्पित करने के बारे में. पिछले साल के गणतंत्र दिवस से ले कर इस साल के गणतंत्र दिवस के बीच जो देश पर शहीद हुए हैं उन्हें हम महिलाएं हर वर्ष अपनी किसी एक किट्टी सिटिंग में तहेदिल से याद करेंगी. गणतंत्र वर्ष का फार्मेट बनाने की प्रेरणा हमें वित्त वर्ष से मिली है.

‘‘क्या तरीका अपनाओगे?’’ मैं ने पूछा.

अब किट्टी क्लब की सचिव बोल रही थीं, ‘‘हम फिल्मी या टीवी कलाकारों की तरह नाचगा कर श्रद्धांजलि कतई नहीं देंगे क्योंकि इस के लिए हमें थिएटर या बड़ा हाल बुक करना पड़ेगा. डांसर्स व सिंगर्स के अलावा कई लोगों से संपर्क करना पड़ेगा. सब से ज्यादा पंगा होगा उन लोगों को बुलाना, जिन से हाल भरेगा. फिर वहां किसी को अध्यक्ष बनाना पड़ेगा और वह भी ऐसा जो वीआईपी टाइप हो ताकि प्रेस आए और अखबारों के साथसाथ कम से कम लोकल चैनलों पर तो कवरेज मिल जाए. कुछ खास लोगों के चायनाश्ते का इंतजाम तो करना ही पड़ेगा. सब से ज्यादा सिरदर्द तो पैसा इकट्ठा करना है. इकनामिक क्राइसिस के मौसम में हमें उद्योगपतियों से पैसे भी नहीं मिलेंगे. हालांकि ऐसे प्रोग्राम को स्पांसर नहीं कराना चाहिए मगर कराना भी चाहें तो आजकल कोई नहीं करेगा.

‘‘क्या करें…अब डिसाइड कर लिया है तो कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा. उतावली दामिनी ने अपने पति की मदद से सब अखबारों के लिए प्रेस नोट भी जारी कर दिया है कि श्रद्धांजलि दी जाएगी. 1-2 दिन में खबर छप जाएगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘परेशान होने की बात नहीं है क्योंकि आप लोग कोई गलत काम करने तो नहीं जा रहे. श्रद्धांजलि देना तो पुण्य कमाना ही है. ठंडे दिमाग से कुछ और सिंपल व कम खर्च कराने वाला तरीका सोचो.’’

पत्नी ने कहा, ‘‘हम उन शहीदों के बच्चों को निशुल्क पढ़ा कर भी सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं. हमारे शहर में दोचार ही होंगे मगर हम अपने बच्चों के लिए ट्यूटर ढूंढ़ने में परेशान रहते हैं, उन के लिए ढूंढ़ना और सिरदर्दी बढ़ानी होगी. किसी सरकारी स्कूल में मेडिकल चेकअप करा कर भी हम श्रद्धांजलि दे सकते हैं लेकिन इस चक्कर में हर क्लास में बच्चों की भीड़ का चेकअप कराना पड़ेगा और बाद में फालोअप न किया तो बेकार जाएगा. वैसे हम बरसात के मौसम में अपने नौनवर्किंग लेडीज क्लब के साथ सहयोग कर वृक्षारोपण करा कर भी श्रद्धांजलि दे सकते हैं. हमारी एक किट्टी फें्रड के पति फारेस्ट आफिसर हैं. पौधे मुफ्त मिलेंगे, पर यह सब लेट हो जाएगा.’’

मेरे होंठों पर मुसकराहट अनायास आ रही थी. मैं ने श्रीमतीजी से कहा, ‘‘कुछ नया सोचो न, हमें समय के साथ सोच को पूरी तरह बदल कर ही सोचना चाहिए.’’

वह चेहरे पर तपाक से ग्लो ला कर बोलीं, ‘‘स्कूल में ‘फैशन शो’ करा दें तो कैसा रहेगा. क्या हम अपने इंडियन कल्चर को प्रोमोट कर रहे फैशन के माध्यम से श्रद्धांजलि नहीं दे सकते? हमारे शहर में सांस्कृतिक आयोजन नहीं होते. हम एक रियलिटी शो करा दें और हर एपिसोड के समापन पर श्रद्धांजलि देते रहें तो कैसा रहेगा. इस बहाने लोग भी ज्यादा आएंगे, पैसा भी खुश हो कर देंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘आप बिना पैसा इकट्ठा किए व खर्चे के भी श्रद्धांजलि दे सकती हैं. जैसे हर महीने के पहले सप्ताह में नियमित रूप से एक प्रेस रिलीज दे कर या फिर बिना किसी से कहे, कोई कार्यक्रम किए बिना यानी बिना शोर मचाए, सादगी से मन ही मन प्रार्थना कर कि जिन के घर से हमेशा के लिए कोई चला गया उन्हें आत्मशक्ति व आर्थिक सुविधा मिले और कुदरत उन्हें यह सब सहने की हिम्मत दे.’’

श्रीमतीजी की किट में जवाब पहले से ही था, बोलीं, ‘‘हम कुछ भी करें, मगर यह बात पक्की है कि हम जो भी करेंगे दिमाग से करेंगे. आप चिंता न करें.’’

मैं ने कहा, ‘‘दिमाग से करेंगे या दिल से?’’

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव : अपनों में ही फंसी भाजपा

महाराष्ट्र में साल 2024 के विधानसभा चुनाव का घमासान शुरू हो चुका है. 5 साल सरकार चलाने के बाद भी भाजपा संकट में फंसी है. सब से बड़ी मशक्कत सीटों के बंटवारे को ले कर थी. भाजपा अपने सहयोगी शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव लड़ रही है. शिव सेना और रांकापा दोनों ही विभाजित पार्टियां हैं. शिव सेना के उद्धव ठाकरे और राकांपा शरद पवार अलगअलग चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में वोटरों के सामने असली और नकली का सवाल भी है. भाजपा के सहयोगी दलों में शिव सेना की तरफ से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और राकांपा की तरफ से उपमुख्यमंत्री अजित पवार हैं.

लोकसभा चुनाव 2024 में खराब प्रदर्शन के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए महाराष्ट्र चुनाव नाक की लड़ाई बनी हुई है. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 20 नवंबर, 2024 को होगे और 23 नवंबर, 2024 को चुनाव नतीजे आएंगे. महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटें हैं. बहुमत से सरकार बनाने के लिए 145 सीटें चाहिए. साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिव सेना के गठजोड़ ने बहुमत हासिल किया था. पर सरकार बनाने को ले कर मतभेदों के बाद गठबंधन भंग हो गया था.

किसी भी पार्टी के सरकार बनाने में कामयाब न होने के चलते मंत्रिपरिषद का गठन नहीं हो पाया था, इसलिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था. 23 नवंबर, 2019 को देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. बहुमत साबित करने से पहले 26 नवंबर, 2019 को दोनों ने इस्तीफा दे दिया. 28 नवंबर, 2019 को शिव सेना, राकांपा और कांग्रेस ने एक नए गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के तहत सरकार बनाई, जिस में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने.

29 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों के एक गुट के शिव सेना से अलग हो कर भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.

अब साल 2024 के विधानसभा चुनाव में एक तरफ कांग्रेस है तो दूसरी तरफ भाजपा है. इन के सहयोगी के रूप में 2 शिव सेना और 2 राकांपा हैं. भाजपा के ऊपर शिव सेना और राकांपा को तोड़ने का आरोप है. सवाल उठता है क्या इन आरोपो के बीच भाजपा अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहेगी?

तोड़फोड़ के चलते भाजपा का विरोध

साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और उस के सहयोगी दलों को झटका लगा था, लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से भाजपा के हौसले बढ़े हुए हैं.

हरियाणा और महाराष्ट्र में अंतर है. महाराष्ट्र में भाजपा के साथ टूटने के बाद बनी शिव सेना और राकांपा हैं. इस के अलावा शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति की लहर है. जनता समझ रही है कि भाजपा ने कुरसी हासिल करने के लिए शिव सेना और राकांपा को तोड़ा है. मराठा आरक्षण के साथ ही साथ बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्याएं भाजपा के लिए परेशानी का सबब हैं.

कभी महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन अब कांग्रेस यहां पर उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ है, उन्हीं पर आश्रित है. आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है. इस के बाद भी कांग्रेस से जनता को बहुत उम्मीद है.

महाराष्ट्र में एक समय कांग्रेस का मुकाबला शिव सेना और भाजपा के बीच होता था. शिव सेना और भाजपा ने साल 1984 में पहली बार गैरकांग्रेसवाद के नाम पर हाथ थामा था. साल 1987 में जब शरद पवार वापस कांग्रेस में शामिल हुए, ‘मराठी मानुस’ की बात करने वाली शिव सेना कांग्रेस विरोध का स्तंभ बनी और उस के बढ़ने की शुरुआत हुई. समय के साथ ‘मराठी मानुस’ की बात हिंदुत्व में तबदील हो गई. इस वजह से गठबंधन में भाजपा का पलड़ा भारी होता गया.

साल 2019 के चुनाव के बाद आपसी रिश्ते खराब हुए. भाजपा को लगा सभी ठाकरे समर्थक शिंदे की तरफ हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भाजपा को एहसास हुआ कि अजीत पवार का असर पुणे जिले तक सीमित है. इस से भाजपा संकट में फंस गई है. जिन्हें भाजपा भ्रष्ट कहती थी आज वे पार्टी के साथ खड़े हैं. लोग भाजपा से ज्यादा एकनाथ शिंदे और अजीत पवार से नाराज हैं.

महाराष्ट्र में तकरीबन 28 फीसदी मराठा वोट हैं. इस वजह से मराठा आरक्षण एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है. मराठाओं की हालत पहले जैसी नहीं रही, जब उन के पास ढेर सारी जमीनें हुआ करती थीं. अब महंगाई बहुत बढ़ गई है. खेती भी अच्छी नहीं होती है. बच्चों के भविष्य को ले कर चिंता होती है.

बुनियादी ढांचा तैयार करने में फेल भाजपा

भाजपा साल 2014 से केंद्र में सरकार चला रही है. इस के बाद भी देश में विकास के नाम पर उस की उपलब्धियां बहुत सीमित रही हैं. विकास के नाम पर उस ने सड़कें बनाई हैं. दिक्कत इस बात की है कि भाजपा ने जो हाईवे बनाए हैं, उन पर चलने वाली गाड़ियां विदेशी हैं. हाईवे पर चलने के लिए टोल टैक्स देना पड़ता है, जो आम जनता जनता की औकात से बाहर है.

देश का जो पैसा निर्माण में खर्च होना चाहिए, भाजपा उसे मूर्तियां बनाने में खर्च करती है. सरदार पटेल की मूर्ति ‘स्टैच्यू औफ यूनिटी’ को बनाने में 45 महीने, 24,000 टन लोहा और 2,989 करोड़ रुपए खर्च हुए. 20,000 वर्गफुट में इस को बनाने में 2,500 मजदूरों ने काम किया.

इसी तरह से राम मंदिर बनाने में 1,800 करोड़ रुपए खर्च हुए. सरकार आम लोगों के चलने लायक रेलगाड़ी चलाने की जगह पर वंदे भारत जैसी महंगे किराए वाली रेलगाड़ी चला रही है. भाजपा की मुसलिम विरोधी नीतियों के चलते समाज में आपसी दूरी बढ़ रही है, जिस से झगड़े और दंगे बढ़ रहे हैं. साल 1947 में भारत और पाकिस्तान बंटवारे के दंगों को जिस तरह से कांग्रेस ने सुलझा कर देश को आगे बढ़ाने का काम किया था वह भाजपा की नीतियों के चलते वापस उसी दशा में पहुंच गया है.

सामान बनाने का काम भारत में बंद हो गया है. केवल मशीनों के निर्माण में ही नहीं अनाज पैदा करने में भी भारत पीछे है. खानेपीने की चीजों में विदेशी सामान देश में बिकने लगे हैं. भारत के लोग मजदूरी करने विदेश जा रहे हैं. एक तरह से देखें तो जैसे पहले गिरमिटिया मजदूर बाहर जाते थे, अब भारत के लोग इजराइल जैसे देशों में मजदूरी करने जा रहे हैं, जहां युद्ध के हालात में जान जाने का खतरा रहता है.

देश के नौजवान अच्छी नौकरी की जगह पर ओला, ऊबर, जोमैटो जैसी सेवाएं कर रहे हैं. 12,000 से 15,000 रुपए महीने की तनख्वाह की चाहत में बहुत से नौजवान 10 से 15 घंटे केवल मोटर और बाइक की सवारी कर रहे हैं, जिस से कम उम्र में ही वे तमाम तरह की बीमारियों के शिकार हो जा रहे हैं.

ऐसे में 10 साल से सरकार चला रही भाजपा के सामने हर प्रदेश में नईनई चुनौतियां हैं. ऐेसे में महाराष्ट्र चुनाव भाजपा के लिए समस्या है. तोड़फोड़ के सहारे भाजपा ने साल 2019 से साल 2024 तक सरकार तो चला ली है, पर अब संकट बड़ा है. इस से पार पाना आसान नहीं दिख रहा है.

भाजपा नौजवानों को धार्मिक यात्राओं में लगा कर उन की ऊर्जा को खत्म कर रही है. देश का 16 साल से 26 साल का नौजवान धर्मिक नारेबाजी और कट्टरता में फंस कर अपनी जिंदगी बरबाद कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के बहराइच में 26 साल के रामगोपाल मिश्रा ने अब्दुल हमीद के घर पर चढ़ कर भगवा झंडा लहराया तो उस घर के नौजवानों ने रामगोपाल को गोली मार दी. इस के बाद भड़के दंगे में लाखोंकरोड़ों रुपए का नुकसान हुआ. पुलिस ने 60 से ज्यादा नौजवानों के नाम मुकदमा लिख कर तमाम को पकड़ का जेल भेज दिया है. अब बहराइच के इन नौजवानों का भविष्य अंधकारमय हो गया है.

धर्म के कट्टरपन से किसी को फायदा नहीं होता है. दरअसल, धर्म जनता को लड़ाने के काम आ रहा है. धर्म की राजनीति बेकारी बढ़ाने का काम करती है. भाजपा धर्म के नाम पर चुनाव भले जीत जाए, लेकिन वह देश को आगे बढ़ाने वाले काम करने में पीछे रहती है.

आम रास्ता नहीं : जब सुरेश शहर की धान मंडी में गेहूं की बोरियां बेच कर लौटा

सुरेश शहर की धान मंडी में गेहूं की बोरियां बेच कर लौट रहा था. अभी उसे कई चौराहे व छोटीबड़ी सड़कें पार कर के अपने गांव पहुंचना था.

वह मंडी रोड से सीधा दिल्ली रोड पर आ गया था. यहां से परली तरफ उस के गांव को जाने वाली सड़क थी. इन दोनों के बीच की जगह में एक शानदार सरकारी इमारत थी. इस इमारत के चारों ओर घास से लदा हराभरा मैदान और चारदीवारी थी.

चारदीवारी के छोर पर बड़ा सा लोहे का गेट था, जहां एक चौकीदार खड़ा था. इस गेट से अंदर हो कर दूसरे गेट से बाहर गांव की ओर जाने वाली सड़क पर निकला जा सकता था.

यह आम रास्ता नहीं था, लेकिन छोटा जरूर था. लिहाजा, सुरेश ने डेढ़ मील पैदल न चल कर इमारत से हो कर जाने वाले रास्ते से ही गुजरना ठीक समझा.

सुरेश गेट के पास जा कर थोड़ी देर तक खड़ा देखता रहा. 2 औरतें और 4 आदमी एकएक कर के निकल गए थे. उन में से 3 ने तो चौकीदार के हाथ में कुछ दिया था और 3 को चौकीदार ने सलाम ठोंका था.

सुरेश भी मौका देख कर अंदर घुसने लगा तो चौकीदार की रोबदार और कड़क आवाज गूंजी, ‘‘ऐ रुको.’’

वह ठिठक कर वहीं खड़ा हो गया.

चौकीदार अपने बेंत को जोर से खटखटाता हुआ उस के नजदीक आ कर बोला, ‘‘क्या बात है, बिना इजाजत लिए अंदर कैसे जा रहे हो?’’

‘‘इधर से उधर जाना था,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘इस बिल्डिंग से हो कर? क्या तुम ने बोर्ड नहीं पढ़ा कि बिना इजाजत अंदर जाना मना है,’’ चौकीदार बोला.

‘‘हां, जा तो रहा था, पर बोर्ड नहीं पढ़ा,’’ सुरेश ने जवाब दिया.

‘‘अंदर किस से मिलना है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘किसी से भी नहीं,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘किसी से भी नहीं मिलना तो क्या इसे आम रास्ता समझ रखा है?’’ चौकीदार ने कड़क लहजे में पूछा.

‘‘हां,’’ सुरेश बोला.

‘‘क्या उस पार आगरा रोड पर जाना है?’’ चौकीदार ने पूछा.

‘‘हां जी, आप ने बिलकुल ठीक समझा.’’

‘‘पर, कानूनन तुम इधर से नहीं जा सकते, क्योंकि यहां घुसना भी जुर्म?है,’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘लेकिन, गैरकानूनन तो जा सकता हूं न?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘ऐ, मेरे सामने गैरकानूनी बात करता है. पता है कि मैं कौन हूं? ऐसी बातें मुझे कतई पसंद नहीं हैं,’’ चौकीदार कानून झाड़ने लगा.

‘‘क्या इस देश में सबकुछ कानून के मुताबिक चलता है? क्या यहां गैरकानूनी कुछ नहीं होता?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘फालतू बकवास कर के क्यों अपना समय बरबाद कर रहे हो?’’ चौकीदार ने चिढ़ते हुए कहा.

‘‘मैं इस बात को बखूबी जानता हूं, पर आप मुझे अभी उस तरफ जाने दीजिए, वरना मेरी आखिरी बस निकल जाएगी,’’ सुरेश ने खुशामद की.

‘‘कहा न, यह आम रास्ता नहीं है.’’

‘‘तो क्या यह खास रास्ता है, खास लोगों के लिए?’’

‘‘हां, तू ऐसा ही समझ ले.’’

‘‘तो फिर आप मुझे भी कुछ देर के लिए खास आदमी मान लीजिए. इस में आप का क्या जाता है?’’

‘‘कैसे मान लूं…’’ चौकीदार कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा इस शहर में कोई कोठीबंगला है या फिर तुम किसी ऊंचे घराने से वास्ता रखते हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम किसी पार्टी के सदस्य हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी क्लब के मैंबर हो, प्रैस क्लब, जिमखाना क्लब, किसी के भी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी भ्रष्टाचार के मामले में तुम्हारा नाम कभी उछला है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘किसी एमपी, एमएलए, सीएम, कैबिनेट मिनिस्टर से कोई पहुंच रखते हो?’’

‘‘मुझे तो इस शहर में कोई नहीं जानता, सिवा धान मंडी के मुनीमों के,’’ सुरेश ने बताया.

‘‘क्या तुम्हें बौडीगार्ड मिले हुए हैं?’’

‘‘मिले होते तो क्या अकेला यहां मक्खी मारने के लिए खड़ा होता?’’

‘‘माफिया से सांठगांठ है?’’

‘‘जी, वह भी नहीं है.’’

‘‘किसी का खून किया है या फिर कभी जेल गए हो?’’

‘‘क्या मैं आप को शक्ल से खूनी लगता हूं?’’

‘‘शक्ल से तो तुम मासूम लगते हो, लेकिन खूनी के चेहरे पर नहीं लिखा होता कि उस ने खून किया है.’’

‘‘आप सही कह रहे हैं, लेकिन मैं ने कोई खून नहीं किया.’’

‘‘क्या तुम्हारे पास काला पैसा है?’’

‘‘काला क्या, जो सफेद भी है वह भी थोड़ा सा है.’’

‘‘तो फिर तुम खास आदमी नहीं हो सकते. मैं तुम्हें खास आदमी मान कर खास आदमियों की इज्जत धूल में नहीं मिलाऊंगा,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘तो क्या खास आदमी ऐसे लोग होते हैं?’’

‘‘हां, बिलकुल ऐसे ही होते हैं.’’

तभी अचानक चौकीदार को खयाल आया कि वह एक बेहद मामूली आदमी के हर सवाल का जवाब दिए जा रहा?है, जैसे बहुत फुरसत में हो. वह खामोश हो गया.

‘‘आप कुछ खास लोगों के बारे में बता रहे थे न,’’ चौकीदार को अचानक चुप हुआ देख कर सुरेश ने कहा.

‘‘हां बता तो रहा था, लेकिन यह जरूरी नहीं कि मैं सारी बातें बताऊं.’’

‘‘अजी, आप तो नाराज हो गए. चलिए, बातें खत्म करते हैं. अब मुझे इधर से निकलने दीजिए.’’

‘‘बिलकुल नहीं. तुम इतनी जिद क्यों कर रहे हो?’’

‘‘मैं जल्दी घर नहीं पहुंचा तो बीवीबच्चे चिंता करेंगे. मुझे कई जरूरी काम भी निबटाने हैं.’’

‘‘इस मुल्क में जितने गैरजरूरी लोग हैं, उन्हें ही जरूरी काम होते हैं.’’

‘‘आप अब हद से आगे बढ़ रहे?हैं,’’ सुरेश गुस्से से बोला.

‘‘मेरी हद क्या है, यह तुम तय करोगे?’’ चौकीदार भी सख्त लहजे में बोला.

कुछ पलों तक सुरेश सख्त नजरों से उसे देखता रहा, फिर चौकीदार बोला, ‘‘तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं इस समय ड्यूटी पर हूं. यहां की सिक्योरिटी का जिम्मा भी मेरा है. तुम्हें शायद पता नहीं, इस बिल्डिंग में बड़े लोगों की मीटिंग चल रही?है. उन की सिक्योरिटी की जिम्मेदारी भी मेरी ही है.’’

‘‘किस मुद्दे को ले कर मीटिंग चल रही है?’’ सुरेश ने पूछा.

‘‘मीटिंग के लिए किसी मुद्दे की जरूरत नहीं होती’’

‘‘बिना मुद्दों के मीटिंग?’’ सुरेश ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘इस राजधानी में एक करोड़ लोग रहते हैं. मुद्दे भी एक करोड़ ही समझो. यहां मुद्दों की क्या कमी है?’’

‘‘फिर भी, कुछ तो मुद्दा होगा.’’

‘‘हां, फिलहाल चायनाश्ते के साथ मीटिंग इस मुद्दे पर हो रही है कि अगले हफ्ते किस मुद्दे को ले कर मीटिंग की जाए.’’

इसी बीच सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया. उस ने गेट में घुसने की कोशिश की.

उसे घुसता देख कर चौकीदार कड़क लहजे में बोला, ‘‘ऐ रुको, यह आम रास्ता नहीं है.’’

उस आदमी ने जेब में से 10 रुपए का सिक्का निकाला. उसे अपने हथेली में फंसाते हुए चौकीदार के पास अपने हाथ को ले कर बोला, ‘‘कैसे हो दोस्त?’’

चौकीदार मुसकराया. उस ने अपना हाथ बढ़ा कर आदमी के हाथ से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अच्छा हूं दोस्त, बहुत दिनों बाद मिले हो.’’

इस बीच 10 रुपए का वह सिक्का चौकीदार की हथेली में चला गया था. फिर लोहे का गेट पूरा खुला और खास रास्ता, खास आदमी के लिए खुल गया. इधर 10 रुपए का सिक्का चौकीदार की जेब में पहुंच गया था.

अब सुरेश की समझ में सारी बात आ गई थी. उस ने जेब में हाथ डाल कर 5 रुपए का सिक्का निकाला. सिक्का अपने हाथ में रख कर चौकीदार की ओर बढ़ाने लगा कि तभी चौकीदार बोला, ‘‘अब क्यों शर्मिंदा करते हो यार. अब तुम जाओ. देखो, मैं ने तुम्हारे लिए गेट खोल रखा है. यह आम रास्ता तो नहीं है, फिर भी अब तुम मेरे खास हो.’’

सुरेश ने चौकीदार की तरफ देखा. वह काफी शर्मिंदा सा लग रहा था. पर यही तो उस की ऊपरी कमाई थी, जो खास रास्ते से गुजरने वाले खास लोगों से उसे मिलती थी. सुरेश उस का शुक्रिया अदा कर के अपने रास्ते की ओर निकल गया.

स्वप्न साकार हुआ : क्या आरती अपना अतीत डा. विक्रम को बता पाएगी?

रात में रसोई का काम समेट कर आरती सोने के लिए कमरे में आई तो देखा, उस के पति डा. विक्रम गहरी नींद में सो रहे थे. उन के बगल में बेटी तान्या सो रही थी. आरती ने सोने की कोशिश बहुत की लेकिन नींद जैसे आंखों से कोसों दूर थी. फिर पति के चेहरे पर नजर टिकाए आरती उन्हीं के बारे में सोचती रही.

डा. विक्रम सिंह कितने सरल और उदार स्वभाव के हैं. इन के साथ विवाह हुए 6 माह बीत चुके हैं और इन 6 महीनों में वह उन्हें अच्छी तरह पहचान गई है. कितना प्यार और अपनेपन के साथ उसे रखते हैं. उसे तो बस, ऐसा लगता है जैसे एक ही झटके में किसी ने उसे दलदल से निकाल कर किसी महफूज जगह पर ला कर खड़ा कर दिया है.

उस का अतीत क्या है? इस बारे में कुछ भी जानने की डा. विक्रम ने कोई जिज्ञासा जाहिर नहीं की और वह भी अभी कुछ कहां बता पाई है. लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं कि वह उन को धोखे में रखना चाहती है. बस, उन्होंने कभी पूछा नहीं इसलिए उस ने बताया नहीं. लेकिन जिस दिन उन्होंने उस के अतीत के बारे में कुछ जानने की इच्छा जताई तो वह कुछ भी छिपाएगी नहीं, सबकुछ सचसच बता देगी.

इसी के साथ आरती का अतीत एक चलचित्र की तरह उस की बंद आंखों में उभरने लगा. वह कहांकहां छली गई और फिर कैसे भटकतेभटकते वह मुंबई की बार गर्ल से डा. विक्रम सिंह की पत्नी बन अब एक सफल घरेलू औरत का जीवन जी रही है.

आज की आरती अतीत में मुंबई की एक बार गर्ल बबली थी. बार बालाओं के काम पर कानूनन रोक लगते ही बबली ने समझ लिया था कि अब उस का मुंबई में रह कर कोई दूसरा काम कर के अपना पेट भरना संभव नहीं है.

मुंबई के एक छोर से दूसरे छोर तक, जिधर भी जाएगी, लोगों की पहचान से बाहर न होगी. अत: उस ने मुंबई छोड़ देने का फैसला किया. गुजरात के सूरत जिले में उस की सहेली चंदा रहती थी. उस ने उसी के पास जाने का मन बनाया और एक दिन कुछ जरूरी कपड़े तथा बचा के रखी पूंजी ले कर सूरत के लिए गाड़ी पकड़ ली.

सूरत पहुंचने से पहले ही बबली ने चंदा के यहां जाने का अपना विचार बदल दिया क्योंकि ताड़ से गिर कर वह खजूर पर अटकना नहीं चाहती थी. चंदा भी सूरत में उसी तरह के धंधे से जुड़ी थी.

बबली के लिए सूरत बिलकुल अजनबी व अपरिचित शहर था जहां वह अपने पुराने धंधे को छोड़ कर नया जीवन शुरू करना चाहती थी. इसीलिए शहर के मुख्य बाजार में स्थित होटल में एक कमरा किराए पर लिया और कुछ दिन वहीं रहना ठीक समझा ताकि इस शहर को जानसमझ सके.

बबली को जब कुछ अधिक समझ में नहीं आया तो कुकरी का 3 माह का कोर्स उस ने ज्वाइन कर लिया. इसी दौरान बबली सरकारी अस्पताल से कुछ दूरी पर संभ्रांत कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. कोर्स सीखने के दौरान ही उस ने अपने मन में दृढ़ता से तय कर लिया कि अब एक सभ्य परिवार में कुक का काम करती हुई वह अपना आगे का जीवन ईमानदारी के साथ व्यतीत करेगी.

कुकरी की ट्रेनिंग के बाद बबली को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जल्दी ही उसे एक मनमाफिक विज्ञापन मिल गया और पता पूछती हुई वह सीधे वहां पहुंची. दरवाजे की घंटी बजाई तो घर की मालकिन वसुधा ने द्वार खोला.

बबली ने अत्यंत शालीनता से नमस्कार करते हुए कहा, ‘आंटी, अखबार में आप का विज्ञापन पढ़ कर आई हूं. मेरा नाम बबली है.’

‘ठीक है, अंदर आओ,’ वसुधा ने उसे अंदर बुला कर इधरउधर की बातचीत की और अपने यहां काम पर रख लिया.

अगले दिन से बबली ने काम संभाल लिया. घर में कुल 3 सदस्य थे. घर के मालिक अरविंद सिंह, उन की पत्नी वसुधा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा बेटा राजन.

बबली के हाथ का बनाया खाना सब को पसंद आता और घर के सदस्य जब तारीफ करते तो उसे लगता कि उस की कुकरी की ट्रेनिंग सार्थक रही. दूसरी तरफ बबली का मन हर समय भयभीत भी रहता कि कहीं किसी हावभाव से उस के नाचनेगाने वाली होने का शक किसी को न हो जाए. यद्यपि इस मामले में वह बहुत सजग रहती फिर भी 5-6 सालों तक उसी वातावरण में रहने से उस का अपने पर से विश्वास उठ सा गया था.

एक दिन शाम के समय परिवार के तीनों सदस्य आपस में बातचीत कर रहे थे. बबली रसोई में खाना बनाने के साथसाथ कोई गीत भी गुनगुना रही थी कि राजन की आवाज कानों में पड़ी, ‘बबलीजी, एक गिलास पानी दे जाना.’

गाने में मगन बबली ने गिलास में पानी भरा और हाथ में लिए ही अटकतीमटकती चाल से राजन के पास पहुंची और उस के होंठों से गिलास लगाती हुई बोली, ‘पीजिए न बाबूजी.’

राजन अवाक् सा बबली को देखता रह गया. वसुधा और अरविंद को भी उस का यह आचरण अच्छा न लगा पर वे चुप रह गए. अचानक बबली जैसे सोते से जागी हो और नजरें नीची कर के झेंपती हुई वहां से हट गई. बाद में उस ने अपनी इस गलती के लिए वसुधा से माफी मांग ली थी.

आगे सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहा. बबली को काम करते हुए लगभग 2 माह बीत चुके थे. एक दिन शाम को वसुधा क्लब जाने के लिए तैयार हो रही थीं कि पति अरविंद भी आफिस से आ गए. वसुधा ने बबली से चाय बनाने को कहा और अरविंद से बोली, ‘मुझे क्लब जाना है और घर में कोई सब्जी नहीं है. तुम ला देना.’

‘डार्लिंग, अभी तो मुझे जाना है. हां, 1 घंटे बाद जब वापस आऊंगा तो उधर से ही सब्जी लेता आऊंगा,’ अरविंद बोले.

‘लेकिन सब्जी तो इसी समय के लिए चाहिए,’ वसुधा बोली, ‘ऐसा कीजिए, बबली को अपने साथ लेते जाइए और सब्जी खरीद कर इसे ही दे दीजिएगा. यह लेती आएगी.’

चाय पीने के बाद अरविंद ने बबली से चलने को कहा तो वह दूसरी तरफ का आगे का दरवाजा खोल कर उन की बगल की सीट पर धम से बैठ गई और जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, अचानक अरविंद के कंधे पर हाथ मार कर बबली बोली, ‘अपन को 1 सिगरेट चाहिए, है क्या?’

अरविंद चौंक से गए. यह कैसी लड़की है? फिर बबली की आवाज कानों में पड़ी, ‘लाओ न बाबूजी, सिगरेट है?’

अरविंद ने गाड़ी रोक दी और उस की तरफ देखते हुए जोर से बोले, ‘बबली, आज तू पागल हो गई है क्या? सिगरेट पीएगी?’

अरविंद की आवाज बबली के कानों में गरम लावे जैसी पड़ी. तंद्रा टूटते ही उसे लगा कि अतीत के दिनों की आदतें उस पर न चाहते हुए भी जबतब हावी हो जाती हैं. अपने को संभालती हुई बबली बोली, ‘अंकल, आज मैं बहुत थकी हुई थी. आप की गाड़ी में हवा लगी तो झपकी आ गई. उसी में पता नहीं कैसेकैसे सपने आने लगे. जैसे कोई सिगरेट पीने को मांग रहा हो. माफ कीजिए अंकल, गलती हो गई.’ हाथ जोड़ कर बबली गिड़गिड़ाई.

अरविंद को बबली की यह बात सच लगी और वह चुप हो गए. कार आगे बढ़ी. ढेर सारी सब्जियां खरीदवा कर अरविंद ने बबली को घर छोड़ा और अपने काम से चले गए.

अरविंद ने इस घटना का घर पर कोई जिक्र नहीं किया. वह अनुमान भी नहीं लगा सके कि बबली बार बाला है पर उस की कमजोरी को उन्होंने भांप लिया था.

बबली को अपनी इस फूहड़ता पर बड़ी ग्लानि हुई. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सावधान रहने पर भी उस से बारबार गलती क्यों हो जाती है. उस ने दृढ़ निश्चय किया कि वह भविष्य में अपने पर नियंत्रण रखेगी ताकि उस का काला अतीत आगे के जीवन में अपनी कालिमा न फैला सके.

बीतते समय के साथ सबकुछ सामान्य हो गया. बबली अपने काम में इस कदर तल्लीन हो गई कि सिगरेट मांगने वाली घटना को भूल ही गई.

एक दिन वसुधा ने बबली को चाबी पकड़ाते हुए कहा, ‘मुझे दोपहर बाद एक सहेली के घर जन्मदिन पार्टी में जाना है, तुम समय से आ कर खाना बना देना. मुझे लौटने में देर हो सकती है. राजन तो आज होस्टल में रुक गया है लेकिन अरविंदजी को समय से खाना खिला देना.’

‘जी, आंटी, लेकिन अगर साहब को आने में देर होगी तो मैं मेज पर उन का खाना लगा कर चली जाऊंगी.’

‘ठीक है, चली जाना.’

शाम को जल्दी आने की जगह बबली कुछ देर से आई तो देखा दरवाजा अंदर से बंद है. उस ने दरवाजे की घंटी बजाई तो अरविंद ने दरवाजा खोला. उसे कुछ संकोच हुआ. फिर भी काम तो करना ही था. सो अंदर सीधे रसोई में जा कर अपने काम में लग गई.

बरतन व रसोई साफ करने के बाद बबली बैठ कर सब्जी काट रही थी कि अरविंद ने कौफी बनाने के लिए बबली से कहा.

कौफी बना कर बबली उसे देने के लिए उन के कमरे में गई तो देखा, वह पलंग पर लेटे हुए थे और उन्होंने इशारे से कौफी की ट्रे को पलंग की साइड टेबल पर रखने को कहा.

बबली ने अभी कौफी की ट्रे रखी ही थी कि उन्होंने उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया. वह धम से उन के ऊपर गिर पड़ी. उसे अपनी बांहों में भरते हुए अरविंद ने कहा, ‘जानेमन, तुम ने तो कभी मौका नहीं दिया, लेकिन आज यह सुअवसर मेरे हाथ लगा है.’

बबली अपने को उन के बंधन से छुड़ाते हुए बोली, ‘छोडि़ए अंकल, क्या करते हैं?’

लेकिन अरविंद ने उसे छोड़ने की जगह अपनी बांहों में और भी शक्ति के साथ जकड़ लिया. अपने बचने का कोई रास्ता न देख कर बबली ने हिम्मत कर के एक जोरदार तमाचा अरविंद के गाल पर जड़ दिया. अप्रत्याशित रूप से पड़े इस तमाचे से अरविंद बौखला से गए.

‘दो कौड़ी की छोकरी, तेरी यह हिम्मत,’ कहते हुए अरविंद उस पर जानवरों जैसे टूट पड़े थे कि तभी दरवाजे की घंटी बज उठी और उन की पकड़ एकदम ढीली पड़ गई.

बबली को लगा कि जान में जान आई और भाग कर उस ने दरवाजा खोल दिया. सामने वसुधा खड़ी थी. उन से बिना कुछ कहे बबली रसोई में खाना बनाने चली गई.

खाना बनाने का काम समाप्त कर बबली जाने के लिए वसुधा से कहने आई. वसुधा ने देखा खानापीना सबकुछ तरीके से मेज पर सज गया था. उस की प्रशंसा करती हुई वसुधा ने कहा, ‘बबली, मुझे तुम्हारा काम बहुत पसंद आता है. मैं जल्दी ही तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी.’

इतने समय में बबली ने निश्चय कर लिया कि अब वह इस घर में काम नहीं करेगी. अत: दुखी स्वर में बोली, ‘आंटी, इतने दिनों तक आप के साथ रह कर मैं ने बहुत कुछ सीखा है लेकिन कल से मैं आप के घर में काम नहीं करूंगी. मुझे क्षमा कीजिएगा…मेरा भी कोई आत्म- सम्मान है जिसे खो कर मुझे कहीं भी काम करना मंजूर नहीं है.’

‘अरे, यह तुझे क्या हो गया? मैं ने तो कभी भी तुझे कुछ कहा नहीं,’ वसुधा ने जानना चाहा.

‘आप ने तो कभी कुछ नहीं कहा आंटी, पर मैं…’ रुक गई बबली.

अब वसुधा का माथा ठनका. वह सीधे अरविंद के कमरे में पहुंचीं और बोलीं, ‘आज आप ने बबली को क्या कह दिया कि वह काम छोड़ कर जाने को तैयार है?’

अरविंद ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘हां, थोड़ा डांट दिया था. कौफी पलंग पर गिरा दी थी. लेकिन कह दो, अब कभी कुछ नहीं कहूंगा.’

पति की बात को सच मान कर वसुधा ने बबली को बहुतेरा समझाया लेकिन वह काम करने को तैयार नहीं हुई.

घर आ कर पहले तो बबली की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे. अगले दिन जब तनावरहित हो कर वह आगे के जीवन के बारे में सोच रही थी तो उसे पड़ोस में रहने वाली हमउम्र नर्स का ध्यान आया. बस, उस के मन में खयाल आया कि क्यों न वह भी नर्स की ट्रेनिंग ले कर नर्स बन जाए और अपने को मानव सेवा से जोड़ ले. इस से अच्छा कोई दूसरा कार्य नहीं हो सकता.

उस नर्स से मिल कर बबली ने पता कर के नर्स की ट्रेनिंग के लिए आवेदनपत्र भेज दिया और कुछ दिनों बाद उस का चयन भी हो गया. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उसे सरकारी अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई. नर्स के सफेद लिबास में वह बड़ी सुंदर व आकर्षक दिखती थी.

अस्पताल में डा. विक्रम सिंह की पहचान अत्यंत शांत, स्वभाव के व्यवहारकुशल और आकर्षक व्यक्तित्व वाले डाक्टर के रूप में थी. बबली को उन्हीं के स्टाफ में जगह मिली, तो साथी नर्सों से पता चला कि डा. विक्रम विधुर हैं. 2 साल पहले प्रसव के दौरान उन की पत्नी का देहांत हो गया था. उन की 1 साढ़े 3 साल की बेटी भी है जो अपनी दादीमां के साथ रहती है. इस हादसे के बाद से ही डा. विक्रम शांत रहने लगे हैं.

उन के बारे में सबकुछ जान लेने के बाद बबली के मन में डाक्टर के प्रति गहरी सहानुभूति हो आई. बबली का हमेशा यही प्रयास रहता कि उस से कोई ऐसा काम न हो जाए जिस से डा. विक्रम को किसी परेशानी का सामना करना पड़े.

अब सुबहशाम मरीजों को देखते समय बबली डा. विक्रम के साथ रहती. इस तरह साथ रहने से वह डा. विक्रम के स्वभाव को अच्छी तरह से समझ गई थी और मन ही मन उन को चाहने भी लगी थी लेकिन उस में अपनी चाहत का इजहार करने की न तो हिम्मत थी और न हैसियत. वह जब कभी डाक्टर को ले कर अपने सुंदर भविष्य के बारे में सोचती तो उस का अतीत उस के वर्तमान और भविष्य पर काले बादल बन छाने लगता और वह हताश सी हो जाती.

एक दिन डा. विक्रम ने उसे अपने कमरे में बुलाया तो वह सहम गई. लगा, शायद किसी मरीज ने उस की कोई शिकायत की है. जब वह डरीसहमी डाक्टर के कमरे में दाखिल हुई तो वहां कोई नहीं था.

डा. विक्रम ने बेहद गंभीरता के साथ उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह पहले तो हिचकिचाई पर डाक्टर के दोबारा आग्रह करने पर बैठ गई. कुछ इधरउधर की बातें करने के बाद

डा. विक्रम ने स्पष्ट शब्दों में पूछा, ‘मिस बबली, आप के परिवार में कौनकौन हैं?’

‘सर, मैं अकेली हूं.’

‘नौकरी क्यों करती हो? घर में क्या…’ इतना कहतेकहते डा. विक्रम रुक गए.

‘जी, आर्थिक ढंग से मैं बहुत कमजोर हूं,’ डाक्टर के सवाल का कुछ और जवाब समझ में नहीं आया तो बबली ने यही कह दिया.

डा. विक्रम बेहिचक बोले, ‘बबलीजी, आप को मेरी बात बुरी लगे तो महसूस न करना. दरअसल, मैं आप को 2 कारणों से पसंद करता हूं. एक तो आप मुझे सीधी, सरल स्वभाव की लड़की लगती हो. दूसरे, मैं अपनी बेटी के लिए आप जैसी मां के आंचल की छांव चाहता हूं. क्या आप मेरा साथ देने को तैयार हैं?’

बबली ने नजरें उठा कर डा. विक्रम की तरफ देखा और फिर शर्म से उस की पलकें झुक गईं. उसे लगा जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. लेकिन सामने वह खामोश ही रही.

उसे चुप देख कर डा. विक्रम ने फिर कहा, ‘मैं आप पर दबाव नहीं डालना चाहता बल्कि आप की इच्छा पर ही मेरा प्रस्ताव निर्भर करता है. सोच कर बताइएगा.’

बबली को लगा कहीं उस के मौन का डा. विक्रम गलत अर्थ न लगा लें. इसलिए संकोच भरे स्वर में वह बोली, ‘आप जैसे सर्वगुण संपन्न इनसान के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए मुझे सोचना क्या है? लेकिन मेरा अपना कोई नहीं है, मैं अकेली हूं?’

बबली का हाथ अपने हाथों में ले कर अत्यंत सहज भाव से डा. विक्रम बोले, ‘कोई बात नहीं, हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’

बबली अधिक बोल न सकी. बस, कृतज्ञ आंखों से डा. विक्रम की तरफ देख कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी.

विवाह से पहले विक्रम ने बबली को अपनी मां से मिलवाना जरूरी समझा. बेटे की पसंद की मां ने सराहना की.

बबली से कोर्ट मैरिज के बाद डा. विक्रम ने एक शानदार रिसेप्शन का आयोजन किया, जिस में उन के सभी रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त तथा अस्पताल के सभी डाक्टर, नर्स व कर्मचारी शामिल हुए. हां, रिसेप्शन के निमंत्रणपत्र पर डा. विक्रम सिंह ने बबली का नाम बदल कर अपनी दिवंगत पत्नी के नाम पर आरती रख दिया था.

उन्होंने बबली से कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि तुम को बबली के स्थान पर आरती नाम से पुकारूं. तुम को कोई आपत्ति तो न होगी?’

बबली उन की आकांक्षा को पूरापूरा सम्मान देना चाहती थी इसलिए सहज भाव से बोली, ‘आप जैसा चाहते हैं मुझे सब स्वीकार है. आप की आरती बन कर आप की पीड़ा को कम कर सकूं और तान्या को अपनी ममता के आंचल में पूरा प्यार दे सकूं इस से बढ़ कर मेरे लिए और क्या हो सकता है?’ इस तरह वह बबली से आरती बन गई.

अचानक तान्या के रोने की आवाज सुन कर बबली की तंद्रा टूटी तो वह उठ कर बैठ गई. सुबह हो गई थी. विक्रम अभी सो रहे थे. तान्या को थपकी दे कर बबली ने चुप कराया और उस के लिए दूध की बोतल तैयार करने किचन की तरफ बढ़ गई.

विक्रम की सहृदयता और बड़प्पन के चलते आज सचमुच सम्मान के साथ जीने की उस की तमन्ना का स्वप्न साकार हो गया और वह अपनी मंजिल पाने में सफल हो गई.

मेरा मास्टरबेट करने का बहुत मन करता है पर मुझे डर लगता है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं 19 साल का हूं. मेरे मन में मास्टरबेशन को ले कर कई सवाल आते हैं और मुझे इसे करने का भी बहुत मन करता है पर मुझे डर लगता है कि इस से कहीं मेरे लिंग को कोई नुकसान न पहुंच जाए. मैं ने कई बार गूगल पर भी इस के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की लेकिन सच कहूं तो इंटरनैट पर मिली जानकारी पर मुझे पूरी तरह भरोसा नहीं होता. मेरा परिवार पारंपरिक रुढ़िवादी सोच रखता है तो मैं उन से भी खुल कर बात नहीं कर पाता क्योंकि मुझे लगता है कि अगर मैं ने कुछ ऐसी बात की तो वे मुझ पर काफी गुस्सा करेंगे. आप ही मुझे जानकारी दीजिए कि मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत.

जवाब –

सब से पहले तो आप को किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. मास्टरबेशन पूरी तरह से नैचुरल है और आप की उम्र में सब का मन करता है मास्टरबेट करने का. और तो और आप ही की तरह ऐसे सवाल सब के मन में आते हैं.

बढ़ती उम्र में हमारे शरीर में कई सारे हारमोनल बदलाव होते हैं जिस की वजह से हमें मास्टरबेट करने का मन करता है जोकि पूरी तरह से स्वभाविक है. कई डौक्टर्स के अनुसार तो मास्टरबेशन को हैल्दी भी बताया गया है मगर सीमित रूप में ही.

यह सच है कि मास्टरबेट करने से हमारा स्ट्रैस खत्म होता है और हमारे मन में किसी के प्रति गलत विचार नहीं आते. अगर आप का मन करता है कि आप मास्टरबेट करें तो आप बिंदास कर सकते हैं, बिना किसी बात का स्ट्रैस लिए पर ध्यान रहे कि मास्टरबेट हमेशा अकेले में करें और इस बात का जिक्र अपने परिवार में से किसी से न करें.

आप को मास्टरबेशन की आदत बिलकुल नहीं बनानी है क्योंकि अभी आप की उम्र पढ़ाई करने की है तो आप को ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ने में लगाना चाहिए और इन सब खयालों से दूर रहना चाहिए.

भले ही मास्टरबेट करने में कोई नुकसान नहीं है पर अगर आप के दिमाग में हर समय बस इसी का खयाल रहता है तो आप को ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए. आप को ऐसे खयालों से बचना होगा और कभीकभी ही मास्टरबेट करें तो अच्छा है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

लाले और जाले की कहानी

मलिक साहब एक वकील थे, जो अमेरिका जा कर बस गए थे. जब वह स्वदेश आए तो उन से उन की वकालत के दिनों के केसों में सब से रोचक केस सुनाने के लिए कहा गया.

यह कहानी उन्हीं के कथनानुसार है. उन्होंने बताया, ‘मेरे गुरु लाहौर के एक प्रसिद्ध वकील थे. उन के पास फौजदारी मुकदमों की लाइन लगी रहती थी. बड़ेबड़े मुकदमे वह खुद लिया करते थे और छोटेमोटे चोरीडकैती वगैरह के मुकदमे मुझे दिया करते थे. मैं बहुत मेहनत से काम करता था, इसलिए जल्दी ही मेरी गिनती बड़े वकीलों में होने लगी थी.

मेरे 2 क्लायंट थे, जो अकसर छोटेमोटे अपराध किया करते थे. एक का नाम जाले था, जो खातेपीते घराने का था. उसे खानेकमाने की कोई चिंता नहीं थी. जबकि दूसरे का नाम लाले था. वह था तो गरीब घर का, लेकिन उस का शरीर पहलवानों जैसा था.

उस के डीलडौल की वजह से उस से कोई पंगा नहीं लेता था. दोनों मेरे पक्के क्लायंट थे और अपना हर केस मुझे ही देते थे. कभीकभी तो दोनों मेरी फीस भी एडवांस में दे देते थे. वे कहते थे, ‘‘वकील साहब, रख लो. अगर कभी हम किसी केस में फंसे तो इसे अपनी फीस समझ लेना.’’

जाले खातेपीते घराने का था और उस की पीठ पर उस के ताऊ का हाथ था. ताऊ की कोई संतान नहीं थी, इसलिए ताऊ की पूरी संपत्ति और कारोबार उसे ही मिलना था. वह अकसर जुआ खेला करता था, इसलिए पैसे से तंग रहता था.

इस के लिए कई बार वह घटिया हरकतें भी करता था. मसलन, जैसे छोटे बच्चों से पैसे छीन लेना, किसी छोटी बच्ची के कानों से सोने की बालियां उतार लेना.

दूसरी ओर लाला यानी लाले मेहनतमजदूरी करता था. जुआ वह भी खेलता था. जब पैसे नहीं होते थे तो वह अपने मांबाप या विवाहिता बहन से बहाने से पैसे मांग लेता था. जब कहीं से पैसे नहीं मिलते थे तो वह कहीं हाथ मार कर अपना शौक पूरा कर लेता था. सब उस से डरते थे और उसे लाला पहलवान कह कर बुलाते थे.

गर्मियों में जब मैं रोज अपने औफिस के लिए निकलता तो अपने भाई की दूध की दुकान पर जरूर जाता था. वहां मैं पिस्ता, बादाम और खोए का ठंडा दूध पी कर जाता था. एक दिन मैं दूध पी रहा था तो लाले वहां आ गया.

उस ने बोस्की का सूट और बढि़या जूते पहन रखे थे और बहुत खुश था. उस ने मुझे देखते ही जोर से कहा, ‘‘अरे वकील साहब आप?’’ फिर जेब से बहुत सारे नोट निकाल कर बोला, ‘‘लो साल भर की फीस इकट्ठी ही एडवांस में ले लो.’’

मैं ने कहा, ‘‘लाले, इतना रुपया कहां से आया, क्या कहीं लंबा हाथ मारा है?’’

वह बोला, ‘‘मलिक साहब, कल रात ताश के पत्ते मेरे ऊपर मेहरबान थे, बाजी पर बाजी जीतता गया. अब खूब मौज करूंगा. आप भी एडवांस फीस ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.’’

मैं ने उस का दिल रखने के लिए थोड़े से पैसे ले कर कह दिया, ‘‘ठीक है, खूब मौजमस्ती करो.’’

इस के एक हफ्ते बाद मोहल्ले में सुबहसवेरे शोर हुआ तो मेरी आंखें खुल गईं. जा कर पता किया तो पता चला कि लाले की हत्या हो गई है. यह जानकारी भी मिली कि उस की हत्या जाले ने की है. मुझे यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे दोनों घनिष्ठ मित्र थे. इस के अलावा लाले वैसे भी इतना ताकतवर था कि वह 2-3 के बस में नहीं आ सकता था. उसे जाले जैसा कमजोर आदमी नहीं मार सकता था.

जहां उस की हत्या हुई थी, वह जगह मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं थी. मैं घटनास्थल पर पहुंचा. वहां लोगों ने बताया कि रात दोनों ने जुआ खेला था और दोनों हारजीत पर लड़ पड़े. जाले ने चाकू निकाल कर लाले को भोंक दिया और वह मर गया.

लाले की लाश घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर पड़ी थी. चाकू लगने से वह भागा होगा, इसलिए खून की लकीर जमीन पर पड़ी थी. लगता था, उसे पहले खूब शराब पिलाई गई होगी, जिस से उसे आसानी से मारा जा सके. वैसे तो दोनों मेरे क्लाइंट थे, लेकिन लाले के घर वालों ने पहले मुझे अपना वकील कर लिया और जाले के घर वालों ने एक मशहूर वकील किया. मुझे लाले के मरने का बड़ा दुख था, उस की सब बुराइयों के बावजूद मैं उसे पसंद करता था. मुझे उस की वह बात याद आ रही थी कि वकील साहब पैसे एडवांस में ले लो, पता नहीं कल क्या हो जाए.

हो सकता है, उस से यह बात उस की मौत कहलवा रही हो. लाले की पार्टी गरीब थी, उस की ओर से मुकदमा उस के पिता लड़ रहे थे. जाले की पार्टी धनी थी, उस की ओर से उस का ताऊ मुकदमा लड़ रहा था, जो बहुत पैसे वाला था. उस ने जाले को खुली छूट दे रखी थी, जो मरजी आए करो पर बड़ा बदमाश बन कर दिखाओ. वह उस के लिए बहुत पैसे खर्च कर रहा था.

मैं ने मुकदमे की तैयारी शुरू कर दी. चश्मदीद गवाह एक ही था और वह जाले की बिरादरी का था. मुझे यकीन नहीं था कि वह जाले के खिलाफ गवाही देगा. ऐसा ही हुआ. उस ने गवाही देने से साफ मना कर दिया. बाद में पता चला कि जाले के ताऊ ने उसे गवाही न देने के लिए पैसे दिए थे और जाले की बहन से उस का रिश्ता भी कर दिया था. मुकदमा चला, गवाह न मिलने की वजह से जाले साफ छूट गया.

लाले के मांबाप बहुत गरीब थे. मुकदमा हार कर घर बैठ गए. बाद में वे दोनों जवान बेटे के गम में मर गए. जाले जेल से रिहा हो कर घर आ गया. पूरे मोहल्ले में उस की धाक जम गई. जब भी जाले का और मेरा सामना होता था तो वह मुझ से बड़े घमंड से कहता था, ‘‘आप ने लाले का मुकदमा लड़ कर अच्छा नहीं किया.’’

एक हत्या कर के उस की हिम्मत बढ़ गई और वह चरस, गांजे का कारोबार करने लगा. इलाके में अपनी धाक जमाने के लिए वह अपराध करने लगा था. अब उस ने मुझे अपना वकील भी करना छोड़ दिया था.

उस इलाके में एक और जेबकतरा था, जो बहुत बड़ा बदमाश था. उस की जाले से दोस्ती हो गई और दोनों मिल कर बदमाशी करने लगे. उन्होंने दुकानदारों से हफ्तावसूली शुरू कर दी थी. एक दिन जब वे हफ्तावसूली कर रहे थे तो दोनों की एक दुकानदार से लड़ाई हो गई.

दुकानदार भी दो थे, दोनों ने हफ्ता देने से मना कर दिया. वे दोनों बहुत दिलेर थे. चारों में जबरदस्त लड़ाई हुई. दोनों ओर से चाकूछुरियां चलीं, जिस में एक दुकानदार और जाले का साथी मारे गए. जाले भी घायल हो गया और वहां से फरार हो गया.

एक दुकानदार ने जाले के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. जाले ने भी अपने साथी की हत्या के लिए मुकदमा दर्ज कराना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. कारण यह था कि लड़ाई उन की दुकान पर हुई थी और जाले व उस का साथी एक मील चल कर वहां लड़ने आए थे.

फौजदारी मुकदमों के लिए मैं बहुत मशहूर था, इसलिए उस दुकानदार ने मुझे अपना वकील कर लिया. एक बार फिर मैं जाले के खिलाफ मुकदमा लड़ने लगा. जाले के ताऊ ने लाहौर का एक मशहूर महंगा वकील कर लिया था. जाले जेल चला गया. जाले हर पेशी पर बड़े घमंड से आया करता था. वह मेरी ओर गुस्से से देखता था और इशारों में मुझे धमकियां भी देता था.

जाले के घर वाले भी मुझे धमकियां देने लगे, जिस से डर कर मैं मुकदमा न लड़ूं. मैं ने मन लगा कर मेहनत की, जिस से मेरे क्लाइंट बहुत खुश थे. केस सैशन में चला. मेरे गवाहों ने बहुत अच्छी गवाही दी. जाले के वकील ने एक गवाह पेश किया, जो हिस्ट्रीशीटर था. वह ठीक से गवाही नहीं दे पाया. जाले का वकील बहुत परेशान था. हर बड़े वकील को अपने केस की चिंता होती है. उस ने जाले को शक का लाभ ले कर उसे बरी कराने या फांसी से बचाने की तरकीब सोची.

हर अदालत में पुलिस का एक व्यक्ति होता है, जो थानों से मिली हर केस की सभी फाइलें अपने पास रखता है और अदालत तक पहुंचाता है. जब मुकदमा दायर हो जाता है तो उस मुकदमे की दूसरी फाइल उस के पास रहती है, जिसे पुलिस फाइल कहते हैं. उस में विवेचना अधिकारी की हर दिन की काररवाई दर्ज की जाती है. अधिकतर वकील उस फाइल को देख नहीं पाते, लेकिन जो होशियार वकील होते हैं, उस फाइल से अपने मतलब की बहुत सी चीजें निकाल लेते हैं.

जाले के वकील ने जाले के ताऊ से कह कर एक नई डाक्टरी रिपोर्ट लगवा दी जो असल रिपोर्ट से अलग थी. दोनों रिपोर्टों में भिन्नता के कारण अपराधी को शक का लाभ मिल सकता था.

मैं अदालत जाने से पहले उस पुलिस फाइल को जरूर देखता था. मैं ने वह रिपोर्ट देखी तो मेरे पैरों तले से जमीन निकल गई. मैं ने पुलिस वाले से पूछा तो उस ने बताया कि उसे पता नहीं लेकिन फाइल थानेदार ने मंगवाई थी. मैं ने तुरंत अपने क्लायंट से कहा, ‘‘समय रहते कुछ करना है तो कर लो.’’

वे लोग भी बहुत होशियार थे. उन्होंने पुलिस वाले को अच्छी रकम दे कर वह रिपोर्ट निकलवा दी.

पेशी के दिन जाले का वकील और थानेदार बड़े भरोसे से अदालत में आए. पहले विवेचना अधिकारी के बयान हुए. वकील बहुत खुश था कि उस रिपोर्ट की बिनाह पर वे लोग मुकदमा जीत जाएंगे. थानेदार और वकील ने पूरी फाइल देख ली, लेकिन वह रिपोर्ट नहीं मिली. दोनों को पसीना आ गया कि वह रिपोर्ट कहां गई. शोर इसलिए नहीं कर सकते थे कि अदालत के पास जो रिपोर्ट थी, वह असली थी.

मैं ने लोहा गरम देख कर चोट की, ‘‘योर औनर, ऐसी कोई रिपोर्ट न तो थी और न है. नई रिपोर्ट कोई डाक्टर बना कर भी नहीं दे सकता, इसलिए यह पूरा मामला ही झूठ का पुलिंदा है.’’

जाले का वकील कोई सबूत पेश नहीं कर सका, इसलिए अदालत ने उसे फांसी की सजा सुना दी. मेरे क्लाइंट बहुत खुश हुए. उन्होंने मेरी जेब में बहुत मोटी रकम डाल दी. मैं ने मना किया तो वे कहने लगे कि केस हाईकोर्ट में तो जाना ही है, और इसे आप ही लड़ेंगे.

केस हाईकोर्ट में गया. मेरे क्लायंट ने एक और महंगा वकील कर लिया. हम दोनों ने मिल कर मुकदमा लड़ा. यहां भी हम जीत गए. लेकिन अदालत ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.

जाले को उस की करनी की सजा मिल गई, लेकिन मुझे इस बात का बहुत दुख हुआ कि 2 आदमियों का हत्यारा फांसी से बच गया. लेकिन यह दुनिया की अदालत का फैसला था, अभी कुदरत का फैसला बाकी था. कुदरत की ओर से जो सजा उसे मिलनी थी, उस के लिए जाले का जिंदा रहना जरूरी था.

लाले के मातापिता मरते दम तक जाले को कोसते रहे. दूसरी ओर उस दुकानदार के घर वाले व और भी कई लोग थे, जो उसे कोस रहे थे. कहते हैं, कमजोर की हाय आसमान से टकराती है और इस का नतीजा बड़ा भयानक होता है.

एक दिन खबर आई कि जाले जेल में अंधा हो गया है. यह बात यकीन करने के काबिल नहीं थी, क्योंकि वह 26-27 साल का गबरू जवान था, उसे कोई बीमारी भी नहीं थी. जेल के डाक्टरों ने बहुत बारीकी से उस की आंखों को टेस्ट किया, लेकिन उन की समझ में बीमारी नहीं आई. एक डाक्टर ने कहा, ‘‘यह बीमारी हमारी समझ से बाहर है. आंखें भलीचंगी हैं, उन में कोई खराबी नहीं लेकिन अचरज की बात है कि आंखों की रोशनी कैसे चली गई.’’

जाले की दुनिया अंधेरी हो गई थी, जबकि वह लोगों की दुनिया में अंधेरा फैलाता रहा था. जेल अधिकारियों ने बड़ेबड़े आई स्पेशलिस्ट्स को दिखाया, लेकिन किसी की समझ में बीमारी नहीं आई. अब अंधे जाले के लिए जेल का जीवन और भी कठिन हो गया. अब वह कुछ नहीं कर सकता था. हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर था. वह रोरो कर अपने गलत कर्मों की माफी मांगता था.

लेकिन लगता था कि बेकसूर लोगों की बददुआएं अभी और असर दिखाने वाली थीं. कुछ दिनों बाद खबर आई कि जाले जेल में गूंगा हो गया है. इस बीमारी का भी बहुत इलाज हुआ, लेकिन सब बेकार. उस के बाद खबर आई कि जाले चलनेफिरने से भी बेकार हो गया. जाले को जेल के अस्पताल भेज दिया गया. सभी डाक्टर इस बात पर हैरान थे कि भलाचंगा आदमी गूंगा, लंगड़ा, अंधा कैसे हो गया?

जेल के दूसरे बंदी उसे देख कर कानों को हाथ लगाते थे. अब वह अपाहिज हुआ अस्पताल में पड़ा रहता था. न बोल सकता था, न हाथपैर चला सकता था. जेल के डाक्टरों ने जेल अधिकारियों से बात की और उस के घर वालों से संपर्क किया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में उस की रिहाई का प्रार्थनापत्र डाल दिया, जो जेल के डाक्टरों की संस्तुति पर मंजूर हो गया.

वह जेल से रिहा हो कर अपने घर आ गया. वह पेशाब व शौच बिस्तर पर ही कर देता था. कुछ ही दिनों में उस के घर वाले उस से तंग आ गए और उस की चारपाई घर से बाहर रख दी. उस की साफसफाई के लिए एक सफाई कर्मचारी को लगा दिया गया.

हर आनेजाने वाला उसे देख कर कानों को हाथ लगाता था. वह वही जाले था, जो कभी सब के सामने अकड़ कर चलता था. आज वह अपने मुंह से मक्खी भी नहीं उड़ा सकता था. घर के लोग उस के मरने की दुआएं करने लगे थे. एक दिन सब की दुआ काम आई और वह अपनी जिंदगी की कैद से आजाद हो गया.

क्या यहां पर आ कर कहानी खत्म हो गई? नहीं, अभी एक और गुनहगार बचा हुआ था, जो कानून और दुनिया वालों की नजरों से छिपा हुआ था. वह अपने आप में संतुष्ट था कि उस की ओर किसी का ध्यान नहीं गया.

वह व्यक्ति जाले को बहुत बड़ा बदमाश बनाना चाहता था. उसे बदमाश बनाने में उस ने अपना धन लगाया. वह था, उस का ताऊ. एक दिन उस की पिंडली पर एक छोटा सा घाव हो गया, जो ठीक नहीं हुआ और डाक्टरों ने उस की पिंडली से टांग काट दी.

वह घाव फिर घुटने तक पहुंच गया और फिर उस की रान से टांग काटनी पड़ी. यह भी चलनेफिरने में अक्षम हो गया था.

चारपाई पर पड़ा रहता था. रातदिन बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया था. अंत में एक दिन वह भी दुनिया से चला गया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें