कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

दीपा दीदी की आजादी दीदी के जाने के बाद प्रतिदिन बढ़ती गई और सारे घर के कार्य का बोझ मुझ पर ही लाद दिया गया. रागिनी दीदी के डांस प्रोग्राम घर पर ही होते थे. उन में हम सब की प्रसन्नता सम्मिलित थी. पर दीपा दीदी तो अधिकतर बाहर ही रहतीं. एक कार्यक्रम समाप्त होता तो दूसरे में जुट जातीं. उन्हें खूब पुरस्कार मिलते तो मां उन की प्रशंसा के पुल बांध देतीं. मुझे प्रोत्साहित करने वाला घर में कोई न था. नाचगाने से मेरा संबंध छूट कर केवल रसोईघर से रह गया. बस, कभी विवश हो जाती तो दीदी को याद कर के रोती. मन हलका हो जाता. बाद के 5 वर्षों में मेरे लिए कुछ सहारा था तो दीदी से फोन पर बात करना. कितनी तसल्ली होती थी जब दीदी प्यार से फोन पर मुझ से बात करतीं. एक बार उन्होंने मुझ से फोन कर के कहा, ‘सुधी, मैं जानती हूं कि तू मेरे बिना कैसी जिंदगी जी रही होगी, परंतु तू धैर्य मत खोना, जिंदगी में हर स्थिति का सामना करना ही पड़ता है. उस से भागना कायरता है. मैं यह कभी सुनना नहीं चाहूंगी कि सुधी कायर है.’

सच पूछो तो दीदी का जीवन ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत था. सब से अधिक प्रेरणा तो मुझे तब मिली जब मुझे यह पता चला कि विवाह के बाद भी दीदी अपनी पढ़ाई कर रही थीं. जीजाजी के रूप में उन्हें ऐसा जीवनसाथी मिला जो केवल पति नहीं था, बल्कि पापा की भांति उन्होेंने दीदी को संरक्षण दे कर पापा के सपने को साकार करना चाहा था. इंटर तक दीदी के पास साइंस तो थी ही, उन्होंने मैडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर ली और उन्हें आगरा के मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया और वे अपनी प्रतिभा के कारण हर वर्ष एकएक सीढ़ी चढ़ती चली गईं. जीजाजी इंडियन एयरलाइंस में पायलट के पद पर कार्यरत थे. अकसर कईकई दिनों तक वे बाहर चले जाते. दीदी का समय अपनी पढ़ाई व कालेज में बीतता. कितने सुचारु ढंग से चल रहा था दीदी का जीवन.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...