सौजन्य- सत्यकथा

एक बीघा के 50 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए सुन कर किसानों का मुंह खुला का खुला रह जाता है कि इतना तो वे सौ साल खेती कर के भी नहीं कमा पाएंगे. और वैसे भी आजकल खेतीकिसानी खासतौर से छोटी जोत के किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी है. लिहाजा वे एकमुश्त मिलने वाले मुंहमांगे दाम का लालच छोड़ नहीं पाते और जमीन बेच कर पास के किसी कसबे में बस जाते हैं.

इसी गांव का एक ऐसा ही किसान है 48 वर्षीय लीलू त्यागी, जिस के हिस्से में पुश्तैनी 15 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन आई थी. बाकी 10 बीघा 2 बड़े भाइयों सुधीर त्यागी और ब्रजेश त्यागी के हिस्से में चली गई थी.जमीन बंटबारे के बाद तीनों भाई अपनीअपनी घरगृहस्थी देखने लगे और जैसे भी हो खींचतान कर अपने घर चलाते बच्चों की परवरिश करने लगे. बंटवारे के समय लीलू की शादी नहीं हुई थी, लिहाजा उस पर घरगृहस्थी के खर्चों का भार कम था.

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गांव के संयुक्त परिवारों में जैसा कि आमतौर पर होता है, दुनियादारी और रिश्तेदारी निभाने की जिम्मेदारी बड़ों पर होती है, इसलिए भी लीलू बेफिक्र रहता था और मनमरजी से जिंदगी जीता था.
साल 2001 का वह दिन त्यागी परिवार पर कहर बन कर टूटा, जब सुधीर अचानक लापता हो गए. उन्हें बहुत ढूंढा गया पर पता नहीं चला कि उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया.कुछ दिनों की खोजबीन के बाद त्यागी परिवार ने तय किया कि सुधीर की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी जाए. लेकिन इस पर लीलू बड़ेबूढ़ों के से अंदाज में बोला, ‘‘इस से क्या होगा. उलटे हम एक नई झंझट में और फंस जाएंगे. पुलिस तरहतरह के सवाल कर हमें परेशान करेगी. हजार तरह की बातें समाज और रिश्तेदारी में होंगी. उस से तो अच्छा है कि उन का इंतजार किया जाए. हालांकि वह किसी बात को ले कर गुस्से में थे और मुझ से यह कह कर गए थे कि अब कभी नहीं आऊंगा.’’

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