Download App

जूते की नोक

अपने स्वार्थ में अंधे हुए उदयनराजेश कदम थाने में चहलकदमी कर रहे थे. उनके चेहरे पर परेशानी के भाव नहीं थे. इस की वजह यह थी कि पिछले 4-6 दिनों से मेट्रो सिटी के इस थाने में कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी. अलबत्ता छोटीमोटी चोरी, मारपीट, जेबतराशी वगैरह की घटनाएं जरूर हुई थीं. इंसपेक्टर राजेश कदम अपनी कुरसी पर बैठने ही वाले थे कि अचानक फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, राजनगर पुलिस स्टेशन से बोल रहे हैं?’’ फोन करने वाले ने प्रश्न किया.

‘‘जी, मैं बोल रहा हूं.’’ राजेश कदम ने जवाब दिया.

‘‘सर, मैं सुनयन हाउसिंग सोसाइटी से सिक्योरिटी गार्ड बोल रहा हूं. यहां 8वें माले के फ्लैट नंबर 3 में रहने वाले सुरेशजी ने खुद को आग लगा ली है. आत्महत्या का मामला लगता है. आप तुरंत आ जाइए.’’ सूचना देने वाले ने कहा.

‘‘सुरेशजी की मौत हो गई है या अभी जिंदा हैं?’’ राजेश कदम ने पूछा.

‘‘सर, लगता तो ऐसा ही है.’’ फोन करने वाले ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, हम वहां पहुंच रहे हैं. ध्यान रखना कोई भी व्यक्ति अंदर ना जाए और न ही कोई किसी चीज को हाथ लगाए.’’ राजेश कदम ने निर्देश दिया.

दोपहर के करीब पौने 3 बज रहे थे. सुनयन हाउसिंग सोसायटी पुलिस स्टेशन से ज्यादा दूरी पर नहीं थी. सूचना मिलने के लगभग 10 मिनट के अंदर ही राजेश कदम अपनी पुलिस टीम के साथ सुनयन हाउसिंग सोसायटी पहुंच गए. फ्लैट के बाहर 15-20 लोग खड़े थे. लोगों में ज्यादातर महिलाएं थीं, क्योंकि पुरुष अपनेअपने काम पर गए हुए थे. गार्ड समेत 4 पुरुष और थे.

‘‘जी, नमस्कार. मेरा नाम सुरजीत है और मैं इस सोसायटी का सेक्रेटरी हूं.’’ एक 55-60 साल के आदमी ने आगे आ कर अपना परिचय दिया.

‘‘आप को इस घटना की सूचना कब और कैसे मिली?’’ इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘जी, करीब आधे घंटे पहले गार्ड राम सिंह ने राउंड लेते समय नीचे से देखा कि इस फ्लैट से काफी धुआं निकल रहा है तो उस ने इस की सूचना मुझे दी. हम लोग तुरंत यहां आए, लेकिन फ्लैट में औटो लौक होने की वजह से दरवाजा बंद था. सोसायटी औफिस में रखी मास्टर की से जब फ्लैट खोला गया तो यह नजारा था. सुरेश के बदन में आग लगी हुई थी, वह जमीन पर पड़ा हुआ था.

‘‘हम ने उसे काफी आवाजें दीं लेकिन कोई हलचल न होते देख हम ने समझ लिया कि यह मर चुका है. इस के बाद मैं ने आप को सूचना दी. साथ ही किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया ताकि किसी चीज से किसी तरह की छेड़छाड़ न हो.’’ सुरजीत ने सारा विवरण एक ही बार में सुना दिया.

‘‘गुड,’’ इंसपेक्टर राजेश ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा, ‘‘वैसे यह फ्लैट क्या सुरेश का खुद का है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘नहीं, इस फ्लैट के मालिक तो मिस्टर परेरा हैं, जो पुणे में रहते हैं. सुरेश किसी इंपोर्ट एक्सपोर्ट बिजनैस में डील करता था. जब कभी कोई शिपमेंट होता, तब वह 15-20 दिन यहां रहता था.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मिस्टर परेरा से तो हम बाद में बात करेंगे. वैसे आप का व्यक्तिगत मत क्या है, आप को क्या लगता है?’’ राजेश ने सुरजीत से पूछा.

‘‘ऐसा लगता है जैसे सिगरेट सुलगाते समय गलती से पहने हुए कपड़ों में आग लग गई. अचानक लगी आग से धुआं उठा और दम घुटने की वजह से सुरेश सिर के बल फ्लोर पर गिरा. सिर पर गहरी चोट लगने के कारण बेहोश हो गया और आग से उस की मौत हो गई. देखिए, उस के पास जली हुई सिगरेट भी पड़ी हुई है.’’ सुरजीत ने आशंका जाहिर की.

‘‘अच्छा औब्जर्वेशन है आप का मिस्टर सुरजीत. वैसे आप करते क्या हैं?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘जी, मैं एक प्राइवेट कंपनी में सिस्टम एनालिस्ट था, अब रिटायर हो चुका हूं.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘गुड एनालिसिस.’’ राजेश ने फिर तारीफ की और अपने साथ आए फोटोग्राफर को अलगअलग एंगल से फोटो लेने को कहा. अपनी टीम से लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने और जांच पूरी होने तक किसी भी चीज के साथ छेड़छाड़ न करने की हिदायत दे कर इंसपेक्टर राजेश कदम थाने लौट आए.

अगले दिन इंसपेक्टर कदम अपने सहयोगी एसआई आदित्य वर्मा के साथ बैठे थे. दोनों के बीच मेज पर घटनास्थल और सुरेश की लाश के फोटो फैले थे, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देख रहे थे. बीते दिन घटनास्थल और लाश की सारी औपचारिकताएं वर्मा ने ही पूरी की थीं.

इंसपेक्टर कदम ने वर्मा से पूछा, ‘‘आप का क्या विचार है, इस केस के संदर्भ में मिस्टर वर्मा?’’ फोटोग्राफ्स को देखते हुए इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘मैं भी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत की राय से सहमत हूं. यह एक एक्सीडेंट है, जो लापरवाही से सिगरेट जलाने के कारण हुआ.’’ एसआई वर्मा ने अपनी राय दी.

‘‘अब सिगरेट कंपनियों को अपनी चेतावनी के साथ यह भी लिखना चाहिए कि सिगरेट सावधानीपूर्वक सुलगाएं वरना आप की जान भी जा सकती है.’’ पास खड़े फोटोग्राफर ने मजाक में कहा.

‘‘वैसे आप का औब्जर्वेशन क्या है, सर?’’ वर्मा ने राजेश कदम से पूछा.

‘‘मेरा औब्जर्वेशन कहता है कि सुरेश सिगरेट पीता ही नहीं था.’’ राजेश ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’ वर्मा व फोटोग्राफर दोनों चौंक कर आश्चर्य से राजेश का मुंह देखने लगे.

‘‘आप यह बात कैसे कह सकते हैं?’’ वर्मा ने प्रश्न किया.

‘‘इन फोटोग्राफ्स को ध्यान से देखिए. अगर सिगरेट सुलगाने से कपड़ों ने आग पकड़ी होती तो आसपास कहीं माचिस या लाइटर जरूर होता. पर यहां पर दोनों ही चीजें दिखाई नहीं पड़ रहीं, जली हुई भी नहीं. दूसरे सुलगाते समय सिगरेट या तो होठों के बीच होती या हाथों की अंगुलियों के बीच, जो जल चुकी होती और हम उस की राख भी नहीं देख पाते. पर यहां पर सिगरेट लाश से 2 फीट की दूरी पर पड़ी है. अगर आग लगाने की वजह से सिगरेट फेंकी गई होती तो उसे पूरी ताकत लगा कर फेंका गया होता. उस कंडीशन में सिगरेट को कम से कम 4-5 फीट की दूरी पर गिरना चाहिए था.

‘‘तीसरी बात जिस तेजी से आग फैली और काला धुआं निकला, वह सिर्फ तन के कपड़ों के जलने से नहीं निकल सकता. सब से महत्त्वपूर्ण बात धुएं से जो काले निशान जमीन पर पड़े, उस में एक हलका सा निशान जूतों का दिखाई पड़ रहा है. जोकि नुकीली नोक वाले जूते का है. सुरेश ने मरते समय घर में पहनी जाने वाली स्लीपर पहनी हुई थी, जूते नहीं.’’ राजेश कदम ने दोनों को अपनी विवेचना के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘मतलब यह एक मर्डर केस है?’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘बिलकुल. सिगरेट तो हमें बहकाने के लिए डाली गई है.’’ राजेश ने पूरे विश्वास के साथ कहा.

‘‘पर वहां जलाने के लिए पैट्रोल, डीजल, केरोसिन आदि किसी भी ज्वलनशील पदार्थ की कोई गंध नहीं है. यहां तक कि स्निफर डौग भी इस तरह की किसी गंध को आइडेंटीफाई नहीं कर पाया.’’ फोटोग्राफर ने प्रश्न किया.

‘‘यही इनवैस्टीगेट तो करनी है.’’ राजेश ने कहा.

‘‘कहां से शुरू करें सर.’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘देखो, मर्डर दोपहर के 2 बजे के करीब हुआ है. कामकाज और औफिस वर्कर्स तो सुबह जल्दी ही निकल जाते हैं. बाहर का कोई आया भी होगा तो अपने पर्सनल व्हीकल से ही आया होगा. हमें ध्यान यह रखना होगा कि सिर्फ संकरी टो के जूते वाले को ही ट्रेस करना है. एक बजे से शाम तक सोसायटी में आने वाले सभी व्हीकल की बारीकी से जांच होनी चाहिए.’’ राजेश ने कहा.

‘‘सर, अभी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत से बात करता हूं. 2 घंटे में सीसीटीवी फुटेज मिल जाएंगे.’’ वर्मा ने कहा और सोसायटी के लिए रवाना हो गए.

‘‘वेरी गुड वर्मा. बेस्ट औफ लक.’’ राजेश ने उन का उत्साहवर्धन किया.

 

आदित्य वर्मा 2 घंटे से पहले ही लौट आए. आते ही इंसपेक्टर राजेश से बोले, ‘‘लीजिए सर, ये रही सीसीटीवी फुटेज. घटना चूंकि मिड औफिस आवर्स की है, इसीलिए मोमेंटम बहुत ही कम है. टोटल 22 व्हीकल आए या गए. इन में से भी ज्यादातर उन महिलाओं की कारें हैं, जो दोपहर को फ्री आवर्स में शौपिंग के लिए जाती हैं.

‘‘कुल 6 गाडि़यों से पुरुष आए या गए. इन में से भी एक गाड़ी इलेक्ट्रिकल इंसपेक्टर की है, जो उस वक्त मीटर रीडिंग के लिए आया हुआ था.

‘‘बची हुई 5 गाडि़यों में एक मिस्टर खन्ना की गाड़ी ही ऐसी है, जो लगभग एक बजे आई और 3 बजे के आसपास वापस गई. ध्यान देने वाली बात यह है सर, कि मिस्टर खन्ना 10 बजे औफिस जाने के बाद फिर आए थे. परंतु उन के जूते फुटेज में साफ दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘जहां शक है, वहां पुलिस है. खन्ना के बारे में डिटेल्स में कुछ पता चला है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सर, खन्ना उसी सोसायटी में छठे फ्लोर पर रहते हैं. वह बिजनैसमैन हैं.’’ वर्मा ने बताया.

‘‘ठीक है, उन्हीं से पूछताछ करते हैं. किस समय मिलते हैं खन्ना साहब?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘शाम को 8-साढ़े 8 तक मिल जाते हैं सर.’’

‘‘ठीक है या तो शाम का चाय नाश्ता उन के घर पर करते हैं या रात का खाना उन्हें थाने में खिलाते हैं.’’ राजेश ने कहा.

शाम को इंसपेक्टर राजेश कदम और आदित्य वर्मा सुनयन हाउसिंग सोसायटी में जा पहुंचे. उन्होंने फ्लैट की घंटी बजाई तो एक महिला दरवाजे पर आई. राजेश ने कहा, ‘‘हमें खन्ना साहब से मिलना है.’’

‘‘जी, अंदर आइए.’’ पुलिस की यूनिफार्म देख कर महिला ने कुछ नहीं पूछा.

‘‘गुड इवनिंग सर, मेरा नाम खन्ना है.’’ 5 मिनट में ही सिल्क का कुरता पायजामा पहने, हल्की सी फ्रेंच कट दाढ़ी वाला एक सुदर्शन आदमी अंदर से आ कर बोला. उस के चेहरे से ही रईसी झलक रही थी.

‘‘गुड इवनिंग मिस्टर खन्ना, मेरा नाम राजेश कदम है. मैं आप के एरिए के थाने का इंचार्ज हूं. यहां एक केस की तहकीकात के लिए आप के पास आया हूं. मुझे विश्वास है आप हमें कोऔपरेट करेंगे.’’ राजेश ने अपना परिचय देते हुए आने का मकसद बताया.

‘‘यस…यस श्योर.’’ खन्ना बोला.

बैठ कर औपचारिक बातों के बाद राजेश कदम ने यूं ही पूछ लिया, ‘‘एक सिगरेट मिल सकती है?’’

‘‘जी हां लीजिए,’’ कहते हुए खन्ना ने अपने कुरते की जेब से सिगरेट का केस निकाल कर आगे बढ़ाया. सिगरेट केस पर गोल्डन पौलिश थी और चमक बिखेर रहा था.

‘‘काफी लंबी सिगरेट है.’’ राजेश ने सिगरेट निकालते हुए कहा.

‘‘जी हां, 120 एमएम की है. मेरे पापा भी इसी ब्रांड की सिगरेट पीते थे, इसीलिए मुझे भी यही पसंद है. वैसे आप किस केस के सिलसिले में आए हैं.’’

‘‘आप सुरेश को कब से जानते थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सुरेश…कौन सुरेश?’’ खन्ना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘वही सुरेश जो आठवें माले पर रहते थे, जिन का मर्डर हुआ है.’’ राजेश ने स्पष्ट किया.

‘‘अच्छा, सुरेश नाम था उस बंदे का. मुझे तो अभी पता चला. मैं ने तो आज तक कभी उस की शक्ल तक नहीं देखी. नाम भी आप के मुंह से सुन रहा हूं. उस के मर्डर केस में मुझ से पूछताछ, आश्चर्य है. मुझ से पूछताछ का कोई आधार है आप के पास.’’ खन्ना अपनी भाषा पर पूरा संयम रखते हुए बोला.

‘‘शक का कारण यह है कि आप अकेले ऐसे शख्स थे, जो दोपहर को एक बजे अपने औफिस से वापस घर आए और 3 बजे वापस चले गए. मर्डर इन्हीं 2 घंटों के दौरान हुआ, इसलिए आप से पूछताछ तो बनती है.’’ राजेश ने स्थिति को और स्पष्ट किया.

‘‘अच्छाअच्छा, तो इसलिए शक कर रहे हैं आप. दरअसल, मुझे एक गवर्नमेंट औफिस में कुछ डाक्यूमेंट्स सबमिट करने जाना था. सारे डाक्यूमेंट मेरे लैपटौप में सेव थे, लेकिन उन्हें हार्ड कौपी भी चाहिए थी, जो घर पर रखी हुई थी. वही लेने घर आया था. घर में श्रीमतीजी ने रिक्वेस्ट की, इसीलिए उन के साथ लंच के लिए रुक गया. आप चाहें तो ये डाक्यूमेंट्स चैक कर सकते हैं, जिन पर मैं ने रिसिप्ट ली है.’’ खन्ना ने जल्दी आने के संदर्भ में अपनी सफाई पेश की.

‘‘वह तो मैं आप की सिगरेट देख कर ही समझ गया था क्योंकि जो सिगरेट लाश के पास मिली है, वह सिक्स्टी नाइन एमएम की ही है.’’ राजेश अपने शक को गलत साबित होते देख निराश भाव से बोले, ‘‘वैसे घटना उसी समय की है. हो सकता है, आप की नजर से ऐसी कोई घटना या शख्स गुजरा हो, जिस से पूछताछ की जा सके.’’

‘‘ऐंऽऽऽ कुछकुछ याद आ रहा है. उस समय मुझे लिफ्ट में उदयन मिला था. वह भी ऊपर कहीं से आ रहा था और उस के पीले जूतों पर कुछ कालिख लगी हुई थी. वह उस पैर को उठा कर दूसरे पैर की पैंट के पायचे से साफ करने की कोशिश कर रहा था.’’ खन्ना ने बताया.

‘‘उदयन…कौन उदयन? कौन से फ्लैट में रहता है?’’ एक महत्त्वपूर्ण सुराग मिलते ही राजेश उछल पड़े. उन्होंने खन्ना पर सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘उदयन एक इंश्योरेंस एजेंट है जो यहां से एक्सपोर्ट किए जाने वाले मटीरियल का इंश्योरेंस करता है. इस सोसायटी में ज्यादातर लोग इंपोर्टएक्सपोर्ट से जुड़े हैं, इसलिए वह घर पर ही आ कर डील कर लेता है.’’ खन्ना ने उदयन के बारे में जानकारी दी.

‘‘उदयन के औफिस का एड्रैस या फोन नंबर है क्या आप के पास?’’ राजेश ने कुछ आशा के साथ खन्ना से पूछा.

‘‘अगर मैं उदयन जैसे लोगों के नंबर सेव करने लगा तो मेरी फोन बुक एजेंटों के नाम से ही भर जाएगी. वैसे उस का विजिटिंग कार्ड मेरे औफिस में रखा है.’’ खन्ना ने बताया.

महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद राजेश सीधे सिक्युरिटी औफिस गए. वहां पर वह उदयन के नाम की एंट्री खोजने लगे. मगर उसे इस नाम की कोई एंट्री नहीं मिली.

‘‘उदयन नाम का आदमी कल सोसायटी में आया था लेकिन उस के नाम की कोई एंट्री दिखाई क्यों नहीं पड़ रही है?’’ राजेश ने रजिस्टर चैक करते हुए गार्ड से सख्ती दिखाते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि रजिस्टर में सिर्फ व्हीकल से आए हुए लोगों की ही एंट्री की जाती है. अगर पैदल आए लोगों की भी एंट्री करेंगे तो काम बहुत बढ़ जाएगा. वैसे भी हमारे पास इतने आदमी नहीं हैं. घरों में कितने ही नौकर काम करने के लिए आते हैं, सभी की एंट्री संभव नहीं है.

‘‘हम चेहरे से सभी को पहचानते हैं. उदयन भी पैदल ही आता है, हर 2-3 दिन में. शायद इसीलिए उस की एंट्री नहीं की गई होगी.’’ गार्ड ने जवाब दिया, ‘‘वैसे उदयन का औफिस यहां से कुछ ही दूरी पर है. पहले मैं उसी बिल्डिंग में ड्यूटी करता था.’’ गार्ड ने आगे बताया.

गार्ड से उदयन के औफिस का पता ले कर राजेश व उन की टीम वहां पहुंच गई. उस औफिस के चौकीदार से उन्हें उदयन के घर का पता मिल गया. राजेश ने चौकीदार को भी अपने साथ ले लिया ताकि वह उदयन को फोन कर के सूचना न दे सके. दूसरे उदयन की शिनाख्त भी उसी को करनी थी.

घर की घंटी बजने पर उदयन ने ही दरवाजा खोला. चौकीदार के साथ पुलिस को आया देख वह समझ गया कि उस का राज खुल चुका है. उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस उसे थाने ले आई. थाने में सामने बैठा कर इंसपेक्टर राजेश कदम ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने सुरेश का मर्डर क्यों किया?’’

‘‘उस की वादाखिलाफी मेरी तरक्की में बाधा बन रही थी. सुरेश का एकएक शिपमेंट 15 से 20 करोड़ की कीमत का होता था. ऐसे में उस से बिजनैस मिलने से मुझे अच्छे प्रमोशंस मिल सकते थे. पिछले 6 महीनों में उस ने मुझ से 2 बार कोटेशंस ले कर कौन्ट्रैक्ट दिलवाने का वादा किया था. लेकिन उस ने काम किसी दूसरे को दिलवा दिया था.

‘‘तीसरी बार भी उस ने फिर वादाखिलाफी की. यह कौन्ट्रैक्ट न मिलने की वजह से मुझे मिलने वाले सारे प्रमोशंस रुक गए और औफिस में मेरा मजाक बना अलग से. अपने अपमान का बदला लेने के लिए मैं ने उसे जला कर मार डाला. पुलिस को गुमराह करने के लिए वहां सिगरेट भी मैं ने ही डाली थी.’’ बोलतेबोलते उदयन गुस्से से भर उठा था.

‘‘पर तुम ने उसे जलाया कैसे, वहां पर तो पैट्रोल, डीजल, केरोसिन जैसी किसी भी चीज की गंध नहीं थी?’’ एसआई वर्मा ने पूछा.

‘‘मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं. मैं ने पढ़ा था कि एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे आर्गेनिक कैमिकल्स होते हैं, जो अत्यंत ज्वलनशील होते हैं. उन की गुप्त ऊष्मा भी बहुत अधिक होती है. इस से भी बड़ी विशेषता यह कि जलने के बाद इन की गंध नहीं आती.

‘‘2 दिनों पहले ही मुझे एक बौडी स्प्रे बनाने वाली कंपनी ने अपना प्रोडक्ट एक्सपोर्ट क्वालिटी चैक करने और सैंपल देने की दृष्टि से 1 लीटर मटीरियल दिया था. मैं ने उसी मटीरियल का इस्तेमाल सुरेश को जलाने के लिए किया.’’

‘‘सुरेश को परफ्यूम लगाने का बहुत शौक था, इसीलिए उसे बातों में उलझा कर और भीनी खुशबू का हवाला दे कर उस पर एक लीटर परफ्यूम डाल दिया और अपने लाइटर से आग लगा दी.’’

उदयन ने आगे बताया, ‘‘अत्यधिक फ्लेम होने के कारण उसे तुरंत ही चक्कर आ गया और वह सिर के बल गिर कर बेहोश हो गया.’’

‘‘उदयन, तुम ने योजना तो खूब अच्छी बनाई थी. एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन का इग्नीशन तो तुम्हें याद रहा लेकिन जलने के बाद ओमिशन औफ कार्बन को भूल गए. एक्यूमुलेटेड कार्बन में वहां तुम्हारे जूतों के निशान बन गए और तुम हमारे मेहमान.’’ राजेश कदम ने मुसकराते हुए कहा.

दोस्ती की कोख से जन्मी दुश्मनी

गोरखपुर के थाना शाहपुर में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि रेलवे डेयरी कालोनी के पास 2 लोगों की लाशें पड़ी हैं.

यह बात 23/24 जनवरी, 2019 की रात के साढ़े 12 बजे की है. थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय रात्रि गश्त पर थे.

2 लाशों की खबर पा कर वह सीधे घटनास्थल पर पहुंच गए. इस की सूचना उन्होंने आलाअधिकारियों को भी दे दी थी. एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, सीओ (कैंट) प्रभात राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाशों की तलाशी लेने पर उन की जेब से मिले आधारकार्ड की वजह से दोनों की पहचान रमेश यादव निवासी कुशीनगर, हनुमानगंज और अरविंद कुमार सिंह निवासी शाहपुर के रूप में हुई. कुशीनगर वहां से दूर था इसलिए पुलिस ने उसी रात अरविंद के घर वालों को सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.

अरविंद के पिता राजेश सिंह मौके पर पहुंचे और उन्होंने उन में से एक लाश की पहचान अपने बेटे अरविंद कुमार सिंह उर्फ रानू के रूप में कर दी. राजेश सिंह ने दूसरे मृतक को बेटे के दोस्त रमेश सिंह के रूप में पहचाना. पुलिस ने घटनास्थल से 4 खाली खोखे बरामद किए. सुबह को रमेश के घर वाले भी शाहपुर पहुंच गए.

पहचान होने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दीं. राजेश सिंह ने बेटे की हत्या के लिए 12 नामजद और 4 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. सभी आरोपी रुद्रपुर, देवरिया के थे. मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उन का इस घटना में कहीं कोई हाथ नहीं पाया गया.

ये भी पढ़ें- तीर्थयात्रा एडवेंचर टूरिज्म नहीं है

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने इस दोहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए पुलिस की 4 टीमें बनाईं. छानबीन में पुलिस को पता चला कि इस हत्याकांड में रमेश के दोस्त शेरू आदि का हाथ हो सकता है. क्योंकि दोनों की आपस में नहीं बनती थी. दुर्गेश यादव उर्फ शेरू गोरखपुर के गांव जमीन भीटी का रहने वाला था.

इस प्रकार की भी जानकारी मिली कि वारदात में उस का भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू भी शामिल रहा हो. पुलिस ने दुर्गेश और बृजेश के घर पर दबिश दी, लेकिन दोनों भाई घर से फरार मिले. काफी कोशिश के बाद भी जब बृजेश और दुर्गेश नहीं मिले तो  आईजी (जोन) जयनारायण सिंह ने उन पर 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. पुलिस टीमें अपने स्तर से दोनों आरोपियों को तलाशने लगीं.

इसी दौरान 29 जनवरी को शाहपुर थानाप्रभारी नवीन सिंह को एक मुखबिर से खबर मिली कि दोहरी हत्या की घटना में शामिल मुख्य आरोपी दुर्गेश यादव उर्फ शेरू अपने साथी राशिद खान के साथ हनुमान मंदिर बिछिया से मोहद्दीपुर की तरफ आने वाला है.

इस सूचना के बाद नवीन कुमार सिंह, कौआबाग चौकी प्रभारी राजाराम द्विवेदी और स्वाट टीम प्रभारी दीपक कुमार के साथ मोहद्दीपुर ओरवब्रिज के पास पहुंच गए और उन दोनों के आने का इंतजार करने लगे.

थोड़ी देर बाद एक काले रंग की मोटरसाइकिल पर 2 व्यक्ति आते दिखे तो मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने मोटरसाइकिल रोकने का इशारा किया. पुलिस को देख दोनों ने मोटरसाइकिल मोड़ कर भागने की कोशिश की, लेकिन हड़बड़ाहट में मोटरसाइकिल फिसल कर गिर गई. तभी पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

तलाशी लेने पर दोनों के पास से .32 बोर की 1-1 पिस्टल और 5-5 जिंदा कारतूस बरामद हुए. पूछताछ में उन में से एक युवक ने अपना नाम दुर्गेश यादव और दूसरे ने राशिद खान निवासी गांव चेरिया थाना बेलीपार, जनपद गोरखपुर बताया. पुलिस दोनों को शाहपुर थाने ले आई. उन की गिरफ्तारी की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी गई.

सूचना मिलते ही एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह और क्षेत्राधिकारी प्रभात राय शाहपुर थाने पहुंच गए. दुर्गेश यादव उर्फ शेरू और राशिद खान से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने दोहरे हत्याकांड का अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि आरोपी दुर्गेश उर्फ शेरू और मृतक रमेश यादव दोनों गहरे दोस्त थे. उन के बीच दांतकाटी रोटी जैसी दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के हमराज भी थे. फिर उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि वे एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए. पूछताछ के बाद आरोपियों के बयानों से कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

24 वर्षीय रमेश यादव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर कुशीनगर के धोबी छापर का रहने वाला था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर पर था. बेहद स्मार्ट रमेश पढ़लिख कर जीवन में कुछ बड़ा बनना चाहता था.

हनुमानगंज के धोबी छापर इलाके में जहां वह रहता था, वह इलाका आज भी पिछड़ा माना जाता है. वहां रह कर वह अपने सपनों का महल खड़ा नहीं कर सकता था इसलिए उस ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया. उस के सपनों को साकार करने के लिए घर वालों ने भी उसे पूरी आजादी दे दी थी.

जीवन में आगे बढ़ने के लिए रमेश को जिस चीज की जरूरत होती घर वाले पूरी करते थे. रमेश गोरखपुर शहर आ गया और शाहपुर इलाके में पादरी बाजार मोहल्ले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. यहीं रह कर वह पढ़ता भी था.

इसी मोहल्ले में दुर्गेश यादव उर्फ शेरू भी रहता था. यहां उस का अपना निजी मकान था. उस के परिवार में एक छोटा भाई बृजेश कुमार यादव उर्फ मंटू और मांबाप रहते थे. दुर्गेश के पिता बलवंत यादव प्राइवेट जौब करते थे. हालांकि बलवंत यादव मूलरूप से गगहा थाने के जमीनी भीटी गांव के रहने वाले थे. गांव में उन की खेती की जमीन भी थी.

ये भी पढ़ें- अवैध संबंध

चूंकि, रमेश और दुर्गेश पास में रहते थे. दोनों हमउम्र भी थे इसीलिए जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई. धीरेधीरे उन की दोस्ती घनिष्ठ से भी घनिष्ठतम हो गई. दुर्गेश से दोस्ती से पहले रमेश का एक और भी बचपन का दोस्त था- अरविंद कुमार सिंह उर्फ रानू. रानू शाहपुर के गीता वाटिका इलाके की आवास विकास कालोनी में मांबाप के साथ रहता था.

उस के पिता राजेश सिंह सरकारी मुलाजिम थे तो चाचा आरपीएफ में दारोगा थे. रानू के परिवार के लोग बड़े ओहदे पर थे और इज्जतदार भी थे. गोरखपुर के अलावा रानू का देवरिया के रुद्रपुर में पुश्तैनी घर और संपत्ति थी. उस के दादादादी गांव में ही रहते थे, इसलिए वह अकसर गांव आताजाता रहता था.

दुर्गेश से दोस्ती के बाद रमेश ने अपने घर पर एक पार्टी दी. पार्टी में रानू और दुर्गेश भी आए थे. वहीं पर रमेश ने दुर्गेश और रानू का आपस में परिचय कराया था. इस के बाद रानू भी दुर्गेश का दोस्त बन गया था. जितनी गहरी रानू की रमेश से छनती थी, पता नहीं क्यों उतनी रमेश से उस की नहीं बनती थी और न ही उस की दोस्ती उसे रास आ रही थी. इसलिए रानू दुर्गेश से कम ही मिलताजुलता था.

देखने में रमेश जितना मासूम और स्मार्ट दिखता था दरअसल, वो वैसा था नहीं. रमेश किसी बात को ले कर कभीकभी दुर्गेश उर्फ शेरू से नाराज हो जाता था तो उस का रौद्र रूप देख कर वह भीतर तक सहम जाता था.

इस कारण दुर्गेश पर वह भारी पड़ता था. उस समय शेरू अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था, जब कभी दुर्गेश एकांत में होता था तो वह जरूर सोचता कि आखिर रमेश उस के साथ ऐसा क्यों करता है.

दरअसल, रमेश के चेहरे पर एक और चेहरा था. उस चेहरे के पीछे एक गंभीर राज छिपा था. उस राज को उस के बचपन के दोस्त रानू के अलावा कोई तीसरा नहीं जानता था. रमेश यादव एक शातिर अपराधी था और पुलिस का मुखबिर भी.

हनुमानगंज थाने में उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे, पुलिस का मुखबिर होने की वजह से उस के सिर पर थानेदार और अन्य पुलिसकर्मियों का हाथ था. इसीलिए वह किसी से न दबता था और न ही डरता था. मुखबिर होने की वजह से पुलिस भी उस के छोटेमोटे अपराधों को नजरअंदाज कर देती थी.

दुर्गेश रमेश की दबंगई से तंग आ चुका था. दबंगई के साथ ही वह उस से छोटीछोटी बात पर भिड़ जाता और मारपीट करने पर उतर आता था. आखिर दुर्गेश यह कब तक सहन करता, यहीं से उन की दोस्ती में दरार आ गई.

खुद को कमजोर समझने वाला दुर्गेश धीरेधीरे रमेश से अलग हो गया और उस ने अपनी एक अलग मंडली बना ली. इस मंडली में शामिल थे राशिद खान, संदीप यादव, मनीश साहनी, नवनीत मिश्रा उर्फ लकी, अंगेश सिंह और बृजेश यादव उर्फ मंटू.

अब दुर्गेश यादव रमेश से ताकतवर बन कर उस के सामने आना चाहता था ताकि रमेश से अपने अपमान का बदला ले सके. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. क्योंकि रमेश अपने साथ हमेशा लोडेड पिस्टल ले कर चलता था. दुर्गेश यही सोचता था कि काश मेरे पास भी पिस्टल होती तो सारी की सारी गोलियां उस के सीने में उतार कर उस से अपना बदला ले लेता.

दोस्त से जानी दुश्मन बने दुर्गेश और रमेश एकदूसरे को देख लेने के लिए दुश्मनी के मैदान में बड़ी लकीर खींच चुके थे.

इस बीच एक और रोमांचक कहानी ने जन्म ले लिया. रोमांचक कहानी की मूल कड़ी थी दुर्गेश की प्रेमिका रूपाली. दुर्गेश और रूपाली दोनों एकदूसरे को दिलोजान से मोहब्बत करते थे.

बात दिसंबर 2018 की है. रूपाली कैंट थाना क्षेत्र स्थित व्हील पार्क में दुर्गेश से मिली. उस दिन वह बेहद उदास थी. उस की उदासी देख कर दुर्गेश तड़प उठा. जब उस ने रूपाली से उस की उदासी का कारण पूछा तो वह फफक कर रो पड़ी. वह बोली, ‘‘तुम्हारा दोस्त रमेश पिछले कई दिनों से मेरे साथ बदतमीजी कर रहा है. जातेआते रास्ते में छेड़ता है. ऊलजलूल फब्तियां कसता है.’’ यह सुन कर गुस्से से दुर्गेश की आंखें सुर्ख हो गईं.

रूपाली की बातें सुन कर दुर्गेश बोला, ‘‘उस कमीने से मैं ने कब की दोस्ती तोड़ दी है. अब वह मेरा दोस्त नहीं, दुश्मन है. तुम्हें छेड़ना उसे बहुत महंगा पड़ेगा. तुम चिंता क्यों करती हो. मैं उसे इस की ऐसी सजा दूंगा जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की होगी.’’

ये भी पढ़ें- नीता अंबानी ने तोड़े अंधविश्वासों और पाखंडों के वैदिक रिकार्ड

दरअसल दुर्गेश उर्फ शेरू से 36 का आंकड़ा होने के बाद रमेश का दिल दुर्गेश की प्रेमिका रूपाली पर आ गया था. रमेश उस से एकतरफा प्यार करने लगा था. लेकिन रूपाली दुर्गेश के प्रति वफादार थी. उस ने रमेश को कभी लिफ्ट नहीं दी. रूपाली के कठोर व्यवहार से तमतमाया रमेश रूपाली को आतेजाते रास्ते में छेड़ने लगा था.

दुर्गेश यादव जानता था कि वह कभी अकेले दम रमेश से मुकाबला नहीं कर सकता. बदले के जुनून में दुर्गेश ने रमेश को मात देने के लिए आखिरकार रास्ता निकाल ही लिया. इस खेल में उस ने महराजगंज जिले में तैनात सिपाही विकास यादव को शामिल कर लिया. सिपाही विकास यादव दुर्गेश का दूर का रिश्तेदार था. उस के बूते पर दुर्गेश खुद को रमेश से ताकतवर समझने लगा था.

दुर्गेश ने रमेश यादव को ठिकाने लगाने के लिए अपने दोस्तों राशिद खान, संदीप यादव, मनीष साहनी, नवनीत मिश्रा उर्फ लकी, अंगेश सिंह व अपने भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू के साथ मिल कर एक योजना बनाई. इस योजना में उस ने सिपाही विकास यादव को भी शामिल कर लिया था. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने 23 जनवरी, 2019 की तारीख पक्की कर दी थी.

इस के एक दिन पहले यानी 22 जनवरी को रूपाली को ले कर दुर्गेश और रमेश के बीच हाथापाई हुई थी. इस में रमेश फिर से दुर्गेश पर भारी पड़ गया था.

योजना के अनुसार, 23 जनवरी की रात शाहपुर इलाके की रेलवे डेयरी कालोनी के पास दुर्गेश उर्फ शेरू ने दोस्तों को मीट और लिट्टी की दावत दी थी. दावत में राशिद खान, संदीप यादव, मनीष साहनी, नवनीत मिश्रा, अंगेश सिंह, बृजेश यादव के अलावा सिपाही विकास यादव भी शामिल हुआ था.

दावत में मीट और लिट्टी के साथ शराब भी चली. जब शराब रंग दिखाने लगी तो दुर्गेश ने रमेश को फोन कर दावत खाने के बहाने रेलवे डेयरी कालोनी बुलाया.

उस समय रमेश गोरखपुर रेलवे स्टेशन के बाहर अपने दोस्त अरविंद उर्फ रानू के साथ खड़ा था. दुश्मनी के बावजूद रमेश दुर्गेश के कहने पर रानू के साथ रेलवे डेयरी कालोनी पहुंच गया. उस समय रात के साढ़े 11 बज रहे थे.

रमेश और रानू के पहुंचते ही दुर्गेश और उस के दोस्त चौकन्ने हो गए. रमेश को देखते ही दुर्गेश को रूपाली वाली बात याद आ गई और उस का खून खौल उठा. दुर्गेश ने रमेश और रानू को बैठने के लिए बोला तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम ने मुझे यहां क्यों बुलाया?’’

दुर्गेश ने कहा कि तुम बैठो तो सही तुम्हें बताता हूं कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. तब तक दुर्गेश का भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू पीछे से रमेश पर टूट पड़ा. रमेश समझ गया कि यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है. जैसे ही रमेश वहां से वापस जाने के लिए पीछे मुड़ा तभी दुर्गेश ने पिस्टल निकाल कर रमेश की खोपड़ी से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही रमेश का भेजा उड़ गया.

दोस्त को गोली लगी देख रानू सन्न रह गया और जान बचाने के लिए वह तेजी से भागा. रानू को भागते देख दुर्गेश का छोटा भाई बृजेश और राशिद खान उस के पीछे भागे और 15 मीटर की दूरी पर उसे भी गोली मार दी.

गोली लगते ही रानू ने भी मौके पर दम तोड़ दिया. हालांकि रानू की रमेश और दुर्गेश की दुश्मनी के बीच कोई भूमिका नहीं थी. वह घटनास्थल पर मौजूद था और हत्या का एकमात्र गवाह भी, इसलिए दुर्गेश ने उसे भी मार दिया.

ये भी पढ़ें- संस्कार शिविरों में

दुर्गेश यादव व राशिद खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को एकएक कर के गिरफ्तार कर लिया. सिपाही विकास यादव को इस घटना से अलग कर के उस के खिलाफ विभागीय जांच कराई जा रही है. फिलहाल पुलिस का कहना है कि उस का इस घटना से कोई लेनादेना नहीं था. यदि जांच में वह दोषी पाया गया तो उस के खिलाफ भी मुकदमा पंजीकृत किया जाएगा.

एक ऐसी भी मां

बाजार से सामान ले कर लक्ष्मी जब घर लौटी तो उस की 10 वर्षीय बेटी सोनम घर पर नहीं थी. घर के दरवाजे खुले हुए थे और कमरे में टीवी चल रहा था. यह सब देख कर वह बड़बड़ाई, ‘लापरवाही की भी हद है, सारा घर खुला छोड़ कर न जाने कहां चली गई साहबजादी.’

सामान रसोई में रख कर सब से पहले उस ने कमरे में चल रहा टीवी बंद किया फिर बेटी की तलाश में घर के बाहर निकल गई. उस ने अड़ोसपड़ोस से ले कर पूरे मोहल्ले में सोनम को तलाशा, पर उस का कहीं पता नहीं चला. सोनम को ढूंढतेढूंढते रात हो चली थी. मोहल्ले वालों ने बताया कि उन्होंने उस दिन सोनम को घर से बाहर कहीं नहीं देखा था.

यह सुन कर लक्ष्मी का चिंतित होना लाजमी था. अचानक उसे ध्यान आया कि कहीं सोनम उसे बिना बताए अपने पिता और दादादादी के घर तो नहीं चली गई. ऐसा वह पहले भी कर चुकी थी. यह सोच कर वह सोनम का पता लगाने धक्का बस्ती की ओर चल पड़ी. यह बात 16 जनवरी, 2019 की है.

लक्ष्मी की शादी आज से लगभग 15 साल पहले धक्का बस्ती, करनाल निवासी दिलावर के साथ हुई थी. शादी के बाद उस के 2 बच्चे हुए बेटा सुशील और बेटी सोनम. दोनों की उम्र क्रमश: 13 और 10 साल थी.

शादी के लगभग 5-6 साल बाद पतिपत्नी के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर झगड़े होने लगे थे. धीरेधीरे नौबत यहां तक आ गई कि दोनों का साथ रहना संभव नहीं रहा. फलस्वरूप सन 2000 में दोनों अलग हो गए थे.

पति से अलग होने के बाद लक्ष्मी करनाल के थाना सदर क्षेत्र में रघुनाथ मंदिर के पास किराए का मकान ले कर अलग रहने लगी. दोनों बच्चे सुशील और सोनम अपने पिता और दादी के पास धक्का बस्ती में ही रहते थे.

बेटी को ढूंढती हुई लक्ष्मी धक्का बस्ती पहुंची. पता चला कि सोनम वहां आई ही नहीं थी. सोनम न घर पर थी और न ही दादादादी के पास तो आखिर वह गई कहां. इस मामले में लक्ष्मी ने अब और समय व्यर्थ करना उचित नहीं समझा और 16 जनवरी, 2019 को थाना सदर पहुंच कर बेटी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

सोनम को लापता हुए 15 दिन बीत गए लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. इस बीच लक्ष्मी ने पुलिस के सामने शक जताया कि सोनम के लापता होने के पीछे उस की दादी और पिता का हाथ हो सकता है.

पुलिस इस मामले में अभी छानबीन कर ही रही थी कि 29 फरवरी को पश्चिमी यमुना नहर में हांसी रोड कच्छवा पुल के पास प्लास्टिक का एक कट्टा मिला. उस कट्टे पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और बहुत तेज बदबू भी आ रही थी. देख कर लग रहा था कि उस में किसी की लाश है. उस कट्टे को वहां खेल रहे कुछ बच्चों ने देखा था. उन्होंने ही शोर मचा कर लोगों को इकट्ठा किया और फिर पुलिस को सूचना दी गई थी.

ये भी पढ़ें- अवैध संबंध

वह इलाका थाना सिटी, करनाल के अंतर्गत आता था, इसलिए सूचना मिलते ही थाना सिटी से इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह जल्दी ही यमुना नहर पर पहुंच गए. पुलिसकर्मियों की मदद से कट्टे को खोल कर देखा गया. उस में एक नाबालिग बच्ची की लाश निकली, जो काफी हद तक सड़ चुकी थी.

अनुमान लगाया गया कि लाश काफी दिनों से वहां पड़ी रही होगी. इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने क्राइम टीम सहित एफएसएल की टीम को भी मौके पर बुला लिया. लाश के पंचनामे की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया.

लावारिस लाश किस की थी, उस की शिनाख्त करना सब से अहम काम था. शिनाख्त के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. इसलिए इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने लाश की शिनाख्त के लिए मृतका के पोस्टर बनवा कर शहर के सार्वजनिक स्थानों पर लगवाए. इस के अलावा उन्होंने करनाल सहित आसपास क्षेत्रों के थानों से पिछले महीने की दर्ज मिसिंग लोगों की रिपोर्ट भी मंगवा ली.

इस बीच पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. रिपोर्ट के अनुसार मृतका बच्ची की उम्र 8 से 10 साल के बीच थी और उस की हत्या किसी चीज से गला दबा कर की गई थी. शिनाख्त छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाने की भी कोशिश की गई थी. हत्या लगभग 17-18 दिन पहले की गई थी.

इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने जब लापता लोगों की लिस्ट खंगाली तो एक मिसिंग रिपोर्ट पर उन की नजर ठहर गई. यह रिपोर्ट थाना सदर क्षेत्र से लापता हुई सोनम नाम की 10 वर्षीय बच्ची की थी, जिस का अभी तक पता नहीं लगा था.

ये भी पढ़ें- एयरपोर्ट नौकरी के नाम पर ठगी

इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने थाना सदर पुलिस से फाइल मंगवा कर जांच शुरू की. पता चला कि सोनम की गुमशुदगी उस की मां लक्ष्मी ने दर्ज करवाई थी. हरजिंदर सिंह ने लक्ष्मी को मोर्चरी में बुलवा कर जब लाश की शिनाख्त करवाई तो उस ने लाश पहचान कर बताया कि वह उसी की लापता बेटी सोनम ही है.

पूछताछ के दौरान लक्ष्मी ने बताया कि सोनम दूसरी जगह अपने पिता दिलावर के साथ रहती थी. उन दिनों सोनम के स्कूल की छुट्टियां थीं. उस का स्कूल 15 जनवरी को खुलने वाला था, इसलिए कुछ दिन अपनी मौसी के घर रहने के बाद वह उसे अपने घर ले आई थी, जहां से वह अचानक लापता हो गई थी.

लक्ष्मी ने यह भी बताया कि उस की किसी से दुश्मनी या कोई लेनदेन का झगड़ा नहीं है. हां, इस मामले में उस ने अपने पति दिलावर पर शक जरूर जताया. हरजिंदर सिंह ने उस से पूछा कि उस का पिता दिलावर अपनी ही बेटी की हत्या क्यों करेगा?

इस बारे में लक्ष्मी कुछ नहीं बता पाई. फिर भी हरजिंदर सिंह ने दिलावर को थाने बुलवा कर पूछताछ की पर वह निर्दोष साबित हुआ. उस का इस मामले से कोई लेनादेना नहीं था. हरजिंदर सिंह ने लक्ष्मी की ससुराल धक्का बस्ती और वर्तमान में जहां वह रह रही थी, के आसपड़ोस से पूछताछ करवाई तो कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं.

इस के बाद उन्होंने लक्ष्मी से दोबारा पूछताछ की. पुलिस ने सोनम की गुमशुदगी में दर्ज बयानों और उस के द्वारा हाल में दिए बयानों की बारीकी से निरीक्षण किया तो उन में काफी अंतर पाया गया. इस के अलावा लक्ष्मी बारबार अपना बयान भी बदल रही थी.

इस से इंसपेक्टर हरजिंदर को लग रहा था कि सोनम के मामले में लक्ष्मी का कहीं न कहीं हाथ जरूर है. कोई पुख्ता सबूत पास न होने के कारण उन्होंने लक्ष्मी से उस समय कुछ कहना उचित नहीं समझा, पर इस दौरान पुलिसकर्मी लक्ष्मी पर बराबर अपनी नजर रखे हुए थे.

इंसपेक्टर हरजिंदर ने लक्ष्मी के घर के पास के सारे सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर जब चैक किए तो 10 जनवरी, 2019 के फुटेज में लक्ष्मी किसी व्यक्ति के साथ बाइक पर एक कट्टा रख कर कहीं जाती हुई नजर आई. उन्होंने लाश से बरामद कट्टे और बाइक पर ले जाने वाले कट्टे को गौर से देखा तो दोनों कट्टों पर एक ही मार्का लगा हुआ पाया गया.

सोनम की गुमशुदगी की सूचना थाना सदर में लक्ष्मी ने 16 जनवरी को दर्ज करवाई थी और फुटेज में वह 10 जनवरी की रात कट्टा ले कर जाती दिखाई दी. इस का मतलब था कि पुलिस को सूचना देने से 6 दिन पहले ही उस की हत्या कर दी थी.

अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही थी. इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने लक्ष्मी को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह तरहतरह की कहानियां सुनाने लगी. लेकिन जब उसे लेडी कांस्टेबल के हवाले किया गया तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने प्रेमी अमित के साथ मिल कर सोनम की हत्या की थी.

लक्ष्मी की निशानदेही पर पुलिस ने सदर बाजार निवासी उस के प्रेमी अमित को भी गिरफ्तार कर के पहली फरवरी को अदालत में पेश किया और 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में सोनम के लापता होने से ले कर उस की हत्या होने तक की कहानी इस प्रकार निकली—

पति से अलग होने के बाद लक्ष्मी ने जब सदर बाजार के रघुनाथ मंदिर के पास किराए के मकान में रहना शुरू किया, तब उस की मुलाकात अमित नामक व्यक्ति से हुई. अमित भी उसी मोहल्ले का रहने वाला था. वह शादीशुदा था और उस के 3 बच्चे भी थे.

अमित का छोटा सा ठेकेदारी का काम था. वह मरीजों की देखभाल के लिए कामवालियां उपलब्ध करवाया करता था. लक्ष्मी को भी उसी ने काम पर लगवाया था. इसी कारण वह लक्ष्मी के घर आनेजाने लगा था.

लक्ष्मी अपने पति से अलग अकेली रहती थी. इसलिए उसे पुरुष साथी की जरूरत थी. दोनों के बीच पहले दोस्ती हुई और फिर जल्दी ही दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए. अमित लक्ष्मी की शारीरिक जरूरतों के अलावा वह सब जरूरतें पूरी करने लगा, जिस की लक्ष्मी ने तमन्ना की थी. दोनों के बीच सब ठीकठाक ही चल रहा था. किसी को इस बात की भनक तक नहीं थी.

10 जनवरी, 2019 को लक्ष्मी का मकान मालिक वैष्णो देवी की यात्रा पर गया हुआ था और उन दिनों लक्ष्मी की बेटी सोनम स्कूल की छुट्टियां होने के कारण पिता के पास से अपनी मां के घर रहने आई हुई थी.

उसी शाम अमित भी लक्ष्मी से मिलने उस के घर आ पहुंचा था. अमित को आया देख लक्ष्मी ने सोनम को कुछ पैसे देते हुए कहा कि वह दुकान से अपने खानेपीने की चीज ले आए. 10 साल की सोनम बड़ी समझदार और होशियार बच्ची थी.

ये भी पढ़ें- आशिक हत्यारा

अमित के आते ही मां का इस तरह अचानक बाहर भेजना उस की समझ में नहीं आया. वह मां से पैसे ले कर कमरे से बाहर तो निकल आई पर दुकान पर जाने के बजाय छत पर चली गई.

कुछ समय बाद जब वह वापस नीचे आई तो मकान का मुख्य दरवाजा बंद पाया. मां जिस कमरे में थी, उस में से मां और अमित के हंसनेखिलखिलाने की आवाजें आ रही थीं. लक्ष्मी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. क्योंकि सोनम को बाहर भेजने के बाद लक्ष्मी निश्चिंत हो गई थी कि सोनम जल्दी घर नहीं आएगी.

बेपरवाह हो कर वे दोनों वासना का खेल खेल रहे थे कि सोनम ने कमरे में प्रवेश कर उन्हें चौंका दिया. दोनों की चोरी रंगेहाथों पकड़ी गई थी. उन का भांडा फूट चुका था और दोनों बुरी तरह से डर गए थे. सोनम ने अपनी मां लक्ष्मी को धमकी देते हुए कहा, ‘‘मम्मी, तुम्हारी इस करतूत को मैं पापा और दादी को जरूर बताऊंगी कि उन से अलग रह कर तुम यहां क्या गुल खिला रही हो.’’

अमित और लक्ष्मी ने सोनम को अपने विश्वास में ले कर काफी समझाने का प्रयास किया और उसे रुपयों का लालच भी दिया. पर सोनम अपनी बात पर अड़ी रही. सोनम की जिद को देखते हुए और समाज के डर से बचने के लिए उन दोनों ने सोनम को ही हमेशा के लिए चुप कर देने का फैसला ले कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

सोनम की हत्या करने के बाद अमित बाहर जा कर दुकान से प्लास्टिक का बड़ा सा खाली कट्टा खरीद लाया. दोनों ने कट्टे में सोनम की लाश भर दी. फिर दोनों बाइक से उस की लाश यमुना नहर में फेंक आए.

जिस समय उन्होंने लाश फेंकी थी, उस समय वहां पानी था. उन्होंने सोचा था कि लाश पानी में बह कर कहीं दूर चली जाएगी पर अगले दिन ही नहर में पानी का बहाव कम हो गया था और लाश कुछ आगे जा कर रुक गई थी. सोनम की लाश 19 दिनों तक एक ही जगह पर पड़ी रही.

सोनम की लाश ठिकाने लगाने के एक सप्ताह बाद लक्ष्मी ने उस की गुमशुदगी थाने में इसलिए दर्ज करवाई थी कि उस के स्कूल की छुट्टियां खत्म होने वाली थीं.

सोनम के स्कूल न जाने के कारण लोग उस से पूछ सकते थे इसलिए उस ने उस के लापता होने की सूचना थाने में लिखवा कर यह ड्रामा रचा, जिसे इंसपेक्टर हरजिंदर सिंह ने अपनी सूझबूझ से नाकाम कर दिया.

रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने अमित और लक्ष्मी को सोनम की हत्या के आरोप में फिर से अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशिक हत्यारा

राजकुमार गौतम अपनी खूबसूरत पत्नी और ढाई वर्षीय बेटी नान्या के साथ 4 महीने पहले ही थाणे जिले के भादवड़ गांव में किराए पर रहने के लिए आया था. इस के पहले वह भिवंडी के अवधा गांव में रहता था. उस समय उस की पत्नी सपना लगभग 7 महीने की गर्भवती थी. दोनों का व्यवहार सरल और मधुर था. यही कारण था कि आसपड़ोस के लोगों में पतिपत्नी जल्दी ही घुलमिल गए थे.

वैसे बड़े महानगरों में रहने वाले लोग अपनी दोहरी जिंदगी जीते हैं. वे जल्दी किसी से घुलतेमिलते नहीं हैं. सभी अपने काम से मतलब रखते हैं. कौन क्या करता है, कैसे रहता है, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं रहता. लेकिन राजकुमार और सपना अपने पड़ोसियों से घुलमिल कर रहते थे.

पतिपत्नी का दांपत्य जीवन अच्छी तरह से चल रहा था. करीब 2 महीने बाद सपना ने दूसरी बच्ची को जन्म दिया. बच्ची स्वस्थ और सुंदर थी, जिसे देख दोनों खुश थे.

2 बेटियों के जन्म के बाद दोनों कुछ दिनों तक कोई बच्चा नहीं चाहते थे. लिहाजा सपना ने डिलिवरी के बाद कौपर टी लगवा ली थी. लेकिन कौपर टी लगने के बाद सपना के पेट में अकसर दर्द रहने लगा था. यह दर्द कभीकभी असहनीय हो जाता था, जिस की वजह से वह बेहोश तक हो जाती थी. यह बात उस के पड़ोसियों को भी मालूम थी.

घटना 4 फरवरी, 2019 की है. उस समय दोपहर के लगभग 3 बजे का समय था, जब पड़ोसियों ने राजकुमार की ढाई वर्षीय बेटी नान्या के रोने की आवाज सुनी. रोने की आवाज पिछले 15-20 मिनट से लगातार आ रही थी. पड़ोसी राम गणेश से नहीं रहा गया तो वह राजकुमार के घर पहुंच गए.

उन्होंने घर का जो दृश्य देखा उसे देख कर उन के होश उड़ गए. वह चीखते हुए भाग कर बाहर आ गए और चीखचीख कर आसपड़ोस के लोगों को इकट्ठा कर लिया. लोगों ने चीखने की वजह पूछी तो उन्होंने बताया कि राजकुमार की पत्नी का किसी ने गला काट दिया है.

ये भी पढ़ें- पहलवानी के नाम पर दहशतगर्दी

यह सुन कर जब लोग राजकुमार के घर में गए तो उस की पत्नी फर्श पर औंधे मुंह पड़ी थी. उस के गले के आसपास खून फैला हुआ था. उस की बेटी नान्या उस के पास बैठी अपने नन्हेनन्हे हाथों से मां को उठाने की कोशिश कर रही थी और दूसरी छोटी नवजात बच्ची बिस्तर पर पड़ी हाथपैर मार रही थी.

इस मार्मिक दृश्य को जिस ने भी देखा था, उस का कलेजा मुंह को आ गया. पड़ोसी दोनों बच्चियों को उठा कर घर से बाहर लाए. उन्होंने फोन कर के इस की जानकारी राजकुमार गौतम को दे दी और बेहोशी की हालत में पड़ी घायल सपना को उठा कर स्थानीय इंदिरा गांधी अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने सपना को मृत घोषित कर दिया. अस्पताल ने इस मामले की जानकारी पुलिस को दे दी.

वह इलाका शांतिनगर थाने के अंतर्गत आता था. यह सूचना पीआई किशोर जाधव को मिली तो वह एसआई संदीपन सोनवणे के साथ इंदिरा गांधी अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल जा कर उन्होंने डाक्टरों से बात की. इस के अलावा वह उन लोगों से मिले, जो सपना को उपचार के लिए अस्पताल लाए थे.

मृतका के पति राजकुमार ने बताया कि उस की पत्नी की जान कौपर टी के कारण गई है. कौपर टी की वजह से उस की तबीयत ठीक नहीं रहती थी, जिस का इलाज चल रहा था. लेकिन कभीकभी दर्द जब असह्य हो जाता था, तब उस की सहनशक्ति जवाब दे देती थी. ऐसे में वह अपनी जान लेने पर आमादा हो जाती थी.

राजकुमार ने पत्नी की मौत की जो थ्यौरी बताई, वह टीआई के गले नहीं उतरी. उन्होंने यह तो माना कि तकलीफ में कभीकभी इंसान आपा खो बैठता है, लेकिन उस समय सपना की स्थिति ऐसी नहीं थी. डाक्टरों के बयानों से स्पष्ट हो चुका था कि आत्महत्या के लिए कोई अपना गला नहीं काट सकता.

मौत की सही वजह तो पोस्टमार्टम के बाद ही सामने आनी थी. लिहाजा टीआई किशोर जाधव ने सपना की संदिग्ध हालत में हुई मौत की जानकारी डीसीपी और एसीपी को देने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए उसी अस्पताल की मोर्चरी में भिजवा दी.

अस्पताल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई किशोर जाधव सीधे घटनास्थल पर पहुंचे और वहां का बारीकी से निरीक्षण किया. घटनास्थल पर खून लगा एक स्टील का चाकू मिला, जिसे जाब्ते की काररवाई में शामिल कर के उन्होंने जांच के लिए रख लिया.

पीआई ने राजकुमार गौतम के बयानों के आधार पर सपना गौतम की मौत को आत्महत्या के रूप में दर्ज तो कर लिया था, लेकिन मामले की जांच बंद नहीं की थी. उन्हें सपना गौतम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. किशोर जाधव को लग रहा था कि दाल में कुछ काला है.

पोस्टमार्टम और फोरैंसिक रिपोर्ट आई तो पीआई चौंके. चाकू पर फिंगरप्रिंट मृतका के बजाए किसी और के पाए गए. इस का मतलब था कि सपना की हत्या की गई थी.

मामले की आगे की जांच के लिए पीआई किशोर जाधव ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में सहायक इंसपेक्टर (क्राइम), कांस्टेबल रविंद्र चौधरी, गुरुनाथ विशे, अनिल बलबी, किरण पाटिल, विजय कुमार, श्रीकांत पाटिल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने जांच शुरू कर दी. अपराध घर के अंदर हुआ था, इस का मतलब था कि अपराधी सपना का नजदीकी ही रहा होगा. इसलिए इंसपेक्टर राजेंद्र मायने ने संदेह के आधार पर सपना के पति राजकुमार गौतम से गहराई से पूछताछ की.

उन्होंने उस की कुंडली भी खंगाली. उस की अंगुलियों के निशान ले कर जांच के लिए भेज दिए गए. लेकिन उस के हाथों के निशानों ने चाकू पर मिले निशानों से मेल नहीं खाया. इस से पुलिस को राजकुमार बेकसूर लगा.

ये भी पढ़ें- यूज ऐंड थ्रो के दौर में जानवर

तब पुलिस ने उस के दोस्तों की जांच की. जांच में पता चला कि राजकुमार का एक दोस्त विकास चौरसिया उस की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आता था. विकास पान की एक दुकान पर काम करता था और राजकुमार के गांव का ही रहने वाला था. दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी. पुलिस ने विकास का फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिया और उस की तलाश शुरू कर दी.

वह अपने घर से गायब था. उस की तलाश के लिए पुलिस ने मुखबिर भी लगा दिए. एक मुखबिर की सूचना पर विकास को भिवंडी के सोनाले गांव से हिरासत में ले लिया गया. पुलिस ने विकास से सपना की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह खुद को बेकसूर बताता रहा. लेकिन सख्ती करने पर उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

25 वर्षीय राजकुमार गौतम उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के गांव कारमियां शुक्ला का रहने वाला था. उस के पिता गौतमराम गांव के एक साधारण किसान थे. गांव में उन की थोड़ी सी काश्तकारी थी, जिस में उन की गृहस्थी की गाड़ी चलती थी.

परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण राजकुमार गौतम की कोई खास शिक्षादीक्षा नहीं हो पाई थी. जब वह थोड़ा समझदार हुआ तो उस ने रोजीरोटी के लिए मुंबई की राह पकड़ ली. उस के गांव के कई लोग रहते थे. मुंबई से करीब सौ किलोमीटर दूर तहसील भिवंडी के अवधा गांव में उन्हीं के साथ रह कर वह छोटामोटा काम करने लगा.

भिवंडी का अवधा गांव पावरलूम कपड़ों और कारखानों का गढ़ माना जाता है. राजकुमार गौतम ने भी पावरलूम कारखाने में काम कर कपड़ों की बुनाई का काम सीखा और मेहनत से काम करने लगा. जब वह कमाने लगा तो परिवार वालों ने उस की शादी पड़ोस के ही गांव की लड़की सपना से कर दी. यह सन 2016 की बात है.

राजकुमार गौतम खूबसूरत सपना से शादी कर के बहुत खुश था. वह शादी के कुछ दिनों बाद ही सपना को अपने साथ मुंबई ले गया. किराए का कमरा ले कर वह पत्नी के साथ रहने लगा. शादी के करीब डेढ़ साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम नान्या रखा गया.

इसी दौरान राजकुमार की विकास चौरसिया से मुलाकात हो गई. विकास चौरसिया पान की एक दुकान पर काम करता था. दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए उन के बीच जल्द ही दोस्ती हो गई.

20 वर्षीय विकास एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह जो भी कमाता था, अपने खानपान और शौक पर खर्च करता था. राजकुमार गौतम ने जिगरी दोस्त होने की वजह से विकास की मुलाकात अपनी पत्नी से भी करवा दी थी. राजकुमार ने पत्नी के सामने विकास की काफी तारीफ की थी.

ये भी पढ़ें- मसाज के नाम पर ब्लैकमेलिंग

पहली मुलाकात में ही विकास सपना का दीवाना हो गया था. उस ने अपनी बेटी नान्या का जन्मदिन मनाया तो विकास चौरसिया को खासतौर पर अपने घर बुलाया. तब राजकुमार और सपना ने विकास की काफी आवभगत की थी. इस आवभगत में राजकुमार गौतम की सजीधजी बीवी सपना विकास के दिल में उतर गई.

वह जब तक राजकुमार के घर में रहा, उस की निगाहें सपना पर ही घूमती रहीं. जन्मदिन की पार्टी खत्म होने के बाद विकास चौरसिया सब से बाद में अपने घर गया था. उस समय उस ने नान्या को एक महंगा गिफ्ट दिया था. यह सब उस ने सपना को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया था.

सपना की छवि विकास की नसनस और आंखों में कुछ इस तरह से समा गई थी कि उस का सारा सुखचैन छिन गया. उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. सोतेजागते उसे बस सपना ही दिख रही थी. वह उस का स्पर्श पाने के लिए तड़पने लगा था.

राजकुमार को अपनी दोस्ती पर पूरा विश्वास था. लेकिन विकास दोस्ती में दगा करने की फिराक में था. वह तो बस उस की पत्नी सपना का दीवाना था. वह सपना का सामीप्य पाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा था.

इसीलिए मौका देख कर वह राजकुमार के साथ चाय पीने के बहाने अकसर उस के घर जाने लगा था. वह सपना के हाथों की बनी चाय की जम कर तारीफ करता था. औरत को और क्या चाहिए. विकास चौरसिया को यह बात अच्छी तरह मालूम थी कि औरत अपनी तारीफ और प्यार की भूखी होती है. जो विकास ने सोचा था, वैसा ही कुछ हुआ भी. इस तरह दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया.

धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए थे. विकास बातचीत के बीच कभीकभी सपना से भद्दा मजाक भी कर लेता था, जिसे सुन कर सपना का चेहरा लाल हो जाता था और वह उस से नजरें चुरा लेती थी.

कुछ दिनों तक तो विकास राजकुमार के साथ ही उस के घर जाता था, लेकिन बाद में वह राजकुमार के घर पर अकेला भी आनेजाने लगा. वह चोरीछिपे सपना के लिए कीमती उपहार भी ले कर जाता था. उपहारों और अपनी लच्छेदार बातों में उस ने सपना को कुछ इस तरह उलझाया कि वह अपने आप को रोक नहीं पाई और परकटे पंछी की तरह उस की गोदी में आ गिरी. सपना को अपनी बांहों में पा कर विकास चौरसिया के मन की मुराद पूरी हो गई.

एक बार जब मर्यादा की कडि़यां बिखरीं तो बिखरती ही चली गईं. अब स्थिति ऐसी हो गई थी कि बिना एकदूसरे को देखे दोनों को चैन नहीं मिलता था. उन्हें जब भी मौका मिलता, दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते. सपना और विकास चौरसिया का यह खेल बड़े आराम से लगभग एक साल तक चला. इस बीच सपना फिर से गर्भवती हो गई.

पहली बार सपना जब गर्भवती हुई थी तो वह अपनी डिलिवरी के लिए अपने गांव चली गई थी. इस बार सपना ने गांव न जा कर अपनी डिलिवरी शहर में ही करवाने का फैसला कर लिया था.

जब सपना की डिलिवरी के 3 महीने शेष रह गए तो राजकुमार अवधा गांव का कमरा खाली कर भादवड़ गांव पहुंच गया और भिवंडी के इंदिरा गांधी अस्पताल में सपना की डिलिवरी करवाई. डिलिवरी के बाद सपना ने पति की सहमति से कौपर टी लगवा ली. यह कौपर टी सपना को रास नहीं आई. इसे लगवाने के बाद सपना को दूसरे तरह की समस्याएं आने लगीं.

सपना की डिलिवरी के 25 दिनों बाद एक दिन दोपहर 2 बजे विकास चौरसिया मौका देख कर राजकुमार गौतम के घर पहुंच गया. उस समय सपना की बेटी नान्या घर के दरवाजे पर खेल रही थी. घर में घुसते ही उस ने दरवाजा बंद कर लिया. उस समय सपना अपने बिस्तर पर लेटी अपनी छोटी बेटी को दूध पिला रही थी. विकास के अचानक आ जाने से सपना उठ कर बैठ गई.

इस से पहले कि सपना कुछ कह पाती विकास ने उस के बगल में बैठ कर बच्ची का माथा चूमा और सपना को बांहों में लेते हुए उस से शारीरिक संबंध बनाने के लिए जिद करने लगा, जिस के लिए सपना तैयार नहीं थी.

सपना ने विकास को काफी समझाने की कोशिश की और कहा, ‘‘देखो, अभी मैं उस स्थिति में नहीं हुई हूं कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी कर सकूं. आज तक मैं ने कभी तुम्हारी बातों से कभी इनकार नहीं किया है. आज मैं बीमार हूं, ऊपर से कौपर टीम लगवाई है. अभी तुम जाओ, जब मैं ठीक हो जाऊंगी तो आना.’’

लेकिन वासना के भूखे विकास पर सपना की बातों का कोई असर न हुआ. वह उस के साथ जबरदस्ती करने पर उतारू हो गया और उस पर भूखे भेडि़ए की तरह टूट पड़ा. इस के पहले कि वह अपने मकसद में कामयाब होता, सपना नाराज हो गई और उस ने अपने ऊपर से विकास को नीचे फर्श पर धक्का दे दिया. फिर उठ कर वह उसे अपने घर से बाहर जाने के लिए कहने लगी.

सपना के इस व्यवहार और वासना के उन्माद में वह अपना होश खो बैठा. वह सीधे सपना की किचन में गया और वहां से स्टील का चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने सपना का गला काट दिया. सपना के गले से खून निकलने लगा और वह फर्श पर गिर पड़ी.

सपना के गले से बहते खून को देख कर विकास चौरसिया की वासना का उन्माद काफूर हो गया. वह डर कर वहां से चुपचाप निकल गया. उस के जाने के बाद दरवाजे पर खेल रही नान्या घर के अंदर आई और मां को उठाने लगी थी. सपना के न उठने पर वह उस से लिपट कर रोने लगी.

विकास चौरसिया से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

ये भी पढ़ें- मजार बन रहे लूट के अड्डे

राजकुमार गौतम को जब यह मालूम पड़ा कि उस की पत्नी का आशिक और हत्यारा और कोई नहीं, बल्कि उस का अपना जिगरी दोस्त था तो उसे इस बात का अफसोस हुआ कि विकास जैसे आस्तीन के सांप को घर बुला कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी.

कथा लिखे जाने तक अभियुक्त विकास चौरसिया थाणे की तलौजा जेल में था. मामले की जांच इंसपेक्टर राजेंद्र मायने कर रहे थे.

ऐसी भी होती हैं औरतें

सी तापुर जिले के गांव नेवादा प्रेम सिंह में भगौती प्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी रामबेटी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. रीना उन की सब से बड़ी बेटी थी. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी, जिस की वजह से परिवार खुशहाल था.

भगौती प्रसाद ने 25 साल पहले अपनी बड़ी बेटी रीना की शादी सीतापुर के ही गांव माखूबपुर के रहने वाले विश्वनाथ उर्फ बबलू से कर दी थी. बबलू टैंपो चलाता था.

कालांतर में रीना 2 बच्चों की मां बनी. दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे. बबलू पत्नी की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देता था, जिस से रीना कुंठित सी हो गई थी. रीना की बहन गुडि़या का विवाह सीतापुर शहर के मोहल्ला सुंदरनगर के अवधेश से हुआ था. अवधेश भी टैंपो चालक था.

अवधेश था तो 3 बच्चों का बाप, लेकिन शरीर से हृष्टपुष्ट था. उस का रीना के घर आनाजाना लगा रहता था. अवधेश को अपनी पत्नी से वह प्यार नहीं मिल पाता था, जिस की उसे चाहत थी. रीना को वह पहले से ही पसंद करता था, इसलिए जब तब उस से मिलने आ जाता था.

एक दिन अवधेश रीना के घर गया तो विश्वनाथ घर पर ही था. वह विश्वनाथ से बोला, ‘‘मुझे यहां पास में ही काम मिल रहा है, इसलिए मुझे यहीं रहना पड़ेगा. अगर तुम्हें बुरा न लगे तो मैं कुछ दिन के लिए तुम्हारे घर में रह सकता हूं?’’

इस से पहले कि विश्वनाथ कुछ बोलता, रीना बोल बोल पड़ी, ‘‘जीजा, इस में पूछने वाली क्या बात है. इसे अपना ही घर समझो और जब तक चाहो, रहो.’’

मजबूरी में विश्वनाथ को रीना की हां में हां मिलानी पड़ी, ‘‘रीना सही कह रही है. तुम बेहिचक यहां रह सकते हो.’’

इस के बाद अवधेश खाना खा कर अपने घर लौट गया.

इस के अगले ही दिन वह बैग में कपड़े वगैरह ले कर रीना के घर पहुंच गया. यह करीब 3 साल पहले की बात है. काम तो अवधेश का बहाना था, असल में उसे रीना के नजदीक आना था. विश्वनाथ सुबह घर से निकल जाता था और कभी देर शाम तो कभी देर रात तक घर लौटता था.

रीना के जवान हो चुके दोनों बेटे भी काम से निकल जाते थे. घर में रह जाते थे विश्वनाथ और रीना. रीना को अवधेश पति से ज्यादा अच्छा लगता था. अवधेश खाना खाने के लिए दोपहर को भी घर पहुंच जाता था. उस के घर आने के समय रीना दरवाजे पर खड़ी हो कर उस का इंतजार करती थी.

एक दिन रीना जब इंतजार करतेकरते थक गई, तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ देर बाद दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो रीना ने दरवाजा खोला. अवधेश आया था. उसे अंदर आने को कह कर वह लस्तपस्त सी चारपाई पर जा लेटी.

अवधेश ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ रीना, इस तरह सुस्त क्यों पड़ी

हो? लगता है, अभी नहाई नहीं हो.’’

रीना ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा.’’

अवधेश ने जल्दी से झुक कर रीना की नब्ज पकड़ ली. उस के स्पर्श से रीना के शरीर में हलचल सी मच गई, आंखें अजीब से नशे से भारी हो गईं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे डाक्टर हो.’’

‘‘रीना, मैं बहुत बड़ा डाक्टर हूं.’’ अवधेश ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. बात है कि विश्वनाथ सुबह ही काम पर चला जाता है और देर शाम को घर लौटता है.’’

रीना के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी लौटे या न लौटे, मुझे क्या फर्क पड़ता है.’’

‘‘ऐसा क्यों कह रही हो, कितना खयाल रखता है तुम्हारा.’’ अवधेश ने उसे कुरेदा.

‘‘क्या खाक खयाल रखता है?’’ कहते उस की आंखों में आंसू छलक आए.

यह देख अवधेश व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रोओ मत, नहीं तो मुझे बहुत दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम उठो और अभी नहा कर आओ. तुम्हारा मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

अवधेश के बहुत जिद करने पर रीना को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो अवधेश चारपाई पर लेट गया. रीना के बाथरूम में जाने के बाद अवधेश का मन विचलित हो रहा था. रीना की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला हुआ था.

अवधेश का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उस ने एक बार चोर नजरों से बाहर की ओर देखा. सन्नाटा देख कर उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा कर खड़ा हो गया. रीना उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. निर्वसन रीना के शरीर की चकाचौंध से अवधेश की आंखें फटी की फटी रह गईं.

आहट हुई तो रीना ने बाहर की ओर देखा. बाहर अवधेश को देख कर वह चौंक पड़ी. फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह शरारती अंदाज में बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम जीजा. अभी कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन अवधेश सीधा बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा रीना, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है. इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो. विश्वनाथ से तुम्हारी डोर बांध कर तुम्हारे मातापिता ने तुम्हारे साथ बहुत बड़ा छल किया है.’’ कहतेकहते अवधेश ने रीना की धुली देह बांहों में भींच ली. पलक झपकते ही बाथरूम में तूफान सा उमड़ पड़ा. तूफान शांत हो जाने के बाद रीना बहुत खुश थी.

अवधेश जब तक वहां रहा, दोनों के बीच यह खेल चलता रहा. कुछ दिनों तक रहने के बाद वह अपने घर चला गया. लेकिन वह बारबार काम का बहाना बना कर रीना के घर आ जाता और कईकई दिनों तक रुकता.

हालांकि अवधेश रीना का रिश्तेदार था लेकिन इश्कविश्क की बातें आखिर छिपती कहां हैं. लोगों को इस की भनक लग ही जाती है. धीरेधीरे उन के अनैतिक संबंधों की चर्चा आसपड़ोस के लोगों में भी होने लगी.

जब यह बात विश्वनाथ के कानों तक पहुंची तो उस ने रीना से पूछा, ‘‘मैं यह क्या सुन रहा हूं, तुम मेरे पीछे तुम अपने जीजा अवधेश के साथ गुलछर्रे उड़ाती हो?’’

‘‘अपनी बीवी पर बस इतना ही विश्वास करते हो. कोई भी तुम से मेरे बारे में कुछ कह दे तो तुम सीधे मेरे ऊपर आ कर चढ़ाई कर दोगे.’’ उलटे रीना ने पति को आड़े हाथों लिया.

‘‘तो तुम्हारा मतलब है कि यह सब झूठ है?’’ विश्वनाथ बोला.

‘‘सरासर झूठ है, इस में कोई सच्चाई नहीं है.’’ रीना ने उसे विश्वास में लेते हुए कहा.

‘‘काश! यह झूठ ही हो, इसी में तुम्हारी भलाई है.’’ विश्वनाथ रीना को घूरते हुए बोला और फिर वहां से चला गया. रीना उस के जाते ही मुसकरा उठी.

लेकिन उन के संबंधों का राज राज नहीं रहा. इस बार रीना भी खुल कर मैदान में आ गई. जब रीना को किसी का डर नहीं था तो अवधेश क्यों पीछे हटता.

इधरउधर की बातें होने लगीं तो रीना अवधेश के घर चली गई. वह अवधेश के घर में रहती और जब मन होता 1-2 दिन के लिए अपने घर आ जाती. अवधेश ने अपनी पत्नी गुडि़या को डराधमका कर चुप करा दिया था.

विश्वनाथ के पिता यानी रीना के ससुर शंभूदयाल नौकरी से रिटायर हो चुके थे. रिटायर होने के बाद उन्हें सरकार से पेंशन मिलती थी. वह पेंशन के रुपए लेने के लिए महीने की 1 तारीख को उन के पास आ जाती थी. रुपए ले कर वापस अवधेश के घर लौट जाती.

शंभूदयाल ने अपनी पुश्तैनी जमीन भी रीना के नाम कर दी थी. जबकि अपने बेटे और 2 पोते होने के बावजूद उन्होंने विश्वनाथ को कुछ नहीं दिया था. ऐसा क्या हुआ कि शंभूदयाल अपनी बहू से इतने खुश थे कि उन्होंने ऐसा कदम उठाया. गांव के लोग इस के तरहतरह से मायने निकालने लगे.

पहली अक्तूबर, 2018 की सुबह खैराबाद थाने में किसी ने फोन पर खबर दी कि मीनापुर गांव के पास सड़क किनारे एक व्यक्ति की लाश पड़ी है. सूचना पा कर इंसपेक्टर सचिन सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 40-41 साल थी. उस के गले पर चोटों के निशान थे.

बाकी शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं थे. तब तक वहां काफी लोग जमा हो चुके थे. लोगों ने लाश की शिनाख्त गांव माखूबपुर निवासी विश्वनाथ के रूप में की.

उन्होंने मृतक के घर वालों को घटना की सूचना भिजवा दी. घर वाले आए तो उन्होंने लाश की शिनाख्त विश्वनाथ के रूप में कर दी. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

विश्वनाथ के बेटे पंकज ने रीना व 2 अज्ञात लोगों पर शक जताया तो पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

इंसपेक्टर सचिन सिंह ने मृतक विश्वनाथ के पिता से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रीना के नाजायज संबंध उस के बहनोई अवधेश से थे. वह उसी के साथ रहती थी. वह कभीकभी ही घर आती थी.

घटना से 6 महीने पहले वह अवधेश के साथ भाग गई थी. घटना की रात रीना की 5 वर्षीय बेटी राधिका उस के पास ही सोई थी. हो सकता है उस ने इस घटना को होते देखा हो.

इंसपेक्टर सचिन सिंह ने राधिका से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में मम्मी का पापा से झगड़ा हुआ था, जिस के बाद मम्मी ने कुछ लोगों को बुला कर पापा को मार दिया.

राधिका के इस बयान के बाद इंसपेक्टर सिंह ने रीना को हिरासत में ले लिया. उसे थाने ला कर जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पति की हत्या का जुर्म स्वीकार करते हुए हत्या में शामिल लोगों के नाम भी बता दिए.

अप्रैल, 2018 में रीना अवधेश के साथ कहीं चली गई थी. किसी को इस की जानकारी नहीं मिल सकी कि रीना आखिर कहां गई. वह घटना से 2 दिन पहले ही घर लौटी थी.

गायब होने के दौरान ही उस ने अवधेश से कोर्टमैरिज कर ली थी. अब वह पति से हमेशा के लिए छुटकारा पाना चाहती थी. इसलिए उस ने अवधेश से विश्वनाथ को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने की बात कर ली थी. अवधेश ने इस के लिए रीना के गांव के ही अपने एक साथी हिमांशु त्रिपाठी और खैराबाद कस्बे के शिवकुमार को इस योजना में शामिल कर लिया था.

30 सितंबर, 2018 की रात विश्वनाथ रीना से शारीरिक संबंध बनाना चाहता था. रीना अवधेश से कोर्टमैरिज कर चुकी थी, इसलिए उस ने विश्वनाथ को अपने पास नहीं फटकने दिया. इस पर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बाद विश्वनाथ सो गया. लेकिन रीना गुस्से से भरी हुई थी. उस ने अवधेश को फोन किया और विश्वनाथ को तुरंत ठिकाने लगाने को कहा.

अवधेश उसी समय शिवकुमार और हिमांशु को ले कर रीना के घर पहुंच गया. उन्होंने सोते हुए विश्वनाथ को दबोच लिया. फिर विश्वनाथ के गले में नायलौन की रस्सी डाल कर उस का गला कस दिया, जिस से उस की मृत्यु हो गई. यह सब करते हुए रीना की बेटी राधिका चुपचाप देख रही थी, लेकिन वह डरीसहमी सी सोने का नाटक करती रही.

विश्वनाथ को मौत के घाट उतारने के बाद उन्होंने उस की लाश हिमांशु की स्प्लेंडर बाइक पर लाद कर मीनापुर गांव के पास सड़क किनारे फेंक दी. इस के बाद तीनों वहां से फरार हो गए.

लेकिन चश्मदीद राधिका के बयान के बाद उन का राजफाश हो गया. रीना से पूछताछ के बाद अवधेश, हिमांशु त्रिपाठी और शिवकुमार को भी पुलिस ने लालपुर रोड से गिरफ्तार कर लिया. उन के पास से हत्या में इस्तेमाल की गई नायलौन की रस्सी और बाइक बरामद कर ली.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.??????   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वरमाला डाल रही प्रेमिका को प्रेमी ने गोली मार खुद को गोली मारी

बछरावां थाना क्षेत्र के अंतर्गत बछरावा मौरावा मार्ग पर स्थित गजियापुर गांव में बीती रात गांव के पुत्ती लाल की बेटी आशा देवी उम्र 22 वर्ष की शादी कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर चल रही थी. कुसहरी नवाबगंज जनपद उन्नाव से आई आशा की बारात में बराती ढोल नगाड़े पर नाच रहे थे. दूल्हा और दुल्हन जय माल के कार्यक्रम के लिए बने स्टेज पर बैठे थे.

दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को वरमाला डाल रहे तभी गांव के ही दुल्हन के प्रेमी बृजेंद्र कुमार, पुत्र जागेश्वर कुमार, उम्र 26 वर्ष. प्रेमिका को दूसरे के गले में वरमाला डालना सहन नहीं हुआ और उसने अपने चाचा लोधेश्वर की लाइसेंसी डीबीबीएल बंदूक से पहले तो प्रेमिका को गोली मार दी. फिर स्टेज पर ही स्वयं को गोली मार ली और दोनों लहूलुहान हो वहीं पर गिर पड़े. घटना से मौके पर भगदड़ मच गई.

varmala

आनन फानन दोनों घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बछरावां लाया गया जहां से उन्हें जिला अस्पताल रायबरेली रेफर कर दिया गया. जहां दोनों की मौत हो गई. घटना के बाद शादी की खुशियां मातम में बदल गई. बराती व घराती बिना खाए पिए ही वापस चले गए और दोनों मृतक परिवारों में मातम छा गया.

अचानक हुई इस घटना से पूरे गांव में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना पर कोतवाल रावेंद्र सिंह पुलिस फोर्स मौके पर पहुंचे और अधिकारियों को सूचना देकर जांच पड़ताल शुरू की. घटना की जानकारी होने पर पुलिस अधिक्षक सुनील कुमार सिंह, एडिशनल एसपी शशि शेखर सिंह, क्षेत्राधिकारी आर पी शाही सहित आसपास के कई थानों की फोर्स मौके पर पहुंच गई. कोतवाल रावेंद्र सिंह ने बताया कि प्रेम प्रसंग में घटना घटित हुई है.मामले की जांच पड़ताल की जा रही है मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जाएगी.

सिरफिरा आशिक

काफी हताश होने के बाद आखिर कन्नू लाल ने तय कर लिया कि अब वह अपने बेटे लल्लू को तलाश करने में समय बरबाद नहीं करेगा और इस के लिए पुलिस की मदद भी लेगा. यह बात उस ने अपनी पत्नी और रिश्तेदारों को भी बताई. फिर उसी शाम वह अपने पड़ोसी भानु को ले कर लुधियाना के थाना डिवीजन नंबर-2 की पुलिस चौकी जनकपुरी जा पहुंचा.कन्नू लाल मूलरूप से गांव मछली, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. कई साल पहले वह काम की तलाश में अपने किसी रिश्तेदार के साथ लुधियाना आया था और काम मिल जाने के बाद यहीं का हो कर रह गया था. काम जम गया तो कन्नू लाल ने गांव से अपनी पत्नी कंचन और बच्चों को भी लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना में वह इंडस्ट्रियल एरिया में लक्ष्मी धर्मकांटा के पास अजीत अरोड़ा के बेहड़े में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. कन्नू लाल के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. बड़ी बेटी कुसुम 20 साल की थी और शादी के लायक थी. कन्नू लाल का सब से छोटा बेटा वरिंदर उर्फ लल्लू 11 साल का था, जो कक्षा-4 में पढ़ता था.

27 जुलाई, 2017 को लल्लू दोपहर को अपने स्कूल से लौटा और खाना खाने के बाद गली में बच्चों के साथ खेलने लगा. यह उस का रोज का नियम था. कन्नू की पत्नी कंचन और बाकी बच्चे घर में सो रहे थे. शाम करीब 4 बजे कंचन ने चाय बना कर लल्लू को बुलाने के लिए आवाज दी.

लेकिन लल्लू गली में नहीं था. लल्लू हमेशा अपने घर के आगे ही खेलता था, दूर नहीं जाता था. कंचन ने गली में खेल रहे बच्चों से पूछा तो सभी ने बताया कि लल्लू थोड़ी देर पहले तक उन के साथ खेल रहा था, पता नहीं बिना बताए कहां चला गया. चाय पीनी छोड़ कर सब लल्लू की तलाश में जुट गए.

शाम को जब लल्लू को पिता कन्नू लाल काम से लौट कर घर पहुंचा तो वह भी बेटे की तलाश में जुट गया. पूरी रात तलाशने के बाद भी लल्लू का कहीं पता नहीं चला. सभी यह सोच कर हैरान थे कि आखिर 11 साल का बच्चा अकेला कहां जा सकता है. इस के पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

अगला दिन भी लल्लू की तलाश में गुजरा. शाम को कन्नू लाल ने लल्लू की गुमशुदगी पुलिस चौकी में दर्ज करा दी. ड्यूटी अफसर हवलदार भूपिंदर सिंह ने धारा 146 के तहत कन्नू की गुमशुदगी दर्ज कर के यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही लल्लू का हुलिया और उस का फोटो आसपास के सभी थानों में भेज दिया गया.

लल्लू की तलाश में न तो पुलिस ने कोई कसर छोड़ी और न उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने. पर लल्लू का कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. कन्नू लाल गरीब मजदूर था, जो दिनरात मेहनत कर के अपने बच्चों का पालनपोषण करता था, इसलिए फिरौती का तो सवाल ही नहीं था. हां, दुश्मनी की बात सोची जा सकती थी.

दुश्मनी के चक्कर में कोई लल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता था, इसीलिए पुलिस बारबार कन्नू से यह पूछ रही थी कि उस का किसी से लड़ाईझगड़ा तो नहीं है. लल्लू को गुम हुए एक सप्ताह गुजर चुका था पर कहीं से भी उस का कोई सुराग नहीं मिला.

घटना के 9 दिन बाद अचानक कन्नू लाल के मोबाइल फोन पर एक शख्स का फोन आया. फोन करने वाले का कहना था कि लल्लू उस के कब्जे में है. अगर बेटा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो 2 लाख रुपया बैंक एकाउंट नंबर 0003333 में डलवा दो. लल्लू मिल जाएगा.

कन्नू लाल ने तुरंत इस फोन की सूचना पुलिस को दे दी. अब मामला केवल लल्लू की गुमशुदगी का नहीं रह गया था. उस का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था सो पुलिस हरकत में आ गई. एडीसीपी गुरप्रीत सिंह के सुपरविजन में एक टीम का गठन किया गया, जिस का इंचार्ज एसीपी वरियाम सिंह को बनाया गया. पुलिस ने पहले दर्ज मामले में धारा 365 और 384 भी जोड़ दीं.

अपहरण के 9 दिन बाद 4 अगस्त को लल्लू के पिता कन्नू लाल के मोबाइल पर फोन कर के 2 लाख रुपए फिरौती मांगने के बाद फोनकर्ता ने नंबर स्विच्ड औफ कर दिया था. जांच आगे बढ़ाते हुए कन्नू लाल के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई. साथ ही उस के फोन को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया.

काल डिटेल्स से पता चला कि कन्नू लाल को स्थानीय बसअड्डे से फोन किया गया था. यह सोच कर तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेजी गई कि हो न हो कोई संदिग्ध मिल जाए, क्योंकि बसअड्डा क्षेत्र काफी बड़ा और भीड़भाड़ वाला इलाका था. पास में ही रेलवे स्टेशन भी था. लेकिन वहां पुलिस को कुछ नहीं मिला.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि लल्लू का अपहरणकर्ता जो भी रहा हो, वह कन्नू लाल का कोई नजदीकी या फिर रिश्तेदार ही होगा. क्योंकि अपहरणकर्ता ने जो 2 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, वह कन्नू लाल की हैसियत देख कर ही मांगी थी.

भले ही कन्नू लाल गरीब था, पर अपने बच्चे के लिए 2 लाख का इंतजाम तो कर ही सकता था. इस के लिए उसे गांव की जमीन भी बेचनी पड़ती तो वह भी बेच देता. अपहर्त्ता जो भी था, कन्नू के परिवार को गांव तक जानता था.

इस सोच के बाद पुलिस ने कन्नू लाल और उस के परिवार के हर छोटेबड़े सदस्य से पूछताछ की. कुछ खबरें पड़ोसियों से भी ली गईं. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. आखिर अंदर की बात पता चल ही गई. इस से पुलिस को लगने लगा कि अब वह जल्द ही अपरहणकर्ता तक पहुंच कर लल्लू को सकुशल बचा लेगी.

कन्नू लाल के परिवार से पता चला कि कुछ दिन पहले उन का अजमल आलम से झगड़ा हुआ था. 30 वर्षीय अजमल आलम उन के पड़ोस में ही रहता था और कपड़े पर कढ़ाई का बहुत अच्छा कारीगर था. उस की कमाई भी अच्छी थी और उस का कन्नू के घर काफी आनाजाना था. वह उस के परिवार के काफी करीब था और सभी बच्चों से घुलामिला हुआ था. खासकर कन्नू की बड़ी बेटी कुसुम से. 7 साल पहले जब अजमल आलम की उम्र करीब 22-23 साल थी और कुसुम की 14 साल तभी दोनों एकदूसरे के करीब आ गए थे.

अजमल मूलरूप से गांव भयंकर दोबारी, जिला किशनगंज, बिहार का रहने वाला था. 7 साल पहले उस ने खुद को अविवाहित बता कर कुसुम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. इस के 2 साल बाद उस ने कुसुम से शादी करने का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए थे. यह सिलसिला अभी तक चलता रहा था.

कह सकते हैं कि उस ने 7 वर्ष तक कुसुम का इस्तेमाल अपनी पत्नी की तरह किया था. अजमल से कुसुम के संबंध कितने गहरे हैं, यह बात कन्नू और उस की पत्नी कंचन को भी पता थी.

उन की नजरों में अजमल अविवाहित था और अच्छा कमाता था. वह कुसुम से बहुत प्यार करता था और शादी करना चाहता था. कन्नू लाल और उस की पत्नी कंचन को इस पर कोई ऐतराज नहीं था. फलस्वरूप जैसा चल रहा था, उन्होंने वैसा चलने दिया. उन लोगों ने न कभी बेटी पर कोई अंकुश लगाया और न अजमल को अपने घर आने से रोका.

जून 2018 में अचानक किसी के माध्यम से कंचन और कुसुम को पता चला कि अजमल पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. इतनी बड़ी बात छिपा कर वह कुसुम के साथ लगातार 7 सालों तक दुष्कर्म करता रहा था.

हकीकत जान कर मांबेटी के होश उड़ गए. उस समय अजमल अपने कमरे पर ही था. कुसुम और कंचन ने जा कर उस के साथ झगड़ा किया और उस की खूब पिटाई की. यह बात मोहल्ले की पंचायत तक भी पहुंची. पंचायत के कहने पर कंचन ने अजमल को धक्के मार कर मोहल्ले से बाहर निकाल दिया.

अजमल ने भी वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. क्योंकि मोहल्ले वालों के सामने हुई जबरदस्त बेइज्जती के बाद वह वहां नहीं रह सकता था, इसलिए वह अपना सामान लिए बिना मोहल्ले से चला गया था.

यह कहानी जान लेने के बाद पुलिस को लगा कि लल्लू के अपहरण के पीछे अजमल का ही हाथ हो सकता है. कुसुम वाले मामले में उस की काफी बेइज्जती हुई थी. यहां तक कि उसे अपना घर भी छोड़ कर भागना पड़ा था. बदला लेने के लिए वह कुछ भी कर सकता था.

कन्नू के परिवार के पास अजमल का फोन नंबर था. पुलिस ने वह नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया और उस की लोकेशन ट्रेस करने की कोशिश करने लगी.

कन्नू को किए गए पहले फोन के 2 दिन बाद फोन कर के उस से दोबारा पैसों की मांग की गई. इस बार फोन कैथल, हरियाणा से आया था. पुलिस टीम फोन की लोकेशन ट्रेस करते हुए जब कैथल पहुंची तो कन्नू को दिल्ली से फोन किया गया. इस बार फोन करने वाले ने रुपयों की मांग के साथ कुसुम से बात करने की भी इच्छा जताई तो साफ हो गया कि लल्लू के अपरहण में अजमल का ही हाथ है. इस के बाद वह कन्नू को बारबार मैसेज करता रहा.

अजमल को पकड़ने के लिए पुलिस की टीमों ने कैथल व दिल्ली में एक साथ 15 जगह रेड डाली लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अब तक की जांच में सामने आया कि जो बैंक खाता नंबर उस ने फिरौती के पैसे डलवाने के लिए दिया था, वह लुधियाना के एक युवक का था.

खास बात यह कि उस युवक से अजमल की दूरदूर तक कोई जानपहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने उसे शक के दायरे में ही रखा. आखिर लंबे चले इस चोरसिपाही के खेल के बाद पुलिस ने अजमल की फोन लोकेशन का पीछा करते हुए उसे 8 अगस्त को दिल्ली से धर दबोचा.

अगले दिन 9 अगस्त को पुलिस ने अजमल को अदालत में पेश कर के लल्लू की बरामदगी और आगामी पूछताछ के लिए उसे 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के दौरान अजमल ने बताया कि लल्लू की हत्या उस ने उसी दिन यानी 27 जुलाई को ही कर दी थी और उस की लाश को सतलुज नदी में बहा दिया था.

उस ने बताया कि मोहल्ले से बेइज्जत होने के बाद वह अपनी बहन के पास कैथल चला गया था. लेकिन कुसुम के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. उस ने कुसुम से प्यार किया था और वह भी उसे प्यार करती थी, लेकिन अब उस ने बेवफाई की थी.

उस का मन बारबार कहता था कि कुसुम और उस की मां से बेइज्जती का हिसाब लिया जाए. इस के लिए वह लुधियाना छोड़ कर जाने के डेढ़ महीने बाद 27 जुलाई को ट्रेन से लुधियाना आया. दोपहर को जब लल्लू स्कूल से वापस घर जा रहा था तो उस ने उसे रोक कर साथ चलने को कहा, लेकिन उस ने मना कर दिया और घर जा कर अपनी बहन को उस के आने की सूचना दी.

बाद में जब लल्लू खेलने के लिए घर से बाहर निकला तो उस ने लल्लू को घुमाने का लालच दिया और आटो में बिठा कर सतलुज नदी पर ले गया. नदी पर पहुंच कर अजमल ने लल्लू को नदी में नहाने और तैरना सिखाने के लिए उकसाया.

जब लल्लू नहाने के लिए कपड़े उतार कर अजमल के साथ दरिया में घुसा तो अजमल ने नहाते समय लल्लू की गरदन पकड़ कर उसे पानी में डुबो कर मार दिया और उस की लाश पानी में बहा कर बस द्वारा वापस कैथल चला गया. बाद में वह दिल्ली पहुंच गया था. वहीं से वह कन्नू को फोन पर एसएमएस भेजता था.

अजमल की निशानदेही पर पुलिस ने सतलुज में गोताखोरों की टीम को उतारा. पर लल्लू की लाश नहीं मिली. बरसात के दिन होने के कारण नदी में पानी का तेज बहाव था. ऐसे में संभव था कि लाश पानी में तैरती हुई कहीं दूर निकल गई हो. पुलिस लल्लू की लाश को कई दिनों तक नदी में दूरदूर तक तलाशती रही लेकिन लाश नहीं मिली.

रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद 13 अगस्त, 2018 को अजमल को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. खेलखेल में लल्लू की गुमशुदगी से शुरू हुआ यह ड्रामा अंत में इतने भयानक अंजाम तक पहुंचेगा, इस बात की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.  ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुसुम परिवर्तित नाम है.

दांव पर लगा सुहाग : जब दूसरे की बीवी से लड़ी नजरें

सपा नेता और प्रौपर्टी डीलर चंद्रपाल ने गुंडे दिलीप को न केवल जेल जाने से बचाया बल्कि उसे अपना सुरक्षा गार्ड बना कर साथ भी रख लिया. सुरक्षा के लिए उसे हथियार भी दे दिया. जब दिलीप की नजरें चंद्रपाल की बीवी सोनी से लड़ीं तो दिलीप ने उसी हथियार से चंद्रपाल की हत्या कर दी.

उत्तर प्रदेश के जिला संभल से करीब 25 किलोमीटर दूर है चंदौसी शहर. चंदौसी में देशी घी और मैंथा औयल की मंडियां हैं. जिन की वजह से इस शहर की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनी हुई है. चंदौसी के हनुमान गढ़ी मोहल्ले में चंद्रपाल माली अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सोनी के अलावा एक बेटा था. चंद्रपाल समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता थे. इस के अलावा वह बड़े प्रौपर्टी डीलर भी थे.

बात 14 सितंबर, 2018 की है. शाम के करीब 5 बजे थे तभी कोतवाली प्रभारी विनय कुमार को पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि चंदौसी के हनुमान गढ़ी में रहने वाले सपा नेता चंद्रपाल माली को उन के घर में घुस कर किसी ने गोली मार दी है. यह सूचना मिलते ही कोतवाली प्रभारी विजय कुमार पुलिस टीम के साथ हनुमान गढ़ी स्थित उन के घर पहुंच गए.

वहां जा कर पता चला कि उन्हें अस्पताल ले जाया गया है. इंसपेक्टर विनय कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. वहां जानकारी मिली कि 35 वर्षीय चंद्रपाल माली की मौत हो चुकी है. उन्होंने डाक्टरों से बात कर शव अपने कब्जे में ले लिया और इस की सूचना अपने आला अफसरों को दे दी. कुछ ही देर में सीओ कृष्णकांत सरोज वहां पहुंच गए.

सपा नेता चंद्रपाल माली की हत्या की खबर फैलते ही उन के समर्थकों, पार्टी कार्यकर्ताओं और जानपहचान वालों में मातम छा गया. सभी को ताज्जुब हो रहा था कि आखिर ऐसा कौन है, जिस ने घर में घुस कर उन्हें गोली मार दी.

उधर जिला संभल के सपा के जिला अध्यक्ष फिरोज खां ने एसपी यमुना प्रसाद से मिल कर चंद्रपाल माली की हत्या पर दुख जाहिर किया और हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की. एसपी ने फिरोज खां को भरोसा दिलाया कि पुलिस टीमें इस काम में लगा दी गई हैं और जल्द ही हत्यारे पुलिस के कब्जे में होंगे.

एसपी ने यह सूचना आईजी विनोद कुमार सिंह और मुरादाबाद बरेली मंडल के एडीजी प्रेम प्रकाश को भी दे दी. सपा कार्यकर्ताओं के संभावित विरोध प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए एडीजी प्रेम प्रकाश ने एसपी यमुना प्रसाद को चंदौसी शहर में पर्याप्त मात्रा में पुलिस तैनात करने के निर्देश दिए.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद इंसपेक्टर विनय कुमार ने मृतक के भाई मनोज माली से पूछताछ की तो उस ने कहा कि गोली की आवाज सुनने के बाद कुछ देर बाद जब वह भाई के कमरे में पहुंचा तो वह लहूलुहान पड़ा था. उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया. उस ने इंसपेक्टर को बताया कि उस के भाई की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि उस की भाभी सोनी और उस के प्रेमी दिलीप ठाकुर ने मिल कर की है.

मनोज माली की बात सुनने के बाद इंसपेक्टर विनय कुमार के सामने मामले की तसबीर साफ होने लगी. यह बात उन्होंने सीओ कृष्ण कांत सरोज को बताई. इसलिए सीओ सरोज ने मृतक की पत्नी सोनी पर निगरानी रखने को कहा ताकि वह फरार न हो सके.

अगले दिन यानी 15 सितंबर को पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. गोली चंद्रपाल के सीने पर मारी गई थी, लेकिन डाक्टरों ने जब पोस्टमार्टम किया तो उन्हें गोली नहीं मिली. जबकि वह बाहर भी नहीं निकली थी. डाक्टर हैरान थे कि जब गोली शरीर के बाहर नहीं निकली, तो वह गई कहां. उन्होंने पुलिस से कहा कि वह लाश का एक्सरे कराए ताकि गोली की स्थिति पता लग सके. इस पर पुलिस चंद्रपाल माली की लाश का एक्सरे कराने के लिए संभल के जिला अस्पताल ले गई.

संदेह के दायरे में पत्नी

एक्सरे के बाद पता चला कि जो गोली सीने में घुसी थी. वह फेफड़े, दिल, लीवर और छोटी आंत को फाड़ते हुए कूल्हे के ऊपर की हड्डी में जा कर फंस गई थी. एक्सरे होने के बाद पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों ने गोली निकाली. वह गोली .315 बोर की थी.

पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने लाश घर वालों को सौंप दी. मृतक स्थानीय नेता ही नहीं बल्कि शहर का प्रतिष्ठित आदमी था इसलिए शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अंतिम यात्रा के समय भारी पुलिस बल मौजूद रहा. अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी सोनी को उसी दिन पूछताछ के लिए थाने बुलाया.

पूछताछ में उस ने बताया कि शाम करीब साढ़े 4 बजे उस के पति अपने नौकर उमेश के साथ घर लौटे थे. उस समय दूसरे कमरे में ट्यूटर सोनू उस के 8 वर्षीय बेटे को ट्यूशन पढ़ा रहा था. वह टौयलेट गई हुई थी. उसी दौरान किसी ने पति को गोली मार दी.

इस के बाद इंसपेक्टर विनय कुमार ने ट्यूटर सोनू और घरेलू नौकर उमेश को थाने बुलाया. सोनू ने बताया कि शोरशराबा और गोली की आवाज सुनने पर जब वह बाहर आया तो चंद्रपाल लहूलुहान हालत में पड़े थे. उन्हें अस्पताल ले जाया गया.

इंसपेक्टर विनय कुमार ने चंद्रपाल के नौकर उमेश से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘शाम करीब 4 बजे मैं मालिक के साथ घर लौटा. मालिक अपने कमरे में चले गए तो मैं दूसरे कमरे में बैठ गया. कुछ देर बाद मैं ने मालिक के कमरे से गोली चलने की आवाज सुनी तो मैं तुरंत उन के कमरे की तरफ दौड़ा. उस कमरे में मालिक फर्श पर लहूलुहान पड़े थे, उन की पत्नी सोनी वहीं खड़ी थी और दिलीप भी था.’’

उमेश ने आगे बताया, ‘‘दिलीप के हाथ में तमंचा देख कर मैं समझ गया कि उसी ने मालिक को गोली मारी है. दिलीप वहां से भागने को हुआ तो मैं ने उसे दबोच लिया. सोनी दिलीप को छुड़ाने लगी, लेकिन मैं ने उसे नहीं छोड़ा. तभी सोनी ने मेरे कंधे पर काट लिया. इस से मेरी पकड़ ढीली हुई तो दिलीप वहां से भाग गया.’’

उमेश ने इंसपेक्टर विनय कुमार को अपना कंधा भी दिखाया, जहां सोनी ने काटा था. उमेश के कंधे पर गहरा घाव था. इस से इंसपेक्टर विनय समझ गए कि सोनी झूठ बोल रही है. यह सब उसी का कियाधरा है. मृतक के भाई ने भी सोनी और उस के प्रेमी दिलीप पर हत्या का आरोप लगाया था.

खुल गया हत्या का राज

इंसपेक्टर विनय कुमार ने सोनी से सख्ती से पूछताछ की तो उसे सच बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. क्योंकि नौकर उमेश को काटने की बात वह झुठला नहीं सकती थी. सोनी से पूछताछ के बाद उस के पति चंद्रपाल माली की हत्या की जो कहानी सामने आई वह चौंकाने वाली निकली.

चंद्रपाल माली की शादी मुरादाबाद के गोविंदनगर निवासी सोनी के साथ हुई थी. शादी के करीब एक साल बाद सोनी एक बेटे की मां बनी, जिस का नाम देव माली रखा. देव इस समय शहर के ही एक कौन्वेंट स्कूल में कक्षा 3 में पढ़ रहा है.

चंद्रपाल के पिता जगदीश माली जमीनों की खरीदफरोख्त का काम करते थे. चंद्रपाल ने भी पिता के पेशे को अपना लिया. चंदौसी से 25 किलोमीटर दूर संभल कुछ साल पहले ही जिला घोषित हुआ था.

जिला बनने के बाद संभल और आसपास के इलाकों की जमीनों के रेट आसमान छूने लगे थे. चंद्रपाल माली ने शहर में नई जगहों पर जमीनें खरीद कर डाल रखी थीं. वह धीरेधीरे इन जमीनों पर प्लौट काट कर बेच रहे थे.

करीब 6 महीने पुरानी बात है. चंद्रपाल चंदौसी के व्यस्ततम बाजार फव्वारा चौक पर स्थित एक स्टाल पर टिक्की खाने गए थे. फव्वारा चौक चंदौसी शहर की एक ऐसी मशहूर जगह है जहां शहर के संभ्रांत लोग चाट, पकौड़ी, मूंग की दाल, गोल गप्पे आदि खाने के लिए आते हैं. जब चंद्रपाल माली वहां खड़े टिक्की खा रहे थे, तभी अचानक वहां 3 लड़कों ने अचानक अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिस से उधर से गुजरने वाले एक राहगीर को भी कुछ छर्रे लगे.

इतना ही नहीं उस के बाद उक्त तीनों युवकों ने शहर कोतवाली के पास जा कर भी फायरिंग की थी. उन 3 लड़कों में एक दिलीप ठाकुर भी था. पुलिस ने तीनों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था.

चंद्रपाल दिलीप को जानते थे. उस की जांबाजी देख कर वह काफी प्रभावित हुए. पता लगा कर पुलिस फायरिंग करने वाले लड़कों को तलाशने लगी. उन के घरों पर भी दबिश डाली गईं. लेकिन वे अपने घरों से फरार हो चुके थे.

आस्तीन में पाला सांप

दिलीप के घर वालों ने चंद्रपाल से संपर्क किया. उन्होंने उस से दिलीप को बचाने की गुहार लगाई. चंद्रपाल ने अपने प्रभाव से दिलीप की मदद की. उन्होंने दिलीप को जेल जाने से भी बचा लिया. चंद्रपाल को दिलीप ठाकुर बड़ा ही दिलेर लगा था. उन्होंने सोचा कि यह उन के धंधे के लिए उपयुक्त रहेगा, इसलिए वह तभी से उस की आर्थिक मदद भी करने लगे.

एहसान में दबे दिलीप ठाकुर को चंद्रपाल ने अपने साथ मिला लिया. वह बतौर बौडीगार्ड चंद्रपाल माली के साथ रहने लगा. अच्छे वेतन के अलावा वह उसे प्लौट बिकवाने का कमीशन भी देते थे. चूंकि वह हर समय उन्हीं के साथ रहता था, इसलिए उस के खानेपीने का खर्चा भी वही उठाते थे. वह दिलीप ठाकुर को एक तरह से अपने छोटे भाई की तरह मानते थे.

जब से दिलीप ठाकुर ने चंद्रपाल के साथ रहना शुरू किया था, तब से चंद्रपाल के रुआब में इजाफा भी हो गया था. साथ ही उन का बिजनैस भी बढ़ गया था. घटना से पहले चंद्रपाल ने 2 प्लौट अच्छे दामों में बेचे थे, जिस से उन्हें लाखों का फायदा हुआ था. दोनों प्लौट दिलीप ठाकुर ने बिकवाए थे, जिस से उसे भी कमीशन के कई हजार रुपए मिले थे.

इस कमाई से अभियुक्त दिलीप ठाकुर ने एक मोटरसाइकिल खरीदी, अपने लिए ब्रांडेड कपड़े, जूते खरीदे. अब वह और ज्यादा बनठन कर रहने लगा.

चंद्रपाल शाम को जब अपने धंधे से फारिग हो जाते, वह दिलीप के साथ पीनेपिलाने का दौर शुरू कर देते, जो काफी देर तक चलता था.

18 साल का दिलीप ठाकुर बन ठन कर रहता था. एक दिन चंद्रपाल ने अपनी पत्नी को दिलीप की बहादुरी के किस्से सुनाए तो वह दिलीप से बहुत प्रभावित हुई. दिलीप सोनी को भाभी कहता था. कुछ दिनों बाद ही दिलीप ने महसूस किया कि सोनी का झुकाव उस की तरफ बढ़ रहा है.

दिलीप जानता था कि उस के और सोनी के स्तर में जमीन आसमान का अंतर है, इसलिए वह सब कुछ समझने के बाद भी कदम आगे बढ़ाने से डर रहा था. दिलीप के चुप रहने के बाद सोनी ने ही पहल करते हुए दिलीप के साथ हंसीमजाक और शारीरिक छेड़छाड शुरू कर दी. 18 साल के दिलीप ने भी इस खुले औफर का लाभ उठाते हुए आगे कदम बढ़ा दिए. इस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

सोनी दिलीप से उम्र में करीब 16 साल बड़ी थी लिहाजा उस से संबंध बना कर वह बहुत खुश थी. चंद्रपाल को पत्नी की इस करतूत की भनक तक नहीं लगी.

उधर सोनी ने दिलीप ठाकुर को पूरी तरह अपने प्रेमजाल में फांस लिया था. इस के बाद उसे अपने पति से नफरत सी हो गई. बातबात पर पति से झगड़ना आम सी बात हो गई थी.

चंद्रपाल यह बात भी नहीं समझ पा रहे थे कि पहले हर समय उन के साथ रहने वाला दिलीप अब कोई न कोई बहाना बना कर 2-3 घंटे के लिए अपने घर क्यों चला जाता है. वह दिलीप पर नजर रखने लगे.

बहरहाल, इस तरह के संबंध छिपाए नहीं छिपते हैं. आखिर चंद्रपाल माली को एक दिन यह पता चल ही गया कि दिलीप ठाकुर अपने घर ना जा कर उस की पत्नी सोनी से मिलने जाता है.

चंद्रपाल को जब यह बात पता चली तो लगा जरूर दाल में कुछ काला है. उन्होंने पत्नी से पूछा कि दिलीप तुम्हारे पास क्यों आता है. सोनी ने पति से बड़ी ही सफाई से झूठ बोलते हुए कहा कि आप नाहक मेरे ऊपर शक कर रहे हैं, घर का कुछ सामान वगैरह उस से मंगा लेती हूं.

पत्नी की सफाई के बाद भी चंद्रपाल का शक दूर नहीं हुआ. चंद्रपाल ने दिलीप से साफ कह दिया कि मेरे पीछे तुम मेरे घर नहीं जाओगे. अगर गए तो समझ लेना अंजाम बुरा होगा.

अपने घर की गतिविधि पर नजर रखने के लिए चंद्रपाल ने घर में और घर के बाहर सीसीटीवी कैमरे भी लगवा दिए. लेकिन सोनी उन कैमरों के तार काट देती थी. पति के पूछने पर वह कह देती थी कि तार बंदरों ने तोड़ दिए. चंद्रपाल ने दिलीप को जो तमंचा खरीद कर दिया था, वह उस ने वापस मांगा. लेकिन दिलीप ने बहाना बना कर कह दिया कि वह 2-3 दिनों में तमंचा वापस कर देगा.

उधर सोनी दिलीप ठाकुर के प्यार में पूरी तरह डूब चुकी थी. दिलीप भी बहुत शातिर था. उस की निगाह चंद्रपाल की प्रौपर्टी और पैसों पर थी. सोनी दिलीप के साथ अपनी नई जिंदगी बसाना चाहती थी. चंद्रपाल माली ने अपनी पत्नी सोनी और दिलीप के संबंधों के बारे में एक दिन अपने छोटे भाई मनोज माली को बता दिया.

14 सितंबर को चंद्रपाल अपने नौकर उमेश के साथ प्रौपर्टी डीलिंग के काम से सुबह ही साइट पर चला गया था. 3 साढ़े 3 बजे चंद्रपाल ने नौकर उमेश से कहा कि अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है, चलो घर चलते हैं. घर पर कुछ देर आराम कर के वापस आ जाएंगे.

शाम 4 बजे चंद्रपाल माली जब अपने घर हनुमान गढ़ी पहुंचे तो उन्होंने दरवाजा खोलने के लिए घर की घंटी बजाई. कुछ देर बाद सोनी ने दरवाजा खोला. पति को देख कर वह चौंकते हुए बोली कि आज इतनी जल्दी कैसे आ गए.

चंद्रपाल ने जवाब में कहा कि आज तबीयत नासाज है. यह सुन कर सोनी बाथरूम में चली गई. चंद्रपाल अपनी शर्ट उतार कर बैडरूम में जा कर लेट गए. उसी समय उन्होंने स्टोररूम में किसी के अंदर होने की आहट सुनी तो स्टोररूम को खोल कर देखा. अंदर दिलीप ठाकुर था. उसे देख कर उन का खून खौल गया. उन्होंने दिलीप ठाकुर को दबोच लिया. दोनों में गुत्थमगुत्था होने लगी. उसी समय सोनी भी वहां आ गई. सोनी ने प्रेमी का पक्ष लेते हुए पति के दोनों हाथ पकड़ कर दिलीप से कहा, ‘‘दिलीप आज इस का काम तमाम कर दो.’’

तभी दिलीप ठाकुर ने तमंचे से चंद्रपाल के सीने में गोली मार दी. गोली लगते ही चंद्रपाल एक तरफ लुढ़क गए. यह वहीं तमंचा था जो चंद्रपाल ने उसे अपनी सुरक्षा के लिए दिया था. गोली की आवाज सुनते ही नौकर उमेश वहां आ गया. माजरा समझ कर उस ने हिम्मत दिखाई और दिलीप को दबोच लिया. प्रेमी को छुड़ाने के लिए सोनी ने उमेश के कंधे में पूरी ताकत से काट लिया, जिस की वजह से उमेश की पकड़ ढीली पड़ गई और दिलीप ठाकुर भागने में कामयाब हो गया.

पुलिस ने सोनी से पूछताछ के बाद उस के प्रेमी दिलीप ठाकुर को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को न्यायालय में पेश कर के 23 सितंबर को जेल भेज दिया. पुलिस ने उस के पास से हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी बरामद कर लिया.?

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाघिन अवनि का विवादास्पद अंत : क्यों मारा गया अवनि को

महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में 2 नवंबर, 2018 की आधी रात को रालेगांव की बाघिन टी-1 को गोली मार दी गई. इस बाघिन को अवनि के नाम से जाना जाता था. 5 साल की अवनि ने इसी साल जनवरी में 2 शावकों को जन्म दिया था. करीब 10-10 महीने के ये दोनों शावक मां की मौत के बाद बेसहारा हो गए.

कहा जाता है कि बाघिन अवनि आदमखोर हो चुकी थी. करीब 2 साल में यह बाघिन 13 लोगों का शिकार कर चुकी थी. जिला यवतमाल के रालेगांव, पांढरकवड़ा और कलंब तहसील के करीब 25 गांवों में इस बाघिन का आंतक था. बाघिन अवनि को जंगल में तलाश करने के लिए करीब 2 महीने से वन विभाग और गैरसरकारी लोगों की टीमें युद्धस्तर पर जुटी हुई थीं. हालांकि पकड़ने का अभियान 10 महीने से चल रहा था.

बाघिन को ढूंढने के लिए मध्य प्रदेश के कान्हा नैशनल पार्क से 4 और नागपुर के ताड़ोबा से एक हाथी लाया गया था. थर्मल ड्रोन से भी उसे पकड़ने की कोशिश की गई. हैदराबाद से शार्प शूटर नवाब शफात अली खान को बुलाया गया.

देश के जानेमाने गोल्फर ज्योति रंधावा की भी सेवाएं ली गईं. जंगल में 100 से ज्यादा ट्रैप कैमरे लगाए गए, साथ ही 52 जगह प्रेशर इंप्रेशन पैड लगाए गए. जगहजगह बकरियों और घोड़ों को बांध कर मचान बनाए गए. दिल्ली से पैरा मोटर भी मंगवाई गई, लेकिन सभी कोशिशें नाकाम रहीं.

अवनि को आकर्षित करने के लिए नर बाघ के मूत्र का छिड़काव किया गया. बाघबाघिन के मूत्र की गंध एकदूसरे को आकर्षित करती है. नर बाघ मूत्र की गंध के सहारे ही मादा की तलाश करता है, जबकि मादा उस गंध के सहारे चलती हुई नर को ढूंढती है. इस के अलावा अमेरिका से मंगाए गए बाघबाघिन के मूत्र की गंध वाले विशेष रसायन सिवेटोन का भी जंगल में जगहजगह पर छिड़काव किया गया.

इन सब का परिणाम यह निकला कि  अवनि मारी गई. बाघिन अवनि की मौत के दूसरे दिन 3 नवंबर को उस का शव नागपुर के गोरेवाड़ा रेस्क्यू सेंटर लाया गया. वहां पशु चिकित्सकों की टीम ने अवनि के शव का पोस्टमार्टम किया. बाद में उस के शव को जला दिया गया.

अवनि की मौत पर यवतमाल जिले के उन गांवों के लोगों ने खुशी मनाई, जो उस से आतंकित थे. वहीं वन्यजीव और पर्यावरण प्रेमियों ने बाघिन को मारने का विरोध किया. इन लोगों ने कई जगह प्रदर्शन किए.

विरोध की कहानी से पहले हम आप को बाघिन अवनि के बारे में बताते हैं.

यवतमाल जिले के रालेगांव जंगल के पांढरकवड़ा इलाके में सब से पहले सन 2015 में करीब एक साल की मादा शावक वन विभाग की नजर में आई थी. उस समय इस का नाम टी-1 रखा गया. बाद में वनकर्मियों और वन्यजीव प्रेमियों ने इस बाघिन का निक नेम अवनि रख दिया. यह बाघिन जंगल के करीब 15-20 किलोमीटर के दायरे में विचरण करती थी.

कहा जाता है कि अवनि ने सब से पहले पहली जून, 2016 को 60 साल की एक बुजुर्ग महिला सोनाबाई भोसले को अपना शिकार बनाया था. सोनाबाई का शव कपास के एक खेत में पड़ा मिला था. इस के करीब 3 महीने बाद बाघिन ने 3 और 4 सितंबर को लगातार 2 दिन 2 लोगों का शिकार किया. उसी साल 30 अक्तूबर को चौथा इंसान इस नरभक्षी के हमले का शिकार हो कर मौत की नींद सो गया.

इस के बाद कई महीनों तक बाघिन अवनि ने न तो किसी इंसान का शिकार किया और न ही वन विभाग को बाघिन की कोई खैरखबर मिली. जुलाई, 2017 में इस बाघिन ने पांचवां इंसानी शिकार किया. फिर लगातार हर महीने वह एक इंसान को शिकार बनाती रही. अगस्त, 2017 में नरभक्षी बाघिन की ओर से किया गया छठा शिकार सामने आया. सितंबर में सातवें, अक्तूबर में आठवें और दिसंबर 2017 में नरभक्षी के नौवें इंसानी शिकार का पता चला.

नरभक्षी बाघिन के लगातार हमलों और उस के मुंह इंसान का खून लग जाने से पांढरकवड़ा जंगल के आसपास बसे करीब 2 दरजन गांवों में दहशत बढ़ती गई. बाघिन के खौफ से फारेस्ट रेंज के आसपास के गांवों के लोग घर से निकलने में डरने लगे. इस से उन के खेतीकिसानी के काम भी प्रभावित हुए.

जनवरी, 2018 में नरभक्षी बाघिन ने रालेगांव तहसील के लोणी गांव के रहने वाले 70 साल के रामजी को मार डाला. उस दिन शाम के समय रामजी ने अपने 2 एकड़ के खेत में गेहूं की फसल को नीलगाय और जंगली सूअरों से बचाने के लिए आग जला रखी थी,

तभी बाघिन टी-1 अचानक निकल कर आई और झपट्टा मार कर रामजी को खींच ले गई. जब एक चरवाहे ने देखा कि बाघिन रामजी को गरदन से उठा कर ले जा रही है, तो उस ने अपनी लाठी बाघिन की ओर फेंकी.

इस पर बाघिन ने मरणासन्न रामजी को छोड़ दिया और उस चरवाहे को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए गुर्राई. इस के बाद बाघिन फिर से रामजी की गरदन को मुंह में दबोच कर ले गई. कुछ दूर ले जा कर उस ने रामजी को छोड़ दिया, लेकिन तब तक वह मर चुका था.

बाघिन के लगातार हमलों से आसपास के लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. रामजी की मौत को ले कर ग्रामीणों ने रास्ता जाम कर दिया. साथ ही विरोध प्रदर्शन करते हुए वन अधिकारियों व सरकारी वाहनों पर पथराव भी किया. स्थानीय लोगों की ओर से जोरशोर से नरभक्षी बाघिन को मारने की मांग की जाने लगी.

इस के बाद महाराष्ट्र के प्रधान मुख्य वन्यजीव संरक्षक ए.के. मिश्रा ने बाघिन टी-1 अवनि को नरभक्षी मान कर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी कर दिए. वन्यजीव प्रेमियों और ऐक्टिविस्ट जैरील बनाइत सहित कई स्वयंसेवी संगठनों ने वन विभाग के इस आदेश को बौंबे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर कर के चुनौती दी. याचिका में कहा गया कि बाघिन अवनि गर्भवती हो सकती है, इसलिए उसे नहीं मारा जाए.

वन विभाग ने हाईकोर्ट में कहा कि नरभक्षी बाघिन को पकड़ने के लिए अभियान चलाया जा रहा है. इस पर हाईकोर्ट ने 31 जनवरी, 2018 को वन विभाग के शूटआउट और्डर को अलग कर दिया और केवल पकड़ने का औपरेशन जारी रखने की अनुमति दी.

वन विभाग नरभक्षी बाघिन अवनि को पकड़ने के प्रयास में जुट गया. फरवरी के दूसरे पखवाड़े में बाघिन अवनि 2 नवजात शावकों के साथ नजर आई. शावकों के साथ दिखाई देने पर वन विभाग का बाघिन को पकड़ने का अभियान धीमा हो गया.

बाद में कुछ महीनों तक शांति बनी रही. वन विभाग का बाघिन अवनि को पकड़ने का अभियान भी ढीला पड़ चुका था. फिर अचानक अगस्त महीने की 4 तारीख को नरभक्षी ने एक और इंसान का शिकार कर लिया. इस के बाद 10 अगस्त और फिर 28 अगस्त को 2 लोग नरभक्षी के शिकार बने. इस तरह 13 लोगों का शिकार किए जाने पर वन विभाग ने बाघिन अवनि को देखते ही गोली मारने और उस के दोनों शावकों को पकड़ने का आदेश दोबारा जारी कर दिया.

वन्यजीव प्रेमियों एवं स्वयंसेवी संगठनों ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी. इस पर वन विभाग ने हाईकोर्ट को बताया कि बाघिन टी-1 अब तक 13 लोगों को अपना शिकार बना चुकी है. बाघिन को ट्रैप करने के लिए लगाए कैमरों और वन संरक्षण की टीम ने इस की पुष्टि की है. बाघिन के साथ उस के 2 शावक भी हैं.

मां को मानव का शिकार करते देख कर इन शावकों के भी बड़े होने पर नरभक्षी होने की आशंका है. अगर ऐसा हुआ तो इंसान और वन्यजीवों के बीच स्थिति खतरनाक हो जाएगी. सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने 6 सितंबर को यह याचिका खारिज कर दी.

हाईकोर्ट में याचिका खारिज होने पर वन्यजीव प्रेमियों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली. किसी बाघिन को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहली बार इस तरह की याचिका दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद 11 सितंबर को आदेश दिया कि अगर लोगों के हित में वनरक्षकों को नरभक्षी बाघिन को गोली मारने को मजबूर होना पड़े तो वह दखल नहीं देगा, लेकिन पहले बाघिन को बेहोश करने की कोशिश होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद वन विभाग ने अगले ही दिन से युद्धस्तर पर नरभक्षी बाघिन अवनि को तलाशने का अभियान छेड़ दिया. इस अभियान में वन विभाग के करीब 200 अधिकारियों और कर्मचारियों को शामिल किया गया.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अवनि को पकड़ने की कोशिश वन विभाग ने रालेगांव तहसील के लोणी गांव के जंगल में बेस कैंप बनाया. विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों ने लगभग साढे़ 6 हजार हेक्टेयर के जंगल में नरभक्षी बाघिन अवनि को तलाशने का काम शुरू किया. वन विभाग ने हैदराबाद से शार्पशूटर नवाब शफात अली को बुलाया. शफात अली कई दिनों तक अवनि की तलाश में जुटे रहे, लेकिन बाघिन नहीं मिली.

इस के बाद नवाब के दोस्त और देश के नामी गोल्फर ज्योति रंधावा के इटैलियन डौग्स बुलाए गए. रंधावा दिल्ली से अपने केन कार्स प्रजाति के 2 डौग्स को ले कर हवाईजहाज से नागपुर आए. इस बीच नवाब शफात अली और रंधावा का वन्यजीव प्रेमियों की ओर से विरोध होने लगा. सोशल मीडिया पर उन के खिलाफ हमले बढ़े तो शफात अली और रंधावा वापस चले गए.

वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने अपने स्तर पर बाघिन की तलाश शुरू की लेकिन कमर तक खड़ी जंगली घास इस में बाधक बनने लगी. इस का हल भी निकाला गया. बाघिन की तलाश के लिए मध्य प्रदेश से 4 प्रशिक्षित हाथी मंगवाए गए. ये चारों हाथी आपस में भाई थे. 5वां हाथी नागपुर के ताड़ोबा से मंगाया गया.

इस बीच ताड़ोबा से लाया हाथी 2 अक्तूबर को जंजीर तोड़ कर कैंप से 30 किलोमीटर दूर चहांद गांव की ओर भाग निकला. इस हाथी ने 30 साल की एक महिला अर्चना मोरेश्वर कुलसंगे को कुचल कर मार डाला. इस के अलावा एक बुजुर्ग को जख्मी कर दिया.

बाद में हाथी को किसी तरह काबू किया गया. इस घटना के बाद बाघिन की तलाश के लिए बुलाए गए सभी पांचों हाथियों को वापस भेज दिया गया.

बाद में वन विभाग ने हैदराबाद से शार्पशूटर नवाब शफात अली के बेटे असगर अली को बाघिन की तलाश के लिए बुला लिया. असगर अली कई दिनों तक नरभक्षी बाघिन अवनि की तलाश में जुटे रहे. 2 नवंबर की शाम उन्हें अवनि के ताजा फुटमार्क मिले. अब तक अवनि को पकड़ने के अभियान पर लगभग 6 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे.

यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि राष्ट्रपति के पास लगाई गई दया याचिका पर फैसला आने से पहले ही अवनि का अंत हो गया. दरअसल, कुछ वन्यजीव प्रेमियों ने अवनि को बचाने के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास याचिका भेजी थी. इस में बाघिन को मारने के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया था.

अवनि को बचाने के लिए याचिकाकर्ताओं ने अमेरिका की बिग कैट रेस्क्यू का उदाहरण दिया, जिस में आदमखोर हो चुके शेर, बाघ और तेंदुओं को रखा जाता है. भारत में बिग कैट रेस्क्यू अभियान 2 सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रिया सिंह और नीतू जे चला रही हैं. वह एक एनजीओ अर्थ ब्रिगेड फाउंडेशन से भी जुड़ी हैं.

कहानी शफात अली खां की हैदराबाद के शिकारी नवाब शफात ने महाराष्ट्र के चंद्रपुर में अब तक 3 बाघ, 10 तेंदुए, कुछ हाथियों सहित अन्य वन्यजीव और जंगली सूअर मारे हैं. शफात पर सवाल इसलिए उठे कि वह भले ही महाराष्ट्र के वन विभाग की ओर से ऐसे मामलों के लिए अधिकृत शार्पशूटर हैं. लेकिन नवाब के गृह राज्य तेलंगाना के साथ कनार्टक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों ने उन पर बैन लगा रखा है.

6 महीने पहले यवतमाल जिले के पांढरकवड़ा इलाके में ही एक औपरेशन के दौरान वन विभाग के साथ जालसाजी करने को ले कर शफात के बयान की जांच चल रही है. उन पर आरोप है कि उन्होंने शिकार से पहले वन्यजीव को बेहोश करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा 50 हजार रुपए में बेच दी थी.

कई साल पहले कर्नाटक पुलिस ने शफात को देशद्रोहियों को हथियार सप्लाई करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. कर्नाटक की सीआईडी ने भी शफात को अवैध शिकार के मामले में गिरफ्तार किया था.

बाघिन अवनि को गोली मारने वाले शफात के बेटे असगर अली पर भी सवाल उठ रहे हैं. वजह यह कि असगर अली इस के लिए अधिकृत नहीं था. वह रात को जंगल में गया और अवनि को मार दिया. नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी की गाइडलाइन कहती है कि सूर्योदय से पहले और सूर्योदय के बाद बाघ पर गोली नहीं चलाई जा सकती.

रात को वन्यजीव को ट्रंकुलाइज भी नहीं किया जा सकता. बताया जा रहा है कि बाघिन को पौइंट 300 विन राइफल से मारा गया, जिस की बुलेट का व्यास 7.62 एमएम और वजन 11.50 ग्राम होता है. एनटीसीए की गाइडलाइंस में इस कैलिबर के उपयोग की अनुमति नहीं है.

सोशल एक्टिविस्ट जैरील बनाइत का आरोप है कि अवनि को बेहोश किए बिना ही मार दिया गया. यह सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों की अवहेलना है. उन्होंने वन विभाग के खिलाफ हाईकोर्ट में जाने का भी ऐलान किया है.

वन्यजीव प्रेमी अवनि को बचाने की कोशिश में लगे लोगों की अपील के बावजूद महाराष्ट्र के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने अवनि को मारने का आदेश दिया. मुनगंटीवार बाघों को मारने के लिए हमेशा से हैदराबाद के शूटर शफात अली खान को बुलाते रहे हैं. इस बार उन के बेटे असगर अली को बुलाया. असगर अली बाघ को मारने के लिए अधिकृत नहीं थे. वन विभाग ऐसे बाघ को पकड़ने के लिए प्रतिबद्ध था.

बाद में मेनका गांधी ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिख कर कहा कि राज्य के वन मंत्री थोड़ी संवेदना और धैर्य रखते तो अवनि को बचाया जा सकता था. मेनका ने अवनि की मौत के लिए वन मंत्री मुनगंटीवार को जिम्मेदार बताते हुए पद से हटाने का भी अनुरोध किया.

अवनि की मौत पर राजनीतिक रूप से आलोचना होने और देशविदेश में बवाल मचने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले की जांच के आदेश दिए, जबकि केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार से अवनि को मारने की घटना की रिपोर्ट मांगी.

फडणवीस ने कहा कि बाघिन को मारने की खुशी नहीं है. वन विभाग ने अवनि को मारने का फैसला तब लिया, जब वह 13 लोगों की जान ले चुकी थी. उस ने वनकर्मियों पर भी हमला किया था. बाघिन को मारने के लिए शिकारी असगर अली की मदद लेने के मामले की भी जांच कराई जाएगी.

दूसरी ओर महाराष्ट्र के वन मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने मेनका की टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री के पास मामले की कम जानकारी है. वह चाहें तो इस की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे सकती हैं.

सवाल इस बात पर भी उठ रहे हैं कि क्या बाघिन अवनि वास्तव में नरभक्षी थी. यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि अवनि द्वारा 13 लोगों की जान लेने का दावा किया जा रहा है, जबकि मारे गए लोगों में से केवल 3 शवों के पोस्टमार्टम हुए. इन में भी यह पुष्टि नहीं हुई कि इन लोगों को अवनि ने ही शिकार बताया था. अब सुखद बात यह है कि अवनि के दोनों शावकों के पैरों के निशान चिकली वेडसी मार्ग पर बेंबला नहर के पास दिखाई दिए हैं.

फिल्म निर्माता और वरिष्ठ पत्रकार प्रीतीश नंदी ने हाल ही में एक लेख में अवनि की मौत के पीछे के कारणों को रेखांकित किया है. उन्होंने इस बाघिन की मौत को चूना, कोयला, डोलामाइट जैसे खनिजों के लिए संरक्षित वनभूमि पर कब्जे के प्रयास का नतीजा बताया है. इस की वजह से यह जंगल अतिक्रमण की चपेट में आता रहा है.

सरकार ने मात्र 40 करोड़ रुपए में 500 हेक्टेयर वनभूमि उद्योगपति अनिल अंबानी को बेच दी. इस से वहां की जमीन की वास्तविक कीमत का अंदाजा होता है.

अब उस जंगल में एक और सीमेंट प्लांट के साथ पावर प्लांट भी आकार ले रहा है. अब कई दूसरे उद्योगपति भी जंगल पर कब्जे के लिए कतार में हैं. अवनि को शायद लगा हो कि ये घुसपैठिए जंगल में क्यों आ रहे हैं, वह तो इस जंगल को अपना घर ही समझती थी.

पहले देश में विभिन्न स्थानों पर अवनि को बचाने के लिए प्रदर्शन किए गए. बाद में अवनि की मौत को ले कर मुंबई, दिल्ली, चेन्नै, कोलकाता, हैदराबाद, पुणे, जयपुर ही नहीं टोरंटो, लास एंजिलिस, न्यूयार्क आदि शहरों में प्रदर्शन कर लोगों ने अपने गुस्से का इजहार किया. मुंबई में हुए प्रदर्शन में कई फिल्म कलाकारों सहित अभिनेता संजय दत्त की बहन प्रिया दत्त ने भी हिस्सा लिया.

अवनि की मौत भले ही विवादों में घिरी हुई है लेकिन इस से सबक लेने की जरूरत है. अवनि के दोनों शावक उस के साथ रहे थे, इसलिए इन्होंने मां के साथ इंसानी मांस का स्वाद चखा या नहीं, यह कहना मुश्किल है. लेकिन अगर इन्हें जल्दी ही पकड़ कर पुनर्वासित नहीं किया गया तो दोनों शावक भी आदमखोर बन सकते हैं.

पति की कारगुजारियां कर गईं परेशान

अपनी शोख अदाओं से दर्शकों का दिल जीतने वाली डांसर व सिंगर एनी बी उर्फ अनामिका बावा परेशान हो कर इतना टूट गईं कि उन्हें जहर खाने को मजबूर होना पड़ा.

हरियाणा में एनी बी के नाम से मशहूर अनामिका ने आरोप लगाया कि उन्होंने यह कदम अपने पति के अफेयर के चलते उठाया है. दरअसल, उन के पति का एक महिला से अफेयर चल रहा है. वह महिला अनामिका को कई बार फोन कर के पति को तलाक देने की बात कहती रहती है.

यही वजह है कि वे अपने पति की माशूका से काफी परेशान थीं और उन्होंने जहर खा कर अपनी इहलीला खत्म करनी चाही. उन्हें आननफानन सिविल अस्पताल में भरती कराया गया.

हिसार की नवदीप कालोनी की रहने वाली हरियाणवी कलाकार एनी बी उर्फ अनामिका बावा का कहना है कि तकरीबन 5 साल पहले यानी साल 2013 में उन की शादी शेखर खन्ना के साथ हुई थी. वीडियो अलबम डायरेेक्टिंग के दौरान ही उन की मुलाकात हुई थी. शादी के बाद इन को एक बेटा भी हुआ जो अब 4 साल का है.

पति शेखर खन्ना की लाइफ में 2 साल पहले दिल्ली की एक महिला आ गई जो शादीशुदा है. आरोप है कि उस महिला के कारण ही उन की लाइफ बरबाद हुई है.

कुछ दिन पहले महिला ने अनामिका बावा को पति के साथ जन्मदिन का केक काटते हुए एक वीडियो भी भेजा था. उन्होंने बताया कि पति शेखर से जिस महिला का अफेयर चल रहा है वह बैंगलरु में बार डांसर है और इन दोनों की दोस्ती फेसबुक के जरीए हुई है. इस के बाद चैटिंग करतेकरते ये दोनों नजदीक आ गए.

इस महिला को ले कर पति शेखर के साथ उन का विवाद काफी बढ़ गया तो वे अपने मायके हिसार में रहने लगीं और पति रोहतक में. जब उन्होंने अपना घर संभालने की कोशिश की तो महिला ने हमेशा पति शेखर को मेरे खिलाफ भड़का कर दूर करने का काम किया. इसी के चलते वे डेढ़ साल पहले अपने मायके हिसार में आ कर रहने लगीं.

अनामिका का आरोप है कि अब मेरा एक दोस्त है जिसे वह महिला भड़का रही है ताकि हमारी दोस्ती टूट जाए. मनमुटाव के चलते पति शेखर पिछले 3-4 दिन से लापता हैं. वह महिला लगातार मुझे और मेरे दोस्त को फोन कर के परेशान कर रही है. वह फोन पर यह पूछ रही है कि शेखर को कहां छुपा रखा है.

एनी बी का आरोप है कि यह महिला उन से फोन पर यह भी कहने लगी कि उस का पति उन के पास आया हुआ है और वह उस के साथ जन्मदिन मना रही है. इस के बाद इस महिला ने उन्हें गालियां दीं और प्रताड़ित किया.

एनी बी को 29 दिसंबर, 2018 को पूरे दिन महिला ने फोन कर के परेशान किया. इसी परेशानी से तंग आ कर उन्होंने चूहे मारने की दवा निगल ली. पर समय रहते उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया गया तो उन की जान बच गई और उन्हें छुट्टी दे दी गई.

कौन हैं अनामिका…

अनामिका बावा हरियाणा की डांसर और सिंगर हैं. एनी बी के नाम से जाने वाली अनामिका बावा ने 2,500 से अधिक गानों पर परफौर्म किया है. उन्हें हरियाणा की दूसरी सपना चौधरी के नाम से जाना जाता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें