लेखिका-रेणु गुप्ता

आज सुबह मैं ऑफिस के लिए एक  प्रेज़ेंटेशन तैयार करने के लिए लैपटॉप पर बैठी ही थी, कि मां ने चिड़चिड़ाते  हुए मुझ पर चिल्लाना शुरू कर दिया, "इतनी उमर हो गई है. कल को शादी करके अपने घर जाएगी, लेकिन अकल कौड़ी  भर नहीं आई है. उठते ही लैपटॉप पर बैठ जाती है, मां चाहे जिए या मरे.   मेरी तो कोई परवाह ही नहीं, दिनभर रसोई में लगी रहती हूं, यह नहीं कि थोड़ा मेरा हाथ बंटा दे...,"

मां का धाराप्रवाह भाषण जारी था, जिसे देखकर मैं लैपटॉप से उठकर मां के पास गई, और मैंने उनके कंधों पर हाथ रखते हुए उनसे बेहद ममत्व  से पूछा, "मां क्या बात है? क्या आपकी तबीयत ठीक नहीं," और इतना कहते ही मां  की आंखों में आंसू उमड़ आए, और वह बोलीं, "हां बेटा, कुछ दिनों से तबीयत ठीक नहीं लग रही. सुबह उठते ही तरोताजा महसूस नहीं करती. सुबह से थकान सी लगने  लगती  है. हर समय जी घबराता है."

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"ठीक है मां, मैं अभी डॉक्टर स्मृति से फ़ोन पर बात करती हूं, यह क्यों हो रहा है? अभी कोरोनावायरस की वजह से उनके क्लीनिक तो जा नहीं सकते." मैंने अपनी फैमिली डॉक्टर, डॉ. स्मृति भार्गव, एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी, ऐक्स असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, एसएमएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, जयपुर  से इस बाबत बात की. डॉक्टर स्मृति ने मां से उनके स्वास्थ्य के बारे में सवाल जवाब कर मुझे बताया, कि “उनका रोजाना सुबह नाश्ता नहीं करना ही उनकी इन परेशानियों की जड़ में है.”

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