संस्कार शिविर तेजी से फलताफूलता धार्मिक व्यवसाय है जिस के बारे में यह गलतफहमी पसरी है कि इन शिविरों में जा कर बच्चों की जिंदगी संवर जाती है, पर हकीकत में ऐसा है नहीं. वहां तो अपराधी तैयार हो रहे हैं.

चिंताजनक मामला महाराष्ट्र के पुणे का है. जहां के हडपसर और मुंढवा इलाकों में लगातार चोरी की वारदातें बढ़ती जा रही थीं. पुलिस की लाख कोशिशों के बाद भी चोर पकड़ में नहीं आ रहे थे, जिस से महकमे की खासी छीछालेदर हो रही थी.

हालांकि पुलिस को 2 किशोरों पर शक था क्योंकि अकसर उन की मौजदूगी हर उस जगह पाई जाती थी जहां चोरी हुई होती थी. इन किशोरों पर हाथ डालने में पुलिस महज इसलिए हिचक रही थी क्योंकि वे पुणे के एक प्रतिष्ठित संस्कार शिविर के छात्र थे. शक होते ही पुलिस ने इन के बारे में जानकारियां हासिल कीं, तो पता चला कि वे तो बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के हैं.

सागर भोलेराव और स्वप्निल गिरमे नाम के ये प्रशिक्षु संस्कारी किशोर शिविर में दिनभर भक्ति में लीन रहते थे. वे नियम से सुबहशाम भजन, कीर्तन करते थे, ध्यान लगाते थे, योग करते थे, पूजापाठ और यज्ञहवन वगैरह भी करते थे.

अब इतने धार्मिक प्रवृत्ति के छात्र चोरी जैसी घटिया और निकृष्ट हरकत भी कर सकते हैं, यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. मानो दुनियाभर के चोर, उचक्के, जेबकतरे, डाकू और दूसरे अपराधी ये सब ढकोसले न करते हों. हां, इतना जरूर है कि वे यह सब किसी नामी शिविर में रह कर नहीं करते या सीखते.

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