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ऑक्सीजन की उपलब्धता के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग में यूपी ने पकड़ी रफ्तार

प्रदेश में कोरोना की तीसरी लहर को ध्‍यान में रखते हुए सरकार ने अस्‍पतालों में सभी पुख्‍ता इंतजाम कर लिए हैं. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के हर जिले में एक-एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या जिला अस्पताल में ऑक्सीजन जेनरेटर्स युद्धस्‍तर पर लगाए जा रहे हैं. अस्पतालों में नौ हजार से अधिक पीडियाट्रिक आईसीयू (पीकू) बेड तैयार किए जा चुके हैं. योगी सरकार ने निर्णयों से प्रदेश में अब कोरोना की दूसरी लहर पूरी तौर पर नियंत्रित है. दूसरे प्रदेशों के मुकाबले ‘योगी के यूपी मॉडल’ से संक्रमण पर तेजी से लगाम लगी है. कम समय में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट जीनोम सिक्वेंसिंग की तेजी से जांच की जा रही है.

केजीएमयू लखनऊ में 109 सैम्पल की जीनोम सिक्वेंसिंग कराई गई. प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक 107 सैंपल में कोविड की दूसरी लहर वाले पुराने डेल्टा वैरिएंट की पुष्टि ही हुई है, जबकि 02 सैम्पल में कप्पा वैरिएंट पाए गए. दोनों ही वैरिएंट प्रदेश के लिए नए नहीं हैं. प्रदेश में ट्रेसिंग से संक्रमण का प्रसार भी न्यूनतम स्‍तर पर है.

जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा से लैस केन्‍द्र की होगी स्‍थापना

कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए प्रदेश में जीनोम सिक्वेंसिंग की सुविधा का लगातार विस्‍तार किया जा रहा है. जल्‍द ही प्रदेश में इस सुविधा से लैस केंद्र की स्थापना भी की जाएगी. सरकार ने पहले ही प्रदेश में जीनोम  सिक्वेंसिंग के दायरे को बढ़ाते हुए बीएचयू,  केजीएमयू,  सीडीआरआई,  आईजीआईबी, राम मनोहर लोहिया संस्‍थान में जीनोम परीक्षण की व्यवस्था की है.

15 अगस्‍त तक यूपी में 536 ऑक्‍सीजन प्‍लांट होंगें क्रियाशील 

यूपी ऑक्सीजन उपलब्धता में आत्मनिर्भर हो रहा है. प्रदेश में 536 ऑक्‍सीजन प्‍लांट पर तेजी से काम किया जा रहा है जिसमें से अब तक  146 ऑक्सीजन प्लांट प्रदेश में क्रियाशील हो चुके हैं. प्रदेश में ऑक्सीजन जेनरेटर के जरिए 15 फीसदी ऑक्सीजन की 3300 बेडों पर आपूर्ति हो रही है. विभिन्न औद्योगिक समूहों की ओर से ऑक्सीजन प्लांट, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्‍ध कराने में  मदद की गई है. अनेक औद्योगिक समूहों व इकाइयों ने ‘हेल्थ एटीएम’ उपलब्ध कराने के लिए आगे आए हैं. इन अत्याधुनिक मशीनों के जरिए से लोग बॉडी मास इंडेक्स, ब्लड प्रेशर , मेटाबॉलिक ऐज, बॉडी फैट, हाईड्रेशन, पल्स रेट, हाइट, मसल मास, शरीर का तापमान, शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा, वजन सहित कई पैरामीटर की जांच कर सकते हैं.

जनसंख्या संतुलन के लिए समुदाय केंद्रित कार्यक्रमों की है जरूरत: सीएम योगी

करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में जनसंख्या स्थिरीकरण की जरूरतों को देखते हुए, राज्य सरकार नई जनसंख्या नीति घोषित करने वाली है. वर्ष 2021-30 की अवधि के लिए प्रस्तावित नीति के माध्यम से एक ओर जहां परिवार नियोजन कार्यक्रम के अंतर्गत जारी गर्भ निरोधक उपायों की सुलभता को बढ़ाया जाना और सुरक्षित गर्भपात की समुचित व्यवस्था देने की कोशिश होगी, वहीं, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं के माध्यम से नवजात मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर को कम करने, नपुंसकता/बांझपन की समस्या के सुलभ समाधान उपलब्ध कराते हुए जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयास भी किए जाएंगे. नवीन नीति में एक अहम बिंदु 11 से 19 वर्ष के किशोरों के पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य के बेहतर प्रबंधन के अलावा, बुजुर्गों की देखभाल के लिए व्यापक व्यवस्था करना भी है. 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नवीन जनसंख्या नीति 2021-30 जारी करेंगे.

गुरुवार को लोकभवन में नवीन जनसंख्या नीति 2021-30 के संबंध में प्रस्तुतिकरण का अवलोकन करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि, आबादी विस्तार के लिए गरीबी और अशिक्षा बड़ा कारक है. कतिपय समुदाय में भी जनसंख्या को लेकर जागरूकता का अभाव है. ऐसे में समुदाय केंद्रित जागरूकता प्रयास की जरूरत है. प्रदेश की निवर्तमान जनसंख्या नीति 2000-16 की अवधि समाप्त हो चुकी है. अब नई नीति समय की मांग है.

प्रस्तुतिकरण के अवलोकन करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए जागरूकता और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ सभी जरूरी प्रयास किए जाएं.जागरूकता प्रयासों के क्रम में उन्होंने स्कूलों में “हेल्थ क्लब” बनाये जाने के निर्देश भी दिए. साथ ही, डिजिटल हेल्थ मिशन की भावनाओं के अनुरूप नवजातों, किशोरों और वृद्धजनों की डिजिटल ट्रैकिंग की व्यवस्था के भी निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि नई नीति तैयार करते हुए सभी समुदायों में जनसांख्यकीय संतुलन बनाये रखने, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाओं की सहज उपलब्धता, समुचित पोषण के माध्यम से मातृ-शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर तक लाने का प्रयास होना चाहिए. नई नीति के उद्देश्यों में सतत विकास लक्ष्य के भावना निहित हो.

इससे पहले अपर मुख्य सचिव चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, अमित मोहन प्रसाद ने मुख्यमंत्री को बताया कि प्रस्तावित जनसंख्या नीति प्रदेश में एनएफएचएस-04 सहित अनेक रिपोर्ट के अध्ययन के उपरांत उपरांत तैयार की जा रही है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-05 की रिपोर्ट जल्द ही जारी होने वाली है.  नवीन नीति जनसंख्या स्थिरीकरण के प्रयासों को तेज करने वाली होगी. इसमें 2026 और 2030 तक के लिए दो चरणों में अलग-अलग मानकों पर केंद्रित लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं.

Yeh Hai Mohabbatein की Shireen Mirza जयपुर में इस दिन करेंगी निकाह

कोरोना काल में बहुत से ऐसे टीवी सितारे हैं जो शादी के बंधन में बंध चुके है. अपने मन से कोरोना का डर भूलाकर नई जिंदगी की शुरुआत कर रहे हैं. हाल ही में एक्टर विक्रम सिंह चौहान भी शादी के बंधन में बंधे हैं, ऐसे में अब खबर ये आ रही है सीरियल ये है मोहब्बते में नजर आ चुकी अदाकारा शिरीन मिर्जा जल्द शादी के बंधन में बंधने वाली हैं.

जुलाई में अपने बॉयफ्रेंड हसन सरताज संग शादी करने वाली हैं. एक  वेब पोर्टल ने खुलासा किया है कि वह 16 जुलाई को जयपुर में शादी के बंधन में बंधेगी. जयपुर में हसन सरताज औऱ शिरीन अपने परिवार की मौजूदगी में शादी के बंधन में बंधने वाले हैं.

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हालांकि शिरीन ने इस विषय में अभी तक कुछ भी खुलकर नहीं कहा है कि वह शादी कब करने जा रही है. बता दें कि हसन सरताज और शिरीन एक -दूसरे को लंबे समय से डेट कर रहे थें. शिरीन अक्सर अपने बॉयफ्रेंड के साथ की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं.

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शिरीन और सरताज काफी ज्यादा समय एक साथ बीताते नजर आते हैं. पिछले साल वेलेंटाइन डे के मौके पर हसन ने शिरीन को प्रपोज किया था.

इस बात का खुलासा शिरीन ने खुद अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर किया था, जहां पर लोग लगातार उन्हें बधाइयां दे रहे थे.

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शिरीन ने बड़े ही शानदार तरीके से इस बात का खुलासा किया था कि उन्होंने सरताज के साथ सगाई कर ली है. दोनों की जोड़ी को सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा पसंद किया जाता है. फैंस इन्हें खूब सारा प्यार देते नजर आते हैं.

Rahul Vaidya ने अब तक किसी को नहीं भेजा शादी का कार्ड, इंटरव्यू में किया खुलासा

खतरों के खिलाड़ी 11 स्टार  राहुल वैद्य और दिशा परमार के लिए जुलाई का महीना बेहद खास होने वाला है. आने वाले 16 जुलाई को दोनों शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. कुछ वक्त पहले ही राहुल वैद्य ने इस बात का खुलासा  अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर किया है.

जिसके बाद से फैंस लगातार उन्हें बधाईयां दे रहे हैं. राहुल और दिशा की शादी में इनके परिवार के सदस्य और कुछ करीबी रिश्तेदार के अलावा इनके कुछ गिने चुने दोस्त शामिल होंगे. राहुल वैद्य के दोस्त अली गोनी ने अभी से शादी की तैयारियां शुरू कर दी है.

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वो बात अलग है कि राहुल वैद्य के पास इस समय बिल्कुल भी फुर्सत नहीं है इनकी बहुत सारी चीजें अभी तक शादी कि तैयारी की पूरी नहीं हुई है. इस बात का खुलासा खुद राहुल वैद्य ने किया है कि शादी में अब सिर्फ 1 सप्ताह ही बचे हैं लेकिन अभी तक मैंने किसी को शादी का कर्ड भी नहीं भेजा है.

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राहुल ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि मैं इन दिनों काफी ज्यादा नर्वस हूं और मुुझे चिडचिड़ापन भी महसूस हो रहा है. मेरे शादी का दिन आने को है औऱ मैं अभी तक मेहमानों को बुला नहीं पाया हूं. ये दिन इतनी जल्दी आ जाएगा मैंने ये सोचा भी नहीं था.

आगे राहुल ने कहा कि इस समय घर पर डांस रिहर्सल चल रही है, मेरे परिवार के लोग और बाकी अन्य लोग डांस रिहर्सल में व्यस्त हैं. मैंने डेकोरेशन का भी अभी फाइनल नहीं किया है. मुझे ऐसा लग रहा है कि दिशा और मुझे डींस टीशर्ट में शादी न करनी पड़ जाए.

खैर फैंस को तो 16 जुलाई का इंतजार है जिस दिन राहुल और दिशा दुल्हा- दुल्हन के जोड़े में नजर आएंगे.

Coeliac Disease: गेहूं से एलर्जी, एक गुमनाम बीमारी

दिल्ली के रहने वाले कुशाल की उम्र 11 वर्ष है लेकिन वह अपने क्लास में सब से छोटा दिखता है. कुशाल की मां को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? कुशाल की मां ने बताया कि कुशाल जब 1-2 साल का था तब से ही लग रहा था कि इस का विकास नहीं हो रहा है, कुछ भी खाता है तो पेटदर्द की शिकायत बताता है, बारबार दस्त आते हैं. वह कुशाल को ले कर डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने उसे चैक किया और दवा दे दी. दवा से 1-2 दिन आराम तो मिल जाता था पर फिर से वही परेशानी. समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.  दूसरे डाक्टर को दिखाया, फिर तीसरे, इस तरह डाक्टर बदलती रही. 8 साल तक यही सिलसिला चलता रहा. फिर एक डाक्टर ने एंटीटीटीजीआईजीए नामक टैस्ट लिखा. जब इस की रिपोर्ट आई तो पता चला कि कुशाल को गेहूं से एलर्जी है. अब कुशाल ने गेहूं से दूरी बना ली है तो इस परेशानी से दूर है.

यही समस्या 8 वर्षीय राघव निर्माण की भी है. दिल्ली के गांधीनगर में रहने वाले राघव की मां पूनम ने बताया कि पहले 5 वर्ष तक तो हमें पता ही नहीं चला, 5 वर्ष तक तो राघव ठीक रहा. पर उसे दस्त की समस्या शुरू हो गई. फिर उसे डाक्टर के पास ले गई. डाक्टर ने दवा दे दी लेकिन उस से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. उस के बाद राघव ने पेटदर्द की शिकायत की, फिर उस ने खाना छोड़ दिया. बारबार डाक्टर को दिखाने के बाद भी कुछ पता नहीं चल पा रहा था. डाक्टर बदलती रही पर समस्या ज्यों की त्यों. तब एक डाक्टर ने एंटीटीटीजीआईजीए नामक टैस्ट लिखा. जब उस की रिपोर्ट आई तो पता चला कि राघव को गेहूं से एलर्जी है यानी वह सीलियक रोग से ग्रस्त था. अब वे राघव को कोई भी ऐसा पदार्थ नहीं देती जिस में गेहूं हो.

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दरअसल, यह बीमारी एक प्रोटीन, जिस का नाम ग्लूटेन है, की एलर्जी से होती है. यह प्रोटीन गेहूं, जौ और सफेद वाली राई में पाया जाता है. यह एक गुमनाम बीमारी है. आमतौर पर यह बचपन में देखी और महसूस की जाती है पर इस बीमारी का विस्तार इतना धीमा या मामूली है कि वयस्क होने के बाद भी इस का पता न चलना संभव है. रोग निदान 2 चरणों में होता है. पहला खून की जांच और फिर पुष्टि के लिए आंतरिक बायोप्सी. वर्षों तक यह पकड़ में नहीं आता क्योंकि डाक्टर शुरुआत में इस की जांच लिखते ही नहीं, जबकि यह पनपता रहता है. नतीजा यह होता है कि इस से बच्चों का विकास रुक जाता है. ग्लूटेन की एलर्जी खास कर आंत को प्रभावित करती है. रोग के  लंबे समय तक जारी रहने पर आंतों के कैंसर और लिंफोमा यानी प्रतिरोध प्रणाली के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

क्या खाएं

ग्लूटेनमुक्त भोजन का मतलब गेहूं, जौ और सफेद राई का सूक्ष्म अंश भी भोजन में न हो. गेहूं से बनने वाला आटा, सूजी, मैदा और इन से बनने वाले सभी खाद्यपदार्थ बिलकुल न लें. डबल रोटी, बिस्कुट, पैस्ट्री, समोसे आदि नहीं लेने चाहिए. इस केअलावा बाजार में बहुत सी चीजों को गाढ़ा बनाने के लिए मैदे का इस्तेमाल किया जाता है. मसलन, आइसक्रीम, कुल्फी, टमाटर का सूप, व सौस आदि से बचें. सवाल उठता है कि फिर क्या खाएं. ग्लूटेनमुक्त खाद्यपदार्थ के तहत मक्का, बाजरा, चावल, ज्वार, सभी प्रकार की दालें, बेसन, दूध और दूध से बने सभी पदार्थ, कुट्टू व सिंघाड़े का आटा, हर तरह के फल व सब्जी का इस्तेमाल कर सकते हैं.

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सीनियर कंसल्टैंट व पीडियाट्रीशियन डा. विद्युत भाटिया ने बताया कि भारतीय बाजार में ग्लूटेनफ्री फूड पदार्थ आसानी से उपलब्ध नहीं हैं. इसलिए जिस बच्चे को ह बीमारी है, उस के मातापिता को यह गांठ बांध लेना चाहिए कि घर में ही उस के लिए आटा तैयार करें जिस में गेहूं का एक अंश भी न हो और वही अपने बच्चे को खिलाएं. बच्चों को यह भी समझाएं कि स्कूल में किसी से टिफिन शेयर न करें. बाहर कोई भी पदार्थ न खाएं. दिल्ली के अपोलो अस्पताल के सीनियर पीडियाट्रीशियन डा. अनुपम सिब्बल कहते हैं कि 80 के दशक के उत्तरार्ध तक सीलियक डिजीज को देश में दुलर्भ माना जाता था. कई अध्ययनों से पता चला है कि बड़ी संख्या में लोग इस बीमारी से पीडि़तहैं. इस बीमारी का एकमात्र इलाज है जीवनभर ग्लूटेन मुक्त भोजन करने के निर्देश का पालन किया जाए.

सीलियक सपोर्ट और्गेनाइजेशन के  अध्यक्ष और सीनियर पीडियाट्रीशियन डा. एस के मित्तल ने बताया कि मातापिता को यह पता ही नहीं है कि उन के बच्चे को ग्लूटेन की वजह से परेशानी हो रही है, गेहूं से बने पदार्थ से एलर्जी है. आज बाजार में दर्जनों कंपनियां ग्लूटेनफ्री होने का दावा कर अपने प्रोडक्ट बाजार में बेच रही हैं. उन प्रोडक्ट को खाने के बाद भी ग्लूटेन की मात्रा मरीजों में बढ़ जाती है. इन तमाम कंपनियों के दावे बेकार हैं.

चिंता की बात यह है कि ऐसे फूड प्रोडक्ट की जांच के लिए भारत में कोई लैब नहीं है.

Manohar Kahaniya : प्यार के लिए किया गुनाह

सौजन्या- मनोहर कहानियां

गांव की एक बहुत प्रचलित कहावत है, ‘भूख न देखे रूखा भात, प्यार न जाने जातपात और नींद न देखे
टूटी खाट’. वास्तव में पे्रम जाति और धर्म का बंधन नहीं देखता है. कई बार वह ऊंचनीच और नातेरिश्तों को भी भूल जाता है.ऐसे में प्यार की पगडंडी पर चल कर कभीकभी ऐसे कदम भी उठ जाते हैं, जो अपराध को भी बढ़ावा देने से पीछे नहीं हटते. लखनऊ शहर के रसूलपुर आशिक अली के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमार की कहानी भी कुछ इसी तरह की है.

खुशबू की शहर के ही लालशाह का पुरवा मलौली के रहने वाले विनय यादव के साथ दोस्ती हो गई थी. 21 साल का विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था.लेकिन उन के बीच जातपात की गहरी खाई थी. दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू किसी भी तरह एकदूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे.लेकिन परेशानी यह थी कि उन्हें साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था. अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक सामंजस्य बना हुआ था. दोनों ही मिल कर अपने दिल की बात कर लेते थे.

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इस बात की खबर जब खुशबू के घर वालों को होती तो वे विनय के घर वालों से शिकायत करते, जिस से दोनों परिवारों के बीच तनातनी हो जाती थी. जिसे प्रेमी युगल भी घबरा जाते. खुशबू पर भी मनोज इस बात का दबाव बनाता कि वह विनय से मिलना छोड़ दे.एक दिन खुशबू ने विनय से कहा, ‘‘विनय, तुम अब यह देखो कि हम लोग कैसे एक साथ रह सकते हैं. क्योंकि अब घर में परेशानियां बढ़ने लगी हैं. हमारा तुम्हारा इस तरह मिलना संभव नहीं हो पाएगा. मैं कब तक घर वालों से झगड़ा करती रहूंगी.’’
‘‘खुशबू तुम्हें लगता है कि जैसे मैं कुछ सोचता नहीं. ऐसी बात नहीं है. पर मेरी समझ में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा. पहले तो सिटी में नौकरी कर लेता था. लौकडाउन हुआ तो नौकरी चली गई. अब तो अपने खर्च उठाना और भी मुश्किल हो गया है. अपने पास घर और नौकरी दोनों नहीं होगी तो काम ही नहीं चलेगा.’’ विनय ने खुशबू को अपनी परेशानी से अवगत कराते हुए समझाया.

खुशबू को वह समय याद आ रहा था जब उस की पहली मुलाकात विनय से हुई थी. विनय उसे हर लड़के से अलग लगता था. हमेशा उस का खयाल रखता और बहुत सारी चीजें भी देता रहता था. खुशबू और विनय के बीच जब थोड़ी दोस्ती बढ़ गई तो खुशबू उस के साथ शादी और बाकी जीवन गुजरबसर करने के सपने देखने लगी.खुशबू ने सोचा था कि जब उस के घर परिवार के लोग इस दोस्ती और प्यार को शादी के रिश्ते में बदलने नहीं देंगे तो वह गांव छोड़ कर विनय के साथ शहर चली जाएगी. वहां दोनों साथसाथ रहेंगे. विनय नौकरी करेगा और वह घर को संभालेगी. विनय के वापस आने का इंतजार करेगी.

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ऐसे ही हसीन सपनों में दोनों का समय गुजर रहा था. अब दोनों ही अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलने का इंतजार कर रहे थे.इसी बीच पिछले साल कोरोना महामारी बढ़ने पर लौकडाउन लग गया तो दुकानें, होटल, फैक्ट्री आदि पिछले साल बंद हो गईं, जिस से बहुत सारे लोग घर बैठ गए.शुरुआत में लगा कि 10-20 दिनों में लौकडाउन खत्म जाएगा. उस के बाद बाजार और कामधंधे शुरू हो जाएंगे. लेकिन धीरेधीरे करीब 3 माह का समय बीत गया था. सारा कारोबार चौपट हो चुका था.

3 माह के बाद जब विनय अपने काम पर वापस गया तो उसे बताया गया कि अब औफिस में काम कम हो गया है. लिहाजा अब उस की वहां जरूरत नहीं रह गई.उस के बाद जब विनय ने अपने 3 माह का बकाया वेतन मांगा तो कहा गया कि जब तुम ने काम हीं नहीं किया तो वेतन किस बात का. तुम ने मार्च महीने में 20 दिन काम किया था. उन 20 दिनों का पैसा ले लो और अब नौकरी पर नहीं आना है.विनय का गांव तो लखनऊ से 20-22 किलोमीटर ही दूर था. ऐसे में वह रोज साइकिल और आटो से आताजाता था. खुशबू को साथ रखने की योजना की वजह से उस ने उस समय लखनऊ में एक कमरा किराए पर ले लिया था.

इस का भी 5 हजार रुपए देना पड़ता था. ऐसे में जब वह वहां अपना रखा सामान लेने गया तो मकान मालिक ने 15 हजार रुपए किराए के मांगे. विनय के पास उतना तो नहीं था. उसे 10 हजार औफिस से मिले थे, उसी में से 8 हजार मकान मालिक को दे कर अपना सामान साथ ले आया. कोरोना के बाद शहर से जैसे उस का नाता टूट गया.

कोरोना ने जिस तरह से काम धंधों पर रोक लगाई, उस से विनय और खुशबू जैसे युवाओं के सामने भी अपने भविष्य को ले कर प्रश्नचिह्न लगा दिए. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए.यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा तो सब कुछ पटरी पर आ जाएगा. लेकिन इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा. मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया.

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विनय और खुशबू अपने जीवन को ले कर गंभीर थे. एक दिन विनय ने कहा, ‘‘खुशबू, अगर हमारे पास 15-20 लाख रुपए होते तो हम अपना काम भी शुरू कर लेते और एक रहने की जगह भी बना लेते, जिस से कम से कम हमें किराया तो नहीं देना पड़ता.’’‘‘विनय, पैसे तो मिल सकते हैं. बस सावधानी बरतने की जरूरत है. और यदि हम पकड़े न जाएं तो मदद हो सकती है.’’ खुशबू ने कहा.‘‘तुम रास्ता बताओ. बाकी हम कर लेंगे. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’ विनय ने उत्सुकता दिखाई और खुशबू को पूरा भरोसा दिलाते हुए कहा.

‘‘देखो विनय, मेरे घर में इतने रुपए और जेवर रखे हैं, जिन को मिला कर जितने पैसों की तुम बात कर रहे हो उतने हो जाएंगे. हम लोग एक दिन वह रुपए किसी तरह चोरी कर लें. चोरी होने से यह भी नहीं पता चलेगा कि किस ने यह काम किया है. फिर जब सब काम हो जाएगा, तब हम साथसाथ रहने लगेंगे.’’ खुशबू बोली.खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर या संकोच भी नहीं हुआ.

इधर विनय ने अपने साथी गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में शामिल कर लिया.
खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसेनींद की 8 गोलियां ला कर दीं और कहा कि 4-4 गोलियां काढे़ में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना. जिस से वे रात भर गहरी नींद में सोते रहेंगे.
खुशबू ने 28 मई, 2021 की रात ऐसा ही किया. जब उस के मातापिता गहरी नींद में सो गए तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख के जेवर चोरी कर लिए.
जेवर और रुपए ले कर विनय और शुभम चले गए. सुबह जब खुशबू के पिता मनोज कुमार सो कर उठे तो देखा कि उन की अलमारी टूटी हुई थी और उस में रखी नकदी व जेवर गायब थे.

वह थाना गोसाईंगंज गए. वहां पर उन्होंने यह जानकारी थानाप्रभारी अमरनाथ वर्मा को दी तो थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 457 और 380 आईपीसी के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.लखनऊ के पुलिस कमिशनर धु्रवकांत ठाकुर के निर्देशन में डीसीपी ख्याति गर्ग, एडिशनल डीसीपी (साउथ) पुर्णेंदु सिंह, एसीपी स्वाति चौधरी, इंसपेक्टर गोसाईंगंज अमरनाथ वर्मा ने अपनी टीम के साथ चोरों को पकड़ने का काम शुरू किया.

पुलिस टीम में एसआई जय सिंह, दीपक कुमार पांडेय, विवेक कुमार, फिरोज आलम सिद्दीकी, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल अमीर हमजा, अकबर, सुशील चौहान, अंकित यादव, राजेश कुमार, पूनम शर्मा, मजीत सिंह, सुनील कुमार और रवींद्र कुमार शामिल थे.मोबाइल की काल डिटेल्स में खुशबू और विनय के बीच बातचीत और रात में दोनों की लोकेशन एक होने से पुलिस का शक खुशबू पर गया. पुलिस ने खुशबू से पूछताछ की तो उस ने सच कबूल लिया. खुशबू की बताई बातों के आधार पर पुलिस ने पहले विनय और फिर शुभम को हिरासत में ले लिया. सभी ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

पुलिस ने विनय, खुशबू और शुभम की निशानदेही पर चोरी गए रुपए और जेवर बरामद कर लिए. इस के बाद इन सभी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

Romantic Story :दिल के रिश्ते-भाग 1

फूलपुर गांव के एक तरफ तालाब के किनारे मंदिर था तो दूसरी तरफ ऐसा स्थल जहां साल में एक बार 9 दिनों का मेला लगता था. मंदिर के आगे गांव वालों के खेत शुरू हो जाते थे. खेतों की सीमा जहां खत्म होती थी वहां से शुरू होता था एक विशाल बाग. इस बाग के दूसरी तरफ एक पतली सी नदी बहती थी. आमतौर पर बाग के बीच के खाली मैदान का प्रयोग गांव वाले खलिहान के लिए किया करते थे पर साल में एक बार यहां बहुत बड़ा मेला लगता था. मेले की तैयारी महीनों पहले से होने लगती. मेला घूमने लोग बहुत दूरदूर से आते थे.

आज बरसों बाद पुष्पा मेले में कदम रख रही थी. तब में और आज में बहुत फर्क आ गया था. तब वह खेतों की मेंड़ पर कोसों पैदल चल के सखियों के साथ मेले में घूमती थी. आज तो मेले तक पहुंचने के लिए गाड़ी की सुविधा है. पुष्पा पति व बच्चों के साथ मेला घूमने लगी. थोड़ी देर घूमने के बाद वह बरगद के एक पेड़ के नीचे बैठ गई. पति व बच्चे पहली बार मेला देख रहे थे, सो, वे घूमते रहे.

पुष्पा आराम से पेड़ से पीठ टिका कर जमीन की मुलायम घास पर बैठी थी कि उस की नजर ऊपर पेड़ पर पड़ी. उस ने देखा, पेड़ ने और भी फैलाव ले लिया था, उस की जटाएं जमीन को छू रही थीं. बरगद की कुछ डालें आपस में ऐसी लिपटी हुई थीं जैसे बरसों के बिछड़े प्रेमीयुगल आलिंगनबद्ध हों. पक्षियों के झुंड उन पर आराम कर रहे थे. उस ने अपनी आंखें बंद करनी चाहीं, तभी सामने के पेड़ पर उस की नजर पड़ी जो सूख कर ठूंठ हो गया था. उस की खोह में कबूतरों का एक जोड़ा प्रेम में मशगूल था. उस ने एक लंबी सांस ले कर आंखें बंद कर लीं.

आंखें बंद करते ही उस के सामने एक तसवीर उभरने लगी जो वक्त के साथ धुंधली पड़ गई थी. वह तसवीर किशोर की थी जिस से उस की पहली मुलाकात इसी मेले में हुई थी और आखिरी भी. किशोर की याद आते ही उस से जुड़ी हर बात पुष्पा को याद आने लगी.

उस दिन वह 4 सहेलियों के साथ सुबह ही घर से निकल पड़ी थी ताकि तेज धूप होने से पहले ही सभी मेले में पहुंच जाएं. सुबह के समय मंदमंद चलती ठंडी हवा, आसपास पके हुए गेंहू के खेत और मेला देखने की ललक, बातें करती, हंसतीखिलखिलाती वे कब मेले में पहुंच गईं, उन्हें पता ही न चला.

वे मेला घूमने लगीं. मेले में घूमतेघूमते पुष्पा को लगा कि कोई उस का पीछा कर रहा है. थोड़ी देर तक तो उस ने सोचा कि उस का वहम है पर जब काफी समय गुजर जाने के बाद भी पीछा जारी रहा तब उस ने पीछे मुड़ कर देखा. एक पतलादुबला, गोरा, सुंदर सा युवक उस के पीछेपीछे चल रहा था. उस ने किशोर को कड़ी नजरों से देखा था लेकिन जवाब में किशोर ने हलके से मुसकरा आंखों ही आंखों से अभिवादन किया था. उस का मासूम चेहरा देख कर क्षणभर में ही पुष्पा का गुस्सा जाता रहा. किशोर की आंखों की भाषा पुष्पा के दिल तक पहुंच गई थी. एक अजीब सा एहसास उस के दिल को धड़का गया था. शाम तक किशोर पुष्पा के साथसाथ घूमता रहा बिना किसी बातचीत किए हुए.

पुष्पा जहां जाती, वह उस के पीछेपीछे जाता. पुष्पा को अच्छे से एहसास था इस बात का पर उसे भी न जाने क्यों उस का साथ अच्छा लग रहा था. पूरा दिन घूमने के बाद शाम को वापसी के समय वह अपनी सहेलियों से थोड़ा अलग हट कर चूडि़यों की दुकान पर खड़ी हो गई. इतने में उस ने आ कर भीड़ का फायदा उठाते हुए एक कागज का टुकड़ा पुष्पा की हथेली में पकड़ा दिया. पुष्पा का दिल जोर से धड़क उठा. उस ने उस की आंखों में देखते हुए अपनी मुट्ठी बंद कर ली. दोनों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे से विदा ली और वापस अपनेअपने घर की तरफ चल दिए. पर अकेला कोई भी नहीं था, दोनों ही एकदूसरे के एहसास में बंध गए थे. एकदूसरे के खयालों में खोए दोनों अपनी मंजिल की तरफ बढ़े जा रहे थे.

घर पहुंचतेपहुंचते अंधेरा हो चुका था. सभी सहेलियां अपनेअपने घर चली गईं. मां ने हलकी सी डांट लगाई, ‘कितनी देर कर दी पुष्पी, मेले से थोड़ा पहले नहीं निकल सकती थी? पर तुझे समय का खयाल कहां रहता है, सहेलियों के साथ घूमने को मिल जाए, बस.’ अब पुष्पा कैसे बताती मां को कि सच में उसे समय का खयाल नहीं रहा. उसे तो लग रहा था कि थोड़ी देर और रह जाए मेले में उस अजनबी के साथ. मां कमरे के बाहर चली गईं. पुष्पा ने दरवाजा बंद किया और वह मुड़ातुड़ा कागज का टुकड़ा निकाल कर पढ़ने लगी जिस में लिखा था :

‘मुझे नहीं पता आप का नाम क्या है, जानने की जरूरत भी नहीं समझता, क्योंकि शायद ही हम दोबारा मिल पाएं. पर हां, अगर परिस्थितियों ने साथ दिया तो अगले साल इसी दिन मैं मेले में आप का इंतजार करूंगा. किशोर.’

पत्र पढ़ कर पुष्पा की आंखें न जाने क्यों भीग गईं. उस से तो उस की बात भी नहीं हुई, सिर्फ कुछ घंटों का साथभर था. पर उस के एहसास से वह भीतर तक भर गई थी. ऊपर से उस के शब्दों में एक कशिश थी जिस में वह बंधी जा रही थी. उसे तो यह भी नहीं पता था कि वह किस गांव का है? कौन है? उसी के खयालों में डूबी हुई वह न जाने कब सो गई. सुबह उठ कर उस ने सब से पहले वह पर्चा अपनी डायरी में दबा कर डायरी को बक्से में छिपा दिया.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. पर्चा डायरी में दबा रहा और किशोर का एहसास दिल में दबाए पुष्पा अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी करने लगी.

कभीकभी अकेले में डायरी निकाल कर वह पर्चा पढ़ लेती. अब तक न जाने कितनी बार पढ़ चुकी थी. 12वीं के बाद घर में उस की शादी की चर्चा चलने लगी थी. जब भी वह मांबाबूजी को बात करते सुनती, उसे किशोर की याद आ जाती और उस का दिल रो पड़ता. तब वह खुद ही खुद को समझाती कि  किशोर से उस का क्या नाता है? मेले में ही तो मिला था. न जाने कितने लोग मिलते हैं मेले में. न जाने कौन है. अब वह जाने कहां होगा. मैं क्यों सोचती हूं उस के बारे में. उसे मैं याद हूं भी कि नहीं? उस का एक पर्चा ले कर बैठी हूं मैं. नहीं, अब नहीं सोचूंगी उस के बारे में, कभी नहीं सोचूंगी.

पुष्पा ने अपने मन में सोचा पर यह सब इतना भी आसान न था. उस ने अनजाने में ही अपने दिल के कोरे कागज पर किशोर का नाम लिख लिया था. अब यह नाम मिटाना आसान नहीं था उस के लिए.

देखतेदेखते साल बीत गया और मेले का समय नजदीक आ गया. जैसेजैसे वह दिन नजदीक आ रहा था, पुष्पा के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. उसे किशोर से मिलने की ललक मेले की ओर खींच रही थी.

मेले में जाने की तैयारी हो गईर् थी पुष्पा की. इस साल उस के साथ सिर्फ 2 ही सहेलियां थी, क्योंकि 2 सहेलियों की शादी हो गई थी. इन दोनों की भी शादी तय हो चुकी थी. घर वालों ने भी इजाजत दे दी कि न जाने शादी के बाद फिर कब मेला घूमना नसीब हो इन्हें. तीनों सुबह ही निकल पड़ीं मेले के लिए.

मेले में पहुंचने के बाद दोनों तो अपनी शादी के लिए शृंगार का सामान खरीदने में लग गईं जबकि पुष्पा की निगाहें किसी को ढूंढ़ रही थीं. उस का मेला घूमने में मन नहीं लग रहा था. मन बेचैन था. वह सोचने लगी, ‘पता नहीं उसे याद भी है कि नहीं. बेकार ही मैं परेशान हो रही हूं. इतनी छोटी सी बात उसे क्यों याद होगी? उसे तो मेरा नाम भी नहीं पता.’ पुष्पा को अपनी बेबसी पर रोना आ गया. उसे लगा कि  वह अभी रो देगी.

जल्दीजल्दी वह भीड़ से निकल कर मेले के बाहर बरगद के पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई और अपने रूमाल से चेहरा छिपा कर रो पड़ी. 2 मिनट बाद रूमाल हटा कर उसी से अपना चेहरा साफ करने लगी. पूरा चेहरा आंसुओं से भीग चुका था. दिल दर्द से भरा हुआ था. किसी तरह से उस ने अपने ऊपर काबू किया और जैसे ही वह मुड़ी, सामने किशोर मुसकराता हुआ खड़ा था. अब भला पुष्पा अपने ऊपर काबू कैसे रख पाती. किशोर के प्रेम को पूरे एक साल तक उस ने दिल में ही दबा कर रखा था. इस समय वह अपने को रोक नहीं पाई.

किशोर को सामने पा वह सब भूल कर उस के सीने से लग कर फिर से सिसक पड़ी. ‘ओ किशोर, कहां थे अभी तक, कब से तुम्हें ढूंढ़ रही थी? अब तो निराश हो गई थी. तुम से मिलने की आशा भी छोड़ चुकी थी,’ रोते हुए पुष्पा बोली.

‘मैं भी सुबह से तुम्हें मेले में ढूंढ़ रहा हूं. मुझे लगा तुम सब भूल गई हो और मैं निराश हो कर मेले से बाहर निकल आया. यहां आ कर मैं ने तुम्हें रोते हुए देखा तो सब समझ गया और तुम्हारे पीछे खड़ा हो गया.’

किशोर की बांहें भी पुष्पा की पीठ पर कस गईर् थीं. थोड़ी देर तक दोनों दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में समाए हुए एकदूसरे की धड़कनें गिनते रहे. बरगद की शाखों पर बैठे पक्षी उन के प्रेम के साक्षी थे. उन के सामने के वृक्ष पर पत्तों के झुरमुट से एक कबूतर का जोड़ा आपस में लिपटे हुए उन्हीं दोनों को निहार रहा था. उन को मेले से कुछ लेनादेना नहीं था. दोनों वहीं बैठ गए और एकदूसरे के बारे में जानने की कोशिश करने लगे.

किशोर ने बताया, ‘मेरा इंग्लिश से एमए पूरा हो चुका है और अब नौकरी की तलाश में हूं. ‘तुम क्या कर रही हो?’

‘मेरा इंटर पूरा हो चुका है और घर में शादी की बात चल रही है,’ पुष्पा ने सिर झुका कर जवाब दिया.

बातें करतेकरते कितना समय बीत गया, दोनों को पता नहीं चला. बरगद के पेड़ पर पक्षियों का कलरव सुन कर जैसे वे होश में आ गए. फिर से एक बार बिछड़ने का समय आ गया था. जुदा होने के एहसास से ही पुष्पा की आंखें फिर से भीग गईं. तब किशोर ने उस के आंसू पोंछते हुए समझाया, ‘पुष्पा, अगर समय ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे. हम एकदूसरे की जिंदगी में तो शामिल नहीं हो सकते पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे. मैं जिंदगीभर तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा, शायद तुम भी.’

किशोर चला गया और पुष्पा भी भारी कदमों से अपने को घसीटती हुई घर आ गई थी. उस समय लड़का या लड़की किसी को भी इतनी इजाजत नहीं थी कि वह अपने दिल की बात अपने घर वालों को बता सके, न ही इतनी छूट थी कि वे एकदूसरे से मिल सकें. किशोर दूर के गांव में ठाकुर के घर का बेटा था और पुष्पा ब्राह्मण की बेटी, इसलिए ये दोनों कुछ सोच भी नहीं सकते थे.

कुछ दिनों बाद ही अच्छा लड़का देख कर पुष्पा की शादी कर दी गई. वह अपनी घरगृहस्थी में लग गई. धीरेधीरे किशोर की यादें उस के दिल के कोने में परतदरपरत दबती चली गईं.

अब की बार पुष्पा मायके आई तो मेला चल रहा था. आज 25 सालोें बाद वह फिर उसी मेले में आई. दिन भी वही. पति से बच्चों को घुमाने को बोल कर पुष्पा सिरदर्द का बहाना कर मेले के बाहर उसी बरगद के पेड़ के नीचे आ कर घास पर बैठ गई.

इस समय वह सब भूल कर किशोर की याद में डूब गईर् और अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई. दिल पर लिखा हुआ किशोर का नाम जो वक्त के साथ धुंधला पड़ गया था, आज अचानक वह फिर से उभर गया था. वह अपने पर्स से रूमाल निकाल कर अपने आंसू पोंछने लगी पर आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. थोड़ी देर बाद ही सामने कुछ दूर एक गाड़ी आ कर रुकी. पुष्पा अपने आंसू पोंछने में लगी रही, सोचा, होगा कोई, उसे क्या.

गाड़ी ठीक उस के सामने ही रुकी थी. सो, न चाहते हुए भी उस की नजर उस पर पड़ रही थी. उस ने देखा गाड़ी में से एक लंबा सा आदमी फ्रैंचकट दाढ़ी में आंखों पर काला चश्मा लगाए हुए निकल कर उसी की ओर बढ़ा आ रहा है. उसे इस समय किसी का ध्यान नहीं है. वह यह भी भूल गई थी कि उस के पति व बच्चे मेले में हैं. इस समय वह खुद को भी भूल कर सिर्फ किशोर के खयालों में डूबी थी.

बरसों बाद उस की भावनाएं आज सारी परतें खोल कर बाहर आ गई थीं. वह आदमी उस के करीब आता जा रहा था. पुष्पा को लगा वह इसी रास्ते से मेले में जा रहा है. पुष्पा धीरेधीरे सिसकती हुई अपने पर काबू पाने की कोशिश भी करती जा रही थी. इतने में उस के कानों में धीरे से एक आवाज टकराई, ‘‘पुष्पा.’’

वह चौंक पड़ी, नजर उठा कर देखा वही आदमी उस के सामने खड़ा था. पुष्पा हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई. जल्दीजल्दी आंखें साफ कर के बोली, ‘‘जी, कहिए?’’

तब तक उस आदमी ने अपना चश्मा उतार लिया. अब पुष्पा उसे देख कर सिहर उठी, ‘‘कि…शो…र.’’ इस के आगे वह कुछ भी नहीं बोल पाई. आंखें फिर से बरस पड़ीं.

‘‘नहीं पुष्पा, रोना नहीं है. बस, थोड़ी देर मेरी बात सुनो. मैं कभी तुम्हें भूला नहीं. हर साल मैं इसी दिन मेले में आता रहा कि शायद कभी तुम से मुलाकात हो जाए और पूरा यकीन था कि एक न एक दिन तुम जरूर मिलोगी. मैं ने तो तुम्हें पहले ही बोला था कि मैं तुम्हारी जिंदगी में शामिल नहीं हो सकता पर तुम को कभी भी भूल नहीं पाऊंगा और देखो, मैं आज तक भूल नहीं पाया. पर आज के बाद अब कभी मेले में नहीं आऊंगा. एक बार तुम से मिलने की इच्छा थी जो आज पूरी हो गई. अब कोई इच्छा शेष नहीं,’’ कहते हुए किशोर भावुक हो गया.

‘‘कि…शो…र’’ पुष्पा के आंसू नहीं रुक रहे थे.

‘‘हां पुष्पा, तुम से मिलने की चाह मुझे मेले में खींच लाती थी हर साल.’’

इतनी देर में पुष्पा अपने को कुछ संभाल चुकी थी और उसे अपनी हालत का भान हो चुका था. वह धीरे से बोली, ‘‘अकेले आए हो? शादी की या नहीं? बच्चों को क्यों नहीं लाए?’’ पुष्पा ने एकसाथ कई सवाल कर दिए.

‘‘बच्चे होते, तो लाता न. तुम दिल से कभी गई ही नहीं. तो फिर कैसे किसी को अपना बनाता? मैं ने शादी नहीं की. अब इस उम्र में तो सवाल ही नहीं उठता. पर मैं बहुत खुश हूं कि तुम्हारी यादों के सहारे जिंदगी आराम से कट रही है. बस, एक बार तुम्हें देखने की इच्छा थी जो पूरी हो गई. अब कभी तुम्हारे सामने नहीं पडं़ूगा, चलता हूं. तुम्हारे पति आते होंगे.’’ इतना कह कर किशोर पलट कर चल पड़ा.

पुष्पा जैसे नींद से जागी, किशोर के मुंह से पति का नाम सुन कर वह पूरी तरह यथार्थ के धरातल पर आ चुकी थी.

किशोर चला जा रहा था और वह चाह कर भी उसे रोक नहीं पा रही थी. वह उसे पुकारना चाहती थी, कुछ कहना चाहती थी पर कोई अदृश्य शक्ति उसे ऐसा करने से रोक रही थी. वह अपनी जगह से हिल न सकी, न ही उस के कोई बोल फूटे, पर दिल में एक टीस सी उठी और आंखों से न चाहते हुए भी दो बूंद आंसू लुढ़क कर उस के गालों पर लकीर खींचते हुए उस के आंचल में समा गए हमेशा के लिए. वह किशोर को तब तक देखती रही जब तक वह गाड़ी में बैठ कर उस की नजरों से ओझल नहीं हो गया. एक छोटी सी प्रेम कहानी मेले से शुरू हो कर मेल में ही खत्म हो गई थी.

पुष्पा ने अपने दिल के किवाड़ बंद किए और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगी. उस ने वहीं पास के हैंडपंप से पानी खींच कर मुंह धोया और अपनी गाड़ी में आ कर बैठ गई. अतीत से वर्तमान में आ चुकी थी पुष्पा. किशोर की यादों को उस ने अपने दिल की पेटी में सब से नीचे दबा दिया फिर कभी न खोलने के लिए. थोड़ी देर बाद ही सब मेले से वापस घर आ गए और 2 दिनों बाद ही सब शहर के लिए रवाना हो गए.

इस बात को लगभग 2 महीने बीत चुके थे. कभीकभी वह अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती थी किशोर के लिए. वह खुद तो एक बेहद प्यार करने वाले पति और बच्चों के साथ सुखद गृहस्थ जीवन जी रही थी पर किशोर उस के कारण अकेलेपन को गले लगा कर बैठा था. पर करे क्या वह, कुछ समझ नहीं पा रही थी. यों तो पुष्पा ने अपने दिल के भीतर किशोर की यादों को दबा कर किवाड़ बंद कर दिया था, पर कभीकभी पुष्पा को अकेली पा कर वे यादें किवाड़ खटखटा दिया करती थीं. अचानक फोन की घंटी बजी, फोन उठा लिया पुष्पा ने.

‘‘हैलो.’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘वही ना जिन की शादी के एक महीने बाद ही…’’

‘‘ठीक…’’

‘‘अच्छी बात है…’’

‘‘कर देती हूं.’’

अशोक (उस के पति) का फोन था. उन की दूर की बहन आरती आ रही थी. वह प्राइमरी टीचर थी और उस का स्थानांतरण पुष्पा के शहर में हुआ था. कुछ दिन साथ रह कर फिर वह अपने लिए कोई ढंग का कमरा देख लेगी. इस शहर में अशोक और पुष्पा के सिवा और कोईर् भी नहीं था उस का.

अशोक हमेशा उस के बारे में पुष्पा से बातें करते रहते थे. आरती की शादी के एक महीने बाद ही होली के दिन उस के पति की डूब कर मृत्यु हो गई थी. होली खेलने के बाद वे नदी में स्नान करने के लिए गए थे, फिर वापस नहीं आए. उस दिन से आरती कभी ससुराल नहीं गई. कई बार उस ने जाने की जिद की, पर उस के मायके वालों ने जाने नहीं दिया. सभी इस कोशिश में थे कि कोई अच्छा लड़का मिल जाए तो आरती की दोबारा शादी कर दी जाए. चूंकि  वह एक महीने की सुहागिन विधवा थी, इसलिए विवाह में समस्या आ रही थी. दूसरे, वह भी इस के लिए राजी नहीं हो रही थी. अशोक भी उस की शादी के लिए कोशिश कर रहे थे.

पुष्पा ने बच्चों के कमरे में आरती के रहने का इंतजाम कर दिया. आरती लंबी सी भरेपूरे शरीर की खूबसूरत, हिम्मती, हौसलेमंद, स्वभाव की नेक और बच्चों में घुलमिल कर रहने वाली खुशदिल युवती थी. उस के आने से घर में रौनक हो गई थी. बच्चे भी खुश थे.

पता ही नहीं चला कि आरती के आए हुए एक सप्ताह हो गया था. उस दिन शाम को आरती और बच्चे आराम से बालकनी में बैठ कर कैरम खेल रहे थे. इतने में अशोक की गाड़ी की आवाज सुन कर पुष्पा चौंक पड़ी. उस ने सवालिया निगाहों से आरती की तरफ देखा और बोली, ‘‘आज, इतनी जल्दी कैसे?’’

जल्दी से नीचे आ कर उस ने गेट खोला और फिर से वही बात अशोक से बोली, ‘‘आज इतनी जल्दी कैसे?’’

अशोक गाड़ी से नाश्ते का समान निकालते हुए बोले, ‘‘मेरे एक मित्र अभी आ रहे हैं, इसलिए आज जल्दी आना पड़ा. वे जर्नलिस्ट हैं, कल ही उन्हें वापस दिल्ली जाना है, इसीलिए उन्हें आज ही घर पर बुलाना पड़ा. तुम से बताने का समय भी नहीं मिला. जल्दी से आरती के साथ मिल कर तैयारी कर लो. बस, वे आते ही होंगे.’’ बात करते हुए दोनों भीतर आ गए थे.

पुष्पा ने जल्दी से आरती को आवाज दी और खुद ड्राइंगरूम सही करने में जुट गई. इतने में अशोक ने पुष्पा को इशारे से बैडरूम में बुला कर धीरे से कहा, ‘‘ध्यान से देख लेना, मैं चाहता हूं कि किसी तरह आरती का विवाह इस से करा सकूं. वरना इस उम्र में आरती के लिए कोई भी अविवाहित लड़का मिलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है,’’ पुष्पा खुशी से चहक उठी. अशोक ने मुंह पर उंगली रख कर उसे चुप रहने को कहा और गेट की तरफ बढ़ गया.

पुष्पा की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह इन 6-7 दिनों में ही आरती से बहुत घुलमिल गईर् थी. लग ही नहीं रहा था कि वे दोनों पहली बार मिली थीं. एक दोस्ती का रिश्ता बन गया था दोनों में. दोनों ने मिल कर तैयारी कर ली थी.

थोड़ी देर बाद ही सफेद रंग की लंबी सी गाड़ी दरवाजे पर आ कर रुकी. पुष्पा समझ गई, वे आ गए थे जिन की प्रतीक्षा हो रही थी. पुष्पा ने आरती को कोल्डड्रिंक ले कर जाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी और खुद कौफी बनाने की तैयारी में लग गई. वह चाहती थी कि ज्यादा से ज्यादा आरती को मौका मिले उसे देखने का ताकि उसे विवाह के लिए राजी किया जा सके.

थोड़ी देर बाद अशोक ने पुष्पा को आवाज दिया. पुष्पा ने कौफी की ट्रे आरती को दी और खुद दूसरी ट्रे में नमकीन ले कर उस के पीछे चल दी. और जैसे ही पुष्पा ने ट्रे मेज पर रख कर दोनों हाथ जोड़ कर अभिवादन के लिए सामने बैठे व्यक्ति के ऊपर नजर डाली, उस के दिमाग को एक झटका लगा. कुछ यही हाल उस व्यक्ति का भी था. वह भी उसे देख कर सन्न रह गया था. दोनों हाथ जोड़े हैरान से खड़े थे. पर उन के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. उन दोनों को यों खड़े देख कर अशोक ने दोनों का परिचय कराया, ‘‘ये पुष्पा, मेरी पत्नी और ये मेरे मित्र किशोर राजवंशी.’’

पुष्पा का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. समय ने फिर से उन दोनों को एकदूसरे के सामने ला खड़ा किया था. उस ने तो दिल के दरवाजे किशोर के लिए सदा के लिए बंद कर दिए थे, फिर कुदरत ने दोबारा उसे मेरे सामने ला कर क्यों खड़ा कर दिया. मन में एक बेचैनी और उलझन लिए पुष्पा किशोर की आवभगत में लगी रही.

यही हाल किशोर का भी था. जिसे भुलाने की लाख कोशिशों के बाद भी वह उसे भुला नहीं सका था वह फिर से एक बार उस के सामने थी. थोड़ी देर बार किशोर ‘किसी काम के लिए जल्दी जाना है,’ कह कर चला गया. अशोक उसे बाहर तक छोड़ने गए.

पुष्पा के मन में भी हजारों विचार आ रहे थे. अभी 2 महीने पहले ही तो अचानक किशोर से मुलाकात हुई थी तब उस ने सोचा था कि यह आखिरी मुलाकात होगी. पर दोबारा यों अपने ही घर में…उस ने सोचा भी नहीं था. किसी तरह उस ने काम समेटा. उस के सिर में दर्द होने लगा था. वह आ कर अपने कमरे में लेट गईर्. जैसे ही उस ने अपनी आंखें बंद कीं उस के सामने वर्षों पहले की सारी यादें फिर से चलचित्र की भांति घूमने लगीं.

सोचतेसोचते अचानक ही पुष्पा की आंखें चमक उठीं. वह कुछ सोच कर बहुत खुश हो गई.

दोनों ने मिल कर आरती को किशोर से विवाह करने के लिए राजी कर लिया था. उस के घर में भी सब को बता दिया गया था. सभी लोग बहुत खुश थे इस रिश्ते से.

किशोर की बात अब हमेशा घर में होने लगी थी. कई बार पुष्पा ने सोचा कि वह अशोक को सब बता दे, पर न जाने क्या सोच कर हर बार चुप रह जाती. अब जबतब किशोर का फोन भी आने लगा था.

एक दिन अशोक, आरती और बच्चे सभी मिल कर लौन में बैडमिंटन खेल रहे थे. पुष्पा सब्जी काटते हुए टीवी पर सीरियल देख रही थी. इतने में अशोक का मोबाइल बज उठा. पुष्पा ने मोबाइल उठा कर देखा. किशोर का फोन था. उस ने कुछ सोचा, फिर फोन उठा लिया, कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘कैसी हो?’’ उधर से किशोर की गंभीर आवाज आई.

एक बार फिर से पुष्पा का दिल धड़का पर वह अच्छी तरह से जानती थी अपनी हालत. उस ने अपनी आवाज को संभाल कर जवाब दिया, ‘‘मैं अच्छी हूं, तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं भी ठीक हूं पुष्पा, मैं इस जीवन में किसी और से विवाह की सोच भी नहीं सकता. कैसे मना करूं मैं अशोक को? मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि तुम से इस तरह से कभी जीवन में फिर से मुलाकात होगी.’’

‘‘किशोर, हम दोनों जीवन में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. और तुम ने ही तो कहा था कि हम एकदूसरे के जीवन में हों या न हों, पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे, तो अब पीछे क्यों हट रहे हो. मैं अपने पति से बहुत प्रेम करती हूं और अपनी गृहस्थी में बहुत खुश हूं तो तुम क्यों खुद को सजा दे रहे हो. हमारा प्रेम सच्चा था. हम ने एकदूसरे से कुछ नहीं मांगा था, न ही कुछ चाहा था. कुदरत ने एक मौका दिया है, तो हम एक अच्छे मित्र बन कर क्यों नहीं रह सकते. और अब तो हमारा एक रिश्ता भी बनने जा रहा है. क्या तुम्हें आरती में कोई कमी दिख रही है या वह तुम्हारे लायक नहीं?’’ पुष्पा ने कहा.

‘‘नहीं पुष्पा, आरती बहुत अच्छी लड़की है. मैं कैसे कह दूं कि वह मेरे लायक नहीं है. शायद, मैं ही नहीं उस के लायक,’’ कुछ मायूस स्वर में किशोर ने कहा.

‘‘नहीं किशोर, ऐसा मत कहो. तुम से बहुत कम समय के लिए मिली हूं. पर इतना तो समझ ही गई हूं कि तुम एक अच्छे और नेकदिल इंसान हो. आरती भी बहुत अच्छी लड़की है. किशोर, हम इस नए रिश्ते को कुदरत की मरजी मान कर पूरे सम्मान से अपना लेते हैं,’’ पुष्पा ने किशोर को समझाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. मुझे कोई एतराज नहीं इस रिश्ते से,’’ किशोर ने कहा.

यह सुन कर पुष्पा खुश हो गई, बोली, ‘‘किशोर, मैं बहुत खुश हूं. मेरे दिल पर एक बोझ था, वह आज उतर गया. मैं बहुत खुश हूं, किशोर. बहुत खुश. और हां, अब हम कभी एकदूसरे से अलग नहीं होंगे क्योंकि अब हम रिश्तेदार के साथसाथ अच्छे मित्र भी हैं. वादा करो किशोर कि अब तुम इस मित्र का हाथ कभी नहीं छोड़ोंगे. वादा करो किशोर, वादा करो.’’ यह सब बोलते हुए पुष्पा की आवाज कांप गई, आंखों से दो बूंद आंसू उस के गालों पर लुढ़क पड़े.

‘‘वादा रहा, पुष्पा, वादा रहा,’’ कहते हुए किशोर का गला भर्रा गया.

Romantic Story :दिल के रिश्ते-भाग 2

कभीकभी अकेले में डायरी निकाल कर वह पर्चा पढ़ लेती. अब तक न जाने कितनी बार पढ़ चुकी थी. 12वीं के बाद घर में उस की शादी की चर्चा चलने लगी थी. जब भी वह मांबाबूजी को बात करते सुनती, उसे किशोर की याद आ जाती और उस का दिल रो पड़ता. तब वह खुद ही खुद को समझाती कि  किशोर से उस का क्या नाता है? मेले में ही तो मिला था. न जाने कितने लोग मिलते हैं मेले में. न जाने कौन है. अब वह जाने कहां होगा. मैं क्यों सोचती हूं उस के बारे में. उसे मैं याद हूं भी कि नहीं? उस का एक पर्चा ले कर बैठी हूं मैं. नहीं, अब नहीं सोचूंगी उस के बारे में, कभी नहीं सोचूंगी.

पुष्पा ने अपने मन में सोचा पर यह सब इतना भी आसान न था. उस ने अनजाने में ही अपने दिल के कोरे कागज पर किशोर का नाम लिख लिया था. अब यह नाम मिटाना आसान नहीं था उस के लिए.

देखतेदेखते साल बीत गया और मेले का समय नजदीक आ गया. जैसेजैसे वह दिन नजदीक आ रहा था, पुष्पा के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थी. उसे किशोर से मिलने की ललक मेले की ओर खींच रही थी.

मेले में जाने की तैयारी हो गईर् थी पुष्पा की. इस साल उस के साथ सिर्फ 2 ही सहेलियां थी, क्योंकि 2 सहेलियों की शादी हो गई थी. इन दोनों की भी शादी तय हो चुकी थी. घर वालों ने भी इजाजत दे दी कि न जाने शादी के बाद फिर कब मेला घूमना नसीब हो इन्हें. तीनों सुबह ही निकल पड़ीं मेले के लिए.

मेले में पहुंचने के बाद दोनों तो अपनी शादी के लिए शृंगार का सामान खरीदने में लग गईं जबकि पुष्पा की निगाहें किसी को ढूंढ़ रही थीं. उस का मेला घूमने में मन नहीं लग रहा था. मन बेचैन था. वह सोचने लगी, ‘पता नहीं उसे याद भी है कि नहीं. बेकार ही मैं परेशान हो रही हूं. इतनी छोटी सी बात उसे क्यों याद होगी? उसे तो मेरा नाम भी नहीं पता.’ पुष्पा को अपनी बेबसी पर रोना आ गया. उसे लगा कि  वह अभी रो देगी.

जल्दीजल्दी वह भीड़ से निकल कर मेले के बाहर बरगद के पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई और अपने रूमाल से चेहरा छिपा कर रो पड़ी. 2 मिनट बाद रूमाल हटा कर उसी से अपना चेहरा साफ करने लगी. पूरा चेहरा आंसुओं से भीग चुका था. दिल दर्द से भरा हुआ था. किसी तरह से उस ने अपने ऊपर काबू किया और जैसे ही वह मुड़ी, सामने किशोर मुसकराता हुआ खड़ा था. अब भला पुष्पा अपने ऊपर काबू कैसे रख पाती. किशोर के प्रेम को पूरे एक साल तक उस ने दिल में ही दबा कर रखा था. इस समय वह अपने को रोक नहीं पाई.

किशोर को सामने पा वह सब भूल कर उस के सीने से लग कर फिर से सिसक पड़ी. ‘ओ किशोर, कहां थे अभी तक, कब से तुम्हें ढूंढ़ रही थी? अब तो निराश हो गई थी. तुम से मिलने की आशा भी छोड़ चुकी थी,’ रोते हुए पुष्पा बोली.

‘मैं भी सुबह से तुम्हें मेले में ढूंढ़ रहा हूं. मुझे लगा तुम सब भूल गई हो और मैं निराश हो कर मेले से बाहर निकल आया. यहां आ कर मैं ने तुम्हें रोते हुए देखा तो सब समझ गया और तुम्हारे पीछे खड़ा हो गया.’

किशोर की बांहें भी पुष्पा की पीठ पर कस गईर् थीं. थोड़ी देर तक दोनों दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे की बांहों में समाए हुए एकदूसरे की धड़कनें गिनते रहे. बरगद की शाखों पर बैठे पक्षी उन के प्रेम के साक्षी थे. उन के सामने के वृक्ष पर पत्तों के झुरमुट से एक कबूतर का जोड़ा आपस में लिपटे हुए उन्हीं दोनों को निहार रहा था. उन को मेले से कुछ लेनादेना नहीं था. दोनों वहीं बैठ गए और एकदूसरे के बारे में जानने की कोशिश करने लगे.

किशोर ने बताया, ‘मेरा इंग्लिश से एमए पूरा हो चुका है और अब नौकरी की तलाश में हूं. ‘तुम क्या कर रही हो?’

‘मेरा इंटर पूरा हो चुका है और घर में शादी की बात चल रही है,’ पुष्पा ने सिर झुका कर जवाब दिया.

बातें करतेकरते कितना समय बीत गया, दोनों को पता नहीं चला. बरगद के पेड़ पर पक्षियों का कलरव सुन कर जैसे वे होश में आ गए. फिर से एक बार बिछड़ने का समय आ गया था. जुदा होने के एहसास से ही पुष्पा की आंखें फिर से भीग गईं. तब किशोर ने उस के आंसू पोंछते हुए समझाया, ‘पुष्पा, अगर समय ने चाहा तो हम फिर मिलेंगे. हम एकदूसरे की जिंदगी में तो शामिल नहीं हो सकते पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे. मैं जिंदगीभर तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा, शायद तुम भी.’

किशोर चला गया और पुष्पा भी भारी कदमों से अपने को घसीटती हुई घर आ गई थी. उस समय लड़का या लड़की किसी को भी इतनी इजाजत नहीं थी कि वह अपने दिल की बात अपने घर वालों को बता सके, न ही इतनी छूट थी कि वे एकदूसरे से मिल सकें. किशोर दूर के गांव में ठाकुर के घर का बेटा था और पुष्पा ब्राह्मण की बेटी, इसलिए ये दोनों कुछ सोच भी नहीं सकते थे.

कुछ दिनों बाद ही अच्छा लड़का देख कर पुष्पा की शादी कर दी गई. वह अपनी घरगृहस्थी में लग गई. धीरेधीरे किशोर की यादें उस के दिल के कोने में परतदरपरत दबती चली गईं.

अब की बार पुष्पा मायके आई तो मेला चल रहा था. आज 25 सालोें बाद वह फिर उसी मेले में आई. दिन भी वही. पति से बच्चों को घुमाने को बोल कर पुष्पा सिरदर्द का बहाना कर मेले के बाहर उसी बरगद के पेड़ के नीचे आ कर घास पर बैठ गई.

इस समय वह सब भूल कर किशोर की याद में डूब गईर् और अपने आंसुओं को रोक नहीं पाई. दिल पर लिखा हुआ किशोर का नाम जो वक्त के साथ धुंधला पड़ गया था, आज अचानक वह फिर से उभर गया था. वह अपने पर्स से रूमाल निकाल कर अपने आंसू पोंछने लगी पर आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. थोड़ी देर बाद ही सामने कुछ दूर एक गाड़ी आ कर रुकी. पुष्पा अपने आंसू पोंछने में लगी रही, सोचा, होगा कोई, उसे क्या.

गाड़ी ठीक उस के सामने ही रुकी थी. सो, न चाहते हुए भी उस की नजर उस पर पड़ रही थी. उस ने देखा गाड़ी में से एक लंबा सा आदमी फ्रैंचकट दाढ़ी में आंखों पर काला चश्मा लगाए हुए निकल कर उसी की ओर बढ़ा आ रहा है. उसे इस समय किसी का ध्यान नहीं है. वह यह भी भूल गई थी कि उस के पति व बच्चे मेले में हैं. इस समय वह खुद को भी भूल कर सिर्फ किशोर के खयालों में डूबी थी.

Romantic Story: स्नेह मृदुल- कैसा था स्नेहलता और मृदुला के प्यार का अंजाम

जेठ की कड़ी दोपहर में यदि बादल छा जाएं और मूसलाधार बारिश होने लगे तो मौसम के साथसाथ मन भी थिरक उठता है. मौसम का मिजाज भी स्नेहा की तात्कालिक स्थिति से मेल खा रहा था. जब से मृदुल का फोन आया था उस का मनमयूर नाच उठा था. उन दोनों के प्रेम को स्नेहा के परिवार की सहमति तो पहले ही मिल गई थी. इंतजार था तो बस मृदुल के परिवार की सहमति का. इसीलिए स्नेहा ने ही मृदुल को एक आखिरी प्रयास के लिए आगरा भेजा था. उस के मानने की उम्मीद तो काफी कम थी, परंतु स्नेहा मन में किसी तरह का मैल ले कर नवजीवन में कदम नहीं रखना चाहती थी. बस थोड़ी देर पहले ही मृदुल ने अपने घरवालों की रजामंदी की खुशखबरी उसे दी थी. कल सुबह ही मृदुल और उस के मातापिता आने वाले थे.

स्नेहा जब मृदुल से पहली बार मिली थी, तो उस के आत्मविश्वास से भरे निर्भीक व्यक्तित्व ने ही उसे सब से ज्यादा प्रभावित किया था. स्नेहा कालेज के तीसरे वर्ष में थी. अपनी खूबसूरती तथा दमदार व्यक्तित्व की वजह से वह कालेज में काफी लोकप्रिय थी. हालांकि पढ़ाई में वह ज्यादा होशियार नहीं थी, परंतु वादविवाद तथा अन्य रचनात्मक कार्यों में उस का कोई सानी नहीं था. अपनी क्लास से निकल कर स्नेहा कैंटीन की तरफ जा ही रही थी कि एक तरफ से आ रहे शोर को सुन कर रुक गई.

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इंजीनियरिंग कालेज के नए सत्र के पहले दिन कालेज में काफी भीड़ थी. मनाही के बावजूद पुराने विद्यार्थी नए आए विद्यार्थियों की रैगिंग ले रहे थे. काफी तेज आवाज सुन कर स्नेहा उस तरफ मुड़ गई. ‘‘जूनियर हो कर इतनी हिम्मत कि हमें जवाब देती है. इसी वक्त मोगली डांस कर के दिखा वरना हम मोगली की ड्रैस में भी डांस करवा सकते हैं.’’

‘‘हा… हा… हंसी के सम्मिलित स्वर.’’ ‘‘शायद आप को पता नहीं कि दासप्रथा अब खत्म हो गई है. करवा सकने वाले आप हैं कौन? फिर भी अगर आप लोगों ने जबरदस्ती की तो इसी वक्त प्रिंसिपल के पास जा कर आप की शिकायत करूंगी… रैगिंग बंद है शायद इस की भी जानकारी आप को नहीं है.’’

‘‘बिच… लड़कों की तरह कपड़े पहन कर उन की तरह बाल कटवा कर भूल गई है कि तू एक लड़की है और यह भी कि हम तेरे साथ क्याक्या कर सकते हैं.’’ ‘‘जी नहीं, मैं बिलकुल नहीं भूली कि मैं एक लड़की हूं… और आप को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि ताकत दोनों टांगों के बीच क्या है. इस पर निर्भर नहीं करती. चाहिए तो आजमा कर देख लीजिए.’’

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देखती रह गई थी स्नेहा. उस निर्भीक तथा रंगरूप में साधारण होते हुए भी असाधारण लड़की को.

इस से पहले कि वे लड़के उसे कुछ कहते, स्नेहा उन के बीच आ गई और उन लड़कों को आगे कुछ भी कहने अथवा करने से रोक दिया. लड़के द्वितीय वर्ष के थे. स्नेहा के जूनियर, इसलिए उस के मना करने पर वहां से चले गए. ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘मृदुला सिंह पर आप मुझे मृदुल कहें तो सही रहेगा. अब पापा ने बिना पूछे यह नाम रख दिया, तो मैं ने अपनी पसंद से उसे छोटा कर लिया.’’ ‘‘अच्छा…फर्स्ट ईयर.’’

‘‘जी, तभी तो ये लोग मेरी ऐसी की तैसी करने की कोशिश कर रहे थे.’’ पता नहीं क्यों स्नेहा स्वयं को उस के आगे असहज महसूस करने लगी. फिर थोड़ा सा मुसकराई और पलट कर वहां से चली ही थी कि पीछे से आवाज आई, ‘‘आप ने तो अपना नाम बताया ही नहीं…’’

‘‘मैं?’’ ‘‘जी आप… अब इस खूबसूरत चेहरे का कोई तो नाम होगा.’’

‘‘हा… हा…’’ ‘‘मेरा नाम स्नेहलता है… मैं ने अपना नाम स्वयं छोटा नहीं किया… मेरे दोस्त मुझे स्नेहा बुलाते हैं.’’

‘‘मैं आप को क्या बुलाऊं… स्नेह… मैं आप को…’’ ‘‘1 मिनट… मैं तुम्हारी सीनियर हूं… तो तुम मुझे मैम बुलाओगी.’’

‘‘जी, मैडम.’’ ‘‘हा… हा…’’ दोनों एकसाथ हंस पड़ीं.

उम्र तथा क्लास दोनों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों करीब आते चले गए. एक अजनबी डोर उन्हें एकदूसरे से बांध रही थीं. मृदुल आगरा के एक रूढि़वादी परिवार से थी. उस के घर में उस के इस तरह के पहनावे को ले कर उसे कई बातें भी सुननी पड़ती थीं. उस के घर वाले तो उस के इतनी दूर आ कर पढ़ाई करने के भी पक्ष में नहीं थे, परंतु इन सभी स्थितियों को उस ने थोड़े प्यार तथा थोड़ी जिद से अपने पक्ष में कर लिया था. हालांकि इस के लिए उसे एक बहुत लंबी लड़ाई भी लड़नी पड़ी थी, परंतु हारना तो उस ने सीखा ही नहीं था.

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उस के पिता का डेरी का बिजनैस था. बड़े भाई तथा बहन की शादी हो चुकी थी. उस से छोटी उस की एक बहन थी. मृदुल बचपन से एक मेधावी छात्रा रही थी. छोटी क्लास से ही उसे छात्रवृत्ति मिलने लगी थी. इसलिए पिता को सहमत करने में उसे अपने टीचर्स का साथ भी मिला था. इस के इतर स्नेहा मणिपुर के एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार की एकलौती संतान थी. मातापिता की लाडली. उस के पिता इंफाल के मशहूर आभूषण विक्रेता थे. उस के परिवार वाले तथा स्वयं वह भी काफी आधुनिक विचारों वाली थी.

आर्थिक, सामाजिक तथा पारिवारिक भिन्नता भी दोनों को बांट न सकी. दोनों की दोस्ती और गहरी होती चली गई. इतनी सारी भिन्नताओं के बावजूद दोनों में एक बहुत बड़ी समानता थी. पुरुषों की तरफ किसी भी तरह का आकर्षण न होने की. वैसे तो दोनों के कई पुरुष मित्र थे. परंतु सिर्फ मित्र. 1-2 बार स्नेहा ने कुछ मित्रों के करीब जाने की कोशिश भी की थी, परंतु अपनेआप को निर्लिप्त पाया था उस ने. जो आकर्षण एक पुरुष के लिए स्नेहा चाहती थी, वही आकर्षण मृदुल के लिए महसूस करने लगी थी. वह जान गई थी कि वह बाकी लड़कियों जैसी नहीं है. स्नेहा यह भी जान गई थी कि उसे मृदुल से प्रेम हो गया है, परंतु दिल की बात होंठों तक लाने में झिझक रही थी.

नदी की धारा के विपरीत बहने के लिए जिस साहस की आवश्यकता थी, स्नेहा वह बटोर नहीं पा रही. क्या होगा यदि मृदुल ने उसे गलत समझ लिया? वह उस की दोस्ती खोना नहीं चाहती थी. मगर एक दिल मृदुल ने ही उस की सारी समस्या का समाधान कर दिया. क्लास के बाद अकसर दोनों पास के पार्क में चली जाती थीं. उस दिन अचानक ही मृदुल ने उस की तरफ देख कर पूछा, ‘‘तुम मुझ से कुछ कहना चाहती हो स्नेह?’’

‘‘मैं… नहीं… नहीं तो?’’ ‘‘कह दो स्नेह…’’

‘‘मृदुल वह… वह… मुझे लगता है कि मैं…’’ साहस बटोर कर इतना ही कह पाई स्नेहा. ‘‘मैं नहीं स्नेह… हम दोनों एकदूसरे से प्रेम करते हैं.’’

जिस बात को आधुनिक स्नेहा कहने में झिझक रही थी उसी बात को रूढि़वादी सोच में पलीबढ़ी मृदुला ने सहज ही कह दिया. अचंभित रह गई थी स्नेहा.

‘‘मृदुल परंतु… कहीं यह असामान्य तो…’’ ‘‘प्रेम असामान्य अथवा सामान्य नहीं होता. प्रेम तो प्रेम होता है. परंतु क्योंकि हम दोनों ही स्त्री हैं, तो हमारे बीच का प्रेम अनैतिक, अप्राकृतिक तथा असामान्य है. पता है स्नेह प्रकृति कभी भेदभाव नहीं करती. परंतु समाज सदा से करता आया है.

यह समाज इतनी छोटी सी बात क्यों नहीं समझ पाता कि हम भी उन की तरह हंसतेबोलते है, उन की तरह हमारा भी दिल धड़कता है तथा उन की तरह की स्वतंत्र हैं. हां, एक भिन्नता है… उन के मानदंड के हिसाब से हम खरे नहीं उतरते. हमारा हृदय एक पुरुष की जगह स्त्री के लिए धड़कता है.’’ ‘‘वे यह समझ नहीं पाते हैं कि प्रकृति ने ही हमें ऐसा बनाया है.’’

‘‘तुम ने संगम का नाम तो सुना होगा स्नेह?’’ ‘‘हांहां मृदुल… प्रयाग में न?’’

हां, वहां 2 नदियों का मिलन होता है. गंगा तथा यमुना दोनों को ही हमारे देश में स्त्री मानते हैं. उन के साथ एक और नदी सरस्वती भी होती है, जो उन के अभूतपूर्व मिलन की साक्षी होती है. ‘‘आओ अब इसे एक अलग रूप में देखते हैं… 2 नदियां अथवा 2 स्त्रियां… दोनों का संगम… दोनों का एकिकार होना… जब ये पूजनीय हैं, तो 2 स्त्रियों का प्रेम गलत कैसे? कितना विरोधाभाष है’’

‘‘हां मृदुल वह तो है ही. मातापिता के विरोध के बावजूद विवाह करने वाले शिवपार्वती की तो लोग पूजा करते हैं. पर जब स्वयं की बेटी अथवा बेटा अपनी मरजी से विवाह करना चाहे तो उन की हत्या… परिवार की इज्जत के नाम पर.’’ ‘‘हां स्नेह… इस समाज में बलात्कार करने वाले, दंगा करने वाले, खून करने वाले सब सामान्य हैं. इन में से कई तो नेता बन बैठ जाते है, परंतु हम जैसे प्रेम करने वाले अपराधी तथा अमान्य हैं.’’

प्रेम के पथ पर वे आगे बढ़े जरूर परंतु अपने कैरियर पर ध्यान देना कम नहीं किया. वे दोनों ही काफी व्यावहारिक थीं. वे जानती थीं कि किसी भी तरह का निर्णय लेने से पहले उन का आर्थिक रूप से सुदृढ़ होना आवश्यक था. इसलिए दोनों ने एक पल के लिए भी अपना ध्यान अपनी पढ़ाई से हटने नहीं दिया.

कुछ ही सालों में स्नेहा तथा मृदुल दोनों को ही काफी अच्छी नौकरी मिल गई. मृदुल तो अपना लेखन कार्य भी करने लगी थी. कई पत्रपत्रिकाओं में उस की कहानियां, लेख तथा कविताएं छपती थीं. आजकल वह एक उपन्यास पर काम कर रही थी. 9 खूबसूरत साल बीत गए थे. उन दोनों ने अपना एक फ्लैट भी ले लिया था. मुंबई की जिस कालोनी में वे रहती थीं. वहां के ज्यादातर लोगों को उन के बारे में पता था. मुंबई शहर की यही खूबसूरती है, वह सब को बिना भेदभाव के अपना लेता है. कई लोगों द्वारा उन्हें डिनर पर आमंत्रित भी किया गया था.

स्नेहा और मृदुल के सारे दोस्त उन की प्रेम की मिसाल देते थे. परंतु घरवालों की तरफ से अब शादी के लिए दबाव बढ़ने लगा था. इसलिए उन्होंने अपने रिश्ते को एक नाम देने की सोची. हालांकि मृदुल को यह आवश्यक नहीं लगता था, परंतु स्नेहा विवाह करना चाहती थी. इस के बाद दोनों ने अपने परिवार को वस्तुस्थिति से अवगत कराने की सोची. जैसा कि उम्मीद थी, दोनों परिवारों के लिए यह खबर किसी विस्फोट से कम नहीं थी. दोनों परिवार वाले उन की दोस्ती से अवगत थे, परंतु यह सत्य उन्हें नामंजूर था.

स्नेहा के मातापिता को मनाने के लिए वे दोनों साथ गई थीं. कुछ ही दिनों में उन का प्यार स्नेहा के मातापिता को उन के करीब ले आया. उन्होंने उन के रिश्ते को बड़े प्यार से अपना लिया. चलते समय जब मृदुल ने स्नेहा की मां को बड़े प्यार से मणिपुरी में कहा कि नंग की राशि यमलेरे (आप का चेहरा बहुत सुंदर है) तो वे खिलखिला उठी थीं. मृदुल ने स्नेहा के प्यार में टूटीफूटी मणिपुरी भी सीख ली थी. परंतु मृदुल के परिवार वाले काफी नाराज हो गए थे. उन्होंने मृदुल से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे. डेढ़ साल की जद्दोजहद के बाद कुछ महीनों में मृदुल का परिवार उन के रिश्ते को ले कर थोड़ा सकारात्मक लग रहा था. इसलिए एक आखिरी कोशिश करने मृदुल वहां गई थी. अगले हफ्ते वे दोनों शादी करने की सोच रही थीं.

मृदुल के मातापिता ने तो स्नेहा को भी आमंत्रित किया था. स्नेहा जाना भी चाहती थी, परंतु जाने क्या सोच कर मृदुल ने मना कर दिया. फिर मृदुल के समझाने पर स्नेहा मान गई थी. अभी थोड़ी देर पहले मृदुल का फोन आया था और उस ने यह खुशखबरी दी थी. रात बिताना स्नेहा के लिए बहुत कठिन हो रहा था. उसे लग रहा था. जैसे घड़ी जान कर बहुत धीरे चल रही है. अपने स्वर्णिम भविष्य का सपना देखते हुए स्नेहा सो गई.

अगले दिन रविवार था. देर तक सोने वाली स्नेहा सुबह जल्दी उठ गई थी. पूरे घर की सफाई में लगी थी. उस घर की 1-1 चीज स्नेहा और मृदुल की पे्रमस्मृति थी. सुबह से दोपहर हो गई और फिर रात. न तो मृदुल स्वयं आई न ही उस का कोई फोन आया. स्नेहा के बारबार फोन करने पर भी जब मृदुल का फोन नहीं लगा तब स्नेहा ने मृदुल के पापा को फोन किया. उन का फोन भी बंद था.

स्नेहा का दिल किसी अनजानी आशंका से घबराने लगा था. उस के सारे दोस्त आ गए थे. पूरी रात आंखों में निकाल दी थी उन सभी ने. अगले दिन सुबह ही आगरा पुलिस थाने से फोन आया, ‘‘आप की सहेली मृदुला सिंह की मृत्यु छत से गिरने की वजह से हो गई. उन का पूरा परिवार शोककुल है, इसलिए आप को फोन नहीं कर पाए. उन का अंतिम संस्कार आज है. आप आना चाहें तो आ सकती हैं.’’

दर्द से टूट गई स्नेहा. मृत्यु…, मृत्यु…, उस के मृदुल की… नहीं… यह सच नहीं हो सकता ऐसा कैसे हो सकता है… उस ने ही जिद कर के मृदुल को भेजा था. वह तो जाना भी नहीं चाहती थी. स्नेहा को लग रहा था कि सारी गलती उस की है. उस के मम्मीपापा भी इंफाल से आ गए थे. इस दुख की घड़ी में वे अपनी लाडली को कैसे अकेला छोड़ सकते.

2 महीनों तक स्नेहा ने अपनेआप को उस घर में कैद कर लिया था. फिर दोस्तों तथा मम्मीपापा के समझाने पर वह इंफाल जाने को तैयार हो गई. मोबाइल औन कर के अपने औफिस फोन करने की सोच रही थी. उस ने फोन औन किया ही था कि उस की स्क्रीन पर एक वौइस मैसेज आया. स्नेहा यह देख कर चौंक गई, क्योंकि मैसेज मृदुल का था. यह मैसेज उसी दिन का था जिस दिन मृदुल की मृत्यु हुई थी. कांपते हुए हाथों से उस ने मैसेज पर क्लिक किया और मृदुल की आवाज… दर्द में डूबी हुई आवाज…

‘‘स्ने… स्नेह… श… ये… लोग… मुझे मारे देंगे… मैं कोशिश कर रही हूं तुम तक पहुंचने की… पर अगर मैं नहीं आ पाई तो… आगे बढ़ जाना स्नेह… इ ना ननगबु यमना नुंग्सी (मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं).’’ स्नेहा के मातापिता तथा उस के दोस्तों के लिए उसे चुप कराना मुश्किल हो गया था. सब ने सोचा उसे इस माहौल से निकालना जरूरी था. मृदुल के परिवार वाले काफी खतरनाक लोग लग रहे थे. परंतु सब के लाख समझाने पर जब स्नेहा नहीं मानी तो उस की मां वहीं उस के पास रुक गईं. स्नेहा ने मृदुल के हत्यारों को सजा दिलाने की ठान ही थी.

अगले 6 महीने स्नेहा केस के लिए दौड़भाग करती रही. इस लड़ाई में उस के मातापिता तथा दोस्तों का भी सहयोग मिल रहा था. परंतु लड़ाई बहुत कठिन तथा लंबी थी. उस रात स्नेहा को नींद नहीं आ रही थी. कौफी बना कर मृदुल के लिखने वाली टेबल पर बैठ गई. जब भी उसे मृदुल की बहुत याद आती वह वहां बैठ जाती थी. अचानक उस का हाथ मेज की दराज पर चला गया. दराज खुलते ही मृदुल का अधूरा उपन्यास उस के सामने था, जिसे वह बिलकुल भूल गई थी. उफ मृदुल ने तो एक दूसरा काम भी उस के लिए छोड़ा है. यह उपन्यास उसे ही तो पूरा करना होगा.

बड़े प्रेम से स्नेहा ने उपन्यास के शीर्षक को चूमा… स्नेह मृदुल शीर्षक के नीचे कुछ पंक्तियां लिखी थीं: ‘‘स्नेह की डोर में बंधे… स्नेह मृदुल,

मृदुल, कोमल, कंचन है प्रेम जिन का वह स्नेह मृदुल, संगम जिन का मिल पाना भी है कठिन, वह स्नेह मृदुल, जिन का प्रेम है परिमल वह स्नेह मृदुल…, स्नेह मृदुल… स्नेह मृदुल.’’

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