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#lockdown: लौकडाउन से गेहूं की कटाई रुकी, किसान कर रहे हैं वित्तीय मदद की मांग

देश में कोविड-19 महा inमारी तेजी से फैल रही है.अब कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इस संक्रमण का असर देश के किसानों और फसलों पर भी पड़ रहा है.इस वक्त ज्यादातर हिस्सों में फसल पक कर कटने को तैयार है.नए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में रिकॉर्ड 106.21 मिलियन टन गेहूं कटाई के लिए तैयार है. हालांकि, संक्रमण के डर और लौकडाउन के चलते किसान अपनी फसल नहीं काट सकते.वित्तीय वर्ष 2019 में कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन से अर्थव्यवस्था में 18.55 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई थी.
लौकडाउन बना किसानों की मुसीबत
किसानों की फसल पक कर तैयार है, लेकिन 21 दिनों के लौकडाउन की वजह से उन्हें मजदूर नहीं मिल रहे हैं. फसल को बर्बाद होने से बचाने के लिए किसान खुद ही फसल काटने और ढुलाई की कोशिश कर रहे हैं.फसल कटाई के बाद इस का भंडारण कराना और बेचना भी एक समस्या बन जाएगी.इस वक्त किसानों को फसल मंडी तक ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट भी नहीं मिल रहा है. ऐसे में किसान फसल को सीधे खेत से बेचने के विकल्प ढूंढ रहे हैं, ताकि उन के पास कुछ पैसा आ सके. ऐसे में कई किसान सरकार से मांग कर रहे हैं कि एक ऐसी योजना बनाई जाए, जिस से फसल बर्बाद होने से बच जाए.साथ ही, खाद्य सामग्री की कीमतें भी न बढ़ें.

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इस बारे में सौल्व के फाउंडर ने बताया कि सौल्व ऐसा प्लेटफौर्म है, जो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय से जुड़ी संस्थाओं को साथ ले कर आते हैं, ताकि वे एकदूसरे को जान पाएं और आपस में खरीदफरोख्त कर पाएं. जैसे, दक्षिण भारत वाले को उत्तर भारत के व्यापारी से कुछ खरीदना है तब वे इस काम को आसानी से कर पाएं, क्योंकि इन के बीच में आसानी से विश्वास पैदा नहीं होता तो हमारी कोशिश इन्हें मिलाने और इन में एकदूसरे के प्रति विश्वास दिलाने की होती है. हम प्लेटफौर्म से जुड़े व्यापारियों को कर्ज दिलाने में भी मदद करते हैं.
सौल्व के फील्ड एजेंट्स ऐप की मदद से उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात समेत देश के कई राज्यों में जा कर डेटा इकठ्ठा करते हैं. वे फील्ड में होने वाले लेन देन को रिकौर्ड करते हैं.साथ ही तय सवालों के आधार पर वे डेटा जुटाते हैं. उन्होंने बताया कि इन दिनों देश के सभी राज्यों में किसानों के लिए लगभग एक जैसे हालात बने हुए हैं.

सेब उत्पादक भी परेशान
कश्मीर में इन दिनों सेब की फसल ज्यादा हो रही है, लेकिन पड़ों से सेब तोड़ने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं, जो सेब तोड़ लिए गए हैं उन्हें बेचने के लिए यातायात की व्यवस्था नहीं है. किसानों के पास कोल्ड स्टोरेज भी बहुत कम है, जिस की वजह से सेबों के सड़ने की आशंका बढ़ गई है।.ऐसे में सेब उत्पादकों को क्षेत्रीय बाजार में ही कम कीमत पर सेब बेचने पड़ रहे हैं.
दूसरी तरफ, कर्नाटक में ज्वार की फसल पक कर तैयार है, लेकिन वहां भी वही स्थिति है. लौकडाउन ने किसानों को घर में बिठा दिया गया है.मजदूर और ट्रांसपोर्ट भी नहीं मिल रहे हैं. राज्य सरकार ने अब तक ऐसी योजना भी नहीं बनाई कि लौकडाउन में चीजों को कैसे मैनेज किया जाए?

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सरकार करे किसानों की सहायता
देशभर में लगे लौकडाउन को देखते हुए राज्य सरकारों को किसानों की मदद के लिए जरूरी कदम उठाने पड़ेंगे और उन की वित्तीय मदद भी करनी होगी. सरकारों को चाहिए कि लौकडाउन खुलते ही किसानों की फसल सुरक्षित मंडी तक पहुंचने में मदद करे. इस के लिए मजदूर और ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करनी चाहिए. अभी मंडियों में पुराना स्टौक है. नया माल नहीं पहुंच पा रहा है.
हालांकि, जो शहरों से लगे गांव हैं, वहां बड़ी कंपनियां या ईकौमर्स कंपनियां जिन के पास खुद के वाहन हैं, वे किसानों से सीधे फसल खरीद रही हैं। इस से किसानों को मदद मिल रही है.सरकार भी इस काम में उन की मदद कर रही है. इस वजह से उत्पाद भी ग्राहकों तक पहुंच पा रहे है.
उम्मीद है कि देश के ज्यादातर शहरों और राज्यों से लौकडाउन हटा दिया जाएगा. उत्तर भारत, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु समेत कई अन्य राज्यों के किसानों का यही मानना है कि 14 के बाद लौकडाउन की स्थिति नहीं रहेगी।.ऐसे में सरकार द्वारा किसानों को खाद, मजदूर, ट्रांसपोर्टेशन, मंडियां, स्टोरेज जैसी जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, क्योंकि किसानों का रौमेटेरियल, प्रौडक्शन यूनिट तक नहीं पहुंचेगा, तो स्थिति में सुधार भी नहीं होगा.

किसानों को वित्तीय मदद ज्यादा मिले
इस वक्त किसानों के साथ दिहाड़ी मजदूरों के साथ सब से ज्यादा समस्या बनी हुई है. हालांकि, कई अलगअलग योजनाओं के तहत उन्हें पैसा भी मिलेगा.जैसे, प्रधानमंत्री किसान योजना एक तरीका है.मनरेगा में जिन लोगों को पैसे दिए जाते हैं, उन्हें इस वक्त किसानों को दिए जाना चाहिए, ताकि किसानों पर फसल कटाई और ढुलाई का अतिरिक्त भार नहीं आए.साथ ही सरकार द्वारा अलग-अलग योजनाओं पर मिलने वाली सब्सिडी भी किसानों के मिले.
खेतिहर कामों में छूट: सरकार ने खेतिहर कामों में छूट दी है। खेतिहर मजदूरों, मंडियों और खरीद एजेंसियों, बुआई से जुड़ी खादों के निर्माण व पैकेजिंग इकाइयों को बंदी के नियमों से मुक्त रखा गया है.
सुरक्षा और स्वच्छता सुनिश्चित करना: सरकार का कृषि-शोध संगठन आईसीएआर ने किसानों को खेतों में सामाजिक दूरी और सुरक्षा संबंधी ऐहतियात बरतने को कहा है, मशीन चलाते हुए भी और खेतों में मजदूरों के साथ भी.इन मामलों में किसानों को फसल-प्रबंधन या पशुपालन में कोई दिक्कत होती है, तो वे कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), आईसीएआर शोध संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों में संपर्क कर सकते हैं.

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प्रधानमंत्री किसान योजनाः अप्रैल में 8.69 करोड़ किसानों को सरकार पीएम-किसान योजना के तहत दो हजार रुपए देगी, ताकि कोरोना वायरस के कारण हुए देशबंदी से किसानों को राहत मिले.वैसे ही, पीएम-किसान योजना से हर साल किसानों को 6000 रुपए मिलते हैं, उन्हें अब अप्रैल में छूट के तौर पर इसकी पहली किस्त दी जाएगी.आपूर्ति शृंखला की आवाजाही: गृह मंत्रालय ने आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ई-वाणिज्य के माध्यम से जरूरी सेवाओं की आपूर्ति हेतु कुछ मानक संचालन प्रक्रिया स्थापित किए.इसमें खाद्य, किराने के सामान, फल, सब्जी, दूध उत्पाद से जुड़ी राशन इकाइयां शामिल हैं. इससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने में मदद मिलेगी. वहीं, इससे ई-कॉमर्स कंपनियों और बड़ी संगठित खुदरा दुकानों में जरूरी सामान की उपलब्धता बरकरार रहेगी.बंद के दौरान आपूर्ति सामान्य करने के सरकारी उपायों के बाद फलों और सब्जियों की करीब 1900 मंडियां सुचारु रूप से काम कर रही हैं.

निरंतर निगरानी और समन्वय: दिल्ली में मदर डेरी की सफल सब्जी दुकानें, कोलकाता में सफल बांग्ला दुकानें, बेंगलुरु में हॉपकम्स खुदरा दुकानें और चेन्नई और मुंबई में इसी तरह की दुकानें स्थानीय प्रशासन के साथ आपूर्तियों के संचार और समन्वय पर निगरानी रखेंगी. स्थानीय पुलिस, जिला कलेक्टर और परिवहन संगठनों के बीच सुचारू संपर्क और समन्वय के लिए मंडियों में कंट्रोल रूम बनाए गए हैं.
राज्य सरकारों द्वारा खरीदः पंजाब के कृषि सचिव काहन सिंह पन्नू ने किसानों को भरोसा दिलाया है कि राज्य सरकार कटाई की इजाजत देगी और बाजार से हर अनाज को खरीदेगी.

#lockdown: सीएमआईई की रिपोर्ट्स में महामंदी की आहट

‘सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकोनोमी (सीएमआईई)’ से आई ताजा रिपोर्ट भारत के लिए बड़ी चिंता का सबब बन सकता हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लाकडाउन के कारण बेरोजगारी दर 23.4 प्रतिशत तक उछल सकती है. शहरों में इस की दर 30 प्रतिशत तक जा सकती है. यह आकड़े 5 अप्रैल रविवार यानी जिस दिन पूरा देश दिया और मोमबती जला रहा था उस दिन तक के हैं. इसे पब्लिश 6 अप्रैल सोमवार को किया गया. इन आकड़ों को समझा जाए तो 15 मार्च 2020 तक भारत की बरोजगारी दर जो 8.4 प्रतिशत थी (हालांकि यह भी बहुत अधिक थी) वह मात्र 23 दिनों में 23.4 प्रतिशत तक जा पहुंची है. जब कि यह आकड़े शहरों में बढ़कर तक 30.93 प्रतिशत तक बताए गए हैं. सीएमआईई भारत का सब से बड़ा स्वतंत्र व्यावसायिक और आर्थिक रिसर्च ग्रुप है जिस की स्थापना 1976 में नरोत्तम शाह ने की थी. इस का हेडक्वार्टर मुंबई में स्थित है. यह अर्थव्यस्था और व्यापार को ले कर डेटाबेस तैयार करता है.

आज पुरे विश्व के ऊपर कोरोना संक्रमण की दोहरी मार पड़ी है. पहला, बिमारी से संक्रमित होने व मरने वालों की लगातार बढ़ती संख्या और दूसरा, लम्बे लाकडाउन से पुरे विश्व की चोपट होती अर्थव्यवस्था. अभी हाल ही अमेरिका में 1 हफ्ते के भीतर ही 68 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते का फॉर्म भर कर पूरी दुनिया को चौंका दिया. वहीँ 15 दिनों का हाल देखें तो लगभग 1 करोड़ लोग बेरोजगारी के लिए यह फॉर्म भर चुके थे. यह अपने आप में एक साथ अमेरिका में दर्ज की गई सब से बड़ी बेरोजगारी की रिपोर्ट थी. यही हाल अलग अलग देशो का चल रहा है.

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आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी हाल ही में देश की अर्थव्यवस्था को ले कर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा कि “आजादी के बाद भारत इस समय अब तक के सब से बड़े आर्थिक आपातकाल से गुजर रहा है.” अपनी बात में उन्होंने सरकार को सुझाव दिया की लाकडाउन के बाद एहतियात के साथ कम संक्रमित क्षेत्रों को दोबारे से पटरी पर उतारा जाए. साथ ही उन्होंने सरकार को गरीबों के हितों को प्राथमिकता देने की बात कही. जिसमें उन्होंने कम जरूरी खर्चों को फिलहाल के लिए टालने को कहा.

वहीँ एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रोणब सेन ने मोटामोटी गणना के तौर पर इस बात की सम्भावना व्यक्त की है की “लाकडाउन के दो हफ्तों के भीतर ही भारत में 5 करोड़ लोगों ने अपनी नोकरी खो दी है.” यह वही है जिन्होंने सरकार को चेताया था की “अगर माइग्रेट वर्कर के पास खाना नहीं पहुंचा तो खाने को ले कर दंगों की संभावना बढ़ सकती है.”

फिलहाल सीएमआईई के जारी किये यह आकड़े भारत के लिए चिंता का विषय जरुर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि लाकडाउन के पहले भारत रोजगार उत्पादन के मामले में बेहतर स्थिति में था. ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के रिपोर्ट वर्ष 2018-19 के मुताबिक़ ‘अधिकतर भारतीय लोग रोजगार के अवसरों की कमी को देश की सब से बड़ी समस्या मानते है. इस के अलावा लगभग 1 करोड़ 86 लाख लोग देश में बेरोजगार हैं.’

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हांलाकि लाकडाउन के कारण बेरोजगारी के बढ़ने की संभावना पहले से ही व्यक्त की जा रही थी लेकिन इस की जमीन काफी समय पहले खुद सरकार द्वारा डाल दी गई थी. जिस में प्रधानमंत्री द्वारा की गई नोटबंदी भी जिम्मेदार थी. जिस ने भारत की अर्थव्यवस्था की मानो कमर ही तोड़ दी थी. एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक 2017-18 में भारत ने पिछले 45 सालों की सब से बड़ी बेरोजगारी झेली. यह बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत थी. रिपोर्ट के अनुसार युवाओं में इस का सब से अधिक प्रभाव था. ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं की बेरोजगारी दर 17.6 फ़ीसदी था वहीँ शहरों में यह 18.7 फीसदी था. वहीँ शहरी युवतियों में यह 27.2 फीसदी था. यह वह समय था जब छोटे उद्योग धंधे धड़ल्ले से बंद हो रहे थे. देश की सब से निचली आबादी जिन अनौपचारिक फैक्ट्रियों में काम कर रही थी वहां मजदूरों की छटनी धड़ाधड़ चल रही थी. इस के बाद बाकी बचीकुची कसर जीएसटी के फैसले ने पूरी कर दी थी.

जाहिर है देश में यह स्थिति काफी समय पहले से ही चलती आ रही थी यही कारण था कि लाकडाउन के दुसरे दिन से ही पलायन करने वाले मजदूरों की फौज बिना किसी की परवाह किये अपने घरों की तरफ कूच करने निकल पड़ी. अब जो रिपोर्ट्स सीएमआईई की तरफ से लाकडाउन से पैदा हुई बेरोजगारी को ले कर आई है वह महामंदी की तरफ इशारा कर रही है. अगर यह आकड़े सही निकलते है तो देश की अधिकतम आबादी की कन्जुमिंग पॉवर ख़त्म हो जाएगी. यानी बहुसंख्यक आबादी के पास लाकडाउन खुलने के बाद भी सामान खरीदने के लिए पैसा नहीं होगा. अगर लोगों के पास उपभोग क्षमता नहीं होगी तो इस का नकारात्मक असर छोटे बड़े उद्योग धंधो की उत्पादन प्रणाली पर पड़ेगा. अगर उपभोक्ता सामान खरीदने की स्थिति में नहीं है तो उद्योगपति उत्पादन नहीं कर पाएंगे. फिर बड़ीबड़ी इंडस्ट्री में भी छटनीयां शुरू होने लगेगी. अगर इस साइक्लिंग प्रक्रिया की गिरफ्त में देश की अर्थव्यवस्था आती है तो हमें वापस उभरने में लंबा समय लग जाएगा.

इस समय लगभग 90 देशों में लाकडाउन किया गया है. यानी अर्थव्यवस्था के चक्के को रोका गया है. वेश्विक स्तर पर इस तरह का लाकडाउन एक साथ पहली बार किया गया. हमारे लिए यह जानना ज्यादा जरुरी है कि इस से पैदा हुई अर्थव्यवस्था की हानि हर देश के लिए एक सामान नहीं है. ख़ासकर जब विश्व पहले ही विकसित, विकासशील और अविकसित देशों में बंटा हुआ है. यही कारण है कि निर्धनता की मार झेल रहा भारत पहले ही आर्थिक मोर्चे पर रगड़ खा रहा है. ऐसी स्थिति में हमारे लिए संभलना कितना कठिन होगा यह देखना बाकी है.

#coronavirus: जमातियों ने ही नहीं अफसरों तक ने छिपाई कोरोना की जानकरी

जमाती तो बदनाम है कि उन्होनें कोरोना छिपा कर समाज को बीमार कर दिया.लखनऊ की कनिका और मध्य प्रदेश की अधिकारी पल्लवी जैन ने भी ऐसी तरह से लापरवाही की.

पूरे देश मे इस बात पर हंगामा है कि जमातियों ने कोरोना की जानकारी छिपा कर देश भर में कोरोना को रोकने में मंसूबों पर पानी फेर दिया. पूरा देश एक स्वर में इस बात की आलोचना भी कर रहा है. जमातियों का यह वर्ग कम जानकार था ऐसे में वह उतने गुनाहगार नही है. जितने गुनहगार वह लोग है जो समझदार भी है और सरकार में मुख्य पदों पर बैठे भी है.
हनीमून से वापस आये अफसर ने नही दी जानकारी :
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले आईएएस अधिकारी अनुपम मिश्रा केरल कैडर से है, वो अपनी पत्नी के साथ 10 दिन के टूर पर सिंगापुर मलेशिया गए थे.जब वह वापस आये तो एयर पोर्ट पर उनको सलाह दी गई कि वो 14 दिन अपने घर मे अकेले रहे.अनुपम मिश्रा अपने जिला सुल्तानपुर चले आये और खुद को कोरोनो से बचाने के लिए किसी नियम का पालन नही की. यह जानकारी एयरपोर्ट अथॉरिटी ने केरल सरकार को दी वँहा से उत्तर प्रदेश सरकार को पता चला.

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उत्तर प्रदेश में अनुपम मिश्रा की लोकेशन पहले कानपुर फिर सुल्तानपुर मिली। तब सुल्तानपुर जिले के अफसरों ने उनको एकांत में रहने के बारे में बताया. इसके बाद ही उनको घर पर रहने के लिए कहा गया.प्रशासन यह पता लगा रहा था कि उनके सम्पर्क में कितने लोग इस दौरान उनसे मिले और उनकी क्या हालत है. एक जिम्मेदार अफसर होते हुए इस तरह का काम ठीक नही था. केरल सरकार ने उनके खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला भी किया.

एमपी की अफसर की लापरवाही
केरल कैडर के आईएएस अनुपम मिश्रा कोरोना के प्रति लापरवाही बरतने वाले अकेले अफसर नही है.मध्य प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य विभाग में प्रमुख सचिव पल्लवी जैन का बेटा विदेश से आया. पल्लवी जैन ने यह बात छिपाई.पल्लवी जैन खुद कोरोना से तो पीड़ित हुई ही उनके सम्पर्क में आ कर 3 दर्जन से अधिक लोग कोरोना को लेकर जांच के घेरे में आ गए.

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जब देश के यह जिम्मेदार लोग इस तरह का कार्य कर सकते है तो जमाती औऱ दूसरे लोगो से हम कैसे यह उम्मीद कर की वह अपना इलाज कराएंगे या सरकार को इस बीमारी की जानकारी देगें.

अकेले रहने का डर सताता है
कोरोना में मर्ज को बताने में लोग डरते क्यो है ? इसकी सबसे प्रमुख वजह यह होती है कि लोगो को लगता है कि कोविड 19 पॉजिटिव होते ही उनको एक अलग थलग जगह पर घर परिवार से दूर रहना होगा.इस डर से वह कोरोना को बीमारी को नही बताते. डॉक्टरों का कहना है कि हमारे यँहा यह अघिक हो रहा है. विदेशों में लोग इसको छिपाते नही है. वह लोग पूरी जांच कराकर इसका इलाज करते है. हमारे देश मे जांच और बीमारी से बचने के दूसरे रास्ते चुने जाने लगते है.जिसकी वजह से मरीज को तलाश करना ही बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है. अगर मरीज समय से अस्पताल पहुच जाए तो बेहतर इलाज मिल जाता है औऱ लोग स्वस्थ हो कर अपने घर वापस पहुच जाते है. हमारे देश के लोग मानते है कि यह कैंडिल जलाने, ताली और थाली बजाने से कोरोना भाग जाएगा.

पुनर्विवाह: भाग 3

शालू, दुनिया में अकेली औरत का जीवन दूभर हो जाता है. मानसजी भले इंसान हैं तथा विधुर भी हैं. उन का हाथ थाम लेना. तुम सुरक्षित रहोगी तो मुझे शांति मिलेगी.’ मेरी चुप्पी पर अधीर हो कर बोले थे, ‘शालू, मान जाओ, हां कह दो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की पीड़ा, उन की अधीरता देख मैं ने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया था. मेरी स्वीकृति मान उन्होंने हलकी मुसकराहट से कहा था, ‘मेरी शादी वाली अंगूठी मेरी सहमति मान, मानस को पहना देना. उस में लिखा ‘एम’ अब उन के लिए ही है.’ किंतु मैं भी आप की दोस्ती न खो बैठूं, इस संकोच में आप से कुछ कह न सकी,’’ वह हलके से मुसकरा दी. मानस इत्मीनान से बोले, ‘‘चलो, सुगंधा की जिद के कारण सभी बातें साफ हो गईं. मैं तो तुम्हें चाहने लगा हूं, यह स्वीकार करता हूं. तुम्हारा प्यार भी उस दिन अस्पताल में उजागर हो चुका है. मेरी  सुगंधा तो हमारी शादी के लिए तैयार बैठी है. तुम भी इस विषय में अपने बेटे से बात कर लो.’’ शालिनी ने उदासीनता से कहा, ‘‘मेरा बेटा तो सालों पहले ही पराया हो गया. अमेरिका क्या गया वहीं का हो कर रह गया. 4 साल से न आता है न हमारे आने पर सहमति व्यक्त करता है. उस की विदेशी पत्नी है तथा उस ने तो हमारा दिया नाम तक बदल दिया है. ‘‘मनोज के क्रियाकर्म हेतु बहुत कठिनाई से उस से संपर्क कर सकी थी. मात्र 3 दिन के लिए आया था. मानो संबंध जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने आया था. कह गया, ‘यों व्यर्थ मुझे आने के लिए परेशान न किया करें, मेरे पास व्यर्थ का समय नहीं है.’

‘‘अकेली मां कैसे रहेगी, न उस ने पूछा, न ही मैं ने बताया. अजनबी की तरह आया, परायों की तरह चला गया,’’ शालिनी की आंखें भीग आई थीं. मानस ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘शालू, जिस बेटे को तुम्हारी फिक्र नहीं है, जिस ने तुम से कोई संबंध, संपर्क नहीं रखा है, उस के लिए क्यों आंसू  बहाना. मैं तुम से एक वादा कर सकता हूं, हम दोनों एकदूसरे का इतना मजबूत सहारा बनेंगे कि हमें अन्य किसी सहारे की आवश्यकता ही नहीं होगी.’’ शालिनी अभी भी सिमटीसकुचाई सी बैठी थी. मानस ने उस की अंतर्दशा भांपते हुए कहा, ‘‘शालू, यह तुम भी जानती होगी तथा मैं भी समझता हूं कि इस उम्र में शादी शारीरिक आवश्यकता हेतु नहीं बल्कि मानसिक संतुष्टि के लिए की जाती है. शादी की आवश्यकता हर उम्र में होती है ताकि साथी से अपने दिल की बात की जा सके. एक साथी होने से जीवन में उमंगउत्साह बना रहता है.’’ फोन के जरिए सुगंधा सब बातें जान कर खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस रविवार यह शुभ कार्य कर लेते हैं, मैं और कुणाल इस शुक्रवार की रात में पहुंच रहे हैं.’’ रविवार के दिन कुछ निकटतम रिश्तेदार एवं पड़ोसियों के बीच मानस एवं शालिनी ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई, फूलमाला पहनाई तथा मानस ने शालिनी की सूनी मांग में सिंदूर सजा दिया.

सभी उपस्थित अतिथियों ने करतल ध्वनि से उत्साह एवं खुशी का प्रदर्शन किया. सभी ने सुगंधा की सोच एवं समझदारी की प्रसंशा करते हुए कहा कि मानस एवं शालिनी के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रख, सुगंधा ने प्रशंसनीय कार्य किया है. सुगंधा ने घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन रखा था. सोमवार की पहली फ्लाइट से सुगंधा एवं कुणाल को लौट जाना था. शालिनी भावविभोर हो बोली, ‘‘अच्छा होता, बेटा कुछ दिन रुक जातीं.’’ सुगंधा ने अपनेपन से कहा, ‘‘मम्मी, अभी तो हम दोनों को जाना ही पड़ेगा, फाइनल रिपोर्ट का समय होने के कारण औफिस से छुट्टी मिलना संभव नहीं है.’’ ‘‘ठीक है, इस बार जाओ किंतु प्रौमिस करो, दीवाली पर आ कर जरूर कुछ दिन रहोगे,’’ शालिनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सुगंधा को शालिनी का मां जैसा अधिकार जताना भला लगा. वह भावविभोर हो उस के गले लग गई. उसे आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था. होता भी क्यों नहीं, उसे  मां जो मिल गई थी. दोनों के अपनत्त्वपूर्ण व्यवहार को देख कर मानस की आंखें भी सजल हो उठीं.

पुनर्विवाह: भाग 1

मनोज के गुजर जाने के बाद शालिनी नितांत तन्हा हो गई थी. नया शहर व उस शहर के लोग उसे अजनबी मालूम होते थे. पर वह मनोज की यादों के सहारे खुद को बदलने की असफल कोशिश करती रहती. शहर की उसी कालोनी के कोने वाले मकान में मानस रहते थे. उन्होंने ही जख्मी मनोज को अस्पताल पहुंचाने के लिए ऐंबुलैंस बुलवाई थी. मनोज की देखभाल में उन्होंने पूरा सहयोग दिया था. सो, मानस से शालिनी का परिचय पहचान में बदल गया था. मानस ने अपना कर्तव्य समझते हुए शालिनी को सामान्य जीवन गुजारने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, ‘‘शालिनीजी, आप कल से फिर मौर्निंगवाक शुरू कर दीजिए, पहले मैं ने आप को अकसर पार्क में वाक करते हुए देखा है.’’

‘‘हां, पहले मैं नित्य मौर्निंगवाक पर जाती थी. मनोज जिम जाते थे और मुझे वाक पर भेजते थे. उन के बाद अब दिल ही नहीं करता,’’ उदास शालिनी ने कहा.

‘‘मैं आप की मनोदशा समझ सकता हूं. 4 साल पहले मैं भी अपनी पत्नी खो चुका हूं. जीवनसाथी के चले जाने से जो शून्य जीवन में आ जाता है उस से मैं अनभिज्ञ नहीं हूं. किंतु सामान्य जीवन के लिए खुद को तैयार करने के सिवा अन्य विकल्प नहीं होता है.’’ दो पल बाद वे फिर बोले, ‘‘मनोजजी को गुजरे हुए 3 महीने से ज्यादा हो चुके हैं. अब वे नहीं हैं, इसलिए आप को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. आप खुद को सामान्य दिनचर्या के लिए तैयार कीजिए.’’

मानस ने अपना तर्क रखते हुए आगे कहा, ‘‘शालिनीजी, मैं आप को उपदेश नहीं दे रहा बल्कि अपना अनुभव बताना चाहता हूं. सच कहता हूं, पत्नी के गुजर जाने के बाद ऐसा महसूस होता था जैसे जीवन समाप्त हो गया, अब दुनिया में कुछ भी नहीं है मेरे लिए, किंतु ऐसा होता नहीं है. और ऐसा सोचना भी उचित नहीं है. किंतु मृत्यु तो साथ संभव नहीं है. जिस के हिस्से में जितनी सांसें हैं, वह उतना जी कर चला जाता है. जो रह जाता है उसे खुद को संभालना होता है. मैं ने उस विकट स्थिति में खुद को व्यस्त रखने के लिए मौर्निंगवाक शुरू की, फिर एक कोचिंग इंस्टिट्यूट जौइन कर लिया. रिटायर्ड प्रोफैसर हूं, सो पढ़ाने में दिल लगता ही है. इस के बाद भी काफी समय रहता है, उस में व्यस्त रहने के लिए घर पर ही कमजोर वर्ग के बच्चों को फ्री में ट्यूशन देता हूं तथा हफ्ते में 2 दिन सेवार्थ के लिए एक अनाथाश्रम में समय देता हूं. इस तरह के कार्यों से अत्यधिक आत्मसंतुष्टि तो मिलती ही है, साथ ही समय को फ्रूटफुल व्यतीत करने का संतोष भी प्राप्त होता है. आप से आग्रह करना चाहता हूं कि आप इन कार्यों में मुझे सहयोग दें.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं. कल सुबह कौलबैल दूंगा, निकल आइएगा, मौर्निंगवाक पर साथ चलेंगे, शुरुआत ऐसे ही कीजिए.’’

अन्य विकल्प न होने के कारण शालिनी ने सहमति में सिर हिला दिया. सच में मौर्निंगवाक की शुरुआत से वह एक ताजगी सी महसूस करने लगी. उस ने मानस के साथ कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाना व अनाथालय में समय देना भी प्रारंभ कर दिया. इन सब से उसे अद्भुत आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता. दो दिनों से मानस मौर्निंगवाक के लिए नहीं आए. शालिनी असमंजस में पड़ गई, शायद मानस ने सोचा हो कि शुरुआत करवा दी, अब उसे खुद ही करना चाहिए. शालिनी पार्क तक चली गई. किंतु उसे  मानस वहां भी दिखाई नहीं दिए. जब तीसरे दिन भी वे नहीं आए तब उसे भय सा लगने लगा कि कहीं एक विधवा और एक विधुर के साथ का किसी ने उपहास बना, मानस को आहत तो नहीं कर दिया, कहीं उन के साथ कुछ अप्रिय तो घटित नहीं हो गया, ऐक्सिडैंट…? नहींनहीं, वे ठीक हैं, उन के साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ है. इन्हीं उलझनों में उस के कदम मानस के घर की ओर बढ़ चले. दरवाजे पर ताला पड़ा था. दो पल संकोचवश ठिठक गई, फिर वह उन के पड़ोसी अमरनाथ के घर पहुंच गई. अमरनाथ और उन की पत्नी ने उस का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइए, शालिनीजी, कैसी हैं? हम लोग आप के पास आने की सोच रहे थे किंतु व्यस्तता के कारण समय न निकाल पाए.’’

शालिनी ने उन्हें धन्यवाद देते हुए पूछा, ‘‘आप के पड़ोसी मानसजी क्या बाहर गए हुए हैं? उन के घर पर…’’

‘‘नहींनहीं, उन्हें डिहाइड्रेशन हो गया था. वे अस्पताल में हैं. हम उन से कल शाम मिल कर आए हैं. अब वे ठीक हैं,’’ अमरनाथजी ने बताया. शालिनी सीधे अस्पताल चल दी. विजिटिंग आवर होने के कारण वह मानस के समक्ष घबराई सी पहुंच गई, ‘‘कैसे हैं आप, क्या हो गया, कैसे हो गया, आप ने मुझे इतना पराया समझा जो अपनी तबीयत खराब होने की सूचना तक नहीं दी. मैं पागलों सी परेशान हूं. न दिन में चैन है न रात में नींद.’’

‘‘ओह शालू, इतना मत परेशान हो, मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हें खबर करनी चाहिए थी किंतु तुम्हें मेरा हाल कैसे मालूम हुआ?’’ मानस ने आश्चर्य से कहा.

‘‘आज मैं हैरानपरेशान अमरनाथजी के घर पहुंच गई. वहीं से सब जान कर सीधी चली आ रही हूं. आप बताइए, अब आप कैसे हैं, तथा यह हाल कैसे हुआ?’’ शालिनी की आंखें सजल हो उठीं. मानस भी भावुक हो उठे, उन्होंने शालिनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘प्लीज, परेशान मत हो, मैं एकदम ठीक हूं. उस दिन रामरतन रात में खाना बनाने न आ सका, साढ़े 8 बजे के बाद फोन करता है, ‘सर, आज नहीं आ सकूंगा, पत्नी को बहुत चक्कर आ रहे हैं.’ मैं ने कह दिया कि ठीक है, तुम पत्नी को डाक्टर को दिखाओ, अभी मैं ही कुछ बना लेता हूं. सुबह सब ठीक रहे तो जरूर आ जाना.

‘‘मैं ने कह तो दिया, किंतु कुछ बना न सका. सो, नुक्कड़ की दुकान से पकौड़े ले आया, वही हजम नहीं हुए बस, रात से दस्त और उल्टियां शुरू हो गईं.’’ ‘‘मनजी, आप मुझे कितना पराया समझते हैं. मेरे घर पर, खाना खा सकते थे, किंतु नहीं, आप नुक्कड़ की दुकान पर पकौड़े लेने चल दिए, जबकि आप के घर से दुकान की अपेक्षा मेरा घर करीब है. सिर्फ आप बात बनाते हैं कि तुम्हें अपनत्व के कारण समझाता हूं कि स्वयं को संभालो और सामान्य दिनचर्या का पालन करो. मैं ने आज आप का अपनापन देख लिया.’’ ‘‘सौरी शालू, मुझे माफ कर दो,’’ मानस ने अपने कान पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे अच्छा ही हुआ, तुम्हें खबर कर देता तो तुम्हारा यह रूप कैसे देख पाता, तुम्हें मेरी इतनी फिक्र है, यह तो जान सका.’’

शालिनी ने हौले से मानस की बांह में धौल जमाते हुए अपनी आंखें पोंछ लीं तथा मुसकरा दी. भावनाओं की आंधी सारी औपचारिकताएं उड़ा ले गई. मानस शालिनी को ‘शालू’ कह बैठे, वही हाल शालिनी का था, वह  ‘मानसजी’ की जगह ‘मनजी’ बोल गई. भावनाओं के ज्वार में मानस भूल ही गए कि उन के कमरे में उन की बेटी सुगंधा भी मौजूद है. शालिनी तो उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ थी, अतिभावुकता में उसे मानस के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं दिया. एकाएक मानस की नजरें सुगंधा से टकराईं. संकोचवश शालिनी का हाथ छोड़ते हुए उन्होंने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘शालिनी, इस से मिलो, यह मेरी प्यारी बेटी सुगंधा है. यह आई तो औफिस के काम से थी किंतु मेरी तीमारदारी में लग गई.’’

शालिनी को सुगंधा की उपस्थिति का आभास होते ही उस की हालत तो रंगे हाथों पकड़े गए चोर सी हो गई. वह सुगंधा से दोचार औपचारिक बातें कर झटपट विदा हो ली. अस्पताल से लौटते समय शालिनी अत्यधिक सकुचाहट में धंसी जा रही थी. वह भावावेश में क्याक्या बोल गई, न जाने मानस क्या सोचते होंगे. सुगंधा का खयाल आते ही उस की सकुचाहट बढ़ जाती, न जाने वह बच्ची क्या सोचती होगी, कैसे उस का ध्यान सुगंधा पर नहीं गया, वह स्वयं को समझाती. मानस के लिए व्यथित हो कर ही तो वह अस्पताल पहुंच गई थी, भावनाओं पर उस का नियंत्रण नहीं था. इसलिए जो मन में था, जबान पर आ गया. मानस घर आ गए थे. अब वे पूरी तरह स्वस्थ थे. सुगंधा को कल लौट जाना था. सुगंधा ने मानस एवं शालिनी के  परस्पर व्यवहार को अस्पताल में देखा था. इतना तो वह समझ चुकी थी कि दोनों के मध्य अपनत्व पप चुका है, बात जाननेसमझने की इच्छा से उस ने बात छेड़ते हुए कहा, ‘‘पापा, शालिनी आंटी इस कालोनी में नई आई हैं, मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा?’’

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं, पति रोजाना संबंध बनाने के लिए मारपीट करते हैं, क्या करूं?

सवाल

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. पति रोजाना मुझ से संबंध बनाते हैं. मना करने पर वे मारपीट कर के जबरन संबंध बनाते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पति कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं, बस उन का तरीका गलत है. यही काम वे प्यार से भी कर सकते हैं. आप को भी अगर कोई तकलीफ होती है, तो उस बारे में पति को तसल्ली से बता सकती हैं. जब आप इतनी गहराई से जुड़ी हैं, तो बात करने में झिझकना नहीं चाहिए. वैसे, पति का हक है आप के साथ संबंध बनाना, लिहाजा मना न करें.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

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मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं तो जल्दी थक जाती हूं….

सवाल
मेरी समस्या मेरे और पति के शारीरिक संबंधों को ले कर है. मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं तो जल्दी थक जाती हूं. शारीरिक संबंधों का पूरी तरह आनंद नहीं ले पाती क्योंकि इस दौरान मुझे दर्द होता है.

जवाब
कई बार जब महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती तब उस के साथ ऐसी ही समस्या पेश आती है जैसी आप के साथ आ रही है. इस के अलावा वैजाइनल ड्राइनैस भी सैक्स संबंधों के दौरान दर्द का कारण बनता है, इस के लिए आप चाहें तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर सकती हैं.

सैक्स संबंध को सुखद बनाने के लिए फोरप्ले (चुंबन, सहलाना आदि) जैसी क्रियाएं अवश्य करें. जिस तरह संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए सैक्स जरूरी होता है, ठीक उसी तरह फोरप्ले भी जरूरी होता है.

फोरप्ले सैक्स से पहले की कुछ ऐसी क्रियाएं हैं जिन से सैक्स का न केवल खुल कर आनंद लिया जा सकता है बल्कि सैक्स के मजे को दोगुना भी किया जा सकता है. फोरप्ले न केवल सैक्स संबंधों का जरूरी हिस्सा होता है बल्कि इस से आप के साथी की भी सैक्स में रुचि बढ़ती है. यदि आप फोरप्ले करते हैं तो आप अधिक समय तक सैक्स का आनंद उठा पाएंगे. फोरप्ले मूड को तरोताजा करता है, शरीर को रोमांच से भर देता है. फोरप्ले पतिपत्नी को सैक्स के लिए तैयार करता है.

पुनर्विवाह: भाग 2

मानस शांत, गहन चिंता में बैठ गए. सुगंधा ने ही उन्हें टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या बात है पापा, नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, बेटा, तू तो मुझे, मेरे हित में ही समझा रही है किंतु मुझे भय है. शालिनी मुझे स्वार्थी समझ मुझ से दोस्ती न तोड़ बैठे. उस का अलगाव मैं सहन न कर सकूंगा,’’ मानस ने धीरेधीरे कहा. ‘‘पापा, वे आप से प्यार करती हैं किंतु नारीसुलभ सकुचाहट तो स्वाभाविक है न, पहल तो आप को ही करनी होगी.’’ ‘‘मेरी बेटी, इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला,’’ मानस के इस वाक्य पर दोनों ही मुसकरा दिए. सुगंधा लौट गई, किंतु मानस को समझा कर ही नहीं धमका कर गई कि वे जल्दी से जल्दी शालिनी से शादी की बात करेंगे वरना वह स्वयं यह जिम्मेदारी पूरी करेगी. मौर्निंगवाक पर मानस एवं शालिनी सुगंधा के संबंध में ही बातें करते रहे. मानस बोले, ‘‘5 वर्ष हो गए सुगंधा की शादी हुए. जब भी जाती है मन भारी हो जाता है. उस के आने से सारा घर गुलजार हो जाता है, जाती है तो अजीब सूनापन छोड़ जाती है.’’ शालिनी ने कहा, ‘‘बड़ी प्यारी है सुगंधा. खूबसूरत होने के साथसाथ समझदार भी, उस की आंखें तो विशेष सुंदर हैं, अपने में एक दुनिया समेटे हुए सी मालूम होती है वह.’’ मानस खुश होते हुए बोले, ‘‘वह अपनी मां की कार्बनकौपी है. मैं शुभि को अद्भुत महिला कहता था, रूप एवं गुण का अद्भुत मेल था उस के व्यक्तित्व में.’’

शालिनी सुगंधा के साथ विशेष जुड़ाव महसूस करने लगी थी. उस ने सुगंधा के पति, उस की ससुराल के संबंध में विस्तृत जानकारी ली तथा अत्यधिक प्रसन्न हुई कि बहुत समझदार एवं संपन्न परिवार है. मौर्निंगवाक से लौटते समय शालिनी का घर पहले आता है. रोज ही मानस उसे उस के घर तक छोड़ते हुए अपने घर की ओर बढ़ जाते थे, आज शालिनी ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘मनजी, आज आप ब्रेकफास्ट एवं लंच मेरे साथ ही लीजिए. आज ही सुगंधा लौट कर गई है, आप को अपने घर में आज सूनापन ज्यादा महसूस होगा.’’ मानस जल्दी ही मान गए. उन्होंने सोचा, इस बहाने शालिनी से अपने दिल की बात कर सकेंगे. काफी उलझन के बाद मानस ने शालिनी से साफसाफ कहना उचित समझा, ‘‘शालू, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं किंतु तुम से एक वादा चाहता हूं. यदि तुम्हें मेरी बात आपत्तिजनक लगे तो साफ इनकार कर देना किंतु नाराजगी से दोस्ती खत्म नहीं करना.’’ शालिनी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं, आप की दोस्ती मेरे जीवन का सहारा है, मनजी. खैर, चलिए वादा रहा.’’ ‘‘शालू, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं, क्या मेरा सहारा बनोगी?’’ मानस ने शालिनी की आंखों में देखते हुए कहा. शालिनी ने नजरें झुका लीं और धीरे से बोली, ‘‘यह क्या कह बैठे, मनजी, भला यह भी कोई उम्र है शादी रचाने की.’’ ‘‘देखो शालू, हम दोनों अपनेअपने जीवनसाथी को खो कर जीवन की सांध्यबेला में अनायास ही मिल गए हैं. हम दोनों ही तन्हा हैं. हम एकदूसरे का सहारा बन फिर से जीवन में आनंद एवं उल्लास भर सकते हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में परस्पर सहयोग दे सकते हैं.

‘‘मैं अपनी पत्नी शुभि को बहुत चाहता था, किंतु बीमारी ने उसे मुझ से छीन लिया. मेरी शुभि भी मुझे बहुत चाहती थी. अपनी बीमारी के संघर्ष के दौरान भी उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा मेरे जीवन की फिक्र थी. एक दिन मुझ से बोली, ‘मनजी, मेरा आप का साथ इतना ही था. आप को अभी लंबा सफर तय करना है. अकेले कठिन लगेगा. मेरे बाद अवश्य योग्य जीवनसाथी ढूंढ़ लीजिएगा,’ अपनी शादी वाली अंगूठी मेरी हथेली पर रख कर बोली, ‘इसे मेरी तरफ से स्नेहस्वरूप आप प्यार से उसे पहना देना. मैं यह सोच कर खुश हो लूंगी कि मेरे मनजी के साथ उन की फिक्र करने वाली कोई है.’’’ मानस, अपनी पत्नी को याद कर बेहद गंभीर हो गए थे, दो पल रुक कर स्वयं को संयत कर बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें एवं मनोज को भी साथसाथ देखा था, गृहप्रवेश के अवसर पर तथा अस्पताल के दुखद मौके पर. तुम दोनों का प्यार स्पष्टत: परिलक्षित था. मनोज को भी अपनी जिंदगी से ज्यादा तुम्हारे जीवन की चिंता थी. वे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही चिंता व्यक्त करते थे. मैं आईसीयू में उन से मिलने जब भी जाता, सिर्फ तुम्हारे संबंध में चिंता व्यक्त करते थे. उस दिन उन्हें आभास हो चला था कि वे नहीं बचेंगे. अत्यधिक कष्ट में बोले थे, ‘दोस्त, मैं तुम्हें अकसर पुनर्विवाह की सलाह देता था, और तुम हंस कर टाल जाते थे. किंतु अब तुम से वचन चाहता हूं, मेरी शालू को अपना लेना. तुम्हारे साथ वह सुरक्षित है, यह सोच मुझे शांति मिलेगी. हम ने परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. सभी संबंध खत्म हो गए थे. मेरे बाद एकदम अकेली हो जाएगी मेरी शालू. दोस्त, मेरा आग्रह स्वीकार कर लो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की दर्द भरी याचना पर मैं हां तो न कर सका था किंतु स्वीकृति हेतु सिर अवश्य हिला दिया था. मेरी सहमति जान कर उस कष्ट एवं दर्द में भी उन के चेहरे पर एक स्मिति छा गई थी किंतु शालिनी, तुम्हारी नाराजगी के डर से मैं तुम से कहने का साहस न जुटा सका था. ‘‘सच कहता हूं शालू, सांत्वना और सहयोग ने मनोज के आग्रह के बाद कब प्यार का रूप ले लिया, इस का आभास मुझे भी नहीं हुआ. किंतु मेरे प्यार की सुगंध मेरी बेटी सुगंधा ने महसूस कर ली है,’’ कहते हुए मानस धीरे से मुसकरा दिए. शालिनी नीची नजरें किए हुए शांत बैठी थी. मानस ने ही कहा, ‘‘शालू, मैं ने तुम्हें मनोजजी की, सुगंधा की एवं अपनी भावनाएं बता दी हैं. अंतिम निर्णय तुम ही करोगी. तुम्हारी सहमति के बिना हम कुछ भी नहीं करेंगे.’’ शालिनी ने आहिस्ताअहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनोज ने जैसा आग्रह आप से किया था वैसी ही इच्छा मुझ से भी व्यक्त की थी. मुझ से कहा था, ‘

coronavirus: नया रूप लेकर 102 साल पुराना दर्द

लेखक- नीरज त्यागी

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है.ये वायरस लगभग सभी देशों में फ़ैल चूका है.पूरे दुनिया में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.कोरोना वायरस कि इस महामारी ने लोगों को 1918 के स्पेनिश फ्लू की याद दिला दी है.उस दौर में जिस तेजी से ये संक्रमण फैला था और जितनी मौतें हुई थी उससे पूरे दुनिया को हिला दिया था.102 साल पहले पूरी दुनिया में स्पेनिश फ्लू के कहर से एक तिहाई आबादी इसकी चपेट में आ गयी थी.कम से कम पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत इसकी वजह से हुई थी.रिपोर्टस के मुताबिक इस फ्लू के कारण भारत में कम से कम 1 करोड़ 55 लाख लोगों ने जान गवाईं थी.

स्पेनिश फ्लू की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई है जो विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की तुलना में ज्यादा है. उस वक्त भारत ने अपनी आबादी का छह फीसदी हिस्सा इस बीमारी में खो दिया था.मरने वालों में ज्यादातर महिलाएँ थीं.ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएँ बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी.वो अपेक्षाकृत अधिक अस्वास्थ्यकर माहौल में रहने को मजबूर थी.इसके अलावा नर्सिंग के काम में भी वो सक्रिय थी.

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ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी.गांधी जी और उनके सहयोगी किस्मत के धनी थे कि वो सब बच गए. हिंदी के मशूहर लेखक और कवि सुर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे.

उन्होंने बाद में इस सब घटना चक्र पर लिखा भी था *कि मेरा परिवार पलक झपकते ही मेरी आँखों से ओझल हो गया था”* वो उस समय के हालात के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं कि *गंगा नदी शवों से पट गई थी. चारों तरफ इतने सारे शव थे कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ी कम पड़ रही थी* . ये हालात तब और खराब हो गए थे जब खराब मानसून की वजह से सुखा पड़ गया और आकाल जैसी स्थिति बन गई.इसकी वजह से बहुत से लोगो की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई थी..शहरों में भीड़ बढ़ने लगी।इससे बीमार पड़ने वालों की संख्या और बढ़ गई.

बॉम्बे शहर इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ था.उस वक्त मौजूद चिकित्सकीय व्यवस्थाएं आज की तुलना में और भी कम थीं।हालांकि इलाज तो आज भी कोरोना का नहीं है लेकिन वैज्ञानिक कम से कम कोरोना वायरस की जीन मैपिंग करने में कामयाब जरूर हो पाए हैं. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने टीका बनाने का वादा भी किया है.1918 में जब फ्लू फैला था.तब एंटीबायोटिक का चलन इतने बड़े पैमाने पर नहीं शुरू हुआ था. इतने सारे मेडिकल उपकरण भी मौजूद नहीं थे जो गंभीर रूप से बीमार लोगों का इलाज कर सके. पश्चिमी दवाओं का इस्तेमाल भी भारत की एक बड़ी आबादी नही किया करती थी और ज्यादातर लोग देसी इलाज पर ही यकीन करते थे.

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इन दोनों ही महामारियों के फैलने के बीच भले ही एक सदी का फासला हो लेकिन इन दोनों के बीच कई समानताएं दिखती हैं. संभव है कि हम बहुत सारी जरूरी चीजें उस फ्लू के अनुभव से सीख सकते हैं.उस समय भी आज की तरह ही बार-बार हाथ धोने के लिए लोगों को समझाया गया था और एक दूसरे से उचित दूरी  बनाकर ही रहने के लिए कहा गया था.सोशल डिस्टेंसिंग को उस समय भी बहुत अहम माना गया था और आज ही की तरह लगभग लॉक डाउन की स्थिति उस समय भी थी इतने सालों बाद भी वही स्थिति वापस हो गई है.

स्पेनिश फ्लू की चपेट में आए मरीजों को बुखार, हड्डियों में दर्द, आंखों में दर्द जैसी शिकायत थीं. इसकी वजह से महज कुछ दिन में मुंबई में कई लोगों की जान चली गई. एक अनुमान के मुताबिक जुलाई 1918 तक 1600 लोगों की मौत स्पैनिश फ्लू से हो चुकी थी. केवल मुंबई इससे प्रभावित नहीं हुआ था.रेलवे लाइन शुरू होने की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में भी ये बीमारी तेजी से फैल गई.ग्रामीण इलाकों से ज्यादा शहरों में इसका प्रभाव दिखाई दिया.

बॉम्बे में तेजी से फैलने के बाद इस वायरस ने उत्तर और पूर्व में सबसे ज्यादा तांडव मचाया.ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में इस बीमारी से मरने वालों में पांचवां हिस्सा भारत का था.बाद में असम में इस गंभीर फ्लू को लेकर एक इंजेक्शन तैयार किया गया, जिससे कथित तौर पर हजारों मरीजों का टीकाकरण किया गया. जिसकी वजह से इस बीमारी को रोकने में कुछ कामयाबी मिली.

हालांकि बाद में कुछ बाते सामने आईसन 2012 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के जिन हिस्सो में अंग्रेजो की ज्यादा बसावत थी.उन हिस्सों में इस बीमारी ने ज्यादा कहर मचाया था.इन हिस्सो में भारतीय इस महामारी में सबसे अधिक मारे गए थे.अब एक बार फिर से कोरोना के बढ़ते कहर की वजह से लोग बेहद आशंकित हैं.फिलहाल सरकार और दूसरी संस्थाएं लगातार लोगों को इस गंभीर वायरस से बचाव को लेकर कोशिश में जुटी हुई हैं.

आखिरकार गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सेवी समूहों ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था. उन्होंने छोटे-छोटे समूहों में कैंप बना कर लोगों की सहायता करनी शुरू की. पैसे इकट्ठा किए, कपड़े और दवाइयां बांटी है।नागरिक समूहों ने मिलकर कमिटियां बनाईं.एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, “भारत के इतिहास में पहली बार शायद ऐसा हुआ था जब पढ़े-लिखे लोग और समृद्ध तबके के लोग गरीबों की मदद करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में सामने आए थे.

आज की तारीख में जब फिर एक बार ऐसी ही एक मुसीबत सामने मुंह खोले खड़ी है. तब सरकार चुस्ती के साथ इसकी रोकथाम में लगी हुई है लेकिन एक सदी पहले जब ऐसी ही मुसीबत सामने आई थी तब भी नागरिक समाज ने बड़ी भूमिका निभाई थी.जैसे-जैसे कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं, इस पहलू को भी हमें ध्यान में रखना होगा और सभी लोगो को मिलकर इस बीमारी की लड़ाई में आगे बढ़ना होगा.

कान

कान न हुए कचरापेटी हो गई. जो आया उडे़ल कर चला गया जमाने भर की गंदगी और हम ने खुली छूट दे रखी है कानों को. आजकल हमारा देखना भी कानों से ही होता है. लोग कान में आ कर धीरे से फुसफुसा जाते हैं और हमें लगता है कि यह हमारा खास, घनिष्ठ और विश्वसनीय है जो इतनी महत्त्वपूर्ण बातें हमें बता कर चला गया. कान से सुन कर हमें इतना विश्वास हो जाता है कि अब हमारा मानना हो गया है कि आंखें धोखा खा सकती हैं लेकिन कान नहीं. कानों से हमें खबरें मिलती हैं कि फलां की लड़की फलां के लड़के के साथ भाग गई. फलां की पत्नी का फलां के साथ चक्कर है. हम ऐसी चटपटी मसालेदार बातें सुन कर आत्मसुख का अनुभव करते हैं. अफवाहें कानों से ही बढ़ती हैं, फैलती हैं, दावानल का रूप लेती हैं. किसी ने कहा, ‘दंगा हो गया.’ कानों ने विश्वास किया. यही हम ने दूसरे के कान में कहा. उस ने तीसरे के कान में. एक कान से दूसरे, फिर तीसरे तक होती हुई बातें कानोंकान चारों तरफ फैल जाती हैं. हमारे कान उस सार्वजनिक शौचालय की तरह हो गए हैं जिस में आ कर कोई भी निवृत्त हो कर, हलका हो कर, गंदगी उड़ेल कर चला जाता है.

हम एक के कान में कहते हैं, देख, तुझे अपना समझ कर बता रहे हैं. किसी और तक बात नहीं पहुंचनी चाहिए. वह कसम उठा कर कहता है कि भरोसा रखो, नहीं पहुंचेगी. लेकिन तुरंत वह अपने किसी परिचित के कान में फुसफुस करता है और उसे भी यही हिदायत देता है. वह भी पहले वाले की तरह सौगंध खा कर कहता है, नहीं पहुंचेगी और तुरंत किसी नए कान की तलाश में लग जाता है. कानों का काम है सुनना लेकिन हम कानों को क्याक्या सुनाते रहते हैं, जो नहीं सुनाना चाहिए. जहां कान बंद कर लेने चाहिए वहां भी हम कान खड़े कर लेते हैं. कानों को हम ने ऐसे शौक दे रखे हैं कि जब तक वे भड़काऊ बयान, शोर भरा संगीत, गुप्त बातें, रहस्य की बातें और अश्लील वार्त्ता सुन न लें, तृप्त ही नहीं होते. कुछ कान बेचारे ऐसे हैं जो धमाकों की आवाजें, चीखपुकार सुन कर बहरे हो गए हैं. उन के लिए हम बहरे शब्द का प्रयोग करते हैं यानी यदि आप के कान हमारी बात, हमारी बकवास, हमारे प्रवचन, हमारे बोलवचन न सुनें तो कहते हैं कि तुम बहरे हो. जैसे आंख के अंधे वैसे कान के बहरे. कुछ कान बड़े संवेदनशील होते हैं. वे दूसरों की व्यथाकथा सुन कर द्रवित हो जाते हैं. कुछ कान जासूस की तरह होते हैं. कहीं खुसुरफुसुर सुनी और फौरन खड़े हो जाते हैं.

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साधुसंत तो कानों के विषय में कहते हैं कि यदि आप ने हमारे श्रीमुख से हरिकथा नहीं सुनी तो आप के कान कान नहीं, सांप के बिल हैं. कुछ कान लापरवाह किस्म के होते हैं. वे एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. आज के जमाने में आप का अंधा या लंगड़ा होना चल जाएगा लेकिन कानों का ठीकठाक होना बहुत जरूरी है. आजकल सुनने के साथसाथ देखना भी कानों से हो रहा है. आंख में दोष हो सकता है लेकिन कान पर हमें पूरा विश्वास है क्योंकि हमारे कानों ने सुना है. किस से सुना है, क्या सुना है? ये महत्त्वपूर्ण नहीं है. हमारे कानों ने सुना है, यह ही काफी है. हम उन कानों तक भी अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करते हैं जो कान ऊंचा सुनते हैं. भले ही उन्हें सुनाने के चक्कर में चार लोग और सुन लें. लेकिन हमारा धर्म हो गया है कि जो सुनें वह दूसरे को सुना दें. तथाकथित ईश्वर के विषय में कहा गया है कि बिना कान के सुनते हैं. सुनने के लिए कान का होना आवश्यक है और कान ठीकठाक सुनें, इस के लिए बीचबीच में तेल आदि डालते रहना चाहिए.

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कुछ लोगों के ऐसे भी कान होते हैं जो सुनना पसंद नहीं करते. ऐसे लोग कहते हैं, कान पक गए हैं सुनतेसुनते. ऐसे कान किस काम के जिन्हें सुनने में तकलीफ हो. कान तो वे जो सदा सुनने को व्याकुल हों. हमारे पास 1 नहीं 2 कान हैं. इस का अर्थ यही हुआ कि प्रकृति ने कान का महत्त्व समझ कर हमें 1 नहीं 2 कान दिए हैं. ऐसे में कान की विश्वसनीयता और उपयोगिता दोनों बढ़ जाती हैं. कान का अपना एक निजी गुण यह है कि ये बुराई सुनने में खुशी से खड़कने लगते हैं. जहां किसी की निंदा सुनी, समझो कान का होना सार्थक हो गया. हमारे कान ऊलजलूल, बकवास, निंदा, शोरशराबा, अफवाहें, समाचार, खबरें सब सुनने में दक्ष हैं लेकिन कुछ बातें कानों को बिलकुल रास नहीं आतीं, जैसे मांबाप की सलाहसमझाइश और गुणी लोगों का सत्संग-प्रवचन. हमारे कान नाराज हो कर एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. वैसे तो सुनते ही नहीं. 2 कानों का फायदा यही है कि बात अच्छी न लगे तो एक से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आदमी कानोंसुनी पर इतना भरोसा करने लगा है कि वह प्रत्यक्ष देखना जरूरी नहीं समझता. कौन जा कर देख कर समय बरबाद करे. कानों तक बात पहुंच गई, समझो देख लिया. स्त्रियां तो कानोंसुनी आंखों देखी एक बराबर मानती हैं. सुनसुन कर ही वे इतना बड़ा झमेला खड़ा कर देती हैं कि परिवार बिखरने लगते हैं. घर में द्वेष फैलने लगता है. तो फिर कचराघर हैं न कान. आप के क्या हैं?

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