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नब्बे के दशक ‘आंखियों से गोली मारें’ को नए ट्विस्ट के साथ किया गया लौन्च

1978 की चर्चित बी आर चोपड़ा की फिल्म‘‘पति पत्नी और वह’’ का रीमेक जूनो चोपड़ा लेकर आ रही हैं, जिसमें कार्तिक आर्यन, भूमि पेडणेकर और अनन्या पांडे की अहम भूमिकाएं हैं. यह फिल्म इन दिनों काफी सूर्खियां बटोर रही है. फिल्म का ट्रेलर भी काफी पसंद किया गया. तो वहीं फिल्म का गीत ‘‘धीमे धीमे..’’ सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. नेटिजन्स पर ‘डांस लाइक चिंटू त्यागी’ के जरिए डांस चैलेंज कर रहे है. ‘‘धीमे धीमे‘‘ में अभिनेता के कदमों ने इंटरनेट को पागल बना दिया है और ऐसा लग रहा है कि यह तिकड़ी दर्शकों के लिए इस पार्टी सीजन में कुछ और नए सिग्नेचर स्टेप्स दिखाएगी.

मजेदार बात यह है कि इस फिल्म में फिल्मकार ने नब्बे के दशक के गीत ‘‘आंखियों से गोली मारे..’’ को एक नया ट्विस्ट के साथ रखा है, जो कि बाजार में आते ही लोकप्रिय हो गया. इस गीत को बुधवार को दिल्ली में कार्तिक आर्यन, भूमि पेडनेकर और अनन्या पांडे ने लांच किया. यह एक डांसिंग नंबर है, जिस पर फिल्म में कार्तिक अपनी पत्नी ’भूमि और ’वो’ अनन्या के साथ थिरकते हुए नजर आ रहे हैं. नृत्य निर्देशक फराह खान द्वारा निर्देशित यह गाना सदाबहार सुपरस्टार को आदर्श ट्रिब्यूट है. रीक्रिएटेड गाना एक पेप्पी डांस ट्रैक है, जिससे आज की युवा पीढ़ी रिलेट करती है. इस गीत को संगीतकार तनिष्क बागची के निर्देशन में मीका सिंह और तुलसी कुमार ने स्वरबद्ध किया है.

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‘‘टी-सीरीज’’के भूषण कुमार कहते हैं- ‘‘गीत ‘अंखियों से गोली मारे’ मेरा निजी पसंदीदा गाना है, चूंकि इसमें 90 के दशक का जादू आधुनिक ट्विस्ट के साथ है,  इसलिए यह गाना ढ़ेर सारी यादें वापस लेकर आता है. कार्तिक, अनन्या और भूमि ने इस गाने के साथ पूरा न्याय किया है. हमें उम्मीद है कि दर्शक आधुनिक संस्करण को भी पसंद करेंगे.”

रचनात्मक निर्माता जूनो चोपड़ा (बीआर स्टूडियोज) का कहना है- ‘‘कार्तिक,  अनन्या,  भूमि और फराह ने सेट पर पूरा आनंद लिया. हमें उम्मीद है कि जैसे हमारे पहले गीत को सभी का प्यार मिला है वैसे ही बहुत प्यार और प्रशंसा इस गीत को भी मिलेगा.”

नृत्य निर्देशक फराह खान कहती हैं- ‘‘अंखियों ऐ गोली मारे एक आइकौनिक सौन्ग है और मैं इसे करने के लिए सहमत हुई, क्योंकि जूनो एक प्रिय दोस्त हैं. आशा है कि यह नया फुट टैपिंग वर्जन दर्शकों को अपील करेगा जिस तरह से मूल गीत ने किया था. हमने इसे हटकर और दिलचस्प बनाने की कोशिश की है लेकिन सौन्ग असल मजा पहले जैसा ही है.’’

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जबकि अभिनेता कार्तिक आर्यन कहते हैं- “यह मेरा पसंदीदा गीत  है. मैं इसे सुनते व टीवी पर  देखते हुए बड़ा हुआ हूं. हम सभी उनकी डांस स्टाइल के फैन रहे हैं. मैं बहुत खुश हूं कि मुझे अपनी फिल्म में इस गीत पर नृत्य करने का मौका मिला. इसके अलावा, मैं हमेशा फराह मैम की धुनों पर डांस करना चाहता था और मुझे खुशी है कि यहां मेरी यह इच्छा भी पूरी हुई. उन्होंने हमें बहुत ही कूल और मजेदार मूव्स दिए हैं.’’

सर्दियों में रूखेपन को ऐसे कहें बाय बाय

कई बार रूखी त्वचा के वजह से चेहरे पर ड्राई पैचेस होने लगते हैं जो अलग से ही चेहरे पर दिखने लगते हैं. ड्राई स्किन की वजह से मेकअप भी जल्दी सेट नहीं होता और चेहरे की खूबसूरती भी ढल जाती है. रूखी त्वचा को ठीक करने के लिए महिलाएं तरह तरह के फेसमास्क का इस्तेमाल करती हैं, जिसका असर कुछ दिन तक ही रहता है. लेकिन कुछ ऐसे नेचुरल फेस मास्क है जिन्हें आप आसानी से घर पर बना सकती हैं. इन फेस मास्क की मदद से त्वचा में लंबे समय तक नमी बनी रहती है.

आइए जानते हैं त्वचा में नमी बनाने के लिए कुछ घरेलू उपाय-

एलोवेरा फेस मास्क

एलोवेरा में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं जो शरीर और त्वचा दोनों के लिए फायदेमंद माना जाता है. इसमें पाए जाने वाले एंटीऔक्सीडेंट से चेहरे की कई समस्याएं दूर हो जाती हैं. एलोवेरा के इस्तेमाल से चेहरे में नमी आती है और जरूरी पोषण भी मिलता है.

एलोवेरा का फेस मास्क बनाने के लिए एलोवेरा जेल निकाल लें. इसमें खीरा का जूस मिला लें. इस मास्क को आप फेस वश के बाद चेहरे पर लगाएं और कुछ देर के लिए छोड़ दें. इससे चेहरे का रूखापन तो दूर होगा ही साथ ही चेहरे पर ग्लो भी नजर आने लगेगा.

एवोकाडो फेस मास्क

फलों का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद होता है. फलों से सेहत तो अच्छी रहती ही है, चेहरे पर भी चमक बनी रहती है. एवोकाडो पोशक तत्वों से युक्त होता है जो त्वचा को स्वस्थ बनाने में फायदेमंद होता है. यह ड्राई और डैमेज स्किन को हटाकर त्वचा को कोमल बनाता है. एवोकाडो फेस मास्क बनाने के लिए 2 चम्मच मैश किए हुए एवोकाडो लें. उसमें एक चम्मच शहद और एक चम्मच गुलाबजल डाल कर अच्छे से मिला लें. चेहरा क्लीन करने के बाद इस मास्क को चेहरे पर लगाएं. 10 मिनट बाद इसे हल्के गुनगुने पानी से धो लें.

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स्ट्रौबेरी फेस मस्क

स्ट्रौबेरी से स्किन मुलायम ही नहीं बल्कि ग्लोविंग भी नजर आती है. इसमें मौजूद विटामिन सी त्वचा के रुखेपन को दूर करने में मद्द करती है. इसके इस्तेमाल से स्किन में जमे डेड सेल्स भी निकला जाते हैं. स्ट्रॉबेरी फेसमास्क के लिए 2-3 बड़े स्ट्रौबेरी को मैश करें फिर इसमें शहद और एक चम्मच ओटमिल यानी दलिया मिलाएं. इसका पेस्ट बना लें और 20 मिनट के लिए चेहरे पर लगा कर छोड़ दें. इसके बाद इसे ठंडे पानी से धो लें. इस मास्क को आप हफ्ते में 2 बार जरूर लगाएं.

पपीता फेस मास्क

पपीता सेहत और खूबसूरती दोनों के लिए ही बेहतरीन माना जाता है. पपीता में पोटेशियम होता है जो त्वचा को हाईड्रेट और खूबसूरत बना कर रखता है. यह त्वचा में मौजूद डेड सेल्स, दाग-धब्बे को साफ करने में भी मदद करता है.

पपीता फेस मास्क बनाने के लिए एक कप पके पपीता का पेस्ट बनाएं. इसमें एक चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस मिलाएं. अब इस फेस मास्क को त्वचा पर लगाएं और 10 मिनट बाद पानी से धो लें. आप इसे हर 2 दिन में इस्तेमाल कर सकती हैं.

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केला और चंदन फेस मास्क

बनाना फेस मास्क ड्राई स्किन को नमी पहुंचा कर उसे चमकदार बनाने में मदद करता है. इससे त्वचा का रूखापन तो खत्म होता ही है,  झुर्रियों जैसी समस्या भी खत्म होने लगती है. यह स्किन को टाइट रखने में भी मदद करता है.

बनाना फेस मास्क बनाने के लिए 1 पका हुआ केला लें. उसे अच्छे से मैश करें. अब उसमें एक चम्मच शहद, एक चम्मच जैतून का तेल और आधा चम्मच चंदन पाउडर मिला दें. अब इस मास्क को त्वचा पर लगाएं. जब यह अच्छे से सूख जाएं तब हल्के गुनगुने पानी से धो लें.

एक अच्छी रूम पार्टनर क्यों है जरूरी

अक्सर ऐसा होता है कि लड़कियां घर से बाहर रहती हैं जौब के लिए या पढ़ाई के लिए….कोई फ्लैट लेकर रहता है तो कोई हौस्टल में तो कोई पीजी में,जहां उन्हें कोई न कोई लड़की जरूर ऐसी मिलती है जो उनके साथ रूम को शेयर करती है. और ऐसा करना पड़ता है क्योंकि सभी जानते हैं कि बाहर अकेले रहना परिवार से दूर कितना मुश्किल है.शायद इसी कारण से ऐसी व्यवस्था ने जन्म लिया है….एक लड़की जब घर से दूर बाहर अकेले रहती है तो कुछ परेशानियां भी आती हैं लेकिन ऐसे में अगर कोई उसका साथ देने वाला हो तो उसे वो परेशानियां उठाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है.हां ये बात लाज़मी है कि हमेंशा कोई अच्छा रूम पार्टनर मिले ये जरूरी नहीं है लेकिन अब ये आपको तय करना होगा कि आप अपनी रूम पार्टनर से कितना अच्छा रिश्ता बना कर रखती हैं क्योंकि भले ही आपके उस शहर में कितने ही दोस्त बन जाए लेकिन जब आप रूम में होती हैं कभी बीमार पड़ती हैं…कभी किसी बात से आप परेशान होती हैं, कभी घर वालों की याद आती है तो ऐसे में उस वक्त आपके पास सिर्फ एक इंसान होता है जो आपको संभाल सकता है और आपका साथ दे सकता है. आप बीमार हैं तो आपका ध्यान भी रख सकता है..वो आपका रूम पार्टनर ही होता है.

अब आप खुद भी अगर उसके साथ वैसा ही व्यवहार रखेंगी तभी आपको भी उसकी तरफ से वैसा ही प्यार, सानिध्य, अपनापन और व्यवहार मिलेगा. क्योंकि वहां हमारा परिवार नहीं होता और ना ही उस वक्त तुरन्त कोई दोस्त आपकी मदद के लिए आ पाते हैं सिर्फ आपकी रूम पार्टनर ही होती है जो बाहर आपका सुख-दुख बांटती है और साथ ही आपकी मदद भी करती है.  इसलिए एक अच्छा रूम पार्टनर होना जिंदगी में बहुत ही जरूरी है.

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अगर आप कौलेज में हैं और कोई पढ़ाई में आपको मदद चाहिए तो ऐसे में आपकी रूम पार्टनर आपकी मदद कर सकती है. आप औफिस में जौब करती हैं तो आप कभी-कभी फ्रस्टेट हो जाती हैं… वर्क लोड से परेशान हो जाती हैं तो ऐसे में आप औफिस में तो फ्रस्टेशन उतारेंगी नहीं तो आप रूम आकर अपनी रूम पार्टनर से अपनी बातें शेयर कर सकती हैं. वो आपको सलाह भी देगी कि तुम्हें क्या करना चाहिए साथ ही आपका साथ भी देगी. लेकिन फिर वही बात कि आप अपना रिश्ता अपनी रूम पार्टनर से कितना अच्छा बना कर रखती हैं ये उसपर डिपेन्ड करता है. और कभी-कभी आप रूम में रहकर एक-दूसरे से अपनी गौसिप्स भी शेयर कर सकती हैं जैसा कि अमूमन हर लड़की की आदत होती है…इसमें तो कोई शक नहीं है.

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आपने क्या खाया क्या नहीं खाया इस बात का ध्यान भी रूम पार्टनर रखती हैं… रूम मेट होने के नाते कुछ टाइम बाद आप दोनों ही एक-दूसरे का खयाल रखने लगती हैं.ऐसा होना जरूरी भी है क्योंकि वहां पर आपका परिवार मौजूद नहीं होता जो हर वक्त आपके साथ हो. ये छोटी सी जिंदगी में मस्ती भरी कुछ यादें होती हैं…  जब आप अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं तो वही बातें जो आपने अपनी रूम मेट के साथ मस्ती के साथ बिताए होते हैं वो यादें सब याद आती हैं. औऱ हम अपने उस वक्त के दोस्तों से या अपने लाइफ पार्टनर से शेयर करते हैं कि जब हम हौस्टल में थे ऐसा किया करते थें. और शायद इसलिए ही एक अच्छी रूम पार्टनर पहुत जरूरी है.

दलदल : भाग 1

मात्र 24 साल की छोेटी सी उम्र में वह 2 बड़े हादसे झेल चुकी थी. पहली घटना उस के साथ 20 वर्ष की उम्र में घटी थी. तब वह बीकौम कर रही थी. उम्र के इस पड़ाव में युवाओं का किसी के प्यार में पड़ना आम बात होती है. 111828 कच्ची उम्र की सोच भी कच्ची होती है और इस उम्र में युवाओं के लिए सही निर्णय लेना लगभग असभंव होता है.

मिलिंद उस का पहला प्यार था. वह भी उसी के कालेज में पढ़ता था और एक साल सीनियर था. पढ़ाई के दौरान होने वाला प्यार मात्र मौजमस्ती के लिए होता है. यह सारे युवा जानते हैं. एकदूसरे को भरोसे में लेने के लिए वे बड़ेबड़े वादे करते हैं, लेकिन जब उन के बीच शारीरिक संबंध कायम हो जाते हैं, तो उस के बाद सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं. तब प्यार के बंधन ढीले पड़ने लगते हैं. फिर प्यार में कटुता पनपती है, दूरियां बढ़ती हैं और कई बार इस की परिणति बहुत दुखद होती है.

मिलिंद के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद उसे पता चला कि वह एक बदमाश किस्म का युवक है. छोटीमोटी लूटपाट, मारपीट ही नहीं, वह युवतियों के साथ जोरजबरदस्ती भी करता था. जो युवती उस के झांसे में नहीं आती, उसे वह अपने मित्रों के माध्यम से अगवा कर उस की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करता. कालेज में वह बहुत बदनाम था, लेकिन किसी युवती ने अभी तक उस पर कोई दोष नहीं मढ़ा था, इसीलिए उस की हिम्मत दिनोदिन बढ़ती जा रही थी.

नित्या के लिए यह स्थिति बहुत कष्टकारी थी. न तो वह किसी को अपनी मनोस्थिति बता सकती थी और न ही किसी से सलाह ले सकती थी. मिलिंद के चंगुल से निकल भागने का कोई उपाय उसे नहीं सूझ रहा था.

लेकिन परिस्थितियों ने उस का साथ दिया. चूंकि मिलिंद नित नई युवतियों पर फिदा होने वाला युवक था, नित्या से उस ने खुद ही दूरियां बनानी शुरू कर दीं. वह मन ही मन बड़ी खुश हुई. धीरेधीरे एक साल बीत गया और नित्या ने बीकौम भी कर लिया.

अगले साल उस ने मांबाप को मना कर दूसरे शहर में एमबीए जौइन कर लिया. होस्टल में जगह न मिलने के कारण पेइंगगैस्ट के रूप में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. पैसा बचाने के लिए उस ने अपना रूम एक दूसरी युवती के साथ शेयर कर लिया. सुरक्षा की दृष्टि से भी यह जरूरी था.

नए शहर में आ कर नित्या ने ठान लिया था कि वह किसी लफड़े में नहीं पड़ेगी. बस, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी. लेकिन जहां खुला माहौल हो, भंवरे और तितलियां एक ही बाग में स्वछंद घूमफिर रहे हों, प्रकृति का रोमांच उन के दिलों को गुदगुदा रहा हो, तो वसंत के फूलों की सुगंध से वे कैसे बच सकते हैं और मधुमास के अभिसार से अछूते कैसे रह सकते हैं. पेड़पौधों और फूलपत्तों पर जब वसंत का निखार आता है, तो जवां दिल एक हुए बिना नहीं रह सकते.

वह बहुत सोचसमझ कर जीवन के अगले चरण में अपने कदम रख रही थी. उस की रूममेट शिखा बहुत बातूनी और चंचल थी. वह हर वक्त प्यारमुहब्बत की बातें करती रहती थी. नित्या उस की बातें सुन हलके से मुसकरा भर देती या उसे झिड़क देती, ‘‘अब बस कर, कुछ पढ़ाई की तरफ भी ध्यान दे ले.’’

‘‘पढ़ाई कर के क्या मिलेगा? अंत में शादी ही तो करनी है. अभी जवानी है, प्यार का मौसम है, तो क्यों न उस का भरपूर मजा लिया जाए?’’ वह अंगड़ाई ले कर कहती.

नित्या बस, मुसकरा कर रह जाती. प्यार के खेल की वह पुरानी खिलाड़ी थी, लेकिन उस ने शिखा को अपने पहले प्यार के बारे में कुछ नहीं बताया था. वह उन कड़वी यादों को अपने दिल से निकाल देना चाहती थी.

यों ही हंसीमजाक में दिन गुजरते रहे. एक दिन शिखा ने पूछ ही लिया, ‘‘नित्या, सचसच बता, क्या तेरे मन में प्यार की भावना नहीं उमड़ती या तेरे साथ कोई हादसा हुआ है, जो तू प्यार के नाम से बिदकती है?’’

नित्या चौंक गई, क्या शिखा को उस के बारे में कुछ पता चल गया है या वह केवल कयास लगा रही है. उस ने कहा, ‘‘तू क्या समझती है, सारी युवतियां एकजैसी होती हैं? मेरा एक लक्ष्य है. मुझे पढ़ाई कर के मांबाप के सपनों को पूरा करना है.’’

‘‘बस कर, तू मुझे क्यों बना रही है? प्यार के मामले में सारी युवतियां एकजैसी होती हैं. जवान होने से पहले ही चारा खाने के लिए उतावली रहती हैं. मुझे तो लगता है, तूने चारा खा लिया है. अब बन रही है.’’

‘‘मैं ने क्या किया है या क्या करूंगी, यह तू मेरे ऊपर छोड़ दे. तू अपनी सोच,’’ नित्या ने बात को टालने का प्रयास किया.

शिखा लापरवाही से बोली, ‘‘मुझे अपने बारे में क्या सोचना? मैं ने तो अपना बौयफ्रैंड बना भी लिया है. तू अपनी फिक्र कर…’’ उस के चहरे से खुशी टपक रही थी, हृदय उछल रहा था. सपनों के उड़नखटोले में बैठ कर वह किसी और ही दुनिया में विचरण कर रही थी.

नित्या को उस के बौयफ्रैंड के बारे में जानने की कोई उत्सुकता नहीं थी, लेकिन एक कसक सी उस के मन में उठी. प्यार में ठोकर न खाई होती तो उस का भी कोई बौयफ्रैंड होता. उसे शिखा से जलन हुई. परंतु फिर उस ने अपना मन कड़ा किया. क्या फिर से आग में कूदने का इरादा है. शिखा को जो करना है, करे. वह अपने पथ पर अडिग रहेगी. पुरानी चोट क्या इतनी जल्दी भूल जाएगी?

लेकिन एक जवान युवती, जब घर से दूर अकेली रहती है, तो उस की भावनाएं बेलगाम हो जाती हैं. वह केवल अपने लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित नहीं रख पाती. दूसरी चीजें भी उसे प्रलोभित करती हैं. कोई भी युवा अपने मन को चंचल होने से नहीं रोक सकता. नित्या भी अपने हृदय की भावनाओं और मन की चंचलता को दबाने का प्रयास करती, लेकिन शिखा की बातें सुनसुन कर वह मन से कमजोर पड़ने लगी थी. जब भी शिखा उस से अपने अफेयर और बौयफ्रैंड के बारे में बात करती तो उस के हृदय में कांटे से गड़ने लगते. सोचती, इतनी सुंदर दुनिया में वह अकेले ही चलने के लिए क्यों मजबूर है? यह उम्र क्या तनहाइयों में आहें भरने के लिए होती है?

कालेज में हर दूसरी युवती अपने बौयफ्रैंड के साथ नजर आती. एक बस वही अकेली थी. कितना खराब लगता था उसे. उस की फ्रैंड्स उसे चिढ़ातीं, ‘‘यह देखो, ठूंठ, इस पर जवानी का फूल अभी तक नहीं खिला है.’’

धीरेधीरे उस का मन विचलित होने लगा. पुरानी कड़वी यादें समय की परतों के नीचे दब सी गईं. नई भावनाओं ने जल की लहरों की तरह उस के हृदय में उछाल लेना शुरू कर दिया, जैसे कोई नया तूफान आने वाला था. नए तूफान को रोकने का उस ने प्रयास नहीं किया, वह कमजोर हो गई थी. प्यार के मामले में हर युवती बहुत कमजोर होती है. प्यार के नाम पर कोई भी युवक उसे किसी भी तरफ झुका सकता है. नित्या दूसरी बार झुकने के लिए अपने मन को तैयार कर रही थी.

सहेलियों के बीच वह एक ठूंठ सिद्ध हो चुकी थी. उस ने तय कर लिया, अब वह फूल की तरह कोमल बन कर दिखाएगी. उस ने अपने दिमाग को इधरउधर दौड़ाया. कई युवकों के चेहरे उस के मस्तिष्कपटल पर दौड़ने लगे, लेकिन उस ने तय किया कि वह किसी क्लासमेट या कालेज के किसी युवक से दोस्ती नहीं करेगी. मिलिंद भी उस के कालेज का लड़का था, वह कितना छिछोरा और बदमाश निकला. इस बार वह किसी नौकरीशुदा व्यक्ति से दोस्ती करेगी.

उस ने अपना मन अपने मकान में रहने वाले किराएदारों की तरफ केंद्रित किया. जिस मकान में वह रहती थी, उस में कई किराएदार थे. ज्यादातर कालेज की युवतियां थीं, कुछ आईटी प्रोफैशनल भी थे. कुछ अन्य नौकरी करने वाले थे. राहुल नित्या के कमरे के बिलकुल सामने रहता था. वह जब भी सामने पड़ता, उसे देख कर मुसकरा देता. पहले वह तटस्थ रहती थी, लेकिन जब उस के मन की भावनाओं ने पंख फैलाने शुरू किए, तो उस के होंठों पर भी मुसकान की मीठी झलक दिखाई देने लगी. युवकयुवती के बीच एक बार मुसकान का आदानप्रदान हो जाए, तो दूरियां कम होने में वक्त नहीं लगता.

राहुल से रिश्ता बनाते समय उसे तनिक भी खयाल नहीं आया कि वह एक बार प्यार में धोखा खा चुकी है. इस बार ठोंकबजा कर राहुल को परख ले, जब प्यार की चिनगारी हृदय को जलाने लगती है, तो सारी सावधानी और समझदारी धरी की धरी रह जाती है.

बात बढ़ी, तो बढ़ती ही चली गई. दोनों एक ही बिल्डिंग में रहते थे, इसलिए उन के मिलने में कोई व्यवधान भी नहीं था. स्वच्छंद रूप से दिनरात जब भी मन करता, वे मिल लेते. उन के बीच की सारी दूरियां बिना किसी देरी के समाप्त हो गईं.

शिखा को उस के अफेयर के बारे में पता चलते देर न लगी. पूछा, ‘‘नित्या, तू तो बड़ी तेज निकली. इतनी जल्दी बौयफ्रैंड बना लिया. कल तक तो प्रेम के नाम पर नाकभौं सिकोड़ती थी.’’

नित्या ने सिर झटकते हुए कहा, ‘‘क्यों, क्या मैं प्यार नहीं कर सकती? आखिर सामान्य युवती हूं. मन में भावनाएं हैं, इच्छाएं हैं और हृदय में कामनाएं मचलती हैं. जब तक मन का दरवाजा नहीं खुलता, बाहर की हवा की सुगंध मनमस्तिष्क में नहीं घुसती, तब तक कामदेव के बाण किसी को घायल नहीं करते. मैं ने भी तुझ से सीख ले कर मन की आंखें खोल दीं, हृदयपटल को खोल कर ‘उसे’ प्रवेश करने की अनुमति दे दी. फिर तो तुम जानती ही हो, प्रेम की चिनगारी भड़कने में देर नहीं लगती.’’

‘‘पर तुम ने राहुल को क्यों पसंद किया. तुम्हारे क्सासमेट भी तो हैं?’’

‘‘तुम नहीं समझोगी. साथ में पढ़ने वाले युवकों में गंभीरता नहीं होती. उन का भविष्य अनिश्चित सा रहता है. पूरी तरह से वे मांबाप पर निर्भर रहते हैं. राहुल नौकरीशुदा है. वह मेरा खर्च उठा सकता है.’’

‘‘क्या करता है वह?’’

‘‘शायद किसी आईटी कंपनी में ऐग्जिक्यूटिव है. मैं ने पूछा नहीं है.’’

‘‘नौकरी वाला बौयफ्रैंड पसंद किया है, तो क्या तुम उस से शादी करने की सोच रही हो?’’

‘‘क्या हर्ज है, अगर वह तैयार हो जाए,’’ नित्या ने लापरवाही से कहा.

‘‘तुम ने बात की है?’’

‘‘कर लूंगी, अभीअभी तो प्यार हुआ है. कुछ दिन एंजौय करने दो.’’

शिखा  गंभीर हो गई, ‘‘नित्या, एक बात अच्छी तरह समझ लो, प्यार अगर मौजमस्ती के लिए है, तो इस में सबकुछ जायज है, पर अगर शादी कर के घर बसाने के उद्देश्य से तुम राहुल से प्यार कर रही हो, तो संभल कर रहना. पहले शादी कर लो, फिर अपना तन उस को समर्पित करना. आजकल शादी के नाम पर युवक बहलाफुसला कर युवतियों का सालों शोषण करते हैं और जब उन का मन भर जाता है, तो युवती को ठोकर मार कर भगा देते हैं. युवतियां भावुक होती हैं. वे बहुत जल्दी युवकों की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और बाद में पछताती हैं. तुम राहुल से साफसाफ बात कर लो कि वह क्या चाहता है और तुम भी अपने दिल की बात उस के सामने रख दो कि तुम उस से शादी करना चाहती हो, वरना बाद में पछताओगी.’’

नित्या के मन में बात खटक गई. शिखा सच कह रही थी. प्यार कोई खेल तो है नहीं, जो केवल मनोरंजन के लिए खेला जाए. ऐसा प्यार वासना का खेल बन जाता है. उस ने खुद को धिक्कारा…. उसे क्या कभी अक्ल नहीं आएगी. एक बार लुट चुकी है और दूसरी बार लुटने को तैयार है. जीवनभर क्या वह प्यार के नाम पर अलगअलग युवकों के हाथों अपने शरीर को नुचवाती रहेगी, अपनी अस्मिता तारतार करवाती रहेगी?

उसे अफसोस होने लगा कि प्यार में वह इतनी जल्दबाजी क्यों करती है, दो दिन की बातचीत और मीठीमीठी बातों में आ कर उस ने खुद को राहुल के चरणों  में समर्पित कर दिया.

अगली मुलाकात में उस ने राहुल से पूछ लिया, ‘‘राहुल, तुम ने अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताया, जबकि मैं अपने बारे में तुम्हें सबकुछ बता चुकी हूं.’’

‘‘क्या जानना चाहती हो मेरे बारे में?’’ उस ने संशय से पूछा.

‘‘मैं तुम्हारे नाम के सिवा क्या जानती हूं.’’

‘‘क्या तुम्हारे लिए इतना जानना पर्याप्त नहीं है कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं?’’

‘‘प्यार की अंतिम परिणति शादी होती है, इसलिए एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में जानना भी जरूरी है,’’ नित्या ने अपने मन की बात कही.

राहुल ने टालने के भाव से कहा, ‘‘तुम कहां बेमतलब की बातों में पड़ी हो. दुनियादारी के लिए सारी उम्र पड़ी है. अभी प्यार का मौसम है, जी भर कर प्यार कर लो और उस की सुगंध अपने तनबदन में भर लो. प्यार की खुशबू से जब तनमन नहाने लगता है, तो बाकी चीजें गौण हो जाती हैं. अभी तुम केवल मेरे बारे में सोचो और मैं तुम्हारे बारे में… बस,’’ उस ने नित्या को बांहों में समेटने की कोशिश की.

नित्या ने प्यार से उसे अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम अपनी मीठीमीठी बातों से  टालने की कोशिश मत करो. मेरे लिए यह जानना काफी अहम है कि मैं ने जिस व्यक्ति से प्यार किया, वह जीवन में कितनी दूर तक मेरा साथ देगा. पुरुष और स्त्री को बांधने का सूत्र प्रेम होता है और जब वह सूत्र शादी के बंधन में बंध जाता है तो यह अटूट हो जाता है.’’

‘‘क्या दकियानूसी बातें कर रही हो. जब हम स्वेच्छा से एकदूसरे के साथ रह रहे हैं, तो बीच में शादी कहां से आ गई?’’

‘‘राहुल, तुम बात को समझने का प्रयास करो. अब हम बच्चे या किशोर नहीं हैं, पूरी तरह से बालिग हैं. लिवइन रिलेशनशिप केवल वासना की पूर्ति का एक आधुनिक बहाना है, वरना समाज में इस तरह के कृत्य अवैध रूप से पहले भी चलते थे और आज भी चल रहे हैं. लेकिन परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों के साथ अगर पतिपत्नी का रिश्ता निभाया जाए, तो सभी सुखी रहते हैं.’’

नित्या ने सोचसमझ कर बहुत गंभीर बात कही थी. उस में अब परिपक्वता झलक रही थी, क्यों न हो आखिर? ठोकर खाने के बाद तो मूर्ख भी अक्लमंद हो जाते हैं. इस के बाद भी अगर नित्या को अक्ल न आती, तो कब आती?

राहुल चिंतित हो गया, फिर बोला, ‘‘यार, तुम ने भी अच्छाखासा रोमांटिक मूड खराब कर दिया. मैं बाद में इस मुद्दे पर बात करूंगा,’’ फिर वह अपने औफिस चला गया.

नित्या को उस की यह बेरुखी अच्छी नहीं लगी. वह समझ गई थी कि राहुल उस के साथ केवल शारीरिक संबंध बनाने तक ही रिश्ता कायम रखना चाहता है. इस के अलावा वह किसी और जिम्मेदारी के प्रति गंभीर नहीं है, पर बिना किसी जिम्मेदारी के यह रिश्ता भी कोई रिश्ता है. क्या यह एक प्रकार की वेश्यावृत्ति नहीं है? बिना प्रतिबद्धता और सामाजिक बंधन के युवती एक युवक के साथ रहे या दो के साथ, क्या फर्क पड़ता है? इस में पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा कहां है. युवती को तो अपनी अस्मिता लुटा कर ही यह सब करना पड़ता है. बदले में उसे क्या मिलता है? युवक के चंद मीठे बोल, कुछ उपहार लेकिन सामाजिक सुरक्षा इस में कहां है? उसे लांछनों के साथ समाज में जीवित रहना पड़ता है.

ज्योतिषी, ढोंगी बाबा और गुरुमां बन रहे जी का जंजाल

 लेखक: सौमित्र कानूनगो

पिछले दिनों न्यूज 18 की वैबसाइट पर एक अजीब सी खबर पढ़ने में आई. सितंबर 2018 को दिल्ली के एक पुलिसकर्मी विजय समरिया ने एयर इंडिया की मैनेजर सुलक्षणा नरूला के गुमशुदा होने पर उसे ढूंढ़ने से इनकार कर दिया.

दरअसल, विजय समरिया ने महिला के लड़के से उस की कुंडली मंगवा कर अपने ज्योतिष को दिखाई जिस में 19 अप्रैल तक उस महिला को ‘महादशा’ है यानी उस का बुरा समय है, ऐसी बात सामने आई. इत्तफाक से विजय समरिया की भी महादशा 19 अप्रैल को ही खत्म हो रही थी. उस के बाद से इस पुलिसकर्मी ने 19 अप्रैल तक महिला को ढूंढ़ने से इनकार कर दिया और परिवार वालोें को यह आश्वासन दिया कि 19 अप्रैल तक हम दोनों की महादशा खत्म होने के बाद मैं उन्हें कभी भी आसानी से ढूंढ़ लूंगा.

महिला के बेटे अनुभव को एक पुलिसकर्मी के ऐसी बात करने पर बड़ी हैरानी हुई. उन्होंने बताया कि पुलिसकर्मी ने महिला की महादशा शांत करने के उपाय के तौर पर उसे बगलामुखी देवी की मूर्ति, जो छतरपुर मंदिर में है, की पूजा करने के लिए कहा. बाद में यह केस क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. महादशा खत्म हुए एक साल बीत गया है, लेकिन अब तक महिला का कुछ पता नहीं चल सका है.

आज के इस वैज्ञानिक दौर में जहां एक तरफ हम चंद्रयान 2 का परीक्षण कर रहे हैं, एक पुलिसकर्मी का इस तरह की बात करना कितनी हैरानी पैदा करता है. अगर हमारी कानून व्यवस्था में लोग ज्योतिष के माध्यम से घटनाओं को सुलझाने लग जाएं तो क्या हम सच में उन पर भरोसा कर सकते हैं? और यह बात सिर्फ एक निश्चित व्यवसाय तक ही सीमित नहीं है. ध्यान से देखने पर मालूम पड़ता है कि अंदरूनी तौर पर हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग, चाहे वह गांव में निवास करता हो या शहर में, आज भी इन कुरीतियों से बंधा हुआ है.

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ज्योतिष विद्या का इतिहास

मुझे इस पुरानी विद्या के इतिहास के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई तो मैं मुंबई शहर के दादर स्टेशन गया. वहां से थोड़ी दूरी पर कुछ ज्योतिष सड़क किनारे अपनी पोथी और एक छोटी सी तख्ती लिए बैठे रहते हैं. वे महज 51 रुपए में हर आतेजाते व्यक्ति का भविष्य उन के हाथों की लकीरों के माध्यम से बताते हैं. उन के अनुसार यह विद्या 322 साल पुरानी है.

उन से कुछ कदमों की दूरी पर गीताप्रैस गोरखपुर नाम की एक गाड़ी में किताबें व अंगूठी, मालाएं, ब्रेसलेट आदि सामान बिकता है. उस दुकान के मालिक कहते हैं कि 322 साल तो बहुत ही कम समय है. ज्योतिष विद्या के बारे में तुलसीदासजी हनुमान चालीसा में कह गए हैं कि यह विद्या तो तब से है जब से दुनिया शुरू हुई है.

इंटरनैट पर खोजेंगे तो पता चलेगा कि तुलसीदास द्वारा हनुमान चालीसा 15वीं शताब्दी में लिखी गई थी. मतलब आज से लगभग 400 वर्ष पहले, और खगोलशास्त्रियों द्वारा बताया जाता है कि दुनिया की शुरुआत लगभग 3.5 अरब साल पहले हुई है. अगर मान लिया जाए कि यह विद्या 8,000 वर्ष पुरानी है तब भी दुनिया की शुरुआत से ही इस विद्या का अस्तित्व है, यह बात सिद्ध नहीं होती है. आप खुद ही सोचिए, जिस विद्या पर ये लोग इतना विश्वास करते हैं, उस के होने के समय में ही इन ज्योतिषियों और पंडितों में विरोधाभास है, तब वे हमारा भविष्य बताएं, यह बात कितनी तार्किक है?

वहीं, कुछ पंडित, जिन के पूर्वज इस विद्या के जानकार रहे हैं, बताते हैं कि विज्ञान द्वारा हमारे यहां गणनाओं की खोज तो बाद में हुई, पर ये गणनाएं तो त्रेता युग और द्वापर युग से चली आ रही हैं. ज्योतिष में विज्ञान की तरह हम किसी चीज का प्रमाण तो नहीं दे सकते जिस को देखा जा सके पर उस में आंतरिक ज्ञान है. वे विज्ञान और ज्योतिष विद्या के बीच के फर्क को कुछ इस तरह बताते हैं कि जो हृदय में है वह ज्ञान है और जो दिमाग में है वह विज्ञान है. आप का काम एक बार दिमाग न भी हो, तो भी चल जाएगा पर हृदय होना जरूरी है. आत्मा, अगर होती है, वहीं बसती है.

वैज्ञानिक परीक्षण में फेल ज्योतिष विद्या

ज्योतिष विद्या को जानने वाले लोगों के बड़ेबड़े दावे अकसर फेल होते रहे हैं, वह भारत में चुनाव के नतीजे हों या फिर इंदिरा गांधी की हत्या.

इस विद्या के एक वैज्ञानिक परीक्षण में 14 साल से ज्यादा अनुभव वाले 27 भारतीय ज्योतिषियों का परीक्षण भी किया गया, जिस में वे उचित कुंडली के साथ 100 मानसिक रूप से स्वस्थ और 100 मानसिक रूप से विकलांग बच्चों में फर्क नहीं बता पाए.

मनोवैज्ञानिक इवान केली और आस्ट्रेलियन खगोलशास्त्री डा. ज्यौफ्री डीन के 2,000 विषयों पर 45 सालों तक किए गए गहन शोध में यह पाया गया है कि ज्योतिष विद्या महज अनुमान पर टिकी विद्या है.

ज्योतिषियों और पंडितों के अनुसार उन्हें न मानना भगवान को न मानने के बराबर है और अगर आप उन्हें नहीं मान रहे हैं, मतलब, आप के ग्रहों की दशा खराब है. जबकि ये खुद अपनी नियति के मारे हैं और अगर ये खुद उपाय लगा कर अपनी नियति नहीं बदल सकते तो यह सोचने वाली बात है कि हमारी जिंदगी के फैसले हम इन पर किस तरह छोड़ सकते हैं.

यहां एक और बिंदु सोचने वाला है कि आखिर यह उपाय है क्या चीज कि जिस से हमारे जीवन की परेशानियां हल हो जाती हैं.

यंत्र में मंत्र है

ज्योतिषियों का दावा है कि गृह और नक्षत्रों की स्थिति के बदलने से उन का प्रभाव हम इंसानों के जीवन और पृथ्वी पर घटने वाली घटनाओं पर पड़ता है. इस प्रभाव के कारण ही हमारे जीवन में परेशानियां आती हैं और उस के लिए हम उपाय सुझाते हैं. वह उपाय पूजा हो सकती है, जैसे महादशा, कालसर्प दोष, साढ़े साती, मंगल दोष आदि या आप किसी संत, बाबा या माता के पास जा सकते हैं जिसे ईश्वर का इष्ट हो. और भी आसान तरीका है कि आप कोई यंत्र धारण कर अपने जीवन की परेशानियों को सुलझा सकते हैं.

इन यंत्रों की दुकान चलाने वाले पंडित बताते हैं कि हमारे ऋषिमुनियों को दुनिया कि दुर्गति के बारे में पहले से ही पता था, इसलिए उन्होंने पहले ही इन यंत्रों में मंत्र फूंक दिए हैं. उन की दुकान में हर समस्या के लिए अलग यंत्र है. अंगूठी, ब्रेसलेट, माला आदि की बेसिक रेंज से ले कर आप को महंगे से महंगा यंत्र भी उपलब्ध हो सकता है. टीवी और इंटरनैट पर भी इस का खूब प्रचारप्रसार आप देख सकते हैं और फोन पर या औनलाइन और्डर कर जो भी यंत्र ज्योतिष द्वारा आप को सुझाया गया हो, वह आप खरीद सकते हैं.

हालांकि कलियुग की वजह से इन यंत्रों का 30 से 40 प्रतिशत ही प्रभाव रह गया है. उन से यह पूछने पर कि आज के दौर में जहां कोई भी प्रोडक्ट 99.99 प्रतिशत से कम फायदा दे ही नहीं रहा है वहां इन यंत्रों का 30 से 40 प्रतिशत ही प्रभाव रह गया है, तो फिर इन्हें पहन कर क्या फायदा होगा? वे कहते हैं, ‘‘ऋषिमुनियों के समय में ये यंत्र भी 100 प्रतिशत फायदा देते थे और सच कहूं तो कलियुग के हिसाब से 30 से 40 प्रतिशत भी इन यंत्रों का प्रभाव कुछ कम नहीं है.’’

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इस विषय पर बात करते हुए 11वीं और 12वीं कक्षा को विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षक सतीश राजपूत बताते हैं, ‘‘मेरे बहुत से स्टूडैंट्स एग्जाम के समय लौकेट, अंगूठी या तावीज पहन कर आते हैं. उन का व उन के परिवार वालों का ऐसा मानना है कि इस लौकेट या ब्रेसलेट को पहन लेने से एग्जाम में अच्छे नंबर आ सकते हैं. आजकल टीवी और इंटरनैट पर ज्योतिष और उन के द्वारा बताए जा रहे यंत्रों के विज्ञापन द्वारा कई लोग ऐसी बातों को सच मानने लगे हैं. मैं हैरान हूं इस बात से कि हम अपने बच्चों को किस गलत दिशा में ले कर जा रहे हैं.’’

जरा सोचिए कि आप इस बात के लिए कितने तैयार हैं जब कल को हमारे बच्चे सिर्फ माला, तावीज या कोई ब्रेसलेट पहन कर अपनी पढ़ाई छोड़ दें और उम्मीद करने लगें कि वे बिना पढ़े सिर्फ इन यंत्रों की शक्ति से एग्जाम में पास हो जाएंगे. इस के विपरीत, क्या हमें बच्चों को मेहनत का सबक नहीं सिखाना चाहिए? क्या ब्रेसलेट, माला या अंगूठी की जगह हमें उन के हाथों में ऐसी किताबें नहीं थमानी चाहिए जो उन्हें एक अच्छा जीवन जीने को प्रेरित करें?

ऐसा करने के लिए पहले हमें खुद इन विज्ञापनों और ऐसी विचारधारा के प्रति सतर्क रहना होगा. नियम 7 (5) द केबल टैलीविजन नैटवर्क रूल्स 1994 के मुताबिक, ऐसे किसी भी प्रोडक्ट का विज्ञापन, जिसे चमत्कारी, विशेष या अलौकिक बताया जा रहा हो और जिसे प्रमाणित करना मुश्किल हो, का प्रसारण वर्जित है. फिर भी ऐसे विज्ञापन आते हैं और शायद आते रहेंगे. यहां किसी और को नहीं, हमें ही इन के प्रति जागरूक हो कर सतर्क रहने आवश्यकता है.

अंधश्रद्धा रखने का भयानक अंजाम

महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति एक स्वयंसेवी संस्था है जो समाज में स्थापित अंधविश्वास, काला जादू या अमानवीय ढंग से किसी का इलाज करने जैसी कुरीतियों के खिलाफ कार्यरत है. इस संस्था के मुख्य कार्यकर्ता नंद किशोर तलाशीलकर, मुक्ता दाभोलकर, सुनीता देवलवार, वंदना शिंदे और मयूर गायकवाड़ से बातचीत करने से हमें पता चला है कि कई बार यह अंधश्रद्धा बहुत ही भयानक घटनाओं को अंजाम देती है.

मुंबई के खार क्षेत्र में रहने वाली महिला, जो कौर्पोरेट में किसी अच्छे पद पर कार्यरत थी, का अपने भाई से प्रौपर्टी का कुछ विवाद चल रहा था. घर में उस के ससुर को अस्थमा की बीमारी थी और सास आर्थ्राइटिस की मरीज थीं. तो, कोर्टकचहरी के चक्कर और घर को भी संभालने में महिला व उस के पति बहुत परेशान हो रहे थे. तब उन के किसी रिश्तेदार ने सुझाया कि एक गुरुमां हैं, उन के पास जाओगे तो वे आप की समस्या को सुलझा सकती हैं. मेरी भी कुछ समस्याएं थीं जो उन के पास जाने के बाद से सुलझ गईं.

ये दोनों जब अपनी समस्या गुरुमां के पास ले कर गए तो उस ने कहा, ‘‘मैं साईं बाबा से बात करती हूं और 12 साल तपस्या करने के बाद मुझे यह शक्ति प्राप्त हुई है. वे जो उपाय बताएंगे तुम्हारी समस्या के बारे में, वह मैं तुम्हें बताऊंगी.’’

इस बीच, महिला के ससुर का प्रमोशन हो गया और उन की अस्थमा की प्रौब्लम भी थोड़ी कम हो गई. इन लोगों को यह लगा कि गुरुमां के पास जाने से हमारी समस्याएं कम हो रही हैं. गुरुमां पर उन्हें विश्वास हो गया. फिर उपाय के तौर पर गुरुमां ने इस महिला से कहा कि यह सब आप के पिछले जन्म के बुरे कर्मों की वजह से हो रहा है और इसे ठीक करने के लिए मुझे पूजा करनी पड़ेगी. गुरुमां ने आगे कहा कि इस जन्म में तुम्हें अब मैं जो बोलूंगी वही करना है.

जो भी उस महिला ने अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के लोगों को पूजा के बारे में बताया वह सब बहुत भयानक था. गुरुमां ने उस से यह कहा कि यह पूजा करनी है तो मुझे तेरे घर पर आ कर रहना होगा. गुरुमां ने उस के पति को बताया कि पिछले जन्म में यह एक वेश्या थी. इस के बाद गुरुमां उस के घर में 9 महीने तक रही और रात के 2 बजे के करीब पूजा के नाम पर उसे नंगा कर के उस के शरीर पर जोर से चप्पल मारती थी. पूछने पर कहती थी, बाबा ने मुझ से कहा है कि पिछले जन्म में तू वेश्या थी, तो यह दोष तेरा इस जन्म में निकालने के लिए ऐसा करना जरूरी है. उस ने इसी प्रकार से उस महिला पर बहुत सारे शारीरिक अत्याचार किए.

गुरुमां ने उसे यह बात किसी को भी बताने से मना किया और यह भी कहा कि अगर उस ने किसी को बताया तो फिर इस पूजा का प्रभाव कम हो जाएगा. किसी से बात न करने और कौंटैक्ट में न रहने की शर्त के कारण उस को अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी. उस ने महिला से यह भी कहा कि अगर वह यह सब नहीं करेगी तो उस की बच्ची का स्कूल में बलात्कार होगा.

ये लोग इन सब बातों को मान लेते थे क्योंकि इन्हें उस पर पूरी तरह विश्वास हो गया था. ऐसा करते हुए उस ने इन लोगों से डायमंड, सोने की चेन, और 12 लाख रुपए भी लिए. बहुत समय बीत जाने के बाद भी जब किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो रहा था, तब इस महिला को गुरुमां पर शक होने लगा.

गुरुमां पूजा के वक्त महिला को अपनी आंखें बंद रखने के लिए कहती थी. एकदो बार जब उस की आंख खुली तो उस ने देखा कि गुरुमां उस का वीडियो बना रही थी. तब उस का शक और बढ़ गया और उस ने अपने पिताजी, जो रत्नागिरी में रहते थे, को यह बात बताई. पिताजी के माध्यम से ही इस संस्था को इस बात की खबर लगी. तब संस्था के नंदकिशोर, अनीस और मुक्ता दाभोलकर उस महिला के घर गए. मुक्ता दाभोलकर ने उस महिला और परिवार वालों की कांउसलिंग की. तब जा कर परिवार वाले गुरुमां के खिलाफ शिकायत करने के लिए तैयार हुए और गुरुमां को पुलिस ने गिरफ्तार किया.

संस्था के संस्थापक डा. दाभोलकर ने 18 साल पहले ‘एंटी सुपरस्टीशन ऐंड ब्लैक मैजिक बिल’ का सूत्रपात किया था और इस बिल को वे महाराष्ट्र स्टेट असैंबली में पारित करवाने के लिए 14 साल से संघर्ष कर रहे थे. इस बिल का कई हिंदू संगठनों और संस्थानों द्वारा कड़ा विरोध किया गया. 20 अगस्त, 2013 को किन्हीं अज्ञात व्यक्तियों द्वारा डा. दाभोलकर की गोली मार कर हत्या कर दी गई.

उन्हें याद करते हुए सुनीता देवलवार कहती हैं, ‘‘आज का माहौल ऐसा है कि हम तार्किक कम हो कर अंधविश्वासी ज्यादा हो रहे हैं. जरा सा कोई हमारे खिलाफ कुछ कहता है तो हिंसा का रास्ता अपना लेते हैं. मेरा यह मानना है कि मारना है तो विचारों से ही विचारों को मारो. डा. दाभोलकर का बलिदान व्यर्थ नहीं है, बल्कि उन के बलिदान ने हमें इन कुरीतियों के खिलाफ ज्यादा हिम्मत से खड़े होने के लिए प्रेरित किया है.’’

आखिरकार, दिसंबर 2013 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा एंटी सुपरस्टीशन ऐंड ब्लैक मैजिक बिल को पास कर दिया गया.

 अपने पैरों पर खड़े रहिए

कई माध्यमों द्वारा हम लोगों को  अंधविश्वास की राह में धकेला जाता है. इस तरह के विज्ञापन आप हर रोज अखबारों, टीवी और न्यूज चैनलों में देखते होंगे. आप के शहर के रेलवे स्टेशन, गली और नुक्कड़ पर भी कई लोग इस तरह का सामान बेचते मिल जाएंगे. झूठी आस्था का प्रचार और प्रोडक्ट्स का व्यापार करने वाले लोगों ने आप के डर और आस्था का फायदा उठा कर धर्म को धंधा बना लिया है.

स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘‘मैं एक बार को तुम सब का नास्तिक कहलाना पसंद करूंगा पर अंधविश्वासी नहीं. धर्म में कोई चमत्कार नहीं है. चमत्कार का व्यापार और अंधविश्वास हमेशा से कमजोरी की निशानी हैं. ये हमेशा से पतन और मृत्यु की निशानी हैं. इसलिए, इन से सावधान रहिए, मजबूत बनिए और अपने पैरों पर खड़े रहिए.’’

अंधश्रद्धा के जाल से निकलेें

हमें पहले भी कितने ही ढोंगी बाबाओं, तांत्रिकों, संतों और गुरुमां जैसी महिलाओं के बारे में पता चलता रहा है. फिर आखिर क्या वजह है कि हम लोग इस तरह की अंधश्रद्धा का शिकार हो जाते हैं?

मनोचिकित्सक डा. श्रीकांत रेड्डी बताते हैं, ‘‘भारतीय संस्कृति में सालों से हमें जब भी कोई समस्या आती है, किसी न किसी के अजूबे सहारे की जरूरत महसूस होती है, जैसे सब से पहले तो हम भगवान की ओर देखते हैं और अगर भगवान न मिले तो फिर भगवान के दूत, जो बाबा या साधु हैं, की शरण ले लेते हैं. यह अंधश्रद्धा हमारे सामाजिक विश्वास तंत्र से उपजती है.

‘‘अंधश्रद्धा की सीख हमें बचपन से ही मिलने लगती है, जैसे हमें बताया जाता है कि बिल्ली का रास्ता काट देना अपशगुन होता है. इस तरह की सीख एक वक्त के बाद हमारा मजबूत विश्वास बन जाती है. यह बात हमारे दिमाग में इस तरह घर कर जाती है कि सामान्य विचारों से हम उस को नहीं सुलझा सकते.

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मैं यह मानता हूं कि जो लोग मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत हैं, वे जीवन में किसी भी समस्या कीतरफ प्रौब्लम सौल्विंग ऐटिट्यूड रखते हैं. वे हार नहीं मानते और खुद से समस्या को सुलझाने की हर संभव कोशिश करते हैं. पर जो लोग मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर हैं उन में प्रौब्लम सौल्विंग ऐटिट्यूड और खुद पर विश्वास बहुत कम होता है. इसलिए वे दूसरों पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं.’’

समस्या के समाधान पर वे कहते हैं कि इस से निकलने में वक्त लगेगा पर लोगों को लगातार जागरूक करते रहना होगा तब जा कर हम कुछ सालों में बदलाव देख पाएंगे. उन के मुताबिक, इस में सरकार की भी अहम भूमिका है. क्योंकि नियम तो बन जाते हैं पर उन का पालन होना भी जरूरी है.

जानिए, नवंबर महीने में खेती संबंधी खास कामों का ब्योरा

हमारे देश के किसान नवंबर की शुरुआत से ही गेहूं की बोआई के लिए खेतों की तैयारी में जुट जाते हैं. इस के अलावा भी खेती में ढेरों काम होते हैं, उन्हें समय पर निबटाना भी जरूरी होता है. इसी क्रम में पेश है नवंबर के दौरान होने वाले खेती संबंधी खास कामों का ब्योरा.

* गेहूं की बोआई से पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर कराएं, ताकि सही नतीजे मिल सकें.

* गेहूं बोने से पहले खेतों में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट जरूर डालें.

* बोआई के लिए अपने इलाके के हवापानी के मुताबिक ही गेहूं की किस्मों को चुनें. इस के लिए अपने इलाके के कृषि वैज्ञानिक से सलाह लें.

* गेहूं के बीज किसी नामी कंपनी या सरकारी संस्था से ही लें.

* कई बार छोटे किसान बड़े किसानों से ही बीज खरीद लेते हैं, क्योंकि ये बीज उन्हें काफी वाजिब दामों पर मिल जाते?हैं. ऐसा करने में कोई बुराई या खराबी नहीं है, मगर ऐसे में बीजों को अच्छी फफूंदीनाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए. बीजों को उपचारित किए बगैर बोआई करने से पैदावार घट जाती है.

* छिटकवां तरीके से बोआई करने पर काफी बीज बेकार चले जाते?हैं, लिहाजा इस विधि से बचना चाहिए. मौजूदा दौर के कृषि वैज्ञानिक भी बोआई की छिटकवां विधि अपनाने की सलाह नहीं देते?हैं.

* वैज्ञानिकों के मुताबिक, सीड ड्रिल मशीन से गेहूं की बोआई करना मुनासिब रहता है. इस विधि के लिए प्रति हेक्टेयर महज 100 किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है. इस विधि से बीजों की कतई बरबादी नहीं होती है.

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* हमेशा गेहूं की बोआई लाइनों में ही करें और पौधों के बीच 20 सैंटीमीटर का फासला रखें. 2 पौधों के बीच फासला रखने से पौधों की बढ़वार बेहतर ढंग से होती है और खेत की निराईगुड़ाई करने में आसानी होती?है.

* वैसे तो मिट्टी की जांच रिपोर्ट के मुताबिक ही खाद व उर्वरक वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए, मगर कई जगहों के किसानों के लिए मिट्टी की जांच करा पाना मुमकिन नहीं हो पाता. ऐसी हालत में प्रति  हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए.

* चने को गेहूं का जोड़ीदार अनाज माना जाता?है. गेहूं के साथसाथ नवंबर में चने की बोआई का आलम भी रहता?है. चने की बोआई 15 नवंबर तक कर लेने की सलाह दी जाती है.

* चने की खेती के मामले में भी अगर हो सके तो मिट्टी की जांच करा कर वैज्ञानिकों से खादों व उर्वरकों की मात्रा पूछ लें.

* चने के बीजों को राइजोबियम कल्चर और पीएसबी कल्चर से उपचारित कर के बोएं. ऐसा करने से पौधे अच्छे निकलते?हैं.

* अमूमन मटर व मसूर की बोआई का काम अक्तूबर महीने के दौरान ही निबटा लिया जाता है, लेकिन अगर किसी वजह से मटर व मसूर की बोआई बाकी रह गई हो, तो उसे 15 नवंबर तक जरूर निबटा लें.

* मटर की बोआई के लिए तकरीबन 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगते हैं, जबकि मसूर की बोआई के लिए तकरीबन 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगते हैं.

* मसूर और मटर के बीजों को बोने से पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना जरूरी है. ऐसा न करने से पैदावार पर बुरा असर पड़ता?है.

* आमतौर पर नवंबर में ही जौ की बोआई भी की जाती है. अच्छी तरह तैयार किए गए खेत में 25 नवंबर तक जौ की बोआई का काम निबटा लेना चाहिए.

* वैसे तो जौ की पछेती फसल की बोआई दिसंबर माह के अंत तक की जाती है, पर समय से बोआई करना बेहतर रहता है. आमतौर पर देरी से बोई जाने वाली फसल से उपज कम मिलती है.

* जौ की बोआई में हमेशा सिंचित और असिंचित खेतों का फर्क पड़ता?है. उसी के हिसाब से कृषि वैज्ञानिक से बीजों की मात्रा पूछ लेनी चाहिए.

* नवंबर माह के दौरान अरहर की फलियां पकने लगती हैं, लिहाजा उन पर नजर रखनी चाहिए. जब 75 फीसदी फलियां पक कर तैयार हो जाएं, तो उन की कटाई करें.

* अरहर की देरी से पकने वाली किस्मों पर यदि फली छेदक कीट का प्रकोप नजर आए, तो मोनोक्रोटोफास 36 ईसी दवा की 600 मिलीलिटर मात्रा पर्याप्त पानी में मिला कर फसल पर छिड़काव करें.

* सरसों के खेत में अगर फालतू पौधे हों, तो उन की छंटाई करें. निकाले गए पौधों को मवेशियों को खिलाएं. फालतू पौधे निकालते वक्त खयाल रखें कि बचे पौधों के बीच तकरीबन 15 सैंटीमीटर का फासला रहे.

* सरसों की बोआई को अगर एक महीना हो चुका हो, तो नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा सिंचाई कर के छिटकवां तरीके से दें.

* सरसों के पौधों को आरा मक्खी व माहू कीट से बचाने के लिए इंडोसल्फान दवा की डेढ़ लिटर मात्रा 800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* सरसों के पौधों को सफेद गेरुई और झुलसा रोग से बचाने के लिए जिंक मैंगनीज कार्बामेट 75 फीसदी दवा की 2 किलोग्राम मात्रा पर्याप्त पानी में?घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* नवंबर महीने के दौरान तोरिया की फलियों में दाना भरता?है. इस के लिए खेत में भरपूर नमी होनी चाहिए. अगर नमी कम लगे तो फौरन खेत को सींचें ताकि फसल उम्दा हो.

* अपने आलू के खेतों का जायजा लें. अगर खेत सूखे दिखाई दें, तो फौरन सिंचाई करें ताकि आलुओं की बढ़वार पर असर न पड़े.

* अगर आलू की बोआई को 5-6 हफ्ते बीत चुके हों, तो 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें और सिंचाई के बाद पौधों पर ठीक से मिट्टी चढ़ाएं.

* अक्तूबर के दौरान लगाई गई सब्जियों के खेतों का मुआयना करें और जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें. खेत सूखे नजर आएं, तो उन की सिंचाई करें.

* सब्जियों के पौधों व फलों पर अगर बीमारियों या कीड़ों का प्रकोप नजर आए, तो कृषि वैज्ञानिक से पूछ कर मुनासिब दवा का इस्तेमाल करें.

* अपने लहसुन के खेतों का मुआयना करें. अगर खेत सूखे लगें, तो उन की सिंचाई करें. इस के अलावा खेतों की तरीके से निराईगुड़ाई कर के खरपतवारों का सफाया करें.

* लहसुन के खेतों में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. इस से फसल को काफी लाभ होगा.

* अगर लहसुन की पत्तियों पर पीले धब्बों का असर नजर आए, तो इंडोसल्फान एम 45 दवा के 0.75 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

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* आम के पेड़ों के तनों व थालों में फौलीडाल पाउडर छिड़कें. इस के साथ ही पेड़ों की बीमारी के असर वाली डालियों व टहनियों को काट कर जला दें.

* नवंबर की शुरुआती सर्दी से अपने मुरगेमुरगियों को बचाने का बंदोबस्त करें.

* सर्दी के दिनों में अपने तमाम मवेशियों का पूरापूरा खयाल रखें, क्योंकि सर्दी उन के लिए भी घातक होती है.

पछतावा : भाग 1

सनोबर ने फर्स्ट डिविजन में बीएससी कर लिया. अख्तर एमबीए कर के एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब पर लग गया. सनोबर आगे पढ़ना चाहती थी पर उस की अम्मा आमना का खयाल था कि उस की शादी कर दी जाए. आमना ने पति सगीर से कहा, ‘‘अख्तर अब एमबीए कर के नौकरी पर लग गया है. अब आप उस के पिता जमाल से शादी की बात कर लीजिए. सनोबर को आगे पढ़ना है तो अख्तर आगे पढ़ाएगा. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग है.’’ दूसरे दिन सगीर और आमना मिठाई ले कर अपने पड़ोसी जमाल के घर गए.

सगीर ने जमाल भाई से कहा, ‘‘अब सनोबर ने ग्रेजुएशन कर लिया है. अख्तर भी एमबीए कर के नौकरी पर लग गया है. यह शादी का सही वक्त है. देर करने से कोई फायदा नहीं.’’

जमाल खुश हो कर बोले, ‘‘सगीर, तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो. बेगम, कैलेंडर ले कर आओ, सही समय देख कर हम अख्तर और सनोबर की शादी की तारीख तय कर देते हैं.’’

खुतेजा मुंह बना कर बोली, ‘‘इतनी जल्दी क्या है. मेरे भाई की बेटी की शादी तय हो रही है. पहले वह तय हो जाए. कहीं हमारी तारीख उन की तारीख से टकरा न जाए. हम अपनी तारीख बाद में तय करेंगे.’’ खुतेजा की बात पर सगीर चुप रहे. जमाल अपनी पत्नी से दबते थे. कुछ ज्यादा न कह सके.

उस दिन वे लोग नाकाम लौट आए. अख्तर, रिदा, फिजा घर में बैठे खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे. आमना ने जब बताया कि चाची ने शादी की तारीख नहीं तय की, बाद में तय करने को कहा है, तो सभी के चेहरे लटक गए.

अम्माअब्बा की परेशानी जायज थी. सनोबर का रिश्ता बरसों से अख्तर से तय था. अख्तर के पिता जमाल रिश्ते में अब्बा के भाई थे. वे पड़ोस में ही रहते थे. जमाल का एक ही बेटा था अख्तर. अच्छी हाइट, खूबसूरत, भूरी आंखों वाला. सनोबर के पिता सगीर को अख्तर बहुत पसंद था.

सगीर नेक और सुलझे हुए इंसान थे. उन का प्लास्टिक का सामान बनाने का छोटा सा कारखाना था. गुजरबसर अच्छे से हो रही थी. कुछ बचत भी हो जाती थी. जमाल और सगीर का रिश्ते के अलावा दोस्ती का संबंध भी था.

जमाल की पत्नी खुतेजा यों तो अच्छी थी पर मिजाज की थोड़ी तेज और पुराने खयालात की थी. रस्मोंरिवाज और पुरानी कही हुई बातों पर बहुत यकीन रखती थी वह. सगीर की पत्नी आमना बहुत मिलनसार, नरमदिल व खुशमिजाज औरत थी. सब से मोहब्बत से पेश आती और मदद करने को तैयार रहती. जेठजेठानी से उस के बहुत अच्छे संबंध थे.

अख्तर जब 5 साल का था तब सनोबर पैदा हुई थी. बहुत ही खूबसूरत, नन्ही परी लगती थी वह. अख्तर पूरे वक्त उसे उठाए फिरता. उसे खूब प्यार करता. दोनों को साथ देख कर आमना और खुतेजा बहुत खुश होतीं. जब सनोबर थोड़ी बड़ी हुई तो उस का रिश्ता अख्तर से तय कर दिया गया. दोनों घरों में खूब खुशियां मनाई गईं.

सनोबर के बाद आमना के 2 बेटियां और हुईं. सगीर ने भी बड़ी मोहब्बत से तीनों लड़कियों की परवरिश की. उसे कोई मलाल न था कि उसे बेटा नहीं मिला. सनोबर भी दोनों बहनों से बहुत प्यार करती. बहनें उस से करीब 5 साल छोटी थीं. सनोबर को खेलने के लिए जैसे खिलौने मिल गए. दोनों जुड़वां बच्चियां थीं. उन के नाम रखे गए फिजा और रिदा.

दिन गुजर रहे थे. अख्तर के बाद खुतेजा के यहां एक लड़का और हुआ. आमना महसूस कर रही थी बेटा होने के बाद से खुतेजा के बरताव में फर्क आ गया. बच्चियों से भी पहले जैसी मोहब्बत और अपनापन नहीं रहा. सनोबर का भी वह पहले जैसा लाड़ नहीं करती. आमना ने कोई खास तवज्जुह नहीं दी, लड़कियों की परवरिश में मसरूफ रही. सनोबर पढ़ने में बहुत होशियार थी. क्लास में रैंक लाती. रिदा और फिजा भी दिल लगा कर पढ़तीं.

खुतेजा की बात सुन कर सब का मूड बिगड़ चुका था. सब सोच में डूबे थे कि ऐसा क्यों हुआ. अख्तर भी अपनी मां की बात सुन कर मायूस हो गया. उस की आंखों में उदासी आ गई. इतने सालों से दोनों की बात तय थी. मोहब्बत घर जमा चुकी थी. दोनों के दिल एकदूसरे के नाम से धड़कते थे. इस खबर से दोनों ही चुप हो गए. अभी शायद उन की मोहब्बत को और इंतजार करना था.

इंतजार में डेढ़दो माह निकल गए. एक बार फिर सगीर ने फोन पर बात की, पर खुतेजा ने टाल दिया. अब तो आमना, सगीर और सनोबर तीनों ही परेशान हो गए. आखिर में उन लोगों ने सोच लिया कि दोटूक बात कर ली जाए. एक बार फिर आमना और सगीर शादी की तारीख तय करने जमाल के यहां पहुंच गए.

आमना ने साफ कहा, ‘‘भाभी, अब आप इसी महीने की कोई तारीख दे दीजिए. बेवजह शादी में देर करने का कोई मतलब नहीं है. इस महीने की 21 तारीख अच्छी रहेगी. हम ने सबकुछ सोच कर तारीख तय की है. अब आप अपनी राय बताइए.’’

खुतेजा ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘देखिए भाई साहब और भाभी, असल बात यह है कि मैं यह शादी नहीं करना चाहती. मुझे अपने अख्तर के लिए सनोबर पसंद नहीं आ रही है.’’

यह सुन कर सब सन्न रह गए. जमाल भी चुप से रह गए. सगीर ने पूछा, ‘‘भाभी, आखिर मंगनी तोड़ कर शादी न करने की कोई वजह तो होनी चाहिए. इतनी पुरानी मंगनी तोड़ने की कोई खास वजह होनी चाहिए.’’

खुतेजा ने फिर रूखे लहजे में कहा, ‘‘वजह है और बहुत खास वजह है.’’

सगीर जल्दी से बोल उठे, ‘‘फिर बताइए, क्या वजह है?’’

मैं राजनीतिक दल  हूं!

“आज तुम देश के एक प्रमुख राजनीतिक दल से साक्षात्कार ले कर आओ, आजकल पार्टियां  बड़ी चर्चा में है.” संपादक महोदय ने रोहरानंद को घूरते हुए देखा और कहा.

” मगर संपादक जी!… यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा.”

रोहरानंद ने अपने विचार तत्क्षण प्रकट किए-” इससे अच्छा  तो चीफ इलेक्शन औफिसर अथवा किसी नेता, मुख्यमंत्री का इंटरव्यू ले आऊ.”

चश्मे के भीतर आंखों को गोल घुमाते हुए संपादक जी ने ठस स्वर में कहा,”- देखो ! हमारा आदेश मानना तुम्हारा परम कर्तव्य है, या फिर राय देना… जाओ आज हमें राजनीतिक दल का इंटरव्यू ही छापना है.”

रोहरानंद मन मसोस कर उठा और दफ्तर से भिनभिनाता हुआ देश की राजधानी स्थित 34 अकबर रोड पहुंच गया.

यहां एक बड़ा सा ग्लोसाइन बोर्ड टंगा था- अखिल भारतीय राष्ट्रीय सेवक कांग्रेस । रोहरानंद फुला नहीं समाया वह अपने गंतव्य तक पहुंच चुका था,उसने खादी के झोले से पेन और नोटबुक निकाली और इंटरव्यू की तैयारी करने लगा.

राष्ट्रीय सेवक कांग्रेस के विशाल बोर्ड के निकट पहुंच रोहरानंद ने विनम्र स्वर में कहा- “माननीय! मै एक पत्रकार हूं, आपका साक्षात्कार लेने आया हूं .यह सुनते ही मानो चमत्कार हुआ,  विशाल बोर्ड से राजनीतिक दल प्रकट हुआ. राजनीतिक दल मुस्कुराकर बोला – “अच्छा! आओ आओ, पत्रकारों का हम बड़ा  सम्मान करते हैं ,मगर…”

रोहरानंद- “जी ! मगर .”

राजनीतिक दल- “अच्छा होता आप हमारे किसी नेता, पदाधिकारी से बात कर लेते. उनके पास हर एक जानकारी मिल जाती, सेवा टहल भी हो जाती.”

रोहरानंद- “श्रीमान ! आज तो हमें सिर्फ आपसे ही बात करने का संपादक जी  का आदेश है. इसी बहाने देश की जनता आपसे रूबरू होगी .यह हमारे संपादक जी की एक अभिनव सोच है.”

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राजनीतिक दल-( प्रसन्न भाव से ) “चलो ठीक है, पूछो, क्या जानना चाहते हो.”

रोहरानंद-‘ सर ! देश की जनता को यह बताइए लोकतंत्र में आपकी क्या अहम भूमिका है.”

राजनीतिक दल से एक पत्रकार की बातचीत होते देख देश की जनता आकर एक हुजूम की शक्ल में खड़ी हो गई .और राजनीतिक दल और पत्रकार की बातचीत सुनने लगे. राजनीतिक दल ने गला खंखार कर साफ किया और कहने लगा- “जैसा की सर्वविदित है, लोकतांत्रिक व्यवस्था में मेरी भूमिका नींव और कंगूरे दोनों की है. मेरे ही सीने में चढ़कर आम आदमी नेता बन जाता है, मेरी अंगुली पकड़कर प्रधानमंत्री से लेकर आप राष्ट्रपति बन सकते हैं.”

रोहरानंद ने जिज्ञासा भरे स्वर में कहा- “सर ! क्या यह अनिवार्य है आपके बगैर वैतरणी पार नहीं हो सकती ? बिल्कुल यह आकाट्य सत्य है. देश और लोकतंत्र का यही सत्य है.” राजनीतिक दल ने गंभीरता स्वर में कहा.

“अच्छा कृपया यह बताइए, देश के नेताओं पर आपका कुछ अंकुश भी है या नहीं ?”

राजनीतिक दल ने कहा- “हम एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं, मेरे बिना उनका अस्तित्व नहीं उनके बिना मेरा अस्तित्व नहीं है .”

“देश की जनता आपको धृतराष्ट्र सरीका समझने लगी है .”

राजनीतिक दल- “यह मैंने तो कभी नही सुना.अगर ऐसा है तो मैं क्या कर सकता हूं.”

“आपका कुछ विशेषाधिकार तो होगा आखिर आप- आप हैं ?”

रोहनंद ने उसकी आंखों में आंखें डाल कर अधिकार पूर्वक कहा. -“मेरी सुनता ही कौन है ?” राजनीतिक दल की आंखों में अब पीड़ा उभर आई थी.

“अर्थात, आप पर जो गंभीर आरोप हैं वह सत्य हैं ?”

रोहरानंद ने सफल पत्रकार की तरह घेर लिया.

“कदापि नहीं, मैं विवश हूं, बंधन में हूं, मगर इसका तात्पर्य यह नहीं कि मैं कमजोर हूँ मेरी ऐसी ऐसी उपलब्धियां है जो आप पाठकों को बता सकते हैं .”राजनीतिक दल ने प्रभावोत्पादक भाव से कहा.

“ठीक है, सिक्के के दो पहलू होते हैं मगर अभी हम आपसे यह जानना चाहते हैं कि क्या देश के नेता आपके कंधे का इस्तेमाल अपनी स्वार्थ साधना के लिए नहीं कर रहे हैं ?”

राजनीतिक दल,- “हमें इस संदर्भ में कुछ नहीं कहना है. नेक्सट क्वेश्चन…”

“लेकिन आप देश की एक जिम्मेदार संस्था है, आप किसी प्रश्न को जो जनता आपसे जानना चाहती है, उसे कैसे नकार सकते हैं ?”

“लोकतंत्र की यही तो खूबी है. कुछ बातें जनता को नहीं बताई जा सकती .”

“अच्छा, कृपया यह बताएं रोहरानंद ने प्रश्न दागा-” नेता तो आपके सहयोग से देश की सत्ता का आनंद लेते हैं, क्या आपको रशक नहीं होता की काश ! हम भी इतिहास में अपना नाम लिखवाते.”

“देखो ! राष्ट्रीय सेवक कांग्रेस अर्थात हमारा नाम तो देश के इतिहास में अमर रहेगा ही.”

“वह कैसे ?”रोहरानंद ने पूछा.

“देश के सर्वाधिक प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री हमने दिए हैं.”

राजनीतिक दल ने कहा और गर्व से मुस्कुराते चारों तरफ देखने लगा.” यह सुन भीड़ ने ताली बजाकर आनंद लिया.

“सचमुच ?” रोहरानंद ने आश्चर्य प्रकट किया

” देश के योग्यतम नेता हमने ही तो दिए हैं, जिससे राष्ट्र दुनिया में सर उठा कर गर्व से खड़ा है.”

“सचमुच,मगर इसके साथ ही देश को भ्रष्टाचार के अंधेरे में आपने ही रोशन किया है.” रोहरानंद के होठों पर अब विदूप मुस्कान थी.

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“यह तो विपक्ष का आरोप है, विरोधी दल सत्ता हथियाने ऐसे प्रोपेगेंडा करता रहता है. दरअसल सत्य तो यह है कि भ्रष्टाचार विकास का सोपान है. यह भ्रष्टाचार ही है जिसने देश को अमेरिका , चीन, ब्रिटेन के समकक्ष लाकर खड़ा किया है.”

“धन्यवाद ! आपने साहस के साथ सत्य को स्वीकार किया हम और देश आपकी स्पष्ट बयानी का कायल हो गए हैं अब एक अंतिम प्रश्न और…। कृपया यह बताएं आप की छवि लगातार धूमिल क्यों होती जा रही है और इसे रोकने…”

“वह अपनी-अपनी दृष्टि है. हमें तो लगता है हम पूर्ण निष्ठा से देश की सेवा कर रहे हैं और ऐसे ही करते रहेंगे.”राजनीतिक दल ने कहा. इधर रोहरा नंद ने नोटबुक बंद कर दफ्तर की ओर रुख किया.

पति की प्रेमिका का खूनी प्यार

महानगर मुंबई से करीब 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पुणे शहर में 21 नवंबर, 2018 को 2-2 जगहों पर हुई गोलीबारी ने शहर के लोगों के दिलों में डर पैदा कर दिया था. इस गोलीबारी में एक महिला की मौत हो गई थी और क्राइम ब्रांच का एक अधिकारी घायल हो गया था. उस अधिकारी की हालत गंभीर बनी हुई थी.

घटना चंदन नगर थाने के आनंद पार्क इंद्रायणी परिसर की सोसायटी स्थित धनदीप इमारत के अंदर घटी. सुबह के समय 3 गोलियां चलने की आवाज से वहां रहने वाले लोग चौंके. गोलियों की आवाज इमारत की पहली मंजिल और दूसरी मंजिल के बीच बनी सीढि़यों से आई थी.

आवाज सुनते ही पहली और दूसरी मंजिल पर रहने वाले लोग अपने फ्लैटों से बाहर निकल आए. वहां का दृश्य देख कर उन का कलेजा मुंह को आ गया. सीढि़यों पर एकता बृजेश भाटी नाम की युवती खून से लथपथ पड़ी थी. वह पहली और दूसरी मंजिल के 3 फ्लैटों में अपने परिवार के साथ किराए पर रहती थी. शोरशराबा सुन कर इमारत में रहने वाले अन्य लोग भी वहां आ गए.

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लोग घायल महिला को अस्पताल ले गए, लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल द्वारा थाना चंदन नगर पुलिस को सूचना दे दी गई.

सुबहसुबह इलाके में घटी इस सनसनीखेज घटना की खबर पा कर थाना चंदन नगर के थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक अपनी टीम के साथ अस्पताल की तरफ रवाना हो गए. अस्पताल में राजेंद्र मुलिक को पता चला कि एकता भाटी को उस के फ्लैट पर ही गोलियां मारी गई थीं. डाक्टरों ने बताया कि एकता को 2 गोलियां लगी थीं. एक गोली उस के पेट में लगी थी और दूसरी सिर को भेदते हुए आरपार निकल गई थी. थानाप्रभारी अस्पताल में 2 कांस्टेबलों को छोड़ कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

वहां जाने पर यह जानकारी मिली कि मृतका एकता भाटी सुबह अपने परिवार वालों के साथ चायनाश्ता के लिए अपनी पहली मंजिल वाले फ्लैट में दूसरी मंजिल से आ रही थी. उस का पति बृजेश भाटी 5 मिनट पहले ही नीचे आ चुका था. वह अपने पिता और बच्चों के साथ बैठा पत्नी के आने का इंतजार कर रहा था. उसी समय यह घटना घटी.

थानाप्रभारी ने मुआयना किया तो एक गोली का निशान सीढि़यों के पास दीवार पर मिला. इस का मतलब हमलावर की एक गोली दीवार पर लगी थी. बृजेश भाटी ने पुलिस को बताया कि उन्होंने 3 गोलियां चलने की आवाज सुनी थी.

मामला काफी संगीन था, अत: थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक ने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पुलिस कंट्रोल रूम और फोरैंसिक टीम को भी दे दी. सूचना पाते ही शहर के डीसीपी घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया.

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पुलिस समझ नहीं पाई हत्या का कारण

मौके की काररवाई निपटाने के बाद थानाप्रभारी फिर से अस्पताल पहुंचे और एकता भाटी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून डाक अस्पताल भेज दिया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस के उच्च अधिकारियों ने आपातकालीन बैठक बुलाई, जिस में शहर के कई थानों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ क्राइम ब्रांच के डीसीपी शिरीष सरदेशपांडे भी शामिल हुए. मामले पर विचारविमर्श करने के बाद पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी.

महानगर मुंबई हो या फिर पुणे, इन शहरों में छोटीबड़ी कोई भी घटना घटती है तो स्थानीय पुलिस के साथ क्राइम ब्रांच अपनी समानांतर जांच शुरू कर देती है. डीसीपी शिरीष सरदेशपांडे ने भी एकता भाटी की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए 2 टीमें गठित कीं, जिस की कमान उन्होंने इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव और क्राइम ब्रांच यूनिट-2 के इंसपेक्टर गजानंद पवार को सौंपी.

सीनियर अफसरों के निर्देशन में स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने तेजी से जांच शुरू कर दी. उन्होंने सब से पहले पूरे शहर की नाकेबंदी करवा कर अपने मुखबिरों को सजग कर दिया.

मृतक एकता भाटी का परिवार दिल्ली का रहने वाला था, इसलिए मामले के तार दिल्ली से भी जुड़े होने का संदेह था. इस के साथसाथ उन्होंने घटना की तह तक पहुंचने के लिए आसपास लगे सारे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को खंगालना शुरू कर दिया.

पुलिस को इस से पता चला कि हत्यारे मोटरसाइकिल पर आए थे. वह मोटरसाइकिल पुणे वड़गांव शेरी के शिवाजी पार्क के सामने लावारिस हालत में खड़ी मिली. यह भी जानकारी मिली कि मोटरसाइकिल पुणे की मार्केट से चोरी की गई थी. मोटरसाइकिल वहां छोड़ कर वह सारस बाग की तरफ निकल गए थे. लिहाजा क्राइम ब्रांच की टीम हत्यारों की तलाश में जुट गई.

उसी दिन शाम करीब 4 बजे इंसपेक्टर गजानंद पवार की टीम को एक मुखबिर द्वारा खबर मिली कि चंदन नगर गोलीबारी के दोनों अभियुक्त पुणे रेलवे स्टेशन पर आने वाले हैं. वे प्लेटफार्म नंबर-3 से साढ़े 5 बजे छूटने वाली झेलम एक्सप्रैस से दिल्ली भागने वाले हैं.

धरे गए हत्यारे

यह खबर उन के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थी. यह खबर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे कर वह हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी की योजना तैयार करने में जुट गए. गाड़ी छूटने के पहले उन्हें अपना मोर्चा मजबूत करना था, इसलिए उन्होंने इस मामले की खबर चंदन नगर पुलिस के साथसाथ वड़गांव पुलिस और पुणे स्टेशन की जीआरपी को भी दे दी.

इंसपेक्टर गजानंद पवार अपनी टीम और क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव की टीम ने पुणे रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर खड़ी झेलम एक्सप्रेस पर शिकंजा कस दिया. स्थानीय पुलिस टीम भी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-3 पर नजर रखे हुए थी, जबकि इंसपेक्टर गजानंद पवार कांस्टेबल मोइद्दीन शेख के साथ स्टेशन के सीसीटीवी के कैमरों के कंट्रोल रूम में बैठ कर आनेजाने वाले मुसाफिरों को बड़े ध्यान से देख रहे थे.

जैसेजैसे गाड़ी के छूटने का समय नजदीक आ रहा था, वैसेवैसे उन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. एक बार तो उन्हें लगा कि शायद अभियुक्तों ने अपना इरादा बदल दिया होगा. लेकिन दूसरे ही क्षण उन की निगाहें चमक उठीं. गाड़ी छूटने में सिर्फ 10 मिनट बचे थे, तभी उन्होंने बदहवासी की हालत में 2 संदिग्ध लोगों को तेजी से बोगी नंबर-9 की तरफ बढ़ते हुए देखा.

यह समय पुलिस के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण था. इंसपेक्टर गजानंद पवार ने पुलिस टीमों को सावधान कर दिया. वह खुद कोच नंबर 9 के पास पहुंच गए. उन्होंने आगे बढ़ कर उन दोनों को डिब्बे में चढ़ने से रोक लिया और उन से अपनी आईडी दिखाने को कहा. उन में से एक ने अपनी आईडी दिखाने के बहाने अपनी जेब से रिवौल्वर निकाला और इंसपेक्टर गजानंद पवार को अपना निशाना बना कर 3 गोलियां चला दीं.

अचानक चली गोली से इंसपेक्टर पवार ने खुद को बचाने की कोशिश की लेकिन एक गोली उन के जबड़े में लग गई. दूसरी गोली उन के कंधे को टच करती हुई निकली जो एक आदमी को जा कर लगी.

प्लेटफार्म पर चली गोलियों की आवाज से स्टेशन पर मौजूद मुसाफिरों में भगदड़ मच गई. इसी भगदड़ का लाभ उठा कर बदमाश अपनी रिवौल्वर लहराते हुए भागने लगे. लेकिन इस में सफल नहीं हो सके. कुछ दूरी पर मुस्तैद इंसपेक्टर रघुनाथ जाधव ने दौड़ कर इंसपेक्टर गजानंद पवार को संभाला.

अन्य पुलिस वाले हमलावरों के पीछे भागे. स्टेशन से निकल कर दोनों हमलावर सड़क पर भागने लगे. पुलिस भी उन के पीछे थी. सड़क पर चल रही भीड़ की वजह से पुलिस उन पर गोली भी नहीं चला सकती थी. तभी मालधक्का रेडलाइट पर तैनात बड़ गार्डन ट्रैफिक पुलिस के कांस्टेबल राजेंद्र शेलके ने एक हमलावर को दबोच लिया. दूसरे को जीआरपी ने पकड़ कर क्राइम ब्रांच के हवाले कर दिया.

हमलावरों की गोली से घायल इंसपेक्टर गजानंद पवार और घायल आदमी को पास के ही रूबी अस्पताल में भरती करवा दिया गया था, जहां घायल आदमी की मृत्यु हो गई थी, जबकि इंसपेक्टर गजानंद पवार की हालत नाजुक बनी हुई थी.

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सुपारी ले कर बापबेटे ने की हत्या

पकड़े गए हमलावरों से पूछताछ की गई तो उन में से एक ने अपना नाम शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव बताया जबकि दूसरा उस का 19 वर्षीय बेटा मुकेश उर्फ मोंटी शिवलाल राव था. दोनों ही मूलरूप से राजस्थान के पाली जिले के रहने वाले थे, पर फिलहाल दिल्ली के उत्तम नगर में रहते थे. उन्होंने एकता भाटी की हत्या करने का अपराध स्वीकार किया.

क्राइम ब्रांच को दोनों हमलावरों से गहन पूछताछ करनी थी, इसलिए दूसरे दिन उन्हें पुणे के प्रथम मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट गजानंद नंदनवार के सामने पेश कर उन्हें 7 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड अवधि में उन से पूछताछ की गई तो पता चला कि मृतका एकता के पति बृजेश भाटी का दिल्ली की किसी महिला के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. यानी एकता पति की प्रेमकहानी की भेंट चढ़ी थी. इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी निकल कर आई, वह बेहद दिलचस्प थी.

बात सन 2014 की थी. उस समय भाटी परिवार दिल्ली में रहता था. उन का अपना छोटा सा कारोबार था, जिस की देखरेख एकता भाटी और पति बृजेश भाटी करते थे. आमदनी कुछ खास नहीं थी, बस किसी तरह परिवार की गाड़ी चल रही थी. लेकिन ऐसा कितने दिनों तक चल सकता था. इसे ले कर दोनों पतिपत्नी अकसर परेशान रहते थे.

वे अच्छी आमदनी के लिए गूगल पर सर्च करते रहते थे. इसी खोज में बृजेश भाटी की संध्या पुरी से फेसबुक पर दोस्ती हो गई. दोनों की यह दोस्ती बहुत जल्द प्यार में बदल गई. संध्या पुरी खूबसूरत युवती थी. बृजेश भाटी ने अपने फेसबुक प्रोफाइल में खुद को अनमैरिड लिखा था, जबकि वह शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था.

पति का इश्क बना एकता की मौत का कारण

बृजेश भाटी को अनमैरिड जान कर ही संध्या पुरी ने उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था. संध्या पुरी बृजेश भाटी को ले कर खुशहाल जीवन के सुनहरे सपने देखने लगी थी. संध्या पुरी के इस अंधे प्यार का चतुरचालाक बृजेश भाटी ने भरपूर फायदा उठाया. उस ने संध्या पुरी से शादी का वादा कर उस से काफी पैसा ऐंठा. साथ ही उस ने संध्या की कार भी हथिया ली थी.

इस तरह बृजेश भाटी संध्या पुरी के पैसों पर मौज कर रहा था. जब संध्या पुरी ने बृजेश पर शादी का दबाव डालना शुरू किया तो वह योजनानुसार संध्या पुरी की कार बेच कर परिवार सहित पुणे चला गया.

पुणे जाने के बाद बृजेश और एकता ने कैटरिंग का काम शुरू किया. शुरूशुरू में उन के लिए यह काम कठिन था लेकिन धीरेधीरे सब ठीक हो गया. उन की और परिवार की मेहनत से थोड़े ही दिनों में उन का यह कारोबार चल निकला. उन्होंने पुणे की कई आईटी कंपनियों में अपनी एक खास जगह बना ली थी.

उन कंपनियों के खाने के डिब्बों की जिम्मेदारी उन के ऊपर आ गई थी. उन के खाने में जो टेस्ट था, वह किसी और के डिब्बों में नहीं था.

काम बढ़ा तो पैसा आया और पैसा आया तो उन के परिवार का रहनसहन बदल गया. उन्होंने पुणे के पौश इलाके की धनदीप बिल्डिंग में 3 फ्लैट किराए पर ले लिए. 2 फ्लैट बिल्डिंग की पहली मंजिल पर थे तो एक दूसरी मंजिल पर था. दूसरी मंजिल के फ्लैट को उन्होंने अपना बैडरूम बनाया. पहली मंजिल का एक फ्लैट उन्होंने अपने दोनों बच्चों और पिता के लिए रखा.

दूसरे फ्लैट को उन्होंने खाने का मेस बना लिया. मेस में काम करने के लिए नौकर और नौकरानी भी रख ली थी, जो खाना बनाने और टिफिन तैयार करने का काम किया करते थे. सुबह की चायनाश्ता पूरा परिवार साथसाथ नीचे वाले फ्लैट में करता था.

बृजेश के शादीशुदा होने की जानकारी जब संध्या पुरी को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. क्योंकि वह बृजेश को दिलोजान से चाहती थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस शख्स पर उस ने अपना तन, मन और धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया, वह 2 बच्चों का बाप है.

संध्या को इस का बहुत दुख हुआ. वह ऐसे धोखेबाज को सबक सिखाना चाहती थी, लेकिन वह दिल्ली से फरार हो चुका था.

संध्या हार मानने वालों में से नहीं थी. उस ने निश्चय कर लिया कि वह बृजेश भाटी को ढूंढ कर ही रहेगी. इस के लिए भले ही उस के कितने भी पैसे खर्च हो जाएं. लिहाजा वह अपने स्तर से बृजेश को तलाशने लगी.

उस की कोशिश रंग लाई. उसे फरवरी 2017 में पता चल गया कि बृजेश इस समय पुणे में अपने परिवार के साथ रह रहा है. वह उस के पास पुणे चली गई. वहां वह उस के घर वालों से भी मिली. पहले तो बृजेश ने संध्या को पहचानने से इनकार कर दिया लेकिन जब उस ने अपने तेवर दिखाए तो वह लाइन पर आ गया.

संध्या ने जब शादी की बात कही तो उस ने शादी करने से इनकार कर दिया. उस समय बृजेश की पत्नी एकता ने संध्या को बुरी तरह बेइज्जत कर के घर से निकाल दिया था.

इस से नाराज और दुखी हो कर संध्या दिल्ली लौट आई. बृजेश को सबक सिखाने के लिए उस के खिलाफ उत्तम नगर थाने में बलात्कार और धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवा दी. रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद दिल्ली पुलिस ने बृजेश भाटी को पुणे से गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया. करीब डेढ़ महीने जेल में रहने के बाद वह जमानत पर बाहर आ गया तो संध्या पुरी ने उस से अपनी कार और पैसों की मांग शुरू कर दी.

इस पर बृजेश भाटी के परिवार वालों और संध्या पुरी में जम कर तकरार हुई थी. तब संध्या ने धमकी दी कि अगर उस की कार और पैसे वापस नहीं मिले तो पूरे परिवार को नहीं छोड़ेगी. भाटी परिवार ने इसे संध्या पुरी की एक कोरी धमकी समझा था.

बृजेश भाटी से छली जा चुकी संध्या पुरी ने भाटी परिवार को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. वह उसे साकार करने में जुट गई थी. वह जिस तरह तड़प रही थी, उसी तरह धोखेबाज बृजेश को भी तड़पते देखना चाहती थी. इस काम में उस के एक जानपहचान वाले शख्स ने उस की मदद की. उस ने संध्या को आपराधिक प्रवृत्ति वाले शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव से मिलवाया.

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पकड़ में आई हत्या कराने वाली प्रेमिका

संध्या पुरी बृजेश भाटी की पत्नी एकता भाटी की हत्या कराना चाहती थी. इस के लिए उस ने शिवलाल उर्फ शिवा को मोटी सुपारी दी. सुपारी लेने के बाद शिवा अपने बेटे मुकेश उर्फ मोंटी राव के साथ पुणे पहुंच गया.

पुणे आ कर दोनों ने पहले बृजेश भाटी के घर की पूरी रेकी की और घटना के दिन उन्होंने पुणे मार्केट से एक मोटरसाइकिल चुरा ली और सुबहसुबह आ कर एकता भाटी को अपना निशाना बना कर वहां से भाग निकले. वे शहर से बाहर निकल जाना चाहते थे. लेकिन पुलिस के सक्रिय होने से वह पुणे में ही रह गए थे.

उन्हें पता था कि पुणे से शाम साढ़े 5 बजे दिल्ली के लिए झेलम एक्सप्रैस जाती है. इसी ट्रेन से उन्होंने दिल्ली भाग जाना उचित समझा, इसलिए शाम 4 बजे तक उन्होंने सारसबाग के एक होटल में समय बिताया.

फिर वे प्लेटफार्म नंबर 3 पर खड़ी झेलम एक्सप्रैस में चढ़ने को हुए तो उन का सामना पुलिस से हो गया. शिवलाल ने शक होने पर गोली चला दी, जिस से इंसपेक्टर गजानंद पवार घायल हो गए.

शिवलाल उर्फ शिवा बाबूलाल राव और मुकेश उर्फ मोंटी राव से पूछताछ करने के बाद क्राइम ब्रांच की एक टीम संध्या पुरी को गिरफ्तार करने दिल्ली निकल गई. 26 नवंबर, 2018 को दिल्ली में उत्तम नगर पुलिस की सहायता से संध्या पुरी को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस संध्या को पुणे ले गई.

पूछताछ के बाद संध्या पुरी ने पूरी कहानी बता दी.॒पुलिस ने संध्या पुरी, शिवलाल और उस के बेटे मुकेश उर्फ मोंटी को कोर्ट में पेश कर के यरवदा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में बंद थे. आगे की जांच चंदन नगर थानाप्रभारी राजेंद्र मुलिक कर रहे थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फैशन व पर्यावरण के हित का कोर्स

रोजमर्रा की हमारी लाइफ में फैशन का एक अपना स्थान है. जिसमें दिन प्रतिदिन बदलाव होना लाजमी है. मौडलिंग रैम्प हो या घर की वार्डरोब दोनों में इसकी अच्छी खासी पैठ है फैशन इंडस्ट्री ने हर जगत में अपनी एक छापछोड़ी हुई है. चाहे वो हौलीवुड हो या बौलीवुड इंडस्ट्री हो या आम लोगों की लाइफ का हिस्सा. यह जितना ज्यादा बड़ा होता जा रहा है उतना ही चिंता का सबब बनता जा रहा है इससे तकरीबन 5 करोड़ लोगों का रोजगार चल रहा है. अब जहां सरकार प्लास्टिक को लेकर चिंतित हैं वहीं  फैशन वैस्ट भी कगार में है जिससे निबटने के लिये कई कंपनियां आगे आ रही हैं.                                                                                                                                                                      अब सस्टेनेबल फैशन का दौर शुरू हो रहा है यह अपमार्केट होने के साथ ही टिकाऊ भी है. इसमें फैशन के लग्जरी होने के साथ साथ पर्यावरण की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाता है. फैशन जगत में पांव रखने वाले या मौजूदा लोगों को यह सीखना बहुत जरूरी है. इसके लिये औनलाइन कोर्स मौजूद है.

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कौन कर सकता है यह कोर्स

जो लोग फैशन इंडस्ट्री की और रुख कर रहे हैं या जो लोग इस प्रोफेशन में पहले से ही मौजूद है वो सभी इसे औनलाइन ज्वाइन कर सकते हैं. इस कोर्स से पर्यावरण की मदद करने के साथ सस्टेनेबल फैशन के बारे में जान पाएंगे. इससे आप फैशन की जटिल प्रकृति के बारे में भी जानकारी हासिल कर पाएंगे. यह कोर्स फैशन एंड सस्टेनेबिल्टी, अंडरस्टैंड लग्जरी फैशन इन ए चेंजिंग वर्ल्ड है.

यह छह हफ्ते  की अवधि का औनलाइन कोर्स है जो की निशुल्क है. यह कोर्स अब शुरू हो चूका जिसके लिये आप कभी भी एनरोल कर सकते हैं.

क्या जान पाएंगे

इस 6  हफ्ते के कोर्स में आप फैशन में टिकाऊ लग्जरी मेट्रिअल की समझ तो हासिल करेंगे ही साथ ही फैशन वेस्ट का पर्यावरण पर कैसे दुष्प्रभाव है वह भी जान पाएंगे. इसमें फैशन के लग्जरी डिजाइन, उत्पादन और खपत के बारे में भी जानकारी ले सकेंगे व फैशन के व्यपार की रणनीति की समझ भी हासिल कर सकेंगे.

कैसे करें कोर्स ज्वाइन

कोर्स के लिए वेबसाइट पर जाकर एनरोल कर सकते है एनरोलमेंट के बाद आपकी ई मेल पर कोर्स की जानकारी व सिलेबस सामग्री मिलती रहेगी कोर्स सिर्फ ६ सप्ताह का है वैसे तो यह नि:शुल्क है लेकिन अधिक लाभ पाने के लिये शुल्क अदा करना होगा.

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