नागरिकता कानून 1955 में जो संशोधन किया गया है वह क्या फर्क डालेगा इस से ज्यादा महत्त्व की बात है उस होहल्ले की जिस के साथ यह कानून लाया गया है और जिस तरह से इस पर जानबूझ कर विवाद का हौआ खड़ा किया गया है. भाजपा सरकार और संघ की मंशा सीधेसीधे हिंदूमुसलिम अलगाव की आग को जलाए रखना ही नहीं उस पर पैट्रोल छिड़कना भी है ताकि वह आसपास की चीजों को भी लपेटे में ले ले.

इस संशोधन कानून के होहल्ले में क्षणिक स्मरणशक्ति रखने वाली जनता 3 तलाक कानून, पुलवामा, कश्मीर से 370 धारा के बेमतलब का होने आदि को भी भूल गई है और बेरोजगारी, महंगाई, मंदी, जीएसटी, नोटबंदी के बारे में भी. यह हमारे देश के पंडेपुजारियों की पुरानी चाल है और पुराण भी इन्हीं कहानियों से भरे पड़े हैं. जब भी कोई संकट आए तो पीडि़त का ध्यान बंटा दो. देवता इंद्र की ओर दौड़ते थे, आज का नागरिक मंदिर की ओर दौड़ता है. समस्या का हल करने की जगह हम किसी अन्य नकली उपाय में इस तरह लग जाते हैं कि समस्या चाहे विकराल रूप ले ले, सब उस के दर्द को भूल जाते हैं.

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अगर इस से समस्या का हल हो जाता तो बात दूसरी थी. नोटबंदी से कालाधन समाप्त नहीं हुआ. 3 तलाक कानून से मुसलिम औरतों के जीवन में उजाला नहीं आया, जीएसटी से कर संग्रह नहीं बढ़ा, कश्मीर में देश के बाकी लोगों ने प्लौट लेने शुरू नहीं किए, तो ध्यान तो बंटाना ही था ताकि पूजापाठ का धंधा कम न हो जाए. भाजपा सरकार में लाभ सब से ज्यादा मंदिर धंधे को हुआ है और वह तभी पनपेगा जब हिंदूमुसलिम वैमनस्य को बढ़ावा दिया जाएगा.

यह संशोधन कानून जानबू झ कर अफगानिस्तान, बंगलादेश और पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों के धर्म का नाम लेता है ताकि नए भारत में पुराने मुसलिम पराए ही हैं, यह कानूनों में आने लगे. व्यावहारिक रूप से हिंदूमुसलिम भेद हर रोज बढ़ाया जा रहा है.

पहले केवल ऊंचे परिवारों की बस्तियों से मुसलमानों को धीरेधीरे निकाला जाता था, अब पिछड़ों ने भी गांवोंकसबों में अदृश्य दीवारें खींचनी शुरू कर दी हैं. इस कानून का असर कितनों पर पड़ेगा यह तो किसी को नहीं पता पर यह सब को पता चल गया कि सरकार के लिए सभी मुसलिम पराए हैं.

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जो सरकार आज मुसलिमों को पराया कह रही है चाहे वे धर्म परिवर्तन कर के ही मुसलिम बने थे, अरब देशों से नहीं आए थे, वह सरकार कब पौराणिक व्यवस्था में शूद्र जो भारत के ओबीसी (अदर बैकवर्ड कास्ट-पिछड़े) हैं और दलितों को अलग मान लें, भरोसा नहीं. इन सब ने आरक्षण पाने के लिए प्रमाणपत्र तो ले ही लिए हैं. इन के लिए भेदभाव वाले कानून बनाना अब और आसान हो गया है. एक  झुग्गी में रंजिश की वजह से आग लगाई जाए तो पता नहीं रहता कि वह कब पूरी बस्ती को लील जाए.

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