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बायोइन्फार्मेटिक्स में कैसे बनाएं बेहतरीन करियर

आज कल हर छात्र यही चाहता है कि कौलेज खत्म होते ही उसे एक अच्छी सी नौकरी मिल जाये. उसके लिये अधिकतर बच्चे प्रोफेशनल कोर्स की तरफ अपना रुख अपना रहे हैं पहले बच्चे साइंस स्ट्रीम का मतलब सिर्फ डौक्टर या इंजीनीयर बनना ही समझते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है क्योंकि अब इनके आलावा और भी कई कोर्सेज होते है. ऐसा ही एक कोर्स है बायोइन्फार्मेटिक्स जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं.

बायोइन्फार्मेटिक्स होता क्या है

यह जिव विज्ञान का नया क्षेत्र है यह कोर्स इन्फोर्मेशन टेक्नोलौजी और बायोटेक्नोलौजी से मिलकर बना है. यह एक स्पेशलाइज्ड कोर्स  है. इसके माध्यम से जीन खोजना, जिनोम असेंबली, ड्रग डिजाइन, ड्रग डिस्कवरी, प्रोटीन स्ट्रक्चर अलाइनमेंट, प्रोटीन स्ट्रक्चर प्रिडिक्शन आदि क्षेत्रों में इसका प्रयोग किया जा रहा है इसका इस्तेमाल खासतौर पर मौलिक्यूलर बायोलौजी में होता है. यह  एक कम्प्यूटर टेक्निकल एप्लिकेशन है.

जरूरी योग्यता  

साइंस स्ट्रीम से 12  वीं पास करके इसमें दाखिला लिया जा सकता है. भारत में इसकी बढ़ती संभावनाएं हैं. ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन में इस विषय के साथ आपको माइक्रोबायोलौजी, फार्मेसी, वेटेनरी साइंस, मैथ्स और फिजिक्स इन सभी के बारे में जानना आवश्यक होता है.

इसमें आप  B.Sc इन बायोइन्फरमेटिक्स ,B .Tech इन बायोइन्फार्मेटिक्स ,B.Sc (Hons.) इन बायोइन्फरमेटिक्स और BE इन बायोइन्फार्मेटिक्स की पढ़ाई कर सकते हैं.

भारत में बढ़ती संभावनाएं

भारत में बायोइन्फार्मेटिक्स का क्षेत्र अत्यधिक तेजी से आगे बढ़ रहा है. इसकी अनुलम्ब वृद्धि का कारण यह है कि इस क्षेत्र में आईटी और बायोटेक्नोलौजी के बीच सुंदर समन्वय है. भारत की जैव-विविधता, मानव संसाधन, इंफ्रास्ट्रक्टरल  सुविधाओं तथा सरकारी पहल को देखते हुए आनेवाले वर्षों में भारत बायोइन्फार्मेटिक्स क्षेत्र  में काफी आगे तक जायेगा और भारत को नई उपलब्धियां भी दिलवाएगा. आईडीसी द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत में बायोसाइंस विकास की अपार संभावनाएं है.

क्या करते हैं बायोइन्फोर्मेटिस्ट

इस फील्ड में कंप्यूटर टेक्नोलौजी के जरिए बायोइन्फोर्मेटिस्ट बायोलौजिकल डेटा का एनालिसिस करते है. इसके साथ ही इनका काम डेटा स्टोरेज करना भी होता है और डेटा को एक-दूसरे से मिलाना भी. इसके माध्यम से खासतौर पर किसी पौधे के जीन्स में किस प्रकार के परिवर्तन करना, जानलेवा बीमारी के लिए उत्तरदायी जीन्स समूह का पता करना, औषधि निर्माण में सहायता आदि में किया जाता है. यह एक उभरता हुआ इंटरडिसिप्लिनरी रिसर्च क्षेत्र है तथा जिंदगी की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसका उपयोग लगातार बढ़ता जा रहा है.

हक के बदले लाठी, सीएम योगी का ये कैसा न्याय

ऐसा पहली मर्तबा नहीं हो रहा है इससे पहले भी हम अन्नदाताओं के सीने छलनी होते देख चुके है. सियासतदानों के वादों और चुनावी घोषणा पत्रों में किसानों की हिमायतगार बनने वाले ये नेता हमेशा से ही इस वर्ग से फरेब करते आए हैं. ताजा मामला है उन्नाव से. जहां पर किसान अपनी जमीन का उचित मुआवजा मांगने के लिए सड़कों पर आ गए थे. किसानों का आंदोलन बढ़ता देख यूपी पुलिस ने निहत्थों पर वार करना शुरू कर दिया. पुलिस की लाठी ने बिना भेदभाव किए सबकों एक तराजू में तौल दिया. कौन बुजुर्ग, कौन महिला सबको मारकर तितर-बितर किया गया. हो सकता हो इसमें प्रशासन का ये कहना हो कि शांति व्यवस्था बनाने के लिए ऐसा करना पड़ा. हम उस चर्चा में जाकर आपका और अपना समय व्यर्थ ही बर्बाद नहीं करूंगा. खास बात तो यह है कि जिस वक्त किसानों और पुलिस के बीच ये सब हो रहा था उस दौरान सीएम योगी गोरखपुर में किसानों को ही संबोधित कर रहे थे.

प्रदर्शनकारी किसानों ने जेसीबी और गाड़ी पर पथराव किया. इसके बाद जिला प्रशासन की तरफ से 12 थानों की पुलिस और कई कंपनी पीएसी को मौके पर भेजा गया. इसके साथ ही सिटी मजिस्ट्रेट के नेतृत्व में तहसील विभाग के अधिकारी भी मौके पर पहुंचे. दरअसल, प्रशासन शनिवार को किसानों की जमीन पर जेसीबी चलवाए जाने के बाद किसान उग्र हो गए. किसानों ने नाराज होकर जेसीबी पर पथराव कर दिया. बताया जा रहा है कि मौके पर अब भी भारी फोर्स तैनात है.

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किसानों का आरोप है कि 2005 में बगैर समझौते के उनकी जमीनों को अधिगृहित कर लिया गया था, लेकिन बदले में उसका मुआवजा नहीं दिया जा रहा. इसके विरोध में हम सड़क पर उतरे हैं. असल में, पूरा मामला यूपीएसआईडीसी की ट्रांस गंगा सिटी का है, जहां किसान अधिग्रहण की शर्तें पूरी नहीं किए जाने के कारण लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

जिस योजना के लिए किसानों की जमीन अधिग्रहित की गई है उसकी नींव 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में पड़ी थी. यहां पर ट्रांस गंगा हाई टेक योजना बनी थी. करीब ढाई साल पहले उन्नाव के जिलाधिकारी ने आश्वासन दिया था कि वे इसके लिए विशेष दल गठित कर मामले का निपटारा कराने का प्रयास करेंगे. मगर अब तक प्रशासन की तरफ से कोई संतोषजनक नतीजा सामने नहीं आ पाया है, जिसकी वजह से किसान आंदोलन पर उतर आए हैं. इस तरह विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता न बरते जाने या फिर अधिग्रहीत भूमि के मुआवजे की रकम का संतोषजनक भुगतान न हो पाने की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों से किसानों और आदिवासियों के आंदोलन उभरते रहे हैं.

कई बार ऐसे आंदोलन हिंसक रूप भी अख्तियार कर लेते रहे हैं. हालांकि पहले के मुकाबले अब भूमि अधिग्रहण कानून को काफी पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है. इसमें मुआवजे की रकम भी बाजार भाव से अधिक रखी गई है. किसानों की मंजूरी के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं किया जा सकता. लेकिन हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. भूमि अधिग्रहण के लिए प्रशासन बल का प्रयोग या फिर मनमानी करता है. उसमें मुआवजे की रकम पर भी अड़चनें देखी जाती हैं. उन्नाव में बन रहे गंगा ट्रांस सिटी के मामले में भी ऐसी ही तकनीकी दिक्कतें हैं.

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव से अब मुआवजे की रकम बाजार भाव से अधिक तो मिलने लगी है, पर इसके भुगतान में जिस तरह सरकारी अमले का भ्रष्ट आचरण अड़चनें पैदा करता है, वह किसी से छिपा नहीं है. इसे लेकर उत्तर प्रदेश प्रशासन पर कुछ अधिक अंगुलियां उठती रही हैं। इसलिए उन्नाव में किसानों के मुआवजे के भुगतान में विलंब हुआ है या फिर उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिला है, तो उनका रोष समझा जा सकता है.

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क्या है ट्रांस गंगा प्रोजेक्ट

इस प्रोजक्ट के तहत 1156 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी. इस जमीन पर लो राइड बिल्डिंग खड़ी की जाएंगी. जिनकी ऊंचाई लगभग 100 से 140 मीटर तक होगी. प्रोजक्ट रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण को देखते हुए हर दो बिल्डिंग बीच ग्रीन लैंड बनाया जाएगा. जिससे कि लोगों को शुद्ध हवा मिल सके. इसके अलावा यहां पर हर प्रकार की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी. साथ ही आप इन इमारतों से गंगा नदीं का नजारा भी देख सकते हैं.

प्रेम तर्पण : भाग 3

कभी उसे बच्चे चिढ़ाते कि अरे, इस की तो मम्मी ही नहीं है ये बेचारी किस से कहेगी. मासूम बचपन यह सुन कर सहम कर रह जाता. यह सबकुछ उसे व्यग्र बनाता चला गया. बस, हर वक्त उस की पीड़ा यही रहती कि मैं क्यों इस परिवार की सगी नहीं हुई, धीरेधीरे वह खुद को दया का पात्र समझने लगी थी, अपने दिल की बेचैनी को दबाए अकसर सिसकसिसक कर ही रोया करती.

युवावस्था में न अन्य युवतियों की तरह सजनेसंवरने के शौक, न हंसीठिठोली, बस, एक बेजान गुडि़या सी वह सारे काम करती रहती. उस के दोस्तों में सिर्फ पूर्णिमा ही थी जो उसे समझती और उस की अनकही बातों को भी बूझ लिया करती थी. कृतिका को पूर्णिमा से कभी कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. पूर्णिमा उसे समझाती, दुलारती और डांटती सबकुछ करती, लेकिन कृतिका का जीवन रेगिस्तान की रेत की तरह ही था.

कृतिका के घर के पास एक लड़का रोज उसे देखा करता था, कृतिका उसे नजरअंदाज करती रहती, लेकिन न जाने क्यों उस की आंखें बारबार कृतिका को अपनी ओर खींचा करतीं, कभी किसी की ओर न देखने वाली कृतिका उस की ओर खिंची चली जा रही थी.

उस की आंखों में उसे खिलखिलाती, नाचती, झूमती जिंदगी दिखने लगी थी, क्योंकि एक वही आंखें थीं जिन में सिर्फ कृतिका थी, उस की पहचान के लिए कोई सवाल नहीं था, कोई सहानुभूति नहीं थी. कृतिका के कालेज में ही पढ़ने आया था शेखर. कृतिका अब सजनेसंवरने लगी थी, हंसने लगी थी. वह शेखर से बात करती तो खिल उठती. शेखर ने उसे जीने का नया हौसला और पहचान से परे जीना सिखाया था. पूर्णिमा ने शेखर के बारे में घर में बताया तो एक नई कलह सामने आई. कृतिका चुपचाप सब सुनती रही. अब उस के जीवन से शेखर को निकाल दिया गया. कृतिका फिर बिखर गई, इस बार संभलना मुश्किल था, क्योंकि कच्ची माटी को आकार देना सहज होता है.

कृतिका में अब शेखर ही था, महीनों कृतिका अंधेरे कमरे में पड़ी रही न खाती न पीती बस, रोती ही रहती. एक दिन नौकरी के लिए कौल लैटर आया तो परिवार वालों ने भेजने से इनकार कर दिया, लेकिन इस बार कृतिका अपने संकोच को तिलांजलि दे चुकी थी, उस ने खुद को काम में इस कदर झोंक दिया कि उसे अब खुद का होश नहीं रहता  परिवार की ओर से अब लगातार शादी का दबाव बढ़ रहा था, परिणामस्वरूप सेहत बिगड़ने लगी. उस के लिए जीवन कठिन हो गया था, पीड़ा ने तो उसे जैसे गोद ले लिया हो, रातभर रोती रहती. सपने में शेखर की छाया को देख कर चौंक कर उठ बैठती, उस की पागलों की सी स्थिति होती जा रही थी.

अब कृतिका ने निर्णय ले लिया था कि वह अपना जीवन खत्म कर देगी, कृतिका ने पूर्णिमा को फोन किया और बिलखबिलख कर रो पड़ी, ‘पूर्णिमा, मुझ से नहीं जीया जाता, मैं सोना चाहती हूं.’ पूर्णिमा ने झल्ला कर कहा, ‘हां, मर जा और उन लोगों को कलंकित कर जा जिन्होंने तुझे उस वक्त जीवन दिया था जब तेरे ऊपर किसी का साया नहीं था, इतनी स्वार्थी कैसे और कब हो गई तू  तू ने जीवन भर उस परिवार के लिए क्याक्या नहीं किया, आज तू यह कलंक देगी उपहार में ’

कृतिका ने बिलखते हुए कहा, ‘मैं क्या करूं पूर्णिमा, शेखर मेरे मन में बसता है, मैं कैसे स्वीकार करूं कि वह मेरा नहीं, मैं तो जिंदगी जानती ही नहीं थी वही तो मुझे इस जीवन में खींच कर लाया था. आज उसे जरा सी भी तकलीफ होती है तो मुझे एहसास हो जाया करता है, मुझे अनाम वेदना छलनी कर जाती है, मैं तो उस से नफरत भी नहीं कर पा रही हूं, वह मेरे रोमरोम में बस रहा है.’ पूर्णिमा बोली, ‘कृतिका जरूरी तो नहीं जिस से हम प्रेम करें उसे अपने गले का हार बना कर रखें, वह हर पल हमारे साथ रहे, प्रेम का अर्थ केवल साथ रहना तो नहीं. तुझे जीना होगा यदि शेखर के बिना नहीं जी सकती तो उस की वेदना को अपनी जिंदगी बना ले, उस की पीड़ा के दुशाले से अपने मन को ढक ले, शेखर खुद ब खुद तुझ में बस जाएगा. तुझ से उसे प्रेम करने का अधिकार कोई नहीं छीन सकता.

कृतिका को अपने प्रेम को जीने का नया मार्ग मिल गया था, शेखर उस की आत्मा बन चुका था, शेखर की पीड़ा कृतिका को दर्द देती थी, लेकिन कृतिका जीती गई, सब के लिए परिवार की खुशी के लिए माधव से कृतिका का विवाह हो गया. माधव एक अच्छे जीवनसाथी की तरह उस के साथ चलता रहा, कृतिका भी अपने सारे दायित्वों को निभाती चली गई, लेकिन उस की आत्मा में बसी वेदना उस के जीवन को धीरेधीरे खा रही थी और वही पीड़ा उसे आज मृत्यु शैय्या तक ले आई थी, उसे ब्रेन हैमरेज हो गया था.

रात हो चली थी. नर्स ने आईसीयू के तेज प्रकाश को मद्धम कर दिया और कृतिका की आंखों में नाचता अतीत फिर वर्तमान के दुशाले में दुबक गया. पूर्णिमा ने माधव से कहा कि कृतिका को आप उस के घर ले चलिए मैं भी चलूंगी, मैं थोड़ी देर में आती हूं. पूर्णिमा ने घर आ कर तमाम किताबों, डायरियों की खोजबीन कर शेखर का फोन नंबर ढूंढ़ा और फोन लगाया, सामने से एक भारी सी आवाज आई, ‘‘हैलो, कौन ’’

‘‘हैलो, शेखर ’’

‘‘जी, मैं शेखर बोल रहा हूं.’’

‘‘शेखर, मैं पूर्णिमा, कृतिका की दोस्त.’’

कुछ देर चुप्पी छाई रही, शेखर की आंखों में कृतिका तैर गई. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘पूर्णिमा… कृतिका… कृतिका कैसी है ’’ पूर्णिमा रो पड़ी, ‘‘मर रही है, उस की सांसें उसी शेखर के लिए अटकी हैं जिस ने उसे जीना सिखाया था, क्या तुम उस के घर आ सकोगे कल ’’ शेखर सोफे पर बेसुध सा गिर पड़ा मुंह से बस यही कह सका, ‘‘हां.’’ कृतिका को ऐंबुलैंस से घर ले आया गया. घर के सामने लोगों की भीड़ जमा हो गई, सब की आंखों में उस माटी में खेलने वाली वह गुडि़या उतर आई, दरवाजे के पीछे छिप जाने वाली मासूम कृति आज अपनी वेदनाओं को साकार कर इस मिट्टी में छिपने आई थी.

दरवाजे पर लगी कृतिका की आंखों से अश्रुधार बह निकली, शेखर ने देहरी पर पांव रख दिया था, कृतिका की पुतलियों में जैसे ही शेखर का प्रतिबिंब उभरा उस की अंतिम सांसों के पुष्प शेखर के कदमों में बिखर गए और शेखर की आंखों से बहती गंगा ने प्रेम तर्पण कर कृतिका को मुक्त कर दिया.

सर्दियों में ऐसा हो आपका मेकअप

सर्दियों का मौसम शुरू होते ही हमें अपनी स्किन की चिंता सताने लगती है. क्योंकि सर्दियों में हमारी त्वचा रूखी व बैजान होने लगती है. और सोने पर सुहागा  होती  है यह बात कि यही सीजन होता है त्योहारों और शादियों का. ऐसे में हमारी थोड़ी सी भी लापरवाही हमें दूसरों के सामने शर्मिंदा कर सकती है. तो जरूरी है की आप अपना मेकअप भी मौसम के अनुसार ही करें. जिससे की आपकी त्वचा खराब न हो. अगर आपको शादी में जाना है और आप हैवी मेकअप करना चाहती हैं तो और ध्यान की जरूरत हो जाती है क्योंकि त्वचा की ऊपरी परत के नीचे स्थित तैलीय ग्लैंड्स सर्दियों के मौसम में इनएक्टिव हो जाते हैं. ऐसे में ठंड और सर्द हवाएं त्वचा को रूखा बनाती हैं. इसलिए आपके मेकअप में भी बदलाव की जरूरत होती है. तो जानते हैं कैसा हो सर्दियों में आपका मेकअप –

क्लीनिंग -मेकअप करने से पहले अपने फेस को पूरी तरह क्लींजिंग मिल्क से साफ कर लें .इससे आपकी त्वचा अच्छे  से मौश्चराइज  हो जाएगी और रूखी भी नजर नहीं आएगी.

सनस्क्रीन – सर्दियों में भी एसपीएफ युक्त सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना नहीं भूलें.अगर आप ज्यादा एसपीएफ के होने से त्वचा को नुकसान पहुंचने के डर से सनस्क्रीन नहीं लगाती हैं, तो आप बच्चों की सनस्क्रीन भी लगा सकती हैं, इससे आपकी त्वचा सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सुरक्षित रहने के साथ ही मुलायम भी रहेगी.

फाउंडेशन – अपनी स्किन टोन से मिलता हुआ फाउंडेशन लगाए सर्दियों में त्वचा ड्राई होती है इसलिये   ठंड के मौसम में हमेशा क्रीम बेस फाउंडेशन का ही इस्तेमाल करें. बेस और कौम्पेक्ट पाउडर को अच्छी तरह से स्किन में ब्लेंड करें. लाइट, मैट व शाइनी फाउंडेशन के अलावा हल्की शिमर वाली टिंटेड पाउडर सर्दियों में अच्छा लुक देता है.

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आंखों का मेकअप – सर्दियों के मौसम में घेरे रंग बहुत फबते है इन दिनों में स्मोकी आंखों का चलन जोरू पर है.  पर्पल हर टाइप की स्किन पर फबता है इसलिये इसका इस्तेमाल किया जा सकता है आंखों को डार्कर लुक देने के लिए काले रंग का आईलाइनर लगाएं.  अपने आउटफिट से मेल खाते हुए अलग-अलग रंगों को मिला सकती हैं.

आईशैडो में गोल्डन, चौकलेट ब्राउन, ब्रोंज, गाढ़ा लाल, मैरून, पीला, बेरी, ग्रे स्मोकी लुक देने के लिए बेहतर होता है.

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होठों का रखें मुलायम–  इस मौसम में हमेशा लिपस्टिक लगाने से 10-15 मिनट पहले होठों पर लिप बाम जरूर लगाएं. इससे आपके होठों में नमी बनी रहेगी. आजकल सभी को लाल, भूरा, ब्राइट पिंक, बेरी, प्लम कलर लिपस्टिक के ये  शेड्स खूब भा रहे हैं. लाल लिपस्टिक का इस्तेमाल करते वक्त आंखों का मेकअप हल्का ही रखें. ब्राउन आईलाइनर, लाइट ब्राउन शैडो और ब्लैक मस्कारा का कौम्बिनेशन लाल लिपस्टिक के साथ सभी पर अच्छा लगेगा. गोरी त्वचा पर शीयर शेड्स और सांवली पर बोल्ड लिपस्टिक  शेड्स खूब फबते हैं.

नाखून – नाखूनों पर पिंक, डार्क औरेंज, ब्लैकबेरी, कौपर व रस्ट कलर का नेल पौलिश लगाएं.

वो लौट कर आएगा : भाग 3

शरद रोज सुबह नौ बजे अपने औफिस के लिए निकल जाता था और शाम को छह बजे वापस लौटता था. वापसी में वह कभी गर्मागरम समोसे तो कभी ताजी बनी जलेबी सबके लिए लेता आता था. एक बार विजय सिंह ने उसको टोका भी कि ‘ये क्या फिजूलखर्ची करते हो…?’

वो कहने लगा, ‘बाबूजी, अपना तो कोई है नहीं… आप लोगों से जो स्नेह मिला है इसी से कुछ लाने की हिम्मत हो जाती है… अगर आपको बुरा लगता है, तो कल से….’ वह कहते-कहते उदास सा हो गया.

‘अरे, अरे… मेरा यह मतलब नहीं था बेटा… तुम तो गलत समझ बैठे….’ विजय सिंह ने जल्दी से कहते हुए समोसे का पैकेट उसके हाथों से ले लिया और नीलू को खाली प्लेट लाने के लिए आवाज लगायी.

नीलू किचेन से प्लेट के साथ-साथ चाय की ट्रे भी ले आयी. उसने आंगन में बिछी टेबल पर चाय रख दी और अपने पापा के हाथ से पैकेट लेकर समोसे प्लेट में निकालने लगी.

विजय सिंह और शरद टेबल के साथ पड़ी कुर्सियों पर बैठ गये. सर्दियों की शुरुआत थी. हवा में हल्की-हल्की ठंडक महसूस होने लगी थी. ऐसे में शाम के वक्त खुले आंगन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ गर्मागर्म समोसों का लुत्फ लेने के लिए नीलू और उसकी मां भी अपने-अपने चाय के प्याले हाथ में लेकर आ गयीं. शरद काफी देर तक सबके साथ बैठा बतियाता रहा.

‘और बताओ बेटा… औफिस में मन रम गया तुम्हारा…? काम कैसा चल रहा है…?’ चाय पीते हुए विजय सिंह ने शरद से पूछा था.

‘ठीक चल रहा है बाबूजी… सारा दिन लोगों से मिलते-जुलते ही बीत जाता है… लाइफ इन्शोरेंस के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है…. कुछ लोग तो समझने को ही तैयार नहीं होते हैं कि इन्शोरेंस का फायदा जीवन भर तो होता ही है, मरने के बाद परिवार को भी दरकने से बचा लेता है… लोगों को समझा पाना बड़ा मुश्किल काम है बाबूजी… उनको लगता है कि लाइफ इंशोरेंस से उनको क्या फायदा…. उनके मरने के बाद उनके परिवार वाले ही मौज में रहेंगे, जीते जी उन्हें तो बस पैसा ही भरते रहना है…’ कह कर शरद हंसने लगा.

‘हा..हा..हा, ये बात तो है बेटा…’ विजय सिंह भी शरद की बातें सुनकर हंसने लगे. कुछ देर की खामोशी के बाद विजय सिंह अचानक बोले, ‘तुमने तो डबल एमए किया है न बेटा….?’

‘हां बाबूजी… पहले इतिहास विषय लेकर और फिर अंग्रेजी विषय से…’ शरद ने बताया.

‘फिर तो तुम्हारी अंग्रेजी काफी अच्छी होगी…?’ विजय सिंह ने उत्सुकता से पूछा.

‘हां बाबूजी… ठीक-ठाक ही है… बाबूजी, आप तो जानते ही हैं कि प्राइवेट कम्पनियों में सारे काम अंग्रेजी में ही होते हैं… अंग्रेजी बोलने-पढ़ने वालों की यहां ज्यादा पूछ है… निवेशकों से डील करना….क्लाइंट्स से बात करना… उनको तरह-तरह की स्कीमें समझाना… बिना अंग्रेजी के तो कुछ हो ही नहीं पाता…. मगर आप क्यों पूछ रहे हैं?’ शरद ने उनकी उत्सुकता का कारण जानना चाहा.

विजय सिंह सोच की मुद्रा में थे. शायद कुछ पूछना चाहते थे मगर झिझक रहे थे. उनको चुप देखकर शरद फिर पूछ बैठा.

‘क्या बात है बाबूजी… आप बिना संकोच के कहिए…’

‘सोच रहा था… तुमसे कैसे कहूं….’ विजय सिंह कहते-कहते हिचकिचाए.

‘कैसी बात कर रहे हैं बाबूजी… कहिए न क्या बात है?’

‘अगर तुम घंटा-पौना घंटा नीलू को अंग्रेजी में मदद कर सको तो…. तुम तो जानते ही हो इसकी परीक्षा में बस चार महीने बचे हैं… यह बड़ी परेशान रहती है…. और ये भाषा मेरे बस की तो है नहीं….’

‘आप भी पिताजी… मैं पढ़ लूंगी न… आप इन्हें क्यों परेशान कर रहे हैं….?’ नीलमणि पिता की बात सुनकर बीच में बोल पड़ी. शरद से अंग्रेजी पढ़ने की बात सुनकर वह अचकचा गयी थी.

‘क्यों मुझसे पढ़ते हुए डर लगेगा क्या….’ शरद ने उसकी ओर पलट कर हंसते हुए पूछा.

‘मैं क्यों डरने लगी आपसे…?’ वह छूटते ही बोली.

‘भई सोच लो… थोड़ा सख्त मास्टर हूं… पढ़ा तो दूंगा मगर सबक ठीक से याद नहीं किया तो पीट भी दूंगा… वह भी डंडे से…’ शरद हंसते हुए बोला, ‘मां जी, इसके लिए तेल चुपड़ कर एक डंडा तैयार कर दीजिए… कल से ही क्लास शुरू करता हूं…’ शरद की बातें सुनकर सभी जोर-जोर से हंसने लगे और नीलू शरमा कर अपने कमरे में भाग गयी.

दूसरे ही दिन से नीलमणि शरद से पढ़ने लगी. शरद लिटरेचर बहुत अच्छी तरह समझाता था. न जाने कितनी अंग्रेजी की कविताएं शरद को कठंस्थ थीं. अंग्रेजी साहित्यकारों के उम्दा-उम्दा कोट उसे रटे हुए थे. चार महीने की मेहनत ने नीलमणि का अंग्रेजी के प्रति सारा डर समाप्त कर दिया. परीक्षा का रिजल्ट आया तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ. नीलू को अंग्रेजी में नब्बे प्रतिशत अंक प्राप्त हुए थे. खुशी के मारे उसके तो पैर ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. शाम को विजय सिंह घर लौटे तो नीलू ने लपक कर उनका मुंह मोतीचूर के लड्डू से भर दिया और खुशी के मारे उनके सीने से चिपक गयी.

‘सब शरद बाबू की मेहनत है… आ जाएं तो उनको मिठाई खिलाना…’ विजय सिंह बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले.

‘जी, पिता जी…’ कहती हुई नीलू यह सोच कर किचेन में चाय बनाने की लिए भाग गयी कि शरद भी बस आता ही होगा.

हंसी-मजाक, छेड़छाड़ के बीच ग्रेजुएशन के आखिर वर्ष में भी नीलमणि शरद से अंग्रेजी पढ़ती रही. शरद नीचे उसके कमरे में ही उसे पढ़ाया करता था. बीच-बीच में कभी चाय तो कभी किसी और चीज के बहाने उसकी मां चक्कर लगा जाती थी. विजय सिंह भी काफी देर तक आंगन में ही कुर्सी डाले बैठे रहते थे, मगर धीरे-धीरे उनकी तरफ से ध्यान हटा कर दोनों अपने-अपने कामों में बिजी हो गये. शरद पर उन्हें भरोसा था. ऑफिस से लौट कर शरद नीचे ही बाथरूम में हाथ-मुंह धोकर विजय सिंह के साथ चाय पीता था और फिर नीलू को पढ़ाने बैठ जाता था. वह नौ बजे तक पढ़ाता रहता था. फिर खाने के लिए  होटल निकल जाता और चहल-कदमी के बाद करीब दस-साढ़े दस तक लौट कर अपने कमरे में चला जाता था.

साल निकल गया. नीलमणि ने ग्रेजुएशन भी फर्स्ट डिविजन में किया. यह सब शरद की कोचिंग का नतीजा था कि नीलू अंग्रेजी में इतनी बेहतर हो गयी थी. अब वह एमए भी अंग्रेजी विषय लेकर ही करना चाहती थी. समय बीतता गया. पढ़ते पढ़ाते नीलू और शरद एक दूसरे के करीब आ गये. दोनों को पता ही न चला कि कब वे एक-दूसरे को अपना दिल दे बैठे. शरद अक्सर उसे पढ़ाते-पढ़ाते उसकी नीली-नीली आंखों में खो जाता था. बोलते-बोलते उसके शब्द गुम हो जाते और नीलमणि उसके इस पागलपन पर खिलखिला कर हंस पड़ती थी.

‘अरे, इस तरह क्या देखते हो मुझे…? क्या कभी कोई लड़की नही देखी…?’ वह धीरे से पूछती.

‘देखी तो है… पर इतने करीब से कभी नहीं देखी….’

‘अच्छा-अच्छा लेक्चरर साहब… आगे पढ़ाइये…’ नीलू ने हौले से उसकी नाक पकड़कर हिला दी.

‘नीलू… तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हैं… बिल्कुल गहरे समन्दर की तरह…’ वो अब भी उसकी आंखों में डूबा हुआ था… ‘ये इतनी गहरी क्यों हैं नीलू…?’ वो धीरे से फुसफुसायाय.

‘ताकि तुम डूब मरो इनमें… समझे… बुद्धूराम… अब पढ़ाते हो या मैं बंद करूं किताब…?’ नीलू ने किताब समेटनी चाही.

‘अरे, अरे बाबा… पढ़ा तो रहा हूं…’ उसने किताब खोलकर सामने कर ली और पढ़ाने लगा.

कैसे जीते पार्टनर का दिल

किसी भी रिश्ते की डोर विश्वास के धागों पर टिकी होती हैं. अगर किसी भी रिश्ते में जाने-अंजाने भरोसा टूट जाएं तो उस भरोसे को दुबारा वापस पाना बहुत कठिन है. रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए उसमें भरोसे की सबसे ज्यादा जरूरत है.

अगर आपने अपने साथी का भरोसा तोड़ा है तो उसे वापस पाने के लिए बहुत सी बातों को ध्यान रखने की जरूरत होती है. ऐसे में आप अपने साथी से बात करें और उन्हें विश्वास दिलाएं तो यह भरोसा दोबारा जीता जा सकता है. पर इसके लिए आप दोनों को बराबर कोशिश करने की जरूरत है.

खुद को माफ करें– अपने पार्टनर से मांफी मांगने से पहले आपको खुद को माफ करने की जरूरत है क्योंकि जब तक आप अपनी गलती को मांफ नहीं करेंगे तब तक कोई भी उसे माफ नहीं कर पाएगा. किसी भी रिश्ते में विश्वास लाने से पहले आपको खुद पर विश्वास करने की ज्यादा जरूरत होती है. अपनी गलती को माने और कोशिश करें कि आगे भविष्य में इस गलती को ना दोहराएं और अपने साथी को भी दुख ना दें.

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अपनी भावनाओं को व्यक्त करें – सबसे पहले आपको अपने साथी के सामने इस बात को मान लेनी चाहिए कि आपने उसके विश्वास तोड़कर गलती की है ताकि उसे इस बात का एहसास हो कि आपको अपनी गलती का पछतावा है. फिर इसके बाद अपनी भावनाओं को जाहिर करें. ये सारी बातें आपके पार्टनर को प्रभावित कर सकती है और आप वापस उनका विश्वास हासिल कर सकते हैं.

अपनी जिंदगी से जुड़ें हर बात को शेयर करें – अगर आप अपने पार्टनर का भरोसा दोबारा जितना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अपने जिंदगी से जुड़े हर बात के बारे में अपने साथी को बताना चाहिए ताकि उसे आपके ऊपर किसी प्रकार का संदेह ना रहें. अपने बीच कोई प्राइवेसी ना रखें. इससे आपका साथी शायद इस बात को समझ पाएगा की आप आगे भविष्य में उसके साथ कुछ गलत नहीं करेंगे और ना ही धोखा देंगे.

मांफी मांगें- आपको अपने रिश्ते में विश्वास वापस लाने के लिए अपने पार्टनर से मांफी मांगने की जरूरत होती है. अपने साथी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि जो भी गलती आपसे हुई. वैसे आगे भविष्य में नहीं होगी.

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हल्के में न लें सिरदर्द

अक्सर सिरदर्द होने पर हम कौम्बीफ्लेम, डिस्प्रिन जैसी दर्दनिवारक गोलियां खा लेते हैं, इस बात पर गौर किये बगैर कि सिरदर्द केवल एक लक्षण है. सिरदर्द के अनेक कारण हो सकते हैं. साधारण चिंता से लेकर ब्रेन ट्यूमर जैसे जानलेवा रोग का लक्षण सिरदर्द हो सकता है. हम आपको डरा नहीं रहे हैं, लेकिन जब सिरदर्द लगातार बना रहे, या कुछ समयान्तरालों पर होता हो और दर्दनिवारक गोली खाने के बाद भी आराम न पड़े तो डॉक्टर से सम्पर्क करना जरूरी है.

इंग्लैंड के गेट्सहेड में 21 साल की जेसिका केन को अचानक सिरदर्द हुआ है, वह पेनकिलर खाकर सोई और उसकी मौत हो गयी. दरअसल, जेसिका को मेनिंगोकॉकल मेनिनजाइटिस और सेप्टिकैमिया नाम की बीमारी हो गयी थी जिसने उसकी जान ले ली. इसके लक्षण के तौर पर उभरे सिरदर्द को न समझते हुए उन्होंने दर्दनिवारक गोली खा ली और सोचा कि थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा, लेकिन उनको ऐसा इंफेक्शन हो गया था जिसमें बैक्टीरिया खून में प्रवेश करता है और बड़ी तेजी से फैलने लगता है. यह बैक्टीरिया खून में टॉक्सिन्स रिलीज करने लगता है जो जानलेवा साबित हो सकता है.

दिल्ली के अनुज रमाकांत को बचपन से सिरदर्द की शिकायत रहती थी. पहले माता-पिता ने सोचा कि स्कूल न जाने का बहाना बनाता है, उसे डांट-डपट कर स्कूल भेज दिया जाता था. लेकिन वहां भी वह टीचर से सिरदर्द की शिकायत करता था. टीचर की सलाह पर माता-पिता ने उसे आंख के डॉक्टर को दिखाया. अनुज को चश्मा लग गया मगर फिर भी सिरदर्द से मुक्ति नहीं मिली. दो साल के बाद पता चला कि उसे ब्रेन ट्यूमर है.

हम में से ज्यादातर लोग सिरदर्द, बहती नाक, छींक आना, हल्का बुखार जैसी दिक्कतों को बहुत हल्के में लेते हैं और उसके इलाज के बारे में भी नहीं सोचते. इन तकलीफों को मौसमी बीमारी समझ कर उनका घरेलू उपाय कर लेते हैं या पेनकिलर खा कर काम में लग जाते हैं, जबकि ये लक्षण किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या के कारण भी हो सकते हैं, जिस पर अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो यह जिन्दगी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. सिरदर्द भी ऐसा ही लक्षण है जिसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. सौ से भी अधिक कारण हैं जिनसे सिरदर्द पैदा होता है. अब सभी कारणों का उल्लेख तो सम्भव नहीं है, लेकिन मुख्य कारणों की चर्चा यहां जरूर करेंगे.

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सिरदर्द के सामान्य कारण

मसल्स में खिंचाव : आमतौर पर खोपड़ी की मसल्स में खिंचाव के कारण सिरदर्द होता है.

फिजिकल स्ट्रेस : लंबे वक्त तक शारीरिक मेहनत और डेस्क या कंप्यूटर के सामने बैठकर घंटों काम करने से भी सिरदर्द होता है.

इमोशनल स्ट्रेस : किसी बात को लेकर मूड खराब होने या देर तक सोचते रहने से भी सिरदर्द हो सकता है. प्रेम में विफलता, धोखा, तनाव सिरदर्द का कारण बनते हैं.

जेनेटिक वजहें : सिरदर्द के लिए जेनेटिक कारण भी 20 फीसदी तक जिम्मेदार होते हैं. अगर आपके खानदान में किसी को माइग्रेन की समस्या है तो आपको भी यह तकलीफ हो सकती है, जिसके कारण तेज सिरदर्द होता है.

नींद पूरी न होना : नींद पूरी न होने से पूरा नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है और दिमाग की मसल्स में खिंचाव होता है, जिससे सिरदर्द होता है.

गैस की अधिकता : वक्त पर खाना न खाने से कई बार शरीर में ग्लूकोज की कमी हो जाती है या उल्टा-सीधा भोजन करने से पेट में गैस बन जाती है, जिससे सिरदर्द हो सकता है.

स्मोकिंग और अल्कोहल : अल्कोहल के अधिक सेवन से भी सिरदर्द होता है. स्मोकिंग और अल्कोहल के सेवन से खून की नलियां और ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है, जिससे दिमाग तक खून ठीक से नहीं पहुंचता है और तेज सिरदर्द हो जाता है. अल्कोहल कम लें. साथ ही, डीहाइड्रेशन से बचने के लिए ड्रिंक करने के बाद खूब सारा पानी पीना चाहिए.

बीमारी : शरीर के दूसरे अंगों में बीमारियां जैसे कि आंख, कान, नाक और गले की दिक्कत से भी सिरदर्द होता है.

एनवायनरमेंटल फैक्टर : ये फैक्टर भी तेज सिरदर्द के लिए जिम्मेदार होते हैं, जैसे गाड़ी के इंजन से निकलने वाली कार्बनमोनोआॅक्साइड सिरदर्द की वजह बन सकती है.

सिरदर्द के गम्भीर कारण

ब्लड क्लौट

कई बार ब्रेन में अगर किसी तरह का ब्लड क्लॉट बन जाए तो उस वजह से भी हेडएक यानी सिरदर्द होने लगता है. अगर आपको कभी-कभार बहुत गंभीर सिरदर्द होने लगता है और दर्द बर्दाश्त के बाहर हो जाए तो आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. अगर समय रहते इलाज न हो तो ये ब्लड क्लॉट स्ट्रोक में परिवर्तित हो सकते हैं जो जानलेवा भी साबित हो सकता है.

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औप्टिक न्यूराइटिस

अगर आंखों के पीछे वाले सिर के हिस्से में दर्द हो रहा तो यह ऑप्टिक न्यूराइटिस का लक्षण हो सकता है. इसमें ब्रेन से आंखों तक जानकारी पहुंचाने वाली नसों को नुकसान पहुंचता है जिसकी वजह से देखने में दिक्कत होती है और कई बार विजिन लॉस भी हो सकता है.

माइग्रेन या ट्यूमर

लंबे समय तक सिरदर्द की समस्या है तो विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें. यह माइग्रेन, ट्यूमर या नर्वस सिस्टम से जुड़ी दूसरी बीमारी भी हो सकती है. कभी-कभी ज्यादा दिनों तक सिरदर्द से संवेदी अंगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे इनकी कार्यक्षमता भी प्रभावित हो जाती है. सिरदर्द को लेकर भ्रम की स्थिति में कतई न रहें.

अन्य बीमारियां

लू लगना, हिस्टीरिया, मिरगी, तंत्रिका शूल, रजोधर्म, रजोनिवृत्ति, सिर की चोट तथा माइग्रेन सिरदर्द का कारण होते हैं. आंख तथा करोटि की मांसपेशियों के अत्यधिक तनाव से भी दर्द उत्पन्न होता है.

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ध्यान देनें की बातें

सिरदर्द खतरनाक हो सकते हैं. अगर कभी आपको ऐसा सिरदर्द हो, तो तुरंत ही किसी अच्छे डौक्टर को दिखाइए :

  1. यदि सिरदर्द इतना तेज हो जैसा पहले कभी भी न हुआ हो.
  2. पहली बार सिरदर्द हो और बहुत तीव्र हो.
  3. यदि सिरदर्द के पहले उल्टियां हुई हों.
  4. सिरदर्द के साथ बेहोशी-सी लगे, शरीर का संतुलन बिगड़ रहा हो, जीभ लटपटाए, आवाज लड़खड़ाए, आंखों के आगे बार-बार अंधेरा छाये.
  5. यदि सिर का दर्द झुकने, खांसने, वजन उठाने से बढ़ता हो.
  6. यदि सिरदर्द ऐसा हो कि आपकी नींद में व्यवधान डाले.
  7. यदि रातभर ठीक से सोएं लेकिन उठते ही तेज सिर दर्द होता हो.
  8. यदि आपकी उम्र 55 वर्ष से ऊपर हो और यह सिरदर्द इस उम्र में आकर पहली बार हुआ हो.
  9. यदि सिर दर्द के साथ कनपटी की नसों को छूने या दबाने पर उन नसों में भी दर्द होता हो. आमतौर पर कनपटी दबाने से सिरदर्द कम होता है.
  10. यदि सिरदर्द कुछ दिनों या सप्ताह से ही है और रोज-रोज बढ़ता ही जा रहा हो.

ये लक्षण दिखें तो सिरदर्द को साधारण न समझें. तुरंत डौक्टर को दिखाएं.

वेलेंसिया की भूल: भाग 1

भाग 1

बात 7 जून, 2019 की है. उस समय सुबह के यही कोई 4 बजे थे. सैलानियों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले गोवा राज्य के मडगांव की रहने वाली जूलिया फर्नांडीस अपने साथ 4-5 रिश्तेदारों को ले कर कुडतरी पुलिस थाने पहुंची. वह किसी अनहोनी की आशंका से घबराई हुई थी.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर ने जूलिया से थाने में आने की वजह पूछी तो उस ने अपना परिचय देने के बाद कहा कि उस की बहन वेलेंसिया फर्नांडीस कल से गायब है, उस का कहीं पता नहीं लग रहा है.

‘‘उस की उम्र क्या थी और कैसे गायब हुई?’’ ड्यूटी अफसर ने पूछा.

‘‘वेलेंसिया की उम्र यही कोई 30 साल थी. रोजाना की तरह वह कल सुबह 8 बजे अपनी ड्यूटी पर गई थी. वह मडगांव के एक जानेमाने मैडिकल स्टोर पर नौकरी करती थी. अपनी ड्यूटी पर जाते समय वेलेंसिया काफी खुश थी. क्योंकि आज से 10 दिनों बाद उस का जन्मदिन आने वाला था, उन का परिवार उस के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाता था.

‘‘घर से निकलते समय वह कह कर गई थी कि आज उसे घर लौटने में देर हो जाएगी. फिर भी वह 9 बजे तक घर पहुंच जाएगी. उस का कहना था कि ड्यूटी के बाद वह मौल जा कर जन्मदिन की पार्टी की कुछ शौपिंग करेगी.

‘‘मगर ऐसा नहीं हुआ. रात 9 बजे के बाद भी जब वेलेंसिया नहीं आई तो घर वालों की चिंता बढ़ गई. उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया तो उस का फोन नहीं मिला. इस के बाद सारे नातेरिश्तेदारों और उस की सभी सहेलियों को फोन कर के उस के बारे में पूछा गया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.’’ जूलिया फर्नांडीस ने बताया.

जूलिया फर्नांडीस और उन के साथ आए रिश्तेदारों की सारी बातें सुन कर ड्यूटी अफसर ने वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने वेलेंसिया का फोटो लेने के बाद आश्वासन दिया कि पुलिस वेलेंसिया को खोजने की पूरी कोशिश करेगी.

वेलेंसिया की गुमशुदगी की शिकायत को अभी 4 घंटे भी नहीं हुए थे कि वेलेंसिया के परिवार वालों को उस के बारे में जो खबर मिली, उसे सुन कर पूरा परिवार हिल गया.

दरअसल, सुबहसुबह वायना के कुडतरी पुलिस थाने से लगभग 7 किलोमीटर दूर रीवन गांव के जंगल में कुछ लोगों ने सफेद रंग की चादर में एक लाश देखी तो उन में से एक शख्स ने इस की जानकारी गोवा पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा यह सूचना शहर के सभी पुलिस थानों में प्रसारित कर दी.

जिस जंगल में लाश मिलने की सूचना मिली थी, वह इलाका मडगांव केपे पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, सूचना मिलते ही केपे थाने की पुलिस लगभग 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस को वहां काफी लोग खड़े मिले.

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इस बीच जंगल में लाश मिलने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंच गई थी. देखते ही देखते वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने मुआयना किया तो सफेद रंग की चादर में बंधे शव के थोड़े से पैर दिखाई दे रहे थे, जिस से लग रहा था कि शव किसी महिला का हो सकता है. जब पुलिस ने चादर खोली तो वास्तव में शव युवती का ही निकला.

मृतका के हाथपैर एक नायलौन की रस्सी से बंधे थे और गले में उस का दुपट्टा लिपटा हुआ था. लेकिन हत्यारे ने उस का चेहरा इतनी बुरी तरह से विकृत कर दिया था कि उसे पहचानना आसान नहीं था. हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि उस की शिनाख्त न हो सके.

फिर भी पुलिस को अपनी काररवाई तो करनी ही थी. सब से पहले मृतका की शिनाख्त जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. मृतका के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मामले की सूचना देने के बाद केपे पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया. खोजी कुत्ते से पुलिस को एक साक्ष्य मिल गया. शव सूंघने के बाद वह वहां से कुछ दूर झाडि़यों में पहुंच कर भौंकने लगा. पुलिस ने वहां खोजबीन की तो एक मोबाइल फोन मिला. जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

केपे थाना पुलिस घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि दक्षिणी गोवा के एसपी अरविंद गावस अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और केपे थाने के थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर लौट गए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए गोवा के जिला अस्पताल भेज दी.

थाने लौट कर थानाप्रभारी ने मृतका की शिनाख्त पर जोर दिया. क्योंकि बिना शिनाख्त के मामले की तफ्तीश आगे बढ़ना संभव नहीं थी. इस के लिए थानाप्रभारी ने गोवा शहर और जिलों के सभी पुलिस थानों में मृतका का फोटो भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

कुडतरी थाने में जब लाश की फोटो हुलिए के साथ पहुंची तो वहां के थानाप्रभारी को एक दिन पहले अपने थाने में दर्ज वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना याद आ गई. बरामद लाश का हुलिया वेलेंसिया के हुलिए से मिलताजुलता था. कुडतरी थानाप्रभारी ने उसी समय केपे के थानाप्रभारी को फोन कर इस बारे में बात की.

इस के बाद उन्होंने तुरंत वेलेंसिया के परिवार वालों को थाने बुला कर उन्हें लाश की शिनाख्त करने के लिए केपे थाने भेज दिया. केपे थानाप्रभारी ने जिला अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर युवती की लाश वेलेंसिया के घर वालों को दिखाई. चेहरे से तो नहीं, लेकिन कपड़ों और चप्पलों को देखते ही घर वाले फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाश की शिनाख्त वेलेंसिया फर्नांडीस के रूप में की.

थानाप्रभारी ने उन्हें सांत्वना दे कर शांत कराया. इस के बाद उन से पूछताछ की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उन्होंने केस की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर बंद हालत में मिले मोबाइल की सिम निकाल कर उन्होंने दूसरे फोन में डाली और मोबाइल की काल हिस्ट्री खंगालने लगे. इस जांच में एक नंबर संदिग्ध लगा.

वह नंबर शैलेश वलीप के नाम पर लिया गया था. शैलेश वलीप ने 7 जून, 2019 को ही वेलेंसिया से बातें की थीं. पुलिस टीम जब शैलेश वलीप के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर मिली उस की बहन भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकी. पुलिस ने जब उस की बहन से बात की तो वेलेंसिया और शैलेश वलीप के संबंधों की पुष्टि हो गई.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि वेलेंसिया की हत्या में जरूर शैलेश का हाथ रहा होगा. इसलिए उस की तलाश सरगरमी से शुरू हो गई. थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने शैलेश को गोवा के अमोल कैफे में दबोच लिया. पुलिस टीम ने जिस समय उसे गिरफ्तार किया, उस समय वह शराब के नशे में धुत था.

जब नशा उतर जाने के बाद थाने में उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश करते हुए वेलेंसिया हत्याकांड से खुद को अनभिज्ञ और बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए हत्याकांड में शामिल रहे अपने सहयोगी देवीदास गावकर का भी नाम बता दिया. शैलेश वलीप की निशानदेही पर पुलिस टीम ने देवीदास गांवकर को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद वेलेंसिया फर्नांडीस की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

30 वर्षीया वेलेंसिया फर्नांडीस दक्षिणी गोवा के मडगांव के थाना कुडतरी गांव मायना की रहने वाली थी. वह अपनी चारों बहनों में तीसरे नंबर की थी. उस के पिता जोसेफ फर्नांडीस एक सीधेसादे और सरल स्वभाव के थे. वह अपनी बेटियों में कोई भेदभाव नहीं रखते थे.

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वेलेंसिया फर्नांडीस की दोनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. वे अपने परिवार के साथ अपनी ससुराल में खुश थीं. वेलेंसिया अपनी छोटी बहन जूलिया फर्नांडीस के साथ रहती थी. उस की सारी जिम्मेदारी वेलेंसिया पर थी. वेलेंसिया ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब नौकरी की कोशिश की तो उसे बिना किसी परेशानी के गोवा मडगांव के एक जानेमाने बड़े मैडिकल शौप में सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई.

वेलेंसिया देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही वह महत्त्वाकांक्षी भी थी. जिस मैडिकल शौप में वह काम करती थी, वहां रीमा वलीप नाम की लड़की भी काम करती थी. वह वेलेंसिया की अच्छी दोस्त बन गई थी.

क्रमश:

—कथा के कुछ नाम काल्पनिक हैं

दुलहन वही जो पिया मन भाए : भाग 1

कैफेटेरिया में बैठा सत्यम अब उकताने लगा था. उस की चौथी कप कौफी चल रही थी. सुहानी का कोई अतापता नहीं था. सुहानी की याद आते ही उस के अधरों पर फिर से मुसकान तैरने लगी. उस के स्मरण मात्र से ही दिलदिमाग में शहनाइयां बजने लगती थीं. बमुश्किल 4 बार उस से अकेले में व एक बार घरवालों के साथ मिला है. पर यह पहली नजर का प्यार था. उस ने सुहानी को जब पहली दफा देखा था तभी उस के दिल से आवाज आने लगी थी, ‘हां, यही है, यही है, यही तो है…’

कोई 16 वर्ष की उम्र में वह पहली बार घर से बाहर होस्टल में रहने गया था, प्लस टु इंजीनियरिंग फिर एमबीए और अब नौकरी. मजाल है जो उस ने किसी भी सहपाठी या महिला सहकर्मी की तरफ आंख भी उठा कर देखा हो. बचपन से ही घर में मम्मीपापा ने कुछ ऐसी घुट्टी पिलाई थी कि वह ऐसा सोच भी नहीं सकता था कि वे घरवालों की पसंद की लड़की के सिवा किसी से शादी या दोस्ती भी कर ले.

वर्षों उस ने उम्र के नाजुक दौर से गुजरने के वक्त भी. अपने दिल की लगाम को कसे रखा. अपनी पसंद की पढ़ाई, कालेज और नौकरी करने के अधिकार को ही सहर्ष उस ने अपनी स्वतंत्रता का अधिकारक्षेत्र माना. अपने प्यार और शादी के अधिकार की लगाम सदा अपनी मां और परिवार वालों के ही अधिकार क्षेत्र का मामला सोच उन के ही हाथ में रहने दिया.

सत्यम की मां काफी पूजापाठ और धर्मकर्म करने वाली महिला थीं. बहुत जल्दी ही उन्हें पारिवारिक दायित्वों के भार से राहत मिल गईर् थी. सो, वे अपना अधिकांश वक्त साधुमहात्माओं की संगत और सत्संग में बिताती थीं. सत्यम के पिता एक बड़े व्यापारी थे. उन्हें अपने व्यापार से वक्त नहीं मिलता था. सो, उन्हें अपनी पत्नी का दिनरात साधुपंडितों और मंदिरों का चक्कर लगाना राहत ही देता. कम से कम उन से उन के वक्त के लिए गृहकलह तो नहीं करती थी. सो, सत्यम के पिता एक तरह से पत्नी की अंतरलिप्तता को प्रोत्साहन ही देते कि कहीं व्यस्त तो है.

सत्यम की मां धीरेधीरे पंडोंपुजारियों पर अपने घरवालों से अधिक विश्वास करने लगी थीं. वे लोग भी एक अच्छा आसामी समझ बरगलाए रखते थे. कभी शनि के वक्री होने पर दानपुण्य, तो कभी गुरु के किसी गलत घर में बैठ जाने पर महापाठ.

जाने क्यों सत्यम की मां को यह समझ ही नहीं आता कि जब वे हमेशा उन के ही कहे अनुसार चल रही हैं तो फिर ये गृहनक्षत्र उस से रूठते क्यों रहते हैं. उन्हें तो यह सोचना चाहिए कि जब वे इतना दान और चढ़ावा दे रही हैं तो फिर उन का अनिष्ट कैसे हो सकता है. परंतु वे ठीक इस के विपरीत समझ रखती थीं. उन्हें हमेशा यही लगता कि यदि वे ऐसे कर्मकांड नहीं करतीं तो कुछ और अवश्य बुरा घटित हो जाता. एक तरह से वे हमेशा सशंकित और डरीसहमी रहतीं कि कुछ अनहोनी न हो जाए. भक्ति से शक्ति के स्थान पर सत्यम की मां और असहाय, और शक्तिहीन होती जा रही थीं. अब वे पंडित और पुरोहित की सलाह के बिना एक कदम न उठाती थीं.

सत्यम को नौकरी करते लगभग 2 साल होने को आए थे. उस की मां और अन्य रिश्तेदार उस के लिए उपयुक्त वधू खोजने में लगे हुए थे. लड़कियां तो थीं पर कभी उस की मां को पसंद आती तो उस के पिता को उस लड़की के पिता का व्यवसाय पसंद नहीं आता. कभी दादी को लड़की की रंगत नहीं पसंद आती तो कभी सत्यम की बूआ लड़की के परिवार की कोई बुराई ऐसी खोज निकाल लातीं कि वहां रिश्ता करना मुश्किल लगता. यानी पूरा परिवार लगा हुआ था सत्यम के लिए दुलहन खोजने में.

दरअसल, सत्यम को कैसी बीवी चाहिए, यह कोई पूछना भी नहीं चाहता था. एकमत होने में उन्हें 2 वर्ष लग ही गए. तब उन्हें सुहानी पसंद आई. सुहानी, उस के मातापिता, घरपरिवार, पढ़ाई, औकात इत्यादि से संतुष्ट हो कर उन्होंने सत्यम को बताया.

सत्यम, जिस ने जीवन में पहली बार किसी लड़की को ऐसी नजर से देखा हो उसे तो पसंद आनी ही थी. कहना न होगा कि पहली ही नजर में वह दिल हार गया सुहानी के हाथों. अलबत्ता, सत्यम की मां ने अवश्य कहा, ‘कृपया सुहानी की कुंडली हमें दे दें ताकि हम अपने पुरोहित से सलाह कर शादी का दिन निकलवा सकें.’

‘परंतु हम तो जन्मकुंडली इत्यादि में विश्वास ही नहीं करते. सो, हमारे पास सुहानी की कोई कुंडली नहीं है,’ सुहानी के पापा ने कहा.

सत्यम की मम्मी कुछ परेशान सी होने लगीं. फिर वहीं से उन्होंने अपने पुरोहित को फोन लगाया. उन से बात की और फिर, ‘देखिए, ऐसा है यदि आप के पास कुंडली नहीं है तो कोई बात नहीं. आप मेरे पुरोहितजी से मिल लें. वे जन्मदिन और वक्त के हिसाब से सुहानी बिटिया की कुंडली बना देंगे,’ कह कर सत्यम की मां ने हल निकाला.

उस दिन के बाद से घरवालों की रजामंदी से सत्यम और सुहान मिलने लगे. सत्यम को सुहानी का सुहाना सा व्यक्तित्व, सोच और जीवन के प्रति सकारात्मक विचार काफी आकर्षक लगे. सुहानी को भी सत्यम की पढ़ाई, नौकरी और सीधापन भा गया. कुछ ही दिनों में दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए और इंतजार करने लगे कि कब शादी होगी.

सुहानी तो कैफेटेरिया नहीं आई, पर सत्यम की मम्मी के फोन आने लगे.

‘‘बेटा, जल्दी घर आ जाओ, कुछ जरूरी बात बतानी है.’’

‘‘क्या हुआ मां, मैं ने तो बताया ही था कि मैं सुहानी से मिलने जा रहा हूं,’’ घर पहुंचते ही सत्यम ने कहा.

‘‘कोई जरूरत नहीं है अब उस लड़की से मिलने की,’’ मां ने लगभग चीखते हुए कहा.

‘‘क्यों, अब क्या हो गया? आप सब को तो वह पसंद है और अब मुझे भी,’’ सत्यम ने खीझते हुए कहा.

‘‘नहीं, पंडितजी ने बताया है कि सुहानी घोर मांगलिक है और उस से शादी करने वाले की शीघ्र मौत निश्चित है. मुझे अपने बेटे के लिए कोई अनिष्टकारी नहीं चाहिए,’’ मां ने कहा.

‘‘वैज्ञानिक मंगल की यात्रा कर चुके हैं और आप अभी तक उस से डरती ही हैं,’’ सत्यम ने मां को समझाना चाहा.

मां से बहस करना व्यर्थ लगा. सो, सत्यम अपने कमरे में चला गया. शाम तक घर के सभी सदस्य उस की मां की बातों से सहमत दिखे. सत्यम ने अपनी तरफ से सभी को समझाने की बड़ी कोशिशें कीं, परंतु उस की मृत्युकारी कन्या से विवाह के सभी विरुद्ध ही रहे. वह बारबार सुहानी को फोन करता रहा, परंतु उस ने कौल रिसीव ही नहीं की.

दूसरे दिन शाम को सुहानी ने उसे फोन किया.

‘‘क्या हुआ सत्यम, क्यों लगातार फोन कर रहे हो?’’

‘‘मैं कल कैफेटेरिया में देर तक तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा. तुम आई भी नहीं और मेरा फोन भी नहीं उठाया,’’ सत्यम ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘अब इतने भोले भी न बनो जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं. तुम्हारे घरवालों ने तो परसों ही सूचना दे दी थी कि मांगलिक होने की वजह से यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ सुहानी ने गुस्से से कहा.

‘‘और उस ढोंगी बाबा की भी कहानी सुनो, जिस की भक्त तुम्हारी मां हैं. जब मेरे पापा उस बाबा से मिले तो उस ने कहा कि मनलायक कुंडली बनाने हेतु उसे 50 हजार रुपए चाहिए. मेरे पिताजी इन बातों पर विश्वास तो करते नहीं हैं. सो, उन्होंने इनकार कर दिया. गुस्से में उस ढोंगी ने तभी धमकी दे दी कि तब तो आप की बेटी की शादी मैं उस परिवार में होने नहीं दूंगा. लड़के की मां उस की मुट्ठी में है, कुछ ऐसा भी उस ने कहा. तुम्हारे घरवालों ने मेरे पापा की बात से अधिक उस तथाकथित बाबा की बातों को माना,’’ हांफती हुई सुहानी गुस्से में बोल रही थी.

‘‘हां, तुम्हें एक अच्छी खबर दे दूं कि आज मेरी सगाई हो गई और अगले महीने शादी है. अब मुझे कभी फोन नहीं करना,’’ कहते हुए सुहानी ने फोन काट दिया.

अयोध्या में सरकारी दीपोत्सव : जनता के करोड़ों रुपए स्वाहा

उत्तर प्रदेश की जनता ने जिस भारतीय जनता पार्टी को अपनी बेरोजगारी, बीमारी, कुपोषण और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बहुमत से सरकार बनाने का मौका दिया, उसी की सरकार ने करोड़ों रुपए अयोध्या में दीपोत्सव मनाने में खर्च कर दिए. यह रकम सरकारी खजाने की थी. सरकारी खजाना जनता के कर योगदान से भरा जाता है. प्रदेश सरकार ने अयोध्या में 6 लाख दीए जला कर दीवाली मनाई.

6 लाख दीयों में करीब 6 हजार लिटर सरसों का तेल प्रयोग हुआ. जिस की कीमत 100 रुपए प्रति लिटर के हिसाब से 6 लाख रुपए बैठती है. सरसों के तेल का प्रयोग खाने में किया जाता है. सवाल उठता है कि क्या सरकार को खाने के तेल को जलाने का हक है? अगर सरकार खुद ऐसे आयोजन में फुजूलखर्ची कर रही है तो जनता को कैसे रोका जा सकता है. भाजपा समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल के दौरान सैफई महोत्सव में होते खर्चों पर सवाल उठाती रही है. जब खुद सत्ता में आई तो राम के नाम पर राजनीति करने के लिए अयोध्या में सरकारी खर्च पर दीपोत्सव मनाने लगी.

राम की राजनीति करने वाली भाजपा अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से पहले वहां भव्य कार्यक्रम का आयोजन करना चाहती थी. इस के लिए सरकार ने दीपोत्सव का बजट बढ़ा दिया.

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एक दिन के दीपोत्सव को 3 दिन का कार्यक्रम बना दिया गया. कार्यक्रम को दुनिया के सामने लाने व विश्व रिकौर्ड बनाने के लिए 6 लाख दीये जलाने का काम किया गया.

एक पुरानी कहावत है, ‘9 की लकड़ी 90 खर्च.’ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है. अयोध्या में राम की पैड़ी पर दीपोत्सव मनाने के लिए प्रदेश सरकार ने 5 लाख

50 हजार से अधिक के मिट्टी के दीये जलाने का लक्ष्य रखा था. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार ने दीपोत्सव के बजट को बढ़ा दिया था. ऐसे में सरकार ही नहीं, दूसरे तमाम संस्थान भी दीपोत्सव को सफल बनाने के लिए कमर कस कर खड़े हो गए. अयोध्या के मंदिरों में भी ज्यादा से ज्यादा दीये जलाने का काम किया गया. दीये जलाने के साथ ही तमाम तरह के भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किए गए.

फलस्वरूप, 6 लाख से अधिक दीये रोशन हो गए. पिछले साल दीपोत्सव के बाद अगली सुबह दीये पूरे अयोध्या में बिखरे पड़े थे. इस बार सरकार और अयोध्या नगर निगम ने कार्यक्रम खत्म होने के बाद ही कार्यक्रम स्थल से दीयों को समेटना शुरू कर दिया. इन दीयों को आधी रात के बाद सरयू नदी में प्रवाहित कर दिया गया. इस से अगली सुबह अयोध्या में राम की पैड़ी में दीये बिखरे नहीं दिखे. सरयू नदी में ये दीए वर्षों तक पानी रोकते रहेंगे, प्रदूषण फैलाएंगे, उस की चिंता योगी, मोदी को कहां. पिछले साल दीपोत्सव के बाद अयोध्या में बिखरे दीयों की वायरल हुई फोटो को ले कर सरकार की कड़ी आलोचना की गई थी.

दीपोत्सव को सफल बनाने के लिए प्रदेश सरकार के बड़े अफसर कई दिनों से तैयारी कर रहे थे. 3 दिनों तक चले दीपोत्सव के समापन वाले दिन दीये जगमगाए गए थे. दीवाली के दिन शाम को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्य अतिथि के रूप में फिजी गणराज्य की डिप्टी स्पीकर वीना भटनागर के साथ प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव मौर्य भी मौजूद थे.

दीपोत्सव को ऐतिहासिक बनाने के लिए गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स के लोगों ने अयोध्या में एक समय में सब से अधिक दीये जलाने का रिकौर्ड दर्ज किया. राम और सीता को हैलिकौप्टर से सरयू के तट पर उतारा गया और तब मुख्यमंत्री ने उन की आरती उतारी.

राम के नाम पर भव्य आयोजन जनता को लुभाने का काम करते हैं. भव्य आयोजन में कोई कमी न रह जाए, इसलिए बजट बढ़ा दिया गया. पुलिस, पीडब्लूडी, कौर्पोरेशन के खर्च भी जोड़ लें, तो खर्च कहीं ज्यादा होगा. बजट के बढ़ने से सरकारी विभागों और गैरसरकारी संस्थाओं की रुचि इस में बढ़ गई. जिस प्रदेश में जनता रोजगार, नौकरी के लिए दरदर भटक रही हो वहां दीये जलाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए फुजूल में खर्च कर रही है.

चर्चा में दीपोत्सव बजट

अयोध्या दीपोत्सव के बजट को ले कर असमंजस बना रहा. योगी सरकार ने अपने तीसरे अनुपूरक बजट में इस के लिए 6 करोड़ रुपए का बजट रखा था. इस के साथ ही साथ 100 करोड़ रुपए का बजट दूसरे धार्मिक स्थलों के लिए आवंटित किया गया. इस के बाद योगी सरकार ने अयोध्या के दीपोत्सव को राज्य उत्सव का दर्जा दे दिया. इस के बजट को बढ़ा कर 33 करोड़ रुपए कर दिया गया. अयोध्या दीपोत्सव के भारीभरकम खर्च को ले कर योगी सरकार की आलोचना शुरू हो गई. कुछ समाचारपत्रों में खर्च का आंकड़ा 133 करोड़ रुपए लिखा गया. फुजूलखर्ची की आलोचना से जागे योगी सरकार के अफसरों ने अपनी वैबसाइट पर इस खर्च को 1.33 करोड़ रुपए दिखाना शुरू कर दिया. सवाल उठता है कि 6 करोड़ और 33 करोड़ और 133 करोड़ रुपए के बाद अचानक यह खर्च घट कर 1.33 करोड़ रुपए कैसे हो गया?

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असल में योगी सरकार खुद इस खर्च के सही आंकड़े सामने नहीं रख रही है. बजट के बोझ को अलगअलग मदों में बांट दिया गया ताकि खर्च एक जगह कम दिखे. 6 लाख दीपक जलाने के लिए 133 करोड़ रुपए का खर्च भारीभरकम लग रहा था. एक दीपक जलाने में करीब 2,200 रुपए का खर्च दिख रहा था, जो हर तरह से आलोचना का विषय हो सकता था. सोशल मीडिया और वैबसाइट की खबरों में आलोचना शुरू हो गई. आलोचना से बचने के लिए आंकड़ों को कम दिखाने का काम किया गया. आंकड़ों की बाजीगरी कर के इस 133 करोड़ रुपए को 1.33 करोड़ रुपए कर दिया गया. ऐसा कैसे हो गया, यह शोध का विषय हो सकता है.

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