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सुधीर का पत्र न जाने मैं ने कितनी बार पढ़ा होगा. हर बार एक सुखद सुकून का एहसास हो रहा था. फिर अपने वतन से आए पत्र की महक कुछ अलग ही होती है.

भारत से दूर अमेरिका में बसे मुझे करीब 3 साल हो गए. पत्र पढ़ने के बाद मुझे एक साल पहले की घटना याद आ गई जब मैं विवाह के बाद पहली बार भारत अपने पीहर गई थी. सप्ताहभर तो लोगों से मिलनाजुलना ही चलता रहा. रिश्तेदार मुझ से मिलने आते, पर मुझे सादे लिबास में देख कर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते, ‘अरे, तुम तो पहले जैसी ही हो.’

तमाम रिश्तेदारों को आश्चर्य होता कि विदेश जाने के बाद भी मुझ में फर्क क्यों नहीं आया. मैं उन की बातों पर हंस पड़ती, क्या विदेश जाने से अपनी सभ्यता को कोई भूल जाता है. जहां जन्म हुआ हो, वहां के संस्कार तो कभी मिट ही नहीं सकते. अपनी मिट्टी की महक मेरे मन में इतनी अधिक समाई हुई थी कि अमेरिका में रहते हुए भी कभी भारत को पलभर भी न भुला पाई.

जब मेलमुलाकातों का सिलसिला कुछ कम हुआ तो एक शाम मैं छत पर टहलने चली गई. हर घर को मैं बड़े गौर से देख रही थी, कहीं कुछ बदलाव नहीं हुआ था. तभी मैं सामने के घर से एक अपरिचित महिला को कपड़े उतारते हुए देखने लगी. इतने में मां भी छत पर आ गईं. मैं उस महिला को देखती हुई उन से पूछ बैठी, ‘सुरेशजी के घर में मेहमान आए हैं क्या?’

‘अब तुम तो 2 साल बाद लौटी हो. तुम्हें इधर की क्या खबर?’ मां कपड़े उतारती हुई बोलीं, ‘सुरेशजी तो सालभर पहले ही यह मकान खाली कर चुके हैं. नए लोग आ बसे हैं. इन की लड़की सुमन हर रोज शीबा के पास आती है. शीबा की अच्छी दोस्ती है. रोज शाम को दोनों मिलती हैं. कभी वह आ जाती है तो कभी शीबा उस के घर चली जाती है,’ फिर वे मेरी ओर देख कर बोलीं, ‘अब नीचे चलो, मैं चाय बना देती हूं.’

‘थोड़ी देर में आती हूं,’ कहते हुए मैं छत पर टहलने लगी.

शीबा मेरी छोटी बहन का नाम है, उसी ने मेरा सुमन से परिचय कराया था. मेरी दृष्टि उस औरत पर ही टिकी रही. उस की उम्र 37-38 वर्ष के करीब होगी, पर सुंदरता अभी भी लाजवाब थी. देखने में अपनी उम्र से वह काफी छोटी लग रही थी. मैं तो उस की लड़की को नजर में रख कर अनुमान लगा रही थी कि जब उस की बेटी बीए में पढ़ रही है तो उस की उम्र यही होनी चाहिए. शायद यह औरत विधवा थी, तभी तो न माथे पर बिंदिया थी, न मांग में सिंदूर और न ही गले में मंगलसूत्र.

तभी पक्षियों का एक झुंड मेरे ऊपर से गुजरा. सुबह के थकेहारे पक्षी अपनेअपने घोंसलों की ओर जा रहे थे. आसमान साफ नजर आ रहा था. तभी मैं ने देखा, एक विमान धुएं की लकीर छोड़ता उड़ा जा रहा है. बच्चे अपनीअपनी पतंगों को वापस खींच रहे थे. सूर्य भी धीरेधीरे डूबता जा रहा था.

मां की आवाज सुन कर मैं सीढि़यां उतरने लगी. नीचे हाल में शीबा और सुमन टीवी देखते हुए पकौड़े खा रही थीं. मैं सुमन की ओर देखते हुए बोली, ‘तुम्हारी मां बहुत खूबसूरत हैं.’

‘हां, हैं, तो,’ सुमन ने बोझिल स्वर में कहा.

थोड़ी देर सुमन बैठी रही. शीबा की बातों का भी वह अनमने ढंग से उत्तर देती रही. कुछ क्षणों के बाद वह शीबा से बोली, ‘मैं घर जा रही हूं.’

शीबा ने उसे रोकने की कोशिश न की. उस के जाने के बाद मैं शीबा से पूछ बैठी, ‘क्या बात है, सुमन बुझीबुझी सी क्यों हो गई?’

‘तुम ने उस का मूड जो खराब कर दिया,’ शीबा ने उत्तर दिया.

‘मैं ने क्या कहा? मैं ने तो उस की मां की तारीफ ही की थी.’

‘तभी तो…’

‘क्या मतलब? अपनी मां की तारीफ से भी कोईर् नाराज होता है क्या?’

‘तुम अगर मां को कुछ नहीं बताओ तो मैं उस की मां के बारे में कुछ बताऊं,’ शीबा मेरे पास आ कर फुसफुसाते हुए बोली.

‘हांहां, बोलो,’ मैं अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पा रही थी.

‘दरअसल, उस की मां का किसी से चक्कर है,’ शीबा हौले से बोली, ‘तुम मां को मत बताना, वरना वे मुझे सुमन से मिलने नहीं देंगी.’

‘मैं कुछ नहीं बताऊंगी. बेफिक्र रहो. पर यह बेसिरपैर की बातें मेरे सामने मत किया करो,’ मैं नाराज होते हुए बोली.

‘मैं सच कह रही हूं. सुमन ने खुद मुझे बताया था.’

‘अच्छा, क्या बताया था?’

‘यही कि उस की मां जब मंदिर जाती हैं तो 2 घंटे तक वापस नहीं आतीं और एक अधेड़ व्यक्ति से बातें करती रहती हैं.’

‘तुम ने कभी देखा है?’

‘मैं ने तो नहीं देखा, पर वही बता रही थी.’

‘और कौनकौन हैं उस के घर में?’

‘एक भाई है, जिस की शादी हो चुकी है. सब इसी घर में साथ रहते हैं.’

फिर मैं ने और अधिक बात बढ़ाना उचित न समझा. सोचा, हर घर में कुछ न कुछ घटित होता ही रहता है.

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