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लेखकमनोज शर्मा

शैलेश ने अपने मोबाइल की गैलरी खोलते हुए एक महिला की फोटो दिखाई. नए जमाने की फैशनेबल अधेड़ औरत, जो शायद उसी कालेज में पढ़ाती है.

‘‘जानते हो ये कौन है?’’ शैलेश ने फोटो दिखाते हुए मुझ से पूछा. ‘‘तुम्हारे कालेज की ही कोई प्रोफेसर होगी,’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए जवाब दिया.

‘‘हां, ये प्रोमिला है. प्रोफेसर प्रोमिला और तुम्हारी भाभी…’’ वो महिला, जिस की वो फोटो दिखा रहा था, शैलेश से बड़ी लग रही थी. फोटो को करीब ला कर मैं ने देखा. ये तो काफी प्रसिद्ध, किंतु विवादास्पद महिला प्रोफेसर हैं. मैं ने कहीं पढ़ा था कि इस प्रोफेसर महिला ने अपने किसी स्टूडैंट से प्रेमविवाह कर लिया है, पर ये क्या… वो तुम थे?

वह शैलेश को एकटक देखता रहा. शैलेश बिलकुल सफेद हो गया था, मानो जीवन के सारे राज आज मेरे सामने खुल गए हों. आदमी दो जीवन जीता है. एक वो जैसा होता है, पर दूसरा जिसे वो भोगता है. यथार्थ बहुत कष्टदायी होता है, जिस में आदमी अपनी चेतना भूल जाता है और फिर जो बचता है, वो असल से कोसों दूर होता है.

मंदमंद संगीत काफी मधुर था, किंतु शैलेश की इस बात को सुनने के पश्चात मानो हर तरफ शून्य ही नजर आ रहा था. खिड़की के बाहर की हवा दरवाजों पर आघात करती हुई बहुतकुछ कहना चाहती थी, पर दरवाजों से टकरा कर वापस लौट जाती थी. पलभर के सन्नाटे के पश्चात गीत से पूर्व वायलिन गूंजा. शैलेश रोआंसा सा दिखा, मानो वो अपनी जिंदगी से खुश नहीं है.

1-2 मैन्यू को बगल में थामे हुए वेटर 2 कौफी ला कर खड़ा हो गया और मैन्यू को टेबल पर रख के हलकी मुसकराहट के साथ हमें देखने लगा. बर्गर के और्डर मिलते ही वेटर चला गया. तुम नहीं जानते कि हम दोनों ही दोहरी जिंदगी जी रहे हैं. शैलेश ने गंभीर हो कर कहना शुरू किया.

‘‘कैसे…?’’ मैं ने शैलेश की हथेली को उंगली से दबाते हुए पूछा. ‘‘तुम जानते हो ना कि मैं एमए के दाखिले के लिए यहां पहुंचा था.ग्रेजुएशन के पश्चात.’’ ‘‘हां… हां, फिर…’’ मैं ने कहा.

‘‘मेरे एडमिशन के लिए प्रोमिला ने सिफारिश की थी. शायद तभी मुझे इतनी नामी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला था. चूंकि यहां नंबरों से अधिक किसी नामी आदमी से जानपहचान की जरूरत कहीं अधिक है.‘‘मैं एमए में पढ़ने लगा. इन्हीं मोहतरमा ने मुझे होस्टल की सुविधा दिलवाई थी. तुम तो जानते ही हो कि हम लोग छोटे कसबों से ताल्लुक रखते हैं. यहीं पढ़नारहना हमजैसों के वश में कहां?’’ निराशा से भरा चेहरा बोलता रहा, ‘‘मैं उन दिनों पढ़ाई में अव्वल था ही. सो, सब मुझ में दिलचस्पी लेते थे. क्लास में मेरे माक्र्स अच्छे रहते थे और शायद इसलिए प्रोमिला भी…’’

आरंभ में प्रोमिला मैडम थीं, जो अपने पति के साथ छोटे से घर में रहती थीं. मेरा नोट्स आदि के सिलसिले में अकसर उन के यहां आनाजाना था. वो मुझे लाइब्रेरी आदि से भी अपने नाम से किताबें इश्यू करवा देती थीं. मुझे उन दिनों ये सब अच्छा लगता था, क्योंकि शिक्षक की इतनी तव्वजुह. किंतु मुझे नहीं पता था कि वो मुझे दिलोदिल चाहने लगी थी और कई मर्तबा वो मेरी पीठ थपथपाते हुए मुझ से लिपट तक जाती थी. कभीकभार ऐसा होना शायद गलती या भूल से हो सकता है, पर अब तो रोज बातबात पर मेरे हाथों को चूमना, मेरे हाथों को सहलाना और घंटों मुझे प्रेम से निहारना आम बात होने लगी थी.

मैं ने उन्हें बताना चाहा कि आप विवाहित हैं और शिक्षिका के पद पर हैं, ये सब आप के लिए उचित नहीं, पर उन के दिलोदिमाग पर मुहब्बत का भूत सवार था. वह हर पल किसी न किसी बहाने से मुझ से मिलने की कोशिश करती और उन की निगाहें मुझे ही ढूंढ़तीं.

2-3 सालों में वो अपने कौंटैक्ट से इतना अमीर हो गई. पहले प्रिंसिपल की और फिर कई मंत्रियों के साथ संबंध रख कर वह अमीर होती गई. मैं भी अंधे झूठे प्रेम में उन की ओर खिसकता गया.उन्होंने सब को एकएक कर के छोड़ दिया और सब से भरपूर फायदा उठाया.

मुझे लगा कि वह मुझ से सच्चा प्रेम करती है, पर उन्हें केवल साथ चाहिए था, जो उन्हें मुझ से मिलता रहा. कौफी के मग हमारे सामने थे. बगल वाली टेबल पर बैठे एक युवा कपल एकदूसरे के हाथों में हाथ दबाए बैठे थे. जैसे ही गाने का अंतरा बदलता, वे दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराते हुए गाने लगते.

टेबल पर बैठा आदमी यद्यपि आधा गंजा था, पर था बेहद रोमांटिक.लड़की के बाएं हाथ को चूमते हुए वह संजीदा होता जा रहा था. उस की आंखों में गहरी चमक थी. गाना बदलते ही वो इधरऊधर देखने लगे, जैसे गहरी नींद से अभीअभी जागे हों.

तुम जानते हो, प्रोमिला ने मुझे एक दिन औफर कर दिया. शैलेश ने एक सिगरेट सुलगाई और बाकी बची हुई डब्बी को मेरी ओर कर दिया. मैं ने गरदन दोनों ओर फेरते हुए उसे कंटीन्यू करने को कहा.

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