सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू महिला को ससुराल से प्राप्त संपत्ति के मामले में एक अहम् फैसला देते हुए महिला के मायके पक्ष के लोगों को भी परिवार का हिस्सा बताया है और महिला को ससुराल से मिली संपत्ति पर उनका भी हक़ कायम किया है. हरियाणा के एक गाँव में पुश्तैनी ज़मीन की मालकिन जगनो का उसके देवर व भतीजों से चल रहे विवाद और मुक़दमे में ये फैसला देते हुए कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाहिता के मायके पक्ष के उत्तराधिकारियों को बाहरी नहीं कहा जा सकता. वे महिला के परिवार के माने जाएंगे. इस नाते वह उसकी संपत्ति के उत्तराधिकारी भी होंगे.

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला हरियाणा-गुड़गांव के बाजिदपुर तहसील के गढ़ी गांव से आया था. केस के मुताबिक गढ़ी गांव में बदलू की कृषि भूमि थी. बदलू के दो बेटे थे बाली राम और शेर सिंह. शेर सिंह की वर्ष 1953 में मृत्यु हो गई. उसके कोई संतान नहीं थी. शेर सिंह के मरने के बाद उसकी विधवा जगनो को पति के हिस्से की आधी कृषि भूमि पर उत्तराधिकार मिला. जगनो ने फैमिली सेटलमेंट में अपने हिस्से की जमीन अपने भाई के बेटों को दे दी. जगनो के भाई के बेटों ने बुआ से पारिवारिक सेटलमेंट में मिली जमीन पर दावे का कोर्ट में सूट फाइल किया.

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इस मुकदमे में जगनों ने एक लिखित बयान दाखिल कर भाई के बेटों के मुकदमे का समर्थन किया और कोर्ट ने समर्थन बयान आने के बाद भाई के बेटों के हक में 19 अगस्त 1991 को जमीन पर उनके हक़ में डिक्री पारित कर दी. इसके बाद जगनों के देवर बाली राम के बच्चों ने अदालत में मुकदमा दाखिल कर पारिवारिक समझौते में जगनों के अपने भाई के बेटों को परिवार की पुश्तैनी जमीन देने का विरोध किया. देवर के बच्चों ने कोर्ट से 19 अगस्त 1991 का आदेश रद करने की मांग करते हुए दलील दी कि पारिवारिक समझौते में बाहरी लोगों को परिवार की जमीन नहीं दी जा सकती है. उनका कहना था कि जगनों के भाई के बेटे जगनों के परिवार के सदस्य नहीं माने जाएंगे.

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