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इस खास मौके पर कपिल शर्मा ने शेयर की ये तस्वीरें

मशहूर कौमेडियन और अभिनेता कपिल शर्मा  जल्द ही अपने फैंस को खुशखबरी देने वाले हैं. जी हां कपिल शर्मा के घर बहुत जल्द ही एक नन्हा मेहमान आने वाला है. वो जल्द ही पापा भी बन जाएंगे.

आपको बता दें कि कपिल ने पिछले साल दिसंबर में अपनी गर्लफ्रेंड गिन्नी चतरथ के साथ शादी रचाई.हाल ही में कपिल की पत्नी गिन्नी चतरथ ने अपना बर्थडे सेलिब्रेट की. इसी खास मौके पर कपिल ने कुछ तस्वीरों को शेयर कर उन्हें बधाई दी हैं.

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गिन्नी को बर्थडे विश करते हुए कपिल ने लिखा, जन्मदिन की बहुत बधाई मेरी सबसे अच्छी दोस्त गिन्नी, जो अब एक बेबी की मां बनने जा रही हैं. ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद.” कपिल और गिन्नी एक दूसरे को कौलेज टाइम से ही जानते हैं. ‘हस बलिए’ में एक जोड़ी के रूप में उन्होंने एक साथ काम किया था.

हाल ही में कपिल और गिन्नी बेबीमून के लिए कनाडा रवाना हुए थे, जहां की तस्वीरों को उन्होंने अपने फैंस के साथ शेयर किया था. एक तस्वीर में कपिल अपनी पत्नी का हाथ थामे कनाडा की सड़कों पर टहलते नजर आए.

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तमसो मा…

दिल्ली कांग्रेस के नए अध्यक्ष और पूर्व कोषाध्यक्ष सुभाष चोपड़ा के सामने चुनौती आम आदमी पार्टी या भाजपा से निबटने के लिए रणनीति बनाने, संगठन को मजबूती देने या दिल्ली में कांग्रेस की खोई साख हासिल करने की कम, पार्टी दफ्तर राजीव भवन में रोशनी का इंतजाम करने की ज्यादा है.

दिल्ली कांग्रेस की कंगाली और बदहाली का आलम यह है कि उस के पास बिजली का 2 लाख रुपए का बिल भरने के लिए भी पैसा नहीं है. इस जले पर नमक छिड़कने के लिए बिजली कंपनी डिस्काम वाले हर कभी कनैक्शन काट देते हैं जिसे मुद्दत से आधी पगार पर काम कर रहा मौजूदा डेढ़ दर्जन कर्मचारियों का स्टाफ झुग्गीझोंपड़ी वालों की तरह जुगाड़तुगाड़ कर काम चला लेता है. हालांकि, सुभाष चोपड़ा चाहें तो खुद यह रकम अदा कर सकते हैं. बहरहाल, दिल्ली में कांग्रेस तभी रोशन होगी जब कांग्रेस 70 में से कम से कम 20 सीटें विधानसभा में ले आए.

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भरत मिलाप के माने

अपने बुद्धिमान और भूतपूर्व शक्तिशाली मित्रनुमा शत्रुओं से खुद उन के यहां मिलने जाने का वैदिककालीन रिवाज उत्तर प्रदेश के महंत मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने भी निभाया और दीवाली के बहाने सपा संस्थापक मुलायम सिंह से मिल कर अटकलों का बाजार गरमा दिया. मुलायम सिंह की हालत इन दिनों वैसी ही है जैसी डाक्टर बिरादरी में दंत चिकित्सकों की होती है कि कोई मरीज आ गया तो बल्लेबल्ले, वरना कालेज के जमाने की सहपाठिनों की मधुर स्मृतियों या मोबाइल पर वांछितअवांछित वीडियो देख वक्त काटते रहो.

लगाने वालों ने अंदाजा लगा लिया कि हो न हो, इस मुलाकात का संबंध जरूर अयोध्या और राम से ही है क्योंकि सर्दी के मौसम में यह मुद्दा गरम ही रहता है. रामदूत अतुलित बलधामा को साक्षात अपने भवन में आया देख गदगद मुलायम ने कहीं हिंदुत्व की भावुकता में आ कर  अपने कवचकुंडल के दान का वचन तो नहीं दे दिया, यह तो वही जानें, लेकिन यह बात ज्यादा अहम है कि अयोध्या के मद्देनजर हमेशा की तरह अभी भी भगवा खेमे को पिछड़ों की जरूरत ज्यादा है, दलितों की होती तो योगी, मायावती के महल में जाते.

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भूपेश का ड्रामा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा पर दुर्ग जिले में अपने हाथ पर सौंटा, जिस का वर्तमान नाम कोड़ा है, सार्वजनिक रूप से खाया ताकि राज्य में खुशहाली रहे और उन के अपने पाप या कष्ट कटें.

धर्म के नाम पर खुद को कष्ट देने का रिवाज नया नहीं है. लेकिन अगर इस से खुशहाली आती हो तो सभी मुख्यमंत्रियों को रोजरोज खुद को इस सौंटे से पिटवाना चाहिए. सभी मंत्रियों, अधिकारियों और कर्मचारियों को भी कार्यालयीन समय में सौंटे से पीटा जाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए जिस से खुशहाली आए. सौंटा खाते हुए वीडियो दिखा कर जनता को निरुत्तर किया जा सकता है.

अब कौन भूपेश बघेल को समझाए कि 15 वर्षों बाद कांग्रेस को जनता की सेवा करने का मौका मिला है तो उसे बेहूदे पाखंडों में वे जाया न करें, जिन के चलते भाजपा चलता हुई है.

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फिर बन गए…

आजादी के सालों बाद तक पंचायतों में सरपंच का चुनाव बड़े सौहार्दपूर्ण माहौल में हुआ करता था. गांव के 20-30 लोग पेड़ के नीचे बैठ कर किसी दबंग, रसूखदार के नाम पर हाथ ऊपर उठा देते थे और मिनटों में आसपास के गांवों में बिना किसी मीडिया या सोशल मीडिया के सहारे खबर पहुंच जाती थी कि इस बार फलां ठाकुर साहब या नंबरदार ने सरपंच बनने की अनुकंपा की है.

दूसरे क्षेत्रीय दलों की तरह जनता दल (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव भी इसी प्रचलित पद्धति से संपन्न हुआ. नीतीश कुमार फिर सर्वसम्मति से दिल्ली के मावलंकर हाल में साल 2022 तक के लिए इस अहम पद की जिम्मेदारी लेने को बिना किसी मानमनौव्वल के मान गए. बिहार में 2020 में विधानसभा चुनाव होने हैं और हालिया विधानसभा  उपचुनाव में उन की पार्टी जैसेतैसे 5 में से केवल एक ही सीट जीत पाई है. देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रवाद और सत्ता विरोधी आंधी को नीतीश कैसे रोक पाएंगे.

सर्दियों में इन 3 बीमारियों से ऐसे बचें

सर्दियों का मौसम आते ही हर कोई ठण्ड से बचने के लिये अपने गर्म कपड़े निकालने लगता है. वैसे तो सर्दियों का मौसम बहुत ही खुशनुमा होता है. कोहरे की सफेद चादर ओढ़े हुए सुबह होना, बागों में अलग अलग रंग के फूल खिलना लेकिन फिर भी हमें एक डर अंदर से सता रहा होता है कि कहीं हम बीमार न हो जाएं. क्योंकि सर्दियों के मौसम में खांसी, जुकाम की समस्या तो आम बात है लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां है जो सर्दी के मौसम में ही हमें अपनी जकड़ में ले लेती हैं. तो आइए सर्दी में सबसे आम बीमारियों को जानें.

हाइपोथर्मिया

हमारे शरीर का नार्मल तापमान 37  डिग्री होता है लेकिन अगर सर्दियों में  शरीर का ताप 34-35 डिग्री से नीचे चला जाए तो उसे हाइपोथर्मिया कहते हैं. यह ठंडे मौसम या ठंडे पानी में जाने से होता है व शरीर में पानी की कमी होने के कारण  भी होता है, इसमें हाथ-पैर ठंडे हो जाते हैं, सांस लेने में तकलीफ होती है. हार्ट बीट सामान्य से बढ़ जाती हैं व बीपी कम हो जाता है. अगर शरीर का तापमान कम हो जाए तो मृत्यु भी हो सकती है. हाइपोथर्मिया से बचने के लिये शरीर को गर्म कपड़ों से ढक के रखें मोजे, दस्ताने पहनना न भूले और ठंड में बाहर व्यायाम करते समय ध्यान रखें. इससे बचने के लिये शरीर का तापमान सामन्य रखना बहुत जरूरी होता है.

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बेल्स पाल्सी

इसे फेसियल पेरालिसिस कहते है. इस बीमारी में चेहरे की माशपेशियों में कमजोरी आ जाती है. इससे एक तरफ का चेहरा मुरझाया और टेढ़ा लगता है. इसकी वजह से पीड़ित एक ही तरफ से हंस पाता है व ग्रस्त चेहरे की तरफ की आंख भी बंद नहीं हो पाती. यह सर्दियों में बड़ा सामान्य है. कान के पास से सेवेंथ क्रेनियल नस गुजरती है, जो तेज ठंड होने पर सिकुड़ जाती है. जिसकी वजह से यह बीमारी होती है. खासकर ड्राइविंग करने वालों, रात में बिना सिर को ढके कहीं जाने वालों में इसका खतरा बढ़ जाता है, इसलिए मफलर का प्रयोग करें, गाड़ी के शीशे बंद रखें. यह अस्थायी समस्या है जिसे ठीक होने में छः महीने तक का समय लगता है यह वायरल इन्फेक्शन के बाद होने वाला रिएक्शन भी हो सकता है.

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सर्दियों में होते हैं सबसे ज्यादा हार्ट अटैक-

वैसे तो हार्ट अटैक किसी भी मौसम में हो सकता है लेकिन सर्दियों में होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. कई कारण हो सकते हैं जो सर्दियों में इस संभावना को और प्रबल करते हैं. जैसे बैरोमेट्रिक दबाव, नमी, हवा, और ठंड. ये ठंडा मौसम हमारे शरीर पर नकारात्मक असर डालता है जिससे नर्वस सिस्टम की गतिविधियां बढ़ जाती हैं, हमारा  रक्त गाढ़ा हो जाता है और रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं. इससे कई नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं, जिसके चलते हार्ट अटैक होने की संभावना ज्यादा होती है.

इन 3 पुराने चीजों से सजाएं अपने घर को

अगर आप अपने घर के पुराने सामान को बेकार समझती हैं या इन सामान को आप फेंकना चाहती हैं तो ऐसा बिल्कुल न करें, क्योंकि आज हम आपको बताएंगे कि आप पुराने सामान से कैसे अपने घर को नए तरीके से सजा सकती हैं.

प्लेट– बेकार पड़े प्लेट को फेकने से अच्छा है उसको खूबसूरत तरीके से घर में सजाया जाए. इससे घर सुंदर दिखेगा. आप इन प्लेटस को रंगिन कपड़ों या पेपर से कवर कर घऱ के दीवारों में सजा सकती हैं.

बैग–  पुराने बैग को फेंकने की बजाय उस में आर्टिफिशिल फूल लगा कर दीवार में सजा सकती हैं. आप चाहें तो  बेकार पड़े बैग लेकर इनकी मदद से वर्टिकल गार्डन भी तैयार कर सकती हैं. ये आपके घर को नया लुक देगा.

कांच की बोतलें– कांच की बोतल ज्यादातर घरों में होती ही हैं. लोग इसे कवाड़ में बेच देते हैं या उनको फेंक देते हैं. मगर इनको फेंकने से अच्छा है की इन में आप छोटे फूल लगा सकती हैं.

जानिए, मसूर की खेती कैसे करें

मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिस की खेती भारत के ज्यादातर राज्यों में की जाती है. मसूर फसल तैयार होने में भी 130 से ले कर 140 दिन लेती है. ऐसे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के वैज्ञानिकों ने मसूर की नई प्रजाति विकसित की है जो कम दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. धान के बाद खाली खेती में मसूर की बोआई अक्तूबर माह के मध्य के बाद किसानों को करनी चाहिए.

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो राज्य उपसमिति की बैठक में प्रथम किस्म छत्तीसगढ़ मसूर-1 को प्रदेश के लिए अनुमोदित किया गया है. यह किस्म 88-95 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है, जिस की औसत उपज 14 क्विंटल है.

इस किस्म के पुष्प हलके बैंगनी रंग के होते हैं. इस के 100 दानों का औसत वजन 3.5 ग्राम होता है. छत्तीसगढ़ मसूर-1 किस्म, छत्तीसगढ़ में प्रचलित किस्म जेएल-3 की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक उपज देती है.

मसूर की खेती के लिए जमीन को पहले से तैयार कर लें. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 2-3 जुताइयां देशी हल से कर के पाटा लगा कर एकसार कर लें.

मसूर की खेती के लिए बीजोपचार जरूरी होता है. इस के लिए 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर के बोना चाहिए.

मसूर में सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है लेकिन इस के बाद भी इस की पहली सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए. धान के खेतों में बोई गई मसूर की फसल में सिंचाई फली बनने के समय करनी चाहिए.

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वैज्ञानिकों की मानें तो अच्छी फसल की पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.8-7.5 के बीच होना चाहिए. अधिक क्षारीय व अम्लीय मिट्टी मसूर की खेती के लिए सही नहीं है.

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, पहली सिंचाई शाखा निकलते समय बोआई के 30-35 दिन और दूसरी सिंचाई फलियों में दाना भरते समय बोआई के 70-75 दिन बाद करनी चाहिए.

ध्यान रखें कि पानी ज्यादा न होने पाए. अगर मुमकिन हो तो टपक विधि यानी स्प्रिंकलर से सिंचाई करें या खेत में स्ट्रिप बना कर हलकी सिंचाई करना फायदेमंद रहता है. ज्यादा सिंचाई करने से मसूर की फसल में गलने की समस्या आती है.

छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से दुर्ग, कवर्धा, राजनांदगांव, बिलासपुर, कोरिया, धमतरी कांकेर समेत रायपुर जिलों में की जाती है, जिस से वर्तमान में इस की खेती तकरीबन 26.18 हजार हेक्टेयर में की जाती है, जिस का उत्पादन 8.72 हजार टन है और औसत पैदावार 333 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस की बोआई अक्तूबर से नवंबर माह के बीच सही होती है. 80 फीसदी फलियां पकने पर कटाई की जानी चाहिए.

मुनाफा कमाना है तो बोइए मसूर की नई किस्म. छत्तीसगढ़ राज्य के लिए यह किस्म काफी मुफीद पाई गई है.

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निर्णय : भाग 1

शुभ्रा नितिन के रोषपूर्ण व्यवहार और अक्खड़पन को समझ न पाती. कलह के खंजरों से वह शारीरिक व मानसिक दोनों रूप से लहूलुहान हो रही थी. लेकिन नितिन का रवैया, जो उस के लिए रहस्य बना हुआ था, आज प्याज की परतों की तरह खुलने लगा था.

आज सुबह औफिस जाने से पहले फिर नितिन ने उस पर हाथ उठाया. शुभ्रा समझ ही नहीं पाई कि उस का दोष क्या है. बेबात पर नितिन का हाथ उठना उस की समझ से परे हो जाता है. अपनी तरफ से शुभ्रा भरसक यह प्रयत्न करती है कि नितिन को किसी भी तरह का कोई मौका न दे, पर नितिन तो कोई न कोई कारण ढूंढ़ ही लेता है. लगता है कि उसे किसी दोष पर नहीं, बस, मारने के लिए ही मारा जाता है.

शुभ्रा सोचती थी कि पाश्चात्य देशों में तो लोग बड़ी सभ्यता से पेश आते होंगे. यहां आने से पहले उस ने न जाने क्याक्या सपने पाले थे. हिंदुस्तान में शादी के समय के नितिन में और आज के नितिन में कितना फर्क था. उसे पा शुभ्रा फूली न समाई थी. 2 हफ्ते ही तो साथ रहे थे. फिर नितिन उसे जल्दी ही ‘स्पौंसर’ करने को कह कर विदेश चला गया था.

महीनों बीत गए थे पर नितिन ने उसे ‘स्पौंसर’ नहीं किया था. कोईर् न कोई कारण लिख भेजता था और वह उस के हर बहाने को सत्य समझ रंगीन सपनों की चिलमन से भविष्य में झांकती रही. पति को तो भारतीय आदर्शानुसार तथाकथित परमेश्वर के रूप में ही स्वीकारा था न, तो फिर अन्यथा की गुंजाइश का प्रश्न ही नहीं उठता था, और फिर 2 ही हफ्तों का तो साथ था, जो पलक झपकते ही बीत गए थे. शादी की गहमागहमी, संबंधों का नयापन व 2 हफ्तों के रोमांचकारी मिलन ने कुछ समझनेबूझने का समय ही कहां दिया था. एक सपने की तरह समय गुजर गया और बाद में वह सिर्फ उसी की खुमारी में जी रही थी.

आखिर 2 साल के बाद नितिन ने शुभ्रा को ‘स्पौंसर’ किया था. अब यहां आने पर वैवाहिक संबंध एक पहेली बन कर रह गया है.

शुभ्रा एक आह से भर उठी और रसोई का कूड़ा समेट कर अपार्टमैंट बिल्ंिडग के ‘इंसिनरेटर’ की ओर चल पड़ी.

शुभ्रा इंसिनरेटर में कूड़ा डाल कर वापस आ रही थी कि नीचे के फ्लैट से तेज होती हुई आवाज ने उस का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. वह उस तरफ ज्यादा ध्यान न दे कर अपने फ्लैट का दरवाजा बंद करने ही जा रही थी कि बेहूदे ढंग से कहे गए अपने नाम को सुन कर वह चौंक पड़ी और बगल से निकल रही सीढि़यों की रेलिंग पर आ कर खड़ी हो गई.

शुभ्रा अचंभित थी कि उस का नाम क्यों लिया गया है. वह तो यहां ज्यादा किसी को जानती भी नहीं. अभी कुछ ही हफ्ते तो हुए हैं उसे हैमिल्टन, कनाडा में आए हुए.

नीचे के फ्लैट वाली तमिल लड़की रूपा कह रही थी, ‘‘मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं. मैं ने तो इमिग्रेशन वालों को कह दिया था कि वे तुम्हें एयरपोर्ट से बाहर ही न आने दें, तुम यहां पहुंच कैसे गए? शुभ्रा की बच्ची भी पता नहीं कैसे एयरपोर्ट से बाहर निकल आई. मैं ने तो उस का भी पक्का इंतजाम किया था. हम दोनों के मांबाप ने जबरदस्ती तुम से मेरी शादी कर दी थी. निकल जाओ यहां से.’’

शुभ्रा इस के आगे कुछ नहीं सुन सकी. उस का सिर चकराने लगा. रेलिंग हाथ से छूटने लगी. किसी तरह वह अपने को खींचती हुई अपार्टमैंट के अंदर लाई और सोफे पर बेजान सी गिर पड़ी. उस का मन अन्य दिनों की अपेक्षा कहीं अधिक भारी हो उठा. वह ऐसी मानसिक व शारीरिक थकान से गुजर रही थी, जिस का संबंध दिनभर के कामों की थकान से नहीं बल्कि संपूर्ण जीवन की दूभरता से था. यह ऐसी थकान नहीं थी जो एक रात अच्छी नींद के बाद पिंड छोड़ दे, यह जीवन की वह थकान थी जो शायद सार्थकता के अभाव में मृत्यु के साथ ही खत्म हो. उस का हृदय विचलित हो उठा था.

उस के दिमाग की नसें फूल कर फटने को तैयार थीं. लग रहा था जैसे कोई उस के सिर पर हथौड़े मार रहा है. शून्य दिमाग और आंखें पथरा सी रही थीं. सीने में एक हिचकी उभरी और फिर आंसू आंखों की कगारों का बांध तोड़ कर निकलने लगे.

अभी तक तो शुभ्रा की सोच पर हड़ताल का ताला पड़ा हुआ था. पर अब स्थिति के पारदर्शी होने पर रहरह कर फुरहरी दौड़ी जा रही थी. उफ, जाने अब क्या होगा.

नितिन तो एकदम बबूल के वृक्ष निकले. अपना पत्ता भी ऊंट के मुंह तक नहीं पहुंचने देते और दूसरे की चूनर भी अपने कांटों से उलझाए रखते हैं.

जाने कितनी बातें, जिन का रहस्य आज तक उस की समझ में नहीं आया था, प्याज की परतों की तरह खुलने लगीं. आज उसे अपने पति का व्यवहार समझ में आया. अब उसे पता चला कि नितिन क्यों उस से खिंचेखिंचे रहते हैं. क्यों खीझे रहते हैं. क्यों बेबुनियाद बातों को तूल दिए रहते हैं? अपने जिन दोषों को वह अपने अंतर के दर्पण में बारबार देखने का प्रयत्न कर रही थी, अब उसे समझ में आया कि वह उन्हें क्यों नहीं देख पा रही है. क्योंकि जिस का अस्तित्व नहीं होता है वह दिखाई भी नहीं देता है.

अभी तक कलह के कारणों में अपने दोषों की तार्किकता न पा कर भी वह अपने को दोषी ठहरा स्वयं को क्षतविक्षत कर रही थी. नितिन के अमानुषिक व्यवहार से और कलह के खंजरों से शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूप से वह लहूलुहान हो रही थी. जिन दोषों को नितिन ने उस पर थोप दिया था, उन्हें उस ने बारबार तार्किकता की कसौटी पर कसने पर किसी भी तरह तर्कसंगत न पाने के बावजूद भी अपने ऊपर थोप लिए थे, ओढ़ लिए थे. उन ओढ़ी हुई चादरों की परतों को वह एकएक कर के झंझोड़ने लगी.

सोच रही थी, नितिन के व्यवहार से तो ऐसा नहीं लगा था कि वह मातापिता के कहने पर जबरन शादी कर रहा है. जब बूआ ने नितिन के लिए सुझाया था  तब दोनों ही पक्ष कितने खुश थे. काश, उस के पिता ने उस समय नितिन के बारे में कोई जांचपड़ताल की होती. गिनेचुने हफ्तों के लिए ही तो नितिन आया था. चट मंगनी पट ब्याह. सात समंदर पार बैठे इन धूतर्ोें की जांचपड़ताल का समय ही कहां था और फिर किसी ने उस की आवश्यकता भी तो नहीं समझी थी.

नितिन के घर वाले और स्वयं नितिन ने भी तो उसे भलीभांति देख कर पसंद किया था. रही उस की पसंद, तो नितिन देखने में खूबसूरत, भलाचंगा, पढ़ालिखा, अच्छा कमाताधमाता था. और क्या चाहिए था उसे? इस परिस्थिति की तो उस ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी.

विचारों की शृंखला बढ़ती जा रही थी, शुभ्रा अतीत में खोई जा रही थी, ‘नितिन के किसी भी हावभाव से मुझे इस बात का आभास भी न हुआ था. अगर नितिन ने मातापिता के जोर देने पर शादी की भी तो इस में मेरा क्या दोष? मुझे किस जुर्म की सजा दी जा रही है? क्या मातापिता की इच्छा, रूपा से दूरी और मेरे कुंआरेपन के नएपन में नितिन इतना डूब गया था कि उस ने उस के अंजाम पर विचार ही नहीं किया. या नितिन एक बड़ा ऐक्टर है और उस की गतिविधियां एक सोचीसमझी हुई कुटिल साजिश का अंश हैं? पर क्यों? नितिन को ऐसा कर के आखिर क्या मिला?’

शुभ्रा अभी भी नितिन के सलोने मुखौटे का आवरण उठा, उस के अंदर की वीभत्सता झांकने का साहस नहीं जुटा पा रही थी. पर कुहरा छंट रहा था, धुंध की परतें बिखर रही थीं. सत्य की किरणें उन्हें छिन्नभिन्न कर रही थीं, न समझ में आने वाली ग्रंथियां खुल रही थीं.

अब उसे यह समझ में आया कि नितिन उसे एयरपोर्ट पर लेने क्यों नहीं आए थे. काफी देर वह वहां इंतजार ही करती रही थी. फिर एक भलेमानस, काउंटर पर काम करने वाले कर्मचारी, ने उस के पति के घर का फोन नंबर मिलाया था. कोई जवाब न मिलने पर उस ने सोचा कि शायद रास्ते में देर हो गई हो. टोरंटो एयरपोर्ट से हैमिल्टन शहर है भी तो शायद 50-60 किलोमीटर. वह चुपचाप कुरसी पर बैठ कर इंतजार करने लगी थी.

पर जब ज्यादा समय बीत गया तो शुभ्रा घबरा गई. उस ने उसी कर्मचारी से फिर फोन करने का निवेदन किया, पर दूसरी ओर कोई फोन ही नहीं उठा रहा था.

हार कर शुभ्रा ने अपनी मौसेरी बहन की बचपन की दोस्त निशि को, जो टोरंटो में ही रहती थी, फोन किया. उस ने स्थिति सुन शुभ्रा को ढाढ़स बंधाया और उसे लेने एयरपोर्ट पहुंच गई.

शुभ्रा काफी घबराईर् हुई थी, क्योंकि पहली बार विदेश आई थी. यहां तो किसी को जानतीपहचानती भी नहीं थी. पति पता नहीं क्यों नहीं पहुंचे.

निशि ने बहुत चाहा कि वह उसे पहले अपने घर ले जा कर, खिलापिला कर फिर हैमिल्टन पहुंचा आएगी. पर शुभ्रा अपने घर जाने के लिए उतावली थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस के पति को क्या हुआ. दुर्घटना की दुर्भावनाओं ने उस के मन के इर्दगिर्द जाल बिछाना शुरू कर दिया था. सो, वह जल्दी से जल्दी घर पहुंचना चाह रही थी. अगर नितिन घर पर नहीं भी हैं तो भी वहीं इंतजार करना चाह रही थी. उस की समस्या का समाधान तो वहीं हो सकता था.

निशि और उस का पति अखिलेश उसे हैमिल्टन छोड़ गए थे. नितिन घर में ही मिल गया था. उस ने गलत तारीख की बात कह कर अपनी अनुपस्थिति का हवाला दे दिया और बात आईगई हो गई थी. पर अब नितिन का दरवाजा खोलने पर आश्चर्यभरा चेहरा समझ में आया. जिस को वह सुखद आश्चर्य समझ बैठी थी वह तो नितिन का रोषमिश्रित दुखद आश्चर्य था.

शुभ्रा को अब यह भी समझ में आया कि रूपा क्यों उस से बात नहीं करना चाहती थी. 2-3 बार सीढि़यों, एलिवेटर व लांडरी रूम में आमनासामना होने पर शुभ्रा ने शिष्टाचारवश व अपने स्वदेशी होने के नाते ‘हैलो’ कहा था पर रूपा ने उसे हर बार नजरअंदाज किया था जबकि बिल्ंिडग की दूसरी कैनेडियन औरतें उस से बड़ी शालीनता से पेश आती हैं.

कई बातों के अर्थ, जिन्हें वह समझ नहीं पा रही थी, आज उन्हीं अर्थों के सांप पिटारियों से निकलनिकल कर उसे डस रहे हैं और वह क्षतविक्षत हो रही है. नितिन की बेवजह अवहेलना व यहां तक कि उस के बेकारण हाथ उठने पर भी उसे इतना दर्द नहीं हुआ था जितना इस क्षण वह यह असहनीय दर्द झेल रही है.

दरवाजे की घंटी लगातार बज रही थी. शुभ्रा ने मुंह पोंछ अपने को संभाला और घर का दरवाजा खोला तो सामने बिल्ंिडग के सुपरिंटैंडेंट मिस्टर जौनसन खड़े थे. नितिन ने रसोईघर के नल की शिकायत की थी, वही ठीक करने आए थे. शुभ्रा ने नीची निगाहों से उन का स्वागत कर, उन्हें किचन में जाने का रास्ता दिया, पर वह खुद कुछ देर उसी तरह खड़ी रह गई. पर ज्यादा देर उस की बेजान टांगें यह भार न सह सकीं. उन में हरकत हुई और उन्होंने ही उसे घसीट कर सोफे पर ला पटका.

मिस्टर जौनसन को कुछ समय पहले के रूपा द्वारा किए गए शोरशराबे का तो पता था पर यह नहीं पता था कि शुभ्रा ने वह सुना है. पर अब शुभ्रा का चेहरा देख वे सब समझ गए थे. नल ठीक करते हुए पिता के समान जौनसन का हृदय शुभ्रा के लिए कचोट रहा था.

शुभ्रा की शालीनता व सद्व्यवहार से वे शुरू से ही प्रभावित थे, इसीलिए अपने को न रोक पाए. शुभ्रा के पास आ धीरे से उस के सिर पर हाथ रख कर बोले, ‘‘अगर मैं तुम्हारी किसी भी तरह की कोई भी मदद कर सकता हूं, तो बेटी, मुझे बता देना.’’

उन के पिता के समान इस व्यवहार से शुभ्रा और भी द्रवित हो गई. किसी तरह अपने आंसुओं को रोक कर शुक्रिया में केवल सिर ही हिला पाई.

मन का दुख बहुत एकाकी होता है. किसी के साथ उसे बांटना बहुत मुश्किल होता है.

सोफे पर शुभ्रा का शरीर तो निष्क्रिय था, पर दिमाग निष्क्रिय न रह सका. वह अभी तक कारण न जानने के कारण ही नितिन का दुर्व्यवहार झेलती रही. कई बार वह शादी के समय के नितिन और आज के नितिन में आए अंतर को न समझ पाती थी. नितिन के प्रति अपने व्यवहार की विवेचना कर कई बार सोचती थी कि उस ने कहां और क्या गलती की है जो नितिन इतना भड़काभड़का सा रहता है. और जब वह कहीं कुछ समझ न पाई तो उस ने यही निष्कर्ष निकाला कि शायद नितिन को नौकरी की कोई परेशानी है या आर्थिक परेशानी है जो वह इस छोटी सी अवधि के संगसाथ में बता नहीं पा रहा है, सो, इस विचार से भ्रमित शुभ्रा नितिन के प्रति, उस के सारे दुर्व्यवहारों के बावजूद, और भी नम्र, सहनशील होती गई.

अब सबकुछ जानने के  बाद शुभ्रा का आत्मसम्मान जाग उठा. भारतीय नारी अबला कही जाती है, पर वही नारी समय आने पर शक्ति की प्रतीक भी बन जाती है. वह प्रेम के लिए अपना सबकुछ निछावर कर सकती है, यहां तक कि कई बार प्यार के नाम पर पायदान की तरह पड़ी रह सकती है, जहां हर आतीजाती बार उसे पैरों से रौंदा जाता है. पर जिस दिल में उस के लिए स्नेह का ही अभाव है, क्या वह उसी के घर में सिर्फ भौतिक सुखसुविधाओं के लिए, सिर्फ जीने के लिए ही पड़ी रहे? सिर्फ ईंटगारे की चारदीवारी का ही घर तो उस ने नहीं चाहा था. जिस पुरुष को उस ने अपना समझा था, जब वही उस का अपना नहीं रहा तो बाकी रहा क्या?

शुभ्रा की आंखों में जैसे गहरा काला धुआं भर उठा. असमंजस ने एक  बार फिर कचोटा. एक बड़ा प्रश्न मुंहबाए खड़ा हो चिढ़चिढ़ा कर पूछने लगा, ‘क्या अब जीवनभर अकेले ही रहना पड़ेगा?’

पर फिर शुभ्रा खुद ही बोल उठी, ‘क्या पुरुष के साथ मिल नारी ग्यारह व छिटकते ही इकाई हो जाती है?’

वह आगे सोचने लगी, ‘जीवन की जरूरतों के अतिरिक्त व्यक्ति का खुद का भी अपना एक अस्तित्व होता है. व्यक्ति किसी वांछित परिणाम या उद्ेश्य के लिए ही जीवित नहीं रहता. जीवन के प्रत्येक क्षण का अपना एक अलग महत्त्व है, क्योंकि प्रत्येक क्षण का अपना एक छोटा सा ही सही परंतु एक संपूर्ण ब्रह्मांड होता है.’

शुभ्रा ने भरेमन से एक निश्चय लिया, स्वतंत्रता जो जंजीर से बंधी थी उसे तोड़ वास्तविक रूप से स्वतंत्र होने का. एक सूटकेस में अपने कपड़े व जरूरत की चीजें पैक कीं. एक बार सोचा, निशि दीदी को फोन कर दे, पर दूसरे ही क्षण मन में आया कि नितिन नहीं चाहता था कि वह कभी किसी को फोन करे. वैसे भी निशि दीदी तो अभी काम पर ही होंगी. शुभ्रा नितिन के घर आने से पहले ही यहां से निकल जाना चाहती थी.

शुभ्रा निचली मंजिल पर बने मिस्टर जौनसन के औफिस में गई. दरवाजे पर दस्तक देते ही मिस्टर जौनसन ने दरवाजा खोला. उन्होंने शुभ्रा को आदर से कुरसी पर बैठाया व सामने की कुरसी पर बैठ कर प्रश्नभरी नजरों से उसे देखते हुए कहा, ‘‘बेटी, अब बताओ, कैसे आई हो और मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं?’’

शुभ्रा हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘मुझे आप से एक सहायता चाहिए.’’

‘‘हांहां, बताओ, बेटी.’’

‘‘क्या आप मुझे टोरंटो में मेरे मित्र के घर तक छोड़ सकते है?’’

वेलेंसिया की भूल: भाग 2

वेलेंसिया की भूल: भाग 1

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आखिरी भाग

रीमा वलीप अपने बड़े भाई शैलेश वलीप के साथ गोवा के मडगांव के संगम तालुका में रहती थी. परिवार के नाम पर वह सिर्फ बहनभाई ही थे. रीमा का भाई शैलेश वलीप भी उसी शौप में सिक्योरिटी गार्ड था. लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का था.

यह बात जब शौप मालिक को पता चली तो उस ने शैलेश को नौकरी से निकाल दिया. इस के बाद वह घर पर ही रहने लगा. उस का सारा खर्च रीमा पर ही था. वह बहन से पैसे लेता और सारा दिन अपने आवारा दोस्तों के साथ इधरउधर मटरगश्ती करता था. कभीकभी वह बहन रीमा से मिलने मैडिकल शौप पर भी जाता था.

वहीं पर उस की मुलाकात वेलेंसिया फर्नांडीस से हुई थी. पहली ही नजर में वह उस पर फिदा हो गया था. चूंकि उस की बहन रीमा वलीप की दोस्ती वेलेंसिया से थी, इसलिए उसे वेलेंसिया के करीब आने में अधिक समय नहीं लगा.

अब वह जब भी अपनी बहन से मिलने मैडिकल स्टोर आता तो वेलेंसिया से भी मीठीमीठी बातें कर लिया करता था. सहेली का भाई होने के नाते वह शैलेश से बात कर लेती थी.

कुछ ही दिनों में शैलेश वेलेंसिया के दिल में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हो गया था. वेलेंसिया जब उस के करीब आई तो शैलेश की तो जैसे लौटरी लग गई थी. क्योंकि वेलेंसिया के पैसों पर शैलेश मौज करने लगा था. इस के अलावा जब भी उसे पैसों की जरूरत पड़ती तो वह उधार के बहाने उस से मांग लिया करता था.

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वेलेंसिया उस के भुलावे में आ जाती थी और उसे पैसे दे दिया करती थी. इस तरह वह वेलेंसिया से लगभग एक लाख रुपए ले चुका था. वेलेंसिया उसे अपना जीवनसाथी बनाने का सपना सजा रही थी, इसलिए वह शैलेश को दिए गए पैसे नहीं मांगती थी.

अगर वेलेंसिया के सामने शैलेश की हकीकत नहीं आती तो पता नहीं वह वेलेंसिया के पैसों पर कब तक ऐश करता रहता. सच्चाई जान कर वेलेंसिया का अस्तित्व हिल गया था. वह जिस शख्स को अपना जीवनसाथी बनाने का ख्वाब देख रही थी, स्थानीय थाने में उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.

यह जानकारी मिलने के बाद वेलेंसिया को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा. उसे शैलेश से नफरत होने लगी और वह उस से दूरियां बनाने लगी.

इसी बीच नवंबर, 2018 में एक दिन वेलेंसिया का रिश्ता कहीं और तय हो गया. शादी की तारीख सितंबर 2019 तय हो गई. शादी तय हो जाने के बाद वेलेंसिया ने शैलेश वलीप से अपनी दोस्ती खत्म कर दी और उस से अपने पैसों की मांग करने लगी.

एक कहावत है कि चोट खाया सांप और धोखा खाया प्रेमी दोनों खतरनाक होते हैं. वेलेंसिया को अपने से दूर जाते हुए देख शैलेश का खून खौल उठा. एक तो वेलेंसिया ने उसे उस के प्यार से वंचित कर दिया था, दूसरे वह उस से उधार दिए पैसे की मांग कर रही थी.

पैसे लौटाने में वह सक्षम नहीं था. इसलिए आजकल कर के वह वेलेंसिया को टाल देता था. शैलेश अब वेलेंसिया से निजात पाने का उपाय खोजने लगा. इसी दौरान योजना बनाने के बाद उस योजना को अमलीजामा पहनाने का सही मौका मिला 6 जून, 2019 को.

6 जून को जब उसे यह जानकारी मिली कि वेलेंसिया आज अपनी ड्यूटी के बाद मौल से शौपिंग करेगी. इस के लिए उस ने एटीएम से पैसे भी निकाल लिए हैं. इस के बाद शैलेश का दिमाग तेजी से काम करने लगा.

अपनी योजना को साकार करने के लिए शैलेश अपने दोस्त देवीदास गावकर के पास गया और उस से यह कह कर उस की स्कूटी मांग लाया कि उसे एक जरूरी काम से गोवा सिटी जाना है. स्कूटी की डिक्की में उस ने वेलेंसिया की मौत का सारा सामान, नायलौन की रस्सी और प्लास्टिक की एक बड़ी थैली रख ली थी.

स्कूटी से वह वेलेंसिया के मैडिकल शौप के सामने पहुंच कर उस का इंतजार करने लगा. उस ने वहीं से वेलेंसिया को फोन मिलाया तो न चाहते हुए भी उस ने शैलेश की काल रिसीव कर ली. शाम 8 बजे वेलेंसिया अपनी ड्यूटी पूरी कर शौप से बाहर निकली तो वह स्कूटी ले कर उस के पास पहुंच गया और उस का पैसा लौटाने के बहाने उसे अपनी स्कूटी पर बैठा लिया.

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पैसे मिलने की खुशी में वेलेंसिया अपने जन्मदिन की शौपिंग करना भूल गई. अपनी स्कूटी पर बैठा कर वह उसे एक सुनसान जगह पर ले गया. रास्ते में उस ने वेलेंसिया को जूस में नींद की गोलियों का पाउडर डाल कर पिला दिया, जिस के कारण वेलेंसिया जल्द ही बेहोशी की हालत में आ गई थी.

वेलेंसिया के बेहोश होने के बाद शैलेश ने उस के हाथपैर अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी से कस कर बांध दिए और उस के गले में उस का ही दुपट्टा डाल कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

वेलेंसिया को मौत के घाट उतारने के बाद शैलेश वलीप ने उस के पर्स में रखे रुपए निकाल कर उस का मोबाइल फोन कुछ दूर जा कर झाडि़यों में फेंक दिया था.

शैलेश वलीप अपनी योजना में कामयाब तो हो गया था लेकिन अब उस के सामने सब से बड़ी समस्या थी, शव को ठिकाने लगाने की. शव गांव के करीब पड़ा होने के कारण उस के पकड़े जाने की संभावना ज्यादा थी और बिना किसी की मदद के अकेले उसे ठिकाने लगाना उस के लिए संभव नहीं था.

ऐसे में उसे अपने दोस्त देवीदास गावकर की याद आई. वह तुरंत गांव वापस गया. देवीदास को पूरी बात बताते हुए जब उस ने शव ठिकाने लगाने में उससे मदद मांगी तो देवीदास गावकर के चेहरे का रंग उड़ गया. पहले तो देवीदास इस के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन जब शैलेश ने उसे 2 हजार रुपए शराब पीने के लिए दिए तो वह फौरन तैयार हो गया.

उस ने अपने घर से एक सफेद चादर ली और घटनास्थल पर पहुंच कर वेलेंसिया का चेहरा बिगाड़ कर उस के शव को पौलीथिन में डाला. फिर वह थैली चादर में लपेट ली और उसे स्कूटी पर रख कर घटनास्थल से करीब 10 किलोमीटर दूर ले जा कर केपे पुलिस थाने की सीमा में फातिमा हाईस्कूल के जंगलों में डाल दिया.

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शैलेश वलीप और देवीदास गावकर से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें मडगांव कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

देवदासी देह शोषण की लंबी दास्तान

लेखक: कैलाश जैन

महिलाएं सभ्य समाज की धुरी होती हैं. लेकिन भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को देख कर लगता है कि यह धुरी दिनबदिन कमजोर होती जा रही है. पुरुष प्रधान समाज ने अपनी सारी परंपराएं और प्रथाएं स्त्रियों के शोषण हेतु निर्मित की हैं. बाल विवाह हो, सतीप्रथा हो या विधवा का सामाजिक जीवन, हर मुकाम पर शोषण की शिकार महिलाएं ही हैं.

स्त्री के देहशोषण की ऐसी ही एक अमानवीय परंपरा का नाम है, ‘देवदासी प्रथा.’ वर्तमान में इस परंपरा का स्वरूप, देवदासी को मात्र धर्म द्वारा अनुमोदित वेश्या का दर्जा दिलाने का रह गया है.

इस वर्ष की शुरुआत में नैशनल लौ स्कूल औफ इंडिया यूनिवर्सिटी, मुंबई और टाटा इंस्टिट्यूट औफ सोशल साइंसेज, बेंगलुरु द्वारा देवदासी प्रथा पर 2 अध्ययन किए गए. कर्नाटक देवदासी अधिनियम 1982 के 36 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा इस कानून के संचालन हेतु नियमों को जारी करना बाकी है.

1988 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भी इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया था. बावजूद इस के, वर्ष 2013 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने बताया था कि अभी देश में 4,50,000 देवदासियां हैं.

इस का मतलब है कि इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए केवल नाममात्र की पहल की गई है और माना जा रहा है कि अब यह कुप्रथा कर्नाटक से निकल कर गोवा तक पहुंच गईर् है. इतना ही नहीं, यह तेजी से फैल भी रही है.

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भारत में देवदासी प्रथा के प्रचलन का इतिहास बहुत पुराना है. आर्यों के भारत आने से पहले से ही यह प्रथा यहां जारी थी. एक धारणा के अनुसार, जब मूर्तिपूजा के विकास के साथ मंदिरों का निर्माण प्रारंभ हुआ, तब उपासना की विधियों, तंत्रमंत्र के प्रभाव में काफी वृद्धि हुई. धर्म को जब राज्याश्रय प्राप्त हुआ तो वैभव प्रदर्शन से परिपूर्ण भव्यविराट, पूजाअर्चना के आयोजन होने लगे. ऐसे आयोजनों की भव्यता को बढ़ाने के लिए नृत्य और गायन में पारंगत सुंदर नवयौवनाओं का उपयोग किया जाने लगा. अनुमान है कि यहीं से देवदासी परंपरा की शुरुआत हुई होगी.

सेवा अर्चना करना था उद्देश्य

तीसरी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में यह प्रथा अधिक जोरों से प्रचलन में आई. लेकिन उस समय तक इस का स्वरूप विशुद्ध धार्मिक था. पल्लव व चोल वंश के शासकों के शासनकाल में यह प्रथा काफी फलीफूली. उस समय देवदासियों को नृत्यकला, संगीतकला आदि का प्रामाणिक प्रतिनिधि मान कर उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था.

जानेमाने इतिहासकार एडगर थर्स्टन ने अपनी पुस्तक ‘कास्ट्स ऐंड ट्राइंस इन सदर्न इंडिया’ में भारत में देवदासी प्रथा पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि 11वीं सदी में चोल वंश के राजा चोल के शासनकाल में तंजौर के राजेश्वर मंदिर में 400 देवदासियां थीं. इसी प्रकार गुजरात के सोमनाथ मंदिर में 500 देवदासियां होने के प्रमाण मिलते हैं. प्रारंभ में देवदासियों के क्रियाकलापों का स्वरूप विशुद्ध धार्मिक आयोजन तथा नृत्य व संगीत द्वारा मंदिरों में सेवाअर्चना करने तक सीमित था.

घिनौनी जिंदगी

विजयनगर साम्राज्य के दौरान देवदासी प्रथा के महत्त्व का अवमूल्यन होना प्रारंभ हुआ. धीरेधीरे उन का कार्य मंदिर में देवी की सेवा करना भर नहीं रह गया, बल्कि राजाओं और सामंतों की कामवासना को शांत करना भी हो गया. इस नैतिक पतन में देवदासी क्रमश: सरकारी मुलाजिम, पुजारी, पैसे वाले लोगों के भोगविलास की वस्तु बनती गई और आज स्थिति यह है कि देवदासियां एक प्रकार से धार्मिक मान्यताप्राप्त वेश्याओं की घिनौनी जिंदगी व्यतीत कर रही हैं.

ऐसे बनती देवदासियां

भारत में देवदासी प्रथा मुख्यतया कर्नाटक में बारवाड़, बीजापुर, महाराष्ट्र के कोल्हापुर तथा उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है. अन्य सामाजिक कुप्रथाओं की भांति यह प्रथा भी समाज के कमजोर और दलित वर्गों में ही अधिक व्याप्त है. देवदासी प्रथा का मुख्य केंद्र कर्नाटक राज्य के सौदंती (बेलगांव) कसबे में एक पहाड़ी पर स्थित देवी यल्लम्मा का मंदिर है. प्रतिवर्ष माघ माह की पूर्णिमा को यहां एक विराट मेला लगता है.

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इस मेले में हर साल करीब 4-5 वर्ष की अबोध बालिकाओं को देवी को समर्पित कर ‘देवदासी’ बना दिया जाता है. एक अनुमान के अनुसार, पिछले 40 सालों में करीब 3 लाख बालिकाएं देवदासी बनाई जा चुकी हैं.

अपनी पुत्रियों को देवी यल्लम्मा के चरणों में समर्पित कर देवदासी बना दिए जाने का प्रमुख कारण है, मनौती अथवा मन्नत. जैसे घर में किसी की बीमारी ठीक होने, किसी संकट के टलने पर लोग मनौती पूरी करने के लिए अपनी कन्या को देवदासी बना देते हैं, उसी प्रकार पुत्रहीन दंपती पुत्रप्राप्ति की मनौती पूरी होने पर अपनी पुत्री को देवी को समर्पित कर देते हैं. इस के अतिरिक्त किसी के सिर के बाल चिपक जाने, जिसे ‘जटा बनना’ कहा जाता है, को भी मां यल्लम्मा का निमंत्रण मान कर उसे देवदासी बना दिया जाता है.

विवाह मगर किस से

कन्या को देवी यल्लम्मा के चरणों में समर्पित करते समय जो रस्में पूरी की जाती हैं वे सारी वैवाहिक रस्मों से मिलतीजुलती होती हैं. समर्पण वाले दिन देवदासी बनने वाली कन्या को मंदिर से 3 मील दूर स्थित जोगुला बणी नामक कुएं के जल से स्नान करवाया जाता है. उसे निर्वस्त्र अवस्था में नीम की पत्तियों की एक माला पहनाई जाती है और उसी स्थिति में एक जुलूस के साथ पैदल मंदिर तक लाया जाता है.

मंदिर पहुंचने पर बालिका को दोबारा नहलाया जाता है और मंदिर की परिक्रमा करवाई जाती है. इस के बाद पुजारी द्वारा पूजा व आरती की जाती है. फिर पुजारी उस कन्या का विवाह देवी के साथ संपन्न करवाता है एवं कन्या को मंगलसूत्र प्रदान करता है. यह मंगलसूत्र इस बात का प्रतीक होता है कि उस बालिका का विवाह देवी के साथ हो चुका है और अब उसे किसी पुरुष से विवाह करने का अधिकार नहीं है.

देवदासियों की सामाजिक जिंदगी अत्यंत दयनीय होती है. विवाह के अधिकार से वंचित होने के बाद भी वे किसी एक पुरुष के साथ अधिकतम 2 वर्ष की अवधि तक ही रह सकती हैं. लेकिन इस दौरान पैदा हुए बच्चे अवैध ही माने जाते हैं.

अधिकांश देवदासियां महानगरों में दलाल के माध्यम से वेश्यावृत्ति कर अपना जीवनयापन करती हैं. यौवन के अवसान के बाद इन के समक्ष दालरोटी की समस्या हमेशा मुंहबाए खड़ी रहती है. इसलिए प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में देवदासियां अकसर भीख मांग कर अपना गुजारा करती हैं.

देवदासी प्रथा के उन्मूलन तथा उन की दशा सुधारने के लिए सरकार ने समयसमय पर कई कानून बनाए लेकिन अन्य सामाजिक समस्याओं की तरह देवदासी प्रथा के उन्मूलन हेतु भी केवल कानून बना देना ही पर्याप्त नहीं है. इस के लिए शिक्षा और ज्ञान का प्रचारप्रसार बहुत जरूरी है. सामाजिक जनजागरण के साथ कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना भी जरूरी है.

इतनी छोटी उम्र में ही पीरियड आने से बहुत चिंतित हूं, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी बेटी केवल साढ़े 11 वर्ष की है. लगभग 4 महीने पहले ही पीरियड आया है. 3-4 दिनों तक रक्तस्राव हुआ, परंतु उस के बाद नहीं हुआ.  इतनी छोटी उम्र में ही पीरियड आने से बहुत चिंतित हूं और यह सोच कर भी कि एक बार पीरियड होने के बाद क्यों बंद हो गया. उचित सलाह दें?

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जवाब

पीरियड्स 11 से 15 वर्ष तक कभी भी शुरू हो सकते हैं. कभीकभी ये रैगुलर नहीं होते. लेकिन, चिंता न करें. जैसेजैसे वह बड़ी होती जाएगी, पीरियड रैगुलर हो जाएंगे. छोटी उम्र में पीरियड होने से आप की चिंता स्वाभाविक है. आज की जीवनशैली व खानपान की वजह से लड़कियों में पीरियड्स जल्दी शुरू हो जाते हैं. फिर भी यदि आप को कोई और परेशानी दिख रही हो तो किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ से दिखा लें.

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जानें, क्यों फिर से राखी सावंत हुई बुरी तरह ट्रोल

फिल्म इंडस्ट्री की ड्रामा क्वीन राखी सावंत अपने बयानों के कारण काफी मशहूर रहती है. आए दिन राखी सावंत का कोई न कोई बयान सुर्खियों में छाए रहता है. जी हां अपने बयानों की वजह से राखी सावंत काफी मशहूर है. ये सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती हैं. आपको बता दें, एक बार फिर से राखी सावंत के बयानों की वजह से सोशल मीडिया पर उन्हें  ट्रोल किया जा रहा है.

हाल ही में राखी सावंत ने अपनी शादी की खबर से फैंस को हैरान कर दिया था. अब राखी ने एक वीडियो शेयर किया है. इसमें एक बच्ची है जो कह रही है कि राखी सावंत मेरी मम्मी है.

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राखी सावंत ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर ये  वीडियो शेयर करते हुए लिखा, ‘दोस्तों,  मेरे फैंस ये मेरी बेटी है. प्लीज इसको अपना आशीर्वाद दें’. इस पर यूजर्स ने इन्हें जमकर ट्रोल करना शुरु कर दिया है. फैंस का कहना कि राखी आप कौन से एप से अपने फोटो को ही बच्चे का फोटो बनाती हैं. इसके साथ ही कई अच्छे और बुरे कमेंट भी आए हैं.

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इसके पहले राखी ने अपनी कई तस्वीरें शेयर की थी जिसमे वो शादी के जोड़े में नजर आयी पर अब तक उनके पति की कोई तस्वीर देखने को नहीं मिली है. राखी का कहना है कि उनके पति रितेश बिजनेसमैन है और लंदन में रहते है. राखी के अनुसार उनके पति मीडिया और लाइमलाइट से दूर रहना चाहते है. इसलिए उन्हें कैमरे के सामने आना पसंद नहीं है.

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