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हिंदी की महत्ता

हिंदी को अकसर गंवारों व गरीबों की भाषा मान कर दुतकारा जाता है. इस के दोषी खुद हिंदी वाले भी हैं क्योंकि 2021 में भी वे आमतौर पर सूरदास, कबीरदास या रामचंद्र शुक्ल से चिपके रहते है जबकि आधुनिक चुनौतियों को दरी के नीचे छिपा देते हैं. इस के विपरीत, हिंदी में युवाओं की सोच कम नहीं है. इस बाबत दिल्ली विश्वविद्यालय के 2021 के प्रवेश के आंकड़े कुछ रोचक तथ्य प्रस्तुत करते हैं.

कैंपस के कोने में भव्य बिल्डिंग में शिक्षा का प्रसार कर रहे रामजस कालेज को इंग्लिश और इकोनौमिक्स की पहली कटऔफ लिस्ट के तहत 99.75 प्रतिशत  अंक चाहिए थे तो हिंदी के लिए 94 प्रतिशत अंक चाहिए थे. और हिंदी विषय में इतने प्रतिशत अंक लाना आसान नहीं है.

हिंदी पिछड़ी जातियों की भाषा रह गई है, यह भ्रांति गलत है. इस कालेज में जनरल कैटेगरी में हिंदी के लिए 94 प्रतिशत अंक जरूरी थे. ओबीसी को मात्र 2 प्रतिशत की छूट मिल पाई और शिड्यूल कास्ट को 5 प्रतिशत की.

किरोड़ीमल कालेज में तीसरी कटऔफ लिस्ट के तहत जनरल कैटेगरी में हिंदी में प्रवेश 93.5 प्रतिशत अंक वालों को मिला, ओबीसी कैटेगरी में 92.5 प्रतिशत वालों और शिड्यूल कास्ट कैटेगरी में 90 प्रतिशत वालों को. वहीं, हिंदू कालेज, जो देश के अग्रणी 2-3 कालेजों में है, हिंदी औनर्स में जनरल कैटेगरी के तहत 95.50 प्रतिशत वालों, ओबीसी कैटेगरी के 94 प्रतिशत वालों और शिड्यूल कैटेगरी के 83 प्रतिशत अंक वालों को प्रवेश मिला.

इस से यह साफ होता है कि अपने प्रति दुर्भावना के बावजूद हिंदी भाषा वाले छात्र काफी मेहनत कर अच्छे अंक ला रहे हैं और उन का भविष्य इस माहौल में भी सुरक्षित है.

यह नहीं भूलना चाहिए कि इंग्लिश मीडियम के लाखों निजी स्कूल खुल जाने के बाद भी इंग्लिश में न तो कुछ नया खास लिखा जा रहा है, न पढ़ा जहा रहा है. मनोरंजन के क्षेत्र में भारतीय अंग्रेजी मौलिक कुछ नहीं बन पा रहा, न फिल्में, न टीवी धारावाहिक, न संगीत. जो उपन्यास लिखे भी जा रहे हैं उन में से अधिकांश हिंदू संस्कृति का प्रचार करने के लिए लिखे जा रहे हैं जिन में जातिवाद व अंधविश्वासों को बढ़ावा देने के साथसाथ इतिहास व वर्तमान को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है. मौलिक चिंतन वे इंग्लिश वाले भी नहीं कर पा रहे जो साधन संपन्न हैं और हर समय सिर पर ‘हम इंग्लिश वाले हैं’ का अदृश्य मुकुट लगाए घूमते हैं.

दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों की कहानी निश्चित तौर पर पूरे देश में दोहराई जा रही है. कहींकहीं हिंदी की जगह कोई और भारतीय भाषा होगी. यह पक्का है कि जब तक देश के नीतिनिर्धारक भारत की भाषा में नहीं बोलेंगे व नहीं लिखेंगे तब तक वे पिछले दरवाजे से भी इंग्लिश को नहीं ला सकते. भाषा अपनेआप में ज्ञान नहीं है. भाषा तो माध्यम है जिस से ज्ञान बांटा जाता है. इंग्लिश निश्चित रूप से वह भाषा नहीं है जिस से, भारत में, ज्ञान बांटा जा सके.

मैला आंचल : भाग 2

“ऐसा नहीं होगा. घरपरिवार की चिंता पुरुष को भी होती है,’’ कह कर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भर लिया. उन के बांहों की जकड़ किसी सुरक्षा के घेरे से कम नहीं थी. मुझे राहत मिली. ऐसे ही प्यार, मुहब्बत और टकराव के बीच जिंदगी के 30 साल कैसे गुजर गए, पता ही न चला. बेटाबहू बनारस में बस गए. उन्हीें से मिलने मैं कभीकभार आ जाती हूं.

मैं अतीत से लौटी. आगे बढ़ कर उस महिला के पास आई. बदल तो वह काफी गई थी. फिर भी इतमीनान कर लेने में क्या जाता है.‘‘आप कहां की रहने वाली हैं?’’ मेैं ने पूछा. बिना जवाब दिए उस ने नजरें दूसरी तरफ फेर लीं.‘‘मम्मी, कहां आप फिजूल के चक्कर में पड गई हैं?’’ यह देख कर मेरे बेटे को कोफ्त हुई. मेरे बेटे का स्वर उस महिला के कानों पर पड़ा. उस से रहा न गया.

‘‘बेटा, जिंदगी में कुछ भी हो सकता है. एक औरत के साथ तो कुछ ज्यादा ही, क्योंकि वह पुरुषों के समाज में जीती है,’’ इतनी सारगर्भित बात सुन कर मैं सकते में आ गई. निश्चय ही यह महिला किसी भले परिवार की होगी. मेरा विश्वास प्रबल हो गया कि यही शालिनी भाभी होगी?

‘‘आप शिवपाल चाचा की बहू शालिनी तो नहीं?’’ उस ने कोई जवाब नहीं दिया.मैं उस के चेहरे पर बनतेबिगड़ते भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी. उस ने नजरें नीची कर लीं.आसपास खड़े लोगों के लिए मैं जिज्ञासा का विषय बन गई. मेरे बेटेबहू को यह हरकत नागवार लग रही थी. मगर मैं ने शालिनी भाभी को करीब से जाना था. इसलिए मुझे उन का मोह था. नए जमाने के बेटेबहू को इस से क्या लेनादेना. वैसे भी आजकल के बच्चे प्रेक्टिकल हो गए हैं. वे भावनाओं में नहीं बहते. एक हमीं थे, जो अब भी भावनाओं के भंवर में फंसे हुए थे. खयाल जो पुराने थे. उस की चुप्पी से साफ जाहिर हो रहा था कि उस के मन में कुछ चल रहा था. यही कि अपनी पहचान जाहिर करे या चुप्पी साध ले. पहचान जाहिर करने का मतलब पुराने जख्मों को फिर से हरा करना. जो पीड़ादायक होगा.

क्षणांश इंतजारी के बाद जब उस ने अपना मुंह नहीं खोला, तो मैं ने चलने का मन बना लिया.‘‘अगर आप शालिनी भाभी हैं, तो मुझे आप को इस स्थिति में देख कर भारी कष्ट है,’’ कह कर मैं आगे बढ़ गई.‘‘सुनो,’’ मैं 2-3 कदम ही चली कि उस महिला ने आवाज दे कर रोका. मैं सहर्ष पीछे की ओर मुड़ी. मेरा अनुमान सही था. मैं उस के पास आई, तब तक अच्छीखासी भीड़ जमा हो चुकी थी.

‘‘यहां रुकना ठीक नहीं होगा भाभी. मुख्य सड़क पर चलते हैं,’’ भाभी के संबेाधन पर मैं भावविभोर हो गई. उस ने अपना कटोरा उठाया.‘‘कटोरा यहीं छोड़िए. मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.’’‘‘यही मेरी रोजीरोटी है.’’‘‘फिलहाल तो आप इसे यहीं छोड़िए,’’ मेरे आग्रह को उन्होंने मान किया. थोडी दूर मेरी कार खड़ी थी.

’’कहां ले जा रही हो बिट्टो?’’ उन का इतना कहना था कि एक क्षण के लिए मैं अपने बचपन में खो गई. अरसा गुजर गया. अब तो कोई बचा ही नहीं है, जो मुझे इस नाम से पुकारे.कुछ पल के लिए मैं फिर से वही अल्हड़, लापरवाह किशोरी बन गई.‘‘कहां खो गई मम्मी,’’ बेटे के कहने के साथ मैं अतीत से उबरी.

मैं ने बिना देरी किए शालिनी भाभी को कार में बैठने के लिए कहा. वह हिचकिचाई. मैं ने कहा, ‘‘आप के और हमारे बीच एक गहरा रिश्ता है. मैं रिश्तों के आगे धनदौलत को अहमियत नहीं देती. आप मेरी भाभी हैं, इसलिए मेरा आप से सादर आग्रह है कि आप मेरे घर चलें.’’

मेरे आग्रह को वे टाल न सकीं. रास्तेभर हम मूक बने रहे. निश्चय ही शालिनी भाभी सहज नहीं थीं. उन के चेहरे के भाव बता रहे थे. मैं ने चोर नजरों से देखा. कितना बदल चुका था शालिनी भाभी का खूबसूरत चेहरा. उन के चेहरे का रंग फीका पड़ चुका था. आंखों में पहले जैसा नूर नहीं था. होंठों की रंगत गायब थी. कपोलों की लालिमा को मानो ग्रहण लग गया हो. आगे के दांतों ने भी साथ छोड़ दिया था. चेहरे पर आई बेहिसाब सलवटें मानो कितने जख्मों की कहानी कह रहे थे.

यह देख कर मेरा मन करुणा से भर गया. पहली बार जब मैं ने उन्हें देखा था, तो लगा मानो चांद जमीं पर उतर आया हो. इतनी खूबसूरत थीं शालिनी भाभी. रमेश भइया तो उन के पैर की धूल भी नहीं थे. ऊपर वाले की भी लीला अजीब है. किसी की भी जोड़ी परफेक्ट नहीं बनाते. पति सुंदर तो पत्नी असुंदर. पत्नी सुंदर तो पति असुंदर. लगता है, ऊपर वाले ने सोचसमझ कर ही इस दुनिया को बनाया है. फूल के साथ कांटों को भी रचा, ताकि सामंजस्य बना रहे.

घर पहुंच कर सब से पहले मैं ने शालिनी भाभी को नहाने के लिए कहा. नहाधो लेने के बाद मैं ने उन्हें पहनने के लिए एक अच्छी सी साड़ी दी.पहले तो उन्होंने मना किया. मगर मेरी जिद के आगे उन की एक न चली. अब वे कुछ ठीकठाक लग रही थीं.बहू हम दोनों के लिए नाश्ता बनाने में लग गई और मेैं उन का दास्तानेहाल जानने में.‘‘भाभी, अगर आप को एतराज न हो तो मैं आप की बदहाली की वजह जान सकती हूं?’’

मेरे इस प्रश्न पर वे थोड़ी विचलित हुईं. एक उसांस के साथ उन्होंने कहना शुरू किया, ‘‘मेैं ने ससुराल स्वेच्छा से नहीं छोड़ा, बल्कि अपने ससुर की वजह से छोड़ना पड़ा.’’‘‘पर, वे तो कहते थे कि आप बांझ थीं, इसलिए भगा दिया,’’ सुन कर वे उत्तेजित हो गईं. ’’झूठ, एकदम झूठ,” अगले ही पल उन्होंने खुद को संयत किया. ‘‘क्यों हमेशा से हमीं को दोषी ठहराया जाता है? पुरुष तो पुरुष, औरतें भी मर्दों के साथ खड़ी नजर आती हैं.’’

‘‘फिर सच क्या था…?’’ मेरी जिज्ञासा बढ़ी. ‘‘क्या आप को शिवपाल चाचा के चालचलन की जानकारी थी?’’ ‘‘चालचलन में क्या खराबी थी? पत्नी कम उम्र में चल बसी. 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन्होंने आजन्म विधुर रहने का फैसला लिया, तो सिर्फ बच्चों के हित के लिए. पता नहीं, सौतेली मां कैसी होगी. उन के इस फैसले की सारा गांव सराहना करता हेेैै,’’ सुन कर शालिनी भाभी के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुसकान तिर गई.

मैला आंचल : भाग 1

30 साल कम नहीं होते, मानो जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा खत्म हो गया. एक दिन काशी की सीढ़ियों से उतर रही थी कि मेरी नजर एक महिला पर पड़ी. चेहरा जानापहचाना सा लगा. ‘सफेद गंदी सी साड़ी में लिपटी वह महिला कौन हो सकती है?’ मैं ने याददाश्त पर जोर डाला.”मम्मी, क्या सोच रही हो…?’’ मेरे बेटे ने टोका, जो बनारस में ही नौकरी करता था. उसी के आग्रह पर कभीकभार काशी दर्शन के लिए आ जाती थी. वह मुझे शिवपाल चाचा की बहू लगी.

शिवपाल की बहू यानी रमेश भइया की पत्नी. कभी सुना था कि शिवपाल चाचा ने अपनी बहू को घर से निकाल दिया था. वजह क्या थी, यह साफसाफ पता नहीं चला. वैसे भी शिवपाल चाचा के परिवार से हम लोगों की अनबन थी. वह हमारे घर से थोड़ी दूर अपना मकान बनवा कर रहते थे. हम लोग सिर्फ शादीब्याह में ही उन के यहां जाते थे.

रमेश की शादी हुई, तब मेरी उम्र 16 साल की थी. रमेश की बहू का नाम शालिनी था. पट्टेदारों के आपसी झगड़े से मुझे क्या लेनादेना. वह रिश्ते में मेरी भाभी थी. इसलिए जब शालिनी भाभी से मेरी पहली मुलाकात हुई, तब मैं कुछ ज्यादा ही उल्लासित थी. उम्र ही ऐसी थी. शालिनी भाभी घूंघट लिए अपने कमरे में अकेले बैठी थीं. बाहर आंगन में विवाह के गीत गाए जा रहे थे. सारे लोगों की गतिविधियां बाहर थीं. लिहाजा, मुझे मौका मिला. मैं चुपके से उन के कमरे में आई. परदा हटाया. भाभी चौकन्नी हुईं. वे उठने लगीं.‘‘भाभी, आप को उठने की कोई जरूरत नहीं है. मैं आप की सास थोड़े ही हूं. आप की छोटी ननद  लाजो,” हंसते हुए वह उन के पास आई. उन्होंने अपने सिर से घूंघट का पल्लू हलका सा सरकाया. उन का चेहरा देख कर तो मैं ठगी सी रह गई मानो आसमान से चांद उतर आया हो. गोरीचिट्टी, गुलाब की पंखुड़ियों की तरह सुर्ख होंठ, बड़ीबड़ी आंखें, सधे हुए दंतपंक्ति.

मैं उन का रूप देख कर चकित रह गई. सोचने लगी,  कहां से शिवपाल चाचा ऐसी रूपवती बहू खोज लाए. रमेश भइया न इतने गुणी, न देखने लायक और न ज्यादा पढ़ेलिखे. गांव में 50 बीघा जमीन थी, उसी की देखभाल करते. शिवपाल चाचा दबंग थे, इसलिए कोई भी उन के सामने आंख उठाने की भी हिम्मत नहीं रखता था. शालिनी भाभी किस की पसंद थी. किस ने जन्नत की हूर सी बेटी को रमेश के पल्लू से बांध दिया. बहरहाल, यह सब बातें मैं ने गांव वालों से सुनी थीं. आज प्रत्यक्ष देख भी लिया. “भाभी, आज आप बिलकुल चांद जैसी लग रही हैं,’’ यह सुन कर वह शरमा गई. मैं भी  मुसकराए बिना न रह सकी.

सामान्य परिचय के बाद हम दोनों ने एकदूसरे का हालचाल पूछा, फिर अपने घर लोेैट आई. उस के बाद अचानक क्या हुआ, महज 6 महीने बाद शालिनी भाभी अपने मैके चली गई. फिर वे दोबारा लोैट कर नहीं आईं. लोग तरहतरह की बातें करते. अब सच क्या है, यह तो वही जाने. रमेश भइया की दूसरी शादी की खबर ने गांव वालों को चौंका दिया. मेरे बाबूजी सुकेश बोले, “इस शादी में उस के घर जाने की कोई जरूरत नहीं है.’’जाहिर है, बाबूजी के इस फैसले पर किसी ने एतराज नहीं जताया. पहली पत्नी के रहतेे दूसरी शादी के औचित्य पर सवालिया निशान समाजबिरादरी वाले हमेशा से उठाते रहे हैं, जो न्यायोचित भी है.

कहने को हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि हमारे निजी मामले में लोगों को बोलने का हक नहीं है. मगर ऐसा कोई भी अनेैतिक काम, जिस का समाजबिरादरी और परिवार पर बुरा असर पड़े तो उस को पूरा हक जाता है कि उंगलियां उठाए. “शिवपाल चाचा को बताना ही होगा कि वे रमेश भइया की दूसरी शादी क्यों कर रहे हैं?” वहां पर मौजूद एक शख्स ने उठ कर पूछा.

‘‘बांझ थी. इतना खेतजमीन का कौन वारिस होगा, इसलिए दूसरी शादी कर रहे हैं,’’ शिवपाल चाचा ने यही खबर जनमानस में फैला रखी थी. मगर जनमानस इतनी भी मूर्ख नहीं होती कि आप जो कहेंगे वही मान लेगी. सो क्यों कोई ज्यादा माथापच्ची करे. हकीकत एक न एक दिन सब के सामने आ ही जाएगी, यह सोच कर लोग चुप बैठ गए. जिन्हें इस शादी में शरीक होना था, वे गए. जिन्हें नहीं होना था, वे अपनी दुनिया में मगन रहे.

एक दिन मेरी भी शादी हो गई. मैं अपने परिवार में व्यस्त हो गई. पहले अकसर मैके आती थी. पर अब आनाजाना कम कर दिया. ऐसे ही मैं एक बार मैके आई तो मां से शालिनी भाभी का हाल पूछा. मां बोलीं, ‘‘शालिनी का कुछ पता नहीं है. मैके में ही होगी?” मां फिर कुछ सोच कर बोलीं, “रमेश की नई बहू भी खुश नहीं है.’’ ‘‘आप को कैसे पता?’’

‘‘झाड़ूबुहारिन करने वाली बता रही थी. घर में शिवपाल की ही चलती है. मजाल है, जो रमेश उन के खिलाफ एक शब्द बोले. “अगर वह रमेश से कह दे कि अपनी पत्नी से न बोले, तोे वह नहीं बोलता है. बेचारी बहू पर क्या बीतती होगी?’’ मां ने लंबी सांस ली. फिर कुछ रुक कर वे आगे बोलीं, ‘‘स्त्री को पति का ही आसरा होता है. मगर वहां तो पति की जगह शिवपाल ने ले रखी हेै.’’

‘‘ये क्या कह रही हो मां?’’ मेैं किंचित लजाई. ‘‘सुनने में तो यही सब आता हेै,’’ मां के कथन पर और आगे कुछ पूछना मुझे उचित न लगा. अब इस तरह के संबंधों की गहराई में उतरना वह भी मां के जरीए मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं ससुराल आई तो इस का जिक्र अपने पति से किया. वे कहने लगे, ‘‘औरत के मामले में पुरुष का नजरिया एकजैसा होता है. यह अलग बात है कि जिस के पास विवेक, मर्यादा का भान होता हेै, वे दायरे में रहते हैं. ऐसे पुरुषों को शरीफ कहा जाता हेै.”

‘‘क्या आप शरीफ हैं?” कह कर मैं हंसने लगी. ‘‘तुम्हें क्या लगता है…? नहीं हूं?’’ उन्होंने भी दिल्लगी की. ‘‘देखिएजी, बताए देती हूं, अगर आप के बारे में कुछ उलटापुलटा सुनने को मिला तो जहर खा लूंगी,’’ मेरी चेतावनी पर वे मुसकराए. ‘‘झूठी खबर पर भी?’’ ‘‘झूठ क्यों…? आप ऐसे अवसर आने ही न दें.’’

‘‘मेरे औफिस में तमाम महिलाएं काम करती हैं. अब अगर किसी से हंसबोल लें तो तुम क्या सोचोगी?’’ कुछ देर सोच कर वह बोली, ‘‘आप को जो समझ आए करिएगा.’’ मेरी झुंझलाहट साफ झलकने लगी थी. स्त्री ही बदनाम है, त्रियाचरित्र के लिए. मुझे तो लगता है कि इस मामले में स्त्रियों को भी पीछे छोड़ दे पुरुष.

‘‘अनैतिक काम करने वाले हमेशा अंदर से डरे हुए होते हैं. मुंह छुपाते रहते हैं. क्या मैं भी तुम से मुंह छुपाता हूं? ‘‘पुरुषों के लिए क्या कहूं मैं. बाहर क्याक्या करते होंगे, क्या बताएंगे?‘‘ निराश भाव से वह बोली,‘‘आप को मुझे छोड़ कर जिस के पास जाना हो जाओ. मैं नहीं रोकूंगी.’’ यह सुन कर वे जोर से हंस पड़े. वे मेरे करीब आए और बोले, ‘‘रिसिया गई…?” ‘‘क्यों न रिसियाऊं? कल को आप के दिल में कोई जगह बना ले तो मैं क्या करूंगी?”

रिश्तों का कत्ल

सौजन्य- सत्यकथा

जगदेव को इस बात का शक था कि उस के 70 वर्षीय पिता के गायत्री से गलत संबंध हैं. इसी बात को ले कर घर में उपजे विवाद ने ऐसा खतरनाक रूप धारण कर लिया कि…   आजकल के बच्चे यह नहीं समझते कि पिता केवल बच्चों का जन्मदाता ही नहीं होता, बल्कि उन का पालनहार होता है. ऐसे में अगर बेटा पिता का बेरहमी से कत्ल करने के साथ ही साथ उस के गुप्तांगों को भी कुचल दे तो बेरहमी की सीमा का पता लगता है.

यह एक बाप का नहीं, बापबेटे के रिश्ते और भरोेसे का भी कत्ल होता है. ऐसी घटनाएं आजकल तेजी से बढ़ने लगी हैं. लखनऊ जिले के निगोहां थाना क्षेत्र के रंजीत खेड़ा गांव में ऐसी ही घटना ने दिल को झकझोर कर रख दिया है.

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‘‘यह खेती और जमीन मेरी है. इस का मैं मालिक हूं. मैं जिसे चाहूंगा, उसे दूंगा. तुम्हारे कहने से मैं इस को तुम्हें हरगिज नहीं दूंगा.’’ 70 साल के महादेव ने अपने बेटे जगदेव के साथ रोजरोज की लड़ाई से तंग आ कर यह इसलिए कहा कि ऐसी धमकी से बेटे जगदेव के मन में डर बैठेगा. वह पिता की बात मानेगा.

‘‘हमें पता है, तुम ने जमीन बेचने का बयाना ले लिया है. लेकिन इतना सुन लो कि उस में से मेरा हिस्सा मुझे भी चाहिए.’’ महादेव के बडे़ बेटे जगदेव ने पिता को अपना फैसला सुनाते हुए कहा. बयाना वह पैसा होता है, जो जमीन बेचने के लिए अग्रिम धनराशि होती है. इस के बाद जब जमीन खरीदने वाला पूरा पैसा चुका देता है तो जमीन की लिखतपढ़त की जाती है.

जगदेव को यह लग रहा था कि जब बयाने में ही उस का हिस्सा नहीं मिलेगा तो जमीन बिकने पर मिलने वाली रकम में भी उसे हिस्सा नहीं मिलेगा. ऐसे में वह बयाने की रकम से ही हिस्सा लेने की जिद करने लगा. जबकि महादेव जगदेव को हिस्सा नहीं देना चाहता था. जगदेव का अपने पिता के साथ मतभेद रहता था. उसे बारबार यह लगता था कि उस के पिता उस के बजाए छोटे भाईबहनों को अधिक चाहते हैं.

इस के अलावा उसे इस बात की नाराजगी रहती थी कि उस के पिता के संबंध उन्नाव में रहने वाली गायत्री नाम की महिला के साथ थे. जबकि गायत्री और महादेव के ऐेसे कोई संबंध नहीं थे. हमउम्र होेने के कारण दोनों एकदूसरे के साथ खुल कर बातें कर लेते थे. एकदूसरे का सुखदुख बांट लेते थे.

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बेटा जगदेव यह नहीं समझ पा रहा था कि 70 साल की उम्र में उस के पिता से क्या संबंध हो सकते हैं. उसे इस उम्र में भी पिता का किसी औरत से बात करना खराब ही लगता था. उसे सब चरित्रहीन ही दिखते थे.

महादेव सारे पैसे अपने पास रखना चाहते थे. कारण यह था कि उन्हें लगता था कि अगर उन के पास पैसे नहीं होंगे तो कोई भी बुढ़ापे में सहारा नहीं देगा. वैसे महादेव ने अपनी जमीन का ज्यादातर हिस्सा अपने बेटों को दे दिया था. कुछ जमीन ही उस ने अपने पास रखी थी. इस के अलावा थोड़ी सी जमीन वह बेचने की सोच रहा था.

इसी जमीन के टुकड़े के बिकने पर मिले पैसों के कारण विवाद बढ़ गया था. गांव में रहने वाले बूढे़ लोगों के पास जमीन का ही सहारा होता है.  आमतौर पर बूढ़े होते मांबाप की जमीन पर बेटों का कब्जा हो जाता है और बूढे़ बिना किसी आश्रय के जीवन गुजारने को मजबूर हो जाते हैं. जब तक मातापिता जीवित रहते हैं तब तक तो थोड़ाबहुत काम चल भी जाता है, पर दोनों में से कोई एक बचता है तो उस का जीवन कठिन हो जाता है.

घर में बेटे के साथ रोजरोज के झगड़े से तंग आ कर महादेव ने सोचा कि अब वह अपने ही बनाए घर में नहीं रहेगा. महादेव ने अपने खेत में एक कमरा बना रखा था, जहां ट्यूबवैल था. बेटे से रोज के झगडे़ को खत्म करने के लिए वह खेत में बने कमरे में रहने लगा. यह गांव से बाहर सुनसान जगह पर था. उसे यहां मच्छर और जंगली जानवरों का डर रहता था. पर घर में बेटे की गाली और मार खाने से यहां जंगल में अकेले रहने में उसे सुकून महसूस होता था.

महादेव का दूसरा बेटा गया प्रसाद गांव में कम ही रहता था. वह मजदूरी करने शहर ही जाता था. ऐसे में उस का घर के मामलों में दखल कम रहता था. महादेव की दोनों बेटियां श्वेता और बिटाना अपने मांबाप के करीब रहती थीं. उन की भी भाइयों से कम ही बनती थी. ऐसे में परिवार में आपस में कोई सामंजस्य नहीं था.

महादेव लखनऊ जिले के निगोहां थानाक्षेत्र के रंजीत खेड़ा गांव में रहता था. उस की उम्र 70 साल के करीब थी.  महादेव के 2 बेटे जगदेव  प्रसाद और गया प्रसाद और 2 बेटियां श्वेता और बिटाना थीं. सभी बच्चों की शादी हो चुकी थी.  महादेव का उन्नाव आनाजाना था. वहां रहने वाली गायत्री (बदला हुआ नाम) से उस के नजदीकी रिश्ते थे. यह बात बेटे जगदेव को नागवार लगती थी. वह इस बात को ले कर अकसर अपने पिता को ताना मारता रहता था.

इस बात से नाखुश पिता महादेव घर की जगह खेत पर बने कमरे में पत्नी शांति देवी के साथ रहता था. 26 अगस्त, 2021 की रात शांति देवी और महादेव अगलबगल सो रहे थे. शांति देवी को ठीक से नींद नहीं आती थी तो डाक्टर की सलाह पर वह नींद की गोली खा कर सोती थी. ऐसे में उसे अपने आसपास का पता नहीं होता था.

27 अगस्त की सुबह जब वह उठी तो देखा कि उस के बगल में सो रहे महादेव की किसी ने हत्या कर दी है.  खून से लथपथ पति का शव देख कर शांति देवी चीख पड़ी. उस के चिल्लाने की आवाज सुन कर गांव के लोग वहां पहुंच गए.   घटना की सूचना गांव के लोगों ने निगोहां थाने की पुलिस को दी. पुलिस ने महादेव के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद महादेव के बेटे जगदेव की लिखित तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. मामले की सूचना मिलने के बाद एसपी (ग्रामीण) हृदेश कुमार और सीओ निगोहां नईमुल हसन ने हत्या की गुत्थी को सुलझाने के लिए थानाप्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह व एसआई राम समुझ यादव के साथ एक पुलिस टीम का गठन किया.

थानाप्रभारी जितेंद्र प्रताप सिंह हत्या के कुछ दिन पहले ही निगोहां थाने में नई पोस्टिंग पर आए थे. ऐसे में आते ही हत्या की गुत्थी सुलझाने का दायित्व संभालना पड़ा. महादेव की दोनों बेटियों श्वेता और बिटाना का शक भाई के साथ रहने वाली महिला पर था. क्योंकि पिता को बिना शादी के उस का साथ रहना पसंद नहीं था.

पुलिस की टीम ने जब गांव के लोगों और महादेव के घर वालों से अलगअलग बातचीत की तो मामले का हैरतअंगेज खुलासा हुआ. घरपरिवार की शंका से अलग आरोपी सामने आया. पुलिस ने जब गहरी छानबीन की तो पता चला कि महादेव की हत्या उस के बेटे जगदेव ने की है.

पुलिस की पूछताछ में जगदेव ने बताया कि जब पिता ने उसे जमीन में हिस्सा देने से मना किया और जमीन बेचने के लिए जो बयाना लिया था, उस में भी हिस्सा नहीं दिया था.   उसे लगता था कि ऐसा वह किसी के बहकावे में आ कर कर रहे थे. जिस से वह तनाव में रहने लगा. 32 साल के जगदेव ने सोचा कि क्यों न वह अपने पिता का कत्ल कर दे, जिस से रोजरोज का झंझट ही खत्म हो जाए.

जगदेव यह जानता था कि उस की मां नींद की दवा खा कर सो जाती है. उसे अपने आसपास का कुछ पता नहीं रहता था.  26 अगस्त, 2021 की रात करीब ढाई बजे जगदेव अपने पिता के कमरे तक पहुंच गया. वहां मां सो रही थी. पास में ही अलग चारपाई पर पिता महादेव भी सो रहे थे. जगदेव ने सब से पहले पिता के मुंह में कपड़ा ठूंस दिया, जिस से वह आवाज न कर सकें. इस के बाद पत्थर से प्रहार कर के सिर को फोड़ दिया.

पिता जीवित न रह जाएं, इस कारण उस ने पिता के निजी अंगों पर भी प्रहार कर के उन की हत्या कर दी. इस के बाद वह चुपचाप वहां से भाग गया.   सुबह जब उस की मां ने शोर मचाया और गांव के लोग जमा हो गए तो जगदेव भी वहां पंहुचा और उस ने पुलिस को अपने पिता की हत्या की तहरीर दी. उस समय किसी को भी यह शंका नहीं थी कि उस ने ही पिता के साथ ऐसा किया होगा. जगदेव को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

खौफ- भाग 3 : हिना की मां के मन में किस बात का डर था

लेखिका- डा. के रानी 

‘‘तु?ो क्या हो गया है हिना? कैसी बातें कर रही है. शेखर सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’‘‘सोचता है तो सोचने दो. मु?ो किसी की परवा नहीं है,’’ इतना कह कर उस ने बीच के दरवाजे पर कुंडी चढ़ा दी. हिना को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ कहने पर भी मम्मी आंखें मूंदें थीं और उस के इशारे नहीं सम?ा रही थीं. हिना सबकुछ जानते हुए भी चुप थी, इसीलिए उस की हिम्मत ज्यादा बढ़ गई.

बीच का दरवाजा बंद हो जाने से शेखर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. एक बच्चे का पिता होने के बावजूद उस की गंदी नजर अपनी बूआ की बेटी हिना पर पता नहीं कब से लगी थी. अकसर वह उस के लिए गिफ्ट ले आता और उस के साथ खुल कर बातें करता. उसे याद आ रहा था कि वे उसे अजीब तरीके से छूते.

‘‘अगर वह उन के बहकावे में आ जाती तो…’’ यह सोच कर वह सिहर गई. लोकलाज के कारण उसे पता नहीं क्या कुछ ?ोलना पड़ता. मम्मी अपने भतीजे पर कभी शक तक नहीं कर सकीं. अब शेखर को खुद वहां रहना अखरने लगा था. हिना की निगाहों में उठने वाली नफरत को ?ोलने में वह समर्थ नहीं था. उस ने इस बीच कई बार उस से बात करने की कोशिश की. उस के पास आते ही वह चुपचाप वहां से उठ कर चली जाती.

हफ्तेभर बाद शेखर अपने पापा के घर चला गया था. इस घटना से हिना ने महसूस किया कि बाहर वालों से ज्यादा अपने लोग खतरनाक होते हैं. रिश्तों की आड़ में क्या कुछ कर गुजरते हैं, इस का किसी को एहसास तक नहीं होता. वे जानते हैं कि अपनों को बदनामी से बचाने व ?ाठी शान के लिए इस समाज में औरत की आवाज हर हाल में दबा दी जाएगी.

हिना की शादी के 2 साल बाद अनन्या पैदा हुई. उस ने सोच लिया था कि वह अपनी बेटी को दुश्मनों से बचा कर रखेगी. वह बचपन से उसे एक रात के लिए भी किसी रिश्तेदार के घर अकेला न छोड़ती. कई बार बड़े भैया ने कहा भी, लेकिन हिना कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाती. अनन्या को यह बात सम?ा आने लगी थी. वह कई मौकों पर मम्मी का विरोध भी करती. घर पर अकसर मेहमान आते. हिना उन का पूरा खयाल रखती, लेकिन बेटी की सुरक्षा के लिए कोई रिस्क न उठाती.

उस ने गैस्टरूम घर की छत पर अलग से बना रखा था, जिस से उन का वक्तबेवक्त उस के परिवार से कोई संपर्क न रहे. खानापीना खिला कर वह मेहमानों को गैस्टरूम में टिका देती. पता नहीं, उस की अंदर की दहशत ने उसे कितना हिला कर रख दिया था. नजदीकी रिश्तों के प्रति उस की आस्था ही खत्म हो गई थी. उसे लगता, रिश्ते की आड़ में छिपे हुए भेडि़ए कभी भी अपने ऊपर की रिश्ते की चादर सरका कर अपने असल रूप में आ उस की बेटी पर हमला कर सकते हैं.

बहुत देर तक उसे अतीत में तैरते हुए नींद नहीं आ रही थी. अगली सुबह वह समय से उठ गई, लेकिन अनन्या देर तक सोती रही. उस ने उसे उठाना उचित न सम?ा. शादी की रात भी हिना की नजरें शादी की रस्मों के बीच उस पर ही लगी रहीं. रात के 3 बजे फेरे खत्म हो गए और उस के बाद वह अनन्या के साथ कमरे में आ गई.

विदाई के समय सभी भावुक हो गए थे. 8 बजे ईशा की विदाई हो गई. घर सूना हो गया था. दोपहर तक अधिकांश मेहमान जाने लगे थे. सिद्धार्थ उस से और दी से मिलने आया, ‘‘अच्छा बूआ, चलता हूं.’’  ‘‘इतनी जल्दी क्या है? 1-2 दिन और रुक जाते,’’ राशि बोली. ‘‘जिस काम के लिए आए थे, वह पूरा हो गया. घर जा कर पढ़ाई भी करनी है.’’

अनन्या अभी 1-2 दिन और मौसी के पास रुकना चाहती थी, लेकिन मम्मी की वजह से कहने में हिचक रही थी. राशि दी खुद ही बोली, ‘‘ईशा के जाने के बाद घर खाली हो गया है. हिना, अनन्या को कुछ दिन यहां छोड़ दे.’’  ‘‘नहीं दी, इस के पापा नाराज होंगे. हम फिर आ जाएंगे. यहां से अलीगढ़ है ही कितना दूर. जब तुम कहोगी तभी ईशा और दामादजी से मिलने चले आएंगे.’’अगले दिन वह बेटी के साथ घर वापस जा रही थी. अनन्या के मन में कई सवाल थे, लेकिन वह मम्मी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.

हिना जानती थी कि अनन्या मम्मी के व्यवहार से नाखुश है, लेकिन वह मजबूर थी. वह अपनी मम्मी की तरह रिश्तों की छांव में आंख मूंद कर निश्ंिचत हो कर नहीं रह सकती थी. शुक्र था, जवानी में खुद सचेत रहने के कारण वह अपने को बचा पाई थी, नहीं तो उस के साथ कुछ भी बुरा घट सकता था. वह अपनी बेटी को ऐसी परिस्थितियों से दूर रखना चाहती थी.

बाहर वाला कुछ गलत कर बैठे तो उस के विरुद्ध शोर मचाना आसान होता है, लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए कितना हौसला चाहिए, इस की अनन्या कल्पना भी नहीं कर सकती. बेटी चाहे लाख नाराज होती रहे, उसे इस की परवा नहीं. उसे तो केवल भेडि़ए को रोकने की परवा है. अपनेपन की आड़ में वे सबकुछ लूट कर ले जाते हैं और लुटने वाला उन के खिलाफ आवाज तक नहीं उठा पाता. खुद घर वाले उस की आवाज को दबा देते हैं.

‘‘अभी उसे कुछ सम?ाना बेकार है. धीरेधीरे अपने अनुभव से उसे बहुतकुछ पता चल जाएगा. तब उसे अपनी मम्मी की यह बात अच्छे से सम?ा आ जाएगी,’’ यह सोच कर वह थोड़ी आश्वस्त हो गई और अनन्या की नाराजगी को नजरअंदाज कर उस से सहज हो कर बातें करने लगी.

Detoxification: बौडी की डिटॉक्सिफिकेशन भी है जरूरी, जानें क्यों

आधुनिक जीवनशैली, व्यस्त जिंदगी और बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण ने लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित किया है और हमारे शरीर में टौक्सिन की मौजूदगी को बढ़ा दिया है.. आज के समय में हर कोई हैल्दी रहना चाहता है. वैसे नैक्स्ट जैनरेशन के बीच हैल्दी रहने के लिए डिटॉक्सिफिकेशन एक हौट ट्रीटमैंट है. शरीर को सेहतमंद रखने के लिए डाइट कंट्रोल, पर्याप्त पानी, आराम और शुद्ध हवा आवश्यक है. इस में फिजिकल मैंटल और इमोशनल फैक्टर काम करते हैं और इस के लिए जरूरी है डिटॉक्सिफिकेशन. यानी शरीर को चुस्तदुरुस्त और तरोताजा रखने की प्रक्रिया.

कुछ लक्षण हैं जिन पर नजर रख कर आप पहचान सकते हैं कि आप को डिटॉक्सिफिकेशन की जरूरत है, लेकिन इस से पहले जानें कि डिटॉक्सिफिकेशन है क्या?

इस बारे में बता रही हैं. फोर्टिस ग्रुप औफ हौस्पिटल, नई दिल्ली में वैलनैस एंड न्यूट्रीशियन कंसलटैंट डा. सिमरन सैनी.

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डिटॉक्सिफिकेशन है क्या

डिटॉक्सिफिकेशन आप को बीमारियों से बचाता है, यह शरीर के आंतरिक तंत्र को भोजन में मौजूद विषैले और दूसरे हानिकारक रसायनों से मुक्त करता है और आप के स्वास्थ्य को बनाए रखने की क्षमता को पुर्नजीवित करता है साथ ही बौडी के हीलिंग सिस्टम को बेहतर बनाता है.

डिटॉक्सिफिकेशन के लक्षण

  • पाचन तंत्र संबंधी समस्या
  • जब सिरदर्द, बदन दर्द, थकान और कमजोरी महसूस हो.
  • हार्मोन संबंधी (मूड स्विंग)
  • किसी काम में ध्यान न लगना
  • वजन नियंत्रण में समस्या होना

यह कब होता है

जब अनहेल्दी डाइट, कब्ज, तनाव, दूषित पानी पीने, वातावरण में मौजूद विषैले तत्त्व श्वास के साथ शरीर में पहुंचने और चायकौफी या अल्कोहल का अधिक सेवन करने से शरीर में विषाक्त तत्त्वों का स्तर बढ़ने लगता है. ऐसे में शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन यानी विषय दूर करना जरूरी होता है. शरीर में विषाक्त तत्त्वों का स्तर बढ़ने से शारीरिक तंत्र गड़बड़ाने लगता है. ऐसी स्थिति में डिटॉक्सिफिकेशन रक्त के शुद्धिकरण और अंदरूनी अंगों की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से जारी करता है.

कब करें डिटॉक्स

अगर आप के शरीर में कोलेस्ट्रौल की मात्रा अधिक है, डायबिटीज या ब्लडप्रैशर है तो हर 2 महीने में डिटॉक्स करें. अगर आप डिप्रैशन में जी रहे हैं तो 15 दिन में एक बार डिटॉक्स जरूर करें.

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डिटॉक्स करने पर यह न खाएं

ऐसे खाद्य पदार्थ जिन में प्रिजर्वेटिव हो, चीनी और वसा युक्त जंक फूड का सेवन न करें, स्मोकिंग और शराब न पीएं. लंबे समय तक डिटॉक्स डाइट पर न रहें. क्योंकि इस के शरीर में विटामिन और मिनरल की कमी हो जाती है. इस से डीहाइड्रेशन भी हो सकता है.

डिटॉक्सिफिकेशन का कार्य

यह किडनी, आंत और त्वचा से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने की प्रक्रिया को तेज करता है, रक्त संचार को शुद्ध करता है, शरीर को स्वस्थ पोषक तत्त्वों से दोबारा भर देता है. शरीर के टौक्सिन बाहर निकालने के लिए लीवर को प्रोत्साहित करता है. उपवास के दौरान शरीर के अंगों को आराम पहुंचाता है.

डिटॉक्सिफिकेशन के फायदे

  • त्वचा की रंगत में निखार, बेहतर तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र में सुधार, शारीरिक ऊर्जा में बढ़ोत्तरी, मैटाबोलिज्म के फंक्शन में सुधार, शरीर के खराब और शिथिल पड़े हुए अंगों को रिकवर कर के मजबूत करता है.
  • इस सफाई प्रक्रिया के बाद शरीर के सारे अंग ठीक से काम करने लगते हैं.
  • डिटॉक्सिफिकेशन स्टेमिना को बढ़ाने का बेहतरीन तरीका है. इस से आप लाइट फ्री और स्वस्थ महसूस करेंगे.
  • डिटॉक्सिफिकेशन के दौरान सब से ज्यादा प्रभाव पाचनतंत्र पर पड़ता है, क्योंकि इसे आराम करने का पूरा समय मिलता है.
  • इस से शरीर की बाहरी त्वचा से ले कर हार्ट, लीवर, गुर्दा के साथ शरीर के सभी अंगों और शरीर के सारे अंग ठीक से काम करते हैं.
  • इस तरह शरीर के सभी रोगों के जो होने की संभावना होती है वो दूर होती है और हम सुखी और स्वस्थ रह सकते हैं.

डिटॉक्स डाइट

डा. सिमरन सैनी बता रही हैं ऐसी डिटॉक्स डाइट जिस से बौडी से विषाक्त तत्त्व दूर हो सके.

  1. सब से पहले आप 3-5 दिन की फूड डायरी बनाएं और उस में नोट करें कि आप ने दिन भर में क्याक्या खाया है और क्या खाना है.
  2. कुछ दिनों के लिए अपनी डाइट में से वो चीजें हटाएं जो आप खाते हैं जैसेः चाय, कौफी, बिस्कुट, नमकीन आदि.
  3. सफेद रंग की 3 चीजों को अपनी डाइट में से कम कर दें. चीनी, नमक और मैदा.
  4. आप फाइबरयुक्त खाना खाएं, ऐसी डाइट जो आसानी से पच सके जैसे फल, जूस, सब्जियां, हर्बल चाय, शुद्ध कार्बोहाइ्रेट्स तथा स्वास्थ्यवर्धक फैट्स का सेवन करें. जिस से शरीर का मैटाबोलिज्म तथा वजन नियंत्रित रहे. अत्यधिक शुगर युक्त भोजन से बचें.
  5. शरीर की कोशिकाओं और अंगों को सुचारू रूप से काम करने के लिए पर्याप्त पानी पीएं. यह शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है. साथ ही पाचनतंत्र को मजबूत करता है.

377- भाग 3 : क्या अपने प्यार को पा सके वासु और शर्लिन

शावर की ठंडी बूंदें जैसेजैसे शार्लिन के बदन पर गिरती हैं, उस के वहां होने और सिसकियों से सिमटने की आवाजें मानो नेपथ्य में नाद कर रही हों.

वासु संपूर्ण कमरे में झांकता है, जैसे सबकुछ अनजाना हो, बिलकुल नया सा. जैसे 7-8 साल पहले हो गया था बिलकुल तनहा सा. जब घर छोड़ने के लिए उसे विवश किया जा रहा था. वो घर में ही किसी अपराधी की भांति हो गया था. ना कोई बात करता था, ना संग रहता था और फिर एक दिन भाईबहन ने भी उसे अपने कमरे से निकाल दिया था. मातापिता ने भी उन को समझाने की जगह मुझे ही निकल जाने के लिए बाध्य कर दिया था. पहले दो रोज बीते, फिर 3-4 और महीने, साल, पर किसी ने मेरी कोई सुध नहीं ली.

अगर शार्लिन न मिलता तो शायद आत्महत्या ही कर लेता. शायद कोई किसी का नहीं, सब मतलबी हैं, दंभी हैं, घृणित हैं. हर ओर दिखावे से भरी जिंदगी है. सब के हृदय कुत्सित हैं. शार्लिन औफिस के लिए तैयार हो जाता है. नाश्ते के बाद वो वासु के करीब आ कर उस की आंखों में झांकता है और उस के माथे को चूम लेता है. उस को प्रेमवश गले लगा कर कहता है, ‘वासु, तुम बिलकुल भी चिंता न करो. मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों एक हैं. ज्यादा न सोचो. अब मैं सब ठीक कर दूंगा.

‘अच्छा, मैं औफिस चलता हूं. शाम को अमरकांत से मिलना है. हो सके तो तुम साढ़े 6 बजे उन के निवास पर पहुंच जाना. एड्रेस डायरी में है और दूध पी लेना. दूध कुछ ज्यादा ही गरम है. जरा ध्यान से लेना. दो टोस्ट भी हैं प्लेट में. ‘अब मेरे भाई हंस भी दो, मेरी जान हो ना?

‘रात को तो बहुत हसीन लग रहे थे. तुम्हें एक पल भी छोड़ने को दिल नहीं चाहता,’ शार्लिन ने मुसकराते हुए कहा. उस की उंगलियां दबाता हुआ शार्लिन दरवाजे से बाहर निकलता है. वासु दरवाजे से बाहर आ कर शार्लिन को सीढ़ियों की ओर बढ़ते देखता है. दोनों के हाथ हवा में लहराते हैं, होंठ चुप हैं, पर शार्लिन की आंखें मुसकरा रही हैं.

वासु की उद्गिनता पहले से कम दिख रही है. ठीक साढ़े 6 बजे अमरकांत के घर के पास ही शार्लिन वासु को करीब देख कर खुश हो जाता है, जैसे दफ्तर के बाद की सारी थकावट छूमंतर हो गई हो. वासु ने अपनी हथेलियां शार्लिन के हाथों में रख दीं. दोनों के कदम अमरकांत के घर की ओर बढ़े और वो दरवाजे को खटखटाने लगे.

लंबे गलियारे से गुजरती एक आकृति सामने प्रकट हुई. चश्मा साफ करते हुए उस आकृति ने दरवाजा खोला. उम्र करीब 55 साल. चेहरे पर मोटी मूंछ और मोटा चश्मा दाईं ओर और ठुड्डी पर गहरा काला मस्सा. लंबे, मुड़े बाल और सिर के बीच के कुछ बाल गायब.

दोनों को देखते ही… शार्लिन आ गए.’व्हअट ए प्लीजैंट सरप्राइज?’ ‘टाइम के पक्के हो. बिलकुल पंचुअल.”अरे वासु, तुम भी. नाइस टू सी बोथ औफ यू.’ ‘वैलकम ड्यू ड्यूडस. कम इनसाइड बाय.’ तीनों अंदर बढ़ते हैं. सोफे पर बैठते हुए शार्लिन ने अमरकांत को पहले बैठने का आग्रह किया.

‘ओ सिट माई सन.’ ‘प्लीज सिट.’ ‘कहो, सब ठीकठाक है?’ ‘ओके. वेट… बताओ, क्या लोगे? टी या कौफी?’वासु शार्लिन की ओर देखता है, फिर दोनों अमरकांत की ओर देख कर मुसकराते हुए बोले, ‘नो… नो अंकल. कुछ नहीं प्लीज. तक्कल्लुफ न कीजिए. ‘बहादुर…? ओ बहादुर?’

एक छोटे कद का युवक दौड़ता हुआ प्रकट होता है. ‘जी सर,’ पहले शार्लिन की ओर देखता है, पर फिर अमरकांत की तरफ देख कर ‘यस सर’ बोलता है, जल्दी से 3 कौफी ले आओ. ‘और हां, मेरी कौफी में दूध कम हो.’ ऐसा सुन कर बहादुर लौट जाता है.

सोफे पर लगभग फिसला हुआ अमरकांत सिगरेट को दियासलाई से सुलगा कर होंठ के दाहिने सिरे पर रख लेता है. धुआं बाहर फेंकता हुआ पूछता है, ‘कहो वासु क्या इश्यू है. खुल कर बताओ. कुछ भी ना छिपाना मुझ से.’

‘ओके सर,’ वासु अमरकांत को देख कर बोलना आरंभ कर देता है. ‘वकील अंकल एक बात बताइए?’सिगरेट का अगला हिस्सा लाल गर्त से भरा है. अमरकांत के लंबे कश खींचते ही वो गर्त कमरे में सफेद धुएं में बह गई. सिगरेट का अगला कोर सुर्ख लाल होता चला गया. हवा में चुटकी बजाई और वासु को देख कर बोले, ‘यस वासु.’ ‘क्या हम इनसान नहीं? या किसी आदमी की औलाद नहीं?’क्या हमारा होना एक कलंक है हमारे समाज पर?’

अमरकांत गंभीरता से देखता रहा. ‘क्या यह जरूरी है कि जिंदगी मनमाफिक हो? सामान्य हो या दूसरों की सोच के अनुरूप हो. क्या हमारा जीना कोई जीवन नहीं है. ‘हमारा होना या ना होना कब तक और किस के लिए है? केवल हमारे समाज तक? ‘क्या कोई किसी को लाभ पहुंचाए? बच्चे पैदा कर सके? या मांबाप बन सके? बस, इन का ही धरती पर आस्तित्व है, हमारा कुछ नहीं?’

बहादुर सामने टेबल पर कौफी रख देता है. अमरकांत कौफी की तरफ देख कर उसे वहां से जाने को बोल देता है. बहादुर तीनों को देखता हुआ लौट जाता है. कौफी के कप को उठाने का निर्देश देते हुए अमरकांत वासु को कान्टीन्यू करने को बोलता है. ‘वकील अंकल बताइए कि क्या हम विनय और रिया की तरह नहीं हैं? हमारी भी परवरिश उनजैसी ही तो हुई है. फिर मेरे साथ ऐसा बरताव क्यों?’

‘विनय और रिया कौन हैं? अमरकांत ने सिगरेट की राख झटकते हुए उत्सुक्ता से पूछा. ‘विनय और रिया मेरे भाईबहन हैं,’ वासु ने शालीनता से दोहरा दिया. ‘ओह, यस… यस, तुम ने एक मर्तबा बताया था. आई नो… आई नो…’ हंसते हुए वे बोले, ‘हां… हां, बेटे आप भी वैसे ही हो,’ बोलते हुए इस बार अमरकांत ने हंसी के साथ कंधे उचका दिए.

‘बेटा 377 के बाद सब एकसमान हैं. वैसे भी ये कुछ लोगों की मानसिक विकृति है, जो समलैंगिक जोड़े को हेय मानते हैं, गलत समझते हैं. मुझ से अपने पिताजी की बात करवाओ. प्लीज, मैं उन्हें समझाता हूं,’ अमरकांत उन्हें आश्वस्त करता हुआ बोला.

‘नहीं अंकल, वो आप से भी लड़ पड़ेंगे,’ वासु ने कौफी का घूंट भरते हुए कहा.’इस में लड़ने की क्या बात है. तुम उन के बेटे हो. एक समय तक उन के साथ भी रहे हो. तुम क्या चाहते हो ?बात करें या सीधा मुकदमा चला दें उन पर,’ अमरकांत एकटक देखते हुए बोले.कौफी का अंतिम घूट पी कर कप रखते हुए शार्लिन बोला, ‘अंकल सुनो.’अमरकांत शार्लिन को देखने लगा.

‘अंकल, वासु के दादाजी वासु से बहुत प्यार करते थे. तकरीबन 10-11 साल तक वासु उन के साथ रहा. वे अपनी हर चीज यहां तक कि अपनी संपत्ति का एक हिस्सा भी वासु को देना चाहते थे.”पर’ वासु की उम्र 18 साल की हो जाए तब.’

‘अन्फार्च्यूनैट जैसे ही उन की मृत्यु हुई और कुछ वर्ष बीते, इन के मातापिता को वासु के गे होने की जानकारी हो गई. उन्होंने तभी वासु को घर से भगा दिया या ऐसी यातनाएं देनी प्रारंभ कर दी कि ये स्वयं ही घर छोड़ दे,’ शार्लिन किसी खुफिया एजेंसी के एजेंट की भांति उन्हें सबकुछ बताता रहा.’वासु ने कभी दोबारा बात नहीं की. अपने दादाजी या हिस्से के सिलसिले में?’ अमरकांत चश्मे के शीशों पर सांस लगा कर चश्मा साफ करने लगा.’क्यों नहीं की बट हर बार सेम…’

‘आप लोग मेरी बात कराइए अभी…’ अमरकांत गुस्से से बोले.शार्लिन, जरा फोन लगाइए,’ वासु ने शार्लिन को देखते हुए निर्देश दिया.हेलो अंकल?’ फोन पर से आवाज़ आई.’यस, शार्लिन कहां हैं वो… जो हिस्सा मांग रहा था?”अंकल सुनिए, अमरकांतजी आप से कुछ बात करेंगे…’अमरकांत पेशेवर नामी वकील था. उस का नाम ही नहीं काम भी बोलता था. सारा शहर उस के नाम से परिचित था. अमरकांत का नाम सुनते ही वासु के पिता झुंझला से गए, ‘अमरकांत यानी वो वकील अमरकांत.’

‘जी अंकल,’ शार्लिन ने पुनः दोहराया और फोन अमरकांत को दे दिया.’हेलो श्रीभगवानजी नमस्कार. कैसे हैं?’377 की क्या खबर है आप को?”377 यानी समलैंगिक…?’ फोन पर आवाज आई.’हां, पता है या तफ्सील से बताऊं.”अमरकांतजी, मैं आप से कल बात करूं?’ श्रीभगवान ने रिक्वैस्ट भाव में कहा.फिलहाल फोन कट कर दिया.’वासु, तुम घबराओ नहीं. तुम्हारे पापा खुद ही तुम्हारा हिस्सा देंगे. मुझे उन का फोन नंबर दे जाओ. मैं कल फिर बात करता हूं.’

‘बहादुर कप उठा लो,’ अमरकांत का तेज स्वर कमरे में गूंजता है.’अच्छा वकील अंकल. अब हम लोग भी निकलते हैं,’ शार्लिन दोनों हथेलियों के बल पर सोफे से खड़े होने की मुद्रा में कहता है.’अरे नहीं. आज का डिनर यहीं होगा, मेरे साथ,अमरकांत मुसकराते हुए नई सिगरेट उठा लेता है.’नहीं… नहीं, अंकल आज नहीं. आज कुछ और काम भी है,’ दोनों चलने के लिए खड़े हो जाते हैं.

दोनों ने घर से बाहर निकलते हुए अमरकांत का शुक्रिया अदा किया.अमरकांत कुछ देर मुसकराते रहे और फिर दरवाजा बंद कर दिया.घर से बाहर आते ही दोनों प्रसन्न थे, आश्वस्त थे. चूंकि अंदर शाम चुप थी, पर घर के बाहर आते ही बोलने लगी, चहकने लगी और शहर के साथसाथ खिलने लगी, चलने लगी. वो दोनों खुश थे, जैसे कोई छोटा बालक भूख से नजात पा कर खेलनेबोलने लगता है.

‘आज यहां आना सही रहा, बेहद फायदेमंद,’ शार्लिन ने वासु के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.’हां, अब इन लोगों को पता चलेगा कि किसी की जिंदगी को मजाक बनाने का सिला. शार्लिन तुम न होते तो मैं कब का रुखसत हो चुका होता.’पर, आज मन हलका हो गया है यकीनन,’ वासु ने शार्लिन की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

मौसम रात के बढ़ने साथसाथ जवां होता जा रहा था. सारा शहर मानो सड़कों पर निकल आया हो. सामने नीली जींस वाली लड़की आइसक्रीम अपनी समलैंगिक साथी के संग उन्मुक्त है. वो बेहद खुश है. जिस की चमक उस की आंखों में स्पष्टतः देखी जा सकती है. सारी मार्केट महक रही है. दुकानों की चमकीली रोशनी सारी सड़कों को रंगीन कर रही है. पास ही पब है, जहां से लोग निकलते बहक रहे हैं. हंसीठट्ठा प्रेमक्रीडा हर तरफ. कोई साथी के संग मस्त है, तो कोई खानेपीने में, कोई साजसज्जा का सामान खरीदने में, पर अभी भी बहुतकुछ बंद कमरों में सिमटा है. होटलों, रैस्ट्रा की बालकानियों पर से झांकते चेहरे, खुशनुमा आकृतियां और नशे में लिपटे थकेमांदे बदन.

‘शार्लिन मुझे बर्फ का गोला गाना है,’ वासु ने शार्लिन के गाल पर चिकोटी काटते हुए बड़े ही प्यार से कहा.’पर, यहां गोला कहां है…’ शार्लिन ने दाएंबाएं दूर तक देखते हुए जवाब दिया.’अब जैसे भी हो मुझे चाहिए. कहीं से भी लाओ,’ वासु का अंदाज एक प्रेयसी की भांति था, जिसे देख कर शार्लिन भावविभोर हो गया और सामने खड़ी रेहड़ियों की तरफ तेजी से चल पड़ा, मानो अपने पार्टनर के लिए जान देने को भी तत्पर है.

गोला खाते हुए वासु ने शार्लिन को देखा और दो पल लगातार देखते रहने के बाद उस की आंखें नम हो गईं.’आई लव यू…’ वासु के हिलते होंठों को देखते ही शार्लिन की आंखों में गहरी चमक थी.दोनों झूमते खुशी से घर लौटे ही थे कि वासु का फोन बजा. पिता का नंबर देखते ही उस के चेहरे पर फैली सारी खुशी मानो छूमंतर हो गई हो.

‘अब उठाओ भी वासु…’ शार्लिन ने वासु को समझाते हुए कहा.’यस पापा…”मुझे पापा ना कहो. तुम मेरे लिए मर चुके हो,’ पापा ने फोन पर दांत पीसते हुए कहा, ‘और अमरकांत का सहारा ले रहे हो ना. मैं तुम दोनों को छठी का दूध याद दिला दूंगा.’और हां, उस शार्लिन को भी कह देना। वो भी बड़ा वकील बनता है ना. उस की तो…”पापा प्लीज, जो कहना है मुझ से कहो. शार्लिन को क्यों?’ वासु चिल्लाया.

‘वही भड़का रहा है ना तेरे को,’ पापा गुस्से से बोले.वासु फोन कट कर देता है. वो कुछ देर शून्य में ताकता है, पर फिर रो देता है.’हे वासु, वाय कराइंगआई एम विद यू,’ शार्लिन उस की आंखें पोंछते हुए कहता है.’कोई नहीं. अब तो ये जंग लड़नी ही होगी. कैसे भी हो? चाहे हिस्सा ना भी मिले, पर इन लोगों के होश जरूर ठिकाने लगाने होंगे. शहरों की शाम देर तक रहती है, पर रात नाममात्र की ही होती है. कहीं रंगीन रात तो कहीं अवसादपूर्ण अंधेरा.

‘377 को तुम अच्छे से समझ लो. यह हमारा हक है कि हम भी समाज का हिस्सा हैं, दूसरों की तरह. हम समलैंगिक हैं और अपने हक के लिए लड़ेंगे अंत तक. अमरकांतजी को साथ लेना होगा, तभी इस मुहिम में जंग जीती जा सकती है. सारे कागजात और पुरानी बातें जो भी तुम्हारे दादाजी द्वारा तुम्हें कही गई हों और न भी कही गई हों तो भी तुम बराबर का हक रखते हो,’ शार्लिन एक कुशल प्रशिक्षक की भांति वासु को बता रहा है. वासु की आंखे नम हैं.

‘शार्लिन, क्या हम कभी अपना घर ले सकेंगे, जो केवल अपना हो, केवल हम दोनों का,’ वासु दुखी अंदाज में बोला.’हां… हां, जैसे ही अमरकांतजी हमारे हक के लिए लड़ेंगे और जीतेंगे, सब अपना हो जाएगा,’ शार्लिन ने वासु की उंगलियों को चूमते हुए कहा.

‘काश, मम्मी होतीं तो शायद मुझे कुछ समझती… पहले दादु गए, फिर ममा और उन के जाते ही सब लुटता गया, छुटता गया,’ वासु की आंखें अभी भी नम थीं.

रूंधे गले से दबी आवाज में वासु आगे बोलता रहा. मैं क्या अपराधी हूं या कोई गुनाहगार हूं, जिस की सजा मुझे रोज मिलती है. किसी का कोई मरता है तो वो रो कर स्वयं को हलका कर लेता है, पर मैं तो रो भी नहीं सकता. जानो कोई मानससिक व्याधियों से त्रस्त हो और अपनी पीड़ा को भी बताने में असमर्थ हो.

शार्लिन चुपचाप सुनता रहा. तुम चिंता न करो और फिर बंद आंखों से वासु की पेशानी पर एक चुंबन अंकित कर दिया.अमरकांत ने वासु के पिता को कई मर्तबा समझाया, पर वासु के पिता भी इतनी आसानी से कहां मानने वाले थे. वो एक ओर कोर्ट में लड़ते तो दूसरी ओर अमरकांत को अपने पक्ष में लाने के लिए पैसा औफर करते रहे, पर अमरकांत जैसा दिग्गज समलैंगिक समाज के साथ ही खड़ा रहा. केस बढ़ता गया दोनों तरफ से. रोज कवायदें चलती रहीं, हर एक बात को रिकार्ड किया जाने लगा. पिता का पक्ष कमजोर होता गया. आवश्यक दस्तावेज व पुरानी डायरियां अदालत की जिरह में लाभदायक सिद्ध हुईं.मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चला गया. अदालती दांवपेंच में अमरकांत माहिर था, तभी अमरकांत के सामने वासु के पिता के वकील की एक न चली और वो मुकदमा हार गए. यद्यपि, थोड़ी चूंचूं होती रही, पर एक नतीजे के बाद वासु को दादु की संपत्ति का हिस्सा मिल गया.

केस जीतते ही शार्लिन ने वासु को गले लगा लिया. वासु की आंखें खुशी से खिल गई थीं. शार्लिन ने अदालत से बाहर निकलते ही वासु का माथा चूम लिया और उस के गले में दोनों बाहें डाल दी. अमरकांत वकील पूरे शहर में मशहूर हो गए. समलैंगिकों के पक्ष में लड़ा हुआ लगातार तीसरा

मुकदमा उन के हक में गया. सभी खुश थे.

 

‘शाम को खाने पर मेरे घर आना होगा?’ अमरकांत वासु और शार्लिन को न्योता देते हुए बोले.

‘हां… हां, वकील अंकल, क्यों नहीं? आप की मेहनत से ही तो हम लोग जीते हैं, पर आप को एक छोटा सा उपहार स्वीकारना होगा. तभी आएंगे हम दोनों,’ शार्लिन ने वकील साहब की ओर देख कर मुसकराते हुए कहा. ‘हां… हां, बिलकुल,’ अमरकांत ने कपड़े से चश्मा साफ करते हुए जवाब दिया.

शाम को स्वादिष्ठ खाने के उपरांत अमरकांतजी को प्रेमवश बंद लिफाफे में सौगात दी गई, जिसे सहजता से उन्होंने स्वीकार कर लिया.आज शार्लिन, वासु के पास सपनों में बसा घर है, सुंदर आशियाने के साथसाथ वासु ने अपना कोरियर का धंधा आरंभ कर दिया है, जिस में शार्लिन ही सारे कामकाज को सलीके से आगे बढ़ा रहा है.

वो दोनों पतिपत्नी की भांति जीते हैं. शारीरिक रूप से व मानसिक रूप से दोनों संतुष्ट हैं, प्रसन्न हैं.अमरकांत के कहने पर कुछ अन्य समलैंगिक काम्युनिटी से जुड़े लोग भी इस व्यवसाय से जुड़ते जा रहे हैं. अदालत के बहुत समझाने के बाद वासु के पिता का रवैया काफी बदल गया है और इन दिनों हर सप्ताह वासुशार्लिन से हंसहंस कर बात कर लेते हैं. ये समलैंगिक समाज की जीत है.

Diwali 2021 : दीयों की चमक – भाग 4

दिवाली पूजन, हंसीमजाक, शोरशराबा, भोजनपानी करतेकरते आधी रात बीत गई.

‘अब, मैं चलूंगी,’ दिवा बोली थी.

‘चलो, मैं तुम्हें छोड़ आता हूं,’ अवध  की आंखों की चमक रमा आज तक भूल नहीं पाई है. अगर वह पुरुष मनोविज्ञान की ज्ञाता होती तो कभी भी अपने पति को उस मायावी के संग न भेजती.

… पति जब तक घर लौटे, वह मुन्ने को सीने से चिपकाए सो ग‌ई थी. फिर तो अवध रमा और मुन्ने की ओर से उदासीन होता चला गया. उस की शामें दिवा के साथ बीतने लगीं.

पत्नी से उस की औपचारिक बातचीत ही होती. मुन्ने में भी खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी उस की. भोली रमा पति के इस परिवर्तन को भांप नहीं पाई. दिनरात मुन्ने में खोई रहती. वह  मुन्ने को कलेजे से लगाए सुखस्वप्न में खोई थी.

एक दिन उस की सहेली ने फोन पर जानकारी दी, ‘आजकल तुम्हारे मियां जी बहुत उड़ रहे हैं.’

‘क्या मतलब?’

‘अब इतनी अनजान न बनो. तुम्हारे अवध का दिवा के साथ क्या चक्कर चल रहा है, तुम्हें मालूम नहीं? कैसी पत्नी हो तुम? दोनों स्कूटर पर साथसाथ घुमते हैं, सिनेमा व होटल जाते हैं और तुम पूछती हो, क्या मतलब,’ सहेली ने स्पष्ट किया.

‘देख, मुझे झूठीसच्ची कहानियां न सुना, वह अवध के साथ पढ़ती थी,’ रमा चिहुंक उठी.

‘पढ़ती थी न, अब अवध के साथ क्या गुल खिला रही है? मुझ पर विश्वास नहीं है, पूछ कर देख ले. फिर न कहना, मुझे आगाह नहीं किया. तुम इन मर्दों को  नहीं जानतीं. लगाम खींच कर  रख, वरना पछताएगी,’ सहेली ने फोन रख दिया.

अब रमा का दिल किसी काम में नहीं लग रहा था. मुन्ना भी आज उसे बहला नहीं सका. वह छटपटा उठी. सहेली की बात किस से कहे- मांजी से, पिताजी से… ना-ना उस की हिम्मत जवाब दे गई. वह सीधे अपने पति से ही बात करेगी, अवध ऐसा नहीं है.

अवध सदा से ही अपने रखरखाव, पहिरावे का विशेष ध्यान रखते थे. इधर कुछ ज्यादा ही सजग, सचेत रहने लगे हैं. हरदम खिलेखिले, प्रसन्न अपनेआप में मग्न. घर में पांव टिकते नहीं थे. भूल कर भी रमा को कहीं साथ घुमाने नहीं ले गए. मुन्ना एक अच्छा बहाना था. रमा को कोई शिकवा भी नहीं था. वह अपनी छोटी सी दुनिया में मस्त थी. जहां उस का प्यारा पति एवं जिगर का टुकड़ा मुन्ना था, वहीं उस की  खुशियों में उस की सहेली ने सेंधमारी की थी. वह बेसब्री से अवध की राह देखने लगी.

रात गए अवध लौटा, गुनगुनाता, सीटी बजाता बिलकुल आशिकाने मूड में.

‘खाना,’ रमा को अपने इंतजार में देख उसे आश्चर्य हुआ.

‘खा लिया है,’ वह बेफिक्री से कोट का बटन खोलने लगा.

रमा ने लपक कर कोट थाम लिया. लेडीज परफ्यूम का तेज भभका.

रमा को यों कोट थामते, अपने लिए जागते देख अवध चौंका.  क्योंकि मुन्ने के जन्म के बाद से वह बच्चे में ही खोई रहती. वह रात में लौटता, उस समय वह मुन्ने के साथ गहरी नींद में खर्राटे लेती मिलती. आज ऐसे तत्पर देख आश्चर्य चकित होना स्वाभाविक है.

परफ्यूम की महक ने रमा को दिवाली की रात की याद दिला दी. यही खुशबू दिवा के कपड़ों से उस दिन आ रही थी. सहेली ठीक कह  रही थी. रमा उत्तेजित हो उठी, ‘कहां खाए?

‘पार्टी थी.’

‘कहां?’

‘होटल में, कुछ क्लांइट आए थे.’

‘सच बोल रहे हो?’

‘तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘यही कि तुम दिवा के साथ समय बिता कर, खा कर आ रहे हो.’

अवध का चेहरा  क्षणभर के लिए   फक पड़ गया. फिर  ढिठाई से बोला, ‘तुम्हें कोई आपत्ति है, मेरी बातों का विश्वास नहीं?’

‘दिवा के साथ  गुलछर्रे उड़ाते तुम्हें  शर्म नहीं आती एक बच्चे के पिता हो कर.  छि:,’ रमा क्रोध से कांपने लगी.

‘दिवा पराई नहीं, मेरी पहली पसंद है. वह तो  मां ने तुम्हारे नाम की माला न जपी होती, तुम्हारी  जगह पर  दिवा होती.’

‘उस ने  मेरे चलते  विवाह  नहीं किया. वह आज भी मुझे उतना ही चाहती है  जितना  कालेज के  दिनों में. फिर मैं उस का साथ क्यों न दूं. एक  वह  है  जो  मेरे लिए  पलक बिछाए रहती है  और एक तुम हो जिसे अपने  बच्चे से  फुरसत नहीं है,’ पति बेहयाई पर उतर आया.

रमा के पांवतले जमीन खिसक गई. आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला  चलने लगा.

अवध का कहना था, ‘तुम्हें खानेपहनने की कोई दिक्कत नहीं  होगी. जैसे  चाहो, रहो लेकिन मैं दिवा को नहीं छोड़ सकता. तुम पत्नी हो और वह प्रेमिका.’

‘क्या केवल खानापहनना और पति के अवैध रिश्ते  को अनदेखा करना ही  ब्याहता का धर्म है?’ रमा इस कठदलीली को कैसे बरदाश्त करती. खूब रोईधोई. अपने सिंदूर,  मुन्ने का वास्ता दिया. सासससुर  से इंसाफ मांगा. उन्होंने उसे  धैर्य रखने की  सलाह दी. बेटे को  ऊंचनीच  समझाया,  डांटा, दुनियादारी का हवाला दिया.

लेकिन अवध पर दिवा के रूपलावण्य का जादू चढ़ा हुआ था. रमा जैसे चाहे, रहे. वह  दिवा को नहीं  छोड़ेगा.

एक  म्यान में  दो तलवारें नहीं  रह सकतीं. रमा को प्यारविश्वास  का खंडित हिस्सा  स्वीकार्य  नहीं.

पतिपत्नी का मनमुटाव,  विश्वासघात शयनकक्ष से बाहर आ चुका था. जब रमा पति को  समझाने  में  नाकामयाब रही तब एक दिन  मुन्ने को गोद में  ले मायके का रास्ता  पकड़ा.

सासससुर ने समझाया. ‘बहू, अपना घर पति को छोड़ कर मत जाओ. अवध की आंखों से  परदा जल्दी ही उठेगा. हम सब तुम्हारे  साथ हैं.’

किंतु रमा का भावुक  हृदय  पति के इस  विश्वासघात  से टूट गया था. व्यावहारिकता से  सर्वथा अपरिचित  वह इस घर में  पलभर भी रुकने के लिए  तैयार न थी जहां उस का पति पराई स्त्री  से  संबंध रखता हो. उस की खुद्दारी ने अपनी मां के  आंचल का सहारा लेना ही उचित समझा, भविष्य की  भयावह स्थिति से अनजान.

‘बहू,  मुन्ने के बगैर हम कैसे  रहेंगे?’ सासुमां ने मनुहार की.

‘पहले अपने  बेटे को  संभालिए, मैं  अपने बेटे पर  उस दुराचारी पुरुष की छाया तक नहीं पड़ने देंगे.’

‘उसे संभालना तो तुम्हें पड़ेगा  बहू. तुम उस की पत्नी  हो, ब्याहता हो. इस प्रकार मैदान  छोड़ने से बात  बिगड़ेगी ही.’

‘मुझे कुछ नहीं सुनना. मुझ में इतनी  सामर्थ्य है कि अपना और अपने मुन्ने का पेट  भर सकूं,’

रमा एक झटके में  पतिगृह छोड़ आई. मां ने  जब सारी बातें सुनीं तो सिर पीट लिया. फूल सी बच्ची पर ऐसा अत्याचार. उन्होंने बेटी को सीने से लगा लिया, ‘मैं अभी  ज़िंदा हूं, जेल की चक्की न पिसवा दी तो कहना.’

भाइयों ने दूसरे दिन ही कोर्ट में  तलाकनामा दायर करवा दिया. भाभियां भी  खूब चटखारे  लेले कर ननदननदोई  के  झगड़ों का वर्णन सुनतीं. रमा अपना सारा आक्रोश, अपमान, कुंठा नमकमिर्च  लगा कर  बयान करते न  थकती.

शुरुआती दिनों में  सभी जोशखरोश से रमा का साथ  देते. मुन्ने का भी  विशेष  ख़याल रखा जाता. फिर  प्रारंभ हुई कोर्टकचहरी की  लंबी प्रक्रिया. तारीख पर  तारीख़. वकीलों की ऊंची  फीस. झूठीसच्ची उबाऊ बयानबाजी. एक ही  बात उलटफेर कर. जगहंसाई. रमा और  मुन्ने का बढ़ता खर्चा. निर्णय की अनिश्चितता.

भाइयों में झुंझलाहट बढ़ने लगी. भाभियां जैसे इसी मौके की  तलाश में थीं. वे रमा और मुन्ने को नीचा दिखाने  का कोई अवसर हाथ से जाने  न देतीं.

बूढ़ी होती मां सिहर उठतीं, ‘मेरे बाद इस लाड़ली बेटी का क्या होगा? बेटेबहुओं का रवैया वे देख रही थीं. उन का चिढ़ना स्वाभाविक था क्योंकि सब की घरगृहस्थी है, बालबच्चे  हैं, बढ़ते खर्चे हैं. इस  भौतिकवादी  युग में  कोई किसी का नहीं. उस पर परित्यक्ता बहन और उस का  बच्चा जो जबरन उन के  गले पड़े हुए हैं.

कानूनी लड़ाई  में ही  महीने का  आखिरी रविवार  कोर्ट ने  मुन्ने को अपने पिता से मिलने का  मुकर्रर किया था. मुन्ने को इस दिन का  बेसब्री से इंतज़ार  रहता. बाकी दिनों की अवहेलना को वह विस्मृत कर देता.

अवध बिना नागा आखिरी रविवार की सुबह आते. रमा मुन्ने को उन के पास  पहुंचा देती. दोनों एकदूसरे की ओर देखते अवश्य, लेकिन  बात नहीं होती. मुन्ना हाथ हिलाता पापा के  स्कूटर पर हवा हो जाता.

अवध ने मुन्ने को अपने संरक्षण में लेने के लिए  कोर्ट से गुहार लगाई है बच्चे के भविष्य के लिए. ठीक  ही है  पापा के पास रहेगा, ऊंची पढ़ाई  कर पाएगा, सुखसुविधाएं पा सकेगा. वह  एक प्राइवेट स्कूल की  टीचर, 2 हजार रुपए  कमाने वाली, उसे क्या दे सकती है.

कोर्ट के आदेश से कहीं मुन्ना उस से  छिन गया, अपने पापा के पास  चला गया तब वह  किस के सहारे जिएगी. किसी निर्धन से उस की  पोटली गुम हो जाए, तो जो पीड़ा उस गरीब को होगी वही ऐंठन रमा के  कलेजे में  होने लगी. ‘न,  न, मैं बेटे को अपने से किसी कीमत पर  अलग नहीं होने दूंगी. वह सिसकने लगी. स्वयं से  जवाबसवाल करते  उसे  झपकी आ गई.

आंखें  खुली, तो पाया मुन्ना आ चुका है. हर बार की तरह खिलौने, मिठाईयों उस के पसंद की चौकलेट से  लदाफंदा.

घरवाले उन सामानों को हिकारत से देखते. यह नफरत की  बीज उस की ही बोई हुई है. रमा सबकुछ छोड़छाड़  भागी न  होती, उस की गृहस्थी यों तहसनहस न  होती. वह  डाल से  टूटे  पत्ते के समान  धूल चाट नहीं रहती.

“मम्मी, तुम्हारे लिए…”

“क्या?”

लाल पैकेट में  2 जोड़ी कीमती चप्पलें. रमा भौंचक, “यह क्या, तुम ने  पापा से कहा?”

“नहीं, नहीं,  पापा ने अपने मन से खरीदा. पापा अच्छे हैं,  बहुत अच्छे.  मम्मा, हम लोग पापा के साथ क्यों नहीं  रहते?”

रमा निरूत्तर थी. रमा ने चप्पलों की जोड़ी झट से छिपा दी. अगर  पहनती है तो घर वालों की कटुक्तियां और न पहने तब मुन्ने की  जिज्ञासा.

दिवाली का त्योहार  आ गया. भाईभाभी सपरिवार  खरीदारी में  व्यस्त. वह सूखे होंठ, गंदे कपड़ों में  घर की  सफाई में  लगी थी.

दरवाजे की  घंटी बजी. शायद, घर वाले लौट आए. इतनी  जल्दी…

रमा ने  दरवाजा खोला, सामने  अवध. रमा स्तब्ध. घर  में कोई नहीं  था.  उस की  जबान पर जैसे  ताला लग गया.

“भीतर आने के लिए नहीं कहोगी?” अवध के  प्रश्न पर वह संभल चुकी थी.

“हां, हां, आइए परंतु इस समय घर में कोई नहीं है.”

“मुन्ना कहां है? ”

“वह अपनी नानी के साथ पार्क  गया है.”

“अच्छा,  दीवाली की सफाई हो रही है.”

रमा समझ नहीं पा रही थी,  वह क्या  कहे.  इस विषम परिस्थिति के लिए वह कतई तैयार  न थी. जिस व्यक्ति पर कभी उस ने अपना  सर्वस्व नयोछावर किया था, उस के बच्चे की मां  बनी थी, उस से  ऐसी झिझक. थोड़ी सी बेवफाई और  कानूनी  दांवपेंच ने  दोनों के बीच  गहरी खाई खोद दी थी.

“रमा, तुम  मुझ से बहुत नाराज हो, होना भी चाहिए. मैं तुम्हारा  अपराधी हूं. मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिए. दिवारुपी मृगतृष्णा के पीछे  भागता रहा. अपनी पत्नी के निश्च्छल प्रेम के सागर को पहचान नहीं पाया. अब  मैं तुम्हें और  मुन्ने को लेने आया हूं. मुझे  माफ कर दो.”

“मैं आप के साथ कैसे जाऊंगी, दिवा के साथ नहीं रह सकती. मुझे  मेरे हाल पर  छोड़ दीजिए,” आक्रोश आंखों से बह निकला.

“दिवा…दिवा से मेरा कोई लेनादेना नहीं  है, मैं ने उस से  सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं. पहले ही काफी  देर हो चुकी है, अब अपनी पत्नी और बच्चे से  दूर नहीं रह सकता.”

“किंतु  मेरी मां, भाई, कोर्टकचहरी… ” उसे  अपने कानों पर  विश्वास नहीं  हो रहा था.

“मां, भाई को क्यों  एतराज होगा. अपनी पत्नी और बेटे  को लेने आया हूं. और रहा कोर्टकचहरी, लो तुम्हारे सामने ही सारे कागजात फाड़ फेंकता हूं. जब मियांबीवी राजी तो क्या  करेगा  काजी.”

“पर, मैं  कैसे  विश्वास करूं?”

“विश्वास तुम को करना  ही पड़ेगा. भरोसा एवं प्यार पर ही दाम्पत्य की  नींव टिकी होती है. तुम ने मुझ पर पहले ही अपना अधिकार जता बांहों का सहारा दे अपने पास  खींच लिया होता  तो मैं  दिवा  में अपनी खुशियां नहीं  तलाशता. सच है कि मैं  भटक गया था. किंतु  यह न भूलो, भटका हुआ मुसाफिर भी कभी न कभी सही राह  पा लेता है,” अवध ने अपनी बांहें फैला दीं.

परिस्थितियों की मार से आहत रमा इस अप्रत्याशित  घटनाक्रम से अचंभित  अपने पति के हृदय से जा लगी.

अवध, रमा और मुन्ने  दिवाली के दिन  जब अपने घर पहुंचे, एकसाथ लाखों दीये जल उठे.

दीवाली की खुशी  द्विगुणित हो गई. उन का  उजड़ा संसार  दिवाली की रोशनी में आबाद हो चुका था.

Diwali 2021: मेहमानों के लिए घर पर बनाएंं ये मजेदार रोल्स

त्योहार के दिनों में अगर आप मिठाइयों और पकवानों से अलग कुछ बनाना चाहते हैं तो ऐसे में आप नीचे दिए गए रोल्स रेसिपी को ट्राई कर सकती हैं.

1 सोया ऐंड ओट्स कैबिज रोल्स

सामग्री

– 2 कप टूटी सोया की डली

– 3/4 कप हरीमिर्चें कटी

– 3/4 कप स्वीट रैड पैपर

– 1 मैगी क्यूब सीजनिंग

– 1/2 कप ओट्स

– 1 छोटा चम्मच सूखी तुलसी

– 1/2 छोटा चम्मच रैड चिली फ्लैक्स

– 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

– 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च

– 1 बड़ी पत्तागोभी

– 6 बड़े चम्मच कसा चैडर चीज 2 हिस्सें में करें

– 2 छोटे चम्मच नीबू रस

– 75 एमएल टोमैटो कैचअप

– 1/8 छोटा चम्मच टबैस्को सौस.

विधि

एक बड़े बरतन में सोया, हरीमिर्चें, स्वीट रैड पैपर, मैगी क्यूब सीजनिंग, ओट्स, तुलसी, रैड चिली फ्लैक्स, अजवाइन और लालमिर्च डाल कर उबालें. उबाल आने पर 5 मिनट ढक कर पकाएं. फिर इसे आंच से उतार कर 5 मिनट के लिए अलग रखें. इस बीच पत्तागोभी को उबालें. फिर 8 बड़े पत्तों को रोल बनाने के लिए अलग रख दें. बची पत्तागोभी को फ्रिज में रख दें. अब पत्तों में से मोटी नली को ‘वी’ आकार में काट कर अलग कर दें. अब वैजिटेबल मिश्रण में 4 बड़े चम्मच चैडर चीज और नीबू का रस डालें. अब पत्तों पर 1/3 कप फिलिंग रख कर रोल बनाएं. रोल्स को टोमैटो कैचअप और टबैस्को सौस में डिप करें. बेकिंग डिश पर बटर पेपर लगाएं और रोल्स को रखें. 400 डिग्र्री तापमान पर रोल्स को 15 मिनट तक बेक करें. अब गरम रोल्स पर चैडर चीज डालें और परोसें.

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2. नरमगरम  रोल

सामग्री

100 ग्राम कद्दू, 100 ग्राम लौकी, 2 उबले आलू, 100 ग्राम बैगन,  1 प्याज, 2 टमाटर, 2-4 कली लहसुन, 1-2 हरीमिर्चें, 1 टुकड़ा अदरक, 2 बड़े चम्मच घी, 4 बड़े चम्मच मक्खन, 4-6 बै्रड स्लाइस, नमक स्वादानुसार, 11/2 बड़े चम्मच अमचूर, 1/4 बड़ा चम्मच गरममसाला, थोड़ी हरी धनिया पत्ती.

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विधि 

एक कड़ाही में घी गरम करें. प्याज, टमाटर, लहसुन, हरीमिर्च, अदरक का पेस्ट बना कर भून लें. इस में कद्दू व लौकी को कद्दूकस कर के डालें. इसी में बैगन (छील कर) छोटाछोटा काट कर उबले आलू व नमक डाल कर पकने दें.

पकने पर गरममसाला, अमचूर व मक्खन डाल कर पकाएं. ब्रैड की साइड काट कर ये सब्जी डाल कर रोल करें, ऊपर से मक्खन लगा कर 180 डिगरी पर 5-7 मिनट तक ग्रिल करें व परोसें.

3. मिश्रित रोल

सामग्री

1 कप दूध, 1 बड़ा चम्मच मैदा, 1 बड़ा चम्मच मक्खन, 1 क्यूब चीज, 1/2 कप ब्रैड का चूरा, 1 पैकेट नमकीन बिस्कुट या क्रीम क्रैकर, 1-2 हरीमिर्चें, 1 प्याज, 1/4 कप कटी बींस, 1 गाजर, नमक स्वादानुसार, तलने के लिए तेल.

विधि  

कड़ाही में मक्खन गरम कर के मैदा भूनें व इस में दूध डाल कर अच्छी तरह से मिलाएं. प्याज, बींस, गाजर, हरीमिर्च बारीक काट लें व सौस के साथ पकाएं. पकने पर नमक व चीज कस कर डालें और ठंडा करें. इस मिश्रण में नमकीन बिस्कुट को चूरा कर के डालें. इस के रोल बना कर ब्रैड के चूरे में लपेटें व गरम तेल में सुनहरा होने तक तलें. गरमगरम चटनी या सौस के साथ परोसें.

अभिनेत्री पायल घोष किसके संग नशा विरोधी अभियान की शुरूआत करेंगी?

हमेशा विवादों से घिरी रहने वाली और हर मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखने वाली अदाकारा पायल घोष अब ‘‘ड्रग्स विरोधी अभियान की शुरूआत करने वाली हैं.ज्ञातब्य है कि  2020 में सुशांत सिंह राजपूत की मुत्यू के बाद जब एनसीबी ने कई बौलीवुड हस्तियों से पूछताछ की थी,

उस वक्त पायल घोष ने भी बौलीवुड में ड्ग्स का जाल होने के आरोप लगाए थे.गत वर्ष ड्ग्स के मामले में एनसीबी ने दीपिका पादुकोण, रकूलप्रीत सिंह,रिया चक्रवर्ती सहित कई बौलीवुड हस्तियों और मैने जमेंट कंपनियों से लंबी पूछताछ की थी.  इतना ही नही अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शौविक चक्रवर्ती जेल भी गए थे,फिलहाल यह जमानत पर हैं.

इस बार जबकि शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ड्ग्स के मामले में फिलहाल जेल में हैं और इस पर पूरी फिल्म इंडस्ट्री  ने चुप्पी साध रखी है,तब पायल घोष ‘ड्रग्स विरोधी अभियान’शुरू करने की योजना बना रही हैं. पायल घोष की इस योजना की भनक लगते ही बौलीवुड का एक तबका उनके विरोध में खड़ा हो गया है. जबकि पायल घोष का मानना है कि बौलीवुड के इसीतबकेनेपूरेबौलीवुडपरधब्बालगारखाहै.औरवहकिसीसेडरतीनहीहै.उनकादावाहैकिवहपीछेेहटनेवालोमेंसेनहींहै.

वैसे इस बार ‘‘ड्ग्स विरोधी’’अभियान में पायल घोष को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रामदास अठावले का भी साथ मिल गया है.जी हाॅ!पायल घोष ‘‘ड्ग्स विरोधी’’अभियान की शुरूआत केंद्रीयमंत्री रामदास अठावले के साथ करने जा रही हैं,इससे उनका यह अभियान काफी बड़ा हो सकता है.

जब इस संदर्भ में हमने पायल घोष से बात की,तो पायल घोष ने कहा-‘‘मैं ‘ड्ग्स विरोधी’अभियान को सफल बनाने और बौलीवुड के साथ साथ पूरे देश को ड्ग्स मुक्त बनाने के लिए कमर कस चुकी हॅूं. इसमें परीक्षण और कई अन्य आयाम शामिल होंगे और मैं सिर्फ टीम और कार्यक्षेत्र को अंतिम रूप दे रही हूं,जिसमें यह काम करेगा .हमारी इस मुहीम का हिस्सा बनने वाले हर इंसान से कहना चाहती हॅूं कि उन्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं है. हम सभी का क सद इस देश को एक सुरक्षित वातावरण बनाने के साथ ही उन सभी नकली आरोपों से मुक्त करना है, जो हम पर लगाए गए हैं.लेकिन ड्रग्स का उपयोग करने और इसे बेचने वालों को जरुर डरना होगा. हम उन्हें अब ऐसा नही करने देंगें.यह एक दिन है समय और हम इसे अंजाम देने के लिए एक ठोस टीम लाएंगे.’’

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