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Hindi Kahani : कैसे बदली आयशा की जिंदगी?

Hindi Kahani : आएशा का सपना था कि वह बड़ी हो कर कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना नाम कमाए. इसी सपने को ले कर वह अपने गांव से इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध कालेज पहुंची थी, पर वहां सीनियर्स को देख कर अचकचा गई. उसे कुछ ऐसा महसूस होने लगा जैसे वे सब उस से अलग हैं. उन के व्यक्तित्व के आगे वह खुद को बौना महसूस करती. उस के पास गिनेचुने 3-4 सलवारसूट थे. अन्य लड़कियां जींस और टौप पहन कर घूमतीं.

आएशा को अंगरेजी उतनी ही आती थी जितनी कंप्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिए जरूरी होती है जबकि उस के अन्य सहपाठी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते. लड़कियों के बाल भी मौडर्न स्टाइल में कटे होते. आएशा के बाल लंबे थे. वह 2 चोटियों के अलावा कोई और स्टाइल बनाना जानती ही नहीं थी.

अपने इन खयालों की वजह से वह किसी से बातचीत करने में भी अचकचाती थी. वैसे भी हौस्टल में उस की रूममेट आलिया को किसी कारणवश कालेज जौइन करते ही घर जाना पड़ गया था. पहले से वह किसी को जानती नहीं थी, इसलिए ज्यादातर वह अकेली ही रहती. कक्षा में अन्य छात्र उसे अकसर चिढ़ाते. कभीकभी सीधे कटाक्ष भी करते थे. वह काफी उदास रहने लगी. हालांकि वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी, पर उस का ध्यान इन चीजों की वजह से पढ़ाई में लगना कुछ कम हो गया था.

एक दिन आएशा अपने कमरे में इसी तरह उदास बैठी थी कि अचानक दस्तक हुई. ‘उस के कमरे में कौन आ गया’, यह सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उस ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, आई

एम आलिया, योर रूममेट. तुम जरूर आएशा होगी?’’

डर के मारे एक क्षण के लिए आएशा के मुंह से कुछ नहीं निकला. उस ने यह तो सोचा ही नहीं था कि उस की रूममेट को भी उसे झेलना पड़ेगा. उस के मन में यही विचार चलने लगे थे कि यह आलिया भी उस का मजाक बनाएगी. उस ने सहमते हुए अपना हाथ आलिया से मिलाया पर आलिया के चेहरे पर फैली मुसकान देख कर वह अपना डर कुछ भूल गई.

आलिया ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम बहुत होशियार हो और 12वीं में तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए थे. भई, मैं तो पढ़ाई में बहुत पीछे हूं. मुझ से अंगरेजी कितनी ही बुलवा लो, पिक्चरों की कहानियां कितनी ही पूछ लो और लेटैस्ट फैशन स्टाइल के बारे में कुछ भी जान लो, पर पढ़ाई में तो मेरा हाल बड़ा ही बुरा है. मैं तो यह जान कर खुश हो गई कि तुम मेरी रूममेट हो. खूब जमेगी अपनी,’’ कह कर आलिया ने आएशा को गले लगा लिया. उस का चुलबुलापन देख कर आएशा भी मुसकराए बिना रह न सकी. दोनों ने मिल कर कुछ देर तक बातें की और फिर दोनों सो गईं.

आलिया में न जाने क्या बात थी कि वह जल्दी ही आएशा की दोस्त बन गई पर आलिया के अन्य दोस्तों से वह कभी दोस्ती नहीं कर सकी. वह ऐसी जगहों पर आलिया के पास जाती ही नहीं थी, जहां पर उस के अन्य दोस्त होते.

आलिया की खास सहेलियां तारा और शिवानी तो उसे खासकर अच्छी नहीं लगती थीं. वह अकसर उस का और उस के कपड़ों का खूब मजाक बनाती थीं. उस के बोलने के तरीके पर तो वे कई बार उस के सामने ही उस का मजाक उड़ा दिया करती थीं.

एक दिन आएशा पढ़ने में व्यस्त थी. आलिया अपना मोबाइल छोड़ कर कहीं गई हुई थी. मोबाइल बारबार बज रहा था. उस ने देखा कि उस पर डैडी लिखा आ रहा है. आएशा को लगा कि हो सकता है, कोई जरूरी फोन हो. वह आलिया को ढूंढ़ने लगी. ढूंढ़तेढूंढ़ते वह तारा और शिवानी के कमरे के पास पहुंची. अंदर से आवाजें आ रही थीं, ‘‘यार, आलिया तेरी कोई बात समझ में नहीं आती. तू खुद तो इतनी मस्त है पर उस आएशा को अपने साथ क्यों टांगे रखती है?’’ शायद यह तारा और शिवानी की मिलीजुली आवाजें थीं.

आलिया ने जवाब दिया, ‘‘यार, तुम लोग हर किसी को एक ही नजरिए से देखते हो, जबकि हर किसी में कुछ न कुछ खासीयत होती है. वह हमारी तरह मौडर्न भले ही न हो, पर पढ़नेलिखने में हम से बहुत आगे है. उस की देखादेखी मैं भी थोड़ाबहुत पढ़ने लगी हूं.’’

ये सब बातें सुन कर आएशा की आंखें भर आईं. तभी आलिया का फोन एक बार फिर बज उठा. आलिया और उस की सहेलियों का ध्यान एकदम से फोन लाने वाले की ओर गया. आएशा ने आलिया से कहा, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारा मोबाइल देने आई थी.’’

आलिया ने उस की आंखों के आंसू देख लिए थे. वह अपना मोबाइल ले कर और सहेलियों को बाय कह कर अपने कमरे में आ गई.

आलिया की मम्मी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. पिछली बार भी उस को इसी वजह से घर जाना पड़ा था. उस की मम्मी उस से बात करना चाह रही थीं. बात खत्म होने के बाद उस ने आएशा को देखा. वह बिस्तर पर लेट कर किताब पढ़ने की कोशिश करने कर रही थी आलिया समझ गई कि उस का ध्यान पढ़ाई की तरफ नहीं है. वह सोचने लगी कि यदि इस तरह उस का ध्यान भटकता रहा तो उस की पढ़ाई ठीक तरह से नहीं हो पाएगी. वह अब तक उसे अच्छे से जाननेसमझने लगी थी.

आलिया उस के पास जा कर बैठी. उस ने सब से पहले उस की किताब उठा कर साइड में रख दी, फिर उस का काले फ्रेम वाला चश्मा निकाल दिया. उस की दोनों चोटियों को खोल दिया. आएशा उसे ध्यान से देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आलिया करना क्या चाह रही है.

आलिया उसे उठा कर शीशे के आगे ले गई और कहा, ‘‘देखो आएशा, तुम कितनी सुंदर हो. तुम कैसी दिखती हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर मैं यह देख रही हूं कि हमारी अन्य क्लासमेट्स को इस से फर्क पड़ता है और तुम को भी पड़ने लगा है. तो क्यों न इस बार  कुछ ऐसा कर दें कि उन का भी मुंह बंद हो जाए और तुम को भी अपने पर कुछ एतबार हो जाए. बोलो, हो तैयार?’’

आएशा के यह कहने पर कि उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता आलिया उसे चुपचाप देखती और सुनती रही. लेकिन अचानक आएशा फट पड़ी और जोर से चिल्लाई, ‘‘हां, पड़ता है मुझे फर्क. तुम्हारे अलावा हर कोई मुझ से बात करने से कतराता है. आज मैं ने सुना कि तुम्हारी सहेलियां भी किस तरह मेरा मजाक उड़ा रही थीं. मुझे सब फूहड़गंवार समझते हैं,’’ वह रोती हुई बिस्तर पर औंधे मुंह लेट कर सुबकने लगी.

आलिया उस के पास आ कर बैठी और धीरे से बोली, ‘‘अगर कोई और तुम्हें कुछ नहीं समझता है तो यह उस की दिक्कत है. पर मेरे पास एक आइडिया है. तुम्हें मेरे अनुसार ही चलना होगा. 2 महीने बाद हमारे कालेज में ब्यूटी क्वीन का चुनाव होना है. तुम उस में भाग लोगी और तुम्हारी पूरी टे्रनिंग मेरे जिम्मे है. वैसे मैं फ्री में कोई काम नहीं करती हूं. इस के बदले तुम्हें मुझे पढ़ाना होगा.’’

आएशा उस की ओर देखती हुई बोली, ‘‘ब्यूटी क्वीन और मैं? दिमाग तो नहीं फिर गया है तुम्हारा?’’

आलिया ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, ‘‘मैडम… तुम को कुछ बोलना नहीं है, सिर्फ करना है. यह बात अभी हम किसी को नहीं बताएंगे.’’

अब आलिया रोज शाम को पहले आएशा से कंप्यूटर सीखती और फिर उस को अंगरेजी बोलना सिखाती, उस को चलने व बात करने का तरीका और न जाने किनकिन चीजों पर लैक्चर देती. 2 महीने में आएशा काफी फर्राटेदार अंगरेजी बोलना सीख गई थी.

प्रतियोगिता के एक दिन पहले उसे ले जा कर आलिया ने उस के बाल स्टाइलिश तरीके से कटवा दिए. खुद के अच्छे कपड़े आएशा को पहना कर उसे ट्राई करवाती रहती थी. उस ने अपनी सब से अच्छी डै्रस प्रतियोगिता के दिन आएशा को पहनने को दी.

जब प्रतियोगिता के दिन आएशा को ले कर आलिया पहुंची तो कुछ क्षण के लिए किसी ने आएशा को पहचाना ही नहीं. प्रतियोगिता में तारा और शिवानी भी भाग ले रही थीं, पर सभी आएशा को देख कर आश्चर्यचकित थे. मन ही मन दोनों सोच रही थीं, ‘रूप अच्छा बना लिया, पर भाषा का क्या करेगी?’

थोड़ी ही देर में जब जजेस ने प्रश्न पूछे तो उस के उत्तर सुन कर वे काफी प्रभावित हुए.

आएशा जब ब्यूटी क्वीन चुन ली गई तो आएशा के साथसाथ आलिया की खुशी का भी ठिकाना न था. वह खुशी से झूम उठी. तारा और शिवानी ने उसे आ कर बधाई दी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी.

कार्यक्रम खत्म होने के बाद आएशा जब वापस अपने कमरे में पहुंची तो  आलिया को धन्यवाद देने लगी. आलिया ने कहा, ‘‘मैडम, इस के बदले आप को अभी मुझे बहुत पढ़ाना है. मुझे भी तुम्हारी ही तरह जीत हासिल करनी है.’’

फिर आलिया धीरे से मुसकराती हुई बोली, ‘‘जिस क्षेत्र को हम ने चुना है, उसे  मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं कि आगे बढ़ने के लिए रूप से ज्यादा दिमाग की जरूरत पड़ेगी. पर चूंकि लोग तुम पर कमैंट मारते थे और तुम भी थोड़ी सी उदास रहने लगी थी, इसलिए मैं ने बस, तुम्हारी थोड़ी सी मदद की, पर मेहनत और गुण तो तुम्हारे ही थे. अब इन बातों में तुम भी कभी ध्यान नहीं दोगी, यह मैं जानती हूं. मैं अपने उन दोस्तों को भी अच्छी तरह जानती हूं जो तुम्हारा मजाक बनाते थे. देख लेना कल ही तुम से दोस्ती करने आ जाएंगे.’’

सुबह उठते ही उन के दरवाजे पर दस्तक हुई. आलिया सो रही थी. आएशा ने दरवाजा खोला तो सामने तारा और शिवानी बुके लिए हुए खड़ी थीं. वे उस के गले लग कर उस से एक बार फिर माफी मांगती हुई बोलीं, ‘‘आएशा, क्या तुम हमें भी अपना दोस्त बना सकती हो?’’

आएशा वापस 2 चोटियों में आ गई थी, पर उस के चेहरे पर एक नए आत्मविश्वास का तेज था. उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, आखिर तुम दोनों मेरी सब से अच्छी सहेली की दोस्त जो हो.’’

आलिया भी तब तक जग गई थी और उन की बातें सुन मुसकरा उठी.

Donald Trump : US में भी पनप रहा है, ब्राह्मण और बनिया गठजोड़

Donald Trump : डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिये पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.

जातेजाते राष्ट्र के नाम अपने विदाई भाषण में जो बिडेन ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के अलावा जो कहा उस में रत्ती भर भी व्यक्तिगत भड़ास डोनाल्ड ट्रंप या रिपब्लिकंस के प्रति नहीं थी. बल्कि अमेरिका के आने वाले कल की भयावह तस्वीर का सटीक चित्रण था.

इतना परिपक्व संबोधन अमेरिका और अमेरिकंस फिर कभी सुन पाएंगे या नहीं यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन जो चिंताएं और खतरे बिडेन ने व्यक्त किए हैं उन से जाहिर होता है कि वहां भी ब्राह्मण बनिया गठजोड़ आकार और विस्तार ले रहा है. जो लोकतंत्र के लिए आखिरकार बेहद खतरनाक और बेहद घातक साबित होता है.

बिडेन ने किस तरह अमेरिका के गौरवशाली इतिहास को अंडरलाइन करते हुए भविष्य की भयावहता को व्यक्त किया, उसे उन के भाषण के इन बिंदुओं से आसानी से समझा जा सकता है.
– अमेरिका में सुपर रिच लोगों का बोलबाला बढ़ रहा है कुछ लोगों के पास ज्यादा पैसा होना लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.
– इस प्रतिमा ( स्टेच्यू औफ लिबर्टी ) की तरह अमेरिका का विचार केवल एक व्यक्ति की उपज नहीं है. बल्कि इसे दुनिया भर के अलगअलग पृष्ठभूमि के लोगों ने मिल कर सींचा है.
– अमेरिका होने का मतलब है लोकतान्त्रिक संस्थाओं का सम्मान करना. खुला समाज और फ्री प्रैस इस की आधारशिला हैं. शक्तियों और कर्तव्यों का संतुलन बनाए रखना हमेशा अच्छा होता है.
– वर्तमान समय में सही सूचनाओं का अभाव है. आज प्रैस पर भारी दबाव बढ़ गया है, स्वतंत्र मीडिया खत्म होने के कगार पर है.

अमेरिका होने के माने

आज हर कोई अमेरिका को ले कर आशंकित वेवजह नहीं है यहां तक कि खुद वे वोटर भी नहीं जिन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को दोबारा चुना है. हालांकि खुल कर कोई कुछ नहीं बोल रहा यह और बात है. यही वह बिंदु है जो अमेरिका से उस के अमेरिका होने के माने छीनता है. अमेरिका में अब बोलने की पहले सी आजादी नहीं रही है जिस की मिसाल दुनिया देती थी. डोनाल्ड ट्रंप कैसे और क्यों चुने गए यह सरिता की कवर स्टोरी में बहुत तथ्यात्मक तरीके से स्पष्ट किया है. (शीर्षक – अमेरिका चर्च के शिकंजे में. अंक नवम्बर द्वितीय 2024)
अमेरिका कुछ साल पहले तक जाना जाता था खुली हवा के लिए जहां दुनिया भर के लोग आ कर या बस कर बेफिक्री की सांस लेते थे. विविधता अमेरिका की एक और खूबी थी. वहां के दरवाजे सभी के लिए खुले रहते थे जहां आ कर मेहनतकश लोगों को वाजिब दाम अपने काम के मिलते थे. उन्हें हर तरह की आजादी आम अमेरिकनों की तरह थी. इस देश में आ कर किसी को असुरक्षा और परायापन महसूस नहीं होता था. दुनिया के सब से शक्तिशाली और लोकतान्त्रिक देश में आ कर वहीं के हो जाने का अहसास अपने वतन की यादें अगर भुलाता नहीं था तो उन्हें याद कर रुलाता भी नहीं था. अमेरिका के विभिन्न वर्गों के बीच एक भाईचारा एक शेयरिंग और न दिखने वाली एक बौंडिंग हुआ करती थी.
इस का बेहतर उदाहरण अमेरिका में रह रहे 50 लाख से भी ज्यादा भारतीय हैं जो पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि हमें वहां सम्मान मिलता है. वहां तरक्की की राह में धर्म जात पात रोड़ा नहीं हैं. हमारी मेहनत और लगन की कद्र अमेरिका में है उतनी ही जितनी कि एक अमेरिकन की हुआ करती है. इस जज्बे को साल 1999 में राजेश खन्ना अभिनीत और ऋषि कपूर निर्देशित फिल्म ‘आ अब लौट चलें’ में दिखाया भी गया है.

लेटिनो का क्यों बदला रुख

यह ठीक है कि अभी भी अमेरिका के भारतीय बहुत ज्यादा चिंतित या भयभीत नहीं हैं लेकिन उन की यह बेफिक्री 4 दिन की चांदनी भी साबित हो सकती है. इस बात से वे इंकार करने की भी स्थिति मे नहीं हैं. लेकिन लेटिन और अफ्रीकी लोग 2014 से ही एक बड़े तनाव से जूझ रहे हैं जिस का नाम डोनाल्ड ट्रंप है और हैरानी की बात यह है कि इन वोटरों ने भी 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी को बड़ी तादाद में वोट किया जबकि परंपरागत रूप से इन की पहली और आखिरी पसंद डैमोक्रेटिक पार्टी हुआ करती थी.
लेकिन इस चुनाव में ऐसा क्या हो गया था जो अश्वेत और लेटिनों ने रिपब्लिकन पार्टी को वोट किया. इस सवाल का एक जवाब तो बहत साफ है कि ये समुदाय धार्मिक उन्माद और चरमपंथी चुनाव प्रचार के असर में आ गए थे. ठीक वैसे ही जैसे भारत में 2014 और 2019 के चुनाव में दलित पिछड़े और आदिवासी आ गए थे.

यह प्रभाव आस्था नहीं बल्कि एक तरह का खौफ ही था जिस ने उन समुदायों को भी आस्थावान से कट्टर बना दिया जो उदारवादी लेकिन पूजापाठी थे. यानी इन्हें धरमकरम की राजनीति से कोई लेनादेना नहीं था. इस बात का खुलासा करते बराक ओबामा और जौर्ज डब्ल्यू बुश के सलाहकार रहे एक पादरी सैमुअल रोड्रिगेज जो नैशनल हिस्पैनिक क्रिश्चियन लीडरशिप कांफ्रेंस के अध्यक्ष भी हैं ने मीडिया को बताया था कि ‘मेरा मानना है कि इस का मुख्य कारण आस्था से जुड़ा है. लेटिनो हर साल ज्यादा से ज्यादा इंजील हुए जा रहे हैं और रिपब्लिकन पार्टी को वोट कर रहे हैं.’
बकौल सैमुअल रोड्रिगेज यह इन्जीलवादी लोकाचार उन्हें उन मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा जिन्हें आप रूढ़िवादी मानेंगे, जिन्हें हम बाइबिल द्वारा प्रमाणित सत्य मानते हैं. यह वही धार्मिक सत्य है जो भारत में रामचरित मानस और श्रीमद्भागवत गीता में पाया जाता है. इस सत्य का श्रवण अब नोटों और वोटों के लिए उन लोगों को भी सुनाया जाने लगा है जिन्हें धर्म ग्रंथ पढ़ने और सुनने की सख्त मुमानियत कभी थी और जो मोक्ष के अधिकारी नहीं थे इन में सवर्ण महिलाएं भी शुमार हैं. भारत का इन्जील्वाद ब्राह्मणवाद है जिस के ठेकेदार कुछ दिनों से मुसलमानों को छोड़ सब को साथ ले कर चलने का नारा बुलंद कर रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप पर खुला और साबित आरोप उन के कट्टर ईसाई होने के साथसाथ स्त्री विरोधी होने का भी चस्पा है. वे अव्वल दर्जे के उद्दंड, उजड्ड और व्यभिचारी भी हैं. वे महिला सम्मान में भरोसा नहीं करते. इस की गवाही प्रचार के दौरान उन के भाषण हैं जिस में उन्होंने अपनी प्रतिद्वंदी कमला हैरिस सहित सभी डैमोक्रेट महिलाओं के लिए अभद्र और असंसदीय भाषा का खुल कर इस्तेमाल किया. कुछ उदाहरण देखें जिन में उन्होंने कमला हैरिस को निशाने पर लिया था –
– कमला मानसिक रूप से विक्षिप्त है. ( 29 सितम्बर 2024 )
– मैं कमला हैरिस से कहीं ज्यादा सुंदर हूं ( 17 अगस्त 2024 ) ( आशय यह था कि काली होने के नाते कमला एक बदसूरत महिला हैं ).
– लोग उसे पसंद नहीं करते, कोई भी उसे पसंद नहीं करता. वह कभी भी पहली महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकती, वह कभी नहीं बन सकती. यह हमारे देश का अपमान होगा. ( 8 सितम्बर 2020 )
अकेली हैरिस नहीं बल्कि ट्रंप हर उस डैमोक्रेटिक महिला से असभ्यता और अभद्रता से पेश आ कर यह जताने की कोशिश करते रहे कि मागा यानी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन अमरीकी मनु स्मृति से कमतर नहीं होगा. इस लिस्ट में निक्की हैली, एलेन चाओ, सनी होस्टिंन, व्हूपी गोल्डवर्ग, फुल्टन काउंटी, नेन्सी पेलोसी, एलेक्जेंड्रिया ओकसियो और स्टार्मी डेनियल्स भी शामिल हैं जिन के बारे में उन्होंने कभी कहा था कि मुझे कभी भी उस का घोड़े जैसा चेहरा पसंद नहीं आया. ऐसा कोई भी नहीं है.

निशाने पर ट्रांसजेंडर्स और अबौर्शन

शपथ लेने से पहले ही ट्रंप ने साफ कर दिया था कि ट्रांसजेंडर्स से उन्हें कोई हमदर्दी नहीं है क्योंकि ईश्वर ने सिर्फ दो ही लिंग बनाए हैं. एलजीबीटीक्यू पर भी वे अप्रिय रूप से उतने ही सख्त रहे हैं जितना कि किसी चर्च का पादरी हो सकता है. यानी अब अमेरिका में डैमोक्रेट्स की बनाई ट्रांसजेंडर पोलिसी भी खत्म कर दी जाएगी. इस तबके को सेना और स्कूलों से दूर रखने की उन की घोषणा बताती है कि अमेरिका में मानवअधिकार अतीत की अप्रिय बात है. चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिका में वहां की आबादी के लगभग 30 लाख लोग ट्रांसजेंडर हैं. या वे लोग हैं जो खुद को नान वायनरी मानते हैं.

गौरतलब है कि साल 2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स की शादी को जायज करार दिया था. इस से रूढ़िवादी और चर्चवादी लोग चिढ़े हुए थे क्योंकि यह बात ईसाइयत यानी बाइबिल से मेल नहीं खाती.
क्रिश्चिनियटी के ठेकेदारों को चिढ़ और नफरत गर्भपात से भी है क्योंकि बाइबिल इस की इजाजत नहीं देता. उस में कई जगह गर्भपात को अनैतिक अपराध और पाप करार दिया गया है. देखें एक वीभत्स और खौफनाक बानगी –

यदि उस ने अपनेआप को अशुद्ध कर अपने पति के प्रति विश्वासघात किया है तो इस का परिणाम यह होगा, जब उसे वह जल पिलाया जाएगा जो अभिशाप लाता है और कठोर पीड़ा देता है तो वह उस के भीतर जाएगा उस का पेट फूल जाएगा और उस का गर्भ गिर जाएगा और वह अभिशाप बन जाएगी.
तथापि यदि स्त्री ने स्वयं को अशुद्ध नहीं किया है बल्कि शुद्ध है तो वह दोषमुक्त हो जाएगी और बच्चे पैदा करने में सक्षम होगी. ( गिनती 5 27 – 28 ) गिनती बाइबिल की किताबों में से एक का नाम है. बाइबिल की पहली 5 किताबों को टोरा कहा जाता है इन में से एक गिनती भी है.)

इन और ऐसी बातों को डोनाल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी का चुनावी एजेंडा बना डाला और कट्टरवादियों को खुश कर दिया. जिस से सारे गोरे इसाई उन की अय्याशियों और बदतमीजियों को भूल उन्हें अपना हितेषी और आदर्श मानने लगे. हालांकि यहां ट्रंप का रोल धार्मिक उपदेशक और उन पादरियों सरीखा ही था जो विकट के व्यभिचारी और यौन शोषक होते हैं. खासतौर से इंजील ईसाईयों ने खुल कर डोनाल्ड ट्रंप का साथ दिया क्योंकि वे चर्च नीति पर चलने लगे थे.

दरअसल, अपने पहले ही कार्यकाल में ट्रंप ने ट्रांसजेंडर्स के खिलाफ अपना रुख साफ कर दिया था. उन्होंने कई ऐसे ( लगभग 200 ) रूढ़िवादी जजों को नियुक्ति दी थी जो घोषित तौर पर ट्रांसजेंडर्स से नफरत करने के लिए जाने जाते थे. यही वे जज हैं जो अबौर्शन को पाप मानते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप इस संवेदनशील मुद्दे पर गोलमोल बातें करते एक तरह से मुंह में दही जानबूझ कर जमाए रहे थे. लेकिन हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर अगले 4 साल में अमेरिका में गर्भपात कुछ शर्तों के साथ अपराध करार दे दिया जाए.
अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप अबौर्शन पर स्पष्ट बोलने से बचते रहे थे. मीडिया के पूछने पर उन्होंने इसे राज्यों का विषय कह कर अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली थी. गर्भपात अमेरिका में मुद्दत से पेचीदा क़ानूनी मसला है जिस पर जरूरत तो एक केंद्रीय या राष्ट्रीय कानून की है जो इसे महिलाओं का अधिकार करार देते उन्हें आजादी दे. लेकिन अब डर इस के ठीक उल्टा होने का है कि कहीं इसे राष्ट्रीय अपराध ही न घोषित कर दिया जाए.

यों पनप रहा गठजोड़

ट्रंप अब कुछ भी कर सकते हैं क्योंकि देश और लोकतंत्र के साथसाथ वे मानव अधिकारों पर एक गैरजिम्मेदार राष्ट्रपति हैं जिस का काम कट्टर धार्मिक नेताओं के इशारे पर नाचना है. उन की हैसियत वही है जो भारत में नरेंद्र मोदी की है, एक मुलाजिम की जो राजाओं की तरह रहता है पर जी हुजूरी दक्षिणपंथी संगठनों की करता है. दोनों ही जनता को मूर्ख बनाने के लिए राष्ट्रीय गौरव का राग अलापते रहते हैं. वहां अमेरिका को फिर से ग्रेट बनाने का नारा दिया जाता है तो यहां भारत 11 साल से विश्वगुरु बन रहा है.
व्यक्तिगत स्वभाव और जिंदगी को छोड़ दें तो ट्रंप और मोदी में कई समानताएं हैं दोनों ही धार्मिक एजेंडे को चलाने वालों के दास हैं. अमेरिका में चुनाव नतीजों से पहले एलन मस्क सुर्ख़ियों में थे क्योंकि उन्होंने करोड़ोंअरबों का दांव ट्रंप पर लगाया था और प्रचार में बेशुमार दौलत बांटी थी. भारत में यह थोड़ा ढके मुंदे होता है. मस्क अमेरिकी बनिए हैं, पादरीगण ब्राह्मण हैं, यजमान जनता है जो चढ़ावा भी चर्चों में चढ़ा रही है और अब कुछ बोल भी नहीं पा रही.

एलन मस्क टैक्नोलौजी के मालिक हैं जो अब तक तो दोनों हाथों से पैसा बटोर रहे थे अब कम्बल ओढ़ कर पी रहे हैं. वे पूरी दुनिया को अमेरिकी ताकत के दम पर हड़का रहे हैं खासतौर से यूरोप और जरमनी के लोकतंत्र में उन्हें खोट नजर आने लगी है.

खोट दरअसल में अब अमेरिकी लोकतंत्र में आ रही है जहां अप्रवासी हैरान परेशान हो रहे हैं. बहुसंख्यकवाद वहां भी सर चढ़ कर बोलने लगा है. जैसे भारत की प्रशासनिक नब्ज 4 फीसदी ब्राह्मणों के हाथ में है वैसे ही अमेरिका के 40 फीसदी गोरे ईसाई अमेरिका को अपनी जागीर समझने लगे हैं.

अब हो यह रहा है कि जो जातिवाद काबू में था वह बेलगाम होता जा रहा है. अमेरिका में जातिवाद भारत की तरह वर्ण व्यवस्था वाला या धर्म आधारित कम नस्लीय ज्यादा है. इस बारे में कई अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कारों से नवाजी गई प्रतिष्ठित लैटिनअमेरिकी लेखिका इसाबेल विल्करसन का चर्चित उपन्यास कास्ट स्पष्ट करता है कि जाति और नस्ल न तो एक समान अर्थ वाले शब्द हैं और न ही एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. वे समान संस्कृति में एकदूसरे के साथ मिल कर रह सकते हैं और एकदूसरे के साथ मिल कर काम भी कर सकते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका की नस्लीय प्रजाति का अदृश्य ताकत का दृश्य एजेंट है जाति चमड़ी से बनी है जाति चमड़ी से बनी है.

मसलन लेटीनो और अश्वेत अब ज्यादा तिरस्कार के शिकार हो रहे हैं. होते वे पहले भी थे पर अब बात और है. मोदी के शासन काल में दलितों और पिछड़ों का आत्मविश्वास तेजी से गिरा है जिसे नापने का कोई पैमाना किसी के पास नहीं है. इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. आदिवासियों और मुसलमानों की तो गिनती ही मानव मात्र में नहीं होती. भारत में कुछ दलित, पिछड़े भाजपाई क्यों हो गए यह सवाल अमेरिका के हालातों पर भी मौजू है कि वहां दोनों श्वेत और गैर श्वेत ईसाई रिपब्लिकन पार्टी के क्यों हो गए.

जवाब साफ है कि यह ब्राह्मणबनिया गठजोड़ की करामत है जो ताकतवरों के शिकंजे में शुरू से ही रही है. बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि अब हर कहीं यही सब से बड़ी ताकत है जिस ने लोकतंत्र का चोला ओढ़ लिया है. लोगों को धर्म, जाति, नस्ल और क्षेत्र, रंग वगैरह के नाम पर प्रताड़ित कर उन्हें भगवान का डर दिखा कर हफ्ता वसूली करना इस गैंग की रोजीरोटी हमेशा से ही है. दूसरे शब्दों में कहें तो भय बिन होत न प्रीत वाली कहावत पर अमल कर रहे हैं.

इस और ऐसी बातों को जस्टिफाई के लिए करने किसी लंबीचौड़ी रिसर्च या उदाहरणो और हादसों को गिनाने की जरूरत नहीं. भारत की तरह अमेरिका में भी दर्जनों जाति और भेदभाव विरोधी कानून मौजूद हैं जिन्हें कमजोर करने के लिए ट्रंप और मोदी जैसे नेता देश की सब से बड़ी कुर्सी पर बैठाए जाते हैं. वे अपने हिस्से का राज योग भोगते हैं और हकीकत से मुंह मोड़ रखते हैं इसीलिए वे आमतौर पर बौखलाए और झल्लाए रहते हैं. यह शेर की सवारी सरीखा है कि उस की पीठ पर बैठे रहो उतरे तो शेर खा जाएगा.

यह शेर कौनकौन हैं यह हर कोई जानता है कि ये मंदिरों, मसजिदों, मठों और चर्चों में रहते हैं. धर्म ग्रंथ इन के हथियार हैं और संविधान भी हैं. कमजोर लोकतंत्र ही इन की ताकत होता है जिसे बनाए रखने और इस्तेमाल करने के लिए इन्हें डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क जैसे मोहरों की दरकार रहती है जो हर देश में आसानी से मिल जाते हैं.

International : South Korea के राष्ट्रपति की गिरफ्तारी, दुनिया के नेताओं लिए संदेश

International : दक्षिण कोरिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राष्ट्रपति को गिरफ्तार किया गया है. यह घटना देश की राजनीतिक स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है.

दक्षिण कोरिया में एक ऐतिहासिक घटना घटी है, जहां राष्ट्रपति यून सुक येओल को महाभियोग का सामना करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है. यह घटना आज के समय में दुनिया भर के देश और उस के चुने हुए चेहरों के लिए एक ऐसा संदेश है जिसे समझना चाहिए. आमतौर पर जब कोई राजनीतिक दल और उस के प्रमुख देश की सत्ता पर काबिज हो जाते हैं तो यह समझने लगते हैं कि देश की जागीर है और वह धीरेधीरे तानाशाह बनने लगते हैं, मनमरजी फैसले लेने लगते हैं. भारत जैसे देश में यह और भी ज्यादा प्रासंगिक और एक बड़ा संदेश ले कर आया है.
महत्वपूर्ण तथ्य है कि यह पहली बार है दक्षिण कोरिया के किसी राष्ट्रपति को पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है. इस घटना ने दक्षिण कोरिया के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है. यह देश के लिए एक नए युग की शुरुआत हो सकती है, जहां न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष की स्थिति समाप्त हो सकती है.
लेकिन यह घटना कई सवाल भी उठाती है. क्या यह गिरफ्तारी दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र के लिए एक खतरा है? क्या यह घटना देश की राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित करेगी?
इन सवालों के जवाब के लिए हमें दक्षिण कोरिया के राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से समझना होगा. इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण कोरिया में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. यह देश के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है, जहां लोगों को अपने नेताओं की जवाबदेही और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए लड़ना होगा.
दक्षिण कोरिया के राजनीतिक इतिहास को देखिए, दक्षिण कोरिया ने पिछले कई दशकों में तेजी से आर्थिक विकास किया है, लेकिन इस विकास के साथसाथ भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ी है.
यह घटना दक्षिण कोरिया के लोगों की भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता के खिलाफ लड़ने की इच्छा को दर्शाती है. लेकिन यह घटना कई चुनौतियों को भी पैदा करती है. दक्षिण कोरिया को अब एक नए राष्ट्रपति का चयन करना होगा, जो देश के राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों का सामना कर सके. इस के अलावा, दक्षिण कोरिया को अपने राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली को मजबूत करना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों.
यह भी देखना दिलचस्प होगा कि दक्षिण कोरिया के लोग इस घटना के बाद क्या करेंगे. क्या वे अपने नए राष्ट्रपति का समर्थन करेंगे? क्या वे अपने राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने के लिए काम करेंगे? यह सब तो आगेपीछे होगा ही मगर दक्षिण अफ्रीका ने एक बड़ा संदेश दुनिया भर को दे दिया है कि नेता और शासक भी लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक दायरे में रह कर रहें, अन्यथा जनता और देश की अन्य ताकतें किसी न किसी तरह उन्हें रास्ते पर ले ही आएंगे.

 

भारत के परिप्रेक्ष्य में

 

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति की गिरफ्तारी का भारत और विश्व पर प्रभाव पड़ सकता है. सब से पहले, यह घटना एशियाई क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकती है, जिस से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर असर पड़ सकता है.
भारत के लिए, यह घटना उस के दक्षिण कोरिया के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों पर असर डाल सकती है. भारत और दक्षिण कोरिया के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हैं और दोनों देशों ने कई क्षेत्रों में सहयोग किया है, जैसे कि व्यापार, प्रौद्योगिकी और रक्षा. इस के अलावा, यह घटना विश्व भर में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की स्थिति पर भी असर डाल सकती है. दक्षिण कोरिया भी भारत की तरह एक लोकतांत्रिक देश है, और उस के राष्ट्रपति की गिरफ्तारी यह दर्शाती है कि लोकतंत्र में नेताओं को भी जवाबदेह ठहराया जा सकता है.
यह घटना विश्व भर में राजनीतिक नेताओं के लिए एक सबक हो सकती है कि उन्हें अपने देशों के हित में काम करना चाहिए, न कि अपने व्यक्तिगत हितों में. दरअसल, लोग सत्ता संभालते ही यह भूल जाते हैं कि उन्हें जनता ने चुना है संविधान के संरक्षण में उन्हें काम करना है. दुनिया भर में आजकल नेता संविधान को किसी न किसी तरह कमजोर करने में लगे हैं और चाहते हैं कि उन की सत्ता सदैव के लिए बनी रहे, उन का बस चले तो वे संविधान की जगह तानाशाही ले आएं.

Hindi Story Telling : बहू सर्वगुण संपन्न ही क्यों चाहिए?

Hindi Story Telling : बहू चाहिए सर्वगुण संपन्न यानी कि वह घरपरिवार, परंपराओं के साथ चले. शिक्षित होने का उस पर ठप्पा भी लगा लो. प्रियंका सोचने पर मजबूर थी कि कर्तव्यों की कसौटी पर बहू ही क्यों खरी उतरे, बेटे से यह उम्मीद क्यों नहीं की जाती?

राहुल सुबह से 3 बार पढ़ चुके अखबार में सिर डाल कर बैठे हुए थे. प्रियंका मेज पर खाना लगा रही थी, तभी राहुल के फोन की घंटी बजी.
‘‘नमस्ते मामाजी.’’
‘‘खुश रहो मयंक और सुनाओ, क्या हालचाल हैं?’’ राहुल ने बड़े बिंदास लहजे में कहा.
प्रियंका के चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. राहुल और मयंक, कहने को तो मामाभांजा थे पर मयंक राहुल से कुछ ज्यादा ही लगा हुआ था. मयंक बड़ी ननद का बेटा था और राहुल घर में सब से छोटे थे.

दीदी की शादी के वक्त राहुल मुश्किल से 10-12 साल के ही थे. राहुल अकसर बताते थे, मयंक जब छोटा था, हमेशा उन्हीं के इर्दगिर्द घूमता रहता था. मयंक राहुल के लिए एक गोलमटोल खिलौने की तरह था. छोटे मामा की उंगली पकड़े वह सारा बाजार घूम आता. गरमी की छुट्टियों में मयंक के आगमन से पहले ही फोन पर सारी योजना बन जाती थी.
दीदी से छिप कर राहुल ने मयंक को स्कूटी चलाना भी सिखाया था. सच पूछो तो कहने को तो उन में मामाभांजे का रिश्ता था पर उन सब से ऊपर एक मित्रता का भाव भी जुड़ा हुआ था. शायद इसी भाव के कारण ही वह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेते थे.
‘‘और भाई शादीवादी का क्या विचार है, करनी है कि नहीं?’’
मयंक राहुल की बात सुन खिलखिला कर हंस पड़ा.
‘‘करनी है, करनी है मामाजी, वह भी कर ही लेंगे. पहले कुछ कमा तो लें वरना आप की बहू को कहां रखेंगे, क्या खिलाएंगे.’’

मयंक शुरू से ही पढ़ने में होशियार था. इंजीनियरिंग करने के बाद कैंपस प्लेसमैंट हो गया. नौकरी करने के साथसाथ उस ने एमबीए भी कर लिया. एमबीए करने के बाद मयंक की लंदन में एक अच्छी सी कंपनी में नौकरी लग गई थी. अभी 2 साल भी नहीं हुए थे, सब शादी के लिए हल्ला मचाने लगे थे. मयंक से सभी चुटकी लेते थे, ‘अरे भाई, कोई हो तो बता देना.’ पर न जाने क्यों एक अनदेखा डर सब के मन में बैठा हुआ था. ‘कहीं सचमुच वह किसी गोरी मेम को ले कर खड़ा न कर दे,’ राहुल ने हवा में तीर छोड़ा, ‘‘कोई लड़कीवड़की देख रखी हो तो पहले ही बता दो, फिर न कहना मामा ने पूछा नहीं. तुम्हारे नाना पीछे पड़े हैं. तुम बता दो वरना हम लोग लड़की देखें.’’
तभी पीछे से प्रियंका चिल्लाई, ‘‘मयंक, पहले बता देना, अचानक से सरप्राइज मत देना. कम से कम अपनी मामी को तैयारी करने का मौका तो दे ही देना वरना तेरी बीवी कहेगी किन लोगों के बीच आ गई.’’

प्रियंका ने राहुल से फोन ले लिया. मयंक न जाने क्यों शरमा गया.
‘‘मयंक, कैसे हो बेटा?’’
‘‘प्रणाम मामीजी, मैं बिलकुल ठीक हूं. आप बताइए, आप लोग कैसे हैं?’’
‘‘हम भी ठीक हैं, बस, वही दालरोटी के चक्कर में फंसे हुए हैं. तुम बताओ, कोई लड़कीवड़की देखी कि हम लोग देखें.’’
‘‘आप भी मामीजी!’’
‘‘अरे, मुझसे क्या शरमाना, जो भी हो साफसाफ बता देना.’’
मयंक ने वही रटारटाया जवाब दिया. मनुष्य का एक स्वभाव होता है, वह चाहे कितना भी समझदारी का ढोंग कर ले, पेट में शक की मरोड़ उठती ही रहती है. प्रियंका ने एक दिन सोशल मीडिया पर मयंक को अपनी साथी महिला कर्मचारियों के साथ पार्टी करने की फोटो देख ली थी. छोटेछोटे कपड़ों में लड़कियां हाथ में रंगीन गिलासों के साथ तितली की तरह खिलखिला रही थीं. न जाने क्यों तब से ही प्रियंका के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था.

वह बहुत दिनों से इसी फिराक में थी कि मयंक से बात कैसे निकलवाई जाए, प्रियंका ने अपनी आवाज को गंभीर बना कर कहा, ‘‘मयंक, शादी तो करनी ही है और हर आदमी तुम से कुछ न कुछ कहेगा ही पर निभाना तुम को है. इन सब चीजों में दूसरों की नहीं, खुद की सुनो. कल कोई ऊंचनीच हुई तो सब पल्ला ? झाड़ लेंगे. तुम्हें कैसी लड़की चाहिए, इस का निर्णय तुम को लेना होगा.’’
मामी की बात सुन कर मयंक के दिल में छिपे विचारों को मानो बल मिल गया. शायद आज से पहले किसी ने उस से इस ढंग से बात नहीं कही थी, किसी ने कभी उस का दृष्टिकोण जानने का प्रयास ही नहीं किया था.

‘‘मयंक, कहना तो नहीं चाहिए, सब मेरे अपने ही हैं पर तुम्हारे घर या फिर यहां तुम्हारी नानी के घर का माहौल ऐसा नहीं है कि नए जमाने की लड़कियां अपनेआप को एडजस्ट कर लें. सच पूछो तो वह वक्त के साथ बदलना भी नहीं चाहते. हम लोगों की बात छोड़ो, हम ने तो जैसेतैसे निभा लिया पर तुम्हारी पीढ़ी यह सब नहीं  झेल पाएगी.
‘‘सच कह रही हो, मामी. घर पर पापा, मम्मी, दादी, ताऊ, ताईजी सब शादी के पीछे पड़े हैं. हर दूसरेतीसरे दिन मम्मी एक फोटो ले कर खड़ी हो जाती हैं. मैं उन से खुल कर कह भी नहीं पाता कि आचारमुरब्बा वाली लड़की मुझे नहीं चलेगी.’’

मयंक की बात सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी. प्रियंका सोचने लगी, सच ही तो कह रहा था मयंक, उस की शादी के समय पापा ने भी तो शौक में यही सब तो लिखवाया था. मयंक ने बड़ी लापरवाही से आगे कहा, ‘‘मामीजी, आजकल के जमाने में यह सब खाता कौन है, सब तो फिगर कौन्शस हैं. वैसे भी, आजकल तो बाजार में सबकुछ मिल जाता है.’’
‘‘फिर भी बेटा…’’ प्रियंका के शब्द गले में ही अटक कर रह गए. यही मयंक खाने के लिए बचपन में दीदी को कितना नाच नचाता था. दीदी हाथ में थाली लिए मयंक के पीछे भागतेभागते हार जाती थीं. गलत तो नहीं कहा था मयंक ने, मम्मीजी अकसर कहती थीं आजकल की लड़कियां कुछ नहीं करना चाहतीं. ऊपर से तुर्रा यह कि पढ़ाई कर रहे हैं, खाना बनाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है. प्रियंका सोचने लगी, उस के पापा ने भी तो उस की शादी के वक्त कुछ इसी तरह के शौक और विशेषताएं लिखवाई थीं. कुछ तो ऐसी भी चीजें शामिल थीं जिन का उस से दूरदूर तक नाता नहीं था.
उन दिनों कुकरीबेकरी बड़े लोगों की चीज हुआ करती थी, पापा ने वह भी लिखवा दिया. शायद, लड़के वालों के सामने वे अपनी बेटी को कमतर नहीं दिखाना चाहते थे या शायद यह भी हो सकता है कि वे किसी भी आधार पर बेटी के ऊपर रिजैक्शन का ठप्पा नहीं लगवाना चाहते थे.
पर इतने जतन और टोटके के बाद भी 2 जगह से रिजैक्शन का ठप्पा लगने के बाद प्रियंका की शादी राहुल से हो पाई थी. वक्त बदल गया था पर वक्त के साथ लड़कियों के लिए सोच का दायरा नहीं बदला था. लड़कियों को आज भी रिजैक्ट किया जाता था. पर हां, समय ने करवट जरूर ली थी. अब लड़कियां भी लड़कों की तरह लड़कों को रिजैक्ट करने लगी हैं.
‘‘हैलोहैलो!’’
प्रियंका मयंक की आवाज सुन कर अपनी सोच के घेरे को तोड़ बाहर आ गई, ‘‘सुन रही हूं बेटा, बोलो.’’
‘‘मामीजी, मैं खुद भी नहीं चाहता कि जिस किसी से भी मेरी शादी हो, वह दिनभर घर पर बैठ कर मेरे लिए खाना बनाए.’’
‘जिस किसी’ प्रियंका का शंकित मन सोशल नैटवर्किंग पर मयंक के साथ की लड़कियों की तसवीरों में उस ‘जिस किसी’ को तेजी से टटोल रहा था.
‘‘मयंक, ठीक कह रहे हो, जितना बड़ा शहर उतने ही खर्चे. दोनों नहीं कमाएंगे तो काम कैसे चलेगा.’’
‘‘बात कमाने की नहीं है, मामीजी. मैं इतना कमा लेता हूं कि अच्छे से जिंदगी कट जाएगी पर इस शहर में, घर में दिनभर अकेली पड़ी रहे, यह तो मैं भी नहीं चाहूंगा.’’

प्रियंका हंस पड़ी, क्या जवाब देती. आज उस की डिग्रियां उस को मुंह चिढ़ा रही थीं. राहुल ने शादी की पहली ही रात कह दिया था, ‘मु?ो घर संभालने वाली लड़की चाहिए, नौकरी के चक्कर में घर की शांति भंग नहीं कर सकता. आखिर, घर में और भी महिलाएं हैं. प्रियंका ने दूसरे ही दिन उन सपनों को कहीं गहरे तहखाने में दबा कर रख दिया था.
‘‘मयंक, कह तो तुम सही रहे हो, शायद तुम को अच्छा न लगे पर तुम्हारे घर का जो माहौल है वहां तुम्हारी बीवी से साड़ी पहनने की उम्मीद की जाए, खाने में 3 तरह की सब्जियों की उम्मीद की जाए तो वह बेचारी कैसे कर पाएगी.’’

‘‘साड़ी मामीजी, इन 2 सालों में मैं ने किसी को सलवारसूट में भी नहीं देखा. आप साड़ी की बात कर रही हैं. आप 3 सब्जियों की बात कर रहीं हैं, मैं तो यह भी उम्मीद नहीं करता कि उसे खाना बनाना भी आता हो. जब मुझे बनाना नहीं आता, अगर उसे बनाना नहीं आता हो तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी. वैसे भी, वह सब तो मैनेज हो ही जाता है.’’
मयंक की बेबाकी कहीं न कहीं उसे अंदर तक भेद गई थी. कहीं न कहीं वह अपने भविष्य के लिए भी भयभीत हो रही थी. कुछ वर्षों बाद वह भी तो उसी दहलीज पर खड़ी होगी जहां आज दीदी खड़ी थीं. प्रियंका हतप्रभ थी, क्या वाकई में जमाना इतना बदल गया है. प्रियंका की आंखों के सामने दीदी का चेहरा घूम गया, बहू के लिए देखे गए वे अनगिनत सपने कहीं न कहीं उसे चूर होते दिख रहे थे जिन की किरचें उसे चुभती महसूस हो रही थीं. प्रियंका कहीं भी घूमने जाती तो ननद के लिए उस शहर की कोई प्रसिद्ध चीज ले कर आती. कई बार तो दीदी ने भी मनुहार कर के अपनी भावी बहू के लिए भी साड़ी मंगवाई थी. ‘प्रियंका, एकसाथ कुछ नहीं हो पाता, धीरेधीरे कर के इकट्ठा करती चलूंगी तभी तो मयंक की शादी कर पाऊंगी, बनारसी, कांजीवरम, चंदेरी और न जाने क्याक्या.’ मां तो मां ही होती है.

महीनों की जद्दोजेहद के बाद आखिर मयंक के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढ़ ही ली गई. लड़की मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी, मयंक के बराबरी की थी. दीदी अपनी चांद सी बहू के गुण गाते नहीं थक रही थीं.
‘‘जानती हो प्रियंका, रुचिका मयंक से पहले से नौकरी करती है. मयंक से कहीं ज्यादा अच्छा पैकेज है उस का.’’
‘‘दीदी, आप की तो ऐश है, दोनों हाथ लड्डू में. सुंदर और कमाऊं बहू मिल रही है आप को.’’
दीदी की भाषा और व्यवहार में अचानक से कमाऊ बहू की ठसक दिखने लगी थी.
‘‘दीदी. साडि़यां और लेनी हैं तो बता दीजिएगा,’’ प्रियंका ने भाभी होने का फर्ज निभाते हुए कहा.
‘‘प्रियंका, सुन, पीहर से भात के लिए सिर्फ मेरे और जीजाजी का ही कपड़ा लाना और मयंक को मैं देख लूंगी. नए जमाने के बच्चे हैं, पता नहीं क्या पसंद आए क्या नहीं. हम लोगों का तो सब चल जाता है.’’
‘‘नहींनहीं दीदी, ऐसे कैसे, यह तो पीहर वालों की जिम्मेदारी है,’’ प्रियंका ने अपनी आवाज में रस घोलते हुए कहा. आखिर शादी का दिन भी आ गया. सब बहुत खुश थे. खुश तो दीदी भी थीं पर शायद मयंक की वापसी की बात सोचसोच उन की आंखें भर आ रही थीं. दीदी शायद यह भूल गई थीं, कहीं न कहीं इन सब की जिम्मेदार वे खुद थीं. मयंक की पीठ पर आज जो सपनों के पंख हैं वे उन्होंने खुद ही रोपे थे. आज मयंक के बचपन की एकएक घटना को याद कर उन का आंचल भीगा जा रहा था. वक्त की आंच में स्मृतियां मोम की तरह पिघलपिघल कर आंखों से टपटप चू रही थीं. कहीं न कहीं हम अपने बच्चों को अपने खुद के अधूरे सपनों को पूरा करने का जरिया बना लेते हैं.
? झालर की रोशनी से नहाया दीदी का घर कितना खूबसूरत लग रहा था, शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई. बहू के आगमन के साथ मेहमानों की रवानगी शुरू हो गई. प्रियंका भी अपना सामान बांध रही थी. तभी पीछे से दीदी ने आ कर प्रियंका को चौंका दिया, उन के हाथों में कुछ रंगीन लिफाफे और कपड़ों के बंडल थे.
‘‘प्रियंका, आती रहना, मयंक अगले महीने तक चला जाएगा. रुचिका अभी यहीं रहेगी, वीजा की औपचारिकता पूरी होते ही वह भी मयंक के पास चली जाएगी.’’
न जाने क्यों दीदी यह सब कहतेकहते उदास हो गईं, कितने मन से जीजाजी ने दोमंजिला घर बनवाया था. एकएक चीज दीदी और मयंक की पसंद की लगवाई थी पर आज उस घर में रहने के लिए दीदीजीजाजी के सिवा कोई न था. प्रियंका दीदी से आने का वादा कर अपने घर वापस आ गई.
गृहस्थी की उठापटक से जूझती प्रियंका समय निकाल कर अकसर दीदी से बात कर लेती. शुरूशुरू में तो सब ठीक था पर कमाऊ बहू की सास होने की ठसक धीरेधीरे न जाने कहां गुम होने लगी थी. वीजा का इंतजार करतेकरते सालभर होने को आ गया था. शुरूशुरू में तो सबकुछ ठीक था. एक बार साड़ी में पैर फंस जाने की वजह से रुचिका गिरतेगिरते बची थी. दीदी ने उसी दिन फरमान जारी कर दिया, ‘तुम सूट पहनो. कहीं चोटवोट लग जाए तो फिर कौन सेवा करेगा.’
प्रियंका सोच में पड़ गई, वक्त के साथ दीदी कितनी बदल गई थीं. शादी के 5 वर्षों बाद जब उस ने दबे स्वर में सलवारकमीज पहनने की इजाजत मांगी तो घर में कितना हंगामा मचा था. दीदी ने भी कितना कुछ सुनाया था, ‘भले घर की बहूबेटियों को यह सब शोभा नहीं देता.’ पर आज!
रुचिका को तो मानो खुला आसमान मिल गया, वह घर में गाउन पहन कर आराम से सासससुर के सामने डोलने लगी थी. चीजें बिगड़ रही थीं और चीजों के बिगड़ने के साथ दीदी के फोन आने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा था. प्रियंका उन के फोन को उठाने से बचने लगी थी पर बचती भी तो कब तक.

घर में शायद कुछ ज्यादा ही बवाल हो गया था. दीदी का सुबहसुबह ही फोन आ गया था, ‘‘प्रियंका, देख, क्या जमाना आ गया, गिनती के 3 लोग हैं पर महारानी से 3 लोगों का भी खाना नहीं बन पाता. कहती है कि नौकरी करूं या खाना बनाऊं. इन की नौकरी से हमें क्या लेनादेना, कौन सा एक चवन्नी हमारे हाथ पर धर देती है. तीजत्योहार पर दे भी दिया तो उस से क्या पेट भर जाएगा. कहती है, कमाने का फायदा क्या जब एक खाना बनाने वाली भी नहीं रख सकते. अब यही रह गया कि घर में दोदो औरतों के रहने के बावजूद नौकरों के हाथ का खाना खाया जाए.’’
प्रियंका चुपचाप ननद की बात सुनती रही और सोचती रही कि दीदी को बहू से उम्मीद करने या कोसने से पहले एक बार अपने बेटे से भी पूछना चाहिए था कि उसे कैसी बीवी चाहिए थी. रुचिका ही हर बार अच्छी बहू होने का प्रमाण क्यों देती फिरे. आखिर मयंक कब आ कर यह कहेगा कि उसे तो ऐसी ही जीवनसाथी चाहिए थी. आखिर रुचिका ही कर्तव्यों की कसौटी पर क्यों और कब तक पिसती रहेगी. क्या सचमुच मयंक कभी यह कह पाएगा, प्रियंका सोचती रही, क्या इस सवाल का जवाब कभी कोई दे पाएगा. सच कहा है किसी ने, समाज स्त्रियों के लिए कभी नहीं बदलता. सवालों के सुलगते अंगार पर न जाने स्त्रियों को कब तक जलना है.

Faith vs Business : भक्तों की भावनाएं या व्यापार का खेल

Faith vs Business : धर्म का धंधा सिर्फ पंडेपुजारियों की वजह से ही नहीं फलफूल रहा, इस धंधे से दूसरे बहुत से भी लाभ उठाते हैं. धर्म के धंधे के बने रहने से वर्णव्यवस्था बनी रहती है और गरीब, परेशान, बीमार, कर्ज में डूबा, मुनाफाखोरों से पीडि़त बजाय विरोध करने के, इसे अपने जन्म का दोष मानता है, पिछले जन्मों के कर्मों का फल मानता है, भगवान के दरबार में सही ढंग से भक्ति की भेंट पूजा न कर पाने की अपनी कमी को मानता है.

धर्म के धंधे में पंडेपुजारियों के साथसाथ हजारों मंदिर और लोग भी लगे हैं (ये भारतीय जनता पार्टी के अवैतनिक कार्यकर्ता भी हैं). इन लोगों में दुकानदार, टैक्सी वाले, घोड़े वाले, पहाडि़यों पर बने तीर्थस्थलों में डांडी ले जाने वाले भी शामिल हैं. जम्मू में वैष्णो देवी के तीर्थ पर दुकानदारों ने हड़ताल का तरीका अपनाया क्योंकि वहां का बोर्ड कटरा के पास एक जगह से रोपवे बनाना चाह रहा है ताकि वैष्णो देवी गुफा तक बिना चढ़ाई पर चढ़े पहुंचा जा सके.

अब इस पैदल रास्ते पर बहुत सी दुकानें बनी हैं. इन दुकानों से हजारों भक्त हर रोज भरपूर सामान खरीदते हैं. ये दुकानदार चाहते हैं कि उन का धंधा बरकरार रहे क्योंकि धर्मस्थल पर दुकानदार कैसा ही सामान कितने भी दामों पर बेच सकता है. ब्रेनवाश किया हुआ भक्त ज्यादा भावताव नहीं करता. उन्हें 250 करोड़ रुपए के रोपवे से ईर्ष्या होनी स्वाभाविक है क्योंकि तब उन का सारा पैसा रोपवे के मालिक की जेब में जाएगा. रोपवे वालों को भी कुछ दुकानें खोलने की इजाजत दी जाती है. उन दुकानों का किराया भी रोपवे मालिकों की जेबों में जाएगा.

मजेदार बात यह है कि दुकानदारों के मुखिया रोपवे को हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला काम बता रहे हैं. रोपवे तो धर्मांधों को जल्दी अपने लक्ष्य पर पहुंचा कर उन्हें पुण्य दिलाने का काम करेगा, इसे भी अगर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कहा जाएगा तो मतलब साफ है कि ये भावनाएं धार्मिक नहीं होतीं, दरअसल ये आर्थिक होती हैं.
वास्तव में दुनियाभर के सभी धर्म आमभक्तों और अनुयायियों की जेबों को खाली कराने में लगे रहते हैं. वैष्णो देवी के मार्ग पर बैठे दुकानदार भी यही कर रहे हैं.

Hindi Story : हर्षा को कोई और मिल गया था?

Hindi Story : हर्षा जिस दिन से मायके से लौटी थी उल्लास उसे कुछ बदलाबदला पा रहा था. औफिस जाते समय पहले तो वह उस की हर जरूरत का ध्यान रखती. नाश्ता, टिफिन, घड़ी, मोबाइल, वालेट, पैन, रूमाल कहीं कुछ रह न जाए. वह नहा कर निकलता तो धुले व पै्रस किए कपड़े, पौलिश किए जूते उसे तैयार मिलते. रोज बढि़या डिनर, संडे को स्पैशल लंच, सुंदर सजासंवरा घर, मुसकान से खिलीखिली हर वक्त आंखों में प्यार का सागर लिए उस की सेवा में बिछी रहने वाली हर्षा के रंगढंग उस दिन से कुछ अलग ही नजर आ रहे थे.

अब उसे कोई चीज टाइम पर जगह पर नहीं मिलती. पूछता तो उलटे तुरंत जवाब मिल जाता कि कुछ खुद भी कर लिया करो. अकेली कितना करूं. उल्लास इधरउधर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा था.

‘उस दिन औफिस की पुरानी सैक्रेटरी बीमार जान कर उसे देखने घर चली आई. कहीं इस कारण हर्षा को कुछ फील तो नहीं हो गया या  हर्षा की नई भाभी पारुल ने तो कहीं उसे पट्टी पढ़ा कर नहीं भेजा, बहुत तेज लगती है वह या फिर औफिस में बिजी रहने के कारण आजकल कम टाइम दे पाता हूं. घर में अकेले पड़ेपड़े बोर हो जाती होगी शायद. मायके में जौइंट फैमिली जो है… बच्चा भी तो नहीं अभी कोई, जो उसी से मन लग जाता. 2-3 साल बाद बच्चे का प्लान खुद ही तो मिल कर बनाया था. पूछने पर तो सही जवाब भी नहीं देती आजकल,’ उल्लास सोचे जा रहा था.

‘‘उल्लास खाना बना दिया है, निकाल कर खा लेना. बाकी फ्रिज में रख देना. मुझे शायद आने में देर हो जाए. फ्रैंड के घर किट्टी पार्टी है,’’ हर्षा का सपाट स्वर सुनाई दिया.

‘‘संडे को कौन किट्टी पार्टी रखता है? एक ही दिन तो सभी जैंट्स घर पर होते हैं?’’

‘‘और हम जो रोज घर में रहतीं हैं उन का क्या? कल से तुम्हारे कपड़े बैड पर फैले हैं. उन्हें समेट कर रख लेना. मेरी समझ नहीं आता मेरे लिए क्यों छोड़ कर जाते हो?’’ और धड़ाम से दरवाजा बंद कर वह चली गई.

उल्लास सोचने लगा कि वह पहले भी तो यों छोड़ जाता था… तब उस के काम खुशीखुशी कर देती थी, तो अब उस ने ऐसा क्या कर दिया जो हर्षा उस से रूठीरूठी सी रहने लगी है? वह उस पर और बर्डन नहीं डालेगा. अपने काम खुद कर लिया करेगा.

उल्लास ने जैसेतैसे बेमन से खाना खा  लिया. हर्षा का खाना बेस्वाद तो कभी नहीं बना, भले ही खिचड़ी बनाए. इसी कारण उस का बाहर का खाना बिलकुल छूट गया था… पर अब तो कभी नमक ज्यादा तो कभी कम. कच्ची सब्जी, जलीजली रोटियां. हुआ क्या है उसे? वह हैरान था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

फिर मन ही मन बुदबुदाया कि चल बेटा होस्टल डेज याद कर और आज कुछ बना डाल हर्षा को खुश करने के लिए. जब तक वह घर लौटे बढि़या सा डिनर तैयार कर ले उस के लिए… हमेशा वही बनाती है उसे भी तो कभी कुछ करना चाहिए. फिर सोचने लगा कि हर्षा को आमिर खान पसंद है. अत: पहले ‘दंगल’ मूवी के टिकट बुक करा लिए जाएं नाइट शो के. फिर औनलाइन टिकट बुक किए. दोनों की पसंद का खाना तैयार किया.

हर्षा आई तो उस का प्रयास देख कर मन ही मन खुश हुई. करी को थोड़ा सा ठीक किया, पर बाहर जाहिर नहीं होने दिया. यही तो चाहने लगी थी कि उल्लास किसी भी बात के लिए उस पर निर्भर न रहे. डिनर भी चुपचाप हो गया. मूवी में भी हर्षा चुपचुप रही.

उस की चुप्पी उल्लास को अखरने लगी थी. अत: बोला, ‘‘कोई बात है हर्षा तो मुझे बताओ… मुझ से कुछ गलत हो गया या मेरा साथ तुम्हें अब अच्छा नहीं लगता?’’

‘‘जब तुम हिंदी मूवी पसंद नहीं करते हो, तो मेरी पसंद के टिकट नहीं लाने चाहिए थे. प्रत्यूष और धनंजय को ले कर अच्छा होता कोई अपनी पसंद की इंग्लिश मूवी ऐंजौय करते… जबरदस्ती मेरे कारण देखने की क्या जरूरत है?’’

उल्लास देखता रह गया कि जो हर्षा रातदिन उसे दोस्तों के साथ न जाने और अपने साथ ही हिंदी मूवी देखने की जिद करती थी वही आज उलटी बात कर रही है… क्यों उस से कट रही है हर्षा? क्या किसी और के लिए दिल में जगह बना ली है? फिर उस ने सिर झटका कि वह ऐसा सोच भी कैसे सकता है? उसे दीवानों की तरह चाहने वाली हर्षा ऐसा कभी नहीं कर सकती. वह चाहती है न कि वह अपने सारे काम खुद करे तो करेगा. तब तो खुश होगी. उसे पहले वाली हर्षा मिल जाएगी.

2-3 महीने में उल्लास ने अपने को काफी बदल लिया. अपने कपड़े हर संडे धो डालता. कुछ खुद प्रैस करता कुछ को बाहर से करवा लेता. घड़ी, वालेट, मोबाइल, चार्जर वगैरह ध्यान से 1-1 चीज रख लेता. हर्षा को इस के लिए परेशान न करता. पेट भरने लायक खाना भी बनाना आ गया था. औफिस जाने से पहले अपना कमरा ठीक कर जाता.

अब तो खुश हो हर्षा? वह पूछता तो हर्षा हौले से मुसकरा देती, पर अंदर से उसे अपने कामों को स्वयं करता देख बहुत दुखता, पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर थी.

‘‘उल्लास इंगलिश की नईर् मूवी लगी है, जाओ अपने दोस्तों के साथ देख आओ.’’

‘‘हर्षा तुम मुझे ऐसे अपने से दूर क्यों कर रही हो. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह कैसी खुशी है तुम्हारी? क्या मुझे अपने लायक नहीं समझती अब?’’

‘‘उल्लास तुम तो लायक हो और तुम्हारे लिए वह लाली मौसी ने सही लड़की चुनी थी उन की ननद की बेटी संजना. बिलकुल तुम्हारे लिए हर तरह से सही मैच… उस ने अभी तक शादी नहीं की. मेरी वजह से उस से रिश्ता होतेहोते रह गया था तुम्हारा… लाली मौसी इसी कारण अभी तक नाराज हैं. उन की नाराजगी तुम दूर कर सकते हो तो बताओ…’’

‘‘कहां इतनी पुरानी बात ले कर बैठ गई तुम… हम दोनों ने एकदूसरे को

पसंद किया, प्यार किया, शादी की. अब यह बात कहां से आ गई… अच्छा औफिस को देर हो रही है. मैं निकलता हूं शाम को बात करते हैं रिलैक्स,’’ और फिर हमेशा की तरह बाहर निकलते हुए उस के माथे पर चुंबन जड़ दिया, ‘‘तुम कुछ भी कर लो, कह लो तुम्हें प्यार करता रहूंगा. सी यू हनी.’’

‘‘यही तो मैं अब नहीं चाहती उल्लास… तुम्हें कुछ कह भी तो नहीं सकती,’’ हर्षा देर तक रोती रही. कल ही उसे मुंबई के लिए निकलना था कभी न लौटने के लिए. उस ने अपनेआप को किसी तरह संभाला. छोटे से बैग में सामान पैक कर लिया. उल्लास आया तो उसे बताने की हिम्मत न हुई. रात बेचैनी से करवटें बदलते बीत गई.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही हर्षा,’’ उल्लास कभी पानी, कभी चाय तो कभी कौफी बना लाता. कभी माथा सहलाता.

‘‘डाक्टर को बुलाऊं क्या?’’

‘‘कुछ नहीं थोड़ा सिरदर्द है. सुबह तक ठीक हो जाएगा. तुम अब सो जाओ.’’

मगर उल्लास माना नहीं तेल की शीशी उठा लाया. ढक्कन खोला तो वह फिसल कर बैड के नीचे पहुंच गया. वह झुका तो पैक्ड बैग नजर आया.

‘‘अरे यह बैग कैसा है? कौन जा रहा है?’’

‘‘हां, उल्लास मुझे कल ही जाना पड़ रहा है मुंबई. अभि मुझे लेने कल सुबह यहां पहुंच जाएगा. वह मेरी सहेली रुचि की बहन की शादी है. उस का कोई है नहीं. घबरा रही है, डिप्रैशन में अस्पताल में दाखिल भी रही. सारी तैयारी करनी है. अत: मां से रिक्वैस्ट की कि अभि को भेज कर मुझे बुला लें. मेरे पास भी तुम से रिक्वैस्ट करने के लिए फोन आया था. मैं ने कह दिया उल्लास मुझे मना नहीं करेंगे… 1 महीना क्या 6 महीने रख लो. सारे काम खुद करने की आदत डाल ली है. अब उल्लास को कोई परेशानी नहीं होगी अकेले. सही है न?’’ वह हलके से मुसकराई. पर इतना प्यार करने वाले पति उल्लास से सब मनगढ़ंत कहने के लिए मजबूर वह अंदर तक हिल गई.

‘‘मगर… कितने दिन… मैं अकेले कैसे… कुछ बताया तो होता?’’

‘‘अकेले की आदत तो डाल ही लेनी चाहिए… आत्मनिर्भर होना चाहिए हर तरह से… अचानक कोई चल पड़े तो रोता ही फिरे दूसरा, कुछ कर ही न पाए,’’ वह हंसी थी.

‘‘चुप करो… कैसी बेसिरपैर की बातें कर रही हो… जा रही हो तो मैं तुम्हें रोक नहीं रहा… कब लौटोगी यह बताओ. शादी के लिए 10 दिन बहुत हैं, 1 महीना जा कर क्या करोगी पर ठीक है जाओ… हर दिन मुझे फोन करोगी. चलो अब सो जाओ.’’

8 बज चुके थे. तभी अभि आ गया, ‘‘कहां हो दीदी?’’

‘‘अभी उठी नहीं. कल तबीयत कुछ ठीक नहीं थी उस की… कुछ अजीब सी बातें कर रही थी, इसलिए अभी उठाया नहीं.’’

‘‘1 बजे की फ्लाइट है जीजू, देर न हो जाए.’’

‘‘हां, मैं उठाने ही जा रहा था. मुझे रात को ही मालूम हुआ… चाय बन गई, तुम उठा दो मैं चाय डाल कर लाता हूं.’’

‘‘दीदी उठो. मैं आ भी गया. चलना नहीं क्या? देर हो जाएगी,’’ अभि ने उसे उठाया.

‘‘जितनी देर होनी थी अभि हो चुकी अब और क्या होगी?’’ कहते हुए हर्षा उठ बैठी.

‘‘क्यों नहीं आप वहां रुकीं इलाज करवाने… कोशिश तो की ही जा सकती थी… क्यों नहीं बताने दिया जीजू को?’’ छोटा भाई अभि उस के कंधे पकड़ लाचारगी से बैठ गया. आंखों में बूंदें झलकने लगीं.

‘‘वक्त बहुत कम था मेरे पास, कितना इलाज हो पाता… तुझे तो पता ही है, तेरे जीजू को तैयार भी तो करना था मेरे बिना रहने के लिए… तू शांत हो जा बस,’’ हर्षा उस के आंसू पोंछने लगी जो रुक ही नहीं रहे थे.

उल्लास के कदमों की आहट कमरे की ओर आने लगी, तो अभि ने झट अपने आंसू दोनों हाथों से पोंछ डाले और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगा.

हर्षा जातेजाते उल्लास को ठीक से रहनेखाने की तमाम हिदायतें दिए जा रही थी. अधिक फोन मत करना… वहां सब मुझे छेड़ेंगे कि उल्लास तेरे बिना रह ही नहीं पा रहा.

अब उदास, परेशान मत हो… तुम्हीं ने तो लंबा प्रोग्राम बनाया है. दोस्त के यहां शादी में जा रही हो. खुशीखुशी जाओ, मेरी चिंता बिलकुल छोड़ दो. मैं सब मैनेज कर लूंगा… ठाट से रहूंगा, देखना.’’

एअरपोर्ट से अंदर जाने के लिए हर्षा ने उल्लास का हाथ छोड़ा तो लगा उस की सारी दुनिया ही छूट गई. उल्लास को आखिरी बार जी भर कर देख लेना चाह रही थी. बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला और हौले से बाय कहा. मुसकरा कर हाथ हिलाया और फिर झटके से चेहरा घुमा लिया. आंखों में उमड़ते बादलों को बरसने से रोक पाना उस के लिए असंभव था.

2 दिन ही बीते थे हर्षा को गए हुए औफिस में उल्लास को पता चला उस की अगले फ्राईडे को मुंबई में मीटिंग है. वह खुशी से उछल पड़ा. उस ने 2-3 बार ट्राई किया कि हर्षा को बता दे पर फोन नहीं मिला. फिर सोचा अचानक उसे सरप्राइज देगा.

‘‘फोन ही नहीं मिल रहा हर्षा का. यहां मेरी मीटिंग है आज 3 बजे. सोच रहा हूं हर्षा को सरप्राइज दूं. उस की सहेली रुचि का जल्दी पता बता अभि.’’

अभि उसे हैरानपरेशान सा देख रहा था.

‘‘जीजू आप…’’ उस ने पैर छुए, ‘‘मैं वहीं जा रहा हूं आइए. 1 मिनट रुको. अंदर अम्मांजी से तो मिल लूं.’’

‘‘सब वहीं हैं जीजू,’’ वह धीरे से बोला.

‘‘कहां खोया है तू… लगता है तेरी भी जल्दी शादी करनी पड़ेगी,’’ उल्लास अकेले ही बोले जा रहा था.

‘‘अरे कहां ले आया तू टाटा मैमोरियल… कौन है यहां कुछ तो बोल… अभि कहीं हर्षा…’’ वह आशंका से व्याकुल हो उठा.

अभि बिना कुछ बोले उस का हाथ पकड़ सीधे हर्षा के पास ले आया, ‘‘सौरी दी… मैं आप को दिया प्रौमिस पूरा नहीं कर पाया,’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

दिल से न चाहते हुए भी हर्षा की आंखें जैसे उल्लास का ही इंतजार कर रही थीं.

मानो कह रही हों तुम्हें देख अब तसल्ली से जा सकूंगी. उल्लास के हाथ को कस कर थामे उस की हथेलियों की पकड़ ढीली पड़ने लगी. वह बेसुध हो गई.

‘‘हर्षाहर्षा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा. तुम ने मुझे क्यों नहीं पता लगने दिया? डाक्टर… सिस्टर…’’

‘‘आप बाहर आइए प्लीज, हिम्मत से काम लीजिए… मैं ने इन्हें 2-3 महीने पहले ही बता दिया था… बहुत लेट आए थे… कैंसर की लास्ट स्टेज थी. अब कुछ नहीं हो सकता…’’

‘‘ऐसे कैसे कह सकते हैं डाक्टर? आप लोग नहीं कर पा रहे यह बात और है… मैं अमेरिका ले जाऊंगा… फौरन डिस्चार्ज कर दीजिए. मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा हर्षा मैं अभी आया,’’ और वह बाहर भागा.

जी जान लगा कर उल्लास ने आननफानन में अमेरिका जाने की व्यवस्था कर ली. 2 दिन बाद वह हर्षा को ले कर लुफ्थांसा विमान में इसी उम्मीद की उड़ान भर रहा था.

‘‘तेरे बिन नहीं जीना मुझे हर्षा,’’ उस ने उस के कानों में धीरे से कहा और हमेशा की तरह उस के माथे पर चुंबन अंकित कर दिया, परंतु इस बार वह आंसुओं में भीगा था.

Romantic Hindi Story : अदिति और रवि के बीच कैसे पैदा हुई दरार

Romantic Hindi Story : रवि 3 महीने से दीवाली पर बोनस और प्रमोशन की आस लगाए बैठा था. 2 साल की कड़ी मेहनत, कम छुट्टियां और ओवर टाइम से उस ने अपने बौस का दिल जीत लिया था. वह अपने बौस मिस्टर राकेश का फेवरेट एंप्लोई बन चुका था. उस ने सोचा था कि इस बार दीवाली पर एक महीने की लंबी छुट्टी ले कर मम्मीपापा के साथ रहेगा. मम्मी पिछले साल से ही उस की शादी की कोशिश में जुटी थीं.

अपने साथ काम करने वाले मुकेश को कई बार वह अपनी छुट्टियों की प्लानिंग बता चुका था. उस के सारे सहकर्मियों को भरोसा था कि उसे अब की बार दीवाली पर बोनस के साथसाथ प्रमोशन भी मिलेगा. मिस्टर राकेश ने प्रमोशन की लिस्ट में रवि का नाम सब से ऊपर लिखा हुआ था और उसे वे कई बार बता भी चुके थे. हालांकि हैड औफिस से फाइनल लिस्ट आनी बाकी थी.

सप्ताह का पहला दिन था. रवि अपने सहकर्मियों को गुड मौर्निंग कहता हुआ अपने कैबिन में जा रहा था, तभी चपरासी गुड्डू रवि से बोला, ‘‘रवि साहब, आप को बौस ने बुलाया है.’’

‘‘मुझे,’’ रवि के मुंह से अचानक निकला था.

पास के कैबिन में बैठा मुकेश रवि की तरफ ही देख रहा था. उस का सवाल सुन कर वह बताने लगा, ‘‘अरे रवि, तुम्हें पता चला हमारे बौस राकेश साहब की मदर की तबीयत ज्यादा खराब है. इसलिए वे छुट्टी पर चले गए हैं.’’

‘‘अच्छा, कब तक के लिए,’’ रवि के चेहरे पर थोड़ी परेशानी झलक रही थी और सहानुभूति भी. परेशानी खुद की छुट्टी को ले कर थी. वह सोच रहा था कि अगर बौस छुटट्ी पर चले गए हैं तो उस की छुट्टी की कौन मंजूरी देगा और सहानुभूति अपने बौस के लिए थी.

‘‘यार, फिलहाल तो उन्होंने एक हफ्ते की ऐप्लिकेशन दी है, लेकिन कुछ नहीं कह सकते कि वे कब तक लौटेंगे,’’ मुकेश ने बताया.

रवि के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह अपनी छुट्टियां को ले कर संशय में था. अब जब उस के बौस छुट्टी पर थे, तो उसे पता नहीं ज्यादा दिन की छुट्टी मिल सकेगी या नहीं.

मुकेश ने उस के चेहरे के भावों को भांपते हुए कहा, ‘‘तू फिक्र मत कर, तुझे छुट्टी तो मिल ही जाएगी. 2 साल से लगातार हार्डवर्क जो कर रहा है तू.’’

रवि इस पर मुसकरा दिया. फिर धीमे से बोला, ‘‘फिर यह नया बौस कौन है, जो मुझे बुला रहा है?’’

‘‘कोई नई मैडम राकेश सर की जगह टैंपरेरी अपौइंट हुई हैं. सुना है मुंबई से हैं,’’ मुकेश ने बताया और बोला, ‘‘तू मिल ले जा कर, औफिस का वर्क इंट्रोड्यूस करवाने के लिए बुलवा रही होंगी तुझे.’’

‘‘चल, फिर मैं उन से मिल कर आता हूं,’’ रवि के चेहरे पर अब थोड़ी राहत झलक रही थी.

मुकेश की इस बात से उसे राहत पहुंची थी कि 2 साल से वह हार्डवर्क कर रहा था. कंपनी के पास उस की छुट्टी कैंसिल करने की कोई वजह भी नहीं थी.

ये सब सोचतेसोचते रवि बौस के रूम का दरवाजा खोल कर अंदर चला गया.

‘‘प्लीज, मे आई कम इन मैम,’’ रवि कैबिन के दरवाजे को आधा खोल कर धीरे से बोला.

‘‘कम इन,’’ मैडम किसी फाइल को सिर झुका कर देख रही थीं.

रवि चुपचाप उन की टेबल के सामने जा कर खड़ा हो गया.

मैडम ने अचानक अपना सिर उठाया और शायद ‘सिट डाउन, प्लीज’ कहने ही वाली थीं कि रुक गईं.

रवि भी अपनी जगह बस खड़े का खड़ा ही रह गया. उसे इस बात की बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि वह उसे आज यहां अचानक इस तरह मिलेगी. वह अदिति थी. कालेज की पुरानी दोस्त नहीं, कालेज के दिनों की रवि की एकमात्र दुश्मन. दोनों ने कभी एकदूसरे से कालेज में बात भी नहीं की थी, लेकिन उन का झगड़ा फेसबुक चैटिंग पर पहले हो चुका था.

रवि का कालेज में पहला साल था. वह पढ़ाकू किस्म का लड़का था. उन दिनों वह अदिति की तरफ आकर्षित हो गया था, लेकिन उसे उस से बात करने में न जाने क्यों बहुत ज्यादा झिझक महसूस होती थी. अदिति अच्छी होस्ट होने के साथसाथ कविताएं लिखती और सुनाती भी थी. ऐसी कई बातों ने रवि को प्रभावित कर दिया था. लेकिन रवि चुप रहने वाला लड़का था. वह अदिति से बात करना तो चाहता था, पर कर नहीं पाता था.

2 सैमेस्टर पूरे होने के बाद रवि के कालेज में कुछ दिनों के लिए छुट्टियां हो गई थीं.

तभी एकाएक उसे फेसबुक जैसे माध्यम का साथ मिल गया. उस ने इंटरनैट पर फेसबुक आईडी बना ली और अदिति को फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी. अदिति ने उसे ऐक्सैप्ट भी कर लिया. अब जैसे रवि को नया आसमान मिल गया था, थोड़ाबहुत जो भी लिख लिया करता था, फेसबुक पर पोस्ट करता, उस के क्लासमेट्स भी अब उसे नोटिस करने लगे थे. फिर वह एकाएक अदिति को अकसर उस की कविताओं की तारीफ लिख कर भेजा करता, उस की तसवीरों पर कमैंट कर दिया करता. बदले में अदिति भी रिप्लाई करती थी.

एक दिन उस ने अदिति की एक तसवीर देखी और उस पर उसे कुछ पंक्तियां लिखने का मन हुआ. उस दिन उस ने कमैंट में अपनी वे पंक्तियां न लिख कर अदिति की उस तसवीर को डाउनलोड कर अपनी टाइमलाइन से उन पंक्तियों के साथ अपलोड कर दिया और अदिति की टाइमलाइन पर वह तसवीर टैग के जरिए भेज दी. यह सब देखते ही अदिति ने रवि को मैसेज किया ‘अपलोड करने से पहले पूछ तो लेते.’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘जी, सौरी. आप को बुरा लगा हो तो मैं उस तसवीर को हटा देता हूं.’

रवि फेसबुक का नौसिखिया संचालक था. उसे मालूम नहीं था कि उस फोटो को पूरी तरह से हटाने के लिए उसे डिलीट के औप्शन पर जाना होगा. उस ने सामने दिख रहे ‘रिमूव’ के औप्शन से उस तसवीर को अपने प्रोफाइल से हटा लिया और सोचने लगा कि तसवीर पूरी तरह से हट चुकी है.

थोड़ी देर बाद अदिति का फिर मैसेज आया, ‘फोटो अभी तक हटा क्यों नहीं?’

रवि तो समझ रहा था कि वह हट चुका है, इसलिए रिप्लाई किया, ‘हटा तो दिया है.’

अदिति का इस बार थोड़ा तीखा रिप्लाई आया, ‘अपने मोबाइल अपलोड में देख.’

रवि ‘मोबाइल अपलोड’ नाम की बला को उस समय जानता ही नहीं था. उस ने फिर रिप्लाई किया, ‘कहां?’

‘मोबाइल अपलोड में देख,’ अदिति का रिप्लाई अब सख्त लग रहा था.

‘ओके,’ रवि ने नपातुला जवाब दिया.

उसे हलका सा धक्का लगा था. उसे अदिति के ‘अपने अपलोड में देख’ जैसे शब्दों से ठेस पहुंची थी, क्योंकि अब तक उन दोनों की बातचीत में हर जगह ‘आप देखिए’ जैसे शब्द ही शामिल थे.

रवि ने जैसेतैसे ‘मोबाइल अपलोड’ ढूंढ़ा. अब वह उस तसवीर पर गया, लेकिन वहां भी उसे डिलीट का औप्शन नहीं दिख रहा था.

तब तक अदिति का एक और तीखा रिप्लाई आ चुका था, ‘फोटो अभी तक नहीं हटा.’

फिर एक बार अदिति ने मैसेज किया, ‘मिस्टर, क्या चल रहा है यह सब?’

रवि ने रिप्लाई किया, ‘कुछ टैक्निकल प्रौब्लम आ रही है. साइबर कैफे जा कर जल्दी ही उस मनहूस फोटो को हटाता हूं.’

रवि अब थोड़ा झुंझला सा गया था. उसे अदिति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था.

‘मनहूस…’ इस के आगे कुछ अपशब्द थे अदिति के रिप्लाई में.

अब रवि ने सब से पहले साइबर कैफे में एक व्यक्ति से पूछ कर उस फोटो को डिलीट किया. फिर अदिति को मैसेज किया, ‘आप का वह फोटो डिलीट हो चुका है. एक बात कहूंगा कि वह मेरी गलती थी, पर आप को यों ‘तू तड़ाक’ से तो पेश नहीं आना चाहिए.’

अब बात गरमा गई थी. धीरेधीरे रिप्लाई में भयंकर झगड़ा हो गया और फिर रवि जिस एकमात्र लड़की को अपनी क्लास में पसंद करता था, उस की फेसबुक फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

आखिर में रवि ने थोड़ा सोचा और एक लंबा सौरी मैसेज भेज दिया लेकिन तब तक वह अदिति की फ्रैंड लिस्ट से बाहर हो चुका था.

छुट्टियों के बाद जब कालेज खुला, तो कालेज में बातें चल रही थीं कि रवि ने अदिति को प्रपोज किया था. रवि ने चुपचाप सब सुन लिया लेकिन इस बारे में कोई रिप्लाई नहीं किया.

वह जैसे अपनी ही नजरों में गिरता जा रहा था. अदिति ने ही शायद कालेज में यह बात फैलाई थी. फेसबुक से हुई एक गलती ने उसे संजीदा छात्रों की फेहरिस्त से बाहर कर दिया था और हर ओर कुछ महीने तक उस की हंसी उड़ाई गई थी.

एक दिन क्लास में उस के पीछे की सीट पर बैठ कर अदिति ने उस के दोस्तों के साथ मिल कर अप्रत्यक्ष रूप से रवि पर कई कटाक्ष कर दिए थे. वह उस की हंसी उड़ा रही थी, पर रवि कुछ नहीं बोला. वह अब तक खुद की ही गलती मान रहा था, लेकिन उस दिन से उस

ने अदिति से नफरत करना शुरू कर दिया था. अब अदिति को भी उस ने अपनी फ्रैंडलिस्ट से हटा दिया था और एकएक कर अदिति के दोस्त भी ब्लौक होते चले गए.

फिर न उस की अदिति से सामने कभी बात हुई और न ही फेसबुक पर, आज इतने साल बाद फिर वह उस के सामने थी और अब उस की बौस थी.

दोनों लगभग 10 मिनट तक स्तब्ध हो कर एकदूसरे को देख रहे थे. अदिति ने अपना चश्मा ठीक करते हुए कहा, ‘‘सिट डाउन, प्लीज.’’

रवि चुपचाप बैठ गया. 5 मिनट तक कैबिन में खामोशी छाई रही. अदिति अभी फिर से अपनी फाइल में उलझ गई थी या शायद नाटक कर रही थी.

फिर नजरें उठा कर बोली, ‘‘रवि, मुझे कल तक इस औफिस की सभी जरूरी फाइलें दे दो.’’

‘‘जी मैम,’’ रवि ने धीमे से कहा. उस की नजरें झुकी हुई थीं.

‘‘ओके, आप जा सकते हैं,’’ अदिति ने कहा, इस बार उस की नजरें भी झुकी हुई थीं.

रवि कैबिन से बाहर आ गया था लेकिन अपने अतीत से नहीं.

उस रात उसे नींद नहीं आ रही थी. गुजरे हुए कल में जो हुआ था उसे तो वह नजरअंदाज कर चुका था, लेकिन अब उस से उस की वर्तमान जिंदगी प्रभावित होती दिख रही थी.

रवि को फिक्र सता रही थी कि उस की छुट्टियां अदिति अस्वीकृत न कर दे. वह लंबे समय से छुट्टियों का इंतजार कर रहा था और अब अदिति के रहते उसे छुट्टी मिलना मुश्किल लगने लगा था. उसे लग रहा था कि अदिति उस से पुरानी दुश्मनी जरूर निकालेगी.

अगले दिन वह परेशान सा औफिस पहुंचा. चपरासी ने पिछले दिन की तरह ही उसे आज फिर बताया कि बौस यानी अदिति ने उसे कैबिन में बुलाया है.

रवि वे जरूरी फाइलें ले कर कैबिन में पहुंचा, जो उसे पिछले दिन अदिति ने छांटने को कही थीं.

‘‘मे आई कम इन मैम,’’ रवि ने औपचारिकता निभाई.

‘‘यसयस,’’ अदिति ने उस की तरफ आज पहली बार मुसकरा कर देखा था. ‘‘वे फाइल्स?’’

‘‘जी मैम, ये रहीं,’’ रवि ने फाइलों का एक ढेर अदिति की टेबल पर रख दिया.

‘‘आप को एक महीने की छुट्टी चाहिए?’’ अदिति तीखी मुसकराहट के साथ कह रही थी.

‘‘जी मैम,’’ रवि सिर नीचे किए हुए था.

‘‘इस वक्त औफिस में राकेशजी नहीं हैं, तो आप को इतनी लंबी छुट्टी

मिलना तो मुश्किल है,’’ अदिति रवि की तरफ अब गंभीरता से देखते हुए कह रही थी.

‘‘ओके, मैम. आप जैसा कहें,’’ रवि ने हलका सा सिर उठा कर कहा.

‘‘रविजी, आप हमारी कंपनी के बैस्ट एंप्लोई हैं,’’ अदिति इतना कहते हुए रुकी और फिर एक कागज हाथ में उठा कर बोली, ‘‘और आप की छुट्टी मैं भी आप से नहीं छीन सकती.’’

अदिति मुसकरा रही थी. अब रवि ने वह कागज अदिति मैम के हाथ से ले लिया और उसे पढ़ कर अब वह भी मुसकरा उठा, ‘‘थैंक्यू मैम,’’ रवि ने खुश होते हुए कहा. रवि की आंखों में कृतज्ञता झलक रही थी.

‘‘इट्स ओके रवि,’’ अदिति अब गंभीर मुद्रा में कह रही थी

कैबिन में कुछ लमहों तक खामोशी छा गई थी. अदिति ने उस खामोशी को तोड़ा, ‘‘रवि, ये ‘इट्स ओके’ तुम्हारे उस 10 साल पहले के सौरी के लिए है, जो तुम ने फेसबुक पर मैसेज किया था.’’

रवि चुपचाप खड़ा हो गया था. फिर कुछ देर बाद बोला, ‘‘दरअसल, वह मेरी नासमझी थी. मैं ने फेसबुक माध्यम को समझने में ही गलती कर दी थी. मुझे नहीं मालूम था कि किसी की तसवीर बिना पूछे अपलोड कर देना गलत है.’’

‘‘आई एम आलसो सौरी,’’ अदिति कह रही थी.

‘‘किसलिए मैम,’’ रवि जैसे अब सारी नफरत भुला चुका था.

‘‘गलती मेरी भी थी. मैं जरूरत से ज्यादा ही तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार कर रही थी. मुझे वह प्रपोज वाली बात भी नहीं उड़ानी चाहिए थी,’’ अदिति की आंखों में भी जैसे कुछ पिघल रहा था, ‘‘मैं ने तुम्हें गलत समझा था.’’

‘‘इट्स ओके मैम,’’ रवि इतना कह कर चुप हो गया था.

अदिति ने फिर चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं चाहती तो तुम से बदला लेती. तुम्हारी छुट्टियां कैंसिल कर देती. एक बार मैं ने सोचा भी, पर…’’

कुछ देर चुप रहने के बाद अदिति जैसे कोई सटीक बात ढूंढ़ कर बोली, ‘‘कल को हो सकता है तुम मेरी जगह हो और मैं तुम्हारी जगह. इस तरह नफरत से जिंदगी नहीं जी जाती.’’

कुछ देर तक फिर खामोशी छाई रही और अदिति ने फिर कहा, ‘‘उम्मीद है, तुम ने मुझे माफ कर दिया होगा.’’

‘‘औफकोर्स मैम,’’ रवि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘तो कल से तुम छुट्टी पर हो,’’ अदिति ने मुसकराते हुए रवि से पूछा.

‘‘जी मैम,’’ रवि ने भी हंस कर जवाब दिया.

‘‘ओके, ऐंजौय यौर्स हौलीडेज. तुम जा सकते हो,’’ अदिति इतना कह कर आंख बंद कर अपनी कुरसी पर पीठ टेक कर बैठ गई जैसे कोई भारी बोझ कंधे से उतार दिया हो.

रवि जब बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोल रहा था, तब मुसकराते हुए अदिति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘रवि, हैप्पी दीवाली.’’

रवि भी मुसकरा दिया और बोला, ‘‘आप को भी, अदिति मैम.’’

इतना कहते हुए रवि मुसकराता हुआ बाहर आ गया. उन दोनों के बीच खड़ी कई साल पुरानी दीवारें अचानक ढह गई थीं. जिंदगी खुशियां बांट कर, उन का कारण बन कर चलती है, नफरतें पाल कर नहीं.

दीवाली के इस अवसर पर क्षमादान के दीपकों की जलती हुई लौ में रवि और अदिति के दिलों में नफरतों से भरे कुछ अंधेरे कोने रोशन हो चुके थे.

Romantic Story : पहाड़ी लड़की का इश्किया अंदाज

Romantic Story : ‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’ ‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को सम झो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’ ‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’ ‘‘मैं ने कब कहा कि हमेशा अच्छी बातें करो, पर हां मन ही मन यह मनोकामना जरूर की,’’ मां ने ढेर सारा प्यार उडे़लते हुए कहा. वह अब मां को खूब भावुक करता रहा और तब तक जब तक कि मां की किटी पार्टी का समय नहीं हो गया.

जब मां ने खुद ही गुडबाय कहा, तब जा कर उस ने चैन पाया. बस कुछ घंटों में वह भवाली पहुंचने वाला था. अभी बस रामपुर पहुंची थी, किला दूर से दिखाई दे रहा था. कितनी चहलपहल और रौनक थी रामपुर में. उस ने बाहर झांक कर देखा. बहुत ही मजेदार नजारे थे. एक किशोरी नीबू पानी बेच रही थी. उस ने भी खरीदा और गटागट पी गया. बस फिर चल पड़ी थी. इस बार वह अपनी मरजी से बस में ही आया था. मां ने 50,000 रुपए उस के खाते में डाले थे कि टैक्सी कर लेना. पर वह टैक्सी से नहीं गया. दरअसल, वह सफर के पलपल का भरपूर मजा लेना चाहता था. नीबू पानी पी कर उस को मीठी सी झपकी आ गई और कहा कि रामपुर के बाद पंतनगर, टांडा का घनघोर जंगल, रुद्रपुर, बिलासपुर, काठगोदाम कब पार किया, उस को खबर ही नहीं लगी. ‘भवालीभवाली’ का शोर सुन कर उस की आंख खुली. वह पहली बार किसी पहाड़ी सफर पर गया था. जब उस ने सफेद बर्फ से संवरे ऊंचेऊंचे पहाड़ देखे, तो अपलक निहारता ही रह गया.

वह मन भर कर इस खूबसूरती को पी लेना चाहता था. उधर एक लड़की रेडीमेड नाश्ता बेच रही थी. उस पहाड़ी नजर ने उस के इश्किया अंदाज को भांप लिया और उस चाय बेचने वाले नौजवान से उस को संदेश भिजवाया और वह नौजवान मस्ती में जा कर फुसफुसाया उस के कानों में. ‘‘पलकें भी नहीं झपका रहे हो, ये कैसे देख रहे हो मु झे.’’ ‘‘हां, क्या…?’’ वह चौंक ही पड़ा, पर उस से पहले नौजवान ने उस के ठंड से कंपकंपाते हुए हाथों में गरमागरम चाय थमा दी. उस ने चाय सुड़कते हुए उस नौजवान की आवाज को फिर याद किया और अभीअभी कहे गए शब्द दोहराए, तो पहाड़ी लड़की के सुर को उस के दिल ने भी सुन और सम झ लिया. पहले तो उस को कुछ संकोच सा हुआ और मन ही मन उस ने सोचा कि अभी इस जमीन पर पैर रखे हुए 10 मिनट ही हुए हैं, इतनी जल्दी भी ठीक नहीं. मगर अगले ही सैकंड उस को याद आया कि बस 10 दिन हैं उस के पास, अब अगर वह हर बात और हर मौका टालता ही जाएगा, तो कुछ तजरबा होगा कैसै? इसलिए वह एक संतुलन बनाता हुआ नजरें हटाए बगैर ही बुदबुदाया.

बचपन में मैं ने अनुभव से एक बात सीखी थी कि फोटो लेते समय शरीर के किसी अंग को हरकत नहीं करनी है, सांस भी रोक कर रखना है. ‘‘अब मेरी जो आंखें हैं, वे अपनी सांस रोक कर मेरे दिल में बना रही हैं तुम्हारा स्कैच,’’ उस की यह बात वहां उसी नौजवान ने जस की तस पहुंचा दी. उस के आसपास वाले एक स्थानीय लड़के ने भी यह सब सुना और उस को मंदमंद मुसकराता देख कर पहाड़ी लड़की शर्म से लाल हो गई. इस रूहानी इश्क को महसूस कर वहां की बर्फ भी जरा सी पिघल गई और पास बह रही पहाड़ी नदी के पानी में मिल गई. पर, 10 मिनट बाद ही उन दोनों की गपशप शुरू हो गई, वह लड़की टूरिस्ट गाइड थी. 4 घंटे के 300 रुपए वह मेहनताना लेती थी. ‘वाह, क्या सचमुच,’ उस ने मन ही मन सोचा. मगर आगे सचमुच बहुत सुविधा हो गई. उसी लड़की ने वाजिब दामों पर एक गैस्ट हाउस दिलवा दिया और अगले दिन नैनीताल पूरा घुमा लाई. नैनीताल में एक साधारण भोजनालय में खाना और चायनाश्ता दोनों ने साथसाथ ही किया. 30 रुपए बस का किराया और दिनभर खानाचाय चना जोर गरम सब मिला कर 500 रुपए भी पूरे खर्च नहीं हुए थे.

कमाल हो गया. यह लड़की तो उस के लिए चमत्कार थी. दिनभर में वह सम झ गया था कि लड़की बहुत सम झदार भी थी. वे लोग शाम को वापस भवाली लौट आए थे. कितनी ऊर्जा थी उस में कमाल. वह मन ही मन उस के लिए कहता रहा. एकाध बार उस के चेहरे पर कुछ अजीब सी उदासी देख कर वह बोली थी, ‘‘यह लो अनारदाना… मुंह में रखो और सेहत बनाओ.’’ उस ने अनारदाना चखा. सचमुच बहुत ही जायकेदार था, वह कहने लगी, ‘‘सुनो, जो निराश हो गई है, वह अगर तुम्हारा मन है, तो किसी भी उपाय से कोई फर्क नहीं पड़ेगा पहाड़समंदर घूमने से, संगीतकलासाहित्य से भी बस थोड़ा फर्क पड़ेगा, और वह भी कुछ देर के लिए निराशा की बेचैनी तो बस उदासी तोड़ कर जीने से दूर होती है, अपने मूड के खिलाफ बगावत करने से दूर होती है, हर माहौल आंखों से आंखें मिला कर खड़े होने से दूर होती है. ‘‘शान से, असली इनसान की तरह जीने के मजे लूटने हैं, तो जागरूक हो जाओ. अपने भीतर जितना भी जीवन है, औरों को बांटते चलो, फिर देखो, कितना अनदेखा असर होता है.

और अपनी बात पूरी कर के उस ने 6 घंटे के पूरे पैसे उस को थमा दिए. वह लड़की उस से उम्र में कुछ बड़ी थी. आगे रानीखेत, अलमोड़ा वगैरह की बस यात्रा उस ने अच्छी तरह सम झा दी थी. उस ने कुछ भी ठीक से नहीं सुना. यही सोच कर कि वह लड़की भी साथ तो चलेगी ही. मगर वह हर जगह अकेला ही गया. उस के बाद वह 4 दिन उस को बिलकुल नजर नहीं आई. अब कुल 4 दिन और बचे थे, उस ने पिथौरागढ़ घूमने का कार्यक्रम बनाया और लड़की साथ हो ली. उस को उस लड़की में कुछ खास नजर आया. सब से कमाल की बात तो यह थी कि मां के दिए हुए रुपए काफी बच गए थे या यों कहें कि उस में से बहुत सी रकम वैसे की वैसी ही पड़ी थी. उस ने चीड़ और देवदार की सूखी लकड़ी से बनी कुछ कलाकृतियां खरीद लीं और वहां पर शाल की फैक्टरी से मां, उन की कुछ सहेलियां और अपने दोस्तों के लिए शाल, मफलर, टोपियां वगैरह पसंद कर खरीद लीं. 2 दिन बाद वे दोनों पिथौरागढ़ से वापस आ गए.

यात्रा बहुत रोमांचक रही और सुकूनदायक भी. वह उस से कुछ कहना चाहता था, पर वह हमेशा ही उल झी हुई मिलती थी. मन की बात कहने का मौका अपने बेकरार दिल के सामने बेकार कर देने का समय नहीं था. अब एक दिन और बचा था. उस ने आसपास के इलाके ज्योलीकोट और 2 गांव घूमने का निश्चय किया. वह यह सब नक्शे पर देख ही रहा था कि वह लड़की उस के पास भागीभागी चली आई. हांफते हुए वह बोली, ‘‘जरा सी ऐक्टिंग कर दो न.’’ ‘‘क्या… पर, क्यों…?’’ वह चौंक पड़ा. ‘‘अरे, सुनो. तुम कह रहे थे न, तुम बहुत अच्छी आवाज भी निकाल लेते हो.’’ ‘‘यह क्या कह रही हो? मैं ऐक्टिंग और अभी… यह सब क्या है?’’ ‘‘ओह, तुम्हारी इसी अदा पर तो मैं फिदा हूं. तुम बस मस्तमगन रहते हो और फालतू कुछ सोचने में समय खराब नहीं करते. चलोचलो, शुरू हो जाओ न. ‘‘हांहां ठीक है, अभी करता हूं.’’ ‘‘सुनो, अभी यहां एक लफंगा आएगा.

उस को कह दो न कि तुम फिल्म डायरैक्टर हो और अब मैं तुम्हारी अगली हीरोइन.’’ ‘‘पर, मैं तो अभी बस 20 साल का हूं?’’ कह कर वह टालने लगा. ‘‘हांहां, उस से कुछ नहीं होता, बस इतना कर दो. यह पुराना आशिक है मेरा, मगर तंग कर रहा है. इसे जरा बता दो कि तुम मु झे कितना चाहते हो. ‘‘फिर, मु झे तसल्ली से सगाई करनी है. वह देखो, वह बस चालक, वह उधर देखो, वही जो हम को पिथौरागढ़ अपनी बस में ले कर गया और वापस भी लाया.’’ वह बोलती जा रही थी और उस का दिमाग चकरघिन्नी बना जा रहा था. वह अचानक गहरे सदमे में आ गया. पर उस की बात मान ली और उम्दा ऐक्टिंग की. लड़की ने दूर से सारा तमाशा देखा और उंगली का इशारा भी करती रही. वह उसी समय बैग ले कर दिल्ली की तरफ जाती हुई एक बस में चढ़ा और पलट कर भी नहीं देखा. उस को लगा कि उस के दिल में गहरे घाव हो गए हैं और उस ने खुद बहुत सारा नमक अपने किसी घाव में लगा दिया है.

Emotional Story : मेरा पत‍ि और मेरी दोस्‍त

Emotional story : नेहा घबराई हुई थी, सागर की रिपोर्ट्स जो आनी थीं आज. नेहा ने सोते हुए सागर के चेहरे पर नजर डाली, क्या हुआ है सागर को, कितना कमजोर होता चला जा रहा है. फिर वह मुंबई के मुलुंड इलाके में तीसरे फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में आ खड़ी हुई. यहां से उसे सोसाइटी का मेनगेट दिखाई पड़ता है. उस ने दूर से ही देख लिया कि रिया अपनी स्कूटी से आ रही है. उस का मन और बु झ गया.

यह रिया भी उसे चैन से नहीं जीने दे रही है. सागर के बचपन की इस दोस्त पर उसे बहुत गुस्सा आता है. कभी कुछ कह नहीं पाती. सोचती है, कह दिया तो सागर की नजरों में गिर जाएगी. पर कभी वह सागर और रिया की दोस्ती पर शक करती, कभी जासूसी करती, कभी उन के हावभाव देखती.

सागर को नेहा के मातापिता ने पसंद किया था. सागर का स्वभाव, व्यवहार देख कर नेहा को अपने पर गर्व ही हुआ था. वह सागर के साथ अपने वैवाहिक जीवन में पूरी तरह सुखी और संतुष्ट थी.

अब नेहा के मातापिता नहीं रहे थे. बहनभाई कोई था नहीं. सागर के भी मातापिता का सालों पहले देहांत हो चुका था. एक बड़ा भाई था, जो अपने परिवार के साथ अमेरिका में ही बस गया था. विवाह के बाद ही सागर का ट्रांसफर दिल्ली से मुंबई हो गया था. और एक दिन यहां उसे अचानक एक मौल में रिया मिल गई थी. सागर जबरदस्ती रिया को साथ घर ले कर आया था. फिर तो दोनों की बातें खत्म ही नहीं हुई थीं.

सागर ने उसे बताया था कि दिल्ली में एक ही गली में दोनों के घर थे. दोनों साथ ही पढ़े थे. पढ़ाई के बाद रिया जौब के लिए मुंबई आ गई थी. बीच में कभीकभार दोनों की फोन पर ही बात हुई थी. रिया अपने मातापिता की एकमात्र संतान थी. उस के मातापिता इस समय दिल्ली में ही रह रहे थे.

अब तो रिया कभी भी उन के घर आ धमकती थी. रिया वैसे नेहा को पसंद आई थी. स्मार्ट, सुंदर, मस्तमौला, खुशमिजाज लड़की थी. यहां एक एमएनसी में अच्छे पद पर कार्यरत थी. वह 2 लड़कियों के साथ फ्लैट शेयर कर रहती थी.

डोरबैल की आवाज से नेहा की तंद्रा भंग हुई. हाथ में खूब सारे पैकेट ले कर रिया अंदर आई. सब पैकेट टेबल पर रख कर सीधे सागर को देखने बैडरूम में गई. कुछ आहट पा कर सागर ने आंखें खोलीं.

‘‘कैसे हो?’’ रिया ने पूछा.

‘‘ठीक हूं.’’ सागर मुसकरा दिया.

‘‘कुछ नाश्ता लेती हुई आई हूं, सब खाते हैं,’’ रिया बोली.

नेहा ने कहा, ‘‘तुम खा लो, मेरा मन नहीं है.’’

रिया ने नेहा को स्नेहपूर्वक, अधिकार के साथ आंखें दिखाईं, ‘‘चुपचाप खा लो. अभी तुम्हारा राजकुमार भी स्कूल से आने वाला होगा. फिर उस की सेवा में लग जाओगी. चलो, अब शांति से बैठ कर कुछ खा लो.’’

नेहा अब मना नहीं कर पाई. वह सागर के लिए फल काट कर लाई और अपने दोनों के लिए चाय. सागर ने 2 टुकडे़ ही खाए थे कि फिर उस के पेट में तेज दर्द उठा. वह पसीनेपसीने हो गया. नेहा फिर घबरा गई.

रिया ने कहा, ‘‘रहने दो, सागर. तुम

कुछ मत खाओ. अब रिपोर्ट्स

आ ही जाएंगी, पता चलेगा क्या परेशानी है. लो, थोड़ा पानी पियो.’’ रिया ने सागर के मुंह में 2 चम्मच पानी डाला. नेहा के हाथपांव फूल रहे थे. रिया ने कहा, ‘‘अब तुम लोगों का डाक्टर के पास जाने का टाइम हो रहा है. मैं यहीं रुकती हूं. यश स्कूल से आएगा तो मैं उसे देख लूंगी.’’

नेहा ने उस की तरफ कृतज्ञताभरी नजरों से देखा तो रिया हंस पड़ी.

‘‘ज्यादा मत सोचो, तैयार हो जाओ. कभी मेरी तबीयत खराब होगी न, तो इतनी सेवा करवाऊंगी कि याद रखोगे.’’

दर्द में भी हंसी आ गई सागर को, बोला, ‘‘तुम हमेशा बकवास ही करना.’’ रिया ने उसे घूरा तो नेहा दोनों को देखती रह गई. अकसर दोनों की खुली दोस्ती को सम झने की नेहा कोशिश ही करती रह जाती थी.

यश स्कूल से आ गया तो नेहा उस के साथ व्यस्त हो गई. रिया आराम से सागर के पास बैठ कर बातें कर रही थी. अब तक यश भी रिया से काफी घुलमिल चुका था. यश को रिया के पास छोड़ सागर और नेहा अस्पताल चले गए.

नेहा रिपोर्ट्स ले कर डाक्टर के रूम के बाहर अपने नंबर की प्रतीक्षा कर रही थी. सागर निढाल बैठा हुआ था. नेहा चिंतामग्न थी. उस के विवाह को 8 साल ही तो हुए थे. सागर के पेट में काफी समय से बहुत तेज दर्द की शिकायत थी. वह कोई पेनकिलर खा लेता था, दर्द ठीक हो जाता था. पर इस बार नेहा की जिद पर वह अपना चैकअप करवाने आया था. बहुत सारे टैस्ट हुए थे.

अपना नंबर आने पर नेहा डाक्टर सतीश के हाथ में रिपोर्ट देते हुए मन ही मन बहुत घबरा रही थी. उस की हथेलियां पसीने से भीग उठी थीं. वह सागर की गिरती सेहत को ले कर बहुत फिक्रमंद थी. डाक्टर की गंभीरता देख कर तो सागर भी असहज हो उठा.

‘‘सब ठीक तो है न, डाक्टर साहब?’’

‘‘नहीं, मिस्टर सागर, कुछ ठीक नहीं है. आप को आंतों का कैंसर है.’’

‘‘नहीं, डाक्टर,’’ नेहा लगभग चीख ही पड़ी, ‘‘यह कैसे हो सकता है.’’ सागर तो जैसे पत्थर का हो गया था.

‘‘ज्यादा चिंता मत करें. आप ऐडमिट हो जाइए, इलाज शुरू करते हैं, कीमोथेरैपी होगी. आजकल हर बीमारी का इलाज है. आप लोग देर न करें. इलाज शुरू करते हैं.’’ लगातार बरसती आंखों से सागर को ऐडमिट करवा कर नेहा फिर डाक्टर के पास गई, पूछने लगी, ‘‘डाक्टर, सागर ठीक तो हो जाएंगे न?’’

‘‘कोशिश तो पूरी की जाएगी लेकिन रिपोर्ट्स के हिसाब से इन के पास मुश्किल से 6 महीने ही हैं. कैंसर पूरी तरह से फैल चुका है. आप लोगों ने आने में बहुत देर कर दी है.’’

अपनेआप को संभालती, रोतीसिसकती नेहा ने रिया को सब बताया तो उसे भी तेज  झटका लगा. फिर तुरंत अपनेआप पर काबू रखते हुए कहा, ‘‘तुम वहीं रहो, मैं रात को भी यहीं घर पर रहूंगी. कल यश को स्कूल भेज अस्पताल आ जाऊंगी. फिर तुम फ्रैश होने घर आ जाना. किसी भी बात की चिंता मत करना. मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगी.’’ नेहा को सम झा कर, तसल्ली दे कर, फोन रख कर रिया भी फूटफूट कर रो पड़ी. यह क्या हो गया, उस का दोस्त इतनी बड़ी बीमारी की चपेट में आ गया. अब क्या होगा. नेहा अकेले कैसे सब करेगी. इन दोनों का तो कोई है भी नहीं यहां. अब उसे ही इन का सहारा बनना है.

अगले दिन यश को स्कूल भेज, सब का खाना बना कर, मेड से घर की साफसफाई करवा कर रिया अस्पताल पहुंच गई. वह सामान्य ढंग से सागर और नेहा से बातें करती रही. सागर तो अब मानसिक रूप से भी निढाल हो चुका था. उस ने नेहा को जबरदस्ती घर भेज दिया. उस के वापस आने तक रिया सागर से हमेशा की तरह हलकीफुलकी बातें करती रही. एकदो बार सागर को हंसा भी दिया. फिर सागर भी थोड़ा सहज हो कर बातें करता रहा.

नेहा वापस आई तो तीनों अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते रहे. अब यही नियम बन गया. रात को रिया ही यश के पास रहती. वह अपना काफी सामान नेहा के घर ही उठा लाई थी. यश को स्कूल भेज वह भी अस्पताल चली आती. फिर यश के आने के समय नेहा घर आ जाती. उस के साथ कुछ समय बिता कर रात को फिर सागर के पास चली जाती.

एक हफ्ता सागर अस्पताल में ऐडमिट रहा. कीमो का पहला सैशन सागर के लिए काफी कष्टप्रद रहा. सागर की पीड़ा देख कर नेहा तड़प जाती. आंखें हर पल भीगी रहतीं. एक हफ्ते बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये घर जा सकते हैं. इलाज तो चलता रहेगा. इन्हें हर हफ्ते कीमोथेरैपी के लिए आना है.’’ बहुत सारे निर्देशों के साथ तीनों घर लौट आए.

रिया ने ही सागर के औफिस फोन कर सब जानकारी दे दी. सब को सुन कर धक्का लगा था. फिर सागर से मिलने जानपहचान का कोई न कोई आता रहता था. वैसे तो मुंबई में हर व्यक्ति व्यस्त ही रहता है पर जिन पड़ोसियों से आतेजाते जानपहचान हो गई थी, उन्हें रिया ने सागर की बीमारी का हलका सा संकेत दे दिया था. रिया को महसूस हुआ था कि सागर को कभी भी तबीयत खराब होने पर समयअसमय हौस्पिटल ले कर भागना पड़ सकता है. सो, कम से कम कोई पड़ोसी तो ऐसा हो जिस पर नेहा भरोसा कर सके.

कीमोथेरैपी के हर सैशन में रिया ही नेहा और सागर को अस्पताल ले कर जाती. नेहा को ड्राइविंग नहीं आती थी. रिया को जैसे हर चीज की जानकारी थी. कीमो के सैशन हो रहे थे पर सागर की हालत में कोईर् सुधार नहीं था. उस के दर्द से नेहा कांप जाती. कभी चुपचाप बैठी रिया की हर बात सोचती तो पलकें आंसुओं से भीग जातीं. यह कैसी दोस्त है जिस ने उन लोगों के लिए अपना हर सुख, हर आराम भुला दिया है. उसे अब सम झ आया था कि दोस्ती तो एक ऐसा सच्चा रिश्ता है जो किसी मांग पर आधारित नहीं है, एक आंतरिक अनुभूति है, स्वार्थ से परे है.

कई हफ्ते बीत रहे थे पर सागर की हालत में कोई सुधार नहीं था. अब तो नेहा को हर पल अनिष्ट की आशंका बनी रहती और फिर एक दिन वही हुआ जिस का डर था. सागर सोया तो उठा ही नहीं. नेहा चीत्कार कर उठी. उस की चीख सुन कर पड़ोसी भी आ गए. नेहा और यश को अपनी बांहों में भर कर रिया भी फूटफूट कर रो पड़ी.

उस के बाद नेहा को कुछ होश नहीं रहा. कैसे रिया ने सागर के बड़े भाई रवि को फोन किया. रवि कब पहुंचा. कब अंतिम संस्कार की तैयारियां हुईं. कैसे सब हुआ. नेहा को कुछ होश नहीं था. बारबार बेहोश होती. फिर होश आता, फिर रोती. उस का संसार लुट चुका था. उसे चुप करवाने वाली पड़ोसिनें भी रो देतीं. उस की हालत देखी नहीं जा रही थी. रिया ने ही सब संभाला.

अंतिम संस्कार के बाद यश के सिर पर हाथ रखते हुए रवि ने कहा, ‘‘नेहा, मेरे साथ चलोगी?’’

‘‘नहीं, भैया.’’

वहीं बैठी रिया ने कहा, ‘‘भैया, आप चिंता न करें. मैं यहीं हूं यश और नेहा के साथ.’’

‘‘पर तुम भी कब तक सब देखोगी?’’

‘‘हमेशा, भैया. इस में परेशानी क्या है?’’

‘‘फिर भी, रिया, कल तुम्हें अपने भी काम होंगे.’’

‘‘नहीं भैया, नेहा और यश से बढ़ कर मु झे कभी कोई काम नहीं होगा. मेरे दोस्त के अपने, मेरे अपने हैं अब.’’

‘‘रिया, यह भावनाओं में बहने वाली बात नहीं है. कल तुम्हारा विवाह होगा, परिवार होगा.’’

‘‘वह जब होगा, देखा जाएगा. फिलहाल तो मैं इस के बारे में सोच भी नहीं सकती, भैया. आप चिंता न करें. मैं हूं इन के साथ.’’

रवि इस प्रेम, मित्रता और इंसानियत की मूरत को देखता ही रह गया. उस की आंखें रिया के प्रति सम्मान से भर उठीं. एक हफ्ते बाद रवि चला गया.

नेहा बुरी तरह डिप्रैशन का शिकार हो गई थी. कभी रिया के गले लग कर तो कभी यश को सीने से लगा कर फूटफूट कर रोती रही. रिया ने अपनी छुट्टियां और बढ़ा ली थीं. उस ने नेहा और यश की पूरी देखभाल की. उस की कोशिशों से नेहा सामान्य होने लगी. नेहा सामान्य हुई तो रिया ने औफिस जाना शुरू किया. वह अपना सारा सामान नेहा के घर ही ले आई थी. सागर की सारी जमापूंजी, बीमे की रकम, सब जानकारी नेहा को दी. हर पल उसे यश के लिए जीने का हौसला बंधाती रहती.

4-5 महीने और बीत गए. नेहा को अब यश के भविष्य की सुध आई. उस ने रिया से कहा, ‘‘रिया, क्या मु झे नौकरी मिल सकती है कहीं?’’

‘‘क्यों नेहा, मैं हूं न, सब कर लूंगी.’’

‘‘कब तक? रिया, प्लीज मेरी नौकरी ढूंढ़ने में मदद करो.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, तुम कहती हो तो देखती हूं. तुम्हारा मन भी लगा रहेगा.’’

रिया ने हर तरफ कोशिश करते हुए घर से थोड़ी दूर ही स्थित एक अच्छे स्कूल में नेहा के लिए टीचिंग की जौब ढूंढ़ ली. मुसकराते हुए रिया बोली, ‘‘यह स्कूल घर के पास भी है, यश का ऐडमिशन भी यहीं करवा लेंगे, दोनों मांबेटा साथ आनाजाना, खुश?’’

नेहा ने रिया के दोनों हाथ पकड़ लिए, ‘‘रिया, कुदरत ने शायद तुम्हें मेरे लिए ही भेजा था. तुम्हारा एहसान मैं…’’ कहतेकहते नेहा का स्वर भर्रा गया.

‘‘चलो, तुम्हें मेरी कुछ तो कद्र है. एक नालायक से दोस्ती की थी वह तो छोड़ कर चला गया,’’ कह कर मुसकराने की कोशिश करतेकरते भी रिया का गला रुंध गया. दोनों एकदूसरे के गले लग कर रो पड़ीं.

आज नेहा के दिल में रिया के लिए प्यार ही प्यार था. सारे संदेह, शंका निर्मूल साबित हुए थे. अपने मन के सारे संदेहों पर वह दिल से शर्मिंदा थी. सागर तो हमेशा के लिए चला गया था पर वह ऐसी दोस्त दे गया था जो अब नेहा के मनप्राण का हिस्सा बन चुकी थी. जीवन में आए इस तूफान में, दुखभरे बादलों के बीच उस की दोस्त ही तो थी उस के साथ. दोस्ती की मिसाल तो अब सम झ आई थी. नेहा को महसूस हो चुका था कि दोस्ती स्त्रीपुरुष की मुहताज नहीं है. भीगी पलकों से नेहा अपने मृत पति की प्यारी दोस्त को देखती रह गई.

अब लग रहा था उसे कि उन की दोस्ती तो वर्षा की तरह थी. उन की दोस्ती के केंद्र में तो मात्र संवेदना, करुणा और प्रत्येक परिस्थिति में संबल बनने की प्रेरणा सांसें लेती थीं. मृत पति और सामने खड़ी उस की दोस्त के पावन रिश्ते की गहराई महसूस कर नेहा की आंखें भीगती चली गई थीं.

Online Hindi Story : मीनाक्षी के दिल का सफर

Online Hindi Story : ठकाठक ठक, ठकाठक ठक, ठकाठक ठक. रात के साढ़े 12 बजे थे. लखनऊ मेल टे्रन तेजी से लखनऊ की ओर जा रही थी. डब्बे के सभी यात्री सोए हुए पर मीनाक्षी की आंखों में नींद कहां? उस का दिमाग तो अतीत की पटरियों पर असीमित गति से दौड़ रहा था. उसे लगता था जैसे वर्षों पुरानी बेडि़यों के बंधन आज अचानक टूट गए हों.

50 वर्षीया मीनाक्षी दिल्ली में सरकारी सेवा में एक उच्च पद पर आसीन है. सैकड़ों बार कभी सरकारी कामकाज के सिलसिले में तो कभी अपने निजी कार्यवश टे्रन में सफर कर चुकी है. लेकिन आज की यात्रा उन सभी यात्राओं से कितनी भिन्न थी.

‘चाय, चाय, चाय गरम,’ आवाज सुन कर, मीनाक्षी का ध्यान टूटा तो देखा, टे्रन बरेली स्टेशन पर खड़ी है. बरेली? हां, बरेली ही तो है. 30 साल पुराने बरेली और आज के बरेली स्टेशन में लेशमात्र भी फर्क नहीं आया था. वही चायचाय की पुकार, वही लाल कमीज में भागतेदौड़ते कुली और वही यात्रियों की भगदड़.

‘एक कप चाय देना,’ जैसे स्वप्न में ही मीनाक्षी ने कहा. वही बेस्वाद कढ़ी हुई बासी चाय, वही कसैला सा स्वाद. हां, कुल्हड़ की जगह लिचपिचे से प्लास्टिक के गिलास ने जरूर ले ली थी.

कहीं कुछ भी तो नहीं बदला था. पर इन 30 वर्षों में मीनाक्षी में जरूर बहुत बदलाव आ गया था. मां के डर से बालों में बहुत सारा तेल लगा कर एक चोटी बनाने वाली मीनाक्षी के बाल आज सिल्वी के सधे हाथों से कटे उस के कंधों पर झूल रहे थे. 30 वर्ष पहले की दबीसहमी, इकहरे बदन की वह लड़की आज आत्मविश्वास से भरपूर एक गौरवशाली महिला थी. चाय का गिलास हाथ में पकड़ेपकड़े दिमाग फिर अतीत की ओर चल पड़ा था…

‘मम्मी, आज सुषमा का जन्मदिन है, उस ने अपने घर बुलाया है. मैं जाऊं?’

‘सुषमा? कौन सुषमा?’ मां का रोबदार स्वर कानों में गूंजा तो मीनाक्षी सहम सी गई थी.

‘मेरी क्लास में पढ़ती है, आज उस का जन्मदिन है,’ मुंह से अटकअटक कर शब्द निकले थे.

‘कौनकौन आ रहा है?’ मां ने पत्रिका से सिर उठाए बगैर ही पूछा था.

‘यह तो पता नहीं पर मम्मी, मैं जल्दी ही आ जाऊंगी,’ आशा बंधती देख मीनाक्षी ने जल्दीजल्दी कहा था.

‘उस के घर में और कौनकौन हैं?’

‘उस की मम्मी, और भाई. पापा तो ट्रांसफर हो कर इलाहाबाद चले गए हैं. ये लोग भी अगले शनिवार को जा रहे हैं.’

‘भाई बड़ा है या छोटा?’

‘भाई उस से 2 साल बड़ा है.’

‘तुम नहीं जाओगी किसी सुषमावुशमा के यहां,’ मां के स्वर में दृढ़ता थी.

‘पर क्यों, मम्मी? वे लोग अब इलाहाबाद चले जाएंगे. मैं उस से अब कभी मिल भी नहीं पाऊंगी,’ मीनाक्षी ने साहस जुटा कर कहा था.

‘बेकार बहस मत करो. जा कर पढ़ाई करो.’

‘पर मम्मी, सुषमा मेरा इंतजार कर रही होगी.’

‘कह दिया न एक बार, बड़ों का कहना मानना भी सीखो कभी.’

मां ने पत्रिका से सिर उठा कर जब उसे घूर कर देखा तो वह कितना सहम गई थी. चुपचाप अपने कमरे में अर्थशास्त्र की किताब खोल कर बैठ गई थी. खुली किताब पर कितनी ही देर तक टपटप आंसू गिरते रहे थे.

‘‘मेमसाब, चाय के पैसे दे दो. टे्रन चलने वाली है,’’ चाय वाले की आवाज सुन कर मीनाक्षी फिर वर्तमान में लौट आई थी. इटली से लाए हुए विशुद्ध चमड़े के बैग से 5 रुपए का सिक्का निकाल कर उस ने चाय वाले को दिया तो उस का ध्यान लाल नेल पौलिश से रंगे अपने नाखूनों पर चला गया. मां का वह कठोर अनुशासन क्या उसे ऐेसे गाढ़े रंग की नेल पौलिश लगाने की अनुमति देता? उस कठोर अनुशासन के माहौल में पुस्तकों की दुनिया से बाहर निकलने की मीनाक्षी की कभी हिम्मत ही नहीं हुई थी. मार्शल, रौबिंस और कींस की अर्थशास्त्र की परिभाषाओं के बाहर भी एक दुनिया है, उस का पता उसे तब चला जब उस का चयन इंडियन इकानौमिक सर्विस में हो गया. तब से आज तक, उस ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा था. मां का 5 साल पहले निधन हो गया था.

इतने सालों के बाद सुषमा जब उसे कुछ दिन पहले फेसबुक पर मिल गई तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. कितनी देर तक दोनों ने फोन पर बातें की थीं. सुषमा की शादी हो गई थी, 2 बेटियां भी थीं. मीनाक्षी ने तो न शादी की थी न ही करने का इरादा था. वह तो अपने काम की दुनिया में ही शायद खुश थी.

कल सुबह जब सुषमा का फोन आया तो मीनाक्षी को खयाल आया कि उस की बेटी की शादी का कार्ड भी तो आया था जो मेज की दराज में डाल कर वह भूल गई थी.

‘‘क्या? तू अभी तक दिल्ली में ही बैठी है? आज शाम को लेडीज संगीत है, कल शादी है. कब पहुंच रही है?’’

‘‘नहीं सुषमा, मैं नहीं आ पाऊंगी. दफ्तर में जरूरी मीटिंग है.’’

‘‘मीटिंग गई भाड़ में. मेरे घर में पहली शादी है और तू नहीं आएगी?’’ सुषमा ने क्रोध दिखाया तो मीनाक्षी ने उसे टालने को कह दिया, ‘‘अच्छा, देखती हूं.’’

‘‘देखनावेखना कुछ नहीं. बस, आ जा,’’ कह कर सुषमा ने फोन काट दिया.

मीनाक्षी फिर फाइलें देखने में लग गई. उसे पता था कि शादी और मीटिंग में किसे प्राथमिकता देनी है. वर्षों के कठोर अनुशासन ने उस की सोच को ऐसा ही बना दिया था. पर काम करने में दिल नहीं लगा तो चपरासी को हुक्म दिया, ‘ये सब फाइलें कार में रख दो. मैं घर जा रही हूं.’

पर पता नहीं क्यों, घर पहुंचतेपहुंचते जैसे दिल में एक कशमकश सी शुरू हो गई. क्या उसे लखनऊ जाना चाहिए? पर मीटिंग का क्या होगा? क्या जिंदगी सिर्फ दफ्तर की फाइलों और घर की चारदीवारी में ही सीमित है? रिश्तों का इस में कोई स्थान नहीं है?

उस के मन में यह अंतर्द्वंद्व चल ही रहा था कि नीचे के फ्लैट से कुछ शोर सा सुनाई दिया.

‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. मैं ने कह दिया न,’’ पड़ोसिन मिसेज गुप्ता अपनी 16 वर्षीय बेटी कनुप्रिया से कह रही थीं.

‘‘क्यों, क्यों न जाऊं? पूजा मेरा इंतजार कर रही होगी.’’

‘‘मुझे नापसंद है यह तेरी पूजावूजा.’’

‘‘नहीं पसंद तो मैं क्या करूं? मैं ने कब कहा कि आप उस से दोस्ती कर लीजिए,’’ कनुप्रिया ने पलट कर जवाब दिया था, ‘‘उस का आज बर्थडे है. मुझे तो वहां जाना ही है,’’ कनुप्रिया के जवाब में ढिठाई थी.

मीनाक्षी के मन में एक खलबली सी मच गई और चाहेअनचाहे वह कान लगा कर उन की बातें सुनने लगी.

‘‘मुझे नापसंद आवे है यह तेरा सहेलीपन. वो छोरी ठीक ना है. तू उस के घर ना जावेगी, बस, मैं ने कह दिया,’’ मिसेज गुप्ता ने गुस्से में कहा.

‘‘क्यों, क्या खराबी है उस में?’’ कनुप्रिया ने फिर सवाल दागा.

‘‘ऐ छोरी, जबान लड़ावे है? कान खोल के सुन ले. जो छोरी मुझे पसंद ना है, तू उस से दोस्ती ना रख सके है.’’

जैसेजैसे कनुप्रिया और उस की मां की तकरार बढ़ रही थी, मीनाक्षी के दिल में घबराहट का तूफान सा उठ रहा था.

50 वर्षीया प्रौढ़ा का दिल फिर 16 वर्षीया किशोरी की तरह धड़कने लगा था, साथ ही लगा कि पड़ोसियों की घरेलू बातें सुनना अच्छी बात नहीं है. वह उठ कर खिड़की बंद करने लगी तो कनुप्रिया की आवाज फिर कानों में पड़ी.?

‘‘लड़कों को तो छोड़ो, अब लड़कियों से दोस्ती करने के लिए भी मांबाप से परमीशन लेनी पड़ेगी क्या? भैया को तो आप कुछ कहती नहीं हैं.’’

मीनाक्षी के दिल में धुकधुक होने लगी. क्या कनुप्रिया अपनी सहेली के घर जाएगी या फिर वह भी अपने कमरे में जा कर अर्थशास्त्र की किताब के पन्नों को आंसुओं से भिगोएगी? कनुप्रिया को जाना ही चाहिए. कनुप्रिया जरूर जाएगी, उस का बागी दिल कह रहा था. पर नहीं, बेचारी कनु मां से बगावत कैसे करेगी? मां नाराज हो गई तो? पर मां भी तो अत्याचार कर रही है. सोचसोच कर मीनाक्षी के दिमाग में हथौड़े बजने लगे थे.

हीरो पुक के स्टार्ट होने की आवाज ने मीनाक्षी को जैसे सोते से जगा दिया. ऐक्सिलरेटर की घूंघूंघूं, ऊंऊंऊं …कनुप्रिया पूजा से मिलने चली गई थी. आज की पीढ़ी कितनी भिन्न है, कितनी दबंग है. क्या मीनाक्षी कभी अपनी किसी सहेली के घर जा पाई थी? अर्थशास्त्र की पुस्तकों के बाद दफ्तर की फाइलें ही उस की नियति बन गई थी. पेपर, नोट्स, नोटिंग्स, लक्ष्य, लक्ष्य और लक्ष्य, क्या इन सब के बाहर भी कोई दुनिया है? सोचतेसोचते कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला. नीचे कनुप्रिया वापस आ गई थी. साथ में, शायद पूजा भी थी.

दोनों की खिलखिलाहट भरी हंसी सुन कर मीनाक्षी के दिल में एक टीस सी उठी. कर्तव्य, काम और ड्यूटी के आगे भी एक दुनिया है जिस में जीतेजागते इंसान रहते हैं. अचानक यह एहसास बहुत तेज हो गया और फिर जैसे घने बादल छंट गए. उस का हाथ फोन की ओर बढ़ गया, ‘‘हैलो, सुपर ट्रैवल्स? एक टिकट लखनऊ का आज रात का, किसी भी क्लास में, फौरन भेज दीजिए. समय कम है, क्या आप का आदमी मुझे टिकट स्टेशन पर ही दे सकता है?’’ और मीनाक्षी ने अपनी अटैची पैक करनी शुरू कर दी.

‘‘हां, मेमसाब, कुली चाहिए?’’ लखनऊ स्टेशन पर कुली पूछ रहा था.

आखिरकार, मीनाक्षी लखनऊ पहुंच गई, दिल्ली से लखनऊ की यात्रा पूरी हुई या उस के जीवन की नई यात्रा शुरू हुई? यह सोचते हुए वह आगे बढ़ गई.

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