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बेकार कप सेट का इस तरह करें इस्तेमाल

आपके घर में ऐसी बहुत सी वस्तु बेकार रखी होगी- जैसे टूटा हुआ कप, प्लास्टिक की बोतल, पेपर आदि. पर आप अपने घर में बेकार ऱखे हुए कप को भी इस्तेमाल कर सकती हैं. तो देर किस बात की चलिए बताते हैं, कैसे आप बेकार कप को इस्तेमाल कर सकती हैं.

आमतौर पर आप खुले सिक्कों को घर में ऐसे ही रख देती हैं, लेकिन बाद में सिक्के को  ढूंढने में आपको परेशानी होती है. इस परेशानी से निजात पाने के लिए हम आपको तरकिब बता रहे हैं, ऐसे में आप दो से चार कप रख लें और उनमें अलग-अलग सिक्के डालें. इससे आपको पता रहेगा कि किस कप में कौन से सिक्के रखें और जरूरत पड़ने पर बिना समय बर्बाद किए आप झट से ढूंढ लेंगी.

जिन कपों में दही आता है उन्हें यूं ही न फेंक दें. आप उन्हें अच्छी तरह धुलकर बाथरूम में टांग सकती हैं और उनमें ब्रश रख सकती हैं. जब ये पुराने हो जाएं तो नए कपों को लगा दें. अपनी मर्जी के हिसाब से इन पर कई तरीके की डिजाइन भी बनाई जा सकती हैं.

अगर आपको होम गार्डनिंग का शौक है तो इन छोटे-छोटे कपों या बाल्टियों में मिट्टी भरकर उनमें पुदिना, धनिया आदि के बीज बो दें. इससे उनमें आपके इस्तेमाल भर की चीजें उग आएगी. पर  आपको इनका ख्याल रखना होगा.

सजा किसे मिली : भाग 2

इस अकेलेपन के बावजूद उस के पास कुछ खुशनुमा पल थे… गरमियों की छुट्टियों में जब वे 15 दिन किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाते…उस के जन्मदिन पर उस की मनपसंद ड्रेस के साथ उस को उपहार भी खरीदवाया जाता…यहां तक कि होस्टल में वार्डन से इजाजत ले कर उस के जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी आयोजित की जाती तथा उस के सभी दोस्तों को गिफ्ट भी दी जाती.

फिर जैसेजैसे वह बड़ी होती गई अपनों के प्यार से तरसते मन में विद्रोह का अंकुर पनपने लगा…यही कारण था कि पहले जहां वह चुप रहा करती थी, अब अपने मन की भड़ास निकालने लगी थी तथा उन की इच्छा के खिलाफ काम करने लगी थी.

ऐसा कर के वह न केवल सहज हो जाया करती थी वरन मम्मीपापा के लटके चेहरे देख कर उसे असीम आनंद मिलने लगा था. जाने क्यों उसे लगने लगा था, जब इन्हें ही मेरी परवा नहीं है तो मैं ही इन की परवा क्यों करूं.

इसी मनोस्थिति के चलते एक बार वह छुट्टियों में अपने घर न आ कर अपनी मित्र स्नेहा के घर चली गई. वहां उस की मम्मी के प्यार और अपनत्व ने उस के सूने मन में उत्साह का संचार कर दिया…वहीं उस ने जाना कि घर ऊंचीऊंची दीवारों से नहीं, उस में रहने वाले लोगों के प्यार और विश्वास से बनता है. उस का घर तो इन के घर से भी बड़ा था, सुखसुविधाएं भी ज्यादा थीं पर नहीं थे तो प्यार के दो मीठे बोल, एकदूसरे के लिए समय…प्यार और विश्वास का सुरक्षित कवच…वास्तव में प्यार से बनाए मां के हाथ के खाने का स्वाद कैसा होता है, उस ने वहीं जाना.

उन को स्नेहा की एकएक फरमाइश पूरी करते देख, एक बार उस ने पूछा था, ‘आंटी, आप ने स्नेहा को खुद से दूर क्यों किया?’

उन्होंने तब सहज उत्तर दिया था, ‘बेटा, यहां कोई अच्छा स्कूल नहीं है…स्नेहा के भविष्य के लिए हमें यह निर्णय करना पड़ा. स्नेहा इस बात को जानती है अत: इस ने इसे सहजता से लिया.’

घर न आने के लिए मां का फोन आने पर उस ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं यहीं अच्छी हूं. आप और पापा ही घूम आओ…मैं नहीं जाऊंगी क्योंकि लौट कर आने के बाद तो आप और पापा फिर नौकरी पर जाने लगोगे और मुझे अकेले ही घर में रहना पडे़गा. मैं यहां स्नेहा के पास ही अच्छी हूं. कम से कम यहां मुझे घर होने का एहसास तो हो रहा है.’

अल्पना का ऐसा व्यवहार देख कर स्नेहा की मां ने अवसर पा कर उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा, तुम मेरी बेटी जैसी हो, मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाना…एक बात मैं तुम से कहना चाहती हूं, अपने मातापिता को तुम कभी गलत मत समझना…शायद उन की भी कोई मजबूरी रही होगी जिसे तुम समझ नहीं पा रही हो.’

‘आंटी, अपने बच्चे की परवरिश से ज्यादा एक मातापिता के लिए और भी कुछ जरूरी है?’

‘बेटा, सब की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं…कोई घरपरिवार के लिए सबकुछ त्याग देता है तो कोई अपने कैरियर को भी जीवन का ध्येय मानते हुए घरपरिवार को सहेजना चाहता है. तुम्हारी मां कैरियर वुमन हैं, उन्हें अपने कैरियर से प्यार है पर इस का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह तुम से प्यार नहीं करतीं. मैं जानती हूं कि वह तुम्हें ज्यादा समय नहीं दे पातीं पर क्या उन्होंने तुम्हें किसी बात की कमी होने दी?’

आंटी की बात मान कर अल्पना घर आई तो मां उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं. पापा का भी यही हाल था. हफ्ते भर मां छुट्टी ले कर उस के पास ही रहीं…उस से पूछपूछ कर खाना बनाती और खिलाती रहीं.

तब अचानक उस का सारा क्रोध आंखों के रास्ते बह निकला था. तब उसे एहसास हुआ था कि मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता…पर जैसे ही उन्होंने आफिस जाना शुरू किया, घर का सूनापन उस के दिलोदिमाग पर फिर से हावी होता गया. अभी छुट्टी के 15 दिन बाकी थे पर लग रहा था जैसे उसे आए हुए वर्षों हो गए हैं.

शाम को मम्मीपापा के आने पर उन के पास बैठ कर वह ढेरों बातें करना चाहती थी पर कभी फोन की घंटी बज उठती तो कभी कोई आ जाता…कभी मम्मीपापा ही उस की उपस्थिति से बेखबर किसी बात पर झल्ला उठते जिस से घर का माहौल तनावपूर्ण हो उठता. यह सब देख कर मन में विद्रोह फिर पनपने लगा.

वह होस्टल जाने लगी तो ममा ने उस के लिए नई डे्रस खरीदी, जरूरत का अन्य सामान खरीदवाया, यहां तक कि उस की पसंद की खाने की कई तरह की चीजें खरीद कर रखीं, फिर भी न जाने क्यों इन चीजों में उसे मां का प्यार नजर नहीं आया. उस ने सोच लिया जब उन्हें उस से प्यार ही नहीं है, तो वही उन की परवा क्यों करे.

अब फोन आने पर वह ममा से ढंग से बातें नहीं करना चाहती थी…वह कुछ पूछतीं तो बस, हां या हूं में उत्तर देती. उस का रुख देख कर एक बार उस की ममा उस से मिलने भी आईं तो भी पता नहीं क्यों उन से बात करने का मन ही नहीं किया…मानो वह अपने मन के बंद दरवाजे से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही हो.

छुट्टियां पड़ीं तो उस ने अपनी वार्डन से वहीं रहने का आग्रह किया. पहले तो वह मानी नहीं पर जब उस ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने उस के मम्मीपापा को सूचना दे कर रहने की इजाजत दे दी.

उस का यह रुख देख कर मम्मीपापा ने आ कर उसे समझाना चाहा तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘घर से तो मुझे यहीं अच्छा लगता है…कम से कम यहां मुझे अपनापन तो मिलता है…मैं यहीं रह कर कोचिंग करना चाहती हूं.’

बुझे मन से वह दोनों वार्डन को उस का खयाल रखने के लिए कह कर चले गए.

कुछ दिन तो वह होस्टल में रही किंतु सूना होस्टल उस के मन के सूनेपन को और बढ़ाने लगा…अब उसे न जाने क्यों किसी से मिलना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह जिस से भी मिलती वही उस के घर के बारे में पूछता और वह अपने घर के बारे में किसी को क्या बताती? अब न उस का पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य काम में…यहां तक कि वह क्लास भी मिस करने लगी…नतीजा यह हुआ कि वह फर्स्ट टर्म में फेल हो गई.

शक के कफन में दफन हुआ प्यार : भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी.

16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी.

दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा.

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दी.

मामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश

अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो.

पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका.

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था.

चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुर-मऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया.

कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए.

कुछ ही देर में बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

गांव वालों का विरोध प्रदर्शन

पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी.

जब बौयफ्रेंड करने लगे जबरदस्ती तो ऐसे बचें

आज के समय में रेप, छेड़खानी,अपहरण जैसे अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं. आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि 70 प्रतिशत ऐसे केस हैं जिसमें लड़कियां अपने ही जान-पहचान वालों, रिश्तेदारों के हवस का शिकार हुई हैं. रिश्तेदार,बौयफ्रैंड या दोस्त ये कुछ ऐसे रिश्ते हैं जिनपर हम आंख बंद कर के भरोसा करते हैं. लेकिन अब लड़कियां इनके साथ भी महफूज नही हैं. इस डर से लड़कियां सुबह से शाम तक जूझती रहती हैं. लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरतकर हर लड़की इस डर और इन अपराधियों से खुद की सुरक्षा कर सकती हैं…

जब बौयफ्रैंड जबर्दस्ती पर उतार जाए…

अगर आपका बौयफ्रैंड आपके साथ एक कमरे में जबरदस्ती करने की कोशिश करता हैं तो आप बिल्कुल भी न घबराएं. ऐसी स्थिति में मदद के लिए घर से बाहर निकलने की कोशिश करें. अगर बाहर निकालना मुमकिन नहीं हैं तो किचन की तरफ भागें किचन में ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जिससे आप आसानी से अपना बचाव कर सकती हैं.

आप हमलावर के आंखों में नमक या मिर्ची पाउडर डाल सकती हैं. इससे आपको वहां से निकल भागने का मौका मिलेगा. आप चाहें तो चाकू व टूटे हुए कांच के गिलास से भी डरा सकती हैं. ऐसी अवस्था में दिमाग काम नहीं करता. उस वक्त जो हाथ में आए उस पर फेंक दे.

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क्या करें जब कोई रेप करने की कोशिश करें…

अगर आपके साथ रेप करने की कोशिश की जा रही हैं, तो आप रोएं नहीं. रोने से सामने वाला आपको और कमजोर समझ लेगा और अपराधी का हौसला बढ़ जाएगा. ऐसे में आप खुद को धीला न छोड़ें अपने हाथ-पांव चलाती रहें. अगर आप अपराधी के नीचे हैं तो अपनी टांगों पर जोर डाल कर पलटी मार जाएं, जिससे अपराधी आपके नीचे आ जाएगा और आप इसका फायदा उठा सकती हैं.

आप घुटने से उसके प्राइवेट पार्ट पर जोरदार वार कर सकती हैं. उसके मुंह, आंख या नाक पर हमला कर सकती हैं और वहां से भाग कर मदद ले सकती हैं. अगर आपको अपराधी ने पीछे से पकड़ा हुआ हैं तो आप आगे की तरफ झुकें और सीधे हाथ के कुहनी से उसके पेट पर वार करें.

अगर अपराधी आपके सामने हैं और आपके पीछे दीवार है तो ऐसे में अपराधी आपके करीब आने की कोशिश करेंगा जैसे ही वह सामने से आपको पकड़ने की कोशिश करें. आप उसके कान के पीछे वाले भाग में अपनी उंगली घुसेड़ने की कोशिश करें, इससे वह हमलावर वही बेहोश हो जाएगा.

इलेक्ट्रिक गन का इस्तेमाल

महिलाओं पर लगातार बढ़ रहे अपराध को देखते हुए मार्केट में कई तरह के उपकरण मिलते हैं, जो लड़कियों की सैफ्टी के काम आते हैं. बाजार में ऐसी इलेक्‍ट्र‍िक गन मिलती हैं, जिसका इस्तेमाल लड़कियां अपनी सुरक्षा के लिए कर सकती हैं. इस गन से तेज करंट निकता हैं, जिसे हमलावर पर इस्तेमाल करके उसे 15 से 20 मिनट के लिए निढाल किया जा सकता हैं.

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डिस्‍टैन्स अलार्म का इस्तेमाल…

यह डिवाइस भी बाजार में आसानी से मिलता हैं. इस डिवाइस का इस्तेमाल आप तब कर सकती हैं, जब आपको खतरे की आशंका हो. डिवाइज 100-200 गज के दायरे में अलार्म की तरह बजता हैं,जिससे दूर तक आवाज गूंजने पर हमलावर पकड़े जाने के डर से भाग जाता हैं.

स्प्रे का इस्तेमाल…

लड़कियों की सुरक्षा के लिए कई तरह के स्प्रे उपलब्‍ध हैं. हमले की आशंका होने पर यह स्प्रे हमलावर पर इस्‍तेमाल किया जा सकता हैं, जिससे कुछ देर के लिए उसके हाथ-पैर सुन्न हो जाते हैं. दूसरे तरह के स्प्रे से हमलावर को थोड़ी देर के लिए दिखना बंद होता जाता हैं. स्प्रे न होने पर आप अपने पर्स में लालमिर्च या कालीमिर्च का पाउडर भी रख सकती हैं.

फ्लैश लाइट…

लिपस्‍ट‍िक की तरह दिखाई देने वाला डिवाइस महिलाओं की सैफ्टी के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकता हैं. इसमें काफी तेज फ्लैश लाइट होती हैं, जो हमलावर के आंख पर मारने पर उसे कुछ समय के लिए दिखाई देना बंद हो जाएगा.

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Edited B y- Nisha Rai

दुलहन वही जो पिया मन भाए : भाग 2

एक सुंदर सपना, आंख खुलने तक टूट चुका था. खुशी एक झलक दिखा पीठ मोड़ चुकी थी. सुहानी के सुहाने सपने दिल में लिए सत्यम अपनी नौकरी पर लौट गया. हर वक्त उमंग में रहने वाला सत्यम इस बार दुखी हृदय से लौटा. शरीर से भले वह लौट आया, परंतु बहुतकुछ इस बार घर पर ही छूट गया. सब से पहले तो उस का पहला प्यार छूटा, फिर मां और घरवालों की बेतुकी बातों से मन टूटा.

सुहानी की वह पहली झलक वहीं उस कमरे में ही रह गई थी. मांपापा पर उस के अटूट विश्वास की धज्जियां भी तो वहीं उड़ गईं. उस को अपनी मां का अंधविश्वास इस बार बहुत महंगा लगा, जिस का मोल उस की ख्वाहिशों की चिंदियों से चुकाया गया. क्षणभर में बन गए स्वप्नसलोने घरौंदे के मानो तिनकेतिनके बिखर गए थे. सब वहीं घर पर रह गया था. बस, अरमानों और ख्वाबों के भस्म लपेट लौटा था वह इस बार.

हर उम्र की एक मांग होती है. सत्यम का मन एक हमसफर के लिए अब तड़प रहा था. उस के साथ के अधिकतर लड़केलड़कियों की शादी हो चुकी थी. ज्यादातर उन्होंने अपनी पसंद के जीवनसाथी का चुनाव किया था. पहले हर रविवार जहां सब दोस्त मिलते थे, अब समाप्तप्राय ही था क्योंकि अधिकांश दोस्तों की शादी हो चुकी थी और सत्यम अब उन सब के साथ असहज महसूस करता था. अब उन की बातों का रुख घरपरिवार होता.

अकेलापन सत्यम पर हावी होने लगा था. वक्त गुजर रहा था और एकाकीपन अब उस के मानस पर चढ़ बैठा था. कोई 2 सालों से वह घर भी नहीं गया था.

उस के घरवालों द्वारा बहू की खोज जारी थी. उस खोज में अब पुरोहितजी और मां के कुछ और नए पंडे भी शामिल हो गए थे. इतने लोगों के मत के मद्देनजर न कभी एकमत होना था न हुआ.

मां परेशान हो और पूजापाठ में लगी रहतीं कि उस के बेटे की शादी हो जाए. धूर्त पंडितों के बिछाए जाल में फंस वे रूठे हुए काल्पनिक ग्रहनक्षत्रों की मनावन में लगी रहतीं. फिर एक दिन सत्यम को फोन आया कि दादी बहुत बीमार हैं, जल्दी घर आ जाओ.

सत्यम जब घर पहुंचा तो देखा कि घर में काफी बड़े पैमाने पर किसी हवन का आयोजन है. दादी हाथ जोड़े बिलकुल स्वस्थ बैठीं हवन की समिधा के कारण बहते आंसुओं को पोंछ रही हैं.

‘‘अब तुम ऐसे तो 2 साल से घर आ ही नहीं रहे थे, तो मुझे झूठ बोलना पड़ा,’’ मां सत्यम को गले लगाते हुए बोलीं.

‘‘मां, ऐसा नहीं करना चाहिए. यह सब क्या हो रहा है?’’ आयोजन की तरफ इंगित करते हुए उस ने पूछा.

‘‘बेटा, तुम्हारा बृहस्पति और दूसरे ग्रह भी कमजोर हैं, इसलिए विवाह तय होने में मुश्किलें आ रही हैं. इस विशेष पूजा के बाद सारे ग्रहों की चाल सुधर जाएगी. चलो, जल्दी से नहा कर आओ, पूजा पर तुम्हें ही तो बैठना है,’’ मां ने कहा.

सत्यम की निगाह 4 मोटे हट्टेकट्टे, गोरेचिट्टे जनेऊधारियों पर पड़ी जो सारे आयोजनों के कर्ताधर्ता बने हवनकुंड के पास बैठे हुए हैं. उन में वह धूर्त भी उसे दिख गया जिस ने सुहानी के पिता के साथ मोलभाव किया था. उस का सर्वांग सुलग उठा उसे देख, जिस ने उस के जीवन में आग लगाई थी.

‘‘मां, तुम कब बंद करोगी तमाशा करना. तुम्हें एहसास ही नहीं कि धर्म के नाम पर ये कितना पाखंड करवा रहे हैं. मां, जरा विज्ञान की किताबों को भी पढ़ा करो. इंसान ग्रहों तक पहुंच गया और तुम आज भी इन की पुरातन पोथियों को ही आधार माने जी रही हो. मां, यह इन का धंधा है. तुम जैसे अंधविश्वासी, भयभीत और अज्ञानी लोग इन के चंगुल में फंस अपना पैसा और वक्त दोनों बरबाद करते हैं,’’ सत्यम बोले जा रहा था, ‘‘मां, अगर तुम ने यह आयोजन जारी रखा तो मैं एक पल भी यहां नहीं रुकूंगा.’’ सत्यम ने मां को धमकी दी.

2 वर्षों बाद बेटे को देख रही मां कुछ ही क्षणों के बाद पंडों से माफी मांगते हुए उन्हें विदा किया. बमुश्किल उन्हें विदा कर सत्यम की मां भयभीत हिरनी सी सत्यम की बगल में कांपती हुई सी बैठ रोने लगीं. सत्यम ने उन की हिम्मत को बढ़ाते हुए सुहानी के पिता के साथ मां के पुरोहित की सारी बनियागीरी का बखान कर दिया.

‘‘जानती हो, अभी पिछले ही दिनों मैं ने सुहानी को उस के पति और बच्चे के साथ देखा. सुहानी ने मेरा परिचय भी कराया अपने पति से, ‘इन से मिलो, बहुत उच्चशिक्षित हैं पर मंगल, बृहस्पति, शनि की चाल से अपने जीवन के फैसले लेते हैं. मैं ने बताया था न इन के विषय में.’ तो उस के पति ने हंसते हुए कहा, ‘मैं आप को धन्यवाद देना चाहता हूं कि आप की इसी सोच की वजह से मुझे सलोनी जैसी लड़की मिल सकी, अन्यथा…’

‘‘मां, आज भी उन के ठहाके मेरे कानों में गूंज रहे हैं,’’ बोलता हुआ सत्यम भावुक हो गया.

मां आश्चर्य से उस का चेहरा तक रही थीं. उन्हें बेटे की चाहत का आज अनुभव हुआ. तभी सत्यम के पिता और घर के अन्य सदस्य भी आ कर बैठ गए.

सब को आया देख सत्यम ने अपने दिल की बात सामने रखी, ‘‘यह सच बात है कि मैं सलोनी को कभी नहीं भूल पाऊंगा. शायद मुझे ही हिम्मत दिखानी थी. पर आप सब को खुश करने के चक्करों में मैं अपनी खुशी से हाथ धो बैठा. अपनी उस कायरता और नासमझी का मुझे हमेशा अफसोस रहेगा.’’ सत्यम की बात सुन सब एकदूसरे को देखने लगे. उस के पिता ने कहा, ‘‘तुम्हारी मां और दादी तुम्हारे लिए लड़की देख रही हैं, तुम चिंता न करो.’’

‘‘नहीं, अब मुझे अपने जीवन के फैसले लेने की आजादी दें. मेरे साथ मेरे दफ्तर में निशा नाम की लड़की काम करती है. वह अपनी शादी के 3 महीने बाद ही विधवा हो गई थी. उस के घरवालों ने कुंडली का मिलान कर उस का विवाह किया था. निशा कुशाग्र और व्यवहारकुशल है. हम दोनों एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. अगले महीने की 3 तारीख को हम कोर्ट मैरिज करने वाले हैं. आप लोग तो उसे स्वीकार करेंगे नहीं…’’ कहता सत्यम भावुक हो उठा और कमरे में चला गया.

उस दिन देर शाम तक किसी ने किसी को कुछ नहीं कहा. एक सन्नाटा सा पसरा रहा. सब इतनी खामोशी से एकदूजे से मुंह छिपाए पड़े थे कि मानो सन्नाटा बोल पड़ेगा. सत्यम तो बोल कर जाने कब का चुप हो चुका था, पर शायद घरवाले अभी तक उसे सुन रहे थे, गुन रहे थे. सब के मन में विचारों की आंधी चल रही थी कि क्या वाकई वे गुनहगार हैं सत्यम के. मां, पापा, दादी, दादाजी, बूआ, चाचा सब यही सोच रहे थे कि अनजाने में ही भले, अपने अंधविश्वासों के चलते उन्होंने अपने आंख के तारे की हसरतों को तारतार कर दिया.

आखिर चुप्पी तोड़ी दादी ने, ‘‘बेटा सत्यम, तुम सही कह रहे हो. हम सब तुम्हारे अपराधी हैं.’’

‘‘ठीक है, हो सकता है पुरोहितजी से उस वक्त गणना करते वक्त कोई भूल हुईर् होगी. पर इस बार फिर जीतेजी मक्खी निगलना,’’ यह मां थीं जिन के मन में धर्म के नाम पर अंधविश्वासों की गहरी जड़ें फैली हुई थीं.

‘‘सत्यम की मां, वक्त के साथ अपनी सोच बदलो. इंसान जिंदगीभर सीखता रहता है. कोई जरूरी नहीं कि तुम्हारे पुरोहित ने जो कहा वह अंतिम सत्य हो जाए. विचारों की उन्नयन अतिआवश्यक है,’’ सत्यम के पापा ने अपने विचार रखे.

‘‘भाभी, जब धर्म और रीतिरिवाज व्यक्ति के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लगें, तो उन्हें किसी के व्यक्तिगत जीवन का अतिक्रमणकर्ता मान त्याग देना चाहिए,’’ चाचाजी ने कहा.

‘‘सत्यम दिखा तो निशा की तसवीर, जब तुम्हारे साथ ही नौकरी कर रही है तो पढ़ीलिखी तो काफी होगी,’’ कहते हुए बूआ सत्यम के पास जा बैठीं.

मां का खेमा अब खाली था, पीछे मुड़ कर देखा सुबह की पूजा व्यवस्था यों ही बिखरी पड़ी हुई थी, और आगे पूरा परिवार सत्यम को घेरे निशा कि तसवीरें लैपटौप पर देखने में मशगूल दिखा, यानी पूरा परिवार दल बदल चुका था.

मां अकेली धर्म का ताला लिए खड़ी थीं अपनी पार्टी के दरवाजे पर. कुछ देर सोचती हुई उन्होंने पूजाघर की तरफ रुख कर मन में सोचा, ‘अब तुम्हारी पूजा कल करूंगी. चलूं मैं भी अपनी होने वाली बहू की तसवीरों को देख लूं, वरना कहीं सब मुझे छोड़ बरात ले, निकल ही न जाएं.’

जेएनयू और बीएचयू : धार्मिक विचारधारा के अखाडे बन गये शिक्षा के मंदिर

जेएनयू और बीएचयू का देश की शिक्षा व्यवस्था में अहम योगदान रहा है. राजनीतिक विचारधारा की लड़ाई में दोनो ही विश्वविद्यालय पिस रहे है. विचारधारा की राजनीति अब ओछी बयानबाजी पर उतर आई है. जहां भगवा समर्थक जेएनयू को ‘सेक्स का अड्डा’ बता रहे है वही बीएचयू में भाषा को धर्म से जोडकर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के सहायक प्रोफेसर डाक्टर फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध किया जा रहा है. पूरा समाज धर्म के आधार पर विभाजन रेखा पर खड़ा है. धार्मिक विभाजन वोट बैंक की राजनीति लिये भले ही मुफीद हो पर समाज के विकास की दिशा में किसी हालत में उचित नहीं माहौल नहीं है.

तमाम लोग बीएचयू में डाक्टर फिरोज खान की नियुक्ति को भले ही समर्थन कर हो पर क्या ऐसे माहौल में वह पढ़ा पाएंगे ? जेएनयू में पढ़ चुके छात्र आज तमाम प्रतिष्ठित पदों पर है. क्या ऐसे आरोप के बाद शान से वह यह कह सकते है कि वह जेएनयू में पढ़े है ? वोट बैंक की ओछी राजनीति ने दोनो ही प्रतिष्ठित विश्वद्यिालयों की छवि को मिट्टी में मिला दिया है. यहां के पढ़ने वाले छात्र किस तरह की पहचान लेकर जाएंगे यह सोचने का विषय है. जेएनयू में पढ़ने वाली लड़की क्या सम्मान से अपना जीवन गुजर कर पायेगी?  चरित्रहनन से जुड़े यह वह सवाल है जिनके जबाव किसी के पास नहीं है.

राजनीति में वैचारिक स्तर पर विरोध एक बात है और वैचारिक विरोध को लेकर चरित्रहनन की राजनीति एक अलग मोड़ पर समाज को ले आई है. जिनके घेरे में शिक्षा के मंदिर कहे जाने विश्वद्यालय अब आ गये है. हमारे देश में शिक्षा का स्तर वैसे भी कहां से कहा जा रहा है यह देखने वाली बात है. धार्मिक ट्रस्ट द्वारा संचालित कालेजों की घटनाएं बताती है कि समाज किस दिशा में जा रहा है. शाहजहांपुर में संत और भाजपा सरकार में मंत्री रहे स्वामी चिन्मयानंद का अपने ही कालेज की लडकी से नंगे होकर मसाज कराने की घटना का भी जेएनयू की तरह विरोध हुआ होता तो पीडित लडकी को न्याय मिल जाता.

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में संकीर्ण मानसिकता के छात्रों द्वारा संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान विभाग में डां फिरोज खान के एसिस्टेण्ट प्रोफेसर नियुक्त हो जाने का सिर्फ उनके मुस्लिम होने के कारण विरोध किया जा रहा है. जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि डा. फिरोज खान इस पद के लिए सारी जरूरी शर्तें पूरी करते हैं. विरोध करने वाले छात्रों का यह भी कहना है कि यह नियुक्ति विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना मालवीय जी की सोच के अनुकूल नहीं है. मदन मोहन मालवीय ने कहा था, ’भारत सिर्फ हिन्दुओं का देश नहीं है. यह मुस्लिम, इसाई व पारसियों का भी देश है. यह देश तभी मजबूत व विकसित बन सकता है जब भारत में रहने वाले विभिन्न समुदाय आपसी सौहाद्र के साथ रहेंगे.’ मालवीय जी की यह कोशिश रही कि दुनिया भर से भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के विद्वानों को लाकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में उनसे अध्यापन कराया जाए. ऐसे में विरोध करने वाले छात्रों को सोचना चाहिए कि क्या वाकई में मालवीय जी उनके तर्क से सहमत होते ?

घातक निकली बीवी नंबर 2 : भाग 2

दुकानदार अवधेश ने जो बताया, उस से साफ हो गया कि दरोगा पच्चालाल के साथ जो युवक था, वह उन का काफी करीबी था. इस जानकारी के बाद टीम ने दरोगा के खास करीबियों पर ध्यान केंद्रित किया. इस में उस की पत्नी किरन, दरोगा के 4 बेटे और कुछ अन्य लोग शामिल थे. पच्चालाल के बेटों से पूछताछ करने पुलिस टीम रामकुंड, सीतापुर पहुंची.

पूछताछ में सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल ने बताया कि उन के पिता का न तो किसी से विवाद था और न ही जमीनजायदाद का कोई झगड़ा था. सौतेली मां किरन से भी जमीन या मकान के बंटवारे पर कोई विवाद नहीं था. सौतेली मां किरन अपने बच्चों के साथ कानपुर में रहती थी.

पच्चालाल दोनों परिवारों का अच्छी तरह पालनपोषण कर रहे थे. चारों बेटों को उन्होंने कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी थी. सत्येंद्र ने यह भी बताया कि 6 महीने पहले पिता ने उस की शादी धूमधाम से की थी.

शादी में सौतेली मां किरन भी खुशीखुशी शामिल हुई थीं. शादीबारात की सारी जिम्मेदारी उन्होंने ही उठाई थी. शादी में बहू के जेवर, कपड़ा व अन्य सामान पिता के सहयोग से उन्होंने ही खरीदा था. किरन से उन लोगों का कोई विवाद नहीं था.

जितेंद्र और किरन आए संदेह के घेरे में

मृतक दरोगा पच्चालाल के बेटों से पूछताछ कर पुलिस टीम कानपुर लौट आई. इस के बाद यह टीम थाना नवाबगंज के सूर्यविहार पहुंची, जहां दरोगा की दूसरी पत्नी किरन किराए के मकान में रहती थी. पुलिस को देख कर किरन रोनेपीटने लगी. पुलिस ने उसे सांत्वना दी. बाद में उस ने बताया कि दरोगा पच्चालाल ने उस से तब प्रेम विवाह किया था, जब वह बेनीगंज थाने में तैनात थे. दरोगा से किरन को 3 संतानें हुई थीं, एक बेटा व 2 बेटियां.

किरन रो जरूर रही थी, लेकिन उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं टपक रहा था. उस के रंग, ढंग और पहनावे से ऐसा नहीं लगता था कि उस के पति की हत्या हो गई है. घर में किसी खास के आनेजाने के संबंध में पूछने पर वह साफ मुकर गई. लेकिन पुलिस टीम ने जब किरन के बच्चों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि जितेंद्र अंकल घर आतेजाते हैं, जो पापा के दोस्त हैं.

पुलिस टीम ने जब किरन से जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव के बारे में पूछताछ की तो उस का चेहरा मुरझा गया. उस ने घबराते हुए बताया कि जितेंद्र उस के दरोगा पति का दोस्त था. वह रोडवेज बस चालक है और रोडवेज कालोनी में रहता है. पूछताछ के दौरान पुलिस टीम ने बहाने से किरन का मोबाइल ले लिया.

पुलिस टीम में शामिल सर्विलांस सेल के प्रभारी शिवराम सिंह ने किरन के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि दरोगा की हत्या के पहले व बाद में किरन की एक नंबर पर बात हुई थी.

उस मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला वह नंबर जितेंद्र उर्फ महेंद्र का था. पच्चालाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स में भी जितेंद्र का नंबर था.

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दूसरी पत्नी बनी हत्या की वजह

जितेंद्र शक के घेरे में आया तो पुलिस टीम ने देर रात उसे रोडवेज कालोनी स्थित उस के घर से हिरासत में ले लिया और थाना सजेती ले आई. उस से दरोगा पच्चालाल की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने हत्या से संबंधित कोई जानकारी होने से इनकार कर दिया.

हां, उस ने दोस्ती और दरोगा के घर आनेजाने की बात जरूर स्वीकार की. जब पुलिस ने अपने अंदाज में पूछताछ की तो जितेंद्र ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया और उस ने दरोगा पच्चालाल की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

जितेंद्र उर्फ महेंद्र यादव ने बताया कि किरन से उस के नाजायज संबंध बन गए थे. दरोगा पच्चालाल को जानकारी हुई तो वह किरन को प्रताडि़त करने लगा. पच्चालाल प्यार में बाधक बना तो उस ने और किरन ने मिल कर उस की हत्या की योजना बनाई.

योजना बनाने के बाद उन्होंने एक लाख रुपए में दरोगा की हत्या की सुपारी निजाम अली को दे दी, जो विधूना का रहने वाला है. निजाम अली ने उसे पसहा, विधूना निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. इस के बाद तीनों ने मिल कर 2 जुलाई की रात दरोगा की हत्या कर दी और फरार हो गए.

पुलिस टीम ने जितेंद्र की निशानदेही पर विधूना से निजाम अली तथा पसहा गांव से राघवेंद्र उर्फ मुन्ना को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को थाना सजेती की हवालात में डाल दिया गया. इस के बाद पुलिस टीम सूर्यविहार, नवाबगंज पहुंची और यह कह कर किरन को साथ ले आई कि दरोगा पच्चालाल के हत्यारे पकड़े गए हैं.

किरन थाना सजेती पहुंची तो उस ने अपने प्रेमी जितेंद्र तथा उस के साथियों को हवालात में बंद देखा. उन्हें देखते ही वह सब कुछ समझ गई. अब उस के लिए पुलिस को गुमराह करना मुमकिन नहीं था. उस ने पति की हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल का लूटा गया पर्स, घड़ी व मोबाइल भी बरामद करा दिए, जिन्हें उस ने घर में छिपा कर रखा था.

चूंकि दरोगा पच्चालाल के हत्यारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने मुंशी अजयपाल को वादी बना कर भादंवि की धारा 302, 201, 394 तथा 120बी के तहत जितेंद्र उर्फ महेंद्र, निजाम अली, राघवेंद्र उर्फ मुन्ना तथा किरन के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

7 जुलाई को एसएसपी अखिलेश कुमार ने प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में उन्होंने हत्या का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए देने की घोषणा की. उन्होंने गिरफ्तार किए गए दरोगा के हत्यारों को पत्रकारों के सामने भी पेश किया, जहां हत्यारों ने अवैध रिश्तों में हुई हत्या का खुलासा किया.

पच्चालाल गौतम सीतापुर जिले के थाना मानपुरा क्षेत्र के गांव रामकुंड के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी कुंती देवी के अलावा 4 बेटे सत्येंद्र, महेंद्र, जितेंद्र व कमल थे. पच्चालाल पुलिस विभाग में दरोगा के पद पर तो तैनात थे ही, उन के पास खेती की जमीन भी थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. कुल मिला कर उन की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी.

पच्चालाल की पत्नी कुंती देवी घरेलू महिला थीं. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थीं, लेकिन स्वभाव से मिलनसार थीं. कुंती पति के साथसाथ बच्चों का भी ठीक से खयाल रखती थीं. पच्चालाल भी कुंती को बेहद चाहते थे, उन की हर जरूरत को पूरा करते थे. लेकिन बीतते समय में इस खुशहाल परिवार पर ऐसी गाज गिरी कि सब कुछ बिखर गया.

सन 2001 में कुंती देवी बीमार पड़ गईं. पच्चालाल ने पत्नी का इलाज पहले सीतापुर, लखनऊ व कानपुर में अच्छे डाक्टरों से कराया. पत्नी के इलाज में दरोगा ने पानी की तरह पैसा बहाया, लेकिन काल के क्रूर हाथों से वह पत्नी को नहीं बचा सके. पत्नी की मौत से पच्चालाल खुद भी टूट गए और बीमार रहने लगे.

जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे पत्नी की मौत का गम कम होता गया. पच्चालाल ड्यूटी और बच्चों के पालनपोषण पर पूरा ध्यान देने लगे. पच्चालाल का दिन तो सरकारी कामकाज में कट जाता था, लेकिन रात में पत्नी की कमी खलने लगती थी. पत्नी के बिना वह तनहा जिंदगी जी रहे थे. अब उन्हें अहसास हो गया था कि पत्नी के बिना आदमी का जीवन कितना अधूरा होता है.

सन 2002 में दरोगा पच्चालाल को हरदोई जिले के थाना बेनीगंज की कल्याणमल चौकी में तैनाती मिली. इस चौकी का चार्ज संभाले अभी 2 महीने ही बीते थे कि पच्चालाल की मुलाकात एक खूबसूरत युवती किरन से हुई. किरन अपने पति नरेश की प्रताड़ना की शिकायत ले कर चौकी आई थी.

किरन के गोरे गालों पर बह रहे आंसू, दरोगा पच्चालाल के दिल में हलचल मचाने लगे. उन्होंने सांत्वना दे कर किरन को चुप कराया तो उस ने बताया कि उस का पति नरेश, शराबी व जुआरी है. नशे में वह उसे जानवरों की तरह पीटता है. वह पति की प्रताड़ना से निजात चाहती है.

खूबसूरत किरन पहली ही नजर में दरोगा पच्चालाल के दिलोदिमाग पर छा गई. उन्होंने किरन के पति नरेश को चौकी बुलवा लिया और किरन के सामने ही उस की पिटाई कर के हिदायत दी कि अब वह किरन को प्रताडि़त नहीं करेगा. दरोगा की पिटाई और जेल भेजने की धमकी से नरेश डर गया और किरन से माफी मांग ली.

इस के बाद दरोगा पच्चालाल हालचाल जानने के बहाने अकसर किरन के घर आनेजाने लगे. वह किरन से मीठीमीठी बातें करते थे. किरन भी उन की रसीली बातों में आनंद का अनुभव करने लगी थी. किरन का पति नरेश घर आने पर ऐतराज न करे, यह सोच कर पच्चालाल ने उस से दोस्ती गांठ ली. दोनों की नरेश के घर पर ही शराब की महफिल जमने लगी. पच्चालाल उस की आर्थिक मदद भी करने लगे.

कोच के सामने पहलवानों से भिड़ गए विद्युत जामवाल

दरअसल, विद्युत जामवाल की फिल्म ‘कमांडो 3’ 29 नवंबर को सिनेमाघरों में दिखाई देगी. उसी फिल्म के प्रमोशन के लिए विद्युत जामवाल यमुना नदी किनारे बने इस अखाड़े में आए थे, जिसे भारत के मशहूर पहलवान रहे मास्टर चंदगीराम ने बनवाया था. विद्युत जामवाल ने इस मौके पर अपनी फिल्म ‘कमांडो 3′ के बारे में बताया और मैट और मिट्टी के अखाड़े पर कुछ उभरते पहलवानों के साथ कुश्ती के दांव भी आजमाए.

उत्तर प्रदेश पुलिस में डीएसपी पद पर कार्यरत  पहलवान जगदीश कालीरमन ने विद्युत जामवाल का स्वागत किया और उन्हें नई फिल्म के लिए शुभकामनाएं दीं. साथ ही’ कुश्ती और मार्शल आर्ट्स में समानता बताते हुए कहा कि कोई भी खेल हमारे शरीर को तो फिट रखता ही है, देश को भी मजबूत बनाता है. अब तो बहुत सी फिल्मों में खेल और खिलाड़ी की जिंदगी के बारे में बता कर लोगों का सार्थक मनोरंजन किया है.

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विद्युत् जामवाल तो आते ही छा गए थे. फिल्मी हीरो पर उन का खिलाड़ी मन पूरी तरह हावी था. अखाड़े में उन्होंने मिट्टी को समतल बनाने के लिए उन्होंने फावड़ा उठा लिया और अपने सफेद कपड़ों के खराब होने की भी परवाह नहीं की. एक पहलवान को तो उन्होंने किसी पेशेवर पहलवान की तरह पटक दिया था. इस के बाद विद्युत जामवाल ने मैट पर असली पहलवानों की असली कुश्ती देखी, जबकि जगदीश कालीरमन ने लाइव कमेंट्री की.

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अपनी फिल्म से ज्यादा विद्युत जामवाल ने नई पीढ़ी को स्ट्रांग बनने की सलाह दी और महिला पहलवानों की हिम्मत और जज्बे की खूब तारीफ की. उन्होंने कहा कि सिर्फ जिम में जाने और बौडी बनाने से देश मजबूत नहीं बनता है, बल्कि वह देश आगे बढ़ता जिस में पुरुष वहां की महिलाओं का सम्मान करते हैं और उन पर आई मुसीबत में उन का साथ देने के लिए खड़े होते हैं.

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पहलवान इस जज्बे में बाजी मार जाते हैं. हर गुरु अपने शिष्य को खेल के साथसाथ महिलाओं की इज्जत करना भी सिखाता है. महिलाओं को भी यह नहीं सोचना चाहिए कि क्योंकि वे महिलाएं इसलिए कमजोर हैं, बल्कि उन के पास तो अपनी बातों से पुरुषों को भरमाने की ऐसी ताकत होती है कि मनचले को बातों में लगाया और उसे सबक सिखाया. आप चिल्लाइए और देखिए कि मनचला कैसे वहां से रफूचक्कर होगा.

इस सीन की वजह से कृति खरबंदा ने छोड़ी फिल्म ‘चेहरे’

हाल ही में खबर आई थी अमिताभ बच्चन और इमरान हाशमी स्टारर की आने वाली फिल्‍म ‘चेहरे’ में कृति खरबंदा काम नहीं करेंगी. खबरों के अनुसार उन्हें इस फिल्म से निकाल दिया गया है.  वैसे इसकी वजह बताई जा रही थी कृति के नखरे. दरअसल ‘हाउसफुल 4’ में नजर आ चुकीं कृति जल्द ही अपनी आने वाली फिल्‍म ‘पागलपंती’ में भी नजर आने वाली हैं. कृति के पास काफी बड़े स्‍टार्स की फिल्‍में हैं.

अब खबर ये है कि इस फिल्‍म में कृति के काम न करने की वजह कुछ और है. रिपोर्टस के अनुसार कृति के ये फिल्‍म छोड़ने की वजह लंबा इंटीमेट सीन है. एक सीन में कृति को एक को-एक्‍टर के साथ काफी इंटीमेट सीन करना था. साथ ही उन्‍हें इस सीन में लिपलौक भी करना था,  जबकि इमरान हाशमी यह सब एक दूसरे कमरे से देखने वाले थे.

कृति को यह बताया नहीं गया था कि यह सीन इस तरह से शूट किया जाएगा, या शायद कृति को लगा कि इस तरह के बेहद इंटीमेट सीन की जरूरत नहीं है. ऐसे में मेकर्स से कुछ देर चर्चा और बहस करने के बाद कृति ने फिल्‍म छोड़ने का फैसला कर लिया.

लेकिन कृति खरबंदा ने इस खबर पर अपनी कोई  रिएक्शन नहीं दी है. इसी बीच फिल्‍म के प्रोड्यूसर आनंद पंडित ने एक ट्वीट के जरिए लिखा कि कृति और मेकर्स ने आपसी सहमति से इस फिल्‍म से अलग हुई हैं.

डीएचएफएल : दिवालियापन के लिये नोटबंदी जिम्मेदारी

उत्तर प्रदेश बिजली विभाग में पीएफ यानि प्राविटेंड फंड घोटाले से चर्चा में आई डीएचएफएल को जिस समय अखिलेश सरकार ने पीएफ निवेश के लिये चुना उसकी क्रेडिट रेटिंग 5 स्टार थी. पीएफ के पैसे को निजी सेक्टर में निवेश को सरकार के द्वारा अनुमति प्राप्त है. सरकारी कानून के अनुसार ही पीएफ का पैसा निजी सेक्टर में निवेश किया गया. पीएफ का पैसा निजी क्षेत्र में इस लिये निवेश किया गया क्योंकि निजी बैंक की ब्याजदर अधिक थी.

2017 से जो पैसा डीएचएफएल में निवेश किया गया ब्याज सहित करीब 41.22 सौ करोड़ हो गया था. इनमें से डीएचएफएल ने 18.55 सौ करोड़ रूपये बिजली विभाग को वापस कर दिया. बचा हुआ 22.67 सौ करोड़ रूपए डीएचएफएल इस लिये नहीं दे पाया क्योंकि कोर्ट ने डीएचएफएल के खातों से भुगतान पर रोक लगा दी. सवाल उठाता है कि 2017 में जो डीएचएफएल फाइव स्टार रेटिंग वाली कंपनी थी वह 2019 में दिवालिया कैसे हो गई ?

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डीएचएफएल  के दिवालिया होने की कहानी नोटबंदी और हाउसिंग सेक्टर में आये नये कानूनों से जुड़ी हुई है. 2016 में केन्द्र सरकार ने नोटबंदी की और हाउसिंग सेक्टर के लिए नए नियम कानून बना दिये. डीएचएफएल ने ज्यादातर कर्ज डेवलपर्स सेक्टर में लगाये थे. नोटबंदी और रियल स्टेट में नये कानून बनने से डेवलपर्स कर्ज का पैसा डीएचएफएल को वापस नहीं कर पाए. इससे कंपनी की हालत खराब हो गई. इससे डीएचएफएल में निवेश करने वालों का भरोसा टूटा और उन सभी ने एक साथ अपना जमा पैसा वापस मांगना शुरू कर दिया.

ऐसे में डीएचएफएल का मामला कोर्ट गया और कोर्ट ने डीएचएलएफ के खातों को सीज कर दिया. जिससे डीएचएफएल उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग को पीएफ का जमा पैसा नहीं दे पाया. अगर नोटबंदी और रियल स्टेट सेक्टर में नये कानून से डेवलपर्स उबर गए होते और उनका बिजनेस खराब नहीं हुआ होता तो डीएचएफएल की यह हालत नहीं होती. वह बिजली विभाग के पीएफ के पैसों का भी भुगतान कर रही होती. डीएचएफएल ने 18.55 सौ करोड़ रूपये बिजली विभाग को वापस कर दिया था. इससे यह पता चलता है कि कंपनी की नीयत में खोट नहीं थी. रियल स्टेट कारोबार फेल होने से कंपनी की हालत खराब हो गई.

पीएफ के पैसों का निजी सेक्टर में निवेश सरकार की एक पौलसी के तहत किया गया है. यह निवेश भी पेंशन बंद होने से जुड़ा हुआ है. सरकार अगर पेंशन देती रहती तो ऐसी हालत नहीं आती. सरकार ने पेंशन योजना बंद करने के बाद तय किया कि पीएफ के पैसों का कुछ हिस्सा निजी सेक्टर में निवेश किया जायेगा. इसकी वजह यह थी कि निजी सेक्टर में ब्याजदर अधिक थी. पेंशन बंद होने के बाद सरकार कर्मचारी को पीएफ का पैसा एकमुष्त देने लगी. पैसा निजी सेक्टर में लगाकर ज्यादा लाभ लेने की मानसिकता से ही बिजली विभाग का पैसा डीएचएलएफ में निवेश किया गया. सरकार को इसका लाभ भी मिला. जब डीएचएलएफ के बैंक खातों पर रोक लगी तभी यह परेशानी सामने आई.

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उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले की सीबीआई जांच के लिये कहा पर अभी तक सीबीआई को जांच नहीं दी गई. अभी तक प्रदेश सरकार की ईओडब्ल्यू ही जांच कर रही है. पूरे मामले में जिस भ्रष्टाचार का दावा किया जा रहा है वह कमीशन की रकम भर है. हर निजी क्षेत्र अपने यहां निवेश पर कमीशन देता है. ऐसे में पूरे मामले में भ्रष्टाचार का कोई बड़ा मामला सामने नही आयेगा. सरकारी बैंक भी जब दिवालिया होते है तो बैंक खाते में जमा केवल 1 लाख तक ही रकम ही वापस होती है. ऐसे में अगर डीएचएफएल दिवालिया हो गई तो यह कितना पैसा वापस मिलेगा. यह देखने वाली बात होगी ?

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