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#coronavirus: सच को परदे में रखना चाहती है ट्रोल आर्मी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को धमकाने, डराने, भगाने के लिए देश भर में ताली-थाली पिटवाई. फिर अग्नि देवता का आह्वान भी किया और देश भर से दिया-बत्ती जलवाई मगर कोरोना का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है. प्रधानमंत्री समय-समय पर टीवी पर प्रकट होकर नए-नए टोटके बताते हैं और अंधभक्त सच से आँखें फिरा कर टोटकों को पूरा करने में जुट जाते हैं. टोटकों को पूरा करने के चक्कर में सोशल डिस्टेंसिंग की वाट लग गई. कहीं थाली-ताली के चक्कर में लोगों का हुजूम सड़कों पर उतर कर नाचा तो कही दिया-बत्ती से भी आगे बढ़ कर मशाल जुलूस निकले. उत्तर प्रदेश में तो एक भाजपा नेत्री ने बाकायदा बन्दूक दागी. अब इसने कोरोना को भगाया या पास बुलाया?

भक्तों को ऐसे सवालों से मिर्ची लग जाती हैं. वो नहीं जानना चाहते कि कोरोना से निपटने के लिए सरकार कोई मज़बूत कदम उठा भी रही है या नहीं ? वो नहीं जानना चाहते कि तेज़ी से पैर पसारते जा रहे कोरोना से निपटने के लिए डॉक्टर्स को ज़रूरी संसाधन हासिल हो रहे हैं या नहीं ? वे नहीं जानना चाहते कि एम्स, वेदांता जैसे नामी अस्पतालों में कितने नर्स और डॉक्टर दूसरों की जान बचाते बचाते खुद अपनी जान दांव पर लगा बैठे हैं.वो नहीं जानना चाहते कि अगर कोरोना थर्ड स्टेज में पहुंच गया और कम्युनिटीज में फैला तो हज़ारों लोगों का इलाज करने के लिए कितने अस्पताल तैयार हैं ? कितने बेड, कितने ऑक्सीजन सिलिंडर, कितने वेंटीलेटर, कितने डॉक्टर, कितनी नर्स, कितनी दवाइयां भारत के पास हैं? क्योंकि समय-समय पर टीवी पर प्रकट होकर नए-नए टोटकों का फरमान सुनाने वाले हमारे प्रधानमंत्री कभी ये ज़रूरी बातें तो बताते ही नहीं हैं. हाँ उनके टोटकों के खिलाफ अगर कोई बोला, किसी ने कुछ लिखा तो फिर उसकी खैर नहीं. ट्रोल आर्मी जोंक की तरह उससे चिपक जाएगी.उसकी खूब लानत-मलामत करेगी. उसको खूब उपदेश देगी.जाति सूचक, धर्मसूचक बाण मारेगी और इस तरह अपनी अंधभक्ति का परिचय देते हुए अपने अंधविश्वास से सच को ढांप देना चाहेगी.

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‘सरिता’ बार बार इस सच को उघाड़ कर सामने लाती थी और लाती रहेगी. ‘सरिता’ खुली आँखों से देख रही है कि किस तरह धीरे-धीरे गरीबों की उम्मीदों का दिया बुझता जा रहा है.भुखमरी उनके दरवाज़े पर आ खड़ी हुई है. रामधनी की बूढ़ी बीमार माँ खाट पर पड़ी है, खांस-खांस कर बेहाल हुई जा रही है, मगर दवा मयस्सर नहीं है क्योंकि डॉक्टर के पास नहीं जा सकते. घर के बाहर कर्फ्यू लगा है. पुलिस डंडे फटकारते घूम रही है.रामधनी तुलसी-अदरक का काढ़ा बना बना कर बार बार पिला रहा है कि किसी तरह माँ को आराम आ जाए. बेचारी का पुराना दमा उभर आया है.

कल रात मोती नगर सब्ज़ी मार्किट में पुलिस वालों ने गरीब सब्ज़ी विक्रेताओं के सब्ज़ी से भरे ठेले पलट दिए. गरीब सब्ज़ी वालों के दिल पर क्या गुज़री होगी सड़क पर बिखरी अपनी सब्ज़िया देख कर. किस मुसीबत से उधार सब्ज़ियां लाये थे मगर पुलिस का डंडा पड़ा तो ठेला और सब्ज़ी वही छोड़ कर भागना पड़ा. सरकारी आदेश का पालन होना है, गरीब कोरोना से पहले भूख से मर जाए तो फ़िक्र नहीं.
मध्यवर्ग की तकलीफें भी बढ़नी शुरू हो चुकी हैं. आम जनता को आने वाली तकलीफों के अंत की राह धुंधली पड़ती नज़र आ रही है. किसी को हार्ट अटैक पड़ा है, एम्बुलेंस के लिए हॉस्पिटल में फ़ोन पर फ़ोन किया जा रहा है मगर एम्बुलेंस नहीं आ रही है. कैंसर के मरीज़ रिज़वान को कीमोथेरपी के बाद हर महीने लखनऊ मेडिकल कॉलेज में जांच के लिए जाना होता है मगर दो महीने बीत चुके हैं वह नहीं गया। छोटा व्यवसाई चिंतित है.दुकाने बंद हैं, बिक्री बंद है मगर दूकान का किराया तो फिर भी देना है. दूकान में सामान भरा है, पता नहीं लॉक डाउन के बाद जब दूकान खोलेगा तो कितना सामान ख़राब हो चुका होगा. वो नुक्सान का अनुमान लगा कर हलकान हुआ जा रहा है.

इन लोगो के लिए सरकार के पास का क्या ‘राहत पैकेज’ है? शायद कुछ भी नहीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब  3 अप्रैल को कोरोना को लेकर तीसरी बार देश को संदेश दिया तो  उम्मीद जगी थी कि वे इस बीमारी से बचाव के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों और तैयारियों के बारे में बताएंगे, इस बीमारी से लड़ने में दिन रात जुटे हजारों लाखों, डॉक्टरों, नर्सों, मेडिकल स्टाफ, पुलिस कर्मी, सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मी और लोगों को रोजमर्रा की चीज़े मुहैया करा रहे लोगों केलिए कोई घोषणा होगी, कोई योजना होगी। लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और वंचित तबके के लिए किसी नए रोडमैप का ऐलान होगा.

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मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ, वो आये और ‘ दिया जलाओ इवेंट’ का फरमान सुना कर चले गए.
प्रधानमंत्री ने जब कहा कि, “कोरोना महमामारी के अंधकार से हमें प्रकाश की तरफ जाना है. जो भी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं हमारे गरीब भाई बहन, उन्हें कोरोना संकट से आशा की तरफ ले जाना है. कोरोना से जो अंधकार और अनिश्चतता पैदा हुई है उसे प्रकाश के तेज से चारों दिशाओं में फैलाना है.“ पीएम के इस कथन से उम्मीद जगी कि शायद गरीबों के लिए कुछ घोषणा होने वाली है, गरीबों के लिए वे सामर्थ्यवान लोगों से कुछ मांगने वाले हैं, या किसी सरकारी योजना की घोषणा करने वाले हैं. लेकिन…???
लेकिन उन्होंने इसके बाद जो कहा, वहा अद्भुत था. उन्होंने कहा, “इस रविवार 5 अप्रैल को हम सबको मिलकर कोरोना के संकट के अंधकार को चुनौती देनी है, उसे प्रकाश की ताकत का परिचय कराना है, 5 अप्रैल को हमें 130 करोड़ देशवासियों की महाशक्ति का जागरण करना है…5 अप्रैल रविवार को रात 9 बजे मैं आप सबके 9 मिनट चाहता हूं, घर की सभी लाइटें बंद करके, घर के दरवाजे पर या बालकनी में खड़े रहकर 9 मिनट तक मोमबत्ती, दीया या मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाए टॉर्च जलाएं…”
अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री कोरोना से लड़ाई के इस टोटके  के बजाए देश को यह बताते कि चिकित्सा क्षेत्र में इस दौरान हमने क्या प्रगति की? हमने कितनी नई सुविधाएं तैयार कीं? हमने इस वायरस के कम्यूनिटी ट्रांसमिशन को रोकने के लिए कौन सी नई योजना पर काम किया?

उल्लेखनीय है कि जब चीन में इस वायरस की भयावहता सामने आई तो उसने 10 दिन के अंदर एक विशाल अस्पताल का निर्माण कर दिया, क्या हम ऐसी किसी योजना पर काम कर रहे हैं? आज चीन ने बहुत हद तक इस महामारी पर काबू पा लिए है. कितना अच्छा होता अगर हमारे भी प्रधानमंत्री बताते कि कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा है, छोटे-बड़े सभी धंधे ठप हो गए हैं, उन्हें उबारने के लिए किस स्तर पर सरकार तैयारी कर रही है। सरकार अस्पतालों तक क्या सुविधाएं पहुंचा रही है.निसंदेह कोरोना से लड़ाई के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही सबसे पहला उपाय है, ताकि इस वायरस का फैलाव एक दूसरे से न हो, और लोग इसका पालन भी कर रहे हैं, करना भी चाहिए, और जो भी इसका उल्लंघन कर रहे हैं उन्हें सिर्फ आइसोलेशन या क्वारंटाइन में भेजने की जरूरत नहीं, बल्कि उनके खिलाफ तय कानून के तहत सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन इसके अतिरिक्त सरकार की ओर से और क्या किया जा रहा है, ये बताना भी हमारे प्रधानमन्त्री का दायित्व है.

‘सरिता’ बार-बार ये सवाल पूछ रही है.मगर जवाब नदारद है.  हाँ, ट्रोल आर्मी धड़ाधड़ कमेंट कर रही है. सत्ता का रक्षा कवच बन कर सवाल पूछने वाले पत्रकारों को निशाना बना रही है.सवालों को दबाने पर उतारू है. सच को छिपाने के जतन कर रही है. मगर हे मूरख, सच भी कभी छिपा है?

 

#coronavirus: कोरोना से न बढ़ने दे दिल की दूरी

भारत में जब से कोरोना संकट गहराया है.. अजीब सी स्थिति है.. सोशल डिस्टेंसिंग की बात की जा रही है.. मगर इस डिस्टेंसिंग ने लोगों के दिलों को दूर कर दिया है. सच है कि संक्रमण तेजी से फैलता है और एतिहातन हमें दूरी बनानी चाहिए.. मगर हम दूरी बनाए रखते हुए भी हालचाल पूछ सकते हैं कम से कम.. फोन करके.. उन्हें हिम्मत बंधा सकते हैं, सांत्वना दे सकते हैं. संक्रमण को देखते हुए काफी लोगों को घर या अस्पताल में क्वेरेनटाइन किया जा रहा है. लेकिन क्वेरेनटाइन का मतलब संक्रमित होना नहीं है और अगर संक्रमण होता भी है तब भी हमें रिश्तों को जीवंत रखना है.. फोन से उन्हें सबके साथ होने का एहसास दिलाए रखना है. कोरोना से तो एक बार हम जंग जीत जाएंगे मगर इस बीच इस वायरस के चलते जो दरार पड़ जाएगी उसे भरने में लंबा वक़्त लगेगा.. शायद कोई आपका अपना उपेक्षित होने पर माफ भी न कर पाए.

लोगों के मन में डर इस हद तक आ चुका है कि अगर ये पता चल जाए कि कोई बीमार है तो उससे किनारा करने लगते हैं.. इतना तक नहीं पूछा जा रहा है कि आखिर दिक्कत क्या है?

कोरोना संक्रमण के चलते प्राइवेट क्लिनिक और अस्पताल बंद है.. हमारे यहां पहले से काफी लोग किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त हैं जैसे दमा, दिल के रोग, डायबिटीज, मानसिक तनाव और परेशानियाँ.. जो समय समय डॉक्टर से मिलकर दवा लेते थे.

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.अचानक से बंद हो जाने के कारण सभी लोग घरों में बंद हो गए हैं.. लेकिन उनकी समस्या तो रहेगी ही.. सम्भवतः समय से दवा न मिलने पर बढ़ भी सकती हैं.. ऐसे में आपसी सहयोग, वार्तालाप, हंसी मजाक इस स्थिति को थोड़ा हल्का कर सकती है.. जरूरी नहीं कि आप सामने बैठ कर बात करें.. दूरी बनाकर बात कर सकते हैं.. जो क्वेरेनटाइन है.. उनकी वीडियो काॅल की जा सकती है..शहरों में ऐसी परेशानियां ज्यादा देखने को मिल रही है कि कोई गलती से भी ये कह दे कि बीमार है तो उनके अपने, दोस्त दूरी बना लेते हैं.इस बीच हमें मानवता, प्रेम और जिम्मेदारी सिखाता एक उदाहरण सामने है..

 

KGMU लखनऊ के एक रेजिमेंट डॉक्टर की ड्यूटी कोरोना पेशेंट के वार्ड में बाकी डॉक्टर के साथ लगती है.. ड्यूटी करते हुए उन्हें अचानक हल्की सर्दी, खांसी के साथ कुछ परेशानी महसूस होती है.. वो अपने सीनियर से कहते हैं.. तुरंत उन्हें क्वेरेनटाइन किया जाता है.. अगले दिन उनकी रिपोर्ट positive आ जाती है.. सभी अवाक रह जाते हैं.. खासकर उनके दोस्त और वो परिवार वाले जो उनके साथ रहते हैं.. उनके संपर्क में आने वाले सभी लोगों की जांच होती है.. जिसमें से उनके परिवार के तीन लोगों की रिपोर्ट positive आ जाती है. सभी चिंतित तो होते हैं मगर हिम्मत नहीं हारते.. उचित सलाह, दवा और खानपान के चलते ये संक्रमित डॉक्टर ठीक हो जाते हैं.. इनका नाम है डॉ तौसीफ.. जो सेवा करते हुए बीमार हुए और बीमारी से जंग जीतकर आज स्वस्थ्य हो गए हैं.उन्होंने ठीक होने के बाद फिर से Corona positive वार्ड में ड्यूटी करने की इच्छा जाहिर की है.

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उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि आपको डरने और घबराने की जरूरत नहीं है.. कोरोना उपचार के दौरान किसी भी तरह का दर्द नहीं होता है.. बस डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवा और ध्यान रखने की जरूरत है.. यहाँ आपका positive होना बहुत जरूरी है और इसके लिए अपनों से संपर्क बनाए रखना.. उन्होने भी उपचार के दौरान अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क बनाए रखा जिससे मानसिक रूप से स्वस्थ्य होने में मदद मिली..और अब भी बाकी परिवार वालों के साथ संपर्क में हैं और counselling करते रहते हैं जो उनके चलते positive हुए थे.

 

डॉ तौसीफ की inspirational स्टोरी जानने से हमको यही पता चलता है कि सही treatment के साथ सकारात्मक रहना बहुत जरूरी है और उसके किए परिवार, दोस्त के साथ संपर्क में रहना.. कोई भी आपका अपना जो क्वेरेनटाइन हो या किसी और समस्या से परेशान हैं तो उसे अकेला बिल्कुल न होने दे.. बात करते रहे.. कुछ भी creative करने को कहें जिससे खुशी मिलती हो.. बुक पढ़ना, ऑनलाइन कोई game खेलना, धार्मिक गीत, संगीत सुनना.. जिससे तनाव न हावी होने पाए.. खुश रहें और खुश रखे अपनों को.. शारीरिक दूरी बनाए रखते हुए.. तो कोरोना से जंग जीतना बहुत आसान होगा.

 

मेरी समस्या थोड़ी अजीब है, मैं जानना चाहता हूं कि क्या ज्यादा सैक्स करने से सिर के बाल गिर जाते हैं?

सवाल
क्या ज्यादा सैक्स करने से सिर के बाल गिर जाते हैं?

जवाब
हमबिस्तरी की वजह से बाल झड़ने की समस्या पैदा नहीं होती. बालों का झड़ना फंगल इंफैक्शन, खानपान की कमी, तनाव या फिर मेल पैटर्न बाल्डनैस की वजह से हो सकता है. किसी कौस्मैटिक सर्जन को दिखाएं जो आप को दवाएं दे सकते हैं या फिर आप हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी करा सकते हैं. यह सर्जरी महंगी होती है.

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आखिर कब पड़ती है किसी और की जरूरत

वैवाहिक जीवन में सैक्स की अहम भूमिका होती है. लेकिन यदि पति किसी ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से ग्रस्त हो, तो पत्नी की जिंदगी उम्र भर के लिए कष्टमय हो जाती है. सैक्सोलौजिस्ट डा. सी.के. कुंदरा ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उन की क्लीनिक में शादी के बाद कृष्णानगर की मृदुला अपनी मां के साथ आई. हुआ यह था कि शादी के बाद मृदुला एकदम बुझीबुझी सी मायके आई, तो उस की मां उसे देख कर परेशान हो गईं. लेकिन मां के लाख पूछने पर भी उस ने कोई वजह नहीं बताई. उस ने अपनी सहेली आशा को बताया कि वह अब ससुराल नहीं जाना चाहती, क्योंकि उस के पति महेश उस से संबंध बनाने के दौरान उस के यौनांग में बुरी तरह से चिकोटी काटते हैं और पूरे शरीर को हाथ फेरने के बजाय नाखूनों से खरोंचते हैं. जिस से घाव बन जाते हैं, हलका खून निकलता है. उसे देख कर महेश खुश होते हैं. फिर संबंध बनाते हैं. यह कह कर मृदुला रोने लगी. डा. कुंदरा ने आगे बताया कि आशा ने जब उस की मां को यह बात ताई तो वे मृदुला को ले कर मेरे पास आईं.

मृदुला की तरह कई महिलाएं अपनी पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाती हैं. मृदुला का पति ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से ही पीडि़त था. इस स्थिति में स्त्री के लिए पूरी जिंदगी ऐसे पुरुष के साथ बिताना असंभव हो जाता है. उसे ऐसे किसी व्यक्ति की जरूरत महसूस होने लगती है, जो उस के मन की बात को समझे और उसे क्या करना चाहिए, इस के बारे में बताए.

कारण

सैक्सोलौजिस्ट डा. रामप्रसाद शाह के मुताबिक, ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से व्यक्ति कई कारणों से ग्रसित होता है:

सैक्सफेरामौन: यानी गंध के प्रति कामुकता. ऐेसे पुरुष स्त्री देह की गंध से उत्तेजित हो कर सैक्स करते हैं. ऐसे में कोई भी स्त्री, जिस की देह गंध से ऐसा व्यक्ति उत्तेजित हुआ हो, उसे हासिल करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है.

ऐक्सेसिव डिजायर: दीपक की उम्र 60 साल से ऊपर है. इस के बावजूद भी वह घर से बाहर सब्जी बेचने वाली, घरों में काम करने वाली और सस्ती कालगर्ल से कभीकभी सुबह तो कभी रात भर रख कर संबंध बनाता है. संबंध बनाने के लिए वह शराब का भी सहारा लेता है. घर वाले उस से परेशान रहते हैं, इसलिए उस से अलग और दूर रहते हैं. ऐसे शारीरिक संबंध बनाने वाला व्यक्ति ऐक्सेसिव डिजायर  पीडि़त होता है.

फेटिशिज्म: इस में व्यक्ति उन चीजों के प्रति आकर्षित रहता है, जो उस की सैक्स इच्छाओं को पूरा करने में सहायक होती हैं. जैसे सैक्सी किताबें, महिलाओं के अंडरगारमैंट्स और दोस्तों से सैक्स की बातें करना.

लक्ष्मी नगर की निशा का कहना है कि उस के पति दिनेश हमेशा दोस्तों के साथ किनकिन महिलाओं के साथ सहवास कबकब और कैसेकैसे किया जैसी बातें हमेशा करते हैं. उस के बाद वह निशा से संबंध बनाने की कोशिश करते हैं. ऐसे व्यक्ति महिलाओं को छिप कर देखने के साथ उन के साथ संबंध बनाने के लिए आतुर भी रहते हैं.

बस्टियैलिटी: ऐसे पुरुष पर सैक्स इतना हावी हो जाता है कि वह किसी से भी सहवास करने में नहीं झिझकता. जयपुर का रमेश अपनी इसी आदत की वजह से अपनी साली की 14 साल की लड़की से शारीरिक संबंध बना बैठा. ऐसे पुरुषों द्वारा अकसर रिश्तों की मर्यादा को ताक पर रख कर ऐसे संबंध बनाए जाते हैं. ऐसे में असहाय महिलाएं, लड़कियां, यहां तक कि पशु भी गिरफ्त में आ जाते हैं.

ऐग्जिबिशनिज्म: इस से ग्रस्त व्यक्ति अपने गुप्तांग को महिला या छोटेछोटे बच्चेबच्चियों को जबरदस्ती दिखाता है. इस से उसे खुशी के साथ संतुष्टि भी मिलती है. लेकिन इस से अप्रत्यक्ष रूप से ही सही हानि होती है इसलिए इसे अब गैरकानूनी की धारा में रखा जाता है. इस में जुर्माना और कैद भी है.

पीडोफीलिया: इस सैक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त पुरुष अकसर छोटी उम्र की लड़कियों व लड़कों से संबंध बना कर अपनी कामवासना को संतुष्ट करता है. नरेंद्र की उम्र 50 के ऊपर हो चुकी थी पर वह बारबार 14 से 15 साल की नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध बनाने की लालसा रखता था. आखिर उस ने नाबालिग से संबंध बना ही डाला और कई दिनों तक सहवास करता रहा. अंत में पकड़े जाने पर नेपाल की जेल में 14 साल की सजा काट रहा है.

वैवाहिक रेप

हालांकि यह अजीब सा लगता है कि विवाह के बाद पति द्वारा पत्नी का रेप. लेकिन इस में कोई दोराय नहीं कि आज भी कई विवाहित महिलाओं को इस त्रासदी से गुजरना पड़ता है, क्योंकि अकसर पति अपनी पत्नी की इच्छाओं, भावनाओं को भूल कर जबरन यौन संबंध बनाता है. यह यौन शोषण और बलात्कार की श्रेणी में आता है. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 375 और 379 के तहत पत्नी को अधिकार है कि वह ऐसा होने पर कानूनी तौर पर तलाक ले सकती है.

समाधान

सैक्सोलौजिस्ट डा. रामप्रसाद शाह का कहना है कि ऐसी स्थिति में नईनवेली दुलहन को संयम से काम लेना चाहिए. वह पति की उपेक्षा न कर के व ताना न दे कर प्यार से उसे समझाए.

सामान्य सहवास के लिए प्रेरित करे. ऐसे लोगों का मनोचिकित्सक द्वारा इलाज किया जा सकता है. ऐसे मरीज की काउंसलिंग की जाती है और बीमारी किस हद तक है पता चलने पर सलाह दी जाती है. अगर पति तब भी ठीक न हो और मानसिक व शारीरिक पीड़ा पहुंचाए, तो पत्नी तलाक ले कर अपनी जिंदगी को नई दिशा दे सकती है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि मस्तिष्क में स्थित न्यूरो ट्रांसमीटर में किसी प्रकार की खराबी, मस्तिष्क में रासायनिक कोशिकाओं में कमी, जींस की विकृति आदि इस समस्या की वजहें होती हैं और अकसर 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति इस के शिकार होते हैं. गलत संगत, अश्लील किताबें पढ़ना, ब्लू फिल्में देखना आदि भी इस में सहायक होते हैं.

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सौतन: भाग4

बस गरम रोटी सेंकती थी. इस बीच, भारती का जन्मदिन आया तो उसे एक माइक्रोवेव गिफ्ट, कर गई. सुदर्शना से परिचय होने के बाद भारती के परिवार में मानो सुख, उल्लास की बाढ़ आ गई. सुखी परिवार तो पहले भी था पर अब एक मजबूत, घने पेड़ की छाया और मिल गई. काम है नहीं, चिंता भी कुछ नहीं तो भारती नित नया कुछ व्यंजन या पकवान बनाती. अब हाथ में पूरा समय है तो उस ने पुराने सामानों की सफाई शुरू की.

उसे सुदर्शना की याद आई. कुछ हफ्ते पहले ही उस की तबीयत खराब हुई थी. तब भारती अधिकतर समय उसी के पास बैठी रहती. सूप, चायकौफी बना कर पिलाती. बातें करती. उस समय पूछा था, ‘‘दीदी, आप इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी, इतनी बड़ी नौकरी, आप के पिता भी कितने बड़े डाक्टर थे, जैसा कि आप ने बताया तो आप की शादी नहीं की उन्होंने?’’ वह हंसी, ‘‘सब को परिवार, पति, संतान का सुख नहीं मिलता.’’

‘‘पर क्यों, दीदी?’’

‘‘अरे, मैं कुंआरी नहीं. शादी हुई थी मेरी, पूरे सात फेरे, सिंदूरदान सबकुछ.’’

चौंकी भारती, हाय, कैसा न्याय है? इतनी नेक हैं दीदी और उन को विधवा का जीवन.

‘‘दीदी, आप के पति का देहांत कैसे हुआ था?’’

सिहर उठी थी सुदर्शना, ‘‘न, न, वे जीवित हैं, सुखी हैं. स्वस्थ हैं.’’

‘‘तो क्या उन्होंने आप को छोड़ दिया? क्यों?’’

‘‘नहीं रे, वे मुझे कभी नहीं छोड़ते पर मजबूरी थी. देख, एक तो हम दोनों ही नाबालिग थे. स्कूल से भाग शादी की थी. फिर वे थे गरीब परिवार के. मेरे पिता इतने पैसे वाले और प्रभावशाली व्यक्ति थे. उन्होंने मेरे पति को बहुत डराया. उन के पिता को बुला कर धमकी दी कि अगर अपने बेटे को नहीं समझाया तो पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे. वह हम दोनों का पहला प्यार था. बहुत छोटेपन से हम एक आर्ट स्कूल में थे. वहां से ही प्यार था. उस के बाद मुझे छोड़ बाहर चले गए वे. हम हमेशा के लिए अलग हो गए.’’ भारती के आंसू आ गए, ‘‘कितनी दुखभरी कहानी है. फिर आप ने शादी नहीं की?’’

हंसी सुदर्शना, ‘‘पगली, शादी, प्यार, यह सब जीवन में एक बार ही होता है.’’

‘बेचारी,’ भारती ने गहरी सांस ली. यह घटना उस ने पति को सुनाई थी. संजीव ने ध्यान नहीं दिया, उलटे समझाया था, ‘‘देखो, बड़े घरों में घटनाएं भी बड़ीबड़ी घटती हैं. तुम इतनी अंदर मत घुसा करो.’’ अगले दिन भारती के पास करने के लिए कुछ खास काम नहीं था. संजीव की एक पुरानी अलमारी साफ करने की सोची. वैसे वह अलमारी उस के ससुरजी की थी. उस में ससुरजी के कपड़ेलत्ते जितने थे, वे सब संजीव ने उन की बरसी पर ही गरीबों में बांट दिए थे. उस के बाद से इस अलमारी में संजीव अपने कागजपत्तर रखता था. फिर उस ने एक छोटी स्टील की अलमारी खरीदी तो उस को कोने में रख दिया. आज लगभग 6 वर्ष बाद उसे भारती ने खोला था. सोचा, इस की मरम्मत, रंगरोगन करा कर चांदनी को दे देगी. भारती ने सोचा कि पहले सारा सामान नीचे उतार कर रैक अच्छी तरह साफ कर के फिर सारा सामान झाड़ कर ऊपर रखेगी. उस ने सब से पहले ऊपर के खाने को टटोला. एक लैदर का पुराना छोटा सा पोर्टफोलियो बैग लौकर में मिला. आजकल इन का चलन समाप्त हो गया है, पहले था. संजीव को कभी लेते नहीं देखा. शायद, ससुरजी का होगा. उस पर मोटी धूल की परत थी. एक फटे तौलिए का टुकड़ा ले वह बैग को ले कर कुरसी खींच कर बैठ गई. पहले सोचा था ऊपरऊपर से पोंछ कर रख देगी पर फिर सोचा कि अब जब निकाला ही है तो अंदर के कागजपत्तर भी झाड़ दे. बेकार के कागज होंगे तो उन को फेंक बैग को हलका कर देगी.

बैग खोलते ही संजीव के स्कूल के कागज, रिपोर्टकार्ड और कुछ सर्टिफिकेट मिले. उस ने कभी बताया नहीं कि वह आर्ट स्कूल में भी जाता था. तभी चांदनी का हाथ ड्राइंग में इतना साफ है. पिता से विरासत में मिली सौगात है उस को. मन ही मन गर्व का अनुभव किया उस ने. तभी उस की नजर एक लिफाफे पर पड़ी. कुतूहल के साथ उस ने उसे उठाया. मथुरा के किसी फोटोस्टूडियो का लिफाफा है. मथुरा से तो दूरदराज तक इन लोगों का कोई मतलब नहीं है. हो सकता है ससुरजी कभी परिवार सहित दर्शन करने गए हों, तब फोटो खिंचवाया हो. उस ने उस में से फोटो निकाला और देखते ही उस के पूरे शरीर को मानो लकवा मार गया. संजीव और सुदर्शना विवाह की वेदी के सामने विवाह के जोड़े और जयमाला के साथ. लगभग 19-20 वर्ष पुराना फोटो है. उस समय रंगीन फोटो कम लिए जाते थे. पर यह फोटो रंगीन है. सुदर्शना की मांग में लाल सिंदूर की रेखा, संजीव के गले में फूलों की माला, माथे पर टीका और गुलाबी चादर में गठजोड़ा. दोनों की ही उम्र 16-17 वर्ष से कम ही है. बहुत बदल गए हैं दोनों. पर पहचानने में कोई परेशानी नहीं. पीछे बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा है ‘संजीव वैड्स सुदर्शना’. बेहोशी की दशा से उभर भारती को होश में आते ही मानो क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा. संजीव उस का वह पति जिस पर उसे गर्व है. वह अपने को सारी सहेलियों से ज्यादा पति सुहागिन मान इतराती है, गर्व से फूलीफूली फिरती है. वह विश्वासघाती है. वह पहले से ही विवाहित था. सुदर्शना उस की पहली पत्नी ही नहीं, उस का पहला प्यार भी है. तो क्या ‘आंचल’ में उस का फ्लैट लेना, फिर कामवाली के बहाने उस के घर में घुसना और फिर उस से, परिवार में बेटी से इतना घुलमिल जाना, यह सब सोचीसमझी साजिश है? दोनों जरूर मिलते होंगे आज भी. यह सब जो हो रहा है, सब इन दोनों की योजना है. वह मूर्ख की मूर्ख ही बनी रही. अपने ऊपर भी गुस्सा आया, क्या किया उस ने? अपनी मूर्खता के कारण स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. पति पर इतना अंधा विश्वास अपनी कोई सहेली कभी नहीं करती है. एक वही आज तक मूर्ख बन कर धोखे की दुनिया में जीती रही. अब इस विश्वासघाती पति के साथ एक दिन नहीं रहेगी और उस डायन को उसी के फ्लैट में जा कर सब के सामने झाड़ू से पिटाई कर के आएगी. तभी भारती की कुछ व्यावहारिक बुद्धि जागी, संजीव के साथ न रहेगी यह तो तय है पर वह जाएगी कहां? मांबाप नहीं हैं, दादी भी नहीं. घर पर बहुओं की सरकार है. वे ननद और उस की बेटी को तो अपने घर पैर भी न धरने देंगी. ‘हाय, क्या करूं मैं’ सोचसोच कर बहुत रोई भारती. फिर आंसू पोंछ ठंडे दिमाग से सोचने बैठी. 14 वर्ष पूरे हो चुके थे विवाह को. चांदनी 10 वर्ष पूरा कर 11वें साल में चल रही थी.

उस ने आज तक संजीव के चरित्र में कोई उन्नीसबीस नहीं देखा. उस की किसी इच्छा को अपनी क्षमता में रहते अपूर्ण नहीं रखा. तब क्या पता था कि यह सब चालाकी थी. उस के सारे मन पर तो सुदर्शना का अधिकार था. आज दोनों के मुखौटे नोच फेंकेगी वह, आग लगा देगी परिवार को और सब से पहले इस मनहूस फोटो को, जिसे इतने वर्षों से सीने में छिपा रखा है और उसे भनक तक नहीं लगने दी. वह उठ कर फोटो को ले कर गैस पर जलाने ले जा रही थी कि तभी एक बात ध्यान में आई. अच्छा, इतने वर्षों में कभी भी संजीव को अलमारी खोलते तो नहीं देखा. उस ने फिर फोटो को देखा, दो मासूम बच्चे ही लग रहे हैं. 5-6 वर्षों में ही अपनी चांदनी इतनी ही बड़ी हो जाएगी. संजीव…उस का पति है, पति के धर्म को निभाने में कहीं भी वह चूका नहीं. किसी प्रकार की समस्या, कठिनाई आई तो ढाल बन कर उस के सामने आ गया. उसे हर कठिनाई से बचाता रहा. उसे हर तरह से खुश रखने का प्रयास करता रहा. आज तक एक कटु शब्द तक नहीं बोला वह उस से. पति उस का इतना अच्छा है कि उस से उस की हमउम्र स्त्रियां ईर्ष्या करती हैं. और सुदर्शना, वह भी तो ठीक बड़ी बहन की तरह उस पर लाड़प्यार बरसाती है, उस का ध्यान रखती है, उस के लिए चिंता करती है. सब चालाकी तो नहीं लगती.

संजीव भी अपनी सीमा में रह कर ही सुदर्शना से मिलता है. शालीनता बनाए रखता है, मर्यादा बनाए रखने में सतर्क रहता है. सुदर्शना भी संजीव के साथ व्यवहार में सदा ही औपचारिकता बना कर रखती है जबकि चांदनी और उस के साथ एकदम एकात्म हो कर घुलमिल गई है. सब प्रकार के आमोदप्रमोद में घुलमिल उपभोग करती है जबकि दोनों रीतिरिवाजों के तहत बंधनों के पतिपत्नी हैं. पल में सारा क्रोध, सारी उत्तेजना शांत हो गई भारती की. उस का कितना ध्यान रखते हैं दोनों. वह आहत न हो, मन में संदेह न हो, उस का विश्वास न टूटे, यही सोच वे कितने संयत, कितने सतर्क हो कर एकदूसरे से औपचारिक संपर्क बना कर रखते हैं. कितना कष्ट होता होगा उन दोनों को ही. एकदूसरे को समर्पित थे दोनों. बाल बुद्धि में भाग कर भले ही विवाह किया हो पर विवाह तो झूठा नहीं था. भले ही समाज ने दोनों को खींच कर अलग कर दिया हो पर मन का बंधन क्या टूटता है कभी? सच तो यह है कि वही खुद सुदर्शना का संसार, अधिकार यहां तक कि पति कब्जा किए बैठी है. ये दोनों तो तिलतिल मर कर जी रहे हैं प्रतिदिन. एकदूसरे को सामने पाते ही कितनी पीड़ा होती होगी मन में. उसे दुख न हो, यही सोच वे दोनों सहज भाव से बस अच्छे पड़ोसी की तरह एकदूसरे से हंसतेबोलते, योजनाएं बनाते हैं. बस, इसलिए कि उस के सुखी जीवन में दुख की छाया न पड़े और एक वह है कि उन को ही अभियुक्त बना कठघरे में खड़ा करने चली थी. छि:छि:, कितना ओछापन है उस में. संयोग से सुदर्शना को संजीव फिर से मिल गया. पर अब वह उस का नहीं, भारती का पति है. चाहती तो वह भारती से उस के पति को छीनने की कोशिश कर सकती थी पर उस ने ऐसा नहीं किया. वह उस की बहन और संजीव की अच्छी दोस्त बन गई. इस परिवार की सच्ची शुभचिंतक बन गई और वह उस पर ही आक्रोश में भर कर अपने हाथ से सजाए गृहस्थी में आग लगाने जा रही थी. कितना छोटा मन है उस का.आंसू पोंछ भारती ने फोटो को लिफाफे में भर कर बैग में रख कर धूल की परत समेत जहां था वहीं रख दिया. ताला लगा उस ने हाथ धोए. खिड़की से ठंडी हवा के झोंके ने आ कर उस के माथे को चूमा. उस का मन हलका हो गया मानो हरी घास के ऊपर हिरशृंगार के फूल बखर गए हों. उस ने सोचा आज रात सुदर्शना को खाने पर बुला उस के पसंद के दहीबड़े, आलूपरांठा बनाएगी जो संजीव और चांदनी को भी पसंद हैं और उसे तो हैं ही.

सौतन: भाग 3

‘‘क्यों?’’

सुदर्शना हंसी, ‘‘बड़ेबड़े लोग हैं सब. सभी अपने को दूसरे से बड़ा समझते हैं. आपस में आनाजाना भी नहीं. बस, चढ़तेउतरते हायहैलो.’’ ‘‘अब जो भी काम हो यहां आ जाइए अपना घर समझ कर.’’ तभी संजीव, चांदनी को ले कर बाइक से घर लौटा. भारती ने आपस में परिचय कराया, ‘‘मेरे पति संजीव और ये हैं सुदर्शना दीदी, ‘आंचल’ सोसाइटी में नई आई हैं.’’ पता नहीं संजीव एकदम चौंका या सहमा. शायद स्तर के अंतर को समझ संकुचित हुआ, एक पल रुक कर उस के हाथ उठे, ‘‘नमस्कार.’’

‘‘नमस्कार.’’

‘‘यह मेरी बेटी चांदनी, प्राइवेट स्कूल में 8वीं में पढ़ती है.’’

सुदर्शना ने उसे गोद में खींच माथे को चूमा, ‘‘बड़ी प्यारी बच्ची है तुम्हारी. अब मैं चलूं?’’

भारती ने रोका, ‘‘घर में तो खानेपीने का जुगाड़ है नहीं. कामवाली शाम को आएगी तो आप दोपहर में खाना हमारे साथ खाइए.’’

‘‘अरे नहीं, मैं कैंटीन से लंच पैक करा कर लाई हूं, वह खराब हो जाएगा.’’ संजीव जल्दी से बोला, ‘‘नहींनहीं, तब तो नहीं रोकेंगे आप को.’’

भारती ने अवाक् हो संजीव का मुख देखा. इतने वर्षों से उसे देख रही है. उसे संजीव का आज का व्यवहार बड़ा ही अजीब लगा. वह लोगों को खिलाना बहुत पसंद करता है. दोस्त आते हैं तो जबरदस्ती उन को खाना खिला कर भेजता है. असल में उसे भारती के हाथ से बने स्वादिष्ठ भोजन पर गर्व है. आज स्वभाव के विपरीत आग्रह करना तो दूर, सुदर्शना को भगाने को उतावला हो उठा. क्या उसे भी पहले सुदर्शना जैसी एलिट क्लास की महिला को देख कर घबराहट हुई जैसे उसे हुई थी. पर सुदर्शना वैसी नहीं है. वह बहुत अच्छी है. दो मिनट बैठ बात करता तो समझ जाता जैसे वह समझ गई है. सुदर्शना ने उन से विदा ली. जाते समय फिर चांदनी को प्यार किया. सब को अपने फ्लैट पर आने का निमंत्रण दिया और चली गई.

कुछ देर बाद जब सब खाने बैठे तब चांदनी ने कहा, ‘‘मैं आंटी को जानती हूं.’’

संजीव चौंका, ‘‘अरे, कैसे?’’

‘‘हमारे स्कूल की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करने आई थीं. ये फाइन आर्ट अकादमी की डायरैक्टर हैं.’’

भारती का मुंह खुल गया, ‘‘हैं…’’

‘‘हां मम्मी. और इन के बनाए चित्र लाखों में बिकते हैं.’’

‘‘बाप रे, देखने में लगता नहीं. इतनी सीधीसादी हैं न जी.’’ संजीव खाने में मस्त था, शायद सुना ही नहीं, चौंका, ‘‘क्या, क्या कह रही हो?’’

‘‘सुना नहीं, सुदर्शनाजी कितनी बड़ी नौकरी पर हैं. इन के चित्र लाखों में बिकते हैं. पर देखो, कितनी अच्छी हैं, हम लोगों से कैसे घुलमिल गईं. लगता ही नहीं कि इतने ऊंचे स्तर की हैं.’’

‘‘हां, हां, वह तो है. पर भारती, हमारे और इन के स्तर में बहुत बड़ा अंतर है. तुम जरा संभल कर मिलनाजुलना.’’

‘‘अरे, वह मैं समझती हूं. मैं तो गई नहीं, वही मदद मांगने आई थीं. सो, भोले सब्जी वाले की बहन को उन के घर काम पर लगा दिया, बस. अब कौन रोजरोज आएंगी वे.’’

संजीव ‘यह भी ठीक है.’ सोच कर चुप हो गया. पर इन लोगों ने जैसा सोचा था कि बात आईगई हो गई, ऐसा हुआ नहीं. क्योंकि सुदर्शना ने स्वयं ही बारबार आ कर घनिष्ठता बढ़ा ली. स्वभाव भी उस का इतना मधुर और मिलनसार था कि ये लोग भी उस से घुलमिल गए. वह चांदनी की आदर्श, भारती की स्नेहमयी दीदी और संजीव की शुभचिंतक बन गई. भोले भी बड़ा खुश था, उस की दीदी को सुदर्शना मोटा वेतन देती और रोज ही कुछ न कुछ घर ले जाने को देती. उस का आर्थिक संकट दूर हो गया. अब भारती के घर सुदर्शना का आनाजाना बहुत हो गया. धीरेधीरे संजीव भी खुल गया उस के सामने. अब तो घर की व्यक्तिगत बातें भी उस के सामने करते यह परिवार नहीं हिचकता. जैसे उस दिन दीवार पर फ्रेम किए चांदनी के बनाए 2 चित्रों को देख उस ने कहा, ‘‘चांदनी का हाथ बहुत अच्छा है. इसे आर्ट स्कूल में क्यों नहीं भेजती.’’

भारती ने रुकरुक कर जवाब दिया, ‘‘स्कूल…से…लौट…समय…होमवर्क भी रहता है.’’

‘‘पर वहां शाम की क्लासेज भी होती हैं शनिवार और रविवार को, तो क्या परेशानी है.’’

‘‘नहीं, असल में पूरे वर्ष की फीस जमा करते हैं वहां, अब एकदम 24 हजार रुपए…’’ सुदर्शना चुप हो गई. एक हफ्ते बाद चांदनी का जन्मदिन आया. शाम को बच्चों की पार्टी हो गई. रात को खाने पर सुदर्शना को बुलाया था भारती ने. उस दिन वह कुछ काम में व्यस्त थी, देर से आई 11 बजे के आसपास. चांदनी को ले कर एक बार बाजार गई थी. उसे सुंदर सा एक ड्रैस खरीद दिया. रात खाने पर आई तो सब से पहले उस ने चांदनी को खूब प्यार किया, आशीर्वाद दिया. फिर बोली, ‘‘भारती, मैं ने चांदनी को कोई गिफ्ट नहीं दिया अभी तक.’’

भारती से पहले संजीव बोल पड़ा, ‘‘अरे, इतना महंगा ड्रैस…’’

‘‘वह गिफ्ट नहीं. गिफ्ट यह है,’’ उस ने एक लिफाफा बढ़ा दिया संजीव की ओर.

संजीव हैरान था, ‘‘यह क्या?’’

‘‘बर्थडे गिफ्ट.’’

चांदनी के होंठों पर दबी मुसकान अर्थात उसे पता है कि इस में क्या है. संजीव ने भारती की ओर देखा, उस ने असमंजस से सिर हिलाया. उसे भी कुछ पता नहीं. संजीव ने सोचा, इस में चैक होगा. खोला तो चौंका, मुंह से निकला, ‘‘अरे, यह कब…?’’

खिलखिला उठी चांदनी, ‘‘जब ड्रैस लेने गई थी…’’ आर्ट कालेज में चांदनी के भरती होने की पूरे 2 वर्ष की फीस 48 हजार रुपए की रसीद. संजीव के पैरों के नीचे की जमीन खिसकने लगी. भारती ने भी देखा, वह कुछ बोलती कि सुदर्शना ने रोका, ‘‘देखो भारती, आज खुशी का दिन है. चांदनी को मैं अपनी बेटी मानती हूं. उस के लिए 2 रुपए का सामान लाने में भी मुझे बड़ा सुख मिलता है. मैं तुम लोगों को अपना मानती हूं. तुम लोग भले ही मुझे पराया समझते हो.’’ व्यावहारिक ज्ञान भारती को संजीव से ज्यादा है. उस ने बात संभाली, ‘‘नहीं दीदी, आप को भी हम परिवार का हिस्सा समझते हैं.’’

‘‘तो फिर इतने परेशान क्यों हो?’’

संजीव अब तक संभल गया था, बोला, ‘‘सुदर्शनाजी, रकम बहुत बड़ी है.’’ ‘‘देखिए, संजीवजी, मैं संसार में एकदम अकेली हूं, मेरी आय काफी है. मेरे लिए यह सजा है कि मेरे पास कोई नहीं है जिस पर मैं 10 रुपए भी खर्च करूं. पता नहीं, किस अच्छे काम के चलते इतने दिनों बाद मुझे एक ऐसा परिवार मिला जो मुझे अपना लगा, जिस ने मुझे अपना समझा. कृपया, कुछ कर के मुझे सुख मिले तो मुझे रोक कर उस सुख से वंचित मत करिए.’’ यह कह कर उस ने हाथ जोड़े. भारती लिपट गई उस से.

‘‘ना-ना दीदी, आप जो मन में आए, करिए, हम कुछ नहीं कहेंगे. चांदनी आप की ही बेटी है.’’ दोनों के बीच स्तर के नाम की जो कांच की दीवार थी वह झनझना कर टूट गई. सुदर्शना इस परिवार की सदस्या बन गई. वास्तव में इन लोगों को याद ही न रहा कि सुदर्शना पड़ोस में रहने वाली एक पारिवारिक मित्र भर है. उस के बिना ये लोग अब कुछ सोच भी नहीं सकते थे. घूमना, खाना, भविष्य योजना, यहां तक कि आर्थिक योजना सब कुछ में सुदर्शना शामिल हो गई. संजीव ने थोड़ा रोकने का प्रयास न किया हो, ऐसी बात नहीं पर चांदनी व भारती की खुशी देख वह चुप रह जाता. धीरेधीरे घर की कायापलट हो रही थी. सब से पहले उस ने एक माली लगाया जिस से बगीचा सजसंवर जाए. वह अकादमी में काम करता रविवार पूरा दिन यहां काम कर जाता, वेतन नहीं लेता. पैसों की बात करते ही हाथ जोड़ता, ‘‘मैडमजी का बहुत उपकार है मेरे ऊपर. आप उन के अपने हैं, पैसे की बात न करें. बहुत ले रखा है उन से. भारती को ठंड में काम करने में कष्ट होता है, जल्दी ठंड लग जाती है. उस ने भोले की दीदी को भारती के घर काम के लिए लगा दिया. 8 बजे के बाद आ कर पूरा काम करती, यहां तक कि सागसब्जी, दाल भी रात के लिए बना जाती. रात को भारती

सौतन: भाग 2

‘‘अरे दोनों सोसाइटी हमारे अगलबगल में हैं. मतलब उत्तर और दक्षिण में. पर पूरबपश्चिम तो एकदम खुला है, कभी बंद होगा ही नहीं. सामने चौड़ा हाइवे, पीछे सरकारी कालेज का खेल मैदान. उगते और डूबते सूरज की पहली से ले कर अंतिम किरण तक हमारे घर में खुशियों की तरह बिखरी रहेगी. हवा, धूप की चिंता हमें नहीं.’’ भारती ने चैन की सांस ली. संजीव उस की हर समस्या का हल कितने आराम से कर देता. घर में भले ही हजार असुविधा थीं पर भारती तृप्त थी, संतुष्ट थी संजीव जैसे पति को पा कर. सोसाइटी ‘आंचल’ के मुहूर्त के बाद 5वें दिन लगभग 11 बजे का समय था, भोले सब्जी का ठेला ले कर आया, ‘‘भाभीजी, ताजी भिंडी लाया हूं, बिक्री की शुरुआत करा दो.’’ भारती के घर की जमीन पर केले और पपीते खूब उगते थे और चारदीवारी पर सेम की बेल भी खूब फलती थी. भोले सब ले जाता, बदले में हिसाब से दूसरी सब्जी दे जाता. भारती और उस का यह हिसाबकिताब बहुत पुराना था. इस तरह सब्जी खरीदने के पैसे बचा लेती थी वह.

भारती भिंडी छांट रही थी कि एक चमचमाती गाड़ी आ कर रुकी. चालक की सीट से एक युवती झांकी, ‘‘हाय.’’

सकपका गई भारती. इतनी अभिजात महिला से इस से पहले कभी संपर्क नहीं हुआ था उस का. ‘हाय’ के उत्तर में क्या कहे, यह भी उसे नहीं पता.

थोड़ी सी घबराहट के साथ उस ने कहा, ‘‘जी, जी.’’ युवती उतर आई. उस से 4-5 साल बड़ी ही होगी पर बड़े घर की छाप, वेशभूषा, हावभाव और महंगे कौसमेटिक्स ने उस को बहुत कोमल और आकर्षक बना रखा था. सुंदर तो थी ही, गोरीचिट्टी, तराशे नैननक्श और सुगठित लंबा तन भी. शरबती रंग की शिफौन साड़ी, मैचिंग ब्लाउज, कंधों तक कटे बाल और धूप का चश्मा सिर के ऊपर चढ़ाया हुआ. हाथ में मोबाइल.

‘‘नमस्कार, मैं ‘आंचल’ सोसाइटी में नईनई आई हूं.’’ वह तो भारती देखते ही समझ गई थी, कहने की जरूरत ही नहीं थी. ऐसी गाड़ी, यह व्यक्तित्व भला और किस का होगा. यहां के पुराने रहने वाले कम ही हैं. जो हैं वे लगभग उसी के स्तर के हैं. पर यह तो…घबरा कर भिंडी की टोकरी छोड़ उस ने हाथ जोड़े, ‘‘नमस्कार.’’

‘‘मैं सुदर्शना, फाइन आर्ट्स अकादमी में काम करती हूं. अकेली हूं. 105 नंबर फ्लैट मेरा है. आप का नाम?’’

‘‘भारती.’’

‘‘सुंदर नाम है. मैं आप से थोड़ी मदद चाहती हूं. यहां आबादी कम है. अपनी कालोनी से बस आप को ही देख पाती थी.’’ युवती के सहज व्यवहार ने उसे भी सहज बना दिया. कुछ लोग इतने सहजसरल होते हैं कि अगले ही पल में उन से दूसरे लोग घुलमिल जाते हैं, उन्हें अपना समझने लगते हैं. सुदर्शना उन लोगों में से एक है.

‘‘कहिए, मैं क्या कर सकती हूं?’’

‘‘यहां ही बात करें या…?’’

लज्जित हुई भारती को अपनी भूल का अनुभव हुआ, ‘‘नहींनहीं, आइए, अंदर बैठते हैं.’’

वह मुड़ी तो भोले ने कहा, ‘‘भाभीजी, भिंडी…’’

‘‘तू छांट कर दे जा,’’ फिर भारती उस महिला की ओर मुखातिब हुई, ‘‘चलिए.’’

युवती हंसी, ‘‘तुम मुझ से छोटी हो. दीदी कह सकती हो, भारती.’’

खिल उठी भारती. इतने बड़े हाईफाई लोग ऐसे सीधे, सरल भी होते हैं? बैठक में ला कर बैठाया. सुदर्शना ने मुग्ध हो कर देखा. पुराना घर, पुराना साजसामान, उन को भी भारती ने झाड़पोंछ कर इतने सुंदर ढंग से सजा रखा था कि देखते ही आंखों में ठंडक पहुंच जाए, मन खुश हो जाए.

‘‘तुम तो बहुत ही सुगृहिणी हो. घर को कितना सुंदर सजा रखा है.’’ लजा गई भारती. उस की प्रशंसा सभी करते हैं पर इन के द्वारा की गई प्रशंसा में दम था.

‘‘नहीं दीदी, मामूली साजसामान…’’

‘‘उसी को तुम ने असाधारण ढंग से सजा रखा है. तुम्हारे पति तुम से बहुत प्रसन्न रहते होंगे.’’ पानीपानी हो गई वह अपनी प्रशंसा सुन. पल में सुदर्शना उसे अपनी सगी सी लगने लगी.

‘‘चाय लेंगी या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं, बस, तुम से एक सहायता चाहिए.’’

‘‘कहिए,’’ भारती ने घड़ी देखी. आज शनिवार है. बापबेटी दोनों का हाफडे है, जल्दी लौटेंगे और खाने की तैयारी कुछ नहीं हुई. चिंता होने लगी उसे. पर सुदर्शना का साथ अच्छा भी लग रहा था.

‘‘मेरा किराए का घर यहां से 10 किलोमीटर दूर है. पुरानी कामवाली यहां नहीं आ सकती. यहां कोई मिली नहीं. एक कामवाली चाहिए.’’

‘कामवाली?’ भारती सकपका गई.

असल में कामवालियों से परिचय नहीं था उस का. सारा काम स्वयं करती थी. संजीव ने कई बार कहा भी पर वह तैयार नहीं हुई. बेकार में 600-800  रुपए महीना चले जाएंगे, उन्हीं पैसों से सागभाजी का खर्चा निकल आता है. ‘‘मैं अकेली हूं. साढ़े 8 बजे निकल कर साढ़े 5 बजे तक लौटती हूं. खानानाश्ता सब बनाना पड़ेगा. छुट्टी के दिन दोपहर का खाना भी. दूसरे दिन रात का खाना, बाकी सफाई, कपड़े, झाड़ू, बरतन, सौदासपाटा. सुबह साढ़े 6 बजे आ जाए, फिर शाम भी 6 बजे. पैसा जो मांगेगी दे दूंगी.’’

भोले इतने में भिंडी ले कर अंदर आ गया, ‘‘भाभीजी, रसोई में रख दूं?’’

‘‘रख दे. सुन भोले, कोई कामवाली ला देगा?’’

‘‘किस के लिए?’’

‘‘यह मेरी दीदी हैं. ‘आंचल’ सोसाइटी में रहने आई हैं. अकेली हैं. कामवाली को सारा काम, सौदासपाटा सब करना पड़ेगा. सुबह व शाम आना है.’’

‘‘भाभीजी, मेरी दीदी ही काम खोज रही हैं.’’

‘‘तेरी दीदी?’’

‘‘अब क्या कहूं. अलीगढ़ के पास एक गांव में ब्याही थीं. 8 बीघा जमीन, पक्का घर, 2 बच्चे 8वीं और छठी में पढ़ने वाले. जीजा अचानक चल बसे. देवर ने मारपीट कर भगा दिया. जमीन का हिस्सा नहीं देना चाहता. 2 महीने से यहां आई हुई हैं. मेरी ठेले की आमदनी है बस. घर में मां, अपने 2 बच्चे, बीवी. परेशानी है तो…

‘‘तो तू जा कर ले आ उसे.’’

‘‘मेरा ठेला…’’

‘‘यहां छोड़ जा.’’

‘‘सुबह की बिक्री नहीं होगी. उसे शाम को ले आऊंगा.’’

‘‘ठीक है फ्लैट नंबर 105. देख, ये मेरी दीदी हैं, अकेली रहती हैं. नौकरी पर जाती हैं. समय पर काम चाहिए.’’

‘‘जी, मैं दीदी को सब समझा दूंगा.’’

भोले चला गया. सुदर्शना ने कहा, ‘‘बड़ा उपकार किया तुम ने मुझ पर. फ्लैटों में तो कोई किसी की सहायता नहीं करता.’’

पिता के खून से रंगे हाथ

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले मे एक कलयुगी पुत्र ने  अपने पिता की हत्या कर शव को फंदे पर लटका दिया.  उसकी  पिता  की हत्या को आत्महत्या की शक्ल देने की कोशिश आखिरकार धरी की धरी रह गई  .पुलिस ने उसके खिलाफ हत्या का  अपराध दर्ज  कर  उसे गिरफ्तार  कर जेल  भेज दिया है . घटना  कोरबा  छत्तीसगढ़ के  वनांचल पसान थाना के सेन्हा गांव की है जहाँ  25 वर्षीय युवक विश्वनाथ चौधरी ने घरेलु विवाद के कारण अपने पिता बुद्धु राम 55 वर्ष की जी आई तार से गला घोटकर हत्या कर दी. कहते हैं ना खून बोलता है और अपराधी अपने पीछे कोई न कोई सुराग छोड़ जाता है इस घटना क्रम में भी कुछ ऐसा ही हुआ. पुलिस को अंततः पोस्टमार्टम के पश्चात ऐसे तथ्य मिल गए जिसकी बिनाह पर पुत्र को स्वीकार करना पड़ा कि हत्या का घिनौना अपराध उसी के हाथों से हुआ है. दूसरी तरफ पुलिस यह भी जांच कर रही है कि पिता की हत्या में आरोपी शख्स  ने क्या  हत्या किसी अन्य के सहयोग से की है. क्योंकि साक्ष्य बताते हैं कि आखिर कोई तो उसका और भी सहयोगी है?

फांसी के  फंदे पर लटकाया 

इस हत्या अपराध में यह तथ्य भी उजागर हो रहा है कि बड़े ही शातिर तरीके से पुत्र ने पहले अपने हाथों से पिता की हत्या कर दी और पुलिस को, कानून को धता बताने के लिए वारदात को आत्महत्या का शक्ल देने के लिए विश्वनाथ ने पिता की लाश को फांसी के फंदे पर लटका दिया. जिसकी सूचना उसने ग्राम पंचायत के सरपंच सहदेव सिंह उइके के माध्यम से पसान थाना में दी थी. जिसमें उसने पिता को आदतन शराबी होने और  लड़ाई-झगड़ा करने के बाद भागकर अपनी मां के साथ सरपंच के घर में रात ठहरने और अगली सुबह लौटने पर, घर में लकड़ी के म्यार में बिजली तार से फांसी के फंदे पर पिता की लाश देखना बताया.सपूत सोची-समझी शातिर चाल के तहत  हुआ . मगर  पोस्ट मार्टम  रिपोर्ट में डॉक्टर ने बुद्धु राम की मौत गले में जीआई तार से गला घोटने पर दम घुटने से होना लेख किया. जिसके बाद पुलिस ने जांच में तेजी लाकर पड़ताल शुरू कर दी और अंततः  आरोपी पुत्र विश्वनाथ चौधरी का कृत्य धारा 302,201 भादवि का पाये जाने पर अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना कार्यवाही कर जेल भेज दिया गया.

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अवैध संबंध  और विवाद

जैसा कि हर एक हत्याकांड में होता है हत्या का कोई न कोई कारण होता  है इस अपराध के पीछे  भी महिला के अवैध संबंधों का शक  पति को था.पुलिस  जांच अधिकारी के अनुसार  पुत्र और उसकी माँ घर के एक तरफ तो दूसरी ओर पिता रहता था. घटना दिनांक को मृतक  द्वारा पत्नि  पर शंका करने को लेकर विवाद हुआ था. घटना के दौरान महिला  घर पर नहीं थी. लेकिन उसे घटना के संबंध में जानकारी होने की बात सामने आ रही है. फिलहाल पुलिस ने आरोपी कलयुगी पुत्र को गिरफ्तार कर अन्य  संदिग्ध लोगों की भूमिका की जांच कर रही है.

coronavirus से हुई डॉक्टर की मौत तो इस एक्टर को नवजात बेटे के साथ छोड़ना पड़ा हॉस्पिटल

कोरोना से पूरा देश सहमा हुआ है. खौफ इतना ज्यादा है कि लोग घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहते हैं ऐसे में एक्टर रुसलान मुमताज की पत्नी ने बेटे को जन्म दिया है. रुसलान ने बताया है कि पिता बनने की खुशी से ज्यादा वह डरे हुए थे.

दरअसल, रुसलान की पत्नी ने जिस अस्पाल में अपने बच्चे को जन्म दिया उसी अस्पताल में एक डॉक्टर की मौत कोरोना बीमारी से हो गई थी. जिस वजह से उन्हें अस्पताल से उन्हें तुरंत वापस घर भेज दिया गया. वायरस के खतरे से बचाने के लिए डॉक्टर्स ने यह कदम उठाया. जब वह अफने बच्चे को लेकर घर पहुंचा तो उन्हें कुछ पता नहीं था कि बच्चे कि देखभाल कैसे की जाएगी.

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घर में मेड रखने की भी इजाजत नहीं थी कोरोना के डर से. बच्चा सो रहा था और घर में करीब 14 घंटे तक दूध नहीं था. जिस वजह से उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा. रात के करीब तीन बजे हमने बच्चे के बारे में बहुत कुछ ऑनलाइन पता किया.

रात को बच्चा सो रहा था कुछ हरकत नहीं कर रहा था. जिसके बाद हम कुछ समय के लिए परेशान हो गए थए कि हमने कुछ गलत तो नहीं कर दिया. इसके कुछ देर बाद हरकत करनी शुरू कर दी. जिससे पता चला कि बच्चा ठीक है.

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सोशल मीडिया पर उन्होंने इस बात को शेयर करते हुए लिखा है कि कोरोना के बीच हमारे घर में नन्हें मेहमान का आगमन हुआ. हम बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे हैं. आप सभी लोग भी अपने घर में सुरक्षित रहे. इससे बीमारी फैलेगी नहीं.

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टीवी और बॉलीवुड के मशहूर स्टार पूरब कोहली ने जब अपने सोशल मीडिया पर कोरोना होने की खबर दी इसके बाद सभी फैंस और स्टार्स के बीच खलबली मच गई. उन्होंने अपने पोस्ट में खुलासा किया है कि वह कोराना वायरस के शिकार हो गए हैं. साथ ही उनका पूरा परिवार भी कोरोना के चपेट में आ गया है.

पूरब को यह बीमारी लंदन में हुई है. जहां वह शादी के बाद अपने पूरे परिवार के साथ सेटल हो गए थें. इस बात की जानकारी देते हुए एक्टर ले लिखा है कि सबसे पहले उनकी पत्नी लूसी को कफ की प्रॉब्लम हुई. जिसके बाद उन्होंने जांच करवाई. उसके बाद उनकी पांच वर्षीय बेटी ईनाया को भी कुछ ऐसे ही सिम्टम्स दिखाई दिए. जब पूरे परिवार की जांच हुई तो पता चला कि उनका पूरा परिवार कोरोना का शिकार हो चुका है.

 

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Out of love still getting very well deserved attention!! #throwback #BTS #outoflove

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हालांकि आगे एक्टर ने लिखा है कि इसमें ज्यादा घबराने की जरुरत नहीं है अपने इम्यूनिटी को बढ़ाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है. इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन इससे बचने के पूरे चांसेज है अगर आप अपना ख्याल अच्छे से रखें तो.

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जिन लोगों को पूरब कोहली के बारे में नहीं पता है तो बता दें की लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड लूसी से साल 2018 में पूरब ने शादी की थी. लेकिन वह शादी से पहले ही बेटी ईनाया के पिता बन चुके थें. ईनाया का जन्म साल 2015 में हुआ था.

 

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Hey guys, we’ve just had a flu and given our symptoms our GP says we were down with Covid 19. Pretty similar to a regular flu with a stronger cough and a feeling of breathlessness. Inaya got it first and very mild. A cough and a cold for two days. Then Lucy got it more in the chest, quite similar to the cough symptom everyone has been talking about. Then me, i got a solid cold for one day which was horrid then it vanished and this irritating cough set in for 3 days. Three of us had only mild 100-101 temperatures and fatigue. Osian got it last with a 104 fever for 3 nights. Also a runny nose and a slight cough. His fever disappeared only on his 5th day. We were constantly in touch with the GP on the phone. Apparently everyone in London is getting it and its rampant here, and a few people we know have gotten it. Just wanted to share it with you if it helps reduce the panic a little to know someone who has had it and is fine. On Wednesday last week we were out of self imposed quarantine and are not contagious any longer. We were doing 4 to 5 steams and salt water gargles a day, ginger haldi honey mixtures to sooth the throat really helped. Also warm water bottles on the chest really helped relax the chest. Hot baths helped the fluie feelings. And of course lots and lots of rest even now after two weeks we can feel our bodies still recovering. Please stay safe. I hope none of you get it but if you do, know that your body is strong enough to fight it. Seek proper advice from your doctors as intensity of each case is different as was in my household alone. And please stay home and rest the body as much as possible. Lots of love. #CoronaVirus #Covid19 #Recovery #DontPanic #Breathe #Calm

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लंबे समय से वह अपने परिवार के साथ लंदन में ही रह रहे हैं. इन सबके बावजूद वह सोशल मीडिया पर अपने निजी जीवन से जुड़ी हुई जानकारी भी देते रहते हैं.

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वह शो सारेगामापा के होस्ट भी रह चुके हैं. लोग उन्हें बेहद पसंद करते हैं. फिलहाल वह अपने आप और फैमली का ख्याल रख रहे हैं.

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