लेखक- रोहित और शाहनवाज 

पंजाब में हाल ही में हुए निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के लिए आक्रोश साफ सीधे देखा जा सकता है. पंजाब आकर हम ने कई लोगों से बात की और उन से पूछा की यदि किसान आंदोलन नहीं होता तो क्या यहां पर लोग भाजपा का समर्थन करते? तो कईयों ने हमारे इस सवाल का जवाब ना में ही दिया. यहां लोगों का यही मानना है की यदि किसान आंदोलन नहीं भी होता तो भी वो भाजपा को बढ़ती महंगाई, खत्म होते रोजगार, पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों और गलत आर्थिक नीतियों इत्यादि जैसे गंभीर मुद्दों को ध्यान में रखती और उन का मैनडेट लगभग ऐसा ही होता जैसा अभी दिखाई दे रहा है.

खैर, रात के 8.30 बज रहे थे जब हम मोगा की कच्ची पतली गलियों में घूमते हुए 63 वर्षीय ओमप्रकाश और उन के बेटे धनपत राय (30) के मिट्टी के बर्तनों की दुकान पर पहुंचे. इन की यह दुकान मोगा के मेन मार्किट रोड पर आते हुए वार्ड नंबर 20-21 में पड़ती है, जो की मेन रोड से काफी अंदर की तरफ है. ओमप्रकाश ने इस गली की खासियत के तौर पर बताया की इस गली की शुरूआत में मुहाने के ओपोजीट साइड में फिल्म अभिनेता सोनू सूद का घर है.

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सांवले रंग, चौड़ा कपाल, सफेद बाल, ग्रेइश दाढ़ी, तनी हुई मूछें, एवरेज फिगर के ओमप्रकाश अपने बेटे धनपत राय के संग दुकान में चुपचाप बैठे ग्राहक आने का इंतजार कर रहे थे. इतने में हम उन की दुकान पर पहुंच गए. वैसे तो ओमप्रकाश और उन का परिवार उत्तरप्रदेश के रहने वाले हैं लेकिन लम्बे समय से वह मोगा में ही रहते हैं और अब पंजाब के स्थानीय निवासी हो चुके हैं. उन की दुकान पर वह मिट्टी से बने बर्तन, चूल्हा, घड़े और सजावट के सामन बेचते हैं. पहले परचून की दुकान होने के चलते दुकान में लगे शेल्व्स मिट्टी के सभी बर्तनों की शोभा और बढ़ा रहे थे. दुकान में हर एक सामान बड़ा ही सिस्टमैटिक था.

जब ओमप्रकाश के बेटे धनपत से हम ने पूछा की यहां पर बीजेपी का इतना बूरा हाल क्यों हुआ तो वे बताते हैं, “यह तो नगर निगम के चुनाव थे, यहां जो प्रत्याशी खड़े होते हैं वह इन्ही गली मोहल्लों के होते हैं. निगम के चुनाव में लोग पार्टी चाहे कैसी भी हो कई बार चाल-चलन, बात-व्यवहार और उठने-बैठने के चलते ही जीता देते हैं. लेकिन भाजपा का अगर यह हाल हुआ है तो कुछ तो बात रही ही होगी. मसला यह है की जनता अभी भाजपा के फैसलों से परेशान हैं. मोदी जी जो भी फैसले कर रहे हैं वह बिना सोचे समझे कर रहे हैं.

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वह आगे कहते हैं, “जिस इंसान के पास खाने के लिए पैसा नहीं है वह इन्सान क्या करेगा. एक ध्याड़ीदार जो यहां 200-300 रूपए कमा रहा है उस के लिए अब बहुत मुश्किल हो गया है. ऊपर से जो पिछले साल लौकडाउन लगा उस ने देश की कमर तोड़ दी. मेरे सामने तो एक भी ऐसा मामला नहीं हैं जहां केंद्र सरकार ने गरीब को कोई फायदा पहुंचाया हो. यही कारण भी है की भाजपा से लोग नाराज हैं.”

63 वर्षीय ओमप्रकाश के 2 बेटे हैं जिस में से छोटा बेटा धनपत 30 वर्ष का है. धनपत ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई और कंप्यूटर में डिप्लोमा किया हुआ है. किन्तु उस के बावजूद भी वह बेरोजगार हैं. जब उनसे हम ने इस का कारण पूछा तो वह कहते हैं, “सरकार ने रोजगार का कोई अवसर प्रदान नहीं किया. ये बात नहीं है की योजनाएं नहीं है लेकिन उन योजनाओं का इम्पैक्ट जमीन पर होता हुआ दिखाई नहीं देता. बाजार में कुछ काम धंधा ही नहीं होगा तो मेरे जैसा युवा आखिर करेगा ही क्या. मैंने डिग्री ले ली, डिप्लोमा भी लिया हुआ है फिर भी पापा के साथ दुकान पर बैठने को मजबूर हूं. मेरी उम्र 30 साल की है और ऐसा नहीं है की मैं नौकरी नहीं करना चाहता लेकिन नौकरी मिल ही नहीं रही. जहां बात बनती है वहां सैलरी 5-6 हजार रूपए है. क्या उस से गुजारा हो सकता है.”

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यह बोल कर धनपत कुछ देर लिए शांत हो गए, अपनी आखों में लगा चश्मा उतारा, अपना सर नीचे झुका लिया और अचानक से उत्तेज्ती हो कर बोले, “देश में मोदी ने कहा तो था की हर साल 2 करोड़ नौकरियां देंगे लेकिन कहां हैं काम? हम तो अच्छे दिनों का सपना देख रहे थे लेकिन हमें क्या पता था की घर बैठने की नौबत आ जाएगी.”

इस बीच धनपत एनएसएसओ की राष्ट्रीय बेरोजगारी की उस रिपोर्ट को याद करने की कोशिश करने लगे जो 2019 में बिसनेस स्टैण्डर्ड अखबार में लीक हुई थी. वह कहते हैं, “अच्छे दिनों की सरकार से हमने क्या पाया है कोई नहीं जानता. सब हवा हवाई चल रही है. अभी पीछे एक आंकड़ा आया था जिस में भारत 45 साल की सब से ज्यादा बेरोजगारी झेल रहा है. इस में कोई दोराहे नहीं की लौकडाउन के बाद ये आंकड़ा और भी बढ़ गया होगा.”

इतने में उन के पिता ओमप्रकाश खड़े होते हैं और दो कदम अंदर दुकान की ओर जा कर वहां पड़े मटकों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “मार्किट ठप्प है. कोई ख़ास रिस्पोंस नहीं है. हम ने यह दुकान खोली ताकि जिंदगी पटरी पर आ सके लेकिन हाल यह है की सुबह 7 बजे से रात के 10 बजे तक दुकान में बैठने के बावजूद हमारी कमाई 500 रूपए तक की है. कभी कभी तो गल्ला खाली भी देखना पड़ जाता है.”

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धनपत ने बताया कि उन की यह दुकान 2016 तक परचून की दुकान हुआ करती थी. लेकिन उन्होंने इसे 2016 में मिट्टी के बर्तन व सामान बेचने वाली दुकान में बदल लिया और अपना जातिगत पेशा अडोप्ट करना ज्यादा बेहतर समझा. धनपत कहते हैं, “यह हमारा जन्मजात पेशेगत काम था हम लोग कुम्हार जाती से बिलोंग करते हैं इसीलिए इस काम को हम ने दुबारा शुरु कर दिया. हालांकि हम अब इन्हें बनाते नहीं हैं.”
इतने में धनपत के पिता ओमप्रकाश ने उन की बात को काटते हुए कहा की, “हम प्रजापति कास्ट से हैं.” ओमप्रकाश इस समय देश में चल रही महंगाई को ले कर काफी परेशान हैं. वह कहते हैं, “महंगाई बहुत है, घर के खर्चे पूरे नहीं हो रहे. पहले ये था की घर का एक आदमी कमाता था और जैसे तैसे काम चल जाया करता था. लेकिन अब तो सारे भी कमा ले फिर भी भुखमरी बनी रहती है. हर एक चीज महँगी हो रही है. पेट्रोल 100 पर आ गया है, सिलिंडर का रेट बढ़ गया है. सब्सिडी खत्म हो गयी है. आम लोगो लिए कुछ नहीं रहा अब.”

इतने में धनपत मुस्कुराते हैं और व्यंग्यात्मक तरीके से सरकार पर कटाक्ष मारते हुए कहते हैं, “मोदी अच्छे दिनों की बात कर रहे थे देखो अच्छे दिन आ गये हैं. देश ‘खुशहाल’ बन गया है. मोदी गरीबी खत्म करने आए थे और अब लग रहा है चुन चुन कर गरीबों को खत्म कर गरीबी खत्म कर ही लेंगे.”

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