लेखक: सौमित्र कानूनगो

पिछले दिनों न्यूज 18 की वैबसाइट पर एक अजीब सी खबर पढ़ने में आई. सितंबर 2018 को दिल्ली के एक पुलिसकर्मी विजय समरिया ने एयर इंडिया की मैनेजर सुलक्षणा नरूला के गुमशुदा होने पर उसे ढूंढ़ने से इनकार कर दिया.

दरअसल, विजय समरिया ने महिला के लड़के से उस की कुंडली मंगवा कर अपने ज्योतिष को दिखाई जिस में 19 अप्रैल तक उस महिला को ‘महादशा’ है यानी उस का बुरा समय है, ऐसी बात सामने आई. इत्तफाक से विजय समरिया की भी महादशा 19 अप्रैल को ही खत्म हो रही थी. उस के बाद से इस पुलिसकर्मी ने 19 अप्रैल तक महिला को ढूंढ़ने से इनकार कर दिया और परिवार वालोें को यह आश्वासन दिया कि 19 अप्रैल तक हम दोनों की महादशा खत्म होने के बाद मैं उन्हें कभी भी आसानी से ढूंढ़ लूंगा.

महिला के बेटे अनुभव को एक पुलिसकर्मी के ऐसी बात करने पर बड़ी हैरानी हुई. उन्होंने बताया कि पुलिसकर्मी ने महिला की महादशा शांत करने के उपाय के तौर पर उसे बगलामुखी देवी की मूर्ति, जो छतरपुर मंदिर में है, की पूजा करने के लिए कहा. बाद में यह केस क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. महादशा खत्म हुए एक साल बीत गया है, लेकिन अब तक महिला का कुछ पता नहीं चल सका है.

आज के इस वैज्ञानिक दौर में जहां एक तरफ हम चंद्रयान 2 का परीक्षण कर रहे हैं, एक पुलिसकर्मी का इस तरह की बात करना कितनी हैरानी पैदा करता है. अगर हमारी कानून व्यवस्था में लोग ज्योतिष के माध्यम से घटनाओं को सुलझाने लग जाएं तो क्या हम सच में उन पर भरोसा कर सकते हैं? और यह बात सिर्फ एक निश्चित व्यवसाय तक ही सीमित नहीं है. ध्यान से देखने पर मालूम पड़ता है कि अंदरूनी तौर पर हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग, चाहे वह गांव में निवास करता हो या शहर में, आज भी इन कुरीतियों से बंधा हुआ है.

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